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Wednesday 31 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

 #23
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦_*
उनकी कहावत उसकी तरह है जिसने आग रौशन की तो जब उससे आसपास सब जगमगा उठा, अल्लाह उनका नूर ले गया और उन्हें अंधेरियों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं सूझता.

*तफ़सीर*
     यह उनकी मिसाल है जिन्हें अल्लाह तआला ने कुछ हिदायत दी या उसपर क़ुदरत बख्शी, फिर उन्होंने उसको ज़ाया कर दिया और हमेशा बाक़ी रहने वाली दौलत को हासिल न किया. उनका अंजाम हसरत, अफसोस, हैरत और ख़ौफ़ है.
     इसमें वो मुनाफ़िक़ भी दाखि़ल हैं जिन्होंने ईमान की नुमाइश की और दिल में कुफ़्र रखकर इक़रार की रौशनी को ज़ाया कर दिया, और वो भी जो ईमान  लाने के बाद दीन से निकल गए, और वो भी जिन्हें समझ दी गई और दलीलों की रौशनी ने सच्चाई को साफ़ कर दिया मगर उन्होंने उससे फ़ायदा न उठाया और गुमराही अपनाई और जब हक़ सुनने, मानने, कहने और सच्चाई की राह देखने से मेहरूम हुए तो कान, ज़बान, आंख, सब बेकार हैं.
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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