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Thursday 11 August 2016

सिरते मुस्तफा


*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     उन दरख्तो को काट देना ही बेहतर है इस मौके पर सूरए हशर की ये आयत उतरी :
*जो दरख्त तुम ने काटे या जिन को उन की जड़ो पर क़ाइम छोड़ दिये ये सब अल्लाह के हुक्म से था ताकि खुदा फासिक़ो को रुस्वा करे*
     मतलब ये है कि मुसलमानो में जो दरखत काटने वाले है उन का अमल भी दुरस्त है और जो काटना नहीं चाहते वो भी ठीक कहते है क्यू कि कुछ दरख्तो को काटना और कुछ को छोड़ देना ये दोनों अल्लाह के हिक्म और उस की इजाज़त से है।
     बहर हाल आखीरे कार मुहासरे से तंग आ कर बनू नज़ीर के यहूदी इस बात पर तैयार हो गए कि वो अपना अपना मकान और किला छोड़ कर इस शर्त पर मदीने से बाहर चले जाएंगे कि जिस क़दर माल व अस्बाब वो ऊंटो पर ले जा सके ले जाए।
     हुज़ूरﷺ ने यहूदियो की इस शर्त को मंज़ूर फरमा लिया और बनू नज़ीर के सब यहूदी 600 ऊंटो पर अपना माल व सामान लाद कर एक जुलुस की शक्ल में गाते बजाते हुए मदीना से निकले कुछ तो "खैबर" चले गए और ज़्यादा तादाद में मुल्क शाम जा कर "अज़रआत" और "उरैहा" में आबाद हो गए।
     इन लोगो के चले जाने के बाद इन के घरो की मुसलमानो ने जब तलाशी ली तो 50 लिहे की टोपिया, 50 ज़ीरहे, 340 तलवारे निकली, जो हुज़ूरﷺ के क़ब्ज़े में आई।
     अल्लाह ने बनू नज़ीर के यहूदियो की इस जिला वतनी का ज़िक्र सूरए हशर में इस तरह फ़रमाया कि :
*अल्लाह वोही है जिस ने काफ़िर किताबियो को उन के घरो से निकाला उन के पहले हशर के लिये, ऐ मुसलमान ! तुम्हे ये गुमान न था कि वो निकलेंगे और वो अमझते थे कि उन के किले उन्हें अल्लाह से बचा लेंगे तो अल्लाह का हुक्म उनके पास आ गया जहा से उन को गुमान भी न था और उस ने उन के दिलो में खौफ डाल दिया कि वो अपने घरो को खुद अपने हाथो से और मुसलमानो के हाथो से वीरान करते है तो इब्रत पकड़ो ऐ निगाह वालो !*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 300*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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