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Sunday, 14 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#06
*_सूरए फातिहा_*
*तफ़सीर* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*मालिके यौमिद्दीन*
     (यानि इन्साफ वाले दिन का मालिक) में यह बता दिया गया कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है क्योंकि सब उसकी मिल्क में है और जो ममलूक यानी मिल्क में होता है उसे पूजा नहीं जा सकता.
     इसी से मालूम हुआ कि दुनिया कर्म की धरती है और इसके लिये एक आख़िर यानी अन्त है. दुनिया के खत्म होने के बाद एक दिन जज़ा यानी बदले या हिसाब का है.
     इससे पुनर्जन्म का सिद्धान्त या नज़रिया ग़लत साबित हो गया.

*इय्याका नअबुदु*
     (यानि हम तुझी को पूजें) अल्लाह की ज़ात और उसकी खूबियों के बयान के बाद यह फ़रमाना इशारा करता है कि आदमी का अक़ीदा उसके कर्म से उपर है और इबादत या पूजा पाठ का क़ुबूल किया जाना अक़ीदे की अच्छाई पर है.
     इस आयत में मूर्ति पूजा यानि शिर्क का भी रद है कि अल्लाह तआला के सिवा इबादत किसी के लिये नहीं हो सकती.
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