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Sunday 21 August 2016

मदनी पंजसुरह

*क़ुबूलिय्यते दुआ में ताखीर का एक सबब*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     बसा अवक़ात क़बूलिय्यते दुआ की ताखीर में काफी मसलहते भी होती है जो हमारी समझ में नही आती। हुज़ूर का फरमान है : जब अल्लाह का कोई प्यारा दुआ करता है, तो अल्लाह जिब्राईल अलैहिस्सलाम से इरशाद फ़रमाता है, ढहरो ! अभी न दो ताकि फिर मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ पसन्द है। और जब कोई काफ़िर या फ़ासिक़ दुआ करता है, फ़रमाता है, ऐ जिब्राईल ! इस का काम जल्द कर दो, ताकि फिर न मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ मकरूह (न पसन्द) है।
*कैरुल उम्माल 2/39, हदिष, 3261*

*_हिकायत_*
     हज़रते यहया बिन क़त्तानرضي الله تعالي عنه ने अल्लाह को ख्वाब में देखा अर्ज़ की, इलाही ! में अक्सर दुआ करता हु। और तू क़बूल नही फ़रमाता ? हुक्म हुवा, ऐ यहया ! में तेरी आवाज़ को दोस्त रखता हु। इस वासिते तेरी दुआ की क़बूलिय्यत में ताखीर करता हु।
*✍🏽अहसनुल वीआअ, 35*
     ये हादिशे पाक और हिकायत पेश की उसमे ये बताया गया है कि अल्लाह को अपने बन्दों की गीर्य व ज़ारी पसन्द है तो यु भी बसा अवक़ात क़बूलिय्यते दुआ में ताखीर होती है। अब इस मस्लहत को हम कैसे समझ सकते है !
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 188*
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