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Friday 5 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 4)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     पस (इस लिये) नफ्सकी मुखालेफत ही में बेहतरी है। दरहकीकत नफ्सकी मुखालिफत करते हुवे लोगोंके हराम और मुशतबा (जिसमे शुबा न हो) मालसे इजतेनाबही परहेज़गारी है। न इनका एहसानमन्द हो न इन पर भरोसा करो और, न इन से डरो, न इनके पास जो कुछ थोडा बहोत है उसका लालच करो और न ज़कात, सदकात, कुफ्फारा, हदीया या नज़र के हुसूलकी तवक्को रख्खो।
     चुनान्चे खलकत से कोइ ख्वाहिशात हासिल करनेका कोइ इरादा न करो। यहा तक के किसी बासरवत रिश्तेदारकी वफात पर तुम्हें माल मिलनेकी उम्मीद हो तो उसकी रेहलतकी ख्वाहिश न करो और हर इम्कानी तरीके से मख्लूक से किनारा कर लो।
उन्हें उन दरवाज़ोंकी तरह समज़ो जो कभी खुलते कभी बंद होते है या उन दरख्तो की तरह जानो जो कभी फल देते है, कभी नही देते और यकीन जानो के ये सब अफआल अल्लाह तआला के फेअल और तदब्बुर (गौर करना) ही के बाईस अमलमें आते है के वही फाइले हकीकी है।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 22,23
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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