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Saturday 20 August 2016

मदनी पंजसुरह

*दुआ के 5 मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     पहला फायदा ये है कि अल्लाह के हुक्म की पैरवी होती है कि उसका हुक्म है मुझ से दुआ माँगा करो। जैसा कि क़ुरआन में इरशाद है :
*मुझ से दुआ करो में क़बूल करूँगा*
पारह, 24, अल-मोमिन, 60
     दुआ मांगना सुन्नत है कि हुज़ूर अक्सर अवक़ात दुआ मांगते।
     दुआ मांगने में इताअते रसूल भी है कि आप दुआ की अपने गुलामो को ताकीद फरमाते रहते।
     दुआ मांगने वाला आबिदो के गिरोह में दाखिल होता है कि दुआ बज़ाते खुदा एक इबादत बल्कि इबादत का भी मग्ज़ है। जैसा की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया :
*दुआ इबादत का मग्ज़ है*
_✍🏽तिर्मिज़ी, 5/243_
     दुआ मांगने से या तो उसका गुनाह मुआफ़ किया जाता है या दुन्या ही में उसके मसाइल हल होते है या फिर वो दुआ उस के लिये आख़िरत का ज़खीरा बन जाती है।

*_नजाने कौन सा गुनाह हो गया है ?_*
     देखा आपने ! दुआ मांगने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उसके हबीबﷺ की इताअत भी है, दुआ मांगना सुन्नत भी है, दुआ मांगने से इबादत का षवाब भी मिलता है नीज़ दुन्या व आख़िरत के मुतद्दद फवाइद हासिल होते है।
     बाज़ लोगो को देखा गया है कि वो दुआ की क़बूलिय्यत के लिये बहुत जल्दी मचाते बल्कि मआज़ अल्लाह ! बाते बनाते है कि हम टोइटने अरसे से दुआए मांग रहे है, बुज़ुर्गो से भी दुआए करवाते रहे है, कोई पिर फ़क़ीर नही छोड़ा, ये वज़ाइफ पढ़ते है, वो अवराद पढ़ते है, मगर अल्लाह हमारी हाजत पूरी करता ही नही। बल्कि बाज़ ये भी कहते सुने जाते है : *न जाने ऐसा कौन सा गुनाह हो गया है जिस की हमे सज़ा मिल रही है*

बाक़ी कल की पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 184*
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