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Saturday 13 August 2016

फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा


#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_बरकाते दुरुदो सलाम_*
     उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में वक़्ते आहार कुछ सी रही थी कि मेरे हाथ से सुई गिर गई और चराग बुझ गया। इतने में हुज़ूरﷺ तशरीफ़ ले आए, आप के चेहरए ज़ियारत के अनवार से सारा कमरा जगमगा उठा और सुई मिल गई।
     मेने अर्ज़ की य या रसूलल्लाहﷺ ! आप का चेहरए अनवर कितना रोशन है। तो आप ने इरशाद फ़रमाया : ऐ आइशा ! हलाकत है उस के लिये जो बरोज़े क़यामत मुझे न देखेगा। मेने अर्ज़ की : बरोज़े क़यामत आप की ज़ियारत से कौन महरूम रहेगा ? इरशाद फ़रमाया : बखिल। मेने पूछा : या रसूलल्लाहﷺ ! बखिल कौन है ?
     इरशाद फ़रमाया : जो मेरा नाम सुन कर मुझ पर दुरुदे पाक न पढ़े।

*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 11*
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खादिमा ए दिने नबी ﷺ, *साइमा मोमिन*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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