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Monday 15 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरए फातिहा_*
*तफ़सीर* #03
*वइय्याका नस्तईन*
     (यानि और तुझी से मदद चाहें) में यह सिखाया गया कि मदद चाहना, चाहे किसी माध्यम या वास्ते से हो, या फिर सीधे सीधे या डायरैक्ट, हर तरह अल्लाह तआला के साथ ख़ास है.
     सच्चा मदद करने वाला वही है. बाक़ि मदद के जो ज़रिये या माध्यम है वाे सब अल्लाह ही की मदद के प्रतीक या निशान है.
     बन्दे को चाहिये कि अपने पैदा करने वाले पर नज़र रखे और हर चीज़ में उसी के दस्ते क़ुदरत को काम करता हुआ माने.
     इससे यह समझना कि अल्लाह के नबियों और वलियों से मदद चाहना शिर्क है, ऐसा समझना ग़लत है क्योंकि जो लोग अल्लाह के क़रीबी और ख़ास बन्दे है उनकी इमदाद दर अस्ल अल्लाह ही की मदद है.
     अगर इस आयत के वो मानी होते जो वहाबियों ने समझे तो क़ुरआन शरीफ़ में *अईनूनी बि क़ुव्वतिन*और *इस्तईनू बिस सब्रे वसल्लाह* क्यों आता, और हदीसों में अल्लाह वालों से मदद चाहने की तालीम क्यों दी जाती.

*इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम*
     (यानी हमको सीधा रास्ता चला) इसमें अल्लाह की ज़ात और उसकी ख़ूबियों की पहचान के बाद उसकी इबादत, उसके बाद दुआ की तालीम दी गई है.
     इससे यह मालूम हुआ कि बन्दे को इबादत के बाद दुआ में लगा रहना चाहिये. हदीस शरीफ़ में भी नमाज़ के बाद दुआ की तालीम दी गई है.
*✍🏽तिबरानी और बेहिक़ी*
     सिराते मुस्तक़ीम का मतलब इस्लाम या क़ुरआन नबीये करीम (अल्लाह के दुरूद और सलाम उनपर) का रहन सहन या हुज़ूर या हुज़ूर के घर वाले और साथी हैं.
     इससे साबित होता है कि सिराते मुस्तक़ीम यानी सीधा रास्ता एहले सुन्नत का तरीक़ा है जो नबीये करीम सल्लाहो अलैहे वसल्लम के घराने वालों, उनके साथी और सुन्नत व क़ुरआन और मुस्लिम जगत सबको मानते हैं.
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