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Sunday 7 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 6)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     अपने हिस्सेको मख्लूक से अलाहेदा समज़ो, हुकमे इलाही बजा लाओ। किसी मआमले में खुद हुकमरान न बन बैठना। क्योंके हाकमियते असली अल्लाह तआलाकी है और क्योंके मख्लूक में तुम्हारी शमूलियत (शामिल) मुकद्दर हो चुकी है और मुकद्दर की तारीकी (अंधेरे) में किताब-व-सुन्नतकी रोशनी ले कर दाखिल होना ज़ुरूरि है। उस पर पूरी तरह अमल करना। अगर तुम्हारे दिलमें कोई वसवसा पैदा हो या इल्हामे राह (खुदा की तरफ से दिलमें आइ हुइ बात) पाए तो देखलो के वो कुर्आन-व-सुन्नतके मुताबिक है या नहीं।
     अगर ज़िना (बदकारी) करने, सूद लेने, फासिक फाजिर लोगोंसे तआल्लुकात उस्तेवार करने और इसी किस्मकी दूसरी तमन्नाऐं दिलमें जनम लें तो चूंके ये सब काम हराम है, इसलिये इनसे बचो। इस किसमके वसवसे-शैतान दिलोंमें पैदा करता है। इन्हें दिल-व-दिमागसे निकाल फेंको और किसी सूरत इन पर अमल न करो और जिन बातोंको कुर्आन व सुन्नतने मुबाह (हलाल) करार दिया है मसलन खाना, पीना, पेहनना, निकाह करना वगैरह तो इनसे भी ऐहतेराज़ (परहेज़) करो! क्योंके हाकीकतन ये भी नफसकी ख्वाहिशें हैं और तुम्हें नफस और उसकी ख्वाहिशोंकी मुखालेफत करनी है।

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज ,24
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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