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Friday 19 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ③/1_*
वो जो बेदेखे ईमान लाएं,

*तर्जुमह*
     “अल लज़ीना यूमिनूना बिल ग़ैब” (यानी वो जो बे देखे ईमान लाएं) से लेकर  “मुफ़लिहून” (यानी वही मुराद को पहुंचने वाले ) तक की आयतें सच्चे दिल से ईमान लाने और उस ईमान को संभाल कर रखने वालों के बारे में हैं. यानी उन लोगों के हक़ में जो अन्दर बाहर दोनों से ईमानदार हैं.
     इसके बाद जो आयतें खुले काफ़िरों के बारे में हैं जो अन्दर बाहर दोनों तरह से काफ़िर हैं.
     इसके बाद “व मिनन नासे” (यानी और कुछ कहते हैं) से तेरह आयतें मुनाफ़िकों के बारे में हैं जो अन्दर से काफ़िर हैं और बाहर से अपने आपको मुसलमान ज़ाहिर करते हैं.
*✍🏽जुमल*
     “ग़ैब” वह है जो हवास यानी इन्दि्यों और अक्ल़ से मालूम न हो सके. इसकी दो क़िसमें हैं _
     एक वो जिसपर कोई दलील या प्रमाण न हो, यह इल्मे ग़ैब यानी अज्ञात की जानकारी जा़ती या व्यक्तिगत है और यही मतलब निकलता है आयत “इन्दहू मफ़ातिहुल ग़ैबे ला यालमुहा इल्ला हू” (और अल्लाह के पास ही अज्ञात की कुंजी है), और अज्ञात की जानकारी उसके अलावा किसी को नहीं) में और उन सारी आयतों में जिनमें अल्लाह के सिवा किसी को भी अज्ञात की जानकारी न होने की बात कही गई है. इस क़िस्म का इल्में ग़ैब यानी ज़ाती जिस पर कोई दलील या प्रमाण न हो, अल्लाह तआला के साथ विशेष या ख़ास है.
     गै़ब की दूसरी क़िस्म वह है जिस पर दलील या प्रमाण हो जैसे दुनिया और इसके अन्दर जो चीज़ें हैं उनको देखते हुए अल्लाह पर ईमान लाना, जिसने ये सब चीज़ें बनाई हैं, इसी क़िस्म के तहत आता है क़यामत या प्रलय के दिन का हाल, हिसाब वाले दिन अच्छे और बुरे कामों का बदला इत्यादि की जानकारी, जिस पर दलीलें या प्रमाण मौजूद हैं और जो जानकारी अल्लाह तआला के बताए से मिलती है. इस दूसरे क़िस्म के गै़ब, जिसका तअल्लुक़ ईमान से है, की जानकारी और यक़ीन हर ईमान वाले को हासिल है, अगर न हो तो वह आदमी मूमिन ही न हो.
     अल्लाह तआला अपने क़रीबी चहीते बन्दों, नबियों और वलियों पर जो गै़ब के दरवाज़े खोलता है वह इसी क़िस्म का ग़ैब है. गै़ब की तफ़सीर या व्याख्या में एक कथन यह भी है कि ग़ैब से क़ल्ब यानी दिल मुराद है. उस सूरत में मानी ये होंगे कि वो दिल से ईमान लाएं.
*✍🏽जुमल*
     ईमान : जिन चीज़ों के बारे में हिदायत और यक़ीन से मालूम है कि ये दीने मुहम्मदी से हैं, उन सबको मानने और दिल से तस्दीक़ या पुष्टि करने और ज़बान से इक़रार करने का नाम सही ईमान है.
     कर्म या अमल ईमान में दाख़िल नहीं इसीलिये “यूमिनूना बिल गै़बे” के बाद “युक़ीमूनस सलाता” (और नमाज़ क़ायम रखें) फ़रमाया गया.
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