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Monday 8 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 7)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     और अगर ऐसी बातकी तरफ इशारा हो जिसे कुर्आन-व-सुन्नतने हराम या मुबाह करार दिया बल्के तुम इसको समजते ही नही हो मसलन ये के किसी खास जगाह जा कर किसी खास आदमीसे मिलना जब के खुदा तआलासे हासिल करदाह इल्म व मआरिफत के हिसाब से तुम्हें वहां जा कर किसी मर्दे सालेह से मुलाकातकी ज़ुरूरत नहीं है तो इस सिलसिले में जल्दी न करो, तवक्कूफ (ढील) करो, दिलमें सोचो के क्या ये खुदाकी तरफ से इल्हाम है।
    इंतेजार करो, अगर हुकमे इलाही हुआ तो वही इल्हाम बार बार होगा। तुम्हें इस पर अमलका हुकम दिया जाएग। या कोइ एसी निशानी ज़ाहिर होगी जो आलमे बिल्लाह इन्सानों पर ज़ाहिर हुवा करती है, और साहबाने कुव्वत व इदराक औलिया व अब्दाल पर खुलती है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 24,25
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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