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Saturday 6 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 5)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      ईसके बावजूद मख्लूक की महोब्बत और कोशिश के उसूलको फरामोश नही करना चाहिये। अगर ये भूल बेठे तो फिरका जबरया (इस्लाम का एक फिरका जिसका एअतेकाद है के ईन्सान को अपने आअमाल-व-अफआल पर कोई ईख्तियार नही) में शामिल हो जाओगे। लेकिन ये अकीदा जुरूरी है के कोई काम कुदरते खुदावंदी के बगैर मुकम्मिल नहीं होता।
      खुदा को भूल कर मख्लूक को पूजने लगोगे। ये समजना के बंदा खुदा के बगैर खुद ही अपने ईरादे और फैअल का मालिक-व-मुख्तार है। कुफ्र है और फिरकए “कदरिय” (एक फिरका जो कज़ा-व-कद्रका मुंकर है) में शमुलियत (शालिम होना) पर दाल (आतिशी शोशेका अकस जिससे आग सुलगती है) हैं। दुरस्त अकीदा ये है के अफआलका खालिक अल्लाह है और ऊन्हे अंजाम देनेवाले बंदे है। जैसा के अजाब-व-सवाब के सिलसिले में बयान होनेवाली हदीससे वाज़ेह है, पस (इसलिये), एहकामे ,ताअमील-ज़ुरूरी है।
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज ,23
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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