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Sunday 21 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*हम पर क्या गुज़रेगी ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इन्सान के दो घर होते है : एक ज़मीन के ऊपर और एक ज़मीन के अंदर (यानी क़ब्र), आज हम अपने घर को आराम देह व पुर सुकून बनाने के लिये कैसे कैसे जतन करते है, अँधेरे को दूर करने के लिये जगह जगह बल्ब रोशन करते है, गर्मी में ठन्डक के लिये AC और सर्दी के मौसम में heater तक लगवाते है।
     मगर एक दिन सब कुछ छोड़छाड़ कर खाली हाथ दूसरे घर यानी क़ब्र में मुन्तकिल हो जाएंगे। सोचिये तो सही उस वक़्त हम पर क्या गुज़रेगी जब क़ब्र की वहशतो, गहरी तारीकियों और अजनबी माहोल की उदासियों में तन्हा होंगे, कोई हमदर्द न मददगार, किसी को बुला सके न खुद कही जा सके, हम पर केसी घबराहट तारी होगी !

अँधेरा काट खाता है अकेले खौफ आता है
     तो तन्हा क़ब्र में क्यूँकर रहूंगा या रसूलल्लाह...
नकिरैन इम्तिहाँ लेने को जब आएँगे तुर्बत में
     जवाबात उनको आका कैसे दूंगा या रसूलल्लाह...
बराए नाम दर्द सर सहा जाता नही मुझ से
     अज़ाबे क़ब्र कैसे सह सकूँगा या रसूलल्लाह...
यहाँ चूंटी भी तड़पा दे मुझे तो क़ब्र के अंदर
     शहा बिच्छु के डंक कैसे सहूँगा या रसूलल्लाह....

*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 29*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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