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Tuesday 9 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*पीछे क्या छोड़ा ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से मारवी है :
जब कोई शख्स मर जाता है तो फ़रिश्ते कहते है के इस ने आगे क्या भेजाब ?
और लोग पूछते है : इसने पीछे क्या छोड़ा ?
*✍🏽शोएबुल ईमान 7/328*

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस हदीस क तहत फरमाते है : यानी मरते वक़्त उसके वारिसिन तो छोड़े हुए माल की फ़िक्र में होते है के क्या छोडे जा रहा है ? और फ़रिश्ते उसकी क़ब्ज़े रूह वगैरा के लिये आते है वो उसके आमाल व अक़ायद का हिसाब लगाते है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह 7/84*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त 13*
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खादिमे दिने नबी ﷺ, *मुहम्मद मोईन*
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*अहलो अयाल को अपना सबकुछ समझने वाले*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हम दुन्या में तन्हा आए थे और तन्हा ही लौट जाएंगे, लेकिन इस दुन्या में हम तन्हा नही रहते बल्कि बहुत से अफ़राद मसलन माँ बाप, भाई बहन, बीवी बच्चे, अज़ीज़ों अक़ारिब क्र दोस्त अहबाब वगैरा हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा होते है, वो हमारा और हम उनका ख़याल रखते है और रखना भी चाहिये क्यू के शरीअत ने भी इनके हुक़ूक़ बयान किये है।
     फित्रि तोर पर हमे इन से महब्बत होती है मगर अक्सर लोग अपने अहलो अयाल की महब्बत में ऐसा ग़ुम हो जाते है के फिर उन्हें क़ब्र याद रहती है न मैदाने महशर, जिसका नतीजा ये निकलता है के मुअज्ज़िन नमाज़ के लिये बुला रहा होता है मगर ये घर वालो से खुश गप्पियों में ऐसे मगन होते है के भरी महफ़िल छोड़ कर मस्जिद का रुख करने को इनका जी नही चाहता, इनके बच्चों का किसी के बच्चों से झगड़ा हो जाए तो अपनी औलाद का कुसूर होने के बा वुजूद मुआफ़ी मांगने के बजाए तू तुकार बल्कि मार धाड़ पर उतर आते है,
     शरीअत औरत से पर्दे का तकाज़ा करती है मगर ये अपने शोहर को राज़ी रखने के लिये बे पर्दगी का ईशतिहार बन कर रह जाती है, इसी तरह बाज़ नादान अपने घरवालो की फरमाइशें और ज़रूरतें पूरी करने के लिये माले हराम का वबाल भी अपने सर ले लेते है जो के सरासर क्षार का सौदा है।

*अपने आप को हलाकत में डालने वाला बद नसीब*
इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में....
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त 14*
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