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Tuesday 9 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 8)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      इसलिये ऐसे काममें जलदी न करो। क्योंके के इसका मकसद, अन्जाम, खुदाकी मरज़ीका तुम्हें इल्हाम नहीं और ये भी पता नही के इसमें फितना, हिलाकत, मकर या इम्तेहान क्या चीज़ कारफरमा है। चुनान्चे उस वक्त तक सब्र से काम लो। जब अल्लाह तआला खुद ही फाइल हो जाए। जब सिर्फ फअले हककी कैफियत बाकी रेह जाएगी और तुम्हें “ताइदे हक” मिल जाएगी। ऐसे में अगर कोइ फित्ना पैश भी आए तो उसके शर (बदी-बुराइ) से तुम्हें मेहफूज़ कर दिया जाएगा। क्योंके खुदावंदे करीम अपनी मशीयत (किसमत) पर तुम्हारी पकड नहीं करेगा। बंदे को अज़ाब इसी सूरत में दिया जाता है, जब वो खुदाई कामोंमें दखल दे। अगर तुम विलायतकी रिफअतोंके खवाहिशमंद हो तो मुखलिफते नफस को शआर कर लो और अवामिर (एहकाम)की पैरवी में अपने आपको ढाल लो।
      ये पैरवी दो तरह से है। *पेहली किस्म* ये है के दुनिया के माल से खुरदोनोश के लिये सिर्फ बकद्रे किफायत लिया जाए। नफसकी लिज़्ज़तोंसे बचें और अपने ज़ाहिर और बातिन को गुनाहोंसे बचाऐं।
*दुसरी किस्म* ये है के अपने आपको बातिनी अमर(लाफानी, फरमान) पर माअमूर कर लें।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 25
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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