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Monday 1 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*जलाली और जमाली सिफात:*
(हिस्सा 3)
 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      और मुशाहेदा ए जमाल दिलों और मिज़ाजोंमे खुदाकी सिफाते रेहमत,नुरो सुरुर,बख्शीश-व-इनायत, अल्ताफ-व-करम,अफ-व-दरगुज़र और जूदो (सखावत) -व-सखा(बख्शीश-खैरात)की तमानियत-व- फरहतका हुसूल है। यही चीज़ें हैं जिनकी तरफ आखिरे कार लौटना है और जिनके साथ फज़लो रेहमतसे इन चीज़ोंको कलमबंद कर के कलम खुश्क हो चुका है और जिसकी बख्शीशें ज़मानए गुज़िश्तामें मुकद्दर हो चुकी हैं।
      खुदावंदे करीम अपने फज़लो करमसे औलियाअ और अब्दाल को तादमे मर्ग(मौत आने तक) इसी हालत पर रखता है। ताके फर्ते शौक से उनकी महोब्बत और शिद्दते शौक हद से ना गुज़र जाए और इनकी कुव्व्तें ज़ाइल हो कर और मौजुदा हालत ज़वालपज़ीर हो कर इनकी हलाकत की वजह न बन जाए। या बंदगी के आदाबमें किसी कोताही या तसापल का अंदेशा न ज़ाहिर हो और ये ऐसी हालतमें फौत (नेस्त,माअदूम) हो जाए।
     लुत्फो करमके लेहाज़ से या चीज़ें इनके दिलोंसे इमराज़को(बीमारियोंको) दूर करती हैं और दिलोंकी तरबियतके ज़रीये नरमी और सलाबत(मज़बूती) इख्तयार करने पर उकसाती हैं। ऐसे लोगोंके लिये खुदावंदे तआला हकीम, अलीम, लतीफ है और उन पर रउफ-व-रहीम हैं।
     चुनांचे फख्रे मौजूदात अलैहिस्सलाम-व-सलात फरमाया करते थे- अय बिलाल! इकामत-(कयाम-करार) केह कर हमें राहत पहोंचा ताके इन चीज़ों के मुशाहेदे के लिये(जिनका ज़िक्र किया जा चुका है) हम नमाज़ में दाखिल हों और जमाले इलाहीसे मुस्तफीद(फायदा चाहनेवाले) हों। इसी लिये आका-व-मौला अल्तहय्यता व सना ने फरमाया : _नमाज़ मेरी आंखोंकी ठंडक है।_
*✍🏽फुतूहल ग़ैब, पेज 21*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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