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Friday 15 September 2017

*सजदए सहव* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़ में अगर्चे 10 वाजिब तर्क हुए हो, सहव के दो ही सज्दे सब के लिये काफी है।

     रूकू के बाद सीधा खड़ा होना या दो सजदों के दरमियान एक बार *सुब्हान अल्लाह* कहने की मीक़दार सीधा बेठना भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

     क़ुनूत या तकबीरे क़ुनूत भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

     किराअत वग़ैरा किसी मौक़ा पर सोचने में *3 बार सुब्हान अल्लाह* कहने का वक़्फ़ा गुज़र गया तो सज्दए सहव वाजिब हो गया।

     सज्दए सहव के बाद भी अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब है।

     इमाम से सहव हुवा और सज्दए सहव किया तो मुक्तदि पर भी सज्दा वाजिब है।

     अगर मुक्तदि से ब हालते इक़्तिदा सहव वाके हुवा तो सज्दए सहव वाजिब नहीं।
और नमाज़ लौटने की भी हाजत नहीं।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.208*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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