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अल-हक़्क़ुल मुबीन

☝🏼हक़ पर कौन❓

⤵Post~01

🚨वहाबी - देवबंदी🚨

🎭अगर्चे वहाबी-देवबंदी दो लफ़्ज़ है लेकिन इनसे मुराद सिर्फ वोही गुरौह है जो अपने मा सिवा दूसरे तमाम मुसलमान को काफ़िर व मुशरिक और बिदअ'ती क़रार देता है

🏮और जिस के सर बरआवरदा लोगो ने अपनी किताबो में रसूलुल्लाह ﷺ व दीगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम व महबुबाने खुदावन्दी की शान में तौहीन आमेज़ इबारते लिखी

🏮और बाज़ उयुब व नक़ाइस को अम्बिया व औलिया अलैहिमुस्सलाम की तरफ़ बे धड़क मन्सुब किया।

🗿इस किस्म के लोगो का वूज़ूद अ'हदे रिसालत से ही चला आ रहा है।

☝🏼चुनान्चे अल्लाह तआ'ला क़ुरआन में इर्शाद फ़रमाता है :
🔸और इनमे कोई वो है जो सदके बाटने में तुम पर तान करता है तो अगर इनमे से कुछ मिले तो राज़ी हो जाए और न मिले तो जब ही वो नाराज़ है
🔸और क्या अच्छा होता अगर वो इस पर राज़ी होते जो अल्लाह और उसके रसूल ने उनको दिया और कहते अल्लाह काफ़ी है
🔸अब देता है अल्लाह हमें अपने फ़ज़्ल से और उसका रसूल हमें अल्लाह ही की तरफ़ रग़बत है।
📗सूरए तौबा, पारा 10

👆🏿ये आयत जुल खुवैसिरा तमिमि के हक़ में नाज़िल हुई। इस शख्स का नाम हुरकुस बिन ज़ुहैर है यही खवारिज की अस्ल बुन्याद है।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 4-5

📶जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...

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☝🏼हक़ पर कौन❓

⤵Post~02

🚨खारिजिय्यत की इब्तिदा🚨

🏮बुखारी और मुस्लिम की हदिष में है की रसूले करीम माले ग़नीमत तक़्सीम फ़रमा रहे थे तो जुल खुवैसिरा ने कहा : या रसूलुल्लाह अद्ल कीजिये।

🌴हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : तुझे ख़राबी हो, में अद्ल न करूंगा तो कौन करेगा ?

🌾हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया : मुझे इजाज़त दीजिये की इस मुनाफ़िक़ की गर्दन मार दू।

🌴हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : इसे छोड़ दो। इस के और भी साथी है की तुम उनकी नमाज़ों के सामने अपनी नमाज़ों को और उनके रोज़ो के सामने अपने रोज़ो को हक़ीर देखोगे।
🌴वो क़ुरआन पढ़ेंगे और उनके गलों से न उतरेगा। वो दिन से ऐसे निकल जाएंगे जेसे तीर शिकार से।

🌾दिन में दाखिल हो कर बे दिन होने वालो की इब्तिदा ऐसे ही लोगो से हुई है जो नमाज़, रोज़ा और दिन के सब काम करने वाले थे लेकिन इसके बा वुज़ूद उन्हों ने रसूलुल्लाह ﷺ की शाने अक़्दस में गुस्ताख़ी की और बे दिन हो गए।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 5-6

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⤵Post~03

🍀हज़रते अ'ली को शहीद करने वाला कौन❓

🌴हुज़ूरे अक़्दस ﷺ की शाने मुबारक में तौहीन करने वाले जुल खुवैसिरा के जिन हमराहियों का ज़िक्र हदिष शरीफ में आया है उनसे मुराद वो लोग है जिन्होंने जुल खुवैसिरा की तरह शाने रिसालत में गुस्ताखियां की।

🚨इस्लाम ये पहला गुरौह ख़ारीजियो का है, यही गुरौह अहले हक़ को काफिर व मुशरिक कह कर उन से किताल व जिदाल (जंग) को जाइज़ क़रार देता है।

🍀चुनान्चे सबसे पहले अज़रते अ'ली رضي الله تعالي عنه और आप के साथियो को ख़ारीजियो ने मआ'ज़अल्लाह काफ़िर क़रार दिया और खलिफए बरहक़ से बग़ावत की और अहले हक़ के साथ जिदाल व किताल किया हत्ता की अब्दुलरहमान बिन मुलजिम ख़ारिजी के हाथो हज़रते अ'ली رضي الله تعالي عنه शहीद हुए।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 6-7

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⤵Post~04

🌲फितनए खारिजिय्यत और उल्माए उम्मत🌲

🚨मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब ख़ारिजी ने सर ज़मीने नज्द में मुसलमानो को काफ़िर व मुशरिक कह कर सब को मुबासुद्दम (यानि जिनका कत्ल जाइज़ हो) क़रार दिया और तौहीद की आड़ ले कर शाने नबुव्वत व विलायत में खूब गुस्ताखियां की और अपने मज़हब व अक़ाइद की तरविज के लिये "किताबुतौहीद" तस्नीफ की।

🌾जिस पर उस ज़माने के उल्माए किराम ने सख्ती से रद किया और इस के शर से मुसलमानो को महफूज़ रखने के लिये बहुत कोशिश फ़रमाई हत्ता की मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के हक़ीक़ी भाई "सुलैमान बिन अब्दुल वह्हाब" रहमतुल्लाह अलैह ने अपने भाई पर सख्त रद किया और उस की तरदीद में एक शानदार किताब तस्नीफ की

🌾और इसमें वहाबिय्यत को पूरी तरह बे नक़ाब करके अहले सुन्नत के मज़हब की ज़बरदस्त ताईद व हिमायत फ़रमाई।

🌾अल्लामा शामी हनफ़ी, इमाम अहमद सावी मालिकी वगैरहुमा जलिलुल क़द्र उल्माए उम्मत ने मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब को बाग़ी और ख़ारिज क़रार दिया और मुसलमानो को इस फ़ितने से महफूज़ रखने के लिये अपनी जिद्दो जहद में कोई कषर् न छोड़ी।

✔मुलाहजा फरमाइये
📒शामी, जिल्द 3
📒बाबुल बगात, सफा 339
📘तफ्सिरे सावी जिल्द 3, सफा 255

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 7-8

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⤵Post~05

🌍हिन्द में फितनए खारिजिय्यत और उल्माए उम्मत🌍

⭕फिर इस "किताबुत्तोहिद" के मज़ामीन का खुलासा "तक़्वीयतुल ईमान" की सूरत में सर ज़मीन हिन्द में शाएअ हुवा और मौलवी इस्माइल दहेल्वी ने औने मुक़तदा मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब की पैरवी और जा नाशिनी का खूब हक़ अदा किया और इसी तक़्वीयतुल ईमान की तस्दीक़ व तौसीक़ तमाम उल्माए देवबंद ने की।
जेसा की फतावा राशिदिय्या, जिल्द 1, स. 20 पर मरकुम है।

⭕फिर जिस तरह मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के ख़िलाफ़ उस ज़माने के उल्माए अहले सुन्नत ने आवाज़ उठाई और उस का रद्द किया इसी तरह मौलवी इस्माइल दहेल्वी मुसन्निफे तक़्वीयतुल ईमान के खिलाफ भी उस दौर के उल्माए हक़ ने सदीद ऐहतिजाज किया और उन के मसलक पर सख़्त नुक्ताचीनी की।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 8-9

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⤵Post~06

🚫तक़्वीयतुल ईमान उल्मा की नज़र में🚫

🔻Part~01

⭕तक़्वीयतुल ईमान के रद्द में कई रिसाले शाएअ हुवे। मौलाना शाह अहमद सईद दहेल्वी शागिरदे रशीद मौलाना अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दीशे दहेल्वी रहमतुल्लाह अलैह (बिन शाह वालीयुल्लाह दहेल्वी मतवफ्फा 1230 ही.) मौलाना फज़ले हक़ खैराबादी (शहीदे जंगे आज़ादी 1857 ई.) मौलाना इनायत अहमद काकोरवि मुसन्निफे इल्मुस्सीगा (मुतवफ्फा 1279 ही.) मौलाना शाह रउफ अहमद नक्शबंदी मुजद्दिदि तलमिज़े रशीद हज़रते मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दीशे दहेल्वी रहमतुल्लाह अलैह ने "मौलवी इस्माइल दहेल्वी" और मसाइले "तकियातुल ईमान" का मुख्तिलिफ् तरीको से रद्द फ़रमाया

⭕हत्ता की "शाह रफीउद्दीन साहिब मुहद्दीशे दहेल्वी" ने अपने फतावा में भी "कितबुत्तोहिद" और मसाइले "तक़्वीयतुल ईमान" के खिलाफ वाज़ेह और रोशन मसाइल तहरीर फ़रमा कर उम्मते मुसल्मा को इस फ़ितने से बचाने की कोशिश की।

⭕लेकिन उल्माए देवबंद और उनके बाज़ असातिज़ा ने मौलवी इस्माइल दहेल्वी और उनकी किताब तक़्वीयतुल ईमान की तस्दीक़ व तौसीक़ करके इस फ़ितने का दरवाज़ा मुसलमानो पर खोल दिया।

⭕उल्माए देवबंद ने न सिर्फ तक़्वीयतुल ईमान और इसके मुसन्निफ़ मौलवी इस्माइल दहेल्वी की तस्दीक़ पर इक्तिफा किया बल्कि खुद मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब की ताईद व तौसीक़ से भी दरेग न किया।

🔭मुलाहज़ा फरमाइये
📕फतावा राशिदिय्या जिल्द 1 सफा 111
✏मुसन्निफ़ मौलवी रशीद अहमद साहिब गंगोही

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 109

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☝🏾हक़ पर कौन❓

⤵Post~06

❓सच्चा कौन❓

♻Part~01

💠तमाम रुए ज़मीन के अहनाफ़ और अहले सुन्नत मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के ख़ारिजी और बागी होने पर मुत्तफ़िक़ थे। इस लिये फतावा राशिदिय्या की वो इबारत जिसमे मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब की तौसीफ़ की गई थी,

💠उल्माए देवबन्द के मज़हब व मस्लक को अहले सुन्नत की नज़रो में मशकूक क़रार देने लगी और अहले सुन्नत फतावा राशिदिय्या में मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब की तौसीफ़ पढ़ कर ये समझने पर मजबूर हो गए की उल्माए देवबन्द का मज़हब भी मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब से तअल्लुक़ रखता है।

💠इसलिये मुतअख्खिरिन उल्माए देवबन्द ने अपने आप को छुपाने की गरज़ से मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब से अपनी ला तअल्लुक़ी का इज़हार करना शुरू कर दिया बल्कि मजबूरन उसे ख़ारिजी भी लिख दिया (अल मुहन्नद, स. 19-20)। ताकि आम्म्तुल मुस्लिमन पर उनका मज़हब वाज़ेह न होने पाए।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 10

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♻Post~07

¿ सच्चा कौन❓

🔄Part~02

🌻उल्माए एहले सुन्नत बराबर इस फ़ितने के खिलाफ मुक़ाबला करते  रहे। इन उल्माए हक़ में मज़कुरैन सद्र हज़रात के इलावा " हज़रते हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की", हज़रते मौलाना अब्दुस्समिअ साहिब रामपुरी मुअल्लिफ़ अनवारे सातीआ, हज़रते मौलाना इर्शाद हुसैन साहिब रामपुरी, हज़रते मौलाना अहमद रज़ा खा साहिब बरेलवी, हज़रते मौलाना अनवारुल्लाह साहिब हैदराबादी, हज़रते मौलाना अब्दुल क़ादिर साहिब नदायूनि वगैरहुमा ख़ास तौर पर क़ाबिले ज़िक्र है।

🌻इन उल्माए एहले सुन्नत का उम्मते मुस्लिमा पर एह्साने अज़ीम है की इन हज़रात ने हक़ व बातिल में तमीज़ की और रसूलुल्लाह ﷺ की शाने अक़्दस में तौहीन करने वाले खवारिज से मुसलमानो को आगाह किया।

🌻उन लोगो के साथ हमारा बुन्यादी इख़्तिलाफ़ सिर्फ उन इबारात की वजह से है जिन में उन लोगो ने अल्लाह तआला और रसूल ﷺ व महबुबाने हक़ की शान में सरिह गुस्ताखियां की है। बाक़ी मसाइल में महज़ फ़रोइ इख़्तिलाफ़ है जिनके बिना पर दोनों तरफ से किसी की तकफीर व तज़लिल नहीं की जा सकती।

🌻तअज्जुब है की सरिह तौहीन आमेज़ इबारात लिखने के बा वुज़ूद ये कहा जाता है की हम ने तो हुज़ूर ﷺ की तारीफ़ की है। गोया तौहिने सरिह को तारीफ़ कह कर कुफ़्र को इस्लाम क़रार दिया जाता है।

🔴हक़ पर कौन❓
इस पोस्ट में उल्माए देवबन्द और उनके मौक़तदाओ की इबारात बिला कमी व बेशी नक़ल कर दी है ताकि मुसलमान खुद फैसला करले की इन में तौहीन है या नहीं ?

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 10-11

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☝🏽हक़ पर कौन❓

✅क़ुरआने करीम और ताज़िमे रसूल✅

♻part~01

☝🏽इस हक़ीक़त से इंकार नहीं हो सकता की तमाम दिन हमें हुज़ूर ﷺ की जाते अक़्दस से मिला है हत्ता की अल्लाह तआला की ज़ात व सिफ़ात, उसके मलाइका, उसकी किताबो और रसूलो और यौमे क़यामत वग़ैरा अक़ाइदो आ'माल सब चीज़ों का इल्म रसूलुल्लाह ﷺ ने हमको अता फ़रमाया।

🔘इसलिये सरे दिन की बुन्याद और असलुल उसूल नबिय्ये करीम ﷺ की ज़ाते मुक़द्दसा है और बस....बिनबरी रसूले करीम ﷺ की हैसिय्य्त ऐसी अ'ज़िम है जिस के वज़्न को मोमिन का दिलो दिमाग महसूस करता है। मगर कमाहक़्क़ुहु इस का इज़हार किसी सूरत से मुम्किन नहीं।

🔘ऐसी सूरत में ताज़िमे रसूल ﷺ की अहमिय्यत किसी मुसलमान से मख़फ़ी नहीं रह सकती। इस लिये अल्लाह तआला ने क़ुरआन में निहायत एहतिमाम के साथ मुसलमानो को बारगाहे रिसालत के आदाब की तालीम फ़रमाई।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 13

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☝🏽हक़ पर कौन❓

📗क़ुरआने करीम और ताज़िमे रसूल☝🏽

♻part~02

📗परा 26 में रब तआला इर्शाद फ़रमाता है :

☝🏽ऐ ईमान वालो ! बुलंद न करो अपनी आवाज़ें नबिय्ये करीम की आवाज़ पर और न इन के साथ बहुत ज़ोर से बात करो जैसे तुम एक दूसरे से आपस में ज़ोर से बोला करते हो कही ऐसा न हो की तुम्हारा किया कराया सब अकारत जाए और तुम्हे ख़बर भी न हो।

📗इसी के साथ दूसरी आयत में इर्शाद होता है :

☝🏽बेशक जो लोग अपनी आवाज़े पस्त करते है रसूलुल्लाह के नज़्दीक वो ऐसे लोग है जिन के दिल को अल्लाह तआला ने परहेज़गारी के लिये परख लिया है। उन के लिये बख्शीश और बड़ा षवाब है।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 14

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🙏🏽तालिबे दुआ

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〰〰〰 ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ 〰〰〰
            🌙8 रबी अल-आखर 1437🌙
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
❓हक़ पर कौन❓

📗क़ुरआने करीम और ताज़िमे रसूल☝🏽

♻Post~03

📗एक और आयत में इर्शाद होता है :

☝🏽ऐ नबी बेशक जो लोग आप को आप के रहने के हजरों से बहार पुकारते है इन में अक्सर बे अक़्ल है अगर ये लोग इतना सब्र करते की आप खुद हजरों से निकल कर इन की तरफ तशरीफ़ ले आते तो इनके हक़ में बहुत बेहतर होता और अल्लाह तआला बख्शने वाला महेरबान है।
📗पारा 26

📗एक और जगह इर्शाद होता है :

☝🏽ऐ ईमान वालो ! तुम नबिय्ये करीम के साथ "राइ'ना कह कर खिताब न किया करो बल्कि "उनज़ूरना" कहां करो और ध्यान लगा कर सुनते रहा करो और काफ़िरो के लिये अज़ाबे दर्दनाक है।
📗परा 1

👆🏾इन आयाते तय्यिबात में बारगाहे रिसालत के आदाब और तर्ज़े तखातुब में ताज़ीम व तौकीर को मलहुज़् रखने की जो हिदायत अल्लाह तआला ने फ़रमाई है, मोहताजे तशरीह नहीं।
▪नीज़ इनकी रौशनी में शाने नबुव्वत की अदना गुस्ताख़ी का जुर्म अ'ज़िम होना आफ़ताब से ज्यादा रोशन है।

✒हवाला
📚अल-हक़्क़ुल मुबीन, सफा 14-15

📶जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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