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Monday 31 July 2017

*83 आसान नेकियां* #13
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #11

*_तौबा करना_*
     सच्ची तौबा ऐसी आसान नेकी है जो हर किस्म के गुनाह को इन्सान के नामए आमाल से धो डालती है, चुनान्चे, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : गुनाहो से तौबा करने वाला उस शख्स की तरह है जिस के ज़िम्मे कोई गुनाह न हो।
*✍🏼السنن الكبرى*

*_जन्नत में दाखिला_*
     तौबा करने वाला खुश नसीब, गुनाहो की मुआफ़ी के साथ साथ दीगर फ़ज़ाइल मषलन इनामाते जन्नत का भी मुस्तहिक़ हो जाता है, पारह 28, सूरए तहरीम, आयत 8 में है :
_ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की तरफ ऐसी तौबा करो जो आगे को नसीहत हो जाए क़रीब है की तुम्हारा रब तुम्हारी बुराइयां तुम से उतार दे और तुम्हे बागो में ले जाए जिन के निचे नहरे बहे।_

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 59*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरिमा* #01
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★ दाढ़ी, बदन या लिबास के साथ खेलना।

★ कपडा समेटना।
जैसा कि आज कल बाज़ लोग सज्दे में जाते वक़्त पाजामा वग़ैरा आगे या पीछे से उठा लेते है।

★ अगर कपडा बदन से चिपक जाए तो एक हाथ से छुड़ाने में हरज नहीं।

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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.189*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*राहे खुदा का मुसाफिर*
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     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो शख्स तलबे इल्म के लिये घर से निकला, तो जब तक वापस न हो अल्लाह की राह में है।
*✍🏼خامه الترمذي*

     जो कोई मसअला पूछने के लिये अपने घर से या इल्म की जुस्तजू में अपने वतन से उलमा के पास गया वो भी मुजाहिदे फी सबीलिल्लाह (यानी रहे खुदा में जिहाद करने वाले की तरह) है। गाज़ी की तरह घर लौटने तक उस का सारा वक़्त और हरकत इबादत होगी।
*✍🏼मीरआतुल मनाजिह्, 1/203*
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 22*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Sunday 30 July 2017

*83 आसान नेकियां* #12
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #10

*1000 दिन की नेकियां*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने خٙزٙى اللّٰهُ عٙنّٙا مُحٙمّٙدًا مّٙاهُوٙا اٙهْلُهُ पढ़ा उसके लिये 70 फ़रिश्ते 1000 दिन तक नेकियां लिखते है।
*✍🏼مجمع الزوائد*

*क़ुरआन देख कर पढ़ना*
     क़ुरआन देख कर पढ़ना, ज़बानी पढ़ने से अफ़्ज़ल है की ये पढ़ना भी है और देखना और हाथ से इस का छूना भी और ये सब काम इबादत है।
*✍🏼बहारे शरीअत, 1/550*

*_सूरए इखलास तिहाई क़ुरआन के बराबर है_*
     हज़रते अबू दरदा رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : तुम में से कोई शख्स रात में तिहाई क़ुरआन क्यू नही पढ़ता ! सहाबए किराम ने अर्ज़ की, आक़ा ! कोई शख्स तिहाई क़ुरआन कैसे पढ़ सकता है ? फ़रमाया : सूरए इखलास (कुलहुवल्लाहु अहद) तिहाई क़ुरआन के बराबर है।
*✍🏼मुस्लिम*

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*✍🏼आसान नेकियां, 35*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #11
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_अल्लाहुअकबर कहने में गलतिया_*
★ तकबीराते इन्तिक़ालात में अल्लाहुअकबर के अलिफ़ को दराज़ किया यानी "आल्लाह" या "आकबर" कहा या बा के बाद अलिफ़ बढ़ाया यानि "अकबार" कहा तो नमाज़ फासिद् हो गई
और अगर तकबीरे तहरिमा में ऐसा हुआ तो नमाज़ शुरू ही न हुई।

★ अक्सर मुकब्बिर (जमाअत में इमाम की तकबिरात पर ज़ोर से तकबीरे कह कर आवाज़ पहुचाने वाले) ये गलतिया ज़्यादा करते है और यूँ अपनी और दुसरो की नमाज़े गारत करते है।
■ लिहाज़ा जो इन अहकाम को अच्छी तरह न जानता हो उसे मुकब्बिर नहीं बनना चाहिये।

★ किराअत या अज़्कारे नमाज़ में ऐसी गलती जिस से माना फासिद् हो जाए नमाज़ फासिद् हो जाती है।
*✍🏼दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार, जी.2*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 189*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*रिज़्क़ का ज़ामिन*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     हज़रते ज़ियाद बिन हारिस رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स तलबे इल्म में रहता है, अल्लाह उस के रिज़्क़ का ज़ामिन है।
*✍🏼تاريخ بغداد*

     अल्लाह तालिबे इल्म को खास तौर पर ऐसे ज़रीए से रिज़्क़ अता करेगा की उस का गुमान भी न होगा, أن شاء الله. लिहाज़ा तालीबुल इल्म को चाहिये की अपने रब ही पर तवक्कुल करे और थोड़े खाने और कम लिबास पर क़नाअत करे। इमाम मालिक عليه رحما फ़रमाते है : जो फक़र पर राज़ी न होगा तो उसे उस का मतलूब यानी इल्म न मिल सकेगा।
*✍🏼فيض القدير*

     फ़िक़्हे हनफ़ी के अज़ीम पेशवा इमामे आज़म अबू हनीफा رحمة الله عليه के शागिर्द अबू युसूफ رحمة الله عليه ने जब आप की शागिर्दी इख़्तियार की तो आप माली तौर पर ज़बू हाली का शिकार थे। लेकिन आप ने हिम्मत न हारी और मुसलसल इल्म हासिल करते रहे और आखिर कार फ़िक़्हे हनफ़ी के इमाम कहलाए।
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 21*
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*रिज़्क़ का ज़ामिन*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     हज़रते ज़ियाद बिन हारिस رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स तलबे इल्म में रहता है, अल्लाह उस के रिज़्क़ का ज़ामिन है।
*✍🏼تاريخ بغداد*

     अल्लाह तालिबे इल्म को खास तौर पर ऐसे ज़रीए से रिज़्क़ अता करेगा की उस का गुमान भी न होगा, أن شاء الله. लिहाज़ा तालीबुल इल्म को चाहिये की अपने रब ही पर तवक्कुल करे और थोड़े खाने और कम लिबास पर क़नाअत करे। इमाम मालिक عليه رحما फ़रमाते है : जो फक़र पर राज़ी न होगा तो उसे उस का मतलूब यानी इल्म न मिल सकेगा।
*✍🏼فيض القدير*

     फ़िक़्हे हनफ़ी के अज़ीम पेशवा इमामे आज़म अबू हनीफा رحمة الله عليه के शागिर्द अबू युसूफ رحمة الله عليه ने जब आप की शागिर्दी इख़्तियार की तो आप माली तौर पर ज़बू हाली का शिकार थे। लेकिन आप ने हिम्मत न हारी और मुसलसल इल्म हासिल करते रहे और आखिर कार फ़िक़्हे हनफ़ी के इमाम कहलाए।
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 21*
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Saturday 29 July 2017

*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #10
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_नमाज़ में खुजाना_*
★ एक रुक्न में 3 बार खुजाने से नमाज़ फासिद् हो जाती है

★ यानि यु कि खुजा कर हाथ हटा लिया फिर खुजाया फिर हाथ हटा लिया ये दो बार हुवा अगर अब इसी तरह तीसरी बार किया तो नमाज़ जाती रहेगी।

★ अगर एक बार हाथ रख कर चन्द बार हरकत दी तो ये एक ही मर्तबा खुजाना कहा जाएगा।
*✍🏼आलमगीरी, 1/104*

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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.188*
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*8 - इल्म हासिल करना फ़र्ज़ है*
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     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم इर्शाद फ़रमाते है : इल्म का हासिल करना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है।
*✍🏼शोएबुल ईमान*

     हर मुसलमान मर्द व औरत पर इल्म सीखना फ़र्ज़ है, यहाँ इल्म से ब क़दरे ज़रूरत शरई मसाइल मुराद है लिहाज़ा रोज़े नमाज़ के मसाईले ज़रुरिय्या सीखना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है, हैज़ व निफ़ास के ज़रूरी मसाइल सीखना हर औरत पर फ़र्ज़ है, तिजारत के मसाइल सीखना हर ताजिर पर, हज के मसाइल सीखना हज के जाने वाले पर ऐन फ़र्ज़ है लेकिन दिन का पूरा आलिम बनना फर्ज़े किफ़ाया है, की अगर शहर में एक ने अदा कर दिया तो सब बरी हो गए।
*✍🏼मीरआतुल मनाजिह्, 1/202*
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 19*
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Friday 28 July 2017

*83 आसान नेकियां* #10
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #08

*_रोज़ाना 1000 नेकियां कमाने का तरीक़ा_*
     हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله عنه फ़रमाते है की हम हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की बारगाह में हाज़िर थे की आप ने फ़रमाया : क्या तुम में से कोई रोज़ाना 1000 नेकियां कमाने से आजिज़ है ? हाज़िरीन में से एक शख्स ने अर्ज़ की : हम में से कोई 1000 नेकियां कैसे कमा सकता है ? फ़रमाया : अगर वो 100 मर्तबा سبحان الله कहे तो उस के लिये 1000 नेकियां लिखी जाती है या 1000 गुनाह मिटा दिये जाते है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*

*_गुनाह झड़ते है_*
سُبْحٙانٙ اللّٰهِ وٙالْحٙمْدُلِلّٰهِ وٙالٙآ اِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ وٙاللّٰهُ اٙكْبٙرٙ وٙلٙاحٙوْلٙ وٙلٙاقُوّٙةٙ اِلّٙا بِاللّٰه
पढ़ा करो क्यू की ये बाक़ी रहने वाली नेकियां है और गुनाहो को इस तरह झाड़ देती है जिस तरह दरख्त अपने पत्ते झाड़ता है और ये जन्नत के खज़ाने में से है।
*✍🏼मज्मउ ज़वाइर*

*✍🏼आसान नेकियां, 30*
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*83 आसान नेकियां* #09
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #07

*_20 लाख नेकियों का षवाब_*
     जो इन कलीमात को पढ़ेगा अल्लाह उस के लिये बिस लाख नेकियां लिखेगा :
لٙااِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ وٙحْدٙهُ لٙا شٙرِيْكٙ لٙهُ اٙحٙدًا صٙمٙدًا لٙمْ يٙلِدْ وٙلٙمْ يُوْلٙدْ وٙلٙمْ يٙكُنْ لّهُ كُفُوًا اٙحٙدٌ

*_नेकियां ही नेकियां_*
     बेशक अल्लाह ने अपने कलाम में से चार कलीमात سُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙالْحٙمْدُ لِلّٰهِ وٙلٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا اللّٰهُ وٙاللّٰهُ اٙكْبٙر को चुन लिया है। चुनान्चे, जो سبحان الله कहता है उस के लिये बिस नेकियां लिखी जाती है और उस के बिस गुनाह मिटा दिये जाते है और जो الله اكبر कहता है उसे भी ये फ़ज़ीलत हासिल होती है और जो لااله الاالله कहता है उस की भी यही फ़ज़ीलत है और जो दिल से الحمد لله رب العالمين कहता है उस के लिये तिस नेकियां लिखी जाती है और उस के तिस गुनाह मिटा दिये जाते है।

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*✍🏼आसान नेकियां, 29*

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Thursday 27 July 2017

*नमाज़ तोड़नेवाली बाते* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_दौराने नमाज़ किब्ले से इन्हीराफ_*
★ बिला उज़्र सीने को सम्ते काबा से 45 दर्जा यानी इस से ज़्यादा फेरना मुफ़्सीदे नमाज़ है, अगर उज़्र से हो तो मुफ्सिद् नहीं।

★ मसलन हदस (वुज़ू टूट जाने) का गुमान हुवा और मुह फेरा ही था की गुमान की गलती ज़ाहिर हुई तो अगर मस्जिद से खारिज न हुवा हो नमाज़ फासिद् न होगी।
*✍🏼दुर्रेमुख्तार मअ रद्दलमोहतार, जी.2 स. 468*

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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 188*

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*6-हुसुले इल्म की तरगिब्*
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     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : इल्म हासिल करो अगर्चे तुम्हे चीन जाना पड़े।
*✍🏼शोएबुल ईमान*

     इस हदिष से इल्मे दिन की बे इन्तिहा अहमिय्यत साबित होती है की उस ज़माने में जब की हवाई जहाज़, रेल और मोटर नही थे, अरब से मुल्के चीन पहुचना कितना मुश्किल काम था मगर हुज़ूर صلى الله عليه وسلم इर्शाद फ़रमाते है की अगर्चे तुम को अरब से मुल्के चीन जाना पड़े लेकिन इल्मे दिन ज़रूर हासिल करो इस से गफलत हरगिज़ न बरतो।
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 15*

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Wednesday 26 July 2017

*83 आसान नेकियां* #08
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #06
*_हाथ पकड़ कर जन्नत में दाखिल करूँगा_*
     जो सुबह के वक़्त ये पढ़े رٙضِيْتُ بِاللّٰهِ رٙبًّا وّٙبِالْاِسْلٙامِ دِيْنًا وّٙبِمُحٙمّٙدٍ نٙبِيًّا (में अल्लाह के रब होने और इस्लाम के दीन होने और हज़रते मुहम्मद صلى الله عليه وسلم के नबी होने पर राज़ी हूँ) तो में उसे हाथ पकड़ कर जन्नत में दाखिल करने की ज़मानत देता हूँ।

*_जन्नती पौदा_*
     हज़रत अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم मेरे पास से गुज़रे तो में पौदा लगा रहा था। आप ने दरयाफ़्त फ़रमाया : ऐ अबू हुरैरा ! तुम क्या लगा रहे हो ? में ने अर्ज़ की, पौदे लगा रहा हु। फ़रमाया : क्या में तुझे इन से बेहतर पौदों के बारे में न बताउं ? फिर फ़रमाया : वो سُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙالْحٙمْدُ لِلّٰهِ وٙلٙاَ اِلٰهٙ اِلّٙا اللّٰهُ وٙاللّٰهُ اٙكْبٙر है, इन में से हर एक के बदले जन्नत में एक पौदा लगा दिया जाता है।

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*✍🏼आसान नेकियां, 28*

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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #07
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*_नमाज़ में कुछ निगलना_*
★ मामुलिसा भी खाना या पीना मसलन तिल बगैर चबाए निगल लिया। या क़तरा मुह में गिरा और निगल लिया।

★ नमाज़ शुरू करने से पहले ही कोई चीज़ दातो में मौजूद थी उसे निगल लिया तो अगर वो चने के बराबर या इस से ज्यादा थी तो नमाज़ फासिद् हो गई और अगर चने से कम थी तो मकरूह।

★ नमाज़ से क़ब्ल कोई मीठी चीज़ खाई थी अब उस के अजज़ा मुह में बाकी नहीं सिर्फ लुआबे दहन में कुछ असर रह गया है उस के निगलने से नमाज़ फासिद् न होगी।

★ मुह में शकर वगैरा हो की घुल कर हलक मर पहुचती है नमाज़ फासिद् हो गई।

★ दातो में खून निकला अगर थूक ग़ालिब है तो निगलने से फासिद् न होगी वरना हो जाएगी।
◆ (ग़ालबे की लआमत ये है की अगर हलक में मज़ा महसूस हुवा तो नमाज़ फासिद् हो गई, नमाज़ तोड़ने में ज़ायके का एतिबार है और वुज़ू टूटने में रंग का, लिहाज़ा वुज़ू उस वक़्त टूटता है जब थूक सुर्ख हो जाए और अगर थूक ज़र्द है तो वुज़ू बाक़ी है)

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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 187*

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*5-निय्यत अमल से बेहतर है_*
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     हज़रते सहल बिन साद رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : मुसलमान की निय्यत उस के अमल से बेहतर है।

     हज़रते अलिय्युल मुर्तज़ा كرم الله وجهه الكريم ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दे को अच्छी निय्यत पर वो इनामात दिये जाते है जो अच्छे अमल पर भी नही दिये जाते क्यू की निय्यत में रियाकारी नही होती।

*_निय्यत का फल_*
     बनी इसराइल का एक शख्स कहत साली में रेत के एक टीले के पास से गुज़रा। उस ने दिल में सोचा की अगर ये रेत गल्ला होती तो में इसे लोगों में तक़सीम कर देता। इस पर अल्लाह ने उन के नबी की तरफ वही भेजी की उस से फरमाएं की अल्लाह ने तुम्हारा सदक़ा क़बूल कर लिया और तेरी अच्छी निय्यत के बदले में उस टीले के ब क़दर गल्ला सदक़ा करने का षवाब दिया।
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 14*

*___________________________________*
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Tuesday 25 July 2017

*83 आसान नेकियां* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #05

*_जन्नत में खजूर का दरख्त_*
     जो سُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙبِـحٙـمْدِهٖ पढ़ता है उस के लिये जन्नत में खजूर का दरख्त लगा दिया जाता है।
*✍🏼मज्मई-ज़वाइर*

*_गुनाहों की मुआफ़ी_*
     जो 100 मर्तबा ٖسُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙبِـحٙـمْدِه पढ़ता है उस के गुनाह मिटा दिये जाते है अगर्चे समन्दर की झाग के बराबर हो।
*✍🏼सुनन तिर्मिज़ी*

*_अफ़्ज़ल अमल_*
     जिस ने सुबहो शाम के वक़्त 100-100 मर्तबा سُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙبِـحٙـمْدِهٖ पढ़ा क़यामत के दिन इस से अफ़्ज़ल अमल ले कर आने वाला कोई न होगा मगर वो जो इस की मिष्ल कहे या इस से ज़्यादा पढ़े।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*

*_ज़बान पर हल्के मीज़ान पर भारी_*
     दो कलिमे سُبْحٰنٙ اللّٰهِ وٙبِـحٙـمْـدِهِ سُبْحٰنٙ اللّٰهِ الْعٙظِيْم ज़बान पर हल्के, मीज़ान पर भारी और रहमान को पसन्द है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 27*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #06
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_दौराने नमाज़ लिबास पहनना_*
★ दौराने नमाज़ कुरता या पाजामा पहनना या तहबंद बांधना.
*✍🏼रद्दल मोहतार, जी.2 स. 465*

★ दौराने नमाज़ सीत्र खुल जाना और इसी हालत में कोई रुक्न अदा करना या तीन बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार वक़्फ़ा गुज़र जाना.
*✍🏼दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, जी. 2 स. 467*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 187*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*4-निय्यत की अहमिय्यत* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

इबादत की दो किस्मे...
     *(1) मक़्सूदा :* जेसे नमाज़, रोज़ा। की इनसे मक़सूद हुसुले षवाब है इन्हें अगर बगैर निय्यत अदा किया जाए तो ये सहीह न होंगे इस लिये की इन से मक़सूद षवाब था और जब षवाब मक़सूद हो गया तो इस की वजह से असल शै ही अदा न होगी।

     *(2) गैर मक़सूद :* वो जो दूसरी इबादतों के लिये ज़रीआ हो जैसे नमाज़ के लिये चलना, वुज़ू, गुस्ल वगैरा। इन इबादतें गैर मक़्सूदा को अगर कोई निय्यते इबादत के साथ करेगा तो उसे षवाब मिलेगा और अगर बिला निय्यत करेगा तो षवाब नही मिलेगा मगर इस का ज़रीआ या वसीला बनना अब भी दुरुस्त होगा और इन से नमाज़ सहीह हो जाएगी।

     एक अमल में जितनी निय्यते होंगी उतनी नेकियों का षवाब मिलेगा, मसलन मोहताज़ क़राबत दार की मदद करने में अगर निय्यत फ़क़त अल्लाह के लिये देने की होगी तो एक निय्यत का षवाब पाएगा और अगर सीलए रहमी की निय्यत भी करेगा तो दोहरा षवाब पाएगा। इसी तरह मस्जिद में नमाज़ के लिये जाना भी एक अमल है इस में बहुत सी निय्यते की जा सकती है, हज़रत अहमद रज़ा खान عليه رحما फ़रमाते है : बेशक जो इल्मे निय्यत जानता है एक एक फेल को अपने लिये कई कई नेकियां कर सकता है।
     बल्कि मुबाह कामो में भी अच्छी निय्यत करने से षवाब मिलेगा, मसलन खुशबु लगाने में इत्तबाए सुन्नत, ताज़ीम मस्जिद, फरहते दिमाग और अपने इस्लामी भाइयो से न पसन्द बू दूर करने की निय्यत हो तो हर निय्यत का अलग षवाब होगा।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 11*

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गर होजाए यक़ीन के.....
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Monday 24 July 2017

*83 आसान नेकियां* #06
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #04

*अज़कारो अवराद और इन के षवाब पर फरामिने मुस्तफा* #01

*_100 हज का षवाब_*
     जिज ने सुबहो शाम 100-100 मर्तबा سبحان الله पढ़ा तो वो 100 हज करने वाले की तरह है।
*✍🏼तिर्मिज़ी*

*_बुराइयां मिटा कर नेकियां लिख दी जाती है_*
     जो बन्दा दिन या रात की किसी घड़ी में لٙا اِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ कहता है तो उस के नामए आमाल में से बुराइयां मिटा कर उन की जगह उतनी ही नेकियां लिख दी जाती है।
*✍🏼مجمع الزواهر*

*_100 के बदले 1000_*
     दो खसलते ऐसी है जो बन्दा इन पर हमेशगी इख़्तियार करेगा जन्नत में दाखिल होगा, ये दोनों काम है तो बहुत आसान मगर इन पर अमल करने वाले लोग बहुत कम है।
     तुम में से कोई हर नमाज़ के बाद 10 मर्तबा سبحان الله  10 मर्तबा الحمد لله और 10 मर्तबा الله اكبر पढ़ लिया करे तो ये ज़बान पर डेढ़ सो है जब की मीज़ान में 1500 है।
     फिर जब वो अपने बिस्तर की तरफ आए तो 33 मर्तबा سبحان الله  33 मर्तबा الحمد لله और 34 मर्तबा الله اكبر कहे, ये ज़बान पर तो 100 है जब की मीज़ान में 1000 है।
*✍🏼सुनन इब्ने माजह*

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 26*

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*4-निय्यत की अहमिय्यत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     हज़रते उमरे फारूक رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : आमाल का दारो मदार निय्यतो पर है।
*✍🏼सहीह बुखारी*

     इस हदिष से मालुम हुआ की आमाल का षवाब निय्यत पर ही है, बगैर निय्यत किसी अमल पर षवाब का हक़ नही। आमाल अमल की जमा है और इस का इत्लाक़ आज़ा, ज़बान और दिल तीनो के अफआल पर होता है और यहाँ आमाल से मुराद आमाले सालिहा (नेक आमाल) और मुबाह (जाइज़) अफआल है। और निय्यत लुग्वी तौर पर दिल के पुख्ता इरादे को कहते है और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।

     इबादत की दो किस्मे है : (1) मक़्सूदा (2) गैर मक़्सूदा इसकी तफ़सील अगली पोस्ट में أن شاء الله
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 10*

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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_अमले कसीर की तारीफ_*
★ अमले कसीर नमाज़ को फासिद् कर देता है जब कि न नमाज़ के आमाल से हो न ही इस्लाहे नमाज़ के लिए किया गया हो.
★ जिस काम के करने वाले को दूर कसे देखने से ऐसा लगे कि ये नमाज़ में नही है बल्कि अगर गुमान भी ग़ालिब हो कि नमाज़ में नही तब भी अमले कसीर है.

★ और अगर दूर से देखने वाले को शको शुबा है कि नमाज़ में है या नहीं तो अमले क़लिल है और नमाज़ फासिद् न होगी.
*✍🏼दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, जी. 2 स.464*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 186*

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Sunday 23 July 2017

*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_दौराने नमाज़ देख कर पढ़ना_*

★ मुसहफ़ शरीफ से या किसी कागज़ से या मेहराब वग़ैरा में लिखा हुवा देख कर कुरआन शरीफ पढ़ना (हा अगर याद पर पढ़ रहे है और मुसहफ़ शरीफ या मेहराब वगैरा पर सिर्फ नज़र है तो हर्ज नही, अगर किसी कागज़ वगैरा पर आयात लिखी है उसे देखा और समझ मगर पढ़ा नहीं इस में भी कोई मुज़ायका नहीं.
*✍🏼रद्दलमोहतार, जी,2 स.464*

★ इस्लामी किताब या इस्लामी मज़्मून दौराने नमाज़ जानबूझ कर देखना और इरादतन समझना मकरूह है.
*✍🏼आलमगिरी, जी.1 स.101*

★ दुनयावी मज़्मून हो तो ज़्यादा कराहिय्यत है, लिहाज़ा नमाज़ में अपने क़रीब किताबे या तहरीर वाले पैकेट और शॉपिंग बेग, मोबाइल फोन या घड़ी वगैरा इस तरह रखिये कि उन की लिखाई पर नज़र न पड़े या इन पर रुमाल वगैरा उढ़ा दीजिये, निज दौराने नमाज़ सुतून वगैरा पर लगे हुए स्टिकर्ज़, इश्तिहार और फ्रेमो वगैरा पर नज़र डालने से भी बचिये.

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 186*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 22 July 2017

*4-निय्यत की अहमिय्यत*
     हज़रते उमरे फारूक رضي الله عنه से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : आमाल का दारो मदार निय्यतो पर है।
*सहीह बुखारी*

     इस हदिष से मालुम हुआ की आमाल का षवाब निय्यत पर ही है, बगैर निय्यत किसी अमल पर षवाब का हक़ नही। आमाल अमल की जमा है और इस का इत्लाक़ आज़ा, ज़बान और दिल तीनो के अफआल पर होता है और यहाँ आमाल से मुराद आमाले सालिहा (नेक आमाल) और मुबाह (जाइज़) अफआल है। और निय्यत लुग्वी तौर पर दिल के पुख्ता इरादे को कहते है और शरअन इबादत के इरादे को निय्यत कहा जाता है।

     इबादत की दो किस्मे है : (1) मक़्सूदा (2) गैर मक़्सूदा इसकी तफ़सील अगली पोस्ट में أن شاء الله
*40 फरमाने मुस्तफा, 10*

Friday 21 July 2017

*83 आसान नेकियां* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #03
*_मुझ पर रहमत की नज़र रखना_*
     एक बार हज़रते अबू फर्वा رضي الله عنه एक मिल तक सफर कर गए मगर इस दौरान ज़िकरुल्लाह न कर पाए, लिहाज़ा वापस आए और वो मसाफत ज़िकरुल्लाह करते हुवे दोबारा तै की। जब तै कर चुके तो अर्ज़ की : या इलाही ! अबू फर्वा पर रहमत की नज़र रखना क्यू की ये तुझे नही भूलता।

*_मेरी गवाही दे_*
     हज़रते अबुल मलीह رحمة الله عليه जब अल्लाह का ज़िक्र करते तो (ख़ुशी से) झूम जाते और फ़रमाते : मेरा ये झूमना अल्लाह के ज़िक्र की वजह से है क्यू की अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया है : فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152, और जब आप किसी रास्ते पर चलते और अल्लाह का ज़िक्र करना भूल जाते तो वापस आ कर फिर उसी रास्ते पर चलते और उसमे अल्लाह का ज़िक्र करते अगर्चे एक दिन का सफर हो, और फ़रमाते में इस बात को पसन्द करता हु की में जिस ज़मीन से गुजरूं वो तमाम ज़मीन क़यामत के दिन मेरे ज़िकरुल्लाह की गवाही दे।

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! ये अल्लाह का हम पर अज़ीम एहसान है की उस का ज़िक्र हम हर जगह कर सकते है। इस के लिये कोई ख़ास मक़ाम और वक़्त मुक़र्रर नही फ़रमाया। जहा जाए, जिधर जाए, अल्लाह अल्लाह कर सकते है, जैसा की हज़रते हसन बसरी عليه رحما फ़रमाते है : अल्लाह ने अपने फरमाने अज़ीम  فٙاذْكُرُوْنِىَْ اٙذْكُرْ كُمْ (तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा) सूरह 2/152,  से हम पर आसानी कर दी है और अपने ज़िक्र के लिये कोई जगह मख़्सूस नही फ़रमाई अगर अल्लाह हमारे लिये ज़िक्र करने की कोई जगह मख़्सूस फरमा देता तो हमारा वहा जाना वाजिब हो जाता ख्वाह वो मक़ाम एक सदी की मुसाफत पर ही क्यू न होता जैसा की हज के लिये लोगो को काबा में बुलाया है।
*✍🏼आसान नेकियां, 25*

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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_नमाज़ में रोना_*
◆ दर्द या मुसीबत की वजह से ये अलफ़ाज़ "आह" "ऊह" "उफ़" "तूफ" निकल गए या आवाज़ से ओने में हर्फ़ पैदा हो गए नमाज़ फासिद् हो गई.

◆ अगर रोने में सिर्फ आसु निकले आवाज़ व हरुफ़ नही निकले तो हर्ज नही.
*✍🏼आलमगिरी, जी.1 स. 101*

◆ अगर नमाज़ में इमाम के पढंने की आवाज़ पर रोने लगा और "अरे" "नअम" "हा" ज़बान से जारी हो गया तो कोई हर्ज़ नही कि ये खुशुअ के बाइस है और अगर इमाम की खुश इल्हानि के सबब ये अलफ़ाज़ कहे तो नमाज़ टूट गई.

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 185*

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*10 रहमते*
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     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिसने मुझ पर एक बार दुरुदे पाक पढ़ा, अल्लाह उस पर 10 रहमते भेजेगा और उस के 10 गुनाह मुआफ़ किये जाएंगे और उस के 10 दरजात बुलन्द किये जाएंगे।

     मालुम हुआ की एक दुरुदे पाक में तीन फायदे है। 10 रहमते, 10 गुनाह की मुआफ़ी और 10 दर्जो की बुलन्दी।

*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 9*

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Thursday 20 July 2017

*83 आसान नेकियां* #04
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #02

*ज़िक्र की अक़्साम*
     अकषर येही ख्याल किया जाता है की ज़बान से अल्हम्दुलिल्लाह, सुब्हानअल्लाह वगैरा अदा करने का नाम ही ज़िक्र है, इस में कोई शक नही की ये भी ज़िक्र है मगर कलामें अरब में ज़िक्र का लफ्ज़ बहुत से मानी में इस्तिमाल होता है। चुनान्चे सदरुल अफ़ाज़िल हज़रते मौलाना मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी عليه رحما सूरए बक़रह की आयत 152 के तहत तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में लिखते है : ज़िक्र 3 तरह का होता है :
(1) लिसानी (यानी ज़बान से)
ज़िक्रे लिसानी तस्बीह, तक़दिस, षना वगैरा बयान करना है, ख़ुत्बा, तौबा, इस्तिग़फ़ार, दुआ वगैरा इस में दाखिल है।

(2) क़ल्बी (यानी दिल से)
ज़िक्रे क़ल्बी अल्लाह की नेमतों का याद करना उस की अज़मत व किब्रियाइ और उस के दलाइले क़ुदरत में गौर करना, उलमा का इस्तिम्बाते मसाइल में गौर करना भी इस में दाखिल है।

(3) बिल जवारिह (यानी आज़ाए जिस्म से)
ज़िक्रे बिल जवारिह ये है की आज़ा ताअते इलाही में मश्गुल हो जैसे हज के लिये सफर करना ये ज़िक्र बिल जवारिह में दाखिल है। नमाज़ तीनो किस्म के ज़िक्र पर मुश्तमिल है। तस्बीह व तकबीर, षना व किरआत तो ज़िक्रे लिसानी है और खुशुअ व ख़ुज़ूअ, इखलास ज़िक्रे क़ल्बी और क़याम, रूकू व सुजूद वगैरा ज़िक्रे बिल जवारिह है।

*✍🏼आसान नेकियां, 23*

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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #01
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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

◆ बात करना
◆ किसी को सलाम करना, सलाम का जवाब देना
◆ छिक का जवाब देना [नमाज़ में खुद को छिक आए तो खामोश रहे] अगर अलहम्दु लिल्लाह कह लिया तब भी हर्ज़ नही और अगर उस वक़्त हम्द न की तो फारिग हो कर कहे.
◆ खुश खबरी सुन कर जवाबन अलहम्दु लिल्लाह कहना.
◆ बुरी खबर [या किसी की मौत की खबर] सुन क्र इन्न-लिल्लाहि-व-इन्न-इलैहि-राजिउन कहना.
◆ अल्लाह का नाम सुन कर जवाबन जल जलालुहु कहना.
◆ सरकारे मदीना ﷺ का इसमें गिरामी सुन कर जवाबन दुरुद शरीफ पढ़ना.

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*रहमतो की बरसात*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : मुझ पर दुरुद शरीफ पढ़ो, अल्लाह तुम पर रहमत भेजेगा।

     सलात के माना है रहमत या तलबे रहमत, जब इस का करने वाला रब हो तो (सलात) ब माँ आ रहमत होती है और फ़ाइल जब बन्दे हो तो ब माना तलबे रहमत।
     इस्लाम में एक नेकी का बदला कम अज़ कम 10 गुना है। ख्याल रहे की बन्दा अपनी हैसिय्यत के लायक़ दुरुद शरीफ पढ़ता है मगर रब तआला अपनी शान के लायक़ उस पर रहमते उतारता है जो बन्दे के ख्याल व गुमान से बुलन्द है।

*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 8*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सूरए बक़रह-154*
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وَلَا تَقُولُوا۟ لِمَن يُقْتَلُ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمْوَٰتٌۢ بَلْ أَحْيَآءٌ وَلَٰكِن لَّا تَشْعُرُونَ

और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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Wednesday 19 July 2017

*83 आसान नेकियां* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_3-ज़िकरुल्लाह करना_* #01
     ज़िकरुल्लाह भी ऐसी आसान इबादत है की इसे इन्सान थोड़ी सी तवज्जोह से किसी भी वक़्त अन्जाम दे सकता है। इस के फ़ज़ाइल और फ़वाइद बे शुमार है।
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : अगर एक शख्स की झोली दिरहमो से भरी हुई हो और वो इन्हें तक़सीम कर रहा हो और दूसरा अल्लाह का ज़िक्र कर रहा हो तो ज़िकरुल्लाह करने वाला अफ़्ज़ल होगा।
*✍🏼तिबरानी*

*_अफ़्ज़ल दर्जे में होगा_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : क़यामत के दिन अल्लाह के नज़दीक सब से अफ़्ज़ल दर्जे वाले वो लोग होंगे जो अल्लाह का कषरत से ज़िक्र करने वाले होंगे।
*✍🏼तिर्मिज़ी*

*_तुम्हारी ज़बान ज़िकरुल्लाह से तर रहा करे_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन बसर رضي الله عنه से रिवायत है की एक शख्स ने अर्ज़ की, या रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم इस्लाम के अहकामे शरईय्या मुझ पर बहुत है, मुझे कोई एक बात ऐसी बता दे जिसे में मज़बूत थाम लू ? इर्शाद फ़रमाया तुम्हारी ज़बान अल्लाह के ज़िक्र से तर रहा करे।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 22*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*गर्द आलूद पेशानी की फ़ज़ीलत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     हज़रते वासिला बिन अस्क़अ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ का फरमाने पुर सुरूर है : तुम में से कोई शख्स जब तक नमाज़ से फारिग न हो जाए अपनी पेशानी की मिटटी को साफ़ न करे क्यू कि कब तक उस की पेशानी पर नमाज़ के सजदे का निशान रहता है फ़रिश्ते उस के लिये दुआए मगफिरत करते रहते है.

     मीठे और प्यारे इस्लिमी भाइयो ! दौरान नमाज़ पेशानी से मिटटी छुड़ाना बेहतर नहीं और मआज़अल्लाह तकब्बुर के तौर पर छुड़ाना गुनाह है. और अगर न छुड़ाने से तकलीफ होती होती हो या ख़याल बटता हो तो छुड़ाने में हर्ज नही. अगर किसी को रियाकारी का खौफ हो तो उसे चाहिये कि नमाज़ के बाद पशनो से मिटटी साफ़ कर ले.
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 183-184*

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*क़ुर्ब मुस्तफा*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه से मरवी है की अल्लाह के महबूब صلى الله عليه وسلم का फरमाने तक़र्रुब निशान है : बरोज़े क़यामत लोगों में मेरे क़रीब तर वो होगा, जिस ने दुन्या में मुझ पर ज़्यादा दुरुदे पाक पढ़े होंगे।
*✍🏼तिर्मिज़ी*

     क़यामत में सब से आराम में वो होगा जो हुज़ूर صلى الله عليه وسلم के साथ रहे और आप की हमराही नसीब होने का ज़रीआ दुरुद शरीफ की कसरत है। इस से मालुम हुवा की दुरुदे पाक बेहतरीन नेकी है की तमाम नेकियों से जन्नत मिलती है और दुरुदे पाक से बज़्मे जन्नत के दूल्हा صلى الله عليه وسلم।
*✍🏼मीरआतुल मनाजिह्, 2/100*

     दुन्या में दुरुद शरीफ की कसरत अक़ीदे की मज़बूती, निय्यत के ख़ुलूस, महब्बत की सच्चाई और इबादत की हमेशगी पर दलालत करती है। लिहाज़ा हमे भी कसरत से दुरुद शरीफ पढ़ना चाहिये।

*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 4*

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Tuesday 18 July 2017

*83 आसान नेकियां* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*2-हर जाइज़ काम बिस्मिल्लाह से शुरू करना*

     रोज़ मर्रा के हर जाइज़ काम को (जब की कोई मानेए शरई न हो) बिस्मिल्लाह शरीफ से शुरू करना अपना मामूल बना लिया जाए तो हज़ारो नेकियों का खज़ाना इकठ्ठा किया जा सकता है।
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो बिस्मिल्लाह पढ़ेगा अल्लाह हर हर्फ़ के बदले उस के नामए आमाल में चार हज़ार नेकियां दर्ज फ़रमाएगा, चार हज़ार गुनाह बख्श देगा और चार हज़ार दरजात बुलन्द फ़रमाएगा।
     ज़रा हिसाब तो लगाइये بسم الله الرحمن الرحيم में 19 हरुफ़ है। यूं एक बार पढ़ने से أن شاء الله चन्द सेकण्ड में 76 हज़ार नेकियां मिलेगी, 76 हज़ार गुनाह मुआफ़ होंगे और 76 हज़ार दरजात बुलन्द होंगे।

*_बिस्मिल्लाह दुरुस्त पढ़िये_*
     बिस्मिल्लाह पढ़ने में मखारिज से हरुफ़ की अदाएगी लाज़िम है। और कम अज़ कम इतनी आवाज़ भी ज़रूरी है की रुकावट न होने की सूरत में अपने कानों से सुन सकें। जल्द बाज़ी में बाज़ लोग हरुफ़ चबा जाते है, जान बुझ कर इस तरह पढ़ना ममनूअ है और माना फासिद् होने की सूरत में गुनाह। लिहाज़ा जल्दी जल्दी पढ़ने की आदत की वजह से जो लोग गलत पढ़ डालते है वो अपनी इस्लाह कर लें नीज़ जहां पूरी पढ़ने की कोई ख़ास वजह मौजूद न हो और जल्दी भी हो वहां सिर्फ बिस्मिल्लाह कह ले तब भी हरज नही।

*_घरेलू झगड़ों का इलाज_*
     मुफ़्ती अहमद यार खान عليه رحما फ़रमाते है : घर में दाखिल होते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ कर पहले सीधा क़दम दरवाज़े में दाखिल करना चाहिये फिर घर वालों को सलाम करते हुवे घर के अन्दर आए। अगर घर में कोई न हो तो السلام عليك ايها النبي و رحمه الله و بركاته कहें। बाज़ बुज़ुर्गो को देखा गया है की दिन की इब्तिदा में पहली बार घर में दाखिल होते वक़्त बिस्मिल्लाह और कुलहुवल्लाह शरीफ पढ़ लेते है की इस से घर में इत्तिफ़ाक़ भी रहता है और रोज़ी में बरकत भी।
*✍🏼आसान नेकियां, 20*

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*नमाज़ के मुस्तहब्बात*
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★ निय्यत के अलफ़ाज़ ज़बान से कह लेना. जब की दिल में निय्यत हाज़िर हो वरना तो नमाज़ होगी ही नही.

★ कियाम में दोनों पंजो के दर मियान 4 उंगल का फ़ासिला होना.
★ कियाम की हालत में सजदे की जगह,
★ रूकू में दोनों  क़दमो की पुश्त पर,
★ सजदे में नाक की तरफ,
★ क़ायदे में गोद की तरफ,
★ पहली सलाम में सीधे कंधे की तरफ और
★ दूसरी सलाम में उलटे कंधे की तरफ नज़र करना.

★ मुंफरीद को रुकूअ और सजदों में तिन बार से ज्यादा [मगर ताक अदद यानि 5, 7, 9] तस्बीह कहना.
     "हिल्या" बगैर में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक वगैरा से  है की इमाम के लिये तसबिहात 5 बार कहना मुस्तहब है.

★ जिस को खासी आए उस के लिए मुस्तहसब है की जब तक मुमकिन हो न ख़ासे.
★ जमाहि आए तो मुह बंद किये रहिये और न रुके तो हॉट दांत के निचे दबाइये. अगर इस तरह भी न रुके तो कियाम में सीधे हाथ को पुश्त से और गैर कियाम में उलटे हाथ की पुश्त से मुह ढांप लीजिये.
     जमाहि रोकने का बेहतरीन तरीका ये है की दिल में ख़याल कीजिये की सरकार मदीना और दीगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को जमाहि कभी नही आती थी. ان شاء الله फौरन रुक जाएगी.

★ जब मुगब्बीर "हय्या-अ-ललफला" कहे तो इमाम व मुक्तदि सब का खड़ा हो जाना

★ सजदा ज़मीन पर बिल हाइल होना.
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स. 182-183*

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*क़र्ज़ देने के फ़ज़ाइल* #02
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*_इमामे आज़म का तक़्वा_*
     हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा رضي الله عنه एक जनाज़ा पढ़ने तशरीफ़ ले गए धुप की बड़ी शिद्दत थी और वहा कोई साया भी न था साथ ही एक शख्स का मकान था। उस मकान की दिवार का साया देख कर लोगो ने इमाम साहिब से अर्ज़ किया की हुज़ूर ! आप इस साए में खड़े हो जाइये। आप ने फ़रमाया, की इस मकान का मालिक मेरा मक़रुज़ है और अगर में ने इस की दिवार से कुछ नफा हासिल किया तो में डरता हु की अल्लाह के नज़दीक कहि सूद लेने वालो में मेरा शुनार न हो जाए, क्यू की रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया है की जिस क़र्ज़ से कुछ नफा लिया जाए वो सूद है। चुनान्चे आप धुप ही में खड़े रहे।

     अल्लाहु अकबर ! हमारे इमामे आज़म رضي الله عنه का तक़्वा क्या ही खूब था। बुज़ुर्गाने दीन के दिलों में अल्लाह का खौफ फुट फुट कर भरा होता है। इस लिये ये हज़रात क़दम क़दम पर अल्लाह से डरते है। अल्लाह की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी मगफिरत हो।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن

*_क़यामत के गम से बचने के लिये_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस शख्स को ये बात पसन्द हो की अल्लाह उसे क़यामत के दिन गम और घुटन से बचाए तो उसे चाहिये की तंगदस्त क़र्ज़दार को मोहलत दे या क़र्ज़ का बोझ उस के ऊपर से उतार दे। (यानी मुआफ़ कर दे)
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 115*

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Monday 17 July 2017

*83 आसान नेकियां* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_1-अच्छी अच्छी निय्यते करना_* #01
     बिला शुबा अच्छी निय्यते करना एक ऐसा अमल है जो मेहनत के ऐतिबार से बेहद छोटा, लेकिन अज़्रो षवाब के लिहाज़ से हद दरजा अज़ीम है।

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : सच्ची निय्यत सब से अफ़्ज़ल अमल है।

     निय्यत दिल के पुख्ता इरादे को कहते है ख्वाह वो किसी चीज़ का हो और शरीअत में निय्यत इबादत के इरादे को कहते है।

     किसी भी नेक अमल को करते वक़्त अच्छी अच्छी निय्यते कर ली जाए तो इस का षवाब बढ़ जाता है, हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिश देहलवी عليه رحما लिखते है : एक अमल में जितनी निय्यते होंगी उतनी नेकियों का षवाब मिलेगा, मषलन मोहताज़ क़राबत दार की मदद करने में अगर निय्यत फ़क़त अल्लाह के लिये देने की होगी तो एक निय्यत का षवाब पाएगा और अगर सीलए रहमी की निय्यत भी करेगा तो दोहरा षवाब पाएगा।

     इमाम अहमद रज़ा खान عليه رحما लिखते है : बेशक जो इल्मे निय्यत जानता है एक एक फेल को अपने लिये कई कई नेकियां कर सकता है।

*_अच्छी अच्छी निययतें करने का तरीक़_*
     हज़रत इल्यास अत्तार क़ादरी دامت بركاته العاليه निय्यत के बारे में हमारा मदनी ज़हन बनाते हुवे लिखते है : अच्छी अच्छी निय्यते करने के लिये ज़रूरी है की ज़ेहन हाज़िर रहे, जो अच्छी निययतो का आदी नही है उसे शुरू में ब तकल्लुफ इस की आदत बनानी पड़ेगी लिहाज़ा इब्तिदाअन इस के लिये सर झुकाए, आँखे बन्द कर के ज़ेहन को मुख़्तलिफ़ ख्यालात से खाली कर के यकसू हो जाना मुफीद है।
     इधर उधर नज़रे घुमाते हुवे, बदन सहलाते खुजाते हुवे, कोई चीज़ रखते उठाते हुवे या जल्द बाज़ी के साथ निय्यते करना चाहेंगे तो शायद हो नही पाएगी।
    निययतो की आदत बनाने के लिये इन की अहमिय्यत पर नज़र रखते हुवे आप को सन्जिदगी के साथ पहले अपना ज़ेहन बनाना पड़ेगा।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 14*

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*नमाज़ की सुन्नते* #11
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*_सुन्नते बादिय्या की सुन्नते_*
★जिन फर्ज़ो के बाद सुन्नते है उन में बादे फ़र्ज़ कलाम न करना चाहिये अगरचे सुन्नत हो जाएगी मगर षवाब कम होगा और सुन्नतो में ताखीर भी मकरूह है इसी तरह बड़े बड़े अवरादो वज़ाइफ की भी इजाज़त नहीं।

★ फर्ज़ो के बाद क़ब्ले सुन्नत मुख़्तसर दुआ पर क़नाअत चाहिये वरना सुन्नतो का षवाब कम हो जाएगा।
*बहरे शरीअत, जी.3 स.81*

★ सुन्नत व फ़र्ज़ के दरमियान कलाम करने से दुरुस्त तरीन ये है कि सुन्नत बातिल नहीं होती अलबत्ता षवाब कम हो जाता है। यही हुक्म उस काम का है जो मुनाफिये तहरीमा है।

★ सुन्नते वही न पढ़िये बल्कि दाए, बाए, आगे, पीछे हट कर पढ़िये या घर जा कर अदा किजिये।
*आलमगिरी, जी.1 स.77*

★ सुन्नते पढ़ने के लिये घर जाने की वजह से जो फ़ासिला हुवा उस में हर्ज नही।
★ जगह बदलने या घर जाने के लिये नमाज़ी के आगे से गुज़रना या उस की तरफ अपना चेहरा करना गुनाह है अगर निकलने की जगह न मिले तो वही सुन्नते पढ़ लीजिये।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 179*

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*क़र्ज़ देने के फ़ज़ाइल*
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     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : हर क़र्ज़ सदक़ा है।
*شعب الإيمان*

     आप का फरमान है : मेराज की रात में ने जन्नत के दरवाज़े पर लिखा हुवा देखा की सदक़ा का हर दिरहम, दस दिरहम के बराबर है और क़र्ज़ का हर दिरहम 18 दिरहम के बराबर है। मेने पूछा जिब्राइल ! क़र्ज़ सदके से किस वजह से अफ़्ज़ल है ? अर्ज़ की, साइल सुवाल करता है जब की उस के पास (माल) होता है और क़र्ज़ तलब करने वाला अपनी ज़रूरत के लिये क़र्ज़ तलब करता है।

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो शख्स अपने किसी भाई को दोबारा क़र्ज़ देगा, अल्लाह उस को एक मर्तबा सदक़ा करने का षवाब देगा।
*سنن ابن ماجه*

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Sunday 16 July 2017

*आसान नेकियां*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     बेशुमार नेकियां ऐसी भी है जिन में मेहनत बेहद कम मगर षवाब बहुत ज़्यादा होता है लेकिन तवज्जोह न होने या ला इल्मी की वजह से हम इन षवाबात के हुसूल के कई मवाकेअ ज़ाएअ कर बैठते है। अगर थोड़ी सी तवज्जोह कर ली जाए तो أن شاء الله हमारे नामए आमाल में बेशुमार नेकियां जमा हो सकती है।

*_अमल शुरू कर दीजिये_*
     जिस पर एक एक नेकी जमा करने की धुन सुवार हो जाए, आसान हो या मुश्किल वो नेकी करने का कोई मौक़ा हाथ से नही जाने देता। लिहाज़ा नेकियों का खज़ाना जमा करने के लिये आज और अभी से निय्यत कर लीजिये की में फराइज़ व वाजिबात की पाबन्दी करने के साथ साथ जब भी किसी मुस्तहब अमल की फ़ज़ीलत के बारे में पढ़ु या सुनूँगा तो أن شاء الله मौक़ा मिलते ही उस पर अमल करने और इस्तिकामत पाने की कोशिश करूँगा, क्यू की जिस तरह रेल की पटरी बिछाना एक काम है और इस पर ट्रेन चलाना दूसरा काम ! बिल्कुल इसी तरह किसी अमल की फ़ज़ीलत जान लेना एक काम है मगर उस फ़ज़ीलत को हासिल करना दूसरा काम है। नेकियों में मसरूफ़ रहने का एक फायदा ये भी होगा की गुनाह करने का मौक़ा ही नही मिलेगा أن شاء الله.
*✍🏼आसान नेकियां, 11*

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*नमाज़ की सुन्नते* #10
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*_सलाम फेरने के बाद की सुन्नते_*

★ सलाम के बाद इमाम के लिए सुन्नत ये है की दाई या बाई तरफ रुख कर ले,
★ दाई तरफ अफज़ल है

★ और मुक्तदियो की तरफ रुख कर के भी बैठ सकता है जब की आखिरी सफ तक भी कोई इस के सामने [यानि इस के चेहरे की सीध में] नमाज़ न पढ़ता हो.

★ अकेले नमाज़ पढ़ने वाला बैगेर रुख बदले अगर वही दुआ मांगे तो जाइज़ है.

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼आलमगिरी, जी. 1 स. 77*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 179*

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*इमामे के फ़ज़ाइल* #02
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*_हिकायत_*
     हज़रते सालिम बिन अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنه फ़रमाते है की में अपने वालिद के हुज़ूर हाज़िर हुवा वो इमामा बांध रहे थे जब बांध चुके तो मेरी तरफ इल्तीफात कर के फ़रमाया : तुम इमामा को दोस्त रखते हो ? में ने अर्ज़ की : क्यू नही ! फ़रमाया : इसे दोस्त रखो इज़्ज़त पाओगे और जब शैतान तुम्हे देखेगा तुम से पीठ फेर लेगा, ऐ फ़रज़न्द इमामा बांध की फ़रिश्ते जुमुआ के दिन इमामा बांधे आते है और सूरज डूबने तक इमामा बांधने वालो पर सलाम भेजते रहते है।

     इमामे पेच सीधी जानिब होने चाहिए चुनान्चे इमाम अहमद रज़ा खान عليه رحما इमामा शरीफ इस तरह बांधते की शिमलाए मुबारका सीधे शाना पर रहता। नीज़ बांधते वक़्त उस की गर्दिश बाए हाथ से फ़रमाते जब की सीधा हाथ पेशानी पर रखते और इसी से हर पेच की गरिफ्त फ़रमाते।

*_इमामा के आदाब_*
★ इमामा 7 हाथ (साढ़े तिन गज़) से छोटा न हो और 12 हाथ (छ गज़) से बड़ा न हो।
★ इमामा के शिम्ले की मिक़दार कम अज़ कम चार उंगल और ज़्यादा से ज़्यादा इतना हो की बैठने में न दबे।
★ इमामा उतारते वक़्त भी एक एक के पेच खोलना चाहिये। इमामा किब्ला की तरफ रुख कर के खड़े खड़े बांधे।

     ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे इमामा की सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 112*

*___________________________________*
मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Saturday 15 July 2017

*हर नेकी मुश्किल नही होती*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सच्ची बात तो ये है की "हर नेकी मुश्किल नही होती, हमारा नफ़्स इन्हें मुश्किल समझता है।" अलबत्ता कुछ नेकियां ऐसी होती है जिन में थोड़ी बहुत मेहनत मशक़्क़त करनी पड़ती है लेकिन अगर हिम्मत कर के इन्हें शुरू कर दिया जाए तो वक़्त के साथ साथ आसानी पैदा हो जाती है, मशलन नींद कुर्बान कर के तहज्जुद पढ़ना बेहद मुश्किल महसूस होता है लेकिन जो इस का मामूल बना ले उस के लिये नमाज़े तहज्जुद की अदाएगी क़दरे आसान हो जाती है। बहर हाल कोई नेकी दुश्वार भी हो तो छोड़नी नही चाहिये और मशक़्क़त नही बल्कि इनआम को पेशे नज़र रखना चाहिये क्यू की आरज़ी मशक़्क़त खत्म हो जाएगी जब की इस का इनआम أن شاء الله हमेशा आप के पास रहेगा।

*_जितनी मशक़्क़त ज़्यादा उतना षवाब ज़्यादा_*
     अपना मदनी ज़हन बना लीजिये की नेकी में जितनी मशक़्क़त ज़्यादा होगी أن شاء الله उतना ही षवाब ज़्यादा मिलेगा जैसा की मन्कुल है : अफ़्ज़ल इबादत वो है जिस में ज़हमत (तकलीफ) ज़्यादा है।
     इमाम शर्फुद्दीन नववी عليه رحما फ़रमाते है : इबादत में मशक़्क़त और खर्च ज़्यादा होने से षवाब और फ़ज़ीलत ज़्यादा हो जाती है।
     हज़रते इब्राहिम बिन अदहम का फरमान है : दुन्या में जो नेक अमल जितना दुश्वार होगा क़यामत के रोज़ नेकियों के पलड़े में उतना ही ज़्यादा वज़नदार होगा।
*✍🏼आसान नेकियां, 10*

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*नमाज़ की सुन्नते* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_सलाम फेरने की सुन्नते_*

★ इन अलफ़ाज़ के साथ दो बार सलाम फेरना "अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह"

★ पहले सीधी तरफ फिर उलटी तरफ मुह फेरना

★ इमाम के लिये दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहना सुन्नत है मगर दूसरा पहले से कम आवाज़ में कहे।

★ हर तरफ के सलाम में उस तरफ वाले मुक्तदियो और उन उलमा की निय्यत करे नीज़ जिस तरफ इमाम हो उस तरफ के सलाम में इमाम की भी निय्यत करे और अगर इमाम उस के ठीक सामने की सीध में हो तो दोनों सलामो में इमाम की भी निय्यत करे

★ अकेले नमाज़ पढ़ने वाला किरामन कातिबिन् और उन मलाएका की निय्यत करे जिन को अल्लाह ने हिफाज़त के लिये मुक़र्रर किया है और निय्यत में कोई अदद मुअय्यन न करे।

★ मुक्तदि का तमाम इन्तिक़ालात यानि रूकू सुजूद वग़ैरा इमाम के साथ होना।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 178-179*

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*इमामे के फ़ज़ाइल* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     इमामा शरीफ हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم की बहुत ही प्यारी सुन्नत है। आप ने हमेशा सरे अक़दस पर अपनी मुबारक टोपी पर इमामा मुबारक को सजा कर रखा।

*_ताजदारे मदीना के इर्शादात_*
★ इमामे के साथ दो रकअत बगैर इमामा की 70 रकअतो से अफ़्ज़ल है।
★ इमामा के साथ नमाज़ 10 हज़ार नेकियों के बराबर है।
★ बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते दुरुद भेजते है जुमुआ के दिन इमामा वालो पर।
★ टोपी पर इमामा और मुशरिकीन का फ़र्क़ है, हर पेच पर की मुसलमान अपने सर पर देगा इस पर रोज़े क़यामत एक नूर अता किया जाएगा।
★ इमामा बंधो तुम्हारा हिल्म बढ़ेगा।
★ इमामा मुसलमानो का वक़ार और अरब की इज़्ज़त है तो जब अरब इमामा उतार देंगे अपनी इज़्ज़त उतार देंगे।
★ आप صلى الله عليه وسلم ने इमामा की तरफ इशारा कर के फ़रमाया : फरिश्तों के ताज ऐसे ही होते है।
★ इमामा के साथ एक जुमुआ बगैर इमामा के 70 जुमुआ के बराबर है।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 111*

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Friday 14 July 2017

*नेकियों की दो किस्मे*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नेकिया दो किस्म की होती है : (1) जिन का करना हम पर फ़र्ज़ या वाजिब होता है जेसे नमाज़, रोज़ा, वगैरा तो ऐसी नेकियां हर सूरत में करनी ही होगी क्यू की इन की अदाएगी पर षवाब और अदमे अदाएगी पर मलामत करने के साथ साथ सज़ा भी है। (2) वो नेकियां जो मुस्तहब्बात के दर्जे में है जेसे नवाफ़िल वगैरा यानी अगर करे तो षवाब और न करे तो गुनाह नही लेकिन षवाब से बहर हाल महरूम रहेगे।

*_क्या नेकी कमाना मुश्किल काम है ?_*
     हमारी अक्षरिय्यत इस वस्वसे का शिकार हो कर नेकियों की तरफ क़दम नही बढती की "नेकियां कमाना बहुत मुश्किल है" मगर हैरत उस वक़्त होती है की जब यही लोग दुन्यवी मालो दौलत कमाने के लिये मुश्किल से मुश्किल काम पर राज़ी हो जाते है। इस के लिये भूक, प्यास, धुप, ज़िल्लत, थकावट वगैरा क्या कुछ बर्दाश्त नही करते ! हत्ता की अपनी जान भी खतरे में दाल देते है, सिर्फ इस वजह से की उनका ज़ेहन बना होता है की इस परेशानी के सिले में उन्हें थोड़ी बहुत रकम मिल जाएगी जिस से वो अपनी जरूरियात व ख्वाहिशात पूरी कर सकेंगे, लेकिन अफ़सोस की जब ऐसो के सामने आख़िरत में मिलने वाले इनआमात व आसाइशात का तज़किरा कर के नेक कामो की तरगिब् दी जाए तो उन्हें ये काम बहुत मुश्किल दिखाई देते है और वो राहे फिरार इख़्तियार करने के लिये हिले बहाने बनाने लगते है।
*✍🏼आसान नेकियां, 9*

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*नमाज़ की सुन्नते* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_क़दह की सुन्नते_*
★ दूसरी रकअत के सजदों से फारिग हो कर बाय पाऊ बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रख कर बैठना और सीधा क़दम खड़ा रखना
सीधे पाऊ की उंगलिया किब्ला रुख करना

★ सीधा हाथ सीधी रान पर और उल्टा हाथ उलटी रान पर रखना
★ उंगलिया अपनी हालत पर यानि [normal] छोड़ना की न ज्यादा खुली हुई नबिल्कुल मिली हुई.
★ उंगलियो के कनारे घुटनो के पास होंना, घुटने पकड़ना न चाहिए.

★ अत्तहियात में शहादत पर इशारा करना.
★ इसका तरीका ये है की छुंगलिया और पास वाली को बंद कर लीजिये, अंगूठे और बिच वाली का हल्क़ा बाधिये और "लाम" पर कलिमे की ऊँगली उठाइये इस को इधर उधर मत हिलाइये और "इला" पर रख दीजिये और सब उंगलिया सीधी कर लीजिये.

★ दुसरे क़ायदे में भी इसी तरह बैठिये जिस तरह पहले में बैठे थे और अत्तहिय्यत भी पढ़िये।

★ उसके बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये।

★ नवाफ़िल और सुन्नते गैर मुअक्कदा के क़ायदे ए उला में भी अत्तहिय्यत और दुरुदे इब्राहिम पढ़ना सुन्नत है।

★ अब दुआ ए मासुरा पढ़िये।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 177-178*

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*मेहमान नवाज़ी की सुन्नते और आदाब* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_मेहमान मेज़बान के गुनाह मुआफ़ होने का सबब होता है_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जब कोई मेहमान किसी के यहाँ आता है तो अपना रिज़्क़ ले कर आता है और जब उस के यहाँ से जाता है तो साहिबे खाना के गुनाह बख्शे जाने का सबब होता है।

*_10 फ़रिश्ते साल भर तक घर में रहमत लुटाते है_*
    हज़रते अनस رضي الله عنه ने अपने भाई हज़रते बराअ बिन मालिक رضي الله عنه से फ़रमाया, ऐ बराअ ! आदमी जब अपने भाई की, अल्लाह के लिये मेहमान नवाज़ी करता है और इस की कोई जज़ा और शुक्रिया नही चाहता तो अल्लाह उस के घर में 10 फरिश्तों को भेज देता है जो पुरे एक साल तक अल्लाह की तस्बीह व तहलील और तकबीर पढ़ते और उस के लिये मगफिरत की दुआ करते रहते है। और जब साल पूरा हो जाता है तो उन फरिश्तों की पूरी साल की इबादत के बराबर उस के नामए आमाल में इबादत लिख दी जाती है और अल्लाह के जिम्मए करम पर है की उसको जन्नत की लज़ीज़ ग़िज़ाए "जन्नतुल खुल्द" और न फना होने वाली बादशाही में खिलाए।
   
*_मेहमान को दरवाज़े तक तुख्सत करना सुन्नत है_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : सुन्नत ये है की आदमी मेहमान को दरवाज़े तक रुख्सत करने जाए।

     ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे मेहमानो की खुश दिली के साथ मेहमान नवाज़ी की तौफ़ीक़ अता फरमा और बार बार हमे मदीने की महकी फ़ज़ाओं में मदनी आक़ा صلى الله عليه وسلم का मेहमान बनने की सआदत नसीब फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 110*

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Thursday 13 July 2017

*अज़ाब से छुटकारे के असबाब* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

★ एक शख्स पुल सिरात पर खड़ा था और टहनी की तरह लरज़ रहा था लेकिन उसका अल्लाह के साथ *हुस्ने ज़न* (यानी अल्लाह से अच्छा गुमान की वो ज़रूर रहमत फ़रमाएगा) आया और उसे बचा लिया और वो पुल सिरात से गुज़र गया।

★ एक शख्स पुल सिरात पर घिसट घिसट कर चल रहा था की उस का मुझ पर *दुरुदे पाक* पढ़ना आ गया और उस को खड़ा कर के पुल सिरात पार करवा दिया।

★ मेरी उम्मत का एक शख्स जन्नत के दरवाज़ों के पास पंहुचा तो वो सब पर बन्द थे की उस का لٙااِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ की गवाही देना आया और उस के लिये जन्नती दरवाज़े खुल गए और वो जन्नत में दाखिल हो गया।

★ एक औरत को सिर्फ इस लिये बख्श दिया गया की उस ने एक प्यासे कुत्ते को पानी पिलाया था।

★ एक शख्स ने रस्ते में से एक दरख्त को इस लिये हटा दिया ताकि लोगो को इस से इज़ा न पहुचे। अल्लाह ने खुश हो कर उस की मगफिरत फरमा दी।

★ एक हदिष में तक़ाज़े में नरमी (यानी क़र्ज़ में वूसुली में आसानी) करने वाले एक शख्स की नजात हो जाने का वाक़ीआ भी आया है।

सच तो ये है की रहमत के वाकिआत जमा करने जाए तो इतने है की हम जमा ही न कर सके।
*✍🏼आसान नेकियां, 7*

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*नमाज़ की सुन्नते* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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_*दूसरी रकअत के लिये उठने की सुन्नते*_

★ जब दोनों सज्दे कर ले तो दूसरी रकअत के लिये पन्जो के बल, घुटनो पर हाथ रख कर खड़ा होना सुन्नत है।

★ हा कमज़ोरी या पाउ में तकलीफ वग़ैरा मजबूरी की वजह से ज़मीन पर हाथ रख कर खड़े होने में हरज नहीं।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 176*

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*मेहमान नवाज़ी की सुन्नते और आदाब* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     मेहमान नवाज़ी करना सुन्नते मुबारका है, अहादिश में इस के बहुत से फ़ज़ाइल बयान किये गए है बल्कि यहाँ तक फ़रमाया की मेहमान बाइसे खैरो बरकत है। एक दफा हुज़ूर صلى الله عليه وسلم के यहाँ मेहमान हाज़िर हुवा तो आप ने क़र्ज़ ले कर उस की मेहमान नवाज़ी फ़रमाई।
     चुनान्चे अबू राफेअ رضي الله عنه कहते है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने मुझ से फ़रमाया, फुला यहूदी से कहो की मुझे आटा क़र्ज़ दे। में रजब शरीफ के महीने में अदा कर दूंगा (क्यू की एक मेहमान मेरे पास आया हुवा है) यहूदी ने कहा, जब तक कुछ गिरवी नही रखोगे, न दूंगा। हज़रते अबू राफेअ رضي الله عنه कहते है की में वापस आया और हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की खिदमत में उस का जवाब अर्ज़ किया। आप ने फ़रमाया, वल्लाह ! में आसमान में भी अमीन हु और ज़मीन में भी अमीन हु। अगर वो दे देता तो में अदा कर देता। (अब मेरी वो ज़िरह ले जा और गिरवी रख कर आ। में ले गया और ज़िरह गिरवी रख कर लाया)

*_मेहमान बाइसे खैरो बरकत है_*
     हज़रते अनस رضي الله عنه का बयान है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया, जिस घर में मेहमान हो उस घर में खैरो बरकत उसी तरह दौड़ती है जैसे ऊंट की कौहान से छड़ी (तेज़ी से गिरती है), बल्कि इस से भी तेज़।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 108*

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Wednesday 12 July 2017

*नमाज़ की सुन्नते* #06
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_जल्से की सुन्नते_*
★ दोनों सजदों के बिच में बैठना इसे जल्सा कहते है।

*मर्द*
◆ जल्से में सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर उस पर बैठना
◆ सीधे पाउ की उंगलिया किब्ला रुख करना
◆ दोनों हाथ रानो पर रखना

*औरत*
◆ दोनों पाउ सीधी जानिब निकाल देना और उलटी सुरीन पर बैठना
◆ दोनों हाथ रानो पर रखना

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*सोने जागने की सुन्नते और आदाब* #02
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★ *दाई करवट लेटना सुन्नत है।* हुज़ूर صلى الله عليه وسلم जब अपनी ख्वाब गाह पर तशरीफ़ ले जाते तो अपना सीधा हाथ मुबारक सीधे रुख़्सार शरीफ के निचे रख कर लेटते।

★ *क़ुरआन* के आदाब में से ये भी है की इस की तरफ पीठ न की जाए न पाउ फेलाए जाए, न पाउ को इस से उचा करे, न ये की खुद उची जगह पर हो और क़ुरआन निचे हो। हा क़ुरआन और मुक़द्दस तुगरे वगैरा उची जगह हो तो उस सम्त पाउ करने में मुज़ायक़ा नही।

★ कभी चटाई पर सोए तो कभी बिस्तर पर कभी फर्शे ज़मीन पर ही सो जाए।

★ *जागने के बाद ये दुआ पढ़े* الْحٙمْدُلِلّٰهِ الِّذِىْ اٙحْيٙانٙا بٙعْدٙمٙا اٙمٙاتٙنٙا وٙاِلٙيْهِ النُّشُوْرُ
तर्जमा : तमाम तारीफ अल्लाह के लिये है जिस ने हमे मारने के बाद ज़िन्दा किया और उसी की तरफ लौट कर जाना है।

     ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे कम सोने और सुन्नत के मुताबिक़ सोने की तौफ़ीक़ मर्हमत फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن

*✍🏼सुन्नते और आदाब, 107*

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Tuesday 11 July 2017

*अज़ाब से छुटकारे के असबाब* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
★ एक शख्स को अज़ाब के मख़्सूस फरिश्तों ने चारो तरफ से घेर लिया लेकिन उस का नेकी का हुक्म करने और बुराई से मना करने की नेकी आई और इस ने उसे बचा लिया और रहमत के फरिश्तों के हवाले कर दिया।

★ एक शख्स को देखा जो घुटनो के बल बैठा है लेकिन उस के और अल्लाह के दरमियान पर्दा है मगर उस का *हुस्ने अख़लाक़* आया, इस नेकी ने उस को बचा लिया और अल्लाह से मिला दिया।

★ एक शख्स को उसका आमाल नामा उलटे हाथ में दिया जाने लगा तो उस का *खौफे खुदा* आ गया और इस अज़ीम नेकी की बरकत से उस का नामए आमाल सीधे हाथ में दे दिया गया।

★ एक शख्स की नेकियों का वज़न हल्का रहा मगर उस की *सखावत* आ गई और नेकियों का वज़न बढ़ गया।

★ एक शख्स जहन्नम के किनारे पर खड़ा था मगर उस का *खौफे खुदा* आ गया और वो बच गया।

★ एक शख्स जहन्नम में गिर गया लेकिन उस के *खौफे खुदका में बहाए हुवे आंसू* आ गए और इन आसुओ की बरकत से वो बच गया।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 7*

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ की सुन्नते* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_सज्दे की सुन्नते_*
★ सज्दे में जाने के लिये और सज्दे से उठने के लिये अल्लाहु अक्बर कहना

★ सज्दे में कम अज़ कम 3 बार "सुब्हान रब्बियल आला" कहना

★ सज्दे में हथेलिया ज़मीन पर रखना, हाथो की उंगलिया मिली हुई किब्ला रुख रखना।

★ सज्दे में जाए तो ज़मीन पर पहले घुटने फिर हाथ फिर नाक फिर पेशानी रखना।

★ जब सज्दे से उठे तो इस का उल्टा करना यानी पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ फिर घुटने उठाना।

*मर्द :*
◆ सज्दे में सुन्नत ये है कि बाज़ू करवटों से और राने पेट से जुदा हो
◆ कलाइयां ज़मीन पर न बिछाइये हा जब सफ में हो तो बाज़ू करवटों से जुदा न रखिये।
◆ सज्दे में दोनों पाउ की उंगलियो पेट इस तरह ज़मीन पर लगाइये के दसो उनगलिया किब्ला रुख रहे।

*औरत :*
◆ सिमट कर सज्दा करे यानि बाज़ू करवटों से पेट रानो राने पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला देना।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 176-177*

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*सोने जागने की सुन्नते और आदाब* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नींद भी एक तरह की मौत है। जब भी हम सो इ लगे तो हमे डर जाना चाहिये की कहि ऐसा न हो की आँख ही न खुले और हमेशा हमेशा के लिये ही सोते रह जाए। लिहाज़ा रोज़ाना सोने से पहले भी अपने गुनाहो से तौबा कर लेनी चाहिये।
     अगर हम सुन्नत के मुताबिक़ दुआए वगैरा पढ़ कर सोए तो أن شاء الله हमे सोने का भी कुछ न कुछ फायदा हासिल हो ही जाएगा।

★ *सोने से पहले बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ कर बिस्तर को तिन बार झाड़ ले* ताकि कोई मुजी शै या कीड़ा वगैरा हो तो निकल जाए।

★ *सोने से पहले ये दुआ पढ़ लेना सुन्नत है।* اللّٰهُمّٙ بِاِسْمِكٙ اٙمُوْتُ وٙاٙحْىٰ
तर्जमा : ऐ अल्लाह ! में तेरे नाम के साथ ही मरता हु और जीता हु। (यानी सोता और जागता हु)

★ *उल्टा यानी पेट के बल न सोए* हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने एक शख्स को पेट के बल लेटे हुए देखा तो फ़रमाया : इस तरह लेटने को अल्लाह पसन्द नही फ़रमाता।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 106*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 10 July 2017

*अज़ाब से छुटकारे के असबाब* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

★ एक शख्स को देखा की प्यास की शिद्दत से ज़बान निकाले हुवे था और एक हौज़ पर पानी पिने जाता था मगर लौटा दिया जाता था की इतने में उस के *रोज़े* आ गए और नेकी ने उसे सैराब कर दिया।

★ एक शख्स को देखा की जहां अम्बियाए किराम हल्के बनाए हुवे तशरीफ़ फरमा थे, वहा उन के पास जाना चाहता था लेकिन धुत्कार दिया जाता था की इतने में उस का *ग़ुस्ले जनाबत* आया और इस नेकी ने उस को मेरे पास बिठा दिया।

★ एक शख्स को देखा की उस के आगे पीछे, दाए बाए, ऊपर निचे अँधेरा ही अँधेरा है और वो उस अँधेरे में हैरानो परेशान है तो उस के *हज व उमरा* आ गए और इन नेकियों ने उस को अँधेरे से निकाल कर रौशनी में पंहुचा दिया।

★ एक शख्स को देखा की वो मुसलमानो से गुफ्तगू करना चाहता है लेकिन कोई उस को मुह नही लगाता तो *सीलए रहमी* (यानी रिश्तेदारो से हुस्ने सुलूक करने की नेकी) ने मोअमिनिन से कहा की तुम इस से बात चित करो। तो मुसलमानो ने उस से बात करना शुरू की।

★ एक शख्स के जिस्म और चेहरे की तरफ आग बढ़ रही है और वो अपने हाथ से बचा रहा है तो उस का *सदक़ा* आ गया और उस के आगे ढाल बन गया और उस के सर पर साया फिगन हो गया।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏽आसान नेकियां, 6*

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*नमाज़ की सुन्नते* #04
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*_क़ौमा की सुन्नते_*
★ रूकू से जब उठे तो हाथ लटका दीजिये

★ रूकू से उठने में इमाम के लिये समी-अल्लाहु-लीमन-हामिदह कहना

★ मुक्तदि के लिये रब्बना-लकल-हम्द या अल्लाहुम्म- रब्बना-व-लकल-हम्द कहना

★ तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले के लिये दोनों कहना सुन्नत है

★ तनहा नमाज़ पढ़ने वाला समी-अल्लाहु-लीमन-हामिदह कहता हुवा रूकू से उठे जब सीधा खड़ा हो चुके तो अब अल्लाहुम्म- रब्बना-व-लकल-हम्द कहे।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 176*

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*जूता पहनने की सुन्नते और आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नालैन पहनना सरकार صلى الله عليه وسلم की सुन्नत है।

★ *किसी भी रंग का जूता पहनना अगर्चे जाइज़ है लेकिन पिले रंग के जूते पहनना बेहतर है* की मौला अलिय्युल मुर्तज़ा كرم الله وجهه الكريم फ़रमाते है जो पिले जूते पहनेगा उस की फिक्रो में कमी होगी।

★ *पहले सीधा जूता पहने फिर उल्टा और उतारते वक़्त पहले उल्टा जूता उतारे फिर सीधा।* हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से मरवी है की अल्लाह के हबीब صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : कोई शख्स जब जूता पहने तो पहले दाहिने पाउ में पहने और जब उतारे तो पहले बाए पाउ का उतारे।

★ जब बैठे तो जूता उतार लेना सुन्नत है। हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله عنه फ़रमाते है की जब बन्दा बैठे तो सुन्नत है की अपने जूते उतार ले।

★ *जूता पहनने से पहले झाड़ ले* ताकि कीड़ा या कंकर वगैरा हो तो निकल जाए।

★ *इस्तिमाली जूता उल्टा पड़ा हो तो सीधा कर दीजिये* वरना फ़क़रो तंग दस्ती का अन्देशा है।
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 104*

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Sunday 9 July 2017

*नमाज़ की सुन्नते* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*रूकू की सुन्नते*_
"◆ रूकू के लिये "अल्लाहु अक्बर" कहना।
◆ रूकू में 3 बार "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" कहना

*मर्द :*
◆ घुटनो को हाथ से पकड़ना और उंगलिया खूब खुली रखना
◆ रूकू में टांगे सीधी रखना (बज़ लोग कमान की तरह टेढ़ी कर लेते है ये मकरूह है)
◆ रूकू में पीठ अच्छी तरह बिछी हो हत्ता की अगर पानी का प्याला पीठ पर रख दिया जाए तो ठहर जाए
◆ सर उचा निचा न हो पीठ की सीध में हो। सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم  फरमाते है " उसकी नमाज़ नाकाफी है जो रूकू व सुजूद में पीठ सीधी नही करता।
     एक और हदिष में फरमाते है की रूकू व सुजूद को पूरा करो खुदा की क़सम में तुम्हे अपने पीछे से देखता हु।

*औरत :*
◆ घुटनो पर हाथ रखना और उंगलिया कुशादा न करना
रूकू में थोडा झुके यानि सिर्फ इतना की हाथ घुटनो तक पहुच जाए
◆ पीठ सीधी न करे और घुटनो पर ज़ोर न दे फक्त हाथ रख दे और हाथो की उनगलिया मिली हुई रखे और पाउ झुके हुए रखे इस्लामी भाइयो की तरह सीधे न कर दे।

◆ बेहतर ये है की "अल्लाहु अक्बर" कहता हुआ रूकू को जाए यानि जब रूकू के लिए झुकना शुरू करे और खत्मे रूकू पर तकबीर खत्म करे।
◆ इस मसाफत को पूरा करने के लिये अल्लाह عزوجل की लाम को बढ़ाए अक्बर की बा वग़ैरा किसी हर्फ़ को न बढ़ाए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 175*

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*लिबास पहनने की सुन्नते और आदाब* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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★ *पहनते वक़्त सीधी तरफ से शुरू करे* मसलन जब कुर्ता पहने तो पहले सीधी आस्तीन में सीधा हाथ दाखिल करे फिर उलटी में, इसी तरह पाजामा में पहले सीधे पाइचे में सीधा पाउ दाखिल करे और जब उतारने लगे तो इस के बर अक्स करे यानी उल्टी तरफ से शुरू करे। हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم जब कुर्ता पहनते तो दाहिनी तरफ से शुरू फ़रमाते।

★ पहले कुर्ता पहने फिर पजामा।

★ *इमामा बांधने की आदत डालिये* की हज़रते उबादा رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : इमामा ज़रूर बांधा करो की ये फरिश्तों का निशान है और इस के शिम्ले को पीठ के पीछे लटका लो।
इमामे के साथ 2 रकअत बगैर इमामा की 70 रकअतो से अफ़्ज़ल है।
*كنزالعمال*

ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे फैशन वाले लिबास से बचा और महबूब صلى الله عليه وسلم की सुन्नत के मुताबिक़ लिबास पहनने की तौफ़ीक़ मर्हमत फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 103*

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Saturday 8 July 2017

*नेकी की किसी बात को हक़ीर न जानो*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : नेकी की किसी बात को हक़ीर न समझो चाहे वो तुम्हारा अपने भाई से खन्दा पेशानी से मुलाक़ात करना हो।
*मुस्लिम*
     जिज वक़्त किसी नेकी की तौफ़ीक़ मिले मौक़ाए गनीमत जान कर षवाब कमाना चाहिये, क्या बईद वही नेकी हमारे लिये ज़रीआए नजात बन जाए। चुनान्चे...

*अज़ाब से छुटकारे के असबाब* #01
     एक तवील हदिष में मूतअद्दिद ऐसे लोगो का बयान है की किसी न किसी नेकी के सबब रहमते खुदावन्दी ने उन्हें अपनी आगोश में ले लिया, चुनान्चे हज़रते अब्दुर्रहमान बिन सुमरह رضي الله عنه से रिवायत है की एक बार हुज़ूर صلى الله عليه وسلم तशरीफ़ लाए और इर्शाद फ़रमाया : आज रात में ने एक अजीब ख्वाब देखा की...
◆ एक शख्स की रूह क़ब्ज़ करने के लिये मलकुल मौत तशरीफ़ लाए लेकिन उस का *माँ बाप की इताअत* करना सामने आ गया और वो बच गया।
◆ एक शख्स पर अज़ाबे क़ब्र छा गया लेकिन उस के वुज़ू (की नेकी) ने उसे बचा लिया।
◆ एक शख्स को शयातीन ने घेर लिया लेकिन ज़िकरुल्लाह कर ने की (करने की नेकी) ने उसे बचा लिया।
◆ एक शख्स को अज़ाब के फरिश्तों ने घेर लिया लेकिन उसे उसकी नमाज़ ने बचा लिया।

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*✍🏼आसान नेकियां, 5*

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*नमाज़ की सुन्नते* #02
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*_क़याम की सुन्नते_*
     मर्द नाफ़ के निचे सीधे हाथ की हथेली उलटे हाथ की कलाई के जोड़ पर, छुनगलिया और अंगूठा कलाई के अगल बगल और बाक़ी उंगलिया हाथ की कलाई की पुश्त पर रखे

*औरत :*
उलटी हथेली सीने पर छाती के निचे रख कर उस के ऊपर सीधी हथेली रखिये।

◆ फिर सना
◆ फिर तअव्वुज़ यानी आऊज़ो और तस्मिया यानि बिस्मिल्लाह पढ़ना।
◆ इन तीनो को एक दूसरे के फौरन बाद कहना।
◆ इन सब को आहिस्ता पढ़ना। आमीन कहना, इसे भी आहिस्ता कहना।
◆ तकबीरे ऊला के फौरन बाद सना पढ़ना (नमाज़ में तअव्वुज़ व तस्मिया किराअत के ताबे है और मुक्तदि पर किराअत नहीं लिहाज़ा तअव्वुज़ व तस्मिया भी मुक्तदि के लिये सुन्नत नहीं। हा जिस मुक्तदि की रकअत फौत हो गई हो वो अपनी बाक़ी रकअत अदा करते वक़्त दोनों को पढ़े।
◆ तअव्वुज़ सिर्फ पहली रकअत में है और तस्मिया हर रकअत के शुरू में सुन्नत है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 174*

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*लिबास पहनने की सुन्नते और आदाब* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     अल्लाह का ये एहसाने अज़ीम है की उस ने हमे लिबास की दौलत अता की। लिबास से हम सर्दी गर्मी के असरात से अपनी हिफाज़त कर सकते है, ये लिबास हमारी ज़ीनत का सबब भी है और सबबे वक़ार भी है। हर क़ौम का जुदा जुदा लिबास होता है, मगर मुसलमान का लिबास सब से मुमताज़ है।

★ *सफेद लिबास हर लिबास से बेहतर है और सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم ने इस को पसन्द फ़रमाया है।* हज़रते समुरह رضي الله عنه से मरवी है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : सफेद लिबास पहनो क्यू की ये ज़यदा साफ़ और पाकीज़ा है और अपने मुर्दो को भी इसी में कफनाओ।

★ *जब कपड़ा पहनने लगे तो ये दुआ पढ़े, अगले पिछले गुनाह मुआफ़ हो जाएंगे*
اٙلْحٙمْدُلِلّٰهِ الّٙذِىْ كٙسٙانِىْ هٰذٙا وٙرٙزٙقٙنِـيْـهِ مِنْ غٙيْرِ حٙوْلٍ مِّنِّىْ وٙلٙا قُوّٙةٙ
तर्जमा : अल्लाह का शुक्र है जिस ने मुझे ये पहनाया और बगैर मेरी क़ुव्वत व ताक़त के मुझे ये अता किया।

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Friday 7 July 2017

*बरोज़े क़यामत नेकी खुशखबरिया सुनाएगी*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     क़यामत के दिन नेकियां करने वाले शादा व फरहा जब की बुराइयों के आदी हैरान व परेशान होंगे, रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : बरोज़े क़यामत नेकी और बदी को लोगो के सामने खड़ा किया जाएगा। नेकी अपने करने वालो को बिशारते देगी और उन से भलाई का वादा करेगी जब की बुराई कहेगी : मुझ से दूर हो जाओ, मगर वो इस की ताक़त नही रखेगे बल्कि बुराई के साथ चिमटेंगे।
     *गुनाहो ने मेरी करम तोड़ डाली*
          *मेरा हशर में होगा क्या या इलाही*
     *इबादत में गुज़रे मेरी ज़िंदगानी*
          *करम हो करम या खुदा या इलाही*

*_शेर दहाड़ते वक़्त क्या कहता है ?_*
     हज़रते अबू हुरैरा से रिवायत है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : तुम्हे मालुम है शेर दहाड़ते वक़्त क्या कहता है ? सहाबए किराम ने अर्ज़ की, अल्लाह और उस का रसूल बेहतर जानते है। इर्शाद फ़रमाया : शेर कहता है, ऐ अल्लाह मुझे किसी नेक शख्स पर मुसल्लत न फरमाना।
*✍🏼आसान नेकियां, 3*

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*_तकबीरे तहरिमा की सुन्नते_*

★ तकबीरे तहरिमा के लिये हाथ उठाना।
★ हाथो की उनगलिया अपने हाल पर (normal) छोड़ना, यानि बिलकुल मिलाइये न इन में तनाव पौदा कीजिये।
★ हथेलियो और उंगलियो का पेट किब्ला रु होना।

★ तकबीर के वक़्त सर न झुकाना।
★ तकबीर शुरू करने से पहले ही दोनों हाथ कानो तक उठा लेना।
★ तकबीरे क़ुनूत और तकबीरे इदैन में भी येही सुन्नते है।

★ इमाम का बुलंद आवाज़ से "अल्लाहु अक्बर" "समीअल्लाहु-लीमन-हामिदह" और सलाम कहना (हाजत से ज्यादा बुलंद आवाज़ करना मकरूह है)

★ तकबीर के फौरन बाद हाथ बांध लेना सुन्नत है (बाज़ लोग तकबीरे ऊला के बाद हाथ लटका देते है या खोनिया पीछे की तरफ झुलाने के बाद हाथ बांधते है उन का ये फ़ैल सुन्नत से हट कर है)
*✍🏼दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.208, 229*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 173-174*

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*बैठने की सुन्नते और आदाब* #02
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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

★ बुज़ुर्गो की निशस्त पर बैठना अदब के खिलाफ है। हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान عليه رحما लिखते है : पीर व उस्ताज़ की निशस्त पर उन की गैर मोजुदगी में भी न बेठे।

★ कोशिश करे की उठते बैठते वक़्त बुज़ुर्गाने दिन की तरफ पीठ न होने पाए और पाउ तो उन की तरफ न ही करे।

★ जब कभी इज्तिमाअ या मजलिस में आए तो लोगो को फलांग कर आगे न जाए जहां जगह मिले वही बैठ जाए।

★ मजलिस से फारिग हो कर ये दुआ 3 बार पढ़ ले तो गुनाह मुआफ़ हो जाएंगे। और इस्लामी भाई मजलिसे खैर व मजलिसे ज़िक्र में पढ़े तो उस के लिये उस खैर पर मोहर लगा दी जाएगी।
سُبْحٙانٙكٙ اللّٰهُمّٙ وٙبِحٙمْدِكٙ لٙا اِلٰه اِلّٙا اٙنْتٙ اٙسْتٙغْفِرُكٙ وٙاٙتُوْبُ اِلٙيْكٙ
तर्जमा : तेरी ज़ात पाक है और ऐ अल्लाह ! तेरे ही लिये तमाम खुबिया है, तेरे सुवा कोई माबूद नही, तुझ से बख्शीश चाहता हु और तेरी तरफ तौबा करता हु।

★ जब कोई आलिमे बा अमल या मुत्तक़ी शख्स या सय्यिद सहाब या वालिदैन आए तो ताज़िमन खड़े हो जाना षवाब है। मुफ़्ती अहमद यार खान عليه رحما लिझते है : बुज़ुर्गो की आमद पर ये दोनों काम यानी ताज़िमी क़याम और इस्तिक़बाल जाइज़ बल्कि सुन्नते सहाबा है बल्कि हुज़ूर की सुन्नते कौली है।

ऐ हमारे प्यारे अल्लाह ! हमे उठने बैठने की सुन्नतो और आदाब पर अमल पैरा होने की तौफिके रफ़ीक़ मर्हमत फरमा।
اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن
*✍🏼सुन्नते और आदाब, 101*

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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*दुरुद शरीफ काम आ गया*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     क़यामत के दिन किसी मुसलमान की नेकियां तराज़ू में हल्की हो जाएगी तो हुज़ूर صلى الله عليه وسلم एक पर्चा अपने पास से निकाल कर नेकियों के पलड़े में रख देंगे तो इस से नेकियो का पलड़ा बजनी हो जाएगा। वो अर्ज़ करेगा : मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान, आप कौन है ? हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फरमाएंगे : में तेरा नबी मुहम्मद हु और ये तेरा दुरुदे पाक है जो तू ने मुझ पर पढ़ा था।

*आसान नेकियां, 1*

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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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Thursday 6 July 2017

*सिर्फ एक नेकी चाहिये*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते इकराम رضي الله عنه से मरवी है, क़यामत के दिन एक शख्स अपने बाप के पास आ कर कहेगा : अब्बू जान !
क्या में आप का फरमा बरदार न था ?
क्या में आप से महब्बत भरा सलूक न करता था ?
क्या में आप के साथ भलाई न करता था ?
आप देख रहे है की में किस मुसीबत में गिरफ्तार हु ! मुझे अपनी नेकियों में से सिर्फ एक नेकी अता कर दीजिये या मेरे गुनाह का बोझ उठा लीजिये।

     बाप कहेगा : मेरे बेटे ! तूने मुझ से जो चीज़ मांगी वो आसान तो है लेकिन में भी उसी चीज़ से डरता हु जिस से तुम डर रहे हो।
     इसके बाद बाप भी बेटे को अपने ऐहसानात याद दिला कर येही मुतालबा करेगा तो बेटा जवाब देगा : आप ने बहुत थोड़ी चीज़ का सुवाल किया है लेकिन मुझे भी उसी बात का खौफ है जिस का आप को डर है।
*✍🏼आसान नेकियां, 1*

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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*नमाज़ के वाजिबात* #06
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

★ हर फ़र्ज़ व वाजिब का उस की जगह होना।

★ रूकू हर रकअत में एक ही बार करना।

★ सज्दा हर रकअत में दो बार करना।

★ दूसरी रकअत से पहले क़ादह न करना।

★ 4 रकअत वाली नमाज़ में तीसरी रकअत पर क़ादह न करना।

★ आयते सज्दा पढ़ी हो तो सज्दए तिलावत करना।

★ सज्दए सहव वाजिब हुवा हो तो सज्दए सहव करना।

★ दो फर्ज़ो  या दो वाजिब या फ़र्ज़ व वाजिब के दरमियान तिन तस्बीह की क़दर (यानि तिन बार सुब्हान अल्लाह कहने के मिक़दार) वक़्फ़ा न होना।

★ इमाम जब किराअत करे ख्वाह बुलंद आवाज़ से हो या आहिस्ता आवाज़ से, मुक्तदि का चुप रहना।

★ किराअत के सिवा तमाम वाजिबात में इमाम की पैरवी करना।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 173*

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