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Friday 30 November 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #324

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम मदयन के कुंए पर* #01

     जब आप मदयन के कुंए पर पहुंचे तो देखा कि लोग कसीर मिक़दार में कुंए पर जमा है जो अपने अपने जानवरों को पानी पिला रहे है, लेकिन देखा कि दो औरतें एक तरफ अपने जानवरों को रोक कर खड़ी है वह यह नहीं चाहतीं कि मजामत करके आगे बढ़े, उनके नज़दीक लोगों से पानी हासिल करने में मज़ाहमत करना, जहां बुरी बात थी वहां औरतों को मर्दो से आज़ दाना मेल जोल और धक्का बाजी हराम थी। वह अपनी कमजोरी की वजह से भी दूर खड़ी थीं कि कुएं से पानी निकालना जोर आवर मर्दो का काम है। इस पर इस्तेमाल होने वाले डोल को दस आदमी मिलकर निकालते थे। और कुंए के मूह पर एक पत्थर रख दिया जाता था उसे ढकने के लिये और हटाने के लिये भी दस अदमी मिलकर हटाते। नीज़ वह यह भी न चाहती थीं कि उनके जानवर दूसरे लोगों के जानवरों से मिल जुल जायें कि इन्हें अलग करने में दुश्वारी हो। इन वजूह के पेशे नजर वह अपने जानवर को अलग एक तरफ रोक कर खाडी थीं, लोगों के फारिग होकर चले जाने का इंतेज़ार कर रही थीं।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 276

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #12


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #02


*_इल्मे आइशा के मुतअल्लिक़ 5 फरामिने मुबारका_*

     1. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर शे'र, तिब और फिक़्ह का आलिम किसी को नही पाया।

     2. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه से मरवी एक और रिवायत में तो मज़कूरा उलूम समेत दीगर उलूम का भी तज़किरा है, मेने लोगो में सिद्दीक़ा बिन्ते सिद्दीक़رضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को क़ुरआन, मीरास, हलाल व हराम, शे'र, अक़्वाले अरब और नसब का आलिम नही देखा।

     3. मसहूर हदीस व ताबेइ इमाम शहाबुद्दीन जोहरी अलैरहमा रिवायत करते है की नबिय्ये करीमﷺ का इरशाद है : इस उम्मत की तमाम औरतो ब शुमुल अज़्वाजे नबी के इल्म को अगर जमा कर लिया जाए तो आइशा का इल्म उन सब के इल्म से ज़्यादा होगा।

     4. हज़रते अमीरे मुआविया رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها से बढ़ कर में ने किसी भी खतीब को बलीग़ व ज़हीन नही देखा।

     5. हज़रते मूसा बिन तल्हा رضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को फसीह व बलीग़ नही देखा।

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 31*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-20, आयत, ①⑥⑦*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और कहेंगे अनुयायी काश हमें लौट कर जाना होता (दुनिया में) तो हम उनसे तोड़ देते जैसे उन्होंने हमसे तोड़दी, यूंही अल्लाह उन्हें दिखाएगा उनके काम उनपर हसरतें होकर (4) और वो दोज़ख से निकलने वाले नहीं.


*तफ़सीर*

     (4) यानी अल्लाह तआला उनके बुरे कर्म उनके सामने करेगा तो उन्हें काफ़ी हसरत होगी कि उन्होंने ये काम क्यों किये थे. एक क़ौल यह है कि जन्नत के मक़ामात दिखाकर उनसे कहा जाएगा कि अगर तुम अल्लाह तआला की फ़रमाँबरदारी करते तो ये तुम्हारे लिये थे. फिर वो जगहें ईमान वालों को दी जाएंगी. इसपर उन्हें हसरत और शर्मिन्दगी होगी.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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बद गुमानी के चन्द इलाज* #11

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*ग्यारवां इलाज* 

     दिल के मुहासबे में कभी गफ़लत न कीजिये वरना शैतान मुसल्सल कोशिश के ज़रीए बिल आखिर बद गुमानी में मुब्तला करवा सकता है। हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली رحمة الله عليه लिखते हैं : शैतान बाज़ अवकात मामूली हीले से इन्सान के दिल में लोगों की बुराइयों को पुख्ता कर देता है और उसे बावर कराता है कि “(इन बुराइयों तक पहुंच जाना) तुम्हारी समझदारी और अक्ल की तेजी की वजह से है और मोमिन तो अल्लाह  के नूर से देखता है। "हालांकि हकीकत में वह शख्स शैतान के धोके में होता है।

*✍️बद गुमानी* 59

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।

*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।

*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।

*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*

     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।

     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।

     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।

     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।

*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*

     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।

     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।

     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।

     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।

     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220

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अज़ानों इकामत का बयान* #05

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या अज़ान सिर्फ नमाज़ों के लिये दी जा सकती है? 

     *जवाब* - जी नहीं! बल्कि दर्जे जैल मवाकेअ पर भी अजान देना मुस्तहब है : (1) बच्चे की पैदाइश (2) ग़मगीन (3) मिर्गी वाले (4) गज़ब नाक और बद मिज़ाज आदमी और (5) बद मिज़ाज जानवर के कान में (6) लड़ाई की शिद्दत के वक्त (7) आग लगने के वक्त (8) मय्यित दफ्न करने के बाद (9) जिन्न की सरकशी के वक्त (या किसी पर जिन्न सुवार हो) (10) उस वक्त जब जंगल में रास्ता भूल जाएं और कोई बताने वाला न हो और (11) वबा के जुमने में भी अज़ान देना मुस्तहब है। 


     *सुवाल* - इकामत के वक्त कोई शख्स आया तो उस का खड़े हो कर इन्तिज़ार करना कैसा? 

     *जवाब* - इकामत के वक्त कोई शख्स आया तो उसे खड़े हो कर इन्तिज़ार करना मकरूह है बल्कि बैठ जाए जब इकामत कहने वाला हय्या-अ-ल-लफलाह पर पहुंचे उस वक़्त खड़ा हो। यूँही जो मस्जिद में मौजूद है, वो भी बैठे रहे ओर  उस वक़्त उठे। यही हुक्म इमाम के लिए भी है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 52

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सूरए कहफ़ के फ़ज़ाइल* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अबू सईद खुदरीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि नबीﷺ ने फ़रमाया : जो जुमुआ के दिन सूरए कहफ़ पढ़े उसके लिये दो जुमुआ के दरमियान एक नूर रोशन कर दिया जाता है।

     एक रिवायत में है : जो शबे जुमुआ को पढ़े उसके और बैतूल अतीक़ (यानी काबा शरीफ) के दरमियान एक नूर रोशन कर दिया जाता है।

*✍🏼शोएबुल ईमान 2/474*


     हज़रते अबू दरदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो सूरए कहफ़ की पहली 10 आयते याद करेगा दज्जाल से महफूज़ रहेगा।

     और एक रिवायत में है, जो सूरए कहफ़ की आखरी 10 आयते याद करेगा दज्जाल से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽सहीह मुस्लिम 8/404*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 37*


बेहतर यही है की पहली 10 और आखरी 10 आयते याद करले।

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Thursday 29 November 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #323


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़त्ल का राज़ ज़ाहिर होना*

     हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने फरमाया कि फ़िरऔन की कौम के लोगों ने फ़िरऔन को इत्तेला दी कि किसी बनी इस्राइल ने हमारे एक आदमी को मार डाला है उस पर फिरऔन ने कहा कि कातिल और गवाहों को तलाश करो, फिरऔनी गश्त करते फिरते थे और उन्हें कोई सबूत नहीं मिलत था। दूसरे रोज़ जब  मूसा अलैहिस्सलाम को फिर ऐसा इत्तेफाक पेश आया की वही बनी इस्राइल जिसने एक रोज़ पहले उनसे मदद चाही थी आज फिर एक फ़िरऔनी ने लड़ रहा था और मूसा अलैहिस्सलाम को देखकर उनसे फ़रियाद करने लगा तब मूसा अलैहिस्सलाम ने कहा बेशक तू खुला गुमराह है यानी हर रोज़ लेगों से लड़ता ही रहता है अपने आपको भी मुसीबत और परेशानी में डालता है और अपने मददगारों को भी। और तू एहतियात क्यों नहीं करता? मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे खूब रोब और डांट ड्पट के तौर पर इरशाद फरमाया।

     फिर मूसा अलैहिस्सलाम को उस पर रहम भी आ गया कि फ़िरऔनी बड़े ज़ालिम हैं लिहाजा इसकी इमदाद करनी ही चाहिये जब आप आगे बढ़े कि अपने और उस बनी इस्राईल के दुश्मन की गिरफ्त करे तो उस बनी इस्राइल गलत फहमी में खौफ करते हुए कि आज शायद मेरा काम तमाम करना चाहते है कहा कि ऐ मूसा अलैहिस्सलाम आज तुम मुझे कत्ल करना चाहते हो जैसे कल एक शख्स ने कत्ल कर दिया था? उसका यह कहना ही था कि राज़ खुल गया कि कल फिरौनी को आप अलैहिस्सलाम ने क़त्ल किया है जब फ़िरऔनी को यह खबर मिली तो उसने मूसा अलैहिस्सलाम को कत्ल करने का हुक्म नाफिज़ कर दिया लोग आपको ढूंढने लगे। 


*एक मुखवर ने मूसा अलैहिस्सलाम को बता दिया* 

     और शहर के परले किनारे से एक शख्स दौड़ता हुआ आया कहा ऐ मूसा अलैहिस्सलाम बेशक दरबार वाले (फिरऔनी दरबारी) आपके क़त्ल का मश्वरा कर रहे हैं तो निकल जाइये मैं आपका खैर ख़्ताह हूं। मूसा अलैहिस्सलाम को खबर देने वाला आले फ़िरऔन से था, जो मोमिन था लेकिन ईमान को छुपाता था। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 275

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*शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*


بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

     बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.

بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم

अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम


*सारे गुनाह मुआफ़*

     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार 

اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ

पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।

*✍🏽अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष:7717*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #11

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*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #01


*_सहाबा की मर्कज़ी दर्सगाह बारगाहे आइशा_*

     हज़रते अबू मूसा असअरी رضي الله تعالي عنه फरमाते है : हम असहाबे रसूल को किसी बात में इश्काल होता तो हम आइशा सिद्दीक़ा رضي الله تعالي عنها की बारगाह में सुवाल करते तो आप के पास से ही उस बात का इल्म पाते।

*✍🏽तिर्मिज़ी, 873, हदीस : 3882*

     मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा बयान करदा रिवायत के तहत फरमाते है : असहाबे रसूलुल्लाह को किसी मसअले में कोई इश्काल होता और वो मुश्किल कहि हल न होती तो हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها के पास हाज़िर होते, इन के पास या तो उस के मुतअल्लिक़ हदीस मिल जाती या किसी हदीस से उस मसअले का इस्तिम्बात मिल जाता। अज़ आदम ता ई दम (हज़रते आदम से ले कर आज तक) कोई बीबी ऐसी अलीमा फ़क़ीहा पैदा न हुई जेसी जनाबे हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها हुई।

     आप رضي الله تعالي عنها उलूमे क़ुरआनीया, उलूमे हदीस की जामेअ, बड़ी मुहद्दिसा, बड़ी फ़क़ीहा थी। सिर्फ एक मिसाल पेश करता हु : किसी ने अर्ज़ किया ऐ उम्मुल मुअमिनिन ! क़ुरआन से मालुम होता है की हज व उम्रह में सफा व मरवा की सअय वाजिब नही, सिर्फ जाइज़ है क्यू की अल्लाह ने फ़रमाया : *इस पर गुनाह नही की इन दोनों के फेरे करे*, आपرضي الله تعالي عنها ने जवाब दिया : अगर ये सअय वाजिब न होती तो यु इरशाद होता *की इन के सअय न करने में कोई गुनाह नही*

     इस एक जवाब से उसूले फिक़्ह का कितना दकीक़ मसअला  हल फरमा दिया की वाजिब की पहचान ये है की इस के करने में सवाब, न करने में गुनाह, जाइज़ की पहचान ये है की उस के न करने में गुनाह न हो। यहाँ आयत में पहली बात फ़रमाई गई है।

*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 1/505*

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 28*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-20, आयत, ①⑥⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और कुछ लोग अल्लाह के सिवा  और माबूद बना लेते हैं कि उन्हें अल्लाह की तरह मेहबूब रखते हैं और ईमान वालों को अल्लाह के बराबर किसी की महब्बत नहीं, और कैसी हो अगर देखें ज़ालिम वह वक्त़ जबकि अज़ाब उनकी आंखों के सामने आएगा इसलिये कि सारा ज़ोर अल्लाह को है और इसलिये कि अल्लाह का अज़ाब बहुत सख़्त है.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-20, आयत, ①⑥⑥*

     जब बेज़ार होंगे पेशवा अपने मानने वालों से (2) और देखेंगे अज़ाब और कट जाएंगी उनसब की डोरें (3)


*तफ़सीर*

     (2) यह क़यामत के दिन का बयान है, जब शिर्क करने वाले और उनके सरदार, जिन्होंने उन्हें कुफ़्र की तरफ़ बुलाया था, एक जगह जमा होंगे और अज़ाब उतरता हुआ देखकर एक दूसरे से बेज़ार हो जाएंगे.

     (3) यानी वो सारे सम्बन्ध जो दुनिया में उनके बीच थे, चाहे वो दोस्तीयाँ हों या रिश्तेदारीयाँ, या आपसी सहयोग के एहद.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बद गुमानी के चन्द इलाज* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*नवां इलाज*

     अपने क़ल्ब को सुथरा रखने की कोशिश कीजिये इस के लिये यादे मौत और फिक्रे आखिरत करना बेहद मुफीद है। आला हज़रत رحمة الله عليه फतावा रजावय्या, 20/231 पर हज़रते सय्यदुना आरिफ बिल्लाह अहमद ज़रूक़ رحمة الله عليه का कौल नक्ल फरमाते हैं: 'खबीस गुमान खबीस दिल से निकलता है।" 


*दस्वां इलाज* 

     जब भी किसी इस्लामी भाई के बारे में दिल में बद गुमानी आए तो उस के लिये दुआए खैर कीजिये और उस की इज्ज़त व इक्राम में इज़ाफा कर दीजिये। हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली رحمة الله عليه इर्शाद फरमाते हैं : "जब तुम्हारे दिल में किसी मुसल्मन के बारे में बद गुमानी आए तो तुम्हें चाहिये उस की रिआयत में इज़ाफा कर दो और उस के लिये दुआए खैर करो, क्यूंकि येह चीज़ शैतान को गुस्सा दिलाती है और उसे तुम से दूर भगाती है। शैतान दोबारा तुम्हारे दिल में बुरा गुमान नहीं डालेगा कि कहीं तुम फिर से अपने भाई की रिआयत और उस के लिये दुआए खैर में मशगूल न हो जाओ।"

*✍️बद गुमानी* 58

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ का तरीक़ा* #103

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*मुसाफिर की नमाज़* #01

     अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है : और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है।


     हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है : खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्त नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।

*✍🏼सहीह मुस्लिम 1/231*

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे ब ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।

*✍🏼सुनन इब्ने माजह 2/59*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम 222*

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अज़ानों इकामत का बयान* #04

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तिलावते कुरआन के दौरान अज़ान शुरू हो जाए तो क्या करे? 

     *जवाब* - जब अज़ान हो तो उतनी देर के लिये सलाम व कलाम और जवाबे सलाम और तमाम काम मौकूफ़ कर दीजिये यहां तक कि तिलावत भी, अज़ान को गौर से सुनिये और जवाब दीजिये। इकामत में भी इसी तरह कीजिये। 


     *सुवाल* - क्या अज़ान हो जाने के बाद भी अज़ान का जवाब दिया जा सकता हैं? 

     *जवाब* - अगर ब वक्ते अज़ान जवाब न दिया और ज़ियादा देर न गुज़री हो तो जवाब दे सकते हैं। 


     *सुवाल* - ब वक्ते अजान बातें करने वाले के लिये क्या वईद है? 

     *जवाब* - जो शख्स अज़ान के वक्त बातों में लगा रहे उस पर معاذ الله ख़ातिमा बुरा होने का खौफ़ हैं। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 52

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*सूरए कहफ़ के फ़ज़ाइल* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते बराअ बिन आज़िबرضي الله تعالي عنه फरमाते है कि एक शख्स सूरए कहफ़ की तिलावत कर रहा था, उन के घर में एक जानवर बंधा हुवा था अचानक वो जानवर बिदकने लगा। उस शख्स ने देखा कि एक बादल ने उस को ढ़ापा हुवा है उस ने हुज़ूरﷺ से इस वाक़ीए का ज़िक्र किया, तो आपﷺ ने फ़रमाया : ऐ फुला ! तिलावत किया करो, की ये सकीना है जो तिलावते क़ुरआन करते वक़्त नाज़िल होता है।

*✍🏽सहीह मुस्लिम 399*


     हज़रते मुआज़ बिन अनस जुहनीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जो सूरए कहफ़ की अव्वल और आखिर से तिलावत करेगा उसके सर ता पा नूर ही नूर होगा, और जो इसकी मुकम्मल तिलावत करेगा, उसके लिये आसमान और ज़मीन के दरमियान नूर होगा।

*✍🏽अहमद बिन हम्बल 5/311*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 37*

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आज का चाँद* 20

*

*माह 3* रबीउल अव्वल

*हिजरी* 1440


*संदल*

ख्वाजा मुहम्मद नबी रज़ा शाह दादामियां (लखनऊ)

मौलाना फजलुर्रहमान (उन्नाव)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Wednesday 28 November 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #322


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम का कुब्ति को घुसा मारना*

     जब आप शहर में दाखिल हुए तो आपने देखा के दो आदमी आपस में दस्त व गिरेबान हैं एक इस्राइली और दूसरा कुब्ति। इस्राईली ने आपको मदद के लिये पुकारा। आप अगे बढे कि कुबती को दस्त दराज़ी से मना करे जब उसने बात न मानी तो आप ने उसे एके मुक्का रसीद कीया, उसे क़त्ल करने का कोई इरादा न था लेकिन वह मुक्का जान लेवा साबित हुआ और उसका किस्सा तमाम हो गया।

     हज़रत क़तादा ने उन दोनों के लड़ने की वजह यह बयान की हैं कि वह कुब्ति इसाईली को लकड़ियों का भारी गट्टा उठाने का हुक्म दे रहा था उसने उठाने से इंकार कर दिया, चुनांचे उस कुब्ति ने हाकिम का फर्द होते हुए उसे ज़द व कोब शुरू की, इतने में आप तशरीफ लायें और इस्राईली ने आपसे फ़रियाद की और आप अलैहिस्सलाम उसकी फरियाद रसी के लिये महज़ इसलिये नहीं गये कि फ़रियाद करने वाला इस्राइली था बल्कि इसकी वजह यह थी कि हर मज़लूम की मदद करना हर दीन में फर्ज हैं। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 273

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #322


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम का कुब्ति को घुसा मारना*

     जब आप शहर में दाखिल हुए तो आपने देखा के दो आदमी आपस में दस्त व गिरेबान हैं एक इस्राइली और दूसरा कुब्ति। इस्राईली ने आपको मदद के लिये पुकारा। आप अगे बढे कि कुबती को दस्त दराज़ी से मना करे जब उसने बात न मानी तो आप ने उसे एके मुक्का रसीद कीया, उसे क़त्ल करने का कोई इरादा न था लेकिन वह मुक्का जान लेवा साबित हुआ और उसका किस्सा तमाम हो गया।

     हज़रत क़तादा ने उन दोनों के लड़ने की वजह यह बयान की हैं कि वह कुब्ति इसाईली को लकड़ियों का भारी गट्टा उठाने का हुक्म दे रहा था उसने उठाने से इंकार कर दिया, चुनांचे उस कुब्ति ने हाकिम का फर्द होते हुए उसे ज़द व कोब शुरू की, इतने में आप तशरीफ लायें और इस्राईली ने आपसे फ़रियाद की और आप अलैहिस्सलाम उसकी फरियाद रसी के लिये महज़ इसलिये नहीं गये कि फ़रियाद करने वाला इस्राइली था बल्कि इसकी वजह यह थी कि हर मज़लूम की मदद करना हर दीन में फर्ज हैं। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 273

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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_आइशा का नेकी की दावत का ज़ज्बा_*

     हज़रते बनानाرضي الله تعالي عنها फरमाती है की वो उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास थी की आप की खिदमत में एक बच्ची लाइ गई जिस के पैर में झाझन (गुंगरू) थे जो आवाज़ कर रहे थे आप बोली की इसे मेरे पास हरगिज़ न लाओ मगर इस सूरत में की इस के झाझन तोड़ दिये जाए, मेने रसूलुल्लाहﷺ को फरमाते सुना की उस घर में फ़रिश्ते नहीं आते जिस में झाझन हो।

*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 226*

     देखा आप ने ! औरतो को ज़ेवरात की आवाज़े छुपाने का भी हुक्म है, इन्हें घर में चलने फिरने में भी इस क़दर ज़ोर से पाउ रखना की ज़ेवर की झंकार की आवाज़ गैर महरमो तक पहुचे मना है।

     अल्लाह फ़रमाता है : और ज़मीन पर पाउ ज़ोर से न रखे की जाना जाए उन का छुपा हुवा सिंगार।

(पारह, 18, सुरतुन्नूर, 31)

     जनाब मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : यानी औरत घर के अंदर चलने फिरने में भी पाउ इस क़दर आहिस्ता रखे की इन के ज़ेवर की झंकार न सुनी जाए।

     मज़ीद फरमाते है : इस लिये चाहिए की औरते बाजेदार झांझन न पहने हदीस में है की अल्लाह उस क़ौम की दुआ नही क़बूल फ़रमाता जिन की औरते झांझन पहनती हो। इस से समझना चाहिए की जब ज़ेवर की आवाज़ अदमे कबूले दुआ की सबब है तो ख़ास औरत की आवाज़ और इस की बे पर्दगी केसी मुजिबे गजबे इलाही होगी, पर्दे की तरफ से बे परवाई तबाही का सबब है।

*✍🏽तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान, 18, सुरतुन्नूर, 31*

     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इरशाद फरमाते है : बजने वाला ज़ेवर औरत के लिये इस हालत में जाइज़ है की ना महरमो मसलन खाला, मामू, चचा, फूफी के बेटो, जेठ, देवर, बहनोई के सामने न आती हो न के ज़ेवर की झंकार न महरम तक पहुचे।

*✍🏽फतावा रज़विय्या, 22/128*

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 24*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-20, आयत, ①⑥④*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

बेशक आसमानों (1) और ज़मीन की पैदायश और रात व दिन का बदलते आना और किश्ती कि दरिया में लोगों के फ़ायदे लेकर चलती है और वह जो अल्लाह ने आसमान से पानी उतार कर मुर्दा ज़मीन को उससे ज़िन्दा कर दिया और ज़मीन में हर क़िस्म के जानवर फैलाए  और हवाओ की गर्दिश (चक्कर)  और वह बादल कि आसमान व ज़मीन के बीच में हुक्म का बांधा है इन सब में अक़लमन्दों के लिये ज़रूर निशानियां हैं.


*तफ़सीर*

     (1) काबए मुअज़्ज़मा के चारों तरफ़ मुश्रिकों के 360 बुत थे, जिन्हें वो मअबूद मानते थे. उन्हें यह सुनकर बड़ी हैरत हुई कि मअबूद सिर्फ़ एक है, उसके सिवा कोई मअबूद नहीं. इसलिये उन्होंने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से ऐसी आयत तलब की जिससे अल्लाह के एक होने पर सही दलील हो. इस पर यह आयत उतरी. और उन्हें बताया गया कि आसमान और उसकी बलन्दी और उसका बिना किसी खम्भे और इलाक़े के क़ायम रहना, और जो कुछ उसमें नज़र आता है, चाँद सूरज सितारे वग़ैरह, ये तमाम और ज़मीन और इसका फैलाव और पानी पर टिका हुआ होना और पहाड़, दरिया, चश्मे, खानें, पेड़ पौधे, हरियाली, फल और रात दिन का आना जाना घटना बढ़ना, किश्तियाँ और उनका भारी बोझ और वज़न के साथ पानी पर चलते रहना और आदमियों का उनपर सवार होकर दरिया के चमत्कार देखना और व्यापार में उनसे माल ढोने का काम लेना और बारिश और इससे ख़ुश्क और मुर्दा हो जाने के बाद ज़मीन का हरा भरा करना और नई ज़िन्दगी अता करना और ज़मीन को क़िस्म क़िस्म के जानवरों से भरदेना, इसी तरह हवाओं का चलना और उनकी विशेषताएं और हवा के चमत्कार और बादल और उसका इतने ज़्यादा पानी के साथ आसमान और ज़मीन के बीच टिका रहना, यह आठ बातें हैं जो क़ुदरत और सर्वशक्तिमान अल्लाह के इल्म और हिकमत और उसके एक होने को साबित करती हैं. ये चीज़ें ऊपर बयान हुई ये सब संभव चीज़े हैं और उनका अस्तित्व बहुत से विभिन्न तरीक़ों से मुमकिन था. मगर वो मख़सूस शान से अस्तित्व में आईं. यह प्रमाण है कि ज़रूर उनके लिये कोई ईजाद करने वाला भी है. सर्वशक्तिमान अल्लाह अपनी इच्छा और इरादे से जैसा चाहता है बनाता है, किसी को दख़ल देने या ऐतिराज की मजाल नहीं. वो मअबूद यक़ीनन एक और यकता है, क्योंकि अगर उसके साथ कोई दूसरा मअबूद भी माना जाए तो उसको भी यह सब काम करने की शक्ति रखने वाला मानना पड़ेगा. असरदार बनाए रखने में दोनों एक इरादा, एक इच्छा रखने वाले होंगे या नहीं होंगे. अगर हों, तो एक ही चीज़ की बनावट में दो असर करने वालों को असर करना लाज़िम आएगा और यह असम्भव है. और अगर यह फ़र्ज़ करो कि तासीर उनमें से एक की है, तो दूसरे की शक्तिहीनता ठहरेगी, जो मअबूद होने के ख़िलाफ़ है. और अगर यह होगा कि एक किसी चीज़ के होने का इरादा करे और दूसरा उसी हाल में उसके न होने का, तो वह चीज़ एक ही हाल में मौजूद या गै़रमौजूद या दोनों न होगी. ज़रूरी है कि या मौजूदगी होगी या ग़ायब, एक ही बात होगी. अगर मौजूद हुई तो ग़ायब का चाहने वाला शक्तिहीन ठहरे और मअबूद न रहे, और अगर ग़ायब हुई तो मौजूद का इरादा करने वाला मजबूर रहा, मअबूद न रहा. लिहाज़ा यह साबित हो गया कि “इलाह” यानी मअबूद एक ही हो सकता.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बद गुमानी के चन्द इलाज* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*आठवां इलाज*

     जब भी किसी से मुतअल्लिक बद गुमानी पैदा हो तो खुद को इस तरह समझाइये कि मुझ पर इस के बातिनी हालात की तफ्तीश वाजिब नहीं है, अगर येह वाकेअतन उसी शय में मुब्तला है जो मेरे दिल में आई तो येह इस का और इस के रब का मुआमला है और अगर येह उस शै से महफूज़ है तो मैं बद गुमानी में मुब्तला रह कर अज़ाबे नार का हकदार क्यूं बनू। हज़रते तल्हा बिन अब्दुल्लाह رحمة الله عليه से मरवी है  कि नबिय्ये मुकर्रम ﷺ ने फरमाया : “बेशक ज़न गलत भी हो सकता है और सहीह भी।" 

     हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद गज़ाली رحمة الله عليه फ़रमाते हैं : “जब तुम्हारे दिल में किसी के बारे में बद गुमानी आए तो तुम्हें चाहिये कि इस की तरफ ध्यान न दो और इस बात पर मज्बूती से काइम हो कि उस शख्स का हाल तुम से पोशीदा है और जो तुम ने उस के बारे में देखा है उस में अच्छी और बुर दोनों बातों का एहतिमाल है।"

     अल्लामा अब्दुल गनी नाबलसी رحمة الله عليه लिखते हैं : जब किसी मुसल्मान का हाल पोशीदा हो (यानी उस के नेक होने का भी एहतिमाल हो और बद होने का भी) तो उस से हुस्ने ज़न रखना मुस्तहब और उस के बारे में बद गुमानी हराम है। और जब मुआमला बहुत पेचीदा हो जाए (यानी न तो हुस्ने ज़न रखा जा सके और न बद गुमानी की शरई इजाज़त की शराहत पाई जाएं) तो मज्नून को उस के हाल पर छोड़ देना वाजिब है खुसूसन उस वक्त कि जब वह जाहिरी तौर पर आदिल (यानी नेक) हो। 

*✍️बद गुमानी* 57

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नमाज़ का तरीक़ा* #102

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​ #03

     अगर कोई इस क़दर उची जगह पर नमाज़ पढ़ रहा है कि गुज़रने वाले के आज़ा नमाज़ी के सामने नही हुए तो गुज़रने वाला गुनाहगार नही।

     दो शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते है इसका तरीक़ा ये है कि इन में से एक नमाज़ी के सामने पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब इसको आड़ बना कर दूसरा गुज़र जाए। फिर दूसरा पहले की पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब पहला गुज़र जाए फिर वो दूसरा जिधर से आया था उसी तरफ हट जाए।

     कोई नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है तो नमाज़ी को इजाज़त है कि वो उसे गुज़रने से रोके ख्वाह "सुब्हानअल्लाह" कहे या ज़हर (यानी बुलन्द आवाज़ से) किरआत करे या हाथ या सर या आँख के इशारे से मना करे। इससे ज़्यादा की इजाज़त नही। मसलन कपड़ा पकड़ कर झटकना या मारना बल्कि अगर अमले कसीर हो गया तो नमाज़ ही जाती रही।

     तस्बीह व इशारा दोनों को बिला ज़रूरत जमा करना मकरूह है।

औरत के सामने से गुज़रे तो औरत तस्फीक़ से मना करे यानी सीधे हाथ की उंगलिया उलटे हाथ की पुश्त पर मारे। अगर मर्द ने तस्फीक़ की और औरत ने तस्बीह कहि तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर खिलाफे सुन्नत हुवा।


     तवाफ़ करने वाले को दौराने तवाफ़ नमाज़ी के आगे से गुज़रना जाइज़ है।

*✍🏼नमाज़ के अहकाम 217*

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अज़ानों इकामत का बयान* #03

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सुवाल* - पांचों नमाजों की अजान व इकामत का जवाब देने पर मर्दो को कितनी नेकियां मिलती हैं? 

     *जवाब* - तीन करोड़ चौबीस लाख (3,24,00,000)


     *सुवाल* - अज़ान देने वाला कैसा हो? 

     *जवाब* - मुस्तहब येह है कि मुअज्जिन मर्द, आकिल, सालेह, परहेज़गार, आलिम बिस्सुन्नह, जी वजाहत, लोगों के अहवाल का निगरां और जो जमाअत से रह जाने वाले हों, उन को ज़ज्र करने वाला हो, अज़ान पर मुदावमत (हमेशगी) करता हो और सवाब के लिये अज़ान कहता हो। 


     *सुवाल* - हुजूर नबिय्ये करीम ﷺ के कितने मुअज्ज़िन थे? 

     *जवाब* - हुजूर नबिय्ये करीम ﷺ के पांच मुअज्जिन थे: 

(1) हज़रते सय्यदुना बिलाल बिन रबाह  

(2) हज़रते सय्यदुना अम्र बिन उम्मे मक्तूम 

(3) हज़रते सय्यदुना साद बिन शाइज 

(4) हज़रते राय्यिदुना अबू गजूरा और 

(5) हज़रते सय्यदुना जियाद बीन हारिस सुदाई। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 51

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*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     शैखुल हदिष मौलाना अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैरहमा ने जन्नती ज़ेवर में सूरए यासीन पढ़ने की बहुत सी बरकतें शुमार की है :

     (1) भूका आदमी इसे पढ़े तो आसुदा किया जाए।

     (2) प्यासा पढ़े तो सैराब किया जाए।

     (3) नंगा पढ़े तो लिबास मिले।

     (4) मर्द बे औरत वाला पढ़े तो जल्द उसकी शादी हो जाए।

     (5) औरत बे शोहर वाली पढ़े तो जल्द शादी हो जाए।

     (6) बीमार पढ़े तो शिफ़ा पाए।

     (7) क़ैदी पढ़े तो रिहा हो जाए।

     (8) मुसाफिर पढ़े तो सफर में अल्लाह की तरफ से मदद हो।

     (9) गमगीन पढ़े तो उसका रंजो गम दूर हो जाए।

     (10) जिस की कोई चीज़ गुम हो गई हो वो पढ़े तो जो खोया है वो मिल जाए।

     (11) सूरए यासीन की एक आयत, आयत 58

سَلٰمٌ قَوْلًامِّنْ رَّبٍّ رَّحِيْمٍ o

को 1469 बार पढ़ो, इन्शा अल्लाह जिस मक़सद से पढोगे मुराद पूरी होगी, ख्वाजा दैरबी लिखते है : ये मुजर्र्ब है।

     और इस आयत को 5 जगह एक कागज़ पर लिख कर तावीज़ बांधो तो हवादिसात और चोर वगैरा से हिफाज़त रहेगी,

     जो शख्स सुबह को सुरए यासीन पढ़ेगा उस का पूरा दिन अच्छा गुज़रेगा और रात में इस को पढ़ेगा उसकी पूरी रात अच्छी गुज़रेगी।

     हदिष शरीफ में है कि यासीन क़ुरआन का दिल है।

*✍🏽जन्नती ज़ेवर 594*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 25*

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Tuesday 27 November 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #321


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम की परवरिश आपकी मां के ज़िम्मे* #02

मूसा अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के हाथों में थे और प्यास की वजह से बेकरार थे। आपको तसल्लियां दे रहा था जभी आपकी वालदा पहुची तो मां की खुश्बू सूंधकर फ़ौरन मां की तरफ लपके और दूध पीना शुरू कर दिया। फिरऔन ने बडे ताज्जुब से पूछा तुम कौन औरत हो? कि इस बच्चे ने तुम्हारा दूध पसंद किया इालांकि कितनी ही दाया हमने तलब की किसी क दूध इसने नहीं पिया। 

     तो आपकी वालदा ने जवाब दिया: कि बेशक में ऐसी औरत हूं कि मुझसे खुश्बू आती है यानी मैं अपने आपको साफ सुथरा रखती हु मेरा लिबास साफ सुथरा होता है अच्छी किस्म की खुश्बू इस्तेमाल करती हूं और कुदरती खुश्बू भी मेरी जिस्म से आती है मेरा दूध भी पाकीजा, खुश ज़ायका और खुश्बूदार है आज तक मैंने जिस बच्चे को दूध पिलाया है उसने ज़रूर मेरा दूध पिया है। 

     फिरऔन ने मूसा अलैहिस्सलाम को आपकी वालदा के सुपुर्द कर दिय और उनका खर्च भी मुक़र्रर कर दिया। रब तआला ने आपके दिल में एक वादा डाला था कि तुम इस बच्चे को फेक दो में तुम्हारे पास इसे वापस लौटा दूंगा। इस वादा को अल्लाह तआला ने पूरा फ़रमाया ताकि आपकी वालदा को यकीन हो जाए कि जब यह वादा पूरा हो गया हैं तो यह बच्चा रसूल भी जरूर बनेगा। अक्सर लोग अल्लाह तआला की कुदरत और उसकी हिकमत से बेख़बर हैं वह यह नहीं जानते कि उनकी कुदरत के मुकाबिल तमम तदबीरें कुछ हैसियत नहीं रखतीं।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 272

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*दुरुदे शफ़ाअत*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स यूँ दुरुदे पाक पढ़े उसके लिये मेरी शफ़ाअत वाजिब हो जाती है।

اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى مُحٙمّٙدٍ وّٙاٙنْزِلْهُ الْمُقْعٙدٙ الْمُقّٙرّٙبٙ عِنْدٙكٙ يٙوْمٙ الْقِيٙامٙةِ

*✍🏽الترغيب والترهيب*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_आइशा का मुखालिफ ओर अम्मार बिन यासिर_*

     एक शख्स हज़रते अम्मार बिन यासिर के पास आ कर हज़रते आइशा सिद्दीक़ा के बारे में ना मुनासिब गुफ्तगू करने लगा, तो आप ने फ़रमाया : ओ, मर्दुद और बद तरीन आदमी! निकल जा, क्या तू महबूबे रसूल की तकलीफ का सबब बनता है ?

*✍🏽तिर्मिज़ी, 873*


     हज़रते अम्मार बिन यासिर का ये तर्ज़े अमल हम सब के लाइके तक़लीद है अगर हमारे सामने कोई शख्स किसी की बुराई करे, चुगली खाए तो उसे फौरन रोक दिया जाए और अगर वो किसी अल्लाह वाले का बद गो हो तो उसे अपने से फौरन दूर कर दिया जाए की हुस्ने अख़लाक़, हुस्ने ऐतिक़ाद और हुस्ने अक़ीदत का यही तक़ाज़ा है।

     अल्लाह पारह 7, सूरतुल अनआम की आयत 68 में इरशाद फ़रमाता है : "और जो कहि तुजे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमो के पास न बैठ।"

     हज़रते अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : इससे मालुम हुवा की बुरी सोहबत से बचना निहायत ज़रूरी है। बुरा यार बुरे साप से बदतर है की बुरा साप जान लेता है और बुरा यार ईमान बर्बाद करता है।

*✍🏽तफ़सीरे नुरुल इरफ़ान*

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 23*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑥②*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

हमेशा रहेंगे उसमें न उनपर से अज़ाब हल्का हो और न उन्हें मोहलत दी जाएं.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑥③*

     और तुम्हारा मअबूद एक मअबूद है (13) उसके सिवा कोई मअबूद नही मगर वही बड़ी रहमत वाला महेरबान.


तफ़सीर :

      (13) काफ़िरों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, आप अपने रब की शान और सिफ़त बयान कीजिये. इसपर यह आयत उतरी और उन्हें बता दिया गया कि मअबूद सिर्फ़ एक है न उसके टुकडे हो सकते हैं, न उसको बाँटा जा सकता है, न उसके लिये मिस्ल न नज़ीर. पूजे जाने और रब होने के मामले में कोई उसका शरीक नहीं, वह यकता है, अपने कामों में. चीज़ों को तनहा उसीने बनाया, वह अपनी ज़ात में अकेला है, कोई उसका जोड़ नहीं. अपनी विशेषताओं और गुणों में वह यगाना है, कोई उस जैसा नहीं. अबूदाऊद और तिरमिज़ी की हदीस शरीफ़ में है कि अल्लाह तआला का इस्में आज़म इन दो आयतों में है. एक यही आयत “व इलाहोकुम” दूसरी “अलिफ़ लाम मीम अल्लाहो लाइलाहा इल्लाहुवा……….”

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बद गुमानी के चन्द इलाज* #08

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*सातवां इलाज*

      अपने काम से काम रखने की आदत बनाइये और दूसरों के मुआमलात की टोह में न रहिये, أن شاء الله बद गुमानी पैदा ही नहीं होने पाएगी। शफीउल मुन्निबीन, अनीसुल गरीबीन, सिरजुस्सालिकीन ﷺ का फरमाने आलीशान हैं कि “लोगों से मुंह फेर लो क्या तुम नहीं जानते कि अगर तुम लोगों में शक के पीछे चलोगे तो उन्हें फसाद में डाल दोगे। 

*✍️अल मोजमुल कबीर* 19/365


*सलामती की राह* 

     हाफिज अबू नुऐम अहमद बिन अब्दुल्लाह अस्फहानी " رحمة الله عليه हिल्यतुल ऑलिया में लिखते हैं : हज़रते सय्यदुना बक्र बिन अब्दुल्लाह رحمة الله عليه जब किसी बूढ़े आदमी को देखते तो फ़रमाते : "येह मुझ से बेहतर है और मुझ से पहले अल्लाह तआला की इबादत करने का शरफ रखता है।" और जब किसी जवान को देखते तो फ़रमाते : "येह मुझ से बेहतर है। क्यूंकि मेरे गुनाह उस से कहीं जियादा हैं। ”और फ़रमाते : ऐ भाइयो! तुम पर ऐसे अम्र का इख्तियार करना लाज़िम है कि जिस में तुम दुरुस्त हो तो अज्रो सवाब के हकदार ठहरो और अगर तुम ख़ता पर हो तो गुनहगार न हो और हर ऐसे काम से बचो कि अगर तुम उस में दुरुस्त हो तो तुम्हें अज्र न मिले और अगर तुम इसमें खता के मुरतकिब हो जाओ तो गुनाहगार पाओ। उनसे पूछा गया: वो क्या है? फ़रमाया लोगो से बद गुमानी रखना क्योंकि अगर तुम्हारा गुमान दुरुस्त साबित हुवा तो भी तुम्हें इस पर अज्रो सवाब नहीं मिलेगा लेकिन अगर गुमान गलत साबित हुवा तो गुनाहगार ठहरोगे।

*✍️बद गुमानी* 55

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ का तरीक़ा* #101

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​ #02

     दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

     आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुड़ कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की तरफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

     एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये यहि पहला शख्स आड भी बन गया।

     नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।


बाक़ी कल की पोस्ट में..ان شاء الله

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अज़ानों इकामत का बयान* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* - क्या प्यारे आका ﷺ से अज़ान देना साबित है? 

     *जवाब* - जी हां! हुज़ूर नबिय्ये करीम ﷺ से सफ़र में अजान देना साबित है जिस में आप ﷺ ने कलिमाते शहादत यूं इरशाद फ़रमाए : اَشْهَدُ اَنِّىْ رَسُوٍلُ اللّٰه.


     *सुवाल* - आंखें दुखने से हिफाज़त का कोई अमल बताएं? 

     *जवाब* - हजरते सच्यिदुना खिज्र رحمة الله عليه फ़रमाते हैं जो शख्स मुअज्ज़िन से अशहदु अन्न मुहम्मदन-रसूलुल्लाह सुन कर مَرْحَبَا بِحَبِيْبِىْ وَقُرَّةِ عَيْنِىْ مُحَمَّدِ بْنِ عَبْدِاللّٰهِ صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَيْهِ وَسَلَّمَ  कहे फिर दोनों अंगूठे चूम कर आंखों पर रखे उस की आंखें कभी न दुखें। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 50

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*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल* #07


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते सफ्वान बिन अम्रرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मशाईखे किराम फरमाते है कि जब आप क़रीबुल मर्ग शख्स के पास सूरए यासीन की तिलावत करेंगे तो उस से मौत की सख्ती को हल्का किया जाएगा।

*✍🏽दुर्रेमन्सूर 39*


     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिस ने शबे जुमुआ (यानी जुमेरात की रात) सूरए यासीन की तिलावत की उस की मग्फिरत कर दी जाएगी।

     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ुरआने हकीम में एक सूरत है जिसे अल्लाह तआला के हा अज़ीम कहा जाता है, उसके पढ़ने वाले को अल्लाह तआला के हा शरीफ कहा जाता है, उस को पढ़ने वाला क़यामत के रोज़ रबिआ और मुज़िर क़बाइल से ज़ाइद अफ़राद की शफ़ाअत करेगा, वो सूरए यासीन है।

*✍🏽दुर्रेमन्सूर 7/40*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 24*

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Monday 26 November 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #320


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम की परवरिश आपकी मां के ज़िम्मे* #01

     अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम की तबीयत में अपनी मां के दूध के बगैर तमाम दूध पिलाने वाली औरतों से नफ़रत पैदा कर दी थी। 

     फ़िरऔन ने बच्चे  की परवरिश के लिये दाया बुलाने का हुक्म दिया। जो भी दाया आती आप उस का दूध न पीते, लेकिन भूख की वजह से बेकरार हो रहे थे। फिरऔन ज़ौजा आसिया की वजह से बच्चे की हालत से फ़िक्रमंद था। बच्चे को गोद में लेकर तसल्लियां दे रहा था और कह रहा था की काश कोई ऐसी दाया मिल जाये जिसका दूध यह बच्चा पीना शुरू करदे। यह मौका को गनीमत् सनझते हुए आपकी बहन ने कहा कि मैं तुम्हें एक घर वालों का पता बताती हु जो इस बच्चे की तर्बियत में कोई कमी वाकेय नहीं होने देंगे जो इसकी परवरिश की ज़मानत देंगे किसी किस्म की ख्यानत के मुरतकिब नहीं होंगे। खुलूस से सब काम करेंगे कोई नक्स लाजिम नही आने देंगे।

     ये सुनफर फ़िरऔन ने कहा अच्छा तुम उस औरत को ले आओ जिसके मुताल्लिक तुम कह रही हो। तो वह अपनी मां के पास आई और उन्हें ले गई। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 272

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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_फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​_* #08

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_करामते आइशा सिद्दीक़ा_*

     हज़रते रुहुल अमिन का हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को सलाम कहना और आप के बिस्तर पर रसूले खुदा पर वही उतरना इन दो रिवायत को शैखुल हदिष मुफ़्ती अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैरहमा ने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की करामत में शुमार किया है और इस के इलावा आप की एक तीसरी करामत भि बयां फ़रमाई है।


*_आइशा की रहनुमाई से बारिश_*

     एक मर्तबा मदीने में बारिश नही हुई और लोग शदीद कहत मर मुब्तला हो कर बिलबिला उठे। जब लोग कहत की शिकायत ले कर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की खिदमत में पहुचे तो आप ने फ़रमाया की मेरे हुजरे में जहा हुज़ूरे अन्वरﷺ की क़ब्र है, उस हुजरए मुबारक की छत में एक सुराख कर दो ताकि हुजरए मुनव्वरह से आसमान नज़र आने लगे।

     चुनांचे जेसे ही लोगो ने छत में एक सुराख़ बनाया फौरन ही बारिश शुरू हो गई और अतराफे मदीना की ज़मीन सर सब्ज़ो शादाब हो गई और उस साल घास और जानवरो का चारा भी इस क़दर ज़्यादा हुवा की कसरते खुराक से ऊंट फर्बा हो गए और चर्बी की ज़्यादती से उन के बदन फूल गए।

*✍🏽सुनन अल-दारिमि, 58*

     हज़रत मुफ़्ती अहमद या खान नईमी अलैरहमा इस हदिष के तहत फरमाते है : मालुम हुवा की आसमानी आफत की शिकायत अल्लाह के मक़बूल बन्दों से कर सकते है। मजीद फरमाते है : सहाबा हुज़ूरﷺ की हयात शरीफ में हुज़ूरﷺ के तवस्सुल से दुआए मांगते थे। बादे वफ़ात आइशा ने हुज़ूरﷺ की क़ब्र बल्कि इसकी खाक की बरकत से दुआ कराइ, ये भी दर हक़ीक़त हुज़ूरﷺ ही के वसीले से दुआ है।

     ये तरीक़ा बहुत मुबारक है, इस हदिष से चन्द मसअले मालुम हुए : एक ये की वफ़ात याफ्ता बुज़ुर्गो के वसीले से दुआए करना जाइज़ है। दूसरे ये की उन के तबर्रुकात के वसीले से दुआए करना जाइज़ बल्कि सुन्नते सहाबा है। तीसरा ये की बुज़ुर्गो की क़ब्रे बी इज़्ने इलाही दाफ़ेउल बला और मुश्किल कुशा है।

*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 8/272*

*✍🏽फैज़ाबे आइशा सिद्दीक़ा, 19*

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बद गुमानी के चन्द इलाज* #07

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*गुमानों से बचो* 

     इमाम अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه ने फरमाया : एक मरतबा इमामे जाफरे सादिक رضي الله عنه तन्हा एक गुदड़ी पहने मदीनए तय्यिबा से काबए मुअज्ज़मा को तशरीफ लिये जाते थे और हाथ में सिर्फ एक तामलोट (टीन का बतरन) था। हज़रते शफीक बल्खी رحمة الله عليه ने देखा (तो) दिल में खयाल किया कि यह फकीर औरों पर अपना बार डालना चाहता है। येह वस्वसए शैतानी आना था कि इमाम जाफर رضي الله عنه ने फरमाय : "शफीक! बचो गुमानों से बाज गुमान गुनाह होते हैं" नाम बताने और वस्वसए दिली पर आगाही से निहायत अकीदत हो गई और इमाम के साथ हो लिये। रास्ते में एक टीले पर पहोंच कर इमाम ने उस से थोडा रेत ले कर तामलोट में घोल कर पिया और शफीक बल्खी رحمة الله عليه से भी पीने को फ़रमाया। उन्हें इन्कार का चारा न हुवा। जब पिया तो ऐसे नफीस लज़ीज़ खुश्बूदार सत्तू थे कि उम्र भर में भी न देखे न सुने। 

*✍️मल्फूज़ाते आला हज़रत* 

*✍️बद गुमान* 54

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*बद गुमानी के चन्द इलाज* #07


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*गुमानों से बचो* 

     इमाम अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه ने फरमाया : एक मरतबा इमामे जाफरे सादिक رضي الله عنه तन्हा एक गुदड़ी पहने मदीनए तय्यिबा से काबए मुअज्ज़मा को तशरीफ लिये जाते थे और हाथ में सिर्फ एक तामलोट (टीन का बतरन) था। हज़रते शफीक बल्खी رحمة الله عليه ने देखा (तो) दिल में खयाल किया कि यह फकीर औरों पर अपना बार डालना चाहता है। येह वस्वसए शैतानी आना था कि इमाम जाफर رضي الله عنه ने फरमाय : "शफीक! बचो गुमानों से बाज गुमान गुनाह होते हैं" नाम बताने और वस्वसए दिली पर आगाही से निहायत अकीदत हो गई और इमाम के साथ हो लिये। रास्ते में एक टीले पर पहोंच कर इमाम ने उस से थोडा रेत ले कर तामलोट में घोल कर पिया और शफीक बल्खी رحمة الله عليه से भी पीने को फ़रमाया। उन्हें इन्कार का चारा न हुवा। जब पिया तो ऐसे नफीस लज़ीज़ खुश्बूदार सत्तू थे कि उम्र भर में भी न देखे न सुने। 

*✍️मल्फूज़ाते आला हज़रत* 

*✍️बद गुमान* 54

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नमाज़ का तरीक़ा* #100

*

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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम* #01

     मैदान और बड़ी मस्जिद में नमाज़ी के क़दम से मौज़ए सुजूद तक गुज़रना ना जाइज़ है। *मौज़ए सुजूद* से मुराद ये है कि क़याम की हालत में सज्दे की जगह नज़र जमाए तो जितनी दूर तक निगाह फेले वो मौज़ए सुजूद है। उस के दरमियान से गुज़रना जाइज़ नहीं।

_मौज़ए सुजूद का फ़ासिला अंदाज़न क़दम से ले कर 3 गज़ तक है_

लिहाज़ा मैदान में नमाज़ी के क़दम के 3 गज़ के बाद से गुज़रने में हरज नही।

     मकान और छोटी मस्जिद में नमाज़ी के आगे अगर सुतरा (आड़) न हो तो क़दम से दीवारे किबला तक कही से गुज़रना जाइज़ नही।

नमाज़ी के आगे कोई आड़ हो तो उस आड़ के बाद से गुज़रने में कोई हरज नही।

     आड़ कम अज़ कम एक हाथ (तकरीबन आधा गज़) उचा और ऊँगली बराबर मोटा होना चाहिये।

     इमाम की आड़ मुक्तदि के लिये भी आड़ है। यानी इमाम के आगे आड़ हो तो अगर कोई मुक्तदि के आगे से गुज़र जाए तो गुनाहगार न होगा।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम 215*

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अज़ानों इकामत का बयान* #01

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - अज़ान की इब्तिदा कब हुई और इस्लाम के सब से पहले मुअज्जिन का नाम बताइये?

    *जवाब* - अज़ान की इब्तिदा हिजरत के पहले साल हुई और इस्लाम के सब से पहले मुअज़ज़्ज़िन हज़रते सय्यदुना बिलाले हबशी رضي الله عنه हैं। 


     *सुवाल* - दीने इस्लाम में अज़ान को क्या अहम्मिय्यत हासिल है? 

     *जवाब* - अज़ान की अहम्मिय्यत का अन्दाज़ा इस बात से लगाइये कि पांचों फर्ज नमाजें ब शुमूल जुमुआ मुबारक जब जमाअते मुस्तहब्बा के साथ मस्जिद में वक्त पर अदा की जाएं तो इन के लिये अज़ान सुन्नते मुअक्कदा है और इस का हुक्म मिस्ले वाजिब है कि अगर अज़ान न कहीं तो वहां के सब लोग गुनहगार होंगे। "फ़तावा खानिया" में है : अजान शआइरे इस्लान में से है हत्ता कि अगर किसी शहर, बस्ती या महल्ले के लोग अज़ान कहना छोड़ दें तो हाकिम उन्हें इस पर मजबूर करेगा और अगर वोह फिर भी न मानें तो उन से लड़ाई करेगा।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 49

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*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अबू जाफर मुहम्मद बिन अलीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है फरमाते है : जो शख्स अपने दिल में सख्ती पाए तो ववेक प्याले में ज़ाफ़रान से

يٰسٓ وَالْقُرْاٰنِ الْحَكِيْمِ

लिखे फिर उसे पी जाए। (इन्शा अल्लाह उसका दिल नर्म होगा)

*✍🏼दुर्रेमन्सूर 7/39*


     अमीरुल मुअमिनिन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसने हर जुमुआ को अपने वालिदैन दोनों या एक की क़ब्र की ज़ियारत की और उनके पास यासीन की तिलावत की तो अल्लाह हर हर्फ़ के बदले उस की बख्शीश व मग्फिरत फरमा देता है।

*✍🏽दुर्रेमन्सूर 7/40*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 24*

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Sunday 25 November 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #319

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*मूसा عليه السلام की वालदा की बेक़रारी* 

     आपकी बालदा को जब यह खबर मिली कि बच्चा फ़िरऔन के हाथ आ गया तो आपको बहुत ज्यादा खौफ नाहक़ हुआ कि वह कहीं कत्ल न कर दे। दूसरा मायने है खाली होना। यानी आपका दिल और तमाम गमो से  फ़ारिग हो गया सिर्फ मूसा अलैहिस्सलाम का गम दामनगीर हुआ। इस मायने के लिहाज़ से एक मतलब यह भी है कि आपको जब यह खबर मिली कि फ़िरऔन के हाथ बच्चे का ताबूत आ गया है तो आपका दिल अक्ल से खाली हो गया, होश उड़ गये। 

     लेकिन अल्लाह तआला ने आपके दिल में फिर यह इलका किया कि फ़िरऔन की बीवी ने मूसा عليه السلام को अपना बेटा बना लिया है तो आपके दिल को तसल्ली हुई अगर अल्लाह तअला आपके दिल को ठारस न बंधाता तो हो सकता है कि आप दरिया में फेंकते वक्त वावैला शुरू कर देतीं। हाए मेरा बच्चा! हाए मेरा बच्चा! की पुकार से लोग ख़बरदार हो जाते। या आपको जब यह खबर मिली कि फ़िरऔन की ज़ौजा आसिया बच्चे पर मेहरबान हो गई उस वक्त आप खुशी ज़ाहिर कर देतीं कि मेंरे बच्चे को अल्लाह तआला ने बचा लिया है। लेकिन अल्लाह तआला ने आपको ज़ाहिर करने से रोके रखा।

     मुसा अलैहिस्सलाम की बहन का नाम मरयम था। ज्यादा मश्हूर यही नाम है अगरचे कुलसुम और कुलसुमा भी बयान किया गया है। आपकी वालदा ने मरयम को कहा कि जाओ देखो ताबूत कीधर गया। क्या वाक़ई फ़िरऔन के हाथ आ गया है? उन्होंने बच्चे से क्या सलूक किया? मरयम दूर दूर से देखती रही, ताकि उन्हें पता न चल सके। 

     *तंबीह* : हज़रत मुसा अलैहिस्सलाम की वालदा का नाम मरयम था और मरयम के बाप का नाम इमरान था। मुसा अलैहिस्सलाम की सगी बहन का नाम भी मरयम है और आप चाप का नाम भी इमरान है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 271

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*_​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​_* #07


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_*​​ #02

     (6)... अम्मुल मुअमिनीन बिन्ते अमीरूल मुअमिनीन हजरते र्सीय्य-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها ने अपने सरताज से अर्ज की : या रसुलल्लाहﷺ ! अल्लाह से मेरे लिये दूआ फरमाईये । आपﷺ ने बारगाहे खूदा मैं यूं इिल्तजा की : ऐ अल्लाह ! आइशा के अगले पिछले जाहिरी बतिनी गुनाह मूआफ फरमा दे। येह सुन कर हजरेत साय्यि -दूतुना आइशा हस कदर मुस्कुराई कि आप का सर अपनी गाेद में चला गया । हूजूरﷺ ने इर्शाद फरमाया : क्या तुम मेरी दूआ पर खूश होती हो ? अर्ज की : में आप की दूआ पर कंयू न खूश होउं ? तो २सुले करीमﷺ ने फ़रमाया :अल्लाह की क्सम ! बेशक हर नमाज़ में येह दूआ मेरी उम्मत के लिये है।

*✍सही इब्ने जहान सः1901,हादिसः4111*

     (7)... आइश़ाرضي الله تعالي عنها की फजीलत तमाम औरतों पर ऐसी है जैसे सरीद की सब खानों पर ।

*✍तीरमीज़ी स: 842,हदिसः 3886*

     शारेहे मिश्कात, हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा फरमाते है : हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها सूरत, सीरत, इल्म, अमल, फ़साहत, फ्तानत, ज़कावत, अक़्ल, हुज़ूरﷺ की महबूबिय्यत वगैरा हज़ारहा सिफ़ात की जामेअ है. हक़ ये है कि आप सारी औरतो हत्ता की खदीजतुल कुब्रा से भी अफज़ल है, आप बहुत अहादीस की जामेअ, उलुमे क़ुरआनीया की माहिर बीबी है.

     मजीद फरमाते है : आपرضي الله تعالي عنها के फ़ज़ाइल रैत के ज़र्रो, आसमान के तारो की तरह बे शुमार है, आप रब तआला का तोहफा है जो हुज़ूरﷺ को अता हुई. आप की इस्मत व इफ़्क़त की गवाही खुद रब तआला ने क़ुरआने मजीद में सूरए नूर में दी, हाला की जनाबे मरयम और युसूफ की इस्मत की गवाही बच्चे से दिलवाई गई.

     उम्मत को तयम्मुम की आसानी आपرضي الله تعالي عنها के सदके से मिली, हुज़ूरﷺ का विसाल आप के सीने पर हुवा. हुज़ूरﷺ की आखरी आराम गाह आप का हुजरा है, आप का लुआब हुज़ूरﷺ के लुआब के साथ विसाल के वक़्त जमा हुवा, आप के बिस्तर में वही आती थी, आप खुद सिद्दीक़ा है और सिद्दीक़ की बेटी है.

*✍🏽फैजाने आइशा सिद्दीक़ा, 18*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑤⑨*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

बेशक वो हमारी उतारी हुई रौशन बातों और हिदायत को छुपाते हैं(10) बाद इसके कि लोगों के लिये हम उसे किताब में वाज़ेह (स्पष्ट) फ़रमा चुके उनपर अल्लाह की लअनत है और लअनत करने वालों की लअनत (11).


*तफ़सीर*

     (10) यह आयत यहूदियों के उन उलमा के बारे में उतरी जो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नात शरीफ़ और आयते रज्म और तौरात के दूसरे आदेश छुपाया करते थे. यहाँ से मालूम हुआ कि दीन की जानकारी को ज़ाहिर करना फ़र्ज़ है.

     (11) लानत करने वालों से फ़रिश्ते और ईमान वाले लोग मुराद हैं. एक क़ौल यह है कि अल्लाह के सारे बन्दे मुराद हैं.

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बद गुमानी के चन्द इलाज* #06

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*अच्छी सूरत पर महमूल करो* 

     जलीलुल कद्र ताबेई हज़रते सय्यदुना सईद बिन मुसय्यब رضي الله عنه फरमाते हैं : “अस्हाबे रसूल में से मेरे बाज भाइयों ने मुझे लिख कर भेजा कि अपने मुसल्मान भाई के फेल को अच्छी सूरत पर महमूल करो जब तक उस के खिलाफ कोई दलील गालिब न हो जाए और किसी मुसल्मान भाई की जुबान से निकलने वाले कलिमे को उस वक्त तक बुरा गुमान न करो जब तक कि तुम उसे किसी अच्छी सूरत पर महमूल कर सकते हो और जो खुद अपने आप को तोहमत के लिये पेश करे उसे अपने सिवा किसी को मलामत नहीं करनी चाहिये। 

*✍️शुउबुल ईमान* 6/323

     हज़रते उमर बिन खत्ताब رضي الله عنه का फरमान है : “अपने भाई की जुबान से निकलने वाले कलिमात के बारे में बद गुमानी मत करो जब तक कि तुम उसे भलाई पर महमूल कर सकते हो. 

*✍️अददुर्रूल मन्सूर*

     इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत अश्शाह मौलाना अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه फतावा रजविय्या शरीफ में लिखते हैं : “मुसल्मान का हाल हत्तल इम्कान सलाह (यानी अच्छाई) पर हम्ल करना (यानी गुमान करना) वाजिब।

*✍️फतावा रजविय्या* 19/691 

     हज़रत नईमुद्दीन मुरादाबादी رحمة الله عليه लिखते हैं : “मोमिने सालेह के साथ बुरा गुगान ममनु है इस तरह (कि) उस का कोई कलाम सुन कर फासीद माना मुराद लेना बा वुजूद येह कि उस के दूसरे सहीह माना मौजूद हों और मुसल्मान का हल उन के मुवाफिक हो येह भी गुमाने बद में दाखिल है। 

*✍️खज़ाइनुल इरफान* 


*मुसल्मान से हुस्ने जुन रखना मुस्तहब है* 

     अल्लामा अब्दुल गनी नाबल्सी رحمة الله عليه लिखते हैं : जब किसी मुसल्मान का हाल पोशीदा हो (यानी उस के नेक होने का भी एहतिमाल हो और बद होने का भी) तो उस से हुस्ने ज़न रखना मुस्तहब और उस के बारे में बद गुमानी हराम है।

*✍️अल हुदी*

*✍️बद गुमानी* 50

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नमाज़ का तरीक़ा* #99

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*

     सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया : अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।

*✍🏼सुनन इब्ने मजह 1/506*

     हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

     नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।

*✍🏼फतवा रज़विय्या 7/254*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम 214*

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तयम्मुम का बयान* #03

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तयम्मुम किस चीज़ से करना जाइज़ है? 

     *जवाब* - जो चीज़ आग से जल कर न राख होती है न पिघलती है न नर्म होती हैं वोह जमीन की जिन्स (यानी किस्म) से है इस से तयम्मुम जाइज़ है।


     *सुवाल* - तयम्मुम किन चीजों से टूट जाता है? 

     *जवाब* - जिन चीजों से बुजू टूट जाता है या गुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है उग से तयम्मुम भी टूट जाता है और पानी पर कादिर होने से भी तयम्मुम टूट जाता है।


     *सुवाल* - बुजू और गुस्ल के तयम्मुम में क्या फर्क है? 

     *जवाब* - बुजू और गुस्ल दोनों के तयम्मुम का एक ही तरीका है. 


     *सुवाल* - क्या ज़म ज़म शरीफ के इलावा दूसरा पानी न होने की सूरत में तयम्मुम क्यिा ज सकता है? 

     *जवाब* - अगर इतना आबे ज़म ज़म शरीफ़ पास है जो वुजू के लिये काफ़ी है । तो तयम्मुम जाइज़ नहीं। 


     *सुवाल* - क्या नमक से तयम्मुम जाइज़ है? 

     *जवाब* - जो नमक पानी से बनता है उस से तयम्मुम जाइज़ नहीं और जो कान से निकलता है जैसे सीधा नमक उस से जाइज़ है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 49

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*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अबू क़लाबाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, जिसने सूरए यासीन की तिलावत की उस की मग्फिरत हो जाएगी, और जिस ने खाने के वक़्त उसके कम होने की हालत में तिलावत की तो वो उसे किफायत करेगा, और जिसने किसी मरने वाले के पास इसकी तिलावत की अल्लाह उस पर मौत के वक़्त नरमी फ़रमाएगा, और जिसने किसी औरत के पास उसके बच्चे की विलादत की तंगी पर सूरए यासीन की तिलावत की उस पर आसानी होगी, और जिसने इसकी तिलावत की गोया की उसने 11 मर्तबा क़ुरआने पाक की तिलावत की, और हर चीज़ के लिये दिल है, और क़ुरआन का दिल सूरए यासीन है।

*✍🏽दुर्रेमन्सूर 39*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 23*

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Saturday 24 November 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #318


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा عليه السلام की पैदाइश*#07

     यानी फ़िरऔन और उसके वज़ीर हामान और उनके दूसरे सरकर्दा लोगों को अगर यह मालूम होता कि यह वही बच्चा है जिसको बड़े होकर हमारी बादशाही को तबाह करना है तो वह इस बच्चे को न उठाते और अगर उठा भी लिया था तो क़त्ल जरूर करते लेकिन कुदरते बारी का मुकाबला मुनकिन नही।  

     हजरत इब्ने अब्बास रदीयल्लाहु अन्हमा ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने उन्हें महबूब बनाया और मखलू का महबूब कर दिया और जिसको अल्लाह तआला अपनी महबूबियत से नवाज़ता है लोग के दिलों में उसकी मुहब्बत पैदा हो जाती है। 

     हज़रत कतादा रजियल्लहु अन्हु का कौल है कि मूसा अलैहिस्सला की आंखों में ऐसी मलाहत, खूबसूरती और नूरानियत रखी गई थी कि जो भी आपको देखता वही आपसे मुहबत करने लगता। जब अल्लाह तआला ने आपको अपना महबूब बना लिया तो कोई वजह न थी कि आसमान व जमीन वाले आपसे मुहब्बत न करते।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 270

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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_* #01

     (1)... एक रोज़ रसुले खुदाﷺ ने हज़रते सय्यि-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها से फ़रमायाः ऐ आइशा ! येह जिब्रईल हैं ,तुम्हें सलाम कहते हैं।

*✍फज़ल आईशा, 842,हदीस :388*


     (2)... हज़रते सय्यिदुना जिब्रईल सब्ज रेशमी कपड़े में हज़रते सय्यि-दतुना आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها की तस्वीर ले कर बारगाहे रिसालतﷺ में हाजिर हुए आरै अर्ज की : "येह दुन्या व आखिरत मे आप की ज़ौजा हैं।"

*✍एज़न, हदिस 389*


     (3)... हजरते सय्यिदूना अम्र बिन आसرضي الله تعالي عنه फरमाते हैःमैं ने बारगाहे रिसालत मे अर्ज कीः या रसुलल्लाहﷺ ! आप के नज़्दीक सब से प्यारा इन्सान कौन है ? फ़रमाया : आइश़ा ! मैं ने फिर पुच्छा : और मर्दों में से ? फ़रमाया : उन के वालिद (या'नी हजरते अबु बक्र सिद्दीक़ )!


     (4)... नबिय्ये अकरमﷺ ने अपनी लाडली शहज़ादी हज़रते सय्यि-दतुना फत़िमाرضي الله تعالي عنها को मुखात़ब कर के इर्शाद फरमायाः रब्बे का'बा की क़सम ! तूम्हारे वालिद केा आइशा बहूत ज़ियादा महबूब हैं।

*✍कीताबूल अलारीब, 468,हादीस3898*


     (5)... हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिकرضي الله تعالي عنه बयान करते है कि सरकारे मदीनाﷺ के पड़ासे में रहने वाला एक ईरानी जो शोरबा बहूत अच्छा बनाता था, एक दिन तसा ने रसुले खूदा के लिये बनाया और आप केा दा'वत देने हा़जिर हुवा तो आपﷺ ने इस्तिफ़्सात फ़रमायाः और क्या आइशा भी، अंर्ज की : नहीं । इस पर आपﷺ ने उस की दा'वत क़बूल करने से इन्कार कर दिया, उस ने दोबारा दांवत दी आपﷺ ने फिर दरयाफत फरमाया: आरै क्या अइशा भी ? उस ने इंनकार किया तो आपﷺ ने भी इन्कार फरमा दिया । उस ने तीसरी दफ़आ दा'वत दी आपﷺ ने फिर पुछाः क्या अइशा भी? उस ने अर्ज़ कीः जी हां। (इन की भी दा' वत है) तब आप दोनों एक दूसरे को थामते हूए अठे और उस के घर तशरीफ़ ले गएं।

*✍साहि मुसलीम, 808,हादिस:2034*

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 17*

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गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑤⑦*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ये लोग हैं जिनपर उनके रब की दुरूदें हैं और रहमत, और यही लोग राह पर हैं.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑤⑧*

     बेशक सफ़ा और मर्वा (पहाड़ियां) (7)   अल्लाह के निशानों से हैं (8) तो जो उस घर का हज या उमरा करे उस पर कुछ गुनाह नहीं कि इन दोनों के फेरे करे (9) और जो कोई भली बात अपनी तरफ़ से करे तो अल्लाह नेकी का सिला (इनाम) देने वाला ख़बरदार है.


*तफ़सीर*

     (7) सफ़ा और मर्वा मक्कए मुकर्रमा के दो पहाड़ हैं, जो काबे के सामने पूर्व की और स्थित हैं. मर्वा उत्तर की तरफ़ झुका हुआ और सफ़ा दक्षिण की तरफ़ जबले अबू क़ुबैस के दामन में है. हज़रत हाजिरा और हज़रत इस्माईल ने इन दोनों पहाड़ों के क़रीब उस मक़ाम पर जहाँ ज़मज़म का कुआँ है, अल्लाह के हुक्म से सुकूनत इख़्तियार की. उस वक़्त यह जगह पथरीली वीरान थी, न यहाँ हरियाली थी न पानी, न खाने पीने का कोई साधन. अल्लाह की खुशी के लिये इन अल्लाह के प्यारे बन्दों ने सब्र किया. हज़रत इस्माईल बहुत छोटे से थे, प्यास से जब उनकी हालत नाजुक हो गई तो हज़रत हाजिरा बेचैन होकर सफ़ा पहाड़ी पर तशरीफ़ ले गई. वहाँ भी पानी न पाया तो उतर कर नीचे के मैदान में दौड़ती हुई मर्वा तक पहुंचीं. इस तरह सात बार दोनों पहाड़ियों के बीच दौड़ीं और अल्लाह तआला ने “इन्नल्लाहा मअस साबिरीन” (अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है) का जलवा इस तरह ज़ाहिर फ़रमाया कि ग़ैब से एक चश्मा ज़मज़म नमूदार किया और उनके सब्र और महब्बत की बरकत से उनके अनुकरण में इन दोनों पहाड़ियों के बीच दौड़ने वालों को अपना प्यारा किया और इन दोनों जगहों को दुआ क़ुबूल होने की जगहें बनाया.

     (8) “शआइरिल्लाह” से दीन की निशानियाँ मुराद हैं, चाहे वो मकानात हों जैसे काबा, अरफ़ात, मुज़्दलिफ़ा, शैतान को कंकरी मारने की तीनों जगहें, सफ़ा, मर्वा, मिना मस्जिदें, या ज़माने जैसे रम़जान, ज़िलक़ाद, ज़िलहज्ज और मुहर्रम के महीने, ईदुल फ़ित्र, ईदुल अज़हा, जुमा, अय्यामे तशरीक़ यानी दस, ग्यारह, बारह, तेरह ज़िल हज्जा, या दूसरे चिन्ह जैसे अज़ान, अक़ामत, बा-जमाअत नमाज़, जुमे की नमाज़, ईद की नमाज़ें, ख़तना, ये सब दीन की निशानियाँ हैं.

     (9) इस्लाम से पहले के दिनों में सफ़ा और मर्वा पर दो मूर्तियाँ रखी थीं. सफ़ा पर जो मूर्ति थी उसका नाम असाफ़ था और जो मर्वा पर थी उसकानाम नायला था. काफ़िर जब सफ़ा और मर्वा के बीच सई करते या दौड़ते तो उन मूर्तियों पर अदब से हाथ फेरते. इस्लाम के एहद में बुत तो तोड़ दिये गए थे लेकिन चूंकि काफ़िर यहाँ शिर्क के काम करते थे इसलिये मुसलमानों को सफ़ा और मर्वा के बीच सई करना भारी लगा कि इसमें काफ़िरों के शिर्क के कामों के साथ कुछ मुशाबिहत है. इस आयत में उनका इत्मीनान फ़रमा दिया गया कि चूंकि तुम्हारी नियत ख़ालिस अल्लाह की इबादत की है, तुम्हें मुशाबिहत का डर नहीं करना चाहिये और जिस तरह काबे के अन्दर जाहिलियत के दौर में काफ़िरों ने मूर्तियाँ रखी थीं, अब इस्लाम के एहद में वो मूर्तियाँ उठा दी गई याँ काबे का तवाफ़ दुरूस्त रहा और वह दीन की निशानियों में से रहा, उसी तरह काफ़िरों की बुत परस्ती से सफ़ा और मर्वा के दीन की निशानी होने में कोई फ़र्क़ नहीं आया. सई (यानी सफ़ा और मर्वा के बीच दौड़ना) वाजिब है, हदीस से साबित है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमेशा इसे किया है. इसे छोड़ देने से दम यानी क़ुर्बानी वाजिब हो जाती है. सफ़ा और मर्वा के बीच दौड़ना हज और उमरा दोनों में ज़रूरी है. फ़र्क़ यह है कि हज के अन्दर अरफ़ात में जाना और वहाँ से काबे के तवाफ़ के लिये आना शर्त है. और उमरे के लिये अरफ़ात में जाना शर्त नहीं. उमरा करने वाला अगर मक्का के बाहर से आए, उसका सीधे मक्कए मुकर्रमा में आकर तवाफ़ करना चाहिये और अगर मक्के का रहने वाला हो, तो उसको चाहिये कि हरम से बाहर जाए, वहाँ से काबे के तवाफ़ के लिये एहराम बाँधकर आए. हज व उमरा में एक फ़र्क़ यह भी है कि हज साल में एक ही बार हो सकता है, क्योंकि अरफ़ात में अरफ़े के दिन यानी ज़िलहज्जा की नौ तारीख़ को जाना, जो हज में शर्त है, साल में एक बार ही सम्भव हो सकता है. उमरा हर दिन हो सकता है, इसके लिये कोई वक़्त निर्धारित नहीं है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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बद गुमानी के चन्द इलाज* #05

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*बद गुमानी पर न जमे रहो*

     हज़रते सय्यदुना हारिसा बिन नोमान से मरखी है कि हुज़ूर ने फरमाया : मेरी उम्मत में तीन चीजें लाजिमन रहेंगी : बद फाली, हुसद और बद गुमानी। 'एक सहाबी ने अर्ज की : “या रसूलल्लाह ! जिस शख्स में येह तीन खस्लतें हों वोह इन का किस तरह तदारुक करे?" इर्शाद फरमाया : “जब तुम हसद करो तो अल्लाह तआला से इस्तिगफार करो और जब तुम कोई बद गुमानी करो तो उस पर जमे न रहो और जब तुम बद फाली निकालो तो उस काम को कर लो।

*✍🏼अल मोजमुल कबीर* 3/228


     हुज्जतुल इस्लाम इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली رحمة الله عليه (अल मुतवफ़ा सिने 505 हिजरी) फ़रमाते हैं : "बद गुमानी के हराम होने की वजह येह है कि दिल के भेदों को सिर्फ अल्लाह तआला जानता है। लिहाज़ा तुम्हारे लिये किसी के बारे में बुरा गुमान रखना उस वक्त तक जाइज़ नहीं है जब तक तुम उस की बुराई इस तरह जाहिर न देखो कि उस में तावील की गुन्जाइश न रहे। पस उस वक्त तुम्हें ला मुहाला उसी चीज़ का यकीन रखना पड़ेगा जिसे तुम ने जाना और देखा है। और अगर तुम ने उस की बुराई को न अपनी आंखों से देखा और न ही कानों से सुना मगर फिर भी तुम्हारे दिल में उस के बारे में बुरा गुमान पैदा हो तो समझ जाओ कि येह बात तुम्हारे दिल में शैतान ने डाली है। उस वक्त तुम्हें चाहिये कि दिल में आने वाले इस गुमान को झुटला दो क्यूंकि येह सब से बड़ा फिस्क है। मजीद लिखते हैं, यहां तक कि अगर किसी शख्स के मुंह से शराब की बू आ रही हो तो उस को शरई हद लगाना जाइज नहीं क्यूंकि हो सकता है कि उस ने शराब का घूट भरते ही कुल्ली कर दी हो या किसी ने उसे जबर दस्ती शराब पिला दी हो, जब येह सब एहतिमाल मौजूद हैं तो (सुबूते शरई के बिगैर) महज कल्बी खयालात कि बिना पर तस्दीक कर देना और उस मुसल्मान के बारे में बद गुमानी करना जाइज़ नहीं हैं। ' 

*✍️एहयाउल उलूमिहीन* 3/186

*✍️बद गुमानी* 49

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नमाज़ का तरीक़ा* #98

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*सज्दए शुक्र का बयान*

     औलाद पैदा हुई या माल पाया या गुम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।

*✍🏼आलमगिरी 1/136*

     इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।

*✍🏼नमाज़ के अहकाम 214*

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तयम्मुम का बयान* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - आयते तयम्मुम को किस की बरकत कहा गया? 

     *जवाब* - हजरते सय्यदुना सिद्दीके अक्बर رضي الله عنه की आल की। 


     *सुवाल* - तयम्मुम के कितने और कौन कौन से फराइज हैं? 

     *जवाब* - तयम्मुम में तीन फ़राइज़ हैं : (1) निय्यत (2) सारे मुंह पर हाथ फेरना (3) दोनों हाथ का कोहनियों समेत मस्ह करना।


     *सुवाल* - तयन्मुम की कितनी और कौन कौन सी सुन्नतें हैं? 

     *जवाब* - तयम्मुम की दस सुन्नतें हैं : (1) बिस्मिल्लाह शरीफ़ कहना (2) हाथों को ज़मीन पर मारना (3) ज़मीन पर हाथ मार कर लौट देना (यानी आगे बढ़ाना और पीछे लाना) (4) उंगलियां खुली हुई  रखना (5) हाथों को झाड़ लेना (6) पहले मुंह फिर हाथों का मस्ह करना (7) दोनों का मस्ह पैं दर पै होना (8) पहले सीधे फिर उलटे हाथ का मस्ह करना (9) दाढ़ी का खिलाल करना (10) उंगलियों का खिलाल करना जब कि गुबार पहुंच गया हो। 


     *सुवाल* - किस सूरत में उंगलियों का ख़िलाल करना फर्ज है? 

     *जवाब* - अगर (उंगलियों में) गुबार न हो तो खिलाल फर्ज है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 48

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*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه फरमाते है : जो शख्स ब वक़्ते सुब्ह सूरए यासीन की तिलावत करे उस दिन की आसानी उसे शाम तक अता की गई, और जिस ने रात की इब्तिदा में इस की तिलावत की उसे सुब्ह तक उस रात की आसानी दी गई।

     हज़रते माकिल बिन यसारرضي الله تعالي عنه से रिवायत ही कि बेशक हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : सूरए यासीन क़ुरआन का दिल है, जो शख्स इस सूरए मुबारक की अल्लाह और आख़िरत के लिये तिलावत करेगा, उसके पहले के गुनाह बख्श दिये जाएंगे, तो तुम इसकी तिलावत अपने मरने वालो के पास करो।

     हज़रते अबू दरदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिस मरने वाले के पास सूरए यासीन तिलावत की जाती है, अल्लाह उस पर (उसकी रूह क़ब्ज़ करने में) नरमी फ़रमाता है।

*✍🏽दुर्रेमन्सूर 38*

*✍🏽मदनी पंजसुरह 23*

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Friday 23 November 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #317

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा عليه السلام की पैदाइश*#06

     फिरऔन की ज़ौजा बहुत नेक औरत थी, अंबियाए किराम की नस्ल से थी, ग़रीबों और मिस्कीनों पर रहम करती थी, उसने फ़िरऔन को कहा कि यह बच्चा पता नहीं किस सर जमीन से आया है। तुम्हारे लिये खतरा तो इसी मुल्क का बच्चा होगा यह बच्चा कितना प्यारा और खूबसूरत है यह तो बच्चा बनाने के काबिल है। इसे कत्ल नहीं करना है हमारा कोई बच्चा नहीं है इसलिये इम इसे अपना बच्चा बना लेंगे। 

     आसिया की यह बात फ़िरऔन और उसकी कौम के सर कर्दा लोगों ने तस्लीम कर ली। रब तआल ने मूसा अलैहिस्सलाम को कत्ल होने से बचा लिया रब तअला ने इरशाद फ़रमायाः तो उसे उठा लिया फ़िरऔन के घर वालों ने कि वह उनका दुश्मन और उन पर गम हो, बैशके फिरऔन और उनले लश्कर खताकार थे और फ़िरऔन की ज़ौजा ने कहा यह बच्चा मेरी और तेरी आंख की ठंडक है। इसे क़त्ल न करो, शायद यह हमे नफा दे या हम इसे बेटा बना लें और वह बेखबर थे। 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 270

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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*_आइशा की शाने इबादत व सख़ावत_*

     इबादत में भी अइशाرضي الله تعالي عنها का मार्तबा बहूत ही बुलन्द है ,आइशा के भतीजे हज़रते इमाम क़सिम बिन मुहम्मद बिन अबू बक्र सिद्दीकرضي الله تعالي عنه का बयान है कि हज़रते आइशा रोज़ाना बिला नाग़ा नमाजे तहज्जूद पढ़ने की पाबन्द थी और अक्सर रोज़ादार भी रहा करती थीI

     सखावता और स-दकातो खैरात के मूआ-मले में भी तमाम उम्महातुल मुअमिनीन में खास तोर पर बहूत मुमताज़ थी।

     उम्मे दर्राرضي الله تعالي عنها कहती है कि मैं हजरते आईशा के पास थी उस वक्त़ एक लाख दिरहम कही से आप के पास आए,आप ने उसी वक़्त उन सब दिरहमो को लोगो में तक्सीम कर दिया और एक भी घर में बाक़ी नहीं छोडा । उस दिन वोह रोज़ादार थी। मैं ने अर्ज़ किया कि आप ने सब दिरहामों को बांट दिया और एक दिरहम भी बाक़ी नही रखा ताकि आप गोश्त खरीद कर रोज़ा इफ्ताऱ करर्ती, तैा आप ने फ़रमाया कि तुम ने अगर मुझ से पहले कहा होता तो में एक दिरहम का गोश्त मंगा लेती।

     आपرضي الله تعالي عنها के फ़जाइलो मनाकिबा में बहूत सी हदीसे आई है।

     17 र-मजानुल मुबारक शबे सेह शम्बा (मंगल की रात) 57 या 58 हि. ,में मदीनए मुनव्वरह के अन्दर आपرضي الله تعالي عنها की वफात़ हूई । हजरते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप की वसिय्यत के मुताबिक रात में लोगों ने आप को ज़न्नतुल बकीअ के क़ब्रिस्तान में दूसरी आज्वाजे मात्हहरात की क़ब्रो के पहलू में दफ़न दिया।

*✍सीरते मुस्तफ़ा, 660-662*

*✍️फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* 16

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-19, आयत, ①⑤⑥*


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कि जब उनपर कोई मुसीबत पड़े तो कहे हम अल्लाह के माल में है और हमको उसी की तरफ़ फिरना(6).


*तफ़सीर*

     (6) हदीस शरीफ़ में है कि मुसीबत के वक़्त “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन” पढ़ना अल्लाह की रहमत लाता है. यह भी हदीस में है कि मूमिन की तकलीफ़ को अल्लाह गुनाह मिटाने का ज़रिया बना देता है.

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