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नमाज़ के अहकाम

🌹उष्माने गनी का इश्के रसूल 🌹

🍂हज़रते सय्यिदुना उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه ने एक बार पानी मंगवाया और वुज़ु किया फिर मुस्कुराये और रुफका से फरमाने लगे :

✨जानते हो में क्यू मुस्कुराया ? फिर खुद ही जवाब देते हुए फ़रमाया : मेने देखा के सरकार ﷺ  ने वुज़ु फ़रमाया था और बादे फरागत मुस्कुराये थे और सहबाए किराम से फ़रमाया था : जानते हो में क्यू मुस्कुराया ? फिर आप ﷺ ने खुद ही फ़रमाया :

🌴जब आदमी वुज़ु करता है तो चेहरा धोने से चेहरे के और हाथ धोने से हाथ के और सर का मसह करने से सर के और पाउ धोने से पाउ के गुनाह ज़ड जाते है।

💐मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने ? सहबाए किराम सरकार की हर हर अदा और हर सुन्नत को दीवाना वार अपनाते थे।

🔹नीज़ इस रिवायत से गुनाह धोने का नुस्खा भी मालुम हो गया। अल्हम्दुलिल्लाह
🔹वुज़ु में कुल्ली करने से मुह के,
🔹नाक में पानी डाल कर साफ़ करने से नाक के,
🔹चेहरा धोने से पलकों समेत सरे चेहरे के,
🔹हाथ धोने से हाथ के साथ साथ नाखुनो के निचे के,
🔹सर और कान का मसह करने से सर और कानो के
🔹और पाउ धोने से पाउ के साथ साथ पाउ के नाखुनो के निचे के गुनाह भी ज़ड जाते है।

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✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 2-3

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🍂गुनाह जड़ने की हिकायत🍂

☝🏼अल्हम्दु लिल्लाह वुज़ु करने से गुनाह जड़ते है,

🌟एक मर्तबा सय्यिदुना इमामे आ'ज़म अबू हनीफा رضي الله تعالي عنه जामेअ मस्जिद कूफ़ा के वुज़ुखाने में तशरीफ़ ले गए तो एक नौजवान को वुज़ु बनाते हुए देखा, उस से वुज़ु के कतरे टपक रहे थे।

📢आप ने इर्शाद फरमाया : ऐ बेटे ! माँ बाप की न फ़रमानी से तौबा करले,
🔻उसने फ़ौरन अर्ज़ की : मेने तौबा की।

📢एक और शख्स के वुजू के कतरे टपकते देख आप ने उस शख्स से इर्शाद फरमाया : ऐ मेरे भाई ! तू ज़िना से तौबा करले।
🔻उसने अर्ज़ की : मेने तौबा की।

📢एक और शख्स के वुज़ू के ख़तरात टपकते देखे तो उसे फ़रमाया : शराब नोशी और गाने बजे सुनने से तौबा करले।
🔻उसने अर्ज़ की : मेने तौबा की।

✨इमामे आ'ज़म अबू हनीफा رضي الله تعالي عنه पर कश्फ़ के बाइस चूके लोगो के उयुब ज़ाहिर हो जाते थे लिहाज़ा आप ने बारगाहे खुदावन्दि में इस कश्फ़ के खत्म हो जाने की दुआ मांगी,

☝🏼अल्लाह عزوجل ने दुआ क़ुबूल फार्म ली जिस से आप को वुज़ू करने वालो के गुनाह जड़ते नज़र आना बंद हो गए।
📕अल-मिज़ानुल-कुब्रिया, 1/13

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✒हवाला
📚मोमिन की नमाज़, सफा 4

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🚫वुज़ू का षवाब नहीं मिलेगा🚫

💫आ'माल का दारो मदार निय्यत पर है, अगर किसी अ'मल में अच्छी निय्यत न हो तो उसका षवाब नहीं मिलता। यही हाल वुज़ू का भी है,

💫वुज़ू पर षवाब पाने की लिये हुक्मे इलाही बजा लेन की निय्यत से वुज़ू करना ज़रूरी है वरना वुज़ू हो जाएगा षवाब न पाएगा।
📕बहारे शरीअत, 1/292

🌟आ'ला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है : वुज़ू में निय्यत न करने की आदत से गुनाहगार होगा, इसमें निय्यत सुन्नते मुअक्कदा है।
📙फतावा राज़वीय्या, 4/616

✅सारा बदन पाक हो गया✅

💫दो हदिशो का खुलासा है : जिसने बिस्मिल्लाह कह कर वुज़ू किया उसका सर से पाउ तक सारा जिस्म पाक हो गया
और जिसने बिगैर बिस्मिल्लाह कहे वुज़ु किया उसका उतनाही बदन पाक होगा जितने पर पानी गुज़रा।

🌴हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया :
जब तुम वुज़ु करो तो "बीसमील्लाही वल-हमदुलिल्लाह" कह लिया करो के जब तक तुम्हारा वुज़ु रहेगा उस वक्त तक तुम्हारे फ़रिश्ते (किरामन् कातिबिंन) तुम्हारे लिए नेकिया लिखते रहेंगे।

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✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 5

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🌹बा वुज़ु सोने की फ़ज़ीलत🌹

🌴हदिषे पाक में है : बा वुज़ु सोने वाला रोज़ा रख कर इबादत करने वाले की तरह है।

🌹बा वुज़ु मरने वाला शहीद है🌹

🌴मदीने के ताजदार  ने हज़रत अनस से फ़रमाया :
💫बेटा ! अगर तुम हमेशा बा वुज़ु रहने की इस्तिताअत रखते हो तो ऐसा ही करो, क्यू की मलकुल मौत जिस बन्दे की रूह हालते वुज़ु में कब्ज़ करता है उसे के लिए शहादत लिख दी जाती है।
📗शोएबुल ईमान, 3/29, हदिष 2783.

🌟मेरे आक़ा आ'ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खा अलैरहमा फरमाते है : हमेशा बा वुज़ू रहना मुस्तहब है।

🔻मुसीबतो से हिफाज़त का नुस्खा🔻

☝🏽अल्लाह ने हज़रते मूसा कलीमुल्लाह से फ़रमाया :
ऐ मूसा ! अगर बे वुज़ु होने की सूरत में कोई मुसीबत पहोंचे तो खुद अपने आप को मलामत करना।
📘शोएबुल ईमान, 3/29.

💫हमेशा वुज़ु रहना इस्लाम की सुन्नत है।
📕फताव रज़विय्या मुखर्रज, 1/702

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✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 6.

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🌟हर वक़्त बा वुज़ु रहने के 7 फ़ज़ाइल🌟

🌙अहमद राजा खान फरमाते है :
बाज़ आरिफिन ने फ़रमाया :
जो हमेशा बा वुज़ु रहे अल्लाह उसे को 7 फ़ज़ीलत से मुशर्रफ फरमाएगा

✅① मलाइका उसकी सोहबत में रगबत करे

✅② कलम उस की निकिया लिखता रहे

✅③ उस के आज़ा तस्बीह करे

✅④ उस से तकबिरे उला फौत न हो

✅⑤ जब सोये अल्लाह कुछ फ़रिश्ते भेज के जिन्नों ईन्स के शर से उसकी हिफाज़त करे

✅⑥ सकराते मौत उस पर आसान हो

✅⑦ जब तक वुज़ु हो अमाने इलाही में रहे
📕फतावा रज़विय्या मुखर्रज, जी. 1, स. 702

🔁जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 6-7

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🌹🌹दुगना षवाब🌹🌹

✨यकीनन सर्दी, थकान या नज़ला, ज़ुकाम, दर्दे सर और बिमारी में वुज़ु करना दुष्वार होता है।
✨मगर फिर भी कोई ऐसे वक़्त वुज़ु करे जब के वुज़ु करना दुष्वार हो तो उसको बी हुक्मे हदिष दुगना षवाब मिलेगा।

🌹सर्दी में वुज़ु करने की हिकायत🌹

🌟हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه ने अपने गुलाम हुमरान् से वुज़ु के लिए पानी मांगा और सरदी की रात में बहार जाना चाहते थे।
🔹हुमरान् कहते है : में पानी लाया, उन्होंने मुह हाथ धोये तो मेने कहा अल्लाह पाक आप को किफायत करे रात तो बहुत ठंडी है।
✨इस पर आप ने फ़रमाया
🌴मेने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना है की "जो बंदा वुजुए कामिल करता है अल्लाह उसके अगले पिछले गुनाह बख्श देता है"
📕बहारे शरीअत, जी. 1, स. 285

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 7

📶जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...
👏तालिबे दुआ
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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~01

✅काबतुल्लाह शरीफ की तरफ मुह करके उची जगह बैठना मुस्तहब है।

✅वुज़ू के लिये निय्यत करना सुन्नत है, निय्यत न हो तब भी वुज़ू हो जाएगा मगर षवाब न मिलेगा।

✅निय्यत दिल के इरादे को कहते है। दिल में निय्यत होते हुए ज़बान से भी कहलेना अफ़्ज़ल है
लिहाज़ा ज़बान से इस तरह निय्यत कीजिये की

✅में हुक्मे इलाही बजा लेन और पाकी हासिल करने के लिये वुज़ू कर रहा हु।

✅बिस्मिल्लाह कह लीजिये की ये भी सुन्नत है।
✔बल्कि बिस्मिल्लाहि-वलहम्दु-लिल्लाह" कह लीजिये की जब तक बा वुज़ू रहेंगे फ़रिश्ते नेकियां लिखते रहेंगे।

✅अब दोनों हाथ 3-3 बार पहोचो तक धोइये,
✅दोनों हाथो की उंगलियो का ख़िलाल भी कीजये।
✅कम अज़ कम 3 बार मिस्वाक कीजिये और हर बार मिस्वाक को धो लीजिये।

✨हज़रत मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा फरमाते है :
✅मिस्वाक करते वक़्त नमाज़ में क़ुरआने मजीद की किरआत और ज़िकृल्लाह के लिये मुह पाक करने की निय्यत करनी चाहिये।

हवाला
नमाज़ के अहकाम, सफा 8

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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~02

✅अब सीधे हाथ के 3 चुल्लू पानी से इस तरह 3 कुल्लिया कीजिये की हर बार मुह के हर पुर्ज़े पर (हल्क के कनारे तक) पानी बह जाए,

✅अगर रोज़ा न हो तो गर-गरा भी कर लीजिये।

✅फिर सीधे ही हाथ के 3 चुल्लू से 3 बार नाक में नर्म गोश्त तक पानी चढ़ाइये

✅और अगर रोज़ा न हो तो नाक की जड़ तक पानी पहोचाइये,

✅अब उल्टे हाथ से नाक साफ़ कर लीजिये और छोटी ऊँगली नाक के सुरखो में डालिये।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 8

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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~03

✅अब 3 बार सारा चेहरा इस तरह धोइये

✅के जहा से आदतन सर के बाल उगना शुरुअ होते है वहा से ले कर ठोड़ी के निचे तक

✅और एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक हर जगह पानी बाह जाए।

✅अगर दाढ़ी है तो इस तरह ख़िलाल कीजिये

✅के उंगलियो को गले की तरफ से दाखिल करके सामने की तरफ निकालिये।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम सफा 9

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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~04

✅फिर पहले सीधा हाथ उंगलियो के सिरे से धोना शुरू करके कहोनियो समेत 3 बार धोइये।

✅इसी तरह उल्टा हाथ भी धो लीजिये।

✅दोनों हाथ आधे बाज़ू तक धोना मुस्तहब है।

❎अब चुल्लू भर कर कोहली तक पानी बहाने की हाजत नहीं,

❎बल्कि बगैर इजाज़ते सहीहा ऐसा करना ये पानी का इसराफ है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 9

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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~05

✅अब नल बंद करके सर का मसह इस तरह कीजिये की

✅दोनों अंगूठो और कलिमे की उंगलियो को छोड़ कर दोनों हाथ की 3-3 उंगलियो के सिरे एक दूसरे से मिला लीजिये

✅और पेशानी के बाल या खाल पर रख कर खीचते हुए गुद्दी तक इस तरह ले जाइये की हथेलिया सर से जुदा रहे,

✅फिर गुद्दी से हथेलिया खीचते हुए पेशानी तक ले आइये,

❎कलिमे की उंगलिया और अंगूठे इस दौरान सर पर बिलकुल मस् नहीं होने चाहिए,

✅फिर कलिमे की उंगलियो से कानो की अंदरूनी सतह का मसह कीजिये

✅और छुगलिया कानो के सूराखो में दाखिल कीजिये

✅और उंगलियो की पुश्त से गर्दन के पिछले हिस्से का मसह कीजिये।

❎बाज़ लोग गले का और धुले हुए हाथो का मसह करते है ये सुन्नत नहीं है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 10

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💐वुज़ू का तरीका💐

⤵Post~06

✅अब पहले सीधा फिर उल्टा पाउ हर बार उंगलियो से शुरू करके तखनो के ऊपर तक

✅बल्कि मुस्तहब है की आधी पिंडली तक 3 3 बार धो लीजिये।

✅दोनों पाउ की उंगलियो का ख़िलाल करना सुन्नत है।

✅इसका मुस्तहब तरीका ये है की उलटे हाथ की छोटी ऊँगली से सीधे पाउ की छोटी ऊँगली का ख़िलाल शुरू कर के अंगूठे पर खत्म कीजिये

✅और उलटे ही हाथ की ऊँगली से उलटे पाउ के अंगूठे से शुरू करके छोटी ऊँगली पर खत्म कर लीजिये।

🌾हज़रते इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा फरमाते है :
🍂हर उज़्व के गुनाह निकल रहे है !
📕अहयाउल उलूम 1/183

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 10

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🎆जन्नत के आठो दरवाज़े खुल जाते है🎆

☝🏽हदीषे पाक में है
✔जिसने अच्छी तरह वुज़ु किया और फिर आस्मान की तरफ निगाह उठाई और कलीमऐ शहादत पढ़ा उसके लिए जन्नत के आठो दरवाजे खोल दिए जाते है जिस से चाहे अंदर दाखिल हो।

🌹नज़र कमज़ोर न होगी🌹

✔जो वुज़ु के बाद अस्मान् की तरफ देख कर सूरए इन्ना-अन्ज़लना पढ़ लीया करे उसकी नज़र कभी कमज़ोर न होगी।
📗मसाइलुल कुरआन, स. 291

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 11

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🚰वुज़ु के बाद 3 बार सूरए क़द्र पढ़ने के फ़ज़ाइल🚰

🌾हदिषे मुबारक में है
🍂जो वुज़ु के बाद एक मर्तबा सूरतुल कद्र पढ़े तो वो सिद्दीकीन में से है
🍂जो दो मर्तबा पढ़े तो शु-हदा में शुमार किया जाए
🍂जो तिन मर्तबा पढ़ेगा तो अल्लाह  मैदाने महशर में उसे अपने अम्बिया के साथ रखेगा।

🚰वुज़ु के बाद पढ़ने की दुआ🚰

   (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ)
✏तर्जुमा : तू पाक है और तेरे लीये ही तमाम खुबिया है में गवाही देता हु के तेरे सिवा कोई माअबूद नहीं, मैं तुज से बख्शीश चाहता हु और तेरी बारगाह में तौबा करता हु।

🔴जो वुज़ु करने के बाद ये दुआ पढ़े तो उस पर मोहर लगा कर अर्श के निचे रख दिया जाएगा और कियामत के दिन उस पढ़ने वाले को दे दिया जाएगा।
📗शोएबुल ईमान, जी. 3, स. 21

🚰वुज़ु के बाद ये दुआ भी पढ़ लीजिये🚰
✏तर्जुमा : ऐ अल्लाह मुझे कसरत से तौबा करने वालो में बना दे और मुझे पाकीज़ा रहने वालो में शामिल कर दे।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 12

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🚰वुज़ू के चार फराइज़🚰

✔चेहरा धोना
✔कहोनियो समेत दोनों हाथ धोना
✔चौथाई सर का मसह करना
✔तखनो समेत दोनों पाउ धोना
📕बहारे शरीअत, 1/288
📕आ'लमगिरि, 1/3-5

🚿धोनी की तारीफ़🚿

🚿किसी उज़्व धोने के ये माना है की उस उज़्व के हर हिस्से पर कम अज़ कम दो कतरे पानी बाह जाए।
🔸सिर्फ भीग जाने या पानी को तेल की तरह चुपड़ लेने या एक कतरा बह जाने को धोना नहीं कहेंगे, न इस तरह वुज़ू या गुस्ल अदा होगा
📕फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 1/218
📕बहारे शरीअत, 1/288

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 13

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🚫वुज़ू के मकरुहात🚫

🔻वुज़ू के लिए नापक जगह बेठना
🔻नापाक जगह वुज़ू का पानी गिराना
🔻आ'जाए वुज़ू से लौटे वग़ैरा में कतरे टपकना। (मुह धोते वक़्त भरे हुए चुल्लू में उमुमन चेहरे से पानी के कतरे गिरते है इसका ख्याल रखिये)
🔻किब्ले की तरफ थूक या बलगम डालना या कुल्ली करना।
🔻बे ज़रूरत दुन्या की बीते करना।
🔻ज्यादा पानी खर्च करना।
🔻इतना कम पानी खर्च करना की सुन्नत अदा न हो।
🔻मुह पर पानी मारना।
🔻मुह पर पानी डालते वक़्त फुकना।
🔻एक हाथ से मुह धोना, के रिफ़ाज़ व हुनुद का शीआर है।
🔻गले का मसह करना।
🔻उल्टर हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी चढ़ाना।
🔻सीधे हाथ से नाक साफ करना।
🔻तिन जदीद पानियों से तिन बार सर का मसह करना।
🔻धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना।
🔻होठ या आँखे ज़ोर से बंद करना और अगर कुछ सुखा रह गया तो वुज़ू ही न होगा।

🔻वुज़ु का हर सुन्नत का तर्क मकरूह है इसी तरह हर मकरूह का तर्क सुन्नत।
📕बहारे शरीअत, 1/300-301

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 16-17

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🚰वुज़ू में मेहदी और सुरमे का मसअला🚰

👩🏼औरत के हाथ पाउ पर मेहदी का जिर्म लगा रह गया और खबर न हुई तो वुज़ू व गुस्ल हो जाएगा। हा जब इत्तिलाअ हो छुड़ा कर वहा पानी बहा दे।

👨🏽सुरमा आँख के कोने या पलक में रह गया और इत्तिलाअ न हुई ज़ाहिरन हरज नहीं और बादे नमाज़ कोने में महसूस हुवा तो नमाज़ हो गई।
📙फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 4/613

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 23

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🙏🏽तालिबे दुआ
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😢दुखती आँख के आंसू😢

⭕आँख की बिमारी के सबब जो आंसू बहा वो नापाक है और वुज़ू भी तोड़ देगा
📕बहारे शरीअत, 1/310

🚫अफ़सोस ! अक्सर लोग इस मसअले से ना वाकिफ़ होते है और दुखती आँख से ब वजहे मरज़ बहने वाले आंसू को और आंसुओ की मानिंद समज़ कर आस्तीन या कुर्ते के दामन वग़ैरा से पोछ कर कपड़े नापाक कर डालते है।

🚫नाबीना की आँख से जो रतूबत ब वजहे मरज़ निकलती है वो नापाक है और इससे वुज़ू भी टूट जाता है।
📕बहारे शरीअत, 1/306
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✅पाक और नापाक रतूबत❎

✅जो रतुबत इंसानी बदनसे निकले और वुज़ू न तोड़े वो नापाक नहीं।
✅मस्लन खून या पिप बह कर न निकले या थोड़ी "कै" जो के मुह भर न हो पाक है।
📕बहारे शरीअत, 1/309

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 24

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❓क्या सत्र देखने से वुज़ु टूट जाता है ❓

🌾अवाम में मश्हूर है की घुटना या सत्र खुलने या अपना या पराया सत्र देखने से वुज़ु टूट जाता है, ये बिलकुल गलत है।

🌾हा वुज़ु के बाद के आदाब में से है की नाफ से लेकर दोनों घुटनो समेत सब सत्र छुपा हो बल्कि इस्तिन्जा के बाद फौरन ही छुपा लेना चाहिये,

🌾बगैर ज़रूरत सत्र खुला रखना मना और दुसरो के सामने सत्र खोलना हराम है।
📗बहारे शरीअत, जी-1, स. 309
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🚿गुस्ल का वुज़ु काफी है🚿

🍁गुस्ल के लिये जो वुज़ु किया था वोही काफी है, ख्वाह बरहना नहाए।

🍂अब गुस्ल के बाद दोबारा वुज़ु करना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर वुज़ु न भी किया हो तो गुस्ल कर लेने से आ'जाए वुज़ु पर भी पानी बह जाता है, लेहाज़ा वुज़ु भी हो गया।
🍂कपडे तब्दील करने से भी वुज़ु नहीं जाता।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 26

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🔴थूक में खून🔴

⭕मुह से खून निकलना अगर थूक ग़ालिब है तो वुज़ु टूट जाएगा वरना नहीं, गलबे की शनाख्त ये है की अगर थूक का रंग सुर्ख हो जाए तो खून ग़ालिब समजा जाएगा और वुज़ु टूट जाएगा, ये सुर्ख थूक नापाक भी है।

⭕अगर थूक ज़र्द (यानि पिला) हो तो खून पर थूक ग़ालिब माना जाएगा लेहाज़ा न वुज़ु टूटेगा न ये ज़र्द थूक नापाक है।
📗बहारे शरीअत, जी-1, स. 305

⭕मुह से इतना खून निकला के थूक सुर्ख हो गया और लौटे या ग्लास से मुह लगा कर कुल्ली के लिये पानी लिया तो लोटा, ग्लास और कुल पानी नजिस हो गया,

⭕लेहाज़ा ऐसे मोके पर चुल्लू में पानी ले कर एहतियात से कुल्ली कीजिये और ये भी एहतियात फरमाइये की छीटे उड़ कर आप के कपड़ो वगैरा पर न पड़े।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 27

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🔴वुज़ु में शक आने के 5 अहकाम🔴

🔻अगर दौराने वुज़ु किसी उज़्व के धोने में शक वाक़ेअ हो और अगर ये ज़िन्दगी का पहला वाक़ेअ है तो उसको धो लीजिये।
▪और अगर अक्सर शक पड़ा करता है तो इसकी तरफ तवज्जोह न दीजिये।
▪इसी तरह अगर बादे वुज़ु भी शक पड़े तो इसका कुछ ख़याल मत कीजिये।
📗बहारे शरीअत, जी-1, स. 310

🔻आप बा वुज़ु थे अब शक आने लगा के पता नहीं वुज़ु है या नहीं, ऐसी सूरत में आप बा वुज़ु है, क्यू की सिर्फ शक से वुज़ु नहीं टूटता।
📗बहारे शरीअत, जी-1, स. 311

🔻वस्वसे की सूरत में एहतियातन वुज़ु करना एहतियात नहीं इत्तिबाए शैतान है।
📗बहारे शरीअत, जी-1, स. 311

🔻यक़ीनन आप उस वक़्त तक बा वुज़ु है जब तक वुज़ु टूटने का ऐसा यकीन न हो जाए के कसम खा सके।

🔻कोई उज़्व धोने से रह गया है मगर ये याद नहीं के कौन सा उज़्व था तो बाया (उल्टा) पाउ धो लीजिये।
📗दुर्रे मुख्तार, जी-1, स. 13

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 27

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⭕सोने से वुज़ु टूटने न टूटने का बयान⭕

♻Post~01

✔नींद से वुज़ू टूटने की दो शर्ते है

✨दोनों सुरीन अच्छि तरह जमे हुए न हो

✨ऐसी हालत पर सोया जो ग़ाफ़िल हो कर सोने के रुकावट न हो।

✅जब ये दोनों शर्ते जमा हो यानि सुरीन भी अच्छी तरह जमे हुए न हो नीज़ ऐसी हालत में सोया हो जो ग़ाफ़िल हो कर सोने में रुकावट न हो तो ऐसी नींद से वुज़ू टूट जाता है।

❎अगर एक शर्त लाइ जाए और दूसरी न पाई जाए तो वुज़ू नहीं टूटेगा।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 27-28

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🌙7 रबी अल-आखर 1437🌙
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⭕सोने से वुज़ू टूटने न टूटने का बयान⭕

♻Post~02

✔सोने के वो 10 अंदाज़ जिन से वुज़ू नहीं टूटता

⭕इस तरह बैठना की दोनों सुरीन ज़मीन पर हो और दोनों पाऊ एक तरफ फैलाए हो (कुर्सी, रेल और बीएस की सिट पर बैठने का भी यही हुक्म है)
⭕इस तरह बैठना के दोनों सुरीन ज़मीन पर हो और पिंडलियों को दोनों हाथो के हल्के में ले ले ख़्वाह हाथ ज़मीन वगैरा पर या सर घुटनो पर रख ले।
⭕चार जानू यानि पालती (चिकड़ी) मार कर बैठे ख़्वाह ज़मीन या तख्त या चारपाई वग़ैरा पर हो।
⭕दो जानू सीधा बैठा हो।
⭕घोड़े या खच्चर वगैरा पर जिन रख कर सुवार हो।
⭕नंगी पीठ पर सुवार हो मगर जानवर चढ़ाई पर चढ़ रहा हो या रास्ता हमवार हो।
⭕तकये से टेक लगा कर इस तरह बैठा हो की सुरीन जमे हुए हो अगर्चे तकया हटाने से ये गिर पड़े।
खड़ा हो।
⭕रुकूअ की हालत में हो।
⭕सुन्नत के मुताबिक जिस तरह मर्द सज्दा करता है उस तरह सज्दा करके पेट रानो और बाज़ू पहलूओ से जुदा हो।

👆🏾ये सूरते नमाज़ में वाक़ेअ हो या इलावा नमाज़, वुज़ू नहीं टूटेगा और नमाज़ भी फासिद् न होगी अगर्चे कसदन सोए, अलबत्ता जो रुक्न बिलकुल सोते हुए अदा किया उस का इआदा (दोबारा अदा करना) ज़रूरी है और जागते हुए शुरुअ किया फिर नींद आ गई तो जो हिस्सा जागते अदा किया वो अदा हो गया बाकि अदा करना होगा।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 28

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            🌙8 रबी अल-आखर 1437🌙
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🚫सोने के वो 10 अंदाज़ जिनसे वुज़ू टूट जाता है🚫

🚫उकड़ू यानि पाऊ के तलवो के बल इस तरह बैठा हो के दोनों घुटने खड़े रहे।
🚫चित यानी पीठ के बल लेटा हो।
🚫पट यानि पेट के बल लेटा हो।
दाई या बाई करवट लेटा हो।
एक कोहनी पर टेक लगा कर सो जाए।
🚫बैठ कर इस तरह सोया के एक करवट झुक हो जिस की वजह से एक या दोनों सुरीन उठे हुए हो।
🚫नंगी पीठ पर सुवार हो और जानवर पस्ती (यानि नीचान) की जानिब उतर रहा हो।
🚫पेट रानो पर रख कर दो जानू इस तरह बेठे सोये की दोनों सुरीन जमे न रहे।
🚫चार जानू यानि चोकड़ी मार कर इस तरह बेठे की सर रानो या पिंडलियों पर रखा हो।
🚫जिस तरह औरत सज्दा करती है इस तरह सज्दे के अंदाज़ पर सोया के पेट रनों और बाज़ू पहलुओ से मिले हुए हो या कलाइयां बिछी हुई हो।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 29

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            🌙9 रबी अल-आखर 1437🌙
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🌟वुज़ूए अम्बियाए किराम और नींद मुबारक🌟

✔अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का वुज़ू सोने से नहीं जाता।

✔अम्बिया की आँखे सोती है दिल कभी नहीं सोता।

✔बाज़ वुज़ू तोड़ने वाली चीज़े अम्बिया के लिये यू वुज़ू टूटने का सबब नहीं, की इन का वुक़ूअ (यानि वाक़ेअ होना) ही उन से मुहाल (यानि ना मुम्किन) है जेसे जुनून (यानि पागल पन) या नमाज़ में कहकहा।

✔गशी (यानि बेहोशी) भी अम्बिया के जिस्मे ज़ाहिरे पर तारी हो सकती है, दिल मुबारक इस हालत में भी बेदार व खबरदार रहता बी
फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा 4/740

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 29-30

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            🌙10 रबी अल-आखर 1437🌙
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📝आयत लिखे हुए कागज़ के पिछले हिस्से के छूने का अहम मसअला

📒किताब या अखबार में जिस जगह आयत लिखी है खास उस जगह को बिला वुज़ू हाथ लगाना जाइज़ नहीं

👉🏾उसी तरफ हाथ लगाया जिस तरफ आयत लिखी है ख़्वाह उसकी पुश्त पर (यानि लिखी हुई आयत के ऐन पीछे) दोनों न जाइज़ है

👉🏾आयत या उसके ऐन पिछले हिस्से के इलावा बाकी वरक के छूने में हरज नहीं

✔पढ़ना बे वुज़ू जाइज़ है
👉🏾नहाने की हाजत हो तो पढ़ना भी हराम है।

✒हवाला
📙फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 4/366
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 37

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            🌙11 रबी अल-आखर 1437🌙
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🚫बे वुज़ू क़ुरआने मजीद को कही से भी नहीं छू सकते🚫

⭕बे वुज़ू आयत को छूना तो खुद ही हराम है अगर्चे आयत किसी और किताब में लिखी हो

⭕मगर क़ुरआने मजीद के सादा हाशिया बल्कि पुठ्ठे बल्कि चिली (यानि जो कपड़ा या चमड़ा गत्ते के साथ चिपका या सिला हो उस) का भी छूना हराम है

✔हा जुज़दान में हो तो जुज़दान को हाथ लगा सकते है।

⭕बे वुज़ू अपने सीने से भी मुसहफ शरीफ को मस नहीं कर सकता।
🚫बे वुज़ू की गरदन पर लंबी चादर का एक कपड़ा पड़ा हुवा है और वो उसके दूसरे कोने को हाथ पर रख कर मुसहफ शरीफ छूना चाहे और अगर चादर इतनी लंबी है की उस शख्स के उठने बैठने से दूसरे गोशे (यानि कोने) तक हरकत न पहोचेगी तो जाइज़ है वरना नहीं।

✒हवाला
📙फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 4/724-725
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 37

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✅वुज़ु और साइन्स✅

♻Post~01


👍🏾वुज़ु जी हिकम्ते सुनने के सबब कबूले इस्लाम

🔸एक साहिब का बयान है : मेने मेल्जियम में यूनिवर्सिटी के एक गैर मुस्लिम स्टूडंट को इस्लाम की दा'वत दी।

🔸उसने सुवाल किया : वुज़ु में क्या क्या साइन्सि हिकम्ते है ? में ला जवाब हो गया।

🔸उसको एक आलिम के पास ले गया लेकिन उनको भी इसकी मालूमात न थी। यहाँ तक की साइन्सि मालूमात रखने वाले एक शख्स ने उसको वुज़ु की काफी खुबिया बताई मगर गर्दन के मसह की हिक्मत बताने से वो भी क़ासिर रहा।

🔸वो गैर मुस्लिम नौजवान चला गया।

🔸कुछ अरसे के बाद आया और कहने लगा : हमारे प्रोफेसर ने दौराने लेक्चर बताया :
अगर गर्दन की पुशत और अतराफ़ पर रोज़ाना पानी के चन्द कतरे लगा दिये जाए तो रीढ़ की हड्डी और हराम मगज की खराबी से पैदा होने वाले अमराज़ से तहफ्फुज हो जाता है।

🔸ये सुन कर वुज़ु में गर्दन के मसह की हक़ीक़त मेरी समाज में आ गई लिहाज़ा में मुसलमान होना चाहता हु और वो मुसलमान हो गया।

📨Continue....

📖हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, शफा 58-59

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✅वुज़ु और साइन्स✅

♻Post~02

🔷मग़रिबी जर्मनी का सेमीनार🔷

🔹मग़रिबी ममालिक में मायूसी (depression) का मर्ज़ तरक्की पर है,

🔹दिमाग फेल हो रहे है, पागल खानो की तादाद बढ़ रही है, नफ्सियाती अमराज़ के माहिरीन के यहा मरीज़ों की तात बन्धा रहता है।

🔹मग़रिबी जर्मनी के डिप्लोमा होल्डर एक पाकिस्तानी फिजियो थेरापिस्ट का कहना है : मग़रिबी जर्मनी में एक सेमीनार हुआ जिस का मौज़ू था "मायूसी का इलाज अदवियात के इलावा और किन किन तरीको से मुमकिन है ?"

🔹एक डॉ. ने अपने मकाले में ये हैरत अंगेज़ इंकिशाफ किया की मेने डिप्रेशन के चन्द मरीज़ों के रोज़ाना पांच बार मुह धुलाए कुछ अरसे बाद उनकी बिमारी कम हो गई।

🔹फिर ऐसे ही मरीज़ों के दूसरे ग्रुप के रोज़ाना 5 बार हाथ, मुह और पाउ धुलवाए तो मरज़ में बहुत कमी आ गई।

🔹यही डॉ. अपने मकाले के आखिर में ऐतिराफ करता है : मुसलमानो में मायूसी का मरज़ कम पाया जाता है क्यू की वो दिन में कई मर्तबा हाथ, मुह और पाउ धोते (यानी वुज़ु करते) है।

📖हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, शफा 59-60

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♻Post~03

🔷वुज़ु और हाइ ब्लड प्रेशर🔷

🔹एक हार्ट स्पेशालिस्ट का बड़े ऐतिमाद के साथ कहना है :
हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ को वुज़ु करवाओ फिर उस का ब्लड प्रेशर चेक करो लाज़िमन कम होगा।

🔹एक मुसलमान माहिरे नफ्सियात का कौल है :
नफ्सियात अमराज़ का बेहतरीन इलाज वुज़ु है।

🔹मग़रिबी माहिरीन नफ्सियात मरीज़ों को वुज़ु की तरह रोज़ाना कई बार बदन पर पानी लगवाते है।

📖हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, शफा 60

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♻Post~04

💠वुज़ु और फालिज💠

🔸वुज़ु में जो तरतीब वार आज़ा धोए जाते है ये भी हिक्मत से खाली नहीं।

🔸पहले हाथ पानी में डालने से जिस्म का आसाबि निज़ाम मुत्तलअ हो जाता है

🔸और फिर आहिस्ता आहिस्ता चेहरे और दिमाग की रगो की तरफ इस के असरात पहोचते है।

🔸वुज़ु में पहले हाथ धोने फिर कुल्ली करने फिर नाक में पानी डालने फिर चेहरा और दीगर आज़ा धोने की तरतीब फालिज की रोकथाम के लिये मुफीद है।

🔸अगर चेहरा धोने और मसह करने से आगाज़ किया जाए तो बदन कई बीमारियो में मुब्तला हो सकता है !

📖हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 60-61

📝फालिज यानि लकवा

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♻Post~05

💠मिस्वाक का क़दरदान💠

🔸मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! वुज़ु में मुतअद्दी सुन्नते है और हर सुन्नत मख़ज़ने हिक्मत है।

🔸मिस्वाक ही को ले लीजिये ! सब जानते है की वुज़ु में मिस्वाक करना सुन्नत है और इस सुन्नत की बरकतों का क्या कहना !

🔸एक व्यपारी का कहना है : स्विजरलैंड में एक नौ मुस्लिम से मेरी मुलाक़ात हुई उसको मेने तोहफतन मिस्वाक लेश की, उसने ख़ुश हो कर उसे लिया और चूम कर आखो से लगाया और एक दम उस की आँखों से आसु छलक पड़े।

🔸उसने जेब से एक रुमाल निकाला उस की तह खोली तो उस में से तकरीबन 2 इंच का छोटा सा मिस्वाक का टुकड़ा बरामद हुवा। वो कहने लगा : मेरी इस्लाम आवरी के वक़्त मुसलमानो ने मिझे ये तोहफा दिया था। में बहुत संभाल संभाल कर इसको इस्तिमाल कर रहा था, ये खत्म होने को था लिहाज़ा मुझे तश्विश थी के अल्लाह ने करम फ़रमाया और आप ने मुझे मिस्वाल इनायत फरमा दिया।

🔸फिर उसने बताया के एक अरसे से में दातो और मसूढ़ों की तकलीफ से परेशान था। हमारे यहाँ के डेंटिस्ट से इन का इलाज बन नहीं पड़ रहा था। मेने इस मिस्वाक का इस्तिमाल शुरू किया थोड़े ही दिनों में मुझे फायदा हो गया।

🔸में डॉ. के पास गया तो वो हैरान रह गया और पूछने लगा : मेरी दवाई से इतनी जल्दी तुम्हारा मरज़ दूर नहीं हो सकता, सोचो कोई और वजह होंगी। मेने जब ज़हन पर ज़ोर दिया तो ख्याल आया के में मुसलमान हो चूका हू और ये सारी बरकतें मिस्वाक ही की है। जब डॉ को मिस्वाक दिखाया तो वो देखता ही रह गया।
📖हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, साफ 61-62

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♻Post~06

✳क़ुव्वते हाफीजा में लिये✳

🔹मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मिस्वाक में बे शुमार दीनी व दिन्यवि फवाइद है। इस में मूतअद्दिद किमियावि अज्वा है जो दातो को हर तरह की बिमारी से बचाते है।

🔹हाशिया तहतावि में है : मिस्वाक से क़ुव्वते हाफीजा बढ़ती, दर्दे सर दूर होता और सर की रगो को सुकून मिलता है, इससे बलगम दूर, नज़र तेज़, मेदा दुरुस्त और खाना हज़म होता है, अक्ल बढ़ती, बच्चों की पैदाइश में इज़ाफ़ा होता है, बुढ़ापा देर में आता और पीठ मज़बूत होती है।

✒हवाला
📒हाशिया तहतावि, सफा 69
📚नमाज़ के अहकाम, साफ 62

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♻Post~07

✳मिस्वाक के बारे में दो अहादिसे मुबारका✳

🌴जब सरकारे मदीना ﷺ अपने मुबारक घर में दाखिल होते तो सब से पहले मिस्वाक करते।

🌴जब सरकारे नामदार ﷺ नींद से बेदार होते तो मिस्वाक करते।

✳मुह के छाले का इलाज✳

🔹डॉ का कहना है : बाज़ अवकात गरमी और मेदे की तेज़ाबिय्यत से मुह में छाले पड़ जाते है और इस मरज़ से ख़ास किस्म के जरासिम मुह में फेल जाते है,
🔹इसके इलाज के लिये मुह में ताज़ा मिस्वाक मले और इसका लुआब कुछ देर तक मुह के अंदर फिराते रहे। इस तरह कई मरीज़ ठीक हो चुके है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, साफ 62-63

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♻Post~07

✳मिस्वाक के मदनी फूल✳

⤵Part~1

☝🏼दो फरमाने मुस्तफा
👉🏿2 रकअत मिस्वाक करके पढ़ना बगैर मिस्वाक की 70 रकअतो से अफ़्ज़ल है।
👉🏿मिस्वाक का इस्तिमाल अपने लिये लाज़िम करलो क्यू की ये मुह की सफाई और रब तआला की रिजा का सबब है

🔹हज़रते इब्ने अब्बास से रिवायत है की मिस्वाक में 10 खुबिया है :
🔻मुह साफ़ करती, मसूढ़े को मज़बूत बनाती है, बिनाई बढ़ाती, बलगम दूर करती है, मुह की बदबू खत्म करती, सुन्नत के मुवाफ़िक है, फ़रिश्ते खुश होते है, रब राज़ी होता है, नेकी बढ़ाती और मेदा दुरुस्त करती है।

✒हवाला
📓जमउल जवामीअ-लिस्सुयुति, जी-5, स. 239

🔷सय्यिदुना इमाम शाफ़ेई फरमाते है :
⤵4 चीज़े अक्ल बढ़ाती है :
1⃣फ़ुज़ूल बातो से परहेज़
2⃣मिस्वाक का इस्तिमाल
3⃣सुलहा यानी नेक लोगोकी सोहबत
4⃣अपने इल्म पर अ'मल

📨Continue.....

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 64,65

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♻Post~08

🔻मिस्वाक के मदनी फूल🔻

⤵Part~2

🔹हज़रते सय्यिदुना अब्दुल वह्हाब शारानी रहमतुल्लाह अलैह नकल करते है :
एक बार अबू बक्र् शिब्ली बगदादी रहमतुल्लाह अलैह को वुज़ु के वक़्त मिस्वाक की ज़रूरत हुई, तलाश की मगर न मिली लिहाज़ा एक दिनार में मिस्वाक खरीद कर इस्तेमाल फ़रमाई।

🔹बाज़ लोगो ने कहा ये तो आपने बहुत ज्यादा खर्च कर डाला ! कही इतनी महगी भी मिस्वाक ली जाती है ?

🔹आप ने फ़रमाया बेशक ये दुन्या और इसकी तमाम चीज़े अल्लाह عزوجل के नज़्दीक मच्छर के पर बराबर भी हैसिय्य्त नहीं रखती,

🔹अगर बरोज़े कियामत अल्लाह عزوجل ने मुझसे ये पूछ लिया तो क्या जवाब दूंगा के तूने मेरे प्यारे हबीब ﷺ की सुन्नत (मिस्वाक) क्यू तर्क की ?

🔹मेने तुजे जो मालो दौलत दिया था उसकी हक़ीक़त तो मेरे नजदीक मच्छर के पर बराबर भी नहीं थी, तो आखिर ऐसी हकीर दौलत इतनी अज़ीम सुन्नत हासिल करने पर क्यू खर्च नहीं की ?

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 65

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♻Post~08

✳मिस्वाक के मदनी फूल✳

⤵Part~3

🔷मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह लिखते है :
🔹मशाईखे किराम फरमाते है : जो शख्स मिस्वाक का आदि हो मरते वक़्त उसे कलमा पढ़ना नसीब होगा और जो अफ्यून खाता हो मरते वक़्त उसे कालिमा नसीब न होगा।

🔻मिस्वाक पीलू या ज़ैतून या निम् वगैरा कड़वी लकड़ी की हो
🔻मिस्वाक की मोटाई छुंगलिया यानि छोटी ऊँगली के बराबर हो
🔻मिस्वाक एक बालिश्त से ज्यादा लम्बी न हो वरना उस पर शैतान बैठता है
🔻इसके रेशे नरम हो के सख्त रेशे दातो और मशुढो के दरमियान खला (गेप) का बाइस बनते है
🔻मिस्वाक ताज़ा हो तो खूब वरना इसका एक सिरा कुछ देर पानी के ग्लास में भिगो कर नरम कर लीजिये
🔻मुनासिब है की इस के रेशे रोज़ाना काटते रहिये के रेशे उस वक़्त तक कारआमद रहते है जब तक उन्मे तल्खी बाकी रहे

📨Continue.....

📚नमाज़ के अहकाम, सफा 65-66

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♻Post~09

✳मिस्वाक के मदनी फूल✳

⤵Part~4

🔹जब भी मिस्वाक करनी हो कम अज़ कम 3 बार कीजिये
हर बार धो लीजिये

🔹मिस्वाक सीधे हाथ में इस तरह लीजिये की छोटी ऊँगली इस के निचे और बिच की 3 उंगलिया ऊपर और अंगूठा उसके निचे हो

🔹पहले सीधी तरफ के ऊपर के दातो पर फिर उलटी तरफ के ऊपर के दातो पर
🔸फिर सीधी तरफ निचे फिर उलटी तरफ निचे मिस्वाक कीजिये

🔹मुठ्ठी बाँध क्र मिस्वाक करने से बवासीर हो जाने का अन्देशा है

🔹मिस्वाक वुज़ु की सुन्नते किबलिया है , अलबत्ता सुन्नते मोअक्कदा उसी वक़्त है जब के मुह में बदबू हो।

🔹मिस्वाक जब ना काबिले इस्तिमाल हो जाए तो फेके मत की ये आलए अदाए सुन्नत है, किसी जगह एहतियात से रख दे या दफन करदिजिये या पथ्थर वगैरा वजन बांध कर समंदर में डूब दीजिये।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 66-67

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♻Post~10

🙌🏾हाथ धोने की हिकम्ते🙌🏾

👉🏾वुज़ू में सब से पहले हाथ धोए जाते है इस की हिकम्ते मुलाहज़ा हो :

👉🏾मुख्तलिफ चीज़ों में हाथ डालते रहने से हाथो में मुख्तलिफ किमियावि अज्वा और जरासिम लग जाते है

👉🏾अगर सारा दिन न धोए जाए तो जल्द ही हाथ इन जिल्द अमराज़ में मुब्तला हो सकते है।

👉🏾हाथो के गरमी दाने
जिल्दी सोज़िस यानि खाल की सूजन।
एग्ज़ीमा।
फफूंदी की बीमारिया। (वो जरासिम जो किसी चीज़ पर काई की तरह जम जाते है)
जिल्द की रंगत तब्दील हो जाना। वग़ैरा

👉🏾जब हम हाथ धोते है तो उंगलियो के पोरो से शुआए (Rays) निकल कर एक ऐसा हल्का बनाती है जिस से हमारा अंदरुनी बर्क़ी निज़ाम मुतहर्रिक हो जाता है और एक हद तक बर्क़ी रौ हमारे हाथो में सिमट आती है जिस से हमारे हाथो में हुस्न पैदा हो जाता है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 67

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🔄Post~11

💫कुल्ली करने की हिकम्ते💫

👉🏾पहले हाथ धो लिये जाते है जिससे वो जरासिम से पाक हो जाते है, वरना ये कुल्ली के ज़रिए मुह में और फिर पेट में जा कर मुतअद्दिद अमराज़ का बाइस बन सकते है।
👉🏾हवा के ज़रिए ला तादाद मोहलिक जरासिम नीज़ ग़िज़ा के अज्ज़ा हमारे मुह और दातो में लुआब के साथ चिपक जाते है।
चुनान्चे वुज़ू में मिस्वाक और कुल्लियो के ज़रिए मुह की बेहतरीन सफाई हो जाती है। अगर मुह को साफ़ न किया जाए तो इन अमराज़ का खतरा पैदा हो जाता है

👉🏾ऐइड्ज़ (Aids) के इस की इब्तिदाई अलामात में मुह का पकना भी शामिल है। ऐइड्स का ता हाल डॉ. इलाज दरयाफ़्त नहीं कर पाए इस मरज़ में बदन का मुदा-फ-अती निज़ाम नाकारा हो जाता है, इसमें अमराज़ का मुकाबला करने की क़ुव्वत नहीं रहती और मरीज़ घुल घुल कर मर जाता है।
🔹मुह के कनारो का फ्टना।
🔹मुह और होटो की दादकूबा (Moniliasis)
🔹मुह में फफूंदी की बीमारिया और छाले वग़ैरा।

👉🏾नीज़ रोज़ा न हो तो कुल्लि के साथ गर-गरा करना भी सुन्नत है। और पाबंदी के साथ गर-गरे करने वाला कव्वे (Tonsil) बढ़ने और गले के बहुत सारे अमराज़ हत्ता के गले के केन्सर से महफूज़ रहता है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 67-68

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🔄Post~12

👃🏽नाक में पानी डालने की हिकम्ते👃🏽

👉🏾फेफड़ो को ऐसी हवा दरकार होती है जो जरासिम, धुंए और गर्दो गुबार से पाक हो और उसमे 80 फीसद रतूबत हो ऐसी हवा फ़राहम करने के लिये अल्लाह ने हमें नाक की ने'मत से नवाज़ा है।
👉🏾हवा को मरतूब यानि नम बनाने के लिये नाक रोज़ाना तकरीबन चौथाई गेलन नमी पैदा करती है।
सफाई और दीगर सख्त काम नथनों के बाल सर अन्जाम देते है।
👉🏾नाक के अन्दर एक खुर्द बिनी (Microscopic) जाड़ू है। इस जाड़ू में नज़र न आने वाले रुए होते है जो हवा के ज़रिए दाखिल होने वाले जरासिम को हलक कर देते है।
👉🏾नीज़ इन नज़र न आने वाले जरासिम के ज़िम्मे एक और डिफाइ निज़ाम भी है जिसे इंग्रजी में (Lysozyme) कहते है, नाक इस के ज़रिए से आँखों को जरासिम से महफूज़ रखती है।

☝🏽अल्हम्दु लिल्लाह वुज़ू करने वाला नाक में पानी चढ़ाता है जिस से जिस्म के इस अहम तरीन आले नाक की सफाई हो जाती है और पानी के अंदर काम करने वाकई बर्क़ी रौ से नाक के अंदरुनी गैर मर्इ रुओ की कारकर्दगी को तक्वीयत मिलती है और मुसलमान वुज़ू की बरकत से नाक के बे शुमार पेचीदा अमराज़ से महफूज़ हो जाता है।
👉🏾दाइमी नज़ला और नाक के ज़ख्म के मरीज़ों के लिये नाक का गुस्ल (यानि वुज़ू की तरह नाक में पानी चढ़ाना) बेहद मुफीद है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 68-69

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🔄Post~13

😊चेहरा धोने की हिकम्ते😊

👉🏾आज कल फ़ज़ाओं में धुंए वग़ैरा की आलूदगिया बढ़ती जा रही है, मुख्तलिफ किमियावि माद्दे सीसा वग़ैरा मेल कुचेल की शक्ल में आखो और चेहरे वग़ैरा पर जमता रहता है, अगर चेहरा न धोया जाए तो चेहरे और आँखे कई अमराज़ से दो चार हो जाए।
👉🏾एक यूरोपियन डॉ ने एक मकाला लिखा जिस का नाम आँख, पानी, सिह्ह्त (eye, water, health) इस में उसने इस बात पर ज़ोर दिया की " अपनी आँखों को दिन में कई बार धोते रहो वरना तुम्हे खतरनाक बीमारियो का सामना करना पड़ेगा।"
👉🏾चेहरा धोने से मुह पर खिल नहीं निकलते या कम निकलते है। माहीरिने हुस्न व सिह्ह्त इस बात पर मुत्तफ़िक है की हर तरह के cream और lotion वग़ैरा चेहरे पर दाग छोड़ते है, चेहरे को खूब सूरत बनाने के लिये चेहरे को कई बार धोना लाज़िमी है।
👉🏾अमेरिकन काउन्सिल फॉर ब्यूटी की सरकर्दा मेम्बर "बेचर" ने क्या खूब इन्किशाफ़् किया है, कहती है : मुसलमानो को किसी किस्म के किमियावि लोशन की हाजत नहीं, वुज़ू से इन का चेहरा धूल कर कई बीमारियो से महफूज़ हो जाता है।
👉🏾महकमऐ माहोलियत के माहिरीन का कहना है : चेहरे की एलर्जी से बचने के लिये इस को बार बार धोना चाहिये।

☝🏽अलहम्दु लिल्लाह ! एसा सिर्फ वुज़ू के ज़रिए ही मुम्किन है। वुज़ू में चेहरा धोने से एलर्जी से चेहरे की हिफाज़त होती है, इसका मसाज हो जाता, खून का दौरान चेहरे की तरफ रवा हो जाता, मेल कुचेल भी उतर जाता और चेहरे का हुस्न दो बाला हो जाता है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 69-70

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♻Post~14

💫अन्धा पन से तहफ़्फ़ुज़💫

👉🏾आँखों की एक बीमारी है जिसमे इस की रतूबते अस्लिय्या यानि असली तरी कम या ख़तम हो जाती और मरीज़ आहिस्ता आहिस्ता अन्धा हो जाता है।

👉🏾तिब्बी उसूल के मुताबिक़ अगर भवो को वक़्तन फ वक़्तन तर किया जाता रहे तो इस खौफ़नाक मरज़ से तहफ़्फ़ुज़ हासिल हो सकता है।

☝🏽अलहम्दु लिल्लाह ! वुज़ू करने वाला मुह धोता है और इस तरह उसकी भवे तर होती रहती है।
आशिकाने रसूल की दाढ़ी भी वुज़ू में धुलती है और इसमें भी खूब हिकम्ते है,

👉🏾डॉ प्रोफेसर ज्योर्ज एल कहता है : मुह धोने से दाढ़ी में उलझे हुए जरासिम बह जाते है, जड़ तक पानी पहोचने से बालो की जड़े मज़्बूत होती है, दाढ़ी के ख़िलाल से जुओं का खतरा दूर होता है, दाढ़ी में पानी की तरी के ठहराव से गर्दन के पठ्ठो, थाइराइड ग्लैंड और गले के अमराज़ से हिफाज़त होती है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 70-71

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♻Post~15

💪🏽कोहनिया धोने की हिकम्ते💪🏽

👉🏾कोहनी पर 3 बड़ी रगे है जिस का तअल्लुक़ दिल, जिगर और दिमाग से है और जिस्म का ये हिस्सा उमुमन ढका रहता है

👉🏾अगर इसको पानी और हवा न लगे तो मुतअद्दिद दिमाग और आसाबि अमराज़ पौदा हो सकते है।

👉🏾वुज़ू में कोहनियो समेत हाथ धोने से दिल, जिगर और दिमाग को तक्वीयत पहोचति है और इस तरह इन्शा अल्लाह वो इनके अमराज़ से पहफ़ुज़ रहेगे।

👉🏾मजीद ये की कोहनियो समेत हाथ धोने से सीने के अन्दर ज़खीरा शुदा रोशनियां से बराहे रास्त इंसान का तअलुक काइम हो जाता है और रोशनियो का हुजूम एक बहाव की शक्ल इख्तियार कर लेता है, इस अम्ल से हाथो के अज़लात यानि कलपुर्जे मजीद ताकत वर हो जाते है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 71

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🔄Post~16

💫मसह की हिकम्ते💫

👉🏾सर और गर्दन के दरमियान "हबलूल वरिद" यानि शाहरग वाके है इसका तअल्लुक़ रीढ़ की हड्डी और हराम मग्ज़ और जिस्म के तमाम तर जोड़ो से है।

👉🏾जब वुज़ू करने वाला गर्दन का मसह करता है तो हाथो के ज़रिए बर्क़ी रौ निकल कर शाहरग में ज़खीरा हो जाती है और रीढ़ की हड्डी से होती हुई जिस्म के तमाम आसाबि निज़ाम में फ़ैल जाती है और इसी से आसाबि निज़ाम को तुवानाइ हासिल होती है।

📚नमाज़ के अहका, सफा 72

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🔄Post~17

🚰पाउ धोने की हिकम्ते🚰

👉🏾पाउ सब से ज़्यादा धूल आलूद होते है। पहले पहल जरासिम पाउ की उंगलियो के दरमियानी हिस्से से शुरू होता है।

👉🏾वुज़ू में पाउ धोने से गर्दो गुबार और जरासिम बह जाते है और बचे खुचे जरासिम पाउ की उगलियो के ख़िलाल से निकल जाते है।

👉🏾लिहाज़ा वुज़ू में सुन्नत के मुताबिक़ पाउ धोने से नींद की कमी, दिमागी खुश्की, घबराहट और मायूसी जेसे परेशान कुन अमराज़ दूर होते है।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 73

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🌙नूर का खिलौना🌙

🌙जिस चाँद पर साइन्स दान अब पहोचने का दावा कर रहा है वो चाँद तो मेरे प्यारे आक़ा ﷺ के ताबे फरमान है।

👉🏾चुनान्चे "दलाइलुननुबूव्व्ह" में है : सुल्ताने दो जहां के चचाजान हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब رضي الله تعالي عنه फ़रमाते है :
🌴मेने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की : या रसूलुल्लाह ﷺ ! मेने आप के बचपन में ऐसी बात देखि जो आप की नबुव्वत पर दलालत करती थी और मेरे ईमान लाने के अस्बाब में से ये भी एक सबब था।

👉🏾चुनान्चे मेने देखा की आप गहवारे (यानि पिंघोड़े) में लेटे हुए चाँद से बाते कर रहे थे और जिस तरफ आप ऊँगली से इशारा फ़रमाते चाँद उसी तरफ हो जाता था।

🌴सरकारे नामदार ﷺ ने फ़रमाया :
में उस से बाते करता था और वो मुझसे बाते करता था और मुझे रोने से बहलाता था और में उस के गिरने की आवाज़ सुनता था जब की वो अर्शे इलाही के निचे सज्दे में गिरता था।
📗दलाइलुननुबूव्वत जी.2, स. 41
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
🌷आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है :
🌙चाँद झुक जाता जिधर ऊँगली उढ़ाते महद में
🌙क्या ही चलता था इशारो पर खिलौना नूर का
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
👉🏾एक महब्बत वाले ने कहा है :
🌙खेलते थे चाँद से बचपन में आक़ा इस लिये
🌙ये सरापा नूर थे वो था खिलौना नूर का....

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 66-67

📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل

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🌜मौजिज़ए शककुल कमर🌛

📒बुखारी शरीफ में है :
👉🏾क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने सरकारे मदीना ﷺ की खिदमते बा बरकत में मोजिज़ा दिखने का मुतालबा किया तो आप ने उन्हें चाँद के दो टुकड़े कर के दिखा दिये।

✒हवाला
📗बुखारी, जी.2, स.579, हदिष:3868
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☝🏽अल्लाह तआला पारह 27 सूरतुल कमर की पहली दो आयत में इर्शाद फ़रमाता है :
👉🏾पास आई क़ियामत और शक हो गया चाँद और अगर देखे कोई निशानी तो मुह फ़ेरते और कहते है ये तो जादू है चला आता।

🌷हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा इस हिस्सए आयत "और शक हो गया चाँद" के तहत फ़रमाते है :
👆🏾इस आयत में हुज़ूर ﷺ के एक बड़े मौजिज़ए शक्कूल कमर यानि चाँद के दो टुकड़े हो जाने का ज़िक्र है।
हवाला
📒नूरुल इरफ़ान, सफा 843

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 77

📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

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🚰गुस्ल का तरीका🚰

👉🏾बिगैर ज़बान हिलाए दिल में इस तरह निय्यत कीजिये की में पाकी हासिल करने के लिये गुस्ल करता हु।
👉🏾पहले दोनों हाथ पहुचो तक 3-3 बार धोइए
👉🏾फिर इस्तिन्जे की जगह धोइए ख़्वाह नजासत हो या न हो
👉🏾फिर जिस्म पर अगर कही नजासत हो तो उसको दूर कीजिये
फिर नमाज़ का सा वुज़ू कीजिये मगर पाउ न धोइये
👉🏾हा अगर चौकी वग़ैरा पर गुस्ल कर रहे है तो पाउ धो लीजिये
👉🏾फिर बदन पर तेल की तरह पानी चुपड़ लीजिये, खुसुसन सर्दियो में (इस दौरान साबू भी लगा सकते है)
👉🏾फिर 3 बार सीधे कंधे पर पानी बहाइये, फिर 3 बार उलटे कंधे पर
फिर सर पर और तमाम बदन पर 3 बार
👉🏾फिर गुस्ल की जगह से अलग हो जाइये
👉🏾अगर वुज़ू करने में पाउ नहीं धोए थे तो अब धो लीजिये

⭕नहाने में क़िबला रुख न हो, तमाम बदन पर हाथ फेर कर मल कर नहाइए।

⭕दौराने गुस्ल किसी किस्म की गुफ्तगू मत कीजिये, कोई दुआ भी न पढ़िये,
👉🏾नहाने के बाद तोलिये वग़ैरा से बदन पोछने में हरज नहीं। नहाने के बाद फौरन कपड़े पहन लीजिये।
अगर मकरूह वक़्त न हो तो दो रकअत नफ़्ल अदा करना मुस्तहब है।

✒हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.310
📕आलमगिरी, जी.1, स. 14
📚नमाज़ के अहकाम, सफा  84
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🚰गुस्ल के फराइज़🚰

♻Part~01

✔गुस्ल के 3 फराइज़✔

👉🏾कुल्ली करना
👉🏾नाक में पानी चढ़ाना
👉🏾तमाम ज़ाहिर बदन पर पानी बहाना

✒हवाला
📕फतावा आलमगिरी, जी.1, स.13
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✔कुल्ली करना

🔹मुह में थोडा सा पानी ले कर पच करके डाल देने का नाम कुल्ली नहीं, बल्कि मुह के हर पुर्ज़े, गोशे, होटो से हल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाए।
🔹इसी तरह दाढ़ों के पीछे गालो की तह में, दातो की खिड़कियों और जडो और ज़बान की हर करवट पर बल्कि हल्क के कनारे तक पानी बहे।
🔹रोज़ा न हो तो गरगरा भी कर लीजिये की सुन्नत है।
🔹दातो में छलिया के दाने या बोटी के रेशे वग़ैरा हो तो उन को छुड़ाना ज़रूरी है। हा अगर छुड़ाने में ज़रर (यानि नुक्सान) का अंदेशा हो तो मुआफ़ है,
🔹गुस्ल से क़ब्ल दातो में रेशे वग़ैरा महसूस न हुए और रह गए, नमाज़ भी पढ़ ली बाद को मालुम होने पर छुड़ा कर पानी बहाना फ़र्ज़ है, पहले जो नमाज़ पढ़ी थी वो हो गई।
🔹जो हिलता दांत मसाले से जमाया गया या तार से बांधा गया और तार या मसाले के निचे पानी न पहोचता हो तो मुआफ़ है।

✒हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.316
📕फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.1, स.439-440

⭕जिस तरह की एक कुल्ली गुस्ल के लिये फ़र्ज़ है इसी तरह की 3 कुल्लिया वुज़ू के लिये सुन्नत है।

📨Continue.....

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 85
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🚰गुस्ल के फराइज़🚰

♻Part~02

✔नाक में पानी चढ़ाना

🔹जल्दी जल्दी नाक की नोक पर पानी लगा लेने से काम नहीं चलेगा बल्कि जहा तक नर्म जगह है यानि सख्त हड्डी के शुरू तक धुलना लाज़िम है। और ये यु हो सकेगा की पानी को सूंघ कर ऊपर खिंचीये। ये ख़याल रखिये की बाल बराबर भी जगह धुलने से न रह जाए वरना गुस्ल न होगा। नाक के अंदर अगर रीठ सुख गई है तो उसका छुड़ाना फ़र्ज़ है, नीज़ नाक के बालो का धोना भी फ़र्ज़ है।
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.316
📕फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.1, स. 439-440

✔तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना

🔹सर के बालो से ले कर पाउ के तल्वो तक जिस्म के हर पुर्ज़े और हर हर रोंगटे पर पानी बह जाना ज़रूरी है, जिस्म की बाज़ जगहे ऐसी है की अगर एहतियात न की तो वो सुखी रह जाएगी और गुस्ल न होगा।
📕बहारे शरीअत, जी.1, स 317

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 85-86
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👥मर्द व औरत के लिये गुस्ल की एहतियाते👥

👉🏾अगर मर्द के सर के बाल गुंधे हुए हो तो उन्हें खोल कर जड़ से नोक तक पानी बहाना फ़र्ज़ है।
👉🏾और औरत पर सिर्फ जड़ तर कर लेना ज़रूरी है खोलना ज़रूरी नहीं। हा अगर चोटी इतनी सख्त गुंधी हुई हो के बे खोले जड़े तर न होंगी तो खोलना ज़रूरी है।
👉🏾अगर कानो में बाली या नाक में नथ का छेद हो और वो बंद न हो तो उसमे पानी बहाना फ़र्ज़ है।
⭕वुज़ू में सिर्फ नाक के नथ के छेद में और गुस्ल में अगर कान और नाक दोनों में छेद हो तो दोनों में पानी बहाए।
👉🏾भवो, मुछो और दाढ़ी के हर बाल का जड़ से नोक तक और इनके निचे की खाल का धोना ज़रूरी है।
👉🏾कान का हर पुर्ज़ा और इसके सुराख का मुह धोए।
👉🏾कानो के पीछे के बाल हटा कर पानी बहाए।
👉🏾ठोड़ी और गले का जोड़, के मुह उठाए बिगैर न धुलेगा।
👉🏾हाथो को अच्छी तरह उठा कर बगले धोए।
👉🏾बाज़ू का हर पहलू धोए।
👉🏾पीठ का हर ज़र्रा धोए।
👉🏾पेट की बल्टे उठा कर धोए।
👉🏾नाफ में भी पानी डाले अगर पानी बहने में शक हो तो नाफ में ऊँगली दाल कर धोए।
👉🏾जिस्म का हर रोंगटा जड़ से नोक तक धोए।
👉🏾रान और पेड़ू (नाफ से निचे के हिस्से) का जोड़ धोए।
👉🏾जब बैठ कर नहाए तो रान और पिंडली के जोड़ पर भी पानी बहाना याद रखे।
👉🏾दोनों सुरीन के मिलने की जगह का ख्याल रखे, खुसुसन जब के खड़े हो कर नहाए।
👉🏾रानो की गोलाई और पिंडलियों की करवटों पर पानी बहाए।
👉🏾ज़कर व उन्स-यैन (यानि फ़ोतों) की निचली सतह जोड़ तक और उन्स-यैन के निचे की जगह जड़ तक धोए।
👉🏾जिसका खतना न हुवा वो अगर खाल चढ़ सकती हो तो चढ़ा कर धोए और खाल के अंदर पानी चढ़ाए।

✒हवाला
📕मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत, जी.1, स. 317-318
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 86-87
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👩🏼मस्तुरात (औरत) के लिये गुस्ल की एहतियाते👩🏼

🔹ढलकी हुई पिस्तान को उठा कर पानी बहाए।
🔹पिस्तान और पेट के जोड़ की लकीर धोए।
🔹फ़र्ज़े कारिज (यानि औरत की शर्मगाह के बहार के हिस्से) का हर गोशा हर टुकड़ा ऊपर निचे खूब एहतियात से धोए।
🔹फ़र्ज़े दाखिल (यानि शर्मगाह के अंदरुनी हिस्से) में ऊँगली दाल कर धोना फ़र्ज़ नहीं मुस्तहब है।
🔹अगर हैज़ या निफ़ास से फ़ारिग़ हो गुस्ल करे तो किसी पुराने कपड़े से फ़र्ज़े दाखिल के अंदर से खून का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है।
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.318

⭕अगर नेल पोलिश नाखुनो पर लगी हुई है तो उसका भी छुड़ाना फ़र्ज़ है वरना गुस्ल नहीं होगा, हा मेहदी के रंग में हरज नहीं।

✒हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा  88
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🚰गुस्ल फ़र्ज़ होने के अस्बाब🚰

🔹मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो कर उज़्व से निकलना।
🔹ऐहतिलाम यानी सोते में मनी का निकल जाना।
🔹शर्मगाह में हश्फ़ा दाखिल हो जाना ख़्वाह शहवत हो या न हो, इन्ज़ाल हो या न हो, दोनों पर गुस्ल फ़र्ज़ है।
🔹हैज़ से फ़ारिग़ होना।
🔹निफ़ास (यानि बच्चा जनने पर खून आता है उस) से फ़ारिग़ होना।

✒हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.321-324
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 88-89
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❗निफ़ास की ज़रूरी वज़ाहत❗

👉🏾अक्सर औरतो में ये मशहूर है की बच्चा जनने के बाद औरत 40 दिन तक लाज़िमी तौर पर नापाक रहती है ये बात बिलकुल गलत है। निफ़ास की तफ़सील मुलाहज़ा हो।

👉🏾बच्चा पैदा होने के बाद जो खून आता है उस को निफ़ास कहते है इसकी ज़्यादा से ज्यादा मुद्दत 40 दिन है, यानि अगर 40 दिन के बाद भी बंद न हो तो मरज़ है।
👉🏾लिहाज़ा 40 दिन पुरे होते ही गुस्ल कर ले और 40 दिन से पहले बंद हो जाए ख़्वाह बच्चे की विलादत के बाद एक मिनिट ही में बन्द हो जाए तो जिस वक़्त भी बन्द हो गुस्ल कर ले और नमाज़ व रोज़ा शुरू हो गए।

👉🏾अगर 40 दिन के अंदर अंदर दोबारा खून आ गया तो शुरूए विलादत से ख़त्मे खून तक सब दिन निफ़ास ही के शुमार होंगे।
मस्लन विलादत के बाद 2 मिनिट तक खून आ कर बंद हो गया और औरत गुस्ल करके नमाज़ रोज़ा वग़ैरा करती रही, 40 दिन पुरे होने में फ़क़त 2 मिनिट बाकी थे की फिर खून आ गया तो सारा चिल्ला यानी मुकम्मल 40 दिन निफ़ास के ठहरेंगे।
⭕जो भी नमाज़ पढ़ी या रोज़े रखे सब बेकार गए, यहाँ तक की अगर इस दौरान फ़र्ज़ व वाजिब नमाज़े या रोज़े क़ज़ा किये थे तो वो भी फिर से अदा करे।

✒हवाला
📙माखुज़ अज़ फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.4 स. 356,356
📚फैज़ाने सुन्नत, सफा 89
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🚿कब गुस्ल करना सुन्नत है🚿

🕌जुमुआ

🕌ईदुल फ़ित्र

🐏बकरी ईद

🕋अरफे के दिन (यानि 9 जुल हिज्जतिल हराम)

🕋ऐहराम बांधते वक़्त

👆🏾👆🏾इन मौको पर गुस्ल करना सुन्नत है

🖊हवाला
📕फतावा आलमगिरी, जी.1, स. 16
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 93
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🚿कब कब गुस्ल करना मुस्तहब है🚿

✅वुकुफे अरफात
☑वुकुफे मुज़दलिफा
✅हाज़िरिये हरम
☑हाज़िरिये सरकारे आ'ज़म
✅तवाफ़
☑दुखुले मिना
✅जमरो पर कंकरिया मारने के लिये तीनो दिन
☑शबे बराअत
✅शबे क़द्र
☑अरफे की रात
✅मजलिसे मिलाद शरीफ
☑दीगर मजलिसे खैर के लिये
✅मुर्दा नहलाने के बाद
☑मजनून (यानि पागल) को जूनून (पागल पन) जाने के बाद
✅गशी से फाकेके बाद
☑नशा जाते रहने के बाद
✅गुनाह से तौबा करने
☑नए कपड़े पहनने के लिये
✅सफर से आने वाले के लिये
☑इस्तिहाज़ा का खून बंद होने के बाद
✅नमाज़े कुसुफ व खुसुफ
☑नमाज़े इस्तिस्का के लिये
✅खौफ व तारीकी और सख्त अंधी के लिये
☑बदन पर नजासत लगी और ये मालुम न हुवा के किस जगह लगी है।

🖊हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1, स.324,325
📕दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मोहतार, जी1, स.341-343
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 93-94
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🚿एक गुस्ल में मुख्तलिफ निय्यते🚿

👉🏽जिस पर चन्द गुस्ल हो सब की निय्यत से एक गुस्ल कर लिया, सब अदा हो गए सब का षवाब मिलेगा।

🚿जुनुब ने जुमुआ या ईद के दिन ग़ुस्ले जनाबत किया और जुमुआ और ईद वग़ैरा की निय्यत भी कर ली सब अदा हो गए,

👉🏽अगर उसी गुस्ल से जुमुआ और ईद की नमाज़ अदा करले।

🖊हवाला
📕माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1, स.325
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 94
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❗तंग लिबास वाले की तरफ नज़र करना कैसा❓

👉🏽लिबास तंग हो या ज़ोर से हवा चली या बारिश या साहिले समुन्दर या नहर वग़ैरा में अगर्चे मोटे कपड़े में नहाए और कपड़ा इस तरह चिपक जाए की सित्र के किसी कामिल उज़्व मस्लन रान की मुकम्मल गोलाई की हैअत (उभार) ज़ाहिर हो जाए
👉🏽ऐसी सूरत में उस उज़्व की तरफ दूसरे को नज़र करने की इजाज़त नहीं।

👉🏽यही हुक्म तंग लिबास वाले के सित्र के उभारे हुए उज़्वे कामिल की तरफ नज़र करने का है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 95
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🚿गुस्ल से नज़ला बढ़ जाता हो तो❓

👉🏽ज़ुकाम या आशोबे चश्म वग़ैरा हो और ये गुमाने सहीह हो की सर से नहाने में मरज़ बढ़ जाएगा या दीगर अमराज़ पैदा हो जाएगे तो कुल्ली कीजिये, नाक में पानी चढ़ाइये और गर्दन से नहाइये।
और सर के हर हिस्से पर भीगा हुवा हाथ फेर लीजिये गुस्ल हो जाएगा। बादे सिह्ह्त सर धो डालिये पूरा गुस्ल नए सिरे से करना ज़रूरी नहीं।
🖊हवाला
📕माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1 स. 318
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🗑बाल्टी से नहाते वक़्त एहतियात🗑

👉🏽अगर बाल्टी के ज़रिए गुस्ल करे तो एहतियातन उसे तिपाई (stool) वग़ैरा पर रख लीजिये ताके बाल्टी में छीटे न आए। नीज़ गुस्ल में इस्तिमाल करने का मग भी फर्श पर न रखिये।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 95,96
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❗नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल❗

♻Part~01

👉🏽जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उसको मस्जिद में जाना, तवाफ़ करना, क़ुरआने पाक छूना, बे छुए ज़बानी पढ़ना, किसी आयत का लिखना, आयत का तावीज़ लिखना (लिखना उस सूरत में हराम है जिस में कागज़ का छूना पाया जाए, अगर कागज़ को न छुए तो लिखना जाइज़ है), ऐसा तावीज़ छूना, ऐसी अंगूठी छूना या पहनना जिस पर आयत या हुरूफ़े मुक़त्तआत लिखे हो हराम है

👉🏽अगर क़ुरआने पाक जुज़दान में हो तो बे वुज़ू या बे गुस्ल जुज़्दान पर हाथ लगाने में हरज नहीं।

👉🏽इसी तरह किसी ऐसे कपड़े या रुमाल वगैरा से क़ुरआने पाक पकड़ना जाइज़ है जो न अपने ताबे हो न क़ुरआने पाक के

👉🏽कुर्ते की आस्तीन, दुपट्टे के आँचल से यहाँ तक की चादर का एक कोना इसके कंधे पर है तो चादर के दूसरे कोने से क़ुरआने पाक को छूना हराम है की ये सब चीज़े इस छूने वाले के ताबे है।

👉🏽क़ुरआने पाक की आयत दुआ की निय्यत से या तबर्रुक के लिये मसलन बीसमील्ला-ही-र्रहमा-निर्रहीम या अदाए शुक्र के लिये अल्हम्दुलिल्लाह या किसी मुसलमान की मौत या किसी किस्म के नुकसान की खबर पर इन्नलिल्लाहि व-इन्न इलैहि राजिउन या सना की निय्यत से पूरी सूरतुल फातिहा या आयतुल कुर्सी या सूरतुल हशर की आखरी 3 आयते पढ़े और इन सब सूरतो में क़ुरआन पढ़ने की निय्यत न हो तो कोई हरज नहीं।

📨Continue....

🖊हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1 स.326
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 98-99
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📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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❗नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल❗

♻Part ~02

👉🏽तीनो कुल बिला लफ़्ज़े कुल ब निययते सना पढ़ सकते है। लफ़्ज़े कुल के साथ सना की निय्यत से भी नहीं पढ़ सकते क्यू की इस सूरत में इन का क़ुरआन होना मूतअय्यन है, निय्यत को कुछ दखल नहीं।

👉🏽बे वुज़ू को क़ुरआन शरीफ या किसी आयत का छूना हराम है। बिगैर छुए ज़बानी या देख कर पढ़ने में मुज़ायक़ा नहीं।

👉🏽जिस बर्तन या कटोरे पर सूरत या आयते क़ुराआनी लिखी हो बे वुज़ू और बे गुस्ल को इस का छूना हराम है।

👉🏽इस का इस्तिमाल सब के लिये मकरूह है। हा ख़ास ब निययते शिफ़ा इसमें पानी वगैरा डाल कर पिने में हरज नहीं।

👉🏽क़ुरआने पाक का तर्जमा फ़ारसी या उर्दू या किसी दूसरी ज़बान में हो उस को भी पढ़ने या छूने में क़ुरआने पाक ही का सा हुक्म है।

🖊हवाला
📕बहरे शरीअत, जी.1 स. 326-327
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 100
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❗बे वुज़ू दिनी किताबे छूना❗

👉🏽बे वुज़ू या वो जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उन को फिक़्ह, तफ़्सीर व हदिष की किताबो को छूना मकरूह है। और इनको किसी कपड़े से छुआ अगर्चे इस को पहने या ओढ़े हुए हो तो मुज़ायक़ा नहीं।

👉🏽मगर आयते क़ुरआनी या इसके तरजमे पर इन किताबो में भी हाथ रखना हराम है।
📕बहरे शरीअत, जी.1, स.327

👉🏽बे वुज़ू इस्लामी किताबे पढ़ने वाले बल्कि अखबारात व रसाइल छूने वाले भी एहतियात फ़रमाया करे की उमूमन इनमे आयत व तरजमे शामिल होते है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 100
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❓बे वुज़ू दिनी किताबे छूना❓

👉🏽बे वुज़ू या वो जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उनको फिक़्ह, तफ़्सीर व हदिष की किताबो का छूना मकरूह है। और अगर इनको किसी कपड़े से छुवा अगर्चे इस को पहने या ओढ़े हुए हो तो मुज़ायक़ा नहीं। मगर आयते क़ुरआनी या इसके तरजमे पर इन किताबो में भी हाथ रखना हराम है।

👉🏽बे वुज़ू इस्लामी किताबे पढ़ने वाले बल्कि अखबारात व रसाइल छूने वाले भी एहतियात फ़रमाया करे की उमुमन इनमे आयात व तरजमे शामिल होते है।
📕बहरे शरीअत, जी.1 स. 327
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❓नापाकी की हालत में दुरुद शरीफ पढ़ना❓

👉🏽जिन पर गुस्ल फ़र्ज़ उन को दुरुद शरीफ और दुआए पढ़ने में हर्ज़ नहीं। मगर बेहतर ये है की वुज़ू या कुल्ली करके पढ़े।
📕बहरे शरीअत, जी.1 स. 327

👉🏽अज़ान का जवाब देना उन को जाइज़ है।
📕आलमगिरी, जी.1 स.38

🖊हवाला
📚फैज़ाने सुन्नत, सफा 100, 101
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

👉🏽क़ुरआन व हदिष में नमाज़ पढ़ने के बे शुमार फ़ज़ाइल और न पढ़ने की सख्त सजाए वारिद है,

👉🏽चुनान्चे पारह 28 सूरतुल मुनाफिकिन की आयत नंबर 9 में इरशादे रब्बानी है,

☝🏽ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज़ तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुक़सान में है।

👉🏽हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा नक़ल करते है, मुफ़स्सिरीने किराम रहमतुल्लाह तआला फरमाते है की आयते मुबारका में अल्लाह तआला के ज़िक्र से पाँच नमाज़े मुराद है,

👉🏽पस जो शख्स अपने माल यानि खरीदो फरोख्त, मईशत व रोज़गार, साज़ो सामान और औलाद में मसरूफ़ रहे और वक़्त पर नमाज़ न पढ़े वो नुक़सान उठाने वालो में से है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 142,143
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🔥क़यामत का सब से पहला सुवाल🔥

🌴सरकारे मदीना ﷺ का इर्दशादे हक़ीक़त बुन्याद है
👉🏽क़यामत के दिन बन्दे के आमाल में सबसे पहले नमाज़ का सुवाल होगा।
👉🏽अगर वो दुरुस्त हुई तो उसने कामयाबी पाई और अगर उसमे कमी हुई तो वो रुस्वा हुवा और उसने नुक़सान उठाया
📒कन्जुल अम्माल, जी.7 स.115 हदिष:18883
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🌹नमाज़ी के लिये नूर🌹

🌴सरकारे दो आलम ﷺ का इरशादे गिरामी है
👉🏽जो शख्स नमाज़ की हिफाज़त करे उसके लिये नमाज़ क़यामत के दिन नूर, दलील और नजात होगी
👉🏽और जो इसकी हिफाज़त न करे उस के लिये ब रोज़े क़यामत न नूर होगा और न दलील और न ही नजात।
👉🏽और वो शख्स क़यामत के दिन फिरौन, क़ारून, हमान और उबय बिन खलफ़् के साथ होगा।
मजमउल जवाअद जी,2 स.21 हदिष:1611

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहका, सफा 143-144
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❗किसका किसके साथ हशर होगा❗

🌾हज़रते मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा नक़ल करते है, बाज़ उलमए किराम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है
👉🏽नमाज़ के तारिक को इन 4 (फिरऔन, क़ारून, हामान ओर उबय बिन खलफ़्) के साथ इस लिये उठाया जाएगा की लोग उमुमन दौलत, हुकूमत, वज़ारत और तिजारत की वजह से नमाज़ को तर्क करते है।

👉🏽जो हुकूमत की मशगुलिययत के सबब नमाज़ नहीं पढेगा उसका हशर फिरऔन के साथ होगा।

👉🏽जो दौलत के बाइस नमाज़ को तर्क करेगा तो उसका क़ारून के साथ हशर होगा।

👉🏽अगर तर्के नमाज़ का सबब वज़ारत होगी तो फिरऔन के वज़ीर हामान के साथ हशर होगा।

👉🏽अगर तिजारत की मसृफिय्यत की वजह से नमाज़ छोड़ेगा तो उस को मक्कए मुकर्रमा के बहुत बड़े काफ़िर ताजिर उबय बिन खलफ़् के साथ बरोज़े क़यामत उठाया जाएगा।

🖊हवाला
📒किताब अल-कबीर, स.21
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 144
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🌹शदीद ज़ख़्मी हालत में नमाज़🌹

👉🏽जब हज़रते उमर फारुके आज़म رضي الله تعالي عنه पर क़ातिलाना हमला हुआ तो अर्ज़ की गई,

👉🏽ऐ अमीरुल मुअमिनीन ! नमाज़ का वक़्त है

👉🏽फ़रमाया, जी हा, सुनिये ! जो शख्स नमाज़ को जाए करता है उसका इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं।
👉🏽और आप ने शदीद ज़ख़्मी होने के बा वुज़ूद नमाज़ अदा फ़रमाई।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 145
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🌹नमाज़ पर नूर या तारीकी के अस्बाब🌱

🌾हज़रते उबादा बिन सामित رضي الله تعالي عنه से रिवायत हैं की हुज़ूर ﷺ का फरमाने आलिशान है,
👉🏽जो शख्स अच्छी तरह वुज़ू करे, फिर नमाज़ के लिये खड़ा हो, इसके रूकू, सुजूद और किरआत को मुकम्मल करे तो नमाज़ कहती है,

☝🏽अल्लाह तआला तेरी हिफाज़त करे जिस तरह तूने मेरी हिफाज़त की। फिर उस नमाज़ को आसमान की तरफ ले जाया जाता है और उस के लिये चमक और नूर होता है।

👉🏽पस उसके लिये आस्मां के दरवाज़े खोले जाते है हत्ता की उसे अल्लाह तआला की बारगाह में पेश किया जाता है और वो नमाज़ उस नमाज़ी की शफ़ाअत करती है,

⭕और अगर वो इस का रुकूअ, सुजूद और किरआत मुकम्मल न करे तो नमाज़ कहती है, अल्लाह तआला तुझे छोड़ दे जजस तरह तूने मुझे जाए किया।
👉🏽फिर उस नमाज़ को इस तरह आसमान की तरफ के जाया जाता है की उस पर तारीकी छाई होती है और उस पर आसमान के दरवाज़े बंद कर दिये जाते है फिर उसको पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस नमाज़ी के मुह पर मारा जाता है।

🖊हवाला
📔कन्जुल अमाल, जी.7 स.129, हदिष:19049
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 145-146
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❗बुरे खतिमे का एक सबब❗

🌺हज़रते इमाम बुखारी अलैरहमा फरमाते है
👉🏽हज़रते हुजैफा बिन यमान رضي الله تعالي عنه ने एक शख्स को देखा जो नमाज़ पढ़ते हुए रूकू और सुजूद पुरे अदा नहीं करता था।

👉🏽तो उस से फ़रमाया : तुम ने जो नमाज़ पढ़ी अगर इसी नमाज़ की हालत में इन्तिकाल कर जाओ तो हज़रत मुहम्मद मुस्तफा के तरीके पर तुम्हारी मौत वाकेअ नहीं होगी।
📕सहीह बुखारी, जी.1 स.112

👉🏽सुनने नसाई की रिवायत में ये भी है की आप ने पूछा तुम कब से इस तरह नमाज़ पढ़ रहे हो ?
👉🏽उसने कहा 40 साल से
👉🏽फ़रमाया : तुमने 40 साल से बिलकुल नमाज़ ही नहीं पढ़ी और अगर इसी हालत में तुम्हे मौत आ गई तो दिने मुहम्मदी पर नही मरोगे।
📙सुनने नसाई, जी.2 स.57

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 146
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⭕नमाज़ का चोर⭕

🌾हज़रते अबू क़तादा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की सरकारे मदीना ﷺ का फरमाने बा करीना है :
👉🏽लोगो में बद तरीन चोर वो है जो अपनी नमाज़ में चोरी करे।
अर्ज़ की गई : या रसूलुल्लाह ﷺ ! नमाज़ का चोर कौन है ?
👉🏽फ़रमाया : वो जो नमाज़ के रूकू और सजदे पुरे न करे।
📒मस्नद इमाम अहमद हम्बल, जी.8 स.386 हदिष : 22705
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⭕चोर की दो किस्मे⭕

🌾हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा इस हदिष के तहत फरमाते है :
👉🏽मालुम हुवा माल के चोर से नमाज़ का चोर बदतर है क्यू की माल का चोर अगर सज़ा भी पाता है तो कुछ न कुछ नफा भी उठा लेता है,
👉🏽मगर नमाज़ का चोर सज़ा पूरी पाएगा इसके लिये नफा की कोई सूरत नहीं।
👉🏽माल का चोर बन्दे का हक़ मारता है, जब की नमाज़ का चोर अल्लाह का हक़,
👉🏽ये हालत उनकी है जो नमाज़ को नाकिस पढ़ते है इससे वो लोग दरसे इबरत हासिल के जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नही।
📕मीरआत, जी.2 स.78

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 146-147
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Part~01

👉🏽बा वुज़ू किब्ला रु इस तरह खड़े हो की दोनों पाउ के पन्जो में 4 उंगल का फ़ासिला रहे और दोनों हाथ कानो तक ले जाइये की अंगूठे कान की लौ से छु जाए और उंगलिया न मिकी हुई हो न खूब खुली बल्कि अपनी हालत पर (normal) रखे और हथेलिया किबले की तरफ हो नज़रे सज्दे की जगह हो।

👉🏽अब नमाज़ पढ़ना है उस की निय्यत यानि दिल में उसका पक्का इरादा कीजिये साथ में ही ज़बान से भी कह लीजिये की ज्यादा अच्छा है।

👉🏽अब तकबीरे तहरीमा यानि "अल्लाहु अकबर" कहते हुए हाथ निचे लाइये और नाफ़ के निचे इस तरह बंधिये की सीधी हथेली की गद्दी उलटी हथेली के सिरे पर और बिच की 3 उंगलिया उलटी कलाई की पीठ पर और अंगूठा और छोटी ऊँगली कलाई के अगल बगल हो।

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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Part~02

👉🏽अब सना पढ़िये

👉🏽फिर तअव्वुज़ पढ़िये : "अउजुबिल्लाहि मिनशैतानी रज़िम"
(में अल्लाह तआला की पनाह में आता हु शैतान मरदूद से)

👉🏽फिर तस्मिया पढ़िये
"बीसमील्लाही-र्रहमा निर्रहीम"
(अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत महेरबान रहमत वाला)

👉🏽फिर सूरए फातिहा पढ़िये
सूरए फातिहा खत्म करके आहिस्ता से आमीन कहिये।

👉🏽फिर 3 आयात या एक बड़ी आयत जो 3 छोटी आयतो के बराबर हो या कोई सूरत मसलन सूरए इखलास पढ़िये।

👉🏽अब "अल्लाहु अकबर" कहते हुए रुकूअ में जाइये।

📨Continue...

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 148-150
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Part~03

👳🏽मर्द : रुकूअ में घुटनो को इस तरह हाथ से पकड़िये की हथेलिया घुटनो पर और उंगलिया अच्छी तरह फैली हुई हो।
👉🏽पीठ बिछी हुई और सर पीठ की सीध में हो, उचा निचा न हो
और नज़र क़दमो पर हो।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
👰🏽औरत : रुकूअ में थोडा झुकिये यानि इतना की घुटनो पर हाथ रख दे ज़ोर न दीजिये और घुटनो को न पकड़िये और उंगलिया मिली हुई और पाउ झुके हुए रखिये मर्दों की तरह सीधे मत रखिये।
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
👉🏽कम अज़ कम 3 बार रुकूअ की तस्बीह यानि "सुब्हान-रब्बियल-अज़ीम" (यानि पाक हे मेरा अज़मत वाला परवर दगार) कहिये।

👉🏽फिर तस्मिअ यानि "समी-अल्लाहु-लीमन-हमीदह" (यानि अल्लाह ने उसकी सुनली जिसने उसकी तारीफ़ की) कहते हुए बिलकुल सीधे खड़े हो जाइये,

👉🏽इस खड़े होने को क़ौमा कहते है।
👉🏽अगर आप अकेले नमाज़ पढ़ रहे है तो इसके बाद "रब्बना-व-लकल-हम्द" या "अल्लाहुम्म-रब्बना-व-लकल-हम्द" (यानि ऐ अल्लाह ! सब खुबिया तेरे लिये है) कहिये

👉🏽फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे में जाए।

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♻Part~04

👉🏽सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटने ज़मीन पर रखिये

👉🏽फिर दोनों हाथो के बिच में इस तरह सर रखिये की पहले नाक फिर पेशानी और ये ख़ास ख्याल रखिये की नाक की नोक नही बल्कि हड्डी लगे और पेशानी ज़मीन पर जम जाए,
नज़र नाक पर रहे
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
👳🏽मर्द : बाजुओ को करवटों से, पेट को रानो से और रनों को पिंडलियों से जुदा रखिये। (अगर सफ में हो तो बाज़ू करवटों से लगाए रखिये)

👉🏽दोनों पाउ की दसो उंगलियो का रुख इस तरह किब्ले की तरफ रहे की दसो उंगलियो के पेट ज़मीन पर लगे रहे।

👉🏽हथेलिया बिछी रहे और उंगलिया किब्ला रु रहे मगर कलाइयां ज़मीन से लगी हुई मत रखिये।
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👰🏽औरत : सज्दा सिमट कर कीजिये यानि बाजु करवटों से, पेट को रानो से और रनों को पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला दीजिये। और दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये।
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👉🏽अब कम अज़ कम 3 बार "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" (पाक है मेरा परवर दगार सबसे बुलंद) पढ़िये

👉🏽फिर इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 150-151
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Part~05

👉🏽सज्दे से इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे।
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👳🏽मर्द : फिर सीधा कदम खड़ा करके उसकी उंगलिया किब्ला रुख कर दीजिये और उल्टा क़दम बिछा कर उस पर खूब सीधे बेथ जाइये

👉🏽और हथेलिया बिछा कर रानो पर घुटनो के पास रखिये की दोनों हाथो की उंगलिया किब्ले की जानिब और उंगलियो के सिरे घुटनो के पास हो।
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👰🏽औरत : दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उलटी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उलटी रान रान के बिच में रखिये।
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👉🏽दोनों सजदों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते है।

👉🏽फिर कम अज़ कम एक बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार ठहरिये

✔यहा "अल्लाहुमग-फिरलि" (यानि ए अल्लाह मेरी मगफिरत फरमा) पढ़ना मुस्तहब है

👉🏽फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए पहले सज्दे की तरह दूसरा सज्दा कीजिये।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 151
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Post~06

👉🏽दूसरे सज्दे से खड़े होते हुए पहले सर उठाइए फिर हाथो को घुटनो पर रख कर पन्जो के बल खड़े हो जाइये।
👉🏽उठते वक़्त बिगैर मजबूरी ज़मीन पर हाथ से टेक मत लगाइये।
✔ये आप की एक रकअत पूरी हुई।

👉🏽अब दूसरी रकअत में "बिस्मिल्लाह" पढ़ कर अल हम्द और सूरह पढ़िये और पहले की तरह रुकूअ और सज्दे कीजिये,
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👳🏽मर्द : दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर बैठ जाइये
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👰🏽औरत : दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उल्टी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उल्टी रान के बिच में रखिये।
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👉🏽दो रकअत के दूसरे सज्दे के बाद बैठना कादह कहलाता है

👉🏽अब कादह में तशह्हुद (अत्तहिय्यात) पढ़िये।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 151-152
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Post~07

👉🏽क़ादह में तशह्हुद में "अशहदू अंल्ला-इलाह" के लाम के करीब पहुचे तो सीधे हाथ की बिच की ऊँगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुंगलिया (छोटी ऊँगली) और बिन्सर यानि उसके बराबर वाली ऊँगली को हथेली से मिला दीजिये और कलिमे की ऊँगली उठाइये

👉🏽मगर इसको इधर उधर मत हिलाये और "इला" पर ऊँगली गिरा दीजिये और फौरन सब उंगलिया सीधी कर लीजिये।

👉🏽अब अगर दो से ज्यादा रकअते पढ़नी है तो "अल्लाहु अकबर" कहते हुए खड़े हो जाइये।

👉🏽अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ रहे है तो तीसरी और चौथी रकअत में क़याम में "बिस्मिल्लाह और अल्हम्दु शरीफ पढ़िये, सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 152-153
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Post~07

👉🏽क़ादह में तशह्हुद में "अशहदू अंल्ला-इलाह" के लाम के करीब पहुचे तो सीधे हाथ की बिच की ऊँगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुंगलिया (छोटी ऊँगली) और बिन्सर यानि उसके बराबर वाली ऊँगली को हथेली से मिला दीजिये और कलिमे की ऊँगली उठाइये

👉🏽मगर इसको इधर उधर मत हिलाये और "इला" पर ऊँगली गिरा दीजिये और फौरन सब उंगलिया सीधी कर लीजिये।

👉🏽अब अगर दो से ज्यादा रकअते पढ़नी है तो "अल्लाहु अकबर" कहते हुए खड़े हो जाइये।

👉🏽अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ रहे है तो तीसरी और चौथी रकअत में क़याम में "बिस्मिल्लाह और अल्हम्दु शरीफ पढ़िये, सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं। (हा अगर इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे है तो किसी भी रकअत के क़याम में किरआत न कीजिये खामोश खड़े रहिये)

👉🏽और अगर सुन्नत व निफल हो तो सूरए फातिहा के बाद दूसरी सूरह भी मिलाइये।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 152-153
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🌹नमाज़ का तरीका🌹

♻Post~08

👉🏽फिर 4 रकअते पूरी करके कादए आखिरह में तशह्हुद के बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये,

👉🏽फिर दुआए मासुरा पढ़िये

👉🏽फिर नमाज़ खत्म करने के लिये पहले दाए कन्धे की तरफ मुह कर के "अस्सलामु अलैक वरहमतुल्लाह" कहिये और इसी तरह बाई तरफ।

👉🏽अब नमाज़ खत्म हुई।

⭕इस्लामी भइयो और बहनो के दिये हुए इस तरीकए नमाज़ में बाज़ बाते फ़र्ज़ है की इसके बगैर नमाज़ होगी ही नही,
⭕बाज़ बाते वाजिब की इस का जानबूझ कर छोड़ना गुनाह और तौबा करना और नमाज़ का फिर से पढ़ना वाजिब, और भूल कर छूटने से सज्दए सहव वाजिब
⭕और बाज़ सुन्नते मुअक्कदा है की जिस के छोड़ने की आदत बना लेना गुनाह है और
⭕बाज़ मुस्तहब है की जिस का करना सवाब और न करना गुनाह नही।
📘बहारे शरीअत, ही.3 स.66

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 154-155
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🌹नमाज़ की 6 शराईत❗

♻Part~01

1⃣तहारत :
👉🏽नमाज़ी का बदन, लिबास और जिस जगह नमाज़ पढ़ रहा है उस जगह का हर किस्म की नजासत से पाक होना ज़रूरी है।

2⃣सित्रे औरत :
👉🏽मर्द के लिये नाफ़ के निचे से ले कर घुटनो समेत बदन का सारा हिस्सा छुपा हुवा होना ज़रूरी है
👉🏽जब की औरत के लिये इन पाँच आज़ा : मुह की टिक्ली, दोनों हथेलिया और दोनों पाउ के तल्वो के इलावा सारा जिस्म छुपाना लाज़िमी है अलबत्ता अगर दोनों हाथ (गिट्टो तक) पाउ (तखनो तक) मुकम्मल ज़ाहिर हो तो एक मुफ़्ता बिहि क़ौल पर नमाज़ दुरुस्त है।
👉🏽अगर ऐसा बारीक कपड़ा पहना जिस से बदन का वो हिस्सा जिस का नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ है नज़र आए या जिल्द का रंग ज़ाहिर हो, नमाज़ न होगी।
👉🏽आजकल बारीक कपड़ो का रवाज बढ़ता जा रहा है। ऐसे बारीक कपड़े का पाजामा पहनना जिस से रान या सित्र का कोई हिस्सा चमकता हो इलावा नमाज़ के भी पहनना हराम है।
👉🏽मोटा कपड़ा जिस से बदन का रंग न चमकता हो मगर बदन से ऐसा चिपका हुवा हो की देखने से उज़्व की हैअत मालुम होती हो। ऐसे कपड़े से अगर्चे नमाज़ हो जाएगी मगर उस उज़्व की तरफ दुसरो को निगाह करना जाइज़ नहीं। ऐसा लिबास लोगो के सामने पहनना मना है और औरत के लिये ब दरजए औला मुमानअत।
👉🏽बाज़ ख्वातीन मलमल वग़ैरा की बारीक चादर नमाज़ में ओढ़ती है जिस से बालो की सियाही चमकती है या ऐसा लिबास पहनती है जिस से आज़ा का रंग नज़र आता है ऐसे लिबास में भी नमाज़ नहीं होती।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 155-156
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✔नमाज़ की 6 शराइत

♻Part~02

3⃣इस्तिक़्बाले किब्ला :
👉🏽नमाज़ में किब्ला यानि काबे की तरफ मुह करना।
🔹नमाज़ी ने बिला उज़्र जानबुझ कर किब्ले से सीना फेर दिया अगर्चे फौरन ही किब्ले की तरफ हो गया नमाज़ फासिद् हो गई वे अगर बिला क़स्द फिर गया और ब क़दर 3 बार "सुब्हान अल्लाह" कहने के वक्फे से पहले वापस किब्ला रुख हो गया तो फासिद् न हुई
📕बुखारी जी.1 स.497

👉🏽अगर सिर्फ मुह किब्ले से फेरा तो वाजिब है की फौरन किब्ले की तरफ मुह कर ले और नमाज़ न जाएगी मगर बिल उज़्र ऐसा करना मकरूहे तहरीमी है।
🔹अगर ऐसी जगह पर है जहां किब्ले की शनाख्त का कोई ज़रीआ नही है न कोई ऐसा मुसलमान है जिस से पूछ कर मालुम किया जा सके तो तहर्रि कीजिये यानि सोचिये और जिधर किब्ला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिये आप के हक़ में वोही किब्ला है।
🔹तहर्रि कर के नमाज़ पढ़ी बाद में मालुम हुवा की किब्ले की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी, नमाज़ हो गई लौटाने की हाजत नहीं।
🔹एक शख्स तहर्रि करके नमाज़ पढ़ रहा हो दूसरा उसकी देखा देखि उसी सम्त नमाज़ पढ़ेगा तो नही होगी दूसरे के लिये भी तहर्रि करने का हुक्म है।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 156-157
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🌹नमाज़ की 6 शराइत🌹

♻Part~03

4⃣वक़्त :
👉🏽जो नमाज़ पढ़नी है उसका वक़्त होना ज़रूरी है। मसलन आज की नमाज़े असर अदा करना है तो ये ज़रूरी है की असर का वक़्त शुरू हो जाए अगर वक़्ते असर शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी।
🔹उमुमन मसाजिद में निज़ामुल अवक़ात के नक़्शे आवेज़ा होते है उन में जो मुस्तनद तौकीट दा के मुरत्तब करदा और उलमए अहले सुन्नत के मुसद्क़ा हो उन से नमाज़ों के अवक़ात मालुम करने में शुक्त रहती है।
🔹इस्लामी बहनो के लिये अव्वल वक़्त में नमाज़े फ़ज्र अदा करना मुस्तहब है और बाक़ी नमाज़ों में बेहतर ये है की मर्दों की जमाअत का इन्तिज़ार करे, जब जमाअत हो चुके फिर पढ़े।

3⃣अवक़ाते मकरुहा :
👉🏽तुलुए आफताब से ले कर 20 मिनिट बाद तक
👉🏽गुरुबे आफताब से 20 मिनिट पहले।
👉🏽निस्फुन्न्हार यानि ज़हवए कुब्रा से ले कर ज़वाले आफताब तक।
इन तीनो अवक़ात में कोई नमाज़ जाइज़ नही न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ्ल न क़ज़ा।
👉🏽हा अगर उस दिन की नमाज़े असर नही पढ़ी थी और मकरुह वक़्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 157-158
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🌹नमाज़ की 6 शराइत🌹

♻Part~05

5⃣निय्यत :
♻part~01

👉🏽निय्यत दिल के पक्के इरादे का नाम है।
🔹ज़बान से निय्यत ज़रूरी नहीं अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होते हुए ज़बान से कह लेना बेहतर है। अरबी में कहना भी ज़रूरी नहीं उर्दू वग़ैरा किसी भी ज़बान में कह सकते है।
🔹निय्यत में ज़बान से कहने का एतिबार नही यानि अगर दिल में मसलन ज़ोहर की निय्यत हो और ज़बान से लफ़्ज़े असर निकला तब भी ज़ोहर की नमाज़ हो गई।
निय्यत का अदना दर्जा ये है की अगर उस वक़्त कोई पूछे की कौन सी नमाज़ पढ़ते हो ? तो फौरन बता दे। अगर हालत ऐसी है की सोच कर बताएगा तो नमाज़ न हुई।
🔹फ़र्ज़ नमाज़ में निय्यते फ़र्ज़ भी ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की आज की ज़ोहर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हु।
🔹दुरुस्त तरीन ये है की नफ्ल, सुन्नत और तरावीह में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है मगर एहतियात ये है की तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त की निय्यत करे और बाकी सुन्नतो में सुन्नत या सरकारे मदीना की पैरवी की निय्यत करे, इस लिये की बाज़ मशाइख इन में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत को नाकाफी क़रार देते है।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 158-159
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🌹नमाज़ की 6 शराइत🌹

♻Part~06

5⃣निय्यत :
♻Part~02

👉🏽नमाज़े नफ्ल में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है अगर्चे नफ्ल निय्यत में न हो।
👉🏽ये निय्यत की मुह मेरा किब्ला शरीफ की तरफ है शर्त नही।
👉🏽इक़्तिदा में मुक्तदि का इस तरह निय्यत करना भी जाइज़ है की जो नमाज़ इमाम की है वो नमाज़ मेरी है।
👉🏽नमाज़े जनाज़ा की निय्यत ये है "नमाज़ अल्लाह के लिये और दुआ इस मय्यित के लिये"।
👉🏽वाजिब में वाजिब की निय्यत करना ज़रूरी है और इसे मुअय्यन भी कीजिये मसलन ईदुल फ़ित्र, ईदुल अज़्हा, नज़्र, नमाज़े बाद तवाफ़ (वाजीबुत्तवाफ) या वो नफ्ल नमाज़ जिस को जानबुझ कर फासिद् किया हो की उसकी क़ज़ा भी वाजिब हो जाती है।

👉🏽सज्दए शुक्र अगर्चे नफ्ल है मगर उस में भी निय्यत ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए शुक्र करता हु।

👉🏽सज्दए सहव में भी "साहिबे नहरुल फाइक़" के नज़दीक निय्यत ज़रूरी है।यानि उस वक़्त दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए सहव करता हु।

6⃣तकबीरे तहरीमा :
👉🏽यानि नमाज़ को "अल्लाहु अक्बर" कह कर शुरू करना ज़रूरी है।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा  159-160
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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹

♻Part~01

1 तकबीरे तहरीमा, 2 क़याम, 3 किरआत, 4 रूकू, 5 सुजूद, 6 कादए आख़िरा, 7 खुरूजे बिसुन्इही।
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1⃣तकबीरे तहरीमा :
👉🏽दर हक़ीक़त तकबीरे तहरीमा (यानि तकबीरे ऊला) शराइते नमाज़ में से है मगर नमाज़ के अफआल से बिलकुल मिली हुई है इस लिये इसे नमाज़ के फराइज़ में भी शुमार किया गया है।

👉🏽मुक्तदि ने तकबीरे तहरीमा का लफ्ज़ "अल्लाह" इमाम के साथ कहा मगर "अक्बर" इमाम से पहले खत्म कर लिया तो नमाज़ न होगी।

👉🏽इमाम को रूकू में पाया और तकबीरे तहरिमा कहता हुवा रूकू में गया यानि तकबीर उस वक़्त खत्म हुई की हाथ बढ़ाए तो घुटने तक पहुच जाए, नमाज़ न होगी।
🔹ऐसे मौक़े पर क़ायदे के मुताबिक़ पहले खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लीजिये इस के बाद अल्लाहु अक्बर कहते हुए रूकू कीजिये, इमाम के साथ अगर रूकू में मामूली सी भी शिर्कत हो गई तो रकअत मिल गई अगर आप के रूकू में दाखिल होने से क़ब्ल इमाम खड़ा हो गया तो रकअत न मिली।

👉🏽जो शख्स तकबीर के तलफ़्फ़ुज़ पर क़ादिर न हो मसलन गूंगा हो या किसी और वजह से ज़बान बन्द हो गई हो उस पर तलफ़्फ़ुज़ लाज़िम नही, दिल में इरादा काफी है।
लफ़्ज़े अल्लाह को "आल्लाह" या अक्बर को "आक्बर" या "अकबार" कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर इनके माना फासिदा समझ कर जानबुझ कर कहे तो काफ़िर है।

👉🏽पहली रकअत का रूकू मिल गया तो तकबीरे ऊला की फ़ज़ीलत पा गया।

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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹

♻Part~02

2⃣क़याम :
♻Part~01

👉🏽कमी की जानिब क़याम की हद ये है की हाथ बढ़ाए तो घुटनो तक न पहुचे और पूरा क़याम ये है की सीधा खड़ा हो।

👉🏽क़याम इतनी देर तक है जितनी देर तक किरअत है। ब क़दरे किराअते फ़र्ज़ क़याम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब में वाजिब और ब क़दरे सुन्नत में सुन्नत।

👉🏽फ़र्ज़, वित्र्, इदैन और सुन्नते फ़र्ज़ में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिल उज़्रे सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी।

👉🏽खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नही बल्कि क़याम उस वक़्त साकित होगा की खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़े होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में क़तरा आता है या चौथाई सित्र खुलता है या किराअत से मजबूर महज़ हो जाता है। युही खड़ा हो सकता है मगर उस से मरज़ में ज्यादती होती अहै या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बर्दास्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े।

👉🏽अगर असा या बैसाखी खादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर पढ़े।

👉🏽अगर सिर्फ इतना खड़ा होना मुमकिन है की खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लेगा तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर "अल्लाहु अक्बर" कहले और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 162
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹

♻Part~02

2⃣क़याम
♻Part~02

👉🏽बाज़ मसाजिद में कुर्सियो का इंतिज़ाम भी होता है, बाज़ बूढ़े वग़ैरा उन पर बैठ कर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ते है हाला की चल क्र आए होते है, नमाज़ के बाद खड़े खड़े बातचीत भी कर लेते है, ऐसे लोग अगर बिगैर इजाज़ते शरई बैठ कर नमाज़े पढ़ेंगे तो उन की नमाज़े न होगी।

👉🏽खड़े हो कर पढ़ने की कुदरत हो जब भी बैठ कर नफ्ल पढ़ सकते है मगर खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है
🌾हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه से मरवी है, रहमते आलम ने इरशाद फ़रमाया :
👉🏽बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े हो कर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा षवाब) है।
📕सहीह मुस्लिम जी.1 स.253

👉🏽अलबत्ता उज़्र की वजह से बैठ कर पढ़े तो षवाब में कमी न होगी ये जो आज कल रवाज पद गया है की नफ्ल बैठ कर पढ़ा करते है ब ज़ाहिर ये मालुम होता है की शायद बैठ कर पढ़ने को अफज़ल समझते है, ऐसा है तो उन का ख्याल गलत है। वित्र् के बाद जो 2 रकअत नफ्ल पढ़ते है उन का भी यही हुक्म है की खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है।
📙बहारे शरीअत, जी.4 स.17

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 163
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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹

♻Part~04

3⃣किराअत
♻Part~01

👉🏽किराअत इस का नाम है की तमाम हरुफ़ मखारिज से अदा किये जाए की हर हर्फ़ गैर से सहीह तौर पर मुमताज़ हो जाए।

👉🏽आहिस्ता पढ़ने में भी ये ज़रूरी है की खुद सुन ले।

👉🏽अगर हरुफ़ तो सहीह अदा किये मगर इतने आहिस्ता की खुद न सुना और कोई रुकावट मसलन शोरो गुल या उचा सुनने का मरज़ भी नही तो नमाज़ न होइ।

👉🏽अगर्चे खुद सुनना ज़रूरी है मगर ये भी एहतियात रहे की आहिस्ता किराअत वाली नमाज़ों में किराअत की आवाज़ दुसरो तक न पहुचे, इसी तरह तस्बिहात वग़ैरा में भी ख्याल रखिये।

👉🏽नमाज़ के इलावा भी जहा कुछ कहना या पढ़ना मुक़र्रर किया है इस से भी ये मुराद है की कम अज़ कम इतनी आवाज़ हो की खुद सुन सके मसलन तलाक़ देने, जानवर ज़बह करने के लिये अल्लाह का नाम लेने में इतनी आवाज़ ज़रूरी है की खुद सुन सके।
🔹दुरुद शरीफ वग़ैरा अवराद पढ़ते हुए भी कम अज़ कम इतनी आवाज़ होनी चाहिये की खुद सुन सके जभी पढ़ना कहलाएगा।

👉🏽मुतलक़न एक आयत पढ़ना फ़र्ज़ की दो रकअतो में और वित्र्, सुन्नत और नवाफ़िल की हर रकअत में इमाम व मुनफरीद (तन्हा नमाज़ पढ़ने वाला) पर फ़र्ज़ है।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 164
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♻Part~05

3⃣किराअत
♻Part~02

👉🏽इमाम के पीछे मुक्तदि को नमाज़ में किराअत जाइज़ नहीं न सूरतुल फातिहा न आयत। चाहे आहिस्ता किराअत वाली नमाज़ हो या बुलंद आवाज़ में किराअत वाली नमाज़ हो।
🔹इमाम की किराअत मुक्तदि के लिये काफी है।

👉🏽अगर अकेले फ़र्ज़ नमाज़ प्कीढ रहा है और किसी रकअत में किराअत न की या फ़क़त एक में की नमाज़ फासिद् हो गई।

👉🏽फर्ज़ो में ठहर ठहर कर किराअत करे और तरावीह में मुतवस्सीत अंदाज़ पर और रात के नवाफ़िल में जल्द पढ़ने की इजाज़त है,
🔹मगर ऐसा पढ़े की समझ में आ सके यानी कम से कम मद का जो दरजा क़ारियो ने रखा है उस को अदा करे वरना हराम है, इस लिये के तरतील से क़ुरआन पढ़ने का हुक्म है।
🔹आज कल के अक्सर हुफ़्फ़ाज़ इस तरह पढ़ते है की मद का अदा होना तो बड़ी बात है कुछ लफ़्ज़ों के अलावा बाकी लफ्ज़ का पता ही नहीं चलता न तसहिहे हरुफ़ होती बल्कि जल्दी में लफ्ज़ के लफ्ज़ खा जाते है और इस पर तफाखुर होता है की फुला इस क़दर पढ़ता है ! हाला की इस तरह क़ुरआने मजीद पढ़ना हराम है।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 165
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♻Part~06

3⃣किराअत
♻Part~03

✔हरुफ़ की सहीह अदाएगी ज़रूरी है

👉🏽अक्सर लोग ط ت، س ص ث، ا ء ع، ه ح، ض ذ ظ ز में कोई फ़र्क़ नहीं करते। याद रखिये ! हरुफ़ बदल जाने से अगर माना फासिद् हो गए तो नमाज़ न होगी।
मसलन जिसने "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" में अज़ीम में ( ظ के बजाए ز ) पढ़ दिया नमाज़ जाती रही लिहाज़ा जिस से अज़ीम सहीह अदा न हो वो "सुब्हान रब्बियल करीम" पढ़े।

हवाला
क़ानूने शरीअत जी.1 स.119
नमाज़ के अहकाम, सफा 165-166
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♻Part~07

❗खबरदार❗खबरदार❗खबरदार❗

👉🏽जिस से हरुफ़ सहीह अदा नहीं होते उस के लिये थोड़ी देर मश्क़ कर लेना काफी नहीं बल्कि लाज़िम है की इन्हें सिखने के लिये रात दिन पूरी कोशिश करे

👉🏽और अगर सहीह पढ़ने वाले के पीछे नमाज़ पढ़ सकता है तो फ़र्ज़ है की उस के पीछे पढ़े या वो आयते पढ़े जिस के हरुफ़ सहीह अदा कर सकता हो। और ये दोनों सूरते न मुम्किन हों तो ज़मानए कोशिश में उस की अपनी नमाज़ हो जाएगी।

👉🏽आज कल काफी लोग इस मरज़ में मुब्तला है की न उन्हें कुरआन सहीह पढ़ना आता है न सिखने की कोशिश करते है। याद रखिये ! इस तरह नमाज़े बर्बाद होती है।

🖊हवाला
📘मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत, जी.3 स.116
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 166
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♻Part~08

4⃣रूकू

👉🏽इतना झुकना की हाथ बढ़ाए तो घुटने को पहुच जाए ये रूकू का अदना दर्जा है।

👉🏽और पूरा ये की पीठ सीधी बिछा दे।

🌴सुल्ताने मक्कए मुकर्रमा ﷺ का फरमाने अज़मत निशान है,
अल्लाह عزوجل बन्दे की उस नमाज़ की तरफ नज़र नहीं फ़रमाता जिस में रूकू व सुजूद के दरमियान पीठ सीधी न करे।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 167-168
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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹
♻Part~09

5⃣सुजूद
🌴सुल्ताने दो जहां ﷺ का फरमान है,
मुझे हुक्म हुवा की 7 हड्डियों पर सज्दा करू, मुंह और दोनों हाथ और दोनों घुटने और दोनों पन्जे और ये हुक्म हुवा की कपड़े और बाल न समेटु।
📕सही मुस्लिम, जी.1 स.193

👉🏽हर रकअत में दो बार सज्दा फ़र्ज़ है।

👉🏽सज्दे में पेशानी जमना ज़रूरी है। जमने के माना ये है की ज़मीन की सख्ती महसूस हो,
🔹अगर किसी ने इस तरह सज्दा किया की पेशानी न जमी तो सज्दा न होगा।
📕आलमगिरी, जी.1 स.70

👉🏽किसी नर्म चीज़ मसलन घास रुई या क़ालीन (carpet) वगैरा पर सज्दा किया तो अगर पेशानी जम गई यानि इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो सज्दा हो जाएगा वरना नहीं।

👉🏽आज कल मस्जिद में कार्पेट बिछाने का रवाज पड़ गया है, कार्पेट पर सज्दा करते वक़्त इस बात का ख़ास ख्याल रखना है की पेशानी अच्छी तरह जम जाए वरना नमाज़ न होगी। और नाक की हड्डी न दबी तो नमाज़ मकरुहे तहरीमि वाजीबुल ईआदा होगी।
📘बहरे शरीअत, जी.3 स.71

👉🏽कमानी दार (यानि स्प्रिंग वाले गद्दे) पर पेशानी खूब नहीं जमती लिहाज़ा नमाज़ न होगी।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 168-169
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🌹नमाज़ के 7 फराइज़🌹
♻Part~10

6⃣क़ादए आखिरह

👉🏽नमाज़ की रकअते पूरी करने के बाद इतनी देर तक बैठना की पूरी अत्तहिय्यात पढ़ ली जाए फ़र्ज़ है।
📕आलमगिरी, जी.1 स.70

👉🏽4 रकअत वाले फ़र्ज़ में चौथी रकअत के बाद क़ादह न किया तो जब तक पांचवी का सज्दा न किया हो बैठ जाए,
👉🏽और अगर पाचवी का सज्दा कर लिया या फ़ज्र में दूसरी पर नहीं बैठा तीसरी का सज्दा कर लिया या मगरिब में तीसरी पर नहीं बैठा और चौथी का सज्दा कर लिया
👉🏽इन सब सूरतो में फ़र्ज़ बातिल हो गए। मगरिब के इलावा और नमाज़ों में एक रकअत मज़ीद मिला ले।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 170
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~01

👉🏽तकबीरे तहरिमा में लफ्ज़ "अल्लाहु अक्बर" कहना।

👉🏽फर्ज़ो की तीसरी और चौथी रकअत के इलावा बाक़ी तमाम नमाज़ों की हर रकअत में अलहम्द शरीफ पढना, सूरत मिलाना या क़ुरआने पाक की एक बड़ी आयत जो छोटी तिन आयतो के बराबर हो या तिन छोटी आयते पढ़ना।

👉🏽अलहम्द शरीफ का सूरत से पहले पढ़ना।

👉🏽अलहम्द शरीफ और सूरत के दरमियान "आमीन" और बिस्मिलाह के इलावा कुछ और न पढ़ना।

👉🏽किराअत के फौरन बाद रूकू करना।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 171
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~02

👉🏽एक सज्दे के बाद बित्तरतिब दूसरा सज्दा करना

👉🏽तादिले अरकान यानि रूकू, सुजूद, क़ौमा और जल्सा में कम अज़ कम एक बार "सुब्हान अल्लाह" कहने की मिक़दार ठहरना।

👉🏽क़ौमा यानि रूकू से सीधे खड़े होना (बाज़ लोग कमर सीधी नहीं करते इस तरह उन का वाजिब छूट जाता है)

👉🏽जल्सा यानि दो सजदों के दरमियान सीधा बैठना (बाज़ लोग जल्द बाज़ी की वजह से बराबर सीधे बैठने से पहले ही दूसरे सज्दे में चले जाते है इस तरह उन का वाजिब तर्क हो जाता है चाहे कितनी ही जल्दी हो सीधा बैठना लाज़िमी है वरना नमाज़ मकरुहे तहरीमि वाजीबुल इआदा होगी)
यानि नमाज़ फिर से पढ़नी होगी

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 171
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~03

👉🏽क़ादए ऊला वाजिब है अगर्चे नमाज़े नफ्ल हो

👉🏽(दर अस्ल दो नफ्ल का हर क़ादह "क़ादए आखिरह" है और फ़र्ज़ है, अगर क़ादह न किया और भूल कर खड़ा हो गया तो जब तक उस रकअत का सज्दा न कर ले लौट आए और सज्दए सहव करे)
📘बहारे शरीअत, ही.4 स.52

👉🏽अगर नफ्ल की तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया तो चार पूरी कर के सज्दए सहव करे।

👉🏽सज्दए सहव इस लिये वाजिब हुवा कि अगर्चे नफ्ल में हर दो रकअत के बाद क़ादह फ़र्ज़ है मगर तीसरी या पांचवी रकअत का सज्दा करने के बाद क़ादए ऊला फ़र्ज़ के बजाए वाजिब हो गया।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 171-172
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~04

👉🏽फ़र्ज़ वित्र् और सुन्नते मुअक्कदा में अत्तहिय्यात के बाद कुछ न पढ़ना

👉🏽दोनों क़ादो में अत्तहिय्यत मुकम्मल पढ़ना। अगर एक लफ्ज़ भी छूटा तो वाजिब तर्क हो जाएगा और सज्दए सहव वाजिब होगा।

👉🏽फ़र्ज़, वित्र् और सुन्नते मुअक्क़दा के क़ादए ऊला में अत्तहिय्यत के बाद अगर बे ख्याली में "अल्लाहुम्म सल्ले आला मुहम्मदीन या अल्लाहुम्म सल्ले आला सय्यिदिना" कह लिया तो सज्दए सहव वाजिब हो गया और अगर जानबुझ कर कहा तो नमाज़ लैंटाना वाजिब है।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 172
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~05

👉🏽दोनों तरफ सलाम फेरते वक़्त लफ्ज़ "अस्सलामु" दोनों बार वाजिब है। लफ्ज़ "अलैकुम" वाजिब नहीं बल्कि सुन्नत है।

👉🏽वित्र् में तकबीरे क़ुनूत कहना।
👉🏽वित्र् में दुआए क़ुनूत पढ़ना।

👉🏽इदैन की 6 तकबीरे।
👉🏽इदैन में दूसरी रकअत की तकबीरे रूकू और इस तकबीर के लिए लफ़्ज़े "अल्लाहु अक्बर" होना।

👉🏽जहरी नमाज़ मसलन मगरिब व ईशा की पहली और दूसरी रकअत और फ़ज्र, जुमुआ, इदैन, तरावीह और रमज़ान के वित्र् की हर रकअत में इमाम को जहर (यानि इतनी बुलंद आवाज़ की दूसरे लोग यानि वो कि सफे अव्वल में है सुन सके) से किराअत करना।

👉🏽गैर जहरी (मसलन जोहर व असर) में आहिस्ता किराअत करना।

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🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा  172-173
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🌹नमाज़ के वाजिबात🌹
♻Part~06

👉🏽हर फ़र्ज़ व वाजिब का उस की जगह होना।

👉🏽रूकू हर रकअत में एक ही बार करना।

👉🏽सज्दा हर रकअत में दो बार करना।

👉🏽दूसरी रकअत से पहले क़ादह न करना।

👉🏽4 रकअत वाली नमाज़ में तीसरी रकअत पर क़ादह न करना।

👉🏽आयते सज्दा पढ़ी हो तो सज्दए तिलावत करना।

👉🏽सज्दए सहव वाजिब हुवा हो तो सज्दए सहव करना।

👉🏽दो फर्ज़ो  या दो वाजिब या फ़र्ज़ व वाजिब के दरमियान तिन तस्बीह की क़दर (यानि तिन बार सुब्हान अल्लाह कहने के मिक़दार) वक़्फ़ा न होना।

👉🏽इमाम जब किराअत करे ख्वाह बुलंद आवाज़ से हो या आहिस्ता आवाज़ से, मुक्तदि का चुप रहना।

👉🏽किराअत के सिवा तमाम वाजिबात में इमाम की पैरवी करना।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 173
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🌹नमाज़ की सुन्नते🌹
♻Part~01

🌿तकबीरे तहरिमा की सुन्नते🌿

👉🏽तकबीरे तहरिमा के लिये हाथ उठाना।
👉🏽हाथो की उनगलिया अपने हाल पर (normal) छोड़ना, यानि बिलकुल मिलाइये न इन में तनाव पौदा कीजिये।
👉🏽हथेलियो और उंगलियो का पेट किब्ला रु होना।

👉🏽तकबीर के वक़्त सर न झुकाना।
👉🏽तकबीर शुरू करने से पहले ही दोनों हाथ कानो तक उठा लेना।
👉🏽तकबीरे क़ुनूत और तकबीरे इदैन में भी येही सुन्नते है।

👉🏽इमाम का बुलंद आवाज़ से "अल्लाहु अक्बर" "समीअल्लाहु-लीमन-हामिदह" और सलाम कहना (हाजत से ज्यादा बुलंद आवाज़ करना मकरूह है)

👉🏽तकबीर के फौरन बाद हाथ बांध लेना सुन्नत है (बाज़ लोग तकबीरे ऊला के बाद हाथ लटका देते है या खोनिया पीछे की तरफ झुलाने के बाद हाथ बांधते है उन का ये फ़ैल सुन्नत से हट कर है)

🖊हवाला
📗दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.208, 229
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 173-174
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🌹नमाज़ की सुन्नते🌹
♻Part~02

🌱क़याम की सुन्नते🌱

👉🏽मर्द नाफ़ के निचे सीधे हाथ की हथेली उलटे हाथ की कलाई के जोड़ पर, छुनगलिया और अंगूठा कलाई के अगल बगल और बाक़ी उंगलिया हाथ की कलाई की पुश्त पर रखे
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औरत : उलटी हथेली सीने पर छाती के निचे रख कर उस के ऊपर सीधी हथेली रखिये।
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👉🏽फिर सना
👉🏽फिर तअव्वुज़ यानी आऊज़ो और तस्मिया यानि बिस्मिल्लाह पढ़ना।
👉🏽इन तीनो को एक दूसरे के फौरन बाद कहना।
👉🏽इन सब को आहिस्ता पढ़ना।
आमीन कहना, इसे भी आहिस्ता कहना।
👉🏽तकबीरे ऊला के फौरन बाद सना पढ़ना (नमाज़ में तअव्वुज़ व तस्मिया किराअत के ताबे है और मुक्तदि पर किराअत नहीं लिहाज़ा तअव्वुज़ व तस्मिया भी मुक्तदि के लिये सुन्नत नहीं। हा जिस मुक्तदि की की रकअत फौत हो गई हो वो अपनी बाक़ी रकअत अदा करते वक़्त दोनों को पढ़े।
👉🏽तअव्वुज़ सिर्फ पहली रकअत में है और तस्मिया हर रकअत के शुरू में सुन्नत है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 174
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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🌹नमाज़ की सुन्नते🌹
♻Part~03

☪रूकू की सुन्नते☪

👉🏽रूकू के लिये "अल्लाहु अक्बर" कहना।
🔹रूकू में 3 बार "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" कहना

👉🏽मर्द : घुटनो को हाथ से पकड़ना और उंगलिया खूब खुली रखना
🔹रूकू टांगे सीधी रखना (बज़ लोग कमान की तरह टेढ़ी कर लेते है ये मकरूह है)
🔹रूकू में पीठ अच्छी तरह बिछी जो हत्ता की अगर पानी का प्याला पीठ पर रख दिया जाए तो ठहर जाए
🔹सर उचा निचा न हो पीठ की सीध में हो। सरकारे मदीना फरमाते है " उसकी नमाज़ नाकाफी है जो रूकू व सुजूद में पीठ सीधी नही करता।
🌴हुज़ूर ﷺ फरमाते है की रूकू व सुजूद को पूरा करो खुदा की क़सम में तुम्हे अपने पीछे से देखता हु।
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👉🏽औरत : घुटनो पर हाथ रखना और उंगलिया कुशादा न करना
रूकू में थोडा झुके यानि सिर्फ इतना की हाथ घुटनो तक पहुच जाए पीठ सीधी न करे और घुटनो पर ज़ोर न दे फक्त हाथ रख दे और हाथो की उनगलिया मिली हुई रखे और पाउ झुके हुए रखे इस्लामी भाइयो की तरह सीधे न कर दे।
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👉🏽बेहतर ये है की "अल्लाहु अक्बर" कहता हुआ रूकू को जाए यानि जब रूकू के लिए झुकना शुरू करे और खत्मे रूकू पर तकबीर खत्म करे।
👉🏽इस मसाफत को पूरा करने के लिये अल्लाह عزوجل की लाम को बढ़ाए अक्बर की बा वग़ैरा किसी हर्फ़ को न बढ़ाए।

📨Continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 175
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♻Part~04

☪क़ौमा की सुन्नते☪

👉🏽रूकू से जब उठे तो हाथ लटका दीजिये
👉🏽रूकू से उठने में इमाम के लिये समी-अल्लाहु-लीमन-हामिदह कहना

👉🏽मुक्तदि के लिये रब्बना-लकल-हम्द या अल्लाहुम्म- रब्बना-वलकल-हम्द कहना

👉🏽तन्हा नमाज़ पढ़ने वाले के लिये दोनों कहना सुन्नत है

👉🏽तनहा नमाज़ पढ़ने वाला समी-अल्लाहु-लीमन-हामिदह कहता हुवा रूकू से उठे जब सीधा खड़ा हो चुके तो अब अल्लाहुम्म- रब्बना-वलकल-हम्द कहे।

📨Continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 176
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♻Part~05

✔सज्दे की सुन्नते

👉🏽सज्दे में जाने के लिये और सज्दे से उठने के लिये अल्लाहु अक्बर कहना

👉🏽सज्दे में कम अज़ कम 3 बार "सुब्हान रब्बियल आला" कहना

👉🏽सज्दे में हथेलिया ज़मीन पर रखना, हाथो की उंगलिया मिली हुई किब्ला रुख रखना।

👉🏽सज्दे में जाए तो ज़मीन पर पहले घुटने फिर हाथ फिर नाक फिर पेशानी रखना।

👉🏽जब सज्दे से उठे तो इस का उल्टा करना यानी पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ फिर घुटने उठाना।
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👳🏽मर्द : सज्दे में सुन्नत ये है कि बाज़ू करवटों से और राने पेट से जुदा हो
🔹कलाइयां ज़मीन पर न बिछाइये हा जब सफ में हो तो बाज़ू करवटों से जुदा न रखिये।
🔹सज्दे में दोनों पाउ की उंगलियो पेट इस तरह ज़मीन पर लगाइये के दसो उनगलिया किब्ला रुख रहे।
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👰🏽औरत : सिमट कर सज्दा करे यानि बाज़ू करवटों से पेट रानो राने पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला देना।

📨Continue...

🖊हवाला
📚मोमिन की नमाज़, सफा 176-177
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♻Part~06

✔जल्से की सुन्नते

👉🏽दोनों सजदों के बिच में बैठना इसे जल्सा कहते है।

👳🏽मर्द
👉🏽जल्से में सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर उस पर बैठना
👉🏽सीधे पाउ की उंगलिया किब्ला रुख करना
👉🏽दोनों हाथ रानो पर रखना
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👰🏽औरत
👉🏽दोनों पाउ सीधी जानिब निकाल देना और उलटी सुरीन पर बैठना
👉🏽दोनों हाथ रानो पर रखना

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 176
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♻Part~07

✔दूसरी रकअत के लिये उठने की सुन्नते

👉🏽जब दोनों सज्दे कर ले तो दूसरी रकअत के लिये पन्जो के बल,
👉🏽घुटनो पर हाथ रख कर खड़ा होना सुन्नत है।

👉🏽हा कमज़ोरी या पाउ में तकलीफ वग़ैरा मजबूरी की वजह से ज़मीन पर हाथ रख कर खड़े होने में हरज नहीं।

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📚नमाज़ के अहकाम, सफा 176
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♻part~08

✔क़दह की सुन्नते

👉🏽दूसरी रकअत के सजदों से फारिग हो कर बाय पाऊ बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रख कर बैठना और सीधा क़दम खड़ा रखना
सीधे पाऊ की उंगलिया किब्ला रुख करना

👉🏽सीधा हाथ सीधी रान पर और उल्टा हाथ उलटी रान पर रखना
👉🏽उंगलिया अपनी हालत पर यानि [normal] छोड़ना की न ज्यादा खुली हुई नबिल्कुल मिली हुई.
👉🏽उंगलियो के कनारे घुटनो के पास होंना, घुटने पकड़ना न चाहिए.

👉🏽अत्तहियात में शहादत पर इशारा करना.
👉🏽इसका तरीका ये है की छुंगलिया और पास वाली को बंद कर लीजिये, अंगूठे और बिच वाली का हल्क़ा बाधिये और "लाम" पर कलिमे की ऊँगली उठाइये इस को इधर उधर मत हिलाइये और "इला" पर रख दीजिये और सब उंगलिया सीधी कर लीजिये.

👉🏽दुसरे क़ायदे में भी इसी तरह बैठिये जिस तरह पहले में बैठे थे और अत्तहिय्यत भी पढ़िये।

👉🏽उसके बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये।

👉🏽नवाफ़िल और सुन्नते गैर मुअक्कदा के क़ायदे ए उला में भी अत्तहिय्यत और दुरुदे इब्राहिम पढ़ना सुन्नत है।

👉🏽अब दुआ ए मासुरा पढ़िये।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 177-178
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♻Part~09

✔सलाम फेरने की सुन्नते

👉🏽इन अलफ़ाज़ के साथ दो बार सलाम फेरना "अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह"

👉🏽पहले सीधी तरफ फिर उलटी तरफ मुह फेरना

👉🏽इमाम के लिये दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहना सुन्नत है मगर दूसरा पहले से कम आवाज़ में कहे।

👉🏽हर तरफ के सलाम में उस तरफ वाले मुक्तदियो और उन उलमा की निय्यत करे नीज़ जिस तरफ इमाम हो उस तरफ के सलाम में इमाम की भी निय्यत करे और अगर इमाम उस के ठीक सामने की सीध में हो तो दोनों सलामो में इमाम की भी निय्यत करे

👉🏽अकेले नमाज़ पढ़ने वाला किरामन कातिबिन् और उन मलाएका की निय्यत करे जिन को अल्लाह ने हिफाज़त के लिये मुक़र्रर किया है और निय्यत में कोई अदद मुअय्यन न करे।

👉🏽मुक्तदि का तमाम इन्तिक़ालात यानि रूकू सुजूद वग़ैरा इमाम के साथ होना।

📨Continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 178-179
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♻part~10

✔सलाम फेरने के बाद की सुन्नते

👉🏽सलाम के बाद इमाम के लिए सुन्नत ये है की दाई या बाई तरफ रुख कर ले,
👉🏽दाई तरफ अफज़ल है

👉🏽और मुक्तदियो की तरफ रुख कर के भी बैठ सकता है जब की आखिरी सफ तक भी कोई इस के सामने [यानि इस के चेहरे की सीध में] नमाज़ न पढ़ता हो.

👉🏽अकेले नमाज़ पढ़ने वाला बैगेर रुख बदले अगर वही दुआ मांगे तो जाइज़ है.

📨continue...

🖊हवाला
📕आलमगिरी, जी. 1 स. 77
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 179
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🌹नमाज़ की सुन्नते🌹
♻Part~11

✔सुन्नते बादिय्या की सुन्नते

👉🏽जिन फर्ज़ो के बाद सुन्नते है उन में बादे फ़र्ज़ कलाम न करना चाहिये अगरचे सुन्नत हो जाएगी मगर षवाब कम होगा और सुन्नतो में ताखीर भी मकरूह है इसी तरह बड़े बड़े अवरादो वज़ाइफ की भी इजाज़त नहीं।

👉🏽फर्ज़ो के बाद क़ब्ले सुन्नत मुख़्तसर दुआ पर क़नाअत चाहिये वरना सुन्नतो का षवाब कम हो जाएगा।
📘बहरे शरीअत, जी.3 स.81

👉🏽सुन्नत व फ़र्ज़ के दरमियान कलाम करने से दुरुस्त तरीन ये है कि सुन्नत बातिल नहीं होती अलबत्ता षवाब कम हो जाता है। यही हुक्म उस काम का है जो मुनाफिये तहरीमा है।

👉🏽सुन्नते वही न पढ़िये बल्कि दाए, बाए, आगे, पीछे हट कर पढ़िये या घर जा कर अदा किजिये।
📕आलमगिरी, जी.1 स.77

👉🏽सुन्नते पढ़ने के लिये घर जाने की वजह से जो फ़ासिला हुवा उस में हर्ज नही।
🚫जगह बदलने या घर जाने के लिये नमाज़ी के आगे से गुज़रना या उस की तरफ अपना चेहरा करना गुनाह है अगर निकलने की जगह न मिले तो वही सुन्नते पढ़ लीजिये।

📨Continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 179
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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🌹नमाज़ के मुस्तहब्बात🌹

👉🏽निय्यत के अलफ़ाज़ ज़बान से कह लेना. जब की दिल में निय्यत हाज़िर हो वरना तो नमाज़ होगी ही नही.
👉🏽कियाम में दोनों पंजो के दर मियान 4 उंगल का फ़ासिला होना.
👉🏽कियाम की हालत में सजदे की जगह,
👉🏽रूकू में दोनों  क़दमो की पुश्त पर,
👉🏽सजदे में नाक की तरफ,
👉🏽क़ायदे में गोद की तरफ,
👉🏽पहले सलाम में सीधे कंधे की तरफ और
👉🏽दूसरे सलाम में उलटे कंधे की तरफ नज़र करना.
👉🏽मुंफरीद को रुकूअ और सजदों में तिन बार से ज्यादा [मगर ताक अदद यानि 5, 7, 9] तस्बीह कहना.
👉🏽"हिल्या" बगैर में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक वगैरा से  है की इमाम के लिये तसबिहात 5 बार कहना मुस्तहब है.
👉🏽जिस को खासी आए उस के लिए मुस्तहसब है की जब तक मुमकिन हो न ख़ासे.
👉🏽जमाहि आए तो मुह बंद किये रहिये और न रुके तो हॉट दांत के निचे दबाइये. अगर इस तरह भी न रुके तो कियाम में सीधे हाथ को पुश्त से और गैर कियाम में उलटे हाथ की पुश्त से मुह ढांप लीजिये. जमाहि रोकने का बेहतरीन तरीका ये है की दिल में ख़याल कीजिये की सरकार मदीना और दीगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को जमाहि कभी नही आती थी. इन्शा अल्लाह फौरन रुक जाएगी.
👉🏽जब मुगब्बीर "हय्या-अ-ललफला" कहे तो इमाम व मुक्तदि सब का खड़ा हो जाना
👉🏽सजदा ज़मीन पर बिल हाइल होना.

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 182-183
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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☪गर्द आलूद पेशानी की फ़ज़ीलत☪

🌱हज़रते वासिला बिन अस्क़अ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ का फरमाने पुर सुरूर है :
👉🏽तुम में से कोई शख्स जब तक नमाज़ से फारिग न हो जाए अपनी पेशानी की मिटटी को साफ़ न करे क्यू कि कब तक उस की पेशानी पर नमाज़ के सजदे का निशान रहता है फ़रिश्ते उस के लिये दुआए मगफिरत करते रहते है.

💐मीठे और प्यारे इस्लिमी भाइयो ! दौरान नमाज़ पेशानी से मिटटी छुड़ाना बेहतर नहीं और मआज़अल्लाह तकब्बुर के तौर पर छुड़ाना गुनाह है. और अगर न छुड़ाने से तकलीफ होती होती हो या ख़याल बटता हो तो छुड़ाने में हर्ज नही. अगर किसी को रियाकारी का खौफ हो तो उसे चाहिये कि नमाज़ के बाद पशनो से मिटटी साफ़ कर ले.

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 183-184
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻part~01

👉🏽बात करना
👉🏽किसी को सलाम करना, सलाम का जवाब देना
👉🏽छिक का जवाब देना [नमाज़ में खुद को छिक आए तो खामोश रहे] अगर अलहम्दु लिल्लाह कह लिया तब भी हर्ज़ नही और अगर उस वक़्त हम्द न की तो फारिग हो कर कहे.
👉🏽खुश खबरी सुन कर जवाबन अलहम्दु लिल्लाह कहना.
👉🏽बुरी खबर [या किसी की मौत की खबर] सुन क्र इन्न-लिल्लाहि-व-इन्न-इलैहि-राजिउन कहना.
अल्लाह का नाम सुन क्र जवाबन जल जलालुहु कहना.
👉🏽सरकारे मदीना ﷺ का इसमें गिरामी सुन कर जवाबन दुरुद शरीफ पढ़ना.

📨continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.184
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻part~02

❗नमाज़ में रोना❗

👉🏽दर्द या मुसीबत की वजह से ये अलफ़ाज़ "आह" "ऊह" "उफ़" "तूफ" निकल गए या आवाज़ से ओने में हर्फ़ पैदा हो गए नमाज़ फासिद् हो गई.

👉🏽अगर रोने में सिर्फ आसु निकले आवाज़ व हरुफ़ नही निकले तो हर्ज नही.
📕आलमगिरी, जी.1 स. 101

👉🏽अगर नमाज़ में इमाम के पढंने की आवाज़ पर रोने लगा और "अरे" "नअम" "हा" ज़बान से जारी हो गया तो कोई हर्ज़ नही कि ये खुशुअ के बाइस है और अगर इमाम की खुश इल्हानि के सबब ये अलफ़ाज़ कहे तो नमाज़ टूट गई.
📗दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.456

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📚नमाज़ के अहकाम, स. 185
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♻part~03

❗नमाज़ में खांसना❗

👉🏽मरीज़ की ज़बान से बे इख़्तियार आह ! ऊह निकल नमाज़ न टूटी. युही छिक, जमाहि, खासी, डकार वगैरा में जितने हरुफ़ मजबूरन निकलते है मुआफ़ है.
📕दुर्रे मुखता, जी.1 स.416

👉🏽फूंकने में अगर आवाज़ न पैदा हो तो वो साँस की मिस्ल है और नमाज़ फासिद् नहीं होती अगर कसदन फूंकना मकरूह है और अगर दो हर्फ़ पैदा हो जेसे उफ़, तूफ तो नमाज़ फासिद् हो गई.
📙गुन्याह, स.427

👉🏽खनकार्ने में जब दो हरुफ़ ज़ाहिर हो जैसे अख तो मुफ्सिद् है. हा अगर यूज़र या सहीह मक़सद हो मसलन तबियत का तक़ाज़ा हो या आवाज़ साफ करने के लिए हो या इमाम को लुकमा देना मक़सूद हो या कोई आगे से गुज़र रहा हो उस को मुतवज्जेह करना हो इन वुजुहात की बिना पर खाँसने में कोई मुज़ायका नहीं.
📗दुर्रे मुख्तार, जी. 2 स. 455

📨continue...

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📚नमाज़ के अहकाम, स. 185
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻part~03

❗दौराने नमाज़ देख कर पढ़ना❗

👉🏽मुसहफ़ शरीफ से या किसी कागज़ से या मेहराब वग़ैरा में लिखा हुवा देख कर कुरआन शरीफ पढ़ना (हा अगर याद पर पढ़ रहे है और मुसहफ़ शरीफ या मेहराब वगैरा पर सिर्फ नज़र है तो हर्ज नही, अगर किसी कागज़ वगैरा पर आयात लिखी है उसे देखा और समझ मगर पढ़ा नहीं इस में भी कोई मुज़ायका नहीं.
📗रद्दलमोहतार, जी,2 स.464

👉🏽इस्लामी किताब या इस्लामी मज़्मून दौराने नमाज़ जानबूझ कर देखना और इरादतन समझना मकरूह है.
📕आलमगिरी, जी.1 स.101

👉🏽दुनयावी मज़्मून हो तो ज़्यादा कराहिय्यत है, लिहाज़ा नमाज़ में अपने क़रीब किताबे या तहरीर वाले पैकेट और शॉपिंग बेग, मोबाइल फोन या घड़ी वगैरा इस तरह रखिये कि उन की लिखाई पर नज़र न पड़े या इन पर रुमाल वगैरा उढ़ा दीजिये, निज दौराने नमाज़ सुतून वगैरा पर लगे हुए स्टिकर्ज़, इश्तिहार और फ्रेमो वगैरा पर नज़र डालने से भी बचिये.

📨continue...

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 186
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻part~04

❗अमले कसीर की तारीफ़❗

👉🏽अमले कसीर नमाज़ को फासिद् कर देता है जब कि न नमाज़ के आमाल से हो न ही इस्लाहे नमाज़ के लिए किया गया हो.
👉🏽जिस काम के करने वाले को दूर कसे देखने से ऐसा लगे कि ये नमाज़ में नही है बल्कि अगर गुमान भी ग़ालिब हो कि नमाज़ में नही तब भी अमले कसीर है.

👉🏽और अगर दूर से देखने वाले को शको शुबा है कि नमाज़ में है या नहीं तो अमले क़लिल है और नमाज़ फासिद् न होगी.

🖊हवाला
📗दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, जी. 2 स.464
📚नमाज़ के अहकाम, स. 186
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻part~05

❗दौराने नमाज़ लिबास पहनना❗

👉🏽दौराने नमाज़ कुरता या पाजामा पहनना या तहबंद बांधना.
📗रद्दल मोहतार, जी.2 स. 465

👉🏽दौराने नमाज़ सीत्र खुल जाना और इसी हालत में कोई रुक्न अदा करना या तीन बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार वक़्फ़ा गुज़र जाना.
📗दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, जी. 2 स. 467

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 187
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♻Part~06

❗नमाज़ में कुछ निगलना❗

👉🏽मामुलिसा भी खाना या पीना मसलन तिल बगैर चबाए निगल लिया। या क़तरा मुह में गिरा और निगल लिया।

👉🏽नमाज़ शुरू करने से पहले ही कोई चीज़ दातो में मौजूद थी उसे निगल लिया तो अगर वो चने के बराबर या इस से ज्यादा थी तो नमाज़ फासिद् हो गई और अगर चने से कम थी तो मकरूह।

👉🏽नमाज़ से क़ब्ल कोई मीठी चीज़ खाई थी अब उस के अजज़ा मुह में बाकी नहीं सिर्फ लुआबे दहन में कुछ असर रह गया है उस के निगलने से नमाज़ फासिद् न होगी।

👉🏽मुह में शकर वगैरा हो की घुल कर हलक मर पहुचती है नमाज़ फासिद् हो गई।

👉🏽दातो में खून निकला अगर थूक ग़ालिब है तो निगलने से फासिद् न होगी वरना हो जाएगी।
✔(ग़ालबे की लआमत ये है की अगर हलक में मज़ा महसूस हुवा तो नमाज़ फासिद् हो गई, नमाज़ तोड़ने में ज़ायके का एतिबार है और वुज़ू टूटने में रंग का, लिहाज़ा वुज़ू उस वक़्त टूटता है जब थूक सुर्ख हो जाए और अगर थूक ज़र्द है तो वुज़ू बाक़ी है)

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, सफा 187
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⭕नमाज़ तोड़नेवाली बाते⭕
♻Part~07

❗दौराने नमाज़ किब्ले से इन्हीराफ❗

👉🏽बिला उज़्र सीने को सम्ते काबा से 45 दर्जा यानी इस से ज़्यादा फेरना मुफ़्सीदे नमाज़ है, अगर उज़्र से हो तो मुफ्सिद् नहीं।

👉🏽मसलन हदस (वुज़ू टूट जाने) का गुमान हुवा और मुह फेरा ही था की गुमान की गलती ज़ाहिर हुई तो अगर मस्जिद से खारिज न हुवा हो नमाज़ फासिद् न होगी।

🖊हवाला
📙दुर्रेमुख्तार मअ रद्दलमोहतार, जी.2 स. 468
📚नमाज़ के अहकाम, स. 188
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻Part~08

❗नमाज़ में सांप मारना❗

👉🏽सांप बिच्छु को मारने से नमाज़ नहीं टूटती जब कि न तिन क़दम चलना पड़े न तीन ज़र्ब की हाजत हो वरना फासिद् हो जाएगी।

👉🏽सांप बिच्छु को मारना उस वक़्त मुबाह है जब कि सामने से गुज़रे और इज़ा देने का खौफ हो, अगर तक़लीफ़ पहुचाने का अंदेशा न हो तो मारना मकरूह है।
📕आलमगिरी, 1/103

👉🏽पै दर पै तीन बाल उखेडे या तीन जुए मारी या एक ही जू को तीन बार मारा नमाज़ जाती रही और अगर पै दर पै न हो तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर मकरूह है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.188
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♻Part~09

❗नमाज़ में खुजाना❗

👉🏽एक रुक्न में 3 बार खुजाने से नमाज़ फासिद् हो जाती है

👉🏽यानि यु कि खुजा कर हाथ हटा लिया फिर खुजाया फिर हाथ हटा लिया ये दो बार हुवा अगर अब इसी तरह तीसरी बार किया तो नमाज़ जाती रहेगी।

👉🏽अगर एक बार हाथ रख कर चन्द बार हरकत दी तो ये एक ही मर्तबा खुजाना कहा जाएगा।

🖊हवाला
📕आलमगीरी, 1/104
📚नमाज़ के अहकाम, स.188
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⭕नमाज़ तोड़ने वाली बाते⭕
♻Part~10

❗अल्लाहुअकबर कहने में गलतिया❗

👉🏽तकबीराते इन्तिक़ालात में अल्लाहुअकबर के अलिफ़ को दराज़ किया यानी "आल्लाह" या "आकबर" कहा या बा के बाद अलिफ़ बढ़ाया यानि "अकबार" कहा तो नमाज़ फासिद् हो गई
और अगर तकबीरे तहरिमा में ऐसा हुआ तो नमाज़ शुरू ही न हुई।

👉🏽अक्सर मुकब्बिर (जमाअत में इमाम की तकबिरात पर ज़ोर से तकबीरे कह कर आवाज़ पहुचाने वाले) ये गलतिया ज़्यादा करते है और यूँ अपनी और दुसरो की नमाज़े गारत करते है।
लिहाज़ा जो इन अहकाम को अच्छी तरह न जानता हो उसे मुकब्बिर नहीं बनना चाहिये।

👉🏽किराअत या अज़्कारे नमाज़ में ऐसी गलती जिस से माना फासिद् हो जाए नमाज़ फासिद् हो जाती है।

🖊हवाला
📗दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार, जी.2
📚नमाज़ के अहकाम, स. 189
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⭕नमाज़ के मकरुहाते तहरिमा⭕
♻Part~01

❗दाढ़ी, बदन या लिबास के साथ खेलना❗

👉🏽कपडा समेटना।
जैसा कि आज कल बाज़ लोग सज्दे में जाते वक़्त पाजामा वग़ैरा आगे या पीछे से उठा लेते है।

👉🏽अगर कपडा बदन से चिपक जाए तो एक हाथ से छुड़ाने में हरज नहीं।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.189
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♻Part~02

❗कंधो पर चादर लटकाना❗

👉🏽कपड़ा लटकाना मसलन सर या कंधे पर इस तरह से चादर या रुमाल वग़ैरा डालना कि दोनों कनारे लटकते हो,
👉🏽हा अगर हा अगर एक कनारा दूसरे कंधे पर डाल दिया और दूसरा लटक रहा है तो हरज नहीं।
📙दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.488

👉🏽आज कल बाज़ लोग एक कंधे पर इस तरह रुमाल रखते है की इस का एक सिरा पेट पर लटक रहा होता है और दूसरा पीठ पर। इस तरह नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमि है।
📘बहारे शरीअत, जी.3 स.165

👉🏽दोनों आस्तीनों में से अगर एक आस्तीन भी आधी कलाई से ज़्यादा चढ़ी हुई हो तो नमाज़ मकरुहे तहरीमि होगी।
📙दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.490

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.190
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⭕नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि⭕
♻पार्ट~03

❗तबई हाजत की शिद्दत❗

👉🏽पेशाब, पाखाना या रीह की शिद्दत होना।

👉🏽अगर नमाज़ शुरू करने से पहले ही शिद्दत हो तो वक़्त में वुसअत होने की सूरत में नमाज़ शुरू करना ही गुनाह है।

👉🏽हा अगर ऐसा है कि फरागत और वुज़ू के बाद नमाज़ का वक़्त खत्म हो जाएगा तो नमाज़ पढ़ लीजिये।

👉🏽और अगर दौराने नमाज़ ये हालत पैदा हुई तो अगर वक़्त में गुंजाइश हो तो नमाज़ तोड़ देना वाजिब है अगर इसी तरह पढ़ ली तो गुनाहगार होंगे।

🖊हवाला
📙रद्दल मोहतार, जी.2 स.492
📚नमाज़ के अहकाम, स.190
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♻हिस्सा~04

❗नमाज़ में कंकरिया हटाना❗

👉🏽दौराने नमाज़ कंकरिया हटाना मकरुहे तहरीमि है।

👉🏽हज़रते जाबिर फरमाते है, मेने दौराने नमाज़ कंकरी छूने से मुतअल्लिक़ बारगाहे रिसालत में सुवाल किया,
👉🏽इरशाद हुवा : एक बार। और अगर तू इस से बचे तो सियाह आँख वाली 100 ऊंटनीयो से बेहतर है।

👉🏽हा अगर सुन्नत के मुताबिक़ सज्दा अदा न हो सकता हो तो एक बार हटाने की इजाज़त है और अगर बिगैर हटाए वाजिब अदा न होता हो तो हटाना वाजिब है चाहे एक बार से ज़्यादा की हाजत पड़े।
🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स. 190
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🌀हिस्सा~05

❗उंगलिया चटखाना❗

👉🏽नमाज़ में उंगलिया चटखाना,
हज़रते अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है : इब्ने माजह की रिवायत है कि हुज़ूर ने फ़रमाया : नमाज़ में अपनी उंगलिया न चतखाया करो।
📕सुनन इब्ने माजह, जी.1 स.514 हदिष: 965

👉🏽मजीद एक रिवायत में है " नमाज़ के लिये जाते हुए उंगलिया चटखाने से मना फरमाया। इन अहादीस मुबारका से ये 3 अहकाम साबित हुए।
1⃣नमाज़ के दौरान और नमाज़ के लिये जाते हुए, नमाज़ का इंतज़ार करते हुए उंगलिया चटखाना मकरुहे तहरीमि है।
2⃣ख़ारिजे नमाज़ में बिगैर हाजत के उंगलिया चटखाना मकरुहे तन्ज़िहि है।
3⃣ख़ारिजे नमाज़ में किसी हाजत के सबब मसलन उंगलियो को आराम देने के लिये उनगलिया चटखाना मुबाह (बिला कराहत जाइज़) है
📕दुर्रे मुख्तार, रद्दल मोहतार, जी.1 स.409

👉🏽तशबिक यानि एक हाथ की उंगलिया दूसरे हाथ की उंगलियो में डालना।
🌴हुज़ूर ने फ़रमाया, जो मस्जिद के इरादे से निकले तो तशबिक यानी एक हाथ की उंगलिया दूसरे हाथ की उंगलियो में न डाले बेशक वो नमाज़ के हुक्म में है।
📒मस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, जी.6 स.320

👉🏽नमाज़ के लिये जाते वक़्त और नमाज़ के इंतज़ार में भी ये दोनों चीज़े मकरुहे तहरीमि है।

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📚नमाज़ के अहकाम, स. 191
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♻हिस्सा~06

❗कमर पर हाथ रखना❗

👉🏽कमर पर हाथ रखना नमाज़ के इलावा भी बिला उज़्र कमर पर (यानि दोनों पहलुओ के वस्त में) हाथ नहीं रखना चाहिए।
📗दुर्रे मुख्तार, रद्दल मोहतार, जी.2 स.494

🌴अल्लाह के महबूब ﷺ फरमाते है : कमर पर हाथ रखना जहन्नमियो की राहत है।
📗अलसुनन अलकबीर, जी.2 स.408 हदिष:3566

👉🏽यानी ये यहूदियो का फेल है कि वो जहन्नमी है वरना जहन्नमियो के लिये जहन्नम में क्या राहत है !
📘हाशिया बहारे शरीअत, जी.3 स.115

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.192
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♻हिस्सा~07

🌦आस्मान की तरफ देखना🌦

👉🏽निगाह आसमान की तरफ उठाना,
🌴हुज़ूर ﷺ फरमाते है : क्या हाल है उन लोगो का जो नमाज़ में आसमान की तरफ आँखे उठाते है इससे बाज़ रहे या उनकी आँखे उचक ली जाएगी।
📗सहीह बुखारी, जी.2 स.103

👉🏽इधर उधर मुह फेर कर देखना, चाहे पूरा मुह फेर या थोडा। मुह फेरे बिगैर सिर्फ आँखे फिरा कर इधर उधर बे ज़रूरत देखना मकरुहे तन्ज़ीहि है और नादिरन किसी गरजे सहीह के तहत हो तो हरज नहीं।
📘बहारे शरीअत, जी.3 स.194

🌴सरकारे मदीना ﷺ फरमाते है : जो बन्दा नमाज़ में है अल्लाह की रहमते खास्सा उस की तरफ मुतवज्जेह रहती है जब तक इधर उधर न देखे, जब उसने अपना मुह फेरा उस की रहमत भी फिर जाती है।
📕अबू दाऊद, जी.1 स.334 हदिष:909

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📚नमाज़ के अहकाम, स.193
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♻हिस्सा~08

❗नमाज़ी की तरफ देखना❗
♻हिस्सा~01

👉🏽किसी शख्स के मुह के सामने नमाज़ पढ़ना।
👉🏽दूसरे शख्स को भी नमाज़ी की तरफ मुह करना ना जाइज़ व गुनाह है, कोई पहले से चेहरा किये हुए हो और अब कोई उस के चेहरे की तरफ रुख कर के नमाज़ शुरू करे तो नमाज़ शुरू करने वाला गुनाहगार हुवा और इन नमाज़ी पर कराहत आई वरना चेहरा करने वाले पर गुनाह व कहारत है।
📗दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.496

👉🏽जो लोग जमाअत का सलाम फिर जाने के बाद अपने ऐन पीछे नमाज़ पढ़ने वाले की तरफ चेहरा कर के उस को देखते है या पीछे जाने के लिये उस की तरफ मुह कर के खड़े हो जाते है कि ये सलाम फेरे तो निकलू, या नमाज़ी के ठीक सामने खड़े हो कर एलान करते, दर्स देते, बयान करते है ये सब तौबा करे।

👉🏽नमाज़ में नाक और मुह छुपाना
📕आलमगीरी, जी.1 स.106

👉🏽बिला ज़रूरत खनकार (यानी बलगम वग़ैरा) निकालना।

👉🏽क़सदन जमाहि लेना। (अगर खुद बी खुद आए तो हरज नहीं मगर रोकना मुस्तहब है)
🌴हुज़ूर ﷺ फरमाते है : जब नमाज़ में किसी को जमाही आए तो जहा तक हो सके रोके कि शैतान मुह में दाखिल हो जाता है।
📔सहीह मुस्लिम, स.413

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह...

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♻हिस्सा~09

❗नमाज़ी की तरफ देखना❗
♻हिस्सा~02

👉🏽उल्टा कुरआन पढ़ना (मसलन पहली रकअत में "तब्बतयदा" पढ़ी और दूसरी में "इजाजा")

👉🏽किसी वाजिब को तर्क करना। मसलन क़ौमा और जल्सा में पीठ सीधी होने से पहले ही रूकू या दूसरे सज्दे में चला जाना।
👉🏽इस गुनाह में मुसलमानो की अच्छी खासी तादाद मुलव्व्स नज़र आती है, यद् रखिये ! जितनी भी नमाज़े इस तरह पढ़ी होगी सब का लौटाना वाजिब है।

👉🏽क़याम के इलावा किसी और मौके पर कुरआन पढ़ना।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

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♻हिस्सा~10

❗नमाज़ी की तरफ देखना❗
♻हिस्सा~03

👉🏽किराअत रूकू में पहुच कर खत्म करना।

👉🏽इमाम से पहले मुक्तदि ला रूकू व सुजूद वग़ैरा में चला जाना या इससे पहले सर उठाना।
📗रद्दलमोहतार, जी.2 स.513

👉🏽हज़रते इमाम मालिक, हज़रते अबू हुरैरा से रिवायत करते है कि नबी ने फ़रमाया : जो इमाम से पहले सर उठाता और झुकाता है उस की पेशानी के बाल शैतान के हाथ में है।

👉🏽हज़रते अबू हुरैरा से रिवायत है, नबी फरमाते है : क्या जो शख्स इमाम से पहले सर उठाता है इस से डरता नहीं की अल्लाह उसका सर गधे का सर कर दे।
📕सहीह मुस्लिम, 1/181

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.194-195
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♻हिस्सा~11

❗गधे जैसा मुंह❗

👉🏽हज़रते इमाम न-ववी अलैरहमा हदिष लेने के लिये एक बड़े मशहूर शख्स के पास दिमश्क़ गए। वो पर्दा डाल कर पढ़ाते थे, मुद्दतो तक उन के पास बहुत कुछ पढ़ा मगर उन का मुंह न देखा, जब ज़मानए दराज़ गुज़रा और उन मुहद्दिस साहिब ने देखा कि इन को इल्मे हदिष की बहुत ख्वाहिश है तो एक रोज़ पर्दा हटा दिया !

👉🏽देखते क्या है कि उनका गधे जैसा मुंह है !! उन्होंने फ़रमाया, साहिब ज़ादे ! दौराने जमाअत इमाम पर सबक़त करने से डरो कि ये हदिष जब मुझ को पहुची मेने इसे मुस्तबअद जाना और मेने इमाम पर क़सदन सबक़त की तो मेरा मुह ऐसा हो गया जैसा तुम देख रहे हो।

🖊हवाला
📘बहारे शरीअत, जी.3 स.95
📚नमाज़ के अहकाम, स.195
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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⭕नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि⭕
♻हिस्सा~12

👉🏽दूसरा कपड़ा होने के बा वुजूद सिर्फ पाजामा या तहबन्द में नमाज़  पढ़ना।

👉🏽किसी आने वाले शनासा की खातिर इमाम का नमाज़ को तूल देना (आलमगिरी, 1/107) अगर उस की नमाज़ पर इआनत (मदद) के लिये एक दो तस्बीह की क़दर तूल दिया तो हरज नहीं।

👉🏽ऐसी ज़मीन जिस पर ना जाइज़ क़ब्ज़ा किया हो या पराया खेत जिस में ज़राअत मौजूद है या जूते हुए खेत में या क़ब्र के सामने जब कि क़ब्र और नमाज़ी के बिच में कोई चीज़ हाइल न हो नमाज़ पढ़ना।
📕आलमगिरी, 1/107

👉🏽कुफ़्फ़ार के इबादत खाने में नमाज़ पढ़ना बल्कि इन में जाना भी मम्नुअ है।
📗रद्दलमोहतार, 2/53

👉🏽कुरते वग़ैरा के बटन खुले होना जिस से सीना खुला रहे मकरुहे तहरीमि है, हा अगर निचे कोई और कपड़ा है जिस से सीना नहीं खुला तो मकरुहे तन्ज़ीहि है।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, 196
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♻हिस्सा~13

❗नमाज़ और तस्वीर❗

👉🏽जानदार की तस्वीर वाला लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमि है, नमाज़ के इलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना जाइज़ नहीं।
📗दुर्रेमुखतार 2/502

👉🏽नमाज़ी के सर पर यानी छत पर या सज्दे की जगह पर या आगे या दाए या बाए जानदार की तस्वीर आवेज़ा होना मकरुहे तहरीमि है और पीछे होना भी मकरूह है, मगर गुज़श्ता सूरतो से कम। अगर तस्वीर फर्श पर है और उस और सज्दा नहीं होता तो कराहत नहीं। अगर तस्वीर गैर जानदार की है जेसे दरिया पहाड़ वगैरा तो इस में कोई मुज़ायक़ा नहीं। इतनी छोटी तस्वीर हो जिसे ज़मीन पर रख कर खड़े हो कर देखे तो आज़ा की तफ़सील न दिखाई दे (जैसा के उमुमन तवाफ़े काबा के मंज़र की तस्वीरें बहुत छोटी होती है ये तसावीर) नमाज़ के लिये बाइसे कराहत नहीं है।
📔गुण्यतुल मुस्तमलि, 347
📗दुर्रेमुखतर, 2/503

👉🏽तवाफ़ की भीड़ में एक भी चेहरा वाज़ेह हो गया तो मुमानअत बाक़ी रहेगी। चेहरे के इलावा मसलन हाथ, पाउ, पीठ, चेहरे का पिछला हिस्सा या ऐसा चेहरा जिस की आँखे, नाक, होठ वग़ैरा सब आज़ाए मिटे हुए हो ऐसी तसावीर में कोई हर्ज़ नही।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.196
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♻हिस्सा~01

👉🏽दूसरे कपड़े मुयस्सर होने के बा वुजूद कामकाज के लिबास में नमाज़ पढ़ना।
📔गुण्यतुल मुस्तमलि, 337

👉🏽मुह में कोई चीज़ लिये हुए होना। अगर इस की वजह से किराअत ही न हो सके या ऐसे अलफ़ाज़ निकले कि जो क़ुरआन के न हो तो नमाज़ ही फासिद हो जाएगी।
📔दुर्रेमुख्तार, रद्दलमोहतार

👉🏽सुस्ती से नंगे सर नमाज़ पढ़ना।
📕आलमगिरी, 1/106

👉🏽नमाज़ में टोपी या इमाम शरीफ गिर पड़े तो उठा लेना अफज़ल है जब कि अमले कसीर की हाजत न पड़े वरना नमाज़ फासिद् हो जाएगी। और बार बार उठाना पड़े तो छोड़ दे और उठाने से खुशुओ ख़ुज़ूअ मक़सूद हो तो उठाना अफज़ल है।
📗दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/194

👉🏽अगर कोई नंगे सर नमाज़ पढ़ रहा हो या उसकी टोपी गिर पड़ी हो तो उसको दूसरा शख्स टोपी न पहनाए।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.197
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♻हिस्सा~02

👉🏽रूकू या सज्दे में बिला ज़रूरत 3 बार से कम तस्बीह कहना (अगर वक़्त तांग हो या ट्रेन चल पड़ने के खौफ से हो तो हरज नहीं। अगर मुक्तदि 3 तस्बीह न कहने पाया था कि इमाम ने सर उठा लिया तो इमाम का साथ दे)

👉🏽नमाज़ में पेशानी से ख़ाक या घास छुड़ाना। हा अगर इन की वजह से नमाज़ में ध्यान बटता हो तो छुड़ाने में हरज नही।
📕आलमगिरी, 1/106

👉🏽सज्दे वग़ैरा में उंगलिया किब्ले से फेर देना।
📕आलमगिरी, 1/119

👉🏽मर्द का सज्दे में रान को पेट से चिपका देना।
📕आलमगिरी, 1/109

👉🏽नमाज़ में हाथ या सर के इशारे से सलाम का जवाब देना।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.198
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♻हिस्सा~03

👉🏽नमाज़ में बिला उज़्र चार जानू यानी चोकड़ी मार कर बैठना।
📔गुन्यातुल मुस्तमलि, 339

👉🏽अंगड़ाई लेना और इरादतन खाँसना, खनकारना।
📔गुन्यातुल मुस्तमलि, 340
अगर तबीअत चाहती हो तो हरज नही

👉🏽सज्दे में जाते हुए घुटने से पहले बिला उज़्र हाथ से क़ब्ल घुटने ज़मीन से उठना।
👉🏽रूकू में सर को पीठ से उचा निचा करना।
📔गुन्यातुल मुस्तमलि, 335,338

📨बाक़ी कल किं पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.198
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♻हिस्सा~04

👉🏽नमाज़ में सना, तअव्वुज़, तस्मिया और आमीन ज़ोर से कहना।
📕आलमगिरी, 1/107

👉🏽बिगैर उज़्र दिवार वगैरा पर टेक लगाना
📕एज़न

👉🏽रूकू में गुटनो पर और सजदों में ज़मीन पर हाथ न रखना, दाए बाए झूमना। और कभी दाए पाउ पर और कभी बाए पाउ पर ज़ोर देना के सुन्नत है।
📘बहारे शरीअत, 3/202
👉🏽और सज्दे के लिए जाते हुए सीधी तरफ ज़ोर देना और उठते वक़्त उलटी तरफ ज़ोर देना मुस्तहब है
📘बहारे शरीअत, 3/101

👉🏽नमाज़ में आँखे बंद रखना।
हा अगर खुशुअ आता हो तो आँखे बंद रखना अफज़ल है।
📗दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/499

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.199
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♻हिस्सा~05

👉🏽जलती आग के सामने नमाज़ पढ़ना शमा या चराग सामने हो तो हर्ज़ नहीं।
📕आलमगिरी, 1/108

👉🏽ऐसी चीज़ के सामने नमाज़ पढ़ना जिससे ध्यान बटे मसलन ज़ीनत और लहवो लअब वग़ैरा।
📕रद्दलमोहतर, 1/439

👉🏽नमाज़ के लिए दौड़ना।
👉🏽कूड़ा डालने की जगह।
👉🏽मज़्बह यानी जहा जानवर जबह किये जाते हो वहा।
👉🏽इस्तबल यानी घोड़े बंधने की जगह।
👉🏽गुस्ल खाना, मवेशी खाना खुसुसन जहां ऊंट बांधे जाते हो।
👉🏽इस्तिन्जा खाने की छत।

📨बाक़ी कल किं पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.199
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♻हिस्सा~06

👉🏽सहरा में बिला सुतरा के जब कि आगे से लोगो के गुज़रने का इम्कान हो इन जगहों पर नमाज़ पढ़ना।
📔गुन्यातुल मुस्तमली 339

👉🏽बिगैर उज़्र हाथ से माखी मच्छर उड़ाना (नमाज़ में जू या मच्छर इज़ा देते हो तो पकड़ कर मार डालने में कोई हरज नही जब की अमले कसीर से न हो)
📔बहारे शरीअत

👉🏽हर वो अमले कलिल जो नमाज़ी के लिये मुफीद हो, जाइज़ है और जो मुफीद न हो वो मकरूह
📕आलमगिरी, 1/109

👉🏽उल्टा कपड़ा पहनना या ओढ़ना।
📒फतावा रज़विय्या, 7/358
फतावा अहले सुन्नत गैर मतबुआ

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.199
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❓हाफ आस्तीन में नमाज़ पढ़ना कैसा❓

👉🏽आधी आस्तीन वाला कुरता या क़मीज़ पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तन्ज़ीहि है जब कि उसके पास दूसरे कपड़े मौजूद हो।

👉🏽मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जिसमे पास कपड़े मौजूद हो और सिर्फ आधी आस्तीन या बनियान पहन कर नमाज़ पढ़ता है तो कराहते तन्ज़ीहि है और कपड़े मौजूद नहीं तो कराहत भी नहीं।

🖊हवाला
📕फतवा रज़विय्या, 1/193
📚नमाज़ के अहकाम, स.200
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🌹ज़ोहर के आखिरी दो नफ्ल के भी क्या कहने🌹

👉🏽ज़ोहर के बाद चार रकअत पढ़ना मुस्तहब है कि हदीसे पाक में फ़रमाया जिसने ज़ोहर से पहले चार और बाद में चार पर मु हाफ़ज़त की अल्लाह तआला उस पर आग हराम फ़रमा देगा।

👉🏽अल्लामा सय्यिद तहतावी अलैरहमा फरमाते है कि सिरे से आग में दाखिल ही न होगा और उसके गुनाह मिटा दिये जाएंगे और उस पर (बन्दों की हक़ तलफियो के) जो मुतालबात है अल्लाह तआला उसके फरीक को राज़ी कर देगा या ये मतलब है कि ऐसे कामो की तौफ़ीक़ देगा जिन पर सज़ा न हो।

👉🏽अल्लामा शामी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि उसके लिये बिशारत ये है कि सआदत पर उस का खातिमा होगा और दोज़ख में न जाएगा।
📔शामी 2/542

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.200
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🌹इमामत का बयान🌹
♻हिस्सा~01

👉🏽मर्द गैर माज़ूर के इमाम के लिये 6 शर्ते है :-

1⃣सहीहुल अक़ीदा मुसलमान होना

2⃣बालिग़ होना

3⃣आकिल होना

4⃣मर्द होना

5⃣किराअत सहीह होना

6⃣माज़ूर न होना

🖊हवाला
📗दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार, 2/284
📚नमाज़ के अहकाम, स.201
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🌹इमामत का बयान🌹
♻हिस्सा~02

✔इक़्तिदा की शराइत

👉🏽निय्यत करना

👉🏽इक़्तिदा और इस निय्यते इक़्तिदा का तहरिमा के साथ होना या तकबीरे तहरिमा से पहले होना बशर्ते कि पहले होने की सूरत में कोई अजनबी काम निय्यत व तहरिमा में जुदाई करने वाला न हो।

👉🏽इमाम व मुक्तदि दोनो का एक मकान में होना। दोनी की नमाज़ एक हो या इमाम की नमाज़, नमाज़े मुक्तदि को अपने ज़िम्न में लिये हुए हो।

👉🏽इमाम की नमाज़ का मज़्हबे मुक्तदि पर सहीह होना और इमाम व मुक्तदि दोनों का इसे सहीह समझना।

👉🏽शराइत की मौजूदगी में औरत का बराबर न होना।

👉🏽मुक्तदि का इमाम से मुक़द्दम (यानी आगे) न होना।

👉🏽इमाम के इन्तिक़ालात का इल्म होना, इमाम का मुक़ीम या मुसाफिर होना मालुम होना।

👉🏽अरकान की अदाएगी में शरीक होना, अरकान की अदाएगी में मुक्तदि इमाम के मिस्ल हो या कम

👉🏽युही शराइत में मुक्तदि का इमाम से ज़ाइद न होना।

🖊हवाला
📗रद्दलमोहतार, 2/684
📚नमाज़ के अहकाम, स.202
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🌹इमामत का बयान🌹
♻हिस्सा~03

👉🏽इक़ामत के बाद इमाम साहिब एलान करे

👉🏽अपनी एड़िया, गर्दने और कंधे एक सीध में कर के सफ सीधी कर लीजिये।

👉🏽दो आदमियो के बिच में जगह छोड़ना गुनाह है,

👉🏽कंधे से कंधा मस यानि टच किया हुवा रखना वाजिब, सफ सीधी रखना वाजिब और जब तक अगली सफ कोने तक पूरी न हो जाए जानबुझ कर पीछे नमाज़ शुरू कर देना तर्के वाजिब, हराम और गुनाह है।

👉🏽15 साल से छोटे ना बालिग़ बच्चों को स्फो में खड़ा न रखिये, इन्हें कोने में भी न भेजिये छोटे बच्चों की सफ सद से आखिर में बनाइये।

🖊हवाला
📔फतावा रज़विय्या, 7/219 ता 225
📚नमाज़ के अहकाम, स.202
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🌹 _*इमामत का बयान*_ 🌹
♻हिस्सा~04

_*जमाअत का बयान*_

👉🏽आकिल, बालिग़, आज़ाद  और क़ादिर पर मस्जिद की जमाअते ऊला वाजिब है बिला उज़्र एक बार भी छोड़ने वाला गुनाहगार और मुसरहिके सज़ा है

👉🏽और कई बार तर्क करे तो फासिद् मर्दुदुश्शहादह (यानी उसकी गवाही क़ाबिले क़बूल नहीं) और उसको सख्त सज़ा दी जाए अगर पड़ोसियों ने खामोशी इख्तियार की तो वो भी गुनाहगार।
📗दुर्रे मुख्तार व रद्दलमोहतार, 2/287

👉🏽बाज़ फ़ुक़हाए किराम फरमाते है कि जो शख्स अज़ान सुन कर घर में इक़ामत का इंतज़ार करता है तो वो गुनाहगार होगा और उसकी गवाही क़बूल नहीं।

🖊हवाला
📚नमाज़ के अहकाम, स.203
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_*तर्के जमाअत के आज़ार*_

👉🏽मरीज, जिसे मस्जिद तक जाने में मशक़्क़त हो। अपाहज, जिसका पाउ कट गया हो, जिस पर फालिज गिरा हो,

👉🏽इतना बुढा कि मस्जिद तक जाने से आजिज़ हो, अँधा, अगर्चे अंधे के लिये कोई ऐसा हो को हाथ पकड़ कर मस्जिद तक पहुचा दे,

👉🏽सख्त बारिश और सदिद कीचड़ का हाइल होना, सख्त सर्दी, सख्त अँधेरा, आंधी,

👉🏽माल या खाने के ज़ाए होने का अंदेशा हो, क़र्ज़ ख्वाह का खौफ है और ये तंगदस्त है, ज़ालिम का खौफ

👉🏽पखाना, पेशाब या रीह की हाजते शदीद है,
👉🏽खाना हाज़िर है और नफ़्स को इस की ख्वाहिश है।

👉🏽काफिला चले जाने का अंदेशा है।

👉🏽मरीज़ की तिमार दारी, कि जमाअत के लिये जाने से इसको तकलीफ होगी और घबराएगा।

👆🏽ये सब तर्के जमाअत के लिये उज़्र है।

🖊हवाला
📗दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतर, 2/292
📚नमाज़ के अहकाम, स.203
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_*कुफ़्र पर खातिमे का खौफ*_

➡इफ्तार पार्टी, दावत, नियाज़ और नात ख्वानी वग़ैरा की वजह से फ़र्ज़ नमाज़ों की मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करने की हरगिज़ इजाज़त नहीं,
➡जो लोग बिल उज़्रे शरई बा वुजूद कुदरत फ़र्ज़ नमाज़ मस्जिद में जमाअते ऊला के साथ अदा नहीं करते उनको डर जाना चाहिये कि
🌴नबी ﷺ का फरमान है :
➡जिसको ये पसन्द हो की कल अल्लाह तआला से मुसलमान हो कर मिले तो वो इन पांच नमाज़ों की जमाअत के साथ वहां पाबन्दी करे जहा अज़ान दी जाती है क्यूकी अल्लाह ने तुम्हारे नबी के लिये सुनने हुदा मशरू की और ये नमाज़े भी सुनने हुदा से है और अगर तुम अपने नबी की सुन्नत छोड़ दोगे तो गुमराह हो जाओगे।
📕 *मुस्लिम शरीफ* 1/232

⤴इस हदिष से इशारा मिलता है कि जमाअते ऊला की पाबन्दी करने वाले का खातिमा बिलखैर होगा और जो बिला शरई मजबूरी के मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करता है उसके लिये मआज़अल्लाह कुफ़्र पर खातिमे का खौफ है।

*या रब्बे मुस्तफा ! हमें पाचो नमाज़े मस्जिद की जमाअते ऊला में पहली सफ में तकबीरे ऊला के साथ अदा करने की हमेशा सआदत नसीब फ़रमा।*
_*आमीन बिजाहिन्नबीय्यिल अमिन*_

✍🏽हवाला
📚 *नमाज़ के अहकाम* स.204
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*नमाज़े वित्र् के मदनी फूल*

➡नमाज़े वित्र् वाजिब है, अगर ये छूट जाए तो इसकी क़ज़ा लाज़िम है।
📗दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/532

➡वित्र् का वक़्त ईशा के फर्ज़ो के बाद से सुबह सादिक़ तक है, जो सो कर उठने पर क़ादिर हो उस के लिये अफज़ल है कि पिछली रात में उठ कर पहले तहज्जुद अदा करे फिर वित्र्।
📓गुन्यातुल मुस्तमली, 403

➡इसकी 3 रकअत है, इसमें क़ादए ऊला वाजिब है सिर्फ तशह्हुद पढ़ कर खड़े हो जाइये।

➡तीसरी रकअत में किराअत के बाद तकबीरे क़ुनूत कहना वाजिब है।

➡जिस तरह तकबीरे तहरिमा कहते हा इसी तरह पहले हाथ कानो तक उठाये फिर अल्लाहु अक्बर कहिये, फिर हाथ बांध कर दुआए क़ुनूत पढ़िये।

➡दुआए क़ुनूत के बाद दुरुद शरीफ पढ़ना बेहतर है
📓गुन्यातुल मुस्तमली, 402

➡जो दुआए क़ुनूत न पढ़ सके वो ये पढ़े 👇🏽
*अल्लाहुम्म रब्बना आतिना फिद-दुन्या हसनतव वफिल आखिरती हसनतव वक़ीन अज़ाबन्नार*

➡अगर दुआए क़ुनूत पढ़ना भूल गए और रूकू में चले गए तो वापस न लौटीये बल्कि सजदए सहव कर लीजिये।
📕आलमगिरी 1/110

➡वित्र् जमाअत से पढ़ी जा रही हो और मुक्तदि क़ुनूत से फारिग न हुवा था कि इमाम रूकू में चला गया तो मुक्तदि भी रूकू में चला जाए।
📕आलमगिरी 1/110

✍🏽 _*हवाला*_
📚 *नमाज़ के अहकाम* स.206
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_*सजदए सहव*_
⤵हिस्सा~01

➡वाजीबाते नमाज़ में से अगर कोई वाजिब भूले से रह जाए या फराइज़ व वाजीबाते नमाज़ में भूले से ताख़ीर हो जाए तो सज्दए सहव वाजिब है।

➡अगर सज्दए सहव वाजिब होने के बा वुजूद न किया तो नमाज़ लौटाना वाजिब है।

➡कोई ऐसा वाजिब तर्क हुवा जो वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि इसका वुजुब अम्रे खारिज से हो तो सज्दए सहव वाजिब नहीं..
मसलन ख़िलाफे तरतीब क़ुरआन पढ़ना तर्के वाजिब (और गुनाह) है मगर इसका तअल्लुक़ वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि वाजीबाते तिलावत से है लिहाज़ा सज्दए सहव नहीं (अलबत्ता इससे तौबा करे)

➡फ़र्ज़े तर्क होने से नमाज़ जाती रहती है सज्दए सहव से इसकी तलाफि नहीं हो सकती लिहाज़ा दोबारा पढ़िये।

➡सुन्नते या मुस्तहब्बात मसलन *सना,* *तअव्वुज़,* *तस्मिया,* *आमीन,* *तकबिराने इन्तिक़ालात* और *तस्बिहात* के तर्क से सज्दए सहव वाजिब नहीं होता, नमाज़ हो गई,
⤴मगर दोबारा पढ़ लेना मुस्तहब है भूल कर तर्क किया हो या जानबुझ कर।

📮बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.207
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_*सजदए सहव*_
⤵हिस्सा~02

➡नमाज़ में अगर्चे 10 वाजिब तर्क हुए हो, सहव के दो ही सज्दे सब के लिये काफी है।

➡रूकू के बाद सीधा खड़ा होना या दो सजदों के दरमियान एक बार *सुब्हान अल्लाह* कहने की क़िक़दार सीधा बेठना भूल गए सज्दए सहव वाजिब है।

➡क़ुनूत या तकबीरे क़ुनूत भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

➡किराअत वग़ैरा किसी मौक़ा पर सोचने में *3 बार सुब्हान अल्लाह* कहने का वक़्फ़ा गुज़र गया सज्दए सहव वाजिब हो गया।

➡सज्दए सहव के बाद भी अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब है।

➡इमाम से सहव हुवा और सज्दए सहव किया तो मुक्तदि पर भी सज्दा वाजिब है।

➡अगर मुक्तदि से ब हालते इक़्तिदा सहव वाके हुवा तो सज्दए सहव वाजिब नहीं।
और नमाज़ लौटने की भी हाजत नहीं।

📮बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.208
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_*सजदए सहव*_
हिस्सा~03

_*निहायत अहम मसअला*_

➡कसीर इस्लामी भाई ना वाकिफिय्यत की बिना पर अपनी नमाज़ ज़ाए कर बैठते है लिहाज़ा ये मसअला खूब तवज्जोह से पढ़िये।

➡मसबुक (यानी जो एक या कई रकअते छूट जाने के बाद नमाज़ में शामिल हुवा) को इमाम के साथ सलाम फेरना जाइज़ नहीं, अगर क़सदन फिरेगा तो नमाज़ जाती रहेगी और अगर भूल कर इमाम के साथ बिला वक़्फ़ा फौरन सलाम फेरा तो हरज नहीं लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है और अगर भूल कर सलाम इमाम के कुछ भी बाद फेरा तो खड़ा हो जाए अपनी नमाज़ पूरी करके सज्दए सहव करे।

➡मसबुक इमाम के साथ सज्दए सहव करे अगर्चे उसके शरीक होने से पहले इमाम को सहव हुवा और अगर इमाम के साथ सज्दए सहव न किया और अपनी बाक़ी नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया तो आखिर में सज्दए सहव करे और इस मसबुक से अपनी नमाज़ में भी सहव हुवा तो आखिर में येही सज्दे इस इमाम वाले सहव के लिये भी काफी है।

➡क़ायदाए ऊला में तशह्हुद के बाद इतना पढ़ा *अल्लाहुम्म सल्ली अला मुहम्मदीन* तो सज्दए सहव वाजिब है।
⤴इस की वजह ये है नहीं कि दुरुद शरीफ पढ़ा बल्कि उस की वजह ये है कि तीसरी रकअत के क़याम में ताख़ीर हुई। लिहाज़ा अगर इतनी देर खामोश रहा जब भी सज्दए सहव वाजिब है।

➡किसी कायदे में तशह्हुद में कुछ रह गया तो सज्दए सहव वाजिब है नमाज़ फ़र्ज़ हो या नफ्ल।

*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.209
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*सज्दए सहव का तरीक़ा*

➡अत्तहिय्यात पढ़ कर बल्कि अफज़ल ये है की दुरुद शरीफ भी पढ़ लीजिये, सीधी तरफ सलाम फेर कर दो सज्दे कीजिये, फिर तशह्हुद, दुरुद शरीफ और दुआ पढ़ कर सलाम फेर दीजिये।

*सज्दए सहव करना भूल जाए तो..?*

➡सज्दए सहव करना था और भूल कर सलाम फेरा तो जब तक मस्जिद से बहार न हुवा सज्दा करले।
➡मैदान में हो तो जब तक सफों से मुतजाविज़ न हो या आगे को सज्दे की जगह से न गुज़रा, सज्दा करले,
➡जो चीज़ मानए बिना है मसलन कलाम वग़ैरा मुनाफिये नमाज़ अगर सलाम के बाद पाई गई तो अब सज्दए सहव नही हो सकता।
*✍🏽दुर्रेमुखतार*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.211
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*सज्दए तिलावत और शैतान की शामत*

अल्लाह के महबूब ने फ़रमाया :
जब जब आदमी आयते सज्दा पढ़ कर सज्दा करता है, शैतान हट जाता है और रो कर कहता है, हाय मेरी बर्बादी ! इब्ने आदम को सज्दे का हुक्म हुवा उसने सज्दा किया उसके लिये जन्नत है और मुझे हुक्म हुवा मेने इन्कार किया मेरे लिये दोज़ख है।
*#सहीह मुस्लिम* 1/61
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*इन्शा अल्लाह हर मुराद पूरी हो*

जिस मक़सद के लिये एक मजलिस में सज्दे की सब (यानी 14) आयते पढ़ कर सज्दे करे अल्लाह उसका मक़सद पूरा फ़रमा देगा। ख्वाह एक एक आयत पढ़ कर उसका सज्दा करता जाए या सब पढ़ कर आखिर में 14 षड करले।
*#गुन्या, दुर्रेमुखतार*
*#नमाज़ के अहकाम* स.211
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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल*
हिस्सा~01

आयते सज्दा पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब हो जाता है। लड़ने में ये शर्त है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उज़्र न हो तो खुद सुन सके, सुनने वाले के लिये ये ज़रूरी नही कि बिल क़स्द सुनी हो बिला क़स्द सुनने से भी सज्दा वाजिब हो जाता है।

किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पड़ने और सुनने वाले पर सज्दा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने ये समझा हो या न समझा हो कि आयते सज्दा का तर्जमा है। अलबत्ता ये ज़रूरी है कि उसे न मालुम हो तो बता दिया गया हो की ये आयते सज्दा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो तो इसकी ज़रूरत नहीं की सुनने वाले को आयते सज्दा होना बताया गया हो।
*आलमगिरी* 1/133

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*नमाज़ के अहकाम* स.212
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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल*
हिस्सा~02

सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
*मूलख्खसन फतावा रज़विय्या* 8/223

आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
*दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार* 2/584

*नमाज़ के अहकाम* स.212
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*दौराने नमाज़ दूसरे से आयते सज्दा सुनली तो* ?

रमज़ानुल मुबारक में तरावीह या शबीना में अगर्चे शरीक न हो बेशक अपनी ही अलक नमाज़ पढ़ रहे हो या नमाज़ में भी न हो तो आयते सज्दा सुन लेने से आप पर भी सज्दए तिलावत वाजिब हो जाएगा।

काफिर या ना बालिग से आयते सज्दा सुनी तब भी सज्दए तिलावत वाजिब हो गया।

नमाज़ में आयते सज्दा पढ़ी तो उसका सज्दा नमाज़ ही में वाजिब है बैरूने नमाज़ नही हो सकता और क़सदन न किया तो गुनाहगार हुवा तौबा लाज़िम है।

अलबत्ता बालिग़ होने के बाद बैरूने नमाज़ जितनी बार भी आयाते सज्दा पढा या सुन कर सज्दा वाजिब हुवा और अभी तक सज्दा न किया हो उन का गलबए ज़न के एतिबार से हिसाब लगा कर उतनी बार बा वुज़ू सज्दए तिलावत करना लाज़िम है।

*#नमाज़ के अहकाम* स.213
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*सज्दए तिलावत का तरीक़ा*

खड़ा हो कर अल्लाहुअकबर कहता हुवा सज्दे में जाए और कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बिअल अअला कहे फिर अल्लाहुअकबर कहता हुवा खड़ा हो जाए। पहले पीछे दोनों बार अल्लाहुअकबर कहना सुन्नत है और खड़े हो कर सज्दे में जाना और सज्दे के बाद खड़ा होना ये दोनों क़याम मुस्तहब है।
*#आलमगिरी 1/135*

सज्दए तिलावत के लिये अल्लाहुअकबर कहते वक़्त न हाथ उठाना है न इसमें तशह्हुद है न सलाम है।
*#नमाज़ के अहकाम स.213*
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*सज्दए शुक्र का बयान*

औलाद पैदा हुई या माल पाया या गम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।
*#आलमगिरी 1/136*

इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।
*#नमाज़ के अहकाम 214*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*

सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया :
अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।
*#सुनन इब्ने मजह 1/506*

हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।
*#फतवा रज़विय्या 7/254*

*नमाज़ के अहकाम 214*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*
हिस्सा~01

मैदान और बड़ी मस्जिद में नमाज़ी के क़दम से मौज़ए सुजूद तक गुज़रना ना जाइज़ है। *मौज़ए सुजूद* से मुराद ये है कि क़याम की हालत में सज्दे की जगह नज़र जमाए तो जितनी दूर तक निगाह फेले वो मौज़ए सुजूद है। उस के दरमियान से गुज़रना जाइज़ नहीं।
_मौज़ए सुजूद का फ़ासिला अंदाज़न क़दम से ले कर 3 गज़ तक है_
लिहाज़ा मैदान में नमाज़ी के क़दम के 3 गज़ के बाद से गुज़रने में हरज नही।

मकान और छोटी मस्जिद में नमाज़ी के आगे अगर सुतरा (आड़) न हो तो क़दम से दीवारे किबला तक कही से गुज़रना जाइज़ नही।
नमाज़ी के आगे कोई आड़ हो तो उस आड़ के बाद से गुज़रने में कोई हरज नही।

आड़ कम अज़ कम एक हाथ (तकरीबन आधा गज़) उचा और ऊँगली बराबर मोटा होना चाहिये।

इमाम की आड़ मुक्तदि के लिये भी आड़ है। यानी इमाम के आगे आड़ हो तो अगर कोई मुक्तदि के आगे से गुज़र जाए तो गुनाहगार न होगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#नमाज़ के अहकाम 215*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​
हिस्सा~02

दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुद कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की टफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये एहि पहला शख्स आ भी बन गया।

नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#नमाज़ के अहकाम 216*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​
हिस्सा~03

अगर कोई इस क़दर उची जगह पर नमाज़ पढ़ रहा है कि गुज़रने वाले के आज़ा नमाज़ी के सामने नही हुए तो गुज़रने वाला गुनाहगार नही।

दो शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते है इसका तरीक़ा ये है कि इन में से एक नमाज़ी के सामने पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब इसको आड़ बना कर दूसरा गुज़र जाए। फिर दूसरा पहले की पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब पहला गुज़र जाए फिर वो दूसरा जिधर से आया था उसी तरफ हट जाए।

कोई नमाज़ी के आगे से गुज़रना हःता है तो नमाज़ी को इजाज़त है कि वो उसे गुज़रने से रोके ख्वाह "सुब्हानअल्लाह" कहे या ज़हर (यानी बुलन्द आवाज़ से) किरआत करे या हाथ या सर या आँख के इशारे से मना करे। इससे ज़्यादा की इजाज़त नही। मसलन कपड़ा पकड़ कर झटकना या मारना बल्कि अगर अमले कसीर हो गया तो नमाज़ ही जाती रही।

तस्बीह व इशारा दोनों को बिला ज़रूरत जमा करना मकरूह है।

औरत के सामने से गुज़रे तो औरत तस्फीक़ से मना करे यानी सीधे हाथ की उंगलिया उलटे हाथ की पुश्त पर मारे। अगर मर्द ने तस्फीक़ की और औरत ने तस्बीह कहि तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर खिलाफे सुन्नत हुवा।

तवाफ़ करने वाले को दौराने तवाफ़ नमाज़ी के आगे से गुज़रना जाइज़ है।
*#नमाज़ के अहकाम 217*
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*मुसाफिर की नमाज़*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है*

हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है :
खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्ट नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।
*सहीह मुस्लिम 1/231*

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे बी ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।
*सुनन इब्ने माजह 2/59*
*नमाज़ के अहकाम 222*
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_*शरई सफर की मसाफत*_
शरअन मुसाफिर वो शख्स है जो साठे 57 मिल (तकरीबन 92 किलो मीटर) के फासिल तक जाने के इरादे से अपने मक़ामे इक़ामत मसलन शहर या गाउ से बाहर हो गया।
*फतावा रज़विय्या 8/270*

*_मुसाफिर कब होगा_*
महज़ निययते सफर से मुसाफिर न होगा बल्कि मुसाफिर का हुक्म उस वक़्त है कि बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए शहर में है तो शहर से, गाउ है तो गाउ से, और शहर वालो के लिये ये भी ज़रूरी है की शहर के आस पास जो आबादी शहर से मुत्तसिल है उससे भी बाहर आ जाए।
*दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/599*

*_आबादी खत्म होने का मतलब_*
आबादी से बाहर होने से मुराद ये है कि जिधर जा रहा है उस तरफ आबादी खत्म हो जाए अगर्चे उसकी बराबर दूसरी तरफ खत्म न हुई हो
*गुन्यातल मुस्तमली 536*
*नमाज़ के अहकाम 224*
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*मुसाफिर की नमाज़*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_मुसाफिर बनने के लिये शर्त_*

सफर के लिये ये भी ज़रूरी है कि जहा से चला वहा से 92 k.m. का इरादा हो
और अगर 92 k.m के कम के इरादे से निकला वहा पहुच कर दूसरी जगह का इरादा हुवा की वो भी 92 k.m से कम का रास्ता है यु ही सारी दुन्या घूम कर आए तो वो मुसाफिर नही।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/209*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 225*
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*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सफर के दो रस्ते_*
किसी जगह जाने के दो रस्ते है एक से मसाफ़ते सफर है दूसरे से नही (यानी नजदीक वाले रस्ते से जाए तो 90 k.m और दूर वाले रस्ते से 92k.m है) तो जिस रस्ते से ये जाएगा उस का ऐतिबार है, नज़दीक वाले रस्ते से गया तो मुसाफिर नही और दूर वाले से गया तो है अगर्चे इस रस्ते के इख़्तियार करने में इस की कोई गरजे सहीह न हो।
*✍🏽आलमगिरी 1/138*
*✍🏽दुर्रेमुखतर मअ रद्दलमोहतर 2/603*

*_मुसाफिर कब तक मुसाफिर है_*
मुसाफिर उस वक़्त तक मुसाफिर है जब तक अपनी बस्ती में पहुच न जाए या आबादी में पुरे 15 दिन ठहर ने की निय्यत न करले, ये उस वक़्त है जब पुरे 92 k.m चल चूका हो अगर 92 k.m पहले वापसी का इरादा कर लिया तो मुसाफिर न रहा अगर्चे जंगल में हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतर 2/605*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 226*
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*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_वतन की किस्मे_*
वतन की दो किस्मे है
1 वतने असली : यानी वो जगह जहा इसकी पैदाइश हुई है या इस के घर के लोग वहा रहते है या वहा सुकूनत कर ली और ये इरादा है कि यहा से न जाएगा।
2 वतने इक़ामत : यानी वो जगह कि मुसाफिर ने 15 दिन या इससे ज़्यादा ठहर ने का वहा इरादा किया हो।

*_वतने इक़ामत बातिल होने की सूरत_*
वतने इक़ामत दूसरे वतने इक़ामत को बातिल कर देता है यानी एक जगह 15 दिन के इरादे से ठहरा फिर दूसरी जगह इतने ही दिन के इरादे से ठहरा तो पहली जगह वतन न रही। दोनों के दरमियान मसाफते सफर हो या न हो। यु ही वतने इक़ामत वतने असली और सफर से बातिल हो जाता है।
*✍🏽आलमगिरी 1/145*
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*काम हो गया तो चला जाऊंगा*

मुसाफिर किसी काम के लिये या अहबाब के इन्तिज़ार में दो चार या तेरह चौदह दिन की निय्यत से ठहरा, या ये इरादा है कि काम हो जाएगा तो चला जाएगा, दोनों सूरतो में अगर आज कल आज कल करते बरसो गुज़र जाए जब भी मुसाफिर ही है, वो नमाज़ क़सर पढ़ेगा।

*आलमगिरी 1/139*
*नमाज़ के अहकाम 227*
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*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*औरत के सफर का मसअला*_
औरत को बैगेर महरम के 3 दिन 92k.m या ज़्यादा की राह जाइज़ नही। ना बालिग़ बच्चा या पागल के साथ भी सफर नही कर सकती, हमराही में बालिग़ महरम या शौहर का होना ज़रूरी है।
*आलमगिरी 1/142*

*औरत का सुसराल व मायका*
औरत बियाह कर सुसराल गई और यही रहने सहने लगी तो मायका इसके लिये वतने असली न रहा यानी अगर सुसराल 92k.m पर है वहा से मयके आई और 15 दिन ठहरने की निय्यत न की तो क़सर पढ़े और अगर मयके रहना नही छोड़ा बल्कि सुसराल आरिज़ि तौर पर गई तो मयके आते ही सफर खत्म हो गया नमाज़ पूरी पढ़े।
*बहारे शरीअत 4/84*
*नमाज़ के अहकाम 228*
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*मुसाफिर की नमाज़*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*क़सर के बदले चार की निय्यत बांध ली तो..*_
मुसाफिर ने क़सर के बजाए चार रकअत फ़र्ज़ की निय्यत बांध ली फिर याद आने पर दो और सलाम फेर दिया तो नमाज़ हो जाएगी।
*दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/97*

_*क्या मुसाफिर को सुन्नते मुआफ़ है ?*_
सुन्नतो में क़सर नही बल्कि पूरी पढ़ी जाएगी, खौफ और घबराहट की हालत में सुन्नते मुआफ़ है और अम्न की हालत में पढ़ी जाएगी।
*आलमगिरी 1/139*
*नमाज़ के अहकाम 234*
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*मुसाफिर की नमाज़*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*मुसाफिर तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो जाए तो ?*_
अगर मुसाफिर क़सर वाली नमाज़ की तीसरी रकअत शुरू कर दे तो इसकी दो सूरते है...
1 ब क़दरे तशह्हुद क़ायद ए आख़िरा कर चूका था तो जब तक तीसरी रकअत का सज्दा न किया हो लौट आए और सज्दए सहव करके सलाम फेर दे अगर न लौटे और खड़े खड़े सलाम फेर दे तो भी नमाज़ हो जाएगी मगर सुन्नत तर्क हुई। अगर तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया तो एक और रकअत मिला कर सज्दए सहव करके नमाज़ मुकम्मल करे ये आखरी दो रकअते नफ्ल शुमार होगी।
2 क़ायदए आख़िरा किये बैगेर खड़ा हो गया था तो जब तक तीसरी रकअत का सज्दा न किया लोट आए और सज्दए सहव कर के सलाम फेर दे अगर तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया फ़र्ज़ बातिल हो गए अब एक और रकअत मिला कर सज्दए सहव करके नमाज़ मुकम्मल करे चारो रकअत नफ्ल शुमार होगी। दो रकअत फ़र्ज़ अदा करने अभी जिम्मे बाक़ी है।
*दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/550*
*नमाज़ के अहकाम 235*
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*कज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

पारह 30 सूरतुल माऊन की आयत 4 व 5 में इरशाद होता है :
*तो उन नमाज़ियों की खराबी है जो अपनी नमाज़ से भूले बेठे है*

हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा आयत 5 के तहत फरमाते है :
कभी न पढ़ना, पाबंदी से न पढ़ना, सहीह वक़्त पर न पढ़ना, नमाज़ सहीह तरीके से अदा न करना, शौक़ से न पढ़ना, समझ बुझ कर अदा न करना, कसल व सुस्ती, बे परवाइ से पढ़ना।
*✍🏽नुरुल इरफ़ान 958*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 204*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*जहन्नम की खौफ नाक वादी*
हज़रत मौलाना मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है :
जहन्नम में वेल नामी एक खौफनाक वादी है जिसकी सख्ती से खुद जहन्नम भी पनाह मांगता है। जान बुझ कर नमाज़ क़ज़ा करने वालेको उस वादी में डाला जायेगा।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/347*

*पहाड़ गर्मी से पिघल जाए*
हज़रत इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा फरमाते है:
कहा गया है कि जहन्नम में एक वादी है जिसका नाम वैल है, अगर उसमे दुन्या के पहाड़ डाले जाए तो वो भी उसकी गरमी से पिघल जाए और ये उन लोगो का ठिकाना है जो *नमाज़ में सुस्ती* करते और *वक़्त के बाद क़ज़ा* कर के पढ़ते है, मगर ये की वो आओनी कोताही पर नादिम हो और बारगाहे खुदा वन्दी में तौबा करे।
*✍🏽किताबुल कबाइर 18*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 241*

*नोट :-* ये 👆🏽👆🏽👆🏽 सज़ा नमाज़ क़ज़ा करने वालो के लिये है। तो जो लोग नमाज़ छोड़ देते है उनकी सज़ा का आलम क्या होगा। ज़रा गौर करे।
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*कज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*सर कुचल ने की सज़ा*
हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम से फ़रमाया :
आज रात दो शख्स (यानी जिब्राइल अलैहिस्सलाम और मीकाइल अलैहिस्सलमा) मेरे पास आए और मुझे अर्ज़े मुक़द्दसा में ले आए। में ने देखा कि एक शख्स लेता है और उस के सिरहाने एक शख्स पथ्थर उठाए खड़ा है और पै दर पै पथ्थर से उसका सर कुचल रहा है, हर बार कुचलने के बाद सर ठीक हो जाता है।
मेने फरिश्तों से कहा : ये कौन है ?
उन्होंने अर्ज़ की : आगे तशरीफ़ ले चलिये (मज़ीद मनाज़िर दिखाने के बाद) फिरिश्तो ने अर्ज़ की, की : पहला शख्स जो आप ने देखा ये वो था जिस ने क़ुरआन पढ़ा फिर उसको छोड़ दिया था और फ़र्ज़ नमाज़ों के वक़्त सो जाता था इस के साथ ये बर्ताव क़यामत तक होगा।
*✍🏽बुखारी 1-4/425-468*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 241*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*हज़ारो बरस के अज़ाब का हक़दार*
मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा फरमाते है :
जिसने कसदन एक वक़्त की नमाज़ छोड़ी हज़ारो बरस जहन्नम में रहने का मुस्तहिक़ हुवा, जब तक तौबा न करे और उस की क़ज़ा न कर ले, मुसलमान अगर उसकी ज़िन्दगी में उसे यक-लख्त छोड़ दे उससे बात न करे, उसके पास न बेठे, तो ज़रूर वो इस का सज़ावार है।
अल्लाह तआला फ़रमाता है :
_और जो कही तुझे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमो के पास न बेठे।_
*पारह 7*
*✍🏽फतावा रज़विय्या 9/158*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 242*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
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*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अगर नमाज़ पढ़ना भूल जाए तो..?_*
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
जो नमाज़ से सो जाए या भूल जाए तो जब याद आए पढ़ ले कि वोही उसका वक़्त है।
*मुस्लिम 346*

हुक़हाए किराम फरमाते है : सोते में या भूले से नमाज़ क़ज़ा हो गई तो उसकी क़ज़ा पढ़नी फ़र्ज़ है अलबत्ता क़ज़ा का गुनाह उस पर नही मगर बेदार होने और याद आने पर अगर वक़्ते मकरूह न हो तो उसी वक़्त पढ़ ले ताखीर मकरूह है।
*बहारे शरीअत 1/701*
*नमाज़ के अहकाम 243*
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*_मजबूरी में अदा का सवाब मिलेगा या नही ?_*
आँख न खुलने की वजह से नमाज़े फ़ज्र क़ज़ा हो जाने की सूरत में अदा का सवाब मिलेगा या नही ?
इस ज़िम्न में आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है :
रहा अदा का सवाब मिलना ये अल्लाह के इख़्तियार में है। अगर वो जानेगा की इसने अपनी जानिब से कोई कोताही न की, सुबह तक जागने के क़स्द से बेठा था और बे इख़्तियार आँख लग गई तो ज़रूर उस पर गुनाह नही।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/161*

नबी फरमाते है :
नींद की सूरत में कोताही नही, कोताही उस शख्स की है जो जागते में नमाज़ न पढ़े हत्ता कि दूसरी नमाज़ का वक़्त आ जाए।
*✍🏽मुस्लिम 344*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 244*
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*_रात के आखरी हिस्से में सोना केसा ?_*
नमाज़ का वक़्त दाखिल हो जाने के बाद सो गया फिर वक़्त निकल गया और नमाज़ क़ज़ा हो गई तो गुनाहगार हुवा जब की जागने पर सहीह ऐतिमाद या जगाने वाला मौजूद न हो, बल्कि फ़ज्र में दुखुले वक़्त से पहले भी सोने की इजाज़त नही हो सकती जब की अक्सर हिस्सा रात का जागने में गुज़रा और ज़न्ने ग़ालिब है कि अब सो गया तो वक़्त में आँख न खुलेगी।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*

*_रात देर तक जागना_*
नात ख्वानी, ज़िक्रो फ़िक्र की महफ़िलो नीज़ सुन्नतो भव इज्तेमाअ वगैरा में रात देर तक जागने के बाद सोने के सबब अगर नमाज़े फ़ज्र क़ज़ा होने का अंदेशा हो तो ब निययते एतिकाफ मस्जिद में क़याम करे या वहा सीए जहा कोई क़ाबिले एतिमाद इस्लामी भाई जगाने वाला मौजूद हो।
या अलार्म लगाले इससे आँख खुल जाती हो।
फ़ुक़हाए किराम फरमाते है :
जब ये अंदेशा हो की नमाज़ जाती रहेगी तो बिला ज़रूरते शरईय्या उसे रात देर तक जागना ममनुअ है।
*✍🏽रद्दलमुहतार 2/33*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 245*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
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*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अदा, क़ज़ा और वाजीबुल इआदा की तारीफ़_*
जिस चीज़ का बन्दों को हुक्म है उसे वक़्त में बजा लाने को अदा कहते है और वक़्त खत्म होने के बाद अमल में लाना क़ज़ा है और अगर उस हुक्म के बाज लाने में कोई खराबी पैदा हो जाए तो उस खराबी को दूर करने के लिये वो अमल दोबारा बजा लाना इआदा कहलाता है।
वक़्त के अंदर अंदर अगर तहरिमा बांध ली तो नमाज़ क़ज़ा न हुई बल्कि अदा है।
*दुर्रे मुख़्तार 2/627*
नमाज़े फ़ज्र, जुमुआ और इदैन में वक़्त के अंदर सलाम फिरना लाज़िम है वरना नमाज़ न होगी
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*
 बिला उज़्रे शरई नमाज़ क़ज़ा कर देना सख्त गुनाह है, इस पर फ़र्ज़ है कि उसकी क़ज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा भी करे, तौबा या हज्जे मक़बूल से इन्शा अल्लाह ताखीर का गुनाह मुआफ़ हो जाएगा
*✍🏽दुर्रे मुख्तार 2/626*
तौबा उसी वक़्त सहीह है जब कि क़ज़ा पढ़ ले उसको अदा किये बगैर तौबा किये जाना तौबा नही कि जो नमाज़ इस के ज़िम्मे थी उसको पढ़ना तो अब भी बाक़ी है और जब गुनाह से बाज़ न आया तो तौबा कहा हुई ?
*✍🏽रद्दल मोहतार 2/627*

हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
गुनाह पर क़ाइम रह कर तौबा करने वाला उस की मिस्ल है जो अपने रब से ठठा यानी मज़ाक करता है।
*✍🏽शोएबुल ईमान 5/436*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 246*
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*_जल्द से जल्द क़ज़ा पढ़ लीजिये_*
जिसके ज़िम्मे क़ज़ा नमाज़े हो उन का जल्द से जल्द पढ़ना वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश और अपनी जरूरियात की फराहमी के सबब ताखीर जाइज़ है। लिहाज़ा कारोबार भी करता रहे और फुर्सत का जो वक़्त मिले उसमे क़ज़ा पढता रहे यहाँ तक कि पूरी हो जाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/646*

*_छुप कर क़ज़ा पढ़िये_*
क़ज़ा नमाज़े छुप कर पढ़िये लोगो पर इस का इज़हार न कीजिये की गुनाह का इज़हार भी मकरुहे तहरिमि व गुनाह है।
*✍🏽रद्दुल मोहतार 2/650*
लिहाज़ा अगर लोगो की मौजूदगी में वित्र क़ज़ा पढ़े तो तकबिरे क़ुनूत के लिये हाथ न उठाए।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 250*
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*_क़ज़ाए उम्री का तरीका_*
क़ज़ा हर रोज़ की 20 रकअत होती है।
2 फ़र्ज़ फ़ज्र की, 4 ज़ोहर की, 4 असर की, 3 मगरिब की, 4 ईशा की और 3 वित्र।
निय्यत इस तरह कीजिये
*सबसे पहली फ़ज्र जो मुझ से क़ज़ा हुई उसको अदा करता हु* हर नमाज़ में इसी तरह नियत कीजिये।

*_नमाज़े क़सर की क़ज़ा_*
अगर हालते सफर की क़ज़ा नमाज़ हालते इक़ामत में पढ़ेंगे तो क़सर ही पढ़ेंगे और हालते इक़ामत की क़ज़ा हालते सफर में पढ़ेंगे तो पूरी पढ़ेंगे।
*✍🏽आलमगिरी 1/121*
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*_जमानए इर्तिदाद की नमाज़े_*
जो शख्स मआजअल्लाह मुर्तद हो गया फिर इस्लाम लाया तो जमानए इर्तिदाद की नमाज़ की क़ज़ा नही और मुर्तद होने से पहले जमानए इस्लाम में जो नमाज़े जाती रही थी उनकी क़ज़ा वाजिब है।
*✍🏽रद्दुलमोहतार 2/647*

*_मरीज़ को नमाज़ कब मुआफ़ है?_*
ऐसा मरीज़ कि इशारे से भी नमाज़ नही पढ़ सकता अगर ये हालत पुरे 6 वक़्त तक रही तो इस हालत में जो नमाज़े हुई उनकी क़ज़ा वाजिब नही।
*✍🏽आलमगिरी 1/121*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 252*
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*_क़ज़ा का लफ्ज़ कहना भूल गया तो?_*
आला हज़रत फरमाते है : हमारे उलमा तसरिह फरमाते है : क़ज़ा ब निययते अदा और अदा ब निययते क़ज़ा दोनों सहीह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/161*

*_क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर_*
क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर और अहम है मगर सुन्नते मुअक्क्दा, नमाज़े चाश्त, स्लातुत्तस्बीह और वो नमाज़े जिन के बारे में अहादीस मरवी है यानी जेसे तहिय्यतुल मस्जिद असर से पहले की चार रकअत (सुन्नते गैर मुअक्कदा) और मगरिब के बाद 6 रकअत पढ़ी जाएगी।
*रद्दुलमोहतार 2/646*
याद रहे क़ज़ा नमाज़ के बिना पर सुन्नते मुअक्कदा छोड़ना जाइज़ नहीं, अलबत्ता सुन्नते गैर मुअक्कदा और अहादिसो में वारिद शुदा मुखसुस नवाफ़िल पढ़े तो षवाब का हक़दार है मगर इन्हें न पड़ने पर कोई गुनाह नही।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 253*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
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*_फ़ज्र व असर के बाद नवाफ़िल नही पढ़ सकते_*
नमाज़े फ़ज्र और असर के बाद वो तमाम नवाफ़िल अदा करना मकरुहे तहरिमि है, अगर्चे फ़ज्र व असर की सुन्नते ही क्यू न हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/44*

क़ज़ा के लिये कोई वक़्त मुअय्यन नही उम्र में जब भी पढ़ेगा बरियूज़्ज़िम्मा हो जाएगा। मगर तुलुअ व गुरुब और ज़वाल के वक़्त नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि इन वक़्तों में नमाज़ जाइज़ नही।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/702*
*✍🏽आलमगिरी 1/52*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 254*
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*_ज़ोहर की 4 सुन्नते रह जाए तो क्या करे?_*
अगर ज़ोहर के फ़र्ज़ पहले पढ़ लिये तो दो रकाअत सुन्नत अदा करने के बाद चार रकाअत सुनत अदा कीजिये उसके बाद दो नफ्ल अदा किजोये।

*_फज्र की सुन्नते रह जाए तो क्या करे ?_*
सुन्नते पढ़ने से अगर फज्र की जमाअत छूट जाने का अंदेशा हो तो बगैर पढ़े शामिल हो जाए। मग़र सलाम फेरने के बाद पढ़ना जाइज़ नही।
तुलुए आफताब के कम अज़ कम 20 मिनट बाद से ले कर ज़हवए कुब्रा तक पढ़ले कि मुस्तहब है। ईसके बाद मुस्तहब भी नही।
*✍🏽नमाज़ के हकाम 254*
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*_क्या मगरिब का वक़्त थोडा सा होता है ?_*
मगरिब की नमाज़ का वक़्त गुरुबे आफताब से इब्तदाए वक़्ते ईशा तक होता है। ये वक़्त मक़ामात और तारीख के ऐतिबार से घटता व बढ़ता रहता है।
     फुक़हाए किराम फरमाते है : रोज़े अब्र (यानी जिसदिन बादल छाए हो) उस वक़्त के सिवा मगरिब में हमेशा जल्दी करना मुस्तहब है और दो रकाअत से ज़ाइद कि ताखीर मकरुहे तन्ज़िहि और अगर बगैर उज़्र सफर व मरज़ वगैरा इतनी ताखीर की, कि सितारे गुथ गए तो मकरुहे तहरिमि।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/453*

आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : मगरिब का वक़्ते मुस्तहब जब तक है कि सितारे खूब ज़ाहिर न हो जाए, इतनी देर  करनी कि (बड़े बड़े सितारे के इलावा) छोटे छोटे सितारे भी चमक आए मकरूह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/153*

*_तरावीह की क़ज़ा का क्या हुक्म है ?_*
जब तरावीह छूट जाए तो उस की क़ज़ा नही, न जमाअत से न तन्हा और अगर कोई क़ज़ा पढ़ भी लेता है तो ये नफ्ल हो जाएगी, तरावीह से इनका तअल्लुक़ नही।
*✍🏽तनविरुल अबसार व दुर्रेमुखतार 2/598*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 255*
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*नमाज़े जनाज़ा का तरीका*
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*_क़ब्र में पहला तोहफा_*
हुज़ूरﷺ से किसी ने पूछा मोमिन जब क़ब्र में दाखिल होता है तो उसको सब से पहला तोहफा क्या दिया जाता है ?
तो इरशाद फ़रमाया : उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने वालो की मगफिरत कर दी जाती है।
*✍🏽शोएबुल ईमान 7/8*

*_जन्नती का जनाज़ा_*
हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जब कोई जन्नती शख्स फौत हो जाता है, तो अल्लाह हया फ़रमाता है कि उन लोगो को अज़ाब दे जो उस का जनाज़ा ले कर चले और जो इसके पीछे चले और जिन्होंने इसकी नमाज़े जनाज़ा अदा की।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 269-270*
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*_जनाज़े का साथ देने का सवाब_*
     हज़रते दावूद अलैहिस्सलाम ने बारगाहे खुदा वन्दी में अर्ज़ की : या अल्लाह ! जिसने महज़ तेरी रिज़ा के लिये जनाज़े का साथ दिया, उसकी जज़ा क्या है ?
अल्लाह ने फ़रमाया : जिस दिन वो मरेगा तो फ़रिश्ते उसके जनाज़े के हमराह चलेंगे और में उसकी मग़फ़िरत करूँगा।
*✍🏽शुरहु स्सुदुर 97*

*_उहुद पहाड़ जितना सवाब_*
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स (ईमान का तक़ाज़ा समझ कर और हुसूले सवाब की निय्यत से) अपने घर से जनाज़े के साथ चले, नमाज़े जनाज़ा पढ़े लर दफ़्न होने तक जनाज़े के साथ रहे उसके लिये दो क़ीरात सवाब है जिस में से हर क़ीरात उहुद पहाड़ के बराबर है।
     और जो शख्स सिर्फ जनाज़े की नमाज़ पढ़ कर वापस आ जाए उसके लिये एक क़ीरात सवाब है।
*✍🏽मुस्लिम 472*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 270*
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*_नमाज़े जनाज़ा बाइसे इब्रत है_*
     हज़रते अबू ज़रرضي الله تعالي عنه गिफारि का इरशाद है, मुझसे हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ब्रो की ज़ियारत करो ताकि आख़िरत की याद आए और मुर्दे को नहलाओ की फानी जिस्म का छूना बहुत बड़ी नसीहत है और नमाज़े जनाज़ा पढ़ो ताकि ये तुम्हे गमगीन करे क्यू की गमगीन इंसान अल्लाह के साए में होता है और नेकी का काम करता है।
*✍🏽अल मुस्तदरक लिलहकिम 1/711*

*_मैय्यत को नहलाने वगैरा की फ़ज़ीलत_*
     हज़रते अली मुर्तजा शेरे खुदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि जो किसी मैयित को नहलाए, कफ़न पहनाए, खुशबु लगाए, जनाज़ा उठाए, नमाज़ पढ़े और जो नाक़ीस बात नज़र आए उसे छुपाए वो अपने गुनाहो से ऐसा पाक हो जाता है जैसा जिस दिन माँ के पेट से पैदा हुवा था।
*✍🏽इब्ने माजह 2/201*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 271*
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*_जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द_*
     हज़रते मालिक बिन अनसرضي الله تعالي عنه को बादे वफ़ात किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक किया ? कहा : एक कलिमे की वजह से बख्श दिया जो हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه जनाज़े को देख कर कहा करते थे।
*سُبْحٰنَ الْحَيِّ الَّذِيْ لَايَمُوْت*
सुब्हान-ल हय्यिल-लज़ी ला-यमुत
_तर्जुमह_
वो ज़ात पाक है जो ज़िन्दा है उसे कभी मौत नही आएगी।
     लिहाज़ा में भी जनाज़ा देख कर यही कहा करता था ये कलिमा कहने के सबब अल्लाह ने मुझे बख्श दिया।
*अहयाउल उलूम 5/266*

*हुज़ूरﷺ ने सबसे पहला जनाज़ा किस का पढ़ा ?*
     नमाज़े जनाज़ा की इब्तिदा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के दौर से हुई है, फरिश्तों ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जनाज़ए मुबारक पर 4 तकबीर पढ़ी थी।
     इस्लाम में वुजूबे नमाज़े जनाज़ा का हुक्म मदीना में नाज़िल हुवा। हज़रते असअद बिन ज़ुरराहرضي الله تعالي عنه का विसाले मुबारक हिज़रत के बाद 9वे महीने के आखिर में हुवा और ये पहले सहाबी की मैयित थी जिस पर नबीﷺ ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/375*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 272*
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*_नमाज़े जनाज़ा फर्ज़े किफ़ाया है_*
     नमाज़े जनाज़ा फर्ज़े किफ़ाया है यानी कोई एक भी अदा करले तो सब बरीय्यूज़्ज़िम्मा हो गए वरना जिन जिन को खबर पहुची थी और नहीं आए वो सब गुनाहगार होंगे। इस के लिये जमाअत शर्त नही एक शख्स भी पढ़ ले तो फ़र्ज़ अदा हो गया। इसी फरज़िय्यत का इन्कार कुफ़्र है।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/825*

*_नमाज़े जनाज़ा में दो रुक्न और तिन सुन्नत है_*
     दो रुक्न ये है (1) चार बार "अल्लाहु अकबर" कहना (2) क़याम।
*दुर्रेमुखतार 3/124*
     इसमें तिन सुन्नते मुअक्कदा ये है (1) सना (2) दुरुद शरीफ (3) मय्यित के लिये दुआ।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/829*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 272*
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     मुक्तदि इस तरह निय्यत करे : में निय्यत करता हु इस जनाज़े की नमाज़ की वासिते अल्लाह के, दुआ इस मय्यित के लिये, पीछे इस इमाम के,
     अब इमाम व मुक़्तदि पहले कानो तक हाथ उठाए और "अल्लाहु अकबर" कहते हुए फौरन हस्बे मामूल नाफ के निचे बांध ले और सना पढ़े। इसमें وَتَعَالٰى جَدُّكَ के बाद
 وَجَلَّ ثَنَآءُكَ وَلَااِلٰهَ غَيْرُك पढ़े,
     फिर बगैर हाथ उठाए " अल्लाहु अकबर" कहे और "दुरुद इब्राहिम" पढ़े,
     फिर बगैर हाथ उठाए " अल्लाहु अकबर" कहे दुआ पढ़े
     दुआ के बाद फिर "अल्लाहु अकबर" कहे और हाथ लटका दे फिर दोनों तरफ सलाम फेर दे।
     सलाम में मय्यित और फरिश्तों और हाज़िरीने नमाज़ की निय्यत करे, उसी तरह जेसे और नमाज़ों के सलाम में निय्यत की जाती है,
     यानी इतनी बाद ज्यादा है कि मय्यित की भी निय्यत करे।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/829*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 273*
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*_जूते पर खड़े हो कर जनाज़ा पढ़ना_*
     जूता पहन कर अगर नमाज़े जनाज़ा पढ़े तो जूते और ज़मीन दोनों का पाक होना ज़रूरी है और जूता उतार कर उस पर खड़े हो कर पढ़े तो जूते के तले और जमीन का पाक होना ज़रूरी है।
     आला हज़रत अलैरहमा एक सुवाल के जवाब में इरशाद फ़रमाता है : अगर वो जगह पेशाब वगैर से नापाक थी या जिन के जूतो के तले नापाक थे और इस हालत में जूता पहने हुए नमाज़ पढ़ी उन की नमाज़ न हुई, एहतियात यही है कि जूता उतार कर उस पर पाउ रख कर नमाज़ पढ़ी जाए कि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में खलल न आए।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 9/188*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 275*
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*नमाज़े जनाज़ा का तरीका*
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*_जनाज़े की पूरी जमाअत न मिले तो ?_*
     मस्बुक़ (यानी जिसकी बाज़ तकबीर फौत हो गई वो) अपनि बाक़ी तकबिरे इमाम के सलाम फेरने के बाद कहे और अगर ये अंदेशा हो कि दुआ वगैरा पढ़ेगा तो पूरी करने से क़ब्ल लोग जनाज़े को कंधे तक उठा लेंगे तो सिर्फ तकबिरे कहले दुआ वगैरा छोड़ दे।
     चौथी तकबीर के बाद जो शख्स आया तो जब तक इमाम ने सलाम नही फेरा, शामिल हो जाए क्र इमाम के सलाम के बाद 3 बार "अल्लाहु अकबर" कहे। फिर सलाम फेर दे।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 3/136*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 276*
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*नमाज़े जनाज़ा का तरीक़ा*

*_जनाज़े को कन्धा देने का तरीक़ा_*
     जनाज़े को कन्धा देना इबादत है। सुन्नत ये है कि एक के बाद दूसरा ऐसे चारो पायो को कन्धा दे और हर बार *10-10 क़दम* चले। पूरी सुन्नत ये है कि पहले सीधे सिरहाने कन्धा दे फिर सीधे पाउ की तरफ, फिर उलटे सिरहाने फिर उलटे पाउ और *10-10 क़दम* चले तो कुल 40 क़दम हुए।
*आलमगिरी 1/162*
*बहारे शरीअत 1/822*
     बाज़ लोग जनाज़े के जुलुस में ऐलान करते रहते है, *~दो दो क़दम चलो !~* उनको चाहिये की इस तरह ऐलान करे *10-10 क़दम चलो*

*_बच्चे का जनाज़ा उठाने का तरीक़ा_*
     छोटे बच्चे के जनाज़े को अगर एक शख्स हाथ पर उठा कर ले चले तो हरज नही और एक बे बाद दूसरा हाथ पर लेते रहे।
*आलमगिरी 1/162*
     औरतो को जनाज़े के साथ जाना ना जाइज़ व ममनुअ है।
*नमाज़ के अहकाम 278* 

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