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बीमार आबिद

       
💟बीमार आ'बीद 💟

🌷हज़रते सय्यिदुना वहब बिन मुनब्बेह अलैरहमा से मन्कुल है :
👉🏿दो आ'बीद यानि इबादत गुज़ार पचास साल तक अल्लाह عزوجل की इबादत करते रहे, पचासवें साल के आखिर में उन में से एक आ'बीद सख्त बीमार हो गए। वो बारगाहे रब्बे बारी عزوجل में आहो ज़ारी करते हुए इस तरह इल्तिजा करने लगे :

☝ऐ🏽 मेरे पाक परवर दगार عزوجل ! में ने इतने साल मुसल्सल तेरा हुक्म माना, तेरी इबादत बजा लाया फिर भी मुझे बिमारी में मुब्तला कर दिया गया , इस में क्या हिक्मत है ? मेरे मौला عزوجل ! में तो आज़माइश में डाल दिया गया हु।

अल्लाह ने फरिश्तों को हुक्म फ़रमाया :
इन से कहो, तुम ने हमारी ही इमदाद व एहसान और अता करदा तौफ़ीक़ से हमारी इबादत की सआ'दत पाई, बाकी रही बिमारी ! तो हमने तुम को अबरार का रुतबा देने के लीये बीमार किया है।
तुमसे पहले के लोग तो बिमारी व मुसीबतो के ख्वाहिश मंद हुआ करते थे और हमने तुम्हे बिन मांगे अता फरमा दी।

📚बीमार आ'बीद, स. 2
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📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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☝🏽बीमारी बहुत बड़ी ने'मत है☝🏽

🌷मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अ'ली आ'ज़मी फरमाते है :👇🏿
👉🏿बिमारी भी एक बहुत बड़ी ने'मत है, इसके मनाफ़ेअ बे शुमार है, अगर्चे आदमी को ब ज़ाहिर इस से तकलीफ पहुचती है मगर हक़ीक़त राहत व आराम का एक बहुत बड़ा ज़खीरा हाथ आता है।

👉🏾ये ज़ाहिरी बीमारी जिस को आदमी बिमारी समझता है, हक़ीक़त में रूहानी बीमारियो का एक बड़ा ज़बर दस्त इलाज है। हक़ीक़ी बिमारी अमराज़े रुहानिया (मसलन दुन्या की महब्बत, दौलत की हिर्स, बुखल, दिल की सख्ती वगैरा) है की ये अलबत्ता बहुत खौफ की चीज़ है और इसी को म-रज़े मोहलिक (यानि हलाक करने वाली बिमारी) समझना चाहिये।

✒हवाला
📗बहारे शरीअत, जी. 1, स. 799
📚बीमार आबिद, स. 2
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💊बीमारी में मोमिन और मुनाफ़िक़ का फर्क💊

🌴हुज़ूर ﷺ ने बीमारियो का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया :
👉🏿मोमिन जब बीमार हो फिर अच्छा हो जाए, उसकी बीमारी साबिका गुनाहो से कफ़्फ़ारा हो जाती है और आइन्दा के लिये नसीहत।
👉🏿और मुनाफ़िक़ जब बीमार हुवा फिर अच्छा हुवा, उसकी मिसाल ऊट की है, की मालिक ने उसे बांधा फिर खोल दिया तो न उसे ये मा'लूम की क्यू बांधा, न ये की क्यू खोला।
📗अबू दाऊद
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📝हदिषे पाक की शर्ह📝
🌷मुफ़्ती अहमद यार खान इस हदिशे पाक के तहत "मीरआत" जी. 2 सफह 424 पर फरमाते है :
👉🏾 क्यू की मोमिन बिमारी में अपने गुनाहो से तौबा करता है, वो समझता है की ये बीमारी मेरे किसी गुनाह की वज्ह से आई और शायद ये आखरी बीमारी हो जिस के बा'द मौत ही आए, इस लिये इसे शिफ़ा के साथ मग्फिरत भी नसीब होती है।
👉🏾जब की मुनाफ़िक़ ग़ाफ़िल ये समझता है की फुला वज्ह से में बीमार हुवा था (मसलन फुला चीज़ खा ली थी, मौसम की तब्दीली के सबब बिमारी आई है, आज कल इस बिमारी की हवा चल रही है वगैर) और फुला दवा से मुझे आराम मिला (वगैर वगैर) अस्बाब में ऐसा फसा रहता है की मुसब्बिबुल अस्बाब (यानि सबब पैदा करने वाले रब عزوجل ) पर नज़र ही नहीं जाती, न तौबा करता है न अपने गुनाहो पे गौर।

✒हवाला
📚बीमार आ'बीद, स. 3
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🌹🌹हिकायत🌹🌹

🌷हज़रते सय्यिदुना फ़त्ह मौसिलि की अहलियए मोहतरमा एक मर्तबा ज़ोर से गिरी जिस से नाख़ून मुबारक टूट गया, लेकिन दर्द से 'हाए हू' करने के बजाए हँसने लगी !
👉किसीने पूछा : क्या ज़ख्म में दर्द नहीं हो रहा ?
👉🏿फ़रमाया : 👇🏿👇🏿
"सब्र के बदले में हाथ आने वाले षवाब की ख़ुशी में मुझे चोट की तकलीफ का ख़याल ही न आ सका।

🌹अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदा फरमाते है :👇🏿👇🏿
☝🏽अल्लाह عزوجل की अ-ज़मत और मा'रिफत का ये हक़ है की तुम अपनी तकलीफ की शिकायत न करो और न अपनी मुसीबत का तज़्किरा करो।

❌बिला ज़रूरत बीमारी, परेशानी का दुसरो पर इज़हार बे सब्री है, अफ़सोस ! मा'मूली नज़्ल और जुकाम या दर्द सर भी हो जाए तो बा'ज़ लोग ख्वाह म ख्वाह हर एक को कहते फिरते है।

📚बीमार आ'बीद, स. 4
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⚡मुसीबत छुपाने की फ़ज़ीलत⚡

💐मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ❗
👉बीमारी और परेशानी पर शिकवा करने के बजाए सब्र की आदत बनानी चाहिए की शिकायत करने से मुसीबत दूर नहीं हो जाती बल्कि बे सब्री करने से सब्र का अज्र जाएअ हो जाता है। बिला ज़रूरत बिमारी व मुसीबत का इज़्हार करना भी अच्छी बात नहीं।

🌷हज़रते सय्यिदुना इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه फरमाते है की
🌴रसूले अकरम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया :
👉🏿जिस के माल या जान में मुसीबत आई फिर उस ने उसे छुपाया और लोगो से उस की शिकायत न की तो अल्लाह عزوجل पर हक़ है की उसकी मग्फिरत फरमा दे।

📚बीमार आ'बीद, स. 5
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🌷बीमार के लिये तोहफ़ा🌷

🌴सरवरे आ'लम ﷺ का फरमान है
👉🏿जब कोई बन्दा बीमार हो जाता है तो अल्लाह عزوجل उसकी तरफ दो फिरिश्ते भेजता है की जा कर देखो मेरा बन्दा क्या कहता है।

👉🏽बीमार अगर अल्लाह عزوجل की हम्दो सना करता (मसलन अल्हम्दुलिल्लाह कहता) है तो फिरिश्ते अल्लाह عزوجل की बारगाह में जा कर उसका क़ौल अर्ज़ करते है और अल्लाह عزوجل खूब जानता है।

☝🏽इरशादे इलाही عزوجل होता है :
👉🏿अगर में ने इस बन्दे को इस बीमारी में मौत दे दी तो इसे जन्नत में दाखिल करूंगा और अगर सिह्हत अता की तो इसे पहले से भी बेहतर गोश्त और खून दूंगा और इसके गुनाह को मुआफ़ कर दूंगा।

📚बीमार आ'बीद, स. 6
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💊बिमारी के फ़ज़ाइल पर फ़रमाने मुस्तफा ﷺ 🌴

👉🏽बेशक अल्लाह عزوجل अपने बन्दे को बिमारी में मुब्तला फ़रमाता रहता है यहाँ तक की उस का हर गुनाह मिटा देता है।
📕अल-मुस्तदरक, जी.1, स.669, हदिष:1326

👉🏽जब मोमिन बीमार होता है तो अल्लाह عزوجل उसे गुनाहो से ऐसा पाक कर देता है जेसे भट्टी लोहे के ज़ंग को साफ़ कर देती है।
📙अल-तरगिब् वल-तरहिब, जी.4, स.146, हदिष:42

👉🏽जब अल्लाह عزوجل किसी मुसलमान को जिस्मानी तक्लीफ़ में मुब्तला करता है तो फिरिश्ते से फ़रमाता है :
☪जो नेक अ'मल ये तंदुरस्ती की हालत में किया करता था इसके लिये वोही लिखो। फिर अगर अल्लाह عزوجل उसे शिफ़ा अता फ़रमाता हओ तो उसके गुनाह धूल जाते है और वो पाक हो जाता है और अगर उसकी मौत आ जाए तो उसकी मग्फिरत फ़रमा दी जाती है और उस पर रहम किया जाता है।
📙मुसन्दी इमाम अहमद बिन हम्बल, जी.4, स.297

👉🏽मरीज़ के गुनाह इस तरह झड़ते है जेसे दरख़्त के पत्ते झड़ते है।
📙अल-तरगिब् वल-तरहिब, जी.4, स.147, हदिष:56

☝🏽अल्लाह तआ'ला फ़रमाता है : जब अपने बन्दे की आँखे ले लू फिर वो सब्र करे, तो आँखों के बदले उसे जन्नत दूंगा।
📙बुखार, जी.4, स.6

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 6-7
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❗बिगैर बीमार हुए वफ़ात❗

🌴सरकारे मदीना ﷺ के ज़माने में एक शख्स का इंतिक़ाल हुवा तो किसी ने कहा :
👉🏽ये कितना खुश नसीब है की बीमार हुए बिगैर ही फौत हो गया।
🌴तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :
👉🏽तुम पर अफ़सोस है ! क्या तुम्हे नहीं मालुम की अगर अल्लाह عزوجل उसे किसी बिमारी में मुब्तला फ़रमाता तो उसके गुनाह मिटा देता।
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☑एक रात के बुखार का षवाब☑

👉🏽बुखार में जिस्मानी तक्लीफ़ ज़रूर है मगर उखरवी फायदे बे शुमार है, लिहाज़ा घबरा कर शिकवा व शिकायत करने के बजाए सब्र कर के अज्र कमाना चाहिये।

🌷हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से मरवी है :
जो एक रात बुखार में मुब्तला हो और उस पर सब्र करे और अल्लाह عزوجل से राज़ी रहे तो अपने गुनाहो से ऐसे निकल जाए जेसे उस दिन था जब उस की माँ ने उसे जना था।
📒शोएबुल ईमान, जी.7, स.167, हदिष:9868

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 7
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🔥बुखार महशर की आग से बचाएगा🔥

🌴हुज़ूर ﷺ ने एक मरीज़ की इयादत फ़रमाई तो फ़रमाया :
👉🏽तुझे बिशारत हो की अल्लाह तआला फ़रमाता है :

👉🏽बुखार मेरी आग है इस लिये में इसे अपने मोमिन बन्दे पर दुन्या में मुसल्लत करता हु ताकि क़यामत के दिन इसकी आग का हिस्सा (यानि बदला) हो जाए।

🖊हवाला
📙इब्ने माजा, जी.4, स.105, हदिष:347
📚बीमार आबिद, सफा 7
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❗बुखार को बुरा न कहो❗

🌴सरकारे मदीना ﷺ हज़रते उम्मे साइब رضي الله تعالي عنه के पास तशरीफ़ ले गए। फ़रमाया :
👉🏽तुम्हे क्या हो गया है जो काप रही हो ?

👉🏽अर्ज़ की : बुखार आ गया है, अल्लाह عزوجل इस में बरकत न करे।

🌴इस पर आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : बुखार को बुरा न कहो की ये तो आदमी की खताओं को इस तरह दूर करता है जेसे भट्टी लोहे के मेल को।
📒मुस्लिम, स. 1392, हदिष:2575

🌱हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा इस हदिष के तहत फ़रमाते है :
👉🏽बीमारिया एक या दो उज़्व को होती है मगर बुखार सर से पाउ तक हर रग में असर करता है, लिहाज़ा ये सारे जिस्म की खताओं और गुनाहो को मुआफ़ कराएगा।
📗मीरआतुल मनाजिह, जी.2, स.413

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 8
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🌴सरकार को दो मर्दों के बराबर बुखार आता था🌴

🌺हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضي الله تعالي عنه फ़रमाते है की में बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुवा और जब में ने आप को छुआ तो अर्ज़ की :
👉🏽या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप को बहुत तेज़ बुखार है !

🌴फ़रमाया : हा ! मुझे दो मर्दों के बराबर बुखार होता है।

👉🏽मेने अर्ज़ की : क्या ये इस लिये की आप के लिये दुगना षवाब होता है ?
🌴इर्शाद फ़रमाया : हा !

🖊हवाला
📒मुस्लिम, स. 1390, हदिष:2571
📚बीमार आबिद, सफा 9
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❗हमने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा❗

👉🏽बाज़ लोग बीमारियो और परेशानियो पर बे सब्री का मुज़ाहरा करते हुए ये कहते सुनाई देते है की "हमने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा फिर भी न जाने हम पर ये परेशानिया क्यू !

👉🏽ऐसो के लिये इस हदिशे पाक में काफी व वाफी दर्स मौजूद है, यक़ीनन हमारे मासूम आक़ा ने कभी भी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था, फिर भी आप को दीगर मर्दों के मुक़ाबले में दुगना बुखार आता था।

👉🏽तो मालुम हुवा की "दुसरो का कुछ बिगाड़ना" ही बीमारियो और मुसीबतो का बाइस नहीं होता, नीज़ बीमारिया और परेशानिया मुसलमान को षवाब का खज़ाना दिलाती, गुनाहो को मुआफ़ करवाती और सब्र करने वाले मुसलमान को जन्नत का हक़दार बनाती है।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 9
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❗मरीज़ और कलीमए कुफ़्र❗

👉🏽बाज़ अवकात नादान लोग बिमारी और मुसीबत से तंग आ कर अल्लाह तआला पर एतिराज़ करते हुए कुफ्रिययात बक देते है,

👉🏽यक़ीनन इस तरह उनकी बिमारी या मुसीबत दूर तो होती नहीं उल्टा उन की अपनी आख़िरत दाव पर लग जाती है।

👉🏽अगर किसी ने बिमारी, बे रोजगारी, गुरबत या किसी मुसीबत की वजह से अल्लाह पर एतिराज़ करते हुए कहा :
☝🏽ऐ मेरे रब ! तू मुज़ पर क्यू ज़ुल्म करता है ? हाला की मेने तो कोई गुनाह किया ही नहीं।
तो वो काफ़िर है।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 9
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💞षवाब के शौक़ में मांग कर बुखार लिया💞
(हिकायत)

👉🏽करोड़ मरहबा ! की षवाब कमाने के शौक़ में दुआ मांग कर बुखार हासिल कर लिया।
🌱चुनान्चे हज़रते अबू सईद खुदरी رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की एक मुसलमान ने अर्ज़ की :
🌴या रसूलुल्लाह ﷺ ! हम जिन बीमारियो में मुब्तला होते है हमारे लिये उनमे क्या है ?

🌴इरशाद फ़रमाया : ये बीमारिया गुनाहो के कफ्फारे है।

👉🏽हज़रते उबय बिन काब رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ की : या रसूलुल्लाह ﷺ ! अगर्चे बिमारी कम ही हो ?

🌴फ़रमाया : अगर्चे काटा चुभे या कोई और तकलीफ पहुचे।

👉🏽तो हज़रते उबय बिन काब رضي الله تعالي عنه ने अपने लिये ये दुआ की
या अल्लाह عزوجل ! मरते दम तक बुखार मुझ से जुदा न हो और ये बुखार मुझे हज, उम्रह, अल्लाह عزوجل की राह में जिहाद और फ़र्ज़ नमाज़ बा जमाअत अदा करने से न रोके।

👉🏽फिर उनके विसाल तक जिसने भी उन्हें छुवा बुखार की तपिश महसूस की।
📙मुसन्दी इमाम अहमद बिन हम्बल, जी.4 स.48 हदिष:11183

☝🏽अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उनके सदके हमारी बे हिसाब मगफिरत हो।

👉🏽यक़ीनन मुसलमान के लिये बीमारियो और परेशानियो में दोनों जहान की भलाइया है, बुखार हो या कोई सी बिमारी या मुसीबत उस से गुनाह मुआफ़ होते और जन्नत का सामान होता है।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 10
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🌹राहे खुदा में सर दर्द पर सब्र की फ़ज़ीलत🌹

🌴नूर के पैकर ﷺ ने फ़रमाया
👉🏽जो अल्लाह की राह में सर दर्द में मुब्तला हो फिर उस पर सब्र करे तो उस के पिछले गुनाह मुआफ़ क्र दिये जाएंगे।

🌱सर दर्द के शुक्राने में 400 रकअत नफ्ल🌱
(हिकायत)

👉🏽मन्कुल है की हज़रते फतह अलैरहमा को दर्दे सर हुवा तो खुश हो कर इरशाद फ़रमाया
अल्लाह ने मुझे वो मर्ज़ इनायत फ़रमाया जो अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम को दरपेश होता था लिहाज़ा अब इस का शुक्राना ये है की में 400 में रकअत नफ्ल पढ़ु।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 11
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🌹बुखार और दर्दे सर मुबारक अमराज़ है🌹

🌺आला हज़रत رضي الله تعالي عنه फरमाते है दर्दे सर और बुखार वो मुबारक अमराज़ है जो अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को होते थे,

👉🏽एक वालीयुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह को दर्दे सर हुवा, आप ने इस शुक्रिये में तमाम रात नवाफ़िल में गुज़ार दी की रब्बुल इज़्ज़त ने मुझे वो मरज़ दिया जो अम्बिया को होता था।

☝🏽अल्लाहु अकबर ! यहाँ अवाम की ये हालत है की अगर बराए नाम दर्द मालुम हुवा तो ये ख्याल होता है की जल्द नमाज़ पढ़ ले।

👉🏽फिर फ़रमाया की हर एक मरज़ या तकलीफ जिस्म के जिस जगह पर होती है वो ज्यादा कफ़्फ़ारा उसी मक़ाम का है की जिस का तअल्लुक़ ख़ास इससे है, लेकिन बुखार वो मरज़ है की तमाम जिस्म में सरायत कर जाता है जिस से बी इज़निहि तआला बुखार तमाम रग रग के गुनाह निकाल लेता है।

🖊हवाला
📒मल्फ़ज़ाते आला हज़रत, सफा 118
📚बीमार आबिद, सफा 12
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📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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❗नस चढ़ जाने की फ़ज़ीलत❗

🌾उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहु अन्हा फरमाती है की मेने नूर के पैकर ﷺ को फरमाते सुना :

👉🏽जब मोमिन की नस चढ़ जाती है तो अल्लाह उसका एक गुनाह मिटा देता है, उसके लिये एक नेकी लिखता है और उसका एक दर्जा बुलंद फरमाता है।

🖊हवाला
📙मुअजम् अवसत, जी.2 स.48 हदिष:246
📚बीमार आबिद, सफा 14
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❗पेट की बिमारी में मरने की फ़ज़ीलत✔

🌴सरकारे आली वक़ार ﷺ का फरमाने राहत निशान है :
👉🏽जिसे उसके पेट की बिमारी ने मारा उसे अज़ाबे क़ब्र न होगा।
📗तिर्मिज़ी, जी.2 स.334 हदिष : 1066

🌾हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा फरमाते है :
👉🏽पेट की बिमारी से मरने वाला अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ है क्यू की उसे दुन्या में इस मरज़ की वजह से बहुत तकलीफ पहुच चुकी, ये तकलीफे क़ब्र दूर करने वाली बन गई।
📗मीरआत, जी.2 स.425

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 14-15
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🌹6 तरह की बीमारियो में मरने वाले शहीदों की निशान देही🌹

👉🏽1 पेट की बिमारी में मरने वाला। (इसके हाशिये में सदरूश्शरीअह रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है : इस से मुराद ऐसी बीमारी जिसमे पेट बढ़ जाता है और प्यास बहुत लगती है) या दस्त (मोशन) आना, दोनों क़ौल है और ये लफ्ज़ दोनों को शामिल हो सकता है लिहाज़ा उसके फ़ज़्ल से उम्मीद है की दोनों को शहादत का अज्र मिले।

👉🏽2 जातुल जम्बा यानि पहलु या पसलि के दर्द में मरने वाला।

👉🏽3 सील (की इसमें फेफड़ो में ज़ख्म हो जाते और मुह से खून आने लगता है) इस में मरने वाला।

👉🏽4 बुखार में मरने वाला।

👉🏽5 मिर्गी में मरने वाला।

👉🏽6 जो मरज़ में "ला-इलाह इल्ला अन्त सुब्हानक इन्नी कुन्तु मीनज़-ज़ालिमिन" 40 बार कहे और उसी मरज़ में मर जाए वो शहीद है और अच्छा हो गया तो उसकी मगफिरत हो जाएगी।

🖊हवाला
📕बहारे शरीअत, जी.1 स.857-863
📚बीमार आबिद, सफा 15
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🌹मरीज़ की इयादत का षवाब🌹

👉🏽हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :

👉🏽मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह عزوجل से अर्ज़ की :
मरीज़ की इयादत करने वाले को क्या अज्र मिलेगा ?

☝🏽अल्लाह عزوجل ने इरशाद फ़रमाया :
उसके लिये दो फ़रिश्ते मुकर्रर किये जाएंगे जो कब्र में हर रोज़ उसकी इयादत करेंगे हत्ता की क़यामत आ जाए।
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🌾बीमार को दुआ के लिये कहो🌾

🌴रसूले अकरम ﷺ का फरमाने अज़मत निशान है :
👉🏽जब तुम किसी बीमार के पास जाओ तो उसे अपने लिये दुआ के लिये कहो की उस की दुआ फिरिश्तो की दुआ की तरह है।

🖊हवाला
📗इब्ने माजा, जी.2 स.191 हदिष : 1441
📚बीमार आबिद, सफा 15-16
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🌾इयादत करते वक़्त की एक सुन्नत🌾

🌴हुज़ूर ﷺ एक आराबी की इयादत को तशरीफ़ ले गए और आदते करीमा ये थी की जब किसी मरीज़ की इयादत को तशरीफ़ ले जाते तो ये फरमाते :
👉🏽कोई हर्ज़ की बात नहीं अल्लाह तआला ने चाहा तो ये मरज़ गुनाहो से पाक करने वाला है।
📗बुखारी, जी.2 स.505 हदिष : 3616
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🌾इयादत में 7 बार पढ़ने की दुआ🌾

🌴हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया :
👉🏽जिसने किसी ऐसे मरीज़ की इयादत की जिस की मौत का वक़्त क़रीब न आया हो और 7 मर्तबा ये अलफ़ाज़ कहे तो अल्लाह तआला उसे उस मरज़ से शिफ़ा अता फ़रमाएगा : "अस-अलुल्लाह अल-अज़ीम रब्बल अशील-अज़ीमी अई-य्यश-फियक" (यानि में अज़मत वाले, अर्शे अज़ीम के मालिक अल्लाह عزوجل से तेरे लिये शिफ़ा का सुवाल करता हु।
📘अबू दाऊद, जी.3 स.251 हदिष : 3106

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 16-17
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🌹इयादत के मदनी फूल🌹

👉🏽मरीज़ की इयादत करना सुन्नत है।

👉🏽अगर मालुम है की इयादत को जाएगा तो उस बीमार पर ना गवार गुज़रेगा ऐसी हालत में इयादत न करे।

👉🏽इयादत को जाए और मरज़ की सख्ती देखे तो मरीज़ के सामने ये ज़ाहिर न करे की तुम्हारी हालत खराब है और न सर हिलाए जिस से हालत का खराब होना समझा जाता है।

👉🏽उसके सामने बाते करनी चाहिए जो उसके दिल को भली मालुम हो।

👉🏽उसकी मिज़ाज पुर्सी करे।

👉🏽उसके सर पर हाथ न रखे मगर जब की वो खुद इसकी ख्वाहिश करे।

👉🏽फ़ासिक़ की इयादत भी जाइज़ है क्यू की इयादत हुकुके इस्लाम से है और फ़ासिक़ भी मुस्लिम है।

🖊हवाला
📘बहारे शरीअत, जी.3 हिस्सा :16 स.505
📚बीमार आबिद, सफा 17
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❗बिमारी और झूट❗

♻Part-01

👉🏽सद करोड़ अफ़सोस ! बड़ा नाज़ुक दौर है, झूट बोलने जेसे हराम और जहन्नम में ले जाने वाले काम से बचने का ज़हन बहुत कम रह गया है,

👉🏽न खौफे खुदा है न शरमे मुस्तफा, न अज़ाबे क़ब्र का धड़का है न दोज़ख़ का खटका ! हर तरफ गोया झूट ! झूट ! और बस झूट का राज है !

👉🏽यक़ीन मानीये ! बिमारी हो या तिमार दार, मरीज़ हो या मिज़ाज पुर्सी करने वाला रिश्तेदार, दोस्त दार या महल्ले दार, जिसे देखो बे धड़क झूट बोलता दिखाई दे रहा है।

👉🏽बिमारी के मुतअल्लिक़ उम्मत की खैर ख्वाहि के लिये बिमारी के चन्द जुदा जुदा उन्वानात के तहत बोले जाने वाले झूट की कुछ मिसाले पेश की जाती है।

📨Continue...

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 17-18
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❗बिमारी और झूट❗

♻Post~02

❗मामूली बिमारी को सख्त बिमारी कहने के मुतअल्लिक़ झूट की मिसाले

♻Part~01

👉🏽जिस किस्म के मुबालगे का आदतन रवाज है लोग उसे मुबालगे ही पर गुमान करते है इस के हक़ीक़ी माना मुराद नही लेते वो झूट में दाखिल नहीं,

👉🏽मसलन ये कहा की तुम्हारे पास हज़ार मर्तबा आया या हजार मर्तबा मेने तुम से ये कहा।
यहाँ हज़ार का अदद मुराद नही बल्कि कई मर्तबा आना और कहना मुराद है, ये लफ्ज़ ऐसे मौके पर नही बोला जाएगा की एक ही मर्तबा आया हो या एक ही मर्तबा कहा हो और अगर एक मर्तबा आया और कहा हज़ार मर्तबा आया तो झुटा है।
📒रद्दल-महतार, जी.9 स.705

👉🏽बाज़ अवक़ात बिमारी का तज़्किरा करने में ऐसा मुबालगा किया जाता है की उर्फ़ व रवाज में लोग उस हद की बिमारी को बयान करने के लिये मुबालगे के ऐसे अल्फाज़ इस्तिमाल नहीं करते

👉🏽मसलन किसी को मामूली सी बिमारी हो उस के बारे में कहना : उस की तबीअत बहुत सख्त नासाज़ है ये झूट है।

📨Continue...

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा  18
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❗बीमारी और झूट❗

♻Post~03
⭕मामूली बीमारी को सख्त बिमारी कहने के मुतअल्लिक़ झूट की मिसाले

♻Part~02

👉🏽इज्तिमा वगैरा में हक़ीक़त में तो किसी और वजह से शिर्कत न की और इत्तिफ़ाक़ से कोई मामूली सी बिमारी भी थी मगर गैर हाज़िरी का सबब बिमारी न होने के बावुजूद कहना : "में सख्त बीमार था इस लिये न आ सका"
इस जुमले में गुनाह भरे दो झूट है !
1 मामूली सी बीमारी को सख्त बिमारी कहा
2 बीमारी को गैर हाज़री का सबब क़रार दिया हाला की सबब कुछ और था।

👉🏽इसी तरह मामूली बुखार हो और कहना : मुझे इतना तेज़ बुखार था की सारी रात सो न सका।

👉🏽काम के लिये बोले तो मामूली थकावट होने के बा वुज़ूद जान छुड़ाने के लिये कहना : में बहुत थका हुवा हु किसी और से काम का ख दे" हा सिर्फ इतना कहा "थका हुवा हु" तो झूट नहीं।

👉🏽मामूली सा दर्द हो तब भी बोलना "मेरी टैंगो शदीद दर्द है"

👉🏽युही कोर्ट कचहरी में पेशी वगैरा से बचने के लिये मामूली बिमारी को बड़ा बना कर पेश करना मसलन इनके दिल का शिरयान (vein) बंद है, दिल का दौरा पड सकता है वगैरा।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 19
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🌹बुखार के रूहानी इलाज🌹

👉🏽बुखार वाला ब कसरत "बिस्मिल्लाहिल-कबीर" पढ़ता रहे।

👉🏽गरमी का बुखार हो तो "या हय्यु या क़य्यूम" 47 बार लिख कर या लिखवा कर गले में दाल दीजिये इंशा अल्लाह जाता रहेगा।

👉🏽"या गफुरु" कागज़ पर 3 बार लिख या लिखवा कर गले में डाल या बाज़ू पर बांध दीजिये, इंशा अल्लाह हर किस्म के बुखार से नजात मिलेगी।

👉🏽"ला-इलाह इल्लल्लाहु" 30 बार कागज़ पर लिख कर पानी की बोतल में डाल कर मरीज़ को दिन में 3 बार थोडा थोडा पानी पिलाइये इंशा अल्लाह बुखार उतर जाएगा, ज़रूरत मज़ीद पानी शामिल करते रहिये।

🖊हवाला
📚बीमार आबिद, सफा 24-25
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