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Wednesday 30 November 2016

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वाक़ीअए इफ्क_* #04
     हज़रते उष्मान गनीرضي الله تعالي عنه ने कहा की या रसूलल्लाहﷺ ! जब अल्लाह ने आप के साए को ज़मीन पर नही पड़ने दिया ताकि उस पर किसी का पाउ न पड़ सके तो भला उस माबुदे बरहक़ की गैरत कब ये गवारा करेगी की कोई इंसान आप की ज़ौजए मोहतरम के साथ ऐसी क़बाहत का मूर्तक़िब हो सके ?
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने ये गुज़ारिश की, की या रसूलल्लाहﷺ ! एक मर्तबा आप की नालैने अक़दस में नजासत लग गई थी तो अल्लाह ने हज़रते जिब्राईल को भेज कर आप को खबर दी की आप अपनी नालैन को उतार दे, इस लिये हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها अगर ऐसी होती तो ज़रूर अल्लाह आप पर वही नाज़िल फरमा देता की, आप इन को अपनी ज़ौजिय्यत से निकाल दे।
     हज़रते अबू अय्यूब अंसारीرضي الله تعالي عنه ने जब इस तोहमत की खबर सुनी तो उन्हों ने अपनी बीवी से कहा की ऐ बीवी ! तू सच बता ! अगर हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه की जगह में होता तो क्या तू ये गुमान कर सकती है की में हुज़ूरे अक़दसﷺ की हरमे पाक के साथ ऐसा कर सकता था ? तो उनकी बीवी ने जवाब दिया की अगर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की जगह में रसूलुल्लाहﷺ की बीवी होती तो खुदा की क़सम ! में कभी ऐसी खियानत नही कर सकती थी तो फिर हज़रते आइशा जो मुझ से लाखो दर्जे बेहतर है और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه जो बदर-जहा तुम से बेहतर है भला क्यू कर मुमकिन है की ये दोनों ऐसी खियानत कर सकते है ?

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 315*
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*वुज़ू का तरीका* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अब सीधे हाथ के 3 चुल्लू पानी से इस तरह 3 कुल्लिया कीजिये की हर बार मुह के हर पुर्ज़े पर (हल्क के कनारे तक) पानी बह जाए,

     अगर रोज़ा न हो तो गर-गरा भी कर लीजिये।

     फिर सीधे ही हाथ के 3 चुल्लू से 3 बार नाक में नर्म गोश्त तक पानी चढ़ाइये

     और अगर रोज़ा न हो तो नाक की जड़ तक पानी पहोचाइये,

     अब उल्टे हाथ से नाक साफ़ कर लीजिये और छोटी ऊँगली नाक के सुरखो में डालिये।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 8*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #90
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①④_*
     और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन (4)
जो अल्लाह की मस्जिदों को रोके उनमें खुदा का नाम लिये जाने से (5)
और उनकी वीरानी मे कोशिश करे (6)
उनको न पहुंचता था कि मस्जिदों में जाएं मगर डरते हुए उनके लिये दुनिया में रूस्वाई है (7)
और उनके लिये आख़िरत में बड़ा अज़ाब (8)

*तफ़सीर*
     (4) यह आयत बैतुल मक़दिस की बेहुरमती या निरादर के बारे में उतरी. जिसका मुख़्तसर वाक़िआ यह है कि रोम के ईसाईयो ने बनी इस्राईल पर चढ़ाई की. उनके सूरमाओं को क़त्ल किया, औरतों बच्चों को क़ैद किया, तौरात शरीफ़ को जलाया, बैतुल मक़दिस को वीरान किया, उसमें गन्दगी डाली, सुवर ज़िबह किये (मआज़ल्लाह). बैतुल मक़दिस हज़रत उमरे फ़ारूक की ख़िलाफ़त तक इसी वीरानी में पड़ा रहा. आपके एहदे मुबारक (समयकाल) में मुसलमानों ने इसको नए सिरे से बनाया.
     एक क़ौल यह भी है कि यह आयत मक्का के मुश्रिकों के बारे में उतरी, जिन्हों ने इस्लाम की शुरूआत में हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके साथियों को काबे में नमाज़ पढ़ने से रोका था, और हुदैबिया की जंग के वक़्त उसमें नमाज़ और हज़ से मना किया था.
     (5) ज़िक्र नमाज़, ख़ुत्बा, तस्बीह, वअज़, नअत शरीफ़, सबको शामिल है. और अल्लाह के ज़िक्र को मना करना हर जगह बुरा है, ख़ासकर मस्जिदों में, जो इसी काम के लिये बनाई जाती हैं. जो शख़्स मस्जिद को ज़िक्र और नमाज़ से महरूम करदे, वह मस्जिद का वीरान करने वाला और बहुत बड़ा ज़ालिम है.
     (6) मस्जिद की वीरानी जैसे ज़िक्र और नमाज़ के रोकने से होती है, ऐसी ही उसकी इमारत को नुक़सान पहुंचाने और निरादर करने से भी.
     (7) दुनिया में उन्हें यह रूस्वाई पहुंची कि क़त्ल किये गए, गिरफ़्तार हुए, वतन से निकाले गए, ख़िलाफ़ते फ़ारूक़ी और उस्मानी में मुल्के शाम उनके क़ब्ज़े से निकल गया, बैतुल मक़दिस से ज़िल्लत के साथ निकाले गए.
     (8) सहाबए किराम रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ एक अंधेरी रात सफ़र में थे. क़िबले की दिशा मालूम न हो सकी. हर एक शख़्स ने जिस तरफ़ उस का दिल जमा, नमाज़ पढ़ी. सुबह को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाल अर्ज़ किया तो यह आयत उतरी. इससे मालूम हुआ कि क़िबले की दिशा मालूम न हो सके तो जिस तरफ़ दिल जमा कि यह क़िबला है, उसी तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़े.
     इस आयत के उतरने के कारण के बारे में दूसरा क़ौल यह है कि यह उस मुसाफ़िर के हक़ में उतरी, जो सवारी पर नफ़्ल अदा करे, उसकी सवारी जिस तरफ़ मुंह फेर ले, उस तरफ़ उसकी नमाज़ दुरूस्त है. बुख़ारी और मुस्लिम की हदीसों में यह साबित है.
     एक क़ौल यह है कि जब क़िबला बदलने का हुक्म दिया गया तो यहूदियों ने मुसलमानों पर ताना किया. उनके रद में यह आयत उतरी. बताया गया कि पूर्व पश्चिम सब अल्लाह का है, जिस तरफ़ चाहे क़िबला निश्चित करे. किसी को ऐतिराज़ का क्या हक़ ? (ख़ाज़िन).
     एक क़ौल यह है कि यह आयत दुआ के बारे में उतरी है. हुज़ूर से पूछा गया कि किस तरफ़ मुंह करके दुआ की जाए. इसके जवाब में यह आयत उतरी. एक क़ौल यह है कि यह आयत हक़ से गुरेज व फ़रार में है. और ” ऐनमा तुवल्लु” (तुम जिधर मुंह करो) का ख़िताब उन लोगों को है जो अल्लाह के ज़िक्र से रोकते और मस्जिदों की वीरानी की कोशिश करते हैं. वो दुनिया की रूसवाई और आख़िरत के अज़ाब से कहीं भाग नहीं सकते, क्योंकि पूरब पश्चिम सब अल्लाह का है, जहाँ भागेंगे, वह गिरफ़्तार फ़रमाएगा. इस संदर्भ में “वज्हुल्लाह” का मतलब ख़ुदा का क़ुर्ब और हुज़ूर है. (फ़त्ह).
     एक क़ौल यह भी है कि मानी यह हैं कि अगर काफ़िर ख़ानए काबा में नमाज़ से मना करें तो तुम्हारे लिये सारी ज़मीन मस्जिद बना दी गई है, जहाँ से चाहे क़िबले की तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ो.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #40
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا حَفِيْظُ*
जो 16 बार हर रोज़ पढ़े ان شاء الله हर तरह बहादुर रहे।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 251*
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Tuesday 29 November 2016

*निय्यत अ'मल से बेहतर है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      हुज़ूर ﷺ का फरमाने दिलकुशा है : मुसलमान की निय्यत उसके अ'मल से बेहतर है।

     अमीरुल मुअमिनीन अलिय्युल मुर्तज़ाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दे को अच्छी निय्यत पर वो इनआमात दिये जाते है जो अच्छे अ'मल पर भी नहीं दिये जाते क्यू की निय्यत में रियाकारी नहीं होती।

*_निय्यत का फल_*
     बानी इसराइल का एक शख्स क़हत साली में रेत के एक टीले के पास से गुज़रा. उसने दिल में सोचा की अगर ये रेत गल्ला होती तो में इसे लोगो में तक़्सीम कर देता।  इस पर अल्लाह عزوجل ने उनके नबी की तरफ वही भेजी की उस से फरमाए की अल्लाह ने तुम्हारा सदक़ा क़ुबूल कर लिया और तेरी अच्छि निय्यत के बदले में उस टीले के ब-क़दर गल्ला सदक़ा करने का षवाब दिया।

*✍🏽40 फरमाने मुस्तफा, स. 14-15*
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*वुज़ू का तरीका* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     काबतुल्लाह शरीफ की तरफ मुह करके उची जगह बैठना मुस्तहब है।
     वुज़ू के लिये निय्यत करना सुन्नत है, निय्यत न हो तब भी वुज़ू हो जाएगा मगर षवाब न मिलेगा।
     निय्यत दिल के इरादे को कहते है। दिल में निय्यत होते हुए ज़बान से भी कहलेना अफ़्ज़ल है
     लिहाज़ा ज़बान से इस तरह निय्यत कीजिये की
     में हुक्मे इलाही बजा लेन और पाकी हासिल करने के लिये वुज़ू कर रहा हु।
     बिस्मिल्लाह कह लीजिये की ये भी सुन्नत है।
     बल्कि *बिस्मिल्लाहि-वलहम्दु-लिल्लाह* कह लीजिये की जब तक बा वुज़ू रहेंगे फ़रिश्ते नेकियां लिखते रहेंगे।
     अब दोनों हाथ 3-3 बार पहोचो तक धोइये,
     दोनों हाथो की उंगलियो का ख़िलाल भी कीजये।
     कम अज़ कम 3 बार मिस्वाक कीजिये और हर बार मिस्वाक को धो लीजिये।

     हज़रत मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा फरमाते है : मिस्वाक करते वक़्त नमाज़ में क़ुरआने मजीद की किराअत और ज़िकृल्लाह के लिये मुह पाक करने की निय्यत करनी चाहिये।

बाक़ी अगली पोस्ट में...इन्शा अल्लाह
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 8*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #89
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①③_*
     और यहूदी बोले नसरानी (ईसाई) कुछ नहीं और नसरानी बोले यहूदी कुछ नहीं (1)
हालांकि वो किताब पढ़ते हैं (2)
इसी तरह जाहिलों ने उनकी सी बात कही (3)
तो अल्लाह क़यामत के दिन उनमें फ़ैसला कर देगा जिस बात में झगड़ रहे हैं

*तफ़सीर*
     (1) नजरात के ईसाइसों का एक दल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में आया तो यहूदी उलमा भी आए और दोनों में मुनाज़िरा यानी वार्तालाप शुरू हो गया. आवाज़ें बलन्द हुई, शोर मचा. यहूदियों ने कहा कि ईसाइयों का दीन कुछ नहीं और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और इन्जील शरीफ़ का इन्कार किया. इसी तरह ईसाईयों ने यहूदियों से कहा कि तुम्हारा दीन कुछ नहीं और तौरात शरीफ़ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का इन्कार किया. इस बाब में यह आयत उतरी.
     (2) यानी जानकारी के बावजूद उन्होंने ऐसी जिहालत की बात की. हालांकि इन्जील शरीफ़ जिसको ईसाई मानते हैं, उसमें तौरात शरीफ़ और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के नबी होने की पुष्टि है. इसी तरह तौरात जिसे यहूदी मानते हैं, उसमें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के नबी होने और उन सारे आदेशों की पुष्टि है जो आपको अल्लाह तआला की तरफ़ से अता हुए.
     (3) किताब वालों के उलमा की तरह उन जाहिलों ने जो इल्म रखते थे न किताब, जैसे कि मुर्तिपूजक, आग के पुजारी, वग़ैरह, उन्होंने हर एक दीन वाले को झुटलाना शुरू किया, और कहा कि वह कुछ नहीं. इन्हीं जाहिलों में से अरब के मूर्तिपूजक मुश्रिकीन भी हैं, जिन्होंने नबीये करीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके दीन की शान में ऐसी ही बातें कहीं.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #39
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا كَبِيْرُ*
जो 9 मर्तबा किसी बीमार पर पढ़ कर दम करे ان شاء الله सिहहत याब जो जाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 251*
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Monday 28 November 2016

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वाक़ीअए इफ्क_* #03
     हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنه मदीना पहुचते ही सख्त बीमार हो गई, पर्दा नशीन तो थी ही साहिबे फराश हो गई और उन्हें इस तोहमत तराशी की बिलकुल खबर ही नही हुई गो की हुज़ूरﷺ को हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنه की पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म व यक़ीन था मगर चुकी अपनी बीबी का मुआमला था इस लिए आपﷺ ने अपनी तरफ से अपनी बीवी की बराअत और पाक दामनी का एलान करना मुनासिब नही समझा और वहीऐ इलाही का इंतज़ार फरमाने लगे।
     इस दरमियान आपﷺ अपने मुख्लिस असहाब से इस मुआमले में मशवरा फरमाते रहे ताकि इन लोगो के ख्यालात का पता चल सके। चुनांचे हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه से जब आप ने इस तोहमत के बारे में गुफ्तगू फ़रमाई तो उन्हों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाहﷺ ! ये मुनाफ़िक़ यक़ीनन झुटे है इस लिए की जब अल्लाह को ये गवारा नही की आप के जिस्मे अतहर पर एक मख्खी भी बैठ जाए क्यू की मख्खी नजासतो पर बैठती है तो भला जो औरत ऐसी बुराई की मूर्तक़िब हो खुदा कब और कैसे बर्दास्त फ़रमाएगा की वो आप की ज़ौजिय्यत में रह सके।

बाक़ी अगली पोस्ट में... ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 313*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नमाज़ सल्तनत से बेहतर_*
     हज़रते मैमून बिन मेहरानرضي الله تعالي عنه मस्जिद में आए, उनसे कहा गया जमाअत खत्म हो गई और लोग जा चुके है ये सुन कर उन की ज़ुबांन पर बे साख्ता जारी हुवा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ फिर फ़रमाया : मेरे नज़दीक बा जमाअत नमाज़ की फ़ज़ीलत इराक की हुक्मरानी से ज्यादा है।
*✍🏽मुकाशफतुल कुलूब, स. 268*

*_बाग़ मसाकिन पर सदका कर दिया_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमरرضي الله تعالي عنه फरमाते है : हज़रते उमर फारूकرضي الله تعالي عنه अपने एक बाग़ की तरफ तशरीफ़ ले गए, जब वापस हुवे तो लोग नमाज़े असर अदा कर चुके थे, ये देख कर आप ने पढ़ा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ और इर्शाद फ़रमाया : मेरी असर की जमाअत फौत हो गई है, लिहाजा में तुम्हे गवाह बनाता हु की मेरा बाग़ मसाकिन पर सदका है ताकि ये इस काम का कफ़्फ़ारा हो जाए।

     अल्लाहु अकबर ! मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आपने हमारे बुज़ुर्गो के नज़दीक जमाअत की किस कदर अहमिय्यत थी, उनके नज़दीक माल व औलाद का तलफ़ (ज़ाएअ) हो जाने से बड़ी मुसीबत नमाज़े बा जमाअत छूट जाना था।
     अल्लाह عزوجل हमारे दिलो में भी ऐसा ज़ौक़ ओ शोक अता करे।
आमीन........
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 19*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #88
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①①_*
     और किताब वाले बोले हरगिज़ जन्नत में न जाएगा मगर वह जो यहूदी या ईसाई हो (12)
ये उनकी ख्य़ालबंदिया हैं, तुम फ़रमाओ लाओ अपनी दलील (13)
अगर सच्चे हो

*तफ़सीर*
     (12) यानी यहूदी कहते हैं कि जन्नत में सिर्फ़ वही दाख़िल होंगे, और ईसाई कहते हैं कि फ़क़त ईसाई जाएंगे, और ये मुसलमानों को दीन से हटाने के लिये कहते हैं. जैसे स्थगन आदेश वग़ैरह के तुच्छ संदेह उन्होंने इस उम्मीद पर पेश किये थे कि मुसलमानों को अपने दीन में कुछ संदेह हो जाए. इसी तरह उनको जन्नत से मायूस करके इस्लाम से फेरने की कोशिश करते हैं. चुनांचे पारा के अन्त में उनका यह कथन दिया हुआ है “वक़ालू कूनू हूदन औ नसारा तहतदू” (यानी और किताब वाले बोले यहूदी या ईसाई हो जाओ, राह पा जाओगे). अल्लाह तआला उनके इस बातिल ख़्याल का रद फ़रमाता है.
     (13) इस आयत से मालूम हुआ कि इन्कार का दावा करने वाले को भी दलील या प्रमाण लाना ज़रूरी है. इसके बिना दावा बातिल और झूठा होगा.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①②_*
     हाँ क्यों नहीं जिसने अपना मुंह झुकाया अल्लाह के लिये और वह नेकी करने वाला है(14)
तो उसका नेग उसके रब के पास है, और उन्हें न कुछ अन्देशा हो और न कुछ ग़म (15)

*तफ़सीर*
     (14) चाहे किसी ज़माने, किसी नस्ल, किसी क़ौम का हो.
     (15) इसमें इशारा है कि यहूदी और ईसाईयों का यह दावा कि जन्नत में फ़क़त वही मालिक हैं, बिल्कुल ग़लत है, क्योंकि जन्नत में दाख़िला सही अक़ीदे और नेक कर्मों पर आधारित है, और यह उनको उपलब्ध नहीं.
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Sunday 27 November 2016

*इल्मे दिन की  फज़ीलत पर 7 फरामीने मुस्तफा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*(1) अजीम ने'मत*_
     अल्लाह जिस के साथ भलाई का ईरादा  फरमाता है। उसे दीन की समज बुझ अ़ता़ फरमाता है।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/43*

_*(2) गुनाहो की मुआफ़ी*_
     जो बन्दा इल्म की जूस्तजू में जूते ,मौजे या कपड़े पहनता हे तो अपने घर की चौखट से निकलते ही उसके सारे गुनाह मुआफ़ कर दिए जाते है।
*✍🏽तिबरानी, 4/204*

*_(3) लौटने तक राहे खुदा में_*
     जो इल्म की तलास में निकलता है वोह वापस लौटने तक अल्लाह की राह में होता है।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 4/294*

*_(4) राहे इल्म में इंतेक़ाल करने वाला शहीद है_*
     इल्म का एक बाब जिसे आदमी सीखता है मेरे नज्दिक् हजार  रकअत नफ्ल पढ़ने से जियादा पसन्दीदा है ओर जब किसी ताबितुल इल्म को हासिल करते हुऐ मोत आ जाए वो सहिद है।
*✍🏽अल-तरगिब् वल-तरहिब, 1/54*

*_(5) अच्छी निय्य्त से सीखना सीखाना_*
     जो मेरी इस मस्जिद में सिर्फ भलाई की बात सीखने या सीखाने के लिए आया हो तो वो अल्लाह की राह में ज़िहाद करने वाले की तरह है और जो किसी और निय्यत से आया तो हो वो गैर के माल पर नजर रखने वाले की तरह है।
*✍🏽इब्ने माजह, 1/149*

_*(6) अच्छी तरह याद कर के सीखा ने की फज़ीलत*_
     जो कोई अल्लाह के फराइज से मुतअल्लीक एक या दो या तिन या चार या पाच कलिमात सीखे ओर उसे अच्छी  तरह याद करले और फिर लोगो को सीखाये तो वोह जन्न्त में जरूर दाखिल होगा।
     हजरते सय्यिदुना अबु हुरैराرضي الله تعالي عنه फरमाते है: "में रसुलल्लाहﷺ से यह बात सुनने के बा'द कोई हदीस नही भुला।"
*✍🏽अल-तरगिब् वल-तरहिब, 1/54*

*_(7) हज़ार रक्अतो से बेहतर अमल_*
     तुम्हारा किसी को किताबुल्लाह की एक आयत सिखाने के लिए जाना तुम्हारे लिये सो रक्अते अदा करने से बेहतर है ओर तुम्हारा किसी को इल्म का एक बाब सिखाने के लिए जाना ख्वाह उस पर अमल किया जाए या न किया जाए तुम्हारे लिए हजार रक्अते अदा करने से बेहतर है।
*✍🏽इब्ने माजह, 1/142*
*✍🏽इल्मो हिकमत के 125 मदनी फूल, 11*
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*सिरते मुस्तफा*
*_दसवा बाब_* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वाक़ीअए इफ्क_* #02
     हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه ने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها को देखा और चुकी पर्दे की आयत नाज़िल होने से पहले वो बारहा उम्मुल मुअमिनिन को देख चुके थे इस लिये देखते ही पहचान लिया और उन्हें मुर्दा समज कर "اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ" पढ़ा इस आवाज़ से वो जाग उठी। हज़रते सफ्वानرضي الله تعالي عنه ने फौरन ही उन को अपने ऊंट पर सुवार कर लिया और खुद ऊंट की मुहार थाम कर पैदल चलते हुए अगली मंज़िल पर हुज़ूरﷺ के पास पहुच गए।
     मुनाफ़ीक़ो के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस वाक़ीए को हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها पर तोहमत लगाने का ज़रिया बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चर्चा किया यहाँ तक की मदीने में इस मुनाफ़िक़ ने इस शर्मनाक तोहमत को इस क़दर उछाला और इतना शोरो गुल मचाया की मदीने में हर तरफ इस इफ्तिरा और तोहमत का चर्चा होने लगा और बाज़ मुसलमान मशलन हज़रते हस्सान बिन षाबित और हज़रते मिस्तह बिन अशाशा और हज़रते हमना बिन्ते हजश ने भी इस तोहमत को फेलाने में कुछ हिस्सा लिया।
     हुज़ूरे अक़दसﷺ को इस शर अंगेज़ तोहमत से बेहद रन्ज व सदमा पहुचा और मुखिलस मुसलमानो को भी इन्तिहाई रंजो गम हुवा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 313*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूर ﷺ ने बाज़ नमाज़ों में कुछ लोगो को गैर हाज़िर पाया तो इर्शाद फ़रमाया : में चाहता हु की किसी शख्स को हुक्म दू की वो नमाज़ पढ़ाए, फिर में उन लोगो की तरफ जाऊ जो नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाते है और उन पर उनके घर जला दू।
*✍🏽शाहीह मुस्लिम*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! गौर कीजिये हमारे आक़ा ﷺ जो अपनी उम्मत से बेहद महब्बत फरमाते और सारी सारी रात उम्मत की बख्शीश व मगफिरत के लीये आंसू बहाते रहे, ऐसे शफ़ीक़ व करीम आक़ा ने शाने जलाल में फ़रमाया :
*जो लोग जमाअत से नमाज़ नहीं पढ़ते, मेरा जी चाहता है की उनके घरो को आग लगा दू।*

*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 16*

अल्लाह عزوجل अपने हबीब ﷺ के सदके के हम सभी को बा जमाअत नमाज़ अदा करने का शोख ओ जौक अता करे।
आमीन.....
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Saturday 26 November 2016

*सरकारे मदीना की मिरास*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
                                       
     हजरते अबु हुरैराرضي الله تعالي عنه ऐक बार बाजार में तशरीफ ले गये ओर बाजार में लोगो से कहा : तुम लोग यहा पर हो। ऑर मस्जिद में ताजदरे मदीनाﷺ की मिरास तक्सिम हो रही है। येह सुन कर लोग बाज़ार छौड कर  मस्जिद की तरफ गये और वापस आकर हज़रते सयिय्दुना अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से कहा कि हम ने मीरास तक्सीम होते तो नही, देखा आपرضي الله تعالي عنه ने फरमाया कि फिर तुम लोगो ने  क्या देखा ?
     उन लोगो ने बयान किया कि हमने ऐख गुरौह  देखा जो अल्लाह के जीक् और   तिलावते कलामे पाक मे है ओर इल्मे दिन की ता'लीम मे मसरूफ है, हज़रते  सयिय्दुना अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه ने फरमाया : सरकारे मदीनाﷺ की येही तो मीरास  है।"

*✍🏽इल्मो हिकमत के 125 मदनी फूल, 9*
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खादिमे दिने नबीﷺ , *साक़ीब वहोरा*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अकल्मन्द कौन ?_*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सब इबादतों में अहम इबादत नमाज़ है और येही जरीअए नजात और जन्नत की कुन्जी है। इस लीये नमाज़ की भरपूर हिफाज़त करनी चाहिये और इसे वक़्त पर जमाअत के साथ अदा करना चाहिये।
     उमुमन देखा जाता है की लोग घर में ही नमाज़ पढ़ लेते है और मस्जिद की हाज़िरी से कतराते और महज़ सुस्ती की वज्ह से षवाबे अज़ीम से महरूम हो जाते है। याद रखिये ! हर आकिल, बालिग़, आज़ाद, क़ादिर पर जमाअत वाजिब है, बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनाहगार और मुस्तहिके सजा है और कई बार तर्क करे तो फ़ासिक़ मर्दुदश्शहादा (यानी उस की गवाही मक़्बूल नहीं) और उस को सख्त सज़ा दी जाएगी। अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया (खामोश रहे) तो वो भी गुनेहगार हुवे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/582*

     अबू ज़ुबैर फरमाते है : मेने हज़रत जाबिरرضي الله تعالي عنه से सुना, हमारे घर मस्जिद से दूर थे तो हमने अपने घरो को फरोख्त करने का इरादा किया ताकि हम मस्जिद के करीब हो जाए, तो रसूले अकरमﷺ ने हमें मना फरमा दीया और इर्शाद फ़रमाया : तुम्हे हर कदम के बदले षवाब मिलता है।
*✍🏽शाहीह मुस्लिम, 335*

     सहाबाए किराम में बा जमाअत नमाज़ अदा करने का कितना ज़बरदस्त जज़्बा था, वाकई पाचो वक्त एक एक मिल का सफ़र कर के आना आसान काम नहीं।
     इसके बर अक्स हमारा हाल ये है की हमारे घरो के करीब मसाजिद मौजूद है, मस्जिद दूर हो और पैदल जाने में सुस्ती हो तो गाडी, मोटर साइकल के ज़रिए जाने की तरकीब बन सकती है। मस्जिदों में भी ज़रूरी सहुलियात मुयस्सर है मगर बद किस्मती से फिर भी जमाअत के साथ नमाज़ नहीं पढ़ते।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 14*
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Friday 25 November 2016

*गुस्से का इलाज* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गुस्से के 13 इलाज_*
     जब गुस्सा आ जाए तो इन में से कोई भी एक या ज़रूरत सारे इलाज फरमा लीजिये।
*1* अउजूबिल्लाहि-मिन-श्शैतानि-र्रजीम पढ़िये।
*2* वला-हव्ल-वला-क़ुव्वत-इल्ला-बिल्लाह, पढ़िये।
*3* चुप हो जाइए।
*4* वुज़ू कर लीजिये।
*5* नाक में पानी चथाइए।
*6* खड़े है तो बैठ जाइए। बेठे है तो लेट जाइए।
*7* अपने गाल को ज़मीन से मिला दीजिये।
*8* (वुज़ू हो तो सज्दा कर लीजिये) ताकि एहसास हो की में खाक से बना हु लिहाज़ा बन्दे पर गुस्सा करना मुझे ज़ैब नहीं देता।
*✍🏽अहयाउल उलूम, 3/388*
*9* जिस पर गुस्सा आ रहा है उसके सामने से हट जाइये।
*10* सोचिये की अगर में गुस्सा करूँगा तो दूसरा भी गुस्सा करेगा और बदला लेगा और मुझे दुश्मन को कमज़ोर नही समझना चाहिए।
*11* अगर किसी को गुस्से में झाड़ वगैरा दिया तो खुसुसिय्यत के साथ सब के सामने हाथ जोड़ कर उससे मुआफ़ी मांगिये, इस तरह नफ़्स ज़लील होगा और आइन्दा गुस्सा नाफ़िज़ करतेवक़्त अपनी ज़िल्लत याद आएगी और हो सकता है यु करने से गुस्से से खलासी मिल जाए।
*12* ये गौर कीजिये की आज बन्दे की खता पर मुझे गुस्सा आया है और में दर गुज़र करने के लिये तैयार नही हाला की मेरी बे शुमार खताए है अगर अल्लाह गज़ब नाक हो गया और उस ने मुझे मुआफ़ी न दी तो मेरा क्या बनेगा !
*13* कोई अगर ज़्यादती करे या खता कर बेठे और उस पर नफ़्स की खातिर गुस्सा आ जाए उस को मुआफ़ करदेना कारे सवाब है। तो गुस्सा आने पर ज़ेहन बनाए की क्यू न में मुआफ़ करके सवाब का हक़दार बनू और सवाब भी केसा ज़बर दस्त की "क़यामत के रोज़ ऐलान किया जाएगा जिस का अज्र अल्लाह के ज़िम्मे करम पर है, वो उठे और जन्नत में दाखिल हो जाए। पूछा जाएगा किसके लिये अज्र है ? वो कहेगा : उन लोगो के लिये जो मुआफ़ करने वाले है। तो हज़ारो आदमी खड़े होंगे और बिला हिसाब जन्नत में दाखिल हो जाएगा।
*✍🏽तिबरानी, 1/542*
*✍🏽गुस्से का इलाज, 22*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने से जहा मुसलमानो की आपस में मुहब्बत व मुवानसत में इज़ाफ़ा होता है वही नमाज़ का षवाब भी कइ गुना बढ़ जाता है। अहादिसे मुबारका में कई मकामात पर जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले के लीये कसीर षवाब और कई इनामात की बिशारते वारिद हुई है।

*_4 फरमाने मुस्तफा ﷺ_*
     जिसने कामिल वुज़ु किया, फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लीये चला और इमाम की इक्तिदा में फ़र्ज़ नामाज़ पढ़ी, उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।
     अल्लाह बा जमाअत नमाज़ पढ़ने वालो को महबूब रखता है।
     बा जमाअत नमाज़ तन्हा नमाज़ से 27 दरजे अफ़्ज़ल है।
     जब बन्दा बा जमाअत नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से अपनी हाजत का सुवाल करे तो अल्लाह इस बात से हया फरमाता है की बन्दा हाजत पूरी होने से पहले वापस लौट जाए।

     मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया : जो अल्लाह के लीये 40 दिन बा जमाअत नमाज़ पढ़े और तकबिरे उला पाए, उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएगी,
नार यानी दोज़ख से
निफाक से।

     इमाम शरफुद्दीन हुसैन बिन मुहम्मद तीबी फरमाते है : निफाक से बराअत का मतलब ये है की वो दुन्या में मुनाफिक जैसे आमाल से महफूज़ रहेगा और उसे मुखलिसिन जैसे आमाल करने की तौफ़ीक़ मिलेगी। नीज़ आख़िरत में नारे जहन्नम से अम्न में रहेगा।

     नमाज़े बा जमाअत की इस कदर बरकतों और फाज़िलातो के बा वुज़ूद सुस्ती करना और जमाअत से नमाज़ न पढ़ना किस कदर ताज्जूब ख़ेज़ है ?
     मगर अफ़सोस ! साद करोड़ अफ़सोस ! जमाअत की परवा नहीं की जाती, बल्कि नमाज़ भी अगर कज़ा हो जाए तो कोई रन्ज नहीं।

     हमें अपने अन्दर नमाज़े बा जमाअत की अहमियत और इस की महब्बत पैदा करनी चाहिए और अपने बच्चों को भी शुरुअ से ही जमाअत से नमाज़ पढ़ने की आदत डलवाए।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 9*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #87
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑨_*
     बहुत किताबियों ने चाहा (9)
काश तुम्हें ईमान के बाद कुफ़्र की तरफ़ फेर दें अपने दिलों की जलन से (10)
बाद इसके कि हक़ उनपर ख़ूब ज़ाहिर हो चुका है, तो तुम छोड़ो और दरगुज़र (क्षमा) करो यहां तक कि अल्लाह अपना हुक्म लाए बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (शक्तिमान) है

*तफ़सीर*
     (9) उहद की जंग के बाद यहूदियों की जमाअत ने हज़रते हुज़ैफ़ा बिन यमान और अम्मार बिन यासिर रदियल्लाहो अन्हुमा से कहा कि अगर तुम हक़ पर होते तो तुम्हें हार न होती. तुम हमारे दीन की तरफ़ वापस आ जाओ. हज़रत अम्मार ने फ़रमाया तुम्हारे नज़दीक एहद का तोड़ना कैसा है ? उन्होंने कहा, निहायत बुरा. आपने फ़रमाया, मैं ने एहद किया है कि ज़िन्दगी के अन्तिम क्षण तक सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से न फिरूंगा और कुफ़्र न अपनाऊंगा और हज़रत हुज़ैफ़ा ने फ़रमाया, मैं राज़ी हुआ अल्लाह के रब होने, मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के रसूल होने, इस्लाम के दीन होने, क़ुरआन के ईमान होने, काबे के क़िबला होने और मूमिनीन के भाई होने से. फिर ये दोनों सहाबी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आपको वाक़ए की ख़बर दी. हुज़ूर ने फ़रमाया तुमने बेहतर किया और भलाई पाई. इसपर यह आयत उतरी.
     (10)  इस्लाम की सच्चाई जानने के बाद यहूदियों का मुसलमानों के काफ़िर और मुर्तद होने की तमन्ना करना और  यह चाहना कि वो ईमान से मेहरूम हो जाएं, हसद के कारण था, हसद बड़ी बुराई है. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया हसद से बचो वह नेकियों को इस तरह खाता है जैसे आग सूखी लक़डी को. हसद हराम है. अगर कोई शख़्स अपने माल व दौलत या असर और प्रभाव से गुमराही और बेदीनी फैलाता है, तो उसके फ़ितने से मेहफ़ूज रहने के लिये उसको हासिल नेअमतों के छिन जाने की तमन्ना हसद में दाख़िल नहीं और हराम भी नहीं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①ⓞ_*
     और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और अपनी जानों के लिये जो भलाई आगे भेजोगे उसे अल्लाह के यहां पाओगे बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है

*तफ़सीर*
     ईमान वालों को यहूदियों से बचने का हुक्म देने के बाद उन्हें अपने नफ़्स की इस्लाह की तरफ़ ध्यान दिलाता है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #36
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا غَفُوْرُ*
जिसको दर्दे सर या कोई बीमारी या गम पेश आ जाए 3 बार लिख कर (यानि इस इसमें पाक को कागज़ पर लिख कर इस की गीली सियाही पर रोटी का टुकड़ा लगा कर वो नक़्श रोटी में जज़्ब कर ले और) खा ले, ان شاء الله शिफ़ा पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 251*
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Thursday 24 November 2016

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_दरबारे रिसालत में इन्तिज़ार_*
     25 सफरुल मुज़फ्फर को बैतूल मुक़द्दस में एक शामी बुज़ुर्ग रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाब में अपने आप को दरबारे रिसालतﷺ में पाया। सहाबए किराम दरबार में हाज़िर थे। लेकिन मजलिस में सुकूत तारी था और ऐसा मालुम होता था के किसी आने वाले का इन्तिज़ार है, शामी बुज़ुर्ग ने बारगाहे रिसालतﷺ में अर्ज़ की : हुज़ूरﷺ ! मेरे माँ बाप आप पर कुर्बान हो किस का इंतज़ार है ? आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया : हमे अहमद रज़ा का इंतज़ार है। शामी बुज़ुर्ग ने अर्ज़ की : हुज़ूरﷺ ! अहमद रज़ा कौन है ? इरशाद हुवा : हिन्दुस्तान में बरेली के बाशिंदे है।
     बेदारी के बाद वो शामी बुज़ुर्ग मौलाना अहमद रज़ा की तलाश में हिन्दुस्तान की तरफ चल पड़े और जब बरेली शरीफ आए तो उन्हें मालुम हुवा के इस आशिके रसूल का उसी रोज़ (यानी 25 सफरुल मुज़फ्फर 1340 ही.) को विसाल हो चूका है। जिस रोज़ उन्हों ने ख्वाब में सरकारे आली वक़ारﷺ को ये कहते सुना था "हमे अहमद रज़ा का इंतज़ार है"।
*✍🏽स्वानेहे इमाम अहमद रज़ा, 391*
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 22*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूर ﷺ फरमाते है : अगर नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाने वाला ये जानता की इस रह जाने वाले के लीये क्या है ? तो घिसटते हुवे हाज़िर होता।

     हुज़ूर ﷺ फरमाते है : किसी गाऊं, शहर या जंगल में 3 शख्स हो और बा जमाअत नमाज़ काइम न की गई मगर उन पर शैतान मुसल्लत हो गया। तो जमाअत को लाज़िम जानो की भेड़िया उस बकरी को खाता है जो रेवड़ से दूर हो।
     शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा बदरुद्दीन एनी हनफ़ी फरमाते है : इस हदिष की मुराद ये है की तारीके जमाअत पर शैतान ग़ालिब आ जाता है और उस पर अपना कब्ज़ा जमा लेता है, जैसे भेड़िया रेवड़ से अलग होने वाली बकरी पर काबिज़ हो जाता है।  और हदिष में 3 का ज़िक्र इस लिए है की जमआत कम से कम 3 पर बोली जाती है और 3 शख्सों के ज़रिए ही जुमुआ काइम हो सकता है, नीज़ इस हदिष से ये बात समझ आती है की अगर दो शख्स किसी जगह में हो और वो जुदा जुदा नमाज़ पढ़े तो गुनाहगार नहीं होंगे।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 7*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #86
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑦_*
     क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाही और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई हिमायती न मददगार

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑧_*
     क्या यह चाहते हो कि अपने रसूल से वैसा सवाल करो जो मूसा से पहले हुआ था (7)
और जो ईमान के बदले कुफ़्र लें (8)
वह ठीक रास्ता बहक गया

*तफ़सीर*
     (7) यहूदियों ने कहा ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) हमारे पास आप ऐसी किताब लाइये जो आसमान से एक साथ उतरे. उनके बारे में यह आयत नाज़िल हुई.
     (8) यानी जो आयतें उतर चुकी हैं उनके क़ुबुल करने में बेजा (व्यर्थ) बहस करे और दूसरी आयतें तलब करे. इससे मालूम हुआ कि जिस सवाल में ख़राबी हो उसे बुजुर्गा के सामने पेश करना जायज़ नहीं और सबसे बड़ी ख़राबी यह कि उससे नाफ़रमानी ज़ाहिर होती हो.
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Wednesday 23 November 2016

*गुस्से का इलाज* #12
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*दिल में नुरे ईमान पाने का एक सबब*_
     हदीसे पाक में है, जिस शख्स ने गुस्सा ज़ब्त कर लिया बा वुजूद इस के वो गुस्सा नाफ़िज़ करने पर कुदरत रखता है अल्लाह उसके दिल को सुकून व ईमान से भर देगा।
*✍🏽जामिअल सगीर, 145*
     यानी अगर किसी की तरफ से कोई तकलीफ पहुच गई और गुस्सा आ गया ये बदला ले सकता था मगर महज़ रिज़ाए इलाही की खातिर गुस्सा पी गया तो अल्लाह उस को सुकूने क्लब अता फ़रमाएगा और उस का दिल नुरे ईमान से भर देगा। इससे मालुम हुवा की बाज़ अवक़ात गुस्सा आना मुफीद भी है जब की ज़ब्त करना नसीब हो जाए।

_*गुस्से की आदत निकालने के लिये 4 अवराद*_
     जिस को गुस्सा गुनाह करवाता हो उसे चाहये की हर नमाज़ के बाद *بِسْمِ اللّٰهِ الرَّ حْمٰنِ الرَّ حِيْم*  
21 बार पढ़ कर खाने और पानी पर भी दम कर ले।
     चलते फिरते कभी कभी *يَا اللّٰهُ يَا رَحْمٰنُ يَا رَحِيْمُ* कह लिया करे।
     चलते फिरते *يَا اَرْحَمَ الرَّاحِمِيْنَ* पढ़ता रहे।
     पारह 4 आले इमरान की 134 वी आयत का ये हिस्सा रोज़ाना 7 बार पढ़ता रहे : *وَالْكَا ظِمِيْنَ الْغَيْظَ وَالْعَافِيْنَ عَنِ النَّاسِ، وَاللّٰهُ يَحِبُّ الْمُحْسِنِيْنَ o*

*✍🏽गुस्से का इलाज, 21*
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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #14
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वफ़ाते हसरत आयात_*
     आला हज़रत अलैरहमा ने अपनी वफ़ात से 4 माह 22 दिन पहले खुद अपने विसाल की खबर दे कर पारह 29 सुरतुद्दहर की आयत 15 से साले इन्तिकाल का इस्तिखराज फरमा दिया था। इस आयत के इल्मे अब्जद के हिसाब से 1340 अदद बनते है और ये हिजरी साल के ऐतिबार से सने वफ़ात है। वो आयत ये है :
*और उन चांदी के बर्तनों और कुंजो का दौर होगा।*

     25 सफरुल मुज़फ्फर 1340 ही. मुताबिक़ 28 अक्तूबर 1921 ई. को जुमुअतुल मुबारक के दिन हिन्दुस्तान के वक़्त के मुताबिक़ 2 बज कर 38 मिनट पर, जुमुआ के वक़्त हुवा। اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ  आला हज़रत अलैरहमा ने दाईऐ अजल को लब्बैक कहा. आप का मज़ारे पुर नूर अन्वार मदिनतुल मुर्शिद बरेली शरीफ में आज भी ज़ियारत गाहे खासो आम है।
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 20*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नमाज़ जमाअत से अदा करो_*
     क़ुरआने पाक और अहादिसे मुबारका में जहा भी नमाज़ की अदाएगी का हुक्म आया है, उससे मुराद नमाज़ को तमाम तर फराइज़ो वाजिबात के साथ अदा करना है। और नमाज़ के वाजिबात में से ये भी है की उसे जमाअत के साथ पढ़ा जाए।

     परह 1 सूरतुल बक़रह, आयत 43 में इर्शाद होता है :
*और नमाज़ काइम रखो और ज़कात दो और रुकूअ करने वालो के साथ रुकूअ करो।*
     तफ़्सीरे ख़ाज़िन में है : इस आयत में नमाज़े बा जमाअत अदा करने पर उभारा गया है।

     एक और मक़ाम पर अल्लाह फरमाता है : पारह 29 सूरतुल कलम, आयत 42-43
*जिस दिन एक साक खोली जाएगी (जिसके माना अल्लाह ही जनता है) और सजदे को बुलाए जाएंगे तो न कर सकेंगे, नीची निगाहे किये हुवे उन पर ख्वाहि चढ़ रही होगी और बेशक दुन्या में सजदे के लीये बुलाए जाते थे जब तंदुरस्त थे।*
     हज़रते इब्राहिम तैमी इस फरमान की तफ़्सीर में फरमाते है : वो कियामत का दिन होगा, उस दिन इन्हें नदामत की जिल्लत ठापे होगी, क्यू की इन्हें दुन्या में जब सजदों की तरफ बुलाया जाता तो ये तंदुरस्त होने के बा-वुजूद नमाज़ में हाज़िर न होते।
     हज़रते काबुल अहबारी इर्शाद फरमाते है : खुदा की कसम ! ये आयते मुबारका जमाअत से पीछे रह जाने वालो ही के बारे में नाज़िल हुई है और बिगैर उज़्र के जमाअत तर्क कर देने वालो के लीये इससे जियादा सख्त कौन सी वईद होगी।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 6*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #85
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑥_*
     जब कोई आयत हम मन्सूख़ (निरस्त) फ़रमाएं या भुला दें तो उससे बेहतर या उस जैसी ले आएंगे, क्या तुझे ख़बर नहीं कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है

*तफ़सीर*
     क़ुरआने करीम ने पिछली शरीअतों और पहली किताबों को मन्सूख़ यानी स्थगित फ़रमाया तो काफ़िरों को बड़ी घबराहट हुई और उन्होंने इसपर ताना किया. तब यह आयत उतरी और बताया गया कि जो स्थगित हुआ वह भी अल्लाह की तरफ़ से था और जिसने स्थगित किया (यानी क़ुरआन), वह भी अल्लाह की तरफ़ से है. और स्थगित करने वाली चीज़ कभी स्थगित होने वाली चीज़ से ज़्यादा आसान और नफ़ा देने वाली होती है. अल्लाह की क़ुदरत पर ईमान रखने वाले को इसमें शक करने की कोई जगह नहीं है.
     कायनात (सृष्टि ) में देखा जाता है कि अल्लाह तआला दिन से रात को, गर्मी से ठण्डी को,  जवानी को बचपन से, बीमारी को तंदुरूस्ती से, बहार से पतझड़ को स्थगित फ़रमाता है. यह तमाम बदलाव उसकी क़ुदरत के प्रमाण हैं. तो एक आयत और एक हुक्म के स्थगित होन में क्या आश्चर्य.
     स्थगन आदेश दरअस्ल पिछले हुक्म की मुद्दत तक के लिये था, और उस समय के लिये बिल्कुल मुनासिब था. काफ़िरों की नासमझी कि स्थगन आदेश पर ऐतिराज़ करते हैं और एहले किताब का ऐतिराज़ उनके अक़ीदों के लिहाज़ से भी ग़लत है. उन्हें हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की शरीअत के आदेश का स्थगन मानना पड़ेगा. यह मानना ही पड़ेगा कि सनीचर के दिन दुनिया के काम उनसे पहले हराम नहीं थे. यह भी इक़रार करना होगा कि तौरात में हज़रते नूह की उम्मत के लिये तमाम चौपाए हलाल होना बयान किया गया और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर बहुत से चौपाए हराम कर दिये गए. इन बातों के होते हुए स्थगन आदेश का इन्कार किस तरह सम्भव है.
     जिस तरह एक आयत दूसरी आयत से स्थगित होती है. उसी तरह हदीसे मुतवातिर से भी होती है. स्थगन आदेश कभी सिर्फ़ हुक्म का, कभी तिलावत और हुक्म दोनों का.
     बेहक़ी ने अबू इमामा से रिवायत की कि एक अन्सारी सहाबी रात को तहज्जुद के लिये उठे और सूरए फ़ातिहा के बाद जो सूरत हमेशा पढ़ा करते थे उसे पढ़ना चाहा लेकिन वह बिल्कुल याद न आई और बिस्मिल्लाह के सिवा कुछ न पढ़ सके. सुबह को दूसरे सहाबा से इसका ज़िक्र किया. उन हज़रात ने फ़रमाया हमारा भी यही हाल है. वह सूरत हमें भी याद थी और अब हमारी याददाश्त में भी न रही. सबने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में वाक़िआ अर्ज़ किया. हुज़ूर ने फ़रमाया आज रात वह सूरत उठा ली गई. उसका हुक्म और तिलावत दोनों स्थगित हुए. जिन काग़जों पर वह लिखी हुई थी उन पर निशान तक बाक़ी न रहे.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #35
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا عَظِيْمُ*
जो 7 बार पढ़ कर पानी पर दम करके पानी पी ले ان شاء الله उसके पेट में दर्द न हो।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 251*
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Tuesday 22 November 2016

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*तसानिफ*_
     मेरे आक़ा आला हज़रत ने मुख़्तलिफ़ उनवानात पर कमो बेश 1000 किताबे लिखी है। यु तो आप ने 1286 सी.ही. से 1340 सी.ही. तक लाखो फतवे दिये होंगे, लेकिन अफ़सोस ! के सब नकल न किये जा सके, जो नकल कर लिये गए थे उनका नाम "अल अतायन्न-बइय्यह फिल फतावर्र-ज़वीययह रखा गया। फतावा रज़विय्या (मुखर्र्जा) की 30 जिल्दें है जिन के कुल सफहात : 21656, कुल सुवालात व जवाबात : 6847 और कुल रसाइल : 206 है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या मुखर्र्जा, 30/10*
     क़ुरआन व हदिष, फिक़्ह, मन्तिक और कलाम वगैरा में आप की वुसअते नजरि का अंदाज़ा आप के फतावा के मुतालाए से ही हो सकता है।

*_तर्जमए कुरआन करीम_*
     मेरे आक़ा आला हज़रत ने क़ुरआने करीम का तरजमा किया जो उर्दू के मौजूदा तराजिम में सब पर फोकिय्यत रखता है। तर्जमें का नाम *"कन्ज़ुल ईमान"* है जिस पर आप के खलीफा हज़रते मौलाना मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबाद अलैरहमा ने बनामें "खजाइनुल इरफ़ान" और हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान ने "नुरुल इरफ़ान" के नाम से हाशिया लिखा है।
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 19*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #84
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ⑤_*
     वो जो काफ़िर हैं किताबी या मुश्रिक (4)
वो नहीं चाहते कि तुम पर कोई भलाई उतरे तुम्हारे रब के पास से(5)
और अल्लाह अपनी रहमत से ख़ास करता है जिसे चाहे और अल्लाह बड़े फ़ज्ल़ वाला है

*तफ़सीर*
     (4) यहूदियों की एक जमाअत मुसलमानों से दोस्ती और शुभेच्छा जा़हिर करती थी. उसको झुटलाने के लिये यह आयत उतरी मुसलमानों को बताया गया कि काफ़िर दोस्ती और शुभेच्छा के दावे में झूटे है.
*✍🏽जुमल*
     (5)यानी काफ़िर एहले किताब और मुश्रिकीन दोनों मुसलमानों से दुश्मनी और कटुता रखते हैं और इस दुख में है कि उनके नबी मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को पैग़म्बरी और वही (देववाणी) अता हुई और मुसलमानों को यह बङी नेअमत मिली.
*✍🏽ख़ाज़िन*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #34
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا حَلِيْمُ*
जो कोई इस को कागज़ पर लिख कर फिर इस को धो दे और अपनी खेती पर छिड़क दे, ان شاء الله ज़राअत  हर आफत से हिफाज़त में रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 251*
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Monday 21 November 2016

*गुस्से का इलाज* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मालिक बिन दिनार के सब्र के अन्वार_*
     हमारे बुज़ुर्गाने दिन ज़ुल्मो ज़ालिमिन और सितमे काफीरिन पर सब्र फरमाते और किस तरह गुस्से को भगाते थे इसे इस हिकायत से समझने की कोशिश कीजिये।
     चुनांचे हज़रते मालिक बिन दिनार रहमतुल्लाह अलैह ने एक मकान किराए पर लिया। उस मकान के बिलकुल मुत्तसिल एक यहूदी का मकान था। वो यहूदी बुग्ज़ो इनाद की बुन्याद पर परनाले के ज़रीए गन्दा पानी और गलाज़त आप के मकान में डालता रहता। मगर आप खामोश ही रहते। आखिर कार एक दिन उस ने खुद ही आ कर अर्ज़ की, जनाब ! मेरे परनाले से गुज़रने वाली नजासत की वजह से आप को कोई शिकायत तो नही ? आप ने निहायत ही नरमी के साथ फ़रमाया, परनाले से जो गन्दगी गिरती है उस को झाड़ू दे कर धो डालता हु। उसने कहा, आप को इतनी तकलीफ होने के बा वुजूद गुस्सा नही आता ? फ़रमाया : आता तो है मगर पी जाता हु क्यू की अल्लाह का फरमाने महब्बत निशान है :
*और गुस्सा पिने वाले और लोगो स3 दर गुज़र करने वाले और नेक लोग अल्लाह के महबूब है।*
*पारह 4, सूरए आले इमरान, 134*

जवाब सुन कर यहूदी मुसलमान हो गया।
*✍🏽तज़किरतुल औलिया, 51*

     मीठे मीठे इस्लामी भाईओ ! देखा आपने ! नरमी की केसी बरकत है। नरमी से मुअतस्सिर हो कर वो यहूदी मुसलमान हो गया।
*✍🏽गुस्से का इलाज, 19*
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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #12
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*ट्रेन रुकी रही !*_
     हज़रत अय्यूब अली शाह साहिब रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हे के मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहा गाडी सिर्फ 2 मिनिट के लिये ठहरती है।
     मगरिब का वक़्त हो चूका था, आप ने गाडी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फरमा कर गाडी के अंदर ही निय्यत बांध ली, गालिबन 5 सख्शो ने इक्तिदा की की उनमे में भी था लेकिन अभी शरीके जमाअत नही होने पाया था के मेरी नज़र गेर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा सब्ज़ ज़ण्डि हिला रहा था, में ने खिड़की से झांक कर देखा के लाइन क्लियर थी और गाडी छूट रही थी, मगर गाडी न चली और हुज़ूर आला हज़रत ने ब इत्मिनान तीनो फ़र्ज़ रकाअत अदा की और जिस वक़्त दाई जानिब सलाम फेरा था गाडी चल दी। मुक्तदियो की ज़बान से बे साख्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।
     इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाडी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाडी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाडी में अदा करता है।
*✍🏽हयाते आला हज़रत, 3/189*
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 17*
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*तर्के जमाअत की वईद* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सय्यिदुना उबैदुल्लाह बिन उमर कवारीरी फरमाते है : मेने हमेशा ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की, मगर अफ़सोस ! एक मर्तबा मेरी ईशा की नमाज़ बा जमाअत फौत हो गई। इसका सबब ये हुआ की मेरे यहाँ एक मेहमान आया, उसकी मेहमान नवाज़ी में लगा रहा। फरागत के बाद जब मस्जिद पंहुचा तो जमाअत हो चुकी थी। अब में सोचने लगा की ऐसा कौनसा अमल किया जाए जिस से इस नुक्शान की तलाफि हो। यका यक मुझे अल्लाह के हबीब का ये फरमान याद आया "बा जमाअत नमाज़ मुन्फरिद की नमाज़ पर 21 दरजे फ़ज़ीलत रखती है। इस तरह 25 और 27 दरजे फ़ज़ीलत की भी हदिष भी मरवी है।
*✍🏽शाही बुखारी*

     मेने सोचा अगर में 27 मर्तबा नमाज़ पढ़ लू तो शायद जमाअत फौत हो जाने से जो कमी हुई वो पूरी हो जाए। चुनांचे मेने 27 मर्तबा ईशा की नमाज़ पढ़ी, फिर मुझे नींद आ गई। मेने अपने आप को चन्द घोड़े सुवरो के साथ देखा, हम सब कही जा रहे थे। इतने में एक घोड़े सुवार ने मुझसे कहा : "तुम अपने घोड़े को मशक्कत में न डालो, बेशक तुम हमसे नहीं मिल सकते।" मेने कहा में आपके साथ क्यू नहीं मिल सकता ? कहा : इस लिए की हम ने ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की है।
*✍🏽उयुनूल हिकायत, जी, 2 स. 94*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इससे मालूम हुआ की जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई उस नमाज़ को 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पठने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता। यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ की अपनी ही बरकतें है।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 3*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #83
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*_सूरतुल बक़रह, आयत①ⓞ③_*
     और अगर वो ईमान लाते और परहेज़गारी करते तो अल्लाह के यहां का सवाब बहुत अच्छा है किसी तरह उन्हें ईल्म होता
*तफ़सीर*
     हज़रत सैयदे कायनात सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और क़ुरआने पाक पर.

*_सूरतुल बक़रह, आयत①ⓞ④_*
     ऐ ईमान वालों (1)
     “राइना” न कहो और यूं अर्ज़ करो कि हुज़ूर हम पर नज़र रख़ें और पहले ही से ग़ौर से सुनो (2)
     और काफ़िरों के लिये दर्दनाक अज़ाब है (3)
*तफ़सीर*
     (1) जब हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने सहाबा को कुछ बताते या सिखाते तो वो कभी कभी बीच में अर्ज़ किया करते “राइना या रसूलल्लाह” . इसके मानी ये थे कि या रसूलल्लाह हमारे हाल की रिआयत कीजिये. यानी अपनी बातों को समझने का मौक़ा दीजिये.  
     यहूदियों की ज़बान में यह कलिमा तौहीन का अर्थ रखता था. उन्हों ने उस नियत से कहना शुरू किया. हज़रत सअद बिन मआज़ यहूदियों की बोली के जानकार थे. आपने एक दिन उनकी ज़बान से यह कलिमा सुनकर फ़रमाया, ऐ अल्लाह के दुशमनो, तुम पर अल्लाह की लअनत. अगर मैं ने अब किसी की ज़बान से यह कलिमा सुना तो उसकी गर्दन मार दूंगा. यहूदियाँ ने कहा, हमपर तो आप गर्म होते हैं, मुसलमान भी तो यही कहते हैं. इसपर आप रंजीदा होकर अपने आक़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए थे कि यह आयत उतरी, जिसमें “राइना” कहने को मना कर दिया गया और इस मतलब का दूसरा लफ़्ज़ “उन्ज़ुरना” कहने का हुक्म हुआ.  
     इससे मालूम हुआ कि नबियों का आदर सत्कार और उनके समक्ष अदब की बात बोलना फ़र्ज़ है, और जिस बात में ज़रा सी भी हतक या तौहीन का संदेह हो उसे ज़बान पर लाना मना है.
     (2) और पूरी तरह कान लगाकर ध्यान से सुनो ताकि यह अर्ज़ करने की ज़रूरत ही न रहे कि हुज़ूर तवज्जुह फ़रमाएं, क्योंकि नबी के दरबार का यही अदब है. नबीयों के दरबार में आदमी को अदब के ऊंचे रूत्बों का लिहाज़ अनिवार्य है.
     (3) “लिल काफ़िरीन”(और काफ़िरों के लिये) में इशारा है कि नबियों की शान में बेअदबी कुफ़्र है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #33
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا خَبِيْرُ*
जो कोई नफ़्से अम्मारा के हाथ गिरफ्तार हो तो हर रोज़ वज़ीफ़ा कर लिया करे ان شاء الله नजात पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 250*
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Sunday 20 November 2016

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*दौराने मिलाद बैठने का अंदाज़*_
     मेंरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा महफिले मिलाद शरीफ में ज़िक्र विलादत शरीफ के वक़्त सलातो सलाम पढ़ने के लिये खड़े होते बाक़ी शिरू से आखिर तक अदबन दो जानू बेठे रहते। यु ही वाइज फरमाते, चार पाच घण्टे कामिल दो जानू ही मिम्बर शरीफ पर रहते।
*✍🏽हयाते आला हज़रत, 1/98*

     काश हम गुलामाने आला हज़रत को भी तिलावते क़ुरआन करते या सुनते वक़्त नीज़ इजतिमाए ज़िक्रो नात वगैरा में अदबन दो जानू बैठने की सआदत मिल जाए।

*_सोने का मुनफरीद अंदाज़_*
     सोते वक़्त हाथ के अंगूठे को शहादत की ऊँगली पर रख लेते ता के उंगलियों से लफ्ज़ *अल्लाह* बन जाए। आप पैर फेला कर कभी न सोते बल्कि दाहिनी करवट लेट कर दोनों हाथो को मिला कर सर के निचे रख लेते और पाउ मुबारक समेत लेते, इस तरह जिस्म से लफ्ज़ *मुहम्मद* बन जाता।
*✍🏽हयाते आला हाज़रत, 1/99*

     ये है अल्लाह के चाहने वालो और रसूले पाक के सच्चे आशिक़ो की आदाए।
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #82
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ②_*
और उसके मानने वाले हुए जो शैतान पढ़ा करते थे सुलैमान की सल्तनत के ज़माने में (10)
और सुलैमान ने क़ुफ़्र न किया (11)
हाँ शैतान काफ़िर हुए (12)
लोगों को जादू सिखाते हैं और वह (जादू) जो बाबुल में दो फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर उतरा और वो दोनों किसी को कुछ न सिखाते जब तक यह न कह लेते कि हम तो निरी आज़मायश हैं तू अपना ईमान न खो (13)
तो उनसे सीखते वह जिससे जुदाई डालें मर्द और उसकी औरत में और उससे ज़रर (हानि)  नहीं पहुंचा सकते किसी को मगर ख़ुदा के हुक्म से (14)
और वो सीखते हैं जो उन्हें नुक़सान देगा नफ़ा न देगा और बेशक ज़रूर उन्हें मालूम है कि जिसने यह सौदा लिया आख़िरत में उसका कुछ हिस्सा नहीं और बेशक क्या बुरी चीज़ है वह जिसके बदले उन्होंने अपनी जानें बेचीं किसी तरह उन्हें इल्म होता (15)

*तफ़सीर*
     (10) हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के ज़माने में बनी इस्त्राईल जादू सीखने में मशग़ूल हुए तो आपने उनको इससे रोका और उनकी किताबें लेकर अपनी कुर्सी के नीचे दफ़्न कर दीं. हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की वफ़ात के बाद शैतानों ने वो किताबें निकाल कर लोगों से कहा कि सुलैमान इसी के ज़ोर से सल्तनत करते थे. बनी इस्त्राईल के आलिमों और नेक लोगों ने तो इसका इन्कार किया मगर जाहिल लोग जादू को हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का इल्म बताकर उसके सीखने पर टूट पडे. नबियों की किताबें छोड़ दीं और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम पर लांछन शुरू की. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने तक इसी हाल पर रहे. अल्लाह तआला ने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की सफ़ाई के लिये हुज़ूर पर यह आयत उतारी.
     (11) क्योंकि वो नबी हैं और नबी कुफ़्र से बिल्कुल मासूम होते हैं, उनकी तरफ़ जादू की निस्बत करना बातिल और ग़लत है, क्योंकि जादू का कुफ़्रियात से ख़ाली होना लगभग असम्भव है.
     (12) जिन्होंने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम पर जादूगरी का झूटा इल्ज़ाम लगाया.
     (13) यानी जादू सीख कर और उस पर अमल और विश्वास करके और उसको दुरूस्त जान कर काफ़िर न बन. यह जादू फ़रमांबरदार और नाफ़रमान के बीच अन्तर जानने और परखने के लिये उतरा. जो इसको सीखकर इस पर अमल करे, काफ़िर हो जाएगा. शर्त यह है कि जादू में ईमान के विरूद्ध जो बातें और काम हों और जो उससे बचे, न सीखे या सीखे और उसपर अमल न करे और उसके कुफ़्रियात पर विश्वास न रखे वह मूमिन रहेगा, यही इमाम अबू मन्सूर मातुरीदी का कहना है. जो जादू कुफ़्र है उसपर अमल करने वाला अगर मर्द है, क़त्ल कर दिया जाएगा. जो जादू कुफ़्र नहीं, मगर उससे जानें हलाक की जाती हैं, उसपर अमल करने वाला तरीक़े को काटने वालों के हुक्म में है, मर्द हो या औरत. जादूगर की तौबह क़ुबूल है.( मदारिक)
     (14) इससे मालूम हुआ कि असली असर रखने वाला अल्लाह तआला है. चीज़ों की तासीर उसी की मर्ज़ी पर है.
     (15) अपने अंजामेकार और अज़ाब के कड़ेपन का.
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Saturday 19 November 2016

*गुस्से का इलाज* #10

*_गालियो भरे खतो पर आला हज़रत का सब्र_*
     काश ! हमारे अंदर ये जज़्बा पैदा हो जाए की हम अपनी ज़ात और अपने नफ़्स की खातिर गुस्सा करना ही छोड़ दें। जैसा की हमारे बुज़ुर्गो का जज़्बा होता था की उन पर कोई कितना ही ज़ुल्म करे ये हज़रात उस ज़ालिम पर भी शफ़क़त ही फरमाते थे।
     चुनांचे हयाते आला हज़रत में है, आला हज़रत अलैरहमा की खिदमत में एक बार जब डाक पेश की गई तो बाज़ खत गालियो से भरपूर थे। मोतकीदीन बरहम हुए की हम इन लोगो के खिलाफ मुक़द्दमा दायर करेंगे। आला हज़रत ने फ़रमाया : जो लोग तारीफि खत लिखते है पहले उन को जागीरें तक़सीम कर दो, फिर गालिया लिखने वालो पर मुक़द्दमा दायर कर दो।
*हयाते आला हज़रत, 1/143*

     मतलब ये की जब तारीफ़ करने वालो को तो इनाम देते नही फिर बुराई करने वालो से बदला क्यू लेना ?
*✍🏽गुस्से का इलाज, 17*
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*तज़किरए ​इमाम अहमद रज़ा​* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*सीरत की बाज़ ज़लकिया*
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : अगर कोई मेरे दिल के दो टुकड़े कर दे तो एक पर لااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ और दूसरे पर مُحَمَّدٌرَّسُوْلُ اللّٰهِ लिखा हुवा पाएगा।
*✍🏽स्वानेहे इमाम अहमद रज़ा, 96*

     मशाईखे ज़माना की नज़रो में आप वाक़ई फनाफिर्रसूल थे। अक्सर फिराक मुस्तफा में गमगीन रहते और सर्द आहे भरा करते। पेशावर गुस्ताखो की गुस्ताखाना इबारात को देखते तो आँखों से आसुओ की जड़ी लग जाती और प्यारे मुस्तफा की हिमायत में गुस्ताखो का सख्ती से रद करते ताके वो ज़ुज़ला कर आला हज़रत अलैरहमा को बुरा कहना और लिखना शुरू कर दें। आप अक्सर इस पर फख्र किया करते के बारी तआला ने इस डोर में मुझे नामुसे रिसालत मआब के लिये ढाल बनाया है। तरीके इस्तिमाल ये है के बद गोयों का सख्ती ओर तेज़ कलामी से रद करता हु के इस तरह वो मुझे बुरा भला कहने में मसरूफ़ हो जाए। उस वक़्त तक के लिए आक़ा ऐ दो जहा की शान में गुश्ताखि करने से बचे रहेंगे।
     आप गरीबो को कभी खाली हाथ नही लौटाते थे, हमेशा गरीबो की इमदाद करते रहते। बल्कि आखिरी वक़्त भी अज़ीज़ों अक़ारिब को वसिय्यत की के गरीबो का ख़ास ख्याल रखना। इन को खातिर दारी से अच्छे अच्छे और लज़ीज़ खाने अपने घर से खिलाया करना और किसी गरीब को मुत्लक न ज़िडकना।
     आप अक्सर तस्फीन व तालीफ़ में लगे रहते। पाचो नमाज़ों के वक़्त मस्जिद में हाज़िर होते और हमेशा नमाज़ बा जमाअत अदा फ़रमाया करते, आप की खुराक बहुत कम थी।
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_क्या मगरिब का वक़्त थोडा सा होता है ?_*
     मगरिब की नमाज़ का वक़्त गुरुबे आफताब से इब्तदाए वक़्ते ईशा तक होता है। ये वक़्त मक़ामात और तारीख के ऐतिबार से घटता व बढ़ता रहता है।
     फुक़हाए किराम फरमाते है : रोज़े अब्र (यानी जिसदिन बादल छाए हो) उस वक़्त के सिवा मगरिब में हमेशा जल्दी करना मुस्तहब है और दो रकाअत से ज़ाइद कि ताखीर मकरुहे तन्ज़िहि और अगर बगैर उज़्र सफर व मरज़ वगैरा इतनी ताखीर की, कि सितारे गुथ गए तो मकरुहे तहरिमि।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/453*

     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : मगरिब का वक़्ते मुस्तहब जब तक है कि सितारे खूब ज़ाहिर न हो जाए, इतनी देर  करनी कि (बड़े बड़े सितारे के इलावा) छोटे छोटे सितारे भी चमक आए मकरूह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/153*

*_तरावीह की क़ज़ा का क्या हुक्म है ?_*
     जब तरावीह छूट जाए तो उस की क़ज़ा नही, न जमाअत से न तन्हा और अगर कोई क़ज़ा पढ़ भी लेता है तो ये नफ्ल हो जाएगी, तरावीह से इनका तअल्लुक़ नही।
*✍🏽तनविरुल अबसार व दुर्रेमुखतार 2/598*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 255*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #81
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞⓞ_*
और क्या जब कभी कोई एहद करते हैं उनमें का एक फ़रीक़ (पक्ष) उसे फेंक देता है बल्कि उन में बहुतेरों को ईमान नहीं

*तफ़सीर*
यह आयत मालिक बिन सैफ़ यहूदी के जवाब में उतरी जब हुजू़र सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने यहूदियों को अल्लाह तआला के वो एहद याद दिलाए जो हुज़ूर पर ईमान लाने के बारे में किये थे तो इब्ने सैफ़ ने एहद ही का इन्कार कर दिया.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①ⓞ①_*
और जब उनके पास तशरीफ़ लाया अल्लाह के यहां से एक रसूल (6)
उनकी किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता (7)
तो किताब वालों से एक गिरोह (दल) ने अल्लाह की किताब अपने पीठ पीछे फेंक दी (8)
जैसे कि वो कुछ इल्म ही नहीं रखते (कुछ जानते ही नहीं) (9)

*तफ़सीर*
(6) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
(7) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तौरात और ज़ुबूर वग़ैरह की पुष्टि फ़रमाते थे और ख़ुद इन किताबों में भी हुज़ूर के तशरीफ़ लाने की ख़ुशख़बरी और आपके गुणों का बयान था. इसलिये हुज़ूर का तशरीफ़ लाना और आपका मुबारक अस्तित्व ही इन किताबों की पुष्टि है. तो होना यह चाहिये था कि हुज़ूर के आगमन पर एहले किताब का ईमान अपनी किताबों के साथ और ज़्यादा पक्का होता, मगर इसके विपरीत उन्होंने अपनी किताबों के साथ भी कुफ़्र किया.
सदी का कथन है कि जब हुज़ूर तशरीफ़ लाए तो यहूदियों ने तौरात से मुक़ाबला करके तौरात और क़ुरआन को एकसा पाया तो तौरात को भी छोड़ दिया.
(8) यानी उस किताब की तरफ़ ध्यान नहीं दिया. सुफ़ियान बिन ऐनिया का कहना है कि यहूदियों ने तौरात को क़ीमती रेशमी कपड़ों में सोने चांदी से मढ़कर रख लिया और उसके आदेशों को न माना.
(9) इन आयतों से मालूम होता है कि यहूदियों के चार सम्प्रदाय थे. एक तौरात पर ईमान लाया और उसने उसके अहकाम भी अदा किये. ये मूमिनीने एहले किताब हैं. इनकी तादाद थोड़ी है. और “अक्सरोहुम” (उनमें बहुतेरों को) से उस दूसरे समुदाय का पता चलता है जिसने खुल्लम खुल्ला तौरात के एहद तोड़े, उसकी सीमाओं का उल्लंघन किया, सरकशी का रास्ता अपनाया, “नबज़हू फ़रीक़ुम मिन्हुम” (उनमें एक पक्ष उसे फेंक देता है) में उनका ज़िक़्र है. तीसरा सम्प्रदाय वह जिसने एहद तोड़ने का एलान तो न किया लेकिन अपनी जिहालत से एहद तोड़ते रहे. उनका बयान “बल अकसरोहुम ला यूमिनून” (बल्कि उनमें बहुतेरों को ईमान नहीं) में है. चौथे सम्प्रदाय ने ज़ाहिर में तो एहद माने और छुपवाँ विद्रोह और दुश्मनी से विरोध करते रहे. यह बनावटी तौर से जाहिल बनते थे. “कअन्नहुम ला यअलमून” (मानो वो कुछ इल्म ही नहीं रखते) में उनका चर्चा है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #32
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا لَطِيْفُ*
*बेटियो के नसीब खुलने और अमराज़ से सिहहत और मुश्किलात से नजात के लिये हर रोज़ तहिय्यतुल वुज़ू के बाद 100 बार पढ़ लिया करे।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 250*
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Friday 18 November 2016

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #14
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_ज़ोहर की 4 सुन्नते रह जाए तो क्या करे?_*
     अगर ज़ोहर के फ़र्ज़ पहले पढ़ लिये तो दो रकाअत सुन्नत अदा करने के बाद चार रकाअत सुनत अदा कीजिये उसके बाद दो नफ्ल अदा किजोये।

*_फज्र की सुन्नते रह जाए तो क्या करे ?_*
     सुन्नते पढ़ने से अगर फज्र की जमाअत छूट जाने का अंदेशा हो तो बगैर पढ़े शामिल हो जाए। मग़र सलाम फेरने के बाद पढ़ना जाइज़ नही।
     तुलुए आफताब के कम अज़ कम 20 मिनट बाद से ले कर ज़हवए कुब्रा तक पढ़ले कि मुस्तहब है। ईसके बाद मुस्तहब भी नही।
*✍🏽नमाज़ के हकाम 254*
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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*बेदारी में दीदारे मुस्तफा*
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा दूसरी बार हज के लिये हाज़िर हुए तो मदिनए मुनव्वरह में नबीये रहमत की ज़ियारत की आरज़ू लिये रौज़ए अतहर के सामने देर तक सलातो सलाम पढ़ते रहे, मगर पहली रात किस्मत में ये सआदत न थी। इस मौके पर वो मारूफ़ नातिया ग़ज़ल लिखी जिस के मतलअ में दामन रहमत से वाबस्तगी की उम्मीद दिखाई है :
          *वो सुए लालाज़ार फिरते है*
          *तेरे दिन ऐ बहार  फिरते  है*
*शरहे कलामे रज़ा :* ऐ बहार ज़ूम जा ! के तुज पर बहारो की बहार आने वाली है। वो देख ! मदीने के ताजदार जानिबे गुलज़ार तशरीफ़ ला रहे है !
     मकतअ में बारगाहे रिसालत में अपनी आजिज़ी और बे मिस्किनी का नक्शा यु खीचा है :
          *कोई क्यू पूछे तेरी बात रज़ा*
          *तुझ से शैदा हज़ार फिरते है*
*शरहे कलामे रज़ा :* इस मकतअ में आशिके माहे रिसालत आला हज़रत अलैरहमा कलामे इन्किसारि का इज़हार करते हुए अपने आप से फरमाते है : ऐ अहमद रज़ा ! तू क्या और तेरी हक़ीक़त क्या ! तुझ जेसे तो हज़ारो सगाने मदीना गलियो में यु फिर रहे है !
     ये ग़ज़ल अर्ज़ करके दीदार के इन्तिज़ार में मुअद्दब बेठे हुए थे के किस्मत अंगड़ाई ले कर जाग उठी और चश्माने सर (यानी सर की खुली आँखों) से बेदारी में ज़ियारते महबूबे बारी से मुशर्रफ हुए
*हयाते आला हज़रत, 1/92*

     क़ुरबान जाइए उन आँखों पर के जो आलमी बेदारी में जनाबे रिसालत के दीदार से शरफ-याब हुई। क्यू न हो के आप के अंदर इश्के रसूल कूट कूट कर भरा हुवा था और आप *"फनाफिर्रसूल"* के आला मन्सब पर फ़ाइज़ थे। आप का नातिया कलाम इस अम्र का शाहिद है।
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 13*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑧_*
जो कोई दुश्मन हो अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों आैर जिब्रील और मीकाईल का तो अल्लाह दुश्मन है काफ़िरों का

*तफ़सीर*
इससे मालूम हुआ कि नबियों और फ़रिश्तों की दुश्मनी कुफ़्र और अल्लाह के ग़ज़ब का कारण है. और अल्लाह के प्यारों से दुश्मनी अल्लाह से दुश्मनी करना है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑨_*
और बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ रौशन आयतें उतारी और उनके इन्कारी न होंगे मगर फ़ासिक़ (कुकर्मी) लोग

*तफ़सीर*
यह आयत इब्ने सूरिया सहूदी के जवाब में उतरी, जिसने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि ऐ मुहम्मद, आप हमारे पास कोई ऐसी चीज़ न लाए जिसे हम पहचानते और न आप पर कोई खुली (स्पष्ट) आयत उतरी जिसका हम पालन करते.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #31
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا عَدْلُ*
जो कोई मगरिब की नमाज़ के बाद 1000 बार पढ़ेगा ان شاء الله आस्मानि बालाओं से नजात पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 250*
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Thursday 17 November 2016

*गुस्से का इलाज* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*पेश्गी मुआफ़ करने की फ़ज़ीलत*_
     एहयाउल उलूम में है : एक शख्स दुआ मांग रहा था, या अल्लाह ! मेरे पास सदक़ा व खैरात के लिये कोई माल नही बस येही की जो मुसलमान मेरी बे इज़्ज़ती करे में ने उसे मुआफ़ किया। सरकार पर वही आई, हमने इस बन्दे को बख्श दिया।
*✍🏽एहयाउल उलूम, 3/219*

_*गुस्सा पिने वाले के लिये जन्नती हूर*_
     अबू दाऊद की हदीस में है : जिस ने गुस्से को ज़ब्त कर लिया हाला की वो उसे नाफिज़ करने पर क़ादिर था तो अल्लाह बरोज़े क़यामत उस को तमाम मख्लूक़ के सामने बुलाएगा और इख़्तियार देगा की जिस हूर को चाहे ले ले।
*अबू दाऊद, 4/325*

*_हिसाब में असानी के तिन अस्बाब_*
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से मरवी है की तिन बाते जिस शख्स में होगी अल्लाह क़यामत के दिन उसका हिसाब बहुत आसान तरीके से लेगा और उस को अपनी रहमत से जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा।
1) जो तुम्हे महरूम करे तुम उसे अता करो।
2) जो तुम से कतए तअल्लुक़ करे तुम उससे मिलाप करो।
3) जो तुम पर ज़ुल्म करे तुम उस को मुआफ़ करदो।
*✍🏽अल मुअ्जम अल वुसअत, 4/18*
*✍🏽गुस्से का इलाज, 16*
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*तज़किरए ​​​​इमाम अहमद रज़ा*​​​​​ #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इश्के रसूल_*
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इश्के मुस्तफा का सर से पाउ तक नमूना थे। आप का नातिया दीवान "हदाईके बख्शीश शरीफ" इस अम्र का शाहिद है। आप की नाके कलम बल्कि गहराइये क्लब से निकला हुवा हर मिसरा मुस्तफा जाने रहमत से आप की बे पाया अक़ीदत व महब्बत की शहादत देता है।
     आप ने कभी दुन्यवि ताजदार की खुशामद के लिये कोई कसीदा नही लिखा, इस लिये के आप ने हुज़ूरे ताजदारे रिसालत की इताअत व गुलामी को पहोंचे हुए थे, इस का इज़हार आप ने एक शेर में इस तरह फ़रमाया :
          *इन्हें जाना इन्हें माना न रखा गैर से काम*
          *लिल्लाहिल हम्द में दुन्या से मुसलमान गया*
     एक मर्तबा रियासत नानपारा (जिल्ला बहराइच यूपी) के नवाब की तारीफ़ में शुअरा ने क्साइड लिखे। कुछ लोगो ने आप से भी गुज़ारिश की के हज़रत आप भी नवाब साहिब की तारीफ़ में कोई कसीदा लिख दे। आप ने इस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिसका मतलअ ये है :
     *वो कलामे हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नही*
    *ये  फूल  खार  से  दूर  है  ये  शमा है के  धुँआ नही*
मुश्किल अलफ़ाज़ के माना :
कमाल=पूरा होना।
नक्स=खामी
खार=काटा
*_शरहे कलामे रज़ा_*
     मेरे आक़ा महबूबे रब्बे जुल जलाल का हुस्नो जमाल दरजाए कमाल तक पहुचता है, यानी हर तरह से कामिल व मुकम्मल है इस में कोई खामी होना तो दूर की बात है, खामी का तसव्वुर तक नही हो सकता, हर फूल की शाख में काटे होते है मगर गुलशने आमिना का एक येही महकता फूल ऐसा है जो काटो से पाक है, हर शमा में ऐब होता है के वो धुँआ छोड़ती है मगर आप बज़मे रिसालत की ऐसी रोशन शमा है के धुंए (यानी हर तरह) से बे ऐब है.
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 11*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #13
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_फ़ज्र व असर के बाद नवाफ़िल नही पढ़ सकते_*
     नमाज़े फ़ज्र और असर के बाद वो तमाम नवाफ़िल अदा करना मकरुहे तहरिमि है, अगर्चे फ़ज्र व असर की सुन्नते ही क्यू न हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/44*

     क़ज़ा के लिये कोई वक़्त मुअय्यन नही उम्र में जब भी पढ़ेगा बरियूज़्ज़िम्मा हो जाएगा। मगर तुलुअ व गुरुब और ज़वाल के वक़्त नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि इन वक़्तों में नमाज़ जाइज़ नही।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/702*
*✍🏽आलमगिरी 1/52*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 254*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #79
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑦_*
तुम फ़रमाओ जो कोई जिब्रील का दुश्मन हो (1)
तो उस (जिब्रील) ने तो तुम्हारे दिल पर अल्लाह के हुक्म से यह कुरआन उतारा अगली किताबों की तस्दीक़ फ़रमाता और हिदायत और बशारत (ख़ुशख़बरी) मुसलमानों को(2)

*तफ़सीर*
     (1) यहूदियों के आलिम अब्दुल्लाह बिन सूरिया ने हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, आपके पास आसमान से कौन फ़रिश्ता आता है. फ़रमाया, जिब्रील. इब्ने सूरिया ने कहा वह हमारा दुश्मन है कि हमपर कड़ा अज़ाब उतारता है. कई बार हमसे दुश्मनी कर चुका है. अगर आपके पास मीकाईल आते तो हम आप पर ईमान ले आते.
     (2) तो यहूदियों की दुश्मनी जिब्रील के साथ बेमानी यानी बेकार है. बल्कि अगर उन्हें इन्साफ़ होता तो वो जिब्रीले अमीन से महब्बत करते और उनके शुक्रगुज़ार होते कि वो ऐसी किताब लाए जिससे उनकी किताबों की पुष्टि होती है. और “बुशरा लिल मूमिनीन” (और हिदायत व बशारत मुसलमानों को) फ़रमाने में यहूदियों का रद है कि अब तो जिब्रील हिदायत और ख़ुशख़बरी ला रहे हैं फिर भी तुम दुश्मनी से बाज़ नही आते.
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Wednesday 16 November 2016

*​​​तज़किरए इमाम अहमद रज़ा​​​​* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सिर्फ एक माह में हिफ़्ज़े क़ुरआन_*
     हज़रत अय्यूब अली साहिब अलैरहमा का बयान है के एक रोज़ आला हज़रत अलैरहमा ने इरशाद फ़रमाया के बाज़ न वाक़िफ़ हज़रात मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है, हाला के में इस लक़ब का अहल नही हु।
     अय्यूब अली फरमाते है के आला हज़रत अलैरहमा ने इसी रोज़ से दौर शुरू कर दिया जिस का वक़्त गालिबन ईशा का वुज़ू फरमाने के बाद से जमाअत क़ाइम होने तक मख़्सूस था। रोज़ाना एक पारह याद फरमा लिया करते थे, यहाँ तक के तीसवें रोज़ तीसवाँ पारह याद फरमा लिया।
     और एक मौक़ा पर फ़रमाया के में ने कलामे पाक बित्तरतिब ब कोशिश याद कर लिया और ये इस लिये के उन बन्दगाने खुदा का (जो मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है) कहना गलत साबित न हो।

*✍🏽​हयाते आला हज़रत, 1/208*
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 9*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #12
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_क़ज़ा का लफ्ज़ कहना भूल गया तो?_*
     आला हज़रत फरमाते है : हमारे उलमा तसरिह फरमाते है : क़ज़ा ब निययते अदा और अदा ब निययते क़ज़ा दोनों सहीह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/161*

*_क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर_*
     क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर और अहम है मगर सुन्नते मुअक्क्दा, नमाज़े चाश्त, स्लातुत्तस्बीह और वो नमाज़े जिन के बारे में अहादीस मरवी है यानी जेसे तहिय्यतुल मस्जिद असर से पहले की चार रकअत (सुन्नते गैर मुअक्कदा) और मगरिब के बाद 6 रकअत पढ़ी जाएगी।
*✍🏽रद्दुलमोहतार 2/646*

     याद रहे क़ज़ा नमाज़ के बिना पर सुन्नते मुअक्कदा छोड़ना जाइज़ नहीं, अलबत्ता सुन्नते गैर मुअक्कदा और अहादिसो में वारिद शुदा मुखसुस नवाफ़िल पढ़े तो षवाब का हक़दार है मगर इन्हें न पड़ने पर कोई गुनाह नही।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 253*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #78
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑥_*
और बेशक तुम ज़रूर उन्हें पाओगे कि सब लोगों से ज़्यादा जीने की हवस रखते हैं और मुश्रिको (मूर्तिपूजको) से प्रत्येक को तमन्ना है कि कहीं हज़ार बरस जिये और वह उसे अज़ाब से दूर न करेगा इतनी उम्र का दिया जाना और अल्लाह उनके कौतुक  देख रहा है

*तफ़सीर*
     मुश्रिकों का एक समूह मजूसी (आग का पुजारी) है. आपस में मिलते वक़्त इज़्ज़त और सलाम के लिये कहते है “ज़िह हज़ार साल” यानी हज़ार बरस जियो. मतलब यह है कि मजूसी मुश्रिक हज़ार बरस जीने की तमन्ना रखते हैं. यहूदी उनसे भी बढ गए कि उन्हें ज़िन्दगी का लालच सब से ज़्यादा है.
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Tuesday 15 November 2016

*​​तज़किरए इमाम अहमद रज़ा*​​​ #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हैरत अंगेज़ क़ुव्वते हाफीजा_*
     हज़रते अबू हामिद मुहम्मद मुहद्दिस कछौछवी अलैरहमा फरमाते है के जब दारुल इफ्ता में काम करने के सिलसिले में मेरा बरेलवी शरीफ में क़याम था तो रात दिन ऐसे वाक़ीआत सामने आते थे के आला हज़रत की हाज़िर जवाबी से लोग हैरान हो जाते। इन हाज़िर जवाबियो में हैरत में दाल देने वाले वाक़ीआत वो इल्मी हाज़िर जवाबी थी जिस की मिसाल सुनी भी नही गई।
     मसलन सुवाल आया, दारुल इफ्ता में काम करने वालो ने पढ़ा और ऐसा मालुम हुवा के नई किस्म का मुआमला पेश आया है और जब जवाब न मिल सकेगा फुकहाए किराम के बताए हुए उसूलो से मसअला निकाल न पड़ेगा।
     आला हज़रत अलैरहमा की खिदमत में हाज़िर हुए, अर्ज़ किया : अजब नए नए किस्म के सुवालात आ रहे है ! अब हम लोग क्या तरीका इख़्तियार करे ? फ़रमाया : ये तो बड़ा पुराना सुवाल है। इब्ने हुमाम ने "फतहुल कदरी" के फुला सफ़हे में, इब्ने आबिदीन ने "रद्दल मुहतार" की फुला जिल्द के फुला सफह पर लिखा है, "फतावा हिन्दीया" में "खैरिया" में ये इबारत इस सफा पर मौजूद है।
     अब जो किताबो को खोला तो सफ़्हा, सत्र और बताई गई इबारत में एक नुक़्ते का फर्क नही। इस खुदादाद फ़ज़लो कमाल ने उलमा को हमेशा हैरत में रखा।
*✍🏽हयाते आला हज़रत, 1/210*
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 8*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #77
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨⑤_*
और कभी उसकी आरज़ू न करेंगे (25)
उन बुरे कर्मों के कारण जो आगे कर चुके (26)
और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को

*तफ़सीर*
     (25) यह ग़ैब की ख़बर और चमत्कार है कि यहूदी काफ़ी ज़िद और सख़्त विरोध के बावुजूद मौत की तमन्ना ज़बान पर न ला सके.
     (26) जैसे आख़िरी नबी और क़ुरआन के साथ कुफ़्र और तौरात में काँट छाँट वग़ैरह. मौत की महब्बत और अल्लाह से मिलने का शौक़, अल्लाह के क़रीबी बन्दों का तरीक़ा है.
     हज़रत उमर (अल्लाह उनसे राज़ी) हर नमाज़ के बाद दुआ फ़रमाते. *”अल्लाहुम्मर ज़ुक़नी शहादतन फ़ी सबीलिका व वफ़ातन बिबल्दि रसूलिका”* (ऐ अल्लाह, मुझे अपने रास्तें में शहादत अता कर और अपने प्यारे हबीब के शहर में मौत दे).
     आम तौर से सारे बड़े सहाबा और विशेष कर बद्र और उहद के शहीद और बैअते रिज़्वान के लोग अल्लाह की राह में मौत की महब्बत रखते थे. हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (अल्लाह उनसे राज़ी) ने काफ़िर लश्कर के सरदार रूस्तम बिन फ़र्रूख़ज़ाद के पास जो ख़त भेजा उसमें तहरीर फ़रमाया था. “इन्ना मअना क़ौमन युहिब्बून मौता कमा युहिब्बुल अआजिमुल ख़म्रा” यानी मेरे साथ ऐसी क़ौम है जो मौत को इतना मेहबूब रखती है जितना अजमी लोग शराब को.
     इसमें सुन्दर इशारा था कि शराब की दूषित मस्ती को दुनिया की महब्बत के दीवाने पसन्द करते हैं और अल्लाह वाले मौत को हक़ीक़ी मेहबूब से मिलने का ज़रिया समझकर चाहते हैं. सारे ईमान वाले आख़िरत की रग़बत रखते हैं और लम्बी ज़िन्दगी की तमन्ना भी करें तोI वह इसलिये होती है कि नेकियाँ करने के लिये कुछ और समय मिल जाए जिससे आख़िरत के लिये अच्छा तोशा ज़्यादा जमा कर सकें. अगर पिछले दिनो में गुनाह ज़्यादा हुए हैं तो उनसे तौबह और क्षमा याचना कर लें.
     सही हदीस की किताबों में है कि कोई दुनिया की मुसीबत से परेशान होकर मौत की तमन्ना न करे और वास्तव में दुनिया की परेशानियों से तंग आकर मौत की दुआ करना सब्र और अल्लाह की ज़ात पर भरोसे और उसकी इच्छा के आगे सर झुका देने के ख़िलाफ़ और नाजायज़ है.
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Monday 14 November 2016

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #10
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_क़ज़ाए उम्री का तरीका_*
     क़ज़ा हर रोज़ की 20 रकअत होती है।
2 फ़र्ज़ फ़ज्र की, 4 ज़ोहर की, 4 असर की, 3 मगरिब की, 4 ईशा की और 3 वित्र।
निय्यत इस तरह कीजिये
*सबसे पहली फ़ज्र जो मुझ से क़ज़ा हुई उसको अदा करता हु* हर नमाज़ में इसी तरह नियत कीजिये।

*_नमाज़े क़सर की क़ज़ा_*
     अगर हालते सफर की क़ज़ा नमाज़ हालते इक़ामत में पढ़ेंगे तो क़सर ही पढ़ेंगे और हालते इक़ामत की क़ज़ा हालते सफर में पढ़ेंगे तो पूरी पढ़ेंगे।
*✍🏽आलमगिरी 1/121*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 251*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #76
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨④_*
तुम फ़रमाओ अगर पिछला घर अल्लाह के नज़दीक ख़ालिस तुम्हारे लिये हो न औरों के लिये तो भला मौत की आरज़ू तो करो अगर सच्चे हो

*तफ़सीर*
     यहूदियों के झूटे दावों में एक यह दावा था कि जन्नत ख़ास उन्हीं के लिये है. इसका रद फ़रमाया जाता है कि अगर तुम्हारे सोच के मुताबिक़ जन्नत तुम्हारे लिये ख़ास है, और आख़िरत की तरफ़ से तुम्हें इत्मीनान है, कर्मों की ज़रूरत नहीं, तो जन्नत की नेअमतों के मुक़ाबले में दुनिया की तकलीफ़ क्यों बर्दाश्त करते हो. मौत की तमन्ना करो कि तुम्हारे दावे की बुनियाद पर तुम्हारे लिये राहत की बात है. अगर तुमने मौत की तमन्ना न की तो यह तुम्हारे झूटे होने की दलील होगी.
     हदीश शरीफ़ में है कि अगर वो मौत की तमन्ना करते तो सब हलाक हो जाते और धरती पर कोई यहूदी बाक़ी न रहता.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #28
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا بَصِيْرُ*
7 बार जो कोई रोज़ाना ब वक़्ते असर पढ़ लिया करेगा ان شاء الله अचानक मौत से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 250*
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Sunday 13 November 2016

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #09
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_जल्द से जल्द क़ज़ा पढ़ लीजिये_*
     जिसके ज़िम्मे क़ज़ा नमाज़े हो उन का जल्द से जल्द पढ़ना वाजिब है मगर बाल बच्चों की परवरिश और अपनी जरूरियात की फराहमी के सबब ताखीर जाइज़ है। लिहाज़ा कारोबार भी करता रहे और फुर्सत का जो वक़्त मिले उसमे क़ज़ा पढता रहे यहाँ तक कि पूरी हो जाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/646*

*_छुप कर क़ज़ा पढ़िये_*
     क़ज़ा नमाज़े छुप कर पढ़िये लोगो पर इस का इज़हार न कीजिये की गुनाह का इज़हार भी मकरुहे तहरिमि व गुनाह है।
*✍🏽रद्दुल मोहतार 2/650*

     लिहाज़ा अगर लोगो की मौजूदगी में वित्र क़ज़ा पढ़े तो तकबिरे क़ुनूत के लिये हाथ न उठाए।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 250*
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*इमाम अहमद रज़ा*​ #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_बचपन की एक हिकायत_*
     जनाबे अय्यूब अली शाह साहिब अलैरहमा फरमाते है के बचपन में आप को घर पर एक मौलवी साहिब क़ुरआन पढ़ाने आया करते थे। एक रोज़ का ज़िक्र है के मोलवी साहिब किसी आयत में बार बार एक लफ्ज़ आप को बताते थे मगर आप की ज़बाने मुबारक से नही निकलता था वो "ज़बर" बताते थे आप "ज़ेर" पढ़ते थे ये केफिय्यत जब आप के दादाजान हज़रते रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह ने देखि तो आला हज़रत अलैरहमा को अपने पास बुलाया और कलामे पाक मंगवा कर देखा तो उस में कातिब ने गलती से ज़ेर की जगह ज़बर लिख दिया था, यानी जो आला हज़रत अलैरहमा की ज़बान से निकलता था वो सही था। आप के दादा ने पूछा के बेटे जिस तरह मोलवी साहिब पढ़ाते थे तुम उसी तरह क्यू नही पढ़ते थे ? अर्ज़ की : में इरादा करता था मगर ज़बान पर काबू न पाता था।
     आला हज़रत अलैरहमा खुद फरमाते थे के मेरे उस्ताद जिन से में इब्तिदाई किताब पढ़ता था, जब मुझे सबक पढ़ा दिया करते, एक दो मर्तबा में देख कर किताब बंद कर देता, जब सबक सुनते तो हर्फ़ ब हर्फ़ सूना देता। रोज़ाना ये हालत देख कर सख्त ताज्जुब करते। एक दिन मुझसे फरमाने लगे अहमद मिया ! ये तो कहो तुम आदमी हो या जिन ? के मुझ को पढ़ाते देर लगती है मगर तुम को याद करते देर नही लगती !
     आप ने फ़रमाया के अल्लाह का शुक्र है में इंसान ही हु, हा अल्लाह का फ़ज़लो करम शामिल है।
*✍🏽हयाते आला हज़रत, 168*
*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 5*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #75
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨②_*
और बेशक तुम्हारे पास मूसा खुली निशानियाँ लेकर तशरीफ़ लाये फिर तुमने उसके बाद (20)
बछड़े को माबूद (पूजनीय) बना लिया और तुम ज़ालिम थे (21)

*तफ़सीर*
     (20) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के तूर पर तशरीफ़ ले जाने के बाद.
     (21) इसमें भी उनकी तकज़ीब है कि हज़रत मूसा की लाठी और रौशन हथेली वग़ैरह खुली निशानियों के देखने के बाद बछड़ा न पूजते.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨③_*
और याद करो जब हमने तुमसे पैमान (वादा) लिया (22)
और तूर पर्वत को तुम्हारे सरों पर बलन्द किया, लो जो हम तुम्हें देते हैं ज़ोर से और सुनो. बोले हम ने सुना और न माना और उनके दिलों में बछड़ा रच रहा था उनके कुफ़्र के कारण. तुम फ़रमादो क्या बुरा हुक्म देता है तुमको तुम्हारा ईमान अगर ईमान रखते हो(23)

*तफ़सीर*
     (22) तौरात के आदेशों पर अमल करने का.
     (23) इसमें भी उनके ईमान के दावे को झुटलाया गया है.
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Saturday 12 November 2016

*गुस्से का इलाज* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_पिटाई का कफ़्फ़ारा_*
     मुस्लिम शरीफ में है, हज़रते अबू मसऊद अंसारीرضي الله تعالي عنه फरमाते है : में अपने गुलाम की पिटाई कर रहा था की में ने अपने पीछे से आवाज़ सुनी, ऐ अबू मसऊद ! तुम्हे इल्म होना चाहिए की तुम इस पर जितनी क़ुदरत रखते हो अल्लाह इससे ज़्यादा तुम पर क़ुदरत रखता है। में ने पीछे मूड कर देखा तो वो रसूलुल्लाहﷺ थे। मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! ये अल्लाह की रिज़ा के लिये आज़ाद है। हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : अगर तुम ये न करते तो तुम्हे दोज़ख की आग जलाती या फ़रमाया की तुम्हे दोज़ख की आग छूती।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 905*

*_दर गुज़र में आफिय्यत_*
     आप ने देखा ! हमारे सहाबए किराम अल्लाह व रसूल से किस क़दर प्यार करते थे। हज़रते अबू मसऊद अंसारीرضي الله تعالي عنه ने जू ही अपने आक़ा की नाराज़ी महसूस की फौरन न सिर्फ गुलाम की पिटाई से अपना हाथ रोक लिया बल्कि अपने इस कुसूर का ऐतिराफ करते हुए उस के कफ्फारे में गुलाम को आज़ाद कर दिया।
     आह ! आज लोग अपने ज़ेर दस्तो को बिला ज़रूरत झाड़ते, लताड़ते और उन पर दहाड़ते वक़्त इस बात की तरफ बिलकुल तवज्जोह नही देते की अल्लाह जो हम से ज़बर दस्त है वो हमारे ज़ुल्मो उदवान को देख रहा है। यक़ीनन अपने मा तहतो के साथ नरमी व हुस्ने सुलूक और अफ्वो दर गुज़र से काम लेने ही में आफिय्यत है।
*✍🏽गुस्से का इलाज, स.13*
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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हैरत अंगेज़ बचपन_*
     उमुमन हर ज़माने के बच्चों का वही हाल होता है जो आज कल बच्चों का है, के सात आठ साल तक तो उन्हें किसी बात का होश नही होता और न ही वो किसी बात की तह तक पहोच सकते है,
     मगर आला हज़रत अलैरहमा का बचपन बड़ी अहमिय्यत का हामिल था। कमसिन और कम उम्र में होश मन्दी और क़ुव्वते हाफीजा का ये आलम था के साढ़े चार साल की नन्ही सी उम्र में क़ुरआन मुकम्मल पढ़ने की नेअमत से बारयाब हो गए। 6 साल के थे के रबीउल अव्वल के मुबारक महीने में मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ हो कर मिलादुन्नबी के मौजू पर एक बहुत बड़े इज्तिमा में निहायत पुर मग्ज़ तक़रीर फरमा कर उल्माए किराम और मसाईखे इज़ाम से तहसीन व आफरीन की दाद वसूल की।
     इसी उम्र में आप ने बगदाद शरीफ के बारे में सम्त मालुम कर ली फिर ता दमे हयात गौषे आज़म के मुबारक शहर की तरफ पाउ न फेलाए।
     नमाज़ से तो इश्क़ की हद तक लगाव था चुनांचे नमाज़े पंजगाना बा जमाअत तकबिरे उला का तहफ़्फ़ुज़ करते हुए मस्जिद में जा कर अदा फ़रमाया करते।
     जब किसी खातुन का सामना होता तो फौरन नज़रे नीची करते हुए सर जुका लिया करते, गोया के सुन्नते मुस्तफा का आप पर गल्बा था, जिस का इज़हार करते हुए हुज़ूरे पुरनूर की खिदमत में यु सलाम पेश करते है :
          *नीची  नज़रो  की  शर्म  हया  पर  दुरुद*
          *उची बिनी की तफअत पे लाखो सलाम*
     आला हज़रत अलैरहमा ने लड़क पन में तक़वा को इस क़दर अपना लिया था के चलते वक़्त क़दमो की आहत तक सुनाई न देती थी। 7 साल के थे के माहे रमज़ान में रोज़े रखने शुरू कर दिये।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 30/16*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #74
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑨①_*
और जब उनसे कहा जाए कि अल्लाह के उतारे पर ईमान लाओ (16)
तो कहते है वह जो हम पर उतरा उसपर ईमान लाते हैं (17)
और बाक़ी से इन्कार करते हैं हालांकि वह सत्य है उनके पास वाली की तस्दीक़  (पुष्टि) फ़रमाता हुआ (18)  
तुम फ़रमाओ कि फिर अगले नबियों को क्यों शहीद किया अगर तुम्हें अपनी किताब पर ईमान था (19)

*तफ़सीर*
     (16) इससे क़ुरआने पाक और वो तमाम किताबें मुराद हैं जो अल्लाह तआला ने उतारीं, यानी सब पर ईमान लाओ.
     (17) इससे उनकी मुराद तौरात है.
     (18) यानी तौरात पर ईमान लाने का दावा ग़लत है. चूंकि क़ुरआने पाक जो तौरात की तस्दीक़ (पुष्टि) करने वाला है, उसका इन्कार तौरात का इन्कार हो गया.
     (19) इसमें भी उनकी तकज़ीब है कि अगर तौरात पर ईमान रखते तो नबियों को हरगिज़ शहीद न करते.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #26
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُعِزُّ*

जो कोई इसे बाद नमाज़े ईशा शबे जुमुआ 140 बार पढ़े मख्लूक़ की नज़र में उस की इज़्ज़त व हुरमत और हैबत बढ़ेगी ان شاء الله.

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 249*
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Friday 11 November 2016

*​गुस्से का इलाज*​ #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_किसी पर गुस्सा आए तो यूं इलाज करे_*
     गुस्से की तबाह कारियों को भी पेशे नज़र रखिये क्यूं कि गुस्सा ही अकसर दंगा फ़साद, दो भाइयों में इफ्तिराक, मियां बीवी में तलाक़, आपस में मुना-फ़रत और कत्लो ग़ारत का मूजिब होता है। जब किसी पर गुस्सा आए और मारधाड़ और तोडताड़ कर डालने को जी चाहे तो अपने आप को इस तरह समझाये : मुझे दुसरो पर अगर कुंछ कुदरत हासिल भी है तो उस से बेहद जियादा अल्लाह मुझ पर कादीर है अगर मै ने गुस्से मे किसी की दिल आजारी या हक़ त-लफ़ि कर डाली तो क़ियामत के रोज अल्लाह के गजब से मैं किस तरह महफूज़ रह सकुंगा ?

*_गुलाम ने देर कर दी_*
     शहन्शाहे ख़ैरुल अनामﷺ ने एक गुलाम को किसी काम के लिये तलब फ़रमाया, वोह देर से हाज़िर हुवा तो हुज़ूरे अन्वर, मदीने के ताजवरﷺ के दस्ते मुनव्वर में मिस्वाक थी फ़रमाया : "अगर क़ियामत में इन्तिकाम न लिया जाता तो मै तुझे इस मिस्वाक से मारता।"
     देखा आपने ! हमारे मीठे मीठे आक़ा, शहन्नसाहे ख़ैरुल अनामﷺ कभी भी अपने नफ़्स की खातिर इन्तिकाम नहीं लेते थे और एक आज कल का मुसल्मान है कि अगर नोकर किसी काम में कोताही कर दे तो गालियों की बौछाड़ बल्कि मारधाड़ पर उतर आता है।
*✍🏽गुस्से का इलाज, 12*
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