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Saturday 31 March 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #99
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*इब्राहिम عليه السلام को आग में डाले जाने का वाक़ीआ* #01
     इब्राहिम عليه السلام को आग में जलाने के लिये जो चार दिवारी बनाई गई इसकी मिक़दार हज़रत इब्ने अब्बास رضي الله عنه ने बयान फ़रमाई कि इसकी बुलन्दी 45 फिट और चौड़ाई 30 फिट और तूल 45 फिट।

*आग में डालने का मशवरा देने वाला*
     हज़रत मुजाहिद कहते है, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله عنه ने फ़रमाया, ऐ मुजाहिद क्या तुम्हे मालुम है की इब्राहिम عليه السلام को जलाने का सबसे पहले मशवरा देने वाला कौन था? फ़रमाया फारस के देहात में रहने वाला शख्स था, जिसका नाम इकराद था।
     बाज़ जगह उसका नाम इकराद बिन अतिया मुकम्मल तौर पर ज़िक्र है। नाम के मुताबिक़ दो क़ौल और भी है। एक क़ौल के मुताबिक़ हयुन और दूसरे के मुताबिक़ हदेर है। उस शख्स को अल्लाह ने ज़मीन में धंसा दिया और क़यामत तक धंसता चला जायेगा।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 88
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*रहमत के सत्तर दरवाज़े*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जो ये दुरुदे पाक पढ़ता है तो उस पर रहमत के 70 दरवाज़े खोल दिये जाते है।
صٙلّٙى اللّٰهُ عٙلٰى مُحٙمّٙدٍ
*✍🏽الْقٙوْلُ الْبٙدِيْع ٢٧٧*

*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
     गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*मेराज शरीफ के हवाले से मुफीद मालूमात* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*मेराज शरीफ की हिकमते* #03
     (3) रब ने सूरए तौबा आयत 111 में फ़रमाया: अल्लाह ने मुसलमानों की जान व माल खरीद लिये जन्नत के बदले में।
     अल्लाह मुसलमानों की जान व माल का खरीदार, मुसलमान फरोख्त करने वाले और ये सौदा हुवा हुज़ूर ﷺ की मारिफ़त से और जिस की मारिफ़त से सौदा हो वो माल को भी देखे और क़ीमत को भी। फ़रमाया गया: ऐ महबूब! तूने मुसलमानों की जान व माल तो देख लिये, आओ! जन्नत को भी देख जाओ और गुलामों की इमारतें और बागात वगैरा भी मुलाहज़ा कर लो बल्कि खरीदार को भी देख लो यानी खुद परवरदिगार की ज़ात को भी।
     (4) हुज़ूर ﷺ तमाम ममलुकते इलाहिय्या के ब अताए इलाही मालिक है इसी लिये जन्नत के पत्ते पत्ते पर, हूरों की आँखों में गर्ज़ कि हर जगह लिखा हुवा है: ये कि चीज़ें अल्लाह की बनाई हुई है और मुहम्मदुर रसूलुल्लाह को दी हुई है।
     मर्ज़िये इलाही ये थी कि मालिक को उस की मिल्किय्यत दिखा दी जावे।
*✍🏼फ़ैज़ाने मेराज* 64
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ का तरीक़ा* #83
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*इमामत का बयान* #02

*_इक़्तिदा की शराइत_*
★ निय्यत करना

★ इक़्तिदा और इस निय्यते इक़्तिदा का तहरिमा के साथ होना या तकबीरे तहरिमा से पहले होना बशर्ते कि पहले होने की सूरत में कोई अजनबी काम निय्यत व तहरिमा में जुदाई करने वाला न हो।

★ इमाम व मुक्तदि दोनो का एक मकान में होना। दोनो की नमाज़ एक हो या इमाम की नमाज़, नमाज़े मुक्तदि को अपने ज़िम्न में लिये हुए हो।

★ इमाम की नमाज़ का मज़्हबे मुक्तदि पर सहीह होना और इमाम व मुक्तदि दोनों का इसे सहीह समझना।

★ शराइत की मौजूदगी में औरत का बराबर न होना।

★ मुक्तदि का इमाम से मुक़द्दम (यानी आगे) न होना।

★ इमाम के इन्तिक़ालात का इल्म होना, इमाम का मुक़ीम या मुसाफिर होना मालुम होना।

★ अरकान की अदाएगी में शरीक होना, अरकान की अदाएगी में मुक्तदि इमाम के मिस्ल हो या कम

★ युही शराइत में मुक्तदि का इमाम से ज़ाइद न होना।
*✍🏼रद्दलमोहतार, 2/684*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.202*
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*इश्को महब्बत* #4

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
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      2) हज़रते अम्र बिन आस रदिअल्लाहो तआला अन्हो की वफ़ात का वक्त आया तो आप रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने अपने साहिबज़ादे से अपनी तीन हालतें बयान कीं। दूसरी हालते बयान करते हुवे फ़रमाते है:
      " कोई शख्स मेरे नज़्दीक रसूलुल्लाह ﷺ से ज़ियादा महबूब और मेरी आंखों में आप ﷺ से ज़ियादा जलालत व हैबत वाला न था। मैं आप ﷺ की हैबत के सबब से आप ﷺ की तरफ नज़र भर कर न देख सकता था।
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 77
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*आज का चाँद* -​ 13
*​माह 7* -​ रजब
*​हिजरी* -​ 1439

*विलादत*
मौलाए काएनात हज़रत अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم (का'बा शरीफ)

*संदल*
हज़रत गैबनशाह (राजकोट)
हज़रत हाजीशरीफ ज़िन्दनी (बुखारा)
सैयद नथ्थूपीर (धंधुका)

*उर्स*
सैयद अहमद जलाल (जम्बुसर)
हज़रत क़ुतुब महमूदशाह वली (दाहोद)
हज़रत गैबन शहीद, सीदी शहीद, चाँद शहीद (खमासा, अहमदाबाद)
पीर गैबी महमूदशाह (धंधुका)
सैयद बड़ा सैयदबाबा (वसो)
हज़रत मिटामियां (पालेज)

*विसाल*
इमाम तिर्मिज़ी मोहम्मद अबू ईसा

*नॉट :*
3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र करदीजिये।
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Friday 30 March 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #98
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*बुतों को तोड़ने पर इब्राहिम عليه السلام को सज़ा*
     आप عليه السلام ने जब कुफ्फार के बनावटी खुदाओं को तबाह कर दिया और दलायल में भी उन पर गल्बा हासिल कर लिया तो उन्होंने आपसे इंतकाम का फैसला कर लिया  और सब सज़ाओं से सख्त सज़ा तजवीज की यानी यह कि आपको आग में जला दिया जाये हालांकि आग का अज़ाब सिर्फ अल्लाह दे सकता है बन्दे के लिये यह जायज़ नहीं कि किसी को आग का अज़ाब दे लेकिन नमरूद और उसकी क़ौम ने आपको जलाने की सज़ा दी।
     अल्लाह ने इसका ज़िक्र फ़रमाया: वह कहने लगे इसके लिये एक इमारत बनाओ फिर इसे भड़कती आग में डाल दो।
     यानी इर्द गिर्द बहुत बड़ी दिवार बनाकर इसके दर्मियान आग जलाकर इब्राहिम عليه السلام को इस में डाल दो।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 88
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*तमाम गुनाह मुआफ़*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स ये दुरुदे पाक पढ़े, अगर खड़ा था तो बैठने से पहले और बैठा था तो खड़े होने से पहले उसके गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى سٙيِّدِنٙا وٙمٙوْلٙانٙا مُحٙمّٙدٍ وّٙعٙلٰى اٰلِهِ وٙسٙلِّمْ
*✍🏽اٙيضاًص ٦٥*

*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
     गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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*यतीम के सर पर हाथ फेरने की फ़ज़ीलत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जिस बच्चे या बच्ची का बाप फौत हो जाए उसको यतीम कहते है। जब बच्चा या बच्ची बालिग़ हो गये तो अब यतीम के अहकाम खत्म हुए। यतीमों के साथ हुस्ने सुलूक का भी बड़ा सवाब है।
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स यतीम के सर पर महज़ अल्लाह के लिये हाथ फेरे तो जितने बालो पर उसका हाथ गुज़रा हर बाल के बदले में उसके लिये नेकियां है और जो शख्स यतीम लड़के या लड़की पे एहसान करे में और वो जन्नत में (दो उँगलियों को मिला कर फ़रमाया) इस तरह होंगे।
     यतीम के सर पर हाथ फेरने और मिस्कीन को खाना खिलाने से दिल की सख्ती दूर होती है। चुनान्चे हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि एक शख्स ने अपने दिल की सख्ती की शिकायत की। हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: यतीम के सर पर हाथ फेरो और मिस्कीन को खाना खिलाओ।
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: लड़का यतीम हो तो उसके सर पर हाथ फेरने में आगे की तरफ ले आए और बच्चे का बाप हो तो हाथ फेरने में गर्दन की तरफ ले जाए।
*✍🏼ऐहतिरामे मुस्लिम* 13
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*मेराज शरीफ के हवाले से मुफीद मालूमात* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*मेराज शरीफ की हिकमतें* #02
     (3) रब ने सूरए तौबा आयत 111 में फ़रमाया: अल्लाह ने मुसलमानों की जान व माल खरीद लिये जन्नत के बदले में।
     अल्लाह मुसलमानों की जान व माल का खरीदार, मुसलमान फरोख्त करने वाले और ये सौदा हुवा हुज़ूर ﷺ की मारिफ़त से और जिस की मारिफ़त से सौदा हो वो माल को भी देखे और क़ीमत को भी। फ़रमाया गया: ऐ महबूब! तूने मुसलमानों की जान व माल तो देख लिये, आओ! जन्नत को भी देख जाओ और गुलामों की इमारतें और बागात वगैरा भी मुलाहज़ा कर लो बल्कि खरीदार को भी देख लो यानी खुद परवरदिगार की ज़ात को भी।
     (4) हुज़ूर ﷺ तमाम ममलुकते इलाहिय्या के ब अताए इलाही मालिक है इसी लिये जन्नत के पत्ते पत्ते पर, हूरों की आँखों में गर्ज़ कि हर जगह लिखा हुवा है: ये कि चीज़ें अल्लाह की बनाई हुई है और मुहम्मदुर रसूलुल्लाह को दी हुई है।
     मर्ज़िये इलाही ये थी कि मालिक को उस की मिल्किय्यत दिखा दी जावे।
*✍🏼फ़ैज़ाने मेराज* 64
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*ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।
*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।
*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।
*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*
     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।
     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।
     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।
     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।
*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*
     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।
     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।
     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।
     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।
     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220
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*इश्को महब्बत* #3

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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
  
1) एक रोज़ हज़रते उमर फारूक रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने रसूलुल्लाह ﷺ से अर्ज़ किया कि बेशक आप  सिवाए मेरी जान के जो मेरे दो पहलुओं में है, मेरे नज़दीक हर शै से ज़ियादा महबूब हैं।
    आं हज़रत ﷺ ने फ़रमाया: " तुम में से कोई हरगिज़ मोमिन (कामिल) नही बन सकता जब तक मैं उस के नज़दीक उस की जान से ज़ियादा महबूब न हो जाऊं।"
    येह सुन कर हज़रते उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने जवाब में अर्ज़ किया कि क़सम है उस ज़ात की जिस ने आप  ﷺ पर क़िताब नाज़िल फ़रमाई। बेशक आप ﷺ मेरे नज़दीक मेरी जान से जो मेरे दोनों पहलुओं के दरमियान है, ज़ियादा महबूब है।
इस पर हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: " اَلاٰن يا عمر  या'नी हां अब ! ऐ उमर!
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 76
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*आज का चाँद* -​ 12
*​माह 7* -​ रजब
*​हिजरी* -​ 1439

*उर्स*
आला हज़रत अशरफमिंया शाह अलीहुसैन (किछौछा)
हज़रत अन्सारी बाबा (कड़ी)
पीर हाजीबाबा गायवाले (पाटण)
हज़रत शैख़ सालार (समी, मेहसाना)
हज़रत अब्दुर्रहीम शहीद (सिद्धपुर)
हज़रत पांचपीर (वीजापुर)
मलेक जांशहीद बाबा (खंभात)
हज़रत बदरुद्दीन (डभोई)
हज़रत गैबनशहीद (नडियाद)
ख्वाजा हिसामुद्दीन चिश्ती (सांभर)
हज़रत मुलनवाले बाबा (हिलालिया, थाणे)

*संदल*
पीर अब्दुल्लाह शहीद (धोलका)
हज़रत सुलेमान सिद्दीक़ी शहीद (तीन दरवाज़ा, अहमदाबाद)

*नॉट :*
3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र करदीजिये।
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*तज़किरतुल अम्बिया* #97
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत इब्राहिम عليه السلام का बुतों को तोडना* #08
     दूसरा इर्शाद : इनके बड़े ने किया होगा।
     क़ौम जब मेले पर चली गई तो हज़रत इब्राहिम عليه السلام ने तमाम बुतों को तोड़ दिया और कुल्हाड़ी उनके बड़े बूत, यानी जिसको बड़ा खुदा समजते थे उसके कंधे पर रख दिया। जब क़ौम वापस आई तो एक दूसरे को देखकर कहने लगे हमारे खुदाओं से ये ज़्यादती किसने की? बाज़ लोगों ने कहा यह इब्राहिम ने किया होगा। आप عليه السلام से पूछा तो आपने फ़रमाया: इस बड़े बूत ने किया है, जिसका आम माना ज़ेहन में यह आता है कि आपने कहा यह इस बड़े बूत ने किया है यानी इसने तोड़ा है और लोगों ने अपनी समझ के मुताबिक़ झूठ समझा हालांकि इसका मतलब ही यह नहीं, अल्लामा राज़ी ने इस के मुख़्तलिफ़ मतब बयान किये है:
     *पहली वजह* : पहली वजह यह है कि आपने यह नहीं फ़रमाया कि इस बूत ने किया है बल्कि आपने इससे मुराद अपनी ज़ात ली आपका यह कलाम तअरीज़ पर मबनी था यानी कलाम करने वाला मुराद हो, और सुनने वाला कुछ और समझे। यह कलाम इस तरह है जिस तरह एक शख्स लिखने का माहिर हो वह एक अच्छा खत लिखे और दूसरा शख्स जो लिखना नही जानता वह माहिरे खत से पूछे क्या यह तुमने लिखा? और वह जवाब में कहे बल्कि तुमने लिखा है, यह इलज़ाम उसको खामोश करना है। यानी इस जुमला से उस शख्स की नफ़ी जा रही है जो क़ादिर नहीं और जो शख्स क़ादिर है उसके लिये साबित करना है, इसी तरह आप عليه السلام ने बूत की तरफ मन्सूब करके वाज़ेह किया कि यह काम उसी ने किया जो यह काम करने पर क़ादिर है वह कैसे कर सकता है जो काम करने पर क़ादिर ही नहीं?
     तीसरा इर्शाद : हज़रत सारा के मुतअल्लिक़ आवे फ़रमाया यह मेरी बहन है इसकी वजह हदीस में खुद ही वाज़ेह है कि आपने यह मुराद नहीं लिया कि यह मेरी नसबी बहन है बल्कि आपने हज़रत सारा को कहा तुम इस्लाम में मेरी बहन हो इसलिये कि अखुव्वते इस्लामी के लिहाज़ पर बाप बेटा भी भाई भाई है। माँ बेटी भी बहन है इसी तरह खाविन्द बीवी भी एक दूसरे के भाई बहन है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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Thursday 29 March 2018

*शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
     बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم
अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम

*सारे गुनाह मुआफ़*
     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार
اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ
पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।
*✍🏽अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष:7717*

*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
     गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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