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Saturday 26 May 2018

*पहला अशरा _रहमत_ का*
     रमज़ान के 1 से 10 रोज़े इस दुआ को कसरत से पढ़ा कीजिये।
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

يٙا حٙـيُّ يٙا قٙـيُّـوْمُ بِـرٙ حْـمٙـتِـكٙ اٙسْـتٙـغِـيْـثُ
या हय्यु या क़य्युमु बीर-हमतीक अस्तगीषु।

     *तर्जमा* : अय ज़िन्दगी अता फरमाने वाले.. अय हमेशा क़ायम रहने वाले.. तेरी रहमत से मेरी प्यास बुजा...
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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*सेहरी का नायाब तोहफा*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

    हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जो कोई इस दुआ को *सहरी के वक़्त 7 मर्तबा* पढ़ेगा अल्लाह  हर सीतारे के बदले ऊसे एक हज़ार नेकियां अता फ़रमाएगा, इतने ही गून्ह मिटाएगा और उसी क्द्र उस के दरजात बूलंब फरमाएगा
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙـيُّ الْقٙـيُّوْمُ القٓاىِٔمُ عٙلٰى كُلِّ نٙفْسِ بِمٙا كٙسٙبٙتٙ.
     *तर्जमा* : अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही वो ज़िन्दा है हमेशा बाक़ी रहेगा और क़ायम है हर नफ़्स पर जो तुम छुपाते हो।

*रोज़े की निय्यत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ غٙـدًالِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
     *तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूंगा।

*अगर दिन में निय्यत करे तो यु कहे*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ هٰـذا الْـيٙـوْمٙ لِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
     *तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूंगा।

     *नोट :* जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ के निय्यत करले।

*रमज़ान की बरक़त :*
     इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*।
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*अहकामे रोज़ा* #27
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_मकरुहाते रोज़ा_* #02
     ★ बीवी का बोसा लेना और गले लगाना और बदन को छूना मकरूह नही। हा अगर ये अन्देशा हो की इन्ज़ाल हो जाएगा या जिमाअ में मुब्तला होगा और हॉट और ज़बान चूसना रोज़े में मुतलक़न मकरूह है।
     ★ रोज़े में मिस्वाक करना मकरूह नही बल्कि और दिनों की तरह सुन्नत है।
     अक्सर लोगो में मशहूर है की दोपहर बाद रोज़ादार के लिये मिस्वाक करना मकरूह है ये हमारे मज़्हबे हनफिया के खिलाफ है।
     अगर मिस्वाक चबाने से रेशे छूटे या मज़ा महसूस हो तो ऐसी मिस्वाक रोज़े में नही करना चाहिए। अगर रोज़ा याद होते हुए मिस्वाक का रेशा या कोई जुज हल्क़ से निचे उतर गया तो रोज़ा फासिद् हो जाएगा।
     ★ बाज़ लोगो का रोज़े में बार बार थूकते रहते है शायद वो समझते है की रोज़े में थूक नही निगलना चाहिये, ऐसा नही। अलबत्ता मुह में थूक इकठ्ठा कर के निगल जाना, ये तो बगैर रोज़े के भी ना पसंदीदा है और रोज़े में मकरूह।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 215*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*तमाम गुनाह मुआफ़*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स ये दुरुदे पाक पढ़े, अगर खड़ा था तो बैठने से पहले और बैठा था तो खड़े होने से पहले उसके गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى سٙيِّدِنٙا وٙمٙوْلٙانٙا مُحٙمّٙدٍ وّٙعٙلٰى اٰلِهِ وٙسٙلِّمْ
*✍🏽اٙيضاًص ٦٥*

*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
     गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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*इफ्तार की दुआ*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

اٙلـلّٰـهُـمّٙ اِنّـِـىْ لٙكٙ صُـمْـتُ وٙبِـكٙ اٰمٙـنْـتُ وٙعٙـلٙـيْـكٙ تٙـوٙ كّٙـلْـتُ وٙعٙـلٰـى رِزْقِـكٙ اٙفْـطٙرْتُ
     *तर्जमा* : ऐ अल्लाह में ने तेरे लिये रोज़ा रखा और तुझही पर ईमान लाया और तुझही पर भरोसा किया और तेरे दिये हुए रिज़्क़ से रोज़ा इफ्तार किया।

يا وَاسِعَ الْمَغْفِرَةِ اِغْفِرْلِي

*तर्जमा* : ऐ वसी मगफिरत वाले मेरी मगफिरत फरमा।
     ये दुआ खाने के एक लुकमे के बाद पढ़े, ये सिर्फ रमज़ान के लिये नहीं बल्कि जब भी खाना खाये इस दुआ को पढ़ लिया जाये।

     *नोट :* ये दुआ खजूर खाने के बाद पढ़े। जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ले।

*रमज़ान की बरक़त :*      
     इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*.
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*अहकामे रोज़ा* #26
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_मकरुहाते रोज़ा_* 01
     जिनके करने से रोज़ा हो तो जाता है मगर उस की नुरानिय्यत चली जाती है।
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो बुरी बात कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो अल्लाह को इस की कुछ हाजत नही की उस ने खाना, पीना छोड़ दिया है।
*✍🏼सहीह बुखारी, 1/628, हदिष:1903*
     ★ रोज़ा ढाल है जब तक उसे फाड़ा न हो। अर्ज़ की गई, किस चीज़ से फाड़ेगा ? इर्शाद फ़रमाया, झूट या गीबत से।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब, 2/94, हदिष:3*
     ★ झूट, चुगली, गीबत, बद निगाही, गली देना, बिला इजाज़ते शरई किसी का दिल दुखाना, दाढ़ी मुंडाना वगैरा चीज़े वेसे भी ना जाइज़ व हराम है रोज़े में और ज़्यादा हराम और उन की वजह से रोज़े में कराहिय्यत आती और रोज़े की नुरानिय्यत चली जाती है।
     ★ रोज़ादार का बिला उज़्र किसी चीज़ को चखना या चबाना मकरूह है। चखने के लिये उज़्र ये है की मसलन औरत का शौहर बद मिज़ाज है की नमक कम या ज़्यादा होगा तो उस की नाराज़गी का बाइस होगा। इस वजह से चखने में हरज नही।
     चबाने के लिये उज़्र ये है की इतना छोटा बच्चा है की रोटी नही चबा सकता और कोई नर्म ग़िज़ा नही जो उसे खिलाई जा सके, न हैज़ो निफ़ास वाली औरत या कोई और ऐसा है की उसे चबा कर दे। तो बच्चे के खिलाने के लिये रोटी वगैरा चबाना मकरूह नही। मगर पूरी एहतियात रखिये अगर हल्क़ से निचे कुछ् उतर गया तो रोज़ा टूट गया।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 213*
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*अहकामे रोज़ा* #25
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_रोज़ा न तोड़नेवाली बाते_* 02
     ★ दांत या मुह में खफीफ (यानी मामूली) चीज़ बे मालूम सी रह गई की लुआब के साथ खुद ही उतर जाएगी और वो उतर गई, रोज़ा नही टूटा।
     ★ दातो से खून निकल कर हल्क़ तक पंहुचा मगर हल्क़ से निचे न उतरा तो रोज़ा न गया।
     ★ भूल से खाना खा रहे थे, याद आते ही लुकमा फेक दिया या पानी पी रहे थे याद आते ही मुह का पानी फेक दिया तो रोज़ा न टुटा। अगर मुह में का लुक़मा या पानी याद आने के बा वुजूद निगल गए तो रोज़ा टूट गया।
     ★ जनाबत (यानी गुस्ल फ़र्ज़ होने) की हालत में सुबह की बल्कि अगर्चे सरे दिन बे गुस्ल रहा रोज़ा न गया।
     मगर इतनी देर तक क़सदन गुस्ल न करना की नमाज़ क़ज़ा हो जाए गुनाह व हराम है।
     हदिष में फ़रमाया, जिस घर में जुनुब हो उस में रहमत के फ़रिश्ते नही आते।
     ★ तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हल्क़ से उतर गई तो रोज़ा न टूटा मगर जब की उस का मज़ा हल्क़ में महसूस होता हो तो रोज़ा टूट गया।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 211*
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*ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।
*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।
*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*
     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।
*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*
     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।
     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।
     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।
     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।
*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*
     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।
     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।
     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।
     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।
     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।
*✍🏼फतावा रज़विय्या*
*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220
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*अहकामे रोज़ा* #24
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*_भूल कर खाने पिने से रोज़ा नही जाता_*
      फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस रोज़ादार ने भूल कर खाया पिया वो अपने रोज़े को पूरा करे की उसे अल्लाह ने खिलाया और पिलाया।
*✍🏼सहीह बुखारी, 1/636, हदिष:1933*

*_रोज़ा न तोड़नेवाली बाते_* #01
     ★ रोज़ा याद होने के बा वुजूद भी मख्खी या गुबार या धुवा हल्क़ में चले जाने से रोज़ा नही टूटता। ख्वाह गुबार आटे का हो जो चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ले का गुबार हो या हवा से ख़ाक उडी या जानवरो के खुर या टाप से।
     ★ अगरबत्ती सुलग रही है और उस का धुवा नाक में गया तो रोज़ा नही टूटेगा। हा अगर लुबान या अगरबत्ती सुलग रही हो और रोज़ा याद होने के बा वुजूद मुह क़रीब ले जा कर उस का धुवा नाक से खीचा तो रोज़ा फासिद् हो जाएगा।
     ★ गुस्ल किया और पानी की खुनकी (यानि ठन्डक) अंदर महसूस हुई जब भी रोज़ा नही टुटा।
     ★ कुल्ली की और पानी बिलकुल फेक दिया सिर्फ कुछ तरी मुह में बाक़ी रह गई थी थूक के साथ इसे निगल लिया, रोज़ा नही टुटा।
     ★ कान में पानी चला गया जब भी रोज़ा नही टुटा। बल्कि खुद पानी डाला जब भी न टुटा।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 210*
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*हज़रते सुहैब रदिअल्लाहो तआला अन्हो का इस्लाम* : #40
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اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      हज़रते सुहैब रदिअल्लाहो तआला अन्हो भी हज़रते अम्मार रदिअल्लाहो तआला अन्हो ही के साथ मुसलमान हुवे। नबिय्ये अकरम ﷺ हज़रते अकरम सहाबी रदिअल्लाहो तआला अन्हो के साथ मकान पर तशरीफ़ फरमा थे कि येह दोनों हज़रात अलाहिदा अलाहिदा हाज़ीरे ख़िदमत हुवे और मकान के दरवाजे पर इत्तिफ़ाक़िया  इकठ्ठे हो गए, हर एक ने दूसरे की ग़रज़ मालूम की तो एक ही ग़रज़ यानी इस्लाम लाना और हुजूर ﷺ के फ़ैज़ से मुस्तफीज़ होना दोनों का मक्सूद था।
       इस्लाम लाए और इस्लाम लाने के बाद जो कुछ उस ज़माने में क़लील और कमज़ोर जमाअत को पेश आता था वोह पेश आया। हर तरह सताए गए। तकलीफें पहुंचाई गई। आखिरे कार हिजरत का इरादा फ़रमाया तो काफ़िरो को येह चीज़ भी गवारा न थी कि येह लोग किसी दूसरी जगह जा कर आराम से ज़िन्दगी बसर करें।  
      इस लिये जिस की हिजरत का हाल मालूम होता था उस को पकड़ने की कोशिश करते थे कि तकलीफ़ से नजात पा न सके। चुनान्चे इन का भी पीछा किया गया, और एक जमाअत इन को पकड़ने के लिये गई, इन्हों ने अपना तरकश संभाला जिस में तीर थे, और उन लोगों से कहा कि देखो तुमको मालूम है कि मैं तुम से ज़ियादा तीर अंदाज़ हूं, एक भी तीर मेरे पास बाकी रहेगा तो तुम लोग मुझ तक आ नहीं सकोगे और जब एक भी तीर न रहेगा तो मैं अपनी तलवार से मुकाबला करुंगा यहां तक कि तलवार भी मेरे हाथ में न रहे इस के बाद जो तुम से सके करना। इस लिये अगर तुम चाहो तो अपनी जान बदले मैं अपने माल का पता बता सकता हूं जो मक्का में है और दो बांदियां भी है, वोह तुम सब लेलो। इस पर वोह लोग राज़ी हो गए। हज़रते सुहैब रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने अपना माल दे कर जान छुड़ाई।
इस बारे में आयते पाक नाज़िल हुई।
*तर्जमए कन्ज़ूल ईमान* : _और कोई आदमी अपनी जान बेचता है अल्लाह की मरज़ी चाहने में और अल्लाह बन्दों पर मेहरबान है।_  (पा.2, अलबकर  207)
बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 114
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     रमज़ान के 1 से 10 रोज़े इस दुआ को कसरत से पढ़ा कीजिये।
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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يٙا حٙـيُّ يٙا قٙـيُّـوْمُ بِـرٙ حْـمٙـتِـكٙ اٙسْـتٙـغِـيْـثُ
या हय्यु या क़य्युमु बीर-हमतीक अस्तगीषु।

     *तर्जमा* : अय ज़िन्दगी अता फरमाने वाले.. अय हमेशा क़ायम रहने वाले.. तेरी रहमत से मेरी प्यास बुजा...
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सेहरी का नायाब तोहफा*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

    हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया जो कोई इस दुआ को *सहरी के वक़्त 7 मर्तबा* पढ़ेगा अल्लाह  हर सीतारे के बदले ऊसे एक हज़ार नेकियां अता फ़रमाएगा, इतने ही गून्ह मिटाएगा और उसी क्द्र उस के दरजात बूलंब फरमाएगा
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙـيُّ الْقٙـيُّوْمُ القٓاىِٔمُ عٙلٰى كُلِّ نٙفْسِ بِمٙا كٙسٙبٙتٙ.
     *तर्जमा* : अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही वो ज़िन्दा है हमेशा बाक़ी रहेगा और क़ायम है हर नफ़्स पर जो तुम छुपाते हो।

*रोज़े की निय्यत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ غٙـدًالِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
     *तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा कल रखूंगा।

*अगर दिन में निय्यत करे तो यु कहे*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
نٙـوٙيـتُ اٙنْ اٙصُـوْ مٙ هٰـذا الْـيٙـوْمٙ لِلّٰهِ تٙـعٙـالىٰ مِـنْ فٙـرْضِ رٙمٙـضٙانْ
     *तर्जमा* : में ने निय्यत की कि अल्लाह के लिये इस रमज़ान का फ़र्ज़ रोज़ा रखूंगा।

     *नोट :* जिन्हें अरबी न आती हो वो तर्जमा पढ़ के निय्यत करले।

*रमज़ान की बरक़त :*
     इफ्तार और सहरी के वक़्त दुआ क़बूल होती है। यानि *इफ्तार करते वक़्त* और *सहरी खा कर*।
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*अहकामे रोज़ा* #23
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_रोज़े में क़ै होना_*
     बाज़ अवक़ात जब रोज़े में क़ै हो जाती है तो लोग परेशान हो जाते है बल्कि बाज़ तो समझते है की रोज़े में खुद ब खुद क़ै हो जाने से भी रोज़ा टूट जाता है। हालांकि ऐसा नही।
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस को माहे रमज़ान में खुद बखुद क़ै आई उसका रोज़ा न टुटा और जिस ने जान बुझ कर क़ै की उस का रोज़ा टूट गया।
*✍🏼कन्जुल उम्माल, 8/230, हदिष:23814*
     एक और मक़ाम पर इर्शाद फ़रमाया : जिस को खुद बखुद क़ै आई उस पर क़ज़ा नही और जिस ने जानबूझ कर क़ै की वो रोज़े की क़ज़ा करे।
*✍🏼तिर्मिज़ी, 2/173, हदिष:720*
     अगर रोज़ा याद होने के बा वुजूद क़सदन (यानि जानबूझ कर) क़ै की और अगर वो मुह भर है तो अब रोज़ा टूट गया।
     क़सदन मुह भर होने वाली क़ै से भी इस सूरत में रोज़ा टूटेगा जब की क़ै में खाना या (पानी) या कड़वा पानी या खून आए।
     अगर क़ै में सिर्फ बलगम निकला तो रोज़ा नही टूटेगा।
     मुह भर क़ै बिला इख़्तियार हो गई तो रोज़ा न टूटा अलबत्ता अगर इस में से एक चने के बराबर भी वापस लौटा दी तो रोज़ा टूट जाएगा। और एक चने से कम हो तो रोज़ा न टुटा।

*_मुह भर क़ै की तारीफ़_*
     मुह भर क़ै के माना ये है, "इसे बिला तकल्लुफ न रोका जा सके।
*✍🏼फ़ज़ाइले रमज़ान, 205*

*_ज़रूरी हिदायत_*
     मुह भर क़ै (इलावा बलगम के) नापाक है। इस का कोई छीटा कपड़े या जिस्म पर न गिरने पाए इस की एहतियात फरमाइये। आजकल लोग इस में बड़ी बे एहतियाती करते है, कपड़ो पर छीटे पड़ने की कोई परवाह नही करते और मुह वगैरा पर जो नापाक क़ै लग जाती है उस को भी बिला झिजक अपने कपड़ो से पूछ लेते है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमे नफासत से बचने का ज़हन इनायत फरमाए।
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*शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ
     बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم
अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम

*सारे गुनाह मुआफ़*
     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार
اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ
पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।
*✍🏽अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष:7717*

*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*
     गराइबुल क़ुरआन पर एक तिवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।
لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم
*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।
*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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