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फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल



*फ़ारुके आज़म* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     रसूले अकरमﷺ के तमाम सहाबए किराम अपनी अपनी जगह बे मिसालों बे मिसाल है, सब ही आसमाने हिदायत के तारे और अल्लाह और उसके हबीबﷺ के प्यारे है, लेकिन इन में से बाज़ को बाज़ पर फ़ज़ीलत हासिल है और सब सहाबा में अफ्ज़ल खुल्फाए राशिदीन है।
     इन्ही खुल्फा में से दूसरे खकिफए राशिद, अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उमरे फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه है। आप का यौमे विसाल यकुम मुहर्रमूल हराम है।
     इसी मुनासबत से आप की ज़िन्दगी के एक रोशन पहलू *इश्के रसूल* के बारे में कुछ सआदत हासिल करेंगे अगली पोस्ट में..انشاء الله

*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 3*
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*फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ारुके आज़म और सरकार की दिलजुइ !_*
     हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه इरशाद फरमाते है : एक बार हुज़ूरﷺ गमगीन हालत में अपने मेहमान खाने में तशरीफ़ फरमा थे। में आपﷺ के गुलाम के पास आया और कहा "रसूलल्लाहﷺ से मेरे दाखिल होने की इजाज़त मांगो"। उसने वापस आ कर कहा : में ने हुज़ूरﷺ की बारगाह में आप का ज़िक्र तो किया है मगर आप ने कोई जवाब इरशाद नहीं फ़रमाया।
     थोड़ी देर बाद मेने फिर कहा की "हुज़ूरﷺ से मेरी हाजरी की इजाज़त मांगो" वो गया और वापस आ कर फिर कहा : मेने हुज़ूरﷺ से आप का ज़िक्र किया मगर आप ने कोई जवाब नही दिया।
     में कुछ कहे बगैर वापस पलटा तो गुलाम ने आवाज़ दी की आप अंदर आ जाइये ! इजाज़त मिल गई है। चुनांचे में अंदर गया आप को सलाम किया। आपﷺ एक चटाई पर टेक लगाए तशरीफ़ फरमा थे, जिस के निशानात आप के पहलू पर वाज़ेह नज़र आ रहे थे, फिर में खड़े खड़े हुज़ूर की दिलजुइ के लिये अर्ज़ गुज़ार हुवा : या रसूलल्लाहﷺ ! में आप के साथ बाते करके आप को मानूस करना चाहता हु। हम कुरैश जब मक्का में थे तो अपनी औरतो पर ग़ालिब थे और यहाँ मदीना में आ कर हमारा ऐसी क़ौम से वासित पड़ा, जिन पर औरते ग़ालिब है।
     ये सुन कर हुज़ूﷺर मुस्कुराए। मेने कहा या रसूलल्लाहﷺ में हफ्सा के पास गया था और उन से कहा : आप अपने साथ वाली (हज़रते आइशा सिद्दीक़ा) पर कभी रश्क न करना क्यू की वो तुम से ज़्यादा हसीन और हुज़ूरﷺ की पसंदीदा ज़ौजा है। ये सुन कर हुज़ूरﷺ दोबारा मुस्कुराए।

     इस वाक़ीए से अंदाज़ा लगाइये कि फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه को येभी ग्वार न था की सरकारﷺ किसी तकलीफ या गम में मुब्तला हो, इसी लिये आप ने प्यारे आक़ाﷺ को मानूस करना चाहा और बिल आखिर आप अपने इस इरादे में कामयाब भी हो गए और रसूलल्लाहﷺ इन की बातो पर मुस्कुरा दिए।
     ज़रा गौर कीजिये ! एक तरफ सहाबए किराम का ये आपमें है की वो आपﷺ को ग़मज़दा देख कर उदास हो जाते और एक हम है की शबो रोज़ गुनाहो में बसर करते हुवे हुज़ूरﷺ की जाते बा बरकत को अज़िय्यत पहुचाते है मगर हमे इस का ज़रा भी एहसास नही।
     याद् रखिये ! इस बात में शक नही की आज भी आपﷺ अपने उम्मतियो के तमाम अहवाल को मुलाहजा फरमाते है।
     चुनांचे रसूलल्लाहﷺ फरमाते है : मेरी ज़िदगी तुम्हारे लिए बेहतर है तुम मुझ से बाते करते रहो और में तुम से, और मेरी वफ़ात भी तुम्हारे लिये बेहतर, तुम्हारे आमाल मुझ पर पेश किये जाएंगे, जब में कोई भलाई देखूंगा तो हम्दे इलाही बजा लाऊँगा और जब बुराई देखूंगा तुम्हारी बख्शीश की दुआ करूँगा।
*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 4,5*
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*फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल* #03
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*_तआरुफे उमर फ़ारुके आज़म_*
     खलिफए दुवम, हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه की कून्यत "अबू हफ़्स" और लक़ब "फ़ारुके आज़म" है। एक रिवायत में है आप 39 मर्द के बाद हुज़ूरﷺ की दुआ से एलान नुबुव्वत के छटे साल ईमान लाए, इसी लिए आप को मुतम्मिल अरबइन यानी "40 का अदद पूरा करने वाले" कहते है।
     आपرضي الله تعالي عنه के इस्लाम क़बूल करने से मुसलमानो को बेहद ख़ुशी हुई और उन को बहुत बड़ा सहारा मिल गया, यहाँ तक की हुज़ूरﷺ ने मुसलमानो के साथ मिल कर हरमे मोहतरम में ऐलानिया नमाज़ अदा फ़रमाई।
     आपرضي الله تعالي عنه इस्लामी जंगो में मुजाहिदाना शान के साथ बर सरे पैकार रहे और तमाम मन्सूबा बंदियों में हुज़ूरﷺ के वज़ीर व मुशीर की हेसिय्यत से वफादार व रफिके कार रहे।
     खलिफए अव्वल, हज़रते अबू बक्रرضي الله تعالي عنه ने अपने बाद हज़रते फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه को खलीफा मुन्तख़ब फ़रमाया, आप ने तख्ते खिलाफत पर रौनक अफ़रोज़ रह कर जानशिनिये मुस्तफाﷺ की तमाम तर जिम्मेदारियो को बहुत ही अच्छे अंदाज़ से सर अंजाम दिया।
     बिल आखिर नमाज़े फज़र में एक बदबख्त ने आपرضي الله تعالي عنه पर खन्जर से वार किया और आप ज़ख्मो की ताब न लाते हुवे तीसरे दिन शरफे शहादत से सरफ़राज़ हो गए। ब वक़्ते वफ़ात आप की उम्र 63 बरस थी।
     हज़रते सुहैबرضي الله تعالي عنه ने आपرضي الله تعالي عنه की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और हज़रए उमर बिन खत्ताब रौज़ए मुबारका के अंदर हज़रते सिद्दीके अकबरرضي الله تعالي عنه के पहलुए अन्वर में मदफुन हुवे, जो की सरकारﷺ के मुबारक पहलु में आराम फरमा है।
*फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 7*
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*_फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल_*​ #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_हर शै से महबूब_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन हिशामرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हम हुज़ूर के पास बेठे थे। आप ने हज़रते उमर फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था। फ़ारुके आज़म ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! आप मुझे मेरी जान के इलावा हर चीज़ से ज़्यादा महबूब है। आपﷺ ने फ़रमाया : नही उमर ! उस रब की क़सम जिस के कब्जाए कुदरत में मेरी जान है ! (तुम्हारी महब्बत उस वक़्त तक कामिल नही होगी) जब तक में तुम्हारे नज़दीक तुम्हारी जान से भी ज़्यादा महबूब न हो जाऊ।
     फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! खुदा की क़सम ! आप मुझे मेरी जान से भी ज़्यादा महबूब है। ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया : ऐ उमर ! अब तुम्हारी महब्बत कामिल हो गई।
*✍🏽बुखारी शरीफ, 4/283*

     ये हुक्म सिर्फ फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه के लिये ही नही बल्कि रहती दुन्या तक आने वाले एक एक मुसलमान के लिये है, क्यू की महब्बते मुस्तफा वो चीज़ है जिस के बगैर हमारा ईमान कामिल ही नही हो सकता।
     फरमाने मुस्तफाﷺ : तुम में से कोई शख्स उस वक़्त तक (कामिल) मोमिन नही हो सकता, जब तक की में उस के नज़दीक उस के वालिदैन, अव्लाद और तमाम लोगो से ज़्यादा महबूब न हो जाऊ।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/17*

     हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه के इश्क रसूल के क्या कहने ! आप के गुलाम हज़रते अस्लमرضي الله تعالي عنه फरमाते है : जब आप हुज़ूरﷺ का ज़िक्र करते तो इश्के रसूल से बे ताब हो कर रोने लगते और फरमाते : प्यारे आक़ाﷺ तो लोगो में सब से ज़्यादा रहम दिल, यतीम के लिये वालिद और लोगो में दिली तौर पर सब से ज़्यादा बहादुर थे, वो तो निखरे निखरे चेहरे वाले, महकती खुशबु वाले और हसब के ऐतिबार से सब से ज़्यादा मुकर्रम थे, अव्वलिनो आखिरिन में आप की मिस्ल कोई नही।
*✍🏽जामीअल जवामिल, 10/16*
*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 9*
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