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Wednesday 29 August 2018

सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब हमने फ़रमाया उस बस्ती में जाओ (16) फिर उसमें जहां चाहो, बे रोक टोक खाओ और दरवाज़ें में सजदा करते दाख़िल हो(17) और कहो हमारे गुनाह माफ़ हों हम तुम्हारी ख़ताएं बख्श़ देंगे और क़रीब है कि 

नेकी वालों को और ज्य़ादा दें(18)


*तफ़सीर*

     (16) “उस बस्ती” से बैतुल मक़दिस मुराद है या अरीहा जो बैतुल मक़दिस से क़रीब है, जिसमें अमालिक़ा आबाद थे और उसको ख़ाली कर गए. वहां ग़ल्ले मेवे की बहुतात थी.

     (17) यह दर्वाज़ा उनके लिये काबे के दर्जे का था कि इसमें दाख़िल होना और इसकी तरफ़ सज्दा करना गुनाहों के प्रायश्चित का कारण क़रार दिया गया.

     (18) इस आयत से मालूम हुआ कि ज़बान से माफ़ी मांगना और बदन की इबादत सज्दा वग़ैरह तौबह का पूरक है. यह भी मालूम हुआ कि मशहूर गुनाह की तौबह ऐलान के साथ होनी चाहिये. यह भी मालूम हुआ कि पवित्र स्थल जो अल्लाह की रहमत वाले हों, वहाँ तौबह करना और हुक्म बजा लाना नेक फलों और तौबह जल्द क़ुबूल होने का कारण बनता है. (फ़त्हुल अज़ीज़). इसी लिये बुज़ुर्गों का तरीका़ रहा है कि नबियों और वलियों की पैदाइश की जगहों और मज़ारात पर हाज़िर होकर तौबह और अल्लाह की बारगाह में सर झुकाते हैं. उर्स और दर्गाहों पर हाज़िरी में भी यही फ़ायदा समझा जाता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सवानहे कर्बला​* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_शहादत के वाक़ीआत_*


*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​_* #02

     उबैदुल्लाह बिन यज़ीद बहुत मक्कार व कय्याद था, वो बसरा से रवाना हुवा और उसने अपनी फ़ौज को क़ादिसिय्या में छोड़ा और खुद हिजाज़ियो का लिबास पहन कर ऊंट पर सुवार हुवा और चन्द आदमी हमराह ले कर शब् की तारीकी में मगरिब व ईशा के दरमियान उस राह से कूफा में दाखिल हुवा जिस से हिजज़ी काफिले आया करते थे। इस मक्कारी से उस का मतलब ये था की इस वक़्त अहले कूफा में बहुत जोश है, ऐसे तौर पर दाखिल होना चाहिए की वो इब्ने ज़ियाद को न पहचाने और ये समझे की हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए ताकि वो बे खतरा व अन्देशा अम्न व आफिय्यत के साथ कूफा में दाखिल हो जाए।

     चुनांचे ऐसा ही हुवा, अहले कूफा जिन को हर लम्हा हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه की तशरीफ़ आवरी का इन्तिज़ार था, उन्हों ने धोका खाया और शब् की तारीकी में हिजाज़ी लिबास और हिजाज़ी राह से आता देख कर समझे की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए। नारऐ मुसर्रत बुलन्द किये, गिर्दो पेश मरहबा कहते चले।

     ये मर्दुद दिल में तो जलता रहा और इस ने अंदाज़ा कर लिया की कुफियो को हज़रते इमाम की तशरीफ़ आवरी का इंतज़ार है और इन के दिल उन की तरफ माइल है मगर उस वक़्त की मस्लहत से खामोश रहा ताकि इन पर उसका मक्र खुल न जाए यहाँ तक की दारुल अम्मारा (गवर्नर हाउस) में दाखिल हो गया।

*✍🏽सवानहे कर्बला, 120*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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नमाज़ का तरीक़ा* #23


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के 7 फराइज़* #03

*_2 क़याम :_* #02

      बाज़ मसाजिद में कुर्सियो का इंतिज़ाम भी होता है, बाज़ बूढ़े वग़ैरा उन पर बैठ कर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ते है हाला की चल कर आए होते है, नमाज़ के बाद खड़े खड़े बातचीत भी कर लेते है, ऐसे लोग अगर बिगैर इजाज़ते शरई बैठ कर नमाज़े पढ़ेंगे तो उन की नमाज़े न होगी।

     खड़े हो कर पढ़ने की कुदरत हो जब भी बैठ कर नफ्ल पढ़ सकते है मगर खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है।

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه से मरवी है, रहमते आलम صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फ़रमाया : बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े हो कर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा षवाब) है।

*✍🏼सहीह मुस्लिम जी.1 स.253*

     अलबत्ता उज़्र की वजह से बैठ कर पढ़े तो षवाब में कमी न होगी ये जो आज कल रवाज पड गया है की नफ्ल बैठ कर पढ़ा करते है ब ज़ाहिर ये मालुम होता है की शायद बैठ कर पढ़ने को अफज़ल समझते है, ऐसा है तो उन का ख्याल गलत है। वित्र् के बाद जो 2 रकअत नफ्ल पढ़ते है उन का भी यही हुक्म है की खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼बहारे शरीअत, जी.4 स.17*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 163*

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तज़किरतुल अम्बिया* #232


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*क़ौमे समुद के कुफ्फार पर अज़ाबे इलाही*

    क़ौमे समुद पर ज़मीन का अज़ाब शदीद ज़लज़ला था और आसमानों का अज़ाब सख्त बिजली की कड़क या जिब्राइल की शदीद हौलनाक आवाज़ थी जिसकी वजह से उन्हें तबाह व बर्बाद कर दिया गया।

     

*सालेह عليه السلام और आपके साथ ईमान लेन वालों को नजात*

     ये रब की अज़ीम कुदरत है कि एक ही मुल्क में एक ही इलाक़ा में कुफ्फार को ज़लज़ला हौलनाक कड़क से तबाह व बर्बाद कर दिया लेकिन अपने नबी और उनके साथ ईमान लेन वालों को इस हौलनाक तबाही और इसकी रुसवाई से बचा लिया।

     मुसलमानों को चाहिये कि इस वाकिये से इबरत पकड़े और अल्लाह के अज़ाब से डरते रहें और रब की अज़ीम कुदरत पर कामिल ईमान रखे।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 188

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*सवानहे कर्बला​* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_शहादत के वाक़ीआत_*


*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​_* #02

     हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه ने अहले इराक़ की गिरविदगी व अक़ीदत देख कर हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की जनाब में अरिज़ा लिखा जिस मे यहा के हालात की इत्तिला दी और इलतिमास की, की ज़रूरत है की हज़रत जल्द तशरीफ़ लाए ताकि बन्दगाने खुदा, नापाक के शर से महफूज़ रहे और दिने हक़ की ताईद हो, मुसलमान इमामे हक़ की बैअत से मुशर्रफ व फ़ैज़याब हो सके।

     अहले कूफा का ये जोश देख कर हज़रते नोमान बिन बशीर सहाबी ने जो उस ज़माने में हुकूमते शाम की जानिब से कूफा के गवर्नर थे। अहले कूफा को मुत्तलअ किया की ये बैअत यज़ीद की मर्ज़ी के खिलाफ है और वो इस पर बहुत भड़केगा लेकिन इतनी इत्तला दे कर ज़ाबिते की कार्रवाई पूरी कर के हज़रते नोमान बिन बशीर खामोश हो बेठे और इस मुआमले में किसी किस्म की दस्त अंदाज़ी न की।

      मुस्लिम बिन यज़ीद हज़्रमि और अम्मार बिन वलीद बिन उक़बा ने यज़ीद को इत्तला दी की हज़रते मुस्लिम बिन अक़ील तशरीफ़ लाए है और अहले कूफा में इन की महब्बत व अक़ीदत का जोश दम बदम बढ़ रहा है। हज़ारहा आदमी इन के हाथ पर इमाम हुसैन की बैअत कर चुके है और नोमान बिन बशीर ने अब तक कोई कार्रवाई उन के खिलाफ नही की न इनसीदादी तदाबिर अमल में लाए।

     यज़ीद ने ये इत्तला पते ही मोमान बिन बशीर को माज़ूल किया  और उबैदुल्लाह बिन यज़ीद को जो उसकी तरफ से बसरा का गवर्नर था उन का क़ाइम मक़ाम किया।


बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله

*सवानहे कर्बला, 119*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और हमने बादल को तुम्हारा सायबान किया(14) और तुमपर मत्र और सलवा उतारा, खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीज़ें(15) ओर उन्होंने कुछ हमारा न बिगाड़ा, हां अपनी ही जानों का बिगाड़ करते थे.

तफ़सीर :

     (14) जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फ़ारिग़ होकर बनी इस्राइल के लश्कर में पहुंचे और आपने उन्हें अल्लाह का हुक्म सुनाया कि मुल्के शाम हज़रत इब्राहीम और उनकी औलाद का मदफ़न (अन्तिम आश्रय स्थल) है, उसी में बैतुल मक़दिस है. उसको अमालिक़ा से आज़ाद कराने के लिए जिहाद करो और मिस्त्र छोड़कर वहीं अपना वतन बनाओं मिस्त्र का छोड़ना बनी इस्राइल पर बड़ा भारी था. पहले तो वो काफ़ी आगे पीछे हुए और जब अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से मजबूर होकर हज़रत हारून और हज़रत मूसा के साथ रवाना हुए तो रास्ते में जो कठिनाई पेश आती, हज़रत मूसा से शिकायत करते. जब उस सहरा (मरूस्थल) में पहुंचे जहां हरियाली थी न छाया, न ग़ल्ला साथ था. वहां धूप की तेज़ी और भूख की शिकायत की. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा की दुआ से सफ़ेद बादल को उनके सरों पर छा दिया जो दिन भर उनके साथ चलता. रात को उनके लिए प्रकाश का एक सुतून (स्तम्भ) उतरता जिसकी रौशनी में काम करते. उनके कपड़े मैले और पुराने न होते, नाख़ुन और बाल न बढ़ते, उस सफ़र में जो बच्चा पैदा होता उसका लिबास उसके साथ पैदा होता, जितना वह बढ़ता, लिबास भी बढ़ता.

     (15) मन्न, तरंजबीन (दलिया) की तरह एक मीठी चीज़ थी, रोज़ाना सुब्ह पौ फटे सूरज निकलने तक हर आदमी के लिये एक साअ के बराबर आसमान से उतरती. लोग उसको चादरों में लेकर दिन भर खाते रहते. सलवा एक छोटी चिड़िया होती है. उसको हवा लाती. ये शिकार करके खाते. दोनों चीज़ें शनिवार को बिल्कुल न आतीं, बाक़ी हर रोज़ पहुंचतीं. शुक्रवार को और दिनों से दुगुनी आतीं. हुक्म यह था कि शुक्रवार को शनिवार के लिये भी ज़रूरत के अनुसार जमा कर लो मगर एक दिन से ज़्यादा का न जमा करो. बनी इस्राइल ने इन नेअमतों की नाशुक्री की. भंडार जमा किये, वो सड़ गए और आसमान से उनका उतरना बंद हो गया. यह उन्होंने अपना ही नुक़सान किया कि दुनिया में नेअमत से मेहरूम और आख़िरत में अज़ाब के हक़दार हुए.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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सवानहे कर्बला​* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_शहादत के वाक़ीआत_*


*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी_* #01

     हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه को कूफा रवाना फ़रमाया और अहले कूफा को तहरीर फ़रमाया की तुम्हारी इस्तिदआ पर हम हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को रवाना करते है इन की नुसरत व हिमायत तुम पर लाज़िम है।

     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه के दो फ़रज़न्द मुहम्मद और इब्राहिम जो अपने बाप के बहुत प्यारे बेटे थे इस सफर में अपने पिदरे मुशफ़िक़ के हमराह हुए।

     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने कूफा पहुच कर मुख्तार बिन अबी उबैद के मकान पर क़याम फ़रमाया आप की तशरीफ़ आवरी की खबर सुन कर जुक जुक मख्लूक़ आप की ज़ियारत को आई और 12000 से ज़्यादा तादाद ने आप के दस्ते मुबारक पर हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की बैअत की।


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*✍🏽सवानहे कर्बला, 118*

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नमाज़ का तरीक़ा* #22


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*नमाज़ के 7 फराइज़* #02

*_2 क़याम :_* #01

     कमी की जानिब क़याम की हद ये है की हाथ बढ़ाए तो घुटनो तक न पहुचे और पूरा क़याम ये है की सीधा खड़ा हो।

     क़याम इतनी देर तक है जितनी देर तक किरअत है। ब क़दरे किराअते फ़र्ज़ क़याम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब में वाजिब और ब क़दरे सुन्नत में सुन्नत।

     फ़र्ज़, वित्र्, इदैन और सुन्नते फ़र्ज़ में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिल उज़्रे सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी। 

     खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नही बल्कि क़याम उस वक़्त साकित होगा की खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़े होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में क़तरा आता है या चौथाई सित्र खुलता है या किराअत से मजबूर महज़ हो जाता है। युही खड़ा हो सकता है मगर उस से मरज़ में ज्यादती होती अहै या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बर्दास्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े। 

     अगर असा या बैसाखी खादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर पढ़े। 

     अगर सिर्फ इतना खड़ा होना मुमकिन है की खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लेगा तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर "अल्लाहु अक्बर" कहले और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए। 


बाक़ी अगली पोस्ट में. ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 162*

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तज़किरतुल अम्बिया* #231


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*सालेह عليه السلام को शहीद करने का मंसूबा* #02

     अल्लामा क़रतबी رحمة الله عليه लिखते है उन्होंने ये साजिस ऊंटनी की कोचें काटने के बाद कि थी जब आप عليه السلام ने उन्हें बताया कि तुम्हें 3 दिन की मोहलत है उसके बाद तुम पर अज़ाब आयेगा जो तुम्हें बर्बाद करके रख देगा। बजाए इसके की वो इस आखरी साज़िश से चौकन्ने होते और अपने गुनाहों पर नदामत होकर गिड़ गिड़ाकर माफी मांगते उन्होंने उल्टा आप عليه السلام को क़त्ल करने की साज़िश शुरू कर दी। उन्होंने कहा हम पर अज़ाब आएगा तो देखा जाएगा। उसके आने से पहले हम सालेह और उसके मुरीदों का खात्मा तो कर देंगे।

     जिस रात उन्होंने सालेह عليه السلام के मकान पर शबखुन मारने का प्रोग्राम बनाया था उस रात अल्लाब ने फरिश्तों को अपने रसूल की हिफाज़त के लिये भेज दिया। जब ये अपने बे नयाम तलवारें लहराते हुए आप पर हमला करने के लिये लपके  तो फरिश्तों ने उन पर पथराव शुरू कर दिया। उन्हें पथ्थर तो नज़र आते थे लेकिन मारने वाले दिखाई नहीं देते थे, चुनांचे उन सब को इस तरह हलक़ कर दिया गया और ये मोहलत की आखरी रात थी चुनांचे क़ौम के बाक़ी अफ़राद भी तबाह व बर्बाद कर दिये गये।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 187

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सवानहे कर्बला​* #07


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*_​​​इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते​​​_* #03

अगर्चे अकाबिर सहाबए किराम हज़रते इब्ने अब्बास व हज़रते इब्ने उमर व हज़रते जाबिर व हज़रते अबू सईद व हज़रते अबू वाक़ीद लैषीرضي الله تعالي عنهم वग़ैरहु हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की इस राय से मुत्तफ़िक़ न थे और इन्हें कुफियो के अहद व मवाषिक का ऐतिबार न था, इमाम की महब्बत और शहादते इमाम की शोहरत इन सब के दिलो में इख्तिलाज पैदा कर रही थी, गोकि ये यक़ीन करने की भी कोई वजह न थी की शहादत का येही वक़्त है और इसी सफर में ये मरहला दरपेश होगा लेकिन अन्देशा मानेअ था। हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه के सामने मसअले की ये सूरत दरपेश थी की इस दस्तिदआ को रोकने के लिये उज़्रे शरई क्या है।

     इधर ऐसे जलिलुल क़द्र सहाबा के शदीद इसरार का लिहाज़, उधर अहले कूफा की इस्तिदआ रद न फरमाने के लिये कोई शरई उज़्र न होना हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के लिये निहायत पेचीदा मसअला था जिस का हल ब जुज़ इस के कुछ नज़र न आया की पहले हज़रते इमाम मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को भेजा जाए अगर कुफियो ने बद अहदी व बे वफाई की तो उज़्रे शरई मिल जाएगा और अगर वो अपने अहद पर क़ाइम रहे तो सहाबा को तसल्ली दी जा सकेगी।

*✍🏽सवानहे कर्बला, 117*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤⑤*


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और जब तुमने कहा ऐ मूसा हम हरगिज़ (कदाचित) तुम्हारा यक़ीन न लाएंगे जब तक खुले बन्दों ख़ुदा को न देख लें तो तुम्हें कड़क ने आ लिया और तुम देख रहे थे.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤⑥*

फिर मेरे पीछे हमने तुम्हें ज़िन्दा किया कि कहीं तुम एहसान मानो.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सवानहे कर्बला​​* #06


​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​

​اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ​

*_​इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते​_* #02

     अगर्चे इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की शहादत की खबर मसहूर थी और कुफियो की बे वफाई का पहले भी तजिरबा हो चूका था मगर जब यज़ीद बादशाह बन गया और उस की हुकूमत व सल्तनत दिन के लिये खतरा थी और इस वजह से उस की बैअत न रवा थी और वो तरह तरह की तदबिरो और हिलो से चाहता था की लोग उस की बैअत करे।

     इन हालात में कुफियो का बपासे मिल्लत यज़ीद की बैअत से दस्तकशि करना और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से तालिबे बैअत होना इमाम पर लाज़िम करता था इन की दरख्वास्त क़बूल फरमाए जब एक क़ौम ज़ालिम व फ़ासिक़ की बैअत पर राज़ी न हो और साहिबे इस्तिहक़ाक़ अहल से दरख्वास्ते बैअत करे इस पर अगर वो इनकी इस्तीदआ क़बूल न करे तो इस के ये माना होते है की वो इस क़ौम को इस जाबिर ही के हवाले करना चाहता है।

     इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه अगर उस वक़्त कुफियो की दरख्वास्त क़बूल न फरमाते तो बारगाहे इलाहि में कुफियो के इस मुतालबे का इमाम के पास क्या जवाब होता की हम हर चन्द दरपे हुए मगर इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه बैअत के लिये राज़ी न हुए। यही वजह हमे यज़ीद के जुल्मो तशद्दुद से मजबूर हो कर उसकी बैअत करनी पड़ी अगर इमाम हाथ बढ़ाते तो हम इन पर जाने फ़िदा करने के लिये हाज़िर थे। ये मसअला ऐसा दरपेश आया जिस का हल बजुज़ इस के और कुछ न था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه उन की दावत पर लबैक फरमाए।


बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله

*✍🏽सवानहे कर्बला, 116*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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नमाज़ का तरीक़ा* #21


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के 7 फराइज़* #01

1 तकबीरे तहरीमा, 2 क़याम, 3 किरआत, 4 रूकू, 5 सुजूद, 6 कादए आख़िरा, 7 खुरूजे बिसुन्इही। 


*_1 तकबीरे तहरीमा :_*

     दर हक़ीक़त तकबीरे तहरीमा (यानि तकबीरे ऊला) शराइते नमाज़ में से है मगर नमाज़ के अफआल से बिलकुल मिली हुई है इस लिये इसे नमाज़ के फराइज़ में भी शुमार किया गया है।

     मुक्तदि ने तकबीरे तहरीमा का लफ्ज़ "अल्लाह" इमाम के साथ कहा मगर "अक्बर" इमाम से पहले खत्म कर लिया तो नमाज़ न होगी।

     इमाम को रूकू में पाया और तकबीरे तहरिमा कहता हुवा रूकू में गया यानि तकबीर उस वक़्त खत्म हुई की हाथ बढ़ाए तो घुटने तक पहुच जाए, नमाज़ न होगी।

     ऐसे मौक़े पर क़ायदे के मुताबिक़ पहले खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लीजिये इस के बाद अल्लाहु अक्बर कहते हुए रूकू कीजिये, इमाम के साथ अगर रूकू में मामूली सी भी शिर्कत हो गई तो रकअत मिल गई अगर आप के रूकू में दाखिल होने से क़ब्ल इमाम खड़ा हो गया तो रकअत न मिली। 

     जो शख्स तकबीर के तलफ़्फ़ुज़ पर क़ादिर न हो मसलन गूंगा हो या किसी और वजह से ज़बान बन्द हो गई हो उस पर तलफ़्फ़ुज़ लाज़िम नही, दिल में इरादा काफी है। 

     लफ़्ज़े अल्लाह को "आल्लाह" या अक्बर को "आक्बर" या "अकबार" कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर इनके माना फासिद समझ कर जानबुझ कर कहे तो काफ़िर है।

     पहली रकअत का रूकू मिल गया तो तकबीरे ऊला की फ़ज़ीलत पा गया। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 161*

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तज़किरतुल अम्बिया* #230


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*सालेह عليه السلام को शहीद करने का मंसूबा* #01

     रब ने फरमाया तीन से लेकर दस तक या सात से लेकर दस तक का गिरोह था। इस क़बीला के 9 सरदार थे उनके लड़के सालेह عليه السلام की मुखालफत में हमेशा सरगर्म रहा करते थे हर रईसजादा के साथ उसके मददगारों की भी एक टोली हुआ करती थी। इसलिये उन्हें तुसअतह रहत से ताबीर किया गया है यानी 9 क़बीले (अगरचे 9 शख्स थे)।

     जब उन्होंने ये देखा कि इज़ा रसानियों के बावजूद सालेह और उनके साथी बअज़ नही आये तो उन्होंने एक जगह बैठ कर साज़िश की कि रात को बे खबरी में सालेह और उसके साथियों पर हमला करके उन्हें तह तेग करदो, अगर उनके किसी वारिस ने हमसे दरयाफ्त किया तो हम उन्हें यक़ीन दिला देंगे कि हमारा उनके क़त्ल के साथ दूर का भी वास्ता नहीं और न ही हमें उनके क़त्ल का कोई इल्म है। तो वो खामोश हो जायेंगे।

     हो सकता है कि सालेह عليه السلام के वारिस कमज़ोर और गुरबा लोग हो तो उन्होंने ये खयाल किया हो कि उन्हें क्या मजाल होगी कि हमसे वो ज़्यादा तकरार करें? इस तरह वो खामोश हो जायेंगे। क़त्ल करने का मंसूबा बनाने वाले खुद तबाह व बर्बाद हो गये। سبحان الله अल्लाह की कुदरत के कारनामे अज़ीब है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 187

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सवानहे कर्बला​* #05


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*इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते* #01

     यज़ीदियो कि कोशिशो से अहले शाम से जहां यज़ीद की तख्तगाह थी यज़ीद की राए मिल सकी और वहा के बाशिन्दों ने उस की बैअत की। अहले कूफा अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه के ज़माने ही में हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه किं खिदमत में दरख्वास्ते भेज रहे थे, तशरीफ़ आवरी की इलतीजाए कर रहे थे लेकिन इमाम ने साफ़ इनकार कर दिया था।

     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه की वफ़ात और यज़ीद की तख्त नशीनी के बाद अहले इराक़ की जमाअतो ने मुत्तफ़िक़ हो कर इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में दरख्वास्त भेजी और इन में अपनी नियाज़ मन्दी व जज़्बाते अक़ीदत व इख्लास का इज़हार किया और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर अपने जानो माल फ़िदा करने की तमन्ना ज़ाहिर की।

     इस तरह के इल्तिज़ानामो और दरख्वास्तो का सिलसिला बंध गया और तमाम जमाअतो और फिरको की तरफ से 150 से करीब अर्जियां हज़रते इमामे आली मक़ाम की खिदमत में पहुची, कहा तक इगमाज़ किया जाता और कब तक आप के अख़लाक़ जवाबे खुश्क की इजाज़त देते ? ना चार आप ने अपने चचाज़ाद भाई हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه की रवानगी तजवीज़ फ़रमाई।


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*✍🏽सवानहे कर्बला, 116*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤③*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब हमने मूसा को किताब दी और सत्य और असत्य में पहचान कर देना कि कहीं तुम राह पर आओ.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤④*

और जब मूसा ने अपनी कौ़म से कहा ऐ मेरी कौ़म तुमने बछड़ा बनाकर अपनी जानों पर ज़ुल्म किया तो अपने पैदा करने वाले की तरफ़ लौट आओ तो आपस में एक दूसरे को क़त्ल करो(12) यह तुम्हारे पैदा करने वाले के नज्द़ीक तुम्हारे लिये बेहतर है तो उसने तुम्हारी तौबह क़ुबूल की, बेशक वही है बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान(13)


*तफ़सीर*

     (12) यह क़त्ल उनके कफ़्फ़ारे (प्रायश्चित) के लिये था.

     (13) जब बनी इस्राइल ने तौबह की और प्रायश्चित में अपनी जानें दे दीं तो अल्लाह तआला ने हुक्म फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उन्हें बछड़े की पूजा की माफ़ी मांगने के लिये हाज़िर लाएं. हज़रत उनमें से सत्तर आदमी चुनकर तूर पहाड पर ले गए. वो कहने लगे- ऐ मूसा, हम आपका यक़ीन न करेंगे जब तक ख़ुदा को रूबरू न देख लें. इस पर आसमान से एक भयानक आवाज़ आई जिसकी हैबत से वो मर गए. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने गिड़गिड़ाकर अर्ज की कि ऐ मेरे रब, मै बनी इस्राइल को क्या जवाब दूंगा. इस पर अल्लाह तआला ने उन्हें एक के बाद एक ज़िन्दा फ़रमाया. इससे नबियों की शान मालूम होती है कि हज़रत मूसा से “लन नूमिना लका” (ऐ मूसा हम हरग़िज तुम्हारा यक़ीन न लाएंगे) कहने की सज़ा में बनी इस्राइल हलाक किये गए. हुज़ूर सैयदे आलाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के एहद वालों को आगाह किया जाता है कि नबियों का निरादर करना अल्लाह के प्रकोप का कारण बनता है, इससे डरते रहें. यह भी मालूम हुआ कि अल्लाह तआला अपने प्यारों की दुआ से मुर्दे ज़िन्दा फ़रमा देता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सवानहे कर्बला​* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रते इमाम हुसैन की मदीने से रिहलत*

     मदनी से हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की रिहलत का दिन अहले मदीना और खुद हज़रते इमाम के लिये कैसे रंजो अन्दोह का दिन था। अतराफे आलम से तो मुसलमान वतन तर्क कर के अइज़्ज़ा व अहबाब को छोड़ कर मदीना तैय्यबा हाज़िर होने की तमन्नाए करे, दरबारे रिसालत की हाज़िरी का शौक़ दुश्वार गुज़ार मन्ज़िले और बहरो बर का तवील और खौफनाक सफर इख़्तियार करने के लिये बेक़रार बना दे। एक एक लम्हे की जुदाई इन्हें शाक हो, और फरज़न्दे रसूल से रिहलत करने पर मजबूर हो।

     उस वक़्त का तसव्वुर दिल को पाश पाश कर देता है जब हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه बईरादए रुख्सत आस्तानाए कुदसिय्या पर हाज़िर हुए होंगे और दिदए खून बार अश्के गम की बारिश की होगी। दिल दर्द मन्दे गमे महजुरि से घायल होगा, जद्दे करीम को रोज़ए ताहिरा से जुदाई का सदमा हज़रते इमाम के दिल पर रंजो गम के पहाड़ तोड़ रहा होगा, अहले मदीना की मुसीबत का भी क्या अंदाज़ा हो सकता है।

     दीदारे हबीब के फिदाई इस फ़रज़न्द की ज़ियारत से अपने कल्बे मजरूह को तस्कीन देते थे। इन का दीदार इन के दिल का क़रार था, आह ! आज ये क़रारे दिल मदीना से रुख्सत हो रहे है। इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه ने मदीना से बहज़ार गम व अन्दोह बादिले नाशाद रिहलत फरमा कर मक्का में इक़ामत फ़रमाई।

*✍🏽सवानहे कर्बला, 115*

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Sunday 26 August 2018

*नमाज़ का तरीक़ा* #20


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की 6 शराइत* #05

*_5 निय्यत :_* #02

     नमाज़े नफ्ल में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है अगर्चे नफ्ल निय्यत में न हो। 

_ये निय्यत की मुह मेरा किब्ला शरीफ की तरफ है शर्त नही।_

     इक़्तिदा में मुक्तदि का इस तरह निय्यत करना भी जाइज़ है की _जो नमाज़ इमाम की है वो नमाज़ मेरी है।_

     नमाज़े जनाज़ा की निय्यत ये है _"नमाज़ अल्लाह के लिये और दुआ इस मय्यित के लिये"।_

     वाजिब में वाजिब की निय्यत करना ज़रूरी है और इसे मुअय्यन भी कीजिये मसलन ईदुल फ़ित्र, ईदुल अज़्हा, नज़्र, नमाज़े बाद तवाफ़ (वाजीबुत्तवाफ) या वो नफ्ल नमाज़ जिस को जानबुझ कर फासिद् किया हो की उसकी क़ज़ा भी वाजिब हो जाती है।


     सज्दए शुक्र अगर्चे नफ्ल है मगर उस में भी निय्यत ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए शुक्र करता हु।


     सज्दए सहव में भी "साहिबे नहरुल फाइक़" के नज़दीक निय्यत ज़रूरी है।यानि उस वक़्त दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए सहव करता हु।


*_6 तकबीरे तहरीमा :_*

     यानि नमाज़ को "अल्लाहु अक्बर" कह कर शुरू करना ज़रूरी है। 

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा  159-160*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #229


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*अज़ाब से पहले 3 दिन*

     जब सालेह عليه السلام ने उन्हें डराया की अब सिर्फ 3 दिन तुम्हें अपने घरों में रहना और नफा हासिल करना है, फिर तुम अज़ाब में मुब्तला हो जाओगे तो क़ौम ने कहा की वो 3 दिन हम पर कैसे गुज़रेंगे? आपने कहा पहले दिन तुम्हारे चेहरे ज़र्द रंग के हो जायेंगे दुसरेडिन उनका रंग सुर्ख हो जायेगा और तीसरे दिन स्याह हो जायेगा। चौथे दिन तुम पर अज़ाब आ जायेगा।

     अहरचे चेहरे स्याह हो जाने पर उन्हें अज़ाब का यक़ीन आ चुका था लेकिन जब तक अलामत पर यक़ीन नही आ रहा था उस वक़्त तक उन्हें ईमान और तौबा की तौफ़ीक़ नसीब न हो सकी और जब उन्हें यक़ीन हुआ अब तौबा करते भी तो इसका कोई नफा न होता क्योंकि ना उम्मीदी की हालत में तौबा और ईमान क़बूल नहीं होते।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 186

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*सवानहे कर्बला​* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_अमीरे मुआविया की वफ़ात और यज़ीद की सल्तनत_*

     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه ने रजब सी 60 ही में दमिश्क़ में लक़्वा में मुब्तला हो कर वफ़ात पाई। आप के पास हुज़ूरﷺ के तबर्रुकात में से इजार शरीफ, रिदाए अक़दस, क़मिस मुबारक, मुए शरीफ और तराशहाए। नाख़ून हुमायूँ थे। आप ने वसिय्यत की थी की मुझे हुज़ूरﷺ की इजार व रिदाए मुबारक व क़मीज़ में दफ़्न दिया जाए और मेरे इन आज़ा पर जिन से सज्दा किया जाता है हुज़ूरﷺ के मुए मुबारक और तराशहाए नाखून रख दिये जाए।

     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه की वफ़ात के बाद यज़ीद तख्ते सल्तनत पर बैठा और उस ने अपनी बैअत लेने के लिये अतराफ़ व मुमालिक सल्तनत में मकतूब रवाना किये, मदीने का आमिल जब यज़ीद की बैअत लेने के लिये हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की खिदमत में हाज़िर हुवा तो आप ने उस के फिस्को ज़ुल्म की बिना पर उस को ना अहल क़रार दिया और बैअत से इनकार फ़रमाया, इसी तरह हज़रते ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه ने भी इनकार किया।

     हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه जानते थे की बैअत का इनकार यज़ीद के इश्तिआल का बाईष होगा और ना बकार जान का दुश्मन और खून का प्यासा हो जाएगा, लेकिन इमाम के दीयानत व तक़वा ने इजाज़त न दी की अपनी जान की खातिर न अहल के हाथ पर बैअत कर ले और मुसलमानो की तबाही और शरअ व अहकाम की बे हुर्मति और दिन की मज़र्रत की परवाह न करे और ये इमाम जेसे जलीलुश्शान फ़रज़न्दे रसूलﷺ से किस तरह मुमकिन था ?

     अगर इमामرضي الله تعالي عنه उस वक़्त यज़ीद की बैअत कर लेते तो यज़ीद आप की बहुत क़द्रों मन्ज़िलत करता और आप की आफिय्यत व राहत में कोई फ़र्क़ न आता बल्कि बहुत सी दौलते दुन्या आप के पास जमा हो जाती, लेकिन इस्लाम का निज़ाम दरहम बरहम हो जाता और दिन में ऐसा फसाद बरपा हों जाता जिस का दूर करना बाद को मुमकिन न होता। यज़ीद की हर बदकारी के जवाज़ के लिये इमाम की बैअत सनद होती और शरीअते इस्लामिया व मिल्लते हनफिया का नक़्शा मिट जाता।

     हज़रते इमामे व इब्ने ज़ुबैरرضي الله تعالي عنهم से बैअत की दरख्वास्त इस लिये पहले की गई थी की तमाम अहले मदीना इन का इत्तिबाअ करेंगे, लेकिन इन हज़रात के इनकार से वो मन्सूबा ख़ाक मे मिल गया और यज़ीदियो में उसी वक़्त से आतशे इनाद भड़क उठी और ब ज़रूरत इन हज़रात को उसी शब् मदीना से मक्का मुन्तकिल होना पड़ा। ये वाक़या 4 शाबान सी 60 ही का है।

*✍🏽सवानहे कर्बला, 113*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

फिर उसके बाद हमने तुम्हें माफ़ी दी(10) कि कहीं तुम अहसान मानो (11)


*तफ़सीर*

     (10) माफ़ी की कैफ़ियत (विवरण) यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि तौबह की सूरत यह है कि जिन्होंने बछड़े की पूजा नहीं की है, वो पूजा करने वालों को क़त्ल करें और मुजरिम राज़ी ख़ुशी क़त्ल हो जाएं. वो इस पर राज़ी हो गए. सुबह से शाम तक सत्तर हज़ार क़त्ल हो गए तब हज़रत मूसा और हज़रत हारून ने गिड़गिड़ा कर अल्लाह से अर्ज़ की. वही (देववाणी) आई कि जो क़त्ल हो चुके वो शहीद हुए, बाक़ी माफ़ फ़रमाए गए. उनमें के क़ातिल और क़त्ल होने वाले सब जन्नत के हक़दार हैं. शिर्क से मुसलमान मुर्तद (अधर्मी) हो जाता है, मुर्तद की सज़ा क़त्ल है क्योंकि अल्लाह तआला से बग़ावत क़त्ल और रक्तपात से भी सख़्ततर जुर्म है. बछड़ा बनाकर पूजने में बनी इस्राइल के कई जुर्म थे. एक मूर्ति बनाना जो हराम है, दूसरे हज़रत हारून यानी एक नबी की नाफ़रमानी, तीसरे बछड़ा पूजकर मुश्रिक (मूर्ति पूजक) हो जाना. यह ज़ुल्म फ़िरऔन वालों के ज़ुल्मों से भी ज़्यादा बुरा है. क्योंकि ये काम उनसे ईमान के बाद सरज़द हुए, इसलिये हक़दार तो इसके थे कि अल्लाह का अज़ाब उन्हें मुहलत न दे, और फ़ौरन हलाकत से कुफ़्र पर उनका अन्त हो जाए लेकिन हज़रत मूसा और हज़रत हारून की बदौलत उन्हें तौबह का मौक़ा दिया गया. यह अल्लाह तआला की बड़ी कृपा है.

     (11) इसमें इशारा है कि बनी इस्राइल की सलाहियत फ़िरऔन वालों की तरह बातिल नहीं हुई थी और उनकी नस्ल से अच्छे नेक लोग पैदा होने वाले थे. यही हुआ भी, बनी इस्राइल में हज़ारों नबी और नेक गुणवान लोग पैदा हुए.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सवानहे कर्बला​* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_यज़ीद का मुख़्तसर तज़किरा_*

     यज़ीद बिन। मुआविया अबू खालिद उमवी वो बद नसीब शख्स है जिस की पेशानी पर अहले बैत के बे गुनाह क़त्ल का सियाह दाग है और जिस पर हर क़रन में दुन्याए इस्लाम मलामत करती रही है और क़यामत तक इस का नाम तहक़ीर के साथ लिया जाएगा।

     इसकी शरारते और बेहुदगिया ऐसी है जिन से बद मुआशो को भी शर्म आए। अब्दुल्लाह बिन हन्ज़ला गसिलرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : खुदा की क़सम ! हम ने यज़ीद पर उस वक़्त खुरुज किया जब हमे अन्देशा हो गया की उस की बड़कारियो के सबब आसमान से पथ्थर बरसने लगे।

     महरमात के साथ निकाह और सूद वगैरा मुंहिय्यात को इस बे दिन ने अलानिया रवाज दिया। मदीना व मक्का की हुर्मति कराई। ऐसे शख्स की हुकूमत गुर्ग  की चोपानी से ज़्यादा खतरनाक थी।

     सी 59 ही में हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه ने दुआ की : या रब ! में तुजसे पनाह मांगता हु सी 60 ही के आगाज़ और लड़को की हुकूमत से।

     रुयानी ने अपनी मुस्नद में हज़रते अबू दरदा सहाबीرضي الله تعالي عنه से एक हदिष रिवायत की है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया, मेरी सुन्नत का पहला बदलने वाला बनी उमय्या का एक शख्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा।

     अबू याला ने अपनी मुस्नद में हज़रते अबू उबैदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत की, हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : मेरी उम्मत में अदलो इन्साफ क़ाइम रहेगा यहाँ तक की पहला रखना अंदाज़ व बानिये सितम बनी उमय्या का एक शख्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा।

*✍🏽सवानहे कर्बला, 112*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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Saturday 25 August 2018

*नमाज़ का तरीक़ा* #19


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की 6 शराइत* #04

*_5 निय्यत :_* #01

     निय्यत दिल के पक्के इरादे का नाम है।

🔹ज़बान से निय्यत ज़रूरी नहीं अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होते हुए ज़बान से कह लेना बेहतर है। अरबी में कहना भी ज़रूरी नहीं उर्दू वग़ैरा किसी भी ज़बान में कह सकते है। 

🔹निय्यत में ज़बान से कहने का एतिबार नही यानि अगर दिल में मसलन ज़ोहर की निय्यत हो और ज़बान से लफ़्ज़े असर निकला तब भी ज़ोहर की नमाज़ हो गई। 

निय्यत का अदना दर्जा ये है की अगर उस वक़्त कोई पूछे की कौन सी नमाज़ पढ़ते हो ? तो फौरन बता दे। अगर हालत ऐसी है की सोच कर बताएगा तो नमाज़ न हुई। 

🔹फ़र्ज़ नमाज़ में निय्यते फ़र्ज़ भी ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की आज की ज़ोहर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हु। 

🔹दुरुस्त तरीन ये है की नफ्ल, सुन्नत और तरावीह में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है मगर एहतियात ये है की तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त की निय्यत करे और बाकी सुन्नतो में सुन्नत या सरकारे मदीना की पैरवी की निय्यत करे, इस लिये की बाज़ मशाइख इन में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत को नाकाफी क़रार देते है। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 158-159*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #228


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौम ने सालेह عليه السلام से मोअजिज़ा तलब किया* #02

     आप की दुआ को अल्लाह ने शरफे क़बूलिय्यत बख्शा। वो लोग देख रहे थे कि पहाड़ी चट्टान में बिल्कुल वही कैफियत पैदा हुई जिस तरह किसी जानवर पर पैदाइश के वक़्त होती है दर्द की वजह से कराहना। इज़तीराब वगैरा यहां तक कि उनके सामने वो चट्टान फ़टी उससे हामिला ऊंटनी पैदा हुई जिसके जिस्म पर उन थी पेट बड़ा था, आपका मोअजिज़ा देखकर जन्दा बिन अमर और उसके साथ चन्द और लोगों ने ईमान क़बूल कर लिया, बाक़ी लोगों को ईमान लाने से ज़वाब बिन अमर और अहबाब और रब्बाब बिन समअर ने मना कर दिया। यही दोनों शख्स उनके बुतों पर मुक़र्रर थे यानी बूत खाना के नाज़िम थे और तीसरा शख्स रब्बाब काहीन था उन लोगों के सामने ही ऊंटनी ने बच्चा जना अस्सी ऊंटनी जितना था।

     चूंकि सालेह عليه السلام ने रब के हुक्म से बयान कर दिया था कि एक दिन पानी पीने की बारी ऊंटनी की होगी और एक दिन तुम्हारी और तुम्हारे जानवरों और बाक़ी जंगली जानवरों और परिंदों बगैर की।

     ऊंटनी अपने बच्चे के साथ जंगल में चरती थी अपने बारी के दिन ऊंटनी और उसका बच्चा सारा पानी पी जाते थे यानी कुंए में मुंह रखती और उठती उस वक़्त जब पानी खत्म हो जाता वो दूध इतना ज्यादा देती थी कि वो लोग पीते और अपने बर्तन भर लेते। वो ऊंटनी गर्मियों में वादियों के ज़ाहिरी हिस्से में चरती थी तो ऊंटनी को देखकर उनके जानवर वादियों के नशेबी अंदरूनी हिस्से में भाग कर चले जाते। सर्दियों में वो ऊंटनी नशेबी हिस्से मे चरती तो उनके जानवर भागकर वादियों के हिस्से में आ जाते। उन्हें इस सूरते हाल से बहुत मुश्किल दरपेश आ रही थी उन्होंने उस ऊंटनी को अपनी राह से हटाने का फैसला कर लिया।


*ऊंटनी की कोंचे काट दी*

     सालेह عليه السلام ने उन्हें पहले ही बताया था कि इस ऊंटनी को बुराई में मस न करना वरना तुम अज़ाब में मुब्तला हो जाओगे। लेकिन वो बअज़ न आए जब ऊंटनी की कोंचे काट दी तो आपने उन्हें कहा कि अब अज़ाब क़रीब आ चुका है। आप ने फरमाया अपने घरों में 3 दिन और बरत लो (नफा हासिल करलो) यह वादा है कि झूठा न होगा।

*तज़किरतुल अम्बिया* 186

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Friday 24 August 2018

*सवानहे कर्बला* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_विलादते मुबारका_*

     हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की विलादत 5 शाबान सी 4 ही को मदीने में हुई। हुज़ूर ﷺ ने आप का नाम हुसैन और शब्बीर रखा और आप की कून्यत अबू अब्दुल्लाह और लक़ब सिबते रसूलुल्लाह और रैहानतुर्रसूल है, और आप के बरादरे मुअज़्ज़म की तरह आप को भी जन्नती जवानो का सरदार और अपना फ़रज़न्द फ़रमाया।

     हुज़ूर ﷺ को आप رضي الله تعالي عنه के साथ कमाले रफ्त व महब्बत थी। हदिष में इरशाद हुवा : जिस ने इन दोनों (इमामे हसन व हुसैनرضي الله تعالي عنهم) से महब्बत की उस ने मुझ से महब्बत की और जिस ने इन से अदावत की उस ने मुझ से अदावत की।

     हुज़ूर ﷺ ने इन दोनों नौनिहालो को फूल की तरह सूंघते और सिनए मुबारक से लिपटाते।

     हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल बिन्ते अल हारिष हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की ज़ौजा एक रोज़ हुज़ूर ﷺ के पास हाज़िर हुई और अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ आज में ने एक परेशान ख्वाब देखा, हुज़ूर ﷺ ने दरयाफ़्त फ़रमाया : क्या ? अर्ज़ किया : वो बहुत ही शदीद है। उनको उस ख्वाब के बयान की जुरअत न होती थी। हुज़ूर ﷺ ने मुक़र्रर दरयाफ़्त फ़रमाया तो अर्ज़ किया की में ने देखा की जसदे अतहर का एक टुकड़ा काटा गया और मेरी गोद में रखा गया। इरशाद फ़रमाया : तुमने बहुत अच्छा ख्वाब देखा, انشاء الله تعالى फातिमा ज़हराرضي الله تعالي عنها को बेटा होगा और वो तुम्हारी गोद में दिया जाएगा।

     ऐसा ही हुवा। हज़रते हुसैनرضي الله تعالي عنه पैदा हुए और हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल की गोद में दिये गए। उम्मुल फ़ज़्ल फरमाती है : में ने एक रोज़ हुज़ूरﷺ की खिदमत में हाज़िर हो कर हज़रते इमामे हुसैन को आप की गोद में दिया, क्या देखती हु की चश्मे मुबारक से आसु जारी है। में ने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! ये क्या हाल है ? फ़रमाया : जिब्राईल मेरे पास आए और उन्हों ने ये खबर दी की मेरी उम्मत इस फ़रज़न्द को क़त्ल करेगी। में ने कहा : क्या इस को ? फ़रमाया : हा और मेरे पास इस के मक़्तल की सुर्ख मिटटी भी लाए।

*✍🏽बेहक़ी, 6/468*

*✍🏽सवानहे कर्बला, 104*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब हमने मूसा से चालीस रात का वादा फ़रमाया फिर उसके पीछे तुमने बछड़े की पूजा शुरू कर दी और तुम ज़ालिम थे (9)


*तफ़सीर*

     (9) फ़िरऔन और उसकी क़ौम के हलाक हो जाने के बाद जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राइल को लेकर मिस्त्र की तरफ़ लौटे और उनकी प्रार्थना पर अल्लाह तआला ने तौरात अता करने का वादा फ़रमाया और इसके लिये मीक़ात निशिचत किया जिसकी मुद्दत बढ़ौतरी समेत एक माह दस दिन थी यानी एक माह ज़िलक़ाद और दस दिन ज़िलहज के. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम क़ौम में अपने भाई हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को अपना ख़लीफ़ा व जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाकर, तौरात हासिल करने तूर पहाड़ पर तशरीफ़ ले गए, चालीस रात वहां ठहरे. इस अर्से में किसी से बात न की. अल्लाह तआला ने ज़बरजद की तख़्तियों में, आप पर तौरात उतारी. यहां सामरी ने सोने का जवाहरात जड़ा बछड़ा बनाकर क़ौम से कहा कि यह तुम्हारा माबूद है. वो लोग एक माह हज़रत का इन्तिज़ार करके सामरी के बहकाने पर बछड़ा पूजने लगे, सिवाए हज़रत हारून अलैहिस्सलाम और आपके बारह हज़ार साथियों के तमाम बनी इस्राइल ने बछड़े को पूजा. (ख़ाज़िन)

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आख़िरत के तलबगारों का रास्ता*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ शख्स! तू कब तक गुनाहों पर इसरार करेगा? तू गुनाहों से कब तौबा करेगा? तेरा जिस्म खेलकूद में मशगूल है और तेरा दिल तक़वे से महरूम होने की वजह से बर्बाद हो गया है। तूने अपनी जवानी गफलत में गुज़ार दी और अब बुढापे में अपनी जवानी बर्बाद होने पर रो रहा है?

     बयान की मजलिस में तो तू फौत शुदा अमल पर रोता है लेकिन जब मजलिस से उठता है तो फिर से गुनाहों में जा पड़ता है। ये बयान तुझ पर कोई असर नहीं करता शायद तुझ पर इबरत का दरवाज़ा बन्द हो चुका है। में कब तक तेरे दिल को समझाऊं, हालांकि में जनता हु की तेरा दिल हाज़िर नहीं।

     ऐ गाफिल दिल वाले! तू नसीहत को क्यूँकर समझ सकता है? हाए अफसोस! अगर तुझे बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से धुत्कार दिया गया तो शैतान कितना खुश होगा।

     आह! बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से धुत्कारे हुए बन्दे की वहशत का क्या आलम होगा कि वो क़ुर्बे खुदा वन्दी का कोई ज़रिआ न पा सकेगा।

*✍️आंसुओं का दरिया* 127

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*तज़किरतुल अम्बिया* #227


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*क़ौम ने सालेह عليه السلام से मोअजिज़ा तलब किया* #01

     क़ौमे आद के बाद अल्लाह ने क़ौमे समुद को आबाद किया उनको लंबी उम्रें अता की वो पहाड़ों में बड़ी महारत कारीगरी से तराश तराश कर घर बनाते। अल्लाह ने उन को खुशहाल बनाया, माली वुसअत अता की, तो उन्होंने अल्लाह की नाफरमानी शुरू कर दी और ज़मीन में फसाद बरपा शुरू कर दिया। तो अल्लाह ने उनकी तरफ सालेह عليه السلام को भेजा जो उनके क़बीला के अशरफ यानी सरदार क़बीला से थे। आपने क़ौम को डराया, क़ौम ने आप से निशानी तलब की।

     आपने फ़रमाया: तुम कौन सी निशानी तलब करते हो? क़ौम ने कहा तुम हमारे साथ हमारी ईद के प्रोग्रामों के लिये शहर से बाहर हमारे साथ चलना हम अपने मआबूदों से दुआ करेंगे तुम अपने मअबूद से दुआ करना जिसकी दुआ क़बूल हो गई दूसरे उसकी ताबेदारी करेंगे।

     आप عليه السلام उनके साथ तशरीफ़ ले गये उन्होंने अपने बुतो से दुआ की जो क़बूल न हो सकी, उनके एक सरदार जन्दा बिन अमर ने एक अकेली चट्टान की तरफ इशारा किया जिसका नाम काफिया था, उसने कहा इस चट्टान से एक ऊंटनी निकालो जो हामिला हो अगर तुमने ऐसा कर दिया तो हम तुम्हारी तस्दीक़ करेंगे। सालेह عليه السلام ने उन्हें कहा अगर में ऐसा करूँ तो क्या तुम ज़रूर ईमान लाओगे? कहा हां। तो आप ने नवाफिल अदा किये और रब से दुआ की अल्लाह ने आपकी दुआ को शरफे क़बूलिय्यत बख्शा।

     वो लोग देख रहे थे कि पहाड़ी चट्टान में बिल्कुल वही कैफियत पैदा हुई जिस तरह किसी जानवर पर पैदाइश के वक़्त होती है दर्द की वजह से कराहना। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 185

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ⑤ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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और जब हमने तुम्हारे लिये दरिया फ़ाड़ दिया तो तुम्हें बचा लिया. और फ़िरऔन वालों को तुम्हारी आंखों के सामने डुबो दिया(8)


*तफ़सीर*

     (8) यह दूसरी नेअमत का बयान है जो बनी इस्राइल पर फ़रमाई कि उन्हें फ़िरऔन वालों के ज़ुल्म और सितम से नजात दी और फ़िरऔन को उसकी क़ौम समेत उनके सामने डुबो दिया. यहां आले फ़िरऔन (फ़िरऔन वालों) से फ़िरऔन और उसकी क़ौम दोनों मुराद हैं. जैसे कि “कर्रमना बनी आदमा” यानी और बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी (सूरए इसरा, आयत 70) में हज़रत आदम और उनकी औलाद दोनों शामिल हैं. (जुमल). संक्षिप्त वाक़िआ यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से रात में बनी इस्राइल को मिस्त्र से लेकर रवाना हुए, सुब्ह को फ़िरऔन उनकी खोज में भारी लश्कर लेकर चला और उन्हें दरिया के किनारे जा लिया. बनी इस्राइल ने फ़िरऔन का लश्कर देख़कर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रियाद की. आपने अल्लाह के हुक्म से दरिया में अपनी लाठी मारी, उसकी बरकत से दरिया में बारह ख़ुश्क रास्ते पैदा हो गए. पानी दीवारों की तरह खड़ा हो गया. उन दीवारों में जाली की तरह रौशनदान बन गए. बनी इस्राइल की हर जमाअत इन रास्तों में एक दूसरे को देखती और आपस में बात करती गुज़र गई. फ़िरऔन दरियाई रास्ते देखकर उनमें चल पड़ा. जब उसका सारा लश्कर दरिया के अन्दर आ गया तो दरिया जैसा था वैसा हो गया और तमाम फ़िरऔनी उसमें डूब गए. दरिया की चौड़ाई चार फरसंग थी. ये घटना बेहरे कुलज़म की है जो बेहरे फ़ारस के किनारे पर है, या बेहरे मा-वराए मिस्त्र की, जिसको असाफ़ कहते है. बनी इस्राइल दरिया के उस पार फ़िरऔनी लश्कर के डूबने का दृश्य देख रहे थे. यह वाक़िआ दसवीं मुहर्रम को हुआ. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उस दिन शुक्र का रोज़ा रखा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने तक भी यहूदी इस दिन का रोज़ा रखते थे. हुज़ूर ने भी इस दिन का रोज़ा रखा और फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की विजय की ख़ुशी मनाने और उसकी शुक्र गुज़ारी करने के हम यहूदियों से ज़्यादा हक़दार हैं. इस से मालूम हुआ कि दसवीं मुहर्रम यानी आशुरा का रोज़ा सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों पर जो इनाम अल्लाह का हुआ उसकी यादगार क़ायम करना और शुक्र अदा करना अच्छी बात है. यह भी मालूम हुआ कि ऐसे कामों में दिन का निशिचत किया जाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों की यादगार अगर काफ़िर लोग भी क़ायम करते हों जब भी उसको छोड़ा न जाएगा.

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इबादत गुज़ार कैसा हो?*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: तुममे से कोई बुरे गुलाम की तरह न बने की अगर ख़ौफ़ज़दा हो तो अमल करें और बेखौफ हो तो अमल न करे और न ही तुम में से कोई बुरे मज़दूर की तरह बने अगर ज़्यादा उजरत न मिले तो काम न करे।


*महब्बते इलाही का इनआम*

     अल्लाह ने हज़रते दाऊद عليه السلام की तरफ वही फ़रमाई की ऐ दाऊद! उषशाक़, अल्लाह के हिल्म यानी बुर्दबारी में ज़िन्दगी गुज़ारते है। ज़ाकिरिन, अल्लाह की रहमत में ज़िन्दगी गुज़ारते है। आरीफिन, अल्लाह के लुत्फ करम में ज़िन्दगी बसर करते है और सिद्दिक़ीन, अल्लाह की बिसाते उन्स में ज़िन्दगी गुज़ारते है। अल्लाह ही उन्हें खिलता पिलाता है।

*✍️आंसुओं का दरिया* 126

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ का तरीक़ा* #18


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की 6 शराइत* #03

_*4. वक़्त :*_

     जो नमाज़ पढ़नी है उसका वक़्त होना ज़रूरी है। मसलन आज की नमाज़े असर अदा करना है तो ये ज़रूरी है की असर का वक़्त शुरू हो जाए अगर वक़्ते असर शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी।

     उमुमन मसाजिद में निज़ामुल अवक़ात के नक़्शे आवेज़ा होते है उन में जो मुस्तनद तौकीट दा के मुरत्तब करदा और उलमए अहले सुन्नत के मुसद्क़ा हो उन से नमाज़ों के अवक़ात मालुम करने में शुक्त रहती है। 

     इस्लामी बहनो के लिये अव्वल वक़्त में नमाज़े फ़ज्र अदा करना मुस्तहब है और बाक़ी नमाज़ों में बेहतर ये है की मर्दों की जमाअत का इन्तिज़ार करे, जब जमाअत हो चुके फिर पढ़े।


*_तीन अवक़ाते मकरुहात_*

★ तुलुए आफताब से ले कर 20 मिनिट बाद तक

★ गुरुबे आफताब से 20 मिनिट पहले। 

★ निस्फुन्न्हार यानि ज़हवए कुब्रा से ले कर ज़वाले आफताब तक। 

     इन तीनो अवक़ात में कोई नमाज़ जाइज़ नही न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ्ल न क़ज़ा। हा अगर उस दिन की नमाज़े असर नही पढ़ी थी और मकरुह वक़्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 157-158*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Thursday 23 August 2018

एक हज़ार दीन की नेकियां*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: इसको पढ़ने वाले के लिये सत्तर फ़रिश्ते एक हज़ार दीन तक नेकियां लिखते है।

جٙزٙى اللّٰهُ عٙنّٙا مُحٙمّٙدًا مٙاهُوٙاٙهْلُهُ

*✍🏽مجمع الزوائد*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #22


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_गोश्त के आज्ज़ा जो नही खाए जाते_*

     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : हलाल जानवर के सब आज्ज़ा हलाल है मगर बाज़ कि हराम या ममनुअ या मकरूह है...

● रगो का खून

● पित्ता

● फुकना (यानी मसाना)

● अलामाते मादा व नर

● बैज़े (यानी कपुरे)

● गुदुद

● हराम मग्ज़

● गर्दन के दो पठ्ठे कि शानो तक खिचे होते है

● जिगर (यानी कलेजी) का खून

● तिल्ली का खून

● गोश्त का खून की बादे ज़बह गोश्त में से निकलता है

● दिल का खून

● पित यानि वो ज़र्द पानी कि पित्ते में होता है

● नाक की रतुबत, कि भेड़ में अक्सर होती है

● पाखाने का मक़ाम

● ओझड़ी

● आंते

● नुत्फा (मनी), वो नुत्फा कि खून हो गया, वो नुत्फा कि गोश्त का लोथड़ा हो गया, वो नुत्फा की पूरा जानवर बन गया और मुर्दा निकला या बे ज़बह मर गया।

     समझदार कस्साब बाज़ ममनुआ चीज़े निकल दिया करते है मगर बाज़ में इन को भी मालूमात नही होती या बे एहतियाती बरतते है।

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार,37*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #21

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_अपनी क़ुरबानी की खालबेच दी तो ?_*


सुवाल :

किसी ने अपनी क़ुरबानी की खाल बेच कर रक़म हासिल कर ली अब वो मस्जिद में दे सकता है या नही ?


जवाब :

यहाँ निय्यत का एतिबार है। अगर अपनी क़ुरबानी की खाल अपनी ज़ात के लिये रक़म के एवज़ बेची तो यु बेचना भी नाजाइज़ है और ये रक़म इस शख्स के हक़ में माले खबीस है और इस का सदक़ा करना वाजिब है लिहाज़ा किसी शरई फ़क़ीर को दे दे। और तौबा भी करे।

     और अगर किसी कारे खैर के लिये मसलन मस्जिद में देने ही की निय्यत से बेचीं तो बेचना भी जाइज़ है और अब मस्जिद में देने में कोई हर्ज नही।

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार,28*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ④⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और (याद करो)जब हमने तुमको फ़िरऔन वालों से नजात बख्श़ी (छुटकारा दिलाया)(4) कि तुमपर बुरा अजा़ब करते थे(5) तुम्हारे बेटों को ज़िब्ह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते(6) और उसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से बड़ी बला थी या बड़ा इनाम(7)


*तफ़सीर*

     (4) क़िब्त और अमालीक़ की क़ौम से जो मिस्त्र का बादशाह हुआ. उस को फ़िरऔन कहते है. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने के फ़िरऔन का नाम वलीद बिन मुसअब बिन रैयान है. यहां उसी का ज़िक्र है. उसकी उम्र चार सौ बरस से ज़्यादा हुई. आले फ़िरऔन से उसके मानने वाले मुराद है. (जुमल वग़ैरह)

     (5) अज़ाब सब बुरे होते हैं “सूअल अज़ाब” वह कहलाएगा जो और अज़ाबों से ज़्यादा सख़्त हो. इसलिये आला हज़रत ने “बुरा अज़ाब” अनुवाद किया. फ़िरऔन ने बनी इस्राइल पर बड़ी बेदर्दी से मेहनत व मशक़्क़त के दुश्वार काम लाज़िम किये थे. पत्थरों की चट्टानें काटकर ढोते ढोते उनकी कमरें गर्दनें ज़ख़्मी हो गई थीं. ग़रीबों पर टैक्स मुक़र्रर किये थे जो सूरज डूबने से पहले ज़बरदस्ती वुसूल किये जाते थे. जो नादार किसी दिन टैकस अदा न कर सका, उसके हाथ गर्दन के साथ मिलाकर बांध दिये जाते थे, और महीना भर तक इसी मुसीबत में रखा जाता था, और तरह तरह की सख़्तियां निर्दयता के साथ की जाती थीं. ( ख़ाज़िन वग़ैरह)

     (6) फ़िरऔन ने ख़्वाब देखा कि बैतुल मक़दिस की तरफ़ से आग आई उसने मिस्त्र को घेर कर तमाम क़िब्तियों को जला डाला, बनी इस्राइल को कुछ हानि न पहुंचाई. इससे उसको बहुत घबराहट हुई. काहिनों (तांत्रिकों) ने ख़्वाब की तअबीर (व्याख्या) में बताया कि बनी इस्राइल में एक लड़का पैदा होगा जो तेरी मौत और तेरी सल्तनत के पतन का कारण होगा. यह सुनकर फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि बनी इस्राइल में जो लड़का पैदा हो. क़त्ल कर दिया जाए. दाइयां छान बीन के लिये मुक़र्रर हुई. बारह हजा़र और दूसरे कथन के अनुसार सत्तर हज़ार लड़के क़त्ल कर डाले गए और नव्वे हज़ार हमल (गर्भ) गिरा दिये गये. अल्लाह की मर्ज़ी से इस क़ौम के बूढ़े जल्द मरने लगे. क़िब्ती क़ौम के सरदारों ने घबराकर फ़िरऔन से शिकायत की कि बनी इस्राइल में मौत की गर्मबाज़ारी है इस पर उनके बच्चे भी क़त्ल किये जाते हैं, तो हमें सेवा करने वाले कहां से मिलेंगे. फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि एक साल बच्चे क़त्ल किये जाएं और एक साल छोड़े जाएं. तो जो साल छोडने का था उसमें हज़रत हारून पैदा हुए, और क़त्ल के साल हज़रत मूसा की पैदाइशा हुई.

     (7) बला इम्तिहान और आज़माइशा को कहते हैं. आज़माइश नेअमत से भी होती है और शिद्दत व मेहनत से भी. नेअमत से बन्दे की शुक्रगुज़ारी, और मेहनत से उसके सब्र (संयम और धैर्य) का हाल ज़ाहिर होता है. अगर “ज़ालिकुम.”(और इसमें) का इशारा फ़िरऔन के मज़ालिम (अत्याचारों) की तरफ़ हो तो बला से मेहनत और मुसीबत मुराद होगी, और अगर इन अत्याचारों से नजात देने की तरफ़ हो, तो नेअमत.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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इबादत गुज़ारों का रास्ता और ताइबिन का तरीक़ा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ राहे सालिहिन से दूर रहने वाले! तुझ पर अपने नूरे बरसात की इस्लाह लाज़िम है। तारिक दिल शुकुक के कांटों पर चल रहा है और तू बे खबर है। तौबा करने वाला अपनी उम्र इबादत में गुज़ारता है, दिन में रोज़ा रखता है और रात में इबादत करता है। जब कि आराम पसन्द और काहिल आदमी का वक़्त गफलत में गुज़रता है, उस की बसीरत ग़ौरो तफक्कुर से बे बहरा होती है क्योंकि जो शख्स दुन्या से बे रगब्ती का मज़ा चख लेता है उसे शब बेदारी और रात में नमाज़ पढ़ने में बहुत लज़्ज़त हासिल होती है।

     अगर तुम्हें रात के अवाईल में तहज्जुद पढ़ने वाले नज़र नहीं आते तो सहरी के वक़्त उन्हें देख लिया लर और गफलत की नींद से बेदार हो जाओ की अब तो इस बुढापे की फज्र तुलु हो चुकी है, अगर तू बारगाहे इलाही से पीछे रह गया तो ये पीछे रह जाना तुझे ज़िल्लत में डाल देगा।

*✍️आंसुओं का दरिया* 125

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Tuesday 21 August 2018

*नमाज़ का तरीक़ा* #17


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की 6 शराइत* #02

*_3. इस्तिक़्बाले किब्ला :_*

     नमाज़ में किब्ला यानि काबे की तरफ मुह करना। 

     नमाज़ी ने बिला उज़्र जानबुझ कर किब्ले से सीना फेर दिया अगर्चे फौरन ही किब्ले की तरफ हो गया नमाज़ फासिद् हो गई वे अगर बिला क़स्द फिर गया और ब क़दर 3 बार "सुब्हान अल्लाह" कहने के वक्फे से पहले वापस किब्ला रुख हो गया तो फासिद् न हुई

*✍🏼बुखारी जी.1 स.497*


     अगर सिर्फ मुह किब्ले से फेरा तो वाजिब है की फौरन किब्ले की तरफ मुह कर ले और नमाज़ न जाएगी मगर बिला उज़्र ऐसा करना मकरूहे तहरीमी है। 

     अगर ऐसी जगह पर है जहां किब्ले की शनाख्त का कोई ज़रीआ नही है न कोई ऐसा मुसलमान है जिस से पूछ कर मालुम किया जा सके तो तहर्रि कीजिये यानि सोचिये और जिधर किब्ला होना दिल पर जमे उधर ही रुख कर लीजिये आप के हक़ में वोही किब्ला है। 

     तहर्रि कर के नमाज़ पढ़ी बाद में मालुम हुवा की किब्ले की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी, नमाज़ हो गई लौटाने की हाजत नहीं। 

     एक शख्स तहर्रि करके नमाज़ पढ़ रहा हो दूसरा उसकी देखा देखि उसी सम्त नमाज़ पढ़ेगा तो नही होगी दूसरे के लिये भी तहर्रि करने का हुक्म है। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 156-157*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Monday 20 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #226


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*सालेह عليه السلام ने क़ौम को जवाब दिया*

     आपने कहा: अल्लाह ने मुझे रौशन दलाइल अता फरमाये है और उसने मझे अपनी रहमत से नवाज़ा है इसीलिये में भी तुम पर हेरबानी कर रहा हूँ कि तुम्हे उस राह की हिदायत दे रहा हूँ जिसमें तुम्हारी कामयाबी है तुम अपनी बेअक़्ली की वजह से जिस बातिल राह की मेरी मुआवनत चाहते हो उसमे अल्लाह की नाफरमानी है और अल्लाह की नाफरमानी खसारा है।

     सालेह عليه السلام जब मबुउस हुए और क़ौम ने तकज़िब की इसके बाई बारिश रुक गई क़हत हो गया लोग भूखे मरने लगे इसको क़ौम ने आप عليه السلام की तशरीफ़ आवरी की तरफ निस्बत किया और आपकी आमद को बदशगुनी समझा, आप ने क़ौम को जवाब दिया : तुम्हारी बदशगुनी अल्लाह के पास है बल्कि तुम लोग फ़ित्ने में पड़े हो।

     हज़रत इब्ने अब्बास फरमाते है की सालेह عليه السلام के इरशाद का तलब ये था कि बदशगुनी जो तुम्हारे पास आई ये तुम्हारे कुफ्र की वजह से अल्लाह की तरफ से आई है तुम फ़ित्ने में मुब्तला हो, तुम्हारा अपने बातिल दीन को सही समझना बूत परस्ती पर क़ायम रहना ये दर हक़ीक़त तुम्हारे लिये फ़ित्ना है।

     क़ौम ने कहा तुम पर बार बार करारत से जादू किया गया है इसीलिये तुम्हारी अक़्ल सलामत नही रही, तुम हमारे साथ बेवकूफी की बाते कर रहे हो कि हम अपने आबा व अजदाद का दीन छोड़ दें। 

     क़ौम ने कहा हम इतनी तादाद में हो कर एक आदमी की ताबेदारी करें वो भी ऐसे शख्स हो जो हमारेके जैसा बसर हो ऐसा काम तो दीवानों का है, हम तो अक़्लमंद है, क्या इसी को नबुव्वत अता होनी थी? इस मनसब के लायक़ और कोई नही था? ये शख्स (معاذ الله) अपने दावए नबुव्वत में झूटा है और ये दावा करके शोखियां मार रहा है, इतरा रहा है, ये तो बड़ा मुताक़ब्बिर है। 

     रब ने उनको रदद् करते हुए फ़रमाया: ये क़ौम दुन्या और आख़ेरत में अज़ाब में मुब्तला होगी तो फिर उन्हें पता चलेगा कि कौन झूटा और बातिल राह पर ज़िद व अनाद की वजह से क़ायम रहकर तकब्बुर कर रहा था?

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 185

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*तकबीरे तशरीक़*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

9 जिल हिज्जा की फ़ज़र से लेकर 13 जिल हिज्जा की असर तक *(यानी मंगल की फ़ज़र से लेकर शनिचर की असर तक)* हर फ़र्ज़ नमाज़ बाद तमाम मर्द व औरत को ये तकबीर 1 मर्तबा उची आवाज़ से पढ़ना वाजिब है और 3 बार पढ़ना सुन्नत है। (औरत खुद ही सुने इतनी आवाज़ से पढ़े)

اَللّٰهُ اَكْبَرُ  اَللّٰهُ اَكْبَرُ  لَآاِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ  وَاللّٰهُ اَكْبَرُ اَللّٰهُ اَكْبَرُ  وَلِلّٰهِ الْحَمْدُ


अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ला-इलाह इल्लल्लाहु व-ल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व-लिल्लाहि-ल-हम्द


*तकबीरे तशरीक़ किसका तोहफा है?*

     जब इब्राहिम عليه السلام अल्लाह के हुक्म से अपने बेटे इस्माइल عليه السلام की कुर्बानी दे रहे थे तब अल्लाह ने जिब्राइल को हुक्म दिया कि इस्माइल की जगह दुम्बा रख दे, जिब्राइल जब फिदया लेकर आये तो ख्याल किया की इब्राहिम عليه السلام कहीं जल्दी न कर दे तो आपने पढ़ा *अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर* इब्राहिम عليه السلام ने जब आसमानों की तरफ सर उठाया तो देखा कि जिब्राइल फिदया ला रहे है तो पढ़ा *ला इलाहा इल्लल्लाहु व-ल्लाहु अकबर* जब इस्माइल ज़बीहुल्लाह ने सुना तो आपने पढ़ा *अल्लाहु अकबर व-लिल्लाहिल हम्द।*

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*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #20


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_गरीब को खाले लेने दीजिये_*


सुवाल :

अगर कोई शख्स हर साल गरीबो को खाल देता हो, उस पर इंफिरादि कोशिश कर के अपने मदरसे या दीगर दीनी कामो के लिये खाल लेना और गरीबो को महरूम कर देना केसा है ?


जवाब :

अगर वाक़ई कोई ऐसा गरीब मुस्तहिक़ आदमी है जिस का गुज़ारा उसी खाल या ज़कात व फीत्रा पर मौक़ूफ़ है तो अब उस को मिलने वाले इन अतिय्यात की अपने इदारे के लिये तरकिब कर के उस गरीब को महरूम करने की हरगिज़ इजाज़तनही।

     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : अगर कुछ लोग अपने यहाँ की खाले हाजत मन्द यतिमो, बेवाओं, मिस्कीनों को देना चाहे कि इन की सूरते हाजतरवाई यही है, उसे कोई वाइज़ (यानी वाइज़ कहने वाला) या मदरसे वाला रोक कर मदरसे के लिये ले ले तो ये उसका ज़ुल्म होगा।

*✍🏽फतावा रज़विय्या,20/501*

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार,25*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ④⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और डरो उस दिन से जिस दिन कोई जान दूसरे का बदला न हो सकेगी(2) और न क़ाफिर के लिये कोई सिफ़ारिश मानी जाए और न कुछ लेकर उसकी जान छोड़ी जाए और न उनकी मदद हो(3)


*तफ़सीर*

      (2) वह क़यामत का दिन है. आयत में नफ़्स दो बार आया है, पहले से मूमिन का नफ़्स, दूसरे से काफ़िर मुराद है. (मदारिक)

     (3) यहाँ से रूकू के आख़िर तक दस नेअमतों का बयान है जो इन बनी इस्राइल के बाप दादा को मिलीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*इबादत की पाकीज़गी और मीनारे तक़्वा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ए वो शख्स! जिसका सफर दुन्या की तलब में तेज़ी से कट रहा है, तू दुन्या की झूटी उम्मीदों से कब छुटकारा पाएगा? याद रख! तुझे छुटकारा उसी वक़्त मिलेगा जब तू दुन्या से कटेगा, अगर तू आख़िरत का तलब गार है तो सुस्त रफ्तार होते हुए नफा किस तरह पाएगा? 

     तअज्जुब है कि तू फना हो जाने वाली दुन्या की तलाश में तो सफर की तैयारी खूब करता है, हालांकि इस रास्ते मे तो बहुत से रहज़न भी है। तेरी ज़िन्दगी एक अमानत है जिस की जवानी तूने खयानत में गुज़ार दी, उधेड़ उमरी बेकार कामों में ज़ाए कर दी और अब बुढापे में रो रहा है और ये कह रहा है कि "हाए! मेरी उम्र ज़ाए हो गई।" खरीदो फरोख्त में बद दियानती करने वाला भला कैसे कामयाब हो सकता है? 

     दुन्या की तलब में तो तेरा जिस्म बड़ा चाको चौबन्द रहा और अब तलबे आख़िरत में तुझे मुख्तलिफ तकालिफ़ होने लगी है। कब तक राहे तक़्वा पर चलने में सुस्ती करेगा? ऐ गफलत की तारीकी में ज़िन्दगी बसर करने वाले! बुधामे का सूरज तुलुअ हो चुका, मरने से पहले तौबा करने वालों की रफ़ाक़त इख्तियार करले।

*आंसुओं का दरिया* 118

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़ का तरीक़ा* #16


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ की 6 शराईत* #01


*_1. तहारत :_*

     नमाज़ी का बदन, लिबास और जिस जगह नमाज़ पढ़ रहा है उस जगह का हर किस्म की नजासत से पाक होना ज़रूरी है। 


*_2. सित्रे औरत :_*

     मर्द के लिये नाफ़ के निचे से ले कर घुटनो समेत बदन का सारा हिस्सा छुपा हुवा होना ज़रूरी है

     जब की औरत के लिये इन पाँच आज़ा : मुह की टिक्ली, दोनों हथेलिया और दोनों पाउ के तल्वो के इलावा सारा जिस्म छुपाना लाज़िमी है अलबत्ता अगर दोनों हाथ (गिट्टो तक) पाउ (तखनो तक) मुकम्मल ज़ाहिर हो तो एक मुफ़्ता बिहि क़ौल पर नमाज़ दुरुस्त है।

     अगर ऐसा बारीक कपड़ा पहना जिस से बदन का वो हिस्सा जिस का नमाज़ में छुपाना फ़र्ज़ है नज़र आए या जिल्द का रंग ज़ाहिर हो, नमाज़ न होगी। 

     आजकल बारीक कपड़ो का रवाज बढ़ता जा रहा है। ऐसे बारीक कपड़े का पाजामा पहनना जिस से रान या सित्र का कोई हिस्सा चमकता हो इलावा नमाज़ के भी पहनना हराम है।

     मोटा कपड़ा जिस से बदन का रंग न चमकता हो मगर बदन से ऐसा चिपका हुवा हो की देखने से उज़्व की हैअत मालुम होती हो। ऐसे कपड़े से अगर्चे नमाज़ हो जाएगी मगर उस उज़्व की तरफ दुसरो को निगाह करना जाइज़ नहीं। ऐसा लिबास लोगो के सामने पहनना मना है और औरत के लिये ब दरजए औला मुमानअत।

     बाज़ ख्वातीन मलमल वग़ैरा की बारीक चादर नमाज़ में ओढ़ती है जिस से बालो की सियाही चमकती है या ऐसा लिबास पहनती है जिस से आज़ा का रंग नज़र आता है ऐसे लिबास में भी नमाज़ नहीं होती। 


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 155-156*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Sunday 19 August 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #225


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौम ने सालेह عليه السلام को क्या जवाब दिया*

     बेशक हिज्र वालों ने रसूलों को झुठलाया।

     हिज्र एक वादी है मदीना और शाम के दरमियान जिसमे समुद की क़ौम के लोग रहते थे उन्होंने अपने पैगम्बर सालेह عليه السلام की तकज़िब की। 

     एक नबी की तकज़िब तमाम अम्बिया की तकज़िब है इसलिये की तमाम अम्बिया अल्लाह की वहदानियत पर ईमान लाने और उसी की इबादत करने की दावत देते है और हर नबी दूसरे अम्बियाए किराम पर ईमान लेन की दावत देते है इसलिये एक नबी की तकज़िब से दूसरे तमाम अम्बियाए किराम की तकज़िब लाज़िम आती है। यही वजह है कि रब ने फरमाया "हिज्र वालों ने रसूलों की तकज़िब की, हालांकि बज़ाहिर एक नबी यानी सालेह عليه السلام की वो तकज़िब कर रहे थे।

     कभी क़ौम ने कहा: ए सालेह इससे पहले तो तुम हम में होनहार मालूम होते थे क्या तुम हमे अपने बाप दादा के मआबूदों की पूजा करने से मना करते हो? बेशक जिस बात की तरफ तुम हमें बुलाते हो वो हमें धोके में डाल दे।

     क़ौम कहने लगी: हमने तो तुम्हें बड़ा अक़्लमंद बहुत बड़ा समझदार समझा हुआ था हमें तो तुम पर बड़ी उम्मीदें थी कि तुम हमारे दीन की इमदाद करोगे। हमारे मज़हब की तक़वीयत का सबब बनोगे हमारे तरीक़ा की ताईद करोगे।

     यानी किसी क़ौम में जब भी कोई शख्स इल्म व फ़ज़ल में आला मक़ाम हासिल करता है तो क़ौम उससे अपने मक़सद के मुताबिक़ उम्मीदें वाबस्ता कर लेती है, आपकी क़ौम ने भी यही समझा था कि हमारे बातिल दीन कीमदाद करेगे।

     इसी तरह आप عليه السلام गरीबों, फकीरों पर बड़े महेरबान थे ज़ईफ़ लोगों की इमदाद करते थे मरीजों की अयादत करते थे तो क़ौम ने कहा कि हमने तो आपके इन औसाफ़ को देखकर यह समझा था कि तुम हमारे अहबाब में से होंगे। हमारी इमदाद करोगे तुम ने यह अदावत और बुग्ज़ हमारे साथ कैसे शुरू कर लिया? हमे तो तुम पर बड़ा ताअज्जुब है कि तुम हमें अपने बाप दादा के मआबूदों की पूजा से रोक रहे हो। हमें तो अब तुम पर शक होने लगा है कि तुम हमें किसी बहुत बड़े धोके में मुब्तला करना चाहते हो।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 184

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #19


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*_चंदे की रकम से इज्तिमाई क़ुरबानी के लिये गाए खरीदना_*


सुवाल :

मज़हबी या फलाही इदारे के चंदे की रक़म सेइज्तिमाई क़ुरबानी के लिये बेचने के वासिते गाए खरीदी जा सकती है या नही ?


जवाब :

चंदे की रक़म कारोबार में लगाना जाइज़ नही।इस के लिये चन्दा देने वाले से सराहतन यानी साफ़ लफ़्ज़ों में इजाज़त लेनी ज़रूरी है।

(जो इसकी इजाज़त दे सिर्फ उसी के चंदे की रक़म जाइज़ कारोबार में लगाई जा सकती है यु ही बिला इजाज़ते मालिक उसके दिये हुए चंदे की रक़म क़र्ज़ देने की भी इजाज़त नही)

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार,24*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-6, आयत, ④⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ याक़ूब की सन्तान, याद करो मेरा वह अहसान जो मैं ने तुमपर किया और यह कि इस सारे ज़माने पर तुम्हें बड़ाई दी (1)


*तफ़सीर*

     (1) अलआलमीन (सारे ज़माने पर) उसके वास्तविक या हक़ीक़ी मानी में नहीं. इससे मुराद यह है कि मैं ने तुम्हारे पूर्वजों को उनके ज़माने वालों पर बुज़ुर्गी दी. यह बुज़ुर्गी किसी विशेष क्षेत्र में हो सकती है, जो और किसी उम्मत की बुज़ुर्गी को कम नहीं कर सकती. इसलिये उम्मते मुहम्मदिया के बारे में इरशाद हुआ “कुन्तुम खै़रा उम्मतिन” यानी तुम बेहतर हो उन सब उम्मतों में जो लोगों में ज़ाहिर हुई (सूरए आले इमरान, आयत 110). (रूहुल बयान, जुमल वग़ैरह)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बारगाहे इलाही में हाज़री का अंदाज़*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक मर्तबा हज़रते ज़ुन्नुन मिस्री رحمة الله عليه वाअज फरमा रहे थे कि एक शख्स में अर्ज़ किया: हुज़ूर! जब भी में अपने रब की बारगाह में हाज़िर होता हूँ तो कोई न कोई मुसीबत या परेशानी मुझे घेर लेती है, में क्या करूँ? आपने फरमाया: अपने मौला के दर पर इस तरह हाज़िर हुवा करो जैसे छोटा बच्चा अपनी माँ के पास आता है कि उसकी माँ उसे मारे तो भी वो अपनी माँ ही कि तरफ लपकता है और जब भी वो उसे झिड़कती है वो उसी ले पास जाता है और बार बार ऐसा करता है यहां तक कि उसकी माँ प्यार से उसे अपने आप से चिमटा लेती है।

*✍️आंसुओं का दरिया* 113

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीका* #15


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फिर 4 रकअते पूरी करके कादए आखिरह में तशह्हुद के बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये, फिर दुआए मासुरा पढ़िये


     फिर नमाज़ खत्म करने के लिये पहले दाए कन्धे की तरफ मुह कर के "अस्सलामु अलैक वरहमतुल्लाह" कहिये और इसी तरह बाई तरफ। 

अब नमाज़ खत्म हुई।


     इस्लामी भइयो और बहनो के दिये हुए इस तरीकए नमाज़ में बाज़ बाते फ़र्ज़ है की इसके बगैर नमाज़ होगी ही नही,

     बाज़ बाते वाजिब की इस का जानबूझ कर छोड़ना गुनाह और तौबा करना और नमाज़ का फिर से पढ़ना वाजिब, और भूल कर छूटने से सज्दए सहव वाजिब

     और बाज़ सुन्नते मुअक्कदा है की जिस के छोड़ने की आदत बना लेना गुनाह है और

     बाज़ मुस्तहब है की जिस का करना सवाब और न करना गुनाह नही। 

*✍🏼बहारे शरीअत, ही.3 स.66*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 154-155*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #224


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*सालेह عليه السلام की तबलीग से दो फरीक़ बन गये*

     आप عليه السلام की तबलीग पर कुछ लोग ईमान ले आये और दूसरे लोगोंने कुफ्र पर क़ायम रहे इस तरह दो गिरोह बन गये। ये आपस मे एक दूसरे से बहसों में उलझे रहते थे लेकिन ईमान वालो की तरफ से झगड़ा दीन के हक़ होने में होता ये जिदाल हक़ था।

     सालेह عليه السلام की तबलीग पर क़ौम के इनकार और आपके अज़ाब से डराने पर क़ौम का ये कहना: और बोले ऐ सालेह हम पर ले आओ जिसका तुम वादा दे रहे हो।

     इसके जवाब में आपने कहा ए मेरी क़ौम तुम अच्छाई के बदले में जल्दी क्यों करते हो। यानी ये दुन्यावी नेअमतों का आराम तुम्हें हासिल है लेकिन इसके बदले तुम अज़ाब और अपनी बर्बादी व तबाही तलब कर रहे हो, ये कहाँ की अक़्ल है, तुम्हें अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी तलब करनी चाहिये ताकि तुम पर रहम करे।

*तज़किरतुल अम्बिया* 183

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क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #18


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*_क़ुरबानी के गोश्त के 3 हिस्से_*

     क़ुरबानी का गोश्त खुदभी खा सकते है और दूसरे शख्स गनी या फ़क़ीर को दे सकता है खिला सकता है बल्कि इस मेंसे कुछ खा लेना क़ुरबानी करने वाले के लिये मुस्तहब है।

     बेहतर ये है कि गोश्तके 3 हिस्से करे, एक हिस्सा फ़ुक़रा के लिये और एक हिस्सा दोस्तों व अहबाब के लिये औरएक हिस्सा अपने घरवालो के लिये।

*✍🏽आलमगिरी, 5/300*

     अगर सारा गोश्त खुदही रख लिया तब भी कोई गुनाह नही। आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : 3 हिस्से करना सिर्फइस्तिहबाबी अम्र है कुछ ज़रूरी नही, चाहे तो सब अपने इस्तिमाल में कर ले या सब अज़ीज़ोंकरिबो को दे दे, या सब मसाकिन को बाट दे।

*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/253*


*_वसिय्यत की क़ुरबानी का गोश्त का मसअला_*

     मन्नत या मर्हुम कीवसिय्यत पर की जाने वाली क़ुरबानी का सब गोश्त फ़ुक़रा और मसाकिन को सदक़ा करना वाजिब है,न खुद खाए न मालदारों को दे।

*✍🏽बहारे शरीअत, 3/345*

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 23*

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Saturday 18 August 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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जिन्हें यक़ीन है कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी की तरफ़ फिरना(10)


*तफ़सीर*

     (10) इसमें ख़ुशख़बरी है कि आख़िरत में मूमिनों को अल्लाह के दीदार की नेअमत मिलेगी.

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*तक़वा व मुजाहदा बाइसे नजात है*


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اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ शख्श! कब तक इबादत गुज़ारों और ज़ाहिदों का लबादा ओढ़े रखेगा, हालांकि तू अपने दिल की गफलत को खूब जानता है। तेरा ज़ाहिर तो साफ सुथरा है मगर बातिन लम्बी उम्मीदों से आलूदा है। जिसे माल की महब्बत अपनी तरफ माइल कर ले वो खुदा की महब्बत के क़ाबिल न रहा।

     अगर मुजाहदा की मशक़्क़त न होती तो लोगों को "बा कमाल मर्द" का नाम न दिया जाता। ऐ मुर्दा दिल! अगर तू जवानी में नेकियों की तरफ माइल न हो सका तो उधेड़ पन ही में माइल हो जा, क्योंकि सर सफेद हो जाने के बाद खेलकूद बे सूद है और बुढ़ापे में सरकशी ज़्यादा बुरी है।

     जब तुझसे कहा जाएगा कि "तूने जवानी को गफलत में ज़ाए कर दिया और अब बुढ़ापे में नेक आमाल की कमी पर रोता है" अगर तू जान लेता की तेरे लिये कौन सा अज़ाब तैयार हो चुका है तो तू सारी रात रोने में गुज़ार देता।

*✍️आंसुओं का दरिया* 112

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीका* #14


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     क़ादह में तशह्हुद में "अशहदू अंल्ला-इलाह" के लाम के करीब पहुचे तो सीधे हाथ की बिच की ऊँगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुंगलिया (छोटी ऊँगली) और बिन्सर यानि उसके बराबर वाली ऊँगली को हथेली से मिला दीजिये और कलिमे की ऊँगली उठाइये।


     मगर इसको इधर उधर मत हिलाये और "इला" पर ऊँगली गिरा दीजिये और फौरन सब उंगलिया सीधी कर लीजिये।


     अब अगर दो से ज्यादा रकअते पढ़नी है तो "अल्लाहु अकबर" कहते हुए खड़े हो जाइये।


     अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ रहे है तो तीसरी और चौथी रकअत में क़याम में "बिस्मिल्लाह और अल्हम्दु शरीफ पढ़िये, सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 152-153*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #223


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*सालेह عليه السلام ने क़ौम को कहा दुन्या में तुम को हमेशा नहीं रहना*

     आप عليه السلام ने क़ौम को कहा तुम्हारा ख्याल बातिल है कि तुम यहाँ दुन्या में ही आराम से नेमतों में रहोगे, जिस रब ने अपनी कुदरते कामिला से तुम्हें बाग़ात चश्मे खेतियाँ और नरम व नाजुक शगुफों वाले खजूर के दरख्त दे रखे है वो ये ले भी सकता है। तुम्हें दुनयावी नेअमतों पर नाज़ नहीं करना चाहिये आखिर दुन्या को छोड़कर भी जाना है। तुम बड़ी महारत से पहाड़ों को तराश कर घर बनाते हो इस वजह से भी तुम सीधा यही समझते हो कि तुमको दुन्याके हमेशा रहना है, लेकिन तुम्हारी ये सोच सरासर गलत है। हद से तजावूज़ करने वाले फसाद फैलाने वाले, कोई दुरुस्त अच्छा सीधा भलाई वाला काम न करने वालों की तुम पैरवी कर रहे हो, तुम उनकी इताअत न करो तो कामयाब होंगे। वरना तबाही का शिकार हो जाओगे। कामयाबी सिर्फ अल्लाह की तरफ रुजू करने और मेरा हुक्म मानने में है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 183

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Friday 17 August 2018

*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #17


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_इज्तिमाई क़ुरबानी का गोश्त वज़्न कर के तक़सीम करना होगा*_

     अगर शिर्कत में गायकी क़ुरबानी कि तो ज़रूरी है कि गोश्त वज़्न कर के तक़सीम किया जाए, अंदाज़े से तक़सीम करना जाइज़ नही, करेंगे तो गुनाहगार होंगे। बख़ुशी एक दूसरे को कम ज़्यादा मुआफ़ केर देना काफी नही।

*✍🏽बहारे शरीअत, 3/335*

     हा अगर सब एक ही घरमें रहते है कि मिल कर ही बाटेंगे और खाएंगे या शुरका अपना अपना हिस्सा लेना नही चाहते,ऐसी सूरत में वज़्न करने की हाजत नही।


*_अंदाज़े से गोश्त तक़सीम करने के दो हिले_*

     अगर शुरका अपना अपना हिस्सा ले जाना चाहते हो तो वज़्न करने की मशक्कत से बचने के लिये ये दो हिले कर सकतेहै :

     1 ज़बह के बाद इस गायका सारा गोश्त एक ऐसे बालिग़ मुसलमान को हिबा (यानि तोहफ्तन मालिक) कर दे जो उन की क़ुरबानीमें शरीक न हो और अब वो अंदाज़े से सब में तक़सीम कर सकता है।

     2 दूसरा हिला इस सेभी आसान है जैसा कि फ़ुक़हाए किराम फरमाते है : गोश्त तक़सीम करते वक़्त उस में कोई दूसरी जीन्स (मसलन कलेजी मग्ज़ वगैरा) शामिल की जाए तो भी अंदाज़े से तक़सीम कर सकते है।

*✍🏽दुर्रेमुखतार, 9/527*

     अगर कोई चीज़ डाली है तो हर एक में से टुकड़ा टुकड़ा देना लाज़िम है। गोश्त के साथ सिर्फ एक चीज़ देना भी काफी है। मसलन, तिल्ली, कलेजी, सीरी पाए डाले है तो गोश्त के साथ किसी को तिल्ली दे दी, किसी को कलेजी का टुकड़ा, किसी को पाया, किसी को सीरी। अगर सारी चीज़ों में से टुकड़ा टुकड़ा देना चाहे तब भी हर्ज नहीं।

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 22*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और सब्र और नमाज़ से मदद चाहो और बेशक नमाज़ ज़रूर भारी है मगर उनपर (नही) जो दिल से मेरी तरफ़ झुकते हैं (9)


*तफ़सीर*

     (9) यानी अपनी ज़रूरतों में सब्र और नमाज़ से मदद चाहों. सुबहान अल्लाह, क्या पाकीज़ा तालीम है. सब्र मुसीबतों का अख़लाक़ी मुक़ाबला है. इन्सान इन्साफ़ और सत्यमार्ग के संकल्प पर इसके बिना क़ायम नहीं रह सकता. सब्र की तीन क़िस्में हैं- (1) तकलीफ़ और मुसीबत पर नफ़्स को रोकना, (2) ताअत (फरमाँबरदारी) और इबादत की मशक़्क़तों में मुस्तक़िल (अडिग) रहना, (3) गुनाहों की तरफ़ खिंचने से तबीअत को रोकना. कुछ मुफ़स्सिरों ने यहां सब्र से रोज़ा मुराद लिया है. वह भी सब्र का एक अन्दाज़ है. इस आयत में मुसीबत के वक़्त नमाज़ के साथ मदद की तालीम भी फ़रमाई क्योंकि वह बदन और नफ़्स की इबादत का संगम है और उसमें अल्लाह की नज़्दीकी हासिल होती है. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अहम कामों के पेश आने पर नमाज़ में मश़्गूल हो जाते थे. इस आयत में यह भी बताया गया कि सच्चे ईमान वालों के सिवा औरों पर नमाज़ भारी पड़ती है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*इंसान के 6 सफर*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अपने मुस्तक़ील ठिकाने तक पहुंचने ले लिये हमें 6 मुख्तलिफ सफर दरपेश है।

     पहला सफर: मिट्टी से खमीर बनने तक। दूसरा सफर: पीठ से रेहम तक। तीसरा सफर: रेहम से ज़मीन की पीठ पर आने तक। चौथा सफर: सतहे ज़मीन से क़ब्र तक। पांचवां सफर: क़ब्र से मैदाने महशर तक। छटा सफर: मैदाने महशर से जाए रिहाइश तक, जो जन्नत होगी या फिर जहन्नम। आह! हम ने निस्फ रास्ता तो तै कर लिया मगर मुश्किल तरीन सफर अभी बाक़ी है।

     ऐ रंजो अलम में चीखने चिल्लाने वाले! हिला बाज़ी दूसरों के लिये रहने दे, फायदे में रहेगा। तो राहत व आराम में इज़ाफ़ा चाहता है और गुज़श्ता इब्रतनाक बातों को भूल रहा है। अगर तू अल्लाह की बारगाह में रुजू करता तो वो जल्द ही तेरे मसाइबो आलाम दूर फरमा देता।

    मेरे भाई! दुन्या से बच के रहना क्योंकि दुन्या एक तारिक राह गुज़र है और इसमें सिर्फ ब क़दरे ज़रूरत ग़िज़ा पर क़नाअत कर और याद रख की एक दिन तुझे ये दुन्या छोड़ जाना है।

*✍️आंसुओं का दरिया* 106

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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Thursday 16 August 2018

*क़ुरबानी की फ़ज़ीलत व मसाइल* #16


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_बकरी छुरी की तरफ देख रही थी_*

     नबीए करीम ﷺ एक आदमी के क़रीब से गुज़रे, वो बकरी की गर्दन पर पाउ रख कर छुरी तेज़ कर रहा था और बकरी उसकी तरफ देख रही थी, आप ने इरशाद फ़रमाया : क्या तुम पहले ऐसा नही कर सकते थे ? क्या तुम इसे कई मौते मारना चाहते हो ? इसे लिटाने से पहले अपनी छुरी तेज़ क्यू न कर ली ?

*✍🏽मुस्तदरक, 5/327*

*✍🏽बहकी, 9/481*


*_ज़बह के लिये टांग मत घसीटो !_*

     हज़रते फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه ने एक शख्सको देखा जो बकरी को ज़बह करने के लिये उसे टांग से पकड़ कर घसीट रहा है, आप ने इरशाद फ़रमाया : तेरे लिये खराबी हो, इसे मौत की तरफ अच्छे अन्दाज़ में ले कर जा।

*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 20*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-5, आयत, ④④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

क्या लोगों को भलाई का हुक्म देते हो और अपनी जानों को भूलते हो हालांकि तुम किताब पढ़ते हो तो क्या तुम्हें अक्ल़ नहीं(8)


*तफ़सीर*

     (8) यहूदी उलमा से उनके मुसलमान रिश्तेदारों ने इस्लाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा तुम इस दीन पर क़ायम रहो. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन भी सच्चा और कलाम भी सच्चा. इस पर यह आयत उतरी. एक कथन यह है कि आयत उन यहूदियों के बारे में उतरी जिन्होंने अरब मुश्रिको को हुज़ूर के नबी होने की ख़बर दी थी और हुज़ूर का इत्तिबा (अनुकरण) करने की हिदायत की थी. फिर जब हुज़ूर की नबुव्वत ज़ाहिर हो गई तो ये हिदायत करने वाले हसद (ईर्ष्या) से ख़ुद काफ़िर हो गए. इस पर उन्हें फटकारा गया.(ख़ाज़िन व मदारिक)

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फरिश्तों की सदाएं*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने फरमाया: जब आदमी पर नज़ा का आलम तारी होता है तो अल्लाह उस की तरफ 5 फ़रिश्ते भेजता है।

     पहला फरिश्ता उस वक़्त आता है जब उस की रूह हलक़ तक पहुंचती है। वो फरिश्ता हुसे पुकार कर कहता है: ए इब्ने आदम! तेरा ताक़त वर बदन कहा गया? आज ये कितना कमज़ोर है? तेरी फहसी ज़बान कहाँ गई? आज ये कितनी खामोश है, तेरे घर वाले और अज़ीज़ों अकरिबा कहाँ गए? तुझे किसने तन्हा कर दिया?

     फिर जब उसकी रूह क़ब्ज़ कर ली जाती है और कफ़न पहना दिया जाता है तो दूसरा फरिश्ता उसके पास आता है और उसे पुकार कर कहता है: ए इब्ने आदम! तूने तंगदस्ती के खौफ से जो माल व असबाब जमा किया था वो कहा गया? तूने तबाही से बचने के लिये जो घर बनाए थे वो कहा गए? तूने तन्हाई से बचने के लिये जो उन्स तैयार किया था वो कहा गया?

     फिर जब उसका जनाज़ा उठाया जाता है तो तीसरा फरिश्ता कहता है: आज तू एक ऐसे लंबे सफर पर रवां दवां है जिससे लम्बा सफर तूने आज से पहले कभी तै नहीं किया, आज तू ऐसी क़ौम से मिलेगा की आज से पहले उस से कभी नहीं मिला, आज तुझे ऐसे तंग मकान में दाखिल किया जाएगा कि आज से पहले कभी ऐसी तंग जगह में दाखिल न हुवा था, अगर तू अल्लाह की रिज़ा पाने में कामयाब हो गया तो ये तेरी खुश बख्ति है और अगर अल्लाह तुझसे नाराज़ हुवा तो ये तेरी बद बख्ति है।

     फिर जब उसे लहद में उतार दिया जाता है तो चौथा फरिश्ता कहता है: कल तक तू ज़मीन की पीठ पर चलता था और आज तू इसके अंदर लेटा हुवा है, कल तक तू इसकी पीठ पर हंसता था और आज तू इसके अंदर रो रहा है, कल तक तू इसकी पीठ पर गुनाह करता था और आज तू इसके अंदर नादिम व शर्मिंदा है।

     फिर जब उसकी क़ब्र पर मिट्टी दाल दी जाती है और उसके अहलो इयाल, दोस्त व अहबाब उसे छोड़ कर चले जाते है तो पांचवां फरिश्ता कहता है: वो लोग तुझे दफन कर के चले गए, अगर वो तेरे पास ठहर भी जाते तो तुझे कोई फायदा न पहुंचा सकते, तूने माल जमा किया और उसे गैरों के लिये छोड़ दिया आज या तो तुझे जन्नत के आली बाग़ात की तरफ फेरा जाएगा या भड़कने वाली आग में दाखिल किया जाएगा।

*✍️आंसुओं का दरिया* 103

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गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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