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परदे की फरज़िय्यत



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*पर्दा की फरज़ियत*
          और
*उसकी अहमियत*
हिस्सा-01
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह व रसूल ने इंसानी फितरत के तकाजो के मुताबिक़ बदकारी के दरवाज़ों को बन्द करने के लिये औरतो को पर्दे में रखने का हुक्म दिया है पर्दे की फरज़ियत और उसकी अहमियत क़ुरआन और हदीश से साबित है
चुनान्चे क़ुरआन में अल्लाह तआला ने औरतो पर पर्दा फ़र्ज़ फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया :
*तुम अपने अपने घरो के अन्दर रहो और बे पर्दा होकर बाहर न निकलो जिस तरह पहले जमाने के दौरे जाहिलिय्यत में औरते बे पर्दा बाहर निकल कर घूमती फिरती थी*
इस आयत में अल्लाह ने साफ़ साफ़ औरतो पर पर्दा फ़र्ज़ करके हुक्म दिया है कि वह घर के अंदर रहा करे और ज़माना ए जाहिलिय्यत की बेहयाई व बे पर्दगी की रस्म को छोड़ दे,

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽अनवारे मुस्तफा मेगेज़ीन 70, में-2016*
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*पर्दा की फरज़ियत*​
          और
*​उसकी अहमियत*​
हिस्सा-02
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

जमान ए जाहिलिय्यत में क़ुफ़्फ़ारे अरब का ये दस्तूर था कि उन की औरते खूब बन सवर कर बे पर्दा निकलती थी और बाज़ारो और मेलो में मर्दों के दोश बदोश घूमती थी इस्लाम ने इस बे पर्दगी और बेहयाई से रोका और हुक्म दिया कि औरते घर के अंदर रहे और बिना ज़रूरत बाहर न निकले और अगर बाहर निकलना ही पड़े तो बे पर्दा न निकले बल्कि पर्दा के साथ बाहर निकले।

हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि औरत पर्दे में रहने की चीज़ है जिस वक़्त वो बे पर्दा हो कर बाहर निकलती है तो शैतान उसको झांक झांक कर देखता है।
*✍🏽तिर्मिज़ी 1/140*

एक और हदीस में है कि बनाव सिंगार करके इतरा इतरा कर चलने वाली औरत की मिसाल उस तारीकी की है जिस में बिलकुल रौशनी ही न हो।
*✍🏽तिर्मिज़ी 1/139*

हज़रत अबू मूसा अशआरीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि जो औरत खुशबु लगाकर मर्दों के पास से गुज़रे ताकि लोग उसकी खुशबु सूँघे वो औरत बद चलन है।
*✍🏽निसाई*
*✍🏽अनवारे मुस्तफा मेगेज़ीन 70, में-2016*
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*पर्दा की फरज़ियत​*
          और
*​उसकी अहमियत​*
हिस्सा-03
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_किन लोगो से पर्दा फ़र्ज़ है_*
     हर गैर मेहरम मर्द ख्वाह अजनबी हो ख्वाह रिश्तेदार हो बाहर रहता हो या घर में रहता हो हर एक से पर्दा करना फ़र्ज़ है। हा उन मर्दों से जो औरत के मेहरम हो उनसे पर्दा करना फ़र्ज़ नही।
मेहरम वो मर्द है जिनसे औरत का निकाह कभी और किसी सूरत में भी जाइज़ नही जैसे बाप, दादा, चाचा, मामू, नाना, भाई, भतीजा, भान्जा, पोता, नवासा, ससुर इनलोगो से पर्दा ज़रूरी नही।
     गैर मेहरम मर्द जीस से औरत का निकाह हो सकता है जैसे चाचा ज़ाद भाई, मामू ज़ाद भाई, फूफी ज़ाद भाई, खाला ज़ाद भाई, जेठ, देवर वगैरा। ये सब औरत के गैर मेहरम है आर्इं सब लोगो से पर्दा करना फ़र्ज़ है।
     आज कल बहुत ही गलत और ख़िलाफे शरीअत रिवाज है कि औरते अपने देवतो से बिलकुल ही पर्दा नही करती, बल्कि देवरो से हँसी मज़ाक और उनके साथ हाथा पाई तक करने को बुरा नही समझती हालांकि देवर औरत का मेहरम नही इस लिये सुदर तमाम गैर मेहरम मर्दों की तरह औरतो को देवर से भी पर्दा करना फ़र्ज़ है। बल्कि हदिष में यहाँ तक देवरो से पर्दे की ताकीद है की फ़रमाया : "देवर तो मौत है"
     देवर औरत के हक़ में ऐसा ही खतरनाक है जिस की मौत, और औरत को देवर से उसी तरह दूर भागना चाहिये जिस तरह लोग मौत से भागते है।
*✍🏽मिश्कात शरीफ*

     बहर हाल खूब अच्छी तरह समझ लो की हर गेर मेहरम से पर्दा फ़र्ज़ है चाहे वो अज़नबी हो या रिश्तेदार।
     इसी तरह कुफ्फार व मुशरिकीन की औरतो से भी मुसलमान औरत को पर्दा करना लाज़मी है और उनके घरो में आने जाने से बाज़ रहना ज़रूरी है।
*✍🏽अनवारे मुस्तफा मेगेज़ीन 71*
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*पर्दा की फरज़ियत​*
          और
*​उसकी अहमियत​*
हिस्सा-04
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_पर्दा औरतो का बेहतरीन ज़ेवर_*
मुसलमान औरतो के लिये पर्दा बहुत ज़रूरी है। क्यू की पर्दा ही औरतो का बेहतरीन ज़ेवर है और बे पर्दगी ईनतिहाइ दर्जा नुक्सान देह और बेहयाई का सबब है, जब की हया ईमान का एक हिस्सा है।
*✍🏽बुखारी शरीफ 1/6*

यानी जिस के अंदर बेहयाई और बेपर्दगी है यक़ीनन उसके ईमान में कमज़ोरि है। चुनांचे देखा भी जाता है की वही मर्द बे हयाई के काम करते है और वही औरते बे पर्दगी व बे हयाई इख़्तियार करती है जिनका माहोल व मुआशरा गैर इस्लामी और मग्रिबिय्य ज़दा होता है और जो इस्लाम के ज़रूरी अहकाम व मसाइल से ना वाकिफ होते है।
*✍🏽अनवारे मुस्तफा मेगेज़ीन 72*
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*पर्दा की फरज़ियत​*
          और
*​उसकी अहमियत​*
हिस्सा-05
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_औरत के लिए सबसे बेहतरीन चीज़_*
     हज़रत मौला ए काएनात अलीرضي الله تعالي عنه से मारवी है कि एक रोज़ हुज़ूरﷺ ने अपनी मजलिस में दरयाफ़्त (पीछा) फ़रमाया की औरत के लिए कौन सी चीज़ बेहतर है ?
     किसी ने जवाब न दिया सब खामोश रहे यहाँ तक की में भी कोई जवाब न दे सका। जब घर आया तो बीबी फातिमा ने फौरन जवाब दिया कि औरत के लिए सबसे बेहतर ये है कि उनको गेर मर्द न देखे।
     हज़रते अली उस जवाब से बहुत खुश हुए और जाकर हुज़ूरﷺ को ये जवाब सुना दिया तो हुज़ूरﷺ भी खुश हुए और फ़रमाया कि फातिमा मेरा एक हिस्सा है।
*✍🏽जमउल फवाइद 1/317*
*✍🏽अनवारे मुस्तफा मेगेज़ीन 72*
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          और
*​उसकी अहमियत​*
हिस्सा-06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_पर्दे में इज़्ज़त है ज़िल्लत नही_*
     आज कल इस्लाम से दुश्मनी रखने वाले कुछ लोग मुसलमान औरतो को ये कहकर बहकाया करते है कि इस्लाम ने औरतो को पर्दा में रखकर औरतो की बे इज़्ज़ती की है इस लिए औरतो को पर्दे से निकल कर हर मैदान में मर्दों के दोश बदोश खड़ी हो जाना चाहिए,
     मगर मेरी माँ बहन खूब अच्छी तरह समझ ले कि उन मर्दों का ये प्रोपेगण्डा इतना गन्दा, घिनावना फरेब और धोका है कि शायद शैतान को भी न सुझाव होगा, ऐ अल्लाह की बंदियों ! तुम्ही इन्साफ करो कि तमाम किताबे खुली पड़ी रहती ही और बे पर्दा रहती है मगर क़ुरआन शरीफ पर हमेशा गिलाफ चढ़ा कर उस को पर्दे में रखा जाता है, तो बताओ ! क्या क़ुरआन मजीद लर गिलाफ चढ़ाना ये क़ुरआन मजीद की इज़्ज़त है या बे इज़्ज़ती ?
     इसी तरह पूरी दुन्या की मस्जिद नंगी और बे पर्दा रखी गई है मगर खान ए काबा पर गिलाफ चढ़ा कर उसको पर्दा में रखा गया है तो क्या काबा मुक़द्दसा पर गिलाफ चढ़ाना उसकी इज़्ज़त है या बे इज़्ज़ती ?
     पूरी दुन्या को मालुम है कि क़ुरआन और काबा पर गिलाफ चढ़ाकर उन दोनों की इज्ज़तों अज़मत का ऐलान किया गया है कि तमाम किताबो में सबसे अफज़ल व आला क़ुरआन है और तमाम मस्जिदों में सबसे अफज़ल व आला काबा है।
     इसी तरह मुसलमान औरतो को पर्दा का हुक्म दे कर अल्लाह व रसूलﷺ की तरफ से इस बात का ऐलान किया गया है कि अक़्वामे आलम की तमाम औरतो में मुसलमान औरत तमाम औरतो से अफज़ल व आला है।
     मेरी माँ बहने अब खुद फैसला करे कि इस्लाम ने मुसलमान औरतो को पर्दा में रखकर उनकी इज़्ज़त बढ़ाई है या उनकी बे इज़्ज़ती की है ?
     अल्लाह की बारगाह में दुआ है कि मौला हमारी माँ बहनो को इस्लामी तालीमात पर अमल की तौफ़ीक़ मरहमत फरमाए और खास तौर पर पर्दा इख़्तियार करने की तौफ़ीक़ आता फरमाये।
आमीन....
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