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सिरते मुस्तफा 2





*_वाक़ीअए बीरे मुअव्वना_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरीرضي الله تعالي عنه को आमिर बिन तुफैल ने ये कह कर छोड़ दिया कि मेरी माँ ने एक गुलाम आज़ाद करने की मन्नत मानी थी इस लिये में तुम को आज़ाद करता हु, ये कहा और इन की चोटी का बाल काट कर इनको छोड़ दिया।
     हज़रते अम्रرضي الله تعالي عنه वहा से चल कर जब मक़ामे "क़र क़रह" में आए तो एक दरख्त के साए में ठहरे वही क़बीलए बनु किलाब के दो आदमी भी ठहरे हुए थे। जब वो दोनों सो गए तो हज़रते अम्र ने उन दोनों काफिरो को क़त्ल कर दिया और ये सोचकर दिल में ख़ुश हो रहे थे कि मेने सहाबए किराम के खून का बदला ले लिया है।
     मगर उन दोनों शख्सों को हुज़ूरﷺ अमान दे चुके थे जिस का हज़रते अम्रرضي الله تعالي عنه को इल्म न था। जब मदीना पहुच कर इन्होंने ने सारा हाल दरबारे रिसालत में बयान किया तो असहाबे बीरे मुअव्वना की शहादत की खबर सुन कर सरकारे रिसालतﷺ को इतना अज़ीम सदमा पहुचा कि तमाम उम्र शरीफ में कभी भी इतना रन्ज व सदमा नही पहुचा था।
     चुनांचे हुज़ूरﷺ महीना भर तक क़बाइले रअल व जक्वान और असिय्या व बनु लहयान पर नमाज़े फज्र में लानत भेजते रहे और हज़रते अमرضي الله تعالي عنه्र ने जिन दो शख्सों को क़त्ल कर दिया था हुज़ूरﷺ ने उन दोनों के खुंन बहा अदा करने का एलान फ़रमाया।
*✍🏽बुखारी, 1/136*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 296*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरीرضي الله تعالي عنه ने क़बिलए बनू किलाब के जिन दो शख्सों को क़त्ल कर दिया था और हुज़ूरﷺ ने उन दोनों का खून बहा अदा करने का एलान फरमा दिया था इसी मुआमले के मुतअल्लिक़ गुफ्तगू करने के लिये हुज़ूरﷺ क़बिलए बनू नज़ीर के यहूदियो के पास तशरीफ़ ले गए, क्यू की इन यहूदियो से आप का मुआह्दा था मगर यहूदी दर हक़ीक़त बहुत ही बद बातिन जेहनिययत वाली क़ौम है मुआह्दा कर लेने के बा वुजूद इन खबिशो के दिलो में मैगम्बरे इस्लाम की दुश्मनी और इनाद की आग भरी हुई थी।
      हुज़ूरﷺ इन बद बातीनो से अहले किताब होने की बिना पर अच्छा सुलूक फरमाते थे मगर ये लोग हमेशा इस्लाम की बेख कुनी और बानिये इस्लाम की दुश्मनी में मसरूफ़ रहे।
     मुसलमानो से बुग्ज़ो इनाद और कुफ्फार व मुनाफ़िक़ीन से साज़बाज और इत्तिहाद येही हमेशा इन गद्दारो का तर्ज़े अमल रहा।
चुनांचे इस मौके पर जब रसूलल्लाहﷺ उन यहूदियो के पास तशरीफ़ ले गए तो उन लोगो ने ब ज़ाहिर तो बड़े अख़लाक़ का मुज़ाहरा किया मगर अंदरुनी तौर पर बड़ी ही खौफनाक साजिश और इन्तिहाई खतरनाक स्किम का मन्सूबा बना लिया।

बाक़ी कल की पोस्ट में... انشاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 296*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_गज़्वए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ के साथ हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमर व हज़रते अलीرضي الله تعالي عنهم भी थे। यहूदियो ने इन सब हज़रात को एक दिवार के निचे बड़े एहतिराम के साथ बिठाया और आपस में ये मशवरा किया कि छत पर से एक बहुत ही बड़ा और वज़्नी पथ्थर इन हज़रात पर गिरा दे ताकि ये सब लोग दब कर हलाक हो जाए।
     चुनांचे अम्र बिन जहाश इस मक़सद के लिये छत के ऊपर चढ़ गया, मुहाफ़िज़े हक़ीक़ी परवर दगारे आलम ने अपने हबीब को यहूदियो की इस नापाक साज़िश से बी ज़रीअए वही मुत्तलअ फरमा दिया इस लिये फौरन ही आपﷺ वहा से उठ कर चुपचाप अपने हमराहियों के साथ चले आए और मदीना तशरीफ़ ला कर सहाबए किराम को यहूदियो की इस साज़िश से आगाह फ़रमाया और अन्सार व मुहजीरिन से मशवरे के बाद उन यहूदियो के पास क़ासिद भेज दिया।
     तुम लोगो ने अपनी इस दसिसा कारी और क़ातिलाना साज़िश से मुआह्दा तोड़ दिया इस लिये अब तुम लोगो को दस दिन की मोहलत दी जाती है कि तुम इस मुद्दत में मदीने से निकल जाओ, इसके बाद जो शख्स भी तुम में का यहाँ पाया जाएगा क़त्ल कर दिया जाएगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 297*
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*_गज़्वए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ के साथ हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमर व हज़रते अलीرضي الله تعالي عنهم भी थे। यहूदियो ने इन सब हज़रात को एक दिवार के निचे बड़े एहतिराम के साथ बिठाया और आपस में ये मशवरा किया कि छत पर से एक बहुत ही बड़ा और वज़्नी पथ्थर इन हज़रात पर गिरा दे ताकि ये सब लोग दब कर हलाक हो जाए।
     चुनांचे अम्र बिन जहाश इस मक़सद के लिये छत के ऊपर चढ़ गया, मुहाफ़िज़े हक़ीक़ी परवर दगारे आलम ने अपने हबीब को यहूदियो की इस नापाक साज़िश से बी ज़रीअए वही मुत्तलअ फरमा दिया इस लिये फौरन ही आपﷺ वहा से उठ कर चुपचाप अपने हमराहियों के साथ चले आए और मदीना तशरीफ़ ला कर सहाबए किराम को यहूदियो की इस साज़िश से आगाह फ़रमाया और अन्सार व मुहजीरिन से मशवरे के बाद उन यहूदियो के पास क़ासिद भेज दिया।
     तुम लोगो ने अपनी इस दसिसा कारी और क़ातिलाना साज़िश से मुआह्दा तोड़ दिया इस लिये अब तुम लोगो को दस दिन की मोहलत दी जाती है कि तुम इस मुद्दत में मदीने से निकल जाओ, इसके बाद जो शख्स भी तुम में का यहाँ पाया जाएगा क़त्ल कर दिया जाएगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 297*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

    शनहशाहे मदीनाﷺ का ये फरमान सुन कर बनू नज़ीर के यहूदी जिला वतन होने के लिये तैयार हो गए थे मगर मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने उब्य्य उन  यहूदियो का हामी बन गया और इस ने कहला भेजा कि तुम लोग हरगिज़ हरगिज़ मदीने से न निकलो हम दो हज़ार आदमियो से तुम्हारी मदद करने को तैयार है इसके इलावा बनू क़रिज़ा और बनू गतफन यहूदियो के दो ताक़त वर क़बिले भी तुम्हारी मदद करेंगे।
     बनू नज़ीर के यहूदियो को जब इतना बड़ा सहारा मिल गया तो वो शेर हो गए और उन्हों ने हुज़ूरﷺ के पास कहला भेजा कि हम मदीना छोड़ कर नही जा सकते आप के जो दिल में आए कर लीजिये।
     यहूदियो के इस जवाब के बाद हुज़ूरﷺ ने मस्जिदें नबवी की इमामत हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूमرضي الله تعالي عنه के सिपुर्द फरमा कर खुद बनू नज़ीर का क़स्द फ़रमाया और उन यहूदियो के किल्ले का मुहासरा कर लिया ये मुहासरा 15 दिन तक क़ाइम रहा किला में बाहर से हर किस्म के सामानों का आना जाना बन्द हो गया और यहूदी बिलकुल ही महसूर व मजबूर हो कर रह गए मगर इन मौक़ा पर न तो मुनाफ़ीक़ो का सरदार अब्दुल्लाह बिन उब्य्य यहूदियो की मदद के लिये आया न बनू क़रिज़ा और बनू गतफान ने कोई मदद की।
   
चुनांचे इन दगाबाज़ों के बारे में क्या इरशाद फ़रमाया ये इन्शा अल्लाह कल की पोस्ट में...
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 298*
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*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
        हिस्सा-04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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चुनांचे अल्लाह ने इन दगाबाज़ो के बारे में क़ुरआन में इरशाद फ़रमाया :
*इन लोगो की मिषाल शैतान जेसी है जब इस ने आदमी से कहा कि तू कुफ़्र कर फिर जब उस ने कुफ़्र किया तो बोला कि में तुझ से अलग हु में अल्लाह से डरता हु जो सारे जहान का पालनेवाला है।*
पारह 28, सूरतुल हशर, 16

     यानी जिस तरह शैतान आदमी को कुफ़्र पर उभारता है लेकिन जब आदमी शैतान के वर-गलाने से कुफ़्र में मुब्तला हो जाता है तो शैतान चुपके से खिसक कर पीछे हट जाता है इसी तरह मुनाफ़ीक़ो ने बनू नज़ीर के यहूदियो को शह दे कर दिलेर बना दिया और अल्लाह के हबीबﷺ से लड़ा दिया लेकिन जब बनू नज़ीर के यहूदियो को जंग का सामना हुवा तो मुनाफ़िक़ चुप कर अपने घरो में बैठ रहे।
     हुज़ूरﷺ ने किल्ले के मुहसरे के साथ किल्ले के आस पास खजूरो के कुछ दरख्तो को भी कटवा दिया क्यू कि मुमकिन था कि दरख्तो के झुंड में यहूदी छुप कर इस्लामी काशकर पर छापा मारते और जंग में मुसलमानो को दुश्वारी हो जाती।
     इन दरख्तो को काटने के बारे में मुसलमानो के दो गुरौह हो गए, कुछ लोगो का ये ख्याल था कि ये दरख्त न काटे जाए क्यू कि फ़त्ह के बाद ये सब दरख्त माले गनीमत बन जाएंगे और मुसलमान इन से नफा उठाएंगे और कुछ लोगो का ये कहना था कि दरख्तो के झुंड को काट कर साफ़ कर देने से यहूदियो की कमीन गाहों को बर्बाद करना और इन को नुक़सान पबुचा का गैज़ो गज़ब में डालना मक़सूद है, लिहाज़ा इन दरख्तो को काट देना ही बेहतर है।

     इस मौके पर सूरए हशर की एक आयत उतरी जो इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में हम देखेंगे....
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 299*
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*सिरते मुस्तफा*
*_गज़्वाए बनू नज़ीर_*
हिस्सा-05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     उन दरख्तो को काट देना ही बेहतर है इस मौके पर सूरए हशर की ये आयत उतरी :
*जो दरख्त तुम ने काटे या जिन को उन की जड़ो पर क़ाइम छोड़ दिये ये सब अल्लाह के हुक्म से था ताकि खुदा फासिक़ो को रुस्वा करे*
     मतलब ये है कि मुसलमानो में जो दरखत काटने वाले है उन का अमल भी दुरस्त है और जो काटना नहीं चाहते वो भी ठीक कहते है क्यू कि कुछ दरख्तो को काटना और कुछ को छोड़ देना ये दोनों अल्लाह के हिक्म और उस की इजाज़त से है।
     बहर हाल आखीरे कार मुहासरे से तंग आ कर बनू नज़ीर के यहूदी इस बात पर तैयार हो गए कि वो अपना अपना मकान और किला छोड़ कर इस शर्त पर मदीने से बाहर चले जाएंगे कि जिस क़दर माल व अस्बाब वो ऊंटो पर ले जा सके ले जाए।
     हुज़ूरﷺ ने यहूदियो की इस शर्त को मंज़ूर फरमा लिया और बनू नज़ीर के सब यहूदी 600 ऊंटो पर अपना माल व सामान लाद कर एक जुलुस की शक्ल में गाते बजाते हुए मदीना से निकले कुछ तो "खैबर" चले गए और ज़्यादा तादाद में मुल्क शाम जा कर "अज़रआत" और "उरैहा" में आबाद हो गए।
     इन लोगो के चले जाने के बाद इन के घरो की मुसलमानो ने जब तलाशी ली तो 50 लिहे की टोपिया, 50 ज़ीरहे, 340 तलवारे निकली, जो हुज़ूरﷺ के क़ब्ज़े में आई।
     अल्लाह ने बनू नज़ीर के यहूदियो की इस जिला वतनी का ज़िक्र सूरए हशर में इस तरह फ़रमाया कि :
*अल्लाह वोही है जिस ने काफ़िर किताबियो को उन के घरो से निकाला उन के पहले हशर के लिये, ऐ मुसलमान ! तुम्हे ये गुमान न था कि वो निकलेंगे और वो अमझते थे कि उन के किले उन्हें अल्लाह से बचा लेंगे तो अल्लाह का हुक्म उनके पास आ गया जहा से उन को गुमान भी न था और उस ने उन के दिलो में खौफ डाल दिया कि वो अपने घरो को खुद अपने हाथो से और मुसलमानो के हाथो से वीरान करते है तो इब्रत पकड़ो ऐ निगाह वालो !*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 300*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_बद्रे सुगरा_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जंगे उहुद से लौटते वक़्त अबू सुफ़यान ने कहा था कि आइन्दा साल बद्र में हमारा तुम्हारा मुक़ाबला होगा।
     चुनांचे शाबान या जुल क़ादह सि.4 हि. में हुज़ूरﷺ मदीने के नज्मो नस्क़ का इन्तिज़ाम हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहाرضي الله تعالي عنه के सुपुर्द फरमा कर लश्कर के साथ बद्र में तशरीफ़ ले गए।
     8 रोज़ तज कुफ़्फ़ार का इन्तिज़ार किया, उधर अबू सुफ़यान भी फ़ौज के साथ चला, एक मन्ज़िल चला था कि उस ने अपने लश्कर से ये कहा कि ये साल जंग के लिये मुनासिब नही है। क्यू कि इतना ज़बर दस्त क़हत पड़ा हुवा है कि न आदमियो के लिये दाना पानी है न जानवरो के लिये घास चारा। ये कह कर अबू सुफ़यान मक्का वापस चला गया।
     मुसलमानो के पास माले तिजारत भी साथ था जब जंग नही हुई तो मुसलमानो ने तिजारत कर के खूब नफा कमाया और मदीना वापस चले आए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 301*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_सी. 4 हि. के मुतफ़र्रिक़ वाक़ीआत_* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इसी साल गज़्वाए बनू नज़ीर के बाद जब अन्सार ने कहा कि या रसूलल्लाहﷺ ! बनू नज़ीर के जो अमवाल गनीमत में मिले है वो सब आप हमारे मुहाजिर भाइयो को दे दीजिये हम इस में से किसी चीज़ के तलब गार नही है, तो हुज़ूरﷺ ने खुश हो कर ये दुआ फ़रमाई :
*ऐ अल्लाह ! अन्सार पर, और अन्सार के बेटो पर और अन्सार के बेटो के बेटो पर रहम फरमा*
     इसी साल हुज़ूरﷺ के नवासे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उष्मान गनी की आँख में एक मुर्ग ने चोच मार दी जिस के सदमे से वो दो रात तड़प कर वफ़ात पा गए।
     इसी साल हुज़ूरﷺ की ज़ौजए मुतह्हरा हज़रते बीबी ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमرضي الله تعالي عنها की वफ़ात हुई।
     इसी साल हुज़ूरﷺ ने हज़रते उम्मुल मुअमिनिन बीबी उम्मे सलमहرضي الله تعالي عنها से निकाह फ़रमाया।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 302*
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*सिरते मुस्तफा*
*_सी. 4 हि. के मुतफ़र्रिक़ वाक़ीआत_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इसी साल हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की वालिदए माजिदा हज़रते बीबी फातिमा बिन्ते असदرضي الله تعالي عنها ने वफ़ात पाई, हुज़ूरﷺ ने अपना मुक़द्दस पैरहन उन के कफ़न के लिये अता फ़रमाया और उन की क़ब्र में उतर कर उन की मय्यित को अपने दस्ते मुबारक से क़ब्र में उतारा और फ़रमाया कि फातिमा बिन्ते असद के सिवा कोई शख्स भी क़ब्र के दबोचने से नही बचा है।
     हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़رضي الله تعالي عنه से रिवायत हे कि सिर्फ 5 ही मय्यित ऐसी खुश नसीब हुई है जिन की क़ब्र में हुज़ूरﷺ खुद उतरे : (1) हज़रते बीबी खदीजा, (2) हज़रते बीबी खदीजा का एक लड़का, (3) अब्दुल्लाह मुज़्नी जिन का लक़ब जुल बिजादैन है, (4) हज़रते बीबी आइशा की माँ हज़रते उम्मे रूमान, (5) हज़रते फातिमा बिन्ते असद हज़रते अली की वालिदा।

     इसी साल 4 शाबान को हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की पैदाइश हुई।
     इसी साल एक यहूदी ने एक यहूदी की औरत के साथ ज़िना किया और यहूदियो ने ये मुक़द्दमा बारगाहे नुबुव्वत में पेश किया तो आपﷺ ने तौरेत व क़ुरआन दोनों किताबो के फरमान से उस को संगसार करने का फैसला फ़रमाया।
     इसी साल तअमा बिन उबैरक़ ने जो मुसलमान था चोरी की तो हुज़ूरﷺ ने क़ुरआन के हुक्म से उस का हाथ काटने का हुक्म फ़रमाया, इस पर वो भाग निकला और मक्का चला गया। वहा भी उसने चोरी की अहले मक्का ने उस को क़त्ल कर डाला या उस पर दिवार गिर पड़ी और मर गया या दरिया में फेक दिया गया। एक क़ौल ये भी है कि वो मुर्तद हो गया था।
     बाज़ मुअर्रिखिन के नज़दीक शराब की हुरमत का हुक्म भी इसी साल नाज़िल हुवा और बाज़ के नज़दीक सि. 6 हि. में और बाज़ ने कहा की सि. 8 हि. में शराब हराम की गई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 303*
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*दसवा बाब* #01
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*_हिजरत का पाचवा साल_*
     जंगे उहुद में मुसलमानो के जानी नुक़सान का चर्चा हो जाने और कुफ़्फ़ारे कुरैश और यहूदियो की मुश्तरीका साज़िशों से तमाम क़बाइले कुफ़्फ़ार का हौसला इतना बुलन्द हो गया कि सब को मदीने पर हम्ला करने का जूनून हो गया।
     चुनांचे सि.5 हि. भी कुफ़्र व इस्लाम के बहुत से मारिक़ो को अपने दामन में लिये हुए है। हम चन्द मश्हूर गज़वात व सराया का ज़िक़्र करेंगे...

*_गज़्वाए जातुर्र्क़ाअ_*
     सबसे पहले क़बाइले "अनमार व षालबा" ने मदीने पर चढ़ाई करबे का इरादा किया तो आपﷺ ने 400 सहाबए किराम का लश्कर अपने साथ लिया और 10 मुहर्रम सि 5 हि को मदीने से रवाना हो कर मक़ामे जातुर्र्क़ाअ तक तशरीफ़ ले गए लेकिन आपﷺ की आमद का हाल सुन कर ये कुफ़्फ़ार पहाड़ो में भाग कर छुप गए इस लिये कोई जंग नही हुई। मुशरिकीन की चन्द औरते मिली जिन को सहाबए किराम ने गिरफ्तार कर लिया। उस वक़्त मुसलमान बहुत ही मुफ़लिस कर तंग दस्ती की हालत में थे।
     चुनांचे हज़रते अबू मूसा अशअरीرضي الله تعالي عنه का बयान है कि सुवारियो की इतनी कमी थी कि छे छे आदमियो की सुवारि के लिये एक ऊंट था जिस पर हम लोग बारी बारी सुवार हो कर सफर करते थे, पहाड़ी ज़मीन में पैदल चलने से हमारे क़दम ज़ख़्मी और पाउ के नाख़ून झड़ गए थे इस लिये हम लोग ने अपने पाउ पर कपड़ो के चीथड़े लपेट लिये थे येही वजह है कि इस गज़्वे का नाम "गज़्वाए जातुर्र्क़ाअ" (पैवन्दो वाला गज़्वा) हो गया।

     बाज़ मुअर्रिखिन ने कहा कि चुकी वहा की ज़मीन के पथ्थर सफेद व सियाह रंग के थे और ज़मीन ऐसी नज़र आती थी गोया सफेद और काले पैवन्द एक दूसरे से जोड़े हुए है, लिहाज़ा इस गज़्वे को गज़्वाए जातुर्र्क़ाअ कहा जाने लगा और बाज़ का क़ौल है कि यहाँ पर एक दरख्त का नाम जातुर्र्क़ाअ था इस लिये लोग इस्क गज़्वाए जातुर्र्क़ाअ कहने लगे, हो सकता है कि ये सारी बाते हो।
     मश्हूर इमामे सीरत इब्ने सादرضي الله تعالي عنه का क़ौल है कि सबसे पहले इस गज़्वे में हुज़ूर ने "सलातुल खौफ" पढ़ी।
*सिरते मुस्तफा, 305*
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*_दसवा बाब_* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #01
     गज़्वाए मुरैसीअ से जब रसूलुल्लाहﷺ मदीना वापस आने लगे तो एक मंज़िल पर रात में पड़ाव किया, हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها एक बंद हौदज में सुवार हो कर सफर करती थी और चन्द मख़्सूस आदमी उस हौदज को ऊंट पर लादने और उतारने के लिये मुक़र्रर थे, हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها लश्कर की रवानगी से कुछ पहले लश्कर से बाहर रफए हाजत के लिये तशरीफ़ ले गई जब वापस हुई तो देखा की उन के गले का हार कही टूट कर गिर पड़ा है वो दोबारा उस हार की तलाश में लश्कर से बाहर चली गई इस मर्तबा वापसी में कुछ देर लग गई और लश्कर रवाना हो गया, आप का हौदज लादने वालो ने ये ख़याल करके की उम्मुल मुअमिनिन हौदज के अंदर तशरीफ़ फरमा है हौदज को ऊंट पर लाद दिया और पूरा क़ाफ़िला मंज़िल से रवाना हो गया।
     जब हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها मंज़िल पर वापस आई तो यहाँ कोई आदमी मौजूद नही था। तन्हाई से सख्त घबराई, अँधेरी रात में अकेले चलना भी खतरनाक था इस लिये वो ये सोच कर वही लेट गई की जब अगली मंज़िल पर लोग मुझे न पाएंगे तो ज़रूर ही मेरी तलाश में यहाँ आएँगे, वो लेटी लेटी सो गई।
     एक सहाबी जिन का नाम हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه था वो हमेशा लश्कर के पीछे पीछे इस ख़याल से चला करते थे ताकि लश्कर का गिरा पड़ा सामान उठाते चले। वो जब उस मंज़िल पर पहुचे तो हज़रते बीबी आइशा को देखाرضي الله تعالي عنها।

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*_दसवा बाब_* #08
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #02
     हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه ने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها को देखा और चुकी पर्दे की आयत नाज़िल होने से पहले वो बारहा उम्मुल मुअमिनिन को देख चुके थे इस लिये देखते ही पहचान लिया और उन्हें मुर्दा समज कर "اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ" पढ़ा इस आवाज़ से वो जाग उठी। हज़रते सफ्वानرضي الله تعالي عنه ने फौरन ही उन को अपने ऊंट पर सुवार कर लिया और खुद ऊंट की मुहार थाम कर पैदल चलते हुए अगली मंज़िल पर हुज़ूरﷺ के पास पहुच गए।
     मुनाफ़ीक़ो के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस वाक़ीए को हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها पर तोहमत लगाने का ज़रिया बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चर्चा किया यहाँ तक की मदीने में इस मुनाफ़िक़ ने इस शर्मनाक तोहमत को इस क़दर उछाला और इतना शोरो गुल मचाया की मदीने में हर तरफ इस इफ्तिरा और तोहमत का चर्चा होने लगा और बाज़ मुसलमान मशलन हज़रते हस्सान बिन षाबित और हज़रते मिस्तह बिन अशाशा और हज़रते हमना बिन्ते हजश ने भी इस तोहमत को फेलाने में कुछ हिस्सा लिया।
     हुज़ूरे अक़दसﷺ को इस शर अंगेज़ तोहमत से बेहद रन्ज व सदमा पहुचा और मुखिलस मुसलमानो को भी इन्तिहाई रंजो गम हुवा।

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*_दसवा बाब_* #09
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #03
     हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنه मदीना पहुचते ही सख्त बीमार हो गई, पर्दा नशीन तो थी ही साहिबे फराश हो गई और उन्हें इस तोहमत तराशी की बिलकुल खबर ही नही हुई गो की हुज़ूरﷺ को हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنه की पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म व यक़ीन था मगर चुकी अपनी बीबी का मुआमला था इस लिए आपﷺ ने अपनी तरफ से अपनी बीवी की बराअत और पाक दामनी का एलान करना मुनासिब नही समझा और वहीऐ इलाही का इंतज़ार फरमाने लगे।
     इस दरमियान आपﷺ अपने मुख्लिस असहाब से इस मुआमले में मशवरा फरमाते रहे ताकि इन लोगो के ख्यालात का पता चल सके। चुनांचे हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه से जब आप ने इस तोहमत के बारे में गुफ्तगू फ़रमाई तो उन्हों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाहﷺ ! ये मुनाफ़िक़ यक़ीनन झुटे है इस लिए की जब अल्लाह को ये गवारा नही की आप के जिस्मे अतहर पर एक मख्खी भी बैठ जाए क्यू की मख्खी नजासतो पर बैठती है तो भला जो औरत ऐसी बुराई की मूर्तक़िब हो खुदा कब और कैसे बर्दास्त फ़रमाएगा की वो आप की ज़ौजिय्यत में रह सके।

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*_दसवा बाब_* #10
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #04
     हज़रते उष्मान गनीرضي الله تعالي عنه ने कहा की या रसूलल्लाहﷺ ! जब अल्लाह ने आप के साए को ज़मीन पर नही पड़ने दिया ताकि उस पर किसी का पाउ न पड़ सके तो भला उस माबुदे बरहक़ की गैरत कब ये गवारा करेगी की कोई इंसान आप की ज़ौजए मोहतरम के साथ ऐसी क़बाहत का मूर्तक़िब हो सके ?
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने ये गुज़ारिश की, की या रसूलल्लाहﷺ ! एक मर्तबा आप की नालैने अक़दस में नजासत लग गई थी तो अल्लाह ने हज़रते जिब्राईल को भेज कर आप को खबर दी की आप अपनी नालैन को उतार दे, इस लिये हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها अगर ऐसी होती तो ज़रूर अल्लाह आप पर वही नाज़िल फरमा देता की, आप इन को अपनी ज़ौजिय्यत से निकाल दे।
     हज़रते अबू अय्यूब अंसारीرضي الله تعالي عنه ने जब इस तोहमत की खबर सुनी तो उन्हों ने अपनी बीवी से कहा की ऐ बीवी ! तू सच बता ! अगर हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه की जगह में होता तो क्या तू ये गुमान कर सकती है की में हुज़ूरे अक़दसﷺ की हरमे पाक के साथ ऐसा कर सकता था ? तो उनकी बीवी ने जवाब दिया की अगर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की जगह में रसूलुल्लाहﷺ की बीवी होती तो खुदा की क़सम ! में कभी ऐसी खियानत नही कर सकती थी तो फिर हज़रते आइशा जो मुझ से लाखो दर्जे बेहतर है और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه जो बदर-जहा तुम से बेहतर है भला क्यू कर मुमकिन है की ये दोनों ऐसी खियानत कर सकते है ?

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*✍🏽सिरते मुस्तफा, 315*
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*_दसवा बाब_* #11
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #05
     बुखारी शरीफ की रिवायत है की हुज़ूरﷺ ने इस मुआमले में हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم और उसामा से जब मशवरा तलब फ़रमाया तो हज़रते उसामा ने बरजस्ता कहां की या रसूलुल्लाहﷺ ! वो आप की बीवी है और हम उन्हें अच्छी ही जानते है, और हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने ये जवाब दिया की या रसूलुल्लाहﷺ ! अल्लाह ने आप पर कोई तंगी नही डाली ही औरते इन के सिवा बहुत है और आप उनके बारे में उन की लौंडी (हज़रते बरीरा) से पूछ ले वो आप से सचमुच कह देगी।
     हज़रते बरीरा से जब आप ने सुवाल फ़रमाया तो उन्हों ने अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाहﷺ ! उस जाते पाक की क़सम जिसने आप को रसूले बरहक़ बना कर भेजा है की में ने हज़रते बीबी आइशा में कोई ऐब नही देखा, हा इतनी बात ज़रूर है की वो अभी कमसिन लड़की है वो गुंधा हुआ आता छोड़ कर सो जाती है और बकरी आ कर खा डालती है।
     फिर हुज़ूरﷺ ने अपनी ज़ौजए मोहतरमा हज़रते ज़ैनब बिन्ते जहश से दरयाफ़्त फ़रमाया जो हुस्नो जमाल में हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के मिष्ल थी तो उन्हों ने क़सम खा कर ये अर्ज़ किया या रसूलुल्लाहﷺ ! में अपने कान और आँख की हिफाज़त करती हु खुदा की क़सम ! में तो हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها को अच्छी ही जानती हु।

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*✍🏽बुखारी, 2/596*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 315*
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*_दसवा बाब_* #12
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #06
     इसके बाद हुज़ूरﷺ ने एक दिन मिम्बर पर खड़े हो कर मुसलमानो से फ़रमाया की उस शख्स की तरफ से मुझे कौन माज़ूर समझेगा, या मेरी मदद करेगा जिसने मेरी बीवी पर बोहतान तराशी करके मेरी दिल आजारी की है, खुदा की क़सम ! में अपनी बीवी को हर तरफ की अच्छी ही जानता हु। और उन लोगो (मुनाफ़िक़ों) ने इस बोहतान में मर्द (सफ्वान बिन मुअत्तल) का ज़िक्र किया है जिस को में बिलकुल अच्छा ही जानता हु।
*✍🏽बुखारी, 2/595*
     हुज़ूरﷺ की बर सरे मिम्बर इस तक़रीर से मालुम हुवा की हुज़ूरﷺ को हज़रते आइशा और हज़रते सफ्वान दोनों की बराअत व तहारत और इफक़त व पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म और यक़ीन था और वही नाज़िल होने से पहले ही आपﷺ को यक़ीनी तौर पर मालुम था की मुनाफ़िक़ झुटे और उम्मुल मुअमिनिन पाक दामन है। वरना आप बर सरे मिम्बर क़सम खा कर इन दोनों की अच्छाई का मजमाए आम में हरगिज़ ऐलान न फरमाते।
     पहले ही ऐलाने आम न फरमाने की वजह यही थी की अपनी बीवी की पाक दामनी का अपनी ज़बान से एलान करना हुज़ूरﷺ मुनासिब नही समझते थे, जब हद से ज़्यादा मुनाफ़ीक़ो ने शोरो गोगा शुरू कर दिया तो हुज़ूरﷺ ने मिम्बर पर अपने ख्याल का इज़हार फरमा दिया मगर अब भी ऐलाने आम के लिये आप को वही का इंतज़ार ही रहा।

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*✍🏽सिरते मुस्तफा, 316*
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*_दसवा बाब_* #13
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #07
     ये पहले तहरीर किया जा चूका है की उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها सफर से आते ही बीमार हो कर साहिबे फराश हो गई थी इस लिये वो इस बोहतान के तूफ़ान से बिलकुल ही बे खबर थी जब उन्हें मरज़ से कुछ सिहहत हासिल हुई और वो एक रात हज़रते उम्मे मिस्तह सहाबियाرضي الله تعالي عنها के साथ रफए हाजत के लिये सहरा में तशरीफ़ ले गई तो उन की ज़बानी इन्होंने इस दिल खराश और रूह फरास खबर को सुना। जिससे इन्हें बड़ा धचका लगा और वो शिद्दते रंजो गम से निढाल हो गई चुनांचे उनकी बिमारी में मजीद इज़ाफ़ा हो गया और वो दिन रात बिलक बिलक कर रोती रही, आखिर जब इनसे ये सदमा बर्दाश्त न हो सका तो वो हुज़ूरﷺ से इजाज़त ले कर अपनी वालिदा के घर चली गई और इस मनहूस खबर का तज़किरा अपनी वालिदा से किया, माँ ने काफी तसल्ली दी मगर ये बराबर लगातार रोती रही।
     इसी हालत में ना गहा हुज़ूरﷺ तशरीफ़ ले आए और फ़रमाया की ऐ आइशा ! तुम्हारे बारे में ऐसी ऐसी खबर उड़ाई गई है अगर तुम पाक दामन हो और ये खबर झूटी है तो अन क़रीब खुदा तुम्हारी बराअत का ब ज़रिऐ वही ऐलान फरमा देगा। वरना तुम तौबा व इस्तिग़फ़ार कर लो क्यू की जब कोई बन्दा खुदा से तौबा करता है और बख्शीश मांगता है तो अल्लाह उसके गुनाहो को मुआफ़ फरमा देता है।
     हुज़ूरﷺ की गुफ्तगू सुन कर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के आसु बिलकुल थम गए और उन्हों ने अपने वालिद हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ से कहा की आप रसूलुल्लाह काे जवाब दीजिये। तो उन्हों ने फ़रमाया की खुदा की क़सम ! में नही जानता की हुज़ूरﷺ को क्या जवाब दू ? फिर उन्हों ने माँ से जवाब देने की दरख्वास्त की तो उन की माँ ने भी यही कहा फिर खुद आइशा ने हुज़ूरﷺ को ये जवाब दिया की लोगो ने जो एक बे बुन्याद बात उड़ाई है और ये लोगो के दिलो में बैठ चुकी है और कुछ लोग इस को सच समझ चुके है इस सूरत में अगर में ये कहु की में पाक दामन हु तो लोग इस की तस्दीक़ नही करेंगे और अगर में इस बुराई का इक़रार कर लु तो सब मान लेंगे हाला की अल्लाह जानता है की में इस इलज़ाम से बरी और पाक दामन हु इस वक़्त मेरी मिषाल हज़रते युसूफ के बाप हज़रते यअक़ूब जेसी है लिहाज़ा में भी वही कहती हु जो उन्होंने कहा था "तो सब्र अच्छा और अल्लाह ही से मदद चाहता हु उन बातो पर जो तुम बता रहे हो"
पारह, 11
     ये कहते हुआ आप ने करवट फेर ली और कहा.....

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*_दसवा बाब_* #14
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #08
     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها ने करवट बदल कर मुह फेर लिया और कहा की अल्लाह जानता है की में इस तोहमत से बरी और पाक दामन हु और मुझे यक़ीन है की अल्लाह ज़रूर मेरी बराअत को ज़ाहिर फरमा देगा।
     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها का जवाब सुन कर अभी हुज़ूरﷺ अपनी जगह से उठे भी न थे और हर शख्स अपनी जगह पर बेठा ही हुवा था की ना गहा हुज़ूरﷺ पर वही नाज़िल होने लगी और आप पर नुज़ूले वही के वक़्त की बेचैनी शुरू हो गई और बा वुजुदे की सदिद सर्दी का वक़्त था मगर पसीने के क़तरात मोतियो की तरह आपﷺ के बदन से टपकने लगे जब वही उतर चुकी तो हसते हुए हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया की ऐ आइशा ! तुम खुदा का शुक्र अदा करते हुए उसकी हम्द करो की उसने तुम्हारी बराअत और पाक दामनी का ऐलान फरमा दिया और फिर आपﷺ ने क़ुरआन की सूरए नूर में से 10 आयतो की तिलावत फ़रमाई।
     इन आयत के नाज़िल हो जाने के बाद मुनाफ़ीक़ो का मुह काला हो गया और हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की पाक दामनी का आफताब अपनी पूरी आबो ताब के साथ इस तरह चमक उठा की क़यामत तक आने वाले मुसलमानो के दिलो की दुन्या में नुरे ईमान से उजाला हो गया।

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*_दसवा बाब_* #15
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*_वाक़ीअए इफ्क_* #09
     हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه को हज़रते मिस्तह बिन अशाशा पर बड़ा गुस्सा आया ये आप के खालाज़ाद  भाई थे और बचपन ही में इन के वालिद वफ़ात पा गए थे तो हज़रते अबू बक्रرضي الله تعالي عنه ने इन की परवरिश भी की थी और इन की मुफलिसी की वजह से हमेशा आप इन की माली इमदाद फरमाते रहते थे मगर इस के बा वुजूद हज़रते मिस्तह ने भी इस तोहमत तराशी और इस का चर्चा करने में कुछ हिस्सा लिया था इस वजह से हज़रते अबू बक्र ने गुस्से में भर कर ये क़सम खा ली की अब में मिस्तह की कभी भी कोई माली इमदाद नही करूँगा।
     इस मौके पर अल्लाह ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई :
*और क़सम न खाए वो जो तुम में फ़ज़ीलत वाले और गुंजाइश वाले है क़राबत वालो और मिस्कीनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालो को देने की और चाहिए की मुआफ़ करे और दर गुज़र करे क्या तुम इसे पसंद नही करते की अल्लाह तुम्हारी बख्शीश करे और अल्लाह बहुत बख्शने वाला और बड़ा मेहरबान है।*
     इस आयत को सुन कर हज़रते अबू बीक्रرضي الله تعالي عنه ने अपनी क़सम तोड़ डाली और फिर हज़रते मिस्तह का खर्च ब दस्तूरे साबिक़ अता फरमाने लगे।
     फिर हुज़ूरﷺ ने मस्जिदे नबवी में एक ख़ुत्बा पढ़ा और सूरए नूर की आयते तिलावत फरमा कर मजमाए आम में सुना दी और तोहमत लगाने वालो में से हज़रत हस्सान बिन षाबित व हज़रते मिस्तह व हज़रते हमना और राइशुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य इन चारो को हद्दे क़ज़फ् की सज़ा में अस्सी अस्सी दुर्रे मारे गए।
     शारेहे बुखारी अल्लामा किरमानी अलैरहमा ने फ़रमाया की हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की बराअत और पाक दामनी फतई व यक़ीनी है जो क़ुरआन से षाबित है अगर कोई इस में ज़रा भी शक करे तो वो काफ़िर है।
*✍🏽बुखारी, 2/595*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 321*
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*_आयते तयम्मुम का नुज़ूल_*
     इब्ने अब्दुल बर व इब्ने साद व इब्ने हब्बान वगैरा मुहद्दीशिन व उल्माए सीरत का क़ौल है की तयम्मुम की आयत गज़्वाए मुरैसीअ में नाज़िल हुई मगर रौज़तुल अहबाब में लिखा है की आयत तयम्मुम किसी दूसरे गज़्वे में उतरी।
     बुखारी शरीफ में आयते तयम्मुम की शाने नुज़ूल जो मज़कूर है वो ये है की हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها का बयान है की हम लोग हुज़ूरﷺ के साथ एक सफर में थे जब हम लोग मक़ामे "बैदाअ" या मक़ामे "जातुल जैश" में पहुचे तो मेरा हार टूट कर कही गिर गया हुज़ूरﷺ और कुछ लोग उस हार की तलाश में वहा ठहर गए और वहा पानी नही था तो कुछ लोगो ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه के पास आ कर शिकायत की, की क्या आप देखते नही की हज़रते आइशा ने क्या किया ? हुज़ूरﷺ और सहाबा को यहाँ ठहरा लिया है हाला की यहाँ पानी मौजूद नही है, ये सुन कर हज़रते अबू बक्रرضي الله تعالي عنه मेरे पास आए और जो कुछ खुदा ने चाहा उन्हों ने मुझ को (सख्त व सुस्त) कहा और फिर (गुस्से में) अपने हाथ से मेरी कोख में कोचा मारने लगे उस वक़्त रसूलुल्लाहﷺ मेरी रान पर अपना सरे मुबारक रख कर आराम फरमा रहे थे इस वजह से (मार खाने के बावुजूद) में हिल नही सकती थी सुब्ह को जब रसूलुल्लाहﷺ बेदार हुए तो वहा कही पानी मौजूद ही नही था ना गहा हुज़ूरﷺ पर तयम्मुम की आयत नाज़िल हो गई।
     चुनांचे हुज़ूरﷺ और तमाम असहाब ने तयम्मुम किया और नमाज़े फज्र अदा की इस मौके पर हज़रते उसैद बिन हुज़ैरرضي الله تعالي عنه ने (खुश हो कर) कहा की ऐ अबू बक्र की आल ! ये तुम्हारी पहली ही बरकत नही है। फिर हम लोगो ने ऊंट को उठाया तो उस के निचे हम ने हार को पा लिया।
*✍🏽बुखारी, 1/48*
     इस हदिष में किसी गज़्वे का नाम नही है मगर शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा इब्ने हजर अलैरहमा ने फ़रमाया की ये वाक़ीआ गज़्वाए बनी अल मुस्तलिक का है जिस का दूसरा नाम गज़्वाए मुरैसीअ भी है जिस में क़िस्साए इफ्क वाकेअ हुवा।
     इस गज़्वे में हुज़ूरﷺ 28 दिन मदीने से बाहर रहे।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 321*
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*_दसवा बाब_* #16
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*​जंगे खन्दक*​ #01
     सि.5 हि. की तमाम लड़ाइयो में ये जंग सब से ज़्यादा मशहूर और फैसला कुन जंग है चुकी दुश्मनो से हिफाज़त के लिये शहरे मदीना के गिर्द खन्दक खोदी गई थी इस लिये ये लड़ाई "जंगे खन्दक" कहलाती है और चुकी तमाम कुफ़्फ़ारे अरब ने मुत्तहिद हो कर इस्लाम के खिलाफ ये जंग की थी इस लिये इस लड़ाई का दूसरा नाम "जंगे अहज़ाब" (तमाम जमाअतो की मुत्तहिदा जंग) है, क़ुरआन में इस लड़ाई का तज़किरए इसी नाम के साथ आया है।

*_जंगे खन्दक का सबब_*
     गुज़श्ता अवराक़ में हम ये लिख चुके है की "क़बिलए बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से निकाल दिये गए तो उन में से यहूदियो के चन्द रुअसा "खैबर" में जा कर आबाद हो गए और खैबर के यहूदियो ने उन लोगो का इतना ऐज़ाज़ों इकराम किया की सलाम बिन मशकम व इब्ने अबिल हुकैक व हुयय बिन अख्तब व किनाना बिन अर्रबिअ को अपना सरदार मान लिया ये लोग चुकी मुसलमानो के खिलाफ गैज़ो गज़ब में भरे हुए थे और इन्तिक़ाम की आग इन के सिनो में दहक रही थी इस लिये इन लोगो ने मदीने पर एक ज़बर दस्त हमले की स्किम बनाई।
     चुनांचे ये तीनो इस मक़सद के पेशे नज़र मक्का गए और कुफ़्फ़ारे कुरैश से मिल कर ये कहा की अगर तुम लोग हमारा साथ दो तो हम लोग मुसलमानो को सफहाए हस्ती से नेस्तो नाबूद कर सकते है। कुफ़्फ़ारे कुरैश तो इस के भूके ही थे फौरन ही उन लोगो ने यहूदियो की हा में हा मिला दी। कुफ़्फ़ारे कुरैश से साज़ बज़ कर लेने के बाद इन तीनो यहूदियो ने "क़बिलए बनू गफतन" का रुख किया और खैबर की आधी आमदनी देने का लालच दे कर उन लोगो को भी मुसलमानो के खिलाफ जंग के लिये आमादा कर लिया।
     फिर बनू गफतन ने अपने हलफ "बनू असद" को भी जंग के लिये तैयार कर लिया। इधर यहूदियो ने भी अपने हलफ "क़बिकाए बनू असअद" को भी अपना हमनवा बना लिया और कुफ़्फ़ारे कुरैश ने अपनी रिश्तेदारियों की बिना पर "क़बिलए बनू सुलैम" को भी अपने साथ मिला लिया।
     गर्ज़ इस तरह तमाम क़बाइले अरब के कुफ़्फ़ार ने मिलजुल कर एक लश्करे ज़र्रार तैयार कर लिया जिस की तादाद 10,000 थी और अबू सुफ़यान इस पुरे लश्कर का सिपह सालार बन गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 323*
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*_दसवा बाब_* #16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*​जंगे खन्दक*​ #01
     सि.5 हि. की तमाम लड़ाइयो में ये जंग सब से ज़्यादा मशहूर और फैसला कुन जंग है चुकी दुश्मनो से हिफाज़त के लिये शहरे मदीना के गिर्द खन्दक खोदी गई थी इस लिये ये लड़ाई "जंगे खन्दक" कहलाती है और चुकी तमाम कुफ़्फ़ारे अरब ने मुत्तहिद हो कर इस्लाम के खिलाफ ये जंग की थी इस लिये इस लड़ाई का दूसरा नाम "जंगे अहज़ाब" (तमाम जमाअतो की मुत्तहिदा जंग) है, क़ुरआन में इस लड़ाई का तज़किरए इसी नाम के साथ आया है।

*_जंगे खन्दक का सबब_*
     गुज़श्ता अवराक़ में हम ये लिख चुके है की "क़बिलए बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से निकाल दिये गए तो उन में से यहूदियो के चन्द रुअसा "खैबर" में जा कर आबाद हो गए और खैबर के यहूदियो ने उन लोगो का इतना ऐज़ाज़ों इकराम किया की सलाम बिन मशकम व इब्ने अबिल हुकैक व हुयय बिन अख्तब व किनाना बिन अर्रबिअ को अपना सरदार मान लिया ये लोग चुकी मुसलमानो के खिलाफ गैज़ो गज़ब में भरे हुए थे और इन्तिक़ाम की आग इन के सिनो में दहक रही थी इस लिये इन लोगो ने मदीने पर एक ज़बर दस्त हमले की स्किम बनाई।
     चुनांचे ये तीनो इस मक़सद के पेशे नज़र मक्का गए और कुफ़्फ़ारे कुरैश से मिल कर ये कहा की अगर तुम लोग हमारा साथ दो तो हम लोग मुसलमानो को सफहाए हस्ती से नेस्तो नाबूद कर सकते है। कुफ़्फ़ारे कुरैश तो इस के भूके ही थे फौरन ही उन लोगो ने यहूदियो की हा में हा मिला दी। कुफ़्फ़ारे कुरैश से साज़ बज़ कर लेने के बाद इन तीनो यहूदियो ने "क़बिलए बनू गफतन" का रुख किया और खैबर की आधी आमदनी देने का लालच दे कर उन लोगो को भी मुसलमानो के खिलाफ जंग के लिये आमादा कर लिया।
     फिर बनू गफतन ने अपने हलफ "बनू असद" को भी जंग के लिये तैयार कर लिया। इधर यहूदियो ने भी अपने हलफ "क़बिकाए बनू असअद" को भी अपना हमनवा बना लिया और कुफ़्फ़ारे कुरैश ने अपनी रिश्तेदारियों की बिना पर "क़बिलए बनू सुलैम" को भी अपने साथ मिला लिया।
     गर्ज़ इस तरह तमाम क़बाइले अरब के कुफ़्फ़ार ने मिलजुल कर एक लश्करे ज़र्रार तैयार कर लिया जिस की तादाद 10,000 थी और अबू सुफ़यान इस पुरे लश्कर का सिपह सालार बन गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 323*
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*_दसवा बाब_* #17
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*​जंगे खन्दक*​ #02
*_मुसलमानो की तैयारी_*
     जब क़बाइले अरब के तमाम काफिरो के इस गढ़जोड़ और खौफनाक हमले की खबरे मदीना पहुची तो हुज़ूरे अक़दसﷺ ने अपने असहाब को जमा फरमा कर मशवरा फ़रमाया की इस हमले का मुक़ाबला किस तरह किया जाए ? हज़रते सलमान फ़ारसीرضي الله تعالي عنه ने ये राय दी की जंगे उहद की तरह शहर से बाहर निकल कर इतनी बड़ी फ़ौज़ के हमले को मैदानी लड़ाई में रोकना मस्लहत के खिलाफ है लिहाज़ा मुनासिब ये है की शहर के अंदर रह कर इस हमले का दिफाअ किया जाए और शहर के गिर्द जिस तरफ से कुफ्फार की चढ़ाई का खतरा है एक खन्दक खोद ली जाए ताकि कुफ्फार की पूरी फ़ौज़ ब यक वक़्त हमला आवर न हो सके।
     मदीने के तिन तरफ चुकी मकानात की तंग गलिया और खजूरों के झुंड थे इस लिये इन तीनो जानिब से हमले का इमकान नही था, मदीने का सिर्फ एक रुख खुला हुवा था इस लिये ये तै किया गया की इसी तरफ पाच गज़ गहरी खन्दक खोदी जाए।
     चुनांचे 8 ज़िल क़ादह सी. 5 ही. को हुज़ूरﷺ 3000 सहाबए किराम को साथ ले कर खन्दक खोदने में मसरूफ़ हो गए। हुज़ूरﷺ ने खुद अपने दस्ते मुबारक से खन्दक की हद बंदी फ़रमाई और 10 10 आदमियो पर 10 10 गज़ ज़मीन तक़सीम फरमा दी और तक़रीबन 20 दिन में ये खन्दक तैयार हो गई।
    
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 324*
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*_दसवा बाब_* #18
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*​जंगे खन्दक*​ #03
*_एक अजीब चट्टान_*
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه ने बयान फ़रमाया की खन्दक खोदते वक़्त ना गहा एक ऐसी चट्टान नमूदार हो गई जो किसी से भी नही टूटी जब हम ने बारगाहे रिसालत में ये माजरा अर्ज़ किया तो आपﷺ उठे 3 दिन का फ़ाक़ा था और शिकमे मुबारक पर पथ्थर बाधा हुवा था आपﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से फावड़ा मारा तो वो चट्टान रेत के भुरभुरे टीले की तरह बिखर गई।
*बुखारी, 2/588*
    और एक रिवायत ये है की आपﷺ ने उस चट्टान पर तिन मर्तबा फावड़ा मारा। हर ज़र्ब पर उस में से एक रौशनी निकलती थी और उस रौशनी में आप ने शाम व ईरान और यमन शहरों को देख लिया और इन तीनो मुल्को के फतह होने की सहाबए किराम को बिशारत दी।
*ज़ुर्क़ानी, 2/109*
     नसाई की रिवायत में है की आपﷺ ने मदाईने किसरा व मदाईने क़ैसर व मदाईने हबशा की फुतुहात का एलान फ़रमाया।
*नसाई, 2/63*

*_हज़रते जाबिर की दावत_*
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه कहते है की फक़ो से शिकमे अक़दस पर पथ्थर बधा हुवा देख कर मेरा दिल भर आया चुनांचे में हुज़ूरﷺ से इजाज़त ले कर अपने घर आया और बीवी से कहा की मेने नबिय्ये करीमﷺ को इस क़दर शदीद भूक की हालत में देखा है की मुझ को सब्र की ताब नही रही क्या घर में कुछ खाना है ? बीवी ने कहा की घर में एक साअ जव के सिवा कुछ भी नही है, में ने कहा की तुम जल्दी से उस जव को पीस कर गूंध लो और अपने घर का पला हुवा एक बकरी का बच्चा में ने ज़बह करके उस की बोटियाँ बना दी और बीवी से कहा की जल्द से तुम गोश्त रोटी तैयार कर लो में हुज़ूरﷺ को बुला कर लाता हु, चलते वक़्त बीवी ने कहा की देखना सिर्फ हुज़ूर और चन्द ही असहाब को साथ में लाना। खाना कम ही है कही मुझे रुस्वा मत कर देना।
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه ने खन्दक पर आ कर चुपके से अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाह ! एक साअ आटे की रोटिया और एक बकरी के बच्चे का गोश्त में ने घर तैयार कराया है लिहाज़ा आप सिर्फ चन्द अशखास के साथ चल कर तनावुल फरमा ले, ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया की ऐ खन्दक वालो ! जाबिर ने दावते तआम दी है लिहाज़ा सब लोग इन के घर पर चल कर खाना खा ले, फिर मुझसे फ़रमाया की जब तक में न आ जाउ रोटी मत पक्वाना। चुनांचे जब हुज़ूरﷺ तशरीफ़ लाए तो गुंधे हुए आटे में अपना लूआबे दहन डाल कर बरकत की दुआ फ़रमाई और गोश्त की हांड़ी में भी अपना लूआबे दहन डाल दिया। फिर रोटी पकाने का हुक्म दिया और ये फ़रमाया की हांड़ी चूल्हे से न उतारी जाए फिर रोटी पकनी शुरू हुई और हांड़ी मेसे हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه की बीवी ने गोश्त निकाल निकाल कर देना शुरू किया। 1000 आदमियो ने आसूदा हो कर खाना खा लिया मगर गुंधा हुवा आटा जितना पहले था उतना ही रह गया और हांड़ी चूल्हे पर ब दस्तूर जोश मारती रही।
*बुखारी, 2/589*

*_बा बरकत खजूर_*
     इसी तरह एक लड़की अपने हाथ में कुछ खजुरे ले कर आई, हुज़ूरﷺ ने पूछा की क्या है ? लड़की ने कहा की कुछ खजुरे है जो मेरी माँ ने मेरे बाप के नाश्ते के लिये भेजी है, आपﷺ ने उन खजूरों को अपने दस्ते मुबारक में ले कर एक कपडे पर बिखेर दिया और तमाम अहले खन्दक को बुला कर फ़रमाया की खूब सैर हो कर खाओ, चुनांचे तमाम खन्दक वालो ने शिकम सैर हो कर उन खजूरों को खाया।
*✍🏽मेराज, 2/169*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 327*
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*_दसवा बाब_* #19
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*​जंगे खन्दक*​ #04
*_इस्लामी अफ्वाज की मोर्चा बन्दी_*
     हुज़ूरﷺ ने खन्दक तैयार हो जाने के बाद औरतो और बच्चों को मदीने के महफु किल्ले में जमा फरमा दिया और मदीने पर हज़रते इब्ने उम्मे मकतूम को अपना खलीफा बना कर 3000 अंसार व मुहाजिरिन की फ़ौज के साथ मदीने से निकल कर सलअ पहाड़ के दामन में ठहरे। सलअ आपﷺ की पुश्त पर था और आप के सामने खन्दक थी। मुहाजिरिन का झंडा हज़रते ज़ैद बिन हारिषा के हाथ में दिया और अंसार का आलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा को बनाया।

*_कुफ्फार का हमला_*
     कुफ्फार कुरैश और उन के इत्तिहादियो ने 10000 के लश्कर के साथ मुसलमानो पर हल्ला बोल दिया और तिन तरफ से काफिरो का लश्कर इस ज़ोरो शोर के साथ मदीने पर उमड़ पड़ा की शहर की फ़ज़ाओं में गर्दो गुबार का तूफ़ान उठ गया इस खौफनाक चढ़ाई और लश्करे कुफ्फार के दल बादल की मारीका आराई का नक़्शा क़ुरआन की ज़बान से देखे :
     जब काफ़िर तुम पर आ गए तुम्हारे ऊपर से और तुम्हारे निचे से और जब की ठिठक कर रह गई निगाहें और दिल गलो के पास (खौफ से) आ गए और तुम *अल्लाह* पर (उम्मीद व यास से) तरह तरह के गुमान करने लगे उस जगह मुसलमान आज़माइश और इम्तिहान में डाल दिये गए और वो बड़े ज़ोर के ज़लज़ले में झंझोड़ कर रख दिये गए।
*पारह, 21*
     मुनाफिकिन जो मुसलमानो के साथ खड़े थे वो कुफ्फार के इस लश्कर को देखते ही बुज़दिल हो कर फिसल गए और उस वक़्त उनके निफ़ाक़ का पर्दा चाक हो गया। चुनांचे उन लोगो ने अपने घर जाने की इजाज़त मांगनी शुरू कर दी। जैसा की क़ुरआन में *अल्लाह* का फरमान है की...
     और एक गिरोह (मुनाफ़िक़ीन) उन में से नबी को इजाज़त तलब करता था मुनाफ़िक़ कहते है की हमारे घर खुले पड़े है हाला की वो खुले हुए नही थे उन का मक़सद भागने के सिवा कुछ भी न था।
*पारह, 21*
     लेकिन इस्लाम के सच्चे जा निषार मुहाजिरिन व अंसार ने जब लश्करे कुफ्फार की तूफानी यलगार को देखा तो इस तरह सीना सिपर हो कर डट गए की "सलअ" और "उहद" की पहाड़िया सर उठा उठा कर इन मुजाहिदीन की उलुल आज़मी को हैरत से देखने लगी इन जा निशारो की इमानी शुजाअत की तस्वीर क़ुरआन में इरशादे रब्बानी है की...
     और जब मुसलमानो ने क़बाइले कुफ्फार के लशकरो को देखा तो बोल उठे की ये तो वही मन्ज़र है जिस का अल्लाह और उस के रसूल ने हम से वादा किया था और खुदा और उस का रसूल दोनों सच्चे है और उस ने उन के ईमान व इताअत को और ज़्यादा बढ़ा दिया।
*पारह, 21*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 329*
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*​जंगे खन्दक*​ #05
*_बनू करीज़ा की गद्दारी_*
     क़बिलाए बनू करीज़ा के यहूदी अब तक गैर जानिब दार थे लेकिन बनू नज़ीर के यहूदियो ने उन को भी अपने साथ मिला कर लश्करे कुफ्फार में शामिल कर लेने की कोशिश शुरू कर दी, चुनांचे हुयय बिन अख्तब के मशवरे से बनू करीज़ा के सरदार काब बिन असद के पास गया। पहले तो उस ने अपना दरवाज़ा नही खोल और कहा की मुहम्मद के हलिफ् है और हम ने उन को हमेशा अपने अहद का पाबन्द पाया है इस लिये हम उन से अहद शिकनी करना ख़िलाफे मुरव्वत समझते है मगर बनू नज़ीर के यहूदियो ने इस क़दर शदीद इसरार किया और तरह तरह से वर गलाया की बिल आखिर काब बिन असद मुआह्दा तोड़ने के लिये राज़ी हो गया, बनू करीज़ा ने जब मुआह्दा तोड़ दिया और कुफ्फार से मिल गए तो कुफ़्फ़ारे मक्का और अबू सुफ़यान ख़ुशी से बाग़ बाग़ हो गए।
     हुज़ूरे अक़दसﷺ को जब इस की खबर मिली तो आप ने हज़रते साद बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादाرضي الله تعالي عنهم को तहक़ीक़ के लिये बनू करीज़ा के पास भेजा, वहा जा कर मालुम हुवा की वाक़ई बनू करीज़ा ने मुआह्दा तोड़ दिया है। जब इन दोनों मुअज़्ज़ज़् सहाबियों ने बनू करीज़ा को उन का मुआह्दा याद दिलाया तो उन बाद ज़ात यहूदियो ने इंतिहाई बे हयाई के साथ यहाँ तक कह दिया की हम कुछ नही जानते की मुहम्मद कौन है ? और मुआह्दा किस को कहते है ? हमारा कोई मुआह्दा हुवा नही था, ये सुन कर दोनों हज़रात वापस आ गए और सूरत हाल से हुज़ूरﷺ को मुत्तलअ किया तो आप ने बुलन्द आवाज़ से "अल्लाहु अकबर" कहा और फ़रमाया की मुसलमानो ! तुम इस से न घबराओ न इस का गम करो इस में तुम्हारे लिये बिशारत है।
     कुफ्फार का लश्कर जब आगे बढ़ा तो सामने खन्दक देख कर  ठहर गया और शहरे मदीना का मुहासरा कर लिया और तक़रीबन एक महीने तक कुफ्फार शहरे मदीना के गिर्द घेरा डाले हुए पड़े रहे और ये मुहासरा इस सख्ती के साथ क़ाइम रहा की हुज़ूर और सहाबा पर कई कई फाके गुज़र गए।
     कुफ्फार ने एक तरफ तो खन्दक का मुहासरा कर रखा था और दूसरी तरफ इस लिये हमला करना चाहते थे की मुसलमानो की औरते और बच्चे किल्ले में थे, मगर हुज़ूरﷺ ने जहा खन्दक के मुख़्तलिफ़ हिस्सों पर सहाबा को मुक़र्रर फरमा दिया था की वो कुफ्फार के हमलो का मुक़ाबला करते रहे इसी तरह औरतो और बच्चों की हिफाज़त के लिये भी कुछ सहाबा को मूतअय्यन कर दिया था।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 331*
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*_दसवा बाब_* #21
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*​जंगे खन्दक*​ #06
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*_अन्सार की इमानी सुजाअत_*
     मुहासरे की वजह से मुसलमानो की परेशानी देख कर हुज़ूरे अक़दसﷺ ने ये ख़याल किया की कहि मुहाजिरिन व क़बिलाए गफतन के सरदार उयैना बिन हसन से इस शर्त पर मुआह्दा कर ले की वो मदीने की एक तिहाई पदावार ले लिया करे और कुफ़्फ़ारे मक्का का साथ छोड़ दे मगर जब आप ने हज़रते साद बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादाرضي الله تعالي عنهم से अपना ये ख़याल ज़ाहिर फ़रमाया तो इन दोनों ने अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाहﷺ ! अगर इस बारे में अल्लाह की तरफ से वही उतर चुकी है तो हमे इस से इनकार की मजाल ही नही हो सकती और अगर ये एक राय है तो या रसूलुल्लाहﷺ ! जब हम कुफ़्र की हालत में थे उस वक़्त तो क़बिलाए गफतन के सरकश कभी हमारी एक खजूर न ले सके और अब जब की अल्लाह ने हम लोगो को इस्लाम और आप की गुलामी की इज़्ज़त से सरफ़राज़ फरमा दिया है तो भला क्यू कर मुमकिन है की हम अपना माल इन काफिरो को दे देंगे ? हम इन कुफ्फार को खजूरों का अम्बार नही बल्कि नेज़ों और तलवारो की मार का तोहफा देते रहेंगे यहाँ तक की अल्लाह हमारे और इन के दरमियान फैसला फरमा देगा, ये सुन कर हुज़ूरﷺ खुश हो गए और आप को पूरा पूरा इत्मिनान हो गया।
     खन्दक की वजह से दस्त बी दस्त लड़ाई नही हो सकती थीऔर कुफ्फार हैरान थे की इस खन्दक को क्यू कर पार करे, मगर दोनों तरफ से रोज़ाना बराबर तीर और पथ्थर चला करते थे। आखिर एक रोज़ अम्र बिन अब्दे वूद व इकराम बिन अबू जहल व हबीरा बिन अबी वहब व जरार बिन अल खत्ताब वगैरा कुफ्फार के चन्द बहादुरो ने बनू किनाना से कहा की उठो आज मुसलमानो से जंग करके बतादो की शह सुवार कौन है ?
     चुनांचे ये सब खन्दक के पास आ गए और एक ऐसी जगह से जहा खन्दक की चौड़ाई कुछ कम थी घोड़े कूदा कर खन्दक को पार कर लिया।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 332*
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*_दसवा बाब_* #22
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*​जंगे खन्दक*​ #07
*_अम्र बिन अब्दे वूद मारा गया_*
     सबसे आगे अम्र बिन अब्दे वूद था ये अगरचे 90 साल का खुर्राट बुढ्ढा था मगर एक हज़ार सुवरो के बराबर बहादुर माना जाता था, जंगे बदर ने ज़ख़्मी हो कर भाग निकला था और इसने ये क़सम खा रखी थी की जब तक मुसलमानो से बदला न ले लूंगा बालो में तेल न डालूँगा। ये आगे बढ़ा और चिल्ला चिल्ला कर मुकाबले की दावत देने लगा 3 मर्तबा इसने कहा की कौन है जो मेरे मुकाबले को आता है ? तीनो मर्तबा हज़रते अली शेरे खुदाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم  ने उठ कर जवाब दिया की में।
     हुज़ूरﷺ ने रोका की ऐ अली ! ये अम्र बिन अब्दे वूद है। हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने अर्ज़ किया जी हा में जानता हु की ये अम्र बिन अब्दे वूद है लेकिन में इससे लड़ूंगा, ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने अपनी ख़ास तलवार ज़ुल्फ़िकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथो से उन के सरे अनवर पर इमामा बांधा और ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह ! तू अली की मदद फरमा।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم मुजाहिदाना शान से उस के सामने खड़े हो गए और दोनों में इस तरह मुकालमा शुरू हुवा :
हज़रते अली : ऐ अम्र ! तू मुसलमान हो जा !
अम्र : ये मुझसे कभी हरगिज़ हरगिज़ नही हो सकता !
हज़रते अली : लड़ाई से वापस चला जा !
अम्र : ये मंज़ूर नही !
हज़रते अली : तो फिर मुझ से जंग कर !
अम्र : है कर कहा की में कभी ये सोच भी नही सकता था की दुन्या में कोई मुझ को जंग की दावत देगा।
हज़रते अली : लेकिन में तुझसे लड़ना चाहता हु।
अम्र : आखिर तुम्हारा नाम क्या है ?
हज़रते अली : अली बिन अबी तालिब।
अम्र : ऐ भतीजे ! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो में तुम्हारा खून बहाना पसन्द नही करता।
हज़रते अली : लेकिन में तुम्हारा खून बहाने को बेहद पसन्द करता हु।
     खून खोला देने वाले गर्मा गर्म जुमले सुन कर अम्र मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पैदल थे और ये सुवार था इस पर जो गैरत सुवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा और अपनी तलवार से घोड़े के पाउ काट डाले और नंगी तलवार ले कर आगे बढ़ा और हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पर तलवार का भरपूर वार किया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तलवार के उस वार को अपनी ढाल पर रोका, ये वार इतना सख्त था की तलवार ढाल और इमामे को काटती हुई पेशानी पर लगी, गो बहुत गहरा ज़ख्म नही लगा मगर फिर भी ज़िन्दगी भर ये तुगार आप की पेशानी पर यादगार बन कर रह गया।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तड़प कर ललकारा की ऐ अम्र ! सँभल जा अब मेरी बारी है ये कह कर आप ने ज़ुल्फ़िकार का ऐसा जचा तुला हाथ मारा की तलवार दुश्मन के शाने को काटती हुई कमर से पार हो गई और वो तिलमिला कर ज़मीन पर गिरा और दम जदन में मर कर फिन्नार हो गया, मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा
          *शाहे मर्दा, शेरे यज़दा क़ुव्वते परवर्दगार*
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने उस को क़त्ल किया और मुह फेर कर चल दिये, हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه ने कहा की ऐ अली ! आप ने अम्र की ज़िरह क्यू नही उतार ली ? सारे अरब में इससे अच्छी कोई ज़िरह नही है, आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया की ऐ उमर ! ज़ुल्फ़िकार की मार से वो इस तरह बे क़रार हो कर ज़मीन पर गिरा की उस की शर्मगाह खुल गई इस लिये हया की वजह से में ने मुह फेर लिया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 335*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*_दसवा बाब_* #23
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #08
*_नौफिल की लाश_*
     नौफिल गुस्से में बिफरा हुवा मैदान में निकला और पुकारने लगा की मेरे मुकाबले के लिये कौन आता है ? हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वामرضي الله تعالي عنه उस पर बिजली की तरह झपटे और ऐसी तलवार मारी की वो दो तुकड़े हो गया और तलवार ज़ीन को काटती हुई घोड़े की कमर तक पहुच गई, लोगो ने कहा की ऐ ज़ुबैर ! तुम्हारी तलवार की तो मिषाल नही मिल सकती। आप ने फ़रमाया की तलवार क्या चीज़ है ? कलाई में दम खम और ज़र्ब में कमाल चाहिए।
     हबीरा और जरार भी बड़े तन तने से आगे बढ़े मगर जब ज़ुल्फ़ीक़ार का वार देखा तो लरज़ा बर अंदाम हो कर फिरार हो गए। कुफ्फार के बाक़ी शह सुवार भी जो खन्दक को पार कर के आ गए थे वो सब भी भाग खड़े हुए और अबू जहल का बेटा इकराम तो इस क़दर बद हवास हो गया की अपना नेजा फेक कर भागा और खन्दक के पार जा कर उस को क़रार आया।

*_हज़रते ज़ुबैर को खिताब मिला_*
     हुज़ूरﷺ ने जंगे खन्दक के मौके पर जब की कुफ्फार मदीने का मुहासरा किये हुए थे और किसी के लिये शहर से बाहर निकलना दुश्वार था, तिन मर्तबा इरशाद फ़रमाया की कौन है जो क़ौमे कुफ्फार की खबर लाए। तीनो बार हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه ने जो हुज़ूरﷺ की फूफी हज़रते स्फिय्याرضي الله تعالي عنها के फ़रज़न्द है ये कहा की "या रसूलुल्लाहﷺ ! में खबर लाऊंगा।" हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه की इस जा निषारि से खुश हो कर हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया की : हर नबी के लिये हवारी (मददगारे ख़ास) होते है और मेरा हवारी ज़ुबेर है।
     इसी तरह हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه को बारगाहे रिसालत से हवारी का खिताब मिला जो किसी दूसरे सहाबी को नही मिला।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 338*
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*_दसवा बाब_* #24
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*​जंगे खन्दक*​ #09
*_हज़रते सफिय्या की बहादुरी_*
     जंगे खन्दक में एक ऐसा मौक़ा भी आया की जब यहूदियो ने ये देखा की सारी मुसलमान फ़ोन खन्दक की तरफ मसरुफे जंग है तो जिस किल्ले में मुसलमानो की औरते और बच्चे पनाह में थे यहूदियो ने अचानक उस पर हमला कर दिया और एक यहूदी दरवाज़े तक पहुच गया।
     हुज़ूरﷺ की फूफी हज़रते सफिय्याرضي الله تعالي عنها ने उस को देख लिया और हज़रते हस्सान बिन षाबितرضي الله تعالي عنه से कहा की तुम इस यहूदी को क़त्ल कर दो वरना ये जा कर दुश्मनो को यहाँ का हाल व माहोल बता देगा, हज़रते हस्सानرضي الله تعالي عنه की उस वक़्त हिम्मत नही पड़ी की उस यहूदी पर हमला करे ये देख कर खुद हज़रते सफिय्याرضي الله تعالي عنها ने खेमे की एक चौब उखाड़ कर उस यहूदी के सर पर इस ज़ोर से मारा की उस का सर फट गया फिर खुद ही उस का सर काट कर किल्ले के बाहर फेक दिया ये देख कर हमला आवर यहूदियो को यकीन हो गया की किल्ले के अंदर भी कुछ फ़ौज मौजूद है इस डर से उन्हों ने फिर उस तरफ हमला करने की जुरअत ही नही की।

*✍🏽सिरते मुस्तफा, 341*
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