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फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा





*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा*
#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_बरकाते दुरुदो सलाम_*
     उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में वक़्ते आहार कुछ सी रही थी कि मेरे हाथ से सुई गिर गई और चराग बुझ गया। इतने में हुज़ूरﷺ तशरीफ़ ले आए, आप के चेहरए ज़ियारत के अनवार से सारा कमरा जगमगा उठा और सुई मिल गई।
     मेने अर्ज़ की य या रसूलल्लाहﷺ ! आप का चेहरए अनवर कितना रोशन है। तो आप ने इरशाद फ़रमाया : ऐ आइशा ! हलाकत है उस के लिये जो बरोज़े क़यामत मुझे न देखेगा। मेने अर्ज़ की : बरोज़े क़यामत आप की ज़ियारत से कौन महरूम रहेगा ? इरशाद फ़रमाया : बखिल। मेने पूछा : या रसूलल्लाहﷺ ! बखिल कौन है ?
     इरशाद फ़रमाया : जो मेरा नाम सुन कर मुझ पर दुरुदे पाक न पढ़े।

*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 11*
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खादिमा ए दिने नबी ﷺ, *साइमा मोमिन*
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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_खुसूसी रफ़ाक़त व कुर्बते मुस्तफा_*
उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها (हुज़ूरﷺ के अय्यामे दुन्या के आखिरी लम्हात की केफिय्यात बयान करते हुए)फरमाती हैः (जब मिज़ाजे ररूल शिद्दते मरज़ की वजह से गिरानी महुसुस कर रहा था उस वकत ) "मेरे पास मेरे भाई हज़रते उब्दुर्रहमानرضي الله تعالي عنه आए, उन के हाथ में मिस्वाक थी । मेरे सरताज, सहिबे मेंराज उनकी तरफ़ देखने लगे। मैं जानती थी कि आप मिस्वाक पसन्द फ़रमाते है। मैं ने अर्ज कीः "क्या आप के लिये मिस्वाक लूं ? हुज़ूरﷺ ने अपने सर मूबारक से हां का इशारा फ़रमाया , तो मैं ने हज़रते अब्दुर्रहुमानرضي الله تعالي عنه से मिस्वाक ले ली वोह हुज़ूरﷺ को सख़्त महसूस हूइ। मै ने अर्ज़ की "क्या मैं इसे नर्म कर दूं ?" हजूरﷺ ने सर के इशारे से फ़रमाया : "हां।'' मै ने मिस्वाक(चबा कर) नर्म की। हूज़ूरﷺ के सामने पानी का एक पियाला रखा हूवा था, हूज़ूरﷺ उस मे दस्ते अक़दस दाखिल करते और अपने चेहरए अन्वर पर मस करते और फरमाते : अल्लाह के सिवा कोई मा'बूद नही. *बेशक मौत के लिये सख्तिया है.* फिर अपना दस्ते अक़दस बूलन्द कर के अर्ज़ करने लगे : *रफीके आ'ला में* यहां तक कि हूज़ूरﷺ का विसाल हो गया I''
         उम्मूल मूआमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फ़रमाती हैः की नबिय्य मूकर्रम, नूरे मूजस्समﷺ ने मेरे घर, मेरी बारी के दिन, मेरी गरदन और सीने के दरमियान विसाल फ़रमाया और अल्लाह ने मौत के वक्त़ मेरा और हूज़ूरﷺ का लूआबे अक़दस मिला दिया I"
*फ़ेज़ोन आइशा सिद्दीका, 12*
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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_खसाइसे आइशा ब ज़बाने आइशा_* #01
     इब्ने स'दرضي الله تعالي عنه ने हूज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से नकल किया है कि हज़रते आइश़ा फ़रमाया करती र्थी कि मुझे तमाम अज़्वाजे मुतहहरात पर ऐसी 10 फ़जीलतें हासिल हैं जो दूसरी अज्वाजे मुतहहरात केा हसिल नहीं हूईः
(1)... हुज़ूरﷺ ने मेरे सिवा किसी दूसरी कंवारी औऱत से निकाह नहीं फ़रमाया ।
(2)... मेरे सिवा अज्वाजे मुतहहरात मे से कोई भी ऐसी नही जिस के माँ बाप दोनो मूहाजिर हो ।
(3)... अल्लाह ने मेरी बराअत और पाक दामनी का बयान आस्मान से कूरआन में नज़िल फ़रमाया I
(4)... निकाह से क़ब्ल हज़रते जिब्रईल ने एक रेशमी कपड़े में मेरी सूरत ला कर हूजूऱﷺ केा दिखला दी थी और आप तीन रातें खवाब में मूझे देखते रहे ।
(5)... में आरै हूज़ूरﷺ एक ही बरतन में से पानी ले ले कर गुस्ल किया करते थे ये शरफ़ मेरे सिवा अज्वाज़े मुत़हहरात में से किसी को भी नसीब नही हूवा ।
(6)... हूजूरे अक़दसﷺ नमाज़े तहज्जूद पढ़ते थे और मैं आप के अगे सोई रहती थी, उम्महातुल मुउमिनीन में से कोई भी हूजूर की इस करीमाना महूब्बत से सरफ़राज़ नहीं हूई।
(7)... मैं हूजूऱﷺ के साथ एक लिहाफ़ में सोती रहती थी और आप पर खूदा की वहूय नाज़िल हूवा करती थी येह वोह एज़ाजे खूदावन्दी हैं जो मेरे सिवा हूज़ूरﷺ की किसी ज़ौजए मुत्हहरा को हसिल नही थी।
(8)... वफाते अक़दस के वक़्त मैं हूजूरﷺ को अपनी गोदी में लिये हूए बैठी थी आरै आप का सरे अन्वर मेरे सीन्ना और ह़ल्क के दरमियान था और इसी हालत में हुजूरﷺ का विसाल हूवा ।
(9)... हूज़ूरﷺ ने मेरी बारी के दिन वफ़ात पाई ।
(10)... हूजूरे अक़दसﷺ की क़ब्रे अन्वर खास मेरे घर में बनी ।.

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*फ़ैज़ाने आइशा सिद्दीका, 13*
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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_तआरूफ़े आइशा सिदीक़ा_*
      उम्मुल मुअमिनीन हुज़रते आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها अमीरूल मुआमिनीन हज़रते अबु बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه की साहिब ज़ादी है इन की माँ का नाम "अम्मे रूमान'' हैं इन का निकाह हुज़ूरे अक़दसﷺ से क्ब्ले हिजरत मक्कए मुकर्रमा में हूवा था लेकिन काशानए नुबुव्वत में येह मदीनए मुनव्वरह के अन्दर शव्वाल 2 सि.हि. में आई येह हुजुरﷺ की महबूबा और बहूत ही चहीती बीवी है!
*✍🏽अइशा उम्मुल मुअमिनीन 380-382/4*
     हूज़ुरे अक़दासﷺ ने उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइश़ा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها के बारे में इर्शाद फरमाया : ऐ उम्मे स-लमा ! मुझे आइशा के बारे में कोई तक्लीफ़ न दो । अल्लाह की क़सम ! मुझ पर अइशा के सिवा तुम में से किसी बीवी के लिहाफ में वही नाजिला नाही हूई।
*✍🏽सहीह बूखारी  902,हादीस:3885*

*_आइशा की शाने इबादत व सख़ावत_*
     इबादत में भी अइशाرضي الله تعالي عنها का मार्तबा बहूत ही बुलन्द है ,आइशा के भतीजे हज़रते इमाम क़सिम बिन मुहम्मद बिन अबू बक्र सिद्दीकرضي الله تعالي عنه का बयान है कि हज़रते आइशा रोज़ाना बिला नाग़ा नमाजे तहज्जूद पढ़ने की पाबन्द थी और अक्सर रोज़ादार भी रहा करती थीI
     सखावता और स-दकातो खैरात के मूआ-मले में भी तमाम उम्महातुल मुअमिनीन में खास तोर पर बहूत मुमताज़ थी।
     उम्मे दर्राرضي الله تعالي عنها कहती है कि मैं हजरते आईशा के पास थी उस वक्त़ एक लाख दिरहम कही से आप के पास आए,आप ने उसी वक़्त उन सब दिरहमो को लोगो में तक्सीम कर दिया और एक भी घर में बाक़ी नहीं छोडा । उस दिन वोह रोज़ादार थी। मैं ने अर्ज़ किया कि आप ने सब दिरहामों को बांट दिया और एक दिरहम भी बाक़ी नही रखा ताकि आप गोश्त खरीद कर रोज़ा इफ्ताऱ करर्ती, तैा आप ने फ़रमाया कि तुम ने अगर मुझ से पहले कहा होता तो में एक दिरहम का गोश्त मंगा लेती।
     आपرضي الله تعالي عنها के फ़जाइलो मनाकिबा में बहूत सी हदीसे आई है।
     17 र-मजानुल मुबारक शबे सेह शम्बा (मंगल की रात) 57 या 58 हि. ,में मदीनए मुनव्वरह के अन्दर आपرضي الله تعالي عنها की वफात़ हूई । हजरते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप की वसिय्यत के मुताबिक रात में लोगों ने आप को ज़न्नतुल बकीअ के क़ब्रिस्तान में दूसरी आज्वाजे मात्हहरात की क़ब्रो के पहलू में दफ़न किया
*✍सीरते मुस्तफ़ा, 660-662*
*✍फ़ेज़ाने आझ्शा सिद्दीका-15,16*
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*फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_* #01
     (1)... एक रोज़ रसुले खुदाﷺ ने हज़रते सय्यि-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها से फ़रमायाः ऐ आइशा ! येह जिब्रईल हैं ,तुम्हें सलाम कहते हैं।
*✍फज़ल आईशा, 842,हदीस :388*

     (2)... हज़रते सय्यिदुना जिब्रईल सब्ज रेशमी कपड़े में हज़रते सय्यि-दतुना आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها की तस्वीर ले कर बारगाहे रिसालतﷺ में हाजिर हुए आरै अर्ज की : "येह दुन्या व आखिरत मे आप की ज़ौजा हैं।"
*✍एज़न, हदिस 389*

     (3)... हजरते सय्यिदूना अम्र बिन आसرضي الله تعالي عنه फरमाते हैःमैं ने बारगाहे रिसालत मे अर्ज कीः या रसुलल्लाहﷺ ! आप के नज़्दीक सब से प्यारा इन्सान कौन है ? फ़रमाया : आइश़ा ! मैं ने फिर पुच्छा : और मर्दों में से ? फ़रमाया : उन के वालिद (या'नी हजरते अबु बक्र सिद्दीक़ )!

     (4)... नबिय्ये अकरमﷺ ने अपनी लाडली शहज़ादी हज़रते सय्यि-दतुना फत़िमाرضي الله تعالي عنها को मुखात़ब कर के इर्शाद फरमायाः रब्बे का'बा की क़सम ! तूम्हारे वालिद केा आइशा बहूत ज़ियादा महबूब हैं।
*✍कीताबूल अलारीब, 468,हादीस3898*

     (5)... हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिकرضي الله تعالي عنه बयान करते है कि सरकारे मदीनाﷺ के पड़ासे में रहने वाला एक ईरानी जो शोरबा बहूत अच्छा बनाता था, एक दिन तसा ने रसुले खूदा के लिये बनाया और आप केा दा'वत देने हा़जिर हुवा तो आपﷺ ने इस्तिफ़्सात फ़रमायाः और क्या आइशा भी، अंर्ज की : नहीं । इस पर आपﷺ ने उस की दा'वत क़बूल करने से इन्कार कर दिया, उस ने दोबारा दांवत दी आपﷺ ने फिर दरयाफत फरमाया: आरै क्या अइशा भी ? उस ने इंनकार किया तो आपﷺ ने भी इन्कार फरमा दिया । उस ने तीसरी दफ़आ दा'वत दी आपﷺ ने फिर पुछाः क्या अइशा भी? उस ने अर्ज़ कीः जी हां। (इन की भी दा' वत है) तब आप दोनों एक दूसरे को थामते हूए अठे और उस के घर तशरीफ़ ले गएं।
*✍साहि मुसलीम, 808,हादिस:2034*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 17*
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*_​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​_* #06
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*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_*​​ #01
     (6)... अम्मुल मुअमिनीन बिन्ते अमीरूल मुअमिनीन हजरते र्सीय्य-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها ने अपने सरताज से अर्ज की : या रसुलल्लाहﷺ ! अल्लाह से मेरे लिये दूआ फरमाईये । आपﷺ ने बारगाहे खूदा मैं यूं इिल्तजा की : ऐ अल्लाह ! आइशा के अगले पिछले जाहिरी बतिनी गुनाह मूआफ फरमा दे। येह सुन कर हजरेत साय्यि -दूतुना आइशा हस कदर मुस्कुराई कि आप का सर अपनी गाेद में चला गया । हूजूरﷺ ने इर्शाद फरमाया : क्या तुम मेरी दूआ पर खूश होती हो ? अर्ज की : में आप की दूआ पर कंयू न खूश होउं ? तो २सुले करीमﷺ ने फ़रमाया :अल्लाह की क्सम ! बेशक हर नमाज़ में येह दूआ मेरी उम्मत के लिये है।
*✍सही इब्ने जहान सः1901,हादिसः4111*

     (7)... आइश़ाرضي الله تعالي عنها की फजीलत तमाम औरतों पर ऐसी है जैसे सरीद की सब खानों पर ।
*✍तीरमीज़ी स: 842,हदिसः 3886*

     शारेहे मिश्कात, हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा फरमाते है : हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها सूरत, सीरत, इल्म, अमल, फ़साहत, फ्तानत, ज़कावत, अक़्ल, हुज़ूरﷺ की महबूबिय्यत वगैरा हज़ारहा सिफ़ात की जामेअ है. हक़ ये है कि आप सारी औरतो हत्ता की खदीजतुल कुब्रा से भी अफज़ल है, आप बहुत अहादीस की जामेअ, उलुमे क़ुरआनीया की माहिर बीबी है.
     मजीद फरमाते है : आपرضي الله تعالي عنها के फ़ज़ाइल रैत के ज़र्रो, आसमान के तारो की तरह बे शुमार है, आप रब तआला का तोहफा है जो हुज़ूरﷺ को अता हुई. आप की इस्मत व इफ़्क़त की गवाही खुद रब तआला ने क़ुरआने मजीद में सूरए नूर में दी, हाला की जनाबे मरयम और युसूफ की इस्मत की गवाही बच्चे से दिलवाई गई.
     उम्मत को तयम्मुम की आसानी आपرضي الله تعالي عنها के सदके से मिली, हुज़ूरﷺ का विसाल आप के सीने पर हुवा. हुज़ूरﷺ की आखरी आराम गाह आप का हुजरा है, आप का लुआब हुज़ूरﷺ के लुआब के साथ विसाल के वक़्त जमा हुवा, आप के बिस्तर में वही आती थी, आप खुद सिद्दीक़ा है और सिद्दीक़ की बेटी है.
*✍🏽फैजाने आइशा सिद्दीक़ा, 18*
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*_फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​_* #07
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*_करामते आइशा सिद्दीक़ा_*
     हज़रते रुहुल अमिन का हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को सलाम कहना और आप के बिस्तर पर रसूले खुदा पर वही उतरना इन दो रिवायत को शैखुल हदिष मुफ़्ती अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैरहमा ने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की करामत में शुमार किया है और इस के इलावा आप की एक तीसरी करामत भि बयां फ़रमाई है।

*_आइशा की रहनुमाई से बारिश_*
     एक मर्तबा मदीने में बारिश नही हुई और लोग शदीद कहत मर मुब्तला हो कर बिलबिला उठे। जब लोग कहत की शिकायत ले कर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की खिदमत में पहुचे तो आप ने फ़रमाया की मेरे हुजरे में जहा हुज़ूरे अन्वरﷺ की क़ब्र है, उस हुजरए मुबारक की छत में एक सुराख कर दो ताकि हुजरए मुनव्वरह से आसमान नज़र आने लगे।
     चुनांचे जेसे ही लोगो ने छत में एक सुराख़ बनाया फौरन ही बारिश शुरू हो गई और अतराफे मदीना की ज़मीन सर सब्ज़ो शादाब हो गई और उस साल घास और जानवरो का चारा भी इस क़दर ज़्यादा हुवा की कसरते खुराक से ऊंट फर्बा हो गए और चर्बी की ज़्यादती से उन के बदन फूल गए।
*✍🏽सुनन अल-दारिमि, 58*

     हज़रत मुफ़्ती अहमद या खान नईमी अलैरहमा इस हदिष के तहत फरमाते है : मालुम हुवा की आसमानी आफत की शिकायत अल्लाह के मक़बूल बन्दों से कर सकते है।
     मजीद फरमाते है : सहाबा हुज़ूरﷺ की हयात शरीफ में हुज़ूरﷺ के तवस्सुल से दुआए मांगते थे। बादे वफ़ात जनाबे आइशा ने हुज़ूरﷺ की क़ब्र बल्कि इसकी खाक की बरकत से दुआ कराइ, ये भी दर हक़ीक़त हुज़ूरﷺ ही के वसीले से दुआ है।
     ये तरीक़ा बहुत मुबारक है, इस हदिष से चन्द मसअले मालुम हुए : एक ये की वफ़ात याफ्ता बुज़ुर्गो के वसीले से दुआए करना जाइज़ है। दूसरे ये की उन के तबर्रुकात के वसीले से दुआए करना जाइज़ बल्कि सुन्नते सहाबा है। तीसरा ये की बुज़ुर्गो की क़ब्रे बी इज़्ने इलाही दाफ़ेउल बला और मुश्किल कुशा है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 8/272*
*✍🏽फैज़ाबे आइशा सिद्दीक़ा, 19*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_आइशा का मुखालिफ ओर अम्मार बिन यासिर_*
     एक शख्स हज़रते अम्मार बिन यासिर के पास आ कर हज़रते आइशा सिद्दीक़ाके बारे में ना मुनासिब गुफ्तगू करने लगा, तो आप ने फ़रमाया : ओ,मर्दुद और बद तरीन आदमी! निकल जा, क्या तू महबूबे रसूल की तकलीफ का सब बनता है ?
*✍🏽तिर्मिज़ी, 873*

     हज़रते अम्मार बिन यासिर का ये तर्ज़े अमल हम सब के लाइके तक़लीद है अगर हमारे सामने कोई शख्स किसी की बुराई करे, चुगली खाए तो उसे फौरन रोक दिया जाए और अगर वो किसी अल्लाह वाले का बद गो हो तो उसे अपने से फौरन दूर कर दिया जाए की हुस्ने अख़लाक़, हुस्ने ऐतिक़ाद और हुस्ने अक़ीदत का यही तक़ाज़ा है।
     अल्लाह ने पारह 7, सूरतुल अनआम की आयत 68 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जो कहि तुजे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमो के पास न बैठ।*
     हज़रते अल्लामा मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : इससे मालुम हुवा की बुरी सोहबत से बचना निहायत ज़रूरी है। बुरा यार बुरे साप से बदतर है की बुरा साप जान लेता है और बुरा यार ईमान बर्बाद करता है।
*✍🏽तफ़सीरे नुरुल इरफ़ान*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 23*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #09
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*_आइशा का नेकी की दावत का ज़ज्बा_*
     हज़रते बनानाرضي الله تعالي عنها फरमाती है की वो उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास थी की आप की खिदमत में एक बच्ची लाइ गई जिस के पैर में झाझन (गुंगरू) थे जो आवाज़ कर रहे थे आप बोली की इसे मेरे पास हरगिज़ न लाओ मगर इस सूरत में की इस के झाझन तोड़ दिये जाए, मेने रसूलुल्लाहﷺ को फरमाते सुना की उस घर में फ़रिश्ते नहीं आते जिस में झाझन हो।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 226*

     देखा आप ने ! औरतो को ज़ेवरात की आवाज़े छुपाने का भी हुक्म है, इन्हें घर में चलने फिरने में भी इस क़दर ज़ोर से पाउ रखना की ज़ेवर की झंकार की आवाज़ गैर महरमो तक पहुचे मना है,
     अल्लाह फ़रमाता है :
*और ज़मीन पर पाउ ज़ोर से न रखे की जाना जाए उन का छुपा हुवा सिंगार।*
पारह, 18, सुरतुन्नूर, 31
     जनाब मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : यानी औरत घर के अंदर चलने फिरने में भी पाउ इस क़दर आहिस्ता रखे की इन के ज़ेवर की झंकार न सुनी जाए।
     मज़ीद फरमाते है : इस लिये चाहिए की औरते बाजेदार झांझन न पहने हदीस में है की अल्लाह उस क़ौम की दुआ नही क़बूल फ़रमाता जिन की औरते झांझन पहनती हो। इस से समझना चाहिए की जब ज़ेवर की आवाज़ अदमे कबूले दुआ की सबब है तो ख़ास औरत की आवाज़ और इस की बे पर्दगी केसी मुजिबे गजबे इलाही होगी, पर्दे की तरफ से बे परवाई तबाही का सबब है।
*✍🏽तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान, 18, सुरतुन्नूर, 31*
    
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इरशाद फरमाते है : बजने वाला ज़ेवर औरत के लिये इस हालत में जाइज़ है की ना महरमो मसलन खाला, मामू, चचा, फूफी के बेटो, जेठ, देवर, बहनोई के सामने न आती हो न के ज़ेवर की झंकार न महरम तक पहुचे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 22/128*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 24*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #10
*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सहाबा की मर्कज़ी दर्सगाह बारगाहे आइशा_*
     हज़रते अबू मूसा असअरीرضي الله تعالي عنه फरमाते है : हम असहाबे रसूल को किसी बात में इश्काल होता तो हम आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की बारगाह में सुवाल करते तो आप के पास से ही उस बात का इल्म पाते।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 873, हदीस : 3882*

     मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा बयान करदा रिवायत के तहत फरमाते है : असहाबे रसूलुल्लाह को किसी मसअले में कोई इश्काल होता और वो मुश्किल कहि हल न होती तो हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास हाज़िर होते, इन के पास या तो उस के मुतअल्लिक़ हदीस मिल जाती या किसी हदीस से उस मसअले का इस्तिम्बात मिल जाता। अज़ आदम ता ई दम (हज़रते आदम से ले कर आज तक) कोई बीबी ऐसी अलीमा फ़क़ीहा पैदा न हुई जेसी जनाबे हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها हुई।
     आपرضي الله تعالي عنها उलूमे क़ुरआनीया, उलूमे हदीस की जामेअ, बड़ी मुहद्दिसा, बड़ी फ़क़ीहा थी। सिर्फ एक मिसाल पेश करता हु : किसी ने अर्ज़ किया ऐ उम्मुल मुअमिनिन  ! क़ुरआन से मालुम होता है की हज व उम्रह में सफा व मरवा की सअय वाजिब नही, सिर्फ जाइज़ है क्यू की अल्लाह ने फ़रमाया : *इस पर गुनाह नही की इन दोनों के फेरे करे*, आपرضي الله تعالي عنها ने जवाब दिया : अगर ये सअय वाजिब न होती तो यु इरशाद होता *की इन के सअय न करने में कोई गुनाह नही*
     इस एक जवाब से उसूले फिक़्ह का कितना दकीक़ मसअला  हल फरमा दिया की वाजिब की पहचान ये है की इस के करने में सवाब, न करने में गुनाह, जाइज़ की पहचान ये है की उस के न करने में गुनाह न हो। यहाँ आयत में पहली बात फ़रमाई गई है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 1/505*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 28*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #11
*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_इल्मे आइशा के मुतअल्लिक़ 5 फरामिने मुबारका_*
     1. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर शे'र, तिब और फिक़्ह का आलिम किसी को नही पाया।

     2. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه से मरवी एक और रिवायत में तो मज़कूरा उलूम समेत दीगर उलूम का भी तज़किरा है, मेने लोगो में सिद्दीक़ा बिन्ते सिद्दीक़رضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को क़ुरआन, मीरास, हलाल व हराम, शे'र, अक़्वाले अरब और नसब का आलिम नही देखा।

     3. मसहूर हदीस व ताबेइ इमाम शहाबुद्दीन जोहरी अलैरहमा रिवायत करते है की नबिय्ये करीमﷺ का इरशाद है : इस उम्मत की तमाम औरतो ब शुमुल अज़्वाजे नबी के इल्म को अगर जमा कर लिया जाए तो आइशा का इल्म उन सब के इल्म से ज़्यादा होगा।

     4. हज़रते अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर में ने किसी भी खतीब को बलीग़ व ज़हीन नही देखा।

     5. हज़रते मूसा बिन तल्हाرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को फसीह व बलीग़ नही देखा।
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 31*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #12
*आइशा और वाक़ीआए इफ्क* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_वाक़ीआए इफ्क क्या है ?_*
     ये वाक़ीआ गज़्वाए बनी मुस्तलिक से वापसी पर हुआ। इसकी तफ़सील बयान करते हुए उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها इरशाद फरमाती है : सरवरे काएनातﷺ जब किसी सफर का इरादा फरमाते तो अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात के दरमियान कुरआ अंदाज़ी फरमाते उन में जिसका नाम निकल आता उसको अपने साथ सफर में ले जाते।
     आपﷺ ने गज़्वे में शिर्कत के लिये हमारे दरमियान तो उसमे मेरा नाम निकल आया, आयते हिजाब के नुज़ूल के बाद में रसूलुल्लाहﷺ के हमराह निकली। में कजावा में सुवार रहती और इसी में सफर करती। हम चले हत्ता की हुज़ूरﷺ उस गज़्वे से फारिग हो कर वापस हुए, हम वापसी पर जब मदीना के क़रीब आ गए तो आप ने उस रात वहा से कूच का ऐलान फ़रमाया।
     जब लोगो ने कूच का ऐलान किया तो में खड़ी हुई (और कज़ाए हाजत के लिये) लश्कर से दूर गई। जब में कज़ाए हाजत से फारिग हो कर अपने कजावे की तरफ वापस आई तो में ने अपने सीने को मस किया, क्या देखती हु के मेरा हार गम हो गया है में वापस अपने हार की तलाश में गई तो उसकी तलाश में देर हो गई और वो लोग जो मेरा कजावा उठाते थे आए, उन्होंने मेरा कजवा उठाया और ऊंट पर रख दिया उनका ख्याल था की में हौदज में हु। मुझे हार मिला और वापस लौटी तो देखा की लश्कर जा चूका था। मेने उस जगह का इरादा किया जहा में थी और मेरा ख्याल था की वो मुझे गुम पा कर मेरी तरफ वापस आएँगे इसी अस्ना में बेठे बेठे मुझ पर नींद ग़ालिब हुई और में सो गई।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 41*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*आइशा और वाक़ीआए इफ्क* #02
     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तल सुलमीرضي الله تعالي عنه लश्कर के पीछे आ रहे थे, वो सुब्ह के वक़्त मेरी जगह जगह के क़रीब आए और दूर से किसी सोए हुए इंसान का वुजूद देखा जब उन्हों ने मुझे देखा तो पहचान लिया, उन्होंने पर्दे हुक्म नाज़िल होने से पहले मंझे देखा था, और उन्होंने اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ पढ़ा तो में जाग गई मेने दुपट्टे से अपना चेहरा ढांप लिया। अल्लाह की क़सम ! हमने न तो कोई बात की और न ही मेने اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ के इलावा उनसे कोई बात सुनी। उन्होंने अपनी सुवारी को बिठाया, में उठी और उस पर सुवार हो गई और वो ऊंट पकड़ कर आगे आगे पैदल चलने लगे हत्तकी हम दोपहर की सख्त गर्मी में लश्कर के पास पहुचे जहा वो आराम के लिए उतरे हुए थे।
     आपرضي الله تعالي عنها फरमाती है : हलाक हुवा वो शख्स हलाक हुवा ! जिसने बोहतान बंधने में बहुत ज्यादा हिस्सा लिया था वो मुनाफ़िक़ीन का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य बिन सलुल था।
     उर्वह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه फर्मआते है : मुझे खबर दी गई की अब्दुल्लाह बिन उबय्य के पास इफ्क के मुतअल्लिक़ बाते की जाती और उन्हें फेलाया जाता, वो उनकी तौसीक करता, कान लगा कर उन्हें सुनता और आगे बयान करता।
     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : फिर हम मदीना आ गए। मदीना आने के बाद में एक महीना बीमार रही और लोग बोहतान लगाने वालो की गुफ्तगू में मशगूल थे। मुझे इसके मुतअल्लिक़ कुछ मालुम न था। हत्ता की जब में कमज़ोर हो गई तो मस्तिह के साथ मनासेअ की तरफ निकली, वो हमारी क़ज़ाए हाजत की जगह थी, हम रात को ही बाहर जाया करते थे और ये हमारे घरो के क़रीब बैतूल खला बनाने से पहले की बात है।  क़ज़ाए हाजत से फारिग जोन के बाद जब में और उम्मे मिस्तह अपने घर की तरफ वापस आ रही थी तो उम्मे मिस्तह मुझे अहले इफ्क के मुतअल्लिक़ बताया, इस बात ने मेरी बिमारी में और इजाफा कर दिया। जब में अपने घर वापस आई तो रसूले खुदाﷺ मेरे पास तशरीफ़ लाए, सलाम कहने के बाद मेरा हाल दरयाफ़्त फ़रमाया, मेने आपﷺ से अपने वालिदैन के घर जाने की इजाज़त तलब की। में चाहती थी की अपने वालिदैन से इस खबर की तस्दीक़ करू।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 42*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #14
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #03
     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : आपﷺ ने मुझे वालिदैन के पास जानेकी इजाज़त देदी जब में वहा गई तो मेंने अपनी वालिदा से कहा : लोग क्या बाते कर रहे है ? वालिदा ने कहा : इसकी परवा न करो, बखुदा ! कभी ऐसा भी होता है की कोई खूब सूरत औरत हो, उसके खावन्द को उससे महब्बत हो और उसकी सोकने भी हो तो वो उसके हक़ में बाते बनाती है और ऐब लगाती है।
     आइशाرضي الله تعالي عنها फरमाती है : मेने तअज्जुब से कहा : سبحان الله ! लोग ऐसी बाते करते है। फरमाती है में उस रात सुब्ह तक रोती रही की मेरे आसु नही रुकते थे और न ही मुझे नींद आई फिर में सुब्ह के वक़्त भी रोती रही।
     इस दौरान हुज़ूरﷺ ने हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم और उसामा बिन ज़ैदرضي الله تعالي عنه को तलब फ़रमाया, जब जब वही का सिलसिला रुका हुआ था आप ने अपनी अपनी बीवी के फ़िराक के मुतअल्लिक़ दरयाफ़्त फ़रमाया और मशवरा लिया। उसामा बिन ज़ैदرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया : हम हमतो उनमे भलाई ही जानते है। हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने अर्ज़ की : या रसूलुल्लाहﷺ ! अल्लाह ने आप पर तंगी नहीं फ़रमाई, उम्मुल मुआमिनिन के इलावा और भी बहुत औरते है और आप हज़रते बरीरा से दरयाफ़्त कर लीजिये वो आप से सच बोलेगी। तो हुज़ूरﷺ ने हज़रते बरीराرضي الله تعالي عنه को तलब फ़रमाया और फ़रमाया : ऐ बरीरा ! तुमने आइशा में कुछ देखा है जिस से तुझे कुछ शक होता है ? हज़रते बरीरा ने अर्ज़ की : अल्लाह की क़सम ! मेने हज़रते आइशा में कुछन्हि देखा, हा ! ये की वो कमसिन लड़की है आटा गूंध कर सो जाती है घरेलू बकरी आती है और आटा खा जाती है।
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 42*
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*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #15
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #04
     उम्मुल मुअमिनिनرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में उस रोज़ भी रोती रही मेरे आसु न रुकते थे और न ही मुझे नींद आती थी। आप ने फ़रमाया : मेरे वालीदेन सुब्ह के वक़्त मेरे पास आए हाला की इस तरह में मुसलसल दो रातो और एक दिन रोती रही थी मेरे आसु नही रुकते थे और न ही मुझे नींद अति थी हत्ता की में ने ख़याल किया की मेरा रोना मेरा जिगर फाड़ देगा।
     एक दफा मेरे वालीदेन के  पास बेठे थे और में रो रही थी इसी अस्ना में एक अन्सारिया औरत ने अंदर आने की इजाज़त मांगी मेने उसे इजाज़त दी तो उस ने भी मेरे साथ बेथ कर रोना शुरू कर दिया। हम इसी हालत में बेठे की रसूलुल्लाहﷺ हमारे पास तशरीफ़ लाए, सलाम करने के बाद तशरीफ़ फरमा हुए, हाला की जब से मेरे मुतअल्लिक़ किलो काल होती रही इससे क़ब्ल आप मेरे पास तशरीफ़ नही लाए थे। एक महीना इंतज़ार किया लेकिन मेरे मुआमले के मुतअल्लिक़ आप पर वही नाज़िल नही हुई।
     उम्मुल मुअमिनिनرضي الله تعالي عنها ने फ़रमाया : रसूलुल्लाहﷺ जब तशरीफ़ फरमा हुए तशह्हुद पढ़ा, फिर आपﷺ ने फ़रमाया : ऐ आइशा ! मुझे तुम्हारी तरफ से ऐसी ऐसी बाते पहुची है अगर तुम पाक दामन हो तो अनक़रीब अल्लाह तुम्हे बरी कर देगा और अगर तुम गुनाह में मुल्व्वास हो तो अल्लाह से इस्तिग़फ़ार करो और उसे के हुज़ूर तौबा करो क्यू की जब बन्दा ऐतिराफे जुर्म करने के बाद अल्लाह की तरफ रुजू करता है तो अल्लाह उसी की तौबा क़बूल फरमा लेता है।
     आपرضي الله تعالي عنها फरमाती है : जब आपﷺ ने अपना कलाम पूरा फ़रमाया मेरे आसु रुक गए हत्ता की में एक क़तरा आसु भी महसूस न करती थी।
     मेरा गुमान भी न था की अल्लाह मेरे मुआमले में वही नाज़िल फ़रमाएगा जिस की तिलावत की जाएगी मुझे इस बात की उम्मीद थी की रसूलुल्लाहﷺ नींद की हालत में ख्वाब देखेंगे जिस के ज़रिए अल्लाह मुझे बरी फरमा देगा। अल्लाह की क़सम ! नबियो के सालारﷺ इस मजलिस से अलाहदा न हुए और न ही घर वालो से कोई बाहर निकला था हत्ता की आप पर वही का नुज़ूल होने लगा, वही की सिद्दत से आपﷺ की वही हालत होने लगी जो होती थी हत्ता की सख्त सर्दी के दिन में कलाम की सकालत के बाईस जो आपﷺ पर नाज़िल किया गया, मोतियो की मिस्ल आप से पसीने के क़तरे गिर रहे थे।
     जब आपﷺ से वही की सिद्दत ज़ाइल हुई तो आप हस रहे थे और पहला कलिमा जो आप ने इरशाद फ़रमाया ये था : ऐ आइशा ! अल्लाह ने इस बोहतान से तुझे बरी कर दिया है।

*राईसुल मुनाफ़िक़ीन की नापाक साज़िश* अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 44*
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #05
_*रईसुल मुनाफ़िक़ीन की नापाक साज़िश*_
     मुनाफ़िक़ीन के सरदार अब्दुलाह बिन उबय्य ने इस वाक़ीए को हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها पर तोहमत लगाने का ज़रिआ बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चर्चा किया यहाँ तक की मदीने में हर तरफ इस इफ्तिरा और तोहमत का चर्चा होने लगा और बाज़ मुसलमान भी इस बद लगाम के दाम में आ गए और इन साहिबान की ज़बान से भी कोई कलिमा बे जा सरज़द हुआ।
     हुज़ूरﷺ को इस सर अंगेज़ तोहमत से बेहद रंज व सदमा पंहुचा और मुख्लिस मुसलमानो को भी इन्तिहाई रंजो गम हुवा। हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها मदीने पहुचते ही सख्त बीमार हो गई, और इन्हें इस तोहमत की बिलकुल खबर ही नही हुई।
     हुज़ूरﷺ ने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की बराअत और पाक दामनी का एलान करना मुनासिब न समझा और वही का इंतज़ार फाने लगे इस दौरान आपﷺ इस मुआमले में अपने मुख्लिस असहाब से मशवरा फरमाते रहे ताकि इन लोगो के खयालात का पता चल सके।

*_बद मज़्हबो के जहन्नमी करतुर_*
     वाक़ीआ सिर्फ इतना ही नही है, इस पर ही उस दौर के मुनाफ़िक़ीन ने उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها के पाक साफ़ दामन को दागदाग बनाने की नाकाम साज़िशे कर के नबी ऐ रहमतﷺ को इज़ा पहुचाई और यही काम आज कल के बाज़ बद मज़हब कर रहे है। अल्लाह हमें उन के शर से महफूज़ फरमाए।

     बहर हाल इस साजिश को बे निक़ाब करने वाले और हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की पाकबाज़ी को साबित करने वाले फरामिने इलाहिय्यह और अहादिशे नबवी, इस बयान का हिस्सा है, जो मुख़्तसर वज़ाहत के साथ ज़िक्र किया जाएगा, अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 45*
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #05
*_वाक़ीआए इफ्क के तनाज़ुर में शाने आइशा ब ज़बाने सहाबा_*
     हुज़ूरﷺ ने जब अमीरुल मुअमिनिन हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه से जब तोहमत के बारे में गुफ्तगू फ़रमाई तो उन्होंने अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाहﷺ ! जब अल्लाह को ये गवारा नही की आप के जिस्म पर मख्खी भी बेठ जाए क्यू की मख्खी नजासतो पर बैठती है तो भला जो औरत ऐसी बुराई की मूर्तक़िब हो खुदा कब और कैसे पसंद फ़रमाएगा की वो आप की ज़ौजिय्यत में रहे।
     हज़रते उष्माने गनीرضي الله تعالي عنه ने बारगाहे रिसालत में अर्स की : या रसूलुल्लाहﷺ ! जब अल्लाह ने आप के साए को ज़मीन पर नही पड़ने दिया की कहि ज़मीन पर नजासत न हो, हक़ तआला जब आप के साए की इतनी हिफाज़त फ़रमाता है तो आप के हरमे मोहतरम को ना शाइस्तगी से क्यू हिफाज़त न फ़रमाएगा।
     हज़रते अलियुल मुर्तज़ाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم अर्ज़ करते है : या रसूलुल्लाहﷺ ! एक मर्तबा आप की नालैने अक़दस में गेर ताहिर चीज़ लग गई थी तो रब्बे जलील ने हज़रते जिब्राईल को भेज कर आप को खबर दी की अपनी नालैन को उतार दे। इस लिये हज़रते आइशा معاذ الله अगर ऐसी होती तो ज़रूर अल्लाह आप पर वही नाज़िल फरमा देता की आप इनको अपनी ज़ौजिय्यत से निकल दे।
     हज़रते अबू अय्यूब अंसारीرضي الله تعالي عنه ने इस तोहमत की खबर सुनी तो उन्होंने अपनी बीवी से कहा की जो कुछ कहा जा रहा है क्या तुम्हे इल्म नही ? वो फरमाने लगी : अगर आप हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه की जगह होते तो क्या रसूले पाकﷺ की हरमे पाक के साथ ऐसा करते ? हज़रते अबू अय्यूबرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया हरगिज़ नही ! फिर फरमाने लगी : अगर हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की जगह में होती तो कभी रसूलुल्लाहﷺ के साथ ये खयानत न करती, जब की हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها मुझसे बेहतर और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه तुम से बेहतर है।
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 46*
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #06
*_अब जो सय्यिदह पर तोहमत लगाए वो काफ़िर है_*
     उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها पर लगाया जाने वाला इलज़ाम व बोहतान जब क़ुरआनी आयत, फरमाने मुस्तफा और अक़्वाले सहाबा की रु से सरासर झुटा साबित है तो हर मुसलमान पर लाज़िम है की वो हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को इस तोहमत से पाक और हर इलज़ाम से बरी जाने, अब आयते क़ुरआनीया से हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के अफ़िक़ा व तैय्यबा होना वाज़ेह तौर पर साबित है, معاذ الله अब भी अगर कोई आप को पाक साफ़ न जाने तो वो बेशक अपने आप को मोमिन और खादिमे अहले बैत समझता रहे, शरीअत उसे काफ़िर जानती है।

     आला हज़रत अलैरहमा फतावा रज़विय्या में इरशाद फरमाते है : उम्मुल मुअमिनिन सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को बोहतान लगाना क़ुफ़्रे खालिस है।
*फतावा रज़विय्या, 14/245*

     अहले बैते नुबुव्वत से महब्बत का ये मतलब नही की चन्द अफ़राद को छोड़ कर बाक़ी पर लानत तान शुरू कर दो, बल्कि गुलिस्ताने मुस्तफा का हर फूल ख्वाह अज़्वाजे मुतह्हरात हो, या औलादे रसूल या सहाबा सब के सब नेक व मक़बूले बारगाह और हमारे सरो के ताज व लाइके सद एहतिराम है। इन में से किसी एक के बारे में बुरा कहना गुस्ताखी व बे अदबी और जहन्नम में ले जाने वाला अमल है।
     अहले बैत से हक़ीक़ी महब्बत ये है की नबिय्ये पाक के घराने के हर फर्द ख्वाह वो आप की अज़्वाज हो या औलाद सब को महबूब जाना और माना जाए, और इस दरे दौलत के वाबस्तगान यानि सहाबए किराम को मुअज़्ज़म व मुकर्रम कहा और समझा जाए। ये है अहले बैते नुबुव्वत से हक़ीक़ी महब्बत जो की सिर्फ और सिर्फ अहले सुन्नत को नसीब हुई है।

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 53*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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