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Thursday 30 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख़्मी_*
हिस्सा~02
जेसे ही उबय्य बिन खल्फ़ आप को शहीद करने की निय्यत से आगे बढ़ा हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने अपने एक जा निशार सहाबी हज़रते हारिष बिन समा رضي الله تعالي عنه से एक छोटा सा नेज़ा ले कर उबय्य की गर्दन पर मारा जिस से वो तिलमिला गया।
गर्दन पर बहुत मामूली ज़ख्म आया और वो भाग निकला मगर अपने लश्कर में जा कर अपनी गर्दन के ज़ख्म के बारे में लोगो से अपनी तकलीफ और परेशानी ज़ाहिर करने लगा और बे पनाह ना क़ाबिले बर्दाश्त दर्द की शिकायत करने लगा।
इस और उसके साथियो ने कहा की "ये तो मामूली खराश है, तुम इस क़दर ओरेशां क्यू हो ?" उस ने कहा कि तुम लोग नही जानते कि एक मर्तबा मुझ से मुहम्मद ने कहा था कि में तुम को क़त्ल करूँगा इस लिये। ये तो बहर हाल ज़ख्म है मेरा ऐतिक़ाद है कि अगर वो मेरे ऊपर थूक देते तो भी में समझ लेता कि मेरी मौत यक़ीनी है।

इसका वाकिया कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 272*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-25
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②⑤_तर्जुमह*
और खुश खबरी दो उन्हें, जो मान गए और किये करनेके लायक काम, के बेशक उन्हीके लिये है जन्नते, बह रही है जिनके निचे नहरे। जब दिये गए उसमे कोई फल ग़िज़ा को, कह पड़े के ये वही है, जो दिये गए थे हमें पहलेसे। हाला के थे उसके हम शक्ल। और उन्हीके लिये उसमे बिविया है पाकदामन। और वो उस में हमेशा रहनेवाले है।

*तफ़सीर*
इस मौके पर काफ़िर लोग भी सुनले और ख़ास तौर पर खुश खबरी सुनादो मुसलमानो को (उन्हें जो मान गए) अल्लाह और रसूल को और इसी पर नही रह गए। बल्कि काम किये और कैसे काम किये ? जो काम (करने के लायक) है, जिसमे नालायकी और बदी न हो।  बल्कि नेक ही नेक हो। ऐसे लियाकत वालो से कह दो के बेशक वो सुब्ह (उन्हीके लिये है) बगैर किसी परेशानी के (जन्नते) सदा बहार बाग़। कैसे हरे भरे के (बह रही है जिनके) दरख्तो और मकानात के निचे पाकीज़ा शरबत, शहद, दूध, पानीकी बेमीस्ल नहरे।
उसके फलो का ये हाल है के (जब दिए गये) और उन्होंने पाया उस जन्नत मेसे कोई फल, खूब जी भर के खाए और मज़े पाए। तो बे साख्ता वो बोल उठे ये फल तो बिलकुल वही फल है जो अभी अभी दिए गए थे हमको और हम उसको खा चुके है। हाला के वाकिया ये है के जो पहले दिए गये थे और वो खा भी चुके, वो और था, और ये और है। अलबत्ता दोनों हम शक्ल है। ताके नई नई शक्लो को देख कर किसी फल के खाने में आदमी होनेकी वजह से ज़िज़क न हो। और नया नया ज़ायक़ा पाकर और ज़्यादा ख़ुशी हो।
और जन्नत में मकानात, नहरे, फल यही नहीं है। बल्कि और भी सामान है। चुनान्चे जन्नतियो के लिये उस जन्नत में (बिविया है) हरे और उनकी दुन्यवाली नेक बिविया, सब की सब खूबसूरत, नेकसिरत, पाकीज़ा, औरतो की नापाकियो से पाक दामन।
और जन्नत को कभी फना नही है। वो हमेशा रहेगी  और जन्नती भी फना न होंगे। बल्कि जन्नतमे ये हमेशा रहेंगे।
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Wednesday 29 June 2016

फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सब्ज़ झन्डा_*
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه ने रिवायत किया है, हुज़ूर ﷺ का फरमान है :
जब शबे क़द्र आती है तो अल्लाह के हुक्म से हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम एक सब्ज़ रंग का झन्डा लिये फरिश्तों की बहित बड़ी फ़ौज के साथ ज़मीन पर नुज़ूल होते है और उस सब्ज़ झन्डे को काबाए मुअज़्ज़्म पर लहरा देते है।
हज़रते जिब्राइल के 100 बाज़ू है, जिन में से 2 बाज़ू सिर्फ इसी रात खोलते है। वो बाज़ू मशरिक व मगरिब में फेक जाते है। फिर जिब्राइल फरिश्तों को हुक्म देते है के जो कोई मुसलमान आज रत क़याम, नमाज़ या ज़िकरुल्लाह में मशगूल है उससे सलाम व मुसाफ़हा करो। नीज़ उनकी दुआओ पर आमीन कहो।
चुनान्चे सुबह तक यही सिलसिला रहत है। सुबह होने पर हज़रते जिब्राइल फरिश्तों को वापसी का हुक्म देते ही। फ़रिश्ते ऱज़ करते ही, अल्लाह के प्यारे हबीब ﷺ की उम्मत की हाजत के बारे में क्या किया ? हज़रते जिब्राइल  फरमाते है, अल्लह ने इन लोगो पर खुसूसी नज़रे करम फ़रमाई और 4 किस्म के लोगो के इलावा तमाम कोंगो को मुआफ़ फरमा दिया।
1 शराब का आदि
2 वालिदैन के ना फरमान
3 रिश्तेदारो से तअल्लुक़ तोड़ने वाले
4 आपस में बुग्ज़ व किना रखते है और आपस में कतए तअल्लुक़ करने वाले।
*✍🏽शोएबुल ईमान 3/336*
*✍🏽फैजाने सुन्नत 1138*
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सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख़्मी_*
हिस्सा~01
इसी सरासिमगि और परेशानी के आलम में जब कि बिखरे हुए मुसलमान अभी हुज़ूर ﷺ के पास जमा भी नही हुए थे कि अब्दुल्लाह बिन कमीआ जो कुरैश के बहादुरो में था। उस ने ना गहा हुज़ूर ﷺ को देख लिया। एक दम बिजली की तरह सफों को चीरता हुवा आया और हुज़ूर ﷺ पर क़ातिलाना हमला कर दिया। ज़ालिम ने पूरी ताकत से आप ﷺ के चेहरए अन्वर पर तलवार मारी जिस से खौद की दो कड़िया रूखे अन्वर में चुभ गई।

एक दूसरे काफ़िर ने आप के चेहरए अक़दस पर ऐसा पथ्थर मारा कि आप ﷺ के दो दन्दाने मुबारक शहीद, और निचे का मुक़द्दस होंट ज़ख़्मी हो गया।

इसी हालत में उब्य्य बिन खल्फ़ मलऊन अपने घोड़े पर सुवार हो कर आप को शहीद कर देने की निय्यत से आगे बढ़ा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 271*
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मदनी पंजसुरह

*आफतें दूर होने का आसान विर्द*
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अलियिल मुर्तज़ा शेरे खुदा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
ऐ अली ! में तुम्हे ऐसे कलिमात न बता दू जिन्हें तुम मुसीबत के वक़्त पढ़ लो। अर्ज़ किया ज़रूर इरशाद फरमाइये ! आप पर मेरी जान क़ुर्बान ! तमाम अच्छाइयां मेने आप ही से सीखी है।
इरशाद फ़रमाया जब तुम किसी मुसीबत में फस जाओ तो इस तरह पढ़ो :

*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ وَلَاحَوْل وَلَاقُوَّةَ اِلَّا بِااللّٰهِ الْعَلِىِّ  الْعَظَىْمِ*

पस अल्लाह इसकी बरकत से जिन बालाओं को चाहेगा दूर फरमा देगा।
*✍🏽मदनी पंजसुरह 10*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-25
*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②④_तर्जुमह*
पस अगर तुम न कर सके, और हरगिज़ न कर सकोगे, तो डरो उस आग से, वो जिसका ईंधन इन्शान और संगीन मुर्तिया है, तैयार कर रख्खी है काफिरो के लिये।

*तफ़सीर*
याद रखो के (अगर तुम न कर सके) और ये भी याद रखो, हम साफ़ बताए देते है के क़यामत तक तुम (हरगिज़ न कर सकोगे), तो तुम खुद ही अपनी हड्डियों, बोटियों पर रहम खाओ और डरो जहन्नम की आग से जो भड़क रही है, वो जहन्नम जिसको जलाने ने लिये (ईंधन) तुम (इंसान) हो और तुम्हारी (संगीन मुर्तिया है) जिनको पूजने के लिये तुमने तराश लिया है।
उस जहन्नम की आगको ये न समझ ना के आइन्दा पैदा की जाएगी। बल्कि वो तो पहले ही से (तैयार कर रखी है) तुम सब (काफिरो के लिये)। उसमे कोई बदनसीब मुसलमान अगर किसी बदअमली से गया, तो बिल आखिर निकाल लिया जाएगा और काफिरो का तो वो घर ही है।
वो उसमे हमेशा रहेंगे।
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Tuesday 28 June 2016

फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_तमाम बलाइयो से महरूम कौन ?_*
हज़रत अनस बिन मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है, एक बार जब माह रमज़ान तशरीफ़ लाया तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया :
तुम्हारे पास एक महीना आया है जिस में एक रात ऐसी भी है जो 1000 महीनो से अफज़ल है जो शख्स उस रात से महरूम रह गया, गोया तमाम की तमाम भलाई से महरूम रह गया, और उसकी भलाई से महरूम नही रहता एमजीआर वो शख्स जो हकीकतन महरूम है।
*✍🏽सनन इब्ने माजह 2/298*
*✍🏽फैजाने सुन्नत 1136*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~24
*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ②③_तर्जुमह*
और अगर हो तुम किसी शक में उससे, जो उतारा हमने अपने ख़ास बन्दे पर, तो ले आओ एक ही सूरत उसकी तरह, और दुहाई दो अपने साख्ता मददगारों की, अल्लाह को छोड़ कर, अगर तुम सच्चे हो।

*तफ़सीर*
(और अगर हो तुम) अय मुन्किरो ! किसी किस्मके (किसी शकमे उस) क़ुरआन की तरफ से (जो उतरा) है (हमने अपने ख़ास बन्दे) मुहम्मद पर, जो अपने बन्दा होने में बे मिस्ल व यकता है। जिसकी बंदगी तक दूसरे की रसाई {पहोच} नही। तो फिर सामबे आओ और ज़रा ले तो आओ पूरा क़ुरआन नही, बल्कि बस एक ही सूरत फ़साहत व बलाग़त {आसान मधुरवाणी}, हिकमत व रूहानियत, तकदिसे रीफअत {उच्च पाकी}, ग़ैब की खबर देने में उस क़ुरआन की किसी सूरत की तरह और तुम्हारी जान, अपनी ताकत से, ये बाहर हो तो इस मुश्किल में खूब (दुहाई दो) और मअबूद जान कर पुकारो, फरियाद करो और मदद मांगो (अपने सख्त) बनावटी मअबूदो की, जिनको तुमने अपना मअबूद बना रख्खा है, (अल्लाह को छोड़ कर) उस मअबूदे बरहक़ की खुदाई से मुह फेर कर, अय दुन्या भर के काफिरो ! क़ुरआन व रसूल व मअबूद पर जबसे इनकार कर देने में तुम हो सच्चे।
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नमाज़ के अहकाम

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_मजबूरी में अदा का सवाब मिलेगा या नही ?_*
आँख न खुलने की वजह से नमाज़े फ़ज्र क़ज़ा हो जाने की सूरत में अदा का सवाब मिलेगा या नही ?
इस ज़िम्न में आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है :
रहा अदा का सवाब मिलना ये अल्लाह के इख़्तियार में है। अगर वो जानेगा की इसने अपनी जानिब से कोई कोताही न की, सुबह तक जागने के क़स्द से बेठा था और बे इख़्तियार आँख लग गई तो ज़रूर उस पर गुनाह नही।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/161*

नबी ﷺ फरमाते है :
नींद की सूरत में कोताही नही, कोताही उस शख्स की है जो जागते में नमाज़ न पढ़े हत्ता कि दूसरी नमाज़ का वक़्त आ जाए।
*✍🏽मुस्लिम 344*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 244*
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सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हिस्सा~02
हज़रते अबू तल्हा رضي الله تعالي عنه का बयान है की हज़रते अम्र बिन जमुह رضي الله تعالي عنه को देखा की वो जंग में ये कहते हुए चल रहे थे की "खुदा की क़सम! में जन्नत का मुश्ताक़ हु"। उनके साथ साथ उनको सहारा देते हुए उनका लड़का भी इन्तिहाई शुजाअत के साथ लड़ रहा था यहाँ तक कि ये दोनों शहादत से सरफ़राज़ हो कर बागे बहिश्त में पहुच गए।
लड़ाई खत्म हो जाने के बाद इनकी बीवी हिन्द मेंदाने जंग में पहुची और उस ने एक ऊंट पर इन की और अपने भाई और अपने बेटे की लाश को लड़ कर दफन के लिये मदीना लाना चाहा तो हज़ारो कोशिशो के बा वुजूद किसी तरह भी ऊंट एक क़दम भी मदीने की तरफ नही चला।
हिन्द ने जब हुज़ूर ﷺ से ये माजरा अर्ज़ किया तो आप ने फ़रमाया कि ये बता क्या अम्र बिन जमुह ने घर से निकलते वक़्त कुछ् कहा था ? हिन्द ने कहा की जी हा ! वो ये दुआ कर के घर से निकले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर।
आप ने फ़रमाया कि यही वजह है कि ऊंट मदीने की तरफ नहीं चल रहा है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 270*
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फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सरकार ﷺ रंजीदा हो गए_*
तफ़सीरे आजिज़ी में है के जब हमारे आक़ा ﷺ ने साबिका अम्बियाए किराम की उम्मतों की तवील उम्रों और अपनी उम्मत की कलिल उम्रों को मुलाहजा फ़रमाया तो गम खवारे उम्मत का मुबारक दिल शफ़क़त से भर आया और आप रंजीदा हो गए के मेरे उम्मती अगर खूब खूब नेकिया करे जब भी उन की बराबरी नही कर सकेंगे।
चुनान्चे अल्लाह की रहमत जोश पर आई और उस ने अपने प्यारे हबीब ﷺ को लै-लतुल क़द्र अता फ़रमाई।
*तफ़सीरे आजिज़ी 4/434*
*फैजाने सुन्नत 1128*
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Monday 27 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हज़रते अम्र बिन जमुह अन्सारी رضي الله تعالي عنه लंगड़े थे, ये घर से निकलते वक़्त ये दुआ मांग कर चले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर, इन के चार फरजंद भी जिहाद में मसरूफ़ थे। लोगो ने इन कक लंगड़ा होने की बिना पर जंग करने से रोक दिया तो ये हुज़ूर की बारगाह में गिड़गिड़ा कर अर्ज़ करने लगे की या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझ को जंग में लड़ने की इजाज़त अता फरमाइये, मेरी तमन्ना है कि में भी लंगड़ाता हुवा बागे बिहिश्त में चला जाऊ।
उनकी बे क़रारी और गीर्य व ज़ारी से हुज़ूर ﷺ का कल्बे मुबारक मुतास्सिर हो गया और आप ने उनको जंग की इजाज़त दे दी। ये ख़ुशी से उछल पड़े और अपने एक फरजंद को साथ ले कर काफिरो के हुजूम में घुस गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 270*
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नमाज़ के अहकाम

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अगर नमाज़ पढ़ना भूल जाए तो..?_*
हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
जो नमाज़ से सो जाए या भूल जाए तो जब याद आए पढ़ ले कि वोही उसका वक़्त है।
*मुस्लिम 346*

फुक़हाए किराम फरमाते है : सोते में या भूले से नमाज़ क़ज़ा हो गई तो उसकी क़ज़ा पढ़नी फ़र्ज़ है अलबत्ता क़ज़ा का गुनाह उस पर नही मगर बेदार होने और याद आने पर अगर वक़्ते मकरूह न हो तो उसी वक़्त पढ़ ले ताखीर मकरूह है।
*बहारे शरीअत 1/701*
*नमाज़ के अहकाम 243*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~23
*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②②_तर्जुमह*
जिसने बनाया तुम्हारे लिये ज़मीनको फर्श और आसमान को कुब्बह, और उतारा आसमान से पानीको। फिर निकाले उससे कई फल, ग़िज़ा तुम्हारे लिये। तो न बनाओ अल्लाह के लिये मुद्दे मुक़ाबिल, जब के तुम खूब जान रहे हो।

*तफ़सीर*
ये तुम्हारा परवरदिगार ही है, जिसने बनाया अपने लिये नही, उसे क्या ज़रूरत है? बल्कि तुम्हारे लिये अपने करमसे ज़मीनको फर्श बनाया, के सारी ज़मीन तुम्हारी आँखों के सामने बिछी हुई है।
और आसमान को कुब्बह बे-सुतून का गुम्बद और फिर करम पर करम है के बरसाया बादलो को बना कर आसमान की तरफ से पानी को।
और इतना ही नही, बल्कि फिर पैदा फ़रमाया उस बारिश से तरह तरह के मुख़्तलिफ़ फल, ताके खाना और मोहय्या फरमा दे तुम्हारे लिये।
तो समजदारी से काम लो और हरगिज़ न बनाओ अपनी मनघडत से अल्लाह के लिये कोई भी बराबरी वाला जब के तुम खुद भी अच्छी तरहसे खूब जान रहे हो के ख़ालिक़ की बराबरी का कोई मख्लूक़ हो ही नहीं सकता। और जिसको तुम बराबरी वाला बनाए हो, सब अल्लाह तआला ही की मख्लूक़ है।
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फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह क़ुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है :
बेशक हमने इसे शबे क़द्र में उतरा और तुम ने क्या जाना, क्या शबे क़द्र ? शबे क़द्र हज़ार महीनो से बेहतर है, इस में फ़रिश्ते और जिब्राइल अलैहिस्सलाम उतरते है अपने अपने रब के हुक्म से, हर काम के लिये, वो सलामती है सुबह चमकने तक।
*पारह 30, सूरतुल क़द्र*

शबे क़द्र की क़दर अहम रात है के इस की शान में अल्लाह ने पूरी एक सूरत नाज़िल फ़रमाई। इसी सूरए मुबारका में अल्लाह ने इस मुबारक रात की कई खुसुसिय्यत इरशाद फ़रमाई है।
मुफ़स्सिरीने किराम इसी सूरए क़द्र के ज़िम्न में फरमाते है, इस रात में अल्लाह ने क़ुरआने मजीद को लौहे महफूज़ से आसमाने दुन्या पर नाज़िल फ़रमाया और फिर तकरीबन 23 बरस की मुद्दत में अपने प्यारे हबीब ﷺ पर इसे ब तदबीर नाज़िल किया।
*तफसिरे सावी 6/2398*
*फैजाने सुन्नत 1127*
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Sunday 26 June 2016

फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_83 साल 4 माह से ज़्यादा इबादत का सवाब_*
इस मुक़द्दस रात को हरगिज़ हरगिज़ गफलत में नही गुज़ारना चाहिये। इस रात इबादत करने वाले को 1000 माह यानी 83 साल 4 माह से भी ज़्यादा इबादत का सवाब अता किया जाता है।
और इससे ज़्यादा का इल्म अल्लाह जाने या इसके बताए से उसके हबीब जाने के कितना सवाब है।
इस रात में हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम और फ़रिश्ते नाज़िल होते है और फिर इबादत करने वालो से मुसाफह करते है।
इस मुबारक शब् का हर एक लम्हा सलामती है और ये सलामती सुब्हे सादिक़ तक बर क़रार रहती है। ये अल्लाह का खासुल ख़ास करम है के ये अज़ीम रात सिर्फ औने हबीब को और आप के सड़के में आप की उम्मत को अता की गई है।
*फैजाने सुन्नत 1127*
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नमाज़ के अहकाम

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*हज़ारो बरस के अज़ाब का हक़दार*
मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा फरमाते है :
जिसने कसदन एक वक़्त की नमाज़ छोड़ी हज़ारो बरस जहन्नम में रहने का मुस्तहिक़ हुवा, जब तक तौबा न करे और उस की क़ज़ा न कर ले, मुसलमान अगर उसकी ज़िन्दगी में उसे यक-लख्त छोड़ दे उससे बात न करे, उसके पास न बेठे, तो ज़रूर वो इस का सज़ावार है।
अल्लाह तआला फ़रमाता है :
_और जो कही तुझे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमो के पास न बेठे।_
*पारह 7*
*✍🏽फतावा रज़विय्या 9/158*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 242*
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तफ़सीरे अशरफी


*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②①_तर्जुमह*
अय लोगो ! पूजो अपने परवरदिगार को, जिसने पैदा फ़रमाया तुम्हे और उन्हें, जो तुम्हारे पहले हुए, के उम्मीद रख सको के डरने लगोगे।

*तफ़सीर*
अय मोमिन व काफ़िर सब (लोगो ! पूजो) और सिर्फ अल्लाह तआला को पूजो, के उसके सिवा कोई इलाह व मअबूद नही है, न हो सकता है। मअबूदियत का ऐअतेकाद {उसके खुदा होनेका अक़ीदा} रख कर, उसका कुर्ब चाहने के लिये जो करो, वही तुम्हारी पूजा है। तुम अपने पालनेवाले अल्लाह के एहसानात तो देखो के वही है, जिसने पैदा फ़रमाया तुम्हे और सिर्फ तुम ही को नही, बल्कि उन्हें भी, जो तुम्हारे पहले सारी काएनात में पैदा हुए है। इस इबादत की बदौलत तुम इस क़ाबिल होंगे के उम्मीद रख सको, के डरने लगोगे और खुदाका खौफ तुम्हारे दिलमे पैदा हो जाएगा।
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मदनी पंजसुरह

*आफतें दूर होने का आसान विर्द*
*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अलियिल मुर्तज़ा शेरे खुदा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
ऐ अली ! में तुम्हे ऐसे कलिमात न बता दू जिन्हें तुम मुसीबत के वक़्त पढ़ लो। अर्ज़ किया ज़रूर इरशाद फरमाइये ! आप पर मेरी जान क़ुर्बान ! तमाम अच्छाइयां मेने आप ही से सीखी है।
इरशाद फ़रमाया जब तुम किसी मुसीबत में फस जाओ तो इस तरह पढ़ो :

*بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ وَلَاحَوْل وَلَاقُوَّةَ اِلَّا بِااللّٰهِ الْعَلِىِّ  الْعَظَىْمِ*

पस अल्लाह इसकी बरकत से जिन बालाओं को चाहेगा दूर फरमा देगा।
*मदनी पंजसुरह 10*
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Saturday 25 June 2016

फैजाने लै-लतुल क़द्र


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

लै-लतुल क़द्र इन्तिहाई बरकत वाली रात है। इसको लैलतुल क़द्र इस लिये कहते है के इसमें साल भर के अहकाम नाफ़िज़ किये जाते है। यानी फ़रिश्ते रजिस्टरमे आइन्दा साल होने वाले मुआमलात लिखते है।
उसे (यानी उमूरे तकदीर को) मुक़र्रब फरिश्तों के रजिस्टरों में ज़ाहिर कर दिया जाता है।
*तफ़सीरे सावी 6/2398*

हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान फरमाते है : इस शब को लैलतुल क़द्र चन्द वुजुहात से कहते है।
1 इसमें साले आइन्दा के उमूर मुकर्रर करके मलाइका के सुपुर्द कर दिये जाते है। क़द्र ब माना तक़दीर या क़द्र ब माना इज़्ज़त यानी इज़्ज़त वाली रात।
2 इसमें क़द्र वाला क़ुरआने पाक नाज़िल हुवा।
3 जो इबादत इसमें की जावे उस की क़द्र है।
4 क़द्र ब माना तंगी यानी मलाइका इस रात में इस क़दर आते है के ज़मीन तंग हो जाती है। इन वुजुह से इसे शबे क़द्र यानी क़द्र वाली रात कहते है।
*मवाइज़े निमिय्या 62*

बुखारी शरीफ की हदीश में है जिसने इस रात में ईमान और इखलास के साथ क़याम किया तो उसके उम्र भर के गुज़श्ता गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
*सहीह बुखारी 1/660*
*फैजाने सुन्नत 1126*
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सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*ज़ियाद बिन सकन की शुजाअत और शहादत*
एक मर्तबा कुफ्फार का हुजूम हमला आवर हुवा तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि "कौन हे जो मेरे ऊपर अपनी जान क़ुर्बान करता ह?" ये सुन कर हज़रते ज़ियाद رضي الله تعالي عنه 5 अन्सारियो को साथ ले कर आगे बढ़े और हर एक ने लड़ते हुए अपनी जाने फ़िदा कर दी। हज़रते ज़ियाद ज़ख्मो से लाचार हो कर ज़मीन पर गिर पड़े थे मगर कुछ कुछ जान बाक़ी थी,
हुज़ूर ﷺ ने हुक्म दिया कि उनकी लाश को मेरे पास उठा लाओ, जब लोगो ने उन की लाश को बारगाहे रिसालत में पेश किया तो हज़रते ज़ियाद ने खिसक कर महबूबे खुदा ﷺ के क़दमो पर अपना मुह रख दिया और इसी हालत में उन की रूह परवाज़ कर गई।

अल्लाहु अकबर ! हज़रते ज़ियाद बिन सकन رضي الله تعالي عنه की इस मौत पर लाखो जिंदगियां क़ुर्बान ! सुब्हान अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 268*
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नमाज़ के अहकाम

*कज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*सर कुचल ने की सज़ा*
हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम से फ़रमाया :
आज रात दो शख्स (यानी जिब्राइल अलैहिस्सलाम और मीकाइल अलैहिस्सलमा) मेरे पास आए और मुझे अर्ज़े मुक़द्दसा में ले आए। में ने देखा कि एक शख्स लेता है और उस के सिरहाने एक शख्स पथ्थर उठाए खड़ा है और पै दर पै पथ्थर से उसका सर कुचल रहा है, हर बार कुचलने के बाद सर ठीक हो जाता है।
मेने फरिश्तों से कहा : ये कौन है ?
उन्होंने अर्ज़ की : आगे तशरीफ़ ले चलिये (मज़ीद मनाज़िर दिखाने के बाद) फिरिश्तो ने अर्ज़ की, की : पहला शख्स जो आप ने देखा ये वो था जिस ने क़ुरआन पढ़ा फिर उसको छोड़ दिया था और फ़र्ज़ नमाज़ों के वक़्त सो जाता था इस के साथ ये बर्ताव क़यामत तक होगा।
*✍🏽बुखारी 1-4/425-468*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 241*
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बुग्ज़ व कीना

*किने का इलाज*
हिस्सा~01
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*ईमान वालो के किने से बचने की दुआ कीजिये*
हर इस्लामी भाई को चाहिये कि ईमानवालो के *किने* से बचने की दुआ करता रहे, दरजे ज़ैल मुख़्तसर क़ुरआनी दुआ को याद कर लेना और वक़्त फ वक़्तन पढ़ना भी बहुत मुफीद है।
पारह 28 सूरए हशर की आयत 10

*وَلَا تَجْعَلْ فِى قُلُوْبِنَا غِلًّا لِّلَّذِ ىْنَ اٰمَنُوْا رَبَّنَآ اِنَّكَ رَءُوْفٌ رَّحِىْمٌ o*
*वला तजअल फि-क़ुलूबिना गिल-ल ल्लीलज़ीन आमनु रब्बना इन्नक राऊफुर रहीम*

_तर्जमह_
और हमारे दिल में ईमान वालो की तरफ से *किना* न रख, ऐ रब्ब हमारे ! बेशक तू ही निहायत मेहरबान रहम वाला है।
*✍🏽बुग्ज़ व किना 40*
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मदनी पंजसुरह

*खूब बरकत होगी*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

कारोबार में जाईज़ लेन देन के वक्त यानी जब किसी से ले तब और जब किसी को दे तब
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
पढ़े इन्शा अल्लाह खूब बरकत होगी.
*✍🏽सहीह बुखारी 3/591*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 5*
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Friday 24 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

जंग जारी थी और जा निशाराने इस्लाम जो जहां थे वही लड़ाई में मसरूफ़ थे मगर सब की निगाहें इन्तिहाई बे क़रारी के साथ जमाले नुबुव्वत को तलाश करती थी, ऐन मायूसी के आलम में सब से पहले जिसने हुज़ूर ﷺ का जमाल देखा वो हज़रते काब बिन मालिक رضي الله تعالي عنه की खुश नसीब आँखे है,
उन्होंने हुज़ूर ﷺ को पहचान कर मुसलमानो को पुकारा की ऐ मुसलमानो ! इधर आओ, रसूले खुदा ﷺ ये है, इस आवाज़ को सुन कर तमाम जा निशारो में जान पड़ गई और हर तरफ से दौड़ कर मुसलमान आने लगे, कुफ्फार ने भी हर तरफ से हमला रोक कर हुज़ूर ﷺ पर क़ातिलाना हमला करने के लिये सारा ज़ोर लगा दिया।
लश्करे कुफ्फार का दल बादल हुजूम के साथ उमंड पड़ा और बार बार मदनी ताजदार पर यलगार करने लगा मगर जुल फ़िक़ार की बिजली से ये बादल फट कर रह जाता था।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 268*
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नमाज़ के अहकाम

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*जहन्नम की खौफ नाक वादी*
हज़रत मौलाना मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है :
जहन्नम में वेल नामी एक खौफनाक वादी है जिसकी सख्ती से खुद जहन्नम भी पनाह मांगता है। जान बुझ कर नमाज़ क़ज़ा करने वालेको उस वादी में डाला जायेगा।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/347*

*पहाड़ गर्मी से पिघल जाए*
हज़रत इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा फरमाते है:
कहा गया है कि जहन्नम में एक वादी है जिसका नाम वैल है, अगर उसमे दुन्या के पहाड़ डाले जाए तो वो भी उसकी गरमी से पिघल जाए और ये उन लोगो का ठिकाना है जो *नमाज़ में सुस्ती* करते और *वक़्त के बाद क़ज़ा* कर के पढ़ते है, मगर ये की वो आओनी कोताही पर नादिम हो और बारगाहे खुदा वन्दी में तौबा करे।
*✍🏽किताबुल कबाइर 18*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 241*

*नोट :-* ये 👆🏽👆🏽👆🏽 सज़ा नमाज़ क़ज़ा करने वालो के लिये है। तो जो लोग नमाज़ छोड़ देते है उनकी सज़ा का आलम क्या होगा। ज़रा गौर करे।
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~20
*सूरए बक़रह, पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ①⑨_तर्जुमह*
या जेसे बारिश हो आसमान से जिसमे तारिकिया है और कड़क है और चमक है। दाल देते है अपनी उंगलियो को अपने कानो में कड़कसे मौत से बचने को। और अल्लाह घेरे में लिये हुए है काफिरोको।

*तफ़सीर*
(जेसे बारिस हो अस्मान से) जेसे इस्लाम ही अल्लाह तआला की बारिश रहमत है। (जिसमे तरिकिया है) जिसको कुफ़्र व गुमराही की तफ़सील समजो। (और कड़क है) हक़ में हैबत होती है। (और चमक है) के हिदायत की राह रोशन होती है।
अब जो कुफ्फार उसमे फसे, तो उनका ये हाल है के (कानो में उंगलिया दाल देते है) बार बार के (कड़क से). हैबते इस्लाम और शौकते दिनको बर्दाश्त नही कर सकते। उसमे उन्हें अपनी मौत नज़र आती है। इसी लिये वो बद-हवासिकि हरकत करते है (माओत्से बचने को) डर लगा है के कहि मर न जाए। (और अल्लाह) अपने (घेरे में लिये हुवे है) और इस तरह से (काफिरोको) घेरे है के उनके निकल भागनेका कोई रास्ता नही है।
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मदनी पंजसुरह

*शैतान से हिफाज़त व रिज़्क़ में बरकत*

*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

कागज पर 35 बार
 *بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ ارَّحِیْم*ِ
आगे पीछे दुरुद शरीफ लिख कर घर में लटका दे इन्शा अल्लाह शैतान का गुजर न हो और खूब बरकत होगी. अगर दूकान में लटकाए  तो इन्शा अल्लाह कारोबार खूब चमके.
*शम्सुल मआरिफ 37*
*मदनी पंजुरह 4*
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Thursday 23 June 2016

सिरते मुस्तफा


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते षाबित दहदाह ने मायूस हो जाने वाले अन्सारियो से कहा कि ऐ जमाअते अन्सार ! अगर बिल्फ़र्ज़ रसूक अकरम शहीद भी हो गए तो तुम हिम्मत क्यू हार गए ? तुम्हारा अल्लाह तो ज़िन्दा है लिहाज़ा तुम लोग उठो और अल्लाह के दिन के लिये जिहाद करो, ये कह कर आप ने चन्द अन्सारियो को औने साथ लिया और लश्करे कुफ्फार पर भूके शेरो की तरह हमला आवर हो गए और आखीर खालिद बिन वलीद के नेज़े से जामे शहादत नोश करली।

*✍🏽सिरते मुस्तफा 266*
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शबे जुमुआ का दुरुद


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

🌷बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*

*اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمِّیِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِہٖ  وَصَحْبِہٖ  وَسَلِّمْ*

*अल्लाहुम्म-सल्ले-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम*
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नमाज़ के अहकाम

*कज़ा नमाज़ का तरीका*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

पारह 30 सूरतुल माऊन की आयत 4 व 5 में इरशाद होता है :
*तो उन नमाज़ियों की खराबी है जो अपनी नमाज़ से भूले बेठे है*

हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा आयत 5 के तहत फरमाते है :
कभी न पढ़ना, पाबंदी से न पढ़ना, सहीह वक़्त पर न पढ़ना, नमाज़ सहीह तरीके से अदा न करना, शौक़ से न पढ़ना, समझ बुझ कर अदा न करना, कसल व सुस्ती, बे परवाइ से पढ़ना।
*✍🏽नुरुल इरफ़ान 958*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 204*
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मदनी पंजसुरह

*कहत साली हो तो*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

61 बार
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़े फिर दुआ करे इन्शा अल्लाह बारिश होगी.
*शम्सुल मआरिफ 37*
*मदनी पंजसुरह 2*
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Wednesday 22 June 2016

इज्तेमाअ के दुरिद शरीफ

🌜 _*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*_ 🌛

👉🏾गराइबुल क़ुरआन सफा 187 पर एक रिवायत नकल की गई है की जो शख्स ये दुआ रात में 3⃣ मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने "शबे क़द्र" पा लिया। लिहाज़ा हर रात इस दुआ को पढ़ लेना चाहिये।
 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*لَآ اِلٰہَ  اِلَّا اللّٰہُ  الْحَلِیْمُ  الْکَرِیْمُ  ‘  سُبحٰنَ  اللّٰہٖ  رَ بّٖ  اسَّمٰوٰتِ  السَّبْعِ وَرَبِّ  الْعَرْشِ  الْعَظِیْم*

ला-इलाह इल्लल्लाहु अल-ह्-लिमुल-करीम सुब्हान अल्लाहि रब्बी-स्समावाती-अ-स्सबई व-रब्बिल अ'र्शील-अ'ज़िम

👆🏾👆🏾 3⃣ मर्तबा
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सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रत अली शेरे खुदा رضي الله تعالي عنه तलवार चलाते और दुश्मनो की सफों को डरहम बरहम करते चले जाते थे मगर वो हर तरफ मुद मुद कर रसूलल्लाह को देखते थे मगर जमाले नुबुव्वत नज़र न आने से वो इन्तिहाई इज़्तिराब व बे क़रारी के आलम में थे।

हज़रते अनस के चचा हज़रते अनस बिन नज़र رضي الله تعالي عنه लड़ते लड़ते मैदाने जंग से भी कुछ आगे निकल पड़े वहा जा कर देखा कि कुछ मुसलमानो ने मायूस हो कर हथियार फेक दिए है। आप ने पूछा कि तुम लोग यहा बेठे क्या कर रहे हो ? लोगो ने जवाब दिया कि अब हम लड़ कर क्या करेंगे ? जिन के लिये लड़ते थे वो शहीद हो गये। आप ने फ़रमाया कि अगर वाक़ई रसूले खुदा शहीद हो चुके तो फिर हम उनके बाद ज़िंदा रह कर क्या करेंगे ? चलो हम भी इस नदान में शहीद हो कर हुज़ूर ﷺ के पास पहुच जाए।

ये कह कर आप दुश्मनो के लश्कर में लड़ते हुए घुस गए और आखरी दम तक इन्तिहाई जोशे जिहाद और जाबाज़ी के साथ जंग करते रहे यहाँ तक कि शहीद हो गए।
लड़ाई खत्म होने के बाद जब इनकी लाश देखी गई तो 80 से ज़्यादा तीर व तलवार और नेज़ो के ज़ख्म इनके बदन पर थे काफिरो ने इनके बदन को छलनी बना दिया था और नाक, कान वगैरा काट कर इनकी सूरत बिगाड़ दी थी, कोई शख्स इनकी लाश को पहचान न सका सिर्फ इनकी बहन ने इन की उंगलियो को देख कर इनको पहचाना।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 267*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*मुसाफिर तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो जाए तो ?*_
अगर मुसाफिर क़सर वाली नमाज़ की तीसरी रकअत शुरू कर दे तो इसकी दो सूरते है...
1 ब क़दरे तशह्हुद क़ायद ए आख़िरा कर चूका था तो जब तक तीसरी रकअत का सज्दा न किया हो लौट आए और सज्दए सहव करके सलाम फेर दे अगर न लौटे और खड़े खड़े सलाम फेर दे तो भी नमाज़ हो जाएगी मगर सुन्नत तर्क हुई। अगर तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया तो एक और रकअत मिला कर सज्दए सहव करके नमाज़ मुकम्मल करे ये आखरी दो रकअते नफ्ल शुमार होगी।
2 क़ायदए आख़िरा किये बैगेर खड़ा हो गया था तो जब तक तीसरी रकअत का सज्दा न किया लोट आए और सज्दए सहव कर के सलाम फेर दे अगर तीसरी रकअत का सज्दा कर लिया फ़र्ज़ बातिल हो गए अब एक और रकअत मिला कर सज्दए सहव करके नमाज़ मुकम्मल करे चारो रकअत नफ्ल शुमार होगी। दो रकअत फ़र्ज़ अदा करने अभी जिम्मे बाक़ी है।
*दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/550*
*नमाज़ के अहकाम 235*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~18
*सूरए बक़रह, पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ①⑤_तर्जुमह*
अल्लाह खुद ज़लील करता है उन्हें और ढील देता है उन्हें, के अपनी सरकशी में भटकते रहे।

*तर्जुमह*
हालांके अल्लाह खुद ज़लील करता है उन्हें के दुन्या में मज़ाकि कहलाए और आख़ेरत में मुसलमानो की जन्नत देख देख कर ज़लील हो। और अल्लाह हँसी मज़ाक नही करने देता, बल्कि ढील देता है उन्हें के अपनी बद-ज़बानी, छेड़छाड़ और शर्कसि में भटकते रहे और अपनी ज़िल्लत का सामान ज़्यादा से ज़्यादा जमा करे।

*आयत ①⑥_तर्जुमह*
ये वो है जिन्होंने खरीदा गुमराही को हिदायतके बदले। तो न फायदा दिया उनकी तिजारतने, और न थे वो इस राहसे आगाह।

*तफ़सीर*
ये सारे काफ़िर वो है, जिन्होंने खरीदा कुफ़्र और गुमराही को हिदायत के बदले। अल्लाह ने जो हिदायत फ़रमाई, उसको दे डाला और जिसको गुमराही बताया, उसे खरीद लिया, तो उसका अन्जाम ये हुआ के न फायदा दिया उनकी तिजारत ने। और बिलकुल खसारे में पड़ गये। और खसारे की वजह ज़ाहिर है के न थे वो इस तिजारती राह से आगाह। न उनको ये मालुम था के हिदायत कितनी कीमती चीज़ है और न इसका अंदाज़ा था के गुमराही में कितने ऐब है ?
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मदनी पंजसुरह

*हर हाजत पूरी होगी*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रत शैख़ अबुल अब्बास अहमद बिन अली बुनी अलैरह्मा फरमाते है :
जो बिला नागा 7 दिन तक
*بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ ارَّحِیْمِ*
786 बार (अव्वल आखिर एक बार दुरुद शरीफ) पढ़े इन्शा अल्लाह उसकी हर हाजत पूरी होगी. अब वो हाजत ख्वाह किसी भलाई के पाने की हो या बुराई दूर होने की या कारोबार चलने की।
*शम्सुल मआरिफ 37*
*मदनी पंजसुरह 2*
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Tuesday 21 June 2016

बुग्ज़ व किना

*जन्नती आदमी*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हम हुज़ूर ﷺ की बारगाह में हाज़िर थे कि आप ने फ़रमाया अभी तुम्हारे पास इस रस्ते से एक *जन्नती आदमी* आएगा। उसी वक़्त एक अन्सारी साहिब वहा आए जिन की दाढ़ी वुज़ू के पानी से तर थी, उन्हों ने बाए हाथ में अपनी जुतिया उठा रखी थी। मुसलसल 3 दिन ऐसा ही हुवा।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि में उस अन्सारी के पास पहुचा और पूछा : क्या आप मेरी मेहमान नवाज़ी कर सकते है ? उन्हों ने हामी भरी और मुझे अपने साथ ले गए।
में 3 राते उनके पास रहा, इस दौरान में ने उन्हें रात को क़याम करते यानी नवाफ़िल अदा करते हुए नही देखा, हा ! ये ज़रूर देखा कि जब वो बिस्तर पर करवटे बदलते तो ज़िकरुल्लाह करते यहाँ तक की नमाज़े फ़ज्र का वक़्त हो जाता और वो अच्छी बात करते या खामोश रहते।
जब 3 राते इसी तरह गुज़र गई तो मेने उनके अमल को कम जाना चुनान्चे में ने उनसे कहा कि में ने सरकार को ये फरमाते हुए सुना : अभी तुम्हारे पास एक जन्नती आदमी आएगा फिर तीनो बार आप ही आए तो में ने सोचा कि आप के पास रह कर आप का अमल देखु, लेकिन मुझे तो आप का कोई ज़्यादा अमल दिखाई नहीं दिया।
जब में वापस होने लगा तो उन्हों ने मुझे बुलाया और कहा :मेरा अमल तो वही है जो आप देख चुके है लेकिन में औने दिल में किसी मुसलमान के लिये *किना* नही रखता और न ही मुसलमान को मिलने वाली नेमते इलाही पर *हसद* करता हु।
हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया एहि वो वस्फ है जिस ने आप को इस मक़ाम पर पंहुचा दिया।
*शोएबुल ईमान 5/264*
*बुग्ज़ व किना 35*
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सिरते मुस्तफा


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

कुफ्फार ने गुल मचा दिया कि मआज़अल्लाह हुज़ूर क़त्ल हो गए।
अल्लाहु अकबर ! इस आवाज़ ने गज़ब ही ढा दिया मुसलमान ये सुनकर बिलकुल ही सरासीमा और परागन्दा दिमाग हो गए और मैदाने जंग छोड़ कर भागने लगे। बड़े बड़े भाडुबो के पाउ उखड गए और मुसलमानो में तिन गिरोह हो गए। कुछ लोग तो भाग कर मदीने के क़रीब पहुच गए, कुछ लोग सहम कर मुर्दा दिल हो गए जहां थे वही रह गए अपनी जान बचाते रहे या जंग करते रहे, कुछ लोग जिन की तादाद तक़रीबन 12 थी वो रसूलल्लाह ﷺ के साथ शाबित क़दम रहे।

इस हलचल में और भगदड़ में बहुत से लोगो ने तो बिलकुल ही हिम्मत हार दी और जो जाबाज़ी के साथ लड़ना चाहते थे वह भी दुश्मनो के दो तरफा हमलो के नरगे में फस कर मजबूर व लाचार हो चुके थे।

हुज़ूर ﷺ कहा है ? और किस हालमें है ? किसी को इस की खबर नहीं थी।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्सा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 266*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*क़सर के बदले चार की निय्यत बांध ली तो..*_
मुसाफिर ने क़सर के बजाए चार रकअत फ़र्ज़ की निय्यत बांध ली फिर याद आने पर दो और सलाम फेर दिया तो नमाज़ हो जाएगी।
*दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/97*

_*क्या मुसाफिर को सुन्नते मुआफ़ है ?*_
सुन्नतो में क़सर नही बल्कि पूरी पढ़ी जाएगी, खौफ और घबराहट की हालत में सुन्नते मुआफ़ है और अम्न की हालत में पढ़ी जाएगी।
*आलमगिरी 1/139*
*नमाज़ के अहकाम 234*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~17
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ①④_तर्जुमह*
और जब मिले मुसलमानो को, बोले "हम ईमान ला चुके" और जब अकेले हुए अपने शैतानो के पास, कहने लगे के "बेशक हम तुम्हारे साथ है। बीएस हम तो हँसी-मज़ाक करनेवाले है"

*तफ़सीर*
और जब मुनाफिकिन मिले मुसलमानो को और कहने लगे के भाई ! आप तो सिद्दीक़ है, पैग़म्बरे इस्लाम के यार गार, बड़ी शानवाले है। क्या कहना है उमर का, फारूक है, कुफ़्र व कुफ्फारसे बेज़ार है। अल्लाह अल्लाह अली, शेरे खुदा है, हैदर कर्रार है। और अलीए मुर्तज़ा के कहने पर, के तुम भी वाकई मुसलमान हो जाओ बोले हम तो सच्चाई क्र साथ ईमान ला चुके। हमारे और आपके इमानमे कोई फर्क नही और जब वही मुनाफिकिन अकेले हुवे और तन्हाई में अपने शैतानो शरीर सरदारो के पास पहोंचे, तो कहने लगे के हमारी उन बातो से तुम असर न लो तुम खूब जानते हो के बेशक हम तुम्हारे ही साथ है और हमेशा के साथी है। तुमको हमारी मज़ाक की आदत मालूम है। मुसलमानो में जो बाते हुई उसमे बीएस हम तो उनसे अपनी आदतके मुवाफ़िक हँसी मज़ाक करनेवाले है। और जो कुछ् कहा मज़ाक में कहा। ये लोग समजते है के हसि मज़ाक करके मुसलमानो को ज़लील कर रहे है।
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मदनी पंजसुरह

*बिस्मिल्लाह शरीफ की फ़ज़ीलत*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उष्मान رضي الله تعالي عنه ने नबी ﷺ से *ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
की फ़ज़ीलत के बारे में इस्तिफ़सार किया, तो आप ﷺ ने फ़रमाया
ये अल्लाह के नामो में से एक नाम है और अल्लाह के *इसमें आज़म* और इस के दरमियान ऐसा ही कुर्ब है जैसा आँख की सियाही और सफेदी के दरमियान।
*मुस्तदरकल हाकम 2/250*
*मदनी पंजसुरह 1*
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Monday 20 June 2016

सिरते मुस्तफा


*जंगे उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*हज़रते मुसअब बिन उमैर भी शहीद*_
फिर बड़ा गज़ब ये हुवा कि लश्करे इस्लाम के अलम बरदार हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه पर इब्ने कमीआ काफ़िर झपटा और उनके दाए हैयह पर इस ज़ोर से तलवार चला दी कि उनका दाया हाथ काट कर गिर पड़ा। इस जाबाज़ मुहाजिर ने झपट कर इस्लामी झन्डे को बाए हाथ से संभाल लिया मगर इब्ने कमीआ ने तलवार मार कर उनके बाए हाथ को भी शहीद कर दिया दोनों हाथ कट चुके थे मगर हज़रते उमैर رضي الله تعالي عنه अपने दोनों कटे हुए बाज़ुओं से पर्चमे इस्लाम को अपने सीने से लगाए हुए खड़े रहे और बुलंद आवाज़ से ये आयत पढ़ते रहे कि...
*मुहम्मद तो एक रसूल है इनसे पहले और रसूल हो चुके*
फिर इब्ने कमीआ ने इनको तीर मार कर शहीद कर दिया।
हज़रते मुसअब जो सूरत में हुज़ूरे अक़दस ﷺ से कुछ मुशाबेह थे उनको ज़मीन पर गिरते हुए देख कर कुफ्फार ने गुल मचा दिया कि मआज़अल्लाह हुज़ूर क़त्ल हो गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह..
*सिरते मुस्तफा 265*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~16
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ①③_तर्जुमह*
और जब भी कहा गया उनके भलेको के "मान जाओ, जैसा मान चुके सब लोग" बोले "क्या हम माने, जैसा के माना है बेवकुफो ने? सुन रख्खो ! के बिला शुबह वही बेवकूफ है। लेकिन नादानी करते है।

*तफ़सीर*
और जब भी कहा गया और समझाया गया उनके भले को के अल्लाह के अज़ाबसे बच जाए के अब तुम भी मान जाओ ईमान क़ुबूल कर लो जैसा मान चुके अब्दुल्लाह इब्ने सलाम और उनके साथी और सब लोग, तो जवाब में बोले के क्या हम माने ईमान ले आए उसी तरह जेसा के माना है उन सब बेवकूफोने। अक्ल व इल्मवालो को बेवकूफ क़रार दे रहे है। कान खोल कर सुन रख्खो के बिला सूबा वही और हा ! वही बेवकूफ व अहमक है। लेकिन वो खुद ही नादानी करते है और अपनी जेहालत दिखाते है।
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Sunday 19 June 2016

बुग्ज़ व किना

*तुम्हारे दिलमे किसी के लिये किना व बुग्ज़ न हो*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अंस رضي الله تعالي عنه फरमाते है : ताजदार मदीना ﷺ ने मुझसे इरशाद फ़रमाया :
ऐ मेरे बेटे ! अगर तुम से हो सके कि तुम्हारी सुबहो शाम ऐसी हालत में हो कि तुम्हारे दिल में किसी के लिये *किना व बुग्ज़* न हो तो ऐसा ही किया करो।
*तिर्मिज़ी 4/309*

यानी मुसलमान भाई की तरफ से दुन्यवि उमूर में साफ़ दिल हो, सीना *किने* से पाक हो तब इसमें अनवारे मदीना आएँगे। धुंदला आइना और मेला दिल क़ाबिले इज़्ज़त नही।
*मीरआतुल मनाजिह् 1/172*

*अफज़ल कौन ?*
हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अम्र رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि रसूलल्लाह ﷺ से अर्ज़ की गई कि लोगो में से कौन अफज़ल है ?
फ़रमाया : हर सलामत दिलवाला, सच्ची ज़बान वाला।
लोगोने अर्ज़ की : सच्ची ज़बान वाले को तो हम जानते है, ये सलामत दिल वाला क्या है ?
फ़रमाया : वो ऐसा सुथरा है जिस पर न गुनाह हो, न बगावत, न किना और न हसद।
*सुनन इब्ने माजह 4/470*

*बुग्ज़ व किना 34*
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सिरते मुस्तफा


*जंगे उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*ना गहा जंग का पासा पलट गया*_
कुफ्फार की बगदोद और मुसलमानो के फातिहाना कत्लो गारत का ये मन्ज़र देख कर वो 50 तीर अंदाज़ मुसलमान जो दर्रे की हिफाज़त पर मुक़र्रर किये गए थे वो भी आपस में एक दूसरे से ये कहने लगे कि गनीमत लूटो तुम्हारी फ़त्ह हो गई। उन लोगो के अफसर हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर رضي الله تعالي عنه ने हर चन्द रोक और हुज़ूर ﷺ का फरमान याद दिलाया और फरमाने मुस्तफ्वि की मुखालफत से डराया मगर उन तीर अंदाज़ मुसलमानो ने एक न सुनी और अपनी जगह छोड़ कर माले गनीमत लूटने में मसरूफ़ हो गए।
लश्करे कुफ्फार का एक अफसर खालिद बिन वलीद पहाड़ की बुलंदी से ये मन्ज़र देख रहा था। जब उसने देखा कि दर्रा पहरेदारो से खाली हो गया है फौरन ही उसने दर्रे के रस्ते से फौज ला कर मुसलमानो के पीछे से हमला कर दिया। हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर رضي الله تعالي عنه ने चन्द ज़ाबाज़ो के साथ इन्तिहाई दिलेराना मुक़ाबला किया मगर ये सब के सब शहीद हो गए।
अब क्या था काफिरो की फ़ौज के लिये रास्ता साफ हो गया खालिद बिन वलीद ने ज़बर दस्त हमला कर दिया। मुसलमान माले गनीमत लूटने में मसरूफ़ थे पीछे फिर कर देखा तो तलवारे बार्स रही थी और कुफ्फार आगे पीछे दोनों तरफ से मुसलमानो पर हमला कर रहे थे और मुसलमान का लश्कर चक्की के दो पाटो में दाने की तरह पीसने लगा और मुसलमानो में ऐसी बाद हवासी और अब्तरि फेल गई कि अपने और बेगाने की तमीज़ नही रही। खुद मुसलमान मुसलमान की तलवारो से क़त्ल हुए।
चुनान्चे हज़रते हुजैफा رضي الله تعالي عنه के वालिद हज़रते यमान खुद मुसलमानो की तलवार से शहीद हुए। हज़रते हुज़ैफा चिल्लाते ही रहे कि ऐ मुसलमानो ! ये मेरे बाप है। मगर कुछ अज़ीब बाद हवासी फैली हुई थी कि किसी को किसी का ध्यान ही नही था और मुसलमानो ने हज़रते यमान رضي الله تعالي عنه को शहीद कर दिया।
*सिरते मुस्तफा 265*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*काम हो गया तो चला जाऊंगा*

मुसाफिर किसी काम के लिये या अहबाब के इन्तिज़ार में दो चार या तेरह चौदह दिन की निय्यत से ठहरा, या ये इरादा है कि काम हो जाएगा तो चला जाएगा, दोनों सूरतो में अगर आज कल आज कल करते बरसो गुज़र जाए जब भी मुसाफिर ही है, वो नमाज़ क़सर पढ़ेगा।

*आलमगिरी 1/139*
*नमाज़ के अहकाम 227*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~15
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ①①_तर्जुमह*
और जब भी कहा गया उनके भलेको, के न फसाद डालो ज़मिनमे। बोले के हम ही तो दुरस्ती करनेवाले है।

*तफ़सीर*
और जब भी कहा गया यहूदियो वगैरा से उन्ही के भलेको के अमन व अमां से रहो के न फसाद डालो अपनी ज़मिनमे और आबादीमे। तो जवाब में बोले के हम तो अमन के हामी और लीडर, और वतन की दुरस्ती करने वाले है।

*​आयत ①②_तर्जुमह*
सुनलो के बेशक वही फसादी है। लेकिन वो महसूस नही करते।

*तफ़सीर*
खबरदार, सुनलो के बेशक वही और वही फसादी है गड़बड़ मचाते रहते है। लेकिन वो महसूस नही करते। सूज बुज़ बिलकुल नही रखते। जानवर क्या ? पथ्थर की तरह बिलकुल स्थिर है।
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Saturday 18 June 2016

बुग्ज़ व किना

*इल्म और आलिम से बुग्ज़ रखने वाला हलाक हो जाएगा*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया :
आलिम बन या मूतअल्लिम, या इल्मी गुफ्तगू सुनने वाला या इल्म से महब्बत करने वाला बन और इल्म व आलिम से बुग्ज़ रखने वाला न बन कि हलाक हो जाएगा।
*✍🏽अलजामि अलसगिर 78*

आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है अगर आलिमे दीन को इस लिये बुरा कहता है कि वो आलिम है जब तो सरिह काफ़िर है और अगर ब वजहे इल्म उस की ताज़ीम फ़र्ज़ जानता है मगर अपनी किसी दुन्यवि दुश्मनी के बाईष् बुरा कहता है, गाली देता है और तहक़ीर करता है तो सख्त फ़ासिक़ फाजिर है
और अगर बे सबब बुग्ज़ रखता है तो मृजुल क्लब खबिशूल बातिन (यानी दिल का मरीज़ और नापाक बातिन वाला है)
*✍🏽फतावा रज़विय्या 21/129*

खुलासा में है : जो बिला किसी ज़ाहिरी वजह के आलिमे दिन से बुग्ज़ रखे उस पर कुफ़्र का खौफ है।
*✍🏽खुलासुल फतावा 4/388*
*✍🏽बुग्ज़ व किना 27,28*
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सिरते मुस्तफा


*जंगे उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

इस जंग में मुजाहिदीने अन्सार व मुहाजिरिन बड़ी दिलेरी और जाबाज़ी से लड़ते रहे यहाँ तक की मुशरिकीन के पाउ उखड़ गए।

हज़रते अली व हज़रते अबू दजाना व हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه वगैरा के मुजाहिदिना हमलो ने मुशरिकीन की कमर तोड़ दी। कुफ्फार के तमाम अलम बरदार एक एक कर के कट कर ज़मीन पर ढेर हो गए।

कुफ्फार को शिकस्त हो गई और वो भागने लगे और उन की औरते जो अशआर पढ़ पद्ग कर लश्करे कुफ्फार को जोश दिला रही थी वो भी बद हवासी के आलम में अपने इज़ार उठाए हुए बरहना साक भागती हुई पहाड़ो पर दौड़ती हुई चली जा रही थी और मुसलमान कत्लो गारत में मशगूल थे।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 264*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_वतन की किस्मे_*
वतन की दो किस्मे है
1 वतने असली : यानी वो जगह जहा इसकी पैदाइश हुई है या इस के घर के लोग वहा रहते है या वहा सुकूनत कर ली और ये इरादा है कि यहा से न जाएगा।
2 वतने इक़ामत : यानी वो जगह कि मुसाफिर ने 15 दिन या इससे ज़्यादा ठहर ने का वहा इरादा किया हो।

*_वतने इक़ामत बातिल होने की सूरत_*
वतने इक़ामत दूसरे वतने इक़ामत को बातिल कर देता है यानी एक जगह 15 दिन के इरादे से ठहरा फिर दूसरी जगह इतने ही दिन के इरादे से ठहरा तो पहली जगह वतन न रही। दोनों के दरमियान मसाफते सफर हो या न हो। यु ही वतने इक़ामत वतने असली और सफर से बातिल हो जाता है।
*✍🏽आलमगिरी 1/145*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~14
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*​आयत ①ⓞ _तर्जुमह*
उनके दिलोमे बिमारी है। तो बढ़ने दिया उन्हें अल्लाह ने बिमारी में। और उन्ही के लिये अज़ाब है दुखवाला, के वो जूठ बोलते थे।

*तफ़सीर*
बात ये है के उनके दिलो में कुफ़्र व निफाक की बिमारी है जन्मसे। तो बढ़ने दिया उन्हें अल्लाह ने उनके जी भर बिमारी में, के बीमार रहना ही चाहते है, तो खूब बीमार रहे। और उन्ही जेसो के लिये खुदा का अज़ाब है, कैसा ? के दुखवाला दर्दनाक। ये सज़ा बिलकुल ठीक है। क्यों के वो जूठ बोलते रहते थे और बिलकुल गलत अपने की मुसलमान कहते थे।
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Friday 17 June 2016

बुग्ज़ व किना

*सादात से बुग्ज़ रखने वाले को हौज़ कौषर पर शाबुक मारे जाएंगे*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते हसन बिन अली رضي الله تعالي عنه का फरमाने इबरत निशान है :
हम से बुग्ज़ मत रखना की रसूले पाक ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जो शख्स हमसे बुग्ज़ या हसद करेगा उसे क़यामत के दिन हौज़े कौषर से आग के चाबुको के ज़रिए दूर किया जाएगा।
*✍🏽अल मजम अल वुसत 2/33*

*अहले बैत का दुश्मन दोज़खी है*
एक तवील हदिशे पाक में ये भी है की अगर कोई शख्स *बैतुल्लाह शरीफ* के एक कोने और *मक़ामे इब्राहिम* के दरमियान जाए और नमाज़ पढ़े और रोज़े रखे और फिर वो *अहले बैत* की दुश्मनी पर मर जाए तो वो जहन्नम में जाएगा।
*✍🏽अलमुस्तदरक, किताब मारेफ़त अलसाहबह 4/129*
*✍🏽बुग्ज़ व किना 24*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सफर के दो रस्ते_*
किसी जगह जाने के दो रस्ते है एक से मसाफ़ते सफर है दूसरे से नही (यानी नजदीक वाले रस्ते से जाए तो 90 k.m और दूर वाले रस्ते से 92k.m है) तो जिस रस्ते से ये जाएगा उस का ऐतिबार है, नज़दीक वाले रस्ते से गया तो मुसाफिर नही और दूर वाले से गया तो है अगर्चे इस रस्ते के इख़्तियार करने में इस की कोई गरजे सहीह न हो।
*✍🏽आलमगिरी 1/138*
*✍🏽दुर्रेमुखतर मअ रद्दलमोहतर 2/603*

*_मुसाफिर कब तक मुसाफिर है_*
मुसाफिर उस वक़्त तक मुसाफिर है जब तक अपनी बस्ती में पहुच न जाए या आबादी में पुरे 15 दिन ठहर ने की निय्यत न करले, ये उस वक़्त है जब पुरे 92 k.m चल चूका हो अगर 92 k.m पहले वापसी का इरादा कर लिया तो मुसाफिर न रहा अगर्चे जंगल में हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतर 2/605*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 226*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~13
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​

*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*
*​आयत ⑨ _तर्जुमह*
धोका देना चाहते है अल्लाह को और मुसलमानो को। और नही धोका देते, मगर अपने आपको, और महसूस नही करते।

*तफ़सीर*
वो तो बीएस धोका देना चाहते है अल्लाह को और समजते है के अगर हमने रसूले पाक को धोका दे दिया, तो बस अल्लाह को धोका दिया, और मुसलमानो को सिद्दिके अकबर, फारूके आज़म व दीगर सहाबा को, और वाकेआ ये है के वो नही धोका देते मगर अपने आपको अपने फरेब में खुद भी फसे। और अव्वल दर्जे के बेवकूफ है के वो इसको महसूस ही नहीं करते के अल्लाह आलीमुल ग़ैब वशशहादह है। उससे उनकी दिली बाते कैसे छुप सकती है ? अपने पैगम्बर को उनसे उनके दिलोके ख़याल से आगाह कर रख्खा है। तो उन्हें भी क्या धोका हो सकता है ? मुसलमानो को उनके रसूल ने उनका सारा हाल बता दिया है। तो जब वो कुछ छुपा-ढका रखते नही, तो धोका किसको देंगे ?
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_मुसाफिर बनने के लिये शर्त_*

सफर के लिये ये भी ज़रूरी है कि जहा से चला वहा से 92 k.m. का इरादा हो
और अगर 92 k.m के कम के इरादे से निकला वहा पहुच कर दूसरी जगह का इरादा हुवा की वो भी 92 k.m से कम का रास्ता है यु ही सारी दुन्या घूम कर आए तो वो मुसाफिर नही।
*दुर्रेमुखतार 2/209*

*नमाज़ के अहकाम 225*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~12
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*
_*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*_​

*आयत ⑧ _तर्जुमह*
और आमियो मेसे कोई कोई कहता है के "मान चूजे हम लोग अल्लाह को और पिछले दिनको" हालांके नही है वो माननेवालों में से।

*तफ़सीर*
और जाहिलो आमियो में से जो सूज बुज़ नही रखते कोई कोई मषलन अब्दुल्लाह इब्ने उबय और जद बिन कैस और मोअतबह बिन कुशैर वगैरह बकता रहता है और ये ज़बांसे कहता है के मान तो चुके हम लोग अल्लाह को उस पर ईमान ले आये और पिछले दिनको यानी क़यामत पर भी ईमान ला चुके। हाला के सच ये है के नही है वो माननेवालों में से। मानना दिलका कम है, ज़बान का नही है। जो उनकी ज़बान पर है उसका दिलमे कोई असर ही नही है।
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सिरते मुस्तफा ​ﷺ


*​जंग उहूद*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

कुफ्फार के अलम बरदार खुद कट कट कर गिरते चले जा रहे थे मगर उनका झन्डा गिरने नही पाटा था एक के क़त्ल होने के बाद दूसरा उस झन्डे को उठा लेता था। उन काफिरो के जोशो खरोश का ये आलम  था कि जब एक काफ़िर ने जिस का नाम सवाब था मुशरिकीन का झन्डा उठाया तो एक मुसलमान ने उसको इस ज़ोर से तलवार मारी कि उसके दोनों हाथ काट कर ज़मीन पर गीत पड़े मगर उसने अपने क़ौमी झन्डे को ज़मीन पर गिरने नहीं दिया बल्कि झन्डे को औने साइन से दबाये हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। इस हालत में मुसलमानो ने उसे क़त्ल कर दिया। मगर वो क़त्ल होते होते येही कहता रहा कि में ने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया।

उसके मरते ही एक बहादुर औरत जिस का नाम अमरह था उसने झपट कर क़ौमी झन्डे को अपने हाथ में ले कर बुलंद कर दया, ये मन्ज़र देख कर कुरैश को गैरत आई और उन की बिखरी हुई फैज़ सिमट आई और उस के उखड़े हुए क़दम फिर जैम गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 262*
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Tuesday 14 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*​जंग उहूद*​
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_हज़रते हम्ज़ा की शहादत_*
वहशी जो एक हबशी गुलाम था और उसका आक़ा जबीर बिन मूतअम  उस से वादा कर चूका था कि तू अगर हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه को क़त्ल कर दे तो में तुझको आज़ाद कर दूंगा। वहशी एक चट्टान के पीछे छुपा हुवा था और हज़रते हम्ज़ा की टाक में था जू ही आप उस के क़रीब पहुचे उसने दूर से अपन नेज़ा फेक कर मारा जो आप की नाफ में लगा। और पुश्त के पार हो गया। इस हालत में भी हज़रते हम्ज़ा तलवार ले कर उसकी तरफ बढ़े मगर ज़ख्म की ताब न ला कर गिर पड़े और शहादत से शरफराज़ हो गए।
*सिरते मुस्तफा 261*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*शरई सफर की मसाफत*_
शरअन मुसाफिर वो शख्स है जो साठे 57 मिल (तकरीबन 92 किलो मीटर) के फासिल तक जाने के इरादे से अपने मक़ामे इक़ामत मसलन शहर या गाउ से बाहर हो गया।
*फतावा रज़विय्या 8/270*

*_मुसाफिर कब होगा_*
महज़ निययते सफर से मुसाफिर न होगा बल्कि मुसाफिर का हुक्म उस वक़्त है कि बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए शहर में है तो शहर से, गाउ है तो गाउ से, और शहर वालो के लिये ये भी ज़रूरी है की शहर के आस पास जो आबादी शहर से मुत्तसिल है उससे भी बाहर आ जाए।
*दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/599*

*_आबादी खत्म होने का मतलब_*
आबादी से बाहर होने से मुराद ये है कि जिधर जा रहा है उस तरफ आबादी खत्म हो जाए अगर्चे उसकी बराबर दूसरी तरफ खत्म न हुई हो
*गुन्यातल मुस्तमली 536*
*नमाज़ के अहकाम 224*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~11
_*​​सूरए बक़रह, पारह-01*​_​
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ⑦_तर्जुमह*
मोहर लगादी अल्लाह ने उनके दिलो पर और उनकी समाअत पर और उनकी आँखों पर गहरा पर्दा है और उन्ही के लिये अज़ाब है बहोत बड़ा।

*तफ़सीर*
उनको समज़ लो मोहर लगा दी अल्लाह ने उनके दिलो पर के दिल क़ुबूले हक़ से महरूम हो गया है, और उनकी समाअत पर के अवाज़े हक़ सुनने से बेहरे बन गये है, और उनकी आँखों पर गहरा पर्दा है। अन्धो को हक़ सुजाई नहीं पड़ता और उन्ही जेसो के लिये खुदाका अज़ाब है। वो भी मामूली अज़ाब नही, बल्कि बहोत बड़ा जिसकी सख्ती का अंदाज़ नही किया जा सकता।
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Monday 13 June 2016

बुग्ज़ व किना

*सहाबए किराम से बुग्ज़ व किना रखने वाले का भयानक अंजाम*
हिस्सा~01
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

सहाबए किराम से बुग्ज़ व अदावत रखना दारैन (यानि दुन्या व आख़िरत) में नुकसान व खुसरान का सबब है चुनान्चे हज़रत नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी नक़ल करते है :
तिन अफ़राद यमन के सफर पर निकले इनमे एक कुफी था जो शैखेने करीमैन (हज़रते अबू बक्र व हज़रत उमर) का खुस्ताख था, उसे समझाया गया लेकिन वो बाज़ न आया। जब ये तीनो यमन के क़रीब पहुचे तो एक जगह क़याम किया और सो गए। जब कूच का वक़्त आया तो इन में से उठ कर दो ने वुज़ू किया और फिर उस गुस्ताख कुफी को जगाया। वो उठ कर कहने लगा :
अफ़सोस ! में तुम से इस मंजिल में पीछे रह गया हु तुम ने मुझे ऍन उस वक़्त जगाया जब हुज़ूर मेरे सिरहाने तहरीफ़ ला क्र इरशाद फरमा रहे थे :
ऐ फ़ासिक़ ! अल्लाह फ़ासिक़ को ज़लिलो ख्वार करता है, इसी सफर में तेरी शक्ल बदल जाएगी।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#बुग्ज़ व किना 22*
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सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंग उहूद*
_अबू दजाना की खुश नसीबी_
हिस्सा~01
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अबू दजाना ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! में इस तलवार को इसके हक़ के साथ लेता हु। फिर वो अपने सर पर एक सुर्ख रंग का रुमाल बांध कर अकड़ते और इतराते हुए मैदाने जंग में निकल पड़े और दुश्मनो की सफों को चीरते हुए और तलवार चलाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे कि एक दम उनके सामने अबू सुफ़यान की बीवी हिन्द आ गई। हज़रते अबू दजाना ने इरादा किया की इस पर तलवार चला दे मगर फिर इस खयाल से तलवार हटा ली की रसूलल्लाह ﷺ की मुक़द्दस तलवार के लिये ये ज़ेब नही देता की वो किसी औरत का सर काटे।

हज़रते अबू दजाना की तरह हज़रते हमज़ा और हज़रते अली رضي الله تعالي عنه भी दुश्मनो की सफों में घुस गए और कुफ्फार का क़त्ले आम शुरू कर दिया।

हज़रते हम्ज़ा इन्तिहाई जोशे जिहाद में दो दस्ती तलवार मरते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इसी हालत में सबाअ गबशानि सामने आ गया आप ने तड़प कर फ़रमाया की ऐ औरत का खतना करने वाली औरत के बच्चे ! ठहर खा जाता है ? तू अल्लाह व रसूल से जंग करने चला आया है। ये कह कर उस पर तलवार चला दी, और वो दो टुकड़े हो कर ज़मीन पर ढेर हो गया।
*सिरते मुस्तफा 261*
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नमाज़ के अहकाम

*मुसाफिर की नमाज़*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है*

हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है :
खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्ट नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।
*सहीह मुस्लिम 1/231*

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे बी ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।
*सुनन इब्ने माजह 2/59*
*नमाज़ के अहकाम 222*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~10
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ⑥_तर्जुमह*
बेशक जिन्होंने जनम का कुफ़्र कमाया, यकसाँ है उन पर, क्या डराया तुमने उन्हें ? या न डराया उन्हें, सो माननेवाले ही नही।

*तफ़सीर*
बेशक मदीना के यहूदियो में से कअब इब्ने अशरफ, यहया इब्ने अख्तब व जदी इब्ने अख्तब वगैरा और मक्का के बुतपरस्तो में से उत्बा व शयबह व वलीद वगैरा, गरज़ जिन्होंने भी जनम का कुफ़्र कमाया के काफ़िर ही जिये और काफ़िर ही मरे, यकसाँ है उन और कोई हालत हो क्या डराया तुमने उन्हें या न डराया उन्हें ख्वाह अल्लाह का डर उन्हें सुनाओ, ख्वाह न सुनाओ, तुम्हे तो तबलीग का षवाब मिला, लेकिन वो नफा पानेसे महरूम ही रहे की वो मानने वाले ही नहीं, माननेकी लायकात वो खो चुके है और सच्चाई क़ुबूल करने की सलाहियत बर्बाद कर चुके है।
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Sunday 12 June 2016

बुग्ज़ व किना

*बदतरीन बुग्ज़ व किना*
आम मुसलमानो से बिला वजहे शरई किना रखना बेशक हराम और जहन्नम में ले जाने वाला काम है मगर सहाबए किराम सादाते उज़्ज़ाम उल्माए किराम और अरबो से बुग्ज़ व किना रखना इससे कही ज़्यादा बुरा है। ऐसा करने वालो की शदीद मज़म्मत की गई है।

*सहाबए किराम से बुग्ज़ रखने की वईदे शदीद*
हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुगफ्फल رضي الله تعالي عنه से मरवी है कि रसूले करीम ﷺ ने फ़रमाया कि मेरे असहाब के हक़ में खुदा से डरो ! खुदा का खौफ करो !! इन्हें मेरे बाद निशाना न बनाओ, जिसने इन्हें महबूब रखा मेरी महब्बत की वजह से महबूब पाया और जिसने इनसे बुग्ज़ किया वो मुझ से बुग्ज़ रखता है, इसलिये उसने इनसे बुग्ज़ रखा, जिस ने इन्हें इज़ा दी उसने मुझे इज़ा दी, जिसने मुझे इज़ा दी उसने बेशक खुदा तआला को इज़ा दी, जिसने अल्लाह तआला को इज़ा दी क़रीब है कि अल्लाह उसे गिरफ्तार करे।
*#सुनन तिर्मिज़ी 5/463*

हज़रते अल्लामा मौलाना नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है :
मुसलमान को चाहिये कि सहाबए किराम का निहायत अदब रखे और दिल में इनकी अक़ीदत व महब्बत को जगह दे। इनकी महब्बत हुज़ूर ﷺ की महब्बत है और जो बद नसीब सहाबा की शान में बे अदबी के साथ ज़बान खोले वो दुश्मने खुदा व रसूल है।
*#सवानहे कर्बला 31*
*#बुग्ज़ व किना 21*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~09

_*​​सूरए बक़रह, पारह-1​*_​

*आयत ⑤_तर्जुमह*
वो है हिदायत पर अपने परवरदिगार की तरफसे और वो ही कामियाब है।

*तफ़सीर*
वो ही है जो हिदायत पर है और ये दुलत उन्ही का हिस्सा है अपने परवरदिगार की तरफसे और उन पर खुदा का ये फ़ज़ल है के वो कामयाब है, नजात पाए हुए है, और बा मुराद है। ये साड़ी खुबिया अब्दुल्लाह इब्ने सलाम और उनके साथियो ही में नही, बल्कि तमाम असहाबे रसूल में पाई जाती है और यही एहले सुन्नत व जमाअत का दीन व मज़हब है।
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नमाज़ के अहकाम

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​
हिस्सा~03

अगर कोई इस क़दर उची जगह पर नमाज़ पढ़ रहा है कि गुज़रने वाले के आज़ा नमाज़ी के सामने नही हुए तो गुज़रने वाला गुनाहगार नही।

दो शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते है इसका तरीक़ा ये है कि इन में से एक नमाज़ी के सामने पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब इसको आड़ बना कर दूसरा गुज़र जाए। फिर दूसरा पहले की पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब पहला गुज़र जाए फिर वो दूसरा जिधर से आया था उसी तरफ हट जाए।

कोई नमाज़ी के आगे से गुज़रना हःता है तो नमाज़ी को इजाज़त है कि वो उसे गुज़रने से रोके ख्वाह "सुब्हानअल्लाह" कहे या ज़हर (यानी बुलन्द आवाज़ से) किरआत करे या हाथ या सर या आँख के इशारे से मना करे। इससे ज़्यादा की इजाज़त नही। मसलन कपड़ा पकड़ कर झटकना या मारना बल्कि अगर अमले कसीर हो गया तो नमाज़ ही जाती रही।

तस्बीह व इशारा दोनों को बिला ज़रूरत जमा करना मकरूह है।

औरत के सामने से गुज़रे तो औरत तस्फीक़ से मना करे यानी सीधे हाथ की उंगलिया उलटे हाथ की पुश्त पर मारे। अगर मर्द ने तस्फीक़ की और औरत ने तस्बीह कहि तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर खिलाफे सुन्नत हुवा।

तवाफ़ करने वाले को दौराने तवाफ़ नमाज़ी के आगे से गुज़रना जाइज़ है।
*#नमाज़ के अहकाम 217*
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Saturday 11 June 2016

बुग्ज़ व किना

*मुआशरे का सुकून बर्बाद हो जाता है*

मुआशरे का सुकून बर्बाद करने के *किने* का बजी बड़ा किरदार है, ये भाई को भाई से लड़वा देता है, खानदान का शिराजह बिखेर देता है, एक बरादरी को दूसरी बरादरी का मुखालिफ बना देता है और ये मिज़ाजे शरीअत के खिलाफ है क्यूकि मुसलमानो को तो भाई भाई बन कर रहने की ताकीद की गई है। चुनान्चे...

*तुम लोग भाई भाई बन कर रहो*
नबी ﷺ ने फ़रमाया :
आपस में हसद न करो, आपस में बुग्ज़ व अदावत न रखो, पीठ पीछे एक दूसरे की बुराई बयान न करो और ऐ अल्लाह के बन्दों ! भाई भाई हो जाओ।
*#सहीह बुखारी 4/117*

हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा इस हदिशे पाक के तहत फरमाते है :
बदगुमानी, हसद, बुग्ज़ वगैरा वो चीज़े है जिन से महब्बत टूटती है और इस्लामी भाईचारा महब्बत चाहता है, लिहाज़ा ये उयुब छोड़ो ताकि भाई भाई बन जाओ।
*मीरअतुल मनाजिह् 6/608*

*#बुग्ज़ व किना 15,16*
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सिरते मुस्तफा​


*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~04

तल्हा के बाद उसका भाई ऊष्मान बिन अबू तल्हा रज्ज़ का ये शेर पढता हुवा हमला आवर हुवा कि..

अलम बरदार का फ़र्ज़ है कि नेज़े को खून में रंग दे या वो टकरा कर टूट जाए।

हज़रते हमज़ा رضي الله تعالي عنه उसके मुकाबले के लिये तलवार ले कर निकले और उस शाने पर ऐसा भरपूर हाथ मारा कि तलवार रीढ़ की हड्डी को काटती हुई कमर तक पहुच गई और आप के मुह से ये नारा निकला कि..
में हाजियो के सैराब करने काले अब्दुल मुत्तलिब का बीटा हु।

इसके बाद आप जंग शुरू हो गई और मैदाने जंग में कुश्टो खून का बाज़ार गर्म हो गया.

*#सिरते मुस्तफा 260*
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नमाज़ के अहकाम

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​
हिस्सा~02

दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुद कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की टफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये एहि पहला शख्स आ भी बन गया।

नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#नमाज़ के अहकाम 216*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~09

_*​​सूरए बक़रह, पारह-1​*_​

*आयत ④_तर्जुमह*
और जो मान जाए जो कुछ उतारा गया तुम्हारी तरफ, और जो कुछ उतारा गया तुम्हारे पहले, और आख़ेरत पर वही यकींन भी रखे।

*तफ़सीर*
और जो उसे भी मान जाए जो कुछ् उतारा गया तुम्हारी तरफ अय मेरे रसूल ! यानी कुरआन शरीफ के किसी नुक्ते से, और तुम्हारी शरीअत के किसी मसअले से जिन्हें इनकार न हो और उसे भी मान ले को कुछ उतारा गया तुम्हारे पहले के वो सब अल्लाह का नाज़िल करदा है। वेसे उसमे रद्द बदल कर दी गई है और क़ुरआन उनका नासिख (उसके अहकामकी मुद्दतो को खत्म करने वाला) हो गया है। और उनमे ये खुसूसियत भी हो के आख़ेरत पर के क़यामत होगी, हिसाब व किताब होगा, षवाब व अज़ाब होगा, और उसकी सारी तफ़सीलात पर यकीन भी रख्खे।
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Friday 10 June 2016

सिरते मुस्तफा ​ﷺ


*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~03

लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा सफ से निकल कर मैदान में आया और कहने लगा कि क्यू मुसलमानो ! तुम में कोई ऐसा है कि वो मुझे दोज़ख में पहोचा दे या खुद मेरे हाथ से वो जन्नत में पहुच जाए।

उसका ये घमंड से भरा हुवा कलाम सुन कर हज़रत अली शेरे खुदा ने फ़रमाया कि हा में हु ये कहकर फातेहे खैबर ने जुल फ़िक़ार के एक ही वार से उस का सर फाड़ दिया और वो ज़मीन पर तड़पने लगा और शेरे खुदा मुह फेर कर वहा से हट गए। लोगोने पूछा कि आप ने उस का सर क्यू नही काट लिया ?

शेरे खुदा ने फ़रमाया कि जब वो ज़मीन पर गिरा तो उस की शर्मगाह खुल गई और वो मुझे क़सम देने लगा कि मुझे मुआफ़ कर दिजिये उस बे हया को बे सीत्र देख कर मुझे शर्म दामन गिर हो गई इस लिये में ने मुह फेर लिया।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*#सिरते मुस्तफा 259*
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नमाज़ के अहकाम

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*
हिस्सा~01

मैदान और बड़ी मस्जिद में नमाज़ी के क़दम से मौज़ए सुजूद तक गुज़रना ना जाइज़ है। *मौज़ए सुजूद* से मुराद ये है कि क़याम की हालत में सज्दे की जगह नज़र जमाए तो जितनी दूर तक निगाह फेले वो मौज़ए सुजूद है। उस के दरमियान से गुज़रना जाइज़ नहीं।
_मौज़ए सुजूद का फ़ासिला अंदाज़न क़दम से ले कर 3 गज़ तक है_
लिहाज़ा मैदान में नमाज़ी के क़दम के 3 गज़ के बाद से गुज़रने में हरज नही।

मकान और छोटी मस्जिद में नमाज़ी के आगे अगर सुतरा (आड़) न हो तो क़दम से दीवारे किबला तक कही से गुज़रना जाइज़ नही।
नमाज़ी के आगे कोई आड़ हो तो उस आड़ के बाद से गुज़रने में कोई हरज नही।

आड़ कम अज़ कम एक हाथ (तकरीबन आधा गज़) उचा और ऊँगली बराबर मोटा होना चाहिये।

इमाम की आड़ मुक्तदि के लिये भी आड़ है। यानी इमाम के आगे आड़ हो तो अगर कोई मुक्तदि के आगे से गुज़र जाए तो गुनाहगार न होगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#नमाज़ के अहकाम 215*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~08

_*सूरए बक़रह, पारह-1*_

*​आयत ③_​तर्जुमह*
जो मान जाए बे देखे और अदा करते है नमाज़ को, और उससे, जो दे रख्खा है हमने, खर्च करे।
*तफ़सीर*
उनकी पहचान ये है के जो मान जाए बे देखे अल्लाह को, फरिश्तों को, जन्नत व जहन्नम को, आसमानी किताबो को, तमाम अल्लाह के रसुलोको, क़यामत के दिन को, हशर को, नशर को, षवाब व अज़ाबको। अपने नबी से उन गैबो को सुना, ग़ैब का इल्म हुवा और फिर उसे क़बूल कर लिया। लेकिन ईमान ही पर इक्तेफा न करे (काफी न समजे)। बल्कि नेक काम भी करे और अदा करते रहे नमाज़ों को। और सिर्फ जिस्मानी इबादत ही काफी न समजे, बल्कि उस माल से जो दे रख्खा है हमने जिसको हम न देते तो वो किसी तदबीर से न पाते, हमारी राह में खर्च करे ज़कात दे, सदक़ा दे।
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Thursday 9 June 2016

बुग्ज़ व किना

दीगर गुनाहो का दरवाज़ा खुल जाता है

गुस्से से किना पैदा होता है और किने से 8 हलाकत खेज़ चीज़े जन्म लेती है।
➡किना परवर हसद करेगा यानी किसी के गम से शायद होगा और उसकी ख़ुशी से गमगीन।
➡दशमातत करेगा यानी किसी को कोई मुसीबत पहुचती तो खुशी का इज़हार करेगा।
➡गीबत, झूट और फोहश कलामी से उस के राजो को आशकार करेगा।
➡बात करना छोड़ देगा और सलाम का जवाब नहीं देगा।
➡ये उसे हक़ारत की नज़र से देखेगा और उस पर जबान दराज़ी करेगा।
➡उस का मज़ाक उड़ाएगा।
➡उसकी हक़ तलफि करेगा और सीलए रहमी नही करेगा यानी अक़रीबा से मुरव्वत नहीं करेगा और रिश्तेदारो के हुक़ूक़ अदा नही करेगा और उनके साथ इन्साफ नहीं करेगा और तालिबे मुआफ़ी नही होगा।
➡दूसरो को भी उसकी इज़ा रसायनी पर उभारेगा। अगर कोई बहुत दीनदार है और गुनाहो से भागता है तो इतना ज़रूर करेगा कि उस के साथ जो एहसान करता था उस को रोक देगा और उसके साथ शफ़क़त से पेश नहीं आएगा और न उसके कामो में दिलसोज़ि करेगा और न उसके साथ अल्लाह के ज़िक्र में शरीक होगा और न उस की तारीफ़ करेगा।

ये तमाम बाते आदमी के नुकसान और उसकी खराबी का बाईष् होती है।

देखा आपने किने की वजह से इंसान दीगर गुनाहो और बुराइयो की दल दल में किस तरह फसता चला जाता है !
*#बुग्ज़ व किना स.14*
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नमाज़ के अहकाम

*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*

सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया :
अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।
*#सुनन इब्ने मजह 1/506*

हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।
*#फतवा रज़विय्या 7/254*

*नमाज़ के अहकाम 214*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~08

*सूरए बक़रह_पारह-01*

*आयत ①, तर्जुमह*
अलिफ़-लाम-मीम
*फफ्सिर*
हुरूफ़े मुकत्तआत जिसका मतलब सिर्फ अल्लाह जनता है और अल्लाह की अता से उसका रसूल

*आयत ②, तर्जुमह*
वो किताब के किसी किस्म का शक नहीं जिसमे. हिदायत हे डरजाने वालोंके लिये।
*तफ़सीर*
और रसूले करीम से जो वादा फ़रमाया गया था, के तुम्हे एक अनमिट किताब दूंगा और बनी इसराइल (हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की औलाद) से भी ये वादा हो चूका था, जिसके वो इंतज़ार करने वाले थे और मदीने में बहुत आबाद थे, बस वो शानदार किताब यही क़ुरआने करीम है।
और यही एक ऐसी किताब है के कलामे इलाही होने में, फेरफार से पाक होने में, तब्दील से पाक होने में, मोजिज़ा की हद तक पहोचने में, मोजिज़ा होने में किसी किस्म का शक नहीं।
शक का कोई प्रकार इसमें नहीं पाया जाता। जो इसमें किसी किस्म का शक रखता है, तो ये शक रखने वालेका जुर्म है। यही किताब है जिसमे शक की कोई गुंजाइश नही निकल सकती।
फरमाने हिदायत है। बल्कि खुद हिदायत है अल्लाह से डरजाने वालो के लिये।
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Wednesday 8 June 2016

बुग्ज़ व किना

*दिनदारी न होना*

हज़रते सय्यिदुना हातिमे असम ने इर्शाद फ़रमाया :
👉किना परवर कामिल दीनदार नहीं होता,
👉लोगो को ऐब लगाने वाला खालिस इबादत गुज़ार नहीं होता,
👉चुगल खोर को अम्न नसीब नहीं होता और
👉हासिद की मदद नहीं की जाती।
*#मिंहजुल आबिदीन, 70*

मालूम हुवा की अगर कोई शख्स किने, एबजोइ, चुगल खोरी और हसद में मुब्तला हो तो वो मुत्तक़ी परहेजगार कहलाने का हकदार नहीं। बज़ाहिर वो कैसा ही नेक सूरत व नेक सीरत हो।

अल्लाह तआला हमें ज़ाहिर व बातिन में नेक बनने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।
*आमीन बिजाहिन्नबीय्यिल अमिन*

*बुग्ज़ व किना, 13*
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सिरते मुस्तफा ​ﷺ


*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~01

सबसे पहले कुफ्फार कुरैश की औरते दफ बजा कर ऐसे अशआर गाती हुई आगे बढ़ी जिन में जंग बद्र के मक़्तूलिन का मातम और इन्तिक़ामे खून का जोश भरा हुवा था। लश्करे कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफ़यान की बीबी "हिन्द" आगे आगे और कुफ्फार कुरैश के मुअज़्ज़ज़् घरानो की 14 औरते उसके साथ साथ थी और ये सब आवाज़ मिला कर ये अशआर गया रही थी की...

हम आसमान के तारो की बेटिया है हम कालीनों पर चलने वालिया है..
अगर तुम बढ़ कर लड़ोगे तो हम तुम से गले मिलेंगे और पीछे क़दम हटाया तो हम तुम से अलग हो जाएंगे....

मुशरिकीन की सफों में से सबसे पहले जो शख्स जंग के लिये निकला वो अबू आमिर औसी था। जिसकी इबादत और पारसाई की बिना पर मदीना वाले उसको राहिब कहा करते थे मगर हुज़ूर ﷺ ने उसका नाम "फ़ासिक़" रखा था।
जमानए जाहिलिय्यत में ये शख्स अपने क़बीले ओस का सरदार था और मदीने का मक़बूले आम आदमी था। मगर जब रसूले अकरम मदीने में तशरीफ़ लाए तो ये शख्स जज़्बए हसद में जल कर खुदा के महबूब की मुखालफत करने लगा और मदीने से निकल कर मक्का चला गया और कुफ्फार कुरैश को आप से जंग करने पर आमादा किया। इसको बड़ा भरोसा था की मेरी क़ौम जब मुझे देखेगी तो रसूलल्लाह का साथ छोड़ देगी।

चुनान्चे उसने मैदान में निकल कर पुकारा की ऐ अन्सार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ? में अबू आमिर राहिब हु।

*सिरते मुस्तफा 258*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~07

*सूरए बक़रह, पारह-1*

अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा महेरबान और निहायत रहम करने वाला

क़ुरआने करीम की इस सूरह को जो मदिनेमे सबसे पहले नाज़िल हुई सुवा *इत्तकुन यौमन* से *तर्जुउन* तक, के हज्जतुल विदाके मैके पर मक्काह में नाज़िल हुई।

इसमें 286 आयते, 40 रूकू, 6121 कल्मे (शब्द), 25500 हरुफ़ है।

इसमें हज़ार कामो का हुक्म है, हज़ार बातो से रोका गया है। हज़ार हिकमते सिखाई गई है। और हज़ार खबरे दी गई है। जिसके पढ़ने में बड़ी बरकत है। शैतान इससे भागता है। इसके पढ़ने से क़ुरआन हमे हमेशा याद रहता है। जिसकी आयते क़ब्र के सिरहाने और पायेतिकी तरफ पढ़नेका हुक्म है।

ज़मान ए हज्जाज इब्ने युसूफ में दूसरी सूरतो के साथ उसका भी नाम ये रख्खा गया और इसको *सूरए बक़रह* कहा गया है। क्यू की इसमें गायका एक ऐसा अहम वाकेआ मौजूद है, जो दूसरी सूरतो में नही है।
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नमाज़ के अहकाम

*सज्दए शुक्र का बयान*

औलाद पैदा हुई या माल पाया या गम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।
*#आलमगिरी 1/136*

इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।
*#नमाज़ के अहकाम 214*
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Tuesday 7 June 2016

बुग्ज़ व किना

*दुआ कबूल नहीं होती*

हज़रते सय्यिदुना फ़क़ीह अबुल्लैष समार्कन्दी फरमाते है
3 अश्खास ऐसे है जिन की दुआ कुबूल नहीं की जाती
1⃣हराम खाने वाला
2⃣कशरत से गीबत करने वाला
3⃣जिसके दिल में अपने मुसलमान भाइयों का किना या हसद मौजूद ही।

मीठे मीठे इस्लामी भाइयों ! दुआ अपने रब्ब से हाजत तलब करने का बेहतरीन वसीला है, इसी के जरिए बन्दे अपने मन की मुरादे या खजानए आख़िरत पाते है। मगर किना पॉवर अपने किने के सबब दुआओ की कबुलियत से महरूम हो जाता है।
*#बुग्ज़ व किना-13*
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सिरते मुस्तफा


*जंगे उहुद*

ताजदारे दो आलम मैदाने जंग में
हिस्सा~02

मुशरिकीन ने भी निहायत बा क़ायदगी के साथ अपनी स्फो को दुरुस्त किया। चुनांचे उन्होंने अपने लश्कर के दाए बाजू पर खालिद बिन वलीद को और बाए बाजु पर इक़रमा बिन अबू जहल को अफसर बना दिया, सुवारो का दस्ता सफवान बिन उमय्या की कमान में था। तीर अंदाज़ों का एक दस्ता अलग था जिन का सरदार अब्दुल्लाह बिन रबीआ था और पुरे लश्कर का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा था जो क़बिलए बनी अब्दुद्दार का एक आदमी था।

हुज़ूर ﷺ ने जब देखा कि पुरे लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार क़बिलए बनी अब्दुद्दार का एक शख्स है तो आपने भी इस्लामी लश्कर का झन्डा हज़रते मुसआद बिन उमैर को अता फ़रमाया जो क़बिलए बनू अब्दुद्दार से तअल्लुक़ रखते थे
*#सिरते मुस्तफा, स.257*
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तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~06

*सूरतुल फातेहा, पारह-1*
*आयत ⑤ _तर्जुमह*_
चला हमको रास्ता सीधा
_*तफ़सीर*_
या अल्लाह ! हमारा चलना क्या और हम चल ही क्या सकते है ? बीएस अपने करमसे चला हमको उस रास्ते पर, जो तुझ तक पहोचा है, मौजूद भी है, बिलकुल सीधा भी है।

*आयत ⑥ _तर्जुमह*_
रास्ता उनका के इनआम फ़रमाया तूने जिन पर
_*तफ़सीर*_
वो रास्ता उनका रस्ता है, जो आज नया नहीं है। उस पर चलनेवाले चला किये। और ऐसा सीधा है के वो तुझ तक पहोंचे और ऐसा पहोंचे के इनआम फ़रमाया तूने जिन के खुदा रसीदह होने पर। और तेरे इनआम फरमाने ही से जाना के वो रास्ता अच्छा है। वो तेरे अम्बिया व सिद्दीक़ीन व शोहदा व स्वालेहिन का रास्ता है।

*आयत ⑦ _तर्जुमह*_
न उनका के गज़ब फ़रमाया गया जिन पर और न गुमराहोका।
_*तफ़सीर*_
न उन यहूदियो और न यहूदी प्रकृतिवालो का रास्ता के क़त्ले नाहक, तौहीन अम्बिया और ज़ुल्मकी वजहसे गज़ब फ़रमाया गया जिन पर। और न ईसाइयो और न इसाइय्यत नवाज़ (इसाइयोको खुश करने वाले), अल्लाह को छोड़ देने वाले गुमराहोका। और तेरे गज़ब फरमाने और गुमराह करार देने से ही हमने जाना के ये रास्ता बुरा है।

*अय अल्लाह इस दुआ को क़ुबूल फरमा*
आमीन
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Sunday 5 June 2016

नमाज़ के अहकाम

सज्दए तिलावत के मदनी फूल
हिस्सा~02

सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
मूलख्खसन फतावा रज़विय्या 8/223

आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार 2/584

नमाज़ के अहकाम स.212

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तफ़सीरे अशरफी




सूरतुल फातेहा, पारह-1
आयत ②
तर्जुमह
बड़ा महेरबान बख्शनेवाला
तफ़्सीर
और अपने सब बन्दों पर बड़ा महेरबान है और मोमिन हो या काफ़िर, सब पर महेरबानी फ़रमाता है। और क़यामत के दिन मुसलमानो में गुनाहगारो को वही बख्शनेवाला है।

आयत ③
तर्जुमह
मालिक रोज़े जज़ाका।
तफ़्सीर
वही है, जो क़यामत के दिन सबको दिखलाई पड़ेगा के वही और सिर्फ वही मालिक क़यामत के दिन का है। और कोई उस दिन मिल्कीय्यत का दावेदार नही है।

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बुग्ज़ व किना

रहमत व मग्फिरत से महरूमी

नबी ﷺ का फरमान है :
अल्लाह शाबान की 15वी रात अपने बन्दों पर (अपनी क़ुदरत के शायाने शान) तजल्ली फ़रमाता है, मग्फिरत चाहने वालो की मग्फिरत फ़रमाता है और रहम तलब करने वालो पर रहम फ़रमाता है जबकि *किना* रखने वालो को उन की हालत पर छोड़ देता है।
#शोएबुल ईमान

नाज़ुक फेसलो की रात

उम्मुल मोअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु अन्हा से मरवी फरमाने मुस्तफा में ये भी है कि शाबान की 15वी रात में मरने वालो के नाम, लोगो को रिज़्क़ और हज करने वालो के नाम लिखे जाते है।
#तफ़्सीर अल-दुर्रेमंसुर

ज़रा गौर फरमाइये शाबान की रात कितनी नाज़ुक है ! न जाने किस किस की किस्मत में क्या लिख दिया जाए ! ऐसी अहम रात में भी *किना परवर* बख्शिश व मग्फिरत की खैरात से महरूम रहता है।

बनादे मुझे नेक, नेको का सदक़ा
     गुनाहो से हरदम बचा या इलाही

बुग्ज़ व किना स.10

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Saturday 4 June 2016

*हदिष शरीफ*

सुलेह हुदैबिया के मौके पर हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उष्मान رضي الله تعالي عنه को मक्का में मुशरिकीन के पास भेजा तो क़ुरैश ने हज़रते उष्मान से कहा की तुम काबे का तवाफ़ करलो,
हज़रते उष्मान ने जवाब दिया में उस वक़्त तक काबे का तवाफ़ नहीं करूँगा जब तक आक़ाए करीम काबे का तवाफ़ न करले...
*✍🏽दलाइनु-नुबुव्वत* 4/135

सुब्हान अल्लाह
*क्या शान है मेरे आक़ा ﷺ की...*

एक सिम्त अली एक सिम्त उमर
सिद्दीक़ इधर उष्मान उधर...
इन जग मग जग मग तारो में
सरकार का आलम क्या होगा...
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सिरते मुस्तफा ﷺ


जंगे उहुद

हुज़ूर ने यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया
हिस्सा~02

अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बात सुन कर क़बिलए खज़रज में से "बनू सलमह" के और क़बीलए औस में से "बनू हारिष" के लोगो ने भी वापस लौट जाने का इरादा कर लिया मगर अल्लाह तआला ने इन लोगो के दिल में अचानक महब्बते इस्लाम का ऐसा जज़्बा पैदा फ़रमा दिया कि इन लोगो के क़दम जम गए।

चुनान्चे अल्लाह तआला ने क़ुरआन में इन लोगो का तज़किरा फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया :
*जब तुम् में के दो गुरौहो का इरादा हुवा की न मर्दि कर जाए और _अल्लाह_ इन का संभालने वाला है और मुसलमानो को _अल्लाह_ ही पर भरोसा होना चाहिये*

जब हुज़ूर ﷺ के लश्कर में कुल 700 सहाबा रह गए जिन में 100 ज़िरह पोश थे और कुफ़्फ़ार की फ़ौज में 3000 अशरार का लश्कर था जिन में 700 ज़िहर पोश जवान, 200 घोड़े, 3000 ऊंट और 15 औरते थी।

शहर से बहार निकल कर हुज़ुर ﷺ ने अपनी फ़ौज का मुआयना फ़रमाया और जो लोग कम उम्र थे, उनको वापस लौटा दिया कि जंग के हौलनाक मौके पर बच्चों का क्या काम ?

सिरते मुस्तफा स.255

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नमाज़ के अहकाम

सज्दए तिलावत के मदनी फूल
हिस्सा~01

आयते सज्दा पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब हो जाता है। लड़ने में ये शर्त है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उज़्र न हो तो खुद सुन सके, सुनने वाले के लिये ये ज़रूरी नही कि बिल क़स्द सुनी हो बिला क़स्द सुनने से भी सज्दा वाजिब हो जाता है।

किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पड़ने और सुनने वाले पर सज्दा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने ये समझा हो या न समझा हो कि आयते सज्दा का तर्जमा है। अलबत्ता ये ज़रूरी है कि उसे न मालुम हो तो बता दिया गया हो की ये आयते सज्दा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो तो इसकी ज़रूरत नहीं की सुनने वाले को आयते सज्दा होना बताया गया हो।
आलमगिरी 1/133

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

नमाज़ के अहकाम स.212

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इफ्तार में जल्दी करना अफज़ल है



सहल बिन सअद رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फ़रमाया :
लोग हमेशा नेकी पर रहेंगे, जब तक वो रोज़ा जल्दी इफ्तार करते रहेंगे।

हदिष की सरह
शिया और रवाफ़िज ने चुकी यहूदीयत की कोख से जन्म लिया है। इसलिए वो भी रोज़ा इफ्तार करने के लिए सितारों को चमकने का इंतज़ार करते रहते है। नबी ने इस अमल को खैर और बरकत से खाली करार दिया है।
मुख़्तसर सही बुखारी जी.2 स.725

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Friday 3 June 2016

बुग्ज़ व किना

बख्शिस नहीं होती

हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया :
हर पिर और जुमेरात के दिन लोगो के आमाल पेश किये जाते है, फिर बुग्ज़ व किना रखने वाले के इलावा हर मोमिन को बख्श दिया जाता है और कहा जाता है : इन दोनों को छोड़ दो यहाँ तक की ये बुग्ज़ से वापस पलट आएं।

मुसलमानो का किना अपने सिनेमे पालने वालो के लिए रोने का मकाम है की खुदाए रहमान की तरफ से बख्शीश के परवाने तकसीम होते है लेकिन किना परवर अपनी कलबी बीमारी की वजह से बख्शे जाने वाले खुश नसीबो में शामिल होने से महरूम रह जाते है।

तुजे वासिता सारे नबियों का मौला
          मेरी बख्श दे हर खता या इलाही....

बुग्ज़ व किना स. 9

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हदिष शरीफ



हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से फरमाते है :
जब भी किसी ऐसे शख्स की क़ब्र के पास से गुज़रे जिस को वो दुन्यमे पहचानता था, पस उसको सलाम करे
तो वो (अहले क़ब्र) उसको पहचानता है और सलाम का जवाब भी देता है...

तारीखे बग़दाद 6/15
कन्जुल उम्माल 42556

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सिरते मुस्तफा ﷺ


जंगे उहुद

हुज़ूर ने यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया
हिस्सा~01

शहर से निकलते ही आप ﷺ ने देखा की एक फ़ौज चली आ रही है। आप ﷺ ने पूछा कि ये कौन लोग है ? लोगो ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! ये रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य के हलिफ् यहूदियो का लश्कर है जो आप की इमदाद के लिये आ रहा है।

आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
इन लोगो से कह दो वापस लौट जाए। हम मुशरिकों के मुक़ाबले में मुशरिकों की मदद नहीं लेंगे।

चुनान्चे यहूदियो का ये लश्कर वापस चला गया। फिर अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफ़ीक़ो का सरदार) भी जो तिन सो आदमियो को ले कर हुज़ूर ﷺ के साथ आया था ये कह कर वापस चला गया कि मुहम्मद ने मेरा मशवरा क़बूल नहीं किया और मेरी राय के खिलाफ मैदान में निकल पड़े, लिहाज़ा में इन का साथ नहीं दूंगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

सिरते मुस्तफा स.254

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