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Sunday 31 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #22
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#16
*जिस्मे आदम عليه السلام के लिये मिट्टी ली गई*
     आदम عليه السلام के जिस्मे अतहर की तख़्लीक़ के लिये मिट्टी लाने के लिये हज़रत जिब्राइल को ज़मीन पर भेजा गया। आप जब तशरीफ़ लाये तो ज़मीन से मिट्टी लेने का इरादा किया तो ज़मीन ने बड़ी आजिज़ी व इंकसारी और गिरया वुज़ारी से अर्ज़ किया कि मेरी मिट्टी से बनने वले शख्सों ने अगर खूंरेज़ियां की या वह ज़ुर्म की वजह से जहन्नम में गये तो तकलीफ होगी।
     हज़रत जिब्राइल ज़मीन की आजिज़ी को देखकर वापस चले गये और अल्लाह के हुजूर तमाम माजरा बयान कर दिया इसी तरह इस्रफिल भी आकर वापस चले गये और मिकाइल भी आकर वापस चले गये। इन तमाम के बाद इज़राइल आये उनकी खिदमत में भी ज़मीन ने वही आजिज़ाना गुफ्तगू की लेकिन आपने कहा कि में तेरी बात तस्लीम करूँ या अल्लाह के हुक्म पर अमल करू ? मुझे अल्लाह का हुक्म है इसलिये मुझे तो मिट्टी ज़रूर ही लेकर जाना है, आपने ज़मीन की इन्किसारी की तरफ कोई तवज्जोह नहीं दी बल्कि इरशादे बारी तआला के मुताबिक़ ज़मीन से मिट्टी लेकर रब के हुजूर हाज़िर हो गये, इसी वजह से अल्लाह ने रूह क़ब्ज़ करना भी उनके सुपुर्द किया कि ऐसा न हो कि जिब्राइल, मिकाइल, इस्राफिल में से किसी के ज़िम्मे लगाया तो रूह क़ब्ज़ करने के लिये जायें तो उसके अक़रबा को रोते हुए पाकर इसी तरह छोड़ कर न आ जाये।

*केसी मिट्टी ली गई ?*
     हज़रत अबू मूसा अशअरी से मरफुअ हदिष मरवी है : बेशक अल्लाह ने हुक्म दिया कि तमाम ज़मीन से एक मुठ्ठी भर मिट्टी ले आओ। उस मिट्टी में हर किस्म के ज़र्रात शामिल किये गये सुर्ख रंग, सफेद रंग, स्याह रंग और उनके दरमियान रंग वाली मिट्टी ली गई। इसी तरह कुछ मिट्टी नर्म ज़मीन से ली गई और कुछ सख्त ज़मीन से, ऐसे ही तैय्यब या खबीस मिट्टी को शामिल किया गया, जिनते किस्म के रंगों वाली मिट्टी आपके जिस्म में लगाई गई आपकी औलाद में उतने ही रंग पाये जाते है इसी तरह कोई नर्म और कोई सख्त दिल कोई नेक और कोई बुरे।
     बाज़ हज़रात ने बयान किया कि हज़रत आदम عليه السلام की मिट्टी में साठ किस्म के रंग शामिल थे वह तमाम आपकी औलाद में पाये जाते है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 36
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #27
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*नमाज़ की बरकतें वाक़ीयात की रौशनी में* #02
नमाज़ की बरकतों के सिलसिले में हज़रत अब्दुर्रहमान सफुरी عليه رحما नुज़हतुल मजालिस में तहरीर फ़रमाते है : नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया : तवील क़याम (यानी नमाज़ में देर तक खड़ा रहना) क़यामत में अमान का ज़ामिन (जमानतदार) है।
*✍🏼नुज़हतुल मजालिस*

     हज़रत ईशा عليه السلام ने फ़रमाया : तवील क़याम पुलसिरात पर अमान का बाइस है और तवील सज्दा अज़ाबे क़ब्र से बचने का ज़रिया है। बाज़ बुज़ुर्गो ने फ़रमाया : सकरात मौत में आसानी का सबब है। आप ने मज़ीद फ़रमाया : तवील सज्दा अल्लाह की महबूबियत का वसीला है।
     हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضي الله عنه ने फ़रमाया : लम्बा सज्दा जन्नत में हमेशगी का सबब है।
*✍🏼नुज़हतुल मजालिस*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 22
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ का तरीक़ा* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*शदीद ज़ख़्मी हालत में नमाज़*
     जब हज़रते उमर फारुके आज़म رضي الله تعالي عنه पर क़ातिलाना हमला हुआ तो अर्ज़ की गई, ऐ अमीरुल मुअमिनीन ! नमाज़ का वक़्त है।
     फ़रमाया, जी हा, सुनिये ! जो शख्स नमाज़ को जाएअ करता है उसका इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं।
     और आप ने शदीद ज़ख़्मी होने के बा वुज़ूद नमाज़ अदा फ़रमाई।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 145*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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Saturday 30 December 2017

*नमाज़ का तरीक़ा* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*किसका किसके साथ हशर होगा*
     हज़रते मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा नक़ल करते है, बाज़ उलमए किराम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है, नमाज़ के तारिक को इन 4 (फिरऔन, क़ारून, हामान ओर उबय बिन खलफ़्) के साथ इस लिये उठाया जाएगा की लोग उमुमन दौलत, हुकूमत, वज़ारत और तिजारत की वजह से नमाज़ को तर्क करते है।
     जो हुकूमत की मशगुलिययत के सबब नमाज़ नहीं पढेगा उसका हशर फिरऔन के साथ होगा।
     जो दौलत के बाइस नमाज़ को तर्क करेगा तो उसका क़ारून के साथ हशर होगा।
     अगर तर्के नमाज़ का सबब वज़ारत होगी तो फिरऔन के वज़ीर हामान के साथ हशर होगा।
     अगर तिजारत की मसृफिय्यत की वजह से नमाज़ छोड़ेगा तो उस को मक्कए मुकर्रमा के बहुत बड़े काफ़िर ताजिर उबय बिन खलफ़् के साथ बरोज़े क़यामत उठाया जाएगा।
*✍🏼किताब अल-कबीर, स.21*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 144*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*खाने के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     खाने के अव्वल आखिर खाने का वुज़ू करे यानी दोनों हाथ धोए और कुल्ली करे, खाना शुरू करने से पहले بسم الله पढ़े, सीधे हाथ से और अपने सामने से खाए, छोटे छोटे लुक़मा ले और अच्छी तरह चबा चबा कर खाए, खाने वालों के चेहरों की तरफ नज़रें न जमाए (यानी दूसरों के लुक़्मे न ताड़े), टेक लगा कर न खाए, भूक से ज़्यादा न खाए। जब पेट भर जाए तो हाथ रोक ले जब कि मेहमान या जिसे अभी खाने की हाजत हो, शर्म महसूस न करें, बर्तन की एक तरफ से खाए, दरमियान में से न खाए, खाने के बाद उँगलियों को चाट ले और अल्लाह की हम्द बयान करे (यानी खाने के बाद की दुआ पढ़े) खाना खाते हुए मौत को याद न किया जाए ताकि लोग खाने से हाथ न खीच ले।
*✍🏼आदाबे दीन* 45
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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Friday 29 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #19
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#13
*इल्म के फ़ज़ाइले अक़लिया व नक़लिया* #02
*सात पैगम्बरों को इल्म की वजह से बहुत बड़े फायदे हासिल हुए*
     (1) हज़रत आदम عليه السلام को इल्म की वजह से फरिश्तों पर बुज़ुर्गी दी गई और फरिश्तों को उनके सामने सज्दा करने का हुक्म दिया गया।
     (2) हज़रत ख़िज़्र عليه السلام के मुतअल्लिक़ अहले इल्म का इख़्तेलाफ है कि यह नबी है या वली...के इल्म की वजह से उनकी और मूसा عليه السلام की मुलाक़ात हुई और कुछ अशिया के ज़ाहिर व बातिन का फ़र्क़ वाज़ेह हुआ।
     (3) युसूफ عليه السلام इल्म की वजह से ख्वाब् की ताबीर ब्यान करने पर क़ैदखाने से निकल कर शाही दरबार में पहुच कर वज़ीर खज़ाना और तमाम बादशाही कामों के लिये मुक़र्रर हो गये।
     (4) हज़रत सुलेमान عليه السلام को इल्म की वजह से बिलकिस जेसी मलका बहैसियत ज़ौजा मिली, और उसे भी आपके इल्म की वजह से ईमान नसीब हुआ।
     (5) हज़रत दाऊद عليه السلام को इल्म की वजह से मनसबे नबुव्वत के साथ साथ बादशाही भी हासिल रही।
     (6) ईसा عليه السلام ने अपने वालदा हज़रत मरयम की तोहमत को इल्म की वजह से दूर फ़रमाया।
     (7) हुज़ूर नबीए करीम ﷺ को तमाम कायनात से ज्यादा उलूम अता फ़रमाकर खिलाफ़ते इलाहया और शफआते कुबरा के दर्जा रफिया पर मुतमक्कीन फ़रमाया।
     क़ुरआन में 7 चीज़ों के मुतअल्लिक़ ज़िक्र है कि वह एक दूसरे के बराबर नहीं :
(1) आलिम ! और जाहिल बराबर नहीं।
(2) खबीस और तैय्यब यानी नापाक और पाक बराबर नहीं।
(3) दोज़खी और जन्नती बराबर नही।
(4) अंधा और आँख वाला यानी इल्म और ईमान वाला और उनसे खाली बराबर नहीं।
(5) जुल्मत और नूर यानी इल्म और ईमान की नुरानीयत और उनसे खाली होने की वजह से हासिल होने वाली तारीकी बराबर नहीं।
(6) सर्दी और गर्मी बराबर नहीं।
(7) जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 34
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Thursday 28 December 2017

*नमाज़ का तरीका* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     क़ुरआन व हदिष में नमाज़ पढ़ने के बे शुमार फ़ज़ाइल और न पढ़ने की सख्त सजाए वारिद है, चुनान्चे पारह 28 सूरतुल मुनाफिकिन की आयत नंबर 9 में इरशादे रब्बानी है,
*ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज़ तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुक़सान में है।*
     हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद बिन अहमद ज़हबी अलैरहमा नक़ल करते है, मुफ़स्सिरीने किराम रहमतुल्लाह तआला फरमाते है की आयते मुबारका में अल्लाह तआला के ज़िक्र से पाँच नमाज़े मुराद है, पस जो शख्स अपने माल यानि खरीदो फरोख्त, मईशत व रोज़गार, साज़ो सामान और औलाद में मसरूफ़ रहे और वक़्त पर नमाज़ न पढ़े वो नुक़सान उठाने वालो में से है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 142,143*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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Wednesday 27 December 2017

*नमाज़ की अहमिय्यत* #23
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में_* #03
हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : जो जान बुझकर नमाज़ छोड़ देता है उसका नाम जहन्नम के उस दरवाज़े पर लिख दिया जाता है जिससे उसे दाखिल होना है।
*✍🏼कन्जुल उम्माल*
     यानी बे-नमाज़ी का जहन्नम में दाखिला ऐसा यक़ीनी मामला है कि जहन्नम के दरवाज़े में उसका नाम लिख दिया जाता है।

     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : जिसने नमाज़ छोड़ दी उसका कोई दीन नहीं, नमाज़ दीन का सुतून है।
*✍🏼कन्जुल उम्माल*
     यानी ऐसे शख्स के ईमान का कोई भरोसा नहीं जो नमाज़ न पढ़ता हो।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 21
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     तीनो कुल बिला लफ़्ज़े कुल ब निययते सना पढ़ सकते है। लफ़्ज़े कुल के साथ सना की निय्यत से भी नहीं पढ़ सकते क्यू की इस सूरत में इन का क़ुरआन होना मूतअय्यन है, निय्यत को कुछ दखल नहीं।
     बे वुज़ू क़ुरआन शरीफ या किसी आयत का छूना हराम है। बिगैर छुए ज़बानी या देख कर पढ़ने में मुज़ायक़ा नहीं।
     जिस बर्तन या कटोरे पर सूरत या आयते क़ुराआनी लिखी हो बे वुज़ू और बे गुस्ल को इस का छूना हराम है। इस का इस्तिमाल सब के लिये मकरूह है। हा ख़ास ब निययते शिफ़ा इसमें पानी वगैरा डाल कर पिने में हरज नहीं।
     क़ुरआने पाक का तर्जमा फ़ारसी या उर्दू या किसी दूसरी ज़बान में हो उस को भी पढ़ने या छूने में क़ुरआने पाक ही का सा हुक्म है।
*✍🏼बहरे शरीअत, जी.1 स. 326-327*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 100*
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Tuesday 26 December 2017

*नमाज़ की अहमिय्यत* #22
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में_* #02
हज़रत अब्दुल्लाह बिन शक़ीक़ फ़रमाते है : रसूले पाक ﷺ के सहाबा आमाल में से किसी अमल के छोड़ देने को कुफ़्र नहीं शुमार करते थे सिवाए नमाज़ के।
*✍🏼तिर्मिज़ी शरीफ*
     यानी सहाबा नमाज़ न पढ़ने को कुफ़्र शुमार करते थे (अल्लाह की पनाह !)
 
     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने फ़रमाया : जिसने नमाज़ की हिफाज़त नहीं की तो न क़यामत के दीन उसके लिये रौशनी होगी और न ही हुज्जत बल्कि वो क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय बिन खल्फ़ (दुश्मनाने इस्लाम) के साथ होगा।
*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल*
     इन सारे बदबख्तो का ठिकाना जहन्नम है और बे-नमाज़ी का इनके साथ होने का मतलब ये है कि वो भी जहन्नम में इनके साथ अज़ाब में गिरफ्तार होगा।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 20
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*नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल* #01
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     जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उसको मस्जिद में जाना, तवाफ़ करना, क़ुरआने पाक छूना, बे छुए ज़बानी पढ़ना, किसी आयत का लिखना, आयत का तावीज़ लिखना (लिखना उस सूरत में हराम है जिस में कागज़ का छूना पाया जाए, अगर कागज़ को न छुए तो लिखना जाइज़ है), ऐसा तावीज़ छूना, ऐसी अंगूठी छूना या पहनना जिस पर आयत या हुरूफ़े मुक़त्तआत लिखे हो हराम है.
     अगर क़ुरआने पाक जुज़दान में हो तो बे वुज़ू या बे गुस्ल जुज़्दान पर हाथ लगाने में हरज नहीं।
     इसी तरह किसी ऐसे कपड़े या रुमाल वगैरा से क़ुरआने पाक पकड़ना जाइज़ है जो न अपने ताबे हो न क़ुरआने पाक के. कुर्ते की आस्तीन, दुपट्टे के आँचल से यहाँ तक की चादर का एक कोना इसके कंधे पर है तो चादर के दूसरे कोने से क़ुरआने पाक को छूना हराम है की ये सब चीज़े इस छूने वाले के ताबे है।
     क़ुरआने पाक की आयत दुआ की निय्यत से या तबर्रुक के लिये मसलन बीसमील्ला-ही-र्रहमा-निर्रहीम या अदाए शुक्र के लिये अल्हम्दुलिल्लाह या किसी मुसलमान की मौत या किसी किस्म के नुकसान की खबर पर इन्नलिल्लाहि व-इन्न इलैहि राजिउन या सना की निय्यत से पूरी सूरतुल फातिहा या आयतुल कुर्सी या सूरतुल हशर की आखरी 3 आयते पढ़े और इन सब सूरतो में क़ुरआन पढ़ने की निय्यत न हो तो कोई हरज नहीं।
*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1 स.326*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 98-99*
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*हज के आदाब* #02
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*ऐहराम के आदाब*
     एहराम बांधने से पहले अच्छी तरह गुस्ल करे, एहराम की चादरों की पाकीज़गी व सफाई का ख्याल रखे, खुशबु लगाए, मुफ़लिस व तंगदस्त की मदद करे, दिल में खौफे खुदा रखते हुए तल्बिया कहे, और अल्लाह की तरफ से तल्बिया के जवाब की हलावत व मिठास महसूस करते हुए बुलन्द आवाज़ से तल्बिया कहे, काबए मुशर्र्फ़ा की हुरमत व ताज़ीम मद्दे नज़र रखते हुए तवाफ़ करे, रिज़ाए इलाही तलब करते हुए सफा व मर्वाह की सई करे, क़यामत को पेशे नज़र रखते हुए वुकुफे अरफा करे, रहमते इलाही की उम्मीद रखते हुए मुज़्दलिफा में हाज़िर हो और (जहन्नम से) आज़ादी को मद्दे नज़र रखते हुए (मिना में) हल्क़ करवाए, गुनाहों का कफ़्फ़ारा ख्याल करते हुए क़ुरबानी करे, इताअते इलाही बजा लाते हुए रम्ये जमरात करे (यानी शैतानों को कंकरियां मारे), पुल सिरात को पेशे नज़र रखते हुए तवाफे ज़ियारत करे अगर्चे यहाँ (यानी खानए काबा में) कोई तेज़ धार चीज़ नहीं, हक़ीक़ी नदामत और दिल में बार बार हाज़िर होने की तड़प लिये वापस पलटे।
*✍🏼आदाबे दिन* 41
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 25 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#08
*आदम عليه السلام के उलूम*
     और अल्लाह ने आदम को तमाम अशिया के नाम सिखाए फिर सब अशिया मलायका पर पेश करके फ़रमाया सच्चे हो तो इनके नाम बताओ।
     हज़रत इब्ने अब्बास, अकरमा, क़तादा, मिजाहिद और इब्ने ज़ुबेर رضى الله عنهم का इर्शाद है : अल्लाह ने आप को तमाम चीज़ों के नामों का इल्म अता किया यहाँ तक कि बड़े और छोटे प्याले के नाम भी बताये।
     बाज़ हज़रात ने इब्ने अब्बास رضي الله عنه की तरफ क़ौल मन्सूब करते हुए कहा कि आप ने फ़रमाया कि हज़रत आदम عليه السلام को अल्लाह ने जो कुछ हो चूका है और जो कुछ होना है उसका इल्म अता फ़रमाया।
     पहले मायने और इस मायने के लिहाज़ से मक़सद एक ही है कि अल्लाह ने आप को तमाम चीज़ों और उनके नामों का इल्म अता कर दिया ख्वाह वह पहले पाई जा चुकी है या बाद में पाई जाने वाली है।
     इमाम رضي الله عنه ने फ़रमाया कि आप को तमाम चीजों की सिफ़ात और नेमतें और खास तक का इल्म अता फरमा दिया गया था।
     अल्लाह ने आपको तमाम चीज़ों के अहवाल और उनसे दीनी या दुन्यवी मुनाफ़ा जो मुतअल्लिक़ है उन तमाम का इल्म अता फरमा दिया था।
     एक क़ौल के मुताबिक़ आप عليه السلام को तमाम ज़बाने सिखा दी गई और एक क़ौल के मुताबिक़ आप को तमाम मलायका के नामों से आगाह कर दिया गया, और एक क़ौल के मुताबिक़ आप को सितारों के नामों पर मुत्तला फरमा दिया गया था।
     अल्लामा आलुसी رحمةالله علىه ने मुख़्तलिफ़ अक़वाल नक़ल करने के बाद हकीम तिर्मिज़ी का क़ौल नक़ल किया कि इस आयते करीमा में अस्मा (नाम) से मुराद अस्माए इलाहया है। इस के बाद आपने फ़रमाया मेरे नज़दीक हक़ यह है और तमाम अल्लाह वाले भी इसे ही हक़ मानते है और मनसबे खिलाफत का तक़ाज़ा भी यही है कि आप को तमाम आशिया के नाम का इल्म अता किया गया है। वह अशिया ख्वाह अलवी हो या सिफली जौहरी हों या अर्ज़ी, इन तमाम के नामों को अल्लाह के अस्मा ही कहा जाता है। क्योंकि तमाम चीज़ें अल्लाह की ज़ात पर दलालत करती है, और अल्लाह की ज़ात के जलवे तमाम अशिया से ज़ाहिर होते है अगर्चे अल्लाह उनमें मुक़य्यद नहीं होता।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 31
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #21
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में* #01
     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : तुम हरगिज़ फ़र्ज़ नमाज़ को जान बूझकर न छोड़ना इसलिये कि जो जान बूझकर फ़र्ज़ नमाज़ों को छोड़ देता है वो अल्लाह के जिम्मए करम से बाहर हो जाता है।
*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल*
     अब ज़ाहिर है कि अल्लाह जिस शख्स को अपनी ज़िम्मेदारी से बाहर निकाल दे वो कैसे कामयाब हो सकता है ?

     हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : वो अहद जो हमारे और मुनाफिक़ीन के दरमियान हाएल है वो नमाज़ है। जिसने नमाज़ छोड़ दी समझो उसने काफिरों जैसा काम किया।
*✍🏼सुनने तिर्मिज़ी*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 19
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Sunday 24 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #14
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#07
*अल्लाह के मशवरा तलब करने पर फरिश्तों का ताज्जुब से सवाल*
     जब अल्लाह ने फरिश्तों से खलीफा बनाने का मशवरा तलब किया तो फरिश्तों ने ताज्जुब करते हुए रब से सुवाल किया : क्या ऐसे को (नायब) करेगा जो उसमें फसाद फैलाये और खून रेज़ियां करे ? और हम तुझे सराहते हुए तेरी तस्बीह करते और तेरी पाकी बोलते है।
     फरिश्तों ने रब पर कोई एतराज नहीं किया और न ही कोई मुखालफत की बल्कि उनको अल्लाह ने पहले ही यह इल्म दे रखा था कि जो खलीफा में बनाने वाला हूँ उसमे और उसकी औलाद में अनासिर अरबा की आमेज़िश होगी जो एक दूसरे के मुखालिफ होंगे यानी आग, मिट्टी, पानी, हवा का मजमुआ होगा। यह इल्म फरिश्तों को रब के बताने से हासिल हुआ था या उन पर लौहे महफूज़ को मुनकसिफ करने से हासिल हुआ था। उन्होंने समझा कि मुखालिफ और ज़िद की चीज़ें मिलने से तो फसाद ही फसाद होगा, खलीफा तो इसलिये बनाया जाता है कि ज़मीन में भलाई क़ायम हो और लोगों को बलाई की राह पर क़ायम किया जाये और उनके नफ़्सो की तकमील की जाये और उनमें अल्लाह के अहकाम जारी किये जाये तो जिस की बिना ही फसाद पर होगी उस से यह काम कैसे हो सकेंगे ?
     यह सवाल उनका मख़फ़ी हिकमत के पता चलाने के लिये था या इस सवाल पर तअज्जुब करते हुए था कि जो फसाद फेलाने वाले होंगे उनसे ज़मीन को आदाब करना और उसमे सलाहियत पैदा करना क्योंकर मुमकिन होगा ?
     ख्याल रहे कि यह फरिश्तों की इज्तेहादि खता थी कि उन्होंने समझा शायद तमाम इंसान ऐसे होंगे हालांकि अम्बियाए किराम मासूम होने की वजह से नेक और पारसा, सालेह व मुत्तक़ी लोग अल्लाह की हिफाज़त में होने की वजह से फसाद बरपा करने से पाक है।
     फरिश्तों के ख्याल के मुताबिक़ उनकी तस्बीह व तक़दिस और इस्मत के पेशे नज़र वह खिलाफ़ते इलाहया के ज़्यादा मुस्तहिक़ थे, उनके इस तरह के कसुरे इल्म को ज़ाहिर करने के लिये अल्लाह ने फ़रमाया : "ऐ मेरे फरिश्तों ! में वह सब कुछ जानता हु जो तुम नहीं जानते। महज़ तस्बीह व तक़दिस मैयारे खिलाफत नहीं और न ही मुख़्तलिफ़ और एक दूसरे की ज़िद अनासिर से मुरक्कब होना मनसबे खिलाफत के मनाफि है। बल्कि खिलाफत का मैयार यह है कि अल्लाह का खलीफा जिन चीज़ों का गैरो को हुक्म दे उन पर खुद भी अमल करे, इसलिये सारे इंसान फसाद और नाहक़ खुनरेजि करने के गुनाहों में मुब्तला नही होंगे, उनमें कुछ मासूम होंगे जो अल्लाह के खलीफा बनने के हक़दार होंगे।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 30
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #20
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_नमाज़ की फ़ज़ीलत अहादिष की रौशनी में_* #08
हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : जिसने वुज़ू किया जैसा कि हुक्म है और नमाज़ पढ़ी जैसा कि हुक्म है तो जो पहले किया है (यानी छोटे गुनाह) वो माफ़ हो गया।
*✍🏼नसई शरीफ*

     हज़रत हनज़ला कातिब رضى الله عنه से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ को ये फ़रमाते हुए सुना : जो पंजवक्ता नमाज़ों को सही रूकू, सज्दा और वक़्त की पाबन्दी के लिहाज़ से अदा करे और जान ले कि ये अल्लाह की तरफ से हक़ है तो वो जन्नत में दाखिल होगा। या रावी ने कहा उस के लिये जन्नत वाजिब हो जाएगी या जहन्नम उस पर हराम कर दी जाएगी।
*✍🏼मुसन्दे अहमद*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 19
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*गुस्ल का तरीक़ा* #11
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*गुस्ल से नज़ला बढ़ जाता हो तो❓*
     ज़ुकाम या आशोबे चश्म वग़ैरा हो और ये गुमाने सहीह हो की सर से नहाने में मरज़ बढ़ जाएगा या दीगर अमराज़ पैदा हो जाएगे तो कुल्ली कीजिये, नाक में पानी चढ़ाइये और गर्दन से नहाइये। और सर के हर हिस्से पर भीगा हुवा हाथ फेर लीजिये गुस्ल हो जाएगा। बादे सिह्ह्त सर धो डालिये पूरा गुस्ल नए सिरे से करना ज़रूरी नहीं।
*✍🏼माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1 स. 318*

*_बाल्टी से नहाते वक़्त एहतियात_*
     अगर बाल्टी के ज़रिए गुस्ल करे तो एहतियातन उसे तिपाई (stool) वग़ैरा पर रख लीजिये ताके बाल्टी में छीटे न आए। नीज़ गुस्ल में इस्तिमाल करने का मग भी फर्श पर न रखिये।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 95,96*
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*हज के आदाब* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*सफरे हज के आदाब*
     पाक व हलाल माल साथ ले, किराए पर सुवारी देने वाले के साथ अच्छा बर्ताव करे, हम सफरों के साथ तआवुन करे और रास्ता भूलने वाले के साथ नरमी से पेश आए, (अपना) ज़ादे राह खर्च करे हुस्ने अख़्लाक़ की आदत बनाए, अच्छी गुफ्तगू करे, हँसी मज़ाक़ करे तो वो झूट और ना फ़रमानी से पाक हो, (मुआमलात में) इस्लाह व दुरस्ती को पसंद करे। जब हम सफर की बात तवज्जोह से सुने, उस की परेशानी व उकताहट के वक़्त उस से तल्ख कलामी से पेश न आए, अपने हम सफर की लग्जिस् से गफलत न बरते, वो इस की खिदमत करे तो उस का शुक्रिया अदा करे, उस पर ईसार करे और उसके साथ तआवुन करे।
*✍🏼आदाबे दीन* 40
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Saturday 23 December 2017

*गुस्ल का तरीक़ा* #10
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*तंग लिबास वाले की तरफ नज़र करना कैसा❓*
     लिबास तंग हो या ज़ोर से हवा चली या बारिश या साहिले समुन्दर या नहर वग़ैरा में अगर्चे मोटे कपड़े में नहाए और कपड़ा इस तरह चिपक जाए की सित्र के किसी कामिल उज़्व मस्लन रान की मुकम्मल गोलाई की हैअत (उभार) ज़ाहिर हो जाए ऐसी सूरत में उस उज़्व की तरफ दूसरे को नज़र करने की इजाज़त नहीं।

     यही हुक्म तंग लिबास वाले के सित्र के उभरे हुए उज़्वे कामिल की तरफ नज़र करने का है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 95*
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*रोज़े के आदाब*
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     रोज़ादार पाक व हलाल ग़िज़ा खाए और लज़ीज़ खाने छोड़ दे, गीबत और झूट से इज्तिनाब करे, दूसरों को तकलीफ न दे और आज़ा को बुराइयों से बचाए।
*✍🏼आदाबे दीन* 39
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Friday 22 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #12
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#05
*मुसलमानो की जुबुं हाली की वजह* #01
     खिलाफ़ते राशिदा अदलिया के बाद मुसलमानों पर दुन्या की महब्बत ग़ालिब आ गई। अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की महब्बत उन के दिलों में रासिख न रही, दुन्या की महब्बत की वजह से मौत से उनके दिलों में कराहत पैदा हो गई और अल्लाह की राह में जान देने का जज़्बा कामिल न रहा, जिसकी वजह से उम्मते मुस्लिमा बदहाली का शिकार हो गई, गैरों पर उस को ग़ालिब रहने की नेअमत से महरूम कर दिया गया।
     सुनन अबू दाऊद और बहकी की हदिष में उम्मते मुस्लिमा की इस बदहाली का ज़िक्र निहायत ही अलमनाक सूरत में वारिद है। हज़रत सुबान से रिवायत है रसूलल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया :
     "ऐ मुसलमानों ! क़रीब है कि काफिरों की जमाअते तुम पर हमला आवर होने के लिये इस तरह एक दूसरे को बुलायेंगी जेसे किसी प्याले में खाना रखा हो और उसे खाने के लिये हर तरफ से लोगों को बुलाया जाये। सहाबा ने अर्ज़ की कि हुज़ूर ! क्या उस वक़्त हम क़लील होंगे ? फ़रमाया नहीं तुम उस वक़्त बहुत कसीर तादाद में होंगे लेकिन तुम उस वक़्त सैलाब के झाग और उस के खस व खशाक की तरह होंगे (यानी ईमानी कुव्वत व शुजाअत तुम में बाक़ी न रहेगी)। अल्लाह तुम्हारी हैबत और तुम्हारा रोब दुश्मन के दिल से निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में बुजदिली और कमज़ोरी पैदा कर देगा। सहाबा ने अर्ज़ किया हुज़ूर ! बुजदिली और कमज़ोरी का सबब क्या होगा ? फ़रमाया : दुन्या की महब्बत और मौत की कराहत।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 29
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #19
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*_नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में_* #07
     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : नमाज़ जन्नत की कुन्जी है।
*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल*
     जब नमाज़ जन्नत की चाबी है तो उसके बगैर जन्नत का दरवाज़ा हरगिज़ नहीं खुल सकता।

     रहमते आलम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दा जब नमाज़ के लिये खड़ा होता है तो उसके लिये जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है, उसके और परवरदिगार के दरमियान से हिजाबात (पर्दे) हटा दिये जाते है और हूरे इन उसका इस्तिक़बाल करती है।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब*
     यानी बन्दा नमाज़ के वक़्त अल्लाह की रहमत के बेहद क़रीब हो जाता है।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 18
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*गुस्ल का तरीक़ा* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*एक गुस्ल में मुख्तलिफ निय्यते*
     जिस पर चन्द गुस्ल हो सब की निय्यत से एक गुस्ल कर लिया, सब अदा हो गए सब का षवाब मिलेगा।

     जुनुब ने जुमुआ या ईद के दिन ग़ुस्ले जनाबत किया और जुमुआ और ईद वग़ैरा की निय्यत भी कर ली सब अदा हो गए,

     अगर उसी गुस्ल से जुमुआ और ईद की नमाज़ अदा करले।
*✍🏼माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1, स.325*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 94*
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Thursday 21 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #11
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#04
*खलीफा बनाने का मक़सद*
     खलीफा बनाने का मक़सद यही था कि वह अल्लाह के अहकाम मखुल्क तक महुंचाए और रब के अवामीर व नवाहि का निज़ाम जारी करे, मुसलमानों की अक्सरियत जब इस निज़ाम को चाहने वाली हो तो उम्मते मुस्लिमा का कुफ्फार पर गल्बा रहता है लेकिन यह उसी वक़्त होता है जब मुसलमान अपने ईमान व आमाल में कामिल हो, कामिल ईमान का मैयर यह है कि अल्लाह और रसूलल्लाह ﷺ की महब्बत तमाम मुहब्बतों पर ग़ालिब हो और अल्लाह की राह में मौत की तमन्ना कामिल और ग़ालिब हो।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 36
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #18
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में_* #06
     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दा जब सज्दे की आयत पढ़कर सज्दा करता है तो शैतान अलाहिदा (अलग) होकर रोता है और कहता है : हाय मुसीबत ! इसे सज्दे का हुक्म हुआ, इसने सज्दा किया तो इसे जन्नत नसीब हुई और मुझे सज्दे का हुक्म हुआ और मेने नहीं किया तो मुझे दोज़ख मिली।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*
     शैतान को जन्नत से इसलिये निकलना पड़ा क्योंकि अल्लाह के हुक्म के बावुजूद उसने सज्दा करने से इनकार कर दिया था। हमें भी अल्लाह ने नमाज़ पढ़ने यानी सजदारेज़ होने का हुक्म फ़रमाया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम भी इसी सज्दे से गाफिल होने की वजह से जन्नत से महरूम कर दिये जाए।

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : अपने अहले खाना (घर वालो) को नमाज़ पढ़ने का हुक्म दो बेशक अल्लाह तुम्हें ऐसी जगह से रोज़ी देगा जिसके मुतअल्लिक़ तुम गुमान भी नहीं कर सकते।
*✍🏼इहयाउल उलूम*
     मालुम हुआ कि नमाज़ पढ़ने वालों को अल्लाह बेरोज़गार नहीं रहने देता, उन्हें ऐसी जगह से रोज़ी देता है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 18
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*गुस्ल का तरीक़ा* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_कब गुस्ल करना सुन्नत है_*
★ जुमुआ
★ ईदुल फ़ित्र
★ बकरी ईद
★ अरफे के दिन (यानि 9 जुल हिज्जतिल हराम)
★ ऐहराम बांधते वक़्त
     इन मौको पर गुस्ल करना सुन्नत है
*✍🏼फतावा आलमगिरी, जी.1, स. 16*

*_कब कब गुस्ल करना मुस्तहब है_*
★ वुकुफे अरफात
★ वुकुफे मुज़दलिफा
★ हाज़िरिये हरम
★ हाज़िरिये सरकारे आ'ज़म
★ तवाफ़
★ दुखुले मिना
★ जमरो पर कंकरिया मारने के लिये तीनो दिन
★ शबे बराअत
★ शबे क़द्र
★ अरफे की रात
★ मजलिसे मिलाद शरीफ
★ दीगर मजलिसे खैर के लिये
★ मुर्दा नहलाने के बाद
★ मजनून (यानि पागल) को जूनून (पागल पन) जाने के बाद
★ गशी से फाकेके बाद
★ नशा जाते रहने के बाद
★ गुनाह से तौबा करने
★ नए कपड़े पहनने के लिये
★ सफर से आने वाले के लिये
★ इस्तिहाज़ा का खून बंद होने के बाद
★ नमाज़े कुसुफ व खुसुफ
★ नमाज़े इस्तिस्का के लिये
★ खौफ व तारीकी और सख्त अंधी के लिये
★ बदन पर नजासत लगी और ये मालुम न हुवा के किस जगह लगी है।
*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1, स.324,325*
*✍🏼दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मोहतार, जी1, स.341-343*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 93-94*
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*सदक़ा व खैरात के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     सुवाल करने से पहले ही सदक़ा कर दे, अगर कोई चीज़ देने का वादा किया हो तो उसे पूरा करने में जल्दी करे, देते वक़्त फराख दिली से काम ले, छुपा कर सदक़ा करे और देने के बाद एहसान न जतलाए, खैरात करने पर हमेशगी इख़्तियार करे और सदक़ा व खैरात का सिलसिला जारी व सारी रखे।
*✍🏼आदाबे दिन* 39
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Wednesday 20 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #10
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#03
*नुक्ता*
     अल्लाह ने हज़रत आदम عليه السلام को खलीफा बनाने के मुतअल्लिक़ जो मशवरा किया इससे मुराद सिर्फ आदम عليه السلام नहीं और आप की औलाद भी मुराद नहीं बल्कि आदम عليه السلام और आपकी औलाद से बाज़ हज़रात जो इस खिलाफत के मनसब के अहल होंगे यह सब मुराद है और वह अफ़राद आदम عليه السلام की औलाद में हज़रत मुहम्मद ﷺ तक पैदा होने वाले तमाम अम्बिया व रसूल है।
     अम्बियाए किराम तमाम के तमाम फरदन फरदन मासूम है लेकिन सिद्दीक़ीन, औलिया, स्वालेहीन फरदन फरदन मासूम नहीं, अलबत्ता इज्तिमाई तौर पर खता से महफूज़ है। यही वजह है कि उन हज़रात का इस्तेमाइ फैसला उम्मत को क़बूल करना लाज़िम हो जाता है।
     जब यह साबित हुआ कि खिलाफत का हक़दार वह है जिसमें यह इस्तेदाद पाई जाये तो खुद वाज़ेह हुआ कि औरत की फितरत सलीमा और तबियत मुस्तक़ीमा इस क़ाबिल नहीं कि जुमुआ या बाक़ी नमाज़ों की इमामत या खिलाफत यानी हाकमियत उस के सुपुर्द की जाये। औरत अपनी फितरती और तबई कमज़ोरी की वजह से यह काम सर अन्जाम नहीं दे सकती।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 28
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #17
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ छोड़ने का वबाल अहादिष की रौशनी में_* #05
हज़रत उबादा बिन सामित से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : पांच वक़्त की नमाज़ अल्लाह ने फ़र्ज़ फ़रमाई है, जिसने अच्छे ढंग से वुज़ू किया और नमाज़ों को उनके वक़्तों पर अदा किया और उनका हक़ हल्का समझकर बर्बाद नहीं किया तो अल्लाह फ़रमाता है "उनका मेरे जिम्मे ये वादा है कि ऐसे आदमी को बख्श दूंगा।
*✍🏼मुस्नदे अहमद*

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : नमाज़ दरमियानी औक़ात (वक़्तों) के गुनाहों का कफ़्फ़ारा है जबकि कबीरा (बड़े) गुनाहों से ओरहेज़ किया जाए।
*✍🏼कन्जुल उम्माल*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 17
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*गुस्ल का तरीक़ा* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*निफ़ास की ज़रूरी वज़ाहत*
     अक्सर औरतो में ये मशहूर है की बच्चा जनने के बाद औरत 40 दिन तक लाज़िमी तौर पर नापाक रहती है ये बात बिलकुल गलत है। निफ़ास की तफ़सील मुलाहज़ा हो।
     बच्चा पैदा होने के बाद जो खून आता है उस को निफ़ास कहते है इसकी ज़्यादा से ज्यादा मुद्दत 40 दिन है, यानि अगर 40 दिन के बाद भी बंद न हो तो मरज़ है। लिहाज़ा 40 दिन पुरे होते ही गुस्ल कर ले और 40 दिन से पहले बंद हो जाए ख़्वाह बच्चे की विलादत के बाद एक मिनिट ही में बन्द हो जाए तो जिस वक़्त भी बन्द हो गुस्ल कर ले और नमाज़ व रोज़ा शुरू हो गए।
     अगर 40 दिन के अंदर अंदर दोबारा खून आ गया तो शुरूए विलादत से ख़त्मे खून तक सब दिन निफ़ास ही के शुमार होंगे।
     मस्लन विलादत के बाद 2 मिनिट तक खून आ कर बंद हो गया और औरत गुस्ल करके नमाज़ रोज़ा वग़ैरा करती रही, 40 दिन पुरे होने में फ़क़त 2 मिनिट बाकी थे की फिर खून आ गया तो सारा चिल्ला यानी मुकम्मल 40 दिन निफ़ास के ठहरेंगे।
     जो भी नमाज़ पढ़ी या रोज़े रखे सब बेकार गए, यहाँ तक की अगर इस दौरान फ़र्ज़ व वाजिब नमाज़े या रोज़े क़ज़ा किये थे तो वो भी फिर से अदा करे।
*✍🏼माखुज़ अज़ फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.4 स. 356,356*
*✍🏼फैज़ाने सुन्नत, सफा 89*
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*तोहफा देने वाले के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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     जिसे तोहफा दे रहा है उस की फ़ज़ीलत को मद्दे नज़र रखे, तोहफा को क़बूल कर लिया जाए तो ख़ुशी व मसर्रत का इज़हार करे, और उसे कुल्ली इख़्तियार दे दे अगर्चे तोहफा बड़ा हो।

*तोहफा लेने वाले के आदाब*
     तोहफा मिलने पर ख़ुशी का इज़हार करे अगर्चे वो कम क़ीमत का हो, तोहफा भेजने वाले की गैर मौजूदगी में उस के लिये दुआए खैर करे। जब वो आए तो खन्दा पेशानी के साथ उस से मुलाक़ात करे। जब कुदरत हासिल हो तो ये भी अपने मोहसिन को तोहफा दे। जब मौक़ा मिले उस की तारीफ़ करे, उस के सामने आजिज़ी न करे, उस से एहतियात बरते कि कहीं उस की महब्बत में ईमान न चला जाए, दोबारा उस से तोहफा वगैरा हासिल करने की हिर्स व तअम न करे।
*✍🏼आदाबे दीन* 39
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*27 दर्जे बढ़ कर*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : नमाज़े बा जमाअत तन्हा पढ़ने से 27 दर्जे बढ़ कर है।
*✍🏼مسلم*
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Tuesday 19 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#02
*_ऐतराज़_*
     खलीफा का मतलब है पीछे आने वाला और नायबे खलीफा की ज़रूरत उस वक़्त दरपेश आती है जब असल खुद अपने काम करने से आजिज़ हो, असल का आजिज़ होना या उसकी मौत की वजह से होता है, या उसके गायब होने की वजह से होता है, या मर्ज़, थकान वगैरा की वजह से। इन तमाम मायनी के लिहाज़ से अल्लाह का खलीफा बनाना दुरुस्त नहीं। वह हय्य ला-यमुत है। हमेशा के लिये ज़िन्दा है उस पर मौत के वकुअ का तसव्वुर करना भी मुहाल है, वह शहे रग से भी ज़्यादा क़रीब है, वह कहीं दूर चला जाये, गायब हो जाये, यह होना भी मुमकिन नहीं कि वह मरीज़ हो जाये, थक जाये, आजिज़ हो जाये, यह भी मुमकिन नही तो अल्लाह के खलीफा बनाने का क्या मतलब है ?
*जवाब*
     यहाँ खलीफा का मायने पीछे आने वाला नहीं बल्कि नायब है। यानी अल्लाह का नायब होकर ज़मीन व आसमान की अशिया में तसर्रुफ़ करने वाला हो। नायब बनाने की ज़रूरत भी अल्लाह को नहीं थी, वह मोहताज नहीं बल्कि जिन की तरफ खलीफा बनाना था उन्हें मोहताजी थी इसलिये कि इंसान बहुत ज़्यादा कुदरते और ज़ुल्माते जिस्मानिया रखते है और अल्लाह बहुत मुक़द्दस है, फ़ैज़ लेने वाले और फैज़ देने वाले में कोई मुनासबत होनी चाहिये जब मख्लूक़ में और अल्लाह में कोई मुनासबत नहीं, मख्लूक़ को वजूद में लाना भी रब की मशियत थी, तो अल्लाह ने मख्लूक़ के पैदा फरमाने से पहले ही उनके फैज़ लेने का यह एहतेमाम किया कि अम्बियाए किराम عليه السلام को वास्ता बनाया जो अपनी नुरानीयत की वजह से अल्लाह से फैज़ लेकर अपनी बशरीयत के वस्फ की वजह से इन्सानो तक वह फैज़ पंहुचा दे।
     जिस तरह इंसानो और हैवानों के जिस्मों में हड्डियां और गोश्त है हड्डियां सख्त है और गोश्त नरम है हड्डी अपनी सख्ती की वजह से गोश्त से ग़िज़ा हासिल नहीं कर सकती थी तो अल्लाह ने अपनी हिकमते कामिला से हड्डियों और गोश्त के दर्मियान पट्ठे बतौर वास्ता रखे पट्ठे अपने नर्म हिस्से से गोश्त से ग़िज़ा हासिल करते है और अपने सख्त हिस्से से हड्डी को ग़िज़ा पहुचाते है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 28
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*गुस्ल का तरीक़ा* #06
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*गुस्ल फ़र्ज़ होने के अस्बाब*
🔹मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो कर उज़्व से निकलना।
🔹ऐहतिलाम यानी सोते में मनी का निकल जाना।
🔹शर्मगाह में हश्फ़ा दाखिल हो जाना ख़्वाह शहवत हो या न हो, इन्ज़ाल हो या न हो, दोनों पर गुस्ल फ़र्ज़ है।
🔹हैज़ से फ़ारिग़ होना।
🔹निफ़ास (यानि बच्चा जनने पर खून आता है उस) से फ़ारिग़ होना।
*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1, स.321-324*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 88-89*
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*गनी के आदाब*
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     आजिज़ी व इन्किसारी की आदत अपनाए, तकब्बुर से बचे, हमेशा अल्लाह का शुक्र अदा करे, नेक आमाल की तरफ रगबत करे, फ़क़ीर के साथ हुस्ने अख़्लाक़ से पेश आए और दिल खोल कर उस की मदद करे, हर किसी के सलाम का जवाब दे, क़नाअत पसन्दी का इज़हार करे, अच्छी गुफ्तगू करे, खुश उस्लुबि से लोगों को अपने साथ मानूस करे और सदक़ा व खैरात के ज़रीए उन की मदद करे।
*✍🏼आदाबे दिन* 38
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Monday 18 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#01
*_अल्लाह का फरिश्तों से मशवरा_*
     अल्लाह ने हज़रत आदम عليه السلام की तख़्लीक़ से पहले फरिश्तों से मशवरा किया।
     और याद कीजिए ! जब आपके रब ने फरिश्तों से फ़रमाया बेशक में बनाने वाला हूँ ज़मीन में (अपना) नायब। (बक़रह 30)

*_मशवरा करने की हिकमत_*
     अल्लाह का फरिश्तों से फरमाना कि में ज़मीन में खलीफा बनाने वाला हूँ मआजअल्लाह उनसे इजाज़त तलब करना मक़्सूद नहीं था बल्कि सिर्फ मशवरा तलब करना था और वह भी ऐहतेयाजी या ला इल्मी की वजह से नहीं, क्योंकि अल्लाह किसी अम्र में किसी का मोहताज नहीं बल्कि मशवरा तलब करने में हिकमत यह थी कि इसमें फरिश्तों और खलीफा का इकराम पाया जाये, क्योंकि रब तआला का फरिश्तों से मशवरा तलब करने में फरिश्तों की अज़मते शान वाजेह होती है और खलीफा के मुतअल्लिक़ मशवरा करने में खलीफा की अज़मत भी वाज़ेह होती है कि उसकी तख़्लीक़ से पहले ही उसका नूरानी मख्लूक़ में ज़िक्र हो रहा है।

*_हदिष मरफुअ_*
     बेशक मेरे रब ने मेरी उम्मत के बारे में मुझसे मशवरा तलब फ़रमाया।
     यह मशवरा तलब करना भी उसी हिकमत के पेशे नज़र था कि इसमें हुज़ूर ﷺ और आपकी उम्मत की इज़्ज़त अफ़ज़ाई हो। अल्लाह ने अपनी ला इल्मी या ऐहतेयाजी के तौर पर मआजअल्लाह नबी ﷺ से मशवरा नहीं किया। इसी तरह अल्लाह ने हुज़ूर ﷺ को हुक्म फ़रमाया : आप इनसे, उमुर में मशवरा करें।
     यहाँ सहाबा से मशवरा करने का हुक्म इस लिये नहीं दिया गया कि आप सहाबा के मशवरे के मोहताज थे बल्कि सहाबा की इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिये मशवरे का हुक्म दिया गया।
     और इस वजह से भी अल्लाह ने फरिश्तों से मशवरा किया और नबी ﷺ को सहाबा से मशवरा करने का हुक्म दिया गया कि लोग इससे सबक़ हासिल करें और अपने मामलात में एक दूसरे से मशवरा किया करें।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 27
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गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*गुस्ल का तरीक़ा* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*मस्तुरात (औरत) के लिये गुस्ल की एहतियाते*
◆ ढलकी हुई पिस्तान को उठा कर पानी बहाए। पिस्तान और पेट के जोड़ की लकीर धोए।
◆ फ़र्ज़े कारिज (यानि औरत की शर्मगाह के बहार के हिस्से) का हर गोशा हर टुकड़ा ऊपर निचे खूब एहतियात से धोए।
◆ फ़र्ज़े दाखिल (यानि शर्मगाह के अंदरुनी हिस्से) में ऊँगली दाल कर धोना फ़र्ज़ नहीं मुस्तहब है।
◆ अगर हैज़ या निफ़ास से फ़ारिग़ हो गुस्ल करे तो किसी पुराने कपड़े से फ़र्ज़े दाखिल के अंदर से खून का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स.318*

◆ अगर नेल पोलिश नाखुनो पर लगी हुई है तो उसका भी छुड़ाना फ़र्ज़ है वरना गुस्ल नहीं होगा, हा मेहदी के रंग में हरज नहीं।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा  88*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सदक़ा देने वाले के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     सदक़ा करने वाले को चाहिये कि सुवाल करने से पहले सदक़ा दे, खुफ्या तौर पर सदक़ा दे और देने के बाद भी उसे छुपाए, सुवाल करने वाले के साथ नरमी से पेश आए, उस के मांगने से पहले उसे जवाब न दे, उस के मुतअल्लिक़ वसवसों का शिकार न हो (कि न जाने क्यूं मांग रहा है ? क्या मजबूरी है ? वगैरा वगैरा), अपने नफ़्स को बुख्ल से रोके, साईल ने जिस चीज़ का सुवाल किया है उसे वो चीज़ अता कर दे या अच्छे तरीके से उसे लौटा दे, अगर अज़ली दुश्मनी इब्लिश उस से इस के दिल में वस्वसा अंदाज़ी करे कि साईल इस चीज़ का हक़दार नहीं तो इस की मुखालफत करते हुए साईल को अल्लाह की अता करदा नेमतें दिये बगैर न लौटाए क्यूं कि वो इस का ज़्यादा मुस्तहिक़ है। (हाँ ! अगर साईल पेशावर भिकारी) हो तो नदे।
*✍🏼बहारे शरीअत*
*✍🏼आदाबे दीन* 37
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Sunday 17 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*नफ्से नबुव्वत में तमाम अम्बिया बराबर है*
     तमाम अम्बियाए किराम عليه السلام नफ्से नबुव्वत में यानी बहैसियत नबी होने के बराबर है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि किसी नबी की नबुव्वत असली हो और किसी नबी की नबुव्वत आरज़ी हो। बल्कि तमाम अम्बियाए किराम की नबुव्वत असली है। किसी नबी की नबुव्वत आरज़ी नहीं। हाँ अलबत्ता दरजात के लिहाज़ से बाज़ अम्बियाए किराम को बाज़ पर फ़ज़ीलत हासिल है और तमाम अम्बियाए किराम से अफ़्ज़ल हमारे नबी  करीम ﷺ है।
     दुन्या में तशरीफ़ लाने के लिहाज़ से सबसे पहले आने वाले नबी हज़रत आदम عليه السلام है और सब से आखरी में तशरीफ़ लेन वाले हज़रत मुहम्मद ﷺ है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 26
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ की फ़ज़ीलत अहादिष की रौशनी में_* #03
     हज़रत मुआज़ कहते है कि मेने रसुलल्लाह ﷺ से सवाल किया : या रसूलल्लाह ﷺ ! वो बात बताइये जो मुझे जन्नत में ले जाए और जहन्नम से बचाए ? फ़रमाया : अल्लाह की इबादत करो, उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ, नमाज़ क़ायम करो, ज़कात दो,रमज़ान के रोज़े रखो और बैतुल्लाह का हज करो।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*
     मालुम हुआ कि जन्नत में दाखिल और जहन्नम से नजात के लिये नमाज़ की अदायगी ज़रूरी है।

     हज़रत अबू हुरैरा رضي الله عنه से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स अपने घर में तहारत (वुज़ू) करके फ़र्ज़ नमाज़ अदा करने के लिये मस्जिद जाता है तो एक क़दम पर एक गुनाह मिटता है और दूसरे पर एक दर्जा बुलन्द होता है।
*✍🏼मुस्लिम शरीफ*

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 16
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*गुस्ल का तरीक़ा* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*मर्द व औरत के लिये गुस्ल की एहतियाते*
★ अगर मर्द के सर के बाल गुंधे हुए हो तो उन्हें खोल कर जड़ से नोक तक पानी बहाना फ़र्ज़ है।
★ औरत पर सिर्फ जड़ तर कर लेना ज़रूरी है खोलना ज़रूरी नहीं। हा अगर चोटी इतनी सख्त गुंधी हुई हो के बे खोले जड़े तर न होंगी तो खोलना ज़रूरी है। अगर कानो में बाली या नाक में नथ का छेद हो और वो बंद न हो तो उसमे पानी बहाना फ़र्ज़ है।
★ वुज़ू में सिर्फ नाक के नथ के छेद में और गुस्ल में अगर कान और नाक दोनों में छेद हो तो दोनों में पानी बहाए।
★ भवो, मुछो और दाढ़ी के हर बाल का जड़ से नोक तक और इनके निचे की खाल का धोना ज़रूरी है।
★ कान का हर पुर्ज़ा और इसके सुराख का मुह धोए। कानो के पीछे के बाल हटा कर पानी बहाए।
★ ठोड़ी और गले का जोड़, के मुह उठाए बिगैर न धुलेगा।
★ हाथो को अच्छी तरह उठा कर बगले धोए। बाज़ू का हर पहलू धोए। पीठ का हर ज़र्रा धोए। पेट की बल्टे उठा कर धोए।
★ नाफ में भी पानी डाले अगर पानी बहने में शक हो तो नाफ में ऊँगली डाल कर धोए।
★ जिस्म का हर रोंगटा जड़ से नोक तक धोए।
★ रान और पेड़ू (नाफ से निचे के हिस्से) का जोड़ धोए।
★ जब बैठ कर नहाए तो रान और पिंडली के जोड़ पर भी पानी बहाना याद रखे।
★ दोनों सुरीन के मिलने की जगह का ख्याल रखे, खुसुसन जब के खड़े हो कर नहाए।
★ रानो की गोलाई और पिंडलियों की करवटों पर पानी बहाए।
★ ज़कर व उन्स-यैन (यानि फ़ोतों) की निचली सतह जोड़ तक और उन्स-यैन के निचे की जगह जड़ तक धोए।
★ जिसका खतना न हुवा वो अगर खाल चढ़ सकती हो तो चढ़ा कर धोए और खाल के अंदर पानी चढ़ाए।
*✍🏽मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत, जी.1, स. 317-318*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 86-87*
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Saturday 16 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नबी गुनाहों से पाक होते है_*
     इमाम क़ाज़ी अयाज़ رحمة الله عليه फ़रमाते है : फ़ुक़हाए किराम और मुतक्लिमीन में से मुहक़्केकिन की एक जमाअत का मज़हब यही है कि अम्बियाए किराम عليه السلام जिस तरह क़ब्ल अज़ नबुव्वत और बाद अज़ नबुव्वत कबीरा गुनाहों से पाक है उसी तरह सगीरा गुनाहों से भी पाक है।

*_अम्बियाए किराम अखलाके अज़ीमा के मालिक होते है_*
     अम्बियाए किराम को अल्लाह ने ऐलाने नबुव्वत से पहले भी ऐसे आला और पाकीज़ा अख़्लाक़ अता किये होते है ताकि लोग उनके माज़ी हाल मुस्तक़बिल पर कोई ऐतराज़ न कर सकें। यानी यह पाकीज़ा अख़्लाक़ उनको तमाम औक़ात में हासिल रहते है सुजाअत, बुर्दबारी, करीमाना गुफ्तगू वगैरह हर तरह के अच्छे अख़्लाक़ के मालिक होते है और रज़ील व घटिया कामों से पाक होते है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 26
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #14
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ की फ़ज़ीलत अहादिष की रौशनी में_* #02
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र कहते है कि एक रोज़ नबीए करीम ﷺ ने नमाज़ का ज़िक्र किया और फ़रमाया : जिसने नमाज़ की पाबन्दी की तो नमाज़ उसके लिये क़यामत के दिन रौशनी, हुज्जत और नजात का सबब बनेगी।
*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल*

     हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद फ़रमाते है कि मेने महबूबे खुदा ﷺ से दरयाफ़्त किया या रसूलल्लाह ﷺ ! अल्लाह को बन्दों का कौन सा अमल सबसे ज़्यादा पसन्द है ? फ़रमाया वक़्त पर नमाज़ पढ़ना।
*✍🏼सहीह बुखारी*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 16
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*गुस्ल का तरीक़ा* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*गुस्ल के फराइज़* 02

*नाक में पानी चढ़ाना*
     जल्दी जल्दी नाक की नोक पर पानी लगा लेने से काम नहीं चलेगा बल्कि जहा तक नर्म जगह है यानि सख्त हड्डी के शुरू तक धुलना लाज़िम है। और ये यु हो सकेगा की पानी को सूंघ कर ऊपर खिंचीये। ये ख़याल रखिये की बाल बराबर भी जगह धुलने से न रह जाए वरना गुस्ल न होगा। नाक के अंदर अगर रीठ सुख गई है तो उसका छुड़ाना फ़र्ज़ है, नीज़ नाक के बालो का धोना भी फ़र्ज़ है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स.316*
*✍🏽फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.1, स. 439-440*

*तमाम ज़ाहिरी बदन पर पानी बहाना*
     सर के बालो से ले कर पाउ के तल्वो तक जिस्म के हर पुर्ज़े और हर हर रोंगटे पर पानी बह जाना ज़रूरी है, जिस्म की बाज़ जगहे ऐसी है की अगर एहतियात न की तो वो सुखी रह जाएगी और गुस्ल न होगा।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स 317*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 85-86*
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Friday 15 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*कौन नबी नहीं हो सकते ?*
     मोअन्नस को नबी नहीं बनाया गया क्यूंकि तब्लीगे दीन उनसे मुमकिन नहीं। नबी को घर से बाहर मर्दों के हुजूम और मजालिस में अहकाम इलाहिया पहुंचाने होते है यह काम मोअन्नस से नहीं हो सकते।
     गुलाम नबी नहीं हो सकता क्योंकि गुलाम दूसरे लोगों की नज़र में हक़ीर होता है और मालिक की इजाज़त के बगैर कोई काम नहीं कर सकता इसलिये उससे तब्लीगे अहकाम दीन मुमकिन नहीं।
     जिन्न और फ़रिश्ते नबी नहीं बनाए गये। जीन्स का जीन्स से फायदा हासिल करना तो मुमकिन होता है लेकिन दूसरी जीन्स से फायदा हासिल करना मुश्किल होता है इस लिये इंसानों को फायदा पहुचाने के लिये नबी का इन्सान होना ज़रूरी है इसलिये अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया :
     अगर हम नबी को फ़रिश्ता बनाते जब भी उसे मर्द ही बनाते। (अनआम 6)
     यह उन बताया गया है जो अम्बियाए किराम عليه السلام को अपने जैसा बशर कह कर ईमान से महरूम होते थे कि हम उस पर ईमान क्यों लाये तो अल्लाह ने फ़रमाया कि नबी की तालीम से फैज़ हासिल करने का यही तरीक़ा है कि नबी इन्सानी शक्ल में भेजा जाये ताकि वह लोग फायदा हासिल कर सके। अगर फ़रिश्ते को नबी बनाते तो उसे असली शक्ल में देखने की इन्सानो में ताकत ही न होती। अगर फ़रिश्ते को नबी बनाया भी होता तो इन्सानी शक्ल में ही आता ताकि लोग उससे फैज़ हासिल कर सके।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 25
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #13
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_नमाज़ की फ़ज़ीलत अहादिष की रौशनी में_* #01
     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने सहाबा से दरयाफ़्त फ़रमाया : तुम ऐसे आदमी के बारे में क्या कहते हो जिसके घर के दरवाज़े पर एक नहर हो और वो हर दिन उस नहर में पांच मर्तबा गुस्ल करता हो क्या उस आदमी के बदन में किसी तरह की गन्दगी बाक़ी रहेगी ? सहाबा ने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाह ﷺ ! ऐसे आदमी के जिस्म पर किसी तरह की गन्दगी बाक़ी नहीं रहेगी। इस और आप ने फ़रमाया यही मिसाल मंजवक्ता नमाज़ों की है, अल्लाह इसके ज़रिये बन्दों के गुनाहो को माफ़ फरमा देता है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*
     हुज़ूर ﷺ एक मर्तबा मौसम सर्मा (सर्दी के मौसम) में मदीने से बाहर तशरीफ़ ले गए, पतझड़ का मौसम था, दरख्तों के पत्ते झड़ रहे थे, आपने एक दरख्त की दो टहनियों को पकड़ा, (उन्हें हिलाया) पत्ते झड़ने लगे। आप ने फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! देखो ! जब कोई मुसलमान नमाज़ पढ़ता है और उसके ज़रिये अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहता है तो उसके गुनाह उसी तरह झड़ जाते है जिस तरह इस दरख्त के पत्ते झड़ रहे है।
*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 15
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*गुस्ल का तरीक़ा* #02
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*गुस्ल के फराइज़* #01
*गुस्ल के 3 फराइज़*
1. कुल्ली करना।
2. नाक में पानी चढ़ाना।
3. तमाम ज़ाहिर बदन पर पानी बहाना।
*✍🏽फतावा आलमगिरी, जी.1, स.13*

*कुल्ली करना*
     मुह में थोडा सा पानी ले कर पच करके डाल देने का नाम कुल्ली नहीं, बल्कि मुह के हर पुर्ज़े, गोशे, होटो से हल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाए। इसी तरह दाढ़ों के पीछे गालो की तह में, दातो की खिड़कियों और जडो और ज़बान की हर करवट पर बल्कि हल्क के कनारे तक पानी बहे।
    रोज़ा न हो तो गरगरा भी कर लीजिये की सुन्नत है।
     दातो में छलिया के दाने या बोटी के रेशे वग़ैरा हो तो उन को छुड़ाना ज़रूरी है। हा अगर छुड़ाने में ज़रर (यानि नुक्सान) का अंदेशा हो तो मुआफ़ है,
     गुस्ल से क़ब्ल दातो में रेशे वग़ैरा महसूस न हुए और रह गए, नमाज़ भी पढ़ ली बाद को मालुम होने पर छुड़ा कर पानी बहाना फ़र्ज़ है, पहले जो नमाज़ पढ़ी थी वो हो गई।
     जो हिलता दांत मसाले से जमाया गया या तार से बांधा गया और तार या मसाले के निचे पानी न पहोचता हो तो मुआफ़ है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स.316*
*✍🏽फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.1, स.439-440*

     जिस तरह की एक कुल्ली गुस्ल के लिये फ़र्ज़ है इसी तरह की 3 कुल्लिया वुज़ू के लिये सुन्नत है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 85*
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Thursday 14 December 2017

*नमाज़ की अहमिय्यत* #12
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #05
     हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर رضى الله عنه से मरवी, वो कहते है कि हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : उस आदमी का कोई ईमान नहीं जो अमानतदार न हो और उस आदमी की नमाज़ नहीं जिसकी तहारत दुरुस्त न हो और उस आदमी का कोई दीन नहीं जिसकी ज़िन्दगी में नमाज़ न हो। बेशक नमाज़ को दीन में वही मक़ाम हासिल है जो इंसानी जिस्म में सर को हासिल है।
*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब*

     खलीफए दोम हज़रत उमर फ़ारूक़ رضي الله عنه ने अपने सूबों (राज़्यों) के गवर्नरों के पास पैगाम भेजा कि तुम्हारे सब कामों में मेरे नज़्दीक अहम काम नमाज़ है जिसने उसकी हिफाज़त की और उसको अदा करता रहा उसने अपना दीन महफूज़ रखा और जिसने नमाज़ ज़ाए की वो और कामों को और भी ज़ाए करेगा।
*✍🏼सहीह बुखारी*
     यानी नमाज़ जिसे दीन के सुतून (खम्भे) का दर्जा दिया गया है और जिसे ईमान की निशानी व पहचान बताया गया है ये जानने के बावुजूद अगर कोई नमाज़ छोड़ दे तो ऐसे आदमी का क्या ऐतिबार कि वो और कौन कौन सी चीज़ों में गफलत और सुस्ती इख़्तियार करेगा ?
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 14
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*गुस्ल का तरीका* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     बिगैर ज़बान हिलाए दिल में इस तरह निय्यत कीजिये की में पाकी हासिल करने के लिये गुस्ल करता हु।
◆ पहले दोनों हाथ पहुचो तक 3-3 बार धोइए
◆ फिर इस्तिन्जे की जगह धोइए ख़्वाह नजासत हो या न हो
◆ फिर जिस्म पर अगर कही नजासत हो तो उसको दूर कीजिये
◆ फिर नमाज़ का सा वुज़ू कीजिये मगर पाउ न धोइये, हा अगर चौकी वग़ैरा पर गुस्ल कर रहे है तो पाउ धो लीजिये
◆ फिर बदन पर तेल की तरह पानी चुपड़ लीजिये, खुसुसन सर्दियो में (इस दौरान साबू भी लगा सकते है)
◆ फिर 3 बार सीधे कंधे पर पानी बहाइये, फिर 3 बार उलटे कंधे पर
फिर सर पर और तमाम बदन पर 3 बार
◆ फिर गुस्ल की जगह से अलग हो जाइये
◆ अगर वुज़ू करने में पाउ नहीं धोए थे तो अब धो लीजिये
● नहाने में क़िबला रुख न हो, तमाम बदन पर हाथ फेर कर मल कर नहाइए।

◆ दौराने गुस्ल किसी किस्म की गुफ्तगू मत कीजिये, कोई दुआ भी न पढ़िये, नहाने के बाद तोलिये वग़ैरा से बदन पोछने में हरज नहीं। नहाने के बाद फौरन कपड़े पहन लीजिये।
अगर मकरूह वक़्त न हो तो दो रकअत नफ़्ल अदा करना मुस्तहब है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स.310*
*✍🏽आलमगिरी, जी.1, स. 14*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा  84*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*60 साल की इबादत से बेहतर*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم: (आख़िरत के मुआमले में) घड़ी भर के लिये गौरो फ़िक्र करना 60 साल की इबादत से बेहतर है।
*✍🏼الجامع الصغير*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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Wednesday 13 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*_नबी किसे कहा जाता है ?_*
     नबी का लफ्ज़ या तो "नबावह" से बना है जिसका मतलब होता है बुलन्दी मर्तबा और या यह लफ्ज़ बना है "नबा" (बा-साकिन) से जिस का मतलब होता है खबर देना ज़ाहिर करना। और या यह लफ्ज़ बना है "नबाह्" से जिसका मतलब होता है मख़फ़ी आवाज़।
     पहले मायने के लिहाज़ से नबी को "नबी" इसलिये कहते है कि तमाम मख्लूक़ से बुलन्द मर्तबा रखता है। दूसरे मायने के लिहाज़ से कि वह हक़ बात को ज़ाहिर करता है और गैबी खबरें देता है और तीसरे मायने के लिहाज़ से वह वही (क़ुरआन) को सुनता है जो आवाज़ दूसरों पर मख़फ़ी होती है।
     इसी तरह एक एहतेमाल यह भी है कि यह लफ्ज़ असल में नबीया हो तो उस वक़्त मायने होता है रास्ता, इस सूरत में नबी को नबी कहने की वजह यह होगी कि अल्लाह और मख्लूक़ के दरमियान वास्ता होता है जिस तरह रास्ता मन्ज़िले मक़सूद तक पहुचने का ज़रिया होता है इसी तरह अम्बियाए किराम عليه السلام रब का कुर्ब हासिल करने और मन्ज़िले मुराद को पाने का ज़रिया और वास्ता होते है।
     यह तो लफ्ज़ "नबी" के लगवी मायने थे जो सब के सब नबी में बेयक वक़्त जमा होते है। इस्तेलाही तौर पर नबी की तारीफ़ यह है कि : "बनिए आदम से हो, यानी इंसान हो, मुज़ककर हो, आज़ाद हो, उसकी तरफ वही आए और लोगों तक अल्लाह के अहकाम पहुचाए, नेक लोगों को जन्नत की बशारत दे और कुफ्फार को जहन्नम से डराये और मिज्ज़ात के ज़रिये उसकी नबुव्वत तो ताईद हासिल होती है।
     रसूल का मायना पैगाम पहुचाने वाला, भेजा हुआ। लेकिन इस्तेलाह में रसूल उसे कहते है जिसे किताब भी अता हो या पहली शरीअत पर अमल करना खत्म हो चूका हो तो फिर से पहली शरीअत की तजदीद का हुक्म दिया जाये। हर रसूल नबी ज़रूर होता है लेकिन हर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं।
     तमाम रसूलो और अम्बियाए किराम को मिज्ज़ात से तक़्वीयत पहुचाई जाती है अब देखना यह है मिजिज़ा किसे कहते है ?

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 24
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*मौजिज़ए शककुल कमर*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     बुखारी शरीफ में है : क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने सरकारे मदीना ﷺ की खिदमते बा बरकत में मोजिज़ा दिखने का मुतालबा किया तो आप ने उन्हें चाँद के दो टुकड़े कर के दिखा दिये।
*✍🏽बुखारी, जी.2, स.579, हदिष:3868*

    अल्लाह तआला पारह 27 सूरतुल कमर की पहली दो आयत में इर्शाद फ़रमाता है :
पास आई क़ियामत और शक हो गया चाँद और अगर देखे कोई निशानी तो मुह फ़ेरते और कहते है ये तो जादू है चला आता।

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा इस हिस्सए आयत "और शक हो गया चाँद" के तहत फ़रमाते है : इस आयत में हुज़ूर ﷺ के एक बड़े मौजिज़ए शक्कूल कमर यानि चाँद के दो टुकड़े हो जाने का ज़िक्र है।
हवाला
*✍🏽नूरुल इरफ़ान, सफा 843*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 77*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*जुमुआ के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     वक़्त शुरू होने से पहले जुमुआ की तैयारी शुरू कर दे, नमाज़े जुमुआ में हाज़िरी के लिये सवेरे तहारत करे कि जिस्म को धोए, कपड़ों की पाकीज़गी व सफाई का एहतिमाम करे, खुशबु वगैरा लगाए, पुर वक़ार और पुर सुकून हो कर चले छोटे छोटे क़दम रखे, कसरत से ख़ालिक़ व राज़ीक़ का शुक्र बजा लए, आजिज़ी व इन्किसारी करते हुए मस्जिद में दाखिल हो, सलाम का जवाब दे।
     मस्जिद में दाखिल हो के आगे जाने के लिये लोगों की गर्दनें न फलांगे (बल्कि जहा जगा मिले बैठ जाए), गुफ्तफु कम करे, कसरत से अल्लाह का ज़िक्र करे, इमाम के क़रीब हो कर बैठे, खतीब के हुक्म की तालीम करे, इल्म हासिल करने के लिये हाज़िर रहे, उंगलियां न चटकाए, खामोशी की आदत बनाए।
     खतीब के मिम्बर पर बैठ जाने के बाद नमाज़ वगैरा न पढ़े और खतीब के इशारा करने के बाद सलाम का जवाब न दे, गुफ्तगू बन्द कर दे, नसीहत क़बूल करने का पुख्ता इरादा करे, खतीब के सामने और उस के बयान करते वक़्त इधर उधर न देखे, जब तक खतीब मिम्बर से न उतरे और मुअज्ज़िन इक़ामत से फारिग न हो ले उस वक़्त तक नमाज़ के लिये खड़ा न हो (यानी इक़ामत से पहले खड़ा न हो).
*✍🏼आदाबे दीन* 32
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Tuesday 12 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_अम्बियाए किराम की तादाद_*
     अगर्चे मशहूर रिवायत है कि अम्बियाए किराम عليه السلام की तादाद एक लाख चोबीस हज़ार है लेकिन एक रिवायत में दो लाख चोबीस हज़ार का भी ज़िक्र है। एक रिवायत में आठ हज़ार का भी ज़िक्र है। इसलिये बेहतर ये है कि अक़ीदा यह हो कि जितने अम्बियाए किराम रब तआला की तरफ से आये है सब बरहक़ है उन तमाम पर हमारा ईमान है खास तादाद ज़िक्र न की जाये, क्यों की ऐसा न हो कि यह तादाद पर ईमान लाये और वाक़ई में ज़्यादा हो, या ऐसा न हो कि यह ज़्यादा तादाद पर ईमान लाये और वाक़ई में कम हो।
     *तंबीह* : अम्बियाए किराम की तादाद का हमें यक़ीनी इल्म नहीं क्यूंकि रिवायत मुख़्तलिफ़ है इस से यह लाज़िम नहीं आता कि नबी करीम ﷺ को भी इल्म नहीं था इसी तरह तफसिलन अम्बियाए किराम के वाकियात को न ज़िक्र करने का भी यह मतलब नहीं है कि आप पर बज़रिये वही (क़ुरआन) कई अम्बियाए किराम के हालात ज़ाहिर नहीं किये गये अगर बज़रिये वही (क़ुरआन) आप को खबर दी जाती तो हमें भी इल्म हासिल होता। यह दुरुस्त नहीं क्योंकि नबी ﷺ के अपने इल्म का यह आलम है।
     बेशक नबी ﷺ उस वक़्त तक दुन्या से तशरीफ़ नहीं ले गये यहाँ तक कि अल्लाह ने आपको दुन्या व आख़िरत के तमाम गैबी उलूम अता फरमा दिये, अलबत्ता बाज़ चीजों के छुपाने का आप को हुक्म दिया गया था।

*_रसूलों और आसमानी किताबो की तादाद_*
     तमाम अम्बियाए किराम عليه السلام में से बाज़ ज़्यादा मर्तबा वाले नबी हुए है जिन को रसूल कहा जाता है उन रसूलों की तादाद तिन सो तेरह (313) है और आसमानी किताबों की तादाद कुल एक सो चार (104) है। चार के मुस्तकिल नाम है, तौरेत, इंजील, ज़बूर, क़ुरआन और एक सो के मुस्तकिल नाम नहीं बल्कि उनको सहिफे कहा जाता है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 23
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #11
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #04
     हज़रत अबू हुरैरा رضي الله غنه फ़रमाते है : आदमी अल्लाह के सबसे ज़्यादा क़रीब उस वक़्त होता है जब वो सज्दे में होता है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*
     ज़ाहिर है कि सज्दा नमाज़ का हिस्सा है तो जो शख्स जितनी नमाज़े पढ़ेगा उसके सज्दे उतने ज़्यादा होंगे और जब सज्दे ज़्यादा होंगे तो अल्लाह की बारगाह में उसकी क़दर भी ज़्यादा होगी।

     फरमाने मुस्तफा ﷺ : जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हो तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब वो दस बरस के हो जाए और नमाज़ न पढ़े तो उन्हें मार कर नमाज़ पढाओ।
*✍🏼अबू दाऊद*
     हुज़ूर ﷺ के इर्शाद में हिकमत ये है कि सात बरस की उम्र होने पर बच्चों में शुउर बेदार होने लगता है यानी शुउर बेदार होते ही बच्चों को इबादत की जानिब तवज्जो दिलाई जाए फिर भी दस बरस की उम्र तक अगर नमाज़ के आदी न बन सके तो तो उन्हें मारने का हुक्म इसलिये दिया गया क्योंकि इस उम्र में जो चीज़ अपनाई जाती है वो फितरत में बैठ जाती है यानी नमाज़ को बच्चों की फितरत में शामिल कर दिया जाए।
*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 13
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*नूर का खिलौना*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जिस चाँद पर साइन्स दान अब पहोचने का दावा कर रहा है वो चाँद तो मेरे प्यारे आक़ा ﷺ के ताबे फरमान है।
     चुनान्चे "दलाइलुननुबूव्व्ह" में है : सुल्ताने दो जहां صلى الله عليه وسلم के चचाजान हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब رضي الله تعالي عنه फ़रमाते है : मेने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की : या रसूलुल्लाह ﷺ ! मेने आप के बचपन में ऐसी बात देखि जो आप की नबुव्वत पर दलालत करती थी और मेरे ईमान लाने के अस्बाब में से ये भी एक सबब था। चुनान्चे मेने देखा की आप गहवारे (यानि पिंघोड़े) में लेटे हुए चाँद से बाते कर रहे थे और जिस तरफ आप ऊँगली से इशारा फ़रमाते चाँद उसी तरफ हो जाता था।
     सरकारे नामदार ﷺ ने फ़रमाया : में उस से बाते करता था और वो मुझसे बाते करता था और मुझे रोने से बहलाता था और में उस के गिरने की आवाज़ सुनता था जब की वो अर्शे इलाही के निचे सज्दे में गिरता था।
*✍🏽दलाइलुननुबूव्वत जी.2, स. 41*

आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते है :
     चाँद झुक जाता जिधर ऊँगली उढ़ाते महद में
          क्या ही चलता था इशारो पर खिलौना नूर का

एक महब्बत वाले ने कहा है :
     खेलते थे चाँद से बचपन में आक़ा इस लिये
          ये सरापा नूर थे वो था खिलौना नूर का....
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 66-67*
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*दुआ के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     दिल जम्ई के साथ दुआ करे, तमाम गमों और फिक्रो को अपनी हाजत को बारगाहे इलाही में पेश करे, कमज़ोरी व ज़िल्लत का इज़हार करे, अल्लाह पर अच्छी उम्मीद रखे, आजिज़ी व इन्किसारी के साथ दुआ करे, गुरबत व मोहताजी दूर करने का सुवाल करे, डूबने वाले की सी कैफिय्यत तारी करे, ब क़दरे इस्तिताअत जाते बारी तआला की मारिफ़त हासिल करे, दुआ करते हुए अल्लाह की अज़ीम इज़्ज़त व हुरमत को पेशे नज़र रखे, उस की बारगाह में तवज्जोह करते हुए अपनी हथेलियाँ फेला दे, और दुआ क़बूल होने का यकीन रखे और साथ ही साथ इस बात से ख़ौफ़ज़दा भी हो कि कहीं नाकाम व ना मुराद न लौटा दिया जाऊं और खुशहाली का मुन्तज़िर रहे, दुआ करते हुए बाहमी दुश्मनी दिल से निकाल दे, रहमते खुदा वन्दी की उम्मीद रखते हुए नेक निय्यती से दुआ करे और दुआ के बाद हथेलियों को चेहरे पर फेर ले।
*✍🏼आदाबे दीन* 31
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Monday 11 December 2017

*तज़किरतुल अम्बिया* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     और बेशक हमने तुमसे पहले कितने ही रसूल भेजे कि जिनमें किसी के अहवाल तुम स3 बयान फरमाये और किसी के अहवाल बयान नहीं फरमाये।
     क़ुरआन में बाज़ अम्बियाए किराम عليه السلام के नाम मज़कूर है और उनके हालात को भी ज़िक्र किया गया है और बाज़ अम्बियाए किराम के नाम तो है लेकिन उनके हालात ज़िक्र नहीं किये गये जैसे हज़रत यसआ और हज़रत जुल्फ़िक़्ल और बाज़ के वाक़यात ज़िक्र है लेकिन नाम नहीं, जैसे हज़रत हज़कैल और हज़रत शमुइल और बाज़ के नाम भी नहीं और हालात भी नहीं जैसे हज़रत दानयाल عليه السلام.

*_क़ुरआन में अम्बियाए किराम के इस्मे गिरामी (नाम)_*
     हज़रत आदम, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहिम, हज़रत इस्माइल, हज़रत इस्हाक़, हज़रत याक़ूब, हज़रत युसूफ, हज़रत हूद, हज़रत स्वालेह, हज़रत लूत, हज़रत मूसा, हज़रत हारून, हज़रत शोएब, हज़रत दाऊद, हज़रत सुलेमान, हज़रत ज़करिया, हज़रत यहया, हज़रत इल्यास, हज़रत यसआ, हज़रत इदरीस, हज़रत ज़ुल्क़ीफ़ल, हज़रत युनुस, हज़रत अय्यूब, हज़रत ईसा عليه السلام और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #10
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*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #03
     फरमाने मुस्तफा ﷺ : सबसे पहले क़यामत के दिन आदमी से उसके आमाल के सिलसिले में नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा अगर ये दुरुस्त हुई तो ये कामयाबी और नजात पाएगा और अगर नमाज़ पूरी न हुई तो ये घाटा और नुक़्सान उठाएगा।
*✍🏼तिर्मिज़ी शरीफ*
     लिहाज़ा मुसलमानों को चाहिये कि नमाज़ की जहाँ तक हो सके पाबन्दी करें ताकि क़यामत के दिन ज़िल्लत और रुसवाई का सामना न करना पड़े।

     फरमाने मुस्तफा ﷺ : अल्लाह ने तौहीद और नमाज़ से बढ़कर अपनी मख्लूक़ पर कोई चीज़ फ़र्ज़ नहीं की अगर नमाज़ से ज़्यादा महबूब अल्लाह के नज़्दीक कोई चीज़ होती तो फरिश्तों के लिये उसी को मुकर्रर फरमा देता हालांकि इन फरिश्तों में से कोई रूकू में है, कोई सज्दे में है।
*✍🏼कन्जुल उम्माल*
*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 13
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*तिलावते क़ुरआन के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     तिकावते करने वाले को चाहिये कि हमेशा बा वक़ार व बा हया रहे, फुज़ूलियात व लग्वियात और फोहश गोई व बद कलामी से इज्तिनाब करे और आजिज़ी व इन्किसारी और आहो ज़ारी की आदत अपनाए।
*✍🏼आदाबे दीन* 32
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Sunday 10 December 2017

*गुनाहे कबीरा नंबर 76*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_मुसलमानों की जासूसी करना और इन के पोशीदा उमुर पर दूसरों को आगाह करना_*
     अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है : और ऐब न ढूंढो।
*✍🏼الحجرات:١٢*

     इसी हवाले से हज़रत हतीम बिन अबी बल्तआ رضى الله عنه का वाक़ीआ भी है। हज़रत उमर फ़ारूक़ رضى الله عنه ने उन के क़त्ल का इरादा किया तो हुज़ूर ﷺ ने यह कह कर मना फरमा दिया कि ये असहाबे बद्र में से है।
*✍🏼مسلم*

*_मुसलमानो की जासूसी करने वालों का हुक्म_*
     अगर किसी की जासूसी के सबब इस्लाम व अहले इस्लाम को कमज़ोर करना, मुसलमानों का क़त्ल होना, उन्हें कुफ्फार का गुलाम और कैदी बनाना लाज़िम आए या लूट मार वगैरा जैसे उमुरे फासिद् फैलाना है और खेती और लोगों को हलाक करता है पस ऐसे शख्स के क़त्ल करने का हुक्म है और ये शख्स अज़ाब का हक़दार है।
     हम अल्लाह से आफिय्यत का सुवाल करते है। ये वाज़ेह बात हर जासूस जानता है कि चुगली करना कबीरा गुनाहों में से है तो बतौरे जासूस लोगों की चुगली करने का अमल तो मजीद कई गुनाहों के लाज़िम आने के सबब बहुत बड़ा और अज़ीम गुनाह है। والله تعالى اعلم
*✍🏼76 कबीरा गुनाह* 216
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #09
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #02
हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : हर चीज़ की कोई ख़ास अलामत होती है और ईमान की अलामत नमाज़ है।
*✍🏼मुन्यातूल मुसल्लि*
     नमाज़ मुसलमान होने की अलामत है यानी जो नमाज़ी नहीं समझो वो ईमान की निशानी से खाली है।

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : बन्दे और कुफ़्र व शिर्क के दरमियान (यानी मुसलमान और काफ़िर के दरमियान फर्क करने वाली चीज़) नमाज़ का छोड़ना है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम*
*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यात* 12
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ू और साइन्स* #15/15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*मसह की हिकमते*
     सर और गर्दन के दरमियान "हबलूल वरिद" यानि शाहरग वाके है इसका तअल्लुक़ रीढ़ की हड्डी और हराम मग्ज़ और जिस्म के तमाम तर जोड़ो से है।
     जब वुज़ू करने वाला गर्दन का मसह करता है तो हाथो के ज़रिए बर्क़ी रौ निकल कर शाहरग में ज़खीरा हो जाती है और रीढ़ की हड्डी से होती हुई जिस्म के तमाम आसाबि निज़ाम में फ़ैल जाती है और इसी से आसाबि निज़ाम को तुवानाइ हासिल होती है।

*पाउ धोने की हिकमते*
     पाउ सब से ज़्यादा धूल आलूद होते है। पहले पहल जरासिम पाउ की उंगलियो के दरमियानी हिस्से से शुरू होता है।
     वुज़ू में पाउ धोने से गर्दो गुबार और जरासिम बह जाते है और बचे खुचे जरासिम पाउ की उगलियो के ख़िलाल से निकल जाते है।
     लिहाज़ा वुज़ू में सुन्नत के मुताबिक़ पाउ धोने से नींद की कमी, दिमागी खुश्की, घबराहट और मायूसी जेसे परेशान कुन अमराज़ दूर होते है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 73*
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*नमाज़ के आदाब*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़ पढ़ने वाले को चाहिये कि आजिज़ी व इन्किसारी और खुशुओ ख़ुज़ूअ की कैफिय्यत पैदा करे और हुज़ूरे क़ल्बी के साथ नमाज़ पढ़े, वसवसों से बचने की कोशिश करे, ज़ाहिरी व बातिनी तौर पर तवज्जोह से नमाज़ पढ़े, आज़ा पुर सुकून रखे, निगाहें नीची रखे, क़याम में दाया हाथ बाएं हाथ पर रखे, तिलावत में गौरो फ़िक्र करे, डरते हुए  और ख़ौफ़ज़दा हो कर तकबीर कहे, खुशुओ ख़ुज़ूअ के साथ रूकू व सुजूद करे, ताज़िमो तौकीर के साथ तस्बीह पढ़े, और तशह्हुद इस तरह पढ़े गोया अल्लाह को देख रहा है, रहमते खुदा वन्दी की उम्मीद रखते हुए सलाम फेरे, इस खौफ से पलटे कि न जाने मेरी नमाज़ क़बूल भी हुई है या नहीं, और रिज़ाए इलाही तलब करने की कोशिश करे।
*✍🏼आदाबे दीन* 31
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*जहन्नम के दरवाज़े पर नाम*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जिस ने क़सदन (यानी जानबुझ कर) नमाज़ छोड़ी जहन्नम के दरवाज़े पर उस का नाम लिख दिया जाता है।
*✍🏼حتي الأولياء*
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Saturday 9 December 2017

*गुनाहे कबीरा नंबर 75*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_नमाज़े जुमुआ तर्क करना_*
     फरमाने मुस्तफा ﷺ ने नमाज़े जुमुआ से पीछे रह जाने वालों के बारे में इर्शाद फ़रमाया : में ने इरादा किया कि एक शख्स को जमाअत करवाने का हुक्म दूँ फिर जो लोग नमाज़े जुमुआ से पीछे रह जाते है उन के घरों को उन के साथ जला दूँ।
*✍🏼مسلم*
     लोग नमाज़े जुमुआ छोड़ने से बाज़ रहें वरना अल्लाह उन के दिलों पर मोहर कर देगा फिर वो ग़ाफ़िलों में से हो जाएंगे।
*✍🏼مسلم*
     जो शख्स 3 जुमुआ सुस्ती के सबब छोड़ देगा अल्लाह उस के दिल पर मोहर लगा देगा।
*✍🏼ابوداود*
*✍🏼76 कबीरा गुनाह* 214
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*वुज़ू और साइन्स* #14/15
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*कोहनिया धोने की हिकम्ते*
     कोहनी पर 3 बड़ी रगे है जिस का तअल्लुक़ दिल, जिगर और दिमाग से है और जिस्म का ये हिस्सा उमुमन ढका रहता है, अगर इसको पानी और हवा न लगे तो मुतअद्दिद दिमाग और आसाबि अमराज़ पौदा हो सकते है।

     वुज़ू में कोहनियो समेत हाथ धोने से दिल, जिगर और दिमाग को तक्वीयत पहोचति है और इस तरह इन्शा अल्लाह वो इनके अमराज़ से पहफ़ुज़ रहेगे। मजीद ये की कोहनियो समेत हाथ धोने से सीने के अन्दर ज़खीरा शुदा रोशनियां से बराहे रास्त इंसान का तअलुक काइम हो जाता है और रोशनियो का हुजूम एक बहाव की शक्ल इख्तियार कर लेता है, इस अम्ल से हाथो के अज़लात यानि कलपुर्जे मजीद ताकत वर हो जाते है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 71*
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Friday 8 December 2017

*नमाज़ की अहमिय्यत* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_नमाज़ की अहमिय्यत अहादिष की रौशनी में_* #01
     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : इस्लाम की बुनयाद पांच चीज़ों पर है :
(१) अल्लाह की वाहदानिय्यत (उसके एक होने) की गवाही देना। इस बात का इक़रार करना कि हज़रत मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बन्दे और रसूल है।
(२) नमाज़ अदा करना।
(३) ज़कात देना।
(४) (कर सकता हो तो) हज करना।
(५) रमज़ान के रोज़े रखना।
*✍🏼सहीह बुखारी*
     इस हदिष में पांच चीज़ों को इस्लाम की बुन्याद बताया गया है जिसमें नमाज़ भी शामिल है। अब ज़ाहिर है कि जो नमाज़ छोड़ देता है वो इस्लाम की बुन्याद ही ढा देता है।

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : नमाज़ दीन का सुतून (खम्बा) है जिसने उसे क़ायम रखा समझो उसने अपने दीन को क़ायम रखा और जिसने नमाज़ छोड़ दी समझो उसने दीन की इमारत ढा दी।
*✍🏼कन्जुल उम्माल*

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼नमाज़ की अहमिय्यत* 11
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*वुज़ू और साइन्स* #13/15
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*अन्धा पन से तहफ़्फ़ुज़*
     आँखों की एक बीमारी है जिसमे इस की रतूबते अस्लिय्या यानि असली तरी कम या ख़तम हो जाती और मरीज़ आहिस्ता आहिस्ता अन्धा हो जाता है।
     तिब्बी उसूल के मुताबिक़ अगर भवो को वक़्तन फ वक़्तन तर किया जाता रहे तो इस खौफ़नाक मरज़ से तहफ़्फ़ुज़ हासिल हो सकता है।

     अलहम्दु लिल्लाह ! वुज़ू करने वाला मुह धोता है और इस तरह उसकी भवे तर होती रहती है।
आशिकाने रसूल की दाढ़ी भी वुज़ू में धुलती है और इसमें भी खूब हिकम्ते है.
     डॉ प्रोफेसर ज्योर्ज एल कहता है : मुह धोने से दाढ़ी में उलझे हुए जरासिम बह जाते है, जड़ तक पानी पहोचने से बालो की जड़े मज़्बूत होती है, दाढ़ी के ख़िलाल से जुओं का खतरा दूर होता है, दाढ़ी में पानी की तरी के ठहराव से गर्दन के पठ्ठो, थाइराइड ग्लैंड और गले के अमराज़ से हिफाज़त होती है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 70-71*
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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