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Sunday 30 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #194
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑨_*
     या उसकी तरह जो गुज़रा एक बस्ती पर (6) और वह ढई पड़ी थी अपनी छतों पर (7)
बोला इसे कैसे जिलाएगा अल्लाह इसकी मौत के बाद, तो अल्लाह ने उसे मुर्दा रखा सौ बरस फिर ज़िन्दा कर दिया, फ़रमाया तू यहां कितना ठहरा, अर्ज़ की दिन भर ठहरा हूंगा या कुछ कम, फ़रमाया नहीं, तुझे सौ बरस गुज़र गए और अपने खाने और पानी को देख कि अब तक बू न लाया और गधे को देख कि जिसकी हड्डियां तक सलामत न रहीं, और यह इसलिये कि तुझे हम लोगों के वास्ते निशानी करें, और उन हड्डियों को देखकर कैसे हम उन्हें उठान देते फिर उन्हें गोश्त पहनाते हैं. जब यह मामला उसपर ज़ाहिर हो गया बोला मैं ख़ूब जानता हूँ कि अल्लाह सब कुछ कर सकता है.
*तफ़सीर*
     (6) बहुतों के अनुसार यह घटना हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम की है और बस्ती से मुराद बैतुल मक़दिस है. जब बुख़्तेनस्सर बादशाह ने बैतुल मक़दिस को वीरान किया और बनी इस्त्राईल को क़त्ल किया, गिरफ़तार किया, तबाह कर डाला, फिर हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम वहाँ गुज़रे. आपके साथ एक बरतन खजूर और एक प्याला अंगूर का रस और आप एक गधे पर सवार थे. सारी बस्ती में फिरे, किसी शख़्स को वहाँ न पाया. बस्ती की इमारतों को गिरा हुआ देखा तो आपने आश्चर्य से कहा “अन्ना युहयी हाज़िहिल्लाहो बादा मौतिहा” (कैसे जिलाएगा अल्लाह उसकी मौत के बाद) और आपने अपनी सवारी के गधे को वहाँ बाँध दिया, और आपने आराम फ़रमाया. उसी हालत में आपकी रूह क़ब्ज़ कर ली गई और गधा भी मर गया. यह सुबह के वक़्त की घटना है. उससे सत्तर बरस बाद अल्लाह तआला ने फ़ारस के बादशाहों में से एक बादशाह को मुसल्लत किया और वह अपनी फ़ौजें लेकर बैतुल मक़दिस पहुंचा और उसको पहले से भी बेहतर तरीक़े पर आबाद किया और बनी इस्त्राईल में से जो लोग बाक़ी रहे थे, अल्लाह तआला उन्हें फिर यहाँ लाया और वो बैतुल मक़दिस और उसके आस पास आबाद हुए और उनकी तादाद बढ़ती रही. इस ज़माने में अल्लाह तआला ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को दुनिया की आँखो से छुपाए रखा और कोई आपको न देख सका. जब आपकी वफ़ात को सौ साल गुज़र गए तो अल्लाह तआला ने आपको ज़िन्दा किया, पहले आँखो में जान आई, अभी तक सारा बदन मुर्दा था. वह आपके देखते देखते ज़िन्दा किया गया. यह घटना शाम के वक़्त सूरज डूबने के क़रीब हुई. अल्लाह तआला ने फ़रमाया, तुम यहाँ कितने दिन ठहरे. आपने अन्दाज़े से अर्ज़ किया कि एक दिन या कुछ कम. आप का ख़याल यह हुआ कि यह उसी दिन की शाम है जिसकी सुबह को सोए थे. फ़रमाया बल्कि तुम सौ बरस ठहरे. अपने खाने और पानी यानी खजूर और अंगूर के रस को देखो कि वैसा ही है, उसमें बू तक न आई और अपने गधे को देखो. देखा कि वह मरा हुआ था, गल गया था, अंग बिखर गए थे, हड्डियाँ सफ़ेद चमक रही थीं. आपकी निगाह के सामने उसके अंग जमा हुए, हड्डियों पर गोश्त चढ़ा, गोश्त पर खाई आई, बाल निकले, फिर उसमें रूह फूंकी गई. वह उठ खड़ा हुआ और आवाज़ करने लगा. आपने अल्लाह तआला की क़ुदरत का अवलोकन किया और फ़रमाया मैं ख़ूब जानता हुँ कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर क़ादिर है. फिर आप अपनी उसी सवारी पर सवार होकर अपने महल्ले में तशरीफ़ लाए. सरे अक़दस और दाढ़ी मुबारक के बाल सफ़ेद थे, उम्र वही चालीस साल की थी, कोई आपको पहचानता न था. अन्दाज़े से अपने मकान पर पहुंचे. एक बुढ़िया मिली, जिसके पाँव रह गए थे, वह अन्धी हो गई थी. वह आपके घर की दासी थी. उसने आपको देखा था. आपने उससे पूछा कि यह उज़ैर का मकान है, उसने कहा हाँ. और उज़ैर कहाँ, उन्हें ग़ायब हुए सौ साल गुज़र गए. यह कहकर ख़ूब रोई. आपने फ़रमाया, मैं उज़ैर हुँ. उसने कहा सुब्हानल्लाह, यह कैसे हो सकता है, आपने फ़रमाया, अल्लाह तआला ने मुझे सौ साल मुर्दा रखा, फिर ज़िन्दा किया. उसने कहा, हज़रत उज़ैर दुआ की क़ुबुलियत वाले थे, जो दुआ करते, क़ुबुल होती. आप दुआ कीजिये कि मैं देखने वाली हो जाऊं, ताकि मैं अपनी आँखो से आपको देखूँ आपने दुआ फ़रमाई, वह आँखों वाली हो गई. आपने उसका हाथ पकड़ कर फ़रमाया, उठ ख़ुदा के हुक्म से. यह फ़रमाते ही उसके मारे हुए पाँव दुरूस्त हो गए. उसने आपको देखकर पहचाना और कहा, मैं गवाही देती हुँ कि आप बेशक उज़ैर हैं. वह आपको बनी इस्त्राईल के महल्ले में ले गई. वहाँ एक बैठक में आपके बेटे थे, जिनकी उम्र एक सौ अठारह साल की हो चुकी थी और आपके पोते भी, जो बूढ़े हो चुके थे. बुढ़िया ने बैठक में पुकारा कि यह हज़रत उज़ैर तशरीफ़ ले आए. बैठक में मौजूद लोगों ने उसे झुटलाया. उसने कहा मुझे देखो, आपकी दुआ से मेरी यह हालत हो गई. लोग उठे और आपके पास आए. आपके बेटे ने कहा कि मेरे वालिद साहब के कन्धों के बीच काले बालों का एक हिलाल था. जिस्में मुबारक खोलकर दिखाया गया तो वह मौजूद था. उस ज़माने में तौरात की कोई प्रतिलिपि यानी नुस्ख़ा न रहा था. कोई उसका जानने वाला मौजूद न था. आपने सारी तौरात ज़बानी पढ़ दी. एक शख़्स ने कहा कि मुझे अपने वालिद से मालूम हुआ कि बुख़्तेनस्सर के अत्याचारों के बाद गिरफ़्तारी के ज़माने में मेरे दादा ने तौरात एक जगह दफ़्न कर दी थी उसका पता मुझै मालूम है. उस पते पर तलाश करके तौरात का वह नुस्ख़ा निकाला गया और हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम ने अपनी याद से जो तौरात लिखाई थी, उससे मुक़ाबला किया गया तो एक अक्षर का फ़र्क़ न था. (जुमल)
     (7) कि पहले छतें गिरीं फिर उन पर दीवारें आ पड़ीं.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ु और साइन्स* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_मिस्वाक के मदनी फूल_* #01
    दो फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم
★ 2 रकअत मिस्वाक करके पढ़ना बगैर मिस्वाक की 70 रकअतो से अफ़्ज़ल है।
★ मिस्वाक का इस्तिमाल अपने लिये लाज़िम करलो क्यू की ये मुह की सफाई और रब तआला की रिजा का सबब है

     हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله عنه से रिवायत है की मिस्वाक में 10 खुबिया है :
★ मुह साफ़ करती, मसूढ़े को मज़बूत बनाती है, बिनाई बढ़ाती, बलगम दूर करती है, मुह की बदबू खत्म करती, सुन्नत के मुवाफ़िक है, फ़रिश्ते खुश होते है, रब राज़ी होता है, नेकी बढ़ाती और मेदा दुरुस्त करती है।
*✍🏽जमउल जवामीअ-लिस्सुयुति, जी-5, स. 239*

     सय्यिदुना इमाम शाफ़ेई رضي الله عنه फरमाते है : 4 चीज़े अक्ल बढ़ाती है :
★ फ़ुज़ूल बातो से परहेज़
★ मिस्वाक का इस्तिमाल
★ सुलहा यानी नेक लोगोकी सोहबत
★ अपने इल्म पर अ'मल
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 64,65*
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*सुरमा लगाने की सुन्नते और आदाब* #02
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_*सुरमए इस्मद बेहतर है*_
     इब्ने माजह की रिवायत में है तमाम सुरमो में बेहतर सुरमा इस्मद है कि ये निगाह को रोशन करता और पलके उगाता है।
*✍🏽इब्ने माजह, 4/115, हदिष:3497*

     सुरमए इस्मद की फ़ज़ीलत के लिये येही काफी है कि ये सुरमा हम बे कसो के सहारे صلى الله عليه وسلم को पसन्द है। आप ने इसे खुद भी इस्तिमाल फ़रमाया और अपने गुलामो को इस की तरगिब् भी दिलाई और इसके फ़वाइद भी इर्शाद फरमाए।
     अहादिशे बाला से ये भी मालुम हुआ की सुरमए इस्मद बिनाई को तेज़ करने के साथ साथ पलको के बाल भी उगाता है। कहा जाता है कि इस्मद इस्फ़हान में पाया जाता है। उलमए किराम फरमाते है कि इसका रंग सियाह होता है और मशरीकी ममालिक में पैदा होता है। बाहर हाल इस्मद का सुरमा डाला जाए सुन्नत अदा हो जाएगी।
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 57*
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Saturday 29 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #193
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑧_*
     ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा था उसे जो इब्राहिम से झगड़ा उसके रब के बारे में इस पर(1) कि अल्लाह ने उसे बादशाही दी(2) जब कि इब्राहीम ने कहा कि मेरा रब वह है कि जिलाता और मारता है (3) बोला मै जिलाता और मारता हूँ (4) इब्राहीम ने फ़रमाया तो अल्लाह सूरज को लाता है पूरब से, तू उसको पश्चिम से ले आ(5) तो होश उड़ गए काफ़िर के और अल्लाह राह नहीं दिखाता ज़ालिमों को.
*तफ़सीर*
     (1) घमण्ड और बड़ाई पर.
     (2) और तमाम ज़मीन की सल्तनत अता फ़रमाई, इस पर उसने शुक्र और फ़रमाँबरदारी के बजाय घमण्ड किया और ख़ुदा होने का दावा करने लगा, उसका नाम नमरूद बिन कनआन था. सब से पहले सर पर ताज रखने वाला यही है. जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उसको ख़ुदा परस्ती की दावत दी, चाहे आग में डाले जाने से पहले या इसके बाद, तो वह कहने लगा कि तुम्हारा रब कौन है जिसकी तरफ़ तुम हमें बुलाते हो.
     (3) यानी जिस्मों में मौत और ज़िन्दगी पैदा करता है, एक ख़ुदा को न पहचानने वाले के लिये यह बेहतरीन हिदायत थी, और इसमें बताया गया था कि ख़ुद तेरी ज़िन्दगी उसके अस्तित्व की गवाह है कि तू एक बेजान नुत्फ़ा था, उसने उसे इन्सानी सूरत दी और ज़िन्दगी प्रदान की. वह रब है और ज़िन्दगी के बाद फिर ज़िन्दा जिस्मों को मौत देता है. वो परवर्दिगार है, उसकी क़ुदरत की गवाही ख़ुद तेरी अपनी मौत और ज़िन्दगी में मौजूद है. उसके अस्तित्व से बेख़बर रहना अत्यन्त अज्ञानता और सख़्त बद-नसीबी है. यह दलील ऐसी ज़बरदस्त थी कि इसका जवाब नमरूद से न बन पड़ा और इस ख़याल से कि भीड़ के सामने उसको लाजवाब और शर्मिन्दा होना पड़ता है, उसने टेढ़ा तर्क अपनाया.
     (4) नमरूद ने दो व्यक्तियों को बुलाया. उनमें से एक को क़त्ल किया, एक को छोड़ दिया और कहने लगा कि मैं भी जिलाता मारता हुँ, यानी किसी को गिरफ़्तार करके छोड़ देना उसको जिलाना है. यह उसकी अत्यन्त मूर्खता थी, कहाँ क़त्ल करना और छोड़ना और कहाँ मौत और ज़िन्दगी पैदा करना. क़त्ल किये हुए शख़्स को ज़िन्दा करने से आजिज़ रहना और बजाय उसके ज़िन्दा के छोड़ने को जिलाना कहना ही उसकी ज़िल्लत के लिये काफ़ी था. समझ वालों पर इसी से ज़ाहिर हो गया कि जो तर्क हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने क़ायम किया है वह अन्तिम है, और उसका जवाब मुमकिन नहीं. लेकिन चूंकि नमरूद के जवाब में दावे की शान पैदा हो गई तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उस पर मुनाज़िरे वाली गिरफ़्त फ़रमाई कि मौत और ज़िन्दगी का पैदा करना तो तेरी ताक़त से बाहर है, ऐ ख़ुदा बनने के झूटे दावेदार, तू इससे सरल काम ही कर दिखा जो एक मुतहर्रिक जिस्म की हरकत का बदलना है.
      (5) यह भी न कर सके तो ख़ुदा होने का दावा किस मुंह से करता है. इस आयत से इल्मे कलाम में मुनाज़िरा करने का सुबूत मिलता है.
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*वुज़ु और साइन्स* #04
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*_मिस्वाक का क़दरदान_*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! वुज़ु में मुतअद्दी सुन्नते है और हर सुन्नत मख़ज़ने हिक्मत है।
     मिस्वाक ही को ले लीजिये ! सब जानते है की वुज़ु में मिस्वाक करना सुन्नत है और इस सुन्नत की बरकतों का क्या कहना !
     एक व्यपारी का कहना है : स्विजरलैंड में एक नौ मुस्लिम से मेरी मुलाक़ात हुई उसको मेने तोहफतन मिस्वाक लेश की, उसने ख़ुश हो कर उसे लिया और चूम कर आखो से लगाया और एक दम उस की आँखों से आसु छलक पड़े। उसने जेब से एक रुमाल निकाला उस की तह खोली तो उस में से तकरीबन 2 इंच का छोटा सा मिस्वाक का टुकड़ा बरामद हुवा। वो कहने लगा : मेरी इस्लाम आवरी के वक़्त मुसलमानो ने मिझे ये तोहफा दिया था। में बहुत संभाल संभाल कर इसको इस्तिमाल कर रहा था, ये खत्म होने को था लिहाज़ा मुझे तश्विश थी के अल्लाह ने करम फ़रमाया और आप ने मुझे मिस्वाल इनायत फरमा दिया।
     फिर उसने बताया के एक अरसे से में दातो और मसूढ़ों की तकलीफ से परेशान था। हमारे यहाँ के डेंटिस्ट से इन का इलाज बन नहीं पड़ रहा था। मेने इस मिस्वाक का इस्तिमाल शुरू किया थोड़े ही दिनों में मुझे फायदा हो गया। में डॉ. के पास गया तो वो हैरान रह गया और पूछने लगा : मेरी दवाई से इतनी जल्दी तुम्हारा मरज़ दूर नहीं हो सकता, सोचो कोई और वजह होंगी। मेने जब ज़हन पर ज़ोर दिया तो ख्याल आया के में मुसलमान हो चूका हू और ये सारी बरकतें मिस्वाक ही की है। जब डॉ को मिस्वाक दिखाया तो वो देखता ही रह गया।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, साफ 61-62*
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*सुरमा लगाने की सुन्नते और आदाब* #01
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     हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله عنه फरमाते है कि ताजदारे मदीना صلى الله عليه وسلم सोने से पहले हर आँख में सुरमए इस्मद की तिन सलाइया लगाया करते थे।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 3/294, हदिष:1763*

     हदिशे पाक से मालूम हुवा की सुरमा सोते वक़्त इस्तमाल करना सुन्नत है। लिहाज़ा हम रात को जब भी सोये सुरमा लगाना न भूलना चाहिए। सोते वक़्त सुरमा लगाने में ये मस्लिहत है कि सुरमा ज़्यादा देर तक आँखों में रहता है और आँखों के मसामात में सरायत कर के आँखों को फायदा पहुचता है।
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 57*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #05
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*_मरने वालो की फेहरिस बनाने का महीना_*

     हज़रते आइशा सिद्दीका رضي الله عنها फरमाती है : ताजदारे रिसालत ﷺ पुरे शाबान के रोज़े रखा करते थे. फरमाती है के मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ ! क्या सब महीनो में आप के नज़दीक ज़्यादा पसंदीदा शाबान के रोज़े रखना है ?
   तो आप ने फ़रमाया : अल्लाह عزوجل इस साल मरने वाली हर जान को लिख देता है और मुझे ये पसंद है के मेरा वक़्ते रुखसत आए और में रोज़ादार हु.
*✍🏽आक़ा का महीना, स. 5-6*
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Friday 28 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #192
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*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-34, आयत ②⑤⑥_*
कुछ ज़बरदस्ती नहीं (11) दीन में बेशक ख़ूब जुदा हो गई है नेक राह गुमराही से तो जो शैतान को न माने और अल्लाह पर ईमान लाए (12) उसने बड़ी मज़बूत गिरह थामी जिसे कभी खुलना नहीं और अल्लाह सुनता जानता है.
*तफ़सीर*
     (11) अल्लाह की सिफ़ात के बाद “ला इकराहा फ़िद दीन” (कुछ ज़बरदस्ती नहीं दीन में) फ़रमाने में यह राज़ है कि अब समझ वाले के लिये सच्चाई क़ुबूल करने में हिचकिचाहट की कोई वजह बाक़ी न रही.
     (12) इसमें इशारा है कि काफ़िर के लिये पहले अपने कुफ़्र से तौबह और बेज़ारी ज़रूरी है, उसके बाद ईमान लाना सही होता है.

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-34, आयत ②⑤⑦_*
     अल्लाह वाली है मुसलमानों का उन्हें अंधेरियों से (13) नूर की तरफ़ निकालता है और काफ़िरों के हिमायती शैतान हैं वो उन्हें नूर से अंधेरियों की तरफ़ निकालते हैं यही लोग दोज़ख़ वाले हैं, उन्हें हमेशा उसमें रहना (257)
*तफ़सीर*
     (13) कुफ़्र और गुमराही की रौशनी, ईमान और हिदायत की रौशनी
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*आक़ा ﷺ का महीना* #04
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*_नफली रोज़ो का पसंदीदा महीना_*
     मीठे और प्यारे इस्लामी भइयो ! हमारे दिलो के चैन सरवरे कोनैन صلى الله عليه وسلم माह शाबान में कसरत से रोज़े रखना पसंद फरमाते.
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी कैसा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है के उन्होंने उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीका رضي الله عنها को फरमाते सुना : साहिब मेराज صلى الله عليه وسلم का पसंदीदा महीना शाबानुल मुअज़्ज़्म था के इस में रोज़े रखा करते फिर उसे रमज़ानुल मुबारक से मिला देते.
*सुनन इब्ने दाऊद, जी.2 स. 2431*

_*लोग इससे गाफिल है*_
     हज़रते उसामा बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه फरमाते है, मेने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ ! में देखता हु के जिस तरह आप शाबान में रोज़े रखते है इस तरह किसी भी महीने में नही रखते ?
     फ़रमाया : रजब और रमज़ान के बिच में ये महीना है, लोग इस से गाफिल है, इस में लोगो के आमाल अल्लाहु रब्बुल आलमीन की तरफ उठाए जाते है और मुझे ये महबूब है के मेरा अमल इस हाल में उठाया जाए के में रोज़ादार हु.
*✍🏽आक़ा का महीना, स. 5*
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*वुज़ु और साइन्स* #03/17
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_*वुज़ु और फालिज*_
     वुज़ु में जो तरतीब वार आज़ा धोए जाते है ये भी हिक्मत से खाली नहीं।

★ पहले हाथ पानी में डालने से जिस्म का आसाबि निज़ाम मुत्तलअ हो जाता है, और फिर आहिस्ता आहिस्ता चेहरे और दिमाग की रगो की तरफ इस के असरात पहोचते है।

★ वुज़ु में पहले हाथ धोने फिर कुल्ली करने फिर नाक में पानी डालने फिर चेहरा और दीगर आज़ा धोने की तरतीब फालिज की रोकथाम के लिये मुफीद है।

★ अगर चेहरा धोने और मसह करने से आगाज़ किया जाए तो बदन कई बीमारियो में मुब्तला हो सकता है !
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 60-61*

फालिज यानि लकवा
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*घर में आने जाने की सुन्नते और आदाब* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ**بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जब किसके घर जाना हो तो इस का तरीक़ा ये है कि पहले अन्दर आने की इजाज़त हासिल कीजिये फिर जब अन्दर जाए तो पहले सलाम करे फिर बात चीत सुरु किजिये।
*✍🏽बहारे शरीअत, 16/83*

     हज़रते अबू मूसा असअरी رضي الله عنه से मरवी है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : तिन मर्तबा इजाज़त तलब करो अगर इजाज़त मिल जाए तो ठीक वरना वापस लौट जाओ।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1176, हदिष:2153*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 36*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Thursday 27 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #191
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑤⑤_*
     अल्लाह है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं (2) वह आप ज़िन्दा, औरों का क़ायम रखने वाला (3) उसे न ऊंघ आए न नींद (4) उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में (5) वह कौन है जो उसके यहां सिफ़रिश करे बे उसके हुक्म के  (6) जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे (7) और वो नहीं पाते उसके इल्म में से मगर जितना वह चाहे (8)
उसकी कुर्सी में समाए हुए है आसमान और ज़मीन (9) और उसे भारी नहीं उनकी निगहबानी और वही है बलन्द बड़ाई वाला  (10)

*तफ़सीर*
     (2) इसमें अल्लाह तआला की उलूहियत और उसके एक होने का बयान है. इस आयत को आयतल कुर्सी कहते हैं. हदीसों में इसकी बहुत सी फ़ज़ीलत आई है.
     (3) यानी वाजिबुल वुजूद और आलम का ईजाद करने वाला और तदबीर फ़रमाने वाला.
     (4) क्योंकि यह दोष है और वह दोष और ऐब से पाक है.
     (5) इसमें उसकी मालिकियत और हुक्म के लागू करने की शक्ति का बयान है, और बहुत ही सुंदर अन्दाज़ में शिर्क का रद है कि जब सारी दुनिया उसकी मिल्क है तो शरीक कौन हो सकता है, मुश्रिक या तो सितारों को पूजते हैं जो आसमानों में हैं या दरियाओं, पहाड़ों, पत्थरों और दरख़्तों और जानवरों वग़ैरह को कि जो ज़मीन में हैं. जब आसमान और ज़मीन की हर चीज़ अल्लाह की मिल्क है तो ये कैसे पूजने के क़ाबिल हो सकते हैं.
     (6) इसमें मुश्रिकों का रद है जिनका गुमान था कि मुर्तियाँ सिफ़ारिश करेंगी. उन्हें बता दिया गया कि काफ़िरों के लिये सिफ़ारिश या शफ़ाअत नहीं. अल्लाह के दरबार से जिन्हें इसकी इजाज़त मिली है उनके सिवा कोई शफ़ाअत नहीं कर सकता और इजाज़त वाले नबी, फरिश्ते और ईमान वाले हैं.
     (7) यानी गुज़रे हुए या आगे आने वाले दुनिया और आख़िरत के काम.
     (8) और जिनको वह मुत्तला फ़रमाए, वो नबी और रसूल हैं जिनको ग़ैब पर सूचित फ़रमाना, उनकी नबुव्वत का प्रमाण है. दूसरी आयत में इरशाद फ़रमाया “ला युज़हिरो अला ग़ैबिही अहदन इल्ला मनिर तदा मिर रसूलिन” (यानी अपने ग़ैब पर किसी को मुत्तला नहीं करता सिवाय अपने पसन्दीदा रसूलों के. (72 : 26) (ख़ाज़िन).
     (9) इसमें उसकी शान की अज़मत का इज़हार है, और कुर्सी से या इल्म और क्षमता मुराद है या अर्श या वह जो अर्श के नीचे और सातों आसमानों के ऊपर है. और मुमकिन है कि यह वही हो जो “फ़लकुल बुरूज” के नाम से मशहूर है.
     (10) इस आयत में इलाहिय्यात के ऊंचे मसायल का बयान है और इससे साबित है कि अल्लाह तआला मौजूद है. अपने अल्लाह होने में एक है, हयात यानी ज़िन्दगी के साथ मुत्तसिफ़ है. वाजिबुल वुजूद, अपने मासिवा का मूजिद है. तग़ैय्युरो हुलूल से मुनज़्ज़ा और तबदीली व ख़राबी से पाक है, न किसी को उससे मुशाबिहत, न मख़लूक़ के अवारिज़ को उस तक रसाई, मुल्को मलकूत का मालिक, उसूलो फरअ का मुब्देअ, क़वी गिरफ़्त वाला, जिसके हुज़ूर सिवाए माज़ून के कोई शफ़ाअत नहीं कर सकता. सारी चीज़ों का जानने वाला, ज़ाहिर का भी और छुपी का भी, कुल का भी, और कुछ का भी. उसका मुल्क वसीअ और क़ुदरत लामेहदूद, समझ और सोच से ऊपर.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ु और साइन्स* #02/17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वुज़ु और हाइ ब्लड प्रेशर_*
     एक हार्ट स्पेशालिस्ट का बड़े ऐतिमाद के साथ कहना है : हाई ब्लड प्रेशर के मरीज़ को वुज़ु करवाओ फिर उस का ब्लड प्रेशर चेक करो लाज़िमन कम होगा।

     एक मुसलमान माहिरे नफ्सियात का कौल है : नफ्सियात अमराज़ का बेहतरीन इलाज वुज़ु है।

     मग़रिबी माहिरीन नफ्सियात मरीज़ों को वुज़ु की तरह रोज़ाना कई बार बदन पर पानी लगवाते है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, शफा 60*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*आक़ा ﷺ का महीना* #03/19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_मौजूदा मुसलमानो का जज़्बा_*
سبحان الله !
पहले के मुसलमानो को इबादत का किस क़दर ज़ौक़ होता था ! मगर अफ़सोस ! आज कल के मुसलमानो को ज़्यादा तर हसुले माल ही का शौक है, पहले के मदनी सोच रखने वाले मुसलमान मुतबर्रिक अय्याम में रब्बुल अनाम की ज्यादा से ज़्यादा इबादत करके उसका कुर्ब हासिल करने की कोशिश करते थे, और आज कल के मुसलमान मुबारक दिनों, खुसुसन माहे रमज़ानुल मुबारक में दुन्या की ज़लील दौलत कमाने की नई नई तरकीबे सोचते है।

     अल्लाह अपने बन्दों पर महेरबान हो कर नेकियों का अजरो षवाब खूब बढ़ा देता है, लेकिन दुन्या की दौलत से महब्बत करने वाले रमज़ानुल मुबारक में अपनी चीज़ों का भाव बढ़ा कर अपने ही मुसलमान भाइयो में लूटमार मचा देते है।

     सद करोड़ अफ़सोस ! खैर ख्वाहिये मुस्लिमीन का जज़्बा दम तोड़ता नज़र आ रहा है !
*✍🏽आक़ा का महीना, स.4*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*घर में आने जाने की सुन्नते और आदाब* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ**بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*जब कोई खुश नसीब अपने घर से बाहर जाते वक़्त बाहर जाने की दुआ पढ़ लेता है तो वो घर लौटने तक हर बला व आफत से महफूज़ हो जाता है*
     सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم की सुन्नतो पर अमल करने में बरकत ही बरकत है। हज़रते अबू हुरैरह رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : आदमी अपने घर के दरवाज़े से बाहर निकलता है तो उसके साथ 2 फ़रिश्ते मुक़र्रर होते है। जब वो आदमी कहता है कि *بِـسْمِ اللّٰه* तो वो फ़रिश्ते कहते है तूने सीधी राह इख़्तियार की। और जब इंसान कहता है, *لٙا حٙوْلٙ وٙلٙا قُوّٙةٙ اِلّٙا بِااللّٰهِ* तो फ़रिश्ते कहते है अब तू हर आफत से महफूज़ है। जब बन्दा कहता है, *تٙوٙ كّٙلْتُ عٙلٙى اللّٰهِ* तो फ़रिश्ते कहते है अब तुझे किसी और की मदद की हाजत नही, इस के बाद उस शख्स के दो शैतान जो उस पर मुसल्लत है वो उससे मिलते है, फ़रिश्ते कहते है अब तुम  इसके साथ क्या करना चाहते हो? इसने तो सीधा रास्ता इख़्तियार किया। तमाम आफतों से महफूज़ हो गया और खुदा की इमदाद के इलावा दूसरे की इमदाद से बे नियाज़ हो गया।
*✍🏽सुनने इब्ने माजह, 4/292, हदिष:3886*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 36*
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Wednesday 26 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #190
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑤④_*
     ऐ ईमान वालो अल्लाह की राह में हमारे दिये में से ख़र्च करो वह दिन आने से पहले जिसमें न ख़रीद फ़रोख़्त (क्रय.विक्रय) है न काफ़िरों के लिये दोस्ती और न शफ़ाअत (सिफ़ारिश) और काफ़िर ख़ुद ही ज़ालिम हैं.

*तफ़सीर*
     कि उन्होंने दुनिया की ज़िन्दगानी में हाजत के दिन यानी क़यामत के लिये कुछ न किया.
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*वुज़ु और साइन्स* #01/18
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_वुज़ु की हिकमते सुनने के सबब कबूले इस्लाम_*
     एक साहिब का बयान है : मेने मेल्जियम में यूनिवर्सिटी के एक गैर मुस्लिम स्टूडंट को इस्लाम की दा'वत दी। उसने सुवाल किया : वुज़ु में क्या क्या साइन्सि हिकमते है ? में ला जवाब हो गया।

     उसको एक आलिम के पास ले गया लेकिन उनको भी इसकी मालूमात न थी। यहाँ तक की साइन्सि मालूमात रखने वाले एक शख्स ने उसको वुज़ु की काफी खुबिया बताई मगर गर्दन के मसह की हिक्मत बताने से वो भी क़ासिर रहा।

     वो गैर मुस्लिम नौजवान चला गया। कुछ अरसे के बाद आया और कहने लगा : हमारे प्रोफेसर ने दौराने लेक्चर बताया : अगर गर्दन की पुशत और अतराफ़ पर रोज़ाना पानी के चन्द कतरे लगा दिये जाए तो रीढ़ की हड्डी और हराम मगज की खराबी से पैदा होने वाले अमराज़ से तहफ्फुज हो जाता है। ये सुन कर वुज़ु में गर्दन के मसह की हक़ीक़त मेरी समज में आ गई लिहाज़ा में मुसलमान होना चाहता हु और वो मुसलमान हो गया।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, शफा 58-59*
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*आक़ा ﷺ का महीना* #02/19
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*_सहाबए किराम का जज़्बा_*
     हज़रते अनस बिन मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है : माहे शाबान का चाँद नज़र आते ही सहाबए किराम तिलावते कुरआन की तरफ खूब मुतवज्जेह हो जाते, अपने अम्वाल् की ज़कात निकालते ताके गुरबा व मसाकिन मुसलमान माहे रमज़ान के रोज़े के लिये तैयारी कर सके.
     हुक्काम कैदियों को तलब करके जिस पर हद (सज़ा) क़ाइम करना होती उस पर हद क़ाइम करते, बकिय्या में से जिन को मुनासिब होता उन्हें आज़ाद कर देते.
     ताजिर अपने कर्जे अदा कर देते, दुसरो से अपने कर्जे वसूल कर लेते। (यु माहे रमज़ानुल मुबारक से क़ब्ल ही अपने आप को फारिग कर लेते)
     और रमज़ान का चाँद नज़र आते ही गुस्ल कर के (बाज़ हज़रात) एतिकाफ में बैठ जाते।
*✍🏽गुण्यतुल तालिबिन जी.1 स.341*
*✍🏽आक़ा का महीना, स. 3*
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*घर में आने जाने की सुन्नते और आदाब* #02
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*अल्लाह का नाम लिये बगैर जो घर में दाखिल होता है, शैतान भी उस के घर में दाखिल हो जाता है*
     हज़रते ज़ाबिर رضي الله عنه से रिवायत है कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : जब आदमी घर में दाखिल होते वक़्त और खाना खाते वक़्त  अल्लाह का ज़िक्र करता है तो शैतान कहता है : आज यहा न तुम्हारी रात गुज़र सकती है और न तुम्हे खाना मिल सकता है।
     और जब इंसान घर में बगैर अल्लाह का ज़िक्र किये दाखिल होता है तो शैतान कहता है, आज की रात यहीं गुज़रेगी। और जब खाने के वक़्त अल्लाह का नाम नही लेता तो वो कहता है तुम्हे ठिकाना भी मिल गया और खाना भी मिल गया।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 4/1116, हदिष:2078*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 35*
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Tuesday 25 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #189
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑤③_*
     यह रसूल है कि हमने उनमे एक को दूसरे पर अफज़ल किया (10) उनमें से किसी से अल्लाह ने कलाम फ़रमाया (11) और कोई वह है जिसे सब पर दर्जो बुलन्द किया (12) और हमने मरयम के बेटे ईसा को खुली निशानियाँ दी (13) और पाकीज़ा रूह से उसकी मदद की (14) और अल्लाह चाहता तो उनके बाद वाले आपस में न लड़ते, बाद इसके कि उनके पास खुली निशानियां आ चुकीं (15) लेकिन वह तो मुख़्तलिफ़ हो गए। उनमे कोई ईमान पर रहा और कोई काफिर हो गया (16) और अल्लाह चाहता तो वह न लड़ते मगर अल्लाह जो चाहे करे। (17)
*तफ़सीर*
     (10) इससे मालूम हुआ कि नबियों के दर्जे अलग अलग हैं. कुछ हज़रात से कुछ अफ़ज़ल हैं. अगरचे नबुव्वत में कोई फ़र्क़ नहीं, नबुव्वत की ख़ूबी में सब शरीक हैं, मगर अपनी अपनी विशेषताओं, गुणों और कमाल में अलग अलग दर्जे हैं. यही आयत का मज़मून है और इसी पर सारी उम्मत की सहमति है. (ख़ाज़िन व जुमल)
     (11) यानी बिला वास्ता या बिना माध्यम के, जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को तूर पहाड़ पर संबोधित किया और नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को मेराज में. (जुमल).
     (12) वह हुज़ूर पुरनूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं कि आपको कई दर्जों के साथ सारे नबियों पर अफ़ज़ल किया. इस पर सारी उम्मत की सहमति है. और कई हदीसों से साबित है. आयत में हुज़ूर के इस बलन्द दर्जे का बयान फ़रमाया गया और नामे मुबारक की तसरीह यानी विवरण न किया गया. इससे भी हुज़ूर अलैहिस्सलातो वस्सलाम की शान की बड़ाई मक़ूसद है, कि हुज़ूर की मुबारक ज़ात की यह शान है कि जब सारे नबियों पर फ़ज़ीलत या बुजुर्गी का बयान किया जाए तो आपकी पाक ज़ात के सिवा किसी और का ख़याल ही न आए और कोई शक न पैदा हो सके. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की वो विशेषताएं और गुण जिनमें आप सारे नबियों से फ़ायक़ और अफ़ज़ल हैं और आपका कोई शरीक नहीं, बैशुमार हैं कि क़ुरआने पाक में यह इरशाद हुआ “दर्जों बलन्द किया” इन दर्जों की कोई गिनती क़ुरआन शरीफ़ में ज़िक्र नहीं फरमाई, तो अब कौन हद लगा सकता है. इन बेशुमार विशेषताओं में से कुछ का इजमाली और संक्षिप्त बयान यह है कि आपकी रिसालत आम है, तमाम सृष्टि आपकी उम्मत है. अल्लाह तआला ने फ़रमाया “वमा अरसलनाका इल्ला काफ्फ़तल लिन्नासे बशीरौं व नज़ीरा” (यानी ऐ मेहबूब हमने तुमको न भेजा मगर ऐसी रिसालत से जो तमाम आदमियों को घेरने वाली है, खुशख़बरी देता और डर सुनाता) (34 :28). दूसरी आयत में फ़रमाया : “लियकूना लिलआलमीना नज़ीरा” (यानी जो सारे जहान को डर सुनाने वाला हो) (25:1). मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में इरशाद हुआ “उरसिलतो इलल ख़लाइक़े काफ्फ़तन” (और आप पर नबुव्वत ख़त्म की गई). क़ुरआने पाक में आपको ख़ातिमुन्नबीय्यीन फ़रमाया हदीस शरीफ़ में इरशाद हुआ “ख़ुतिमा बियन नबिय्यूना”. आयतों और मोजिज़ात में आपको तमाम नबियों पर अफ़ज़ल फ़रमाया गया. आपकी उम्मत को तमाम उम्मतों पर अफ़ज़ल किया गया. शफ़ाअते कुबरा आपको अता फ़रमाई गई. मेराज में ख़ास क़ुर्ब आपको मिला. इल्मी और अमली कमालात में आपको सबसे ऊंचा किया और इसके अलावा बे इन्तिहा विशेषताएं आपको अता हुई. (मदारिक, जुमल, ख़ाज़िन, बैज़ावी वग़ैरह).
    (13) जैसे मुर्दे को ज़िन्दा करना, बीमारों को तन्दुरूस्त करना, मिट्टी से चिड़ियाँ बनाना, ग़ैब की ख़बरें देना वग़ैरह.
    (14) यानी जिब्रील अलैहिस्सलाम से जो हमेशा आपके साथ रहते थे.
     (15) यानी नबियों के चमत्कार.
     (16) यानी पिछले नबियों की उम्मतें भी ईमान और कुफ़्र में विभिन्न रहीं, यह न हुआ कि तमाम उम्मत मुतीअ हो जाती.
     (17) उसके मुल्क में उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो सकता और यही ख़ुदा की शान है.
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*बे वुज़ू क़ुरआने मजीद को कही से भी नहीं छू सकते*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     बे वुज़ू आयत को छूना तो खुद ही हराम है अगर्चे आयत किसी और किताब में लिखी हो, मगर क़ुरआने मजीद के सादा हाशिया बल्कि पुठ्ठे बल्कि चिली (यानि जो कपड़ा या चमड़ा गत्ते के साथ चिपका या सिला हो उस) का भी छूना हराम है.

     हा जुज़दान में हो तो जुज़दान को हाथ लगा सकते है।

     बे वुज़ू अपने सीने से भी मुसहफ शरीफ को मस नहीं कर सकता। बे वुज़ू की गरदन पर लंबी चादर का एक कपड़ा पड़ा हुवा है और वो उसके दूसरे कोने को हाथ पर रख कर मुसहफ शरीफ छूना चाहे और अगर चादर इतनी लंबी है की उस शख्स के उठने बैठने से दूसरे गोशे (यानि कोने) तक हरकत न पहोचेगी तो जाइज़ है वरना नहीं।
*✍🏽फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 4/724-725*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 37*
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*आक़ा का महीना*#01/19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     रसूले अकरम ﷺ का शाबानुल मुअज़्ज़म के बारे में फरमान है : शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह का महीना है।

*_शाबान के 5 हरुफ़ की बहारे_*
     सुब्हान अल्लाह ! माहे शाबानुल मुअज़्ज़म की अज़्मतो पर कुर्बान ! इसकी फ़ज़ीलत के लिये इतना ही काफी है के हमारे आक़ा صلى الله عليه وسلم ने इसे " मेरा महीना" फ़रमाया।
     हज़रत गौषे आज़म رضي الله عنه लफ्ज़ "शाबान" के 5 हरुफ़ के मुतअल्लिक़ नकल फरमाते है :
★ शिन : से मुराद "शरफ" यानी बुज़ुर्गी
★ ऍन : से मुराद "उलुव्व्" यानि बुलंदी
★ बा : से मुराद "बीर" यानि एहसान व भलाई
★ अलिफ़ : से मुराद "उल्फ़त" और
★ नून : से मुराद "नूर" है
     तो ये तमाम चीज़े अल्लाह तआला अपने बन्दों को इस महीने में अता फरमाता है, ये वो महीना है जिस में नेकियों के दरवाज़े खोल दिये जाते है, बरकतों का नुज़ूल होता है, खताए मिटा दी जाती है और गुनाहो का कफ़्फ़ारा अदा किया जाता है, और हुज़ूर ﷺ पर दुरुदे पाक की कसरत की जाती है और ये नबिय्ये मुख्तार صلى الله عليه وسلم पर दुरुद भेजने का महीना है।
*✍🏽गुन्यातू-तालिबिन, जी.1 स.341*
*✍🏽आक़ा का महीना, स. 2-3*
*___________________________________*
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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*घर में आने जाने की सुन्नते और आदाब* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हुज़ूर ताजदारे मदीना صلى الله عليه وسلم का फरमान है : जब तुम घर में आओ तो घर वालो को सलाम करो और जाओ तो सलाम करो।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 6/447, हदिष : 8845*

    मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी رحمة الله عليه फरमाते है : बाज़ बुजुर्गो को देखा गया है की अव्वल दिन में जब पहली बार घर में दाखिल होते तो बिस्मिल्लाह और *قُلْ هُوٙ اللّٰهُ* पढ़ लेते, की इस से घर में इत्तिफ़ाक़ भी रहता है और रिज़्क़ में बरकत भी।
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 34*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Monday 24 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #188
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑤ⓞ_*
     फिर जब सामने आए जालूत और उसके लश्करों के, अर्ज़ की ऐ रब हमारे हम पर सब्र उंडेल और हमारे पाँव जमे रख काफ़िर लोगों पर हमारी मदद कर.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑤①_*
     तो उन्होंने उनको भगा दिया अल्लाह के हुक्म से और क़त्ल किया दाऊद ने जालूत को (5) और अल्लाह ने उसे सल्तनत और हिकमत (बोध) (6) अता फ़रमाई और उसे जो चाहा सिखाया (7) और अगर अल्लाह लोगों में कुछ से कुछ को दफ़ा (निवारण)  न करे (8) तो ज़रूर तबाह हो जाए मगर अल्लाह सारे जहान पर फ़ज़्ल (कृपा) करने वाला है.
*तफ़सीर*
     (5) हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के वालिद ऐशा तालूत के लश्कर में थे और उनके साथ उनके सारे बेटे भी. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम उन सब में सबसे छोटे थे, बीमार थे, रंग पीला पड़ा हुआ था, बकरियाँ चराते थे. जब जालूत ने बनी इस्त्राईल को मुक़ाबले के लिये ललकारा, वो उसकी जसामत देख कर घबराए, क्योंकि वह लम्बा चौड़ा ताक़तवार था. तालूत ने अपने लश्कर में ऐलान किया कि जो शख़्स जालूत को क़त्ल करे, मैं अपनी बेटी उसके निकाह में दूंगा और आधी जायदाद उसको दूंगा. मगर किसी ने उसका जवाब न दिया तो तालूत ने अपने नबी शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अल्लाह के सामने दुआ करें. आपने दुआ कि तो बताया गया कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम जालूत को क़त्ल करेंगे. तालूत ने आपसे अर्ज़ की कि अगर आप जालूत को क़त्ल करें तो मैं अपनी लड़की आपके निकाह में दूँ और आधी जायदाद पेश करूँ. आपने क़ुबूल फ़रमाया और जालूत की तरफ़ रवाना हो गए. मुक़ाबले की सफ़ क़ायम हुई. हज़रत दाऊद  अलैहिस्सलाम अपने मुबारक हाथों में ग़ुलेल या गोफन लेकर सामने आए. जालूत के दिल में आपको देखकर दहशत पैदा हुई मगर उसने बड़े घमण्ड की बातें कीं और आपको अपनी ताक़त के रोब में लाना चाहा. आपने गोफन में पत्थर रखकर मारा वह उसकी पेशानी को तोड़कर पीछे से निकल गया और जालूत गिर कर मर गया. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने उसको लाकर तालूत के सामने डाल दिया. सारे बनी इस्त्राईल बहुत ख़ुश हुए और तालूत ने वादे के मुताबिक़ आधी जायदाद दी और अपनी बेटी का आपके साथ निकाह कर दिया. सारे मुल्क पर हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की सल्तनत हुई. (जुमल वग़ैरह)
     (6) हिकमत से नबुव्वत मुराद है.
     (7) जैसे कि ज़िरह बनाना और जानवरों की बोली समझना.
     (8) यानी अल्लाह तआला नेकों के सदक़े में दूसरों की बलाएं भी दूर फ़रमाता है. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला एक नेक मुसलमान की बरकत से उसके पड़ोस के सौ घर वालों की बला दूर करता है. सुब्हानल्लाह ! नेकों के साथ रहना भी फ़ायदा पहुंचाता है. (ख़ाज़िन)

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑤②_*
     ये अल्लाह की आयतें हैं कि हम ऐ मेहबूब तुमपर ठीक ठीक पढ़ते हैं और तुम बेशक रसूलों में हो.
*तफ़सीर*
     ये हज़रात जिनका ज़िक्र पिछली आयतों में और ख़ास कर आयत “इन्नका लमिनल मुरसलीन” (और तुम बेशक रसूलों में हो) में फ़रमाया गया.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*बात चीत करने के सुन्नते और आदाब* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

★ किसी से जब बात चीत की जाए तो उस का कोई सहीह मक़सद भी होना चाहिये।

★ अपनी ज़बान को हमेशा बूरी बातो से रेाके रखें।

★ आपस में हसी मज़ाक की आदत कभी महगी पड़ जाती है ।

★ बद ज़बानी और बे हयाई की बातें से हर वक़्त परहेज़ करे , हुजूर ताजदारे मदीना صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : "उस शख़्स पर जन्नत हराम है जो फ़ोहश गोई से काम लेता हैं ।"
*✍🏽सुन्नाते और आदाब ,33*
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Sunday 23 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #187
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑨_*
     फिर जब तालूत लश्करों को लेकर शहर से जुदा हुआ (1) बोला बेशक अल्लाह तुम्हें एक नहर से आज़माने वाला है तो जो उसका पानी पिये वह मेरा नहीं और जो न पिये वह मेरा है मगर वह जो एक चुल्लू अपने हाथ से ले ले (2) सब ने उससे पिया मगर थोड़ों ने (3) फिर जब तालूत और उसके साथ के मुसलमान नहर के पार गए बोले हम में आज ताक़त नहीं जालूत और उसके लश्करों को बोले वो जिन्हें अल्लाह से मिलने का यक़ीन था कि अकसर कम जमाअत ग़ालिब आई है ज़्यादा गिरोह पर अल्लाह के हुक्म से और अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है  (4).

*तफ़सीर*
    (1) यानी बैतुल मक़दिस से दुश्मन की तरफ़ रवाना हुआ. वह वक़्त निहायत सख़्त गर्मी का था. लश्करियों ने तालूत से इसकी शिकायत की और पानी की मांग की.
     (2) यह इम्तिहान मुक़र्रर फ़रमाया गया था कि सख़्त प्यास के वक़्त जो फ़रमाँबरदारी पर क़ायम रहा वह आगे भी क़ायम रहेगा और सख़्तियों का मुक़ाबला कर सकेगा और जो इस वक़्त अपनी इच्छा के दबाव में आए और नाफ़रमानी करे वह आगे की सख़्तियों को क्या बर्दाश्त करेगा.
    (3) जिनकी तादाद तीन सौ तेरह थी, उन्होंने सब्र किया और एक चूल्लू उनके और उनके जानवरों के लिये काफ़ी हो गया और उनके दिल और ईमान को क़ुव्वत हुई और नहर से सलामत गुज़र गए और जिन्होंने ख़ूब पिया था उनके होंट काले हो गए, प्यास और बढ़ गई और हिम्मत टूट गई.
     (4) उनकी मदद फ़रमाता है और उसी की मदद काम आती है.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ूए अम्बियाए किराम और नींद मुबारक*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का वुज़ू सोने से नहीं जाता।

     अम्बिया की आँखे सोती है दिल कभी नहीं सोता।

     बाज़ वुज़ू तोड़ने वाली चीज़े अम्बिया के लिये यू वुज़ू टूटने का सबब नहीं, की इन का वुक़ूअ (यानि वाक़ेअ होना) ही उन से मुहाल (यानि ना मुम्किन) है जेसे जुनून (यानि पागल पन) या नमाज़ में कहकहा।

     गशी (यानि बेहोशी) भी अम्बिया के जिस्मे ज़ाहिरे पर तारी हो सकती है, दिल मुबारक इस हालत में भी बेदार व खबरदार रहता है।
*✍🏽फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा 4/740*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 29-30*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*बात चीत करने के सुन्नते और आदाब* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

★ ज़ियादा बातें करने और बार बार क़हूकहा लगाने से वक़ार भी माजरूह होता है! ।

★ सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم का फ़रमाने आलीशान हैं: " जब तूम किसी दून्या से बे रग़बत शख़स को देखो और उसे कम गो पाओ तो उस के पास ज़रूर बैठो क्यूंकि उस पर हिक्मत का नूजूल होता है।"

★ हदीसे पाक में है "जो चूप २हा उस ने नजात पाई ।"

*✍🏽शेएबूल ईमान,4983/4 /254*
*✍🏽सुन्नते और आदाब,31*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 22 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #186
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑧_*
     और उनसे उनके नबी ने फ़रमाया उसकी बादशाही की निशानी यही है की आए तुम्हारे पास ताबूत (1) जिसमे तुम्हारे रब की तरफ से दिलो का चैन है और कुछ बची हुई चीज़े है मोअज़्ज़ज़् मूसा और मोअज़्ज़ज़् हारून के तरका की, उठाते लाएंगे उसे फ़रिश्ते बेशक उसमे बड़ी निशानी है तुम्हारे लिए अगर ईमान रखते हो।

*तफ़सीर*
     यह ताबूत शमशाद की लकड़ी का एक सोने से जड़ाऊ सन्दूक़ था जिसकी लम्बाई तीन हाथ की और चौड़ाई दो हाथ की थी. इसको अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर उतारा था. इसमें सारे नबियों की तस्वीरें थीं उनके रहने की जगहें और मकानों की तस्वीरे थीं और आख़िर में नबियों के सरदार मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की और हुज़ूर के मुक़द्दस मकान की तस्वीर एक सुर्ख़ याक़ूत में थी कि हुज़ूर नमाज़ की हालत में खड़े हैं और आपके चारों तरफ़ सहाबए किराम.
   हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने इन सारी तस्वीरों को देखा. यह सन्दूक़ विरासत में चलता हुआ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तक पहुंचा. आप इसमें तौरात भी रखते थे और अपना ख़ास सामान भी. चुनान्वे इस ताबूत में तौरात की तख़्तियों के टुकडे थी थे, और हज़रत मूसा की लाठी और आपके कपड़े, जूते और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम की पगड़ी और उनकी लाठी और थोड़ा सा मन्न, जो बनी इस्त्राईल पर उतरता था.
     हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम जंग के अवसरों पर इस सन्दूक़ को आगे रखते थे, इससे बनी इस्त्राईल के दिलों को तस्कीन रहती थीं. आपके बाद यह ताबूत बनी इस्त्राईल में लगातार विरासत में चला आया. जब उन्हें कोई मुश्किल पेश आती, वो इस ताबूत को सामने रखकर दुआएं करते और कामयाब होते. दुश्मनों के मुक़ाबले में इसकी बरकत से फ़तह पाते.
     जब बनी इस्त्राईल की हालत ख़राब हुई और उनके कुकर्म बहुत बढ़ गए तो अल्लाह तआला ने उन पर अमालिक़ा को मुसल्लत किया तो वो उनसे ताबूत छीन ले गए और इसको अपवित्र और गन्दे स्थान पर रखा और इसकी बेहुरमती यानी निरादर किया और इन गुस्ताख़ियों की वजह से वो तरह तरह की मुसीबतों में गिरफ़तार हुए. उनकी पाँच बस्तियाँ तबाह हो गईं और उन्हें यक़ीन हो गया कि ताबूत के निरादर से उन पर बर्बादी और मौत आई है. तो उन्होंने एक बेल गाड़ी पर ताबूत रखकर बैलों को हाँक दिया और फ़रिश्ते उसको बनी इस्त्राईल के सामने तालूत के पास लाए और इस ताबूत का आना बनी इस्त्राईल के लिये तालूत की बादशाही की निशानी मुक़र्रर हुआ.
     बनी इस्त्राईल यह देखकर उसकी बादशाही पर राज़ी हो गए और फ़ौरन जिहाद के लिये तैयार हो गए क्योंकि ताबूत पाकर उन्हें अपनी फ़तह का यक़ीन हो गया. तालूत ने बनी इस्त्राईल में से सत्तर हज़ार जवान चुने जिनमें हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम भी थे. (जलालैन व जुमल व ख़ाज़िन व मदारिक वग़ैरह)
     इससे मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों की चीज़ों का आदर और एहतिराम लाज़िम है. उनकी बरकत से दुआएं क़ूबूल होती हैं और हाजतें पूरी होती हैं और तबर्रूकात का निरादर गुमराहों का तरीक़ा और तबाही का कारण है. ताबूत में नबियों की जो तस्वीरें थीं वो किसी आदमी की बनाई हुई न थीं, अल्लाह की तरफ़ से आई थीं.
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*सोने के वो 10 अंदाज़ जिनसे वुज़ू टूट जाता है*
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◆ उकड़ू यानि पाऊ के तलवो के बल इस तरह बैठा हो के दोनों घुटने खड़े रहे।
◆ चित यानी पीठ के बल लेटा हो।
◆ पट यानि पेट के बल लेटा हो। दाई या बाई करवट लेटा हो। एक कोहनी पर टेक लगा कर सो जाए।
◆ बैठ कर इस तरह सोया के एक करवट झुक हो जिस की वजह से एक या दोनों सुरीन उठे हुए हो।
◆ नंगी पीठ पर सुवार हो और जानवर पस्ती (यानि नीचान) की जानिब उतर रहा हो।
◆ पेट रानो पर रख कर दो जानू इस तरह बेठे सोये की दोनों सुरीन जमे न रहे।
◆ चार जानू यानि चोकड़ी मार कर इस तरह बेठे की सर रानो या पिंडलियों पर रखा हो।
◆ जिस तरह औरत सज्दा करती है इस तरह सज्दे के अंदाज़ पर सोया के पेट रनों और बाज़ू पहलुओ से मिले हुए हो या कलाइयां बिछी हुई हो।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 29*
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*बात चीत करने के सुन्नते और आदाब* #03
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★ बात चीत करते वक्त़ दूसरे के सामने बार बार नाक या कान में उंगली डालना, थूकते २हना अच्छी बात नही ।

★ जब तक दूसरा बात कर रहा हो, इत्मीनान से सूनें ।

★ कोई हक्ला कर बात करता हो तो उस की नक्ल़ न उतारे.

★ बात चीत करते हूए क़हूकहा न लगाएं कि सरकार ने कभी क़हूकहा नहीं लगाया.
*✍🏽ज़म्रातूल मनाजी, 402*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 31*
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Friday 21 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #185
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑦_*
     और उनसे उनके नबी ने फ़रमाया बेशक अल्लाह ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बनाकर भेज (1) बोले उसे हम पर बादशाही कयो कर होगी (2) और हम उससे ज़्यादा सल्तनत के मुस्तहिक़ है और उसे माल में भी वुसअत नहीं दी गई (3) फ़रमाया उसे अल्लाह ने तुम पर चुन लिया (4) और उसे इल्म और जिस्म में कुसादगी ज़्यादा दी (5) और अल्लाह अपना मुल्क जिसे चाहे दे (6) और अल्लाह वुसअत वाला इल्म वाला है (7).

*तफ़सीर*
     (1) तालूत, बिनयामीन बिन हज़रते याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद से हैं. आपका नाम क़द लम्बा होने की वजह से तालूत है. हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला की तरफ़ से एक लाठी मिली थी और बताया गया था कि जो व्यक्ति तुम्हारी क़ौम का बादशाह होगा उसका क़द इस लाठी के बराबर होगा. आपने उस लाठी से तालूल का क़द नाप कर फ़रमाया कि मैं तुम को अल्लाह के हुक्म से बनी इस्त्राईल का बादशाह मुक़र्रर करता हूँ और बनी इस्त्राईल से फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने तालूत को तुम्हारा बादशाह बना कर भेजा है. (ख़ाज़िन व जुमल)
     (2) बनी इस्त्राईल के सरदारों ने अपने नबी हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से कहा कि नबुव्वत तो लावा बिन याक़ूब अलैहिस्सलाम की औलाद में चली आती है, और सल्तनत यहूद बिन याक़ूब की औलाद में, और तालूत इन दोनों ख़ानदानों में से नहीं है, तो बादशाह कैसे हो सकते है.
     (3) वो ग़रीब व्यक्ति हैं. बादशाह को माल वाला होना चाहिये.
     (4) यानी सल्तनत विरासत नहीं कि किसी नस्ल व ख़ानदान के साथ विशेष हो. यह केवल अल्लाह के करम पर है. इसमें शियों का रद है जिनका अक़ीदा है कि इमामत विरासत है.
     (5) यानी नस्ल व दौलत पर सल्तनत का अधिकार नहीं. इल्म व क़ुव्वत सल्तनत के लिये बड़े मददगार हैं और तालूत उस ज़माने में सारे बनी इस्त्राईल में ज़्यादा इल्म रखते थे और सबसे ज़्यादा मज़बूत जिस्म वाले और ताक़तवर थे.
     (6) इसमें विरासत को कुछ दख़्ल नहीं.    
     (7) जिसे चाहे ग़नी यानी मालदार कर दे और माल में विस्तार फ़रमा दे. इसके बाद बनी इस्त्राईल ने हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि अगर अल्लाह ने उन्हें सल्तनत के लिये मुक़र्रर किया है तो इसकी निशानी क्या है. (ख़ाज़िन व मदारिक)
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सोने से वुज़ू टूटने न टूटने का बयान* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सोने के वो 10 अंदाज़ जिन से वुज़ू नहीं टूटता_*
★ इस तरह बैठना की दोनों सुरीन ज़मीन पर हो और दोनों पाऊ एक तरफ फैलाए हो (कुर्सी, रेल और बस की सिट पर बैठने का भी यही हुक्म है)
★ इस तरह बैठना के दोनों सुरीन ज़मीन पर हो और पिंडलियों को दोनों हाथो के हल्के में ले ले ख़्वाह हाथ ज़मीन वगैरा पर या सर घुटनो पर रख ले।
★ चार जानू यानि पालती (चिकड़ी) मार कर बैठे ख़्वाह ज़मीन या तख्त या चारपाई वग़ैरा पर हो।
★ दो जानू सीधा बैठा हो।
★ घोड़े या खच्चर वगैरा पर जिन रख कर सुवार हो।
★ नंगी पीठ पर सुवार हो मगर जानवर चढ़ाई पर चढ़ रहा हो या रास्ता हमवार हो।
★ तकये से टेक लगा कर इस तरह बैठा हो की सुरीन जमे हुए हो अगर्चे तकया हटाने से ये गिर पड़े।
★ खड़ा हो।
★ रुकूअ की हालत में हो।
★ सुन्नत के मुताबिक जिस तरह मर्द सज्दा करता है उस तरह सज्दा करके पेट रानो और बाज़ू पहलूओ से जुदा हो।

     ये सूरते नमाज़ में वाक़ेअ हो या इलावा नमाज़, वुज़ू नहीं टूटेगा और नमाज़ भी फासिद् न होगी अगर्चे कसदन सोए, अलबत्ता जो रुक्न बिलकुल सोते हुए अदा किया उस का इआदा (दोबारा अदा करना) ज़रूरी है और जागते हुए शुरुअ किया फिर नींद आ गई तो जो हिस्सा जागते अदा किया वो अदा हो गया बाकि अदा करना होगा।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 28*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*बात चीत करने के सुन्नते और आदाब* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

★ मुस्करा कर और खन्दा पेशानी से बात चीत कीजिये छोटे के साथ मुश्फ़िक़ाना और बड़ो के साथ मोअद्दबाना लहजा रखिये أن شاء الله दोनों के नज़दीक आप मोअज़्ज़ज़् रहेंगे।

★ चिल्ला चिल्ला कर बात करना जैसा की आजकल बे तकल्लुफ़ी में दोस्त आपस में करते है, मायुब है।

★ दौरान गुफ्तगू एक दूसरे के हाथ पर ताली देना ठीक नहीं क्यूंकि ताली, सिटी बजाना महज़ खेल कूद, तमाशा और तरीक़ए कुफ्फार है।
*✍🏽तफ़सीरे नईमी, 9/549*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 31*
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गर होजाए यक़ीन के.....
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Thursday 20 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #184
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑥_*
    ऐ मेहबूब क्या तुमने न देखा बनी इस्राइल के एक दल को जो मूसा के बाद हुआ (5) जब अपने एक पैगम्बर से बोले हमारे लिये खड़ा कर दो एक बादशाह कि हम ख़ुदा की राह में लड़ें. नबी ने फ़रमाया क्या तुम्हारे अन्दाज़ ऐसे हैं कि तुम पर जिहाद फ़र्ज़  किया जाए तो फिर न करो, बोले हमें क्या हुआ कि हम अल्लाह की राह में न लड़ें हालांकि हम निकाले गए हैं अपने वतन  और अपनी  औलाद से  (6) तो फिर जब उनपर जिहाद फर्ज़ किया गया, मुंह फेर गए मगर उनमें के थोड़े (7) और अल्लाह ख़ूब जानता है ज़ालिमों को।

*तफ़सीर*
     (5) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बाद जब बनी इस्राइल की हालत खराब हुई और उन्होंने अल्लाह का एहद भुला दिया. मूर्ति पूजा में मशग़ूल हुए, सरकशी और कुकर्म चरम सीमा पर पहुंचे, उन पर जालूत की क़ौम छा गई जिसको इमालिक़ा कहते हैं. जालूत अमलीक़ बिन आस की औलाद से एक बहुत ही अत्याचारी बादशाह था. उसकी क़ौम के लोग मिस्र और फ़लस्तीन के बीच रोम सागर के तट पर रहते थे. उन्होंने बनी इसराईल के शहर छीन लिये, आदमी गिरफ़तार किये, तरह तरह की सख्तियाँ कीं. उस ज़माने में कोई नबी बनी इसराईल में मौजूद न थे. ख़ानदाने नबुव्वत से सिर्फ़ एक बीबी रही थीं जो गर्भ से थीं. उनके बेटा हुआ. उनका नाम शमवील रखा. जब वो बड़े हुए तो उन्हें तौरात का इल्म हासिल करने के लिये बैतुल मक़दिस में एक बूढ़े विद्वान के हवाले किया गया. वह आपको बहुत चाहते और अपना बेटा कहते. जब आप जवान हुए तो एक रात आप उस आलिम के पास आराम कर रहे थे कि हज़रत जिब्रीले अमीन ने उसी आलिम की आवाज़ में “या शमवील” कहकर पुकारा. आप आलिम के पास गए और फ़रमाया कि आपने मुझे पुकारा है. आलिम ने यह सोचकर कि इन्कार करने से कहीं आप डर न जाएं, यह कह दिया, बेटे तुम सो जाओ. दोबारा फिर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने उसी तरह पुकारा, और हज़रत शमवील अलैहिस्सलाम आलिम के पास गए. आलिम ने कहा ऐ बेटे, अब अगर मैं तुम्हें फिर पुकारूं तो तुम जवाब न देना. तीसरी बार हज़रत जिब्रील अमीन अलैहिस्सलाम ज़ाहिर हो गए और उन्होंने बशारत दी कि अल्लाह तआला ने आपको नबी बनाया, आप अपनी क़ौम की तरफ़ जाइये और अपने रब के आदेश पहुंचाइये. जब आप अपनी क़ौम की तरफ़ तशरीफ़ लाए, उन्होंने झुटलाया और कहा, आप इतनी जल्दी नबी बन गए. अच्छा अगर आप नबी हैं तो हमारे लिये एक बादशाह क़ायम कीजिये.  (ख़ाज़िन वग़ैरह)
     (6) कि क़ौमे जालूत ने हमारी क़ौम के लोगों को उनके वतन से निकाला, उनकी औलाद को क़त्ल किया. चार सौ चालीस शाही ख़ानदान के फ़रज़न्दों को गिरफ़तार किया. जब हालत यहाँ तक पहुंच चुकी तो अब हमें जिहाद से क्या चीज़ रोक सकती है. तब नबी ने अल्लाह से दुआ की जिसकी बदौलत अल्लाह तआला ने उनकी दरख़ास्त क़ुबूल फ़रमाई और उनके लिये एक बादशाह मुक़र्रर किया और जिहाद फ़र्ज़ फ़रमाया. (ख़ाज़िन)
     (7) जिनकी संख्या बद्र वालों के बराबर यानी तीन सौ तेरह थी.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सोने से वुज़ु टूटने न टूटने का बयान* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नींद से वुज़ू टूटने की दो शर्ते है_*
     दोनों सुरीन अच्छि तरह जमे हुए न हो, ऐसी हालत पर सोया जो ग़ाफ़िल हो कर सोने के रुकावट न हो।

     जब ये दोनों शर्ते जमा हो यानि सुरीन भी अच्छी तरह जमे हुए न हो नीज़ ऐसी हालत में सोया हो जो ग़ाफ़िल हो कर सोने में रुकावट न हो तो ऐसी नींद से वुज़ू टूट जाता है।

     अगर एक शर्त पाइ जाए और दूसरी न पाई जाए तो वुज़ू नहीं टूटेगा।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 27-28*
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*बात चीत करने के सुन्नते और आदाब* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इस ज़िन्दगी में हमें हर वक़्त बात चीत करने की ज़रूरत पड़ती है। बल्कि हम लोग बिला ज़रूरत भी हर वक़्त बोलते रहते है हालांकि बिना ज़रूरत बहुत ही नुकसान देह है, गैर ज़रूरी गुफ्तगू करने से खामोश रहना अफज़ल है। लिहाज़ा हमारे प्यारे आक़ा صلى الله عليه وسلم की बात चीत के सीलसिले में सुन्नते और आदाब और ख़मोशी के फ़ज़ाइल वगैरा बयांन किये जाते है।

     सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم गुफ्तगू इस तरह दिल नशीन अंदाज़ में ठहर ठहर कर फरमाते की सुनने वाला आसानी से याद कर लेता चुनांचे हज़रते आइशा सिद्दीका رضي الله عنها फरमाती है की हुज़ूर صلى الله عليه وسلم साफ साफ और जुदा जुदा कलाम फरमाते थे, हर सुनने वाला उसको याद करलेता था।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 30*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #183
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④⑤_*
     है कोई जो अल्लाह को क़र्ज़ हसन दे   (3) तो अल्लाह उसके लिये बहुत गुना बढ़ा दे  और अल्लाह तंगी और कुशायश (वृद्धि)  करता है(4) और तुम्हें उसी की तरफ़ फिर जाना.

*तफ़सीर*
     (3) यानी ख़ुदा की राह में महब्बत के साथ ख़र्च करने को क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाया. यह बड़ी ही दया और मेहरबानी है. बन्दा उसका बनाया हुआ और बन्दे का माल उसी का दिया हुआ, हक़ीक़ी मालिक वह और बन्दा उसकी अता से नाम भर का मालिक है. मगर क़र्ज़ से ताबीर फ़रमाने में यह बताना मजूंर है कि जिस तरह क़र्ज़ देने वाला इत्मीनान रखता है कि उसका माल बर्बाद नहीं हुआ, वह उसकी वापसी का मुस्तहिक है, ऐसा ही खुदा की राह में ख़र्च करने वाले को इत्मीनान रखना चाहिये कि वह इस ख़र्च करने का बदला और इनाम ज़रूर ज़रूर पाएगा और बहुत ज़्यादा पाएगा.
     (4) जिसके लिये चाहे रोज़ी तंग करे, जिसके लिये चाहे खोल दे. बन्द करना और खोल देना रोज़ी का उसके क़ब्ज़े में है, और वह अपनी राह में ख़र्च करने वाले से विस्तार या वुसअत का वादा करता है.
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Wednesday 19 April 2017

*वुज़ु में शक आने के 5 अहकाम*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अगर दौराने वुज़ु किसी उज़्व के धोने में शक वाक़ेअ हो और अगर ये ज़िन्दगी का पहला वाक़ेअ है तो उसको धो लीजिये। और अगर अक्सर शक पड़ा करता है तो इसकी तरफ तवज्जोह न दीजिये। इसी तरह अगर बादे वुज़ु भी शक पड़े तो इसका कुछ ख़याल मत कीजिये।
     आप बा वुज़ु थे अब शक आने लगा के पता नहीं वुज़ु है या नहीं, ऐसी सूरत में आप बा वुज़ु है, क्यू की सिर्फ शक से वुज़ु नहीं टूटता। वस्वसे की सूरत में एहतियातन वुज़ु करना एहतियात नहीं इत्तिबाए शैतान है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी-1, स. 311*
     यक़ीनन आप उस वक़्त तक बा वुज़ु है जब तक वुज़ु टूटने का ऐसा यकीन न हो जाए के कसम खा सके।

     कोई उज़्व धोने से रह गया है मगर ये याद नहीं के कौन सा उज़्व था तो बाया (उल्टा) पाउ धो लीजिये।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी-1, स. 13*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 27*
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*सहाबए किराम सरकार के मुक़द्दस हाथ पाउ चूमते थे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते ज़राअ رضي الله عنه से रिवायत है, जब क़बीला अब्दील क़ैस का वफ्द सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم की खिदमत में हाज़िर हुवा, ये भी उस वक़्त वफ्द में शरीक थे। आप फरमाते है, जब हम अपनी मंज़िलों से मदीना शरीफ पहुचे तो जल्दी जल्दी सरकार صلى الله عليه وسلم की खिदमत में हाज़िर हुए और सरकार के दस्ते मुबारक और क़दम शरीफ को बोसा दिया।
*✍🏽सुनने अबी दाऊद, 4/456, हदिष:5225*

     हज़रते बाबा फ़रीदुद्दीन गन्जे शकर رحمة الله عليه फरमाते है : मशाइख व बुज़ुर्गाने दीन की दस्त बोसी यक़ीनन दीनो दुन्या की खैरो बरकत का बाइस बनती है।
     किसी ने एक बुज़ुर्ग को इंतिक़ाल के बाद ख्वाब में देखा तो उनसे पूछा, अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक किया ? कहा, दुन्या का हर मुआमला अच्छा और बुरा मेरे सामने रख दिया और बात यहाँ तक पहुच गई की हुक्म हुवा, इसे दोज़ख में ले जाओ ! इस हुक्म पर अमल होने ही वाला था की फरमान हुवा, ठहरो ! एक दफा इसने जामेअ दिमिश्क़ में ख्वाजा शरीफ رحمة الله عليه के दस्ते मुबारक को चूमा था। उस दस्त बोसी की बरकत से हमने इसे मुआफ़ किया।
*✍🏽اسر ار اولیاء کو ہثت بہثت ص ۱۱۳*
     यानी अल्लाह की रहमत बहा यानि क़ीमत तलब नही करती, अल्लाह की रहमत तो बहाना ढूंढती है।

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 26*
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Tuesday 18 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #182
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④③_*
     ऐ  मेहबूब क्या तुमने न देखा था उन्हें जो अपने घरों से निकले और वो हज़ारों थे मौत के डर से तो अल्लाह ने उनसे फ़रमाया मर जाओ फिर उन्हें ज़िन्दा फ़रमाया बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल (कृपा) करने वाला है मगर अकसर लोग नाशुक्रे हैं.
*तफ़सीर*
     बनी इस्त्राईल की एक जमाअत थी जिसकी बस्तियों में प्लेग हुआ तो वो मौत के डर से अपनी बस्तियाँ छोड़ भागे और जंगल में जा पड़े. अल्लाह का हुक्म यूं हुआ कि सब वहीं मर गए. कुछ अर्से बाद हज़रत हिज़क़ील अलैहिस्सलाम की दुआ से उन्हें अल्लाह तआला ने ज़िन्दा फ़रमाया और वो मुद्दतों ज़िन्दा रहे. इस घटना से मालूम होता है कि आदमी मौत के डर से भागकर जान नहीं बचा सकता तो भागना बेकार है. जो मौत निश्चित है, वह ज़रूर पहुंचेगी. बन्दे को चाहिये कि अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहे. मुजाहिदों को समझना चाहिये कि जिहाद से बैठ रहना मौत को रोक नहीं सकता. इसलिये दिल मज़बूत रखना चाहिये.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④④_*
     और लड़ों अल्लाह की राह में और जान लो कि अल्लाह सुनता जानता है ,
*तफ़सीर*
     और मौत से न भागे, जैसा बनी इस्त्राईल भागे थे, क्योंकि मौत से भागना काम नहीं आता.
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*थूक में खून*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मुह से खून निकला अगर खून ग़ालिब है तो वुज़ु टूट जाएगा वरना नहीं, गलबे की शनाख्त ये है की अगर थूक का रंग सुर्ख हो जाए तो खून ग़ालिब समजा जाएगा और वुज़ु टूट जाएगा, ये सुर्ख थूक नापाक भी है।
     अगर थूक ज़र्द (यानि पिला) हो तो खून पर थूक ग़ालिब माना जाएगा लेहाज़ा न वुज़ु टूटेगा न ये ज़र्द थूक नापाक है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी-1, स. 305*

     मुह से इतना खून निकला के थूक सुर्ख हो गया और लौटे या ग्लास से मुह लगा कर कुल्ली के लिये पानी लिया तो लोटा, ग्लास और कुल पानी नजिस हो गया, लेहाज़ा ऐसे मोके पर चुल्लू में पानी ले कर एहतियात से कुल्ली कीजिये और ये भी एहतियात फरमाइये की छीटे उड़ कर आप के कपड़ो वगैरा पर न पड़े।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 27*
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*मुसाफहा और मुआनक़ा की सुन्नते और आदाब* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*सलाम के साथ साथ मुसाफहा करने से सलाम की तकमील होती है*
    हज़रते अबू उमामा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, सरकारे मदीना ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : मरीज़ की पूरी इयादत ये है की उसकी पेशानी पर हाथ रख कर पूछे की मिज़ाज केसा है? ओर पूरी तहिय्यत (सलाम करना) ये है की मुसाफहा भी किया जाए।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 4/334, हदिष : 2740*

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! खन्दा पेशानी से मुलाक़ात करना हुस्ने अख़लाक़ में से है, सरकार मदीना फरमाते है, लोगो को तुम अपने अमवाल से खुश नही कर सकते लेकिन तुम्हारी खन्दा पेशानी और खुश अख़लाक़ी उन्हें खुश कर सकती है।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 6/253, हदिष : 8054*
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Monday 17 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #181
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑨_*
     फिर अगर डर में हो तो प्यादा या सवार जैसे बन पड़े, फिर जब इत्मीनान से हो तो अल्लाह की याद करो जैसा उसने सिखाया जो तुम न जानते थे.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④ⓞ_*
     और जो तुम में मरें और बीवियां छोड़ जाएं वो अपनी औरतों के लिये वसीयत कर जाएं (12) साल भर तक नान नफ़क़ा देने की बे निकाले (13) फिर अगर वो ख़ुद निकल जाएं तो तुम पर उसका कोई हिसाब नहीं जो उन्होंने अपने मामले में मुनासिब तौर पर किया और अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है.
*तफ़सीर*
(12) अपने रिश्तेदारों को.
(13) इस्लाम की शुरूआत में विधवा की इद्दत एक साल की थी और पूरे एक साल व शौहर के यहाँ रहकर रोटी कपड़ा पाने की अधिकारी थी. फिर एक साल की इद्दत तो “यतरब्बसना बि अन्फ़ुसेहिन्ना अरबअता अशहुरिन व अशरा” (यानी चार माह दस दिन अपने आप को रोके रहें – सूरए बक़रह – आयत 234) से स्थगित हुई, जिसमें विधवा की इद्दत चार माह दस दिन निश्चित फ़रमा दी गई और साल भर का नान नफ़्क़ा मीरास की आयत से मन्सूख़ यानी रद्द हुआ जिसमें औरत का हिस्सा शौहर के छोड़े हुए माल से मुक़र्रर किया गया. लिहाज़ा अब वसिय्यत का हुक्म बाक़ी न रहा. हिकमत इसकी यह है कि अरब के लोग अपने पूर्वज की विधवा का निकलना या ग़ैर से निकाह करना बिल्कुल गवारा नहीं करते थे,  इसको बड़ी बेशर्मी समझते थे. इसलिये अगर एक दम चार माह दस रोज़ की इद्दत मुक़र्रर की जाती तो यह उन पर बहुत भारी होता. इसी लिये धीरे धीरे उन्हें राह पर लाया गया.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④①_*
और तलाक वालियों के लिये भी मुनासिब तौर पर नान नफ़क़ा है ये वाजिब है परहेज़गारों पर.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②④②_*
अल्लाह यूं ही बयान करता है तुम्हारे लिये अपनी आयतें कि कहीं तुम्हें समझ हो.
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*क्या सत्र देखने से वुज़ु टूट जाता है ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अवाम में मश्हूर है की घुटना या सत्र खुलने या अपना या पराया सत्र देखने से वुज़ु टूट जाता है, ये बिलकुल गलत है।
     हा वुज़ु के बाद के आदाब में से है की नाफ से लेकर दोनों घुटनो समेत सब सत्र छुपा हो बल्कि इस्तिन्जा के बाद फौरन ही छुपा लेना चाहिये,
     बगैर ज़रूरत सत्र खुला रखना मना और दुसरो के सामने सत्र खोलना हराम है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी-1, स. 309*

*_गुस्ल का वुज़ु काफी है_*
     गुस्ल के लिये जो वुज़ु किया था वोही काफी है, ख्वाह बरहना नहाए।
     अब गुस्ल के बाद दोबारा वुज़ु करना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर वुज़ु न भी किया हो तो गुस्ल कर लेने से आ'जाए वुज़ु पर भी पानी बह जाता है, लेहाज़ा वुज़ु भी हो गया। कपडे तब्दील करने से भी वुज़ु नहीं जाता।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 26*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*मुसाफहा और मुआनक़ा की सुन्नते और आदाब* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*मुलाक़ात के वक़्त मुसाफहा करने वालो के लिये दुआ की क़बूलिय्यत और हाथ जुदा होने से क़ब्ल ही मगफिरत की बशारत है*
     हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की सरकारे मदीना ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जब दो मुसलमानो ने मुलाक़ात की और मुसाफहा किया तो अल्लाह के जिम्मए करम पर है की उनकी दुआ को क़बूल फरमा ले और हाथ जुदा न होने पाएंगे की इनकी मगफिरत हो जाएगी। और जो लोग जमा हो कर अल्लाह का ज़िक्र करते है और सिवाए रिज़ाए इलाही के ऊब का कोई मक़सद नही तो आसमान से मुनादी निदा देता है की खड़े हो जाओ ! तुम्हारी मगफिरत हो गई, तुम्हारे गुनाहो को नेकियों से बदल दिया गया।
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 22*
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Sunday 16 April 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #180
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑧_*
     निगहबानी करो सब नमाज़ों की (9) और बीच की नमाज़ की (10) और खड़े हो अल्लाह के हुज़ूर अदब से (11)

*तफ़सीर*
     (9) यानी पाँच वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ों को उनके औक़ात पर भरपूर संस्कारों और शर्तों के साथ अदा करते रहो. इसमें पाँचों नमाज़ों के फ़र्ज़ होने का बयान है. और औलाद और बीवी के मसाइल और अहकाम के बीच नमाज़ का ज़िक्र फ़रमाना इस नतीजे पर पहुंचाता है कि उनको नमाज़ की अदायगी से ग़ाफ़िल न होने दो और नमाज़ की पाबन्दी से दिल की सफ़ाई होती है, जिसके बिना मामलों के दुरूस्त होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
     (10) हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा और अक्सरो बेशतर सहाबा का मज़हब यह है कि इससे अस्त्र की नमाज़ मुराद है. और हदीसों में भी प्रमाण मिलना है.
     (11) इससे नमाज़ के अन्दर क़याम का फ़र्ज़ होना साबित हुआ.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*वुज़ू में मेहदी और सुरमे का मसअला*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     औरत के हाथ पाउ पर मेहदी का जिर्म लगा रह गया और खबर न हुई तो वुज़ू व गुस्ल हो जाएगा। हा जब इत्तिलाअ हो छुड़ा कर वहा पानी बहा दे।

    सुरमा आँख के कोने या पलक में रह गया और इत्तिलाअ न हुई ज़ाहिरन हरज नहीं और बादे नमाज़ कोने में महसूस हुवा तो नमाज़ हो गई।
*✍🏽फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 4/613*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 23*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*मुसाफहा और मुआनक़ा की सुन्नते और आदाब* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आपस में हाथ मिलाने से किना ख़त्म होता है और एक दसरे को तोहफा देने से महब्बत बढ़ती और अदावत दूर होती है.

     हज़रते अता खुरासानी رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर नबीये करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : एक दूसरे के साथ मुसाफहा करो, इससे किना जाता रहता है और हदिय्या भेजो आपस में महब्बत होगी और दुश्मनी जाती रहेगी.
*✍🏽मिश्कात, 4/171, हदिष : 4693*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 22*
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Saturday 15 April 2017

*रजब की बहारे* #16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नफ्ली रोज़े के अज़ीमुश्शान फ़ज़ाइल_* #03
     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! पिछली 2 पोस्टो में आपने देखा कि रजबुल मुरज्जब के रोज़े रखने वालो के तो वारे ही न्यारे है. रजबुल मुरज्जब के रोज़े रखने वालो के लिये अल्लाह ने जन्नत में खास महल तैयार फरमाया है, उन खुश नसीबो की अल्लाह 'रजब' नामी नहर से सैराब फरमाएगा, उन के लिए जहन्नम के दरवाज़े बंद और जन्नती दरवाज़े खोल दिये जाएंगे, उन के रोज़े गुनाहो का कफ़्फ़ारा बन जाएंगे और रोज़े महशर की न क़ाबिले बर्दाश्त गर्मी और भूक प्यास में उन के खाने पिने और आराम करने का बंदोबस्त किया जाएगा.

     नफ्ली रोज़ो के इस क़दर ज़बरदस्त व वरकात मुन्ने के बाद तो हम में से हर एक को चाहिये की फ़र्ज़ रोज़ो के साथ साथ नफ्ली रोज़ो का भी ब कसरत एहतिमाम किया करे, माहे रजबुल मुरज्जब के आने से तो वैसे ही रोज़े रखने का गोया मौसम शुरू हो जाता है. पहले रजबुल मुरज्जब के रोज़र फिर इस के बाद माह शाबान के रोज़े. हमारे प्यारे आक़ा शाबान के ब कसरत रोज़े रखा करते थे.
*रजब की बहारे, स. 14*
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*वुज़ू के मकरुहात*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

● वुज़ू के लिए नापक जगह बेठना।
● नापाक जगह वुज़ू का पानी गिराना।
● आ'जाए वुज़ू से लौटे वग़ैरा में कतरे टपकना। (मुह धोते वक़्त भरे हुए चुल्लू में उमुमन चेहरे से पानी के कतरे गिरते है इसका ख्याल रखिये)
● किब्ले की तरफ थूक या बलगम डालना या कुल्ली करना।
● बे ज़रूरत दुन्या की बीते करना।
● ज्यादा पानी खर्च करना।
● इतना कम पानी खर्च करना की सुन्नत अदा न हो।
● मुह पर पानी मारना।
● मुह पर पानी डालते वक़्त फुकना।
● एक हाथ से मुह धोना, के रिफ़ाज़ व हुनुद का शीआर है।
● गले का मसह करना।
● उल्टे हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी चढ़ाना।
● सीधे हाथ से नाक साफ करना।
● तिन जदीद पानियों से तिन बार सर का मसह करना।
● धूप के गर्म पानी से वुज़ू करना।
● होठ या आँखे ज़ोर से बंद करना और अगर कुछ सुखा रह गया तो वुज़ू ही न होगा।

★ वुज़ु का हर सुन्नत का तर्क मकरूह है इसी तरह हर मकरूह का तर्क सुन्नत।
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/300-301*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 16-17*
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*मुसाफहा और मुआनक़ा की सुन्नते और आदाब* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जब दो इस्लामी भाई आपस में मिले तो पहले सलाम करे और फिर दोंनो हाथ मिलाए की ब वक़्ते मुलाक़ात मुसाफहा करना सुन्नते सहाबा बल्कि सुन्नते रसूल है.
*✍🏽मिरआतुल मनाजिह्, 6/355*

     हज़रते अबुल खत्ताब رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की में ने हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ किया, की मुसाफहा हुज़ूर ﷺ के सहाबा में मुरव्वज था ? आप ने फ़रमाया हा.
*✍🏽सहीह बुखारी, 4/177, हदिष : 6263*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 22*
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Friday 14 April 2017

*रजब की बहारे* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नफ्ली रोज़ो के अज़ीमुश्शान फ़ज़ाइल_* #02
     हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जिस ने रजब का एक रोज़ रखा तो वो एक साल के रोज़ो की तरह होगा, जिस ने सात रोज़े रखे, उस पर जहन्नम के सातो दरवाज़े बंद कर दिए जाएंगे, जिस ने आठ रोज़े रखे उस के लिए जन्नत के आठो दरवाज़े खोल दिए जाचेंगे, जिसने दस रोज़े रखे, वो अल्लाह से जो कुछ मांगेगा अल्लाह उसे अता फमैग और जिसने 15 रोज़े रखे तो आसमान से एक मुनादी निदा करता है की तेरे पिछले गुनाह बख्श दिए गए, पास तू अज़ सरे नौ अमल शुरू कर की तेरी बुराइया नेकियों से बदल दी गई और जो जाएद करे तो अल्लाह उसे और ज्यादा अज्र देगा.
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी.3 स.368 हदिष:3801*

     हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه से मरवी है : क़यामत के दिन रोज़े दार क़ब्रो से निकालेंगे तो वो रोज़े की बू से पहचाने जाएंगे, उन के लिए दस्तर ख्वान और पानी के कुंजे रखे जाएंगे, जिन पर मुश्क से मोहर होगी, उन्हें कहा जाएगा की खाओ कल तुम भूके थे, पियो कल तुम प्यासे थे, आराम करो कल तुम थके हुवे थे, पस वो खाएंगे, पियेंगे और आराम करेंगे हालांकि लोग हिसब की मशक़्क़त और प्यास में मुब्तला होंगे.
*✍🏽कन्जुल आमाल, जी.8 स.313 हदिष:23639*
*✍🏽रजब की बहारे, स. 13*
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*वुज़ू के चार फराइज़*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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★चेहरा धोना
★कहोनियो समेत दोनों हाथ धोना
★चौथाई सर का मसह करना
★तखनो समेत दोनों पाउ धोना
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/288*
*✍🏽आ'लमगिरि, 1/3-5*

*_उज़व् धोनी की तारीफ़_*
     किसी उज़्व धोने के ये माना है की उस उज़्व के हर हिस्से पर कम अज़ कम दो कतरे पानी बाह जाए।
     सिर्फ भीग जाने या पानी को तेल की तरह चुपड़ लेने या एक कतरा बह जाने को धोना नहीं कहेंगे, न इस तरह वुज़ू या गुस्ल अदा होगा
*✍🏽फतावा राज़वीय्या मुखर्रजा, 1/218*
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/288*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 13*
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*सलाम की सुन्नते और आदाब* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     घर में दाखिल हो तो घर वालो को सलाम किया करे इस से घर में बरकत होती है, और अगर खेली घर में दाखिल हो तो السلام عليكم ايهاا النبي कहे यानि "ऐ नबी आप पर सलाम हो".
     हज़रते मुल्ला अली क़ारी رحمة الله تعالى عليه फरमाते हे : हर मोमिन के घर में सरकार ﷺ की रूह मुबारक तशरीफ़ फरमा रहती है.
     हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : ऐ बेटे ! जब तुम अपने घर में दाखिल हो तो सलाम कहो, ये तुम्हारे लिये और तुम्हारे घर वालो के लिये बरकत का बाइस होगा.
*✍🏽तिर्मिज़ी, 4/320, हदिष : 2707*

     घर में दाखिल हो उस वक़्त भी सलाम करे और जब रुखसत होने लगे, उस वक़्त भी सलाम करे. हज़रते क़तादा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की नबी ﷺ ने फ़रमाया : जिस वक़्त तुम घर में दाखिल हो अपने घर के लोगो को सलाम कहो. जब अपने घर वालो से निकलो तो सलाम के साथ रुखसत हो.

     गैर मुस्लिम को सलाम न करे वो अगर सलाम करे तो उस का जवाब वाजिब नहीं, जवाब में फ़क़त  कह दे.
*✍🏽बहारे शरीअत, 16/90*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 15*
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Thursday 13 April 2017

*रजब की बहारे* #14
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नफ्ली रोज़ो के अज़ीमुश्शान फ़ज़ाइल_* #01
     हज़रते अबू क़ीलाबा رضي الله تعالي عنه फरमाते है : रजब के रोज़ादारो के लिए जन्नत में एक महल है.
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी.3 स.368 हदिष : 3802*

     हज़रते अनस बिन मिलिक رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जन्नत में एक नहर है जिसे "रजब" कहा जाता है जो दूध से ज्यादा सफेद और शहद से ज्यादा मीठी है तो जो कोई रजब का एक रोज़ रखे तो अल्लाह उसे उस नहर से सैराब करेगा.
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी.3 स.367 हदिष : 3800*

     फरमाने मुस्तफा ﷺ है : रजब के पहले दिन का रोज़ा तिन साल का कफ़्फ़ारा है और दूसरे  दिन का रोज़ दो सालो का और तीसरे दिन का एक साल का कफ़्फ़ारा है, फिर हर दिन का रोज़ एक माह का कफ़्फ़ारा है.
*✍🏽अलजामी अलसगीर, स. 311 हदिष : 5051*
*✍🏽आक़ा का महीना, स. 13*
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*वुज़ु के बाद 3 बार सूरए क़द्र पढ़ने के फ़ज़ाइल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हदिषे मुबारक में है, जो वुज़ु के बाद एक मर्तबा सूरतुल कद्र पढ़े तो वो सिद्दीकीन में से है, जो दो मर्तबा पढ़े तो शु-हदा में शुमार किया जाए, जो तिन मर्तबा पढ़ेगा तो अल्लाह  मैदाने महशर में उसे अपने अम्बिया के साथ रखेगा।

*_वुज़ु के बाद पढ़ने की दुआ_*
   (अव्वल आखिर दुरुद शरीफ)
तर्जुमा : तू पाक है और तेरे लीये ही तमाम खुबिया है में गवाही देता हु के तेरे सिवा कोई माअबूद नहीं, मैं तुज से बख्शीश चाहता हु और तेरी बारगाह में तौबा करता हु।

     जो वुज़ु करने के बाद ये दुआ पढ़े तो उस पर मोहर लगा कर अर्श के निचे रख दिया जाएगा और कियामत के दिन उस पढ़ने वाले को दे दिया जाएगा।
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी. 3, स. 21*

*_वुज़ु के बाद ये दुआ भी पढ़ लीजिये_*
तर्जुमा : ऐ अल्लाह मुझे कसरत से तौबा करने वालो में बना दे और मुझे पाकीज़ा रहने वालो में शामिल कर दे।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 12*
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*सलाम की सुन्नते और आदाब* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

    जब कोई किसी का सलाम लाए तो इस तरह जवाब दे عليك و عليه السلام यानी तुज पर भी और उस पर भी सलाम हो.

*_सलाम में पहल करने वाला अल्लाह का मुक़र्रब है_*
     हज़रते अबू उमामा सदी बिन इजलानुल बाहिलि رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : लोगो में अल्लाह से ज़्यादा करीब वो शख्स है जो उन्हें पहले सलाम करे.
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 4/449, हदिष : 5197*
      हज़रते अबू उमामा رضي الله تعالي عنه से मरवी है, अर्ज़ किया गया, या रसूलल्लाह ﷺ ! दो आदमी आपस में मिले तो कौन पहले सलाम करे ? फ़रमाया : जो उन में अल्लाह के ज़्यादा क़रीब हो.
*✍🏽तिर्मिज़ी, 4/318, हदिष : 2703*

*_पहले सलाम करने वाला तकब्बुर से बरी है_*
     हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه नबी ﷺ से रिवायत करते है, फ़रमाया : पहले सलाम करने वाला तकब्बुर से बरी है.
*✍🏽शोएबुल ईमान, 6/433, हदिष : 8786*
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 15*
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Wednesday 12 April 2017

*रजब की बहारे* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*रजब के ख़ास दिन और राते* #03
     मीठे और प्यारे इस्लामी भइयो ! देखा आपने कि हम जेसे गुनाहगारो के लिए रजबुल मुरज्जब की 27वी तारीख अल्लाह का अता करदा कैसा अज़ीमुश्शान तोहफा है कि जो शख्स इखलास के साथ इस का रोज़ा रखे, उस के दस साल के गुनाह मुआफ़ हो जाते है निज जिस खुश नसीब को इस रात में नवाफ़िल पढने और इबादत करने की सआदत हासिल हो जाए, उसे 100 साल के रोज़ो के बराबर षवाब अता किया जाता है. अगर हम भी 27वी शब् इबादत में गुज़ारे और दिन का रोज़ा रखे तो अल्लाह की रहमत से क़वी उम्मीद है कि ये तमाम फ़ज़ाइल हमे भी हासिल हो सकते है.

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! सांसो का कोई भरोसा नही, न जाने कब ये सांसे रुक जाए और इस के साथ साथ हमारे आमाल का सिलसिला मौक़ूफ़ हो जाए. लिहाज़ा नेकियों का कोई मौक़ा हाथ से न जाने दे, अगर अल्लाह के फ़ज़लो करम से ज़िन्दगी में एक बार फिर रजब का मुबारक महीना नसीब हुवा तो हमे चाहिये कि इसे अपनी खुश किस्मती समझते हुवे सिर्फ पहली और सत्ताइसवी का रोज़ा रखने के बजाए जितना बन पड़े, इस माह के अक्सर अय्याम रोज़े के साथ गुज़ार दे, क्या खबर यही हमारी ज़िन्दगी का आखिरी रजब हो.
*✍🏽रजब की बहारे, स. 12-13*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*जन्नत के आठो दरवाज़े खुल जाते है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हदीषे पाक में है, जिसने अच्छी तरह वुज़ु किया और फिर आस्मान की तरफ निगाह उठाई और कलीमऐ शहादत पढ़ा उसके लिए जन्नत के आठो दरवाजे खोल दिए जाते है जिस से चाहे अंदर दाखिल हो।

*_नज़र कमज़ोर न होगी_*
     जो वुज़ु के बाद अस्मान् की तरफ देख कर सूरए इन्ना-अन्ज़लना पढ़ लीया करे उसकी नज़र कभी कमज़ोर न होगी।
*✍🏽मसाइलुल कुरआन, स. 291*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 11*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*सलाम की सुन्नते और आदाब* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सलाम करना हज़रते आदम علىه السلام की भी सुन्नत_*
     हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से मरवी है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जब अल्लाह ने हज़रते आदम علىه السلام को पैदा फ़रमाया तो उन्हें हुक्म दिया की जाओ और फरिश्तों की उस बेठी हुई जमाअत को सलाम करो। और गौर से सुनो ! की वो तुम्हे क्या जवाब देते है। क्यू की वो तुम्हारा और तुम्हारी औलाद का सलाम है। हज़रत आदम عليه السلام ने फरिश्तों से कहा السلام عليكم तो उन्होंने जवाब में दिया السلام عليكم و رحمه الله और उन्होंने و رحمه الله के अल्फ़ाज़ ज़ाइद कहे।
*✍🏽सहीह बुखारी, 4/164, हदिष : 6227*

*_सलाम करने से आपस में महब्बत पैदा होती है_*
     हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से मरवी है, की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : तुम खाना खिलाओ मिस्कीनों को और सलाम कहो हर शख्स को ख्वाह तुम उस को जानते हो या नही.
*सहीह बुखारी, 4/167, हदिष : 2634*

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! जब तुम बहार निकलो, बाज़ार में जाओ, जहा जहा मुस्लमान इकठ्ठे हो, सलाम कर दिया करो. ये दो अल्फ़ाज़ ज़बान पर बहुत ही हल्के है मगर इन के फवाईदो समरात बहुत ही ज़्यादा है.

     बात चित शुरू करने से पहले ही सलाम करने की आदत बनानी चाहिये. नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया : सलाम बात चीत से पहले है.
*✍🏽सुन्नते और आदाब, 13*
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Tuesday 11 April 2017

*रजब की बहारे* #12
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_रजब के ख़ास दिन और राते_* #02
     जिस तरह रजब की पहली शब निहायत अहम है, इसी तरह इस की 27वी तारीख भी बहुत फ़ज़ीलत वाली है, क्योंकि ये वो अज़ीम रात है, जिस में प्यारे आक़ा ﷺ की तरफ पहली वही भेजी गई और इसी रात में सरकार दो आलम ﷺ मेराज के लिए तशरीफ़ ले गए. यहि वजह है की 27वी शब् में इबादत करने और इस के दिन में रोज़ रखने वाले खुश नसीबो को ढेरो अज्रो षवाब अता किया जाता है.

    आइये इस जिम्न में 3 फरमाने मुस्तफा देखते है :
★27 रजब को मुझे नबुव्वत अता हुई जो इस दिन का रोज़ रखे और इफ्तार के वक़्त दुआ करे, 10 बरस के गुनाहो का कफ़्फ़ारा हो.
*✍🏽फतावा रजविय्या, जी. 10 स.648*

★27 रजबुल मुरज्जब में नेक अमल करने वाले को 100 बरस का षवाब मिलता है.
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी. 3 स. 374 हदिष : 3812*

★रजब में एक दिन और एक रात है, जो उस दिन का रोज़ रखे और वो रात नवाफ़िल में गुज़ारे, ये 100 बरस के रोज़ो के बराबर हो. और वो 27वी रजब है. इसी तारीख को अल्लाह ने मुहम्मद ﷺ को मबऊस फरमाया.
*✍🏽शोएबुल ईमान, जी. 3 स. 373 हदिष : 3811*
*✍🏽रजब की बहरे, स. 12*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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