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सिरते मुस्तफा 1

हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद.

बानीये काबा हजरते इब्राहीम खलीलुल्लाह के एक फरजंद का नाम हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम है जो हजरते बीबी हाजिरा के शिकमे मुबारक से पैदा हुए थे. हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनको और उनकी वालिदा को मक्कए मुकर्रमा में ला कर आबाद किया और अरब की ज़मीन इन को अता फरमाई.

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औलादें हजरते इस्माईल

हजरते इस्माईल अलैहिस्सलाम के बारा बेटे हुए और इनकी औलाद में अल्लाह ने इस कदर बरकत अता फरमाई की वो बहूत जल्द अरब में फैल गये.हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के एक फरजंद जिन का नाम "कैदार" था. वो बहूत ही नामवर हुए और इनकी औलाद खास मक्का में आबाद रही. और ये लोग अपने बाप की तरह हमेशा काबा की खिदमत करते रहे, जिसेको दुनिया में तौहीद की सबसे पेहली दर्सगाह होने का शरफ हासिल है.
इन्ही कैदार की औलाद में "अदनान" नामी निहायत ऊलुल अजम शख्स पैदा हुए. और अदनान की औलाद में चंद पुश्तों के बाद "कसी" बहूत ही जाहो जलाल वाले शक्स पैदा हुए.
जिन्हों ने मक्का ए मुकर्रमा में मुश्तरिका हुकूमत की बूनयाद पर सि. 440 ई. मे एक सल्तनत कायम की.
कसी के बाद इनके फरजंद "अब्द मनाफ" अपने बाप के जा नशीं हुए. फ़िर इनके फरजंद "हाशिम" फ़िर इनके फरंजद "अब्दुल मुत्तलीब" जा नाशी हुए.
इन्ही अब्दुल मुत्तलीब के फरजंद हजरते अब्दुल्लाह है. जिनके फरजंदे अरजुमंद हमारे "हुजूर रहमतूल्लिल आ-लमीन ﷺ " है.

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إنشا الله عزوجل  
 सीरत ऐ मुस्तफा

हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का नसब नामा "किलाब बिन मुर्राह" पर मिल जाता है और आगे चल कर दोनों सिलसिले एक हो जाते है।

"अदनान तक आप का नसब नामा सहीह सनदो के साथ ब इत्तिफ़ाके मुअर्रिखिन साबित है इसके बाद नमो में बहुत कुछ इख़्तिलाफ़ है और हुज़ूर ﷺ जब भी अपना नसब नामा बयान फरमाते थे तो "अदनान" ही तक जिक्र फरमाते थे ।
मगर इस पर तमाम मुअर्रिखिन का इत्तेफाक है की "अदनान" हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम हज़रते इब्राहिम खलिलुल्लाह के फरजंदे अर्जुमंद है ।

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 إنشا الله عزوجل  
   🌹 सीरते मुस्तफा 🌹
🌴हुज़ूरे अकरम ﷺ का खानदान व नसब नजाबत व शराफत में तमाम दुनिया के खानदानों से अशरफ व आला है। और ये वो हक़ीक़त है की आप ﷺ के दुश्मन कुफ्फार मक्का भी कभी इसका इन्कार न कर सके।
✔चुनांचे अबू सुफ़यान ने जब वो कुफ़्र की हालात में थे बादशाहे रुम हरकुल के भरे दरबार में इस हकीकत का इकरार किया की नबी ﷺ  का "आली खानदान है"

हाली की उस वक़्त वो आप के बद तरीन दुश्मन थे और चाहते थे की अगर ज़रा भी कोई गुंजाइश मिले तो आप  की जाते पाक पर कोई ऐब लगा कर बादशाहे रूम की नज़रो से आप का वकार गिरा दे।  

हुज़ूर ﷺ के खानदान का इस कदर बुलंद मर्तबा है की कोई बी हसब व नसब वाला और नेअमत व बुज़ुर्गी वाला आप  के मिस्ल नहीं है।

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إنشا الله عزوجل  
🌹सीरते मुस्तफा🌹

🌾अब्दुल मुत्तलिब🌾
👉🏼हुज़ूर ﷺ के दादा "अब्दुल मुत्तलिब" का अस्ली नाम "शैबा" है। ये बड़े ही नेक नफ़्स और आबिदो ज़ाहिद थे। गारे हिरा में खाना पीना साथ लेकर जाते और कई कई दिनों तक लगातार खुदा  की इबादत में मसरूफ़ रहते। रमज़ान के महीने में अकषर गारे हिरा में एतिकाफ किया करते थे। रसूलल्लाह  का नूरे नबुव्वत इन की पेशानी में चमकता था और इनके बदन से मुश्क की खुशबु आती थी।
👉🏼मक्का वालो पर जब कोई मुसीबत आती या क़हत पड़ जाता तो लोग अब्दुल मुत्तलिक को साथ ले कर पहाड़ पर चढ़ जाते और बारगाहे खुदा वन्दी में इनको वसीला बना कर दुआ मांगते थे तो दुआ मकबूल हो जाती थी।
👉🏼अपने दस्तरखान से परिंदों को भी खिलाया करते थे इसलिये इनका लक़ब "मुतइमूत्तिर" (परिंदों को खिलानेवाला) है।
शराब और जीना को हराम जानते थे और अक़ीदे की लिहाज़ से "मुवह्हिद" थे।
👉🏼"ज़मज़म शरीफ" का कुआ जो बिलकुल पट कया था आप ही ने उसे नए सिरे से खुदवा कर दुरुस्त किया और लोगो को आबे ज़मज़म से सैराब किया। आप भी काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए। अस्हाबे फिल का वाक़िआ आप ही के वक़्त में पेश आया।
💐120 बरस की उम्र में आप की वफ़ात हुई ।

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DEEN-E-NABI ﷺ📚
🌹सीरते मुस्तफा ﷺ 🌹

🌾हज़रते अब्दुल्लाह🌾
           Part - 1
👉🏼ये हमारे आक़ा  के वालीदे माजिद है। ये अब्दुल मुत्तलिब के तमाम बेटो में सबसे ज्यादा बाप के लाडले थे। चुकी इन की पेशानी में नुरे मुहम्मदी अपनी पूरी शानो शौकत के साथ जल्वा गर था इसलिये हुस्नो खूबी के पैकर, और जमाल सूरत व कमाल सीरत के आइना दार और ईफ्कत व पारसाई में यक्ताए रोज़कार थे।
👉🏼एक दिन आप शिकार के लिए जंगल में तशरीफ़ ले गए थे मुल्क शाम के यहूदी चन्द अलामतो से पहचान गए थे के नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा के वालिद माजिद यही है। चुनांचे उन यहूदियो ने आप को बारह कत्ल कर डालने की कोशिश की। इस मर्तबा भी यहूदियो की एक बहुत बड़ी जमात मुसल्लह हो कर इस निय्यत से जंगल में गई की आप को तन्हाई में धोके से कत्ल कर दिया जाए।
👉🏼मगर अल्लाह ने इस मर्तबा भी अपने फज़लो करम से बचा लिया।  आलमे गैब से चन्द ऐसे सुवार ना गहा नमूदार हुए जो इस दुनिया से कोई मूशा-बहत ही नहीं रखते थे। इन सुवारोने आकर यहूदियो को मार भगाया और आप को ब हिफाज़त उनके मकान तक पहुचा दिया।
👉🏼वहब बिन मनाफ भी उस जंगल में थे और  उन्होंने अपनी आँखोसे ये सबकुछ देखा। इसलिए उनको हज़रते अब्दुल्लाह से बे इंतिहा मोहब्बत व अकीदत पैदा हो गई।
✅ओर घर आ कर ये अज़्म कर लिया की मैं अपनी नुरे नज़र हज़रते आमिना की शादी हज़रते अब्दुल्लाह ही से करूँगा।

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DEEN-E-NABI ﷺ📚
[12:13PM, 19/09/2015] Moin Vahora: 🌹सीरते मुस्तफा ﷺ 🌹

🌾हज़रते अब्दुल्लाह🌾
Pary - 2
👉🏼चुनांचे अपनी इस दिली तमन्ना को वहब बिन मनाफ ने अपने दोस्तों के ज़रिये अब्दुल मुत्तलिब तक पोहचा दिया। अब्दुल मुत्तलिब ने इस रिश्ते को ख़ुशी से मंज़ूर कर लिया।
👉🏼25 साल की उम्र में हज़रत अब्दुल्लाह का हज़रते बीबी आमिना से निकाह हो गया और नुरे मुहम्मदी हज़रते अब्दुल्लाह से मुन्तक़िल हो कर हज़रते बीबी आमिना की शीकमे अतहर में जल्वा गर हो गया।
👉🏼जब हम्ल शरीफ दो महीने पुरे हो गए तो अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रते अब्दुल्लाह को तिज़ारत के लिए मुल्क शाम रवाना किया, यहाँ से वापस लौटते हुए मदीना में अपने वालिद के नन्हाल में एक माह बीमार रह कर 25 साल की उम्र में वफ़ात पा गए।
👉🏼और वही "दारे नाबिगा" में मदफुन हुए।

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[12:15PM, 21/09/2015] Moin Vahora: 🌹सीरते मुस्तफा ﷺ 🌹

🌾बचपन
👉🏼हुज़ूर ﷺ की तारीखे पैदाइस में इख़्तिलाफ़ है। मगर क़ौले मशहूर यही है की वकीअए "असहाबे फिल" से 55 दिन के बाद 12 रबीउल अव्वल ब मुताबिक 20 एप्रिल 571 इ. विलादते बा सआदत की तारीख है।
👉🏼तारीखे आलम में ये वो निराला और अज़मत वाला दिन है की इसी रोज़ आलमे हस्ती के इज़ाद का बाइष और तमाम जहान के बिगड़े निज़ामो को सुधारने वाला यानी हमारे आका ﷺ आलमे वुज़ूद में रौनक अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ बरीदा, खतना किये हुए खुशबु में बेस हुए ब हालते सज्दा, मक्कए मुकर्रमा की मुक़द्दस सर जमीन में अपने वालीदे माजिद के मकान में पैदा हुए।
👉🏼आप के चाचा अबू लहब की लौंडी "षुवैबा" ख़ुशी में दौड़ती हुई अबू लहब को भतीजा पैदा होने की ख़ुश खबरी दी तो उसने इस ख़ुशी में शहादत की ऊँगली के इशारे से उसे आज़ाद कर दिया
👉🏼जीस्का ष-मरा अबू लहब को ये मिला की उस्की मौत के बाद उस्के घर वालोने उस्को ख्वाब में देखा और हाल पूछा, तो उस्ने अपनी उंगली उठा कर ये कहा की तुम लोगो से जुदा होने के बाद मुझे कुछ खाने पिने को नहीं मिला बजुज़ इस के की "षुवैबा" को आज़ाद करने के सबब से इस ऊँगली के जरए कुछ पानी पिला दिया जाता है।
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इस मौके पर हज़रते अब्दुल हक् मुहद्दीष दहलवी फरमाते है : की जब अबू लहब जो काफ़िर था और उसकी मज़म्मत में क़ुरआन नाज़िल हुआ, हुज़ूर  की विलादत पर ख़ुशी मानाने से, तो उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो हुज़ूर  की मुहब्बत में सरशार हो कर ख़ुशी मनाता है और अपना माल खर्च करता है।

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सीरते मुस्तफा

दूध पिने का ज़माना
सब से पहले हुज़ूर  ने अबू लहब की लौंडी हज़रते षुवैबा का दूध नोश फ़रमाया। फिर आप ने अपनी वालिदा माजिदा हज़रते आमिना के दूध से सैराब होते रहे।
फिर हज़रते हलीमा सादिया आप को अपने साथ ले गई और अपने काबिले में रख कर आप को दूध पिलाती रही और इन्ही के पास आप के दूध पिने का ज़माना गुज़रा।

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🌹सीरते मुस्तफा ﷺ🌹

💚शकके सढ्र
👉🏼एक दिन आप ﷺ चारगाह में थे की एक दम हज़रते हलीमा के एक फ़रज़न्द जमरह दौड़ते और हापते कांपते हुए अपने घर पर आए और अपनी माँ से कहा की अम्मीजान ! बड़ा गजब हो गया, मुहम्मद ﷺ को 3 आदमियो ने जो बहुत ही सफ़ेद लिबास पहने हुए थे, चित लिटा कर उन का शिकम फाड़ डाला है और में इसी हाल में उनको छोड़ कर भागा हुआ आया हु।
👉🏼 ये सुन कर हज़रते हलीमा और उनके शौहर दोनों बाद हवास हो कर घबराये हुए दौड़ कर जंगल में पोहचे तो ये देखा की आप ﷺ बैठे हुए है। मगर खौफो हिरास से चेहरा जर्द और उदास है, हज़रते हलीमा के शौहर ने प्यार से चूमकर पूछा की बीटा ! क्या बात है ? आप ने फ़रमाया की 3 शख्स मेरे पास आये और मुजको चित लिटाकर मेरे शिकम चाक करके उसमेसे कोई चीज़ निकल कर बाहर फेक दी और फिर कोई चीज़ मेरे शिकम में डाल कर शिगाफ को सी दिया लेकिन मुझे जर्रा बराबर भी कोई तकलीफ नहीं हुई।
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ये वाक़िआ सुन कर हज़रते हलीमा और उनके शौहर दोनों बेहद घबराये और शौहर ने कहा की बहुत जल्द तुम इनको इनके घरवालो के पास छोड़ आओ। इसके बाद हज़रते हलीमा आप को ले कर मक्कए मुकर्रमा आई क्यू की उन्हें इस वाकिए से ये ख़ौफ़ पैदा हो गया था की शायद अब हम कमा हक्कुहु इन की हिफाज़त न कर सकेंगे। और हज़रते हलीम ने आप ﷺ को आप की वालिदा मजीदा के सुपुर्द कर के अपने गाव वापस चली आई और आप ﷺ अपनी वालिदा माजिदा की आगोशे तरबिय्यत में परवरिश पाने लगे।

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🌹सीरते मुस्तफा ﷺ🌹

शकके सद्र कितनी बार हुवा?
👉🏼हज़रते मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ साहिब मुहद्दीशे दहेल्वी ने सूरए अलम नशरह की तफ़सीर में फरमाया है की 4 मर्तबा आप  का मुक़द्दस सीना चाक किया गया और उस में नुरे व हिक्मत का खजिना भरा गया।
💗पहलीबार जब आप हजरते हलीमा के घर थे। इस की हकीकत ये थी की हुज़ूर उन वस्वसो और ख़यालात से महफूज़ रहे जिन में बच्चे मुब्तला हो कर खेल कूद और शरारतो की तरफ माइल हो जाते है।
💗दूसरी बार 10 बरस की उम्र में हुवा ताकि जवानी की पुर आशोब शहवतो के ख़तरात से आप बे ख़ौफ़ हो जाये।
💗तीसरी बार गारे हिरा में हुवा और आप के क्लब में नूर सकीना भर दिया गया ताकि आप वहये इलाही के अज़ीम और गिराबार बोझ को बरदास्त कर सके।
💗चौथी बार शबे में'राज में आप का सीना मुबारक चाक करके नूर व हिक्मत के खजानो से मामूर किया गया, ताकि आप के कल्बे मुबारक में इतनी वुस्अत और सलाहिय्यत पैदा हो जाए की आप दीदारे इलाही की तजल्लियो और कलामें रब्बानी की हैबतो और अज़्मतो के मुतहम्मिल हो सके।

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🌷सीरते मुस्तफा ﷺ 🌷

      💞उम्मी लक़ब💞
            part~1
🌴हुज़ूरे अक़्दस ﷺ का लक़ब "उम्मी" है इस लफ्ज़ के दो मा'ना है या तो ये "उम्मुल कुरा" की तरफ निस्बत है। उम्मुल कुरा मक्कए मुकर्रमा का लक़ब है। लिहाज़ा उम्मी में मा'ना मक्कए मुकर्रमा के रहने वाले।
🔹या उम्मी के ये मा'ना है की आप ﷺ ने दुन्या में किसी इन्सान से लिखना पढ़ना नहीं सीखा। ये हुज़ूर ﷺ का बहुत ही अज़ीमुश्शान मो'जीजा है की दुन्या में किसी ने भी आप को नहीं पढ़ाया या लिखाया। मगर खुदा वन्दे कुद्दूस ने आप को इस कदर इल्म अ'ता फ़रमाया की आप का सीना अव्वलीन व आखिरिन के उलूम व मआ'रीफ का ख़ज़ीना बन गया। और आप पर ऐसी किताब नाज़िल हुई जिस की शान हर हर चीज़ का रोशन बयान है।

📚सीरते मुस्तफा, स. 84
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🌷  सीरते  मुस्तफा ﷺ 🌷

        💞उम्मी लक़ब💞
              part~2
👉🏿जिस का उस्ताद और तालीम देने वाला खल्लाके आलम عزوجل हो भला उसको किसी और उस्ताद से ता'लिम हासिल करनेकी क्या ज़रूरत होगी ?
🔹आप ﷺ के उम्मी लक़ब होने का हक़ीक़ी राज़ क्या है ? इसको तो खुदा वन्दे अल्लामुल गुयुब के सिवा और कौन बता सकता है ? लेकिन ब ज़ाहिर इसमें चंद हिकम्ते और फवाइद मा'लूम होते है।
👉🏿अव्वल 👇🏿
ये की तमाम दुन्या को इल्म व हिक्मत सिखाने वाले हुज़ूरे अक़्दस ﷺ हो और आप का उस्ताद खुदा वन्दे आलम ही हो, कोई इन्सान आप का उस्ताद न हो ताकि कभी कोई ये न कह सके की पैग़म्बर तो मेरा पढ़ाया हुवा शागिर्द है।
👉🏿दुवुम 👇🏿
ये की कोई सख्श कभी ये ख़याल न कर सके की फुला आदमी हुज़ूर ﷺ का उस्ताद था तो शायद वो हुज़ूर ﷺ से ज्यादा इल्म वाला होगा।
👉🏿सीवुम 👇🏿
हुज़ूर ﷺ के बारे में कोई ये वहम भी न कर सके की हुज़ूर चुकी पढ़े लिखे आदमी थे इस लिये उन्हों ने खुद ही कुरआन की आयतो को अपनी तरफ से बना कर पेश किया है और कुरआन उन्ही का बनाया हुवा कलाम है।
👉🏿चाहरुम 👇🏿
जब हुज़ूर ﷺ सारी दुन्या को किताब व हिक्मत की ता'लिम दे तो कोई ये न कह सके की पहली और पुरानी किताबो को देख देख कर इस किस्म की अनमोल और इन्क़िलाब आफरी ता'लिमात दुन्या के सामने पेश कर रहे है।
👉🏿पन्जुम 👇🏿
अगर हुज़ूर ﷺ का कोई उस्ताद होता तो आप को उस की ता'ज़िम करनी पड़ती, हाला की हुज़ूर ﷺ को ख़ालिक़े काएनात ने इस लीये पैदा फरमाया था की सारा आ'लम आप की ता'ज़िम करे, इस लीये हज़रते हक़ ने इस को गवारा नहीं फ़रमाया की मेरा महबूब किसी के आगे जानुए तलम्मूज़ तह करे और कोई इसका उस्ताद हो।

📚सीरते मुस्तफा, स. 85

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱बसरा में ईसाई साधू ने आप ﷺ को पहचान लिया🌱
🔸जब हुज़ूर ﷺ की उम्र शरीफ 12 बरस की हुई तो उस वक़्त अबू तालिब ने तिजारत की गरज़ से मुल्के शाम का सफ़र किया। अबू तालिब को चुकी हुज़ूर ﷺ से बहुत ही वाहिलाना महब्बत थी इस लीये वो आप को भी इस सफ़र में अपने हमराह ले गए।
🔸 हुज़ूर ﷺ ने ए'लाने नबुव्वत से क़ब्ल तिन बार तिजारती सफर फ़रमाया। दो बार मुल्के शाम गए और एक बार यमन तशरीफ़ ले गए, ये मुल्के शाम का पहला सफर है।
🔸 इस सफ़र के दौरान "बुसरा" में "बुहैर" राहिब (ईसाई साधू) के पास आप का क़ियाम हुवा। उसने तौरेत व इन्जील में बयान की हुई नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा की निशानियो से आप को देखते ही पहचान लिया और बहुत अक़ीदत और एहतिराम के साथ उसने आप के काफिले वालो की दा'वत की और अबू तालिब से कहा की ये सारे जहान के सरदार और रब्बुल आ'लमिन के रसूल है, जिन को खुदा ने राहमतुल्लिल आ'लमिन बना कर भेजा है।
🔸मेने देखा है की शजरो हजर इनको सज्दा करते है और अब्र इन पर साया करता है और इनके दोनों शानो के दर्मियाने मोहरे नबुव्वत है। इस लीये तुम्हारे हक़ में यही बेहतर होगा की अब तुम इन को लेकर आगे न जाओ और अपना माले तिजारत यही फरोख्त कर के बहुत जल्दी मक्का चले जाओ। क्यू की मुल्के शाम में यहूदी लोग इनके बहुत बड़े दुश्मन है। वहा पहुचते ही वो लोग इनको शहीद कर डालेंगे।
🔸बहेरा राहिब के कहने पर अबू तालिब को खतरा महसूस होने लगा। चुनान्चे उन्हों ने वही अपनी तिजारत का माल फरोख्त कर के हुज़ूर ﷺ को अपने साथ ले कर मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए।

📚सीरते मुस्तफा, स. 86

🌹सीरते मुस्तफा ﷺ 🌹

🌱का'बे की ता'मीर🌱
         Part~1
🔹आप की रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत की बदौलत खुदा वन्दे आ'लम ने आप को इस कदर मक़्बूले खलाइक बना दिया और अक़्ले सलीम और बे मिषाल दानाई का ऐसा अज़ीम जौहर अता फरमा दिया की कम उम्री में आप ने अर्ब के बड़े बड़े सरदारो के झगड़ो का ऐसा ला जवाब फैसला फरमा दिया की बड़े बड़े दानीश्वरो और सरदारो ने इस फैसले की अ'ज़मत के आगे सर झुका दिया, और सब ने बिल इत्तिफ़ाक़ आप को अपना हकम और सरदारे अ'ज़िम तस्लीम कर लिया।
🔹चुनान्चे इस किस्म का एक वाकिया ता'मीरे का'बा के वक़्त पेश आया जिस की तफ़सील ये है की जब आप की उम्र 35 बरस की हुई तो ज़ोरदार बारिश से हरमे का'बा में ऐसा अ'ज़िम सैलाब आ गया की का'बे की इमारत बिल्कुल ही मुन्हदिम हो गई।
🔹हज़रते इब्राहिम व इस्माइल का बनाया हुवा का'बा बहुत पुराना हो चूका था। इमालक़ा क़ाबिलए जरहम और क़सी वगैरा अपने अपने वक़्तों में इस का'बे की तामीर व मरम्मत करते रहे थे मगर चुकी इमारत नशीब में थी इस लिये पहाड़ो से बरसता पानी के बहाव का ज़ोरदार धरा वादिये मक्का में हो कर गुज़रता था और अक्षर हरमे का'बा में सैलाब आ जाता था। का'बे की हिफाज़त के लीये बालाई हिस्से में कुरैश ने कई बन्द भी बनाए थे मगर एओ बन्द बार बार टूट जाते थे। इस लिये कुरैश ने ये तै किया की इमारत को ढ़ा कर फिर से का'बे की एक मज़बूत इमारत बनाई जाए जिस का दरवाज़ा बुलंद हो और छत भी हो।

📚सीरते मुस्तफा, स.  96, 97
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🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱का'बे की ता'मीर🌱
          Part~2
🔸चुनान्चे कुरैश ने मिलजुल कर ता'मीर का कम शुरू कर दिया। इस ता'मीर में हुज़ूर ﷺ भी शरीक हुए और सरदाराने कुरैश के दोश बदोश पथ्थर उढ़ा उढ़ा कर लाते रहे। मुख़्तलिफ़ क़बीलों ने ता'मीर के लिये मुख़्तलिफ़ हिस्से आपस में तकसीम कर लिये।
🔸जब इमारत "ह-जरे अस्वद" तक पहुच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला ये चाहता था की हम "ह-जरे अस्वद" को उठा कर दिवार में नस्ब करे। ताकि हमारे क़बीले के लिये ये फख्र व ए'जाज़ का बाइष बन जाए।
🔸इस कश्मकश में 4 दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुची की तलवारे निकल आई।  बनु अब्दुद्दार और बनू अदि के क़बीलों ने तो इस पर जान की बाज़ी लगा दी और ज़मानए जाहिलिय्यत के दस्तूर के मुताबिक़ अपनी कस्मो को मज़बूत करने के लिये एक पियाले में खून भर कर अपनी उंग्लिया उसमे डबो कर चाट ली।
🔸5वे दिन हरमे का'बा में तमाम क़बाइले अरब जमा हुए और इस झगड़े को तै करने के लिये एक बड़े बूढ़े शख्स ने ये तज्वीज़ पेश की, की कल जो शख्स सुब्ह सवेरे सब से पहले हरमे का'बा में दाखिल हो उस को पंच मान लिया जाए। वो जो फैसला करदे सब उसको तस्लीम कर ले। चुनान्चे सब ने ये बात मानली।

📚सीरते मुस्तफा, स. 96, 97
To be continue. ...

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱का'बे की ता'मीर🌱
           Part~3
☝🏽खुदा عزوجل की शान, की सुबह को जो शख्स हरमे का'बा में दाखिल हुवा वो हुज़ूर ﷺ ही थे। आप ﷺ को देखते ही सब पुकार उठे की वल्लाह ये "अमिन" है लिहाज़ा हम सब इनके फैसले पर राज़ी है।
🔹आप ﷺ ने उस झगड़े का इस तरह तस्फिया फ़रमाया की पहले आप ने ये हुक्म दिया की जिस जिस क़बीले के लोग हजरे अस्वद को उसके मक़ाम लर रखने के मुद्दई है उन का एक सरदार चुन लिया जाए। चुनान्चे हर क़बीले वालो ने अपना अपना सरदार चुन लिया। फिर हुज़ूर ﷺ ने अपनी चादर मुबारक को बिछा कर हजरे अस्वद को उस पर रखा और सरदारो को हुक्म दिया की सब लोग इस चादर को थाम कर मुक़द्दस पथ्थर को उठाए। चुनान्चे सब सरदारो ने चादर को उठाया और जब हजरे अस्वद अपने मक़ाम पर पंहुच गया तो हुज़ूर ﷺ ने अपने मुतबर्रक हाथो से इस मुक़द्दस पथ्थर को उढ़ा कर उसकी जगह रख दिया।
🔹इस तरह एक ऐसी खुरेज़ लड़ाई टल गई जिस के नतीजे में न मालूम कितना खून खराबा होता।
🔹खानए का'बा की इमारत बन गई लेकिन तामीर के लिये जो सामान जमा किया गया था वो कम पड़ गया इस लिये एक तरफ का कुछ हिस्सा बाहर छोड़ कर नई बुन्याद क़ाइम कर के छोटा सा का'बा बना लिया गया।
🔹का'बए मुअ'ज़्ज़मा का ये हिस्सा जिस को कुरैश ने इमारत से बहार छोड़ दिया "हतिम" कहलाता है जिस में का'बए मुअ'ज़्ज़मा की छत का परनाला गिरता है।

📚सीरते मुस्तफा, स. 97, 98

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱का'बा कितनी बार तामीर किया गया ?🌱
👉🏿हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती ने तारीखे मक्का में तहरीर फ़रमाया है की खानए का'बा 🔟 मर्तबा तामीर किया गया।
1⃣सबसे पहले फरिश्तों ने ठीक "बैतूल मा'मूर" के सामने जमींन पर खानए का'बा को बनाया।
2⃣फिर हज़रते आदम ने इस की तामीर फ़रमाई।
3⃣इसके बाद हज़रते आदम के फर्जनदो ने इस इमारत को बनाया।
4⃣इसके बाद हज़रते इब्राहिम खलिलुल्लाह और उनके फ़रज़न्द हज़रत इस्माइल ने इस मुक़द्दस घर को तामीर किया। जिसका तज़्किर क़ुरआन में है।
5⃣कौमे इमालका की इमारत।
6⃣इसके बाद क़ाबिलए जरहम ने।
7⃣कुरैश के मुरिशे आला "क़सी बिन किलाब" की तामीर।
8कुरैश की तामीर जिस में खुद हुज़ूर ﷺ ने भी शिरकत फ़रमाई और कुरैश के साथ खुद भी अपने दोशे मुबारक पर पथ्थर उठा कर लाते राहे।
9⃣ हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने अपने दौरे ख़िलाफ़त में हुज़ूर के तज्वीज़ करदा नक्शे के मुताबिक़ तामीर की। यानि हतिम की जमींन को का'बे में दाखिल कर दिया। और दरवाज़ा सत्हे जमींन के बराबर निचा रखा और एक दरवाज़ा मशरिक़ की जानिब और एक मगरिब की जानिब बना दिया।
🔟अब्दुल मालिक बिन मरवान उमवि के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसफ षकफ़ि ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को शहीद कर दिया। और इनके बनाए हुए का'बे को ढ़ा दिया। और फिर ज़मानाए ज़हालिय्यत के नक्शे के मुताबिक़ का'बा बना दिया। जो आज तक मौजूद है।

📚सीरते मुस्तफा, स. 98, 99

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱कारोबारी मशागिल🌱
👉🏿हुज़ूर ﷺ का अस्ल खानदानी पेशा तिजारत था और चुकी आप ﷺ बचपन ही में अबू तालिब के साथ कई बार तिजारती सफर फरमा चुके थे। जिससे आप ﷺ को तिजारती लेन देन का काफी तजरबा भी हासिल हो चूका था। इसलिये ज़रीअए मआश के लिये आप ﷺ ने तिजारत का पेशा इख़्तियार फरमाया। और तिजारत की गरज़ से शाम व बुसरा और यमन का सफर फ़रमाया। और ऐसी रास्त बाज़ी और अनामत व दियानत के साथ आप ﷺ ने तिजारत कारोबार किया की आप ﷺ के शुरकाए कार और तमाम अहले बाज़ार आप को "अमिन" के लक़ब से पुकारने लगे।

🔹एक कामयाब ताजिर के लिये अमानत, सच्चाई, वादे की पाबंदी, खुश अख़लाक़ी तिजारत की जान है। इन खुसुसिय्यत में मक्का के ताजिर अमिन ﷺ ने जो तारीखी शाहकार पेश किया है उसकी मिषाल तारीखे आलम में नादिरे रोज़गार है।
🔹हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबिल हम्साअ सहाबी رضي الله تعالي عنه का बयान है की नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले मेने आप ﷺ से कुछ खरीदो फरोख्त का मुआमला किया। कुछ रक़म मेने अदा कर दी, कुछ बाक़ी रह गई थी। मेने वादा किया की में अभी अभी आ कर बाकि की रक़म भी अदा करदुंगा। इत्तिफ़ाक़ से तिन दिन तक मुझे अपना वादा याद नहीं आया। तीसरे दिन जब में उस जगह पंहुचा तो हुज़ूर ﷺ को उसी जगह मुन्तज़िर पाया। मगर मेरी इस वादा खिलाफी से हुज़ूर ﷺ के माथे पर इक ज़रा बल नहीं आया। बस सिर्फ इतना ही फ़रमाया की तुम कहा थे ? में इस मक़ाम पर तिन दिन से तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहा हु।
🔹इस तरह एक सहाबी हज़रते साइब जब मुसलमान हो कर बारगाहे रिसालत ﷺ में हाज़िर हुए तो लोग उनकी तारीफ़ करने लगे तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया की में इन्हें तुम्हारी निस्बत ज्यादा जानता हु। हज़रते साइब कहते हे में अर्ज़ गुज़ार हुवा मेरे माँ बाप आप पर फ़िदा हो आप ने सच फ़रमाया, एलाने नुबुव्वत से पहले आप मेरे शरीके तिजारत थे और क्या ही अच्छे शरीक थे, आप ने कभी लड़ाई झगड़ा नहीं किया था।

📚सीरते मुस्तफा, स. 103, 104

بسم اللہ الرحمن الرحیم.
🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱गैर मा'मूली किरदार🌱
           Post~1
🌴हुज़ूर ﷺ का ज़मानए तुफुलियत खत्म हुवा और जवानी का ज़माना आया तो बचपन की तरह आप ﷺ की जवानी भी आम लोगो से निराली थी। आप ﷺ का शबाब मुजस्स्मे हया और चाल चलन इस्मत व वक़ार का कामिल नमूना था। एलाने नबुव्वत से क़ब्ल हुज़ूर ﷺ की तमाम ज़िन्दगी बेहतरीन अख़लाक़ व आदात का खज़ाना थी।
🔹सच्चाई, दियानत दारी, वफादारी, अहद की पाबन्दी, बुज़ुर्गो की अज़मत, छोटो पर शफ़क़त, रिश्तेदारो से महब्बत, रहम व सखावत, कौम की खिदमत, दोस्तों से हमदर्दी, अज़ीज़ों की गम ख्वारी, गरीबो और मुफलिसों की खबर गिरी, दुश्मनो के साथ नेक बर्ताव, मखलुके खुदा की खैर ख्वाहि, गरज़ तमाम नेक खसलतो और अच्छी बातो में आप ﷺ इतनी बुलंद मन्ज़िल पर पहुचे हुए थे की दुन्या के बड़े से बड़े इंसानो के लिये वहा तक रसाई तो क्या ? इसका तसव्वुर भी मुमकिन नहीं है।
🔹कम बोलना, फ़ुज़ूल बातो से नफरत करना, खन्दा पेशानी और खुशरूई के साथ दोस्तों और दुश्मनो से मिलना। हर मुआ-मले में सादगी और सफाई के साथ बात करना हुज़ूर ﷺ का खास शेवा था।
🔹हिर्स, तमअ, दगा, फरेब, झूट, शराब खोरी, बदकारी, नाच गाना, लूटमार, चोरी, फोहश गोई, इश्क बाज़ी, ये तमाम बुरी आदते और मज़्मुम खसल्ते जो ज़मानए जाहिलिय्यत में गोया हर बच्चे के खमीर में होती थी हुज़ूर ﷺ की जाते गिरामी इन तमाम उयुब व नक़ाइस से पाक साफ़ रही। आप ﷺ की रास्त बाज़ी और अनामत व दिनायत का पुरे अरब में शोहरा था और मक्का के हर छोटे बड़े के दिलो में आप ﷺ के बरगुज़ीदा अख़लाक़ का एतिबार और सब की नज़रो में आप ﷺ का एक ख़ास वक़ार था।

📚सीरते मुस्तफा, स. 104, 105
To be continue.....

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌱गैर मा'मूली किरदार🌱
           Post~2

🔹बचपन से तक्रिबन चालीस बरस की उम्र शरीफ हो गई। लेकिन ज़मानए जाहिलिय्यत के माहोल में रहने के बा वुजूद तमाम मुशरिकाना रुसुम और जाहिलाना अतवार से हमेशा आप ﷺ का दामने इस्मत पाक ही रहा।

🔹मक्का शिर्क व बूत परस्ती का सब से बड़ा मर्कज़ था। खानए का'बा में 360 बुतो की पूजा होती थी। आप ﷺ के खानदान वाले ही का'बे के मुतवल्ली और सज्ज़ादा नशीन थे। लेकिन इस के बा वुजूद आप ﷺ ने कभी भी बुतो के आगे सर नहीं झुकाया।

🔹गरज़ नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले भी आप ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी अखलाके हसना और महासिन अफआल का मुजस्समा और तमाम उयुब व नक़ाइस से पाक व साफ़ रही।

🔹चुनान्चे एलाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ के दुश्मनो ने इन्तिहाई कोशिश की, की कोई अदना सा एब या ज़रा सी ख़िलाफे तहज़ीब कोई बात आप ﷺ की ज़िन्दगी के किसी दौर में भी मिल जाए तो उस को उछाल कर आप ﷺ के वक़ार पर हमला करके लोगो की निगाहो में आप ﷺ को ज़लिलो ख्वार करदे। मगर तारीख गवाह है की हज़ारो दुश्मन सोचते थक गए लेकिन कोई एक वाक़ीआ भी ऐसा नहीं मिल सका जिस से वो आप ﷺ पर अंगुश्त नुमाई कर सके। लिहाज़ा हर इंसान इस हक़ीक़त के एतराफ़ पर मजबूर है की बिला शुबा हुज़ूर ﷺ का किरदार इन्सानिय्यत का एक ऐसा मुहय्यिरुल उकुल और गैर मामूली किरदार है जो नबी के सिवा किसी दूसरे के लिये मुमकिन ही नही है।

🔹ये वजह है की एलाने नुबुव्वत के बाद सईद रूहे आप ﷺ का कलिमा पढ़ कर तन, मन, धन के साथ इस तरह आप पर कुर्बान होने लगी की उन की जा निषारीयो को देख कर शम्अ के परवानो ने जा निषारि का सबक सीखा। और हक़ीक़त शनास लोग फ़ेरते अक़ीदत से आप ﷺ के हुस्ने सदाक़त पर अपनी एक्लो को कुर्बान कर के आप ﷺ के बताए हुए इस्लामी रास्ते पर आशिक़ाना अदाओ के साथ ज़बाने हाल से ये कहते हुए चल पड़े की...
🌹चलो वादिये इश्क़ में पा बरहन ❕
🌹ये जंगल वो है जिसमे काटा नहीं है

📚सीरते मुस्तफा, स. 105, 106

🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🌴एलाने नुबुव्वत से बैअते अक़बा तक🌴
🔹जब हुज़ूर ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी का 40वा साल शुरु हुवा तो ना गहा आप ﷺ की जाते मुक़द्दस में एक नया इन्क़िलाब रुनुमा हो गया की एक दम आप खल्वत पसंद हो गए और अकेले तन्हाई में बैठ कर खुदा की इबादत करने का ज़ौक़ व शौक़ पैदा हो गया। आप अकषर अवकात गौरों फ़िक्र में पाए जाते थे और आप का बेशतर वक़्त मनाज़िरे कुदरत के मुशाहदे और काएनाते फितरत के मुतालए में सर्फ होता था। दिन रात ख़ालिक़े काएनात की ज़ात व सिफ़ात के तसव्वुर में मुस्तग्रक और अपनी कौम के बिगड़े हुए हालात के सुधार और इसकी तदबिरो के सोच बिचार में मसरूफ़ रहने लगे और उन दिनों एक नई बात ये भी हो गई की हुज़ूर ﷺ को अच्छे अच्छे ख्वाब नज़र आने लगे और आप का हर ख्वाब इतना सच्चा होता की ख्वाब में जो कुछ देखते उसकी ताबीर सुब्हे सादिक़ की तरह रोशन हो कर ज़ाहिर हो जाया करती थी।
🔻गारे हिरा🔻
🔹मक्कए मुकर्रमा से तकरीबन तिन मिल की दुरी पर "जबले हिरा" नमी पहाड़ के ऊपर एक गार है जिस को "गारे हिरा" कहते है।आप ﷺ अकषर कई कई दिनों का खाना पानी साथ ले कर इस गार के पुर सुकून माहोल के अंदर खुद की इबादत में मसरूफ़ रहा करते थे। जब खाना पानी खत्म हो जाता तो कभी खुद घर पर आ कर ले जाते और कभी हज़रत बीबी खदीजा खाना पानी गार में पंहुचा दिया करती थी।
🔸आज भी ये नूरानी गार अपनी अस्ली हालत में मौजूद और ज़ियारत गाहे खलाइक़ है।

📚सीरते मुस्तफा, स.  107, 108
🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🍂पहली वहय🍂
        Part~1
🔹एक दिन आप ﷺ गारे हिरा के अंदर इबादत में मशगूल थे की बिलकुल अचानक गार में आप ﷺ के पास एक फरिश्ता ज़ाहिर हुवा। (ये हज़रते जिब्रील थे जो हमेशा खुदा का पैगाम उसके रसूलो तक पहुचाते रहे है) फ़रिश्ते ने एक दम कहा की पढ़िये आप ﷺ ने फ़रमाया की मुझे पढ़ना नहीं आता। फ़रिश्ते ने आप ﷺ को पकड़ा और निहायत गर्म जोशी के साथ आप ﷺ से ज़ोरदार मुआनका किया फिर छोड़ कर कहा की पढ़िये आप ﷺ ने फिर फ़रमाया मुझे पढ़ना नहीं आता। फ़रिश्ते ने दूसरी मर्तबा आप ﷺ को अपने सीने से चीमटाया और छोड़ कर कहा पढ़िये आप ﷺ ने फिर वही फ़रमाया की मुझे पढ़ना नहीं आता। तीसरी मर्तबा फिर फ़रिश्ते ने आप ﷺ को बहुत ज़ोर के साथ अपने सीने से लगा कर छोड़ा और कहा...तर्जुमा👇🏿👇🏿👇🏿
👉🏽पढ़ो अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया आदमी को खून की फटक से बनाया, पढ़ो और तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम जिसने क़लम से लिखना सिखाया आदमी को सिखाया जो न जानता था।
👆🏿👆🏿ये सब से पहली वहय थी जो आप पर नाज़िल हुई।

सीरते मुस्तफा, स. 108
🔁To be continue.....

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🍂पहली वहय🍂
       Part~2
🔹जो वहय नाज़िल हुई उन आयतो को याद करके हुज़ूर ﷺ अपने घर तशरीफ़ लाए।मगर इस वाकिए से जो बिलकुल ना गहानि तौर पर आप ﷺ को पेश आया इससे आप ﷺ के कल्बे मुबारक पर लरज़ा तारी था। आप ﷺ ने घर वालो से फ़रमाया की मुझे कमली ओढ़ाओ। मुझे कमली ओढ़ाओ। जब आप ﷺ का खौफ दूर हुवा और कुछ सुकून हुवा तो आप ﷺ ने हज़रते बीबी खदीजा से गया में पेश आने वाला वाक़ीआ बयान क्या और फ़रमाया की "मुझे अपनी जान का डर है।" ये सुन कर हज़रते बीबी खदीजा ने कहा की नहीं, हरगिज़ नहीं। आप ﷺ की जान को कोई खतरा नहीं है। खुदा की कसम ! अल्लाह عزوجل कभी भी आप को रुस्वा नहीं करेगा। आप तो रिश्तेदारो के साथ बेहतरीन सुलूक करते है। दुसरो का बार खुद उठाते है। मुसाफिरो की मेहमान नवाज़ी करते है और हक़ व इन्साफ की खातिर सबकी मुसीबतो और मुश्किलात में काम आते है।

📚सीरते मुस्तफा, स. 109
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🍂पहली वहय🍂
       Part~3
🔹हुज़ूर ﷺ को संभाल ने के बाद हज़रते खदीजा आप ﷺ को अपने चचाज़ाद भाई "वरक़ा बिन नौफिल" के पास ले गई।
🔸वरक़ा उन लोगो में से थे जो "मुवह्हिद" थे और अहले मक्का के शिर्क व बूत परस्ती से बेजार हो कर "नसरानी" हो गए थे और इन्जील का इबरानी ज़बान से अरबी में तर्जमा किया करते थे। बहुत बूढ़े और नाबीना हो चुके थे।
🔸हज़रते बीबी खदीजा ने उनसे कहा की भाईजान ! आप अपने भतीजे की बात सुनिये। वरक़ा ने कहा की बताइये। आप ने क्या देखा है ?
🔹हुज़ूर ﷺ ने गारे हिरा का पुर वाक़ीआ बयान फ़रमाया। ये सुनकर वरक़ा ने कहा की ये तो वही फरिश्ता है जिसको अल्लाह عزوجل ने हज़रत मूसा के पास भेजा था। फिर वरक़ा कहने लगे की काश ! में आप के एलाने नुबुव्वत के ज़माने में तंदुरस्त जवान होता। काश ! में उस वक़्त तक ज़िन्दा रहता जब आप की कौम आप को मक्का से बहार निकालेगी।
🔸ये सुनकर हुज़ूर ﷺ ने ताजजुब से फ़रमाया की क्या मक्का वाले मुझे मक्का से निकाल देंगे ? तो वरक़ा ने कहा जी हा ! जो शख्स भी आप की तरह नुबुव्वत ले कर आया लोग उसके साथ दुश्मनी पर कमर बस्ता हो गए।

🔁To be continue....
📚सीरते मुस्तफा, स. 109, 110

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🍂पहली वहय🍂
       Part~4
🔹पहली वहय उतरी इसके बाद कुछ दिनों तक वहय उतरने का सिलसिला बन्द हो गया और हुज़ूर ﷺ वहय के इन्तिज़ार में मुज़तरिब और बे क़रार रहने लगे। यहा तक की एकदिन हुज़ूर ﷺ कही घर से बाहर तशरीफ़ ले जा रहे थे की किसीने "या मुहम्मद" कह कर पुकारा। आप ﷺ ने आसमान की तरफ सर उठा कर देखा तो ये नज़र आया की वो फरिश्ता (हज़रते जिब्रील) जो गार में आया था आसमान व जमींन के दरमियान एक कुर्सी पर बैठा हुवा है। ये मंज़र देख कर आप ﷺ के कल्बे मुबारक में एक खौफ की कैफिय्यत पैदा हो गई और आप ﷺ मकान पर आ कर लैट गए और घर वालो से फ़रमाया की मुझे कम्बल उढाओ। चुनान्चे आप कम्बल ओढ़ कर लेटे हुए थे की ना गहा आप ﷺ पर सूरए मुद्दशशिर में इब्तिदाई आयात नाज़िल हुई और रब तआला का फरमान उतर पड़ा की 👇🏿
👉🏿"ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले खड़े हो जाओ फिर डर सुनाओ और अपने रब ही की बड़ाई बोलो और अपने कपडे पाक रखो और बुतो से दूर रहो।"
👆🏿इन आयात के नुज़ूल के बाद हुज़ूर ﷺ को खुदा वन्दे कुद्दूस ने दा'वते इस्लाम के मन्सब पर मामूर फरमा दिया और आप खुदा के हुक्म के मुताबिक़ दा'वते हक़ और तब्लीगे इस्लाम के लिये कमर बस्ता हो गए।

📚सीरते मुस्तफा, स. 110, 111

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🍂दा'वते इस्लाम के लिये तिन दौर🍂
👉🏿पहला दौर
🔹तिन बरस तक हुज़ूर ﷺ इन्तिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राजदारी के साथ तब्लीगे इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फरमाते रहे और इस दरमियान में औरतो में सब से पहले हज़रते बीबी खदीजा और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ और लड़को में सब से पहले हज़रते अली और गुलामो में सबसे पहले ज़ैद बिन हारिष ईमान लाए।
🔸फिर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ की दा'वत व तब्लीग से हज़रते उष्मान, हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन ऑफ, हज़रते साद बिन अबी वक्कास, हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए।
🔸फिर चाँद दिनों के बाद हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह, हज़रते अबू सलमा, हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म, हज़रते उष्मान बिन मज़ऊन और उनके दोनों भाई हज़रते कीदाम और हज़रते अब्दुल्लाह भी इस्लाम में दाखिल हो गए।
🔸फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रते अबू ज़र गिफारी व हज़रते सुहैब रूमी, हज़रते उबैदा बिन अल हारिष बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन ज़ैद बिन अम्र बिन नुफैल और इन की बीवी फ़ातिमा बिन्ते अल खत्ताब हज़रते उमर की बहन ने भी इस्लाम क़बूल कर लिया।
🔸हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र् भी मुसलमान हो गई। इनके इलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतो ने भी इस्लाम लाने का शरफ हासिल कर लिया।
🔹वाज़ेह रहे की सब से पहले इस्लाम लेन वाले जो "साबिकिने अव्वलीन" के लक़ब से सरफ़राज़ है उन खुश नसीबो की फेहरिस्त पर नज़र डालने से पता चलता है की सब से पहले दामने इस्लाम में आने वाले वोही लोग है जो फ़ितरतन नेक तबअ और पहले ही से दिने हक़ की तलाश में सरगर्दा थे और क़ुफ़्फ़ारे मक्का के शिर्क व बूत परस्ती और मुशरीकाना रुसुमे जाहिलिय्यत से मुतनफ्फिर और बेज़ार थे। चुनान्चे नबीये बरहक़ के दामन में दिने हक़ की तजल्ली देखते ही ये नेक बख्त लोग परवानो की तरह शम्ऐ नुबुव्वत पर निषार होने लगे और मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए।

📚सीरते मुस्तफा, स.  111,112

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🍂दा'वते इस्लाम के लिये तिन दौर🍂
👉🏿पहला दौर
🔹तिन बरस तक हुज़ूर ﷺ इन्तिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राजदारी के साथ तब्लीगे इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फरमाते रहे और इस दरमियान में औरतो में सब से पहले हज़रते बीबी खदीजा और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ और लड़को में सब से पहले हज़रते अली और गुलामो में सबसे पहले ज़ैद बिन हारिष ईमान लाए।
🔸फिर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ की दा'वत व तब्लीग से हज़रते उष्मान, हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन ऑफ, हज़रते साद बिन अबी वक्कास, हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए।
🔸फिर चाँद दिनों के बाद हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह, हज़रते अबू सलमा, हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म, हज़रते उष्मान बिन मज़ऊन और उनके दोनों भाई हज़रते कीदाम और हज़रते अब्दुल्लाह भी इस्लाम में दाखिल हो गए।
🔸फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रते अबू ज़र गिफारी व हज़रते सुहैब रूमी, हज़रते उबैदा बिन अल हारिष बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन ज़ैद बिन अम्र बिन नुफैल और इन की बीवी फ़ातिमा बिन्ते अल खत्ताब हज़रते उमर की बहन ने भी इस्लाम क़बूल कर लिया।
🔸हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र् भी मुसलमान हो गई। इनके इलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतो ने भी इस्लाम लाने का शरफ हासिल कर लिया।
🔹वाज़ेह रहे की सब से पहले इस्लाम लेन वाले जो "साबिकिने अव्वलीन" के लक़ब से सरफ़राज़ है उन खुश नसीबो की फेहरिस्त पर नज़र डालने से पता चलता है की सब से पहले दामने इस्लाम में आने वाले वोही लोग है जो फ़ितरतन नेक तबअ और पहले ही से दिने हक़ की तलाश में सरगर्दा थे और क़ुफ़्फ़ारे मक्का के शिर्क व बूत परस्ती और मुशरीकाना रुसुमे जाहिलिय्यत से मुतनफ्फिर और बेज़ार थे। चुनान्चे नबीये बरहक़ के दामन में दिने हक़ की तजल्ली देखते ही ये नेक बख्त लोग परवानो की तरह शम्ऐ नुबुव्वत पर निषार होने लगे और मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए।

📚सीरते मुस्तफा, स.  111,112

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🍂दा'वते इस्लाम के लिये तिन दौर🍂
👉🏿दूसरा दौर
🔹तिन बरस की इस खुफ्या दा'वते इस्लाम में मुसलमानो की एक जमाअत तय्यार हो गई।
🔸 इसके बाद अल्लाह عزوجل ने अपने हबीब ﷺ पर सूरए "शु-अराअ" की आयत नाज़िल फ़रमाई 👇🏿👇🏿
👉🏿और खुदा ﷺ का हुक्म हुवा की ऐ महबूब ! आप अपने खानदान वालो को खुदा से दराइये
🔸तो हुज़ूर ﷺ ने एक दिन कोहे सफा की चोटी पर चढ़ कर "या मा'शरे क़ुरैश" कह कर कबिलाए कुरैश को पुकारा।
🔸जब सब कुरैश जमा हो गए तो आप ने फ़रमाया की ए मेरी कौम ! अगर में तुम लोगो से ये कहदु की इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर छुपा हुवा है जो तुम पर हमला करने वाला है तो क्या तुम लोग मेरी बात का यकीन कर लोग ? तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा की हा ! हा ! हम यकिनन आप की बात का यक़ीन कर लेगें, क्यूकी हम ने आप को हमेशा सच्चा और अमिन ही पाया है।
🔸आप ने फ़रमाया की अच्छा तो फिर में ये कहता हु की में तुम लोगो को अज़ाबे इलाही से डरा रहा हु और अगर तुम लोग ईमान न लाओगे तो तुम पर अज़ाबे इलाही उतर लड़ेगा।
🔸ये सुनकर तमाम कुरैश जिन में आप का चचा अबू लहब भी था, सख्त नाराज़ हो कर सब के सब चले गए और हुज़ूर ﷺ की शान में ऊल-फूल बकने लगे।

📚सीरते मुस्तफा, स. 112, 113

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🍂रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम🍂
      Part~1
🔷क़ुफ़्फ़ारे मक्का ख़ानदाने बनू हाशिम के इन्तिकाम और लड़ाई भड़क उढ़ने के खौफ से हुज़ूर ﷺ को क़त्ल तो नहीं कर सके लेकिन तरह तरह की तकलीफो और इज़ा रसानियो से आप पर ज़ुल्मो सितम का पहाड़ तोड़ने लगे।
🔹चुनान्चे सब से पहले तो हुज़ूर ﷺ के काहिन, साहिर, शाइर, मजनून होने का हर कूचा व बाज़ार में ज़ोरदार प्रोपेगंडा करने लगे। 🔹आप ﷺ के पीछे शरीर लड़को का गौल लगा दिया जो रास्तो में आप पर फब्तियां कस्ते, गालिया देते और ये दीवाना है, ये दीवाना है, का शोर मचा मचा कर आप ﷺ के ऊपर पथ्थर फेकते।
🔹कभी क़ुफ़्फ़ारे मक्का आप ﷺ के रास्तो में कांटे बिछते। कभी आप ﷺ के जिस्मे मुबारक पर नजासत डाल देते। कभी आप ﷺ को धक्का देते। कभी आप ﷺ की मुक़द्दस और नाज़ुक गर्दन में चादर का फन्दा डाल कर गला घोटने की कोशिश करते।
🔹रिवायत है की एक मर्तबा आप ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे की एक दम संगदिल काफ़िर उक़्बा बिन अबी मुइत ने आप के गले में चादर का फन्दा डाल कर इस ज़ोर से खीचा की आप का दम घुटने लगा।
🔹चुनान्चे ये मंज़र देख कर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ बे करार हो कर दौड़ पड़े और उक़्बा को धक्का दे कर दफा किया और ये कहा की क्या तुम लोग ऐसे आदमी को क़त्ल करते हो जो ये कहता है की "मेरा रब अल्लाह है।"
🔹इस धक्कम धक्का में हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ ने कुफ्फार को मारा भी और कुफ्फार की मार भी खाई।

📚सीरते मुस्तफा, स. 113, 114

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🍂रहमते आ'लम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम🍂
🔁Part~2
🔷कुफ्फार आप ﷺ के मोजिज़ात और रूहानी ताशिरात व तसर्रुफात को देख कर आप को सबसे बड़ा जादूगर कहते।
🔹जब हुज़ूर ﷺ क़ुरआन शरीफ की तिलावत फरमाते तो ये कुफ्फार क़ुरआन और क़ुरआन को लाने वाले (जिब्रील) और क़ुरआन को नाज़िल फरमाने वाले (अल्लाह عزوجل ) को और आप ﷺ को गालिया देते। और गली कूचों में पहरा बिठा देते की क़ुरआन की आवाज़ किसी के कान में न पड़ने पाए और तालिया पिट पिट कर और सीटिया बजा बजा कर इस क़दर शोर मचाते की क़ुरआन की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती थी।
🔹हुज़ूर ﷺ जब कही किसी आम मजमे में या कुफ्फार के मेलो में क़ुरआन पढ़ कर सुनाते या दा'वते ईमान का वाज फरमाते तो आप ﷺ का चचा अबू जहल आप के पीछे चिल्ला चिल्ला कर कहता जाता था की ऐ लोगो ! ये मेरा भतीजा झुटा है, ये दीवाना हो गया है, तुम लोग इसकी बात न सुनो।
🔴मआ'ज़ल्लाह
🔹एक मर्तबा हुज़ूर ﷺ "जुल मजाज़" के बाज़ार में दा'वते इस्लाम का वा'ज फरमाने के लिये तशरीफ़ ले गए और लोगो को कलीमए हक़ की दा'वत दी तो अबू जहल आप पर धूल उड़ाता जाता था और कहता था की ऐ लोगो ! इसके फरेब में मत आना, ये चाहता है की तुम लोग लात व उज़्ज़ा की इबादत छोड़ दो।

📚सीरते मुस्तफा, 114, 115
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🍁रहमते आ'लम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम🍁
➡Part~3
🔹एक मर्तबा जब की हुज़ूर ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ऐन हालते नमाज़ में अबू जहल ने कहा की कोई है ? जो आले फुला के ज़बह किये हुए ऊंट की ओझड़ि ला कर सज्दे की हालत में इन के कन्धे पर रख दे।
🔹ये सुन कर उक़्बा बिन अबी मुईत काफ़िर उठा और उस ओझड़ि को ला कर हुज़ूर ﷺ के दोश मुबारक पर रख दिया।
🌴हुज़ूर ﷺ सज्दे में थे देर तक ओझड़ि कन्धे और गर्दन पर पड़ी रही और कुफ्फार ढढ्ढ़ा मार मार कर हस्ते रहे और मारे हँसी के एक दूसरे पर गिर पड़ते रहे, आखिर हज़रते बीबी फ़ातिमा जो उन दिनों अभी कमसिन लड़की थी आई और उन काफिरो को बुरा भला कहते हुए उस ओझड़ि को आप ﷺ के दोश मुबारक से हटा दिया।
🌴हुज़ूर ﷺ के कल्बे मुबारक पर क़ुरैश की इस शरारत से इन्तिहाई सदमा गुज़रा और नमाज़ से फारिग हो कर तिन मर्तबा ये दुआ मांगी "ऐ अल्लाह عزوجل ! तू क़ुरैश को अपनी गिरफ्त में पकड़ ले, फिर अबू जहल, उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबिआ, वलीद बिन उत्बा, उमय्या बिन खलफ, अम्मार बिन वलीद का नाम ले कर दुआ मांगी की, इलाही ! तू इन लोगो को अपनी गिरफ्त में ले ले।
🔷हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद फरमाते है की खुदा की कसम ! मेने इन सब काफिरो को जंगे बद्र के दिन देखा की इन की लाशें जमींन पर पड़ी हुई है। फिर इन सब कुफ्फार की लाशो को निहायत ज़िल्लत के साथ घसीट कर बद्र के एक गढ़े में दाल दिया गया और हुज़ूर ने फ़रमाया की इन गढ़े वालो पर खुदा की लानत।

📚सीरते मुस्तफा, स. 115, 116
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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~1
🌴हुज़ूर ﷺ के साथ साथ गरीब मुसलमानो पर भी क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने ऐसे ऐसे ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े की मक्का की जमींन बिलबिला उठी।
⭕ये आसान था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का इन मुसलमानो को दम जदन में कत्ल कर डालते, मगर इससे उन काफिरो का जोशे इन्तिकाम का नशा नहीं उतर सकता था क्यू की कुफ्फार इस बात में अपनी शान समझते थे की इन मुसलमानो को इतना सताओ की वो इस्लाम को छोड़ कर फिर शिर्क व बूत परस्ती करने लगे।
⭕इसलिये कत्ल करदेने की बजाए क़ुफ़्फ़ारे मक्का मुसलमानो को तरह तरह की सजाओ और इज़ा रसानियो के साथ सताते थे।
🌹मगर खुदा की कसम ! शराबे तौहीद के इन मस्तो ने अपने इस्तिक़्लाल व इस्तिकामत का वो मन्ज़र पेश कर दिया की पहाड़ो की चोटिया सर उठा उठा कर हैरत के साथ इन बला कुशाने इस्लाम के जज़्बए इस्तिकामत का नज़ारा करती रही।
⭕संगदिल, बे रहम और दरिंदो सिफत काफिरो ने इन गरीब व बेकस मुसलमानो पर जब्रो इक्राह और ज़ुल्मो सितम का कोई दक़ीक़ा बाक़ी नहीं छोड़ा।
🌹मगर एक मुसलमान के पाए इस्तिकामत में ज़र्रा बराबर भी तज़ल्जुल नहीं पैदा हुवा और एक मुसलमान का बच्चा भी इस्लाम से मुह फेर कर काफ़िर व मुर्तद नहीं हुवा।

📚सीरते मुस्तफा, स.  117
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🔪मुसलमानो पर मज़ामिल🔪

🔁Part~2
⭕क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने इन गुरबा मुस्लिमीन पर ज़ोरो जफ़ाकारी के बे पनाह अन्दोह नाक मज़ालिम ढाए और ऐसे ऐसे रूह फरसा और जा सोज़ अज़ाबो में मुब्तला किया की अगर इन मुसलमानो की जगह पहाड़ भी होता तो शायद डग मगाने लगता।

⭕सहराए अरब की तेज़ धुप में जब की वहा की रेत के ज़र्रात तन्नूर की तरह गर्म हो जाते। इन मुसलमानो की पुश्त को कोड़ो की मार से ज़ख़्मी कर के उस जलती हुई रेत पर पीठ के बल लिटाते और सिनो पर इतना भारी पथ्थर रख देते की वो करवट न बदलने पाए।

⭕लोहे को आग में गर्म करके इनसे उन मुसलमानो के जिस्मो को दागते।

⭕पाणी में इस कदर डुबकियां देते की उन का दम घुटने लगता।

⭕चटाइयों में इन मुसलमानो को लपेट कर उन की नाको में धुंआ देते जिस से सास लेना मुश्किल हो जाता और वो कर्ब व बेचैनी से बद हवास हो जाते।

📚सीरते मुस्तफा, स. 118
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🔪मुसलमानो पर मज़ामिल🔪
🔁Part~3

🔷हज़रते अब्बास बिन अल अरत رضي الله تعالي عنه ये उस ज़माने में इस्लाम लाए जब हुज़ूर ﷺ हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म رضي الله تعالي عنه के घर में मुक़ीम थे और सिर्फ चन्द ही आदमी मुसलमान हुए थे।

⭕क़ुरैश ने इनको बेहद सताया। यहां तक की कोयले के अंगारो पर इन को चीत लिटाया और एक शख्स इन के सीने पर पाउ रख कर खड़ा रहा। यहां तक की पीठ की चरबी और रुतुबत से कोयले बुझ गए।

⭕बरसो के बाद जब हज़रते खब्बाब رضي الله تعالي عنه ने ये वाक़ीआ हज़रते अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه के सामने बयान किया तो अपनी पीठ खोल कर दिखाई। पूरी पीठ पर सफेद दाग धब्बे पड़े हुए थे।

⭕इस इबरत नाक मंज़र को देख कर हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه का दिल भर आया और वो रो पड़े।

📚सीरते मुस्तफा, स. 118

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🔪मुसलमानो पर मज़ामिल🔪
🔁Part~4

⭕हज़रते अम्मार बिन यासिर رضي الله تعالي عنه को गर्म गर्म बालू पर चित लिटा कर क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश इस क़दर मारते थे की ये बेहोश हो जाते थे।

👆🏿इनकी वालिदा हज़रते बीबी सुमय्या को इस्लाम लाने की बिना पर अबू जहल ने इनकी नाफ के निचे ऐसा नेजा मारा की ये शहीद हो गई।

⭕हज़रते अम्मार के वालिद हज़रते यासिर رضي الله تعالي عنه भी कुफ्फार की मार खाते खाते शहीद हो गए।

⭕हज़रते सुहैब रूमी رضي الله تعالي عنه को क़ुफ़्फ़ारे मक्का इस क़दर तरह तरह की अज़िय्यत देते और ऐसी ऐसी मारधाड़ करते की ये घंटो बेहोश रहते।

⭕जब ये हज़रत करने लगे तो क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने कहा तुम अपना सारा माल व सामान यहाँ छोड़ कर मदीना जा सकते हो।

🌹आप رضي الله تعالي عنه ख़ुशी ख़ुशी दुन्या की दौलत पर लात मार कर अपनी मताए ईमान को साथ ले कर मदीना चले गए।

📚सीरते मुस्तफा, स. 119

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🔪मुसलमानो पर मज़ामिल🔪
🔁Part~5

💐हज़रते अबू फकीहा رضي الله تعالي عنه सफ्वान बिन उमय्या काफ़िर के गुलाम थे और हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه के साथ ही मुसलमान हुए थे।

⭕जब सफ्वान को इन के इस्लाम का पता चला तो उस ने इन के गले में रस्सी का फन्दा डाल कर इन को घसीटा और गर्म जलती हुई जमींन पर इनको चित लिटा कर सीने पर वज़नी पथ्थर रख दिया।

⭕जब इन को कुफ्फार घसीट कर ले जा रहे थे रस्ते में इत्तिफ़ाक से एक गुबरीला नज़र पड़ा।

⭕उमय्या काफ़िर ने ताना मारते हुए कहा की देख तेरा खुदा यही तो नहीं है।

💐हज़रते अबू फ़क़ीहा رضي الله تعالي عنه ने फरमाया की ऐ काफिरो के बच्चे ! खामोश, मेरा और तेरा खुदा अल्लाह عزوجل है।

⭕ये सुन कर उमय्या काफ़िर गज़बनाक हो गया और इस ज़ोर से उन का गला घोंटा की वो बेहोश हो गए और लोगो ने समझा की इन का दम निकल गया।

⭕इसी तरह हज़रते आमिर बिन कुहैरा رضي الله تعالي عنه को भी इस क़दर मारा जाता था की इन के जिस्म की बोटी बोटी दर्द मन्द हो जाती थी।

📚सीरते मुस्तफा, स. 120

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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~6

🍂हज़रते बीबी लुबैना जो लौंडी थी।

🔘हज़रते उमर जब कुफ़्र की हालत में थे इस गरीब लौंडी को इस कदर मारते थे की मरते मरते थक जाते थे

🔘मगर हज़रते लुबैना उफ़ तक नहीं करती थी बल्कि निहायत जुरअत व इस्तिक़्लाल के साथ कहती थी

🔘ऐ उमर ! अगर तुम खुदा के सच्चे रसूल पर ईमान नहीं लाओगे तो खुदा तुम से ज़रूर इन्तिकाम लेगा।

📚सीरते मुस्तफा, स. 120

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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~7

🔘हज़रते ज़निरा हज़रते उमर के घराने की बांदी थी।

🔘ये मुसलमान हो गई तो इन को इस क़दर काफिरो ने मारा की इनकी आखे जाती रही।

🌸मगर खुदा वन्दे तआला ने हुज़ूर की दुआ से फिर इनकी आखो में रौशनी अता फरमा दी

🔘तो मुशरिकीन कहने लगे की ये मुहम्मद के जादू का अशर है।

🔘इसी तरह हज़रते बीबी नहदिया और हज़रते बीबी उम्मे उबैस भी बांदिया थी।

🔘इस्लाम लाने के बाद क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने इन दोनों को तरह तरह की तकलीफे दे कर बे पनाह अज़ीययते दी

🔘मगर ये अल्लाह वालिया सब्रो शुक्र के साथ इन बड़ी बड़ी मुसीबतो को झेलती रही और इस्लाम से इनके कदम नहीं डग मंगाए।

📚सीरते मुस्तफा, स.  120-121
🔄To be continue...

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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~8

🌺हज़रते यारे गारे मुस्तफा अबू बक्र् सिद्दिके बा सफा رضي الله تعالي عنه ने किस किस तरह इस्लाम पर अपनी दौलत निषार की इसकी एक झलक ये है 👇🏿👇🏿

🌺आप ने इन गरीब व बेकस मुसलमानो में से अकषर की जान बचाई।

🌺आप ने हज़रते बिलाल व आमिर बिन फुहैरा व अबू फकीहा व लुबैना व ज़निरा व नहदिया व उम्मे उनैस इन तमाम गुलामो को बड़ी बड़ी रकमें दे कर ख़रीदा

🌺और इन मज़लूमो को काफिरो की इज़ाओ से बचा लिया।

🌺और सब को आज़ाद कर दिया।

📚सीरते मुस्तफा, स. 121

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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~9

🌸हज़रते अबू ज़र गिफ़ारि رضي الله تعالي عنه जब दामने इस्लाम में आए तो मक्का में एक मुसाफिर की हेशिय्य्त से कई दिन तक हरमे काबा में रहे।

📢ये रोज़ाना ज़ोर ज़ोर से चिल्ला चिल्ला कर अपने इस्लाम का एलान करते थे

🌵और रोज़ाना क़ुफ़्फ़ारे कुरैश इन को इस क़दर मारते थे की ये लहूलुहान हो जाते थे

🌸और उन दिनों में आबे ज़मज़म के सिवा इनको कुछ भी खाने पिने को नहीं मिला।

📚सीरते मुस्तफा, स. 121-122
To be continue.......

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🔪मुसलमानो पर मज़ालिम🔪
🔁Part~10

वाज़ेह रहे की क़ुफ़्फ़ारे मक्का का ये सुलूक सिर्फ गरीबो और गुलामो ही तक महदूद नहीं था बल्कि इस्लाम लाने के जुर्म में बड़े बड़े मालदारों और रईसो को भी इन ज़ालिमोने नहीं बख्शा।

हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه जो शहरे मक्का के एक मतमूल और मुमताज मुअज़्ज़िज़िन में से थे मगर इन को भी हरमे काबा में क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने इस क़दर मारा की इन का सर खून से लतपत हो गया।

इसी तरह हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه जो निहायत मालदार और साहिबे इकतिदार थे। जब ये मुसलमान हुए तो गैरो ने नहीं बल्कि खुद इनके चचा ने इनको रस्सियों में जकड़ कर खूब खूब मारा।

हज़रते ज़ुबैर बिन अल अवाम رضي الله تعالي عنه बड़े रॉब और दबदबे के आदमी थे मगर इन्होंने जब इस्लाम क़बूल किया तो इन के चचा इनको चटाई में लपेट कर इनकी नाक में धुंआ देते थे जिस से इनका दम घुटने लगता था।

हज़रते उमर के चचाज़ाद भाई और बहनोई हज़रते सईद बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه कितने जाहो जाहो एज़ाज़ वाले रईस थे मगर जब इनके इस्लाम का हज़रते उमर को पता चला तो इनको रस्सी में बांध कर मारा और साथ ही हज़रते उमर ने अपनी बहन हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते अल खत्ताब को भी इस ज़ोर से थप्पड़ मारा की उनके कान के आवेज़े गिर पड़े और चेहरे पर खून बह निकला।

📚सीरते मुस्तफा, स. 122

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🔻कुफ्फार का वफ्ढ बारगाहे रिसालत में🔻

♻Part~1

🔘एक मर्तबा सरदाराने क़ुरैश हरमे काबा में बैठे हुए ये सोचने लगे की आखिर इतनी तकालिफ् और सख्तिया बर्दाश्त करने के बा वुजूद मुहम्मद अपनी तब्लीग क्यू बन्द नहीं करते ? आखिर इनका मकसद क्या है ? मुमकिन है ये इज़्ज़त व जाह या सरदारी व दौलत के ख्वाहा हो।

🔘चुनान्चे सभी ने उत्बा बिन राबीआ को हुज़ूर ﷺ के पास भेजा की तुम किसी तरह उनका दिली मक़सद मालुम करो।

🔘चुनान्चे उत्बा तन्हाई में आप ﷺ से मिला और कहने लगा की ऐ मुहम्मद ﷺ आखिर इस दा'वते इस्लाम से आप का मक़सद क्या है ?
क्या आप मक्का की सरदारी चाहते है ?
या इज़्ज़त व दौलत के ख्वाहा है ?
या किसी बड़े घराने में शादी के ख्वाहिश मन्द है ?

🔘आप के दिल में जो तमन्ना हो खुले दिल के साथ कह दीजिये। में इसकी ज़मानत लेता हु की अगर आप दा'वते इस्लाम से बाज़ आ जाए तो पूरा मक्का आप के ज़ेरे फरमान हो जाएगा और आप की हर ख्वाहिश और तमन्ना पूरी कर दी जाएगी।

हवाला 👇🏿
📚सीरते मुस्तफा, स. 123

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🔻कुफ्फार का वफ्ढ बारगाहे रिसालत में🔻

♻Part~2

🔘उत्बा की ये साहिराना तक़रीर सुन कर हुज़ूर ﷺ ने जवाब में क़ुरआने मजीद की चन्द आयते तिलावत फ़रमाई।

🔘जिनको सुन कर उत्बा इस क़दर मुतअश्शिर हुआ की उसके जिस्म का रोंगटा रोंगटा और बदन का बाल बाल खौफे जुल जलाल से लरज़ने और कापने लगा

🔘और हुज़ूर ﷺ के मुह पर हाथ रख कर कहा की में आप को रिश्तेदारी का वासिता दे कर दर ख्वास्त करता हु की बस कीजिये। मेरा दिल इस कलाम की अ'ज़मत से फटा जा रहा है।

🔘उत्बा बारगाहे रिसालत से वापस हुआ मगर उस के दिल की दुन्या में एक नया इन्किलाब रुनुमा हो चूका था।

🔘उत्बा एक बड़ा ही साहिरुल बयान खतीब और इन्तिहाई फसिहो बलीग़ आदमी था। उसने वापस लौट कर सरदाराने कुरैश से कह दिया की मुहम्मद ﷺ जो कलाम पेश करते है वो न जादू है न कहानत न शाइरी, बल्कि वो कोई और ही चीज़ है।

🔘लिहाज़ा मेरी राय है की तुम लोग उनको उनके हाल पर छोड़ दो। अगर वो कामयाब हो कर सारे अरब पर ग़ालिब हो गए तो इस में हम कुरैशियों ही की इज़्ज़त बढ़ेगी,
🔘वरना सारा अरब उनको खुद ही फ़ना कर देगा

🔘 मगर क़ुरैश के सरकश काफिरो ने उत्बा का ये मुखलिसाना और मुदब्बिराना मशवरा नहीं माना बल्कि अपनी मुखालफत और इज़ा रसानियो में और ज्यादा इज़ाफ़ा कर दिया।

📖हवाला
📚सीरते मुस्तफा, साफ, 123-124

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🔻क़ुरैश का वफ्ढ अबू तालिब के पास🔻

♻Part~1

🔹क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश में कुछ लोग सुलह पसंद भी थे वो चाहते थे की बातचीत के ज़रिए सुल्हो सफाई के साथ मुआमला तै हो जाए।

🔹चुनान्चे क़ुरैश के चन्द मुअज़्ज़ज़् रुअसा अबू तालिब के पास आए और हुज़ूर ﷺ की दा'वते इस्लाम और बूत परस्ती के खिलाफ तकरीरों की शिकायत की।

🔹अबू ताकिब ने निहायत नरमी के साथ उन लोगो को समझा बुझा कर रुख्सत कर दिया लेकिन हुज़ूर ﷺ खुदा के फरमान  की तालीम करते हुए अलल एलान शिर्क व बूत परस्ती की मज़म्मत और दा'वते तैहिद का वाज फरमाते ही रहे। इस लिए क़ुरैश का गुस्सा फिर भड़क उठा।

🔹चुनान्चे तमाम सरदाराने क़ुरैश यानि उत्बा व शैबा व अबू सुफ़यान व आस बिन हश्शाम व अबू जहल व वलीद बिन मुग़ीरा व आस बिन वाइल वगैरा वगैरा सब एक साथ मिलकर अबू तालिब के पास आए और ये कहा की आप का भतीजा हमारे मा'बूदों की तौहीन करता है इसलिये या तो आप दरमियान में से हट जाए और अपने भतीजे को हमारे सुपुर्द करदे या फिर आप भी खुल कर उनके साथ मैदान में निकल पड़े ताकि हम दोनों में से एक का फैसला हो जाए।

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📖हवाला
📚सीरते मुस्तफा, शफा 124

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🔷हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी🔷

♻Post~01

🔹क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने जब अपने ज़ुल्मो सितम से मुसलमानो और अर्सए हयात तंग कर दिया तो हुज़ूर रहमते आ'लम ﷺ ने मुसलमानो को हबशा जा कर पनाह लेने का हुक्म दिया।

💠नज्जाशी💠

⤵Part~1

🔹हबशा के बादशाह का नाम "असहम" और लक़ब "नज़्ज़शि" था। ईसाई दीन का पाबन्द था मगर बहुत ही इन्साफ पसंद और रहम दिल था और तौरेत व इन्जील वगैरा आसमानी किताबो का बहुत ही माहिर आ'लिम था।

🔹एलाने नबुव्वत के 5वे साल रजब के महीने में 11 मर्द और 4 औरतो ने हबशा की जानिब हिजरत की। इन मुहाजिरिने किराम के मुक़द्दस नाम ये है।

(1,2) हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه अपनी बीबी हज़रत बीबी रुक़य्या के साथ जो हुज़ूर की साहिब जादी है।

(3,4) हज़रते अबू हुजैफा رضي الله تعالي عنه अपनी बीबी हज़रते सहला बिन्ते सुहैल के साथ।

(5,6) हज़रते अबू सलमह अपनी अहलिया हज़रते उममे सलमह के साथ।

(7,8) हज़रते आमिर बिन राबीआ رضي الله تعالي عنه अपनी ज़ौजा हज़रते लैला बिन्ते अबी हश्मी के साथ।

(9) हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله تعالي عنه

(10) हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه

(11) हज़रते अब्दुर्रहीमान बिन औफ رضي الله تعالي عنه

(12) हज़रते उष्मान बिन मज़ऊन رضي الله تعالي عنه

(13) हज़रते अबू सबरा बिन अबी रहम या हातिम बिन अम्र رضي الله تعالي عنه

(14) हज़रते सुहैल बिन बेज़ा رضي الله تعالي عنه

(15) हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله تعالي عنه

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📖हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 126-127

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🔷हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी🔷

♻Post~01

💠नज्जाशी💠

⤵Part~2

🔹क़ुफ़्फ़ारे मक्का को जब इन लोगो की हिजरत का पता चला तो उन जालिमो ने इन लोगो की गिरफ्तारी के लिये इनका तआकुब किया लेकिन ये लोग किश्ती लर सुवार हो कर रवाना हो चुके थे। इसलिये कुफ्फार वापस लौटे।

🔹ये मुहाजिरिन का क़ाफ़िला हबशा की सर जमींन में उतर कर अम्नो अमान के साथ खुदा की इबादत में मसरूफ़ हो गया।

🔹चन्द दिनों के बाद ना गहा ये खबर फ़ैल गई की क़ुफ़्फ़ारे मक्का मुसलमान हो गए। ये सुनकर चन्द लोग हबशा से मक्का लौट आए मगर यहा आ कर पता चला की ये खबर गलत थी।

🔹चुनान्चे बाज़ लोग तो फिर हबशा चले गए मगर कुछ लोग मक्का में रूपोश हो कर टहनी लगे लेकिन क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने उन लोगो को ढूंढ़ निकाला और उन लोगो पर पहले से भी ज्यादा ज़ुल्म ढाने लगे, तो हुज़ूर ﷺ ने लोगो को हबशा चले जाने का हुक्म दिया।

🔹चुनान्चे हबशा से वापस आने वाले और इन के साथ दूसरे मज़लूम मुसलमान कुल 83 मर्द व 18 ओरतो ने हबशा की जानिब हिजरत की।

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📚सीरते मुस्तफा, साफ 127

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🔷हिजरते हबशा सी. 5 नबवी🔷

♻post~02

🔻कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में🔻

⤵Part~1

🔹तमाम मुहज़ीरिन निहायत अम्नो सुकून के साथ हबशा में रहने लगे।

🔹मगर क़ुफ़्फ़ारे मक्का को कब गवारा हो सकता था की फरजंदाने तौहीद कही अम्नो चैन के साथ के रह सके। इन जालिमो ने कुछ तहाइफ के साथ "अम्र बिन अल आस" और "अम्मारा बिन वलीद" को बादशाहे हबशा के दरबार में अपना सफ़ीर बना कर भेजा।

🔹इन दोनों ने नज्जाशी के दरबार में पहुच कर तोहफों कर तोहफों का नज़राना पेश किया और बादशाह को सज्दा करके ये फरयाद करने लगे की ऐ बादशाह ! हमारे कुछ मुजरिम मक्का से भाग कर आप क मुल्क में पनाह गुज़िन हो गए है। आप हमारे उन मुजरिमो को हमारे हवाले कर दीजिये।

🔹ये सुनकर नज्जाशी बादशाह ने मुसलमानो को दरबार में तलब किया। और हज़रते अली के भाई हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه मुसलमानो के नुमाइन्दा बन कर गुफ्तगू के लिये आगे बढे और दरबार के आदाब के मुताबिक़ बादशाह को सज्दा नहीं किया बल्कि सिर्फ सलाम करके खड़े हो गए।

🔹दरबारियों ने टोका तो हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की हमारे रसूल ﷺ ने खुदा के सिवा किसी को सज्दा करने से मना फ़रमाया है। इस लिये में बादशाह को सज्दा नहीं कर सकता।

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📚सीरते मुस्तफा, स. 127-128

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🔻कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में🔻

⤵Post~2

🔹इसके बाद हज़रते जाफर बिन तालिब رضي الله تعالي عنه ने दरबारे शाही में इस तरह तक़रीर शुरुअ फ़रमाई की

🔹ऐ बादशाह ! हम लोग एक जाहिल कौम थे। शिर्क व बूत परस्ती करते थे। लूटमार, चोरी, डकैती, जुल्मो सितम और तरह तरह की बड़कारियो और बद आ'मालियों में मुबगला थे।

☝🏼अल्लाह عزوجل ने हमारी क़ौम में एक शख्स को अपना रसूल बना कर भेजा जिसके हसब व नसब और सिद्दिक़ो दियानत को हम पहले से जानते थे,

👆🏿उस रसूल ने हमको शिर्क व बूत परस्ती से रोक दिया और सिर्फ एक खुदाए वाहिद की इबादत का हुक्म दिया और हर किस्म के ज़ुल्मो सितम और तमाम बुराइयो और बड़कारियो से हमको मना किया।

👍🏾हम उस रुसुल पर ईमान लाये और शिर्क व बूत परस्ती छोड़ कर तमाम बुरे कामो से ताइब हो गए।

🔹बस यही हमारा गुनाह है जिस पर हमारी क़ौम हमारी जान की दुश्मन हो गई और उन लोगो ने हमें इतना सताया की हम अपने वतन को खैरबाद कह कर आप की सल्तनत के ज़ेरे साया पुर अम्न ज़िन्दगी बसर कर रहे है।

🔹अब ये लोग हमें मजबूर कर रहे है की हम फिर उसी पुरानी गुमराही में वापस लौट जाए।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 128-129

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🔻कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में🔻

⤵Post~3

🔹हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه की तकरीर से नज्जाशी बादशाह बेहद मुतअश्शिर हुआ। ये देख कर क़ुफ़्फ़ारे मक्का के सफ़ीर अम्र बिन अल आस ने अपने तरकश का आखरी तीर भी फेक दिया और कहा

🔹ऐ बादशाह ! ये मुसलमान लोग आप के नबी हज़रते इसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ दूसरा ही ऐतिकाद तख्ते है, जो आप के अक़ीदे के बिलकुल ही खिलाफ है।

🔹ये सुनकर नज्जाशी बादशाह ने हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه से इस बारे में सुवाल किया तो आप ने सूरए मरयम की तिलावत फ़रमाई। कलामे रब्बानी की ताशीर से नज्जाशी बादशाह के क्लब पर इतना गहरा अशर पड़ा की उस पर रिक़्क़्त तारी हो गया और उस की आँखों से आसु जारी हो गए।

🔹हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की हमारे रसूल ﷺ ने हमको येही बताया है की हज़रते इसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उसके रसूल है, जो कवारी मरयम के शीकमे मुबारक से बगैर बाप के खुदा की क़ुदरत का निशान बन कर पैदा हुए।

🔹नज्जाशी बादशाह ने बड़े गौर से हज़रते जाफर की तक़रीर को सुना और ये कहा की बिला शुबा इन्जील और क़ुरआन दोनों एक ही आफ्ताबे हिदायत के दो नूर है और यक़ीनन हज़रते इसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उसके रसूल है, और में गवाही देता हु की बेशक हज़रत मुहम्मद ﷺ खुदा के वोही रसूल है जिन की बिशारत हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम ने इन्जील में दी है।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 129-130

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🔻कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में🔻

⤵Post~4

✨बादशाह ने फ़रमाया अगर में दस्तूरे सल्तनत के मुताबिक़ तख्ते शाही पर रहने का पाबंद न होता तो में खुद मक्का जा कर रसूले अकरम की जुतिया सीधी करता और उनके क़दम धोता।

✨बादशाह की तक़रीर सुनकर उसके दरबारी जो कट्टर किस्म के ईसाई थे नाराज़ व बरहम हो गए मगर नज्जासि बादशाह ने जोशे इमानि में सब को डाट फटकार कर खामोश कर दिया।

✨और क़ुफ़्फ़ारे मक्का के तोहफों को वापस लौटा कर अम्र बिन अल आस और अम्मार बिन वलीद को दरबार से निकलवा दिया

✨और मुसलमानो से कह दिया की तुम लोग मेरी सल्तनत में जहा चाहो अम्नो सुकून के साथ आराम व चैन की ज़िन्दगी बसर करो। कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

✨वजह रहे की नज्जाशी बादशाह मुसलमान हो गया था। चुनान्चे उसके इंतकाल पर हुज़ूर ﷺ ने मदिनए मुनव्वरा में उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी। हाला की नज्जाशी बादशाह का इंतिक़ाल हबशा में हुवा था और वो हबशा ही में मदफून भी हुए मगर हुज़ूर ﷺ ने गाइबाना उन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर उनके लिये दुआए मग्फिरत फ़रमाई।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 130

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🌟हज़रते अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना🌟

⤵Part~1

✨हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने भी हबशा की तरफ हज़रत की मगर जब आप رضي الله تعالي عنه मक़ाम "बर्कुल गम्माद" में पहुचे तो कबिलए काऱा का सरदार "मालिक बिन दुगन्ना" रास्ते में मिला और दरयाफ़्त किया की क्यू ? कहा चले ?

✨आप رضي الله تعالي عنه अहले मक्का के मज़ालिम का तज़किरा फरमाते हुए कहा की अब में अपने वतन मक्का को छोड़ कर खुदा की लम्बी चौड़ी ज़मीं में फिरता रहूँगा खुदा की इबादत करता रहूंगा।

✨इब्ने दुगन्ना ने कहा की ऐ अबू बक्र् ! आप رضي الله تعالي عنه जेसा आदमी न शहर से निकल सकता है न निकाला जा सकता है। आप رضي الله تعالي عنه दुसरो का बार उढ़ाते है मेहमानाने हरम की मेहमान नवाज़ी करते है, खुद कमा कमा कर मुफलिसों और मोहताज़ो की माली इमदाद करते है, हक़ के कामो में सब की इमदाद व इआनत करते है।

✨आप رضي الله تعالي عنه मेरे साथ मक्का वापस चलिये में आप को अपनी पनाह में लेता हु।

✨इब्ने दुगन्ना आप को ज़बर दस्ती मक्का वापस लाया और तमाम क़ुफ़्फ़ारे मक्का से कह दिया की में ने अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه को अपनी पनाह में ले लिया है। लिहाज़ा खबरदार ! कोई इन को न सताए।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 131-132

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🌟हज़रत अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना🌟

⤵Part~2

🔅क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने कहा की हम को इस शर्त पर मंज़ूर है की अबू बक्र् अपने घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़े ताकि हमारी औरतो और बच्चों के कान में क़ुरआन की आवाज़ न पहुचे।

✨इब्ने दुगन्ना ने कुफ्फार की शर्त को मंजूर कर लिया। और हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه चन्द दिनों तक अपने घर के अंदर क़ुरआन पढ़ते रहे।

✨मगर अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه के जज़्बए इस्लामी और जोशे इमानी ने ये गवारा नहीं किया की माबूदाने बातिल लात व उज़्ज़ा की इबादत तो अलल एलान हो और माबुदे बरहक़ अल्लाह तआला की इबादत घर के अंदर छुप कर की जाए।

✨चुनान्चे आप ने घर के बाहर अपने सहन में एक मस्जिद बना ली और इस मस्जिद में अलल ऐलान नमाज़ों में बुलंद आवाज़ से क़ुरआन पढ़ने लगे और क़ुफ़्फ़ारे मक्का की औरतो और बच्चे भीड़ लगा कर क़ुरआन सुनने लगे। 

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 131

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✨हज़रते अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना✨

⤵Part~3

🔅ये मंज़र देख कर क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने इब्ने दुगन्ना को मक्का बुलाया और शिकायत की,

🔅अबू बक्र् घर के बहार क़ुरआन पढ़ते है। जिस को सुनने के लिये उन के गिर्द हमारी औरतो और बच्चों का मेला लग जाता है। इससे हमको बड़ी तक़लीफ़ होती है लिहाज़ा तुम उनसे कहदो की या तो वो घर में क़ुरआन पढ़े वरना तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से दस्त हो जाओ।

🔅चुनान्चे इब्ने दुगन्ना ने हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से कहा की ए अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ! आप घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़े वरना में अपनी पनाह से कनारा काश हो जाऊंगा इसके बाद क़ुफ़्फ़ारे मक्का आप को सताएंगे तो में इसका ज़िम्मेदार न होऊंगा।

✨ये सुन कर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की ऐ इब्ने दुगन्ना ! तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से अलग हो जाओ मुझे अल्लाह عزوجل की पनाह काफी है और में उसकी मरज़ी पर राज़ी ब रिज़ा हु।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 131-132

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🌟हज़रते हम्ज़ा मुसलमान हो गए🌟

♻Part~1

✨एलाने नुबुव्वत के छटे साल हज़रते हम्ज़ा और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه दो ऐसी हस्तिया दामने इस्लाम में आ गई जिन से इस्लाम और मुसलमानो के जाहो जलाल और इनके इज्ज़तों इक़बाल का परचम बहुत ही सर बुलंद हो गया।

✨हुज़ूर ﷺ के चचाओं में हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه को आप से बड़ी वाहिलाना महब्बत थी और वो सिर्फ दो तिन साल हुज़ूर ﷺ से उम्र में ज्यादा थे और चुकी इन्हों ने भी हज़रते सुवैबा का दूध पिया था इस लिये हुज़ूर ﷺ के रज़ाई भाई भी थे।

✨हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه बहुत ही ताक़त वर और बहादुर थे और शिकार के बहुत ही शौक़ीन थे। रोज़ाना सुबह सवेरे तीर कमान ले कर घर से निकल जाते और शाम को शिकार से वापस लौट कर हरम में जाते, खानए काबा का तवाफ़ करते और कुरैश के सरदारो की मजलिस में कुछ देर बैठा करते थे।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 132-133

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🌟हज़रते हम्ज़ा मुसलमान हो गए🌟

♻Part~2

🔹एक दिन हस्बे मामूल शिकार से वापस लौटे तो इब्ने जदआन की गुलाम और खुद इनकी बहन हज़रते बीबी सफिय्या ने इनको बताया की आज अबू जहल ने किस किस तरह तुम्हारे भतीजे हज़रत मुहम्मद ﷺ के साथ बे अदबी और गुज़ताखि की है।

🔹ये माजरा सुनकर मारे गुस्से के हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه का खून खौलने लगा। एक दम तीर कमान लिये हुए मस्जिदे हराम में पहुच गए और अपनी कमान से अबू जहल के सर पर इस ज़ोर से मारा की उसका सर फट गया और कहा

🔹तू मेरे भतीजे को गालिया देता है ? तुझे खबर नहीं की में भी उस के दिन पर हु। ये देख कर क़ाबिलए बनी मखज़ूम के कुछ लोग अबू जहल की मदद के लिये खड़े हो गए तो अबू जहल ने ये सोच कर की कही बनू हाशिम से जंग न छिड़ जाए ये कहा की ऐ बनी मखज़ूम ! आप लोग हम्ज़ा को छोड़ दीजिये। वाकेइ आज मेने उनके भतीजे को बहुत ही ख़राब किस्म की गालिया दी थी।

🔹हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه ने मुसलमान हो जाने के बाद ज़ोर ज़ोर से इन अशआर को पढ़ना शुरू कर दिया :
🔅में अल्लाह عزوجل की हम्द करता हूं जिस वक़्त की उसने मेरे दिल को इस्लाम और दिने हनफ़ी की तरफ हिदायत दी।
🔅जब अहकामे इस्लाम की हमारे सामने तिलावत की जाती है तो बा कमाल अक़्ल वालो के आसु जारी हो जाते है।
🔅और खुदा के बरगुज़ीदा अहमद ﷺ हमारे मुक़तदा है तो ऐ काफिरो अपनी बातिल बकवास से इन पर ग़लबा मत हासिल करो।
🔅तो खुदा की कसम ! हम इन्हें कौमें कुफ्फार के सुपुर्द नहीं करेंगे। हालां की अभी तक हम ने उन काफिरो के साथ तलवारो से फैसला नहीं किया है।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 133, 134

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🌟हज़रते उमर का इस्लाम🌟

♻Post~1

🔹हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه के इस्लाम लाने के बाद तीसरे ही दिन हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه भी दौलते इस्लाम से मालामाल हो गए। आप के मुशर्रफ ब इस्लाम होने के वाकीआत में बहुत सी रिवायात है।

🔹एक रिवायत ये है की आप एक दिन गुस्से में भरे हुए नंगी तलवार ले कर इस इरादे से चले की आज में इसी तलवार से पैग़म्बरे इस्लाम का खातिमा कर दूंगा।

🔹इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में हज़रते नुएम बिन अब्दुल्लाह क़ुरैश رضي الله تعالي عنه से मुलाक़ात हो गई।

🔹ये मुसलमान हो चुके थे मगर हज़रते उमर को इनके इस्लाम की खबर नहीं थी। हज़रते नुएम رضي الله تعالي عنه ने पूछा की क्यू ?  ऐ उमर ! इस दो पहर की। गर्मी में नंगी तलवार ले कर कहा चले ?

🔹कहने लगे की आज बानिये इस्लाम का फैसला करने के लिये घर से निकल पड़ा हु।

🔹इन्हों ने कहा की पहले अपने घर की खबर लो। तुम्हारी बहन फ़ातिमा बिन्ते अल खत्ताब और तुम्हारे बहनोई सईद बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه भी तो मुसलमान हो गए है।

🔹ये सुनकर आप बहन के घर पहुचे और दरवाज़ा ख़ट खटाया। घर के अंदर चन्द मुसलमान क़ुरआन पढ़ रहे थे।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 134-135

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🌟हज़रते उमर का इस्लाम🌟

⤵Post~2

🔅जब उमर رضي الله تعالي عنه अपनी बहन के घर पोहचे और दरवाज़ा खाट खटाया तब घर के अंदर चन्द मुसलमान छुप कर क़ुरआन पढ़ रहे थे। हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه की आवाज़ सुनकर सब लोग दर गए और क़ुरआन के अवराक़ छोड़ कर इधर उधर छुप गए।

✨बहन ने उठ कर दरवाज़ा खोल तो हज़रते उमर चिल्ला कर बोले की ऐ अपनी जान की दुश्मन ! क्यू तू भी मुसलमान हो गई है ? फिर अपने बहनोई पर झपटे और उन की दाढ़ी पकड़ कर उनको ज़मीन पर पटक दिया और सीने पर सुवार हो कर मारने लगे।

✨इनकी बहन अपने शोहर को बचाने के लिये दौड़ पड़ी तो हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने उनको ऐसा तमाचा मारा की उनको कानो के झूमर टूट कर गिर पड़े और उनका चेहरा खून से लहू लुहान हो गया।

✨बहन ने साफ साफ कह दिया की उमर ! सुनलो तुम जो हो सके करलो मगर अब इस्लाम दिल से नहीं निकल सकता।

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने बहन का खून आलूदा चेहरा देखा और उनका अज़्मो इस्तिक़ामत से भरा हुवा ये जुम्ला सुना तो उन पर रिक़्क़्त तारी हो गई और एक दम दिल नरम पद गया। थोड़ी देर तक खामोश खड़े रहे। फिर कहा अच्छा तुम लोग जो पढ़ रहे थे मुझे भी दिखाओ।

✨बहन ने क़ुरआन के अवराक़ को सामने रख दिया।

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🌟हज़रते उमर का इस्लाम🌟

⤵Post~3

✨जब उमर की बहन ने क़ुरआन के अवराक़ को सामने रखा तो आप ने उठा कर देखा तो इस आयत पर नज़र पड़ी की

☝🏼"अल्लाह की पाकी बोलता है जो कुछ आस्मानो और ज़मीन में है और वोही इज़्ज़त व हिक्मत वाला है"

✨इस आयत का एक एक लफ्ज़ सदाक़त की ताशीर का तीर बन कर दिल की गहराई में पैवस्त होता चला गया और जिस्म का एक एक बाल लरज़ा बर अंदाम होने लगा। जब इस आयत पर पोहचे की

☝🏼"अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ"
तो बिलकूल ही बेकाबू हो गए और बे इख्तियार पुकार उठे

☝🏼"अशहदु-अन-ल्लाइलाहा-इल्लल्लाहु-व-अशहदु-अन्न-मुहम्मदन-रसूलुल्लाह"

✨ये वो वक़्त था की हुज़ूर ﷺ अज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म رضي الله تعالي عنه के मकान में मुक़ीम थे हज़रते उमर बहन के घर से निकले और सीधे हज़रते अरक़म رضي الله تعالي عنه के मकान पर पहुचे तो दरवाज़ा बंद पाया, कुन्डी बजाई, अंदर के लोगो ने दरवाज़े की झरि से झाक कर देखा तो हज़रते उमर नंगी तलवार लिये खड़े थे। लोग घबराए और किसी में दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं हुई

✨मगर हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه ने बुलंद आवाज़ से फ़रमाया की दरवाज़ा खोल दो और अंदर आने दो अगर ने निय्यत के साथ आया है तो उस का खैर मकदम किया जाएगा वरना उसीकी तलवार से उसकी गर्दन उड़ा दी जाएगी।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 135-136

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🌟हज़रते उमर का इस्लाम🌟

⤵Post~4

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने अंदर क़दम रखा तो हुज़ूर ﷺ ने खुद आगे बढ़ कर हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه का बाज़ू पकड़ा और फ़रमाया की ऐ खत्ताब के बेटे ! तू मुसलमान हो जा आखिर तू कब तक मुझ से लड़ता रहेगा ?

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने बा आवाज़ें बुलंद कलिमा पढ़ा। हुज़ूर ﷺ ने मारे ख़ुशी के नारए तकबीर बुलंद फ़रमाया और तमाम हाज़रिन ने इस ज़ोर से अल्लाहु अकबर का नारा लगाया की मक्का की पहाड़िया गूंज उठी।

✨फिर हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه कहने लगे की या रसूलल्लाह ﷺ ! ये छुप छुप कर खुदा की इबादत करने से क्या माना ? उठिये हम काबा में चल कर अलल ऐलान खुदा की इबादत करेंगे और खुदा की क़सम ! में कुफ़्र की हालत में जिन जिन मजलिसों में बैठ कर इस्लाम की मुखालफत करता रहा हु अब उन तमाम मजालिस में अपने इस्लाम का ऐलान करूँगा।

✨फिर हुज़ूर ﷺ सहाबा की जमाअत को ले कर दो कितारो में रवाना हुए। एक साफ के आगे आगे हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه चल रहे थे और दुआरी साफ के आगे आगे हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه थे।

✨इस शान से मस्जिदे हराम में दाखिल हुए और नमाज़ अदा की और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने हरमे काबा में मुशरिकीन के सामने अपने इस्लाम का ऐलान किया।

✨ये सुनते ही हर तरफ से कुफ्फार दौड़ पड़े और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه को मारने लगे और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه भी उन लोगो से लड़ने लगे। एक हंगामा बरपा हो गया।

✨इतने में हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه का मामू अबू जहल आ गया। उसने पूछा की ये हंगामा कैसा है ? लोगोने बताया की हज़रते उमर मुसलमान हो गये है इस लिये लोग बरहम हो कर इन पर हम्ला आवर हुए है।

✨ये सुनकर अबू जहल ने हातिमे काबा में खड़े हो कर अपनी आस्तीन से इशारा करके एलान कर दिया की मेने अपने भांजे उमर को पनाह दी। अबू जहल का ये एलान सुन कर सब लोग हट गए।

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه का बयान है की इस्लाम लाने के बाद में हमेशा कुफ्फार को मारता और उन की मार खाता रहा यहाँ तक की अल्लाह तआला ने इस्लाम को ग़ालिब फरमा दिया।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 136-137

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🌟हज़रते उमर का इस्लाम🌟

⤵Post~5

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه के मुसलमान होने का एक सबब ये भी बताया गया है की खुद हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه फ़रमाया करते थे की में कुफ़्र की हालत में क़ुरैश के बुतो के पास हाज़िर था इतने में एक शख्स गाय का एक बछड़ा ले कर आया और उस को बुतो के नाम पर ज़बह किया। फिर बड़े ज़ोर से चीख मार कर किसी ने ये कहा की ऐ खुली हुई दुश्मनी करने वाले !

✨ये आवाज़ सुन कर सब लोग वहा से भाग खड़े हुए। लेकिन में ने ये अज़्म कर लिया की में इस आवाज़ देने वाले की तहक़ीक़ किये बिगैर हरगिज़ हरगिज़ यहा से नहीं लौटूंगा। इसके बाद फिर यही आवाज़ आई ऐ खुली हुई दुश्मनी करने वाले !

✨एक कामयाबी की चीज़ है की एक फ़साहत वाला आदमी "लाइलाहा इल्लल्लाह" कह रहा है। हाला की बुतो के आस पास मेरे सिवा दूसरा कोई भी नहीं था।

✨इसके फ़ौरन ही बाद हुज़ूर ﷺ ने अपनी नुबुव्वत का एलान फ़रमाया। इस वाकिए से हज़रते उमर बेहद मुतास्सिर थे। इसलिये इनके इस्लाम लाने के अस्बाब में इस वाकिए को भी कुछ न कुछ ज़रूर दखल है।

✨हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه को जब क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने बहुत ज्यादा सताया तो आस बिन वाइल हसीम ने भी आप को अपनी पनाह में ले लिया जो ज़मानए जाहिलिय्यत में आप का हलिफ था इस लिये हज़रते उमर कुफ्फार की मारधाड़ से बच गए।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 137-138

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💫शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी💫

⤵Post~01

📢एलाने नुबुव्वत के सातवे साल सी. 7 न-बवी में क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने जब देखा की रोज़ बरोज़े मुसलमानो की ता'दाद बढ़ती जा रही है और हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه व हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه जैसे बहादुराने क़ुरैश भी दामने इस्लाम में आ गए तो गैज़ो गज़ब में ये लोग आपे से बाहर हो गए और तमाम सरदाराने किरैश और मक्का के दूसरे कुफ्फार ने ये स्किम बनाई

🌴की हुज़ूर ﷺ और आप के खानदान का मुकम्मल बायकॉट कर दिया जाए और इन लोगो को किसी तंग व तारिक जगह में महसूर कर के इनका दाना पानी बंद कर दिया जाए ताकि ये लोग मुकम्मल तौर और तबाह व बर्बाद हो जाए।

🔮चुनान्चे इस खौफनाक तज्वीज़ के मुताबिक़ तमाम क़बाईले कुरैश ने आपस में ये मुआह्दा किया की जब तक बनी हाशिम के खानदान वाले हुज़ूर को क़त्ल के लिये हमारे हवाले न कर दे तब तक....

👉🏿कोई शख्स बनू हाशिम के खानदान से शादी बियाह न करे।

👉🏿कोई शख्स इन लोगो के हाथ किसी किस्म के सामान की खरीदो फरोख्त न करे।

👉🏿कोई शख्स इन लोगो से मेलजोल, सलाम व कलाम और मुलाक़ात व बात न करे।

👉🏿कोई शख्स इन लोगो के पास खाने पिने का कोई सामान न जाने दे।

⭕मनसूर बिन इकरम ने इस मुआह्दे को लिखा और तमाम सरदाराने क़ुरैश ने इस पर दस्तखत करके इस दस्तावेज़ को काबे के अंदर आवेज़ा कर दिया।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 138-139

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✨शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी✨

⤵Post~02

💫अबू तालिब मजबूरन हुज़ूरे अक़्दस ﷺ और दूसरे तमाम खानदान वालो को लेकर पहाड़ की उस घाटी में जिस का नाम "शअ'बे अबी तालिब" था पनाह गुज़ीना हुए।

🔻अबू लहब के सिवा ख़ानदाने बनू हाशिम के काफिरो ने भी खानदानी हमिययत व पासदारी की बिना पर इस मुआमले में हुज़ूर ﷺ का साथ दिया और सब के सब पहाड़ के इस तंग व तारिक दुर्रे में महसूर हो कर क़ैदियो की ज़िन्दगी बसर करने लगे।

⭕ये 3 बारस का ज़माना इतना सख्त और कठिन गुज़रा की बनू हाशिम दरख्तो के पत्ते और सूखे चमड़े पका कर खाते थे।और इनके बच्चे भूक प्यास की शिद्दत से तड़प तड़प कर दिन रात रोया करते थे।

🚫संगदिल और ज़ालिम काफिरो ने हर तरफ पहरा बिठा दिया था की कही से भी घाटी के अंदर दाना पानी न जाने पाए।

⭕मुसलमान 3 साल तक हुज़ूर ﷺ और ख़ानदाने बनू हाशिम इन होशरुबा मसाइब् को झेलते रहे यहाँ तक की खुद क़ुरैश के कुछ रहम दिलो को बनू हाशिम की इन मुसीबतो और रहम आ गया और उन लोगो ने इस ज़ालिमाना मुआह्दे को तोड़ने की तहरीक उठाई।

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✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 139-140

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✨शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी✨

⤵Post~03

🔹चुनान्चे हश्शाम बिन अम्र आमिर, ज़ुहैर बिन अबी उमय्या, मूतइम बिन अदि, अबुल बख्तरि, जमआ बिन अल अस्वद वगैरा ये सब मिल कर एक साथ हरमे काबा में गए और ज़ुहैर ने जो अब्दुल मुत्तलिब के नवासे थे क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश को मुखातब कर के अपनी पुरजोश तक़रीर में ये कहा की

🔹ऐ लोगो ! ये कहा का इन्साफ है ? की हम लोग तो आराम से जिंदगी बसर कर रहे है और ख़ानदाने बनू हाशिम के बच्चे भूक प्यास से बे क़रार हो कर बिलबिला रहे है। खुदा की क़सम ! जब तक इस वहशियाना मुआह्दे की दस्तावेज़ फाड़ कर पाउ से न रौंद दी जाएगी में हरगिज़ हरगिज़ चैन से नहीं बैठ सकता।

🔹ये तकरीर सुन कर अबू जहल ने तड़प कर कहा की खबरदार ! हरगिज़ हरगिज़ तुम इस मुआह्दे को हाथ नहीं लगा सकते। जमआ ने अबू जहल को ललकारा और इस ज़ोर से डेटा की अबू जहल की बोलती बंद हो गई।

🔹इस तरह मूतइम बिन अदि हश्शाम बिन अम्र ने भी ख़म ठोक कर अबू जहल को झिड़क दिया और अबुल बख्तरि ने तो साफ साफ कह दिया की ऐ अबू जहल ! इस ज़ालिमाना मुआह्दे से न हम पहले राज़ी थे और न अब हम इसके पाबन्द है।

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⤵हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 140

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✨शअ'बे अबी तालिब सी. 7 न-बवी✨

⤵Post~04

🔹इसी मज्मे में एक तरफ अबू तालिब भी बैठे हुए थे। उन्होंने कहा की ऐ लोगो ! मेरे भतीजे मुहम्मद ﷺ कहते है की उस मुआह्दे की दस्तावेज़ को कीड़ो ने खा डाला है और सिर्फ जहा जहा खुदा का नाम लिखा हुआ था उस को कीड़ो ने छिड़ दिया है। लिहाज़ा मेरी राय ये है की तुम लोग उस दस्तावेज़ को निकाला क्र देखो अगर वाक़ई उसको कीड़ो ने खा लिया है जब तो उसको चाक कर के फेक दो। और अगर मेरे भतीजे का कहना गलत शाबीत हुआ तो में मुहम्मद ﷺ को तुम्हारे हवाले कर दूंगा।

🔹ये सुन कर मूतइम बिन अदि काबे के अंदर गया और दस्तावेज़ को उतार लाया और सब लोगो ने उस को देखा तो वाक़ई अल्लाह عزوجل के नाम के सिवा पुरे दस्तावेज़ को कीड़ो ने खा लिया था।

🔹मूतइम बिन अदि ने सबके सामने दस्तावेज़ की फाड़ कर फेक दिया। और फिर कुरैश के चन्द बहादुर बा वुज़ूदे की ये सब के सब उस वक़्त कुफ़्र की हालत में थे हथियार ले कर घाटी में पहुचे और ख़ानदाने बनू हाशिम के एक एक आदमी को वहा से निकाल लाए और उनको उन के मकानों में आबाद कर दिया।

🔹ये वाक़ीया सी. 10 न-बवी का है। मन्सूर बिन इकराम जिस ने इस दस्तावेज़ को लिखा था उस पर ये क़हर इलाही टुट पड़ा की उसका हाथ शल हो कर सुख गया।

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✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 140-141

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💔ग़म का साल सी. 10 नबवी💔

🌴हुज़ूरे अक़्दस ﷺ "शअबे अबी तालिब" से निकल कर अपने घर में तशरीफ़ लाए और चन्द ही रोज़ क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश के ज़ुल्मो सितम से कुछ अमान मिली थी की अबू तालिब बीमार हो गए और घाटी से बाहर आने के 8 महिने बाद इनका इंतिक़ाल हो गया।

🔹अबू तालिब की वफ़ात हुज़ूर ﷺ के लिये एक बहुत ही जां गुदाज़ और रूह फरासा हादिसा था,

🔹क्यू की बचपन से जिस तरह प्यार व महब्बत के साथ अबू तालिब ने आप ﷺ की परवरिश की थी और ज़िन्दगी के हर मोड़ पर जिस जां निषारि के साथ आप की नुसरत व दस्त गिरी की और आप के उमदुष्मनो के मुक़ाबिल सीना सिपर हो कर जिस तरह आलामो मसाइब् का मुक़ाबला किया इस को भला हुज़ूर किस तरह भूल सकते थे।

📨Continue.....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 141-142

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💔अबू तालिब का ख़ातिम💔

🔹जब अबू तालिब मरजुल मौत में मुब्तला हो गए तो हुज़ूर ﷺ उनके पास तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया की ऐ चचा !
🔹आप कलिमा पढ़ लीजिये। ये वो कलिमा है की इस के सबब से में खुदा के दरबार में आप की मग्फिरत के लिये इसरार करूँगा।

🔹उस वक़्त अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या अबू तालिब के पास मौजूद थे। उन दोनों ने अबू तालिब से कहा ऐ अबू तालिब ! क्या आप अब्दुल मुत्तलिब के दिन से रु गर्दानी करेंगे ? और ये दोनों बराबर अबू तालिब से हुफ्तगु करते रहे यहाँ तक की अबू तालिब ने कलिमा नहीं पढ़ा बल्कि उनकी ज़िन्दगी का आखरी क़ौल ये रहा की "में अब्दुल मुत्तलिब के दन पर हु" ये कहा और उनकी रूह परवाज़ कर गई।

🔹हुज़ूर ﷺ को इससे बड़ा सदमा पंहुचा और आप ने फ़रमाया की में आप के लिये उस वक़्त तक दुआए मग्फिरत करता रहूँगा जब तक अल्लाह तआला मुझे मना न फ़रमाएगा।

🔹इसके बाद ये आयत नाज़िल हो गई
☝🏼नबी और मुअमिनीन के लिये ये जाइज़ ही नहीं की वो मुशरिकीन के लिये मग्फिरत की दुआ मांगे अगर्चे वो रिश्तेदार ही क्यू न हो। जब इन्हें मालुम हो चूका है की मुशरिकीन जहन्नमी है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 142-143

🔁जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...
👏तालिबे दुआ
✨ख़ादिमें DEEN-E-NABI ﷺ
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💔हज़रते बीबी ख़दीजा की वफ़ात💔

🌴हुजरे अक़्दस के क़ल्बे मुबारक पर अभी अबू तालिब के इंतिक़ाल का ज़ख्म ताज़ा ही था की अबू तालिब की वफ़ात के तिन दिन या पांच दिन के बाद हज़रते बीबी ख़दीजा भी दुन्या से रिहलत फरमा गई।

✨मक्का में अबू तालिब के बाद सब से ज्यादा जिस हस्ती ने रहमते आ'लम की नुसरत व हिमायत में अपना तन, मन, धन सब कुछ क़ुर्बान किया वो हज़रते बीबी ख़दीजा की ज़ाते गिरामी थी।

✨जिस वक़्त दुन्या में कोई आप का मुख्लिस मुशीर और ग़म ख्वार नहीं था, हज़रते बीबी ख़दीजा ही थी की हर परेशानी के मौक़ा पर पूरी जां निषार के साथ आप की ग़म ख्वारी और दिलदारी करती रहती थी
✨इसलिये अबू तालिब और हज़रते बीबी ख़दीजा दोनों की वफ़ात से आप के मददगार और ग़म गुसार दोनों ही दुन्या से उठ गए जिस से आप के क़ल्बे नाजुक पर इतना अज़ीम सदमा गुज़रा की आप ने उस साल का नाम "आ'मूल हुज़्न" यानि ग़म का साल रख दिया।

✨हज़रते बीबी ख़दीजा ने रमज़ान सी. 10 नबवी में वफ़ात पाई। ब वक़्ते वफ़ात पैसठ बरस की उम्र थी। मक़ामे हुजून (क़ब्रिस्तान जन्नतुल मअ'ला) में मदफूं हुई।
🌴हुज़ूर खुद ब नफ़्से नफ़ीस क़ब्र में उतरे और अपने मुक़द्दस हाथो से उन की लाश को ज़मीन के सुपुर्द फ़रमाया।

हवाला
सीरते मुस्तफा, सफा 143-144

📶जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...
👏तालिबे दुआ
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🚶🏻ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र🚶🏻

⤵post~01

🌾मक्का वालो के इनाद और सरकशी को देखते हुए जब हुज़ूर ﷺ को उन लोगो के ईमान लाने से मायूसी नज़र आई तो आप ने तब्लीगे इस्लाम के लिये मक्का के कुर्बो जवार की बस्तियों का रुख किया।

🌾चुनान्चे इस सिलसिले में आप ﷺ ने ताइफ़ का भी सफ़र फ़रमाया। इस सफ़र में हुज़ूर ﷺ के गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिष رضي الله تعالي عنه भी आप के हमराह थे।

🌾ताइफ़ में बड़े बड़े उमरा और मालदार लोग रहते थे। उन रइसो में "अम्र" का खानदान तमाम क़बाइल का सरदार शुमार किया जाता था। ये लोग तिन भाई थे। अब्दे यालील, मसऊद, हबीब। हुज़ूर ﷺ इन तीनो के पास तशरीफ़ ले गए और इस्लाम की दा'वत दी।

🌾उन तीनो ने क़बूल नहीं किया बल्कि इन्तिहाई बेहूदा और गुस्ताखाना जवाब दिया। उन बद नसीबो ने इसी पर बस नहीं कीया बल्कि ताइफ़ के शरीर गुंडों को उभार दिया की ये लोग हुज़ूर ﷺ के साथ बुरा सुलूक करे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 144

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⤵Post~02

🚨चुनान्चे लुच्चों लफंगों का ये शरीर गुरौह हर तरफ से आप ﷺ पर टूट पड़ा और ये शरारतो के मुजस्स्मे आप पर पथ्थर बरसाने लगे यहाँ तक की आप के मुक़द्दस पाउ ज़ख्मो से लहू लुहान हो गए। और आप ﷺ के मोज़े और ना'लैन मुबारक खून से भर गए।

🌴जब आप ﷺ ज़ख्मो से बेताब हो कर बैठ जाते तो ये ज़ालिम इन्तिहाई बे दर्दी के साथ आप का बाज़ू पकड़ कर उठाते और जब आप ﷺ चलने लगते तो फिर आप पर पथ्थरो की बारिश करते और साथ साथ ताना ज़नी करते। गालिया देते। तालिया बजाते। हँसी उड़ाते।

🌾हज़रते ज़ैद बिन हारिष رضي الله تعالي عنه दौड़ दौड़ कर हुज़ूर ﷺ पर आने वाले पथ्थरो को अपने बदन पर लेते थे और हुज़ूर ﷺ को बचाते थे यहाँ तक की वो भी खून में नहा गए और ज़ख्मो से निढाल हो कर बे क़ाबू हो गए। यहाँ तक की आखिर आप ﷺ ने अंगूर के एक बाग़ में पनाह ली।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 145

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🚶🏻ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र🚶🏻

⤵Post~03

🌴हमारे आक़ा ﷺ ने जिस बाग़ में पनाह ली थि वो बाग़ मक्का के मशहूर काफ़िर उत्बा बिन रबीआ का था। हुज़ूर ﷺ का ये हाल देख कर उत्बा और उसके भाई शैबा बिन रबीआ को आप पर रहम आ गया और काफ़िर होने के बा वुज़ूद खानदानी हमिय्यत ने जोश मारा।

💞चुनान्चे उन दोनों काफ़िरो ने हुज़ूर ﷺ को अपने बाग़ में ठहराया और अपने नसरानी गुलाम "अद्दास" के हाथ से आप की खिदमत में अंगूर का एक ख़ोशा भेजा।

🌴हुज़ूर ﷺ ने बिस्मिल्लाह पढ़ कर खोशे को हाथ लगाया तो अद्दास तअज्ज़ुब से कहने लगा की इस अतराफ़ के लोग तो ये कलिमा नहीं बोला करते !

🌴हुज़ूर ﷺ ने उससे दरयाफ़्त फ़रमाया की तुम्हारा वतन कहा है ? अद्दास ने कहा की में शहर नैनवा का रहने वाला हु।

🌴आप ﷺ ने फ़रमाया की वो हज़रते युनुस बिन मत्ता अलैहिस्सलाम का शहर है। वो भी मेरी तरह खुदा के पैगम्बर थे।

💗ये सुन कर अद्दास आप ﷺ के हाथ पाउ चूमने लगा और फ़ौरन ही आप का कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 145

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⤵Post~04

🌾इस सफ़र में जब आप ﷺ मक़ाम "नख़ला" में तशरीफ़ फ़रमा हुए और रात को नमाज़े तहज्जुद में क़ुरआने मजीद पढ़ रहे थे तो "नसिबैन" के जिन्नों की एक जमाअत आप की खिदमत में हाजिर हुई और क़ुरआन सुन कर य सब जीन्न मुसलमान हो गए।

🌾फिर उन जिन्नों ने लौट कर अपनी क़ौम को बताया तो मक्कए मुकर्रमा में जिन्नों की जमाअत ने फ़ौज दर फ़ौज़ आ कर इस्लाम क़बूल किया।

🌾चुनान्चे क़ुरआने मजीद में सूरए जिन्न की इब्तदाई आयतो में खुदा वन्दे आ'लम ने इस वक़ीए का तज़्क़िरा फ़रमाया है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 145-146

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⤵Post~05

🌴मक़ामे नख़ला में हुज़ूर ﷺ ने चन्द दिनों तक क़याम फ़रमाया। फिर आप मक़ामे "हिरा" में तशरीफ़ लाए और क़ुरैश के एक मुमताज़ सरदार मुतइम बिन अदी के पास ये पैगाम भेजा की क्या तुम मुझे अपनी पनाह में ले सकते हो ?

🌾अरब का दस्तूर था की जब कोई इनसे हिमायत और पनाह तलब करता तो वो अगर्चे कितना ही बड़ा दुश्मन क्यू न हो वो पनाह देने से इंकार नहीं कर सकते थे।

🌾चुनान्चे मुतइम ने हुज़ूर ﷺ को अपनी पनाह में ले लिया और उसने अपने बेटो को हुक्म दिया की तुम लोग हथियार लगा कर हरम में जाओ और मुतइम खुद घोड़े पर सुवार हो गया और हुज़ूर ﷺ को अपने साथ मक्का लाया और हरमे का'बा में अपने साथ ले कर गया और मज्मए आम में एलान कर दिया की मेने मुहम्मद को पनाह दी है।

🌾इसके बाद हुज़ूर ﷺ ने इत्मिनान के साथ हजरे अस्वद को बोसा दिया और का'बे का तवाफ़ करके हरम में नमाज़ अदा की और मुतइम और इसके बेटो ने तलवारो के साए में आप को आप के दौलत खाने तक पंहुचा दिया।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 146

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⤵Post~06

🌾इस सफ़र में मुद्दतो बाद एक मर्तबा उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा ने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया या रसूलल्लाह ﷺ क्या जंगे उहूद के दिनसे भी ज्यादा सख्त कोई दिन आप पर गुज़रा है ?

🌴तो आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की हा ऐ आइशा ! वो दिन मेरे लिये जंगे उहूद के दिन से भी ज्यादा सख्त था जब मेने ताइफ़ में वहा के एक सरदार "अब्दे यालील" को इस्लाम की दा'वत दी। उसने दा'वते इस्लाम को हक़ारत के साथ ठुकरा दिया और अहले ताइफ़ ने मुझ पर पथराव किया।

🌴में इस रंजो ग़म में सर झुकाए चलता रहा यहा तक की मक़ामे "क़नुश्शआलिब" में पहुच कर मेरे होशो हवस बजा हुए।

🌾वहा पहुच कर जब मेने सर उठाया तो क्या देखता हु की एक बदली मुझ पर साया किये हुए है उस बादल में से हज़रते जिब्रील अलैहिस्सला ने मुझे आवाज़ दी और कहा की अल्लाह तआला ने आप की क़ौम का क़ौल और उन का जवाब सुन लिया और अब आप की खिदमत में पहाड़ो का फिरिश्ता हाज़िर है। ताकि वो आप के हुक्म की तामील करे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 146-147

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⤵Post~07

🌴हुज़ूर ﷺ का बयान है की पहाड़ो का फिरिश्ता मुझे सलाम करके अर्ज़ करने लगा की ऐ मुहम्मद ﷺ ! अल्लाह तआला ने आप की क़ौम का क़ौल और उन्हों ने आप को जो जवाब दिया है वो सब किछ सुन लिया है और मुझको आप की खिदमत में भेजा है ताकि आप मुझे जो चाहे हुक्म दे और में आप का हुक्म बजा लाऊ।

🌴अगर आप चाहते है की में "अख्शबैन" (अबू कुबैस और क़ईक़आन) दोनों पहाड़ो को इन कुफ्फार पर उलट देता हु।

🌴ये सुन कर हुज़ूर रहमते आ'लम ﷺ ने जवाब दिया की नही बल्कि में उम्मीद करता हु की अल्लाह तआला इन की नस्लो से अपने ऐसे बन्दों को पैदा फ़रमाएगा जो सिर्फ अल्लाह तआला की ही इबादत करेंगे और शिर्क नहीं करेंगे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 147

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🌿क़बाइल में तब्लीगे इस्लाम🌿

⤵Post~01

🌴हुज़ूर ﷺ का तरीक़ा था की हज के ज़माने में जब की दूर दूर के अरबी क़बाइल मक्का में जमा होते थे तो हुज़ूर ﷺ तमाम क़बाइल में दौरा फ़रमा कर लोगो को इस्लाम की दा'वत देते थे।

🌼इसी तरह अरब में जा बजा बहुत से मेले लगते थे जिन में दूरदराज़ के क़बाईले अरब जमा होते थे। इन मेलो में आप ﷺ ने क़बाईले अरब के सामने दा'वते इस्लाम पेश फ़रमाई।

🌼अरब के क़बाइल बनू आमिर, मुहारीब, फ़ज़ारा, गस्सान, मुर्रह, सुलैम, अब्स, बनू नसर्, कन्दा, क्लब, उज़्रा, हज़ारिमा वग़ैरा इन सब मशहूर क़बाइल के सामने आप ﷺ ने इस्लाम पेश फ़रमाया

🚨मगर आप ﷺ का चचा अबू लहब हर जगह आप के साथ साथ जाता और जब आप किसी क़बीले के सामने वा'ज़ फ़रमाते तो अबू लहब चिल्ला चिल्ला कर ये कहता की "ये दिन से फिर गया है" ये झूट कहता है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 148

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🌿क़बाइल में तब्लीगे इस्लाम🌿

⤵Post~02

🔗क़ाबिलए बनू जहल बिन शैबान के पास जब आप ﷺ तशरीफ़ ले गए तो हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه भी आप के साथ थे।

🔗इस क़ाबिले का सरदार "मफरूक़" आप ﷺ की तरफ मुतवज्जेह हुवा और उसने कहा की ऐ कुरैशी बरादर ! आप लोग के सामने कौन सा दिन पेश करते है ?

🔗आप ﷺ ने फ़रमाया की खुदा एक है और में उस का रसूल हु। फिर आप ने सूरए अनआ'म की चन्द आयते तिलावत फ़रमाई।

🔗ये सब लोग आपकी तक़रीर और क़ुरआनी आयतो की ताशीर से इन्तिहाई मुतअश्शिर हुए लेकिन ये कहा की हम अपने उस खानदानी दिन को भला एक दम कैसे छोड़ सकते है ? जिस पर हम बरसहा बरस से करबंद है।

🔗इसके इलावा हम मुल्के फारस के बादशाह किसरा के ज़ेरे अशर और रईय्यत है। और हम ये मुआहदा कर चुके है की हम बादशाहे किसरा के सिवा किसी और के ज़ेरे अशर नहीं रहेंगे।

🔗हुज़ूर ﷺ ने उन लोगो की साफ़गोई की तारीफ़ फ़रमाई और इर्शाद फ़रमाया की खैर खुदा अपने दिन का हामी व नासिर और मुईन व मददगार है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 148-149

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🎆मदीने में आफ्ताबे रिसालत की तजल्लिया🎆

♻Post~01

🌴मदिनए मुनव्वरह का पुराना नाम "यषरब" है। जब हुज़ूर ﷺ ने इस शहर में सुकूनत फ़रमाई तो उसका नाम मदिनतुन्नबी (नबी का शहर) पद पड़ गया। फिर ये नाम मुख़्तसर हो कर मदीना मशहूर हो गया।

🌴तारीखी हेशिय्य्त से ये बहुत पुराना शहर है। हुज़ूर ﷺ ने जब एलाने नुबुव्वत फ़रमाया तो इस शहर में अरब के दो क़बीले "औस" और "ख़ज़रज" और कुछ यहूदी आबाद थे। औस व ख़ज़रज क़ुफ़्फ़ारे मक्का की तरह "बूत परस्त" और यहूदी "अहले किताब" थे।

🌴औस व ख़ज़रज पहले तो बड़े इत्तिफ़ाक़ो इत्तिहाद के साथ मिलजुल कर रहते थे मगर फिर अरबो की फितरत के मुताबिक़ इन दोनों क़बीलों में लड़ाईया शुरू हो गई। यहाँ तक की आखिरी लड़ाई जो तारीखे अरब में जंगे बआष के नाम से मश्हूर है इस क़दर हौलनाक और खुरेज़ हुई की इस लड़ाई में औस व ख़ज़रज के तक़रीबन तमाम नामवर बहादुर लड़ भीड़ कर कट मर गए और ये दोनों क़बीले बेहद कमज़ोर हो गए।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा  149

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✨मदिने में इस्लाम क्यू कर फैला✨

⭕अन्सार बूत परास्त थे मगर यहूदियो के मेलजोल से इतना जानते थे की नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा का जूहुर होने वाला है
⭕और मदीने के यहूदी अकषर अन्सार के दोनों क़बीलों औस व ख़ज़रज को धमकिया भी दिया करते थे की नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा के जूहुर के वक़्त हम उन के लशलर में शामिल हो कर तुम बूत परस्तो को दुन्या से नसतो नाबूद कर डालेंगे
⭕इस लिये नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा की तशरीफ़ आवरी का यहूद और अन्सार दोनों को इंतज़ार था।

🌻सी 11 नबवी में हुज़ूर ﷺ मामूल के मुताबिक़ हज में आने वाले क़बाइल को दा'वते इस्लाम देने के लिये मिना के मैदान में तशरीफ़ ले गए और क़ुरआन मजीद की आयते सुना सुना कर लोगो के सामने इस्लाम पेश फ़रमाने लगे।

🌻हुज़ूर ﷺ मिनाइ अक़बा (घाटी) के पास जहा आज "मस्जिदुल अक़बा" है तशरीफ़ फ़रमा थे की क़बिलए ख़ज़रज के 6 आदमी आप के पास आ गए।
🌻आप ﷺ ने उन लोगो से उनका नाम व नसब पूछा। फिर क़ुरआन की चन्द आयते सूना कर उन लोगो को इस्लाम की दा'वत दी जिससे ये लोग बेहद मुतशशिर हो गए और एक दूसरे का मुह देख कर वापसी में ये कहने लगे की यहूदी जिस नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा किं खुश खबरी देते रहे है यक़ीनन वो नबी यही है।
🌻लिहाज़ा कही ऐसा न हो की यहूदी हमसे पहले इस्लाम की दा'वत क़बूल करले।

🌻ये कह कर सब एक साथ मुसलमान हो गए और मदीने जा कर अपने अहले खानदान और रिश्तेदारो को भी इस्लाम की दा'वत दी।
🌻उन 6 खुश नसीबो के नाम
1⃣हज़रते उक़्बा बिन आमिर बिन नाबि। 2⃣हज़रते अबू उमामा असअद बिन जरारह 3⃣हज़रते औफ़ बिन हारिष 4⃣हज़रते राफ़ेअ बिन मालिक 5⃣हज़रते कुत्बा बिन आमिर बिन हदीदा 6⃣हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह बिन रय्याब। رضي الله تعالي عنه

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा  150-151

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🌙8 रबी अल-आखर 1437🌙
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💫बैअ'ते अ'क़बा ऊला💫

♻Part~01

✨दूसरे साल सी. 12 नबवी में हज के मौक़ा पर मदीने के बारह अश्खास मिना की उसी घाटी में छुप कर मुशर्रफ़ ब इस्लाम हुए और हुज़ूर ﷺ से बैअ'त हुए। तारीख़े इस्लाम में इस बैअ'त का नाम "बैअ'ते अ'क़बा ऊला" है।

✨साथ ही इन लोगो ने हुज़ूर ﷺ से ये दर ख़्वास्त भी की, की अह्कामे इस्लाम की तालीम के लिये कोई मुअल्लिम भी इन लोगो के साथ कर दिया जाए।

🌴चुनान्चे हुज़ूर ﷺ ने हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه को इन लोगो के साथ मदिनए मुनव्वरह भेज दिया। वो मदीने में हज़रते असअद बिन ज़रारह رضي الله تعالي عنه के मकान पर ठहरे और अन्सार के एक एक घर में जा जा कर इस्लाम की तब्लीग करने लगे

✨रोज़ाना एक दो नए आदमी आगोशे इस्लाम में आने लगे। यहा तक की रफ्ता रफ्ता मदीने से कुबा तक घर घर इस्लाम फ़ैल गया।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 151,152

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            🌙9 रबी अल-आखर 1437🌙
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🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

✨बैअ'ते अ'क़बा ऊला✨

♻Post~02

🌱क़बिलए औस के सरदार हज़रते साद बिन मुआम बहुत ही बहादुर और बा अशर शख्स थे।

🌱हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه ने जब उनके सामने इस्लाम की दा'वत पश की तो उन्होंने पहले तो इस्लाम से नफ़रत व बेज़ारी ज़ाहिर की

🌱मगर जब हज़रते मुसअब رضي الله تعالي عنه ने उन को क़ुरआन पढ़ कर सुनाया तो एक दम उनका दिल पसीज गया और इस क़दर मुतअशशिर हुए की सआदते ईमान से सरफ़राज़ हो गए।

🌱इनके मुसलमान होते ही इनका क़बीला "औस" भी दामने इस्लाम में आ गया।

🌱उसी साल बक़ौल मश्हूर माहे रजब की 27 वी रात को हुज़ूर ﷺ को ब हालते बेदारी "मे'राजे जिस्मानी" हुई। और इसी सफ़रे मे'राज में 5 नमाज़े फ़र्ज़ हुई जिस का तफसिलि बयान इन्शा अल्लाह मो'जिज़ात के बाब में आएगा।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 152

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✨बैअते अक़बा षानिय✨

♻Part~01

⏳इस के एक साल बाद सी. 13 नबवी में हज के मौके पर मदीने के तक़रीबन 72 अश्खास ने मिना की उसी घाटी में दस्ते हक़ परस्त ﷺ पर बैअते की और ये अहद किया की हम लोग आप की और इस्लाम की हिफाज़त के लिये अपनी जान कुर्बान कर देंगे।

▫इस मौक़ा पर हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास भी मौजूद थे जो अभी तक मुसलमान नहीं हुए थे। उन्होंने मदीने वालो से कहा की देखो ! मुहम्मद ﷺ अपने खानदान बनी हाशिम में हर तरह मोहतरम और बा इज़्ज़त है।

▫हम लोगोने दुश्मनो के मुक़ाबले में सीना सिपर हो कर हमेशा इन की हिफाज़त की है। अब तुम लोग इनको अपने वतन में ले जाने के ख्वाहिश मन्द हो तो सुन लो ! अगर मरते दम तक तुम लोग इन का साथ दे सको तो बेहतर है वरना अभी से कनारा कश हो जाओ।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 152-153

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✨बैअते अक़बा षानिय✨

♻Part~02

🌴हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास की बात सुन कर हज़रते बराअ बिन अज़ीब तैश में आ कर कहने लगे की हम लोग तलवारो की गोद में पले है।

▪हज़रते बराअ इतना ही कहने पाए थे की हज़रते अबुल हैशम ने बात काटते हुए ये कहा की या रसूलुल्लाह ﷺ ! हम लोगो के यहूदियो से पुराने ताल्लुक़ात है। अब ज़ाहिर है की हमारे मुसलमान हो जाने के बाद ये ताल्लुक़ात टूट जाएंगे। कही ऐसा न हो की जब अल्लाह तआला आप को गलबा अता फरमाए तो आप हम लोगो को छोड़ कर अपने वतन मक्का चले जाए।

🌴ये सुन कर हुज़ूर ﷺ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की तुम लोग इत्मीनान रखो की तुम्हारा खून मेरा खून है और यकीं करो मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है। में तुम्हारा हु और तुम मेरे हो। तुम्हारा दुश्मन मेरा दुश्मन और तुम्हारा दोस्त मेरा दोस्त है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 153

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✨बैअते अक़बा षानिय✨

♻Part~03

👉🏾जब अन्सार ये बैअत कर रहे थे तो हज़रते साद बिन ज़रारह ने या हज़रते अब्बास बिन नज़ला ने कहा की मेरे भाइयो ! तुम्हे ये भी खबर है ? की तुम लोग किस चीज़ पर बैअत कर रहे हो ? खूब समझ लो की ये अरबो अज़म् के साथ एलाने जंग है।

👉🏾अन्सार ने तैश में आ कर निहायत ही पुरजोश लहजे में कहा की हा ! हा ! हम लोगो इसी पर बैअत कर रहे है।

👉🏾बैअत हो जाने के बाद आप ने इस जमाअत में से बारह आदमियो को नकीब (सरदार) मुक़र्रर फ़रमाया। इनमे 9 आदमी क़बिलए ख़ज़रज के और तिन अश्खास क़बिलए औस के थे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 154

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🚶🏻हिजरते मदीना🚶🏻

👉🏾मदिनए मुनव्वरह में जब इस्लाम और मुसलमानो को एक पनाह गाह मिल गई तो हुज़ूर ﷺ ने सहाबाए किराम को आम इजाज़त दे दी की वो मक्का से हिजरत करके मदीना चले जाए।

👉🏾चुनान्चे सब से पहले हज़रते अबू सलमा رضي الله تعالي عنه ने हिजरत की। इसके बाद यके बाद दीगरे दूसरे लोग भी मदीना रवाना होने लगे।

👆🏾जब क़ुफ़्फ़ारे कुरैश को पता चला तो उन्हों ने रोक टोक शुरुअ कर दी मगर छुप छुप कर लोगो ने हिजरत का सिलसिला जारी रखा यहा तक की रफ्ता रफ्ता बहुत से सहाबाए किराम मदीना चले गए। सिर्फ वोही हज़रात मक्का में रह गए जो या तो काफ़िरो की क़ैद में थे या अपनी मुफलिसी की वजह से मजबूर थे।

🌴हुज़ूरे अक़्दस ﷺ को चुकी अभी तक खुदा عزوجل की तरफ से हिजरत का हुक्म नहीं मिला था इसलिये आप मक्का ही में मुक़ीम रहे और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ और हज़रते अली मुर्तज़ा رضي الله تعالي عنه को भी आप ने रोक लिया था। लिहाज़ा ये दोनों शमए नबुव्वत के परवाने भी आप ही के साथ मक्का में ठहरे हुए थे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 155-156

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⭕कुफ्फार कॉन्फरन्स⭕

♻Part~01

👉🏾जब मक्का के काफ़िरो ने ये देख लिया की हुज़ूर ﷺ और मुसलमानो के मददगार मक्का से बाहर मदीना में भी हो गए और मदीना जाने वाले मुसलमानो को अन्सार ने अपनी पनाह में ले लिया है तो क़ुफ़्फ़ारे मक्का को ये खतरा महसूस होने लगा की कहि ऐसा न हो की मुहम्मद ﷺ भी मदीना चले जाए और वहा से अपने हामियो की फ़ौज ले कर मक्का पर चढ़ाई न कर दे।

👉🏾चुनान्चे इस खतरे का दरवाज़ा बन्द करने के लिये क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने अपने पंचायत घर में एक बहुत बड़ी कॉन्फरन्स मूनअक़ीद की। और ये क़ुफ़्फ़ारे मक्का का ऐसा ज़बर दस्त नुमाइंदा इज्तिमा था की मक्का का कोई भी ऐसा दानिश्वर और बा अशर शख्स न था जो इस कॉन्फरन्स में शरीक न हुवा हो।

👉🏾खुशुशियत के साथ अबू सुफ़यान, अबू जहल, उत्बा, जबीर बिन मूतइम, नज़र बिन हारिष, अबुल बख्तरि, जमआ बिन अस्वद, हकीम बिन हिजाम, उमय्या बिन खलफ वग़ैरा तमाम सेदाराने कुरैश इस मजलिस में मौजूद थे।

👹शैताने लइन भी कम्बल ओढ़े एक बुज़ुर्ग शैख़ की सूरत में आ गया। कुरैश के सरदारो ने नाम व नसब पूछा तो बोला की में "शैख़ नज्द" हु इस लिए ये कॉन्फरन्स में आ गया हु की में तुम्हारे मुआमले में अपनी राय भी पेश कर दू।

👆🏾ये सुन कर कुरैश के सरदारो ने इब्लीस को भी अपनी कॉन्फरन्स में शरीक कर लिया और कॉन्फरन्स की करवाई शुरू हो गई।

Continue.....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 156

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❗कुफ्फार कॉन्फरन्स❗

♻Part~02

🌴जब हुज़ूर ﷺ का मुआमला पेश हुवा तो अबुल बख़्तरि ने ये राय दी की इनको किसी कोठरी में बंद करके इन के हाथ पाऊ बांध दो और एक सुराख से खाना पानी इनको दे दिया करो।

👹शैखे नजदी (शैतान) ने कहा की ये राय अच्छी नहीं है। खुदा की क़सम ! अगर तुम लोगो ने उन को किसी मकान में क़ैद कर दिया तो यक़ीनन उनके जां निषार असहाब को इसकी खबर लग जाएगी और वो अपनी जान पर खेल कर उनको क़ैद से छुड़ा लेंगे।

👉🏾अबुल अस्वद रबीआ बिन अम्र आमिर ने ये मशवरा दिया की इनको मक्का से निकाल दो ताकि ये किसी दूसरे शहर में जा कर रहे। इस तरह हम को इन के क़ुरआन पढ़ने और इनकी तब्लीगे इस्लाम से नजात मिल जाएगी।

👹ये सुन कर शैख़ नजदी ने बिगड़ कर कहा की तुम्हारी इस राय पर लानत, क्या तुम लोगो को मालुम नहीं की मुहम्मद ﷺ के कलाम में कितनी मिठास और ताशीर व दिलकशी है ? खुदा की क़सम ! अगर तुम लोग इनको शहर बदर कर के छोड़ डोंगे तो ये पुरे मुल्के अरब में लोगो को क़ुरआन सुना सुना कर तमाम क़बाइले अरब को अपना ताबे फरमान बना लेगें और फिर अपने साथ एक अ'ज़िम लश्कर कोल कर तुम और ऐसी यलगार कर देंगे की तुम इनके मुक़ाबले से आजिज़ व लाचार हो जाओगे और फिर बजुज़ इस के की तुम इनके गुलाम बन कर रहो कुछ बनाए न बनेगी इस लिये इनको जिला वतन करने की तो बात ही मत करो।

📨Continue.....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा, 157

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❗कुफ्फार कॉन्फरन्स❗

♻Part~03

👉🏾अबू जहल बोला की साहिबो ! मेरे ज़ेहन में एक राय है जो अब तक किसी को नहीं सूझी

👆🏾ये सुनकर सब के कान खड़े हो गए और सब ने बड़े इश्तियाक़ के साथ पूछा की कहिये वो क्या है ?

👉🏾तो अबू जहल ने कहा की मेरी राय ये है की हर क़बीले का एक एक मश्हूर बहादुर तलवार ले कर उठ खड़ा हो और सब यक्बारगि हम्ला कर के मुहम्मद ﷺ को कत्ल कर डाल।

👆🏾इस तदबीर से खून करने का जुर्म तमाम क़बीलों के सर पर होगा। ज़ाहिर है की ख़ानदाने बनू हाशिम इस खून का बदला लेने के लिये तमाम क़बीलों से लड़ने की ताक़त नहीं रख सकते।

👉🏾लिहाज़ा यक़ीनन वो खून-बहा लेने पर राज़ी हो जाएगे और हम लोग मिलजुल कर आसानी के साथ खून-बहा की रक़म अदा कर देंगे।

📨Continue...

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 157-158

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❗कुफ्फार कॉन्फरन्स❗

♻Part~04

👹अबू जहल की ये खुनी तज्वीज़ सुन कर शैख़ नजदी मारे ख़ुशी के उछल पड़ा और कहा की बेशक ये तदबीर बिलकुल दुरुस्त है। इस के सिवा और कोई तज्वीज़ क़ाबिले क़ुबूल नहीं हो सकती।

👉🏾चुनान्चे तमाम शुरकए कॉन्फ्रेंस ने इत्तिफाके राय से इस तज्वीज़ को पास कर दिया और मजलिसे शूरा बरखास्त हो गई

👉🏾और हर शख्स ये खौफ़नाक अज़्म ले कर अपने अपने घर चला गया।

☝🏽खुदा वन्दे कुद्दूस ने क़ुरआने मजीद की इस आयत में ये वक़ीए का ज़िक्र फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाया की.....
☝🏽(ऐ महबूब याद कीजिये) जिस वक़्त कुफ्फार आप के बारे में खुफ्या तदबीर कर रहे थे की आप को क़ैद करदे या क़त्ल करदे या शहर बदर करदे ये लोग खुफ्या तदबीर कर रहे थे और अल्लाह عزوجل खुफ्या तदबीर कर रहा था और अल्लाह عزوجل की पोशीदा तदबीर सब से बेहतर है।

☝🏽अल्लाह तआला की खुफ्या तदबीर क्या थी ? इस का जल्वा देखिये की किस तरह उस ने अपने हबीब की हिफाज़त फ़रमाई और कुफ्फार की सारी स्किम को किस तरह उस क़ादिरे क़य्यूम ने तहस नहस फरमा दिया।
✔इन्शा अल्लाह कल की पोस्ट में....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 158

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🚶🏻हिजरते रसूल का वाक़ीआ🚶🏻

♻Part~01

👉🏾जब कुफ्फार हुज़ूर ﷺ के क़त्ल पर इत्तिफ़ाक़ करके कॉन्फरन्स ख़त्म कर चुके और अपने अपने घरो को रवाना हो गए तो हज़रते ज़ीब्रिले अमिन अलैहिमुस्सलाम रब्बुल आ'लमिन का हुक्म ले कर नाज़िल हो गए की ऐ महबूब ﷺ ! आज रात को आप अपने बिस्तर पर न सोए और हिजरत कर के मदीना तशरीफ़ ले जाए।

👉🏾चुनान्चे ऐन दो पहर के वक़्त हुज़ूर ﷺ हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के घर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से फ़रमाया की सब घर वालो को हटा दो कुछ मशवरा करना है।

👉🏾हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप पर मेरे माँ बाप कुर्बान यहा आप की अहलिया (हज़रते आइशा) के सिवा और कोई नहीं है।
(उस वक़्त हज़रते आइशा से हुज़ूर ﷺ की शादी हो चुकी थी)

🌴हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया की ऐ अबू बक्र् ! अल्लाह तआला ने मुझे हिजरत की इजाज़त फरमा दी है।

👉🏾हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया की मेरे मा बाप आप पर कुर्बान ! मुझे भी हमराही का शरफ़ अता फरमाइये।

🌴आप ﷺ ने उन की दरख्वास्त मंज़ूर फरमा ली।

📨Continue....

✒हवाला
📚सीरते मिस्तफा, सफा 159

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🚶🏻हिजरते रसूल का वाक़ीआ🚶🏻

🔄Part~02

🌻हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने 4 महीने से दो उतनिया बबूल की पत्ती खिला खिला कर तैयात की थी की हिजरत के वक़्त ये सुवारी के काम आएगी।

👉🏾अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ ! इनमे सेनक उतनी आप क़बूल फरमा ले। आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की क़बूल है मगर में इस की क़ीमत दूंगा। हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने बा दिले ना ख्वास्ता फ़रमाने रिसालत से मजबूर हो कर इसको क़बूल किया।

🍂हज़रते आइशा सिद्दीक़ा तो उस वक़्त बहुत कम उम्र थी लेकिन उनकी बड़ी बहन हज़रते बीबी अस्मा ने सामाने सफर दुरुस्त किया और तोषादान में खाना रख कर अपनी कमर के पटके को फाड़ कर दो टुकड़े किये। एक से तोषादान को बाधा और दूसरे से मशक का मुह बांधा। ये वो क़ाबिले फख्र शरफ़ है जिस की बिना पर इनको जातुन्नताकैन (दो परके वाली) के मुअज़्ज़ज़् लक़ब से याद किया जाता है।

👉🏾इसके बाद हुज़ूर ﷺ ने एक काफिर को जिस का नाम "अब्दुल्लाह बिन उरैक्ट" था जो रास्तो का माहिर था राहनुमाइ के लिये उजरत पर नोकर रखा और इन दोनों उतानियो को उसके सिपुर्द करके फ़रमाया की तिन रातो के बाद वो इन दोनों उटनियो को ले कर "गारे शौर" के पास आ जाए।

👆🏾ये सारा निज़ाम कर लेने के बाद हुज़ूर ﷺ अपने मकान पर तशरीफ़ लाए।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा  159-160

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🏡काशानए नबुव्वत का मुहासरा🏡

♻Part~01

👉🏾क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ काशानए नुबुव्वत को घेर लिया और इन्तिज़ार करने लगे की हुज़ूर सो जाए तो इन पर क़ातिलाना हम्ला किया जाए। उस वक़्त घर में हुज़ूर ﷺ के पास सिर्फ अली मुर्तज़ा थे।

👉🏾क़ुफ़्फ़ारे मक्का अगर्चे रहमते आ'लम के बद तरीन दुश्मन थे मगर उसके बा वुज़ूद हुज़ूर ﷺ की अमानत व दियानत पर कुफ़्फ़ार को इस क़दर एतिमाद था की वो अपने क़ीमती माल व सामान को हुज़ूर ﷺ के पास अमानत रखते थे।

👉🏾चुनान्चे उस वक़्त भी बहुत सी अमानतें काशानए नुबुव्वत में थी। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अली رضي الله تعالي عنه से फ़रमाया की तुम मेरी सब्ज़ रंग की चादर ओढ़ कर मेरे बिस्तर पर सो रहो और मेरे चले जाने के बाद क़ुरैश की तमाम अमानतें इन के मालिको को सोप कर मदीना चले आना।

📨Continue....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 160-161

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🏡काशानए नबुव्वत का मुहासरा🏡

♻Part~01

👉🏾ये बड़ा ही खौफ़नाक और बड़े सख्त खतरे का मौक़ा था। हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को मालुम था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का हुज़ूर को क़त्ल का इरादा कर चुके है मगर हुज़ूरे अक़्दस ﷺ के इस फरमान से की तुम क़ुरैश की सारी अमानतें लौटा कर मदीना चले आना हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को यक़ीने कामिल था की में ज़िन्दा रहूँगा और मदीने पहुँचूँगा

👉🏾इस लिये रसूलुल्लाह ﷺ का बिस्तर जो आज काटो का बिछौना था, हज़रते अली رضي الله تعالي عنه के लिये गुलो की सेज बन गया और आओ बिस्तर पर सुबह तक आराम के साथ मीठी मीठी नींद सोते रहे। अपने इसी कारनामे पर फख्र करते हुए शेरे खुदा ने अपने अशआर में फ़रमाया :

👉🏾तर्जुमा
मेने अपनी जान को खतरे में डाल कर उस ज़ाते गिरामी की हिफाज़त की जो ज़मीन पर चलने वालो और खानए काबा व हतिम का तवाफ़ करने वालो में सब से ज्यादा बेहतर और बुलंद मर्तबा है।

👉🏾तर्जुमा
रसूले खुदा को ये अंदेशा था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का इन के साथ खुफ्या चाल चल जाएंगे मगर खुदा वन्दे मेहरबान ने इन को काफ़िरो की खुफ्या तदबीर से बचा लिया।

📨Continue.....

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 161

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♻Part~02

🌴हुज़ूरे अक़्दस ﷺ ने बिस्तरे नुबुव्वत पर जाने विलायत को सुला कर एक मुठ्ठी खाक हाथ में ली और सूरए यासीन की इब्तिदाई आयतो को तिलावत फ़रमाते हुए नुबुव्वत खाने से बाहर तशरीफ़ लाए और मुहासरा करने वाले काफ़िरो के सरो पर खाक डालते हुए उनके मजमा से साफ़ निकल गए। न किसी को नज़र आए न किसी को कुछ खबर हुई।

👉🏾एक दूसरा शख्स जो इस मज्मे में मौजूद न था उसने इन लोगो को खबर दी की मुहम्मद तो यहा से निकल गए और चलते वक़्त तुम्हारे सरो पर खाक डाल गए है।

👉🏾चुनान्चे इन कोर बख्तो ने अपने सरो पर हाथ फेरा तो वाक़ई उन के सरो पर खाक और धूल यदि हुई थी।

🌴रहमते आ'लम ﷺ अपने दौलत खाने से निकल कर मक़ाम"हज़ूरा" के पास खड़े हो गए और बड़ी हसरत के साथ काबा को देखा....

📨Continue.....

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 162

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♻Part~03

🌴हुज़ूर ﷺ ने बड़ी हसरत के साथ काबा को देखा और फ़रमाया की ऐ शहरे मक्का ! तू मुझ को तमाम दुन्या से ज्यादा प्यारा है। अगर मेरी क़ौम मुझको तुझ से न निकालती तो में तेरे सिवा किसी और जगह सुकुनत पज़ीर न होता।

🌻हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से पहले ही क़रार दाद हो चुकी थी। वो भी उसी जगह आ गए और इस ख़याल से की क़ुफ़्फ़ारे मक्का हमारे क़दमो के निशान से हमारा रास्ता पहचान कर हमारा पीछा न करे, फिर ये भी देखा की हुज़ूर ﷺ के पाए नाज़ुक ज़ख़्मी हो गए है हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने आप ﷺ को अपने कन्धों पर सुवार कर लिया और इस तरह खारदार झाड़ियो और नोकदार पथ्थरो वाली पहाड़ियों को रौंदते हुए उसी रात " गारे षोर" पहुचे।

🌻हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه पहले खुद गार में दाखिल हुए और अच्छी तरह गार की सफाई की और अपने बदन के कपड़े फाड़ फाड़ कर गार के तमाम सूराखो को बन्द किया। फिर हुज़ूरे अकरम ﷺ गार के अन्दर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه की गोद में अपना सर मुबारक रख कर सो गए।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 162-163

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🔮कशानए नबुव्वत का मुहासरा🔮

♻Part~04

🌻हज़रत अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने एक सुराख को अपनी एड़ी से बन्द कर रखा था। सुराख के अन्दर से एक सांप ने बार बार यारे गार के पाउ में काटा मगर हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه जा निषार ने इस ख़याल से पाउ नहीं हटाया की रहमते आ'लम ﷺ के ख्वाबे राहत में खलल न पड़ जाए

👉🏾मगर दर्द की शिद्दत से यारे गार के आंसुओ की धार के चन्द क़तरात सरवरे काएनात के रुखसार पर निषार हो गए। जिससे रहमते आ'लम ﷺ बेदार हो गए और अपने यारे गार को रोता देख कर बे क़रार हो गए पूछा :

🌴अबू बक्र् ! क्या हुवा ?

🌻अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाह ﷺ ! मुझे सांप ने काट लिया है। ये सुनकर हुज़ूर ﷺ ने ज़ख्म पर अपना लुआ'बे दहन लगा दिया जिस से फौरन ही सारा दर्द जाता रहा। हुज़ूरे अक़्दस ﷺ तिन रात उस गार में रौनक़ अफरोज़ रहे।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 163

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🏡कशानए नबुव्वत का मुहासरा🏡

♻Part~05

🌻हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के जवान फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه रोज़ाना रात को गार के मुह पर सोते और सुबह सवेरे ही मक्का चले जाते और पता लगाते की कुरैश क्या तदबीरें कर रहे है ? जो कुछ खबर मिलती शाम को आ कर हुज़ूर ﷺ से अर्ज़ कर देते।

🌻हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के गुलाम हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضي الله تعالي عنه कुछ रात गए चरागह से बकरिया ले कर गार के पास आ जाते और उन बकरियो का दूध दोनों आ'लम के ताजदार ﷺ और उनके यारे गार पि लेते थे।

🌴हुज़ूर ﷺ तो गारे षोर में तशरीफ़ फरमा हो गए। उधर काशानए नुबुव्वत का मुहासरा करने वाले कुफ़्फ़ार जब सुबह को मकान में दाखिल हुए तो बिस्तरे नुबुव्वत पर हज़रते अली رضي الله تعالي عنه थे।

👉🏾ज़ालिमो ने थोड़ी देर आप से पूछगछ करके आप को छोड़ दिया। फिर हुज़ूर ﷺ की तलाश व जुस्तजु में मक्का और अतराफ़ व जवानिब का चप्पा चप्पा छान मारा। यहाँ तक की ढूंढते ढूंढते गारे षोर तक पहुच गए मगर गार के मुह पर उस वक़्त खुदा वन्दी हिफाज़त का पहरा लगा हुवा था।
यानी गार के मुह पर मकड़ी ने जाला तन दिया था और कनारे पर कबूतरी ने अंडे दे रखे थे।

📨Continue.....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 164

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🌹🌴सीरते मुस्तफा🌴🌹

🏡कशानए नबुव्वत का मुहासरा🏡

♻Part~06

👉🏾ये मन्ज़र देख कर क़ुफ़्फ़ारे कुरैश आपस में कहने लगे की इस गार में कोई इंसान मौजूद होता तो न मकड़ी जाला तनती न कबूतरी यहाँ अंडे देती।

👉🏾कुफ़्फ़ार की आहत पा कर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه कुछ घबराए और अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाह ﷺ ! अब हमारे दुश्मन इस क़दर क़रीब आ गए है की अगर वो अपने क़दमो पर नज़र डालेगे तो हम को देख लेंगे।

🌴हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया
मत घबराओ ! खुदा हमारे साथ है।

👆🏾इसके बाद अल्लाह तआला ने हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के क़ल्ब पर सुकून व इत्मीनान का ऐसा सकीना उतार दिया की वो बिलकुल ही बे खौफ हो गए।

👉🏾बहर हाल चौथे दिन हुज़ूर ﷺ यकुम रबीउल अव्वल दो शम्बा के दिन गारे षोर से बाहर तशरीफ़ लाए।
👉🏾अब्दुल्लाह बिन उरैकत जिसको रहनुमाई के लिये किराए पर हुज़ूर ने नोकर रख लिया था वो क़रार दाद के मुताबिक़ दो उटनिया ले कर गारे षोर पर हाज़िर था।
🌴हुज़ूर ﷺ अपनी उतनी पर सुवार हुए और एक ऊँटनी पर अबू बक्र् और आमिर बिन फुहैरा رضي الله تعالي عنه बेठे और उरैकत आगे आगे पैदल चलने लगा और आम रस्ते से हट कर साहिल समुन्दर के गौर मारूफ़ रास्तो से सफर शुरू कर दिया।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 164-165

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🐪सो ऊंट का इनआम🐪

👉🏾उधर अहले मक्का ने इश्तिहार दे दिया था की जो शख्स मुहम्मद ﷺ को गिरफ्तार कर के लाएगा उसको एक सो ऊंट इनआम मिलेगा।

👉🏾इस गिरा क़द्र इनआम के लालच में बहुत से लालची लोगो ने हुज़ूर की तलासग शुरू कर दी

👉🏾और कुछ लोग तो मंज़िलों देय तक तआकुब् में गए।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 166

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🐐उम्मे मा'बद की बकरी🐐

👉🏾दूसरे रोज़ मक़ामे क़दीद में उम्मे मा'बद आतिका बिन्ते ख़ालिद ख़ज़ाइया के मकान पर आप का गुज़र हुवा।
👉🏾उम्मे मा'बद एक जईफा औरत थी जो एलन ख़ैमे के शन में बेठी रहा करती थी और मुसाफिरों को खाना पानी दिया करती थी।

🌴हुज़ूर ﷺ ने उस से कुछ खाना खरीदने का क़स्द किया मगर उसके पास कोई चीज़ मौजूद न थी। हुज़ूर ﷺ ने देखा की उसके ख़ैमे के एक जानिब एक बहुत ही लगार बकरी है।
🌴दरयाफ़्त फ़रमाया : क्या ये दूध देती है ?
🔹उम्मे मा'बद ने कहा नहीं।
🌴आप ﷺ ने फ़रमाया की अगर तुम इजाज़त दो तो में इसका दूध दोह लू।
🔹उम्मे मा'बद ने इजाज़त दे दी और आप ﷺ ने बिस्मिल्लाह पढ़ कर जो उस के थन को हाथ लगाया तो उसका थन दूध से भर गया और इतना दूध निकला की सब लौग सैराब हो गए और उम्मे मा'बद के तमाम बर्तन दूध से भर गए।

👆🏾ये मोजुज़ा देख कर उम्मे मा'बद और उनके खवंद दोनों मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए।

📝रिवायत है की उम्मे मा'बद की ये बकरी सी. 18 ही. तक ज़िन्दा रही और बराबर दूध देती रही
👉🏾और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه के दौरे ख़िलाफ़त में जब "आमुर्रमाद" का सख्त कहत पड़ा की तमाम जानवरो के थनो का दूध खुश्क हो गया उस वक़्त भी ये बकरी सुबह व शाम बराबर दूध देती रही।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 166-167

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🐎सुराक़ा का घोडा🐎

♻Part~01

👉🏾जब उम्मे मा'बद के घर से हुज़ूर ﷺ आगे रवाना हुए तो मक्का का एक मशहूर शह सुवार सुराक़ा बिन मालिक बिन जाशम तेज़ रफ़्तार घोड़े और सुवार हो कर तआकुब करता नज़र आया। क़रीब पहुच कर हमला करने का इरादा किया मगर उस के घोड़े ने ठोकर खाई और वो घोड़े से गिर पड़ा मगर सो ऊँटो का इनआम कोई मामूली चीज़ न थी।

👉🏾इनआम की लालच ने उसे दोबारा उभारा और वो हमले की निय्यत से आगे बढ़ा तो हुज़ूर ﷺ की दुआ से पथरीली ज़मीन में उस के घोड़े का पाउ घुटनो तक ज़मीन में धंस गया।

👉🏾सुराक़ा ये मोजिज़ा देख कर खौफ व दहशत से कापने लगा और अमान ! अमान ! पुकारने लगा।

👉🏾रसूले अकरम ﷺ का दिल रहमो करम का समुन्दर था। सुराक़ा की लाचारी और गिर्या ज़ारी पर आप ﷺ का दरियाए रहमत जोश में आ ग़ाया। दुआ फरमा दी तो ज़मीन ने उसके घोड़े को छोड़ दिया।

📨Continue...

✒ हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 167

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🐎सुराक़ा का घोडा🐎

♻Part~02

👉🏾इसके बाद सुराक़ा ने अर्ज़ किया की मुझको अम्न का परवाना लिख दीजिये। हुज़ूर ﷺ के हुक्म से हज़रते आमिर बिन फुहैरा رضي الله تعالي عنه ने सुराक़ा के लिये अम्न की तहरीर लिख दी।

👉🏾सुराक़ा ने उस तहरीर को अपने तरकश में रख लिया और वापस लौट गया। रस्ते में जो भी हुज़ूर ﷺ के बारे में दरयाफ़्त करता तो सुराक़ा उस को ये कह कर लौटा देते की में ने बड़ी दूर तक बहुत ज्यादा तलाश किया मगर आ हज़रत ﷺ उस तरफ नहीं है।

👉🏾वापस लौटते हुए सुराक़ा ने कुछ सामाने सफर भी हुज़ूर ﷺ की खिदमत में बतौरे नज़राना के पेश किया मगर आ हज़रत ﷺ ने क़बूल नहीं फ़रमाया।

✔सुराक़ा उस वक़्त तो मुसलमान नहीं हुए मगर हुज़ूर ﷺ की अज़मते नुबुव्वत और इस्लाम की सदाक़त का सिक्का उन के दिल पर बैठ गया।

🌴जब हुज़ूर ﷺ ने फ़त्ह मक्का और जंगे ताइफ़ व हुनैन से फ़ारिग़ हो कर "जीईर्राना" में पड़ाव किया तो सुराक़ा उसी परवानए अम्न को ले कर बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हो गए और अपने क़बीले की बहुत बड़ी जमाअत के साथ इस्लाम क़बूल कर लिया।

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📚सीरते मुस्तफा, सफा 168

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🇸🇦बरीदा अस्लमी का झन्डा🇸🇦

🌴जब हुज़ूर ﷺ मदीना के क़रीब पहुचे गए तो "बरीदा अस्लमी" क़बिलए बनी हसम के 70 सुवारो को साथ ले कर इस लालच में आप की गिरफ्तारी के लिये आए की क़ुरैश से 100 ऊंट इनआम मिल जाएगा।
👉🏾मगर जब हुज़ूर ﷺ के सामने आए और पूछा की आप कौन है ? तो आप ने फ़रमाया की में मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह हु और खुदा का रसूल हु।

🌴जमाल व जलाल नुबुव्वत का उन के क़ल्ब पर ऐसा अशर हुवा की फौरन ही कलीमए शहादत पढ़ कर दामने इस्लाम में आ गए और कमाले अक़ीदत से ये दर ख़्वास्त पेश की,
🌴या रसूलुल्लाह ﷺ ! मेरी तमन्ना है की मदीने में हुज़ूर ﷺ का दाखिला एक झंडे के साथ होना चाहिये, ये कहा और अपना इमामा सर से उतार कर अपने नेजे पर बांध लिया और हुज़ूरे अक़्दस ﷺ के अलम बरदार बन कर मदीना तक आगे आगे चलते रहे। फिर दरयाफ़्त किया या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप मदीने में कहा उतरेंगे ?
🌴ताजदारे दी आ'लम ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की मेरी ऊँटनी खुदा की तरफ से मामूर है। ये जहां बेठ जाएगी वोही मेरी क़याम गाह है।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 169

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💫हज़रते जुबैर के बेश क़ीमत कपड़े💫

👉🏾इस सफ़र में हुस्ने इत्तिफ़ाक़ से हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله تعالي عنه से मुलाक़ात हो गई जो हुज़ूर ﷺ की फूफी हज़रते सफिय्या के बेटे है।

👉🏾ये मुल्के शाम से तिजारत का सामान ले कर आ रहे थे। इन्होंने हुसुरे अन्वर ﷺ और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه की खिदमत में चन्द नफ़ीस कपड़े बतौरे नज़राना के पेश किये जिन को ताजदारे दो आ'लम ﷺ और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने क़बूल फरमा लिये।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 170

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🌴शहनशाहे रिसालत मदीने में🌴

♻Part~01

🌴हुज़ूरे अकरम ﷺ की आमद की खबर चुकी मदीने में पहले से पहुच चुकी थी और बच्चों तक की ज़बानों पर आप ﷺ की तशरीफ़ आवरी का चर्चा था।

👉🏾इस लिये अहले मदीना आप ﷺ के दीदार के लिये इन्तिहाई मुश्ताक़ व बे क़रार थे। रोज़ाना सुबह से निकल निकल कर शहर के बाहर सरापा इन्तिज़ार बन कर इस्तिक़बाल के लिये तैयार रहते थे
👉🏾और जब धूप तेज़ हो जाती तो हसरत व अफ़सोस के साथ अपने घरो को वापस लौट जाते।

👉🏾एक दिन अपने मामूल के मुताबिक़ अहले मदीना आप ﷺ की राह देख कर वापस जा चुके थे की ना गहा एक यहूदी ने अपने क़लए से देखा की ताजदारे दो आ'लम ﷺ की सुवारी मदीने के क़रीब आन पहुची है।

👉🏾उसने ब आवाज़े बुलंद पुकारा की ए मदीना वालो ! लो तुम जिस का रोज़ाना इन्तिज़ार करते थे वो कारवाने रहमत आ गया।

👆🏾ये सुन कर तमाम अन्सार बदन पर हथियार सजा कर और वज्द व शादमानी से बे क़रार हो कर दोनों आ'लम के ताजदार ﷺ का इस्तिक़बाल करने के लिये अपने घरो से निकल पड़े और नारए तकबीर की आवाज़ों से तमाम शहर गूंज उठा।

📨Continue.....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 170-171
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🌴शहनशाहे रिसालत मदीने में🌴

♻Part~02

👉🏾मदिनए मुनव्वरह से 3 मिल के फासिल पर जहां आज "मस्जिदे कुबा" बनी हुई है। 12 रबीउल अव्वल को हुज़ूर ﷺ रौनक़ अफरोज़ हुए और क़बिलए अम्र बिन ऑफ رضي الله تعالي عنه के खानदान में हज़रते कुलषुम बिन हदम رضي الله تعالي عنه के मकान में तशरीफ़ फ़रमा हुए।

👉🏾अहले खानदान ने इस फख्रो शरफ़ पर की दोनों आ'लम ﷺ के मेज़बान इनके मेहमान बने अल्लाहु अकबर का पुरजोश नारा मारा।
चारो तरफ से अन्सार जोशे मुसर्रत में आते और बारगाहे रिसालत ﷺ में सलातो सलाम का नजरानए अक़ीदत पेश करते।

👉🏾अकषर सहाबाए किराम जो हुज़ूर ﷺ से पहले हिजरत करके मदीना आए थे वो भी उस मकान में ठहरे हुए थे।

👉🏾हज़रते अली رضي الله تعالي عنه भी हुक्मे नबवी के मुताबिक़ क़ुरैश की अमानतें वापस लौटा कर तीसरे दिन मक्का से चल पड़े थे वो भी मदीना आ गए और इसी मकान में क़याम फ़रमाया
और हज़रते कुलषुम् बिन हदम رضي الله تعالي عنه और इन के खानदान वाले इन तमाम मुक़द्दस मेहमानो की मेहमान नवाज़ी में दिन रात मसरूफ़ रहने लगे।

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🌴शहनशाहे रिसालत मदिने में🌴

🔄Part~03

👉🏾अल्लाहु अकबर ! अम्र बिन औफ़ رضي الله تعالي عنه के खानदान में हज़रते अम्बिया व औलिया और सालिहिने सहाबा के नूरानी इज्तिमा से ऐसा समा बंध गया होगा की ग़ालिबन चांद, सूरज और सितारे हैरत के साथ इस मज्म को देख कर ज़बाने हाल से कहते होंगे की ये फैसला मुश्किल है की आज अंजुमने आस्मान ज्यादा रोशन है या हज़रते कुलषुम् बिन हदम رضي الله تعالي عنه का मकान ? और शायद ख़ानदाने अम्र बिन औफ़ رضي الله تعالي عنه का बच्चा बच्चा जोशे मुसर्रत से मुस्कुरा मुस्कुरा कर ज़बाने हाल से ये नग्मा गाता होगा :

🌹उनके क़दम पे में निषार जिन के कुदुमे नाज़ ने
🌹उजड़े हुए दीयार को रश्के चमन बना दिया

☝🏽अलहम्दु लिल्लाह ! हुज़ूर ﷺ की "मक्की ज़िन्दगी" आप पढ़ चुके। अब हम आप ﷺ की "मदनी ज़िन्दगी" पर सिनह वार वाकीआत तहरीर करने की सआदत हासिल करते है। आप भी इस के मुतालए से आँखों में नूर और दिल में सुरूर की दौलत हासिल करे।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 172-173
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🌹🌴सीरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

📆हिजरत का पहला साल
सी. 1 ही.📆

🌹मस्जिदे कुबा🌹

👉🏾कुबा में सब से पहला काम मस्जिद की तामीर थी। इस मक़सद के लिये हुज़ूर ﷺ ने हज़रते कुलषुम् बिन हदम رضي الله تعالي عنه की एक ज़मीन को पसन्द फ़रमाया जहा ख़ानदाने अम्र बिन ऑफ رضي الله تعالي عنه की खजूरे सुखाई जाती थी इसी जगह आप ने अपने मुक़द्दस हाथो से एक मस्जिद की बुन्याद डाली। ये वोही मस्जिद है जो आज भी "मस्जिदे कुबा" के नाम से मशहूर है और जिसकी शान में क़ुरआन की ये आयत नाज़िल हुई :

👉🏾यक़ीनन वो मस्जिद जिस की बुन्याद पहले ही दिनसे परहेज़ गारी पर रखी हुई है वो इस बात की ज्यादा हक़दार है की आप इसमें खड़े हो इस (मस्जिद) में ऐसे लोग है जिन को पाकी बहुत पसन्द है और अल्लाह तआला पाक रहने वालो से महब्बत फ़रमाता है।
📗पारह 11

👉🏾इस मुबारक मस्जिद की तामीर में सहाबाए किराम के साथ साथ खुद हुज़ूर ﷺ भी ब नफ़्से नफ़ीस अपने दस्ते मुबारक से इतने बड़े बड़े पथ्थर उठाते थे की उन के बोझ से जिसमे नाजुक खम हो जाता था और अगर आप के जां निषार असहाब में से कोई अर्ज़ करता या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप पर हमारे मा बाप कुर्बान हो जाए आप छोड़ दीजिये हम उठाएंगे,

👉🏾तो हुज़ूर ﷺ उसकी दिलजुइ के लिये छोड़ देते मगर फिर उसी वज़्न का दूसरा पथ्थर उठा लेते और खुद ही उसको ला कर इमारत में लगाते और तामीरी काम में जोश व वल्वला पैदा करने के लिये सहाबाए किराम के साथ आवाज़ मिला कर हुज़ूर ﷺ हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा के ये अशआर पढ़ते जाते थे।

📝तर्जुमा
🌹वो कामयाब है जो मस्जिद तामीर करता है और उठते बैठते कुरआन पठता है और सोते हुए रात नहीं गुज़ारता।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 175-176
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🌷अबू अय्यूब अन्सारी का मकान🌷

♻Part~01

👉🏾तमाम क़बाईले अन्सार जो रास्ते में थे इन्तिहाई जोशे मुसर्रत के साथ ऊँटनी की मुहर थाम कर अर्ज़ करते या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप हमारे घरो की शरफे नुज़ूल बख्शे मगर आप उन सब मुहिब्बीन से येही फ़रमाते की मेरी ऊँटनी की मुहार छोड़ दो जिस जगह खुदा को मंज़ूर होगा उसी जगह मेरी ऊँटनी बैठ जाएगी।

👉🏾चुनान्चे जिस जगह आज मस्जिदे नबवी शरीफ है उसके पास हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله تعالي عنه का मकान था उसी जगह हुज़ूर ﷺ की ऊँटनी बैठ गई और हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله تعالي عنه आप ﷺ की इजाज़त से आप का सामान उठा कर अपने घर में ले गए और हुज़ूर ﷺ ने उन्ही के मकान पर क़याम फ़रमाया।

👉🏾हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله تعالي عنه ने ऊपर की मन्ज़िल पेश की मगर आप ने मुलाकातियों की आसानी का लिहाज़ फ़रमाते हुए निचे की मन्ज़िल को पसन्द फ़रमाया।

👉🏾हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله تعالي عنه दोनों वक़्त आप के लिये खाना भेजते और आप का बचा हुवा खाना तबर्रुक समझ कर मिया बीवी खाते। खाने में जहां हुज़ूर ﷺ की उंगलियो का निशान पडा होता हुसुले बरकत के लिये हज़रते अबू अय्यूब رضي الله تعالي عنه उसी जगह से लुक्मा उठाते और अपने हर क़ौल व फेल से बे पनाह अदब व एहतिराम और अक़ीदत व जा निषारि का मुज़ाहरा करते।

📨Continue....

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 177-178
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🏡अबू अय्यूब अन्सारी का मकान🏡

♻Part~02

👉🏾एक मर्तबा मकान के ऊपर की मन्ज़िल पर पानी का घड़ा टूट गया तो इस अंदेशे से की कहि पानी बह कर निचे की मन्ज़िल में न चला जाए और हुज़ूर रहमते आ'लम ﷺ को कुछ तक्लीफ़ न हो जाए, हज़रते अबू अय्यूब رضي الله تعالي عنه ने सारा पानी अपने लिहाफ में खुश्क कर लिया, घर में यही एक लिहाफ था जो गिला हो गया।

👉🏾रात भर मिया बीवी ने सर्दी खाई मगर हुज़ूर ﷺ को ज़र्रा बराबर तक्लीफ़ पहुच जाए ये गवारा नहीं किया।

👉🏾7 महीने तक हज़रते अबू अय्यूब رضي الله تعالي عنه ने इसी शान के साथ हुज़ूरे अक़्दस ﷺ की मेज़बानी का शरफ़ हासिल किया। जब मस्जिदे नबवी और इसके आस पास के हुजरे तय्यार हो गए तो हुज़ूर ﷺ उन हुज़रो में अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात के साथ क़याम पज़ीर हो गए।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 178
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✔हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम का इस्लाम

👉🏾हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम मदीने में यहूदियो के सब से बड़े आ'लीम थे, खुद इनका अपना बयान है की जब हुज़ूर ﷺ मक्का से हिजरत फ़रमा कर मदीने में तशरीफ़ लाए और लोग जूक़ दर जूक़ इनकी ज़ियारत के लिए हर तरफ से आने लगे तो में भी उसी वक़्त खिदमते अक़्दस में हाज़िर हुवा और जूही मेरी नज़र जमाले नुबुव्वत ﷺ पर पड़ी तो पहली नज़र में मेरे दिल ने ये फैसला कर दिया की ये चेहरा किसी झुटे आदमी का चेहरा नहीं हो सकता।
🌴फिर हुज़ूर ﷺ ने अपने वाअज में इर्शाद फ़रमाया की
👉🏾ऐ लोगो ! सलाम का चर्चा करो और खाना खिलाओ और (रिश्तेदारो के साथ) सीलए रहमी करो और रातो को जब लोग सो रहे हो तो तुम नमाज़ पढ़ो।

👉🏾हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम رضي الله تعالي عنه फ़रमाते है की मेने हुज़ूर ﷺ को एक नज़र देखा और आप ﷺ के ये चार बोल मेरे कान में पड़े तो में इस क़दर मुतअशशिर हो गया की मेरे दिल की दुन्या ही बदल गई और में मुशर्रफ ब इस्लाम हो गया।

👉🏾हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम رضي الله تعالي عنه का दामने इस्लाम में आ जाना ये इतना अहम वाक़ीआ था की मदीने के यहूदियो में खलबली मच गई।

✒हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 179
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👨‍👩‍👧‍👦हुज़ूर के अहलो अयाल मदीने में👨‍👩‍👧‍👦

🕌हुज़ूरे अक़्दस ﷺ जब की अभी हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी رضي الله تعالي عنه के मकान ही में तशरीफ़ फरमा थे आप ने अपने गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिष और अबू राफेअ को 500 दिरहम और दो ऊंट दे कर मक्का भेजा ताकि ये दोनों साहिबान अपने साथ हुज़ूर ﷺ के अहलो अयाल को मदीना लाए।

👉🏾चुनान्चे ये दोनों हज़रात जा कर हुज़ूर ﷺ की दो साहिब ज़ादियो हज़रते फ़ातिमा और उम्मे कुलषुम् और आप की ज़ौजए मूतह्हरा उम्मुल मुअमिनीन हज़रते बीबी सौदह और हज़रते उसामा बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه और उम्मे ऐमन को मदीना ले आए।

🕌आप ﷺ की साहिब जादी हज़रते ज़ैनब न आ सकी क्यू की उन के शोहर हज़रते अबुल आस बिन अरबीअ ने इनको मक्का में रोक लिया और हुज़ूर ﷺ की एक साहिब ज़ादि हज़रते बीबी रुक़य्या अपने शोहर हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه के साथ "हबशा" में थी।

👉🏾इन्ही लोगो के साथ हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه भी अपने सब घर वालो को साथ ले कर मक्का से मदीना आ गए इनमे हज़रते बीबी आइशा भी थी ये सब लोग मदीना आ कर पहले हज़रते हारिषा बिन नोमान رضي الله تعالي عنه के मकान पर ठहरे।

🖊हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 180
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🕌मस्जिदे नबवी की तामीर🕌

♻Part~01

🌴मदीने में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां मुसलमान बा जमाअत नमाज़ पढ़ सके इस लिये मस्जिद की तामीर निहायत ज़रूरी थी,

🌴हुज़ूर ﷺ की क़याम गाह के क़रीब ही बनू अल नज्जार का एक बाग था। आप ﷺ ने मस्जिद तामीर करने के लिये उस बाग़ को क़ीमत दे कर खरीदना चाहा। उन लोगो ने ये कह कर "या रसूलुल्लाह ﷺ ! हम खुदा ही से इसकी क़ीमत (अज़्रो षवाब) लेंगे" मुफ़्त में ज़मीन मस्जिद की तामीर के लिये पेश कर दी,

👉🏽लेकिन चुकी ये ज़मीन अस्ल में दो यतिमो की थी आप ﷺ ने उन दोनों यतिमो को बुला भेजा। उन यतीम बच्चों ने भी ज़मीन मस्जिद के लिये नज़्र करनी चाही मगर हुज़ूर ﷺ ने इस को पसंद नहीं फ़रमाया। इस लिये हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के माल से आप ﷺ ने इस की क़ीमत अदा फरमा दी।

👉🏽इस ज़मीन में चन्द दरख़्त, कुछ खंडरात और कुछ मुशरिकों की कब्रे थी। आप ﷺ ने दरख्तो के काटने और मुशरिकीन की कब्रो को खोद कर फेक देने का हुक्म दिया। फिर ज़मीन को हमवार करके खुद आप ﷺ ने अपने अपने दस्ते मुबारक से मस्जिद की बुन्याद डाली और कच्ची ईटो की दिवार और खजूरों के सुतूनो पर खजूर की पत्तियो से छत बनाई जो बारिस में टपकती थी।

📨Continue.....

🖊हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 180-181
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🏠अज़्वाज़े मुतह्हरात के मकानात🏠

🕌मस्जिदे नबवी के मुत्तसिल ही आप ने अज़्वाज़े मुतह्हरात के लिये हुजरे भी बनवाए। उस वक़्त तक हज़रते बीबी सौदह और हज़रते आइशा निकाह में थी इस लिये दो ही मकान बनवाए। जब दूसरी अज़्वाज़े मुतह्हरात आती गई तो दूसरे मकानात बनते गए।

👉🏽ये मकानात भी बहुत ही सादगी के साथ बनाए गए थे।10 हाथ लंबे 6 या 7 हाथ चौड़े कच्ची ईटो की दीवारे, खजूर की पत्तियो की छत वो भी इतनी नीची की आदमी खड़ा हो कर छत को छू लेता, दरवाज़ों में किवाड़ भी न थे कम्बल या टाट के पर्दे पड़े रहते थे।

👉🏽अल्लाहु अकबर ! ये है शहनशाहे दो आलम ﷺ का वो काशानए नुबुव्वत जिस की आस्ताना बोसी और दरबारी जिब्रील के लिये सरमायए सआदत और बाईशे इफ्तिखार थी।

👉🏽अल्लाह अल्लाह ! वो शहनशाहे कौनेने जिस को खालिके काएनात ने अपना मेहमान बना कर अर्शे आज़म पर मसनद नशीन बनाया और जिस के सर पर अपनी महबूबियत का ताज पहना कर ज़मीन के खज़ानों की कुंजियां जिस के हाथो में अता फरमा दी और जिस को काएनाते आलम में किस्म किस्म के तशर्रुफात का मुख्तार बना दिया, जिसकी ज़बान का हर फरमान कुन की कुंजी, जिस की निगाहें करम के एक इशारे ने उन लोगो को जिन के हाथो में ऊँटो की मुहार रहती थी उन्हें अक़्वामे आलम की किस्मत की लगाम अता फ़रमा दी।

👉🏽अल्लाहु अकबर ! वो ताजदारे रिसालत जो सुल्ताने दौरन और शहनशाहे कौनैन है उस की हरम सरा का ये आलम ! ऐ सूरज ! बोल, ऐ चांद ! बता, तुम दोनों ने इस ज़मीन के बे शुमार चक्कर लगाए है मगर क्या तुम्हारी आँखों ने ऐसी सादगी का कोई मन्ज़र कभी भी और कही देखा है ?

🖊हवाला
📚सीरते मुस्तफा, सफा 182,183
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🏠मुहाजिरिन के घर🏠

👉🏽मुहाजिरिन जो अपना सब कुछ मक्का में छोड़ कर मदीना चले गए थे, उन लोगो की सुकूनत के लिये भी हुज़ूर ﷺ ने मस्जिदे नबवी के कुर्बो जवार ही में इंतिज़ाम फ़रमाया।

👉🏽अन्सार ने बहुत बड़ी कुर्बानी दी की निहायत फराख दिली के साथ अपने मुहाजिर भाइयो के लिये अपने मकानात और ज़मीने दी और मकानों की तामिरात में हर किस्म की हमदाद बहम पहुचाई जिस से मुहाजिरिन की आबाद कारी में बड़ी सहूलत हो गई।

👉🏽सबसे पहले जिस अन्सारी ने अपना मकान हुज़ूर ﷺ को बतौरे हिबा के नज़्र किया उस खुश नसीब का नामे नामी हज़रते हारिषा बिन नोमान رضي الله تعالي عنه है, चुनान्चे अज़्वाजे मुताह्हरात के मकानात हज़रते हारिषा बिन नोमान رضي الله تعالي عنه ही की ज़मीन में बनाए गए।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 183-184
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📢अज़ान की इब्तिदा📢

♻Part-01

🕌मस्जिदे नबवी की तामीर तो मुकम्मल हो गई मगर लोगो को नमाज़ों के वक़्त जमा करने का कोई ज़रीआ नहीं था जिससे नमाज़े बा जमाअत का इंतिज़ाम होता,

👉🏽इस सिलसिले में हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम से मशवरा फ़रमाया, बाज़ ने नमाज़ों के वक़्त आग जलाने का मशवरा दिया, बाज़ ने नाकुस बजाने की राय दी मगर हुज़ूर ﷺ ने गैर मुस्लिमो के इन तरीको को मसंद नहीं फ़रमाया।

👉🏽हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने ये तजवीज़ पेश की, की हर नमाज़ के वक़्त किसी आदमी को भेज दिया जाए जो पूरी मुस्लिम आबादी में नमाज़ का ऐलान कर दे।

🌴हुज़ूर ﷺ ने इस राय को पसंद फ़रमाया और हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه को हुक्म फ़रमाया की वो नामज़ोबके वक़्त लोगो को पुकार दिया करे।

📨Continue.....

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 184
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📢अज़ान की इब्तिदा📢

♻Part-02

👉🏽चुनान्चे हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه पाचो नमाज़ी के वक़्त ऐलान करते थे, इस दरमियान में एक सहाबी हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ैद अन्सारी رضي الله تعالي عنه ने ख्वाब में देखा की अज़ाने शरई के अलफ़ाज़ कोई सुना रहा है।

👉🏽इसके बाद हुज़ूर ﷺ और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه और दूसरे सहाबा को भी इस किस्म के ख्वाब नज़र आए।

🌴हुज़ूर ﷺ ने इस को मिन जानिबिल्लाह समझ कर क़बूल फ़रमाया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ैद رضي الله تعالي عنه को हुक्म दिया की तुम बिलाल رضي الله تعالي عنه को अज़ान के कलीमात सीखा दो क्यू की वो तुम से ज्यादा बुलंद आवाज़ है।

👉🏽चुनान्चे उसी दिन से शरई अज़ान का तरीका जो आज तक जारी है और क़यामत तक जारी रहेगा शुरू हो गया।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा  185
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🌱अन्सार व मुहाजिर भाई भाई🌱

♻Part~01

🌺हज़राते मुहाजिरिन चुकी इंतिहाई बे सरो सामानि की हालत में बिलकुल खली हाथ अपने अहलो अयाल को छोड़ कर मदीना आए थे इस लिये परदेस में मुफलिसी के साथ वहशत व बेगानगी और अपने अहलो अयाल की जुदाई का सदमा महसूस करते थे।

👉🏽इस में शक नही की अन्सार ने इन मुहाजिरिन की मेहमान नवाज़ी और दिलजुइ में कोई कसर नहीं उठा रखी लेकिन मुहाजिरिन देर तक दुसरो के सहारे ज़िन्दगी बसर करना पसंद नही करते थे क्यू की वो लोग हमेशा से अपने दस्त व बाज़ू की कमाई खाने क्र खुगर थे।

👉🏽इस लिये ज़रूरत थी की मुहाजिरिन की परेशानी को दूर करने और इनके लिये मुस्तकिल ज़रिए मआश मुहय्या करने के लिये कोई इंतिज़ाम किया जाए।

👉🏽इसलिये हुज़ूर ﷺ ने ख्याल फ़रमाया की अन्सार व मुहाजिरिन में रिश्तए भाईचारा क़ाइम करके इनको भाई भाई बना दिया जाए ताकि मुहाजिरिन के दिलो से अपनी तन्हाई और बे कसी का एहसास दूर हो जाए और एक दूसरे के मददगार बन जाने से मुहाजिरिन के ज़रिए मआश का मसअला भी हल हो जाए।

📨Continue.....

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 185-186
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💕अन्सार व मुहाजिर भाई भाई💕

♻Part~02

👉🏽चुनान्चे मस्जिदे नबवी की तामीर के बाद एक दिन हुज़ूर ने हज़रते अंस बिन मालिक رضي الله تعالي عنه के मकान में अन्सार व मुहाजिरिन को जमा फ़रमाया उस वक़्त तक मुहाजिरिन की तादाद 45 या 50 थी।

👉🏽हुज़ूर ﷺ ने अन्सार को मुखातब करके फ़रमाया की ये मुहाजिरिन तुम्हारे भाई है फिर मुहाजिरिन व अन्सार में से दो दो शख्स को बुला कर फरमाते गए की ये और तुम भाई भाई हो। हुज़ूर ﷺ के इरशाद फरमाते ही ये रिश्तए उखुव्वत बिलकुल हक़ीक़ी भाई जैसा रिश्ता बन गया।

👉🏽चुनान्चे अन्सार ने मुहाजिरिन को साथ ले जा कर अपने घर की एक एक चीज़ सामने ला कर रख दी और कह दिया की आप हमारे भाई है इस लिये इन सब सामानों में आधा आप का और आधा हमारा है।

👉🏽हद हो गई की हज़रते साद बिन रबीअ अन्सारी رضي الله تعالي عنه , जो हज़रते अब्दुर्रहमान बिन ऑफ رضي الله تعالي عنه मुहाजिरि के भाई क़रार पाए थे इनकी दो बिविया थी, हज़रते साद رضي الله تعالي عنه ने हज़रते अब्दुर्रहमान  से कहा की मेरी एक बीवी जिसे आप पसंद करे में उस को तलाक़ दे दू और आप उस से निकाह करले।

📨Continue....

🖊हवाल
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💕अन्सार और मुहाजिर भाई भाई💕

♻Part~03

☝🏽अल्लाहु अकबर ! इसमें कोई शक नहीं की अंसार की ये ईसार एक ऐसा बे मिषाल शाहकार है की अक़्वामे आलम की तारीख में इस की मिषाल मुश्किल से ही मिलेगी मगर मुहाजिरिन ने क्या तर्जे आम्ल इख़्तियार किया ये भी एक क़ाबिले तक़लीद तारीखी कारनामा है।

👉🏽हज़रते साद رضي الله تعالي عنه की इस मुखलिसाना पेशकश को सुन कर हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه ने शुकिया के साथ ये कहा की अल्लाह तआला ये सब माल व मताअ और अहलो अयाल आप को मुबारक फरमाए मुझे तो आप सिर्फ बाज़ार का रस्ता बता दीजिये।

👉🏽उन्होंने मदीने के मश्हूर बाज़ार "किनकाअ" का रास्ता बता दिया। हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه बाज़ार गए और कुछ घी, कुछ पनीर खरीद कर शाम तक बेचते रहे। इस तरह रोज़ाना वो बाज़ार जाते रहे और थोड़े ही अरसे में वो काफी मालदार हो गए और उन के पास इतना सरमाया जमा हो गया की उन्हों ने शादी करके अपना घर बसा लिया।

👉🏽जब ये बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो हुज़ूर ﷺ ने दरयाफ़्त फ़रमाया की तुम ने बीवी को कितना महर दिया ? अर्ज़ की पांच दिरहम बराबर सोना।
🌴इरशाद फ़रमाया की अल्लाह तआला तुम्हे बरकतें अता फरमाए तुम दावते वलीमा करो अगर्चे एक बकरी ही हो।

🖊हवाला
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💕अन्सार और मुहाजिर भाई भाई💕

♻Part~04

👉🏽हज़रते अब्दुर्रहीम رضي الله تعالي عنه की तरह दूसरे मुहाजिरिन ने भी दुकाने खोल ली। हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه कपड़े की तिजारत करते थे। ज्ज़रए उष्मान رضي الله تعالي عنه किनकाअ के बाजारमें खजूरों की तिजारत करने लगे। हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه भी तिजारत में मशगूल हो गए थे दूसरे मुहाजिरिन ने भी छोटी बड़ी तिजारत शुरू कर दी।

👉🏽ग़रज़ बा वुजुदे की मुहाजिरिन के लिये अन्सार का घर मुस्तकिल मेहमान खाना था मगर मुहाजिरिन ज्यादा दिनों तक अन्सार पर बोझ नहीं बने बल्कि अपनी मेहनत और बे पनाह कोशिशो से बहुत जल्द अपने पाउ पर खड़े हो गए।

👉🏽मशहूर मुअर्रिखे इस्लाम हज़रते अल्लामा इब्ने अब्दुल बर रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है की ये अक़दे भाईचारे का मुआहदा तो अन्सार व मुहाजिरिन के दरमियान हुवा, इस के इलावा एक ख़ास अक़दे मुआखात मुहाजिरिन के दरमियान भी हुवा जिसमे हुज़ूर ने एक मुहाजिर को दूसरे मुहाजिर का भाई बना दिया।

👉🏽चुनान्चे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ व हज़रते उमर और हज़रते तल्हा व हज़रते ज़ुबैर और हज़रते उष्मान व हज़रते अब्दुर्रहमान के दरमियान जब भाईचारा हो गया तो हज़रते अली ने दरबारे रिसालत में अर्ज़ किया

🌴या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप ने अपने सहाबा को एक दूसरे का भाई बना दिया लेकिन मुझे आप ने किसी किसीका भाई नहीं बनाया। आखिर मेरा भाई कौन है ? तो हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया की तुम दुन्या और आख़िरत में मेरे भाई हो।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 187,189
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📶जारी रहेगा إن شاء الله  عزوجل

💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो के इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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🌹🌴सिरते मुस्तफा ﷺ 🌴🌹

🕌मदिने के लिये दुआ🕌

👉🏽चुकी मदीने की आबो हवा अच्छी न थी यहाँ तरह तरह की वबाए और बीमारिया फैलती रहती थी इस लिये कषरत से मुहाजिरिन बीमार होने लगे।

👉🏽हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه शदीद लरज़ा बुखार में मुब्तला हो कर बीमार हो गए और बुखार की शिद्दत में ये हज़रत अपने वतन मक्का की पहाड़ियों और घासो के फ़िराक में अशआर पढ़ते थे।

🌴हुज़ूर ﷺ ने इस मौके पर ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह عزوجل ! हमारे दिलो मढे मदीने की ऐसी ही महब्बत डाल दे जैसी मक्का की महब्बत है बल्कि इस से भी ज्यादा और मदीने की आबो हवा को सिह्हत बख्श बनादे और मदीने के साअ और मुद (नाप तोल के बर्तन) में खैरो बरकत अता फरमा और मदीने के बुखार को जुहफा की तरफ मुन्तकिल फरमा।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 190
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🌹हज़रते सलमान फ़ारसी मुसलमान हो गए

👉🏽सी.1 ही. वाक़ीआत में हज़रते सलमान फ़ारसी के इस्लाम लाने का वाक़ीआ भी बहुत अहम है। ये फारस के रहने वाले थे। इनके आबाओ अजदाद बल्कि इन के मुल्क की पूरी आबादी मजूसी थी। ये अपने आबाई दिन से बेज़ार हो कर दिने हक़ की तलाश में अपने वतन से निकले मगर डाकुओ ने इनको गिरफ्तार करके अपना गुलाम बना लिया फिर इन को बेच डाला।

👉🏽चुनान्चे ये कई बार बिकते रहे और मुख़्तलिफ़ लोगो की गुलामी में रहे। इसी तरह ये मदीना पहुचे, कुछ दिनों तक ईसाई बन कर रहे और यहूदियो से भी मेलजोल रखते रहे। इस तरह इन को तौरेत व इंजील की काफी मालूमात हासिल हो चुकी थी।

👉🏽ये हुज़ूर ﷺ की बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो पहले दिन ताज़ा खजूरों का एक तबाक खिदमते अक़दस में ये कह कर पेश किया की ये सदक़ा है।

👉🏽हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया की इस को हमारे सामने से उठा कर फ़ुक़रा व मसाकिन को दे दो क्यू की में सदक़ा नहीं खता।

👉🏽फिर दूसरे दिन खजूरों का खान ले कर पहुचे और ये कह कर की ये हदिय्या है सामने रख दिया
तो हुज़ूर ﷺ ने सहाबा को हाथ बढ़ाने का इशारा फ़रमाया और खुद भी खा लिया।

👉🏽इस दरमियान में हज़रते सलमान ने हुज़ूर ﷺ के दोनों शानो के दरमियान जो नज़र डाली तो मोहरे नबुव्वत को देख लिया चुकी ये तौरेत व इंजील में नबिय्ये आखिरउज़्ज़मा की निशानिया पढ़ चुके थे इस लिए फ़ौरन ही इस्लाम क़बूल कर लिया।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 191
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🌾नमाज़ों की रकअत में इज़ाफ़ा🌾

👉🏽अब तक फ़र्ज़ नमाज़ों में सिर्फ 2 ही रकअते थी मगर हिजरत के साले अव्वल ही में जब हुज़ूर ﷺ मदीना तशरीफ़ लाए तो ज़ोहर व असर व ईशा में 4-4 रकअते फ़र्ज़ हो गई

👉🏽लेकिन सफर की हालत में अब भी वोही 2 रकअत क़ाइम रही इसी को सफर की हालत में नमाज़ों में "कसर" कहते है।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 191
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🌺तिन जां निषारो की वफ़ात🌺

♻Part~01

👉🏽इस साल हज़रते सहाबए किराम में से तिन निहायत ही शानदार और जां निषार हज़रात ने वफ़ात पाई जो दर हक़ीक़त इस्लाम के सच्चे जां निषार और बहुत ही बड़े मुईन व मददगार थे।

👉🏽अव्वल : हज़रते कुलषुम् बिन हदम رضي الله تعالي عنه ये वो खुश नसीब मदीना के रहने वाले अंसारी है की हुज़ूरे अक़दस ﷺ जब हिजरत फरमा कर "कुबा" में तशरीफ़ लाए तो सब से पहले इन्ही के मकान को शरफे नुज़ूल बख्शा और बड़े बड़े मुहाजिरिन सहाबा भी इन्ही के मकान में ठहरे थे,

👉🏽इन्होंने दोनों आलम के मेज़बान को अपने घर में मेहमान बना कर ऐसी मेज़बानी और मेहमान नवाज़ी की, की क़यामत तक तारीखे रिसालत के सफहात पर इनका नाम नामी सितारों की तरह चमकता रहेगा।

📨Continue....

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 192
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🌾तिन जां निषारो की वफ़ात🌾

♻Part~02

👉🏽सुवुम : हज़रते बराअ बिन मारुर अंसारी ये वो शख्स है की "बैअते अक़बए षानिया" में सब से पहले हुज़ूर के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत की और ये अपने क़बीले "खज़रज" के नकीबो में थे।

👉🏽सीवुम : हज़रते असअद बिन ज़रारह अन्सारी ये बैअते अक़बए उला और बैअते अक़बए षानिया की दोनों बैअतो में शामिल रहे और ये पहले वो शख्स है जिन्होंने मदीने में इस्लाम का डंका बजाया और हर घर में इस्लाम का पैगाम पहुचा।

📨Continue....

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 192
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🌾तिन जां निषारो की वफ़ात🌾

♻Part~03

👉🏽जब ये बाला तीनो मुअज़्ज़ज़िन सहाबा ने वफ़ात पाई तो मुनाफ़िक़ीन और यहूदियो ने इस की ख़ुशी मनाई और हुज़ूर ﷺ को ताना देना शुरू किया की अगर ये पैग़म्बर होते तो अल्लाह तआला इनको ये सदमात क्यू पहुचाता ?

👉🏽खुदा عزوجل की शान की ठीक उसी ज़माने में कुफ्फार के दो बहुत बड़े बड़े सरदार भी मर कर मुरदार हो गए। एक आस बिन वाइल सहमी जो हज़रते अम्र बिन अल आस رضي الله تعالي عنه सहाबी फातेहे मिस्र का बाप था। दूसरा वलीद बिन मुगिरा जो हज़रते खालिद सैफुल्लाह رضي الله تعالي عنه सहाबी का बाप था।

👉🏽रिवायत है की वलीद बिन मुगिरा जां कनि के वक़्त बहुत ज्यादा बेचैन हो कर तड़पने और बे क़रार हो कर रोने लगा और फरियाद करने लगा तो अबू जहल ने पूछा की चचाजान ! आखिर आप की बे क़रारी और इस गिर्या व ज़ारी की क्या वजह है ?

👉🏽तो वलिद बिन मुगिरा बोला की मेरे भतीजे ! में इस लिये इतनी बे क़रारी से रो रहा हु की मुझे अब ये डर है की मेरे बाद मक्का में मुहम्मद ﷺ का दिन फ़ैल जाएगा।

👉🏽ये सुनकर अबू सुफ़यान ने तसल्ली दी और कहा की चचा ! आप हरगिज़ इस का गम न करे में ज़ामिन होता हु की में मदीने में दिने इस्लाम को मक्का में नही फैलने दूंगा।

📨Continue....

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 193
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🌾तिन जां निषारो की वफ़ात🌾

♻Part~04

👉🏽चुनान्चे अबू सुफ़यान अपने इस अहद पर इस तरह क़ाइम रहे की मक्का फ़त्ह होने तक वो बराबर इस्लाम के खिलाफ जंग करते रहे मगर फतहे मक्का के दिन अबू सुफ़यान ने इस्लाम क़बूल कर लिया और फिर ऐसे सादिकुल इस्लाम बन गए की इस्लाम की नुसरत व हिमायत के लिये ज़िन्दगी भर जिहाडी करते रहे और इन्ही जिहादो में कुफ्फार के तिरो से इन की आँखे ज़ख़्मी हो गई और रौशनी जाती रही। ये वो हज़रते अबू सुफ़यान रदियल्लाहु अन्हु है जिन के सपूत बेटे हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु है।

👉🏽इसी साल सी.1 ही. में हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه की विलादत हुई। हिजरत के बाद मुहाजिरिन के यहा सबसे पहला बच्चा जो पैदा हवा वो येही हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه है। इनकी विलादत हज़रते बीबी अस्मा जो हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه की साहिब जादी है, पैदा होते ही इन को लेकर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुई।

🌴हुज़ूर ﷺ ने इनको अपनी गॉद में बिठा कर और खजूर चबा कर इनके मुह में डाल दी। इस तरह सबसे पहली ग़िज़ा जो इन के शिकम इ पहुची वो हुज़ूर ﷺ का लुआबे दहन था।

👉🏽हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه की पैदाइश से मुसलानों को बेहद ख़ुशी हुई इस लिये की मदीना के यहूदी कहा करते थे की हम लोगो ने मुहाजिरिन पर ऐसा जादू कर दिया है की इन लोगो के यहा कोई बच्चा पैदा ही नही होगा।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 193-194
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🚶🏻हज़रत का दूसरा साल🚶🏻
👉🏽सी. 2 ही.

🕋किब्ले की तब्दीली🕋

♻Part~01

👉🏽जब तक हुज़ूर ﷺ मक्का में रहे खानए काबा की तरफ मुह करके नमाज़ पढ़ते रहे मगर हिजरत में बाद जब आप मदीना तशरीफ़ लाए तो खुदा वन्दे तआला का ये हुक्म हुवा की आप अपनी नमाज़ों में "बैतूल मुक़द्दस" को अपना किब्ला बनाए।

👉🏽चुनान्चे आप 16 या 17 महीने तक बैतूल मुक़द्दस की तरफ रुख करके नमाज़ पढ़ते रहे मगर आप के दिल की तमन्ना येही थी की काबा ही को किब्ला बनाया जाए।

👉🏽चुनान्चे आप ﷺ अकषर आसमान की तरफ चेहरा उठा उठा कर वहये इलाही का इन्तिज़ार फरमाते रहे यहाँ तक की एक दिन अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ की क़ल्बी आरज़ू पूरी फरमाने के लिये क़ुरआन की ये आयत नाज़िल फरमा दी

👉🏽हम देख रहे है बार बार आप का आसमान की तरफ मुह करना तो हम ज़रूर आप को फेर देंगे उस किब्ले की तरफ जिस में आप की ख़ुशी है तो अभी आप फेर दीजिये अपना चेहरा मस्जिदे हराम की तरफ
📗पारह 2

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 194-195
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🕋किब्ले की तब्दीली🕋

♻Part~02

👉🏽चुनान्चे हुज़ूर ﷺ क़बिलए बनी सलमह की मस्जिद में नमाज़े ज़ोहर पढ़ा रहे थे की हालते नमाज़ ही में ये वही नाज़िल हुई और नमाज़ ही में आप ﷺ ने बैतूल मुक़द्दस से मुड़ कर खानए काबा की तरफ अपना चेहरा कर लिया और तमाम मुक्तदियो ने भी आप ﷺ की पैरवी की।

👉🏽इस मस्जिद को जहा ये वाक़ीआ पेश आया "मस्जिदुल किब्लतैन" कहते है और आज भी ये तारीखी मस्जिद ज़ियारत गाहे खवास व अवाम है जो शहरे मदीना से तक़रीबन दो की.म. दूर जानिबे शिमाल मगरिब वाकेअ है।

👉🏽इस किब्ला बदलने को "तहविले किब्ला" कहते है। तहविले किब्ला से यहूदियो को बड़ी सख्त तकलीफ पहुची जब तक हुज़ूर बैतूल मुक़द्दस की तरफ रुख करके नमाज़ पढ़ते रहे तो यहूदी बहुत खुश थे और फख्र के साथ कहा करते थे की मुहम्मद भी हमारे किब्ले की तरफ रुख करके इबादत करते है

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 195
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🕋किब्ले की बदली🕋

♻Part~03

👉🏽जब किब्ला बदल गया तो यहूदी इस क़दर बरहम और नाराज़ हो गए की वो ये ताना देने लगे की मुहम्मद ﷺ चुकी हर बात में हम लोगो की मुखालफत करते है इस लिये इन्हों ने महज़ हमारी मुखालफत में किब्ला बदल दिया है। इसी तरह मुनाफ़िक़ीन का गुरौह भी तरह तरह की नुक़्ता चीनी और किस्म किस्म के ऐतराज़त करने लगे तो इन दोनों गुरौहो की ज़बान बन्दी और दहन दोज़ी के लिये खुदा वन्दे करीम ने ये आयते नाज़िल फ़रमाई :

☝🏽अब कहेंगे बे वुक़ूफ़ लोगो में से किस ने फेर दिया मुसलमानो को इन को उस किब्ले से जिस पर वो थे आप कह दीजिये की पूरब पच्छिम सब अल्लाह ही का है वो जिसे चाहे सीधी राह चलाता है और (ऐ महबूब) आप पहले जिस किब्ले पर थे हम ने वो इसी लिये मुक़र्रर किया था की देखे कौन रसूल की पैरवी करता है और कौन उलटे पाउ फिर जाता है और बिला शुबा ये बड़ी भारी बात थी मगर जिन को अल्लाह तआला ने हिदायत दे दी है (उनके लिये कोई बड़ी बात नहीं)
📗पारह 2

📨Continue...

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 195-196
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🕋किब्ले की बदली🕋

♻Part~04

👉🏽पहली आयत में यहूदियो के एतिराज़ का जवाब दिया गया की खुदा की इबादत में किब्ले की कोई ख़ास जिहत ज़रूरी नहीं है। उसकी इबादत के लिये पूरब, पच्छीम, उत्तर, दख्खिन सब जिहते बराबर है अल्लाह तआला जिस जिहत को चाहे अपने बन्दों के लिये किब्ला मुकर्रर फरमा दे लिहाज़ा इस पर किसी को एतिराज़ का कोई हक़ नहीं है।

👉🏽दूसरी आयत में मुनाफ़िक़ीन की ज़बान बन्दी की गई है तो तहविले किब्ला के बाद हर तरफ ये प्रोपेगण्डा करने लगे थे की पैग़म्बरे इस्लाम तो अपने दिन के बारे में खुद ही मुतरद्दिद है कभी बैतूल मुक़द्दस को किब्ला मानते है कभी कहते है की काबा किब्ला है।

👉🏽आयत में तहविले किब्ला की हिक्मत बता दी गई की मुनाफ़िक़ीन जो महज़ नुमाइशी मुसलमान बन कर नमाज़े पढ़ा करते थे वो किब्ला के बदलते ही बदल गए और इस्लाम से मुन्हरीफ़ हो गए।

👉🏽इस तरह ज़ाहिर हो गया की कौन सादिकुल इस्लाम है और कौन मुनाफ़िक़ और कौन रसूलुल्लाह ﷺ की पैरवी करने वाला है और कौन दिन से फिर जाने वाला।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 196-197
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~01

👉🏽अब तक हुज़ूर ﷺ को खुदा की तरफ से सिर्फ ये हुक्म था की इलाईल और मौइज़ए ह-सना के ज़रिए लोगो को इस्लाम की दावत देते रहे और मुसलमानो को कुफ्फार की इज़ाओ पर सब्र का हुक्म था

👉🏽इसी लिये काफ़िरो ने मुसलमानो पर बड़े बड़े ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े, मगर मुसलमानो ने इन्तिक़ाम के लिये कभी हथियार नहीं उठाया बल्कि हमेशा सब्रो तहम्मुल के साथ कुफ़्फ़ार की इज़ाओ और तकलीफो को बर्दाश्त करते रहे

👉🏽लेकिन हिजरत के बाद जब सारा अरब और यहूदी इन मुठ्ठी भर मुसलमानो की जानी दुश्मन हो गए और इन मुसलमानो को फना के घाट उतार देने का अज़्म कर लिया तो खुदा वन्दे कुद्दूस ने मुसलमानो को ये इजाज़त दी की जो लोग तुम से जंग की इब्तिदा करे उन से तुम भी लड़ सकते हो।

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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~02

👉🏽चुनान्चे 12 सफर सी.2 ही. तवारीखे इस्लाम में वो यादगार दिन है जिस में खुदा वन्द ने मुसलमानो को कुफ़्फ़ार के मुकाबले में तलवार उठाने की इजाज़त दी और ये आयत नाज़िल फ़रमाई :

👉🏽जिन से लड़ाई की जाती है (मुसलमान) उन को भी अब लड़ने की इजाज़त दी जाती है क्यू की वो (मुसलमान) मज़लूम है और खुदा इनकी मदद पर यक़ीनन क़ादिर है
पारह 17

👉🏽हज़रते इमाम मुहम्मद बिन शहाब जुहरि अलैरहमा का क़ौल है की जिहाद की इजाज़त के बारे में ये वही आयत है जो सब से पहले नाज़िल हुई। मगर तफ़सीरे इब्ने जरीर में है की जिहाद के बारे में सबसे पहले जो आयत उतरी वो ये है :

👉🏽खुदा की राह में उन लोगो से लडो जो तुम लोगो से लड़ते है।
पारह 2

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🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 197-198
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~03

👉🏽बहर हाल सी.2 ही. में मुसलमानो को खुदा वन्दे तआला ने कुफ़्फ़ार से लड़ने की इजाज़त दे दी मगर इब्तिदा में ये इजाज़त मशरुत थी यानी सिर्फ उन्ही काफ़िरो से जंग करने की इजाज़त थी जो मुसलमानो पर हमला करे।

👉🏽मुसलमानो को अभी तक इस की इजाज़त नहीं मिली थी की वो जंग में अपनी तरफ से पहल करे लेकिन हक़ वाज़ेह हो जाने और बातिल ज़ाहिर हो जाने के बाद चुकी तब्लिगे हक़ और अहकामे इलाही की नशरो ईशाअत हुज़ूर ﷺ पर फ़र्ज़ थी इस लिये तमाम उन कुफ़्फ़ार से जो इनाद के तौर पर हक़ को क़बूल करने से इनकार करते थे

👉🏽जिहाद का हुक्म नाज़िल हो गया ख्वाह वो मुसलमानो से लड़ने में पहल करे या न करे क्यू की हक़ के ज़ाहिर हो जाने के बाद हक़ को क़बूल करने के लिये मजबूर करना और बातिल को जब्रन तर्क करना ये ऐन हिक्मत और बनी नौअ इंसान की सलाह व फलाह के लिये इंतिहाई ज़रूरी था।

👉🏽बहर हाल इसमें कोई शक नहीं की हिजरत के बाद जितनी लड़ाइयां भी हुई अगर पुरे माहोल को गहरी निगाह से बग़ौर देखा जाए तो येही ज़ाहिर होता है की ये सब लड़ाइयां कुफ़्फ़ार की तरफ से मुसलमानो के सर पर मुसल्लत की गई और गरीब मुसलमान ब दरजए मजबूरी तलवार उठाने पर मजबूर हुए।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 198-199
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~04

🌴हुज़ूर ﷺ और आप के असहाब अपना सब कुछ मक्का में छोड़ कर इंतिहाई बे कसी के आलम में मदीना चले आए थे। चाहिये तो ये था की कुफ़्फ़ारे मक्का अब इत्मीनान से बैठ रहते की उन के दुश्मन यानि रहमते आलम और मुसलमान उन के शहर से निकल गए मगर हुवा ये की इन काफ़िरो के गैज़ो गज़ब का पारा इतना चढ़ गया की अब ये लोग अहले मदीना के भी दुश्मने जान बन गए।

👉🏽चुनान्चे हिजरत के चन्द रोज़ बाद कुफ़्फ़ारे मक्का ने रईसे अन्सार "अब्दुल्लाह बिन उबय्य" के पास धमकियों से भरा हुवा एक खत भेजा। अब्दुल्लाह बिन उबय्य वो शख्स है की वाक़ीऐ हिजरत से पहले तमाम मदीना वालो ने इस को अपना बादशाह मान कर इस की ताजपोशी की तैयारी कर ली थी मगर हुज़ूर ﷺ के मदीना तशरीफ़ लाने के बाद ये स्किम खत्म हो गई।

👉🏽चुनान्चे इसी गम व गुस्से में अब्दुल्लाह बिन उबय्य उम्र भर मुनाफ़ीक़ो का सरदार बन कर इस्लाम की बैख कनी करता रहा और इस्लाम व मुसलमानो के खिलाफ तरह तरह की साजिशो में मसरूफ़ रहा।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 199
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~04

👉🏽बहर कैफ कुफ़्फ़ारे मक्का ने इस दुश्मने इस्लाम के नाम जो खत लिखा उसका मज़मून ये है की तुम ने हमारे आदमी (मुहम्मद ﷺ) को अपने यहा पनाह दे रखी है हम खुदा की क़सम खा कर कहते है की या तो तुम लोग उनको क़त्ल कर दो या मदीने से निकाल दो वरना हम सब लोग तुम पर हमला कर देंगे और तुम्हारे तमाम लड़नेवाले जवानो को क़त्ल कर के तुम्हारी औरतो पर तसर्रुफ़ करेंगे।

🌴जब हुज़ूर ﷺ को कुफ़्फ़ारे मक्का के इस तहदीद आमेज़ और खौफनाक खत की खबर मालुम हुई तो आप ने अब्दुल्लाह बिन उबय्य से मुलाक़ात फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया की क्या तुम अपने भाइयो और बेटो को क़त्ल करोगे।

👉🏽चुकी अकषर अन्सार दामने इस्लाम में आ चुके थे इस लिये इस लिये अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने इस नुकते को समझ लिया और कुफ़्फ़ारे मक्का के हुक्म पर अमल नही कर सका।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 200-201
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~05

👉🏽ठीक उसी ज़माने में हज़रते साद बिन मुआज़ رضي الله تعالي عنه जो क़बिलए ओस के सरदार थे उमरह अदा करने के लिये मदीने से मक्का गए और पुराने ताल्लुक़ात की बिना पर "उमय्या बिन ख़लफ" के मकान पर क़याम किया।

👉🏽जब उमय्या ठीक दो पहर के वक़्त उन को साथ ले कर तवाफ़े काबा के लिये गया तो इत्तिफ़ाक़ से अबू जहल सामने आ गया और डांट कर कहा की ऐ उमय्या ! ये तुम्हारे साथ कौन है ?

👉🏽उमय्या ने कहा की ये मदीना के रहने वाले साद बिन मुआज़ है। ये सुन कर अबू जहल ने तड़प कर कहा की तुम लोगो ने बे धर्मो को अपने यहा पनाह दी है। खुदा की क़सम ! अगर तुम उमय्या के साथ में न होते तो बच कर वापस नहीं जा सकते थे।

👉🏽हज़रते साद बिन मुआज़ رضي الله تعالي عنه ने भी इंतिहाई जुरअत और दिलेरी के साथ ये जवाब दिया की अगर तुम लोगो ने हमको काबे की ज़ियारत से रोका तो हम तुम्हारी शाम की तिजारत का रास्ता रोक देंगे।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 200
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❗लड़ाइयों का सिलसिला❗

♻Part~06

👉🏽कुफ़्फ़ारे मक्का ने सिर्फ इन्ही धमकियों पर बस नही किया बल्कि वो मदीने पर हमले की तैयारिया करने लगे और हुज़ूर और मुसलमानो के क़त्ले आम का मनसूबा बनाने लगे। चुनान्चे हुज़ूर ﷺ रातो को जाग जाग कर बसर करते थे और सहाबए किराम आप ﷺ का पहरा दिया करते थे।

👉🏽कुफ़्फ़ारे मक्का ने सरे अरब पर अपने अशरो रुसुख की वजह से तमाम क़बाइल में ये आग भड़का दी थी की मदीने पर हमला कर के मुसलमानो को दुन्या से नेस्तो नाबूद करना ज़रूरी है।

👉🏽इन हालत में हुज़ूर ﷺ को हीफाज़ते खुद इख्तियारी के लिये कुछ न कुछ तदबीर करनी ज़रूरी ही थी ताकि अन्सार व मुहाजिरिन और खुद अपनी ज़िन्दगी की बक़ा और सलामती का सामान हो जाए।

👉🏽चुनान्चे कुफ़्फ़ारे मक्का के खतरनाक इरादों का इल्म हो जाने के बाद हुज़ूर ﷺ ने अपनी और सहाबा की हिफाज़त खुद इख्तियारी के लिये दो तदबिरो पर अमल दरआमद का फैसला फ़रमाया।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 201
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❗लड़ाइयो का सिलसिला❗

♻Part~07

👉🏽अव्वल : ये की कुफ़्फ़ारे मक्का की शामी तिजारत जिस पर इनकी ज़िन्दगी का दारो मदार है इस में रुकावट डाल दी जाए ताकि वो मदीने पर हमले का ख्याल छोड़ दे और सुल्ह पर मजबूर हो जाए।

👉🏽दुवम : ये की मदीने के अतराफ़ में जो क़बाइल आबाद है उन से अम्नो अमान का मुआह्दा हो जाए ताकि कुफ़्फ़ारे मक्का मदीने पर हम्ले की निय्यत न कर सके।

👉🏽चुनान्चे हुज़ूर ﷺ ने इन्ही दो तदबिरो के पेशे नज़र सहाबए किराम के छोटे छोटे लश्करो को मदीने के अतराफ़ में भेजना शुरू कर दिया और बाज़ लश्करो के साथ खुद भी तशरीफ़ ले गए।

👉🏽सहाबए किराम के ये छोटे छोटे लश्कर कभी कुफ़्फ़ारे मक्का की नक्लो हरकत का पता लगाने के लिये जाते थे और कहि बाज़ क़बाइल से मुआहदए अम्नो अमान करने के लिये रवाना होते थे। कहि इस मक़सद से भी जाते थे की कुफ़्फ़ारे मक्का की शामी तिजारत ला रास्ता बन्द हो जाए।

👉🏽इसी सिलसिले में कुफ़्फ़ारे मक्का और उन के हलिफो से मुसलमानो का टकराव शुरू हुवा और छोटी बड़ी लड़ाइयो का सिलसिला शुरू हो गया इन्ही लड़ाइयो को तारीखे इस्लाम में "गज़वात व सराया" के उन्वान से बयान किया गया है।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 201-202
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⭕ग़ज़्वा व सरिय्या का फ़र्क़⭕

👉🏽यहां मुसन्निफिने सीरत की ये इस्तिलाह याद रखनी ज़रूरी है की वो जंगी लश्कर जिस के साथ हुज़ूर ﷺ भी तशरीफ़ ले गए उस को "ग़ज़्वा" कहते है और वो लश्करो की टोलिया जिन में हुज़ूर ﷺ शामिल नही हुए उन को "सरिय्या" कहते है।

👉🏽"ग़ज़वात" की तादाद में मुअर्रिखिन का इख़्तिलाफ़ है। "मवाहिबे लदुन्नीय्या" में है की ग़ज़वात की तादाद "27 है और रौजतुल अहबाब में ये लिखा है की एक क़ौल के मुताबिक़ 21 और बाज़ के नज़दीक 24 है और बाज़ ने कहा की 25 और बाज़ ने लिखा 26 है।

👉🏽मगर हज़रत इमाम बुखारी رضي الله تعالي عنه ने हज़रते ज़ैद बिन अरक़म رضي الله تعالي عنه सहाबी से जो रिवायत तहरीर की है इसमें गज़वात की कुल तादाद 19 बताई गई है।

👉🏽"सराया" की तादाद बाज़ मुअर्रिखिन के नज़्दीक 47 और बाज़ के नज़्दीक 56 है।

👉🏽इमाम बुखारी ने मुहम्मद बिन इस्हाक़ رضي الله تعالي عنه से रिवायत किया है की सब से पहला ग़ज़्वा "अब्वा" और सब से आखिरी ग़ज़्वा "तबूक" है और सबसे पहला सरिय्या जो मदीने से जंग के लिये रवाना हुवा वो "सरिय्यए हम्ज़ा" है।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 202-203
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❗गज़वात व सराया❗

👉🏽हज़रत के बाद का तक़रीबन कुल ज़माना "गज़वात व सराया" के एहतिमाम व इन्तिज़ाम में गुज़रा इस लिये की अगर "गज़वात" की कम से कम तादाद जी रिवायत में आई है, यानि 19 और "सरया" की कमसे कम तादाद 47 शुमार कर ली जाए तो 9 साल में हुज़ूर ﷺ को छोटी बड़ी 66 लड़ाइयो का सामना करना पड़ा।

👉🏽लिहाज़ा "गज़वात व सराया" का उन्वान हुज़ूर ﷺ की सिरते मुक़द्दसा का बहुत ही अज़ीमुश्शान हिस्सा है और इन तमाम गज़वात व सराया और इनके वुज़ूह व अस्बाब का पूरा पूरा हाल इस्लामी तारीखों में मज़कूर व महफूज़ है,

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 203-204
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❗सरिय्यए हम्ज़ा❗

🌴हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने हिजरत के बाद जब जिहाद की आयत नाज़िल हो गई तो अब से पहले जो छोटा सा लश्कर कुफ़्फ़ार के मुक़ाबले के लिये रवाना फ़रमाया उस का नाम "सरिय्यए हम्ज़ा" है।

🌴हुज़ूर ﷺ ने अपने चचा हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه बिन अब्दुल मुत्तलिब को एक सफेद झन्डा अता फ़रमाया और उस झण्डे के निचे सिर्फ 30 मुहाजिरिन को एक लश्करे कुफ़्फ़ार के मुक़ाबले के लिये भेजा जो 300 की तादाद में थे और अबू जहल उनका सिपह सालार था।

🌾हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه "सैफुल बहर" तक पहुचे और दोनों तरफ से जंग के लिये सफ बन्दी भी हो गई, लेकिन एक शख्स मज्दी बिन अम्र जुहनी ने जो दोनों फरीक का हलिफ् था बिच में पड़ कर लड़ाई मौक़ूफ़ करा दी।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 204
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❗सरिय्यए उबैदा बिन हारिष❗

👉🏽इस साल 60 या 80 मुहाजिरिन के साथ हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उबैदा बिन हारिष رضي الله تعالي عنه को सफेद झंडे के साथ अमीर बना कर "राबिग" की तरफ रवाना फ़रमाया। इस सरियये के आलम बरदार हज़रते मुस्तह बिन आषाषा رضي الله تعالي عنه थे।

👉🏽जब ये लश्कर "शनिय्यए मुर्रह" के मक़ाम पर पंहुचा तो अबू सुफ़यान और अबू जहल के लड़के इकरमा की कमान में दो सो कुफ़्फ़ारे क़ुरैश जमा थे दोनों लश्करो का सामना हुवा।

👉🏽हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه ने कुफ़्फ़ार पर तीर फेका ये सब से पहला तीर था जो मुसलमानो की तरफ से कुफ़्फ़ारे मक्का पर चलाया गया। हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه ने कुल 8 तीर फेके और हर तीर निशाने पर ठीक बैढा।

👉🏽कुफ़्फ़ार इन तिरो की मार से घबरा कर फिरार हो गए इस लिये कोई जंग नहीं हुई।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 205
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❗सरिय्यए साद बिन अबी वक़्क़ास❗

👉🏽इसी साल माह जुल क़ादह में हज़रते साद बिन वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه को 20 सुवारो के साथ हुज़ूर ﷺ ने इस मक़सद से भेजा ताकि ये लोग कुफ़्फ़ारे कुरैश के एक लश्कर का रास्ता रोके,

👉🏽इस सरिय्ये का झंडा भी सफेद रंग का था और हज़रते मिक़्दाद बिन अस्वद رضي الله تعالي عنه इस लश्कर के अलम बरदार थे।

👉🏽ये लश्कर रातो रात सफर करते हुए जब पाँचवे दिन मक़ामे "खिरार" पर पहुचे तो पता चला की मक्का के कुफ़्फ़ार एक दिन पहले ही फिरार हो चुके है, इस लिये किसी तसादुम की नौबत ही नहीं आई।

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❗गज़वए अब्वा❗

👉🏽इस ग़ज़वे को "ग़ज़वए वदान" भी कहते है। ये सब से पहला ग़ज़्वा है यानि पहली मर्तबा हुज़ूर ﷺ जिहाद के इरादे से माहे सफर सी. 2 ही. में 60 मुहाजिरिन को अपने साथ ले कर मदीने से बाहर निकले।

👉🏽हज़रते साद बिन उबादा رضي الله تعالي عنه को मदीने में अपना खलीफा बनाया और हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه को झंडा दिया और मक़ामे "अब्वा" तक कुफ़्फ़ार का पीछा करते हुए तशरीफ़ ले गए मगर कुफ़्फ़ारे मक्का फिरार हो चुके थे इस लिये कोई जंग नहीं हुई।

👉🏽"अब्वा" मदीने से 80 मिल दूर एक गाउ है जहां हुज़ूर ﷺ की वालिदए माजिदा हज़रते आमिना का मज़ार है। यहाँ चन्द दिन ठहर कर क़बिलए बनू ज़मरा के सरदार "मख्शि बिन अम्र ज़मरि" से इमदादे बाहमी का एक तहरीरी मुआहदा किया और मदीना वापस तशरीफ़ लाए

👉🏽इस ग़ज़वे में 15 दिन आप मदीना से बाहर रहे।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 206
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❗ग़ज़्वए बवात❗

👉🏽हीज़रत के 13वे महीने सी.2 ही. में मदीने पर हज़रते साद बिन मुआज़ رضي الله تعالي عنه को हाकिम बना कर 200 मुहाजिरिन को साथ ले कर हुज़ूर ﷺ जिहाद की निय्यत से रवाना हुए। इस ग़ज़वे का झंडा भी सफेद था और अलम बरदार हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه थे।

👉🏽इस ग़ज़वे का मक़सद कुफ़्फ़ारे मक्का के एक तिजारती काफिले का रास्ता रोकना था।

👉🏽इस काफिले का सालार उमय्या बिन खलफ़ जमही رضي الله تعالي عنه था और इस काफिले में 100 कुरैशी कुफ़्फ़ार और 2500 ऊंट थे।

🌴हुज़ूर ﷺ इस काफिले की तलाश मर मक़ामे "बवात" तक तशरीफ़ के गए मगर कुफ़्फ़ारे कुरैश का कही सामना नहीं हुवा इस लिये हुज़ूर ﷺ बिगैर किसी जंग के मदीना वापस तशरीफ़ लाए।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 206-207
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❗ग़ज़्वए सफ्वान❗

👉🏽इसी साल "करज़ बिन जाफर फहरी" ने मदीने की चरागाह में डाका डाला और कुछ ऊँटो को हांक कर ले गया।

👉🏽हुज़ूर ﷺ ने हज़रते ज़ैद बिन हारिषा رضي الله تعالي عنه को मदीने में अपना खलीफा बना कर और हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को अलम बरदार बना कर सहाबा की एक जमाअत के साथ वादिये सफ्वान तक उस डाकू का तआकुब किया मगर वो इस क़दर तेज़ी के साथ भागा की हाथ नहीं आया और हुज़ूर ﷺ मदीना वापस तशरीफ़ लाए।

👉🏽वादिये सफ्वान "बद्र" के क़रीब है इसी लिये बाज़ मुअर्रिखिन ने इस ग़ज़वे का नाम "ग़ज़्वए बद्रे ऊला" रखा है।

👉🏽इस लिये ये याद रखना चाहिये कि ग़ज़्वए सफ्वान और ग़ज़्वए बद्रे ऊला दोनों एक ही ग़ज़वे के दो नाम है।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 207
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❗ग़ज़्वए ज़िल उशैरह❗

👉🏽इसी सी.2 ही. में कुफ़्फ़ारे क़ुरैश का एक काफिला माले तिजारत ले कर मक्का से शाम जा रहा था।

🌴हुज़ूर ﷺ 150 या 200 मुहाजिरिन सहाबा को साथ ले कर उस क़ाफ़िले का रास्ता रोकने के लिये मक़ामे "ज़िल उशैरह" यक तशरीफ़ ले गए जो "यम्बुअ" की बन्दर गाह के क़रीब है मगर यहाँ पहुच कर मालुम हुवा की क़ाफ़िला बहुत आगे बढ़ गया है।

👉🏽इस लिये कोई टकराव नहीं हुवा मगर येही क़ाफ़िला शाम से वापस लौटा और हुज़ूर ﷺ उस की मुज़ाहमत के लिये निकले तो जंगे बद्र का मारिका पेश आ गया जिद का मुफ़स्सल ज़िक्र आगे आएगा।
इंशा अल्लाह

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 207
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❗सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन हजश❗
♻Part~01

👉🏽इसी साल माहे रजब सी.2 ही. में हुज़ूर ﷺ हज़रते अब्दुल्लाह बिन हजश رضي الله تعالي عنه को अमीरे लश्कर बना कर उनकी मा तहति में 8 या 12 मुहाजिरिन का एक जथ रवाना फ़रमाया, दो दो आदमी एक एक ऊंट पर सुवार थे।

🌴हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन हजश رضي الله تعالي عنه को लिफ़ाफ़े में एक मोहर बन्द खत दिया और फ़रमाया की दो दिन सफर करने के बाद इस लिफ़ाफ़े को खोल कर पढ़ना और इस में जो हिदायत लिखी हुई है उन पर अमल करना।

👉🏽जब खत खोल कर पढ़ा टॉस में ये दर्ज था की तुम ताइफ़ और मक्का के दरमियान मक़ामे " नखल" में ठहर कर क़ुरैश के काफिलों पर नज़र रखो और सूरते हाल की हमे बराबर खबर देते रहो।

👉🏽ये बड़ा ही खतरनाक काम था क्यू की दुश्मनो के ऐन मर्कज़ में क़याम कर के जासूसी करना गोया मौत के मुह में जाना था मगर ये सब जां निषार बे धड़क मक़ामे "नखला" पहुच गए।

📨Continue...

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 208
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❗सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन हजश❗
♻Part~02

👉🏽अज़िब् इत्तिफ़ाक़ की रजब की आखिरी तारीख को ये लोग नखला में पहुचे और इसी दिन कुफ़्फ़ारे क़ुरैश का एक तिजारती क़ाफ़िला आया जिस में अम्र बिन अल हज़्रमि और अब्दुल्लाह बिन मुगिरा के दो लड़के उष्मान व नौफिल और हकम बिन कैसान वग़ैरा थे और ऊँटो पर खजूर और दूसरा माले तिजारत लदा हुवा था।

👉🏽अमीरे सरिय्या हज़रते अब्दुल्लाह बिन हजश رضي الله تعالي عنه ने अपने साथियो से फ़रमाया की अगर ह्मबिं क़ाफ़िले वालो को छोड़ दे तो ये लोग मक्का पहुच कर हम लोगो को क़त्ल या गिरफ्तार करा देंगे और अगर हम इन लोगो से जंग करे तो आज रजब की आखरी तारीख है लिहाज़ा शहरे हराम में जंग करने का गुनाह हम पर लाज़िम होगा। आखिर येही राय क़रार पाई की इन लोगो से जंग करके अपनी जान के खतरे को दफा करना चाहिये।

👉🏽चुनान्चे हज़रते वाक़ीद बिन अब्दुल्लाह तमिमि رضي الله تعالي عنه ने एक ऐसा ताक कर तीर मारा की वो अम्र बिन अल हज़्रमि को लगा और वो उसी तीर से क़त्ल हो गया और उष्मान व हकम को इन लोगो ने गिरफ्तार कर लिया, नौफिल भाग निकला।

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🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 208-209
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❗सरिय्यए अब्दुल्लाह बिन हजश❗
♻Part~03

👉🏽हज़रते अब्दुल्लाह बिन हजश رضي الله تعالي عنه ऊँटो और उन पर लदे हुए माल व अस्बाब को माले गनीमत बना कर मदीना लौट आए और हुज़ूर ﷺ की खिदमत में इस माले गनीमत का पांचवा हिस्सा पेश किया।

👉🏽जो लोग क़त्ल या गिरफ्तार हुए वो बहुत ही मुअज़्ज़ज़् खानदान के लोग थे। अम्र बिन अल हज़्रमि जो क़त्ल हुवा अब्दुल्लाह हज़्रमि का बीटा था। अम्र बिन अल हज़्रमि पहला काफ़िर था जो मुसलमानो के हाथ से मारा गया।

👉🏽जो लोग गिरफ्तार हुए उनमेसे उष्मान तो मुगिरा का पोता था जो क़ुरैश का एक बहुत बड़ा रईश शुमार किया जाता था और हकम बिन कैसान, हश्शाम बिन अल मुगिरा का आज़ाद करदा गुलाम था। इस बिना पर इस वाकियेने तमाम कुफ़्फ़ारे क़ुरैश को गैज़ो गज़ब में आग बगुला बना दिया और "खून का बदला खून" लेने का नारा मक्का के हर कुचा व बाज़ार में गूंजने लगा और दर हक़ीक़त जंगे बद्र का मारिका इसी वाकिए का रद्दे अमल है।

👉🏽चुनान्चे हज़रते उर्वह बिन ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه का बयान है की जंगे बद्र और तमाम लड़ाइयां जो कुफ़्फ़ारे क़ुरैश से हुई सब का बुन्यादी सबब अम्र बिन अल हज़्रमि का क़त्ल है जिस को हज़रते वाक़ीद बिन अब्दुल्लाह तमीम رضي الله تعالي عنه ने तीर मार कर क़त्ल कर दिया था।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 209
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❗जंगे बद्र❗

👉🏽"बद्र" मदिनए मुनव्वरह से तक़रीबन 80 मिल के फासिले पर एक गाउ का नाम है जहा ज़मानए जाहिलिय्यत में सालाना मेला लगता था। यहां एक कुआ भी था जिस के मालिक का नाम "बद्र" था उसी के नाम पर इस जगह का नाम "बद्र" रख दिया गया।

👉🏽इसी मक़ाम पर जंगे बद्र का वो अज़ीम मारिका हुवा जिस में कुफ़्फ़ारे क़ुरैश और मुसलमानो के दरमियान सख्त खूंरेज़ी हुई और मुसलमानो को वह अज़ीमुश्शान फ़त्ह मुबीन नसीब हुई जिस के बाद इस्लाम की इज़्ज़त व
इक़बाल का परचम इतना सर बुलंद हो गया की कुफ़्फ़ारे क़ुरैश की अज़्मतो शौकत बिलकुल ही ख़ाक में मिल गई।

☝🏽अल्लाह तआला ने जंगे बद्र के दिन का नाम "यौमुल फ़ुरक़ान" रखा। क़ुरआन की सूरए अनफाल में तफ़सील के साथ और दूसरी सूरतो में इजमाल बार बार इस मारीके का ज़िक्र फरमाया और इस जंग में मुसलमानो की फ़त्ह मुबीन के बारे में एहसान जताते हुए खुदा वन्दे आलम ने क़ुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाया की :

☝🏽और यक़ीनन खुदा वन्दे तआला ने तुम लोगो की मदद फ़रमाई बद्र में जब की तुम लोग कमज़ोर और बे सरो सामान थे तो तुम लोग अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ।

📨Continue...

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 210-211
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❗जंगे बद्र का सबब❗

👉🏽जंगे बद्र का अस्ली सबब तो जैसा हम तहरीर कर चुके है "अम्र बिन अल हज़्रमि" के क़त्ल से कुफ़्फ़ारे कुरैश में फैला हुवा ज़बर दस्त इश्तिआल था जिस से हर काफ़िर की ज़बान पर येही एक नारा था "खून का बदला खून ले कर रहेंगे"।

👉🏽मगर बिलकुल न गहा ये सूरत पेश आ गई कि क़ुरैश का वो क़ाफ़िले जिस की तलाश में हुज़ूर ﷺ मक़ामे "जिल उशैरह" तक तशरीफ़ ले गए थे मगर वो क़ाफ़िला हाथ नहीं आया था बिलकुल अचानक मदिनए में खबर मिली की अब वोही क़ाफ़िला मुल्के शाम से लौट कर मक्का जाने वाला है और ये भी पता चल गया की इस क़ाफ़िले में अबू सुफ़यान बिन हर्ब व मखरिमा बिन नैफिल व अम्र बिन अल आस वगैरा कुल 30 या 40 आदमी है और कुफ़्फ़ारे क़ुरैश का माले तिजारत जो उस क़ाफ़िले में है वो बहुत ज्यादा है।

🌴हुज़ूर ﷺ ने अपने असहाब से फ़रमाया की कुफ़्फ़ारे क़ुरैश की टोलिया लूटमार की निय्यत से मदिने के अतराफ़ में बराबर गश्त लगाती रहती है और "करज़ बिन जाबिर फहरी" मदिनए की चारगाहो तक आ कर गारत गरी और डाका ज़नी कर गया है लिहाज़ा क्यू न हम भी कुफ़्फ़ारे क़ुरैश के इस क़ाफ़िले पर हमला करके उस को लूट ले ताकि कुफ़्फ़ारे क़ुरैश की शामी तिजारत बंद हो जाए और वो मजबूर हो कर हम से सुल्ह कर ले।

🌴हुज़ूर ﷺ का ये इरशादे गिरामी सुन कर अन्सार व मुहाजिरिन इस के लिए तैयार हो गए।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा  210-211
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❗मदिने से रवानगी❗
♻Part~01

👉🏽चुनान्चे 12 रमज़ान सी.2 ही. को बड़ी उजलत के साथ लोग चल पड़े, जो जिस हाल में था उसी हाल में रवाना हो गया। इस लश्कर में हुज़ूर ﷺ के साथ न ज्यादा हथियार थे न फ़ौजी राशन की कोई बड़ी क़िक़दार थी, क्यू की किसी को गुमान भी न था की इस सफर में कोई बड़ी जंग होगी।

👉🏽मगर जब मक्का में ये खबर फैली की मुसलमान मुसल्लह हो का क़ुरैश का क़ाफ़िला लूटने के लिये मदीने से चल पड़े है तो मक्का में एक जोश फेल गया और एक दम कुफ़्फ़ारे क़ुरैश की फोज़ का दल बादल मुसलमानो पर हमला करने के लिये तैयार हो गया।

👉🏽जब हुज़ूर ﷺ को इसकी इत्तिला मिली तो आप ने सहाबए किराम को जमा फ़रमा कर सूरते हाल से आगाह किया और साफ़ साफ़ फ़रमा दिया की मुम्किन है की इस सफर में कुरैश के क़ाफ़िले से मुलाक़ात हो जाए और ये भी हो सकता है की कुफ़्फ़ारे मक्का के लश्कर से जंग की नौबत आ जाए।

👉🏽इरशादे गिरामी सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه व हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه और दूसरे मुहाजिरिन ने बड़े जोशो खरोश का इज़हार किया मगर हुज़ूर ﷺ अन्सार का मुह देख रहे थे क्यू की अन्सार ने आप के दस्ते मुबारक पर बैअत करते वक़्त इस बात का अहद किया था की वो उस वक़्त तलवार उठाएंगे जब कुफ़्फ़ार मदीने पर चढ़ आएँगे और मदीने से बाहर निकल कर जंग करने का मुआमला था।

📨Continue...

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 211-212
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❗मदीने से रवानगी❗
♻Part~02

👉🏽अन्सार में से क़बिलए खज़रज के सरदार हज़रते साद बिन उबादा رضي الله تعالي عنه हुज़ूर ﷺ का चेहरए अन्वर देख कर बोल उठे की या रसूलुल्लाह ﷺ ! क्या आप का इशारा हमारी तरफ है ? खुदा की क़सम ! हम वो जां निषार है कि अगर आप का हुक्म हो तो हम समुन्दर में कूद पड़े,

👉🏽इसी तरह अन्सार के एक और मुअज़्ज़ज़् सरदार हज़रते मिक़्दाद बिन अस्वद رضي الله تعالي عنه ने जोश में आ क्र अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ﷺ ! हम हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम की तरह ये न कहेंगे कि आप और आप का खुदा जा कर लड़े बल्कि हम लोग आप के दाए से, बाए से, आगे से, पीछे से लड़ेंगे।

👉🏽अन्सार के इन दोनों सरदारो की तक़रीर सुन कर हुज़ूर ﷺ का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।

👉🏽मदीने से एक मिल दूर चल कर हुज़ूर ﷺ ने अपने लश्कर का जायज़ा लिया, जो लोग कम उम्र थे उन को वापस कर देने का हुक्म दिया क्यू कि जंग के पुर खतर मौके पर भला बच्चों का क्या काम ?

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 212
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🌱नन्हा सिपाही🌱

👉🏽मगर इन्ही बच्चों में हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास के छोटे भाई हज़रते उमैर बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه भी थे। जब उन से वापस होने को कहा गया तो वो मचल गए और फुट फुट कर रोने लगे और किसी तरह वापस होने पर तैयार न हुए।

👉🏽उनकी बे क़रारी और गिर्या व ज़ारी देख कर रहमते आलम ﷺ का कल्बे नाजुक मुतअशशिर हो गया और आप ने उन को साथ चलने की इजाज़त दे दी। चुनान्चे हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه ने उस नन्हे सिपाही के गले में भी एक तलवार हमाइल कर दी,

👉🏽मदीने से रवाना होने के वक़्त नमाज़ों के लिये हज़रते इब्ने उम्मे मक्तूम رضي الله تعالي عنه को आप ने मस्जिदे नबवी का इमाम मुक़र्रर फ़रमा दिया था लेकिन जब आप मक़ामे "रौहा" में पहुचे तो मुनाफ़िक़ीन और यहूदियो की तरफ से कुछ खतरा महसूस फरमाया इस लिये आप ने हज़रते अबू लुबाबा बिन अब्दुल मुन्ज़िर को मदीने का हाकिम मुक़र्रर कर इन को मदीना वापस जाने का हुक्म दिया और हज़रते आसिम बिन अदि رضي الله تعالي عنه को मदीने के चढ़ाई वाले गाउ पर निगरानी रखने का हुक्म सादिर फरमाया।

👉🏽इन इंतिज़ामात के बाद हुज़ूरे अकरम ﷺ "बद्र" की जानिब चल पड़े जिधर से कुफ़्फ़ारे क़ुरैश मक्का के आने की खबर थी। अब कुल फैज़ की तादाद 313 थी जिन में 60 मुहाजिर और बाक़ी अन्सार थे। मंज़िल ब मंज़िल सफर फरमाते हुए जब आप मक़ामे "सफरा" में पहुचे तो दो आदमियो को जासिसु के लिये रवाना फ़रमाया ताकि वो काफिले का पता चलाए की वो किधर है ? और कहा तक पंहुचा है ?

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 213
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❗अबू सुफ़यान की चालाकी❗

👉🏽उधर कुफ़्फ़ारे क़ुरैश के जासूस भी अपना काम बहुत मुस्तइद्दी से कर रहे थे।
👉🏽जब हुज़ूर ﷺ मदीने से रवाना हुए तो अबू सुफ़यान को इस की खबर मिल गई। इस ने फौरन ही ज़मज़म बिन अम्र गिफारि को मक्का भेजा कि वो क़ुरैश को इस की खबर दे ताकि वो अपने क़ाफ़िले की हिफाज़त का इन्तिज़ाम करे और खुद रास्ता बदल कर क़ाफ़िले को समुन्दर की जानिब ले कर रवाना हो गया।
👉🏽अबू सुफ़यान का क़ासिद ज़मज़म बिन अम्र जब मक्का पंहुचा तो उस वक़्त के दस्तूर के मुताबिक़ कि जब कोई खौफनाक खबर सुनानी होती तो खबर सुनाने वाला अपने कपड़े फाड़ कर और ऊंट की पीठ पर खड़ा हो कर चिल्ला चिल्ला कर खबर सुनाया करता था।
👉🏽ज़मज़म बिन अम्र ने अपना कुरता फाड़ डाला और ऊंट की पीठ पर खड़ा हो कर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा कि ऐ अहले मक्का ! तुम्हारा सारा माले तिजारत अबू सुफ़यान के क़ाफ़िले में है और मुसलमानो ने इस क़ाफ़िले का रास्ता रोक कर क़ाफ़िले को लूट लेने का अज़्म कर लिया है लिहाज़ा जल्दी करो और बहुत जल्द अपने इस क़ाफ़िले को बचाने के लिये हथियार ले कर दौड़ पड़ो।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 214
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❗कुफ़्फ़ारे कुरैश का जोश❗

👉🏽जब मक्का में ये खौफनाक खबर पहुची तो इस क़दर हलचल मच गई कि मक्का का सारा अम्नो सुकून गारत हो गया, तमाम क़बाइले कुरैश औने घरो से निकल पड़े, सरदाराने मक्का में से सिर्फ अबू लहब अपनी बिमारी की वजह से नहीं निकला, इसके सिवा तमाम रुअसाए कुरैश पूरी तरह मुसल्लह हो कर निकल पड़े
👉🏽और चूंकि मक़ामे नखला का वाक़ीआ बिलकुल ही ताज़ा था जिस में अम्र बिन अल हज़्रमि मुसलमानो के हाथ से मारा गया था और उस के क़ाफ़िले को मुसलमानो ने लूट लिया था इस लिये कुफ़्फ़ारे कुरैश जोशे इन्तिक़ाम में आप से बाहर हो रहे थे।
👉🏽1000 का लश्करे जर्रार जिस का हर सिपाही पूरी तरह मुसल्लह, दौहरे हथियार, फौजी की खुराक का ये इन्तिज़ाम था की कुरैश के मालदार लोग बारी बारी से रोज़ाना दस दस ऊंट ज़बह करते थे और पुरे लश्कर को खिलाते थे
👉🏽उत्बा बिन रबीआ जो कुरैश का सब से बड़ा रईसे आज़म था इस पुरे लश्कर का सिपह सालार था।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 214-215
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❗अबू सुफ़यान बच कर निकल गया❗

👉🏽अबू सुफ़यान जब आम रास्ते से मुड़ कर साहिले समुन्दर के रास्ते पर चल पड़ा और खतरे के मक़ामात से बहुत दूर पहुच गया
👉🏽और इसको अपनी हिफाज़त का पूरा पूरा इत्मीनान हो गया तो इस ने कुरैश को एक तेज़ रफ़्तार क़ासिद के ज़रिए खत भेज दिया कि तुम लोग अपने माल और आदमियो को बचाने के लिये अपने घरो से हथियार ले कर निकल पड़े थे अब तुम लोग अपने अपने घरो को वापस लौट जाओ क्यू कि हम लोग मुसलमानो की यलगार और लूटमार से बच गए है और जान व माल की सलामती के साथ हम मक्का पहुच रहे है।

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📚सिरते मुस्तफा, सफा 215
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❗कुफ़्फ़ार में इख़्तिलाफ़❗

👉🏽अबू सुफ़यान का ये खत कुफ़्फ़ारे मक्का को उस वक़्त मिला जब वो मक़ामे "जुहफा" में थे।
👉🏽खत पढ़ कर क़बिलए बनू ज़हरा और क़बिलए बनू अदी के सरदारो ने कहा कि अब मुसलमानो से लड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है लिहाज़ा हम लोगो को वापस लौट जाना चाहिये।

👆🏽ये सुन कर अबू जहल बिगड़ गया और कहने लगा की हम खुदा की क़सम ! इसी शान के साथ बद्र तक जाएंगे, वहा ऊंट जबह करेंगे और खूब खाएंगे, खिलाएंगे, शराब पिएंगे, नाचरंग की महफिले जमाएंगे ताकि तमाम क़बाइले अरब पर हमारी अज़मत और शौकत का सिक्का बैठ जाए और वो हमेशा हम से डरते रहे।

👉🏽कुफ़्फ़ारे कुरैश ने अबू जहल की राय पर अमल किया लेकिन बनू ज़हरा और बनू अदी के दोनों क़बाइल वापस लौट गए। इन दोनों क़बीलों के सिवा बाक़ी कुफ़्फ़ारे कुरैश के तमाम क़बाइल जंगे बद्र में शाम हुए।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 215-216
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❗कुफ़्फ़ारे कुरैश बद्र में❗

👉🏽कुफ़्फ़ारे कुरैश चुकी मुसलमानो से पहले बद्र में पहुच गए थे इस लिये मुनासिब जगहों पर उन लोगो ने अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था।

🌴हुज़ूर ﷺ जब बद्र के क़रीब पहुचे तो शाम के वक़्त हज़रते अली, हज़रए ज़ुबैर, हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه को बद्र की तरफ भेजा ताकि ये लोग कुफ़्फ़ारे कुरैश के बारे में खबर लाए।

👉🏽इन हज़रात ने कुरैश के दो गुलामो को पकड़ लिया जो लश्करे कुफ़्फ़ार के लिये पानी भरने पर मुकर्रर थे। हुज़ूर ﷺ ने उन दोनों गुलामो स दरयाफ़्त फरमाया कि बताओ उस कुरैशी फैज़ में कुरैश के सरदारो में से कौन कौन है ?
👉🏽तो दोनों गुलामो ने बताया कि उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबीआ, अबुल बख्तरी, हकीम बिन हिजाम, नौफिल बिन खुवैलद, हारिष बिन आमिर, नज़र बिन अल हारिष, जमा बिन अल अस्वद, अबू जहल बिन हश्शाम, उमय्या बिन खलफ़्, सुहैल बिन अम्र, अम्र बिन अब्दे वुद, अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब वग़ैरा सब इस लश्कर में मौजूद है।

👆🏽ये फेहरिस्त सुन कर हुज़ूर ﷺ अपने असहाब की तरफ मुतवज्जेह हुए और फरमाया कि मुसलमानो ! सुन लो ! मक्का ने अपने जिगर के टुकड़ो को तुम्हारी तरफ दाल दिया है।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 216-217
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🏜ताजदारे दो आलम ﷺ बद्र के मैदान में🏜

🌴हुज़ूर ﷺ ने जब बद्र में नुज़ूल फ़रमाया तो ऐसी जगह पड़ाव डाला कि जहां न कोई कुआ था न कोई चश्मा और वहा की ज़मीन इतनी रेतीली थी कि घोड़े के पाउ ज़मीन में धंसते थे।
👆🏽ये देख कर हज़रते हुबाब बिन मुन्जिर رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ ! आप ने पड़ाव के लिये जिस जगह को मुन्तख़ब फरमाया है ये वहय की रु से है या फौजी तदबीर है ?

🌴आप ﷺ ने फ़रमाया कि इस के बारे में कोई वहय नहीं उतरी है।
👉🏽हज़रते हुबाबा رضي الله تعالي عنه ने कहा कि फिर मेरी राय में जंगी तदबीर की रू से बेहतर ये है कि हम कुछ आगे बढ़ कर पानी के चश्मो पर क़ब्ज़ा कर ले ताकि  कुफ़्फ़ार जिन कूफ़ो पर क़ाबिज़ है वो बेकार हो जाए क्यू की इन्ही चश्मो से उन के कुओ में पानी जाता है।

🌴हुज़ूर ﷺ ने उन की राय को पसंद फरमाया और उसी पर अमल किया गया। खुदा की शान कि बारिश भी हो गई जिस से मैदान की गर्द और रेत जम गई जिस पर मुसलमानो के लिये चलना फिरना आसान हो गया क्र कुफ़्फ़ार की ज़मीन पर कीचड़ हो गई जिस से उन को चलने फिरने में दुश्वारी   हो गई क्र मुसलमानो ने बारिश का पानी रोक कर जा बजा हैज़ बना लिये ताकि ये पानी गुस्ल और वुज़ू के काम आए।

👆🏽इसी एहसान को खुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन में इस तरह बयान फ़रमाया की
☝🏾और खुदा ने आसमान से पानी बरसा दिया ताकि वो तुम लोगो को पाक करे।
📗पारह 9

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 217-218
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🌴सरवरे काएनात ﷺ की शब बेदारी🌴

👉🏽17 रमज़ान सी.2 हि. जुमुआ की रात थी तमाम फ़ौज तो आराम व चैन की नींद सो रही थी

👉🏽मगर एक सरवरे काएनात की ज़ात थी जो सारी रात खुदा वन्दे आलम से लौ लगाए दुआ में मसरूफ़ थी।

👉🏽सुबह नमूदार हुई तो आप ने लोगो को नमाज़ के लिये बेदार फरमाया फिर नमाज़ के बाद कुरआन की आयाते जिहाद सुना कर ऐसा लरज़ा खैज़ और वलवला अंगेज़ वअज़ फरमाया कि मुजाहिदीने इस्लाम की रगो के खून का क़तरा क़तरा जोशो खरोश का समुन्दर बन कर तूफानी मौज़े मारने लगा और लोग मैदाने जंग के लिये तैयार होने लगे।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 218
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❗जंगे बद्र❗

कौन कब❓ और कहा मरेगा❓

👉🏽रात ही में चन्द जां निषरो के साथ आप ﷺ ने मैदान जंग का मुआयना फ़रमाया, उस वक़्त दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी. आप ﷺ उसी छड़ी से ज़मीन पर लकीर बनाते थे और ये फरमाते जाते थे कि ये फूल काफिर के कत्ल होने की जगह है और कल यहाँ फूल काफ़िर की लाश पड़ी हुई मिलेगी.
चुनान्चे ऐसा ही हुवा कि आप ﷺ ने जिस जगह जिस काफिर की क़त्ल गाह बताई थी उस काफिर की लाश ठीक उसी जगह पाई गई उन में से किसी एक ने लकीर से बिल बराबर भी तजवुज़ नही किया.

👉🏽इस हदिष से साफ और सरीह तौर पर ये मसअला शाबित हो जाता है कि कौन कब ? और कहा मरेगा ? इन दोनों गैब की बातो का इल्म अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ को अता फ़रमाया था.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 218-219
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🗡जंगे बद्र🗡

❗लड़ाई टलते टलते फिर ढन गई❗
♻Part~01

👉🏽कुफ्फ़रे कुरैश लड़ने के लिये बेताब थे मगर उन लोगो में कुछ सुलझे दिलो दिमाग के लोग भी थे जो खुनरेज़ी को पसंद नहीं करते थे।

👉🏽चुनान्चे हकीम बिन हिजाम जो बाद में मुसलमान हो गए बहूत ही संजीदा और नरम खून थे। उन्हों ने अपने लश्कर के सिपह सालार उत्बा बिन रबीआ से कहा कि आखिर इस खुनरेज़ी से क्या फाएदा ? में आप को एक निहायत ही मुखलिसाना मशवरा देता हु वो ये है कि कुरैश का जो कुछ मुतालबा है वो अम्र बिन अल हज़्रमि का खून है और वो आप का हलीफ है आप उसका खून बहा अदा कर दीजिये,

👉🏽इस तरह ये लड़ाई टल जाएगी और आज का दिन आप की तारीखी ज़िन्दगी में आप की नेक नामी की यादगार बन जाएगा कि आप के तदब्बुर से एक बहुत ही कहुफनाक और खुनरेज़ लड़ाई टल गई।

👉🏽उत्बा बज़ाते खुद बहुत ही मुदब्बिर और नेक नफ़्स आदमी था। इस ने बख़ुशी इस मुखलिसाना मशवरे को क़बूल कर लिया मगर इस मुआमले में अबू जहल की मंजूरी भी ज़रूरी थी।

👉🏽चुनान्चे हकीम बिन हिजाम जब उत्बा बिन रबीआ का ये पैगाम ले कर अबू जहल के पास गए तो अबू जहल की रगे जहालत भड़क उठी और उसने एक खून खौला देने वाला ताना मारा और कहा कि हा हा ! में खूब समझता हु की उत्बा की हिम्मत ने जवाब दे दिया चुकी इस का बीटा हुजैफा मुसलमान हो कर इस्लामी लश्कर के साथ आया है इस लिये वो जंग से जी चुराता है ताकि इस के बेटे पर आच न आए।

📨Continue...

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 219
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❗लड़ाई टलते टलते फिर ढन गई❗
♻part~02

👉🏽फिर अबू जहल ने इसी पर बस नहीं किया बल्कि अम्र बिन अल हज़्रमि मक़तूल के भाई आमिर बिन अल हज़्रमि को बुला कर कहा की देखो तुम्हारे मक़तूल भाई अम्र के खून का बदला लेने की सारी स्किम तहस नहस हुई जा रही है क्यू की हमार लश्कर का सिपह सालार उत्बा बुज़दिली ज़ाहिर कर रहा है.

👉🏽ये सुनते ही आमिर बिन हज़्रमि ने अरब दस्तूर के मुताबिक़ अपने कपड़े फाड़ डालें और अपने सर पर धूल दिलाते हुए "वा उमराह वा उमराह" का नारा मारना शुरू कर दिया. इस कार रवाई ने कुफ़्फ़ार कुरैश की तमाम फ़ौज में आग लगा दी और सारा लश्कर "खून का बदल खून" के नारो से गूंजने लगा और हर सिपाही जोश में आप से बाहर हो कर जंग के लिए बेताब व बे क़रार हो गया.

👉🏽उत्बा ने जब अबू जहल का ताना सुना तो वो भी कस में भर गया और कहा की अबू जहल से कह दो कि मैदान जंग बताएगा कि बुज़दिल कौन है ? ये कह कर लोहे की टोपी तलब की मगर उस का सर इतना बड़ा था कि टोपी उस के सर पर ठीक नहीं बैठी तो मजबूरन उस ने अपने सर पर कपड़ा लपेटा और हथियार पहन कर जंग के लिए तैयार हो गया.

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📚सिरते मुस्तफा, स.220
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❗मुजाहिदीन की सफ आराई❗

👉🏽17 रमज़ान सि. 2 हि. जुमुआ के दिन हुज़ूर ﷺ ने मुजाहिदीन इस्लाम को सफ बंदी का हुक्म दिया दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी उस के इशारे से आप सफे दूरवत फ़रमा रहे थे  कि कोई शख्स आगे पीछे न रहने पाए और ये भी हुक्म फ़रमा दिया कि बजुज़ ज़िक्र इलाही के कोई शख्स किसी किस्म का कोई शोरो गुल न मचाए.

👉🏽ऍन ऐसे वक़्त में कि जंग का नक़्क़ारा बजने वाला ही है दो ऐसे वकीआत दरपेश हो गए जो निहायत ही इबरत ख़ेज़ और बहुत ज्यादा नसीहत आमोज़ है.

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🌱शिकमी मुबारक का बोसा🌱

🌴हुज़ूर ﷺ अपनी छड़ी के इशारे से से सीधी फर्म रहे थे कि आप ने देखा कि हज़रते सवाद رضي الله تعالي عنه बिन अन्सारी  का पेट सफ से कुछ आगे निकल हुवा था. आप ने अपनी छड़ी से उन के पेट पर एक कोचा दे क्र फ़रमाया कि ऐ स्वाद सीधे खड़े हो जाओ,

👉🏽हज़रते सवाद ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ ! आप ने मेरे शिकम पर छड़ी मारी है मुझे
आप से इस का बदल लेना है.

👉🏽ये सुन कर आप ने अपना पैराहन शरीफ उठा कर फ़रमाया कि सवाद ! लो मेरा शिकम हाज़िर है तुम इस पर छड़ी मार कर मुझसे अपना बदला ले लो.
👉🏽हज़रते सवाद رضي الله تعالي عنه ने दौड़ कर आप के शिकम मुबारक को चूम लिया और फिर निहायत ही वाहिलाना अंदाज़ में इंतिहाई गर्म जोशी के  साथ आप के जिसमे अक़दस से लिपट गए.
👉🏽आप ने इरशाद फ़रमाया कि ऐ सवाद ! तुम ने ऐसा क्यू किया ?
अर्ज़ किया की यी रसूलल्लाह ﷺ ! में इस वक़्त जंग की सफ में अपना सर हथेली पर रख कर खड़ा हु शायद मौत का वक़्त आ गया हो, इस वक़्त मेरे दिल में इस तमन्ना ने जोश मारा कि काश ! मरते वक़्त मेरा बदन आप के जिसमे अतहर से छू जाए.

👉🏽ये सुन कर हुज़ूर ﷺ ने हज़रते सवाद के इस जज़्बए महब्बत की क़द्र फरमाते हुए उन के लिये खैरो बरकत की दुआ फ़रमाई और हज़रते स्वाद رضي الله تعالي عنه ने दरबार रिसालत में माज़िरत करते हुए अपना बदल मुआफ़ कर दिया और तमीम सहाबाए किराम हज़रते सवाद رضي الله تعالي عنه की इस आशिकाना अदा को हैरत से देखते हुए उन का मुह तकते रह गए.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.221
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✔अहद की पाबंदी

👉🏽इत्तिफ़ाक़ से हज़रते हुज़ैफा बिन अल यमान और हज़रते हासिल رضي الله تعالي عنه ये दोनों सहाबी कहि से आ रहे थे. रास्ते में कुफ़्फ़ार ने इन दोनों को रोका कि तुम दोनों बद्र के मैदान में हज़रत मुहम्मद की मदद करने के लिये जा रहे हो.
👉🏽उन दोनों ने इनकार किया और जंग में शरीक न होने का हद किया चुनान्चे कुफ़्फ़ार ने इन दोनों को छोड़ दिया. जब ये दोनों बारगाहे रिसालत में हाज़िर है ओर अपना वाकिआ बयान किया तो हुज़ूर ﷺ ने इन दोनों को लड़ाई की स्फो से अलग कर दिया और इरशाद फ़रमाया कि हम हर हाल में अहद की पाबंदी करेंगे हम को सिर्फ खुदा की मदद दरकार है.

👉🏽नाज़िरीने किराम ! गौर कीजिये दुन्या जानती है की जंग के मौके पर खुसुसन ऐसी सूरत में जब की दुश्मनो के अज़ीमुश्शान लश्कर का मुक़ाबला हो एक एक सिपाही कितना क़ीमती होता है मगर हुज़ूर ﷺ ने अपनी कमज़ोर फ़ौज को दो बहादुर और जांबाज़ मुजाहिदों से महरूम रखना पसंद फरमाया मगर कोई मुसलमान किसी काफ़िर से भी बाद अहदी और वादा खिलाफी करे इस को गवारा नही फरमाया.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 222
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➡दोनों लश्कर आमने सामने⬅

👉🏽अब वो वक़्त है कि मैदान बद्र में हक़्क़ो बातिल की दोनों सफे एक दूसरे के सामने है.
📖कुरआन ऐलान कर रहा है कि
जो लोग बाहर लड़े उन में तुम्हारे लिये इबरत का निशान है एक खुदा की राह में लड़ रहा था और दूसरा मुन्किरे खुदा था.
📗पारह 3

👉🏽हुज़ूर मुजाहिदीने इस्लाम की सफ बंदी से फारिग हो कर मुजाहिदीन की क़रार दाद के मुताबिक़ अपने उस छप्पर में तशरीफ़ ले गए जिस को सहाबाए किराम ने आप की निशस्त के लिये बना रखा था. अब इस छप्पर की हिफाज़त का सुवाल बेहद अहम था क्यू कि कुफ्फ़रे कुरैश के हमलो का असल निशान हुज़ूर ताजदारे दो आलम ﷺ ही की ज़ात थी किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि इस छप्पर का पहरा दे लेकिन इस मौके पर भी आप के यारे गार हज़रते सिद्दिके अकबर رضي الله تعالي عنه की किस्मत में ये सआदत लिखी थी कि वो नंगी तलवार ले कर उस झोपडी के पास डटे रहे  और हज़रते साद बिन मुआज़ भी चन्द अन्सारियो के साथ उस छप्पर के गिर्द पहरा देते रहे.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 223
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🗡जंगे बद्र🗡

☝🏽दुआए नबवी☝🏽

🌴हुज़ूर सरवरे आलम ﷺ इस नाज़ुक घड़ी में जनाबे बारी से लौ लगाए गिर्या व ज़ारी के साथ खड़े हो कर हाथ फैलाए ये दुआ मांग रहे थे कि "खुद वन्दा ! तूने मुझसे जो वादा फ़रमाया है आज उसे पूरा फ़रमा दे."

👉🏽आप पर इस क़दर रिक़्क़्त और महवीयत तारी थी कि जोशे गिर्या में चादरे मुबारक दोशे अनवर से गिर गिर पड़ती थी मगर आप को खबर नहीं होती थी, कभी आप सजदे में सर रख कर इस तरह दुआ मांगते कि "इलाही ! अगर ये चन्द नुफुस हलाक हो गए ओ फिर क़यामत तक रुए ज़मीन पर तेरी इबादत करने वाले न रहेंगे."

👉🏽हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه आप के यारे गार थे. आप को इस तरह बे क़रार देख कर उन के दिल का सुकून व क़रार जाता रहा और उन पर रिक़्क़त तारी हो गई और उन्हों ने चादरे मुबारक को उठा कर आप के मुक़द्दस कंधे पर दाल दी और आप का दस्ते मुबारक थाम कर भराई हुई आवाज़ में बड़े अदब के साथ अर्ज़ किया कि हुज़ूर ﷺ ! आब बस कीजिये खुद ज़रूर अपना वादा पूरा फ़रमाएगा.

👉🏽अपने यार गार सिद्दिके जां निषार رضي الله تعالي عنه की बात मान कर आप ने दुआ खत्म फ़रमा दी और आप की ज़बाने मुबारक पर इस आयत का विर्द जारी हो गया कि

👉🏽अन क़रीब (कुफ़्फ़ार की) फ़ौज़ को शिकस्त दे दी जाएगी और वो पीठ फेर कर भाग जाएंगे.
📗परह 28

👆🏽आप इस आयत को बार बार पढ़ते रहे जिस में फ़तह मुबीन की बिशारत की तरफ इशारा था.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.223-224
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❓लड़ाई किस तरफ शुरू हुई❓

👉🏽जंग की इब्तिदा इस तरह हुई कि सब से पहले आमिर बिन अल हज़्रमि जो अपने मक़तूल भाई अम्र बिन अल हज़्रमि के खून का बदला लेने के लिए बे क़रार था हैंग के लिये आगे बढ़ा उस के मुकाबले के लिए हज़रते उमर के गुलाम हज़रते महजअ मैदान में निकले और लड़ते हुए शहादत से सरफ़राज़ हो गए.

👉🏽फिर हज़रते हारिशा बिन सुराक़ा अंसारी हौज़ से पानी पि रहे थे कि न गहा इन को कुफ़्फ़ार का एक तीर लगा और वो शहीद हो गए.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 224-225
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❣हज़रते उमैर का शौके शहादत❣

🌴हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने जब जोशे जिहाद का वाअज फरमाते हुए ये इरशाद फरमाया कि मुसलमानो ! उस जन्नत की तरफ बढ़े चलो जिस की चौड़ाई आसमान व ज़मीन के बराबर है तो हज़रते उमैर बिन अल हमाम अंसारी رضي الله تعالي عنه बोल उठे कि या रसूलल्लाह ﷺ !  क्या जन्नत की चौड़ाई ज़मीन व आसमान के बराबर है ?

👉🏽इरशाद फ़रमाया कि : हा
ये सुनकर हज़रते उमैर رضي الله تعالي عنه ने कहा : वाह वाह
👉🏽आपने दरयाफ़्त फरमाया कि क्यूँ ऐ उमैर ! तुम ने वाह वाह किस लिए कहा ?
👉🏽अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! फ़क़त इस उम्मीद पर कि में भी जन्नत में दाखिल हो जाओ.
आप ने खुश खबरी सुनाते हुए इरशाद फरमाया कि ऐ उमैर ! तू बेशक जन्नती है.
👉🏽हज़रते उमैर رضي الله تعالي عنه उस वक़्त खजूर खा रहे थे. ये बिशारत सुनी तो मारे ख़ुशी के खजूर फेक कर खड़े हो गए और एक डीएम कुफ़्फ़ार के लशकर पर तलवार ले कर टूट पड़े और जांबाजी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए.

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 225
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🗡जंगे बद्र🗡

✔कुफ़्फ़ार का सिपह सालार मारा गया
♻part~01

👉🏽कुफ़्फ़ार का सिपह सालार उत्बा बिन रबीआ अपने साइन पर शुतर मुर्ग का पर लगाए हुए अपने भाई शैबा बिन रबीआ और अपने बेटे वलीद बिन उत्बा को साथ ले कर गुस्से में भरा हुवा अपनी सफ से निकल कर मुक़ाबले की दावत देने लगा.

👉🏽इस्लामी साफ़ो में से हज़रते ऑफ व हज़रते मुआज़ व अब्दुल्लाह बिन वाहा رضي الله تعالي عنه मुक़ाबले को  निकले.

👉🏽उत्बा ने इन लोगो का नाम व नसब पूछा, जब मालुम हुवा कि ये लोग अंसारी है तो उत्बा ने कहा कि हम को तुम लोगो से कोई गरज़ नहीं. फिर उत्बा ने चिल्ला कर कहा ऐ मुहम्मद ये लोग हमारे जोड़ के नही है अशराफे कुरैश को हम से लड़ने के लिए मैदान में भेजिए.

🌴हुज़ूर ﷺ ने हज़रते हमज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैदा رضي الله تعالي عنه को हुक्म दिया कि आप लोग इन टोनों के मुक़ाबले के लिए निकले.

👉🏽चुनान्चे ये तीनो बहादुराने इस्लाम मैदान में निकले. चुकी ये तीनो हज़रात सर पर खौद पहने हुए थे जिस से इन के चेहरे छुप गए थे इस लिए उत्बा ने उन हज़रात को नही पहचाना और पूछा कि तुम कौन लोग हो ?
👉🏽जब उन तीनो ने अपने अपने नाम व नसब बताए तो उत्बा ने कहा कि "हा अब हमारा जोड़ है" जब इन लोगो में जंग शुरू हुई तो हज़रते हमज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैद رضي الله تعالي عنه ने अपनी इमानि शुजाअत का ऐसा मुज़ाहरा किया कि बद्र की ज़मीन ढल गई और कुफ़्फ़ार के दिल थर्रा गए और उन की जंग का अनाम ये हुवा कि हज़रते हमज़ा رضي الله تعالي عنه ने उत्बा का मुक़ाबला किया,

📨continue...

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 226
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❗कुफ़्फ़ार का सिपह सालार मारा गया❗
♻Part~02

👉🏽हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه ने उत्बा का मुक़ाबला किया, दोनों इंतिहाई बहादुरी के साथ लड़ते रहे मगर आखिर कार हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه ने अपनी तलवार के वार से मार मार कर उत्बा को ज़मीन पर ढेर कर दिया।

👉🏽वालिद ने हज़रते अली رضي الله تعالي عنه से जंग की, दोनों ने एक दूसरे पर बढ़ बढ़ कर क़ातिलाना हमला किया और खूब लड़े लेकिन अ-सदुल्लाहिन ग़ालिब की जुल फ़िक़ार ने वलीद को मार गिराया और वो ज़िल्लत के साथ क़त्ल हो गया।

👉🏽मगर उत्बा के भाई शैबा ने हज़रते उबैदा رضي الله تعالي عنه को इस तरह ज़ख़्मी कर दिया कि वो ज़ख्मो की ताब न ला कर ज़मीन पर बैठ गए। ये मंज़र देख कर हज़रते अली رضي الله تعالي عنه झपटे और आगे बढ़ कर शैबा को क़त्ल कर दिया और हज़रते उबैदा رضي الله تعالي عنه को अपने कंधे पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए, उनकी पिंडली टूट कर चूर चूर हो गई थी और नली का गुदा बह रहा था, इस हालत में अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ ! क्या में शहादत से महरूम रहा ?

👉🏽इरशाद फ़रमाया कि नहीं हरगिज़ नहीं ! बल्कि तुम शहादत से सरफ़राज़ हो गए।

👉🏽हज़रते उबैदा رضي الله تعالي عنه ने कहा कि या रसूलल्लाह ﷺ ! अगर आज मेरे और आप के चचा अबू तालिब ज़िन्दा होते तो वो मान लेते कि उन के इस शेर का मिसदाक़ में हु कि
हम मुहम्मद ﷺ को उस वक़्त दुश्मनो के हवाले करेंगे जब हम इन के गिर्द लड़ लड़ कर पछाड़ दिये जाएंगे और हम अपने बेटो और बीवियों को भूल जाएंगे।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, सफा 227
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📌हज़रते ज़ुबैर की तारीखी बरछी📌

👉🏽सईद बिन अल आस का बेटा उबैदा सर से पाउ तक लोहे के लिबास और हथियारों से छुपा हुवा सफ से बाहर निकला और ये कह कर इस्लामी लश्कर को ललकारने लगा कि " में अबू करश हु" उस की ये मगरुराना ललकार सुन कर हुज़ूर ﷺ के फुफिज़ाद भाई हज़रते ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه जोश में भरे हुए अपनी बरछी ले कर मुक़ाबले के लिये निकले मगर ये देखा कि उस की दोनों आखो के सिवा उस के बदन का कोई हिस्सा भी ऐसा नहीं है जो लोहे से छुपा हुवा न हो।

👉🏽हज़रते ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه ने ताक कर उस की आँख में इस ज़ोर से बरछी मारी कि वो ज़मीन पे गिरा और मर गया। बरछी उसकी आँख को छेदती हुई खोपड़ी की हड्डी में चुभ गई थी।

👉🏽हज़रते ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه ने जब उसकी लास पर पाउ रख कर पूरी ताक़त से खीचा तो बड़ी मुश्किल से बरछी निकली मगर उसका सर मुड़ कर खम हो गया। ये बरछी एक तारीखी यादगार बन कर बरसो तबर्रुक बानी रही।

🌴हुज़ूर ﷺ ने हज़रते ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه से ये बरछी तलब फ़रमा ली और उस को हमेशा अपने पास रखा फिर हुज़ूर के बाद चारो खुलफाए राशिदीन के पास मुन्तकिल होती रही। फिर हज़रते ज़ुबैर के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर رضي الله تعالي عنه के पास आई यहाँ तक की सि.73 हि. में जब बनू उमय्या के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ शक़फ़ी ने इन को शहीद कर दिया तो ये बरछी बनू उमय्या के क़ब्ज़े में चली गई फिर इसके बाद ला पता हो गई।

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📚सिरते मुस्तफा, स. 227-228
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✔अबू जहल ज़िल्लत के साथ मारा गया
♻Part~01

👉🏽हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضي الله تعالي عنه का बयान है कि में सफ में खड़ा था और मेरे दाए बाए दो नौ उम्र लड़के खड़े थे।एक ने चुपके से पूछा कि चचाजान ! क्या आप अबू जहल को पहचानते है ?
👉🏽मेने उस से कहा की क्यू भतीजे ! तुम को अबू जहल से क्या काम है ?
👉🏽उसने कहा की चचाजान ! में ने खुदा से ये अहद किया है कि में अबू जहल को जहा देख लूंगा या तो उस को क़त्ल कर दूंगा या खुद लड़ता हुवा मारा जाऊँगा क्यू कि वो अल्लाह के रसूल का बहुत ही बड़ा दुश्मन है।

👉🏽हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه कहते है कि में हैरत से उस नौ जवान का मुह टाक रहा था कि दूसरे जवान ने भी मुझे येही कहा। इतने में अबू जहल तलवार घुमाता हुवा सामने आ गया और मेने इशारे से बता दिया कि अबू जहल येही है, बस फिर क्या था ये दोनों लड़के तलवारे ले कर उस पर इस तरह झपटे जिस तरह बाज़ अपने शिकार पर झपटता है।

👉🏽दोनों ने अपनी तलवारो से मार मार कर अबू जहल को ज़मीन पर ढेर कर दिया। ये दोनों लड़के हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज़ थे जो "अफराअ" के बेटे थे।

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📚सिरते मुस्तफा, स.228
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🗡अबू जहल ज़िल्लत के साथ मारा गया
♻Part~02

👉🏽अबू जहल के बेटे इकराम ने अपने बाप के क़ातिल हज़रते मुआज़ رضي الله تعالي عنه पर हमला कर दिया और पीछे से उन के बाए शाने पर तलवार मारी जिस से उनका बाज़ू कट गया लेकिन थोडा सा चमड़ा बाक़ी रह गया और हाथ लटकने लगा। हज़रते
मुआज़ رضي الله تعالي عنه ने इकराम का पीछा किया और दूर तक दौड़ाया मगर इकराम भाग कर बच निकला।

👉🏽हज़रते मुआज़ رضي الله تعالي عنه इस हालत में भी लड़ते रहे लेकिन कटे हुए हाथ के लटकने से ज़हमत हो रही थी तो उन्होंने अपने कटे हुए हाथ को पाउ से दबा कर इस ज़ोर से खीचा कि तस्मा अलग हो गया और फिर वो आज़ाद हो कर एक हाथ से लड़ते रहे।

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📚सिरते मुस्तफा, स.229
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🗡अबू जहल जिल्लत के साथ मारा गया
♻Part~03

👉🏽हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله تعالي عنه अबू जहल के पास से गुज़रे, उस वक़्त अबू जहल में कुछ कुछ ज़िन्दगी की रमक़ बाक़ी थी। हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه ने उसकी गर्दन को अपने पाउ से रौंद कर फरमाया कि "तू ही अबू जहल है ! बता आज तुझे अल्लाह ने केसा रुस्वा किया।"

👉🏽अबू जहल ने इस हालत में भी घमंड के साथ ये कहा कि तुम्हारे लिये ये कोई बड़ा कारनामा नहीं है मेरा क़त्ल हो जाना इस से ज़्यादा नहीं है कि एक आदमी को उस की क़ौम ने क़त्ल कर दिया। हा ! मुझे इस का अफ़सोस है कि काश ! मुझे किसानो के सिवा कोई दूसरा शख्स क़त्ल करता।

👉🏽हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज़ رضي الله تعالي عنه चुकी ये दोनों अन्सारी थे और अन्सार खेतीबाड़ी का काम करते थे और क़बिलए कुरैश के लोग किसानो को बड़ी हक़ारत की नज़र से देखा करते थे इस लिये अबू जहल ने किसानो के हाथ से क़त्ल होने को अपने लिये क़ाबिले अफ़सोस बताया।

👉🏽जंग खत्म हो जाने के बाद हुज़ूरे अकरम ﷺ हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله تعالي عنه को साथ ले कर जब अबू जहल की लाश के पास से गुज़रे तो लाश की तरफ इशारा कर के फरमाया कि अबू जहल इस ज़माने का "फिरऔन" है। फिर अब्दुल्लाह ने अबू जहल का सर काट कर ताजदारे दो आलम के कदमी पर दाल दिया।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.229-239
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🗡अबुल बख्तरी का क़त्ल

🌴हुज़ूर ﷺ ने जंग शुरू होने से पहले ही ये फ़रमा दिया था कि कुछ लोग कुफ़्फ़ार के लश्कर में ऐसे भी है जिन को कुफ़्फ़ारे मक्का दबाव डाल कर लाए है ऐसे लोगो को क़त्ल नहीं करना चाहिये। उन लोगो के नाम भी हुज़ूर ﷺ ने बता दिए थे। इन्ही लोगो में से अबुल बख्तरी भी था जो अपनी ख़ुशी से मुसलमानो से लड़ने के लिये नहीं आया था बल्कि कुफ़्फ़ारे कुरैश उस पर दबाव डाल कर ज़बर दस्ती कर के लाए थे।
👉🏽ऐन जंग की हालत में हज़रते मजज़र رضي الله تعالي عنه बिन ज़ियाद की नज़र अबुल बख्तरी पर पड़ी जो अपने एक गहरे दोस्त जुनादा बिन मलीहा के साथ घोड़े पर सुवार था। हज़रते मजज़र ने फ़रमाया कि ऐ अबुल बख्तरी ! चुकी हुज़ूर ﷺ ने हम लोगो को तेरे क़त्ल से मना फरमाया है इस लिये में तुझ को छोड़ देता हु।
👉🏽अबुल बख्तरी ने कहा कि मेरे साथ जुनादा के बारे में तुम क्या कहते हो ? तो हज़रते मजज़र رضي الله تعالي عنه ने साफ़ साफ कह दिया कि इस को हम ज़िन्दा नहीं छोड़ सकते।
👆🏽ये सुन कर अबुल बख्तरी तैश में आ गया और कहा कि में अरब की औरतो का ये ताना सुनना पसंद नहीं कर सकता कि अबुल बख्तरी ने अपनी जान बचाने के लिये अपने साथी को तन्हा छोड़ दिया। ये कह कर अबूल बख्तरी ने रज्ज़ का ये शेर पढ़ा कि

👉🏽एक शरीफ ज़ादा अपने साथी को कभी हरगिज़ नहीं छोड़ सकता जब तक कि मर न जाए या अपना रास्ता न देख ले।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 230 231
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⚔जंगे बद्र⚔

🗡उमय्या की हलाकत

👉🏽उमय्या बिन खलफ़् बहुत ही बड़ा दुश्मने रसूल था।जंगे बद्र में जब कुफ़्र व इस्लाम के दोनों लश्कर गुथ्थम गुथ्था हो गए तो उमय्या अपने पुराने ताल्लुक़ात की बिना पर हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ رضي الله تعالي عنه से चिमट गया कि मेरी जान बचाइये।

👉🏽हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه को रहम आ गया और आप ने चाहा कि उमय्या बच कर निकल भागे मगर हज़रते बिलाल ने उमय्या को देख लिया। हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه जब उमय्या के गुलाम थे तो उमय्या ने इन को बहुत ज़्यादा सताया था इस लिये जोशे इन्तिक़ाम में हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه ने अन्सार को पुकारा, अन्सारी लोग दफ़्अतन टूट पड़े।

👉🏽हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه ने उमय्या से कहा कि तुम ज़मीन पर लेट जाओ वो लेट गया तो हज़रते अब्दुर्रहमान رضي الله تعالي عنه उस को बचाने के लिये उस के ऊपर लेट कर उस को छुपाने लगे लेकिन हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه और अन्सार ने उन की टैंगो के अंदर हाथ डाल कर और बगल से तलावर घोप घोप कर उसको क़त्ल कर दिया।

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📚सिरते मुस्तफा, स. 231
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💚फिरिश्तो की फ़ौज़💚

👉🏽जंगे बद्र में अल्लाह तआला ने मुसलमानो की मदद के लिये आसमान से फिरिश्तो का लश्कर उतार दिया था। पहले 1000 फिरिश्ते आए फिर 3000 हो गए इसके बाद 5000 हो गए।
कुरआन, सूरए आले इमरान व अनफाल

👉🏽जब खूब घुमसान का रन पड़ा तो फिरिश्ते किसी को नज़र नहीं आते थे मगर उनकी हरबो ज़र्ब के अशरात साफ़ नज़र आते थे।
बाज़ काफ़िरो की नाक और मुह पर कोड़ो की मार का निशान पाया जाता था, कही बिगैर तलवार मारे सर कट कर गिरता नज़र आता था, ये आसमान से आने वाले फिरिश्तो की फ़ौज़ के कारनामे थे।

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📚सिरते मुस्तफा, स.222
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🗡कुफ़्फ़ार ने हथियार डाल दिये

👉🏽उत्बा, शैबा, अबू जहल वग़ैरा कुफ़्फ़ारे कुरैश के सरदारो की हलाकत से कुफ़्फ़ारे मक्का की कमर टूट गई और उन के पाउ उखड गए और हथियार डाल कर भाग खड़े हुए और मुसलमानो ने उन लोगो को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।

👉🏽इस जंग में कुफ़्फ़ार के 70 आदमी क़त्ल और 70 आदमी गिरफ्तार हुए। बाक़ी अपना सामान छोड़ कर फरार हो गए इस जंग में कुफ़्फ़ारे मक्का को ऐसी ज़बर दस्त शिकस्त हुई कि उन की अस्करी ताक़त ही फना हो गई।

👉🏽कुफ़्फ़ारे कुरैश के बड़े बड़े नामवर सरदारजो बहादुर और फन्ने सिपह गरी में यकताए रोज़गार थे एक एक कर के सब के सब मौत के घाट उतार दिये गए।

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📚सिरते मुस्तफा, स.232
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🌹शुहदाए बद्र🌹

👉🏽जंगे बद्र में कुल 14 मुसलमान शहादत से सरफ़राज़ हुए जिन में से 6 मुहाजिर और 8 अन्सार थे।

👉🏽शोहदाए मुहाजिरिन के नाम ये है
1 हज़रते उबैदा बिन अल हारिष
2 हज़रते उमैर बिन अबी वक़्क़ास
3 हज़रते जुशशिमालैन बिन अब्दे अम्र
4 हज़रते आकिल बिन अबू बुकैर
5 हज़रते महजअ
6 हज़रते सफ्वान बिन बैज़ा

👉🏽अन्सार के नामो की फेहरिस्त ये है
7 हज़रते साद बिन खैषमा
8 हज़रते मुबशशिर बिन अब्दुल मुन्ज़िर
9 हज़रते हारिषा बिन सुरक़ा
10 हज़रते मुअव्वज़ बिन अफराअ
11 हज़रते उमैर बिन हमाम
12 हज़रते राफेअ बिन मुअल्ला
13 हज़रते औफ़ बिन अफ़रा
14 हज़रते यज़ीद बिन हारिष।

👉🏽इन शुहदाए बद्र में से 13 हज़रात तो मैदाने बद्र ही में मदफन हुए मगर हज़रते उबैदा बिन हारिषرضي الله تعالي عنه में चुकी बद्र से वापसी पर मंज़िले सफराअ में वफ़ात पाई इस लिये इनकी क़ब्र मंज़िले सफराअ में है।

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📚सिरते मुस्तफा, स. 233
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🌌बद्र का गढ़ा

🌴हुज़ूर ﷺ का हमेशा ये तर्ज़े अमल रहा कि जहा कभी कोई लाश नज़र आती थी आप उस को दफन करवा देते थे लेकिन जंगे बद्र में क़त्ल होने वाले कुफ़्फ़ार चुकी तादाद में बहुत ज्यादा थे, सब को अलग अलग दफन करना एक दुशवार काम था इस लिये तमाम लाशो को आप ने बद्र के एक गढ़े में डाल देने का हुक्म फ़रमाया।

👉🏽चुनान्चे सहाबए किराम ने तमाम लाशो को गढ़े में डाल दिया। उमय्या बिन खलफ़् की लाश फूल गई थी, सहाबए किराम ने उस को घसीटना चाहा तो उस के आज़ा अलग अलग होने लगे इस लिये उसकी लाश वही मिटटी में दबा दी गई।

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📚सिरते मुस्तफा, स.234
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❗कुफ़्फ़ार की लाशो से खिताब❗

👉🏽जब कुफ़्फ़ार की लाशे बद्र के गढ़े में डाल दी गई तो हुज़ूर ﷺ ने उस गढ़े के कनारे खड़े हो कर मक़्तूलिन का नाम ले कर इस तरह पुकारा कि...
👉🏽क्या तुम लोगो ने अपने रब के वादे को सच्चा पाया ?
👉🏽हमने तो अपने रब के वादे को बिलकुल ठीक ठीक सच पाया।

👉🏽हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने जब देखा की हुज़ूर ﷺ कुफ़्फ़ार की लाशो से खिताब फ़रमा रहे है तो उन को बड़ा ताज्जुब हुवा। चुनान्चे उन्होंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! क्या आप इन बे रूह के जिस्मो से कलाम फ़रमा रहे है ?

👆🏽ये सुन कर हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि ऐ उमर ! क़सम खुदा की जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है कि तुम (ज़िन्दा लोगो) मेरी बात को इन से ज़्यादा नहीं सुन सकते लेकिन इतनी बात है कि ये मुर्दे जवाब नहीं दे सकते।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.234
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✔ज़रूरी तम्बीह

👉🏽कल की जो पोस्ट थी "कुफ़्फ़ार की लाशो से खिताब" बुखारी वग़ैरा की इस हदिष से ये मसअला शाबित होता है कि जब कुफ़्फ़ार के मुर्दे जिन्दो की बात सुनते है तो फिर मुअमिनीन खुसुसन औलिया, शुहदा, अम्बिया वफ़ात के बाद यक़ीनन हम जिन्दो का सलाम व कलाम और हमारी फरियादें सुनते है और हुज़ूर ने जब कुफ़्फ़ार की मुर्दा लाशो को पुकारा तो फिर खुदा के बरगुज़ीदा बन्दों यानी वलियों, शहीदों और नबियो को उन की वफ़ात के बाद पुकारना भला क्यू न, जाइज़ व दुरुस्त होगा ?
👉🏽इसी लिये तो हुज़ूर ﷺ जब मदीने के कब्रस्तान में तशरीफ़ ले जाते तो क़ब्रो की तरफ अपना रुख करके यु फरमाते कि

👉🏽ऐ क़ब्र वालो ! तुम पर सलामती हो खुदा हमारी और तुम्हारी मग्फिरत फरमाए, तुम लोग हम से पहले चले गए और हम तुम्हारे बाद आने वाले है।
👉🏽और हुज़ूर ﷺ ने अपनी उम्मत को भी येही हुक्म दिया है और सहाबए किराम को इस की तालीम देते थे।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.235
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🕌मदीने को वापसी🕌

👉🏽फ़त्ह के बाद 3 दिन तक हुज़ूर ﷺ ने बद्र में क़याम किया फिर तमाम अम्वाले गनीमत और कुफ़्फ़ार क़ैदियों को साथ ले कर रवाना हुए। जब वादिये सफरा में पहुचे तो अम्वाले गनीमत को मुजाहिदीन के दरमियान तक़्सीम फ़रमाया।

👉🏽हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه की ज़ौजए मोहतरमा हज़रत बीबी रुकैया जो हुज़ूर ﷺ की साहिब ज़ादी थी जंगे बद्र के मैके पर बीमार थी इस लिये हुज़ूर ﷺ ने हज़रते उष्मान رضي الله تعالي عنه को साहिब ज़ादी की तिमार दारी के लिये मदीने में रहने का हुक्म दे दिया था इस लिये वो जंग में शामिल न हो सके, मगर हुज़ूर ﷺ ने माले गनीमत में से उन को मुजाहिदीने बद्र के बराबर ही हिस्सा दिया और उन के बराबर ही अज्रो षवाब की बिशारत भी दी। इस लिये हज़रते उष्मान को भी असहाबे बद्र की फेहरिस्त में शुमार किया जाता है।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.236
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🌹मुजाहिदीने बद्र का इस्तिक़बाल🌹

👉🏽हुज़ूर ﷺ ने फ़त्ह के बाद हज़रते ज़ैद बिन हारिष رضي الله تعالي عنه को फ़त्हे मुबीन की खुश खबरी सुनाने के लिये मदीना भेज दिया था।

👉🏽चुनान्चे हज़रते ज़ैद رضي الله تعالي عنه ये खुश खबरी ले कर जब मदीना महुचे तो तमाम अहले मदीना जोशे मुसर्रत के साथ  हुज़ूर ﷺ की आमद आमद के इंतज़ार में बे क़रार रहने लगे और जब तशरीफ़ आवरी की खबर पहुची तो अहले मदीना ने आगे बढ़ कर मक़ामे रौहा में आप का पुरजोश इस्तिक़बाल किया।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स. 236
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💐क़ैदियों के साथ सुलूक

👉🏽कुफ़्फ़ारे मक्का जब असिराने जंग बन कर मदीने में आए तो उन को देखने के लिये बहुत बड़ा मजमा इकठ्ठा हो गया और लोग उन को देख कर कुछ् न कुछ बोलते रहे। हुज़ूर ﷺ की ज़ौजए मोहतरमा हज़रते बीबी सौदह उन क़ैदियों को देखने के लिये तशरीफ़ लाइ और ये देखा कि उन कैदियों में इन के एक क़रीबी रिश्तेदार "सुहैल" भी है तो वो बे साख्ता बोल उठी कि ऐ सुहैल ! तुम ने भी औरतो की तरह बेड़िया पहल ली तुम से ये न हो सका कि बहादुर मर्दों की तरह लड़ते हुए क़त्ल हो जाते।

👉🏽इन क़ैदियों को हुज़ूर ﷺ ने सहाबा में तक़सीम फ़रमा दिया और ये हुक्म दिया कि इन क़ैदियों को आराम के साथ रखा जाए। चुनान्चे दो दो चार चार क़ैदी सहाबा के घरो में रहने लगे और सहाबा ने इन लोगो के साथ ये हुस्ने सुलूक किया कि इन लोगो को गोश्त रोटी वग़ैरा हस्बे मक़दूर बेहतरीन खाना खिलाते थे और खुद खजुरे खा कर रह जाते थे।

👉🏽क़ैदियों में हुज़ूर ﷺ के चचा अब्बास के बदन पर कुरता नहीं था लेकिन वो इतने लम्बे क़द के आदमी थे कि किसी का कुरता उनके बदन पर ठीक नहीं उतरता था, अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफ़िक़ीन का सरदार) चुकी क़द में इन के बराबर था इस लिये इस ने अपना कुरता इन को पहना दिया।

👉🏽बुखारी में ये रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने अब्दुल्लाह बिन उबय्य के कफ़न के लिये जो अपना पैराहन शरीफ अता फ़रमाया था वो उसी एहसान का बदला था।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.237
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❗असिराने जंग का अंजाम❗

👉🏽इन क़ैदियों के बारे में हुज़ूर ﷺ ने हज़रते सहाबा से मशवरा फ़रमाया कि इन के साथ क्या मुआमला किया जाए ?

👉🏽हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने ये राय दि कि इन सब दुश्मनाने इस्लाम को क़त्ल कर देना चाहिये और हम में से हर शख्स अपने अपने क़रीबी रिश्तेदार को अपनी तलवार से क़त्ल करे।

👉🏽मगर अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने ये मशवरा दिया कि आखिर ये सब लोग अपने अज़ीज़ों अक़ारिब ही है लिहाज़ा इन्हें क़त्ल न किया जाए बल्कि इन लोगो से बतौरे फिदया कुछ रकम ले कर इन सब को रिहा कर दिया जाए। इस वक़्त मुसलमानो की हालत बहुत कमज़ोर है फिदये की रक़म से मुसलमानो की माली इमदाद का सामान भी हो जाएगा और शायद आयन्दा अल्लाह इन लोगो को इस्लाम की तौफ़ीक़ नसीब फरमाए।

🌴हुज़ूर ﷺ ने अबू बक्र رضي الله تعالي عنه की संजीदा राय को पसंद फ़रमाया और उन क़ैदियों से चार चार हज़ार दिरहम फिदया ले कर उन लोगो को छोड़ दिया। जो लोग मुफलिसी की वजह से फिदया नहीं दे सकते थे वो यु ही बिला फिदया छोड़ दिये गए। इन क़ैदियों में जो लोग लिखना जानते थे उन में से हर एक का फिदया ये था कि वो अन्सार के दस लड़को को लिखना सीखा दे।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.  238
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✔हज़रते अब्बास का फिदया

👉🏽अन्सार ने हुज़ूर ﷺ से ये दर ख्वास्त अर्ज़ की, कि या रसूलल्लाह ﷺ ! हज़रते अब्बास हमारे भान्जे है लिहाज़ा हम इन का फिदया मुआफ़ करते है। लेकिन आप ने ये दरख्वास्त मंजूर नहीं फ़रमाई।

👉🏽हज़रते अब्बास कुरैश के उन 10 दौलत मन्द रईसों में से थे जिन्हों ने मशकरे कुफ़्फ़ार के राशन की ज़िम्मादारी अपने सर ली थी, इस गरज़ के लिये हज़रते अब्बास के पास 20 ओकिया सोना था। चुकी फ़ौज़ को खाना खिलाने में अभी हज़रते अब्बास की बारी नहीं आई थी इस लिये वो सोना अभी तक इन के पास महफूज़ था। उस सोने को हुज़ूर ﷺ ने माले गनीमत में शामिल फ़रमा लिया और हज़रते अब्बास से मुतालबा फ़रमाया कि वो अपना और अपने दोनों भतीजे और दो हलिफ् का फिदया अदा करे।

👉🏽हज़रते अब्बास ने कहा कि मेरे पास कोई माल नहीं है, में कहा से फिदया अदा करू ?

👆🏽ये सुन कर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि चचाजान ! आप का वो माल कहा है ? जो आप ने जंगे बद्र के लिये रवाना होते वक़्त अपनी बीवी उम्मुल फ़ज़्ल को दिया था और ये कहा था कि अगर में इस लड़ाई में मारा जाऊ तो इस में से इतना इतना माल मेरे लड़को को दे देना।

👆🏽ये सुन कर हज़रते अब्बास رضي الله تعالي عنه ने कहा कि क़सम है उस खुदा की जिसने आप को हक़ के साथ भेजा है कि यक़ीनन आप अल्लाह के रसूल है क्यू कि उस माल का इल्म मेरे और मेरी बीवी के सिवा किसी को नहीं था।

👉🏽चुनान्चे हज़रते अब्बास ने अपना और अपने दोनों भतीजो और अपने हलिफ् का फिदया अदा कर के रिहाई हासिल की फिर इस के बाद हज़रते अब्बास और उनके दोनों भतीजे तीनो मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.239
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📿हज़रते ज़ैनब का हार📿
♻हिस्सा~01

👉🏽जंगे बद्र के क़ैदियों में हुज़ूर ﷺ के दामाद अबुल आस बिन अर्रबीअ भी थे। ये हाला बिन्ते खुवैलद के लड़के थे और हाला हज़रते बीबी ख़दीजा रदिअल्लाहु अन्हा की हक़ीक़ी बहन थी इस लिये हज़रते बीबी ख़दीजा ने रसूलल्लाह ﷺ से मशवरा ले कर अपनी लड़की हज़रते ज़ैनब का अबुल आस बिन अर्रबीअ से निकाह कर दिया था।

🌴हुज़ूर ﷺ ने जब अपनी नुबुव्वत का एलान फ़रमाया तो आप की साहिब ज़ादी ज़ैनब ने तो इस्लाम क़बूल कर लिया मगर इन के शौहर अबुल आस मुसलमान नहीं हुए और न हज़रते ज़ैनब को अपने से जुदा किया।

👉🏽अबुल आस ने ज़ैनब के पास क़ासिद भेजा कि फिदये की रकम भेज दे। हज़रते ज़ैनब को उन की वालिदा हज़रते बीबी ख़दीजा ने जहेज़ में एक क़ीमती हार भी दिया था। हज़रते ज़ैनब ने फिदये की रक़म के साथ वो हार भी अपने गले से उतार कर मदीना भेज दिया।

👉🏽जब हुज़ूर ﷺ की नज़र उस हार पर पड़ी तो हज़रते बीबी ख़दीजा और उन की महब्बत की याद ने कल्बे मुबारक पर ऐसा रिक़्क़्त अंगेज़ अषर डाला की आप रो पड़े और सहाबा से फ़रमाया कि "अगर तुम लोगो की मरज़ी हो तो बेटी को उसकी माँ की यादगार वापस कर दो" ये सुन कर तमाम सहाबए किराम ने सरे तस्लीम खम कर दिया और ये हार हज़रते ज़ैनब के पास मक्का भेज दिया गया।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.240
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📿हज़रते ज़ैनब का हार📿
♻हिस्सा~02

👉🏽अबुल आस रिहा हो कर मदीने से मक्का आए और हज़रते बीबी ज़ैनब रदिअल्लाहु अन्हा को मदीना भेज दिया। अबुल आस बहुत बड़े ताजिर थे ये मक्का से अपना सामान तिजारत ले कर शाम गए और वहा से खूब नफा कमा कर मक्का आ रहे थे कि मुसलमान मुजाहिदीन ने इन के क़ाफ़िले पर हमला कर के इनका सारा माल व अस्बाब लूट लिया और ये माले गनीमत तमाम सिपाहियो पर तक़्सीम भी हो गया। अबुल आस छुप कर मदीना पहुचे और हज़रते ज़ैनब ने इन को पनाह दे कर अपने घर में उतारा।

🌴हुज़ूर ﷺ ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि अगर तुम लोगो की ख़ुशी हो तो अबुल आस का माल व सामान वापस कर दो। फरमाने रिसालत का इशारा पाते ही तमाम मुजाहिदीन ने सारा माल व सामान अबुल आस के सामने रख दिया।

👉🏽अबुल आस अपना सारा माल व सामान ले कर मक्का आए और अपने तमाम तिजारत के शरीको को पाई पाई का हिसाब समझा कर और सब को उस के हिस्से की रक़म अदा करके अपने मुसलमान होने का एलान कर दिया और अहले मक्का से कह दिया कि में यहाँ आ कर और सब का पूरा पूरा हिसाब अदा करके मदीने जाता हु ताकि कोई ये न कह सके कि अबुल आस हमारा रूपया ले कर तक़ाज़े के डर से मुसलमान हो कर मदीना भाग गया। इसके बाद हज़रते अबुल आस मदीना आ कर हज़रते बीबी ज़ैनब के साथ रहने लगे।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.241
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❗मक़्तूलिने बद्र का मातम❗

👉🏽बद्र में कुफ़्फ़ारे कुरैश कि शिकस्ते फाश की खबर जब मक्का में पहुची तो ऐसा कोहराम मच गया कि घर घर मातम कदा बन गया, मगर इस ख़याल से कि मुसलमान हम पर हसेंगे अबू सुफ़यान ने तमाम शहर में एलान करा दिया कि खबरदार कोई शख्स रोने न पाए।

👉🏽इस लड़ाई में अस्वद बिन अल मुत्तलिब के दो लड़के अक़ील और ज़मआ और एक पोता हारिष बिन ज़मआ क़त्ल हुए थे। इस सदमे से अस्वद का दिल फट गया था वो चाहता था कि अपने इन मक़्तूलो पर खूब फुट फुट कर रोए ताकि दिल की भड़ास निकल जाए लेकिन क़ौमी गैरत के ख़याल से रो नहीं सकता था, मगर दिल ही दिल में घुटता रहता था और आसु बहाते अंधा हो गया था,
👉🏽एक दिन शहर में किसी औरत के रोने की आवाज़ आई तो इसने अपने गुलाम को भेजा कि देखो कौन रो रहा है ? क्या बद्र के मक़्तूलो पर रोने की इजाज़त हो गई है ? मेरे सीने में रंजो गम की आग सुलग रही है, में भी रोने के लिये बे क़रार हु।

👉🏽गुलाम ने बताया कि एक औरत का ऊंट गम हो गया है वो इसी ग़म में रो रही है।

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📚सिरते मुस्तफा, स.242
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❗उमैर और सफ्वान की खौफनाक साजिश❗
♻हिस्सा~01

👉🏽एक दिन उमैर और सफ्वान दोनों हतिमे काबा में बेठे हुए मक़्तूलिने बद्र पर आसु बहा रहे थे। एक डीएम सफ्वान बोल उठा कि ऐ उमैर ! मेरा बाप और दूसरे रुअसाए मक्का जिस तरह बद्र में क़त्ल हुए उनको याद करके सिनो में दिल पाश पाश हो रहा है और अब ज़िन्दगी में कोई मज़ा बाक़ी नहीं रह गया है।

👉🏽उमैर ने कहा की ऐ सफ्वान ! तुम सच कहते हो मेरे साइन में भी इन्तिक़ाम की आग भड़क रही है, मेरे आईज़्ज़ा व अकरीबा भी बद्र में बे दर्दी के साथ क़त्ल किये गए है और मेरा बीटा मुसलमानो की क़ैद में है। खुदा की क़सम ! अगर में क़र्ज़दार न होता और बाल बच्चों की फ़िक्र से दो चार न होता तो अभी अभी में तेज़ रफ़्तार घोड़े पर सुवार हो कर मदीने जाता और डीएम ज़दन में धोके से मुहम्मद को क़त्ल कर के फरार हो जाता।

👆🏽ये सुनकर सफ्वान ने कहा कि ऐ उमैर ! तुम अपने क़र्ज़ और बच्चों की ज़रा भी फ़िक्र न करो। में खुदा के घर में अहद करता हु कि तुम्हारा सारा क़र्ज़ अदा कर दूंगा और में तुम्हारे बच्चों की परवरिश का भी ज़िम्मेदार हु।

👉🏽इस मुआहदे के बाद उमैर सीधा घर आया और ज़हर में बुझाई हुई तलवार ले कर घोड़े पर सुवार हो गया।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.243
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❗उमैर और सफ्वान की खौफनाक साजिश❗
♻हिस्सा~02

👉🏽उमैर ज़हर में बुझाई हुई तलवार ले कर जब मदीने में मस्जिद के क़रीब पहिचा तो हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه ने उस को पकड़ लिया और उस का गला दबाए और गर्दन पकड़े हुए दरबारे रिसालत में ले गए।

🌴हुज़र ﷺ ने पूछा कि क्यू उमैर ! किस इरादे से आए हो ?
🔹जवाब दिया कि अपने बेटे को छुड़ाने के लिये।
🌴आप ने फ़रमाया कि क्या तुमने और सफ्वान ने हतिमे काबा में बैठ कर मेरे क़त्ल की साजिश नहीं की ?
👆🏽उमैर ये राज़ की बात सुन कर सन्नाटे में आ और कहा कि में गवाही देता हु कि बेशक आप अल्लाह के रसूल है क्यू कि खुदा की क़सम ! मेरे और सफवाल के सिवा इस राज़ की किसी को भी खबर न थी।

👉🏽उधर मक्का में सफ्वान हुज़ूर के क़त्ल की खबर सुनने के क़त्ल की खबर सुनने के लिये इंतिहाई बे क़रार था और दिन गईं गईं कर उमैर के आने का इन्तज़ार कर रहा था मगर जब इसने ना गहा ये सूना कि उमैर मुसलमान हो गया तो फर्ते हैरत से उस के पाउ के निचे से ज़मीन निकल गई और वो बोखला गया।

👉🏽हज़रते उमैर मुसलमान हो कर मक्का आए और जिस तरह वो पहले मुसलमानो के खून के प्यासे थे अब वो काफ़िरो की जान के दुश्मन बन गए और इंतिहाई बे खौफी और बहादुरी के साथ मक्का में इस्लाम की तबलीग करने लगे यहाँ तक कि इनकी दावते इस्लाम से बड़े बड़े काफ़िरो के अँधेरे दिलो में नुरे ईमान की रौशनी से उजाला हो गया और येही उमैर अब सहाबिये रसूल उमैर कहलाने लगे।

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📚सिरते मुस्तफा, स.244
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❗अबू लहब की इब्रतनाक मौत❗

👉🏽अबू लहब जंगे बद्र में शरीक नहीं हो सका। जब कुफ़्फ़ारे किरेश शिकस्त खा कर मक्का वापस आए तो लोगो की ज़बानी जंगे बद्र के हालात सुन कर अबू लहब को इंतिहाई रंजो मलाल हुवा। इसके बाद ही वो चेचक की बड़ी बिमारी में मुब्तला हो गया जिससे उसका तमाम बदन सड़ गया और 8वे दिन मर गया।

👉🏽अरब के लोग चेचक से बहुत डरते थे और इस बीमारी में मरने वाले को बहुत ही मनहूस समझते थे इस लिये इसके बेटो ने भी 3 दिन तक इसकी लाश को हाथ नहीं लगाया मगर इस ख़याल से की लोग ताना मारेंगे एक गढ़ा खोद कर लकडियो से धकेलते हुए ले गए और उस गढ़े में लाश को गिरा कर ऊपर से मिटटी दाल दी।

👉🏽बाज़ मुअर्रिखिन ने तहरीर फ़रमाया कि दूर से लोगोने उस गढ़े में इस क़दर पथ्थर फेंके कि उन पथ्थरो से उस की लाश छुप गई।

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⚔गज़्वए बनी किनकाअ⚔

👉🏽रमज़ान सि. 2 हि. में हुज़ूर ﷺ जंगे बद्र के मारीके से वापस हो कर मदीना वापस लौटे। इस के बाद ही 15 शव्वाल सि. 2 हि. में गज़्वए बनी किनकाअ का वाक़ीआ दरपेश हो गया। हम पहले जान चुके है कि मदीने के अतराफ़ में यहूदियो के 3 बड़े बड़े क़बाइल आबाद थे। बनू किनकाअ, बनू नज़ीर, बनू करिज़ा। इन तीनो से मुसलमानो का मुआहदा था मगर जंगे बद्र के बाद जिस क़बीले ने सब से पहले मुआहदा तोडा वो क़बिलए बनू किनकाअ के यहूदी थे जो सब से ज्यादा बहादुर और दौलत मन्द थे।
👉🏽वाक़ीआ ये हुवा कि एक बुरकअ पॉश अरब औरत यहूदियो के बाज़ार में आई, दूकान दारो ने शरारत की और उस औरत को नंगा कर दिया इस पर तमाम यहूदी क़हक़हा लगा कर हसने लगे, औरत चिल्लाई तो एक अरब आया और दूकान दार को क़त्ल कर दिया इस लर यहूदियो और अरबो में लड़ाई शुरू हो गई।

🌴हुज़ूर ﷺ को खबर हुई तो तशरीफ़ लाए और यहूदियो की इस गैर शरीफ़ाना हरकत पर मलामत फरमाने लगे। इस पर बनू किनाक़ाअ के खबीस यहूदी बिगड़ गए और बोले कि जंगे बद्र की फ़त्ह से आप मगरूर न हो जाए मक्का वाले जंग के मुआमले में बे ढंगे थे इसलिये आप ने उन को मार लिया अगर हमसे आप का साबिक़ा पड़ा तो आप को मालुम हो जाएगा कि जंग किस चीज़ का नाम है ? और लड़ने वाले कैसे होते है ?

👉🏽जब यहूदिओं ने मुआहदा तोड़ दिया तो हुज़ूर ﷺ ने निस्फ़ शव्वाल सि.2 ही. सनीचर के दिन इन यहूदियो पर हमला कर दिया। यहूदी जंग की ताब न ला सके और अपने किल्लो का फाटक बंद कर दिया मगर 15 दिन के मुहासरे के बाद बिल आखिर यहूदी मगलूब हो गए और हथियार डाल देने पर मजबूर हो गए।

🌴हुज़ूर ﷺ ने सहाबा के मशवरे से इन यहूदियो को शहर बदर कर दिया और ये अहद शिकन, बदज़ात यहूदी मुल्के शाम के मक़ाम "अज़रआत" में जा कर आबाद हो गए।

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.246
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⚔गज़्वए सविक़⚔
♻हिस्सा~01

👉🏽ये हम तहरीर कर चुके है कि जंगे बद्र के बाद मक्का के हर घर में सरदाराने कुरैश के क़त्ल हो जाने का मातम बरपा था और अपने मक़तूल का बदला लेने के लिये मक्का का बच्चा बच्चा मुजतरीब और बे क़रार था। चुनान्चे गज़्वए सविक़ और जंगे उहुद वग़ैरा की लड़ाइयां मक्का वालो के इसी जोशे इन्तिक़ाम का नतीजा है।

👉🏽उत्बा और अबू जहल के क़त्ल हो जाने के बाद अब कुरैश का सरदारे आज़म अबू सुफ़यान था और इस मनसब का सबसे बड़ा काम गज़्वए बद्र का इन्तिक़ाम था। चुनान्चे अबू सुफ़यान ने क़सम खा ली कि जब तक के मक़्तूलो का मुसलमानो से बदला न लूंगा न ग़ुस्ले जनाबत करूँगा न सर में तेल डालूंगा।

👉🏽चुनान्चे जंगे बद्र के दो माह बाद जुल हिज्जा सि.2 हि. में अबू सुफ़यान 200 शुतर सुवारो का लश्कर ले कर मदीने की तरफ बढ़ा। इसको यहूदियो पर बड़ा भरोसा बल्कि नाज़ था कि मुसलमानो के मुक़ाबले में वो इस की इमदाद करेंगे। इसी उम्मीद पर अबू सुफ़यान पहले "हूयय बिन अख्तब" यहूदी के पास गया मगर उसने दरवाज़ा भी नहीं खोल।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚सिरते मुस्तफा, स.247
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⚔गज़्वए सविक़⚔
♻हिस्सा~02

👉🏽हूयय बिन अख्तब के पास से मायूस हो कर अबू सुफ़यान सलाम बिन मुश्कम से मिला जो क़बिलए बनू नज़ीर के यहूदियो का सरदार था और यहूद के तिजारती खज़ाने का मेनेजर भी था उसने अबू सुफ़यान का पुरजोश इस्तिक़बाल किया और हुज़ूर ﷺ के तमाम जंगी राज़ो से अबू सुफ़यान को आगाह कर दिया।

👉🏽सुबह को अबू सुफ़यान ने मक़ामे अरिज़ पर हमला किया ये बस्ती मदीने से तिन मिल की दुरी पर थी, इस हमले में अबू सुफ़यान ने एक अन्सारी सहाबी साद बिन अम्र को शहीद कर दिया और कुछ दरख्तो को काट डाला और मुसलमानो के चन्द घरो और बागात को आग लगा कर फूंक दिया, इन हरकतों से उसके गुमान में उस की क़सम पूरी हो गई।

👉🏽जब हुज़ूर ﷺ को इसकी खबर हुई तो आपने उसका ताकुब किया लेकिन अबू सुफ़यान बद हवास हो कर इस क़दर तेज़ी से भागा कि भागते हुए अपना बोझ हल्का करने के लिये सत्तू की बोरिया जो वो अपनी फ़ौज के राशन के लिये लाया था फेकता चला गया जो मुसलमानो के हाथ आए।

👉🏽अरबी ज़बान में सत्तू को सविक़ कहते है इसलिये इस गज़्वे का नाम गज़्वइ सविक़ पद गया।

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📚सिरते मुस्तफा, स.247
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🌹हज़रते फ़ातिमा की शादी🌹

👉🏽सि. 2 हि. में हुज़ूर ﷺ की सब से प्यारी बेटी हज़रते फ़ातिमा रदिअल्लाहु अन्हा की शादी हज़रते अली के साथ हुई। ये शादी इंतिहाई वक़ार और सादगी के साथ हुई। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अनस को हुक्म दिया कि वो हज़रते अबू बक्र व उष्मान व अब्दुर्रहमान और दूसरे चन्द मुहाजिरिन व अन्सार को मदऊ करे।

👉🏽चुनान्चे जब सहाबए किराम जमा हो गए तो हुज़ूर ﷺ ने ख़ुत्बा पढ़ा और निकाह पढ़ा दिया।

👉🏽हुज़ूर ﷺ ने बीबी फ़ातिमा को जहेज़ में जो सामान दिया वो ये है :
एक कमली, बाण की एक चारपाई, चमड़े का गद्दा जिसमे रुई की जगह खजूर की छाल भरी हुई थी, एक छागल, एक मशक, दो चक्कियां, दो मिटटी के घड़े।
👉🏽हज़रते हारिष बिन नोमान अन्सारी رضي الله تعالي عنه ने अपना मकान हुज़ूर ﷺ को इसलिये नज़्र कर दिया कि इसमें हज़रते अली और हज़रते फ़ातिमा सुकुनत फरमाए।

👉🏽जब हज़रते फ़ातिमा रुखसत हो कर नए घर में गई तो ईशा की नमाज़ के बाद हुज़ूर ﷺ तशरीफ़ लाए और एक बर्तन में पानी तलब फ़रमाया और उसमे कुल्ली फ़रमा कर हज़रते अली رضي الله تعالي عنه के सीने और बाज़ुओं पर पानी छिड़का फिर हज़रते फ़ातिमा को बुलाया और उन के सर और साइन पर भी पानी छिड़का और फिर दुआ फ़रमाई कि या अल्लाह में अली और फ़ातिमा और इनकी औलाद को तेरी पनाह में देता हु कि ये सब शैतान के शर से महफूज़ रहे।

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📚सिरते मुस्तफा, स.248
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👇🏽सि. 2 हि. के मुतफ़र्रिक़ वाक़ीआत👇🏽

👉🏽इसी साल रोज़ा और ज़कात की फरज़िय्यत के अहकाम नाज़िल हुए और नमाज़ जी तरह रोज़ा और ज़कात भी मुसलमानो पर फ़र्ज़ हो गए।

👉🏽इसी साल हुज़ूर ﷺ ने ईदुल फ़ित्र की नमाज़ जमाअत के साथ ईदगाह में अदा फ़रमाई, इससे क़ब्ल ईदुल फ़ित्र की नमाज़ नही हुई थी।

👉🏽सदकए फ़ित्र अदा करने का हुक्म इसी साल जारी हुवा।

👉🏽इसी साल 10 जुल हिज्जा को हुज़ूर ﷺ ने बक़र ईद की नमाज़ अदा फ़रमाई और नमाज़ के बाद दो मेढ़ों की क़ुरबानी फ़रमाई।

👉🏽इसी साल "गज़्वए क़र क़र अल कदर" व "गज़्वए बहरान" वग़ैरा चन्द छोटे छोटे गज़वात भी पेश आए जिन में हुज़ूर ﷺ ने शिर्कत फ़रमाई मगर इन गज़वात में कोई जंग नहीं हुई।

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*हिजरत का तीसरा साल*
सि. 3 हि.

⚔ *जंगे उहुद* ⚔

👉🏽इस साल का सबसे बड़ा वाक़ीआ "जंगे उहुद है। उहुद एक आहाड़ का नाम है जो मदीना से तक़रीबन 3 मिल दूर है।

👉🏽चुकी हक़ व बातिल का ये अज़ीम मारिका इसी पहाड़ के दामन में दरपेश हुवा इसी लिये ये लड़ाई गज़्वए उहुद के नाम से मशहूर है और क़ुरआन की मुख़्तलिफ़ आयतो में इस लड़ाई के वाक़ीआत का खुदा ने तज़्किर फ़रमाया है।

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📚सिरते मुस्तफा, स.250
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⚔ *जंगे उहुद* ⚔

*जंगे उहुद का सबब*
♐हिस्सा~01

➡ये आप पढ़ चुके के जंगे बद्र में 70 कुफ़्फ़ार क़त्ल और 70 गिरफ्तार हुए थे। और जो क़त्ल हुए उनमे से अक्षर कुफ़्फ़ारे कुरैश के सरदार बल्कि ताजदार थे। इस बिना पर मक्का का एक एक घर मातम कदा बना हुआ था। और कुरैश का बच्चा बच्चा जोशे इन्तिक़ाम में मुसलमानो से लड़ने के लिये बे क़रार था।

➡अरब खुसुसन कुरैश का ये तुर्रए इम्तियाज़ था कि वो अपने एक एक मक़तूल के खून का बदला लेने को इतना बड़ा फ़र्ज़ समझते थे जिनको अदा किये बगैर गोया इनकी हस्ती क़ाइम नहीं रह सकती थी।

➡चुनान्चे जंगे बद्र के मक़्तूलो के मातम से जब कुरैशियों को फुर्सत मिली तो उन्होंने ये अज़्म कर लिया कि जिस क़दर मुम्किन हो जल्द से जल्द मुसलमानो से अपने मक़्तूलो के खून का बदला लेना चाहिये।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

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📚सिरते मुस्तफा, स.250
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*जंगे उहुद का सबब*
*⃣हिस्सा~02

➡चुनान्चे अबू जहल का बेटा इकरमा और उमय्या का लड़का सफ्वान और दूसरे कुफ़्फ़ारे कुरैश जिन के बाप, भाई, बेटे जंगे बद्र में क़त्ल हो चुके थे सब के सब अबू सुफ़यान के पास गए और कहा कि मुसलमानो ने हमारी क़ौम के तमाम सरदारो को क़त्ल कर डाला है। इसका बदला लेना हमारा क़ौमी फ़रीज़ा है

➡लिहाज़ा हमारी ख्वाहिश है कि कुरैश की मुश्तरीका तिजारत में इंसाल जितना नफा हुवा है वो सब क़ौम के जंगी फंड में जमा हो जाना चाहिये और उस रक़म से बेहतरीन हथियार खरीद कर अपनी लष्करी ताक़त बहुत मज़बूत कर लेनी चाहिये और फिर एक अज़ीम फ़ौज़ ले कर मदीने पर चढ़ाई करके बानिये इस्लाम और मुसलमानो को दुन्या से नेस्तो नाबूद कर देना चाहिये।

➡अबू सुफ़यान ने ख़ुशी ख़ुशी कुरैश की इस दरख्वास्त को मंजूर कर लिया। लेकिन कुरैश को जंगे बद्र से ये तजरीबा हो चूका था कि मुसलमानो से लड़ाई कोई आसान काम नहीं है। आंधियो और तुफानो का मुक़ाबला, समुन्दर की मौजो से टकराना, पहाड़ो से टक्कर लेना बहुत आसान है मगर
➡मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह के आशिक़ो से जंग करना बड़ा ही मुश्किल काम है। इस लिये इन्होंने अपनी जंगी ताक़त में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा करना निहायत ज़रूरी ख्याल किया।

📮बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

✍🏽 *हवाला*
📚 *सिरते मुस्तफा* स.251
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⚔ *जंगे उहुद* ⚔
_*जंगे उहुद का सबब*_
⤵हिस्सा~03

➡चुनान्चे इन लोगो ने हथियारों की तैयारी और सामानर जंग की खरीदारी में पानी की तरह रुपया बहाने के साथ साथ मोरे अरब में जंग का जोश और लड़ाई का बुकजार फेलाने के लिये बड़े बड़े शाइरों को मुन्तख़ब किया जो अपनी आतश बयानी से तमाम क़बाइले अरब में जोशे इन्तिक़ाम की आग लगा दे।

➡"अम्र जमही" और "मसाफेअ" ये दोनों अपनी शाइरी में ताक और आतश बयानी में माहिर थे, इन दोनों ने बा क़ायदा दौरा करके तमाम क़बाइले अरब में ऐसा जोश पैदा कर दिया कि बच्चा बच्चा *खून का बदला खून* का नारा लगाते हुए मरने और मारने पर तैयार हो गया जिस का नतीजा ये हुवा कि एक बहुत बड़ी फैज़ तैयार हो गई।

➡मर्दों के साथ साथ बड़े बड़े मुअज़्ज़ज़् और मालदार घरानो की औरते भी जोशे इन्तिक़ाम से लबरेज हो कर फ़ौज में शामिल हो गई। जिन के रिश्तेदार जंगे बद्र में क़त्ल हुए थे उन औरतो ने कसम खा ली थी की हम अपने रिश्तेदारो के क़ातिलो का खून पी कार ही डम लेगी।

🌴हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه ने हिन्द के बाप उत्बा और जबीर बिन मूतअम के चाचा को जंगे बद्र में क़त्ल किया था। इस बिना पर हिन्द ने वहशी को जो जबीर बिन मूतअम का गुलाम था हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه के क़त्ल पर आमादा किया और ये वादा किया कि अगर इसने हज़रते हम्ज़ा को क़त्ल कर दिया तो वो कार गुज़ारी के सिले में आज़ाद कर दिया जाएगा।

✍🏽 _*हवाला*_
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*⚔जंगे उहुद⚔*

*मदीने पर चढ़ाई*

➡अल गरज़ बे पनाह जोशे खरोश और इंतिहाई तैयारी के साथ लश्करे कुफ़्फ़ार मक्का से रवाना हुवा और अबू सुफ़यान इस लश्करे जर्रार का सिपह सालार बना।

➡हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास رضي الله تعالي عنه जो खुफया तौर पर मुसलमान हो चुके थे और मक्का में रहते थे इन्हों ने एक खत लिख कर हुज़ूर ﷺ को कुफ़्फ़ारे कुरैश की लश्कर कशी से मुत्तलअ कर दिया।

➡जब आप को ये कहुफनाक खबर मिली तो आप 5 शव्वाल सि.3 हि. को हज़रते अदी बिन फुज़ाला رضي الله تعالي عنه के दोनी लड़को हज़रते अनस और हज़रते मूसन رضي الله تعالي عنه को जासूस बना कर कुफ़्फ़ारे कुरैश के लश्कर की खबर लाने के लिये रवाना फ़रमाया।

➡चुनान्चे इन दोनों ने आ कर ये परेशान कुन खबर सुनाई कि अबू सुफ़यान का लश्कर मदीने के बिलकुल क़रीब आ गया है और उन के घोड़े मदीने की चारगाह की तमाम घास चर गए।

*✍🏽सिरते मुस्तफा* स.252
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*⚔जंगे उहुद⚔*

*मुसलमानो की तैयारी और जोश*
⤵हिस्सा~01

➡14 शव्वाल सि.3 हि. जुमुआ की रात में हज़रते साद बिन मुआज़ व हज़रते उसैद बिन हुज़ैर व हज़रते साद बिन उबादा رضي الله تعالي عنه हथियार ले कर चन्द अन्सारियो के सथब्राट भर काशानए नुबुव्वत का पहरा देते रहे और शहरे मदीना के अहम नाको पर भी अन्सार का पहरा बिठा दिया गया।

➡सुबह को हुज़ूर ﷺ ने अन्सार व मुहाजिरिन को जमा फ़रमा कर मशवरा तलब फ़रमाया कि शहर के अंदर रह कर दुश्मनो की फैज का मुक़ाबला किया जाए या शहर से बाहर निकल का मैदान में ये जंग लड़ी जाए ?
*⃣मुहजीरिन ने आप तौर पर और अन्सार में से बड़े बुढो ने ये राय दी की औरतो और बच्चों को क़ल्ओ में महफूज़ कर दिया जाए और शहर के अंदर रह कर दुश्मनो का मुक़ाबला किया जाए।

➡मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य भी उस मजलिस में मौजूद था। उसने भी यही कहा की शहर में पनाह गिर हो कर कुफ़्फ़ारे कुरैश के हमलो की मुदाफअत की जाए, मगर चन्द कमसिन नौ जवान जो जंगे बद्र में शरीक नही हुए थे और जोशे जिहाद में आप से बहार हो रहे थे वो इस राय पर अड़ गए कि मैदान में निकल कर दुश्मने इस्लाम से फैसला कुन जंग लड़ी जाए।

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*जंगे उहुद*

*मुसलमानो की तैयारी और जोश*
हिस्सा~01

➡14 शव्वाल सि.3 हि. जुमुआ की रात में हज़रते साद बिन मुआज़ व हज़रते उसैद बिन हुज़ैर व हज़रते साद बिन उबादा رضي الله تعالي عنه हथियार ले कर चन्द अन्सारियो के सथब्राट भर काशानए नुबुव्वत का पहरा देते रहे और शहरे मदीना के अहम नाको पर भी अन्सार का पहरा बिठा दिया गया।

➡सुबह को हुज़ूर ﷺ ने अन्सार व मुहाजिरिन को जमा फ़रमा कर मशवरा तलब फ़रमाया कि शहर के अंदर रह कर दुश्मनो की फैज का मुक़ाबला किया जाए या शहर से बाहर निकल का मैदान में ये जंग लड़ी जाए ?
*⃣मुहजीरिन ने आप तौर पर और अन्सार में से बड़े बुढो ने ये राय दी की औरतो और बच्चों को क़ल्ओ में महफूज़ कर दिया जाए और शहर के अंदर रह कर दुश्मनो का मुक़ाबला किया जाए।

➡मुनाफ़िक़ों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य भी उस मजलिस में मौजूद था। उसने भी यही कहा की शहर में पनाह गिर हो कर कुफ़्फ़ारे कुरैश के हमलो की मुदाफअत की जाए, मगर चन्द कमसिन नौ जवान जो जंगे बद्र में शरीक नही हुए थे और जोशे जिहाद में आप से बहार हो रहे थे वो इस राय पर अड़ गए कि मैदान में निकल कर दुश्मने इस्लाम से फैसला कुन जंग लड़ी जाए।

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*जंगे उहुद*

*मुसलमानो की तैयारी और जोश*
हिस्सा~02

➡हुज़ूर ﷺ ने सब की राय सुनली। फिर मकान में जा कर हथियार जेब तन फ़रमाया और भार तशरीफ़ लाए। अब तमाम लोग इस बात पर मुत्तफ़िक़ हो गए कि शहर के अंदर ही रह कर कुफ़्फ़ारे कुरैश के हमलो को रोका जाए

➡मगर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि मैगम्बर के लिये ये ज़ेबा नहीं है कि हथियार पहन कर उतार दे यहाँ तक कि अल्लाह तआला उसके और उसके दुश्मनो के दरमियान फैसला फ़रमा दे। अब तुम लोग खुदा का नाम ले कर मैदान में निकल पड़ो। अगर तुम लोग सब्र के साथ मैदाने जंग में डटे रहोगे तो ज़रूर तुम्हारी फ़त्ह होगी।

➡फिर हुज़ूर ﷺ ने अन्सार के क़बिलए औस का झन्डा हज़रते उसैद बिन हुज़ैर को और क़बिलए खज़रज का झन्डा हज़रते खब्बाब बिन मुन्ज़िर को और मुहाजिरिन का झन्डा हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को दिया और एक हज़ार की फ़ौज़ ले कर मदीने से बाहर निकले।
*✍🏽सिरते मुस्तफा* स.253
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*जंगे उहुद*

*हुज़ूर ने यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया*
हिस्सा~01

शहर से निकलते ही आप ﷺ ने देखा की एक फ़ौज चली आ रही है। आप ﷺ ने पूछा कि ये कौन लोग है ? लोगो ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! ये रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्लाह बिन उबय्य के हलिफ् यहूदियो का लश्कर है जो आप की इमदाद के लिये आ रहा है।

आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
इन लोगो से कह दो वापस लौट जाए। हम मुशरिकों के मुक़ाबले में मुशरिकों की मदद नहीं लेंगे।

चुनान्चे यहूदियो का ये लश्कर वापस चला गया। फिर अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफ़ीक़ो का सरदार) भी जो तिन सो आदमियो को ले कर हुज़ूर ﷺ के साथ आया था ये कह कर वापस चला गया कि मुहम्मद ने मेरा मशवरा क़बूल नहीं किया और मेरी राय के खिलाफ मैदान में निकल पड़े, लिहाज़ा में इन का साथ नहीं दूंगा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*सिरते मुस्तफा* स.254
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_*सिरते मुस्तफा ﷺ*_
*जंगे उहुद*

*हुज़ूर ने यहूद की इमदाद को ठुकरा दिया*
हिस्सा~02

अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बात सुन कर क़बिलए खज़रज में से "बनू सलमह" के और क़बीलए औस में से "बनू हारिष" के लोगो ने भी वापस लौट जाने का इरादा कर लिया मगर अल्लाह तआला ने इन लोगो के दिल में अचानक महब्बते इस्लाम का ऐसा जज़्बा पैदा फ़रमा दिया कि इन लोगो के क़दम जम गए।

चुनान्चे अल्लाह तआला ने क़ुरआन में इन लोगो का तज़किरा फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया :
*जब तुम् में के दो गुरौहो का इरादा हुवा की न मर्दि कर जाए और _अल्लाह_ इन का संभालने वाला है और मुसलमानो को _अल्लाह_ ही पर भरोसा होना चाहिये*

जब हुज़ूर ﷺ के लश्कर में कुल 700 सहाबा रह गए जिन में 100 ज़िरह पोश थे और कुफ़्फ़ार की फ़ौज में 3000 अशरार का लश्कर था जिन में 700 ज़िहर पोश जवान, 200 घोड़े, 3000 ऊंट और 15 औरते थी।

शहर से बहार निकल कर हुज़ुर ﷺ ने अपनी फ़ौज का मुआयना फ़रमाया और जो लोग कम उम्र थे, उनको वापस लौटा दिया कि जंग के हौलनाक मौके पर बच्चों का क्या काम ?

*सिरते मुस्तफा* स.255
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*जंगे उहुद*

_*बच्चों का जोशे जिहाद*_

जब हज़रते राफेअ बिन खदीज़ رضي الله تعالي عنه से कहा गया कि तुम बहुत छोटे हो, तुम भी वापस चले जाओ तो वो फौरन अंगूढ़ो के बल तल कर खड़े हो गए ताकि इन का क़द उचा नज़र आए। चुनान्चे उनकी ये तरकीब चल गई और वो फौज में शामिल कर लिये गए

हज़रते समुरह رضي الله تعالي عنه जो एक कम उम्र नौ जवान थे जब इनको वापस किया जाने लगा तो इन्होंने अर्ज़ किया कि में राफेअ बिन खदीज़ को कुश्ती में पछाड़ लेता हु। इस लिये अगर वो फौज में ले लिए गए है तो फिर मुझको भी ज़रूर जंग में शरीक होने की इजाज़त मिलनी चाहिये चुनान्चे  दोनों का मुक़ाबला कराया गया और वाक़ई हज़रत समुरह ने हज़रते राफेअ को ज़मीन पर दे मारा। इस तरह इन दोनों पुरजोश नौ जवानो को जंगे उहुद में शिर्कत की सआदत नसीब हो गई।

*सिरते मुस्तफा* स.255
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_*सिरते मुस्तफा*_
*जंगे उहुद*

ताजदारे दो आलम मैदाने जंग में
हिस्सा~01

मुशरिकीन तो 12 शव्वाल सि. 3 हि. बुध के दिन ही मदीना के क़रीब पहुच कर कोहे उहुद पर अपना पड़ाव दाल चुके थे मगर हुज़ूर ﷺ 14 शव्वाल बाद नमाज़े जुमुआ मदिनए से वाला हुए। रात को बनी जंजार में रहे और 15 शव्वाल सनीचर के दिन नमाज़े फ़ज्र के वक़्त उहुद में पहुचे।

हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه ने अज़ान दी और आप ने नमाज़े फ़ज्र पढ़ा कर मैदाने जंग में मोरचा बन्दी शुरू फ़रमाई। हज़रते अक्काशा बिन मुहसिन असदी को लश्कर के दाए बाज़ू पर और हज़रते अबू सलमह बिन अब्दुल असद मखजुमि को बाए बाजू पर और हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह व हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास को अगले हिस्से पर और हज़रते मिक़्दाद बिन अम्र को पिछले हिस्से पर अफसर मुक़र्रर फ़रमाया।

और सफ बन्दी के वक़्त उहुद पहाड़ को पुश्त पर रखा और कोहे इनैन को जो वादिये क़नाह में है अपने बाई तरफ रखा। लश्कर के पीछे पहाड़ में एक तांग रस्ता था जिसमे से गुज़र कर कुफ़्फ़ारे कुरैश मुसलमानो की सफों के पीछे से हमला आवर हो सकते थे इस लिये हुज़ूर ﷺ ने उस रस्ते की हिफाज़त के लिये 50 तीर अंदाज़ों का एक दस्ता मुक़र्रर फ़रमा दिया और हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर को उस रस्ते का अफसर बना दिया और ये हुक्म दिया की देखो हम चाहे मगलूब हो या ग़ालिब मगर तुम लोग अपनी इस जगह से उस वक़्त तक न हटना जब तक में तुम्हारे पास किसी को न भेजु।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*#सिरते मुस्तफा* स.256
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*जंगे उहुद*

ताजदारे दो आलम मैदाने जंग में
हिस्सा~02

मुशरिकीन ने भी निहायत बा क़ायदगी के साथ अपनी स्फो को दुरुस्त किया। चुनांचे उन्होंने अपने लश्कर के दाए बाजू पर खालिद बिन वलीद को और बाए बाजु पर इक़रमा बिन अबू जहल को अफसर बना दिया, सुवारो का दस्ता सफवान बिन उमय्या की कमान में था। तीर अंदाज़ों का एक दस्ता अलग था जिन का सरदार अब्दुल्लाह बिन रबीआ था और पुरे लश्कर का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा था जो क़बिलए बनी अब्दुद्दार का एक आदमी था।

हुज़ूर ﷺ ने जब देखा कि पुरे लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार क़बिलए बनी अब्दुद्दार का एक शख्स है तो आपने भी इस्लामी लश्कर का झन्डा हज़रते मुसआद बिन उमैर को अता फ़रमाया जो क़बिलए बनू अब्दुद्दार से तअल्लुक़ रखते थे
*#सिरते मुस्तफा, स.257*
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*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~01

सबसे पहले कुफ्फार कुरैश की औरते दफ बजा कर ऐसे अशआर गाती हुई आगे बढ़ी जिन में जंग बद्र के मक़्तूलिन का मातम और इन्तिक़ामे खून का जोश भरा हुवा था। लश्करे कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफ़यान की बीबी "हिन्द" आगे आगे और कुफ्फार कुरैश के मुअज़्ज़ज़् घरानो की 14 औरते उसके साथ साथ थी और ये सब आवाज़ मिला कर ये अशआर गया रही थी की...

हम आसमान के तारो की बेटिया है हम कालीनों पर चलने वालिया है..
अगर तुम बढ़ कर लड़ोगे तो हम तुम से गले मिलेंगे और पीछे क़दम हटाया तो हम तुम से अलग हो जाएंगे....

मुशरिकीन की सफों में से सबसे पहले जो शख्स जंग के लिये निकला वो अबू आमिर औसी था। जिसकी इबादत और पारसाई की बिना पर मदीना वाले उसको राहिब कहा करते थे मगर हुज़ूर ﷺ ने उसका नाम "फ़ासिक़" रखा था।
जमानए जाहिलिय्यत में ये शख्स अपने क़बीले ओस का सरदार था और मदीने का मक़बूले आम आदमी था। मगर जब रसूले अकरम मदीने में तशरीफ़ लाए तो ये शख्स जज़्बए हसद में जल कर खुदा के महबूब की मुखालफत करने लगा और मदीने से निकल कर मक्का चला गया और कुफ्फार कुरैश को आप से जंग करने पर आमादा किया। इसको बड़ा भरोसा था की मेरी क़ौम जब मुझे देखेगी तो रसूलल्लाह का साथ छोड़ देगी।

चुनान्चे उसने मैदान में निकल कर पुकारा की ऐ अन्सार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ? में अबू आमिर राहिब हु।

*सिरते मुस्तफा 258*
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*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~02

उसने मैदान में निकल कर पुकारा की ऐ अन्सार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ? में अबू आमिर राहिब हु।

अन्सार ने चिल्ला कर कहा हा हा ! ऐ फ़ासिक़ ! हम तुझको खूब पहचानते है। खुदा तुझे ज़लील फ़रमाए। अबू आमिर अपने लिये फ़ासिक़ का लफ्ज़ सुन कर तिलमिला गया।
कहने लगा की हाए अफ़सोस ! मेरे बाद मेरी क़ौम बिलकुल ही बदल गई।

फिर कुफ्फार क़ुरैश की एक टोली जो उसके साथ थी मुसलमानो पर तीर बरसाने लगी। इसके जवाब में अन्सार ने भी इस ज़ोर की संगबारी की, कि अबू आमिर और उसके साथी मैदाने जंग से भाग खड़े हुए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*सिरते मुस्तफा 259*
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_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~03

लश्करे कुफ्फार का अलम बरदार तल्हा बिन अबू तल्हा सफ से निकल कर मैदान में आया और कहने लगा कि क्यू मुसलमानो ! तुम में कोई ऐसा है कि वो मुझे दोज़ख में पहोचा दे या खुद मेरे हाथ से वो जन्नत में पहुच जाए।

उसका ये घमंड से भरा हुवा कलाम सुन कर हज़रत अली शेरे खुदा ने फ़रमाया कि हा में हु ये कहकर फातेहे खैबर ने जुल फ़िक़ार के एक ही वार से उस का सर फाड़ दिया और वो ज़मीन पर तड़पने लगा और शेरे खुदा मुह फेर कर वहा से हट गए। लोगोने पूछा कि आप ने उस का सर क्यू नही काट लिया ?

शेरे खुदा ने फ़रमाया कि जब वो ज़मीन पर गिरा तो उस की शर्मगाह खुल गई और वो मुझे क़सम देने लगा कि मुझे मुआफ़ कर दिजिये उस बे हया को बे सीत्र देख कर मुझे शर्म दामन गिर हो गई इस लिये में ने मुह फेर लिया।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

*#सिरते मुस्तफा 259*
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*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~04

तल्हा के बाद उसका भाई ऊष्मान बिन अबू तल्हा रज्ज़ का ये शेर पढता हुवा हमला आवर हुवा कि..

अलम बरदार का फ़र्ज़ है कि नेज़े को खून में रंग दे या वो टकरा कर टूट जाए।

हज़रते हमज़ा رضي الله تعالي عنه उसके मुकाबले के लिये तलवार ले कर निकले और उस शाने पर ऐसा भरपूर हाथ मारा कि तलवार रीढ़ की हड्डी को काटती हुई कमर तक पहुच गई और आप के मुह से ये नारा निकला कि..
में हाजियो के सैराब करने काले अब्दुल मुत्तलिब का बीटा हु।

इसके बाद आप जंग शुरू हो गई और मैदाने जंग में कुश्टो खून का बाज़ार गर्म हो गया.

*#सिरते मुस्तफा 260*
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*जंग उहूद*

_अबू दजाना की खुश नसीबी_
हिस्सा~01

हुज़ूर ﷺ के दस्ते मुबारक में एक तलवार थी जिस पर ये शेर कन्द था कि..
बुज़दिली में शर्म है और आगे बढ़ कर लड़ने में इज़्ज़त है और आदमी बुज़दिली करके तक़दीर से नही बच सकता।

हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया की कौन है जो इस तलवार को ले कर इस का हक़ अदा करे
ये सुनकर बहुत से लोग इस सआदत के लिये लपके मगर ये फखरो शरफ हज़रते अबू दजाना رضي الله تعالي عنه के नसीब में था कि ताजदार दो आलम ﷺ ने अपनी ये तलवार अपने हाथ से हज़रते अबू दजाना के हाथ में दे दी। वो ये एजाज पा क्र जोश मुसर्रत में मस्तो बेखुद हो गए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ ! इस तलवार का हक़ क्या है ?
इरशाद फ़रमाया :
तू इससे काफिरो को क़त्ल करे यहाँ तक कि ये टेढ़ी हो जाए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*#सिरते मुस्तफा 260*
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*जंग उहूद*
_अबू दजाना की खुश नसीबी_
हिस्सा~01
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अबू दजाना ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! में इस तलवार को इसके हक़ के साथ लेता हु। फिर वो अपने सर पर एक सुर्ख रंग का रुमाल बांध कर अकड़ते और इतराते हुए मैदाने जंग में निकल पड़े और दुश्मनो की सफों को चीरते हुए और तलवार चलाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे कि एक दम उनके सामने अबू सुफ़यान की बीवी हिन्द आ गई। हज़रते अबू दजाना ने इरादा किया की इस पर तलवार चला दे मगर फिर इस खयाल से तलवार हटा ली की रसूलल्लाह ﷺ की मुक़द्दस तलवार के लिये ये ज़ेब नही देता की वो किसी औरत का सर काटे।

हज़रते अबू दजाना की तरह हज़रते हमज़ा और हज़रते अली رضي الله تعالي عنه भी दुश्मनो की सफों में घुस गए और कुफ्फार का क़त्ले आम शुरू कर दिया।

हज़रते हम्ज़ा इन्तिहाई जोशे जिहाद में दो दस्ती तलवार मरते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। इसी हालत में सबाअ गबशानि सामने आ गया आप ने तड़प कर फ़रमाया की ऐ औरत का खतना करने वाली औरत के बच्चे ! ठहर खा जाता है ? तू अल्लाह व रसूल से जंग करने चला आया है। ये कह कर उस पर तलवार चला दी, और वो दो टुकड़े हो कर ज़मीन पर ढेर हो गया।
*सिरते मुस्तफा 261*
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*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_हज़रते हम्ज़ा की शहादत_*
वहशी जो एक हबशी गुलाम था और उसका आक़ा जबीर बिन मूतअम  उस से वादा कर चूका था कि तू अगर हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه को क़त्ल कर दे तो में तुझको आज़ाद कर दूंगा। वहशी एक चट्टान के पीछे छुपा हुवा था और हज़रते हम्ज़ा की टाक में था जू ही आप उस के क़रीब पहुचे उसने दूर से अपन नेज़ा फेक कर मारा जो आप की नाफ में लगा। और पुश्त के पार हो गया। इस हालत में भी हज़रते हम्ज़ा तलवार ले कर उसकी तरफ बढ़े मगर ज़ख्म की ताब न ला कर गिर पड़े और शहादत से शरफराज़ हो गए।
*सिरते मुस्तफा 261*
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कुफ्फार के अलम बरदार खुद कट कट कर गिरते चले जा रहे थे मगर उनका झन्डा गिरने नही पाटा था एक के क़त्ल होने के बाद दूसरा उस झन्डे को उठा लेता था। उन काफिरो के जोशो खरोश का ये आलम  था कि जब एक काफ़िर ने जिस का नाम सवाब था मुशरिकीन का झन्डा उठाया तो एक मुसलमान ने उसको इस ज़ोर से तलवार मारी कि उसके दोनों हाथ काट कर ज़मीन पर गीत पड़े मगर उसने अपने क़ौमी झन्डे को ज़मीन पर गिरने नहीं दिया बल्कि झन्डे को औने साइन से दबाये हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। इस हालत में मुसलमानो ने उसे क़त्ल कर दिया। मगर वो क़त्ल होते होते येही कहता रहा कि में ने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया।

उसके मरते ही एक बहादुर औरत जिस का नाम अमरह था उसने झपट कर क़ौमी झन्डे को अपने हाथ में ले कर बुलंद कर दया, ये मन्ज़र देख कर कुरैश को गैरत आई और उन की बिखरी हुई फैज़ सिमट आई और उस के उखड़े हुए क़दम फिर जैम गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 262*
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*सिरते मुस्तफा*
*जंग उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_हज़रते हन्ज़ला की शहादर_*
अबू आमिर राहिब कुफ्फार की तरफ से लड़ रहा था मगर उसके बेटे हज़रते हन्ज़ला رضي الله تعالي عنه पर्चमे इस्लाम के निचे जिहाद कर रहे थे। हज़रते हन्ज़ला ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह ! मुझे इजाज़त दिजिये में अपनी तलवार से अपने बाप का सर काट कर लाऊ मगर हुज़ूर की रहमत ने ये गवारा नही किया की बेटे की तलवार बाप का सर काटे। हज़रते हन्ज़ला इस क़दर जोश में भरे हुए थे कि सर हथेली पर रख कर इन्तिहाई जा बाज़ी के साथ लड़ते हुए कल्बे लश्कर तक पहुच गए और कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफ़यान पर हमला कर दिया और क़रीब था की हज़रते हन्ज़ला की तलवार अबू सुफ़यान का फैसला करदे की अचानक पीछे से शद्दाद बिन अल अस्वद ने झपट कर वार को रोका और हज़रते हन्ज़ला को शहीद कर दिया।

हज़रते हन्ज़ला رضي الله تعالي عنه के बारे में हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : फ़रिश्ते हन्ज़ला को गुस्ल दे रहे है !
जब उन की बीवी से उनका हाल दरयाफ़्त किया गया तो उसने कहा की जंगे उहूद की रात में वो अपनी बीवी के साथ सोए थे, गुस्ल की हाजत थी मगर दावते जंग की आवाज़ उनके कान में पड़ी तो वो इसी हालत में शरीके जंग हो गए।
ये सुनकर हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया की ये वजह है जो फरिश्तों ने उस को गुस्ल दिया। इसी वाकिए की बिना पर हज़रते हन्ज़ला को *गुसिलुल मलाइका* के लक़ब से याद किया जाता है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 263*
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*जंगे उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

इस जंग में मुजाहिदीने अन्सार व मुहाजिरिन बड़ी दिलेरी और जाबाज़ी से लड़ते रहे यहाँ तक की मुशरिकीन के पाउ उखड़ गए।

हज़रते अली व हज़रते अबू दजाना व हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه वगैरा के मुजाहिदिना हमलो ने मुशरिकीन की कमर तोड़ दी। कुफ्फार के तमाम अलम बरदार एक एक कर के कट कर ज़मीन पर ढेर हो गए।

कुफ्फार को शिकस्त हो गई और वो भागने लगे और उन की औरते जो अशआर पढ़ पद्ग कर लश्करे कुफ्फार को जोश दिला रही थी वो भी बद हवासी के आलम में अपने इज़ार उठाए हुए बरहना साक भागती हुई पहाड़ो पर दौड़ती हुई चली जा रही थी और मुसलमान कत्लो गारत में मशगूल थे।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 264*
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*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*ना गहा जंग का पासा पलट गया*_
कुफ्फार की बगदोद और मुसलमानो के फातिहाना कत्लो गारत का ये मन्ज़र देख कर वो 50 तीर अंदाज़ मुसलमान जो दर्रे की हिफाज़त पर मुक़र्रर किये गए थे वो भी आपस में एक दूसरे से ये कहने लगे कि गनीमत लूटो तुम्हारी फ़त्ह हो गई। उन लोगो के अफसर हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर رضي الله تعالي عنه ने हर चन्द रोक और हुज़ूर ﷺ का फरमान याद दिलाया और फरमाने मुस्तफ्वि की मुखालफत से डराया मगर उन तीर अंदाज़ मुसलमानो ने एक न सुनी और अपनी जगह छोड़ कर माले गनीमत लूटने में मसरूफ़ हो गए।
लश्करे कुफ्फार का एक अफसर खालिद बिन वलीद पहाड़ की बुलंदी से ये मन्ज़र देख रहा था। जब उसने देखा कि दर्रा पहरेदारो से खाली हो गया है फौरन ही उसने दर्रे के रस्ते से फौज ला कर मुसलमानो के पीछे से हमला कर दिया। हज़रते अब्दुल्लाह बिन जबीर رضي الله تعالي عنه ने चन्द ज़ाबाज़ो के साथ इन्तिहाई दिलेराना मुक़ाबला किया मगर ये सब के सब शहीद हो गए।
अब क्या था काफिरो की फ़ौज के लिये रास्ता साफ हो गया खालिद बिन वलीद ने ज़बर दस्त हमला कर दिया। मुसलमान माले गनीमत लूटने में मसरूफ़ थे पीछे फिर कर देखा तो तलवारे बार्स रही थी और कुफ्फार आगे पीछे दोनों तरफ से मुसलमानो पर हमला कर रहे थे और मुसलमान का लश्कर चक्की के दो पाटो में दाने की तरह पीसने लगा और मुसलमानो में ऐसी बाद हवासी और अब्तरि फेल गई कि अपने और बेगाने की तमीज़ नही रही। खुद मुसलमान मुसलमान की तलवारो से क़त्ल हुए।
चुनान्चे हज़रते हुजैफा رضي الله تعالي عنه के वालिद हज़रते यमान खुद मुसलमानो की तलवार से शहीद हुए। हज़रते हुज़ैफा चिल्लाते ही रहे कि ऐ मुसलमानो ! ये मेरे बाप है। मगर कुछ अज़ीब बाद हवासी फैली हुई थी कि किसी को किसी का ध्यान ही नही था और मुसलमानो ने हज़रते यमान رضي الله تعالي عنه को शहीद कर दिया।
*सिरते मुस्तफा 265*
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*सिरते मुस्तफा*
*जंगे उहूद*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

_*हज़रते मुसअब बिन उमैर भी शहीद*_
फिर बड़ा गज़ब ये हुवा कि लश्करे इस्लाम के अलम बरदार हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه पर इब्ने कमीआ काफ़िर झपटा और उनके दाए हैयह पर इस ज़ोर से तलवार चला दी कि उनका दाया हाथ काट कर गिर पड़ा। इस जाबाज़ मुहाजिर ने झपट कर इस्लामी झन्डे को बाए हाथ से संभाल लिया मगर इब्ने कमीआ ने तलवार मार कर उनके बाए हाथ को भी शहीद कर दिया दोनों हाथ कट चुके थे मगर हज़रते उमैर رضي الله تعالي عنه अपने दोनों कटे हुए बाज़ुओं से पर्चमे इस्लाम को अपने सीने से लगाए हुए खड़े रहे और बुलंद आवाज़ से ये आयत पढ़ते रहे कि...
*मुहम्मद तो एक रसूल है इनसे पहले और रसूल हो चुके*
फिर इब्ने कमीआ ने इनको तीर मार कर शहीद कर दिया।
हज़रते मुसअब जो सूरत में हुज़ूरे अक़दस ﷺ से कुछ मुशाबेह थे उनको ज़मीन पर गिरते हुए देख कर कुफ्फार ने गुल मचा दिया कि मआज़अल्लाह हुज़ूर क़त्ल हो गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह..
*सिरते मुस्तफा 265*
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कुफ्फार ने गुल मचा दिया कि मआज़अल्लाह हुज़ूर क़त्ल हो गए।
अल्लाहु अकबर ! इस आवाज़ ने गज़ब ही ढा दिया मुसलमान ये सुनकर बिलकुल ही सरासीमा और परागन्दा दिमाग हो गए और मैदाने जंग छोड़ कर भागने लगे। बड़े बड़े भाडुबो के पाउ उखड गए और मुसलमानो में तिन गिरोह हो गए। कुछ लोग तो भाग कर मदीने के क़रीब पहुच गए, कुछ लोग सहम कर मुर्दा दिल हो गए जहां थे वही रह गए अपनी जान बचाते रहे या जंग करते रहे, कुछ लोग जिन की तादाद तक़रीबन 12 थी वो रसूलल्लाह ﷺ के साथ शाबित क़दम रहे।

इस हलचल में और भगदड़ में बहुत से लोगो ने तो बिलकुल ही हिम्मत हार दी और जो जाबाज़ी के साथ लड़ना चाहते थे वह भी दुश्मनो के दो तरफा हमलो के नरगे में फस कर मजबूर व लाचार हो चुके थे।

हुज़ूर ﷺ कहा है ? और किस हालमें है ? किसी को इस की खबर नहीं थी।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्सा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 266*
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हज़रत अली शेरे खुदा رضي الله تعالي عنه तलवार चलाते और दुश्मनो की सफों को डरहम बरहम करते चले जाते थे मगर वो हर तरफ मुद मुद कर रसूलल्लाह को देखते थे मगर जमाले नुबुव्वत नज़र न आने से वो इन्तिहाई इज़्तिराब व बे क़रारी के आलम में थे।

हज़रते अनस के चचा हज़रते अनस बिन नज़र رضي الله تعالي عنه लड़ते लड़ते मैदाने जंग से भी कुछ आगे निकल पड़े वहा जा कर देखा कि कुछ मुसलमानो ने मायूस हो कर हथियार फेक दिए है। आप ने पूछा कि तुम लोग यहा बेठे क्या कर रहे हो ? लोगो ने जवाब दिया कि अब हम लड़ कर क्या करेंगे ? जिन के लिये लड़ते थे वो शहीद हो गये। आप ने फ़रमाया कि अगर वाक़ई रसूले खुदा शहीद हो चुके तो फिर हम उनके बाद ज़िंदा रह कर क्या करेंगे ? चलो हम भी इस नदान में शहीद हो कर हुज़ूर ﷺ के पास पहुच जाए।

ये कह कर आप दुश्मनो के लश्कर में लड़ते हुए घुस गए और आखरी दम तक इन्तिहाई जोशे जिहाद और जाबाज़ी के साथ जंग करते रहे यहाँ तक कि शहीद हो गए।
लड़ाई खत्म होने के बाद जब इनकी लाश देखी गई तो 80 से ज़्यादा तीर व तलवार और नेज़ो के ज़ख्म इनके बदन पर थे काफिरो ने इनके बदन को छलनी बना दिया था और नाक, कान वगैरा काट कर इनकी सूरत बिगाड़ दी थी, कोई शख्स इनकी लाश को पहचान न सका सिर्फ इनकी बहन ने इन की उंगलियो को देख कर इनको पहचाना।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 267*
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हज़रते षाबित दहदाह ने मायूस हो जाने वाले अन्सारियो से कहा कि ऐ जमाअते अन्सार ! अगर बिल्फ़र्ज़ रसूक अकरम शहीद भी हो गए तो तुम हिम्मत क्यू हार गए ? तुम्हारा अल्लाह तो ज़िन्दा है लिहाज़ा तुम लोग उठो और अल्लाह के दिन के लिये जिहाद करो, ये कह कर आप ने चन्द अन्सारियो को औने साथ लिया और लश्करे कुफ्फार पर भूके शेरो की तरह हमला आवर हो गए और आखीर खालिद बिन वलीद के नेज़े से जामे शहादत नोश करली।

*✍🏽सिरते मुस्तफा 266*
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जंग जारी थी और जा निशाराने इस्लाम जो जहां थे वही लड़ाई में मसरूफ़ थे मगर सब की निगाहें इन्तिहाई बे क़रारी के साथ जमाले नुबुव्वत को तलाश करती थी, ऐन मायूसी के आलम में सब से पहले जिसने हुज़ूर ﷺ का जमाल देखा वो हज़रते काब बिन मालिक رضي الله تعالي عنه की खुश नसीब आँखे है,
उन्होंने हुज़ूर ﷺ को पहचान कर मुसलमानो को पुकारा की ऐ मुसलमानो ! इधर आओ, रसूले खुदा ﷺ ये है, इस आवाज़ को सुन कर तमाम जा निशारो में जान पड़ गई और हर तरफ से दौड़ कर मुसलमान आने लगे, कुफ्फार ने भी हर तरफ से हमला रोक कर हुज़ूर ﷺ पर क़ातिलाना हमला करने के लिये सारा ज़ोर लगा दिया।
लश्करे कुफ्फार का दल बादल हुजूम के साथ उमंड पड़ा और बार बार मदनी ताजदार पर यलगार करने लगा मगर जुल फ़िक़ार की बिजली से ये बादल फट कर रह जाता था।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 268*
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*ज़ियाद बिन सकन की शुजाअत और शहादत*
एक मर्तबा कुफ्फार का हुजूम हमला आवर हुवा तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि "कौन हे जो मेरे ऊपर अपनी जान क़ुर्बान करता ह?" ये सुन कर हज़रते ज़ियाद رضي الله تعالي عنه 5 अन्सारियो को साथ ले कर आगे बढ़े और हर एक ने लड़ते हुए अपनी जाने फ़िदा कर दी। हज़रते ज़ियाद ज़ख्मो से लाचार हो कर ज़मीन पर गिर पड़े थे मगर कुछ कुछ जान बाक़ी थी,
हुज़ूर ﷺ ने हुक्म दिया कि उनकी लाश को मेरे पास उठा लाओ, जब लोगो ने उन की लाश को बारगाहे रिसालत में पेश किया तो हज़रते ज़ियाद ने खिसक कर महबूबे खुदा ﷺ के क़दमो पर अपना मुह रख दिया और इसी हालत में उन की रूह परवाज़ कर गई।

अल्लाहु अकबर ! हज़रते ज़ियाद बिन सकन رضي الله تعالي عنه की इस मौत पर लाखो जिंदगियां क़ुर्बान ! सुब्हान अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 268*
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*_खजूर खाते खाते जन्नत में_*
इस घुमसान की लड़ाई और मारधाड़ के हंगामे में एक बहादुर मुसलमान खड़ा हुवा, निहायत बे परवाइ के साथ खजूरे खा रहा था। एक डीएम आगे बढ़ा और अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ﷺ ! अगर में इस वक़्त शहीद हो जाऊ तो मेरा ठिकाना कहा होगा ?
आप ने फ़रमाया कि तू जन्नत में जाएगा। वो बहादुर फरमाने बिशारत को सुन कर मस्तो बेखुद हो गया। एक दम कुफ्फार के हुजूम में कूद पड़ा और ऐसी शुजाअत के साथ लड़ने लगा कि काफिरो के दिल दहल गए।
इस तरह जंग  करते करते शहीद हो गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 269*
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*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हज़रते अम्र बिन जमुह अन्सारी رضي الله تعالي عنه लंगड़े थे, ये घर से निकलते वक़्त ये दुआ मांग कर चले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर, इन के चार फरजंद भी जिहाद में मसरूफ़ थे। लोगो ने इन कक लंगड़ा होने की बिना पर जंग करने से रोक दिया तो ये हुज़ूर की बारगाह में गिड़गिड़ा कर अर्ज़ करने लगे की या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझ को जंग में लड़ने की इजाज़त अता फरमाइये, मेरी तमन्ना है कि में भी लंगड़ाता हुवा बागे बिहिश्त में चला जाऊ।
उनकी बे क़रारी और गीर्य व ज़ारी से हुज़ूर ﷺ का कल्बे मुबारक मुतास्सिर हो गया और आप ने उनको जंग की इजाज़त दे दी। ये ख़ुशी से उछल पड़े और अपने एक फरजंद को साथ ले कर काफिरो के हुजूम में घुस गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 270*
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*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हिस्सा~02
हज़रते अबू तल्हा رضي الله تعالي عنه का बयान है की हज़रते अम्र बिन जमुह رضي الله تعالي عنه को देखा की वो जंग में ये कहते हुए चल रहे थे की "खुदा की क़सम! में जन्नत का मुश्ताक़ हु"। उनके साथ साथ उनको सहारा देते हुए उनका लड़का भी इन्तिहाई शुजाअत के साथ लड़ रहा था यहाँ तक कि ये दोनों शहादत से सरफ़राज़ हो कर बागे बहिश्त में पहुच गए।
लड़ाई खत्म हो जाने के बाद इनकी बीवी हिन्द मेंदाने जंग में पहुची और उस ने एक ऊंट पर इन की और अपने भाई और अपने बेटे की लाश को लड़ कर दफन के लिये मदीना लाना चाहा तो हज़ारो कोशिशो के बा वुजूद किसी तरह भी ऊंट एक क़दम भी मदीने की तरफ नही चला।
हिन्द ने जब हुज़ूर ﷺ से ये माजरा अर्ज़ किया तो आप ने फ़रमाया कि ये बता क्या अम्र बिन जमुह ने घर से निकलते वक़्त कुछ् कहा था ? हिन्द ने कहा की जी हा ! वो ये दुआ कर के घर से निकले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर।
आप ने फ़रमाया कि यही वजह है कि ऊंट मदीने की तरफ नहीं चल रहा है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 270*
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*_ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख़्मी_*
हिस्सा~01
इसी सरासिमगि और परेशानी के आलम में जब कि बिखरे हुए मुसलमान अभी हुज़ूर ﷺ के पास जमा भी नही हुए थे कि अब्दुल्लाह बिन कमीआ जो कुरैश के बहादुरो में था। उस ने ना गहा हुज़ूर ﷺ को देख लिया। एक दम बिजली की तरह सफों को चीरता हुवा आया और हुज़ूर ﷺ पर क़ातिलाना हमला कर दिया। ज़ालिम ने पूरी ताकत से आप ﷺ के चेहरए अन्वर पर तलवार मारी जिस से खौद की दो कड़िया रूखे अन्वर में चुभ गई।

एक दूसरे काफ़िर ने आप के चेहरए अक़दस पर ऐसा पथ्थर मारा कि आप ﷺ के दो दन्दाने मुबारक शहीद, और निचे का मुक़द्दस होंट ज़ख़्मी हो गया।

इसी हालत में उब्य्य बिन खल्फ़ मलऊन अपने घोड़े पर सुवार हो कर आप को शहीद कर देने की निय्यत से आगे बढ़ा।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 271*
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*_ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख़्मी_*
हिस्सा~02
जेसे ही उबय्य बिन खल्फ़ आप को शहीद करने की निय्यत से आगे बढ़ा हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने अपने एक जा निशार सहाबी हज़रते हारिष बिन समा رضي الله تعالي عنه से एक छोटा सा नेज़ा ले कर उबय्य की गर्दन पर मारा जिस से वो तिलमिला गया।
गर्दन पर बहुत मामूली ज़ख्म आया और वो भाग निकला मगर अपने लश्कर में जा कर अपनी गर्दन के ज़ख्म के बारे में लोगो से अपनी तकलीफ और परेशानी ज़ाहिर करने लगा और बे पनाह ना क़ाबिले बर्दाश्त दर्द की शिकायत करने लगा।
इस और उसके साथियो ने कहा की "ये तो मामूली खराश है, तुम इस क़दर ओरेशां क्यू हो ?" उस ने कहा कि तुम लोग नही जानते कि एक मर्तबा मुझ से मुहम्मद ने कहा था कि में तुम को क़त्ल करूँगा इस लिये। ये तो बहर हाल ज़ख्म है मेरा ऐतिक़ाद है कि अगर वो मेरे ऊपर थूक देते तो भी में समझ लेता कि मेरी मौत यक़ीनी है।

इसका वाकिया कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 272*
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*_ताजदारे दो आलम ﷺ ज़ख़्मी_*
हिस्सा-03
उबय्य बिन खल्फ़ ने मक्का में एक घोडा पाला था जिस का नाम इसने "औद" रखा था। वो रोज़ाना उस को चराता था और लोगो से कहता था कि में इस घोड़े पर सुवार हो कर मुहम्मद को क़त्ल करूँगा।
जब हुज़ूर ﷺ को इसकी खबर हुई तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि इन्शा अल्लाह में उबय्य को क़त्ल करूँगा। चुनान्चे उबय्य अपने उस घोड़े पर चढ़ कर जंगे उहूद में आया था जो ये वाकिया पेश आया।
उबय्य नेज़े के ज़ख्म से बे क़रार होंकर रास्ते भर तड़पता और बिलबिलाता रहा। यहाँ तक कि जंगे उहूद से वापस आते हुए मक़ामे "सरफ" में मर गया।
इस तरह इब्ने कमीआ मलऊन जिस ने हुज़ूर ﷺ के रूखे अन्वर पर तलवार चला दी थी एक पहाड़ी बकरे को खुदा वन्दे क़ह्हार व जब्बार ने उस पर मुसल्लत फरमा दिया और उस ने इसकी सिंग मार मार कर छलनी बना डाला और पहाड़ की बुलंदी से निचे गिरा दिया जिससे उसकी लाश के टुकड़े टुकड़े हो कर ज़मीन पर बिखर गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 272*
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*_​​सहाबा का जोशे जां निषार​_*​
हिस्सा-01
हज़रते अबू तल्हा رضي الله تعالي عنه निशाना बाज़ी में मश्हूर थे। इन्हों ने हुज़ूर ﷺ को पीठ के पीछे बिठा लिया था ताकि दुश्मनो के तीर या तलवार का कोई वार आप पर न आ सके। कभी कभी आप दुश्मनो की फोज़ को देखने के लिये गर्दन उठाते तो हज़रते तल्हा رضي الله تعالي عنه अर्ज़ करते कि या रसूलल्लाह ﷺ ! मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान ! आप गर्दन न उठाए, कहि ऐसा न हो कि दुश्मनो का कोई तीर आप को लग जाए। या रसूलल्लाह ﷺ ! आप मेरी पिढ़ के पीछे ही रहे मेरा सीना आप के लिये ढाल बना हुवा है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 271*
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*_​​सहाबा का जोशे जां निषार​_*​
हिस्सा-03
हज़रते क़तादा बिन नोमान अंसारी رضي الله تعالي عنه हुज़ूर ﷺ के चेहरए अन्वर को बचाने के लिये अपना चेहरा दुश्मनो के सामने किए हुए थे। ना गहा काफिरो का एक तीर इन की आँख में लगा और आँख बह कर इनके रुखसार पर आ गई। हुज़ूर ﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से उन की आँख को उठा कर आँख के हल्के में रख दिया और यु दुआ फ़रमाई कि
*या अल्लाह ! क़तादा की आँख बचा ले जिस ने तेरे रसूल के चेहरे को बचाया है*
मश्हूर है कि उन की वो आँख दूसरी आँख से ज़्यादा रोशन और खूब सूरत हो गई।

हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास رضي الله تعالي عنه भी तीर अंदाज़ी में इन्तिहाई बा कमाल थे। ये भी हुज़ूर ﷺ की मुदाफअत में जल्दी जल्दी तीर चला रहे थे और हुज़ूर ﷺ खुद अपने दस्ते मुबारक से तीर उठा उठा कर इनको देते थे और फरमाते थे कि ऐ साद ! तीर बरसाते जाओ तुम पर मेरे माँ बाप क़ुर्बान।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 274*
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*_सहाबा का जोशे जां निषार​_*
_हिस्सा-04_
ज़ालिम कुफ्फार इन्तिहाई बे दर्दी के साथ हुज़ूरे अन्वरﷺ पर तीर बरसा रहे थे मगर उस वक़्त भी ज़बाने मुबारक पर यही दुआ थी,
*ऐ अल्लाह ! मेरी क़ौम को बख्श दे वो मुझे जानते नही है*

हुज़ूरे अक़दस ﷺदन्दाने मुबारक के सदमे और चेहरए अन्वर के ज़ख्मल से निढाल हो रहे थे। इस हालत में आप ﷺउन गढ़ो में से एक गढ़े में गिर पड़े जो अबू आमिर फ़ासिक़ ने जा बजा खोद कर उनको छुपा दिया था ताकि मुसलमान ला इल्मी में इन गढ़ो में गिर पड़े।
हज़रते अली رضي الله تعلي عنه ने आप ﷺका दस्ते मुबारक पकडा और हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाहرضي الله تعلي عنه ने आप को उठाया। हज़रए अबू उबैदा बिन अल जर्राहرضي الله تعلي عنه ने लोहे की टोपी की कड़ी का एक हल्क़ा जो चेहरए अन्वर में चुभ गया था अपने दातो से पकड़ कर इस ज़ोर के साथ खीच कर निकाला कि इनका एक दांत टूट कर ज़मीन पर गिर पड़ा। फिर दूसरा हल्क़ा जो दातो से पकड़ कर खीचा तो दुसरा भी टूट गया। चेहरए अन्वर से जो खून बहा उसको हज़रते अबू सईद खुदरी के वालिद हज़रते मालिक बिन सिनानرضي الله تعلي عنه ने जोशे अक़ीदत से चूस चूस कर पि लिया और एक क़तरा भी ज़मीन पर गिरने नहीं दिया।
हुज़ूर ﷺने फ़रमाया कि ऐ मालिक बिन सिनान ! क्या तूने मेरा खून पि डाला ? अर्ज़ किया कि जी हा या रसूलल्लाहﷺ ! इरशाद फ़रमाया कि जिस ने मेरा खून पि लिया जहन्नम की क्या मजाल जो उसको छु सके।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
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_*​सहाबा का जोशे जां निषार​​*​_
हिस्सा-05
इस हालत में हुज़ूरﷺ अपने जां निशारो के साथ पहाड़ की बुलंदी पर चढ़ गए जहा कुफ्फार के लिये पहुचना दुशवार था। अबू सुफ़यान ने देख लिया और फौज ले कर वो भी पहाड़ पर चढ़ने लगा लेकिन हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه और दूसरे जां निषार सहाबा ने काफिरो पर इस ज़ोर से पथ्थर बरसाए कि अबू सुफ़यान उसकी ताब न ला सका और पहाड़ से उतर गया।
हुज़ूरﷺ अपने चन्द सहाबा के साथ पहाड़ की एक घाटी में तशरीफ़ फरमा थे और चेहरए अन्वर से खून बह रहा था। हज़रते अलीرضي الله تعالي عنه अपनी ढाल में पानी बाहर भर कर ला रहे थे और हज़रते फातिमा ज़हराرضي الله تعالي عنها अपने हाथो से खून धो रही थी मगर खून बन्द नहीं होता था बिल आखिर खजूर की चटाई का एक टुकड़ा जलाया और उस की राख ज़ख्म पर रख दी तो खून फौरन ही थम गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 276*
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*_अबू सुफ़यान का नारा और उसका जवाब_*
अबू सुफ़यान जंग के मैदान से वापस जाने लगा तो एक पहाड़ी पर चढ़ गया और ज़ोर ज़ोर से पुकारा कि क्या यहाँ मुहम्मद है ?
हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि तुम लोग इसका जवाब न दो, फिर उसने पुकारा कि क्या तुममे अबू बक्र है ?
हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि कोई किछ जवाब न दे, फिर उसने पुकारा कि क्या तुममे उमर है ? जब इसका भी कोई जवाब नही मिला तो अबू सुफ़यान घमन्ड से कहने लगा कि ये सब मारे गए क्यू कि अगर ज़िंदा होते तो ज़रूर मेरा जवाब देते।
ये सुनकर हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه से ज़ब्त न हो सका और आप ने चील्ला कर कहा कि ऐ दुश्मने खुदा ! तू झुटा है। हम सब ज़िंदा है।
अबू सुफ़यान ने फ़त्ह के घमन्ड में ये नारा मारा कि ऐ हुबल ! तू सर बुलन्द हो जा। ऐ हुबल ! तू सर बुलन्द हो जा।
हुज़ूरﷺ ने सहाबा से फ़रमाया कि तुम लोग भी इस के जवाब में नारा लगाओ। लोगो ने पूछा कि हम क्या कहे ? इरशाद फ़रमाया कि तुम लोग ये नारा मारो कि *अल्लाह सबसे बढ़ कर बुलन्द मर्तबा और बड़ा है*
अबू सुफ़यान ने कहा की हमारे लिये बूत है और तुम्हारे लिये कोई बूत नही है। हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया कि तुम लोग इसके जवाब में ये कहो कि *अल्लाह हमारा मददगार है और तुम्हारा कोई मददगार नही*
अबू सुफ़यान ने ब आवाज़े बुलन्द बड़े फख्र के साथ ये ऐलान किया कि आज का दिन बद्र के दिन का बदला और जवाब है। लड़ाई में कभी फ़त्ह कभी शिकस्त होती है। ऐ मुसलमानो ! हमारी फोज़ ने तुम्हारे मक़्तूलो के कान, नाक काट कर उनकी सूरते बिगाड़ दी है मगर में ने न तो इसका हुक्म दिया था, न मुझे इस पर कोई रन्ज व अफ़सोस हुवा है ये कह कर अबू सुफ़यान मैदान से हट गया और चल दिया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 276*
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*_हिन्द जिगर ख्वार_*
     कुफ्फारे कुरैश की औरत ने जंगे बद्र का बदला लेने के लिये जोश में शुहदए किराम की लाशो पर जा कर उनके कान, नाक वगैरा काट कर सूरते बिगाड़ दी
     और अबू सुफ़यान की बीवी हिन्द ने तो इस बे दर्दी का मुज़ाहरा किया कि इन आज़ा का हार बना कर अपने गले में डाला।
     हिन्द हज़रते हम्ज़ा की मुक़द्दस लाश को तलाश करती फिर रही थी क्यू की हज़रते हम्ज़ा ही ने जंगे बद्र के दिन हिन्द के बाप उत्बा को कत्ल किया था। जब इस बे दर्द ने हज़रते हम्ज़ा की लाश को पा लिया तो खन्जर से इन का पेट फाड़ कर कलेजा निकाला और उसको चबा गई लेकिन हल्क़ से न उतर सका इस लिये उगल दिया,
     तारीख में हिन्द का लक़ब जो "जिगर ख्वार" है वो इसी वाक़ये की बिना पर है।
     हिन्द और इसके शौहर अबू सुफ़यान ने रमज़ान सि. 8 हि. में फ़त्ह मक्का के दिन इस्लाम क़बूल किया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 277*
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*_साद बिन अर्रबीअ की वसिय्यत_*
     हज़रते ज़ैद बिन षाबितرضي الله تعالي عنه का बयान है कि में हुज़ूरﷺ के हुक्म से हज़रते साद बिन अरर्बीअرضي الله تعالي عنه की लाश की तलाश में निकला तो मेने उनको सकरात के आलम में पाया। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम रसूलल्लाहﷺ से मेरा सलाम अर्ज़ कर देना और अपनी क़ौम को बादे सलाम मेरा ये पैगाम सुना देना कि जब तक तुम में से एक आदमी भी ज़िन्दा है अगर रसूलल्लाहﷺ तक कुफ्फार पहुच गए तो खुदा के दरबार में तुम्हारा कोई उज़्र भी क़ाबिले क़बूल न होगा।
     ये कहा और उनकी रूह परवाज़ कर गई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 278*
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*_खवातीने इस्लाम के कारनामे_*
     जंगे उहुद में मर्दों की तरह औरतो ने भी बहुत ही मुजाहिदाना जज़्बात के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया।
     हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सुलैमرضي الله تعالي عنها के बारे में हज़रते अनसرضي الله تعالي عنه का बयान है कि ये दोनों पाईचे चढ़ाए हुए मशक में पानी भर भर कर लाती थी और मुजाहिदीन खुसुसन जख्मियों को पानी पिलाती थी।
     इस तरह अबू सईद खुदरी की वालिदा हज़रते बीबी उम्मे सलितرضي الله تعالي عنها भी बराबर पानी की मशक भर कर लाती थी और मुजाहिदीन को पानी पिलाती थी
*✍🏽सिरते मुस्तफा 278*
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*_हज़रते उम्मे अम्मारा की जां निषारि_*
हिस्सा-01
     हज़रते बीबी उम्मे अम्माराرضي الله تعالي عنها जिन का नाम "नसीबा" है जंगे उहुद में अपने शोहर हज़रते ज़ैद बिन आसिम और दो फ़रज़न्द हज़रते अम्मारा और हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنه को साथ ले कर आई थी। पहले तो ये मुजाहिदीन को पानी पिलाती रही लेकिन जब हुज़ूरﷺ पर कुफ्फार की यलगार का होशरुबा मंज़र देखा तो मशक को फेंक दिया और एक खन्जर ले कर कुफ्फार के मुक़ाबले में सीना सिपर हो कर खड़ी हो गई और कुफ्फार के तीर व तलवार के हर एक वार को रोकती रही।
     चुनांचे उन के सर और गर्दन पर 13 ज़ख्म लगे। इब्ने क़मीआ मलऊन ने जब हुज़ूरﷺ पर तलवार चला दी तो बीबी उम्मे अम्मारा ने आगे बढ़ कर अपने बदन पर रोका। उनके कंधे पर इतना गहरा ज़ख्म आया कि गार पड़ गया फिर खुद बढ़ कर इब्ने क़मीआ के शाने पर ज़ोरदार तलवार मारी लेकिन वो मलऊन दोहरी ज़िरह पहने हुए था इस लिये बच गया।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 279*
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*हज़रते उम्मे अम्मारा की जां निषारि*
हिस्सा-02
     हज़रते बीबी उम्मे अम्माराرضي الله تعالي عنها के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنه कहते है कि मुझे एक काफिरने ज़ख़्मी कर दिया और मेरे ज़ख्म से खून बन्द नही होता था। मेरी वालिदा ने फौरन अपना कपड़ा फाड़ कर ज़ख्म को बांध दिया और कहा की बेटा उठो, खड़े हो जाओ फिर जिहाद में मशगूल हो जाओ।
     इत्तिफ़ाक़ से वही काफ़िर हुज़ुरﷺ के सामने आ गया तो आपﷺ ने फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा ! देख तेरे बेटे को ज़ख़्मी करनेवाला यही है। ये सुनते ही मेरी माँ ने झपट कर उस काफिर की टांग पर तलवार का ऐसा भरपूर हाथ मारा कि वो काफ़िर गिर पड़ा और फिर चल न सका बल्कि सुरीन के बल घिसटता हुवा भगा।
     ये मंज़र देख कर हुज़ूरﷺ हस पड़े और फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा ! तू खुदा का शुक्र अदा कर कि उसने तुझ को इतनी ताक़त और हिम्मत आता फ़रमाई की तूने खुदा की राह में जिहाद किया, हज़रते उम्मे अम्मारा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ ! दुआ फरमाइये की हम लोगो को जन्नत में आपकी खिदमत गुज़ारी का शरफ हासिल हो जाए। उस वक़्त आप ने उनके लिये और उनके शोहर और उनके बेटो के लिये इस तरह दुआ फ़रमाई कि "या अल्लाह इन सब को जन्नत में मेरा रफ़ीक़ बना दे"
     हज़रते उम्मे अम्मारा ज़िन्दगी भर अलानिया ये कहती रही की रसूलल्लाहﷺ की इस दुआ के बाद दुन्या में बड़ी से बड़ी मुसीबत भी मुझ पर आ जाए तो मुझे उस की कोई परवा नही है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 280*
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*_एक अन्सारी औरत का सब्र_*
     एक अंसारी औरत जिस का शोहर, बाप, भाई सभी इस जंग में शहीद हो चुके थे तीनो की शहादत की खबर बारी बारी से लोगो ने उसे दी मगर वो हर बार यही पूछती रही "ये बताओ रसूलल्लाहﷺ कैसे है ?"
     जब लोगो ने उस को बताया कि अलहम्दु लिल्लाह वो ज़िन्दा है और सलामत है तो बे इख़्तियार उस की ज़बान से इस शेर का मज़मून निकल पड़ा कि...
*_तसल्ली है पनाहे बे कसा ज़िन्दा सलामत है_*
*_कोई परवा नही सारा जहां ज़िन्दा सलामत है_*

     अल्लाहु अकबर ! इस शेर दिल औरत का सब्र व इषार का क्या कहना ? शोहर, बाप, भाई तीनो के क़त्ल से दिल पर सदमात के तिन तिन पहाड़ गिर पड़े है मगर फिर भी ज़बाने हाल से उस का एहि नारा है...
*_में भी और बाप भी, शोहर भी, बरादर भी फ़िदा_*
*_ऐ शहे दीं ! तेरे होते हुए क्या चीज़ है हम_*
*✍🏽सिरते मुस्तफा 282*
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*_शुहदए किराम_*
     इस जंग में 70 सहाबए किरामرضي الله تعالي عنهم ने जामे शहादत नोश फ़रमाया जिन में 4 मुहाजिर और 66 अंसार थे। 30 की तादाद में कुफ्फार भी निहायत ज़िल्लत के साथ क़त्ल हुए।
     मगर मुसलमानो की मुफलिसी का ये आलम था की इस शुहदाए किराम के कफ़न के लिये कपड़ा बजी नही था। हज़रते मूसअब बिन उमैर का ये हाल था कि ब वक़्ते शहादत उनके बदन पर सिर्फ एक इतनी बड़ी कमली थी की उन की लाश को क़ब्र में लिटाने के बाद अगर उनका सर ढ़ापा जाता था तो पाउ खुल जाते थे और अगर पाउ को छुपाया जाता था तो सर खुल जाता था बिल आखिर सर छुपा दिया गया और पाउ पर घास डाल दी गई।
     शुहदाए किराम खून में लिथड़े हुए दो दो शहीद एक एक क़ब्र में दफ़्न किये गए। जिस को क़ुरआन ज़्यादा याद होता उसको आगे रखते।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 282*
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*_कुबुरे शुहदा की ज़ियारत_*
     हुज़ूरﷺ शोहदाए उहुद की क़ब्रो की ज़ियारतके लिये तशरीफ़ ले जाते थे और आल के बाद हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमरرضي الله تعالي عنهم का भीये अमल रहा।
     एक मर्तबा हुज़ूरﷺ शोहदाए उहुद की क़ब्रो पर तशरीफ़ ले गए तो इरशाद फ़रमाया कि या अल्लाह ! तेरा रसूल गवाह है कि इस जमाअत ने तेरी रिज़ा की तलब में जान दी है, फिर ये भी इरशाद फ़रमाया कि क़यामत तक जो मुसलमान भी इन शहीदों की क़ब्रो पर ज़ियारत के लिये आएगा और इनको सलाम करेगा तो ये शुहदाए किराम उसके सलाम का जवाब देंगे।
     चुनांचे हज़रते फातिमाرضي الله تعالي عنها का बयान है कि में एक दिन उहुद के मैदान से गुज़र रही थी। हज़रते हम्ज़ाرضي الله تعالي عنه की क़ब्र के पास पहुच कर में ने अर्ज़ किया कि ऐ रसूलल्लाहﷺ के चचा ! आप पर सलाम हो, तो मेरे कान में ये आवाज़ आई कि वालेकुम सलाम व-रहमतुल्लाहि व-बरकातुहु।

*_हयाते शुहदा_*
     46 बरस के बाद शुहदाए उहुद की बाज़ क़ब्रे खुल गई तो उनके कफ़न सलामत और बदन तरो ताज़ा थे और तमाम अहले मदीना और दूसरे लोगो ने देखा कि शुहदाए किरामرضي الله تعالي عنهم अपने ज़ख्मो पर हाथ रखे हुए है और जब ज़ख्म से हाथ उठाया तो ताजा खून निकल कर बहने लगा।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 237*
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*_काब बिन अशरफ का क़त्ल_*
हिस्सा-01
     यहूदियो में काब बिन अशरफ बहुत ही दौलत मन्द था। यहूदी उलमा और यहूद के मज़हबी पेशवाओ को अपने खज़ाने से तन-ख्वाह देता था। दौलत के साथ शाइरी में भी बहुत बा कमाल था जिस की वजह से न सिर्फ यहूदियो बल्कि तमाम क़बाइले अरब पर इसका एक ख़ास अशर था।
     इसको हुज़ूरﷺ से सख्त अदावत थी। जंगे बद्र में मुसलमानो की फ़त्ह और सरदारो ने कुरैश के क़त्ल हो जाने से इसको इन्तिहाई रन्ज व सदमा हुवा। चुनांचे ये कुरैश की ताज़िय्यत के लिये मक्का गया और कुफ़्फ़ारे कुरैश का जो बद्र में मक़्तूल हुए थे ऐसा पुरदर्द परशिया लिखा कि जिसको सुन कर सामीइन के मजमा में मातम बरपा हो हो जाता था। इस मरशिया को ये शख्स कुरैश को सूना सूना कर खुद भी जारो ज़ार रोटा था और सामेइन को भी रुलाता था।
     मक्का में अबू सुफ़यान से मिला और उस को मुसलमानो से जंगे बद्र का बदला लेने पर उभारा बल्कि अबू सुफ़यान को ले कर हरम में आया और कुफ़्फ़ारे मक्का के साथ खुद भी काबे का गिलाफ पकड़ कर अहद किया कि मुसलमानो से बद्र का ज़रूर इन्तिक़ाम लेंगे।
    फिर मक्का से मदीना लौट कर आया तो हुज़ूरﷺ की हिजू लिख कर शाने अक़दस में तरह तरह की गुस्ताखियां और बे अदबिया करने लगा, इसी पर बस नही किया बल्कि आप को चुपके से क़त्ल करा देने का क़स्द किया।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 283*
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*_काब बिन अशरफ का क़त्ल_*
हिस्सा-02
     काब बिन अशरफ यहूदी की ये हरकते सरासर उस मुआह्दे की खिलाफ वरज़ी थी जो यहूद और अंसार के दरमियान हो चूका था कि मुसलमानो और कुफ़्फ़ारे कुरैश की लड़ाई में यहूदी गैर जानिब दार रहेंगे।
     बहुत दिनों तक मुसलमान बर्दास्त करते रहे मगर जब बानिये इस्लाम की मुक़द्दस जान को खतरा लाहिक़ हो गया तो हज़रते मुहम्मद बिन मुस्लिम ने हज़रते अबू नाइला व हज़रते अब्बाद बिन बिशर व हज़रते हारिष बिन औस व हज़रते अबू अबसرضي الله تعالي عنهم को साथ लिया और रात में काब बिन अशरफ के मकान पर गए और रबीउल अव्वल सि. 3 हि. को उस के किले के फाटक पर उसको क़त्ल कर दिया और सुब्ह को बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर उसका सर ताजदारे दो आलमﷺ के क़दमो में डाल दिया।
     इस क़त्ल के सिलसिले में हज़रते हारिष बिन औस तलवार की नोक से ज़ख़्मी हो गए थे। मुहम्मद बिन मुस्लिमा वगैरा इन को कंधो पर उठा कर बारगाहे रिसालत में लाए और आपﷺ ने अपना लुआंबे दहन उनके ज़ख्म पर लगा दिया तो उसी वक़्त शिफ़ाए कामिल हासिल हो गई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 284*
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*_गज़्वए गतफान_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     रबीउल अव्वल सि. 3 हि. में हुज़ूरﷺ को ये इत्तिला मिली की नज्द के एक मशहूर बहादुर दाशुर बिन अल हारिष मुहारीबि ने एक मशकर तैयार कर लिया है ताकि मदीने पर हमला करे।
     इस खबर के बाद आप 400 सहाबा की फ़ौज़ ले कर मुक़ाबले के लिये रवाना हो गए। जब दाशुर को खबर मिली की रसूलल्लाह हमारे दीयार में आ गए तो वो भाग निकला और अपने लश्कर को ले कर पहाड़ो पर चढ़ गया मगर उसकी फ़ौज का एक आदमी जिसका नाम हब्बान था गिरफ्तार हो गया और फौरन ही कलिमा पढ़ कर उसने इस्लाम क़बूल कर लिया।
     इत्तिफ़ाक़ से उस रोज़ ज़ोरदार बारिश हो गई। हुज़ूरﷺ एक दरख्त के निचे लेट कर आपने कपड़े सुखाने लगे। पहाड़ की बुलंदी से काफिरो ने देख लिया की आप बिलकुल अकेले और अपने असहाब से दूर बजी है।
     एक दम दाशुर बिजली की तरह पहाड़ से उतर कर नंगी शमशीर हाथ में लिये हुए आया और हुज़ूरﷺ के सरे मुबारक पर तलवार बुलंद करके बोला की बताइये अब कौन है जो आपको मुझ से बचा ले ?

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 285*
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*गज़्वए गतफन*
हीस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दाशुर ने हुज़ूरﷺ के सरे मुबारक पर तलवार बुलंद करके बोला बताइये अब कौन है जो आप को मुझ से बचा ले ?
     आप ने जवाब दिया कि मेरा अल्लाह मुझ को बचा लेगा। चुनांचे जिब्राईल अलैहिस्सलाम दम ज़दन में ज़मीन पर उतर पड़े और दाशुर के सीने में एक घुसा मारा कि तलवार उस के हाथ से गिर पड़ी लर दाशुर ऐन गेन हो कर रह गया।
     हुज़ूरﷺ ने फौरन तलवार उठा ली और फ़रमाया कि बोल अब तुझ को मेरी तलवार से कौन बचाएगा ? दाशुर ने कांपते हुए भराई हुई आवाज़ में कहा कि कोई नही। हुज़ूरﷺ को उसकी बे कसी पर रहम आ गया और आपﷺ ने उस का कुसूर मुआफ़ फरमा दिया।
     दाशुर इस अखलाके नुबुव्वत से बेहद मूतअश्शीर हुवा और कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया और अपनी क़ौम में आ कर इस्लाम की तबलीग करने लगा।
     जस गज़वे में कोई लड़ाई नही हुई और हुज़ूरﷺ 11 या 15 दिन मदीने से बाहर रह कर फिर मदीने आ गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 286*
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*_सि 3. हि. के वाक़ीआते मुतफ़र्रिका_*
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     हिजरत के तीसरे साल में मुन्दरीजए ज़ैल वाक़ीआत भी जूहुर पज़ीर हुए।
     15 रमज़ान सि.3 हि. को हज़रते इमामे हसनرضي الله تعالي عنه की विलादत हुई।
     इसी साल हुज़ूरﷺ ने हज़रते बीबी हफ्साرضي الله تعالي عنها से निकाह फ़रमाया। हज़रते हफ्सा हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه की साहब ज़ादि है जो गज़्वए बद्र के ज़माने में बेवा हो गई थी। इनके मुफ़स्सल हालात अज़्वाजे मुतह्हरात के ज़िक्र में आगे तहरीर किये जाएंगे।
     इसी साल हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه ने हुज़ूरﷺ की साहब ज़ादि हज़रते उम्मे कुलषुमرضي الله تعالي عنها से निकाह किया।
     मिराष् के अहकाम व क़वानीन भी इसी साल नाज़िल हुए। अब तक मिराष् में ज़विल अरहाम का कोई हिस्सा न था। इन के हुक़ूक़ का मुफ़स्सल बयान नाज़िल हो गया।
     अब तक मुशरिक औरतो का निकाह मुसलमानो से जाइज़ था मगर सि.3 हि. में इस की हुरमत नाज़िल हो गई और हमेशा के लिये मुशरिक औरतो का निकाह मुसलमानो से हराम कर दिया गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 286*
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*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हिजरत का चौथा साल_*
     हिजरत का चौथा साल भी कुफ्फार के साथ छोटी बड़ी लड़ाइयो ही में गुज़रा। जंगे बद्र की फ़त्ह मुबीन से मुसलमानो का रोब तमाम क़बाइले अरब पर बैठ गया था इस लिये तमाम क़बीले कुछ दिनों के लिये खामोश बैठ गए थे लेकिन जंगे उहुद में मुसलमानो के जानी नुक़सान का चर्चा हो जाने से दोबारा तमाम क़बाइल दफ़्अतन इस्लाम और मुसलमानो को मिटाने के लिये खड़े हो गए और मजबूरन मुसलमानो को भी अपने दीफाअ के लिये लड़ाइयो में हिस्सा लेना पड़ा।

सि.4 हि. की मश्हूर लड़ाइयो में से चन्द का ज़िक्र इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में....

*✍🏽सिरते मुस्तफा 287*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_सरीय्यए अबू सलमह_*
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     यकुम मुहर्रम सि.4 हि. को ना गहा एक शख्स ने मदीने में ये खबर पहुचाई कि तुलैहा बिन खुवैलद और सलमह बिन खुवैलद दोनों भाई कुफ्फार का लश्कर जमा करके मदीने पर चढ़ाई करने के लिये निकल पड़े है।
     हुज़ूरﷺ ने इस लश्कर के मुक़ाबले में हज़रते अबू सलमह को 150 मुजाहिदीन के साथ वाला फ़रमाता जिस में हज़रते अबू सबरह और हज़रते अबू उबैदाرضي الله تعالي عنهم जैसे मुअज़्ज़ज़् मुहाजिरिन व अन्सार भी थे।
     लेकिन कुफ्फार को जब पता चला कि मुसलमानो का लश्कर आ रहा है तो वो लोग बहुत से ऊंट क्र बक़रीया छोड़ कर भाग गए जिन को मुसलमान मुजाहिदीन ने माले गनीमत बना लिया और लड़ाई की नौबत ही नही आई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 288*
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*_सरीययए अब्दुल्लाह बिन अनीस_*
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     मुहर्रम सि.4 हि. को इत्तिला मिली की खालिद बीन सुफ़यान हज़ली मदीने पर हम्ला करने के लिये फ़ौज जमा कर रहा है।
     हुज़ूरﷺ ने उसके मुक़ाबले के लिये हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीसرضي الله تعالي عنه को भेज दिया। आप ने मौक़ा पा कर खालिद बिन सुफ़यान हज़ली को क़त्ल कर दिया और उस का सर काट कर मदीना लाए और हुज़ूरﷺ के क़दमो में दाल दिया।
     हुज़ूरﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीसرضي الله تعالي عنه की बहादुरी और जांबाजी से खुश हो कर उनको अपना असा (छड़ी) अता फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया की तुम इसी असा को हाथ में ले कर जन्नत में चहल क़दमि करोगे। उन्होंने अर्ज़ की या रसूलल्लाहﷺ ! क़यामत के दिन ये मुबारक असा मेरे पास निशानी के तौर पर रहेगा।
     चुनांचे ई इंतिक़ाल के वक़्त उन्होंने ये वसिय्यत फ़रमाई की इस असा को मेरे कफ़न में रख दिया जाए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 288*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अस्फान व मक्का के दरमियान एक मक़ाम का नाम "रजीअ" है। यहाँ की ज़मीन 7 मुक़द्दस सहाबए किराम में खून से रंगीन हुई है। ये दर्दनाक सानिहा भी सि.4 हि. में पेश आया। इस का वाक़या ये है की क़बिलए अज़ल व क़ारह के चन्द आदमि बारगाहे रिसालत में आए अर्ज़ किया की हमारे क़बीले वालो ने इस्लाम क़बूल कर लिया है। अब आप चन्द सहाबए किराम को वहा भेज दे ताकि वो हमारी क़ौम को अक़ाइदो आमाले इस्लाम सिखा दे।
     उन लोगो की दर ख्वास्त पर हुज़ूरﷺ ने 10 मुन्तख़ब सहाबा को हज़रते आसिम बिन षाबितرضي الله تعالي عنه की मा तहति में भेज दिया। जब ये मुक़द्दस क़ाफ़िला मक़ामे रजीअ पर पहुचा तो गद्दार कुफ्फार ने बद अहदी की और क़बीलए बनू लहयान के काफिरो ने 200 की तादाद में जमा हो कर इन 10 मुसलमानो पर हम्ला कर दिया, मुसलमान अपने बचाव के लिये एक उचे टीले पर चढ़ गए। काफिरो ने तीर चलाना शुरू किया और मुसलमानो ने टीले की बुलंदी से संगबारी की। कुफ्फार ने समझ लिया की हम हथियारों से इन मुसलमानो को खत्म नही कर सकते तो उन लोगो ने धोका दिया और कहा की ऐ मुसलमानो ! हम तुम लोगो को अमान देते है और अपनी  पनाह में लेते है इस लिये तुम लोग टीले से उतर आओ।
     हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की में किसी काफ़िर की पनाह में आना गवारा नही कर सकता। ये कह कर खुदा से दुआ मांगी "या अल्लाह ! तू अपने रसूल को हमारे हाल से मुत्तलअ फरमा दे" फिर वो जोशे जिहाद में भरे हुए टीले से उतरे और कुफ्फार से दस्त बदस्त लड़ते हुए अपने 6 साथियो के साथ शहीद हो गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 289*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     चुकी हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه ने जंगे बद्र के दिन बड़े बड़े कुफ़्फ़ारे कुरैश को क़त्ल किया था इस लिये जब कुफ़्फ़ारे मक्का को हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه की शहादत का पता चला तो कुफ़्फ़ारे मक्का ने चन्द आदमियो को मक़ामे रजीअ में भेजा ताकि उनके बदन का कोई ऐसा हिस्सा काट कर लाए जिससे शनाख्त हो जाए की वाक़ई हज़रते आसिम क़त्लرضي الله تعالي عنه हो गए है।
     लेकिन जब कुफ़्फ़ार आप की लाश की तलाश में उस मक़ाम पर पहुचे तो उस शहीद की ये करामत देखी कि लाखो की तादाद में शहद की मख्खियो ने उन की लाश के पास इस तरह घेरा डाल रखा है किस से वहा तक पहुचना ही ना मुमकिन हो गया है इस लिये कुफ़्फ़ारे मक्का नाकाम वापस चले गए।
     बाक़ी तीन अशखास हज़रते खूबैब व हज़रते ज़ैद बिन दषीना व हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنهم बिन तारिक़ कुफ्फार की पनाह पर ऐतिमाद करके निचे उतरे तो कुफ्फार ने बद अहदी की और अपनी कमान की तँतो से इन लोगो को बांधना शुरू कर दिया, ये मन्ज़र देख कर हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया कि ये तुम लोगो की पहली बद अहदी है और मेरे लिये अपने साथियो की तरह शहीद हो जाना बेहतर है। चुनांचे वो उन काफिरो से लड़ते हुए शहीद हो गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 290*
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*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

    हज़रते खूबैब और हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنهم को काफिरो ने बांध दिया था इस लिए ये दोनों मजबूर हो गए थे। इन दोनों को कुफ्फार ने मक्का में ले जा कर बेच डाला। हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه ने जंगे उहुद में हारिष बिन आमिर को क़त्ल किया था इस लिये उसके लड़को ने इन को खरीद लिया ताकि इन को क़त्ल करके बाप के खून का बदला लिया जाए और हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنه को उमय्या के बेटे सफ्वान ने क़त्ल करने के इरादे से खरीदा।
     हज़रते खूबैब को काफिरो ने चन्द दिन क़ैद में रखा फिर हुदूदे हरम के बाहर ले जा कर सूली पर चढ़ा कर क़त्ल कर दिया। हज़रते खूबैब ने क़ातिलों से दो रकाअत नमाज़ पढ़ने की इजाज़त तलब की, क़ातिलों ने इजाज़त दे दी। आप ने बहुत मुख़्तसर तौर पर दो रकअत नमाज़ अदा फ़रमाई और फ़रमाया कि ऐ गिरोहे कुफ्फार ! मेरा दिल तो यही चाहता था की देर तक नमाज़ पढ़ता रह क्यू की ये मेरी ज़िन्दगी की आखरी नमाज़ थी मगर मुझ को ये ख्याल आ गया कि कही तुम लोग ये न समझ लो कि में मौत से डर रहा हु। कुफ्फार ने आप को सूली पर चढ़ा दिया उस वक़्त आप ने ये अशआर पढ़े....
_जब में मुसलमान हो कर क़त्ल किया जा रहा हु तो मुझे कोई परवा नही है की में किस पहलू पर क़त्ल किया जाऊँगा_
_ये सब कुछ खुदा के लिये है अगर वो चाहेगा तो मेरे कटे पिटे जिस्म के टुकड़ो पर बरकत नाज़िल फ़रमाएगा_
     हारिष बिन आमिर के लड़के अबू सरूआ ने आप को क़त्ल किया मगर खुदा की शान की यही अबू सरूआ और इनके दोनों भाई उक़बा और हुज़ैर फिर बाद में मुशर्रफ ब इस्लाम हो कर सहाबिय्यत के शरफ व एजाज से सरफ़राज़ हो गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 290*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_हज़रते खूबैब की क़ब्र_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ को अल्लाह ने वही के ज़रिए हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की शहादत से मुत्तलअ फ़रमाया। आप ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि जो शख्स खूबैब की लाश को सूली से उतार लाए उस के लिये जन्नत है।
     ये बिशारत सुन कर हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम व हज़रते मिक़दाद बिन अल अस्वदرضي الله تعالي عنهم रातो को सफर करते और दिनको छुपते हुए मक़ामे तन्इम में हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की सूली के पास पहुचे। 40 कुफ्फार सूली के पहरदार बन कर औ रहे थे इन दोनों हज़रात ने सूली से लाश को उतारा और घोड़े पर रख कर चल दिये।
     40 दिन गुज़र जाने के बावुजूद लाश तरो ताज़ा थी और ज़ख्मो से ताज़ा खून टपक रहा था। सुब्ह को कुरैश के 70 सुवार तेज़ रफ़्तार घोड़ो पर चल पड़े और इन दोनों हज़रात के पास पहुच गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 292*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_हज़रते खूबैब की क़ब्र_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इन हज़रात ने जब देखा की कुरैश के सुवार हम को गिरफ्तार कर लेंगे तो इन्होंने ने हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की लाश मुबारक को घोड़े से उतार कर ज़मीन पर रख दिया। खुदा की शान कि एक दम ज़मीन फट गई और लाश मुबारक को निगल गई और फिर ज़मीन इस तरह बराबर हो गई कि फटने का निशान भी बाक़ी नही रहा। यही वजह है कि हज़रते खूबैब का लक़ब " बलीउल अर्द" (जिन को ज़मीन निगल गई) है।
     इसके बाद इन हज़रात ने कुफ्फार से खा4 कि हम दो शेर है जो अपने जंगल में जा रहे है अगर तुम लोगो से हो सके तो हमारा रास्ता रोक कर देखो वरना अपना रास्ता लो।
     कुफ्फार ने इन दो हज़रात के पास लाशनहि देखि इस लिये मक्का वापस चले गए। जब दोनों सहाबए किराम ने बारगाहे रिसालत में सारा माजरा अर्ज़ किया तो हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम हाज़िरे दरबार थे। उन्होंने अर्ज़ किया की या रसुलल्लाहﷺ ! आप इन दोनों यारो के इस कारनामे पर हम फरिश्तों की जमाअत को भी फख्र है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 293*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*_हज़रते ज़ैद की शहादत_*

     हज़रते ज़ैद बिन दषीनाرضي الله تعالي عنه के क़त्ल का तमाशा देखने के लिये कुफ़्फ़ारे कुरैश कशिर तादाद में जमा हो गए जिन में अबू सुफ़यान भी था। जब इन को सूली पर चढ़ा कर क़ातिल ने तलवार हाथ में ली तो अबू सुफ़यान ने कहा की क्यू ? ऐ ज़ैद ! सच कहना, अगर इस वक़्त तुम्हारी जगह मुहम्मद इस तरह क़त्ल किये जाते तो क्या तुम इस को पसन्द करते ?
     हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنه अबू सुफ़यान की इस ताना ज़नी को सुन कर तड़प गए और जज़्बात से भरी हुई आवाज़ में फ़रमाया कि ऐ अबू सुफ़यान ! खुदा की क़सम ! में अपनी जान को क़ुरबान कर देना अज़ीज़ समझता हु मगर मेरे प्यारे रसूलﷺ के मुक़द्दस पाउ के तल्वे में एक काँटा भी चुभ जाए। मुझे कभी भी ये गवारा नही हो सकता।
     *मुझे हो नाज़ किस्मत पर अगर नाम मुहम्मद पर*
     *ये सर कट जाए और तेरा कफे पा उस को ठुकराए*
     *ये सब कुछ है गवारा पर ये मुझ से हो नही सकता*
     *की उन के पाउ के तल्वे में इक कांटा भी चुभ जाए*
ये सुन कर अबू सुफ़यान ने कहा की में ने बड़े बड़े महब्बत करने वालो को देखा है। मगर मुहम्मद के आशिक़ो की मिषाल नही मिल सकती। सफ्वान के गुलाम नस्तास ने तलवार से उन की गर्दन मारी।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 293*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_वाक़ीअए बीरे मुअव्वना_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     माहे सफर सि.4 हि. में "बीरे मुअव्वना" का मशहूर वाक़या पेश आया। अबू बराअ आमिर बिन मालिक जो अपनी बहादुरी की वजह से "बरछियो से खेलने वाला" कहलाता था, बारगाहे रिसालत में आया, हुज़ूरﷺ ने उस को इस्लाम की दावत दी, उस ने न तो इस्लाम क़बूल किया न इस से कोई नफरत ज़ाहिर की बल्कि ये दरख्वास्त की, कि आप अपने चन्द मुन्तख़ब सहाबा को हमारे दीयार में भेज दीजिये मुझे उम्मीद है कि वो लोग इस्लाम की दावत क़बूल कर लेंगे।
     आपﷺ ने फ़रमाया कि मुझे नज्द के कुफ्फार की तरफ से खतरा है। अबू बराअ ने कहा कि में आप के असहाब की जान व माल की हिफाज़त का ज़ामिन हु।
     इसके बाद हुज़ूरﷺ ने सहाबा में से 70 मुन्तख़ब सालिहीन को जो "कुर्रा" कहलाते थे भेज दिया। ये हज़रात जब मक़ामे "बीरे मुअव्वना" पर पहुचे तो ठहर गए और सहाबा के काफिला सालार हज़रते हिराम बिन मल्हानرضي الله تعالي عنه हुज़ूरﷺ का खत ले कर आमिर बिन तुफैल के पास अकेले तशरीफ़ ले गए जो क़बीले का रईस और अबू बराअ का भतीजा था। उसने खत को पढ़ा भी नही और एक शख्स को इशारा कर दिया जिसने पीछे से हज़रते हिरामرضي الله تعالي عنه को नेजा मार कर शहीद कर दिया।
    और आस पास के क़बाइल यानी रअल व जक्वान और असिय्या व बनू लहयान वगैरा को जमा करके एक लश्कर तैयार कर लिया और सहाबए किराम पर हमले के लिये रवाना हो गया।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 294*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*_वाक़ीअए बीरे मुअव्वना_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     यहाँ हज़रते सहाबए किराम बीरे मुअव्वना के पास बहुत देर तक हज़रते हिरामرضي الله تعالي عنه की वापसी का इंतज़ार करते रहे मगर जब बहुत ज़्यादा देर हो गई तो ये लोग आगे बढ़े।
     रस्ते में आमिर बिन तुफैल की फ़ौज का सामना हुवा और जंग शुरू हो गई कुफ्फार ने हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरीرضي الله تعالي عنه के सिवा तमाम सहाबए किराम को शहीद कर दिया, इन्ही शुहदाए किराम में हज़रते आमिर बिन फुहैराرضي الله تعالي عنه भी थे। जिसके बारे में आमिर बिन तुफैल का बयान है की क़त्ल होने के बाद इन की लाश बुलन्द हो कर आसमान तक पहुची फिर ज़मीन पर आ गई, इस के बाद इनकी लाश तलाश करने पर भी नही मिली क्यू की फरिश्तों ने इन्हें दफ़्न कर दिया।
*✍🏽बुखारी 2/587*
*✍🏽सिरते मुस्तफा 295*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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