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Friday 31 March 2017

*रजब की बहारे* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_रजब का एहतिराम और इसका इनआम_*
     हज़रते ईसा रूहल्लाह अलैहिस्सलाम के दौर का वाक़ीआ है कि एक शख्स मुद्दत से किसी औरत पर आशिक़ था। एक बार उस ने अपनी माशुका पर क़ाबू पा लिया।
     लोगो की हल चल से उस ने अंदाज़ा लगाया की लोग चाँद देख रहे है, उसने उस औरत से पूछा : लोग किस माह का चाँद देख रहे है ?
     उस ने कहा : रजब का। वो शख्स हालांकि गैर मुस्लिम था मगर रजब शरीफ का नाम सुनते ही ताज़िमन फौरन अलग हो गया और गुनाह के काम से बाज़ रहा।
     हज़रते ईसा रूहल्लाह अलैहिस्सलाम को हुक्म हुवा की हमारे फुला बन्दे की मुलाक़ात को जाओ। आप तशरीफ़ ले गए और अल्लाह का हुक्म और अपनी तशरीफ़ आवरी का सबब इरशाद फरमाया। ये सुनते ही उसका दिल नूरे इस्लाम से जग मगा उठा और उसने फौरन इस्लाम क़बूल कर लिया।

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो देखा आपने रजब की बहारे ! रजबुल मुरज्जब की ताज़ीम करके जब एक गैर मुस्लिम को ईमान की दौलत नसीब हो गई तो ज़रा सोचिये की जो मुसलमान हो कर इस माह की ताज़ीम करते हुवे इस में गुनाह न करे, झूट, गीबत, चुगली, फरेब, वादा खिलाफी वग़ैरा गुनाहो से हत्तल इमकान बचने की कोशिश करे। नीज़ पूरा महीना इबादत व रियाज़त में गुज़ारे, नमाज़ों की पाबंदी करे, इशराक़ व चाश्त के नवाफ़िल पढ़े, नमाज़े तहज्जुद अदा करे, इस माह के नफ्लि रोज़े भी रखे, शब् में क़याम व तिलावते कुरआन भी करे तो ऐसा शख्स अल्लाह की तरफ से कैसे कैसे इनआम व इकरामात का मुस्तहिक़ होगा ?
     बहार हाल ! हमें चाहिये की जब भी ये बा बरकत महीना तशरीफ़ लाए तो इस में खूब खूब इबादत व रियाज़त करे, ताकि अल्लाह की रहमतो और बरकतों से माला माल हो।
*✍🏽रजब की बहारे, सफा 2-3*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*वुज़ू का तरीका* 4/4
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     ★अब नल बंद करके सर का मसह इस तरह कीजिये की दोनों अंगूठो और कलिमे की उंगलियो को छोड़ कर दोनों हाथ की 3-3 उंगलियो के सिरे एक दूसरे से मिला लीजिये और पेशानी के बाल या खाल पर रख कर खीचते हुए गुद्दी तक इस तरह ले जाइये की हथेलिया सर से जुदा रहे,
     ★फिर गुद्दी से हथेलिया खीचते हुए पेशानी तक ले आइये,
     ×कलिमे की उंगलिया और अंगूठे इस दौरान सर पर बिलकुल मस् नहीं होने चाहिए,
     ★फिर कलिमे की उंगलियो से कानो की अंदरूनी सतह का मसह कीजिये और छुगलिया कानो के सूराखो में दाखिल कीजिये और उंगलियो की पुश्त से गर्दन के पिछले हिस्से का मसह कीजिये।
     ×बाज़ लोग गले का और धुले हुए हाथो का मसह करते है ये सुन्नत नहीं है।
     ★अब पहले सीधा फिर उल्टा पाउ हर बार उंगलियो से शुरू करके तखनो के ऊपर तक बल्कि मुस्तहब है की आधी पिंडली तक 3 3 बार धो लीजिये।
     ★दोनों पाउ की उंगलियो का ख़िलाल करना सुन्नत है।  इसका मुस्तहब तरीका ये है की उलटे हाथ की छोटी ऊँगली से सीधे पाउ की छोटी ऊँगली का ख़िलाल शुरू कर के अंगूठे पर खत्म कीजिये और उलटे ही हाथ की ऊँगली से उलटे पाउ के अंगूठे से शुरू करके छोटी ऊँगली पर खत्म कर लीजिये।
     हज़रते इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा फरमाते है : हर उज़्व के गुनाह निकल रहे है !
*✍🏽अहयाउल उलूम, 1/183*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 10*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*दुरुद शरीफ की फ़ज़ीलत*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه मरवी है की रसूले अकरम ﷺ का फरमाने मुश्क़बार है : जिसने मुझ पर एक बार दुरुदे पाक पढ़ा, अल्लाह उस पर *10 रहमते* भेजता है और उस के *10 गुनाह मुआफ़* किये जाएंगे और उस के *10 दर्जे बुलन्द* किये जाएंगे।

*✍🏽मकशकातुल मसाबिह, 1/189, हदिष:922*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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Thursday 30 March 2017

*क़ुरआन शरीफ के कुछ गलत तरजमे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*وٙلٙمّٙا. يٙعْلٙمِ اٙللّٰهُ. الّٙذِيْنٙ  جٰهٙدُوْا مِنْكُمْ وٙيٙعْلٙمٙ اصّٰبِرِيْنٙ*
पारह 4, सूरए आले इमरान, आयत 142

*तरजमा*
● _शाह अब्दुल क़ादिर_ : और अभी मालुम नही किये अल्लाह ने जो लड़ने वाले है तुम में।
● _फ़त्ह मुहम्मद जालन्धरी देवबन्दी_ : हालांकि अभी खुदा ने तुम में से जिहाद करने वालो को तो अच्छी तरह मालुम किया ही नही।
● _दीप्ती नज़ीर अहमद देवबन्दी_ : और अभी तक अल्लाह ने न तो उन लोगो जांचा जो तुम में से जिहाद करने वाले है।
● _अब्दुल माजिद दरियाबादी देवबन्दी_ : हालाकि अभी तक अल्लाह ने उन लोगो को तुम में से जाना ही नही जिन्होंने जिहाद किया।
● _अशरफ अली थानवी देवबन्दी_ : हालांकि हनोज अल्लाह तआला ने उन लोगो को तो देखा ही नही जिन्होंने तुम में से जिहाद किया हो।
● _देवबन्दी महमूदुल हसन_ : और अभी तक मालुम नही किया अल्लाह ने जो लड़ने वाले है तुम में।

*_सही तरजमा_*
★ *इमाम अहमद रज़ा* : और अभी अल्लाह तआला ने तुम्हारे गाज़ियो का इम्तिहान न लिया।

     देखा आप ने ! *आला हज़रत को छोड़कर* दूसरे अनुवादक क़ुरआन की व्यख्या करते वक़्त कितने गैर हाज़िर थे की तफ़सीर के अध्ययन का कष्ट न उठाया और किस सादगी से क़लम चला दिया। एक तरफ तो अल्लाह के सर्वज्ञाता, सर्वव्यप्ता, सर्व शक्तिमान होने में ईमान, और दुआरी तरफ उसको ऐसा बेखबर बताना की मुअमिनो में से कौन लोग जिहाद की भावना से ओत प्रोत है, इसकी जानकारी अल्लाह को नही, या अभी जाना ही नहीं।
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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*वुज़ू का तरीका* 3/4
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     ★अब 3 बार सारा चेहरा इस तरह धोइये, के जहा से आदतन सर के बाल उगना शुरुअ होते है वहा से ले कर ठोड़ी के निचे तक,
     ●और एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक हर जगह पानी बह जाए।
     ●अगर दाढ़ी है तो इस तरह ख़िलाल कीजिये, के उंगलियो को गले की तरफ से दाखिल करके सामने की तरफ निकालिये।
     ★फिर पहले सीधा हाथ उंगलियो के सिरे से धोना शुरू करके कहोनियो समेत 3 बार धोइये।
     ★इसी तरह उल्टा हाथ भी धो लीजिये।
     ●दोनों हाथ आधे बाज़ू तक धोना मुस्तहब है।
     अब चुल्लू भर कर कोहली तक पानी बहाने की हाजत नहीं
     बल्कि बगैर इजाज़ते सहीहा ऐसा करना ये पानी का इसराफ है~
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 9*
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*फैजाने इसाले षवाब* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     जिनके वालिदैन या उन मेसे कोई एक फौत हो गया हो तो उन को चाहिये की उन की तरफ से गफलत न करे, उन की कब्रो पर भी हाज़री देता रहे और इसाले षवाब भी करता रहे। इस ज़िम्न में सुल्ताने मदीना ﷺ के फरमाने रहमत निशान मुलाहजा फरमाए :

*_मक़बूल हज का षवाब_*
     जो ब निय्यते षवाब अपने वालिदैन दोनों या एक की क़ब्र की ज़ियारत करे, हज्जे मक़बूल के बराबर षवाब पाए और जो बी कसरत इन की क़ब्र की ज़ियारत करता हो, फ़रिश्ते उस की क़ब्र की (यानि जब ये फौत होगा) ज़ियारत को आए।
*✍🏽कन्ज़ुल उम्माल, 16/200, हदिष:45536*

*_10 हज का षवाब_*
     जो अपनी माँ या बाप की तरफ से हज करे उन की (यानि माँ बाप की) तरफ से हज अदा हो जाए उसे (यानि हज करने वाले को) मज़ीद 10 हज का षवाब मिले।
     سبحان الله
जब कभी नफ्ली हज की सआदत हासिल हो तो फौत शुदा माँ या बाप की निय्यत कर ले ता की उन को भी हज का षवाब मिले, आप का भी हज हो जाए बल्कि मज़ीद 10 हज का षवाब हाथ आए। अगर माँ या वालिद में से कोई इस हाल में फौत हो गया की उन पर हज फ़र्ज़ हो चूकने के बा वुजूद न कर पाए थे तो अब औलाद को हज्जे बदल का शरफ हासिल करना चाहिये।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 395*
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Wednesday 29 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #179
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑦_*
     और अगर तुमने औरतों को बे छुए तलाक़ दे दी और उनके लिये कुछ मेहर निश्चित कर चुके थे तो जितना ठहरा था उसका आधा अनिवार्य है मगर यह कि औरतें कुछ छोड़ दें (5) या वह ज़्यादा दे(6) जिसके हाथ में निकाह की गिरह है (7) और ऐ मर्दों, तुम्हारा ज़्यादा देना परहेज़गारी से नज़्दीकतर है और आपस में एक दूसरे पर एहसान को भुला न दो बेशक अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है (8)

*तफ़सीर*
(5) अपने इस आधे में से.
(6) आधे से जो इस सूरत में वाजिब है.
(7) यानी शौहर.
(8) इसमें सदव्यवहार और महब्बत और नर्मी से पेश आने की तरग़ीब है.
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*वुज़ू का तरीका* 2/4
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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     अब सीधे हाथ के 3 चुल्लू पानी से इस तरह 3 कुल्लिया कीजिये की हर बार मुह के हर पुर्ज़े पर (हल्क के कनारे तक) पानी बह जाए,

     अगर रोज़ा न हो तो गर-गरा भी कर लीजिये।

     फिर सीधे ही हाथ के 3 चुल्लू से 3 बार नाक में नर्म गोश्त तक पानी चढ़ाइये

     और अगर रोज़ा न हो तो नाक की जड़ तक पानी पहोचाइये,

     अब उल्टे हाथ से नाक साफ़ कर लीजिये और छोटी ऊँगली नाक के सुरखो में डालिये।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 8*
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*30 गलतिया* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

★ गुमराहों की सोहबत में उठना बैठना।
★ कोई अमले सालेह की तलक़ीन करे तो उस पर ध्यान न देना।
★ खुद हराम व हलाल का ख्याल न करता और दुसरो को भी इस राह पर लगाना।
★ झूटी क़सम खा कर झूट बोल कर धोका दे कर अपनी तिजारत को फरोग देना।
★ इल्मे दिन और दीनदारी को इज़्ज़त न समझना।
★ खुद को दुसरो से बेहतर समझना।
★ फ़क़ीरों और साइलो को अपने दरवाज़े से धक्का दे कर भगा देना।
★ ज़रूरत से ज़्यादा बात चीत करना।
★ अपने पड़ोसियों से बिगाड़ रखना।
★ बादशाहो और अमीरो की दोस्ती पर ऐतिबार करना।
★ ख्वाह म ख्वाह किसी के घरेलू मुआमलात में दखल देना।
★ बगैर सोचे समझे बात करना।
★ तिन दिन से ज़्यादा किसी का मेहमान बनना।
★ अपने घर का भेद दुसरो पर ज़ाहिर करना।
★ हर शख्स के सामने अपने दुख दर्द बयान करना।
*✍🏽जन्नती ज़ेवर, 557*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 363*
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Tuesday 28 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #178
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑥_*
     तुम पर कुछ मुतालिबा नहीं (1)  तुम औरतों को तलाक़ दो जब तक तुम ने उनको हाथ न लगाया हो या कोई मेहर (रक़म,दैन) निश्चित कर लिया हो, (2) और उनको कुछ बरतने को दो. (3) हैसियत वाले पर उसके लायक़ और तंगदस्त पर उसके लायक़, दस्तूर के अनुसार कुछ बरतने की चीज़, ये वाजिब है भलाई वालों पर (4)

*तफ़सीर*
     (1) मेहर का.
     (2) यह आयत एक अन्सारी के बारे में नाज़िल हुई जिन्हों ने बनी हनीफ़ा क़बीले की एक औरत से निकाह किया और कोई मेहर निश्चित न किया. फिर हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दी. इससे मालूम हुआ कि जिस औरत का मेहर निश्चित न किया हो, अगर उसको छूने से पहले तलाक़ दे दी तो मेहर की अदायगी लाज़िम नहीं. हाथ लगाने या छूने से हम बिस्तरी मुराद है, और ख़िलवते सहीहा यानी भरपूर तनहाई उसके हुक्म में है. यह भी मालूम हुआ कि मेहर का ज़िक्र किये बिना भी निकाह दुरूस्त है, मगर उस सूरत में निकाह के बाद मेहर निश्चित करना होगा. अगर न किया तो हमबिस्तरी के बाद मेहरे मिस्ल लाज़िम हो जाएगा, यानी वो मेहर जो उसके ख़ानदान में दूसरों का बंधता चला आया है.
     (3) तीन कपड़ों का एक जोड़ा.
     (4) जिस औरत का मेहर मुक़र्रर न किया हो, उसको दुख़ूल यानी संभोग से पहले तलाक़ दी हो उसको तो जोड़ा देना वाजिब है. और इसके सिवा हर तलाक़ वाली औरत के लिये मुस्तहब है. (मदारिक)
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*वुज़ू का तरीका* 1/4
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     काबतुल्लाह शरीफ की तरफ मुह करके उची जगह बैठना मुस्तहब है।
     वुज़ू के लिये निय्यत करना सुन्नत है, निय्यत न हो तब भी वुज़ू हो जाएगा मगर षवाब न मिलेगा।
     निय्यत दिल के इरादे को कहते है। दिल में निय्यत होते हुए ज़बान से भी कहलेना अफ़्ज़ल है
     लिहाज़ा ज़बान से इस तरह निय्यत कीजिये की
     में हुक्मे इलाही बजा लेन और पाकी हासिल करने के लिये वुज़ू कर रहा हु।
     बिस्मिल्लाह कह लीजिये की ये भी सुन्नत है।
     बल्कि *बिस्मिल्लाहि-वलहम्दु-लिल्लाह* कह लीजिये की जब तक बा वुज़ू रहेंगे फ़रिश्ते नेकियां लिखते रहेंगे।
     अब दोनों हाथ 3-3 बार पहोचो तक धोइये,
     दोनों हाथो की उंगलियो का ख़िलाल भी कीजये।
     कम अज़ कम 3 बार मिस्वाक कीजिये और हर बार मिस्वाक को धो लीजिये।

     हज़रत मुहम्मद ग़ज़ालि अलैरहमा फरमाते है : मिस्वाक करते वक़्त नमाज़ में क़ुरआने मजीद की किराअत और ज़िकृल्लाह के लिये मुह पाक करने की निय्यत करनी चाहिये।

बाक़ी अगली पोस्ट में...ان شاء الله
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*30 गलतिया* #01
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★ इस ख़याल में हमेशा मगन रहना की जवानी और तंदुरस्ती हमेशा रहेगी।
★ मुसीबतो में बे सब्र बन कर चीख व पुकार करना।
★ अपनों अक्ल को सब से बढ़ कर समझना।
★ दुश्मन को हक़ीर (कमज़ोर) समझना।
★बिमारी को मामूली समझ कर शुरू में इलाज न करना।
★ अपनी राय पर अमल करना और दुसरो के मशवरों को ठुकरा देना।
★ किसी बदकार को बार बार आज़मा कर भी उस की चापलूसी में आ जाना।
★ बेकारी में खुश रहना और रोज़ी की तलाश न करना।
★ अपना राज़ किसी दूसरे को बता कर उसे पोशीदा रखने की ताकीद करना।
★ आमदनी से ज़्यादा खर्च करना।
★ लोगो की तकलीफ में शरीक न होना और उन से इमदाद की उम्मीद रखना।
★ एक दो ही मुलाक़ात में किसी शख्स की निस्बत कोई अच्छी या बुरी राय क़ाइम कर लेना।
★ वालिदैन की खिदमत न करना ओर औलाद से खिदमत की उम्मीद रखना।
★ किसी काम को इस ख्याल से अधूरा छोड़ देना की फिर किसी वक़्त मुकम्मल कर लिया जाएगा।
★ हर शख्स से बदी करना और लोगो से अपने लिये नेकी की तवक़्क़ोअ रखना।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 360*
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Monday 27 March 2017

*अल हदिष*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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क़यामत के दिन बन्दे से एक सुवाल ये भी होगा....
*जवानी किन कामो में गुज़ारी ?*

*✍🏽जामेअ तिर्मिज़ी, 1894, हदिष:2417*

*नोट :* उस दिन सवाल पूछने पर सर्मिन्दा न होना पड़े इस वजह से आज इस पे ज़रा गौर कीजिये।
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #08/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नमाज़ सल्तनत से बेहतर_*
     हज़रते मैमून बिन मेहरानرضي الله تعالي عنه मस्जिद में आए, उनसे कहा गया जमाअत खत्म हो गई और लोग जा चुके है ये सुन कर उन की ज़ुबांन पर बे साख्ता जारी हुवा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ फिर फ़रमाया : मेरे नज़दीक बा जमाअत नमाज़ की फ़ज़ीलत इराक की हुक्मरानी से ज्यादा है।
*✍🏽मुकाशफतुल कुलूब, स. 268*

*_बाग़ मसाकिन पर सदका कर दिया_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमरرضي الله تعالي عنه फरमाते है : हज़रते उमर फारूकرضي الله تعالي عنه अपने एक बाग़ की तरफ तशरीफ़ ले गए, जब वापस हुवे तो लोग नमाज़े असर अदा कर चुके थे, ये देख कर आप ने पढ़ा إ نَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ और इर्शाद फ़रमाया : मेरी असर की जमाअत फौत हो गई है, लिहाजा में तुम्हे गवाह बनाता हु की मेरा बाग़ मसाकिन पर सदका है ताकि ये इस काम का कफ़्फ़ारा हो जाए।

     अल्लाहु अकबर ! मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! देखा आपने हमारे बुज़ुर्गो के नज़दीक जमाअत की किस कदर अहमिय्यत थी, उनके नज़दीक माल व औलाद का तलफ़ (ज़ाएअ) हो जाने से बड़ी मुसीबत नमाज़े बा जमाअत छूट जाना था।
     अल्लाह عزوجل हमारे दिलो में भी ऐसा ज़ौक़ ओ शोक अता करे।
आमीन........
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 19*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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*मदनी फूल​*
*​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​*
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*​​खजूर के मदनी फूल*​​ #03
     खजूर और खीरा या ककड़ी, नीज़ खजूर और तरबूज़ एक साथ खाना सुन्नत है। इसमें भी हिकमतो के मदनी फूल है। हमारे अमल के लिये तो इस का सुन्नत होना ही काफी है। अतिब्बा का कहना है की इससे जिन्सी व जिस्मानी कमज़ोरी और दुबला पन दुर होता है।
     हदिष में है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया, मख्खन को खजूर के सथमिल कर खाओ और पुरानी के साथ नई खजुरे मिला कर खाओ क्यू की शैतान किसी को ऐसा करता देखता है तो अफ़सोस करता है और कहता है की पुरानी के साथ नई खजूर खा कर आदमी मज़बूत हो गया।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, 4/39, हदिष:333*

     खजूर खाने से पुरानी क़ब्ज़ दूर होती है।
 
     दमा, दिल, गुर्दा, मसाना, पित्ता और आंतो के अमराज़ में खजूर मुफीद है। ये बलगम खारिज करती, मुह की खुश्की को दूर करती, क़ुव्वते बाह बढ़ाती और पेशाब आवर है।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 357*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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Sunday 26 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #179
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③⑤_*
     और तुम पर गुनाह नहीं इस बात में जो पर्दा रखकर तुम औरतों के निकाह का पयाम दो या अपने दिल में छुपा रखो.  (12) अल्लाह जानता है कि अब तुम उनकी याद करोगे  (13) हाँ उनसे छुपवां वादा न कर रखो मगर यह कि उतनी बात कहो जो शरीअत में चलती है और निकाह की गांठ पक्की न करो जब तक लिखा हुक्म अपने समय को न पहुंच ले (14) और जान लो कि अल्लाह तुम्हारे दिल की जानता है तो उससे डरो और जान लो कि अल्लाह बख़्शने वाला, हिल्म  (सहिष्णुता) वाला है.

*तफ़सीर*
     (12) यानी इद्दत में निकाह और निकाह का खुला हुआ प्रस्ताव तो मना है लेकिन पर्दे के साथ निकाह की इच्छा प्रकट करना गुनाह नहीं. जैसे यह कहे कि तुम बहुत नेक औरत हो या अपना इरादा दिल में ही रखे और ज़बान से किसी तरह न कहे.
     (13) और तुम्हारे दिलों में इच्छा होगी इसी लिये तुम्हारे लिये तारीज़ जायज़ कर दी गई.
     (14) यानी इद्दत गुज़र चुके.
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #07/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूर ﷺ ने बाज़ नमाज़ों में कुछ लोगो को गैर हाज़िर पाया तो इर्शाद फ़रमाया : में चाहता हु की किसी शख्स को हुक्म दू की वो नमाज़ पढ़ाए, फिर में उन लोगो की तरफ जाऊ जो नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाते है और उन पर उनके घर जला दू।
*✍🏽शाहीह मुस्लिम*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! गौर कीजिये हमारे आक़ा ﷺ जो अपनी उम्मत से बेहद महब्बत फरमाते और सारी सारी रात उम्मत की बख्शीश व मगफिरत के लीये आंसू बहाते रहे, ऐसे शफ़ीक़ व करीम आक़ा ने शाने जलाल में फ़रमाया :
*जो लोग जमाअत से नमाज़ नहीं पढ़ते, मेरा जी चाहता है की उनके घरो को आग लगा दू।*

*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 16*

अल्लाह عزوجل अपने हबीब ﷺ के सदके के हम सभी को बा जमाअत नमाज़ अदा करने का शोख ओ जौक अता करे।
आमीन.....
*___________________________________*
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*मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_खजूर के मदनी फूल_* #02
     हज़रते मुहम्मद अहमद ज़हबी अलैरहमा फरमाते है, हामिला को खजुरे खिलाने से ان شاء الله लड़का पैदा होगा जो की खूब सूरत बुर्द बार और नर्म मिज़ाज होगा।

     जो फाके की वजह से कमज़ोर हो गया हो उस के लिये खजूर बहुत मुफीद है क्यू की ये ग़िज़ाइय्यत से बीरपुर है। इस के खाने से जल्द तवानाई बहाल हो जाती है। लिहाज़ा खजूर से इफ्तार करने ये हिकमत भी है।

     रोज़े में फौरन बर्फ का ठंडा पानी पि लेने से गैस, तबख़िरे मेदा और जिगर के वरम का सख्त खतरा है। खजूर खा कर ठंडा पानी पिने से नुकसान का खतरा टल जाता है, मगर सख्त ठंडा पानी पीना हर वक़्त नुकसान देह है।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 356*
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Saturday 25 March 2017

*जमाअत छोड़ने की सजा* #06/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अकल्मन्द कौन ?_*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सब इबादतों में अहम इबादत नमाज़ है और येही जरीअए नजात और जन्नत की कुन्जी है। इस लीये नमाज़ की भरपूर हिफाज़त करनी चाहिये और इसे वक़्त पर जमाअत के साथ अदा करना चाहिये।
     उमुमन देखा जाता है की लोग घर में ही नमाज़ पढ़ लेते है और मस्जिद की हाज़िरी से कतराते और महज़ सुस्ती की वज्ह से षवाबे अज़ीम से महरूम हो जाते है। याद रखिये ! हर आकिल, बालिग़, आज़ाद, क़ादिर पर जमाअत वाजिब है, बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनाहगार और मुस्तहिके सजा है और कई बार तर्क करे तो फ़ासिक़ मर्दुदश्शहादा (यानी उस की गवाही मक़्बूल नहीं) और उस को सख्त सज़ा दी जाएगी। अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया (खामोश रहे) तो वो भी गुनेहगार हुवे।
*✍🏽बहारे शरीअत, 1/582*

     अबू ज़ुबैर फरमाते है : मेने हज़रत जाबिरرضي الله تعالي عنه से सुना, हमारे घर मस्जिद से दूर थे तो हमने अपने घरो को फरोख्त करने का इरादा किया ताकि हम मस्जिद के करीब हो जाए, तो रसूले अकरमﷺ ने हमें मना फरमा दीया और इर्शाद फ़रमाया : तुम्हे हर कदम के बदले षवाब मिलता है।
*✍🏽शाहीह मुस्लिम, 335*

     सहाबाए किराम में बा जमाअत नमाज़ अदा करने का कितना ज़बरदस्त जज़्बा था, वाकई पाचो वक्त एक एक मिल का सफ़र कर के आना आसान काम नहीं।
     इसके बर अक्स हमारा हाल ये है की हमारे घरो के करीब मसाजिद मौजूद है, मस्जिद दूर हो और पैदल जाने में सुस्ती हो तो गाडी, मोटर साइकल के ज़रिए जाने की तरकीब बन सकती है। मस्जिदों में भी ज़रूरी सहुलियात मुयस्सर है मगर बद किस्मती से फिर भी जमाअत के साथ नमाज़ नहीं पढ़ते।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 14*
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*मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_खजूर के मदनी फूल_* #01
     तबीबो के तबीब ﷺ का फरमाने सिहहत निशान है, "आलिया" (मदीना में मस्जिदे क़ुबा की जानिब एक जगह का नाम) की अज्वा (मदीना की सबसे अज़ीम खजूर का नाम) में हर बिमारी से शिफ़ा है।
     अल्लामा बदरुद्दीन ऐनी हनफ़ी रहमतुल्लाह अलैह की रिवायत के मुताबिक़ 7 रोज़ तक सात अदद अज्वा खजूर खाना जुज़ाम (कोढ़) को रोकता है।
*✍🏽उमदतुल कारी, 14/446*

     अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, खजूर खाने से कुलन्ज (बड़ी अंतड़ी का दर्द) नही होता।
*✍🏽कन्जुल उम्माल, 10/12, हदिष : 28191*

     हुज़ूर ﷺ का फरमान है की, नहार मुह खजूर खाओ कस से पेट के कीड़े मर जाते है।
*✍🏽अलजामिउ सगीर, 398, हदोष:6394*

     हज़रते रबीआ बिन खसिम رضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेरे नज़्दीक हामिला के लिये खजूर से और मरीज़ के लिये शहद से बेहतर किसी चीज़ में शिफ़ा नही।
*✍🏽दुर्रे मन्सूर, 5/505*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 356*
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Friday 24 March 2017

*जमाअत छोड़ने की सजा* #05/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने से जहा मुसलमानो की आपस में मुहब्बत व मुवानसत में इज़ाफ़ा होता है वही नमाज़ का षवाब भी कइ गुना बढ़ जाता है। अहादिसे मुबारका में कई मकामात पर जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाले के लीये कसीर षवाब और कई इनामात की बिशारते वारिद हुई है।

*_4 फरमाने मुस्तफा ﷺ_*
     जिसने कामिल वुज़ु किया, फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लीये चला और इमाम की इक्तिदा में फ़र्ज़ नामाज़ पढ़ी, उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।
     अल्लाह बा जमाअत नमाज़ पढ़ने वालो को महबूब रखता है।
     बा जमाअत नमाज़ तन्हा नमाज़ से 27 दरजे अफ़्ज़ल है।
     जब बन्दा बा जमाअत नमाज़ पढ़े, फिर अल्लाह से अपनी हाजत का सुवाल करे तो अल्लाह इस बात से हया फरमाता है की बन्दा हाजत पूरी होने से पहले वापस लौट जाए।

     मुस्तफा ﷺ ने फ़रमाया : जो अल्लाह के लीये 40 दिन बा जमाअत नमाज़ पढ़े और तकबिरे उला पाए, उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएगी,
नार यानी दोज़ख से
निफाक से।

     इमाम शरफुद्दीन हुसैन बिन मुहम्मद तीबी फरमाते है : निफाक से बराअत का मतलब ये है की वो दुन्या में मुनाफिक जैसे आमाल से महफूज़ रहेगा और उसे मुखलिसिन जैसे आमाल करने की तौफ़ीक़ मिलेगी। नीज़ आख़िरत में नारे जहन्नम से अम्न में रहेगा।

     नमाज़े बा जमाअत की इस कदर बरकतों और फाज़िलातो के बा वुज़ूद सुस्ती करना और जमाअत से नमाज़ न पढ़ना किस कदर ताज्जूब ख़ेज़ है ?
     मगर अफ़सोस ! साद करोड़ अफ़सोस ! जमाअत की परवा नहीं की जाती, बल्कि नमाज़ भी अगर कज़ा हो जाए तो कोई रन्ज नहीं।

     हमें अपने अन्दर नमाज़े बा जमाअत की अहमियत और इस की महब्बत पैदा करनी चाहिए और अपने बच्चों को भी शुरुअ से ही जमाअत से नमाज़ पढ़ने की आदत डलवाए।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 9*
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*मुबारक महीने* #17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*जुल हिज्जा* #01
*_इब्तिदाई 10 दिन की फ़ज़ीलत_*
     बाज़ अहादीस के मुताबिक़ जुल हिज्जा का पहला अशरा (यानि इस माह के शुरू के 10 दिन) रमज़ानुल मुबारक के बाद सब दिनों से अफज़ल है।

*_नेकिया करने के पसन्दीदा तरीन अय्याम_*
     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : इन 10 दिनों से ज़्यादा किसी दिन का नेक अमल अल्लाह को महबूब नही। सहाबए किराम ने अर्ज़ की, या रसूलल्लाह ﷺ ! और न राहे खुदा में जिहाद ? फ़रमाया, और न राहे खुदा में जिहाद, मगर वो की अपने जानो माल ले कर निकले फिर उन में से कुछ वापस न लाए (यानी सिर्फ वो मुजाहिद अफज़ल होगा जो जानो माल क़ुर्बान करने में कामयाब हो गया)
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/333, हदिष:969*

*_शबे क़द्र के बराबर फ़ज़ीलत_*
     हदिष में है, अल्लाह को अशर ऐ जुल हिज्जा से ज़्यादा किसी दिन में अपनी इबादत किया जाना पसन्दीदा नही इस के हर दिन का रोज़ा एक साल के रोज़ो और हर शब् का क़याम शबे क़द्र के बराबर है।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 2/192, हदिष:758*

*_अरफ़ा का रोज़ा_*
     हुज़ूर ﷺ का फरमान है, मुझे अल्लाह पर गुमान है को अरफ़ा (9 जुल हिज्जा) का रोज़ा एक साल क़ब्ल और एक साल बाद के गुनाह मिटा देता है।
*✍🏽सहीह मिस्लिम, 590, हदिष :196*

*_एक रोज़ा हज़ार रोज़ो के बराबर_*
    हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها से रिवायत है, हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया अरफ़ा का रोज़ा हज़ार रोज़ो के बराबर है। मगर हज करने वाले पर जो अरफात में है उसे अरफ़ा के दिन रोज़ा रखना मकरूह है की, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : अरफ़ा के दिन अरफात में रोज़ा रखने से मना फ़रमाया।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 352*
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Thursday 23 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #178
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③④_*
     और  तुम में जो मरें और बीबियां छोड़ें वो चार महीने दस दिन अपने आप को रोके रहें तो जब उनकी मुद्दत (अवधि) पूरी हो जाए तो ऐ वालियों  तुम पर मुआख़ज़ा(पकड़) नहीं उस काम में जो औरत अपने मामले में शरीअत के अनुसार करें और अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है.

*तफ़सीर*
     गर्भवती की इद्दत तो गर्भ के अन्त तक यानी बच्चा पैदा हो जाने तक है, जैसा कि सूरए तलाक़ में ज़िक्र है. यहाँ बिना गर्भ वाली औरत का बयान है जिसका शौहर मर जाए, उसकी इद्दत चार माह दस रोज़ है. इस मुद्दत में न वह निकाह करे न अपना घर छोडे़, न बिना ज़रूरत तेल लगाए, न ख़ुश्बू लगाए, न मेहंदी लगाए, न सिंगार करे, न रंगीन और रेशमी कपड़े पहने, न नए निकाह की बात चीत खुलकर करे. और जो तलाक़े बयान की इद्दत में हो, उसका भी यही हुक्म है. अल्बत्ता जो औरत तलाक़े रजई की इद्दत में हो, उसको सजना सँवरना और सिंगार करना मुस्तहब है.
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #04/08
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     हुज़ूर ﷺ फरमाते है : अगर नमाज़े बा जमाअत से पीछे रह जाने वाला ये जानता की इस रह जाने वाले के लीये क्या है ? तो घिसटते हुवे हाज़िर होता।

     हुज़ूर ﷺ फरमाते है : किसी गाऊं, शहर या जंगल में 3 शख्स हो और बा जमाअत नमाज़ काइम न की गई मगर उन पर शैतान मुसल्लत हो गया। तो जमाअत को लाज़िम जानो की भेड़िया उस बकरी को खाता है जो रेवड़ से दूर हो।
     शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा बदरुद्दीन एनी हनफ़ी फरमाते है : इस हदिष की मुराद ये है की तारीके जमाअत पर शैतान ग़ालिब आ जाता है और उस पर अपना कब्ज़ा जमा लेता है, जैसे भेड़िया रेवड़ से अलग होने वाली बकरी पर काबिज़ हो जाता है।  और हदिष में 3 का ज़िक्र इस लिए है की जमआत कम से कम 3 पर बोली जाती है और 3 शख्सों के ज़रिए ही जुमुआ काइम हो सकता है, नीज़ इस हदिष से ये बात समझ आती है की अगर दो शख्स किसी जगह में हो और वो जुदा जुदा नमाज़ पढ़े तो गुनाहगार नहीं होंगे।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 7*
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*मुबारक महीने* #16
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*शव्वालुल मुकर्रम*
*_शश ईद के रोज़े के 3 फ़ज़ाइल_*
*नौ मौलूद की तरह गुनाहो से पाक*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हुज़ूर ﷺ फरमाते है : जिस ने रमज़ान के रोज़े रखे फिर 6 दिन शव्वाल में रखे तो गुनाहो से ऐसे निकल गया जैसे आज ही माँ के पेट से पैदा हुवा है।
*✍🏽मजमउ ज़वाइद, 3/425, हदिष:5102*

*_गोया उम्र भर का रोज़ा रखा_*
     हज़रते अबू अय्यूब رضي الله تعالي عنه से रिवायत है हुज़ूर ﷺ का फरमाने मुश्कबार है : जिसने रमज़ान के रोज़े रखे फिर इन के बाद 6 रोज़े शव्वाल में रखे तो ऐसा है जैसे उम्र भर के लिये रोज़ा रखा।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 592, हदिष:1164*

*_साल भर रोज़े रखे_*
     हज़रते सौबान رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जिसने ईदुल फ़ित्र के बाद शव्वाल में 6 रोज़े रख लिये तो उस ने पुरे साल में रोज़े रखे की जो एक नेकी उसे 10 मिलेगी।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, 2/333, हदिष:1715*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 350*
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गर होजाए यक़ीन के.....
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Wednesday 22 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #177
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③③_*
     और माएं दूध पिलाएं अपने बच्चों को (4) पूरे दो बरस उसके लिये जो दूध की मुद्दत पूरी करनी चाहे (5) और जिसका बच्चा है (6) उसपर औरतों का खाना और पहनना है दस्तूर के अनुसार (7) किसी जान पर बोझ न रखा जाए उसके बच्चे से  (8) और न औलाद वाले को उसकी औलाद से  (9) या माँ बाप ज़रर न दे अपने बच्चे को और न औलाद वाला अपनी औलाद को  (10) और जो बाप की जगह है उसपर भी ऐसा ही वाजिब है फिर अगर माँ बाप दानों आपस की रज़ा और सलाह से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर गुनाह नहीं. और अगर तुम चाहो कि दाइयों से अपने बच्चों को दूध पिलाओ तो भी तुमपर हरज नहीं कि जब जो देना ठहरा था भलाई के साथ उन्हें अदा करदो और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है.

*तफ़सीर*
     (5) यानी इस मुद्दत का पूरा करना अनिवार्य नहीं. अगर बच्चे को ज़रूरत न रहे और दूध छुड़ाने में उसके लिये ख़तरा न हो तो इससे कम मुद्दत में भी छुड़ाना जायज़ है. (तफ़सीरे अहमदी, ख़ाज़िन वग़ैरह)
     (6) यानी वालिद. इस अन्दाज़े बयान से मालूम हुआ कि नसब बाप की तरफ़ पलटता है.
     (7) बच्चे की परवरिश और उसको दूध पिलवाना बाप के ज़िम्मे वाजिब है. इसके लिये वह दूध पिलाने वाली मुक़र्रर करे. लेकिन अगर माँ अपनी रग़बत से बच्चे को दूध पिलाए तो बेहतर है. शौहर अपनी बीवी पर बच्चे को दूध पिलाने के लिये ज़बरदस्ती नहीं कर सकता, और न औरत शौहर से बच्चे के दूध पिलाने की उजरत या मज़दूरी तलब कर सकती है. जब तक कि उसके निकाह या इद्दत में रहे. अगर किसी शख़्त ने अपनी बीवी को तलाक़ दी और इद्दत गुज़र चुकी तो वह उस बच्चे के दूध पिलाने की उजरत ले सकती है. अगर आप ने किसी औरत को अपने बच्चे के दूध पिलाने पर रखा और उसकी माँ उसी वेतन पर या बिना पैसे दूध पिलाने पर राज़ी हुई तो माँ ही दूध पिलाने की ज़्यादा हक़दार है. और अगर माँ ने ज़्यादा वेतन तलब किया तो बाप को उससे दूध पिलवाने पर मजबूर नहीं किया जाएगा. (तफ़सीरे अहमदी व मदारिक). “अलमअरूफ़” (दस्तूर के अनुसार) से मुराद यह है कि हैसियत के मुताबिक़ हो, तंगी या फ़ुज़ूलख़र्ची के बग़ैर.
     (8) यानी उसको उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ दूध पिलाने पर मजबूर न किया जाए.
     (9) ज़्यादा वेतन तलब करके.
     (10) माँ का बच्चे को कष्ट देना यह है कि उसको वक़्त पर दूध न दे और उसकी निगरानी न रखे या अपने साथ मानूस कर लेने के बाद छोड़ दे. और बाप का बच्चे को कष्ट देना यह है कि हिले हुए बच्चे को माँ से छीन ले या माँ के हक़ में कमी करे जिससे बच्चे को नुक़सान हो.
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #03/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नमाज़ जमाअत से अदा करो_*
     क़ुरआने पाक और अहादिसे मुबारका में जहा भी नमाज़ की अदाएगी का हुक्म आया है, उससे मुराद नमाज़ को तमाम तर फराइज़ो वाजिबात के साथ अदा करना है। और नमाज़ के वाजिबात में से ये भी है की उसे जमाअत के साथ पढ़ा जाए।

     परह 1 सूरतुल बक़रह, आयत 43 में इर्शाद होता है :
*और नमाज़ काइम रखो और ज़कात दो और रुकूअ करने वालो के साथ रुकूअ करो।*
     तफ़्सीरे ख़ाज़िन में है : इस आयत में नमाज़े बा जमाअत अदा करने पर उभारा गया है।

     एक और मक़ाम पर अल्लाह फरमाता है : पारह 29 सूरतुल कलम, आयत 42-43
*जिस दिन एक साक खोली जाएगी (जिसके माना अल्लाह ही जनता है) और सजदे को बुलाए जाएंगे तो न कर सकेंगे, नीची निगाहे किये हुवे उन पर ख्वाहि चढ़ रही होगी और बेशक दुन्या में सजदे के लीये बुलाए जाते थे जब तंदुरस्त थे।*
     हज़रते इब्राहिम तैमी इस फरमान की तफ़्सीर में फरमाते है : वो कियामत का दिन होगा, उस दिन इन्हें नदामत की जिल्लत ठापे होगी, क्यू की इन्हें दुन्या में जब सजदों की तरफ बुलाया जाता तो ये तंदुरस्त होने के बा-वुजूद नमाज़ में हाज़िर न होते।
     हज़रते काबुल अहबारी इर्शाद फरमाते है : खुदा की कसम ! ये आयते मुबारका जमाअत से पीछे रह जाने वालो ही के बारे में नाज़िल हुई है और बिगैर उज़्र के जमाअत तर्क कर देने वालो के लीये इससे जियादा सख्त कौन सी वईद होगी।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईदे, स. 6*
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*मुबारक महीने* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*रमज़ानुल मुबारक* #07
*_खर्च में कुशादगी करो_*
     हज़रते ज़मुरह رضي الله تعالي عنه से मरवी है की नबियो के सुलतान ﷺ का फरमान है : माहे रमज़ान में घर वालो के खर्च में कुशादगी करो क्यू की माहे रमज़ान में खर्च करना अल्लाह की राह में खर्च करने की तरह है।
*✍🏽अल जामेउ सगीर, 162, हदिष:2716*

     मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! माहे रमज़ान के फ़ज़ाइल से कुतूबे अहादिसा मालामाल है। रमज़ान में इस क़दर बरकतें और रहमते है की हमारे प्यारे आक़ा ﷺ ने यहाँ तक इरशाद फ़रमाया, "अगर बन्दों को मालुम होता की रमज़ान क्या है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती की काश ! पूरा साल रमज़ान ही हो।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 349*
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Tuesday 21 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #176
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③②_*
     और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और उनकी मीआद पूरी हो जाए (1) तो ऐ औरतों के वालियों, उन्हें न रोको इससे कि अपने शौहरों से निकाह कर लें  (2) जब कि आपस में शरीअत के अनुसार रज़ामंद हो जाएं (3) यह नसीहत उसे दी जाती है जो तुम में से अल्लाह और क़यामत पर ईमान रखता हो यह तुम्हारे लिये ज़्यादा सुथरा और पाकीज़ा है और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते.

*तफ़सीर*
     (1) यानी उनकी इद्दत गुज़र चुके.
     (2) जिनको उन्होंने अपने निकाह के लिये चुना हो, चाहे वो नए हों या यही तलाक़ देने वाले या उनसे पहले जो तलाक़ दे चुके थे.
     (3) अपने क़ुफ़्व यानी बराबर वाले में मेहरे मिस्ल पर, क्योंकि इसके ख़िलाफ़ की सूरत में सरपरस्त हस्तक्षेप और एतिराज़ का हक़ रखते हैं. मअक़ल बिन यसार मुज़नी की बहन का निकाह आसिम बिन अदी के साथ हुआ था. उन्होंने तलाक़ दी और इद्दत गुज़रने के बाद फिर आसिम ने दरख़ास्त की तो मअक़ल बिन यसार आड़े आए. उनके बारे में यह आयत उतरी. (बुख़ारी शरीफ़)
     (4) तलाक़ के बयान के बाद यह सवाल अपने आप सामने आता है कि अगर तलाक़ वाली औरत की गोद में दूध पीता बच्चा हो तो उसके अलग होने के बाद बच्चे की परवरिश का क्या तरीक़ा होगा इसलिये यह ज़रूरी है कि बच्चे के पालन पोषण के बारे में माँ बाप पर जो अहकाम हैं वो इस मौक़े पर बयान फ़रमा दिये जाएं. लिहाज़ा यहाँ उन मसाइल का बयान हुआ.
     माँ चाहे तलाक़ शुदा हो या न हो, उस पर अपने बच्चे को दूध पिलाना वाजिब है, शर्त यह है कि बाप को उजरत या वेतन पर दूध पिलवाने की क्षमता और ताक़त न हो या कोई दूध पिलाने वाली उपलब्ध न हो. या बच्चा माँ के सिवा किसी का दूध क़ुबूल न करे. अगर ये बात न हो, यानी बच्चे की परवरिश ख़ास माँ के दूध पर निर्भर न हो तो माँ पर दूध पिलाना वाजिब नहीं, मुस्तहब है. (तफ़सीरे अहमदी व जुमल वग़ैरह)
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*जमाअत छोड़ने की सजा* #02/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*नमाज़ की फर्जीयत*
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ❗जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पढ़ने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता।
     यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ पढ़नेकी अपनी ही बरकतें है जो बगैर जमाअत के हासिल नहीं हो सकती। लिहाजा हमें चाहिए की बा जमाअत नमाज़ की अदाएगी के लिए वक़्त की पाबन्दी का खास ख्याल रखे और अपने काम, अहलो इयाल और दीगर मसरुफिय्यत पर नमाज़ को फौकिय्यत दे। क्यू की कोई अमल नमाज़ से बढ़ कर अहमिय्यत का हामिल नहीं हो सकता।
     अल्लाह पारह 28 सूरतुल मुनाफिकुन् की आयत 9 में इर्शाद फरमाता है।
*ऐ ईमान वालो तुम्हारे माल न तुम्हारी अवलाद कोई चीज़ तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुक्शान में है।*

     मुफ़स्सिरीने किराम की एक जमाअत का कौल है की इस आयते मुबारका में ज़िकृल्लाह से मुराद 5 नमाज़े है लिहाज जो अपने माल सामान खरीदो फरोख्त या पेशे या अपनी अवलाद की वज्ह से नमाज़ों को इन के अवकात में अदा करने से ग़फ़लत इख़्तियार करेगा वो ख़सारा पाने वालो में से होगा।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 4*
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*मुबारक महीने* #14
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*रमज़ानुल मुबारक* #06
*_जुमुआ की हर घड़ी में दस लाख की मगफिरत_*
     हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ का फरमान है : अल्लाह माहे रमज़ान में रोज़ाना इफ्तार के वक़्त दस लाख ऐसे गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है जिन पर गुनाहो की वजह से जहन्नम वाजिब हो चूका था, नीज़ शबे जुमुआ और रोज़े जुमुआ की हर घड़ी में ऐसे दस दस लाख गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद किया जाता है जो अज़ाब के हक़दार क़रार दिये जा चुके होते है।

*✍🏽कन्जुल उम्माल, 8/223, हदिष:23716*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 347*
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Monday 20 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #175
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③①_*
     और  जब तुम औरतों को तलाक़ दो और  उनकी मीआद (अवधि) आ लगे (10) तो उस वक़्त तक या भलाई के साथ रोक लो (11) या नेकी के साथ छोड़ दो (12) और उन्हें ज़रर (तक़लीफ़) देने के लिये रोकना न हो कि हद से बढ़ो और जो ऐसा करे वह अपना ही नुक़सान करता है (13) और अल्लाह की आयतों को ठठ्ठा न बना लो. (14) और याद करो अल्लाह का एहसान जो तुमपर है (15) और वह जो तुम पर किताब और हिकमत (16) उतारी तुम्हें नसीहत देने को और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह सब कुछ जानता है (17).

*तफ़सीर*
     (10) यानी इद्दत ख़त्म होने के क़रीब हो. यह आयत साबित बिन यसार अन्सारी के बारे में उतरी. उन्होंने अपनी औरत को तलाक़ दी थी और जब इद्दत ख़त्म होने के क़रीब होती थी, रूजू कर लिया करते थे ताकि औरत कै़द में पड़ी रहे.
     (11) यानी निबाहने और अच्छा मामला करने की नियत से रूजू करो.
    (12) और इद्दत गुज़र जाने दो ताकि इद्दत के बाद वो आज़ाद हो जाएं.
    (13) कि अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफ़त करके गुनहगार होता है.
     (14) कि उनकी पर्वाह न करो और उनके ख़िलाफ़ अमल करो.
    (15) कि तुम्हें मुसलमान किया और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का उम्मती बनाया.
     (16) किताब से क़ुरआन और हिकमत से क़ुरआन के आदेश और रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत मुराद है.
     (17) उससे कुछ छुपा हुआ नहीं है.
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*मुबारक महीने* #13
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*रमज़ानुल मुबारक* #05
*_रोज़ाना दस लाख गुनाहगारो की दोज़ख से रिहाई_*
     अल्लाह की इनायतो, रहमतो और बख्शिशो का तज़किरा करते हुए एक मौके पर हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जब रमज़ान की पहली रात होती है तो अल्लाह अपनी मख्लूक़ की तरफ नज़र फ़रमाता है और जब अल्लाह किसी बन्दे की तरफ नज़र फरमाए तो उसे कभी अज़ाब न देगा। और हर रोज़ दस लाख गुनाहगारो को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है और जब 29वी रात होती है तो महीने भर में जितने आज़ाद  किये उन के मज़मुऐ के बराबर उस एक रात में आज़ाद फ़रमाता है। फिर जब ईदुल फ़ित्र की रात आती है, मलाएका ख़ुशी करते है और अल्लाह अपने नूर की ख़ास तजल्ली फ़रमाता है और फरिश्तों से फ़रमाता है,
     ऐ गिरोहे मलाएका ! उस मज़दूर का क्या बदला है जिस ने काम पूरा कर लिया ? फ़रिश्ते अर्ज़ करते है, उस को पूरा पूरा अज्र दिया जाए। अल्लाह फ़रमाता है, में तुम्हे गवाह करता हु की में ने उन सब को बख्श दिया।
*✍🏽कन्जुल उमाल, 8/219, हदिष:2370*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 344*
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*जमाअत छोड़ने की सज़ा * #01/08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सय्यिदुना उबैदुल्लाह बिन उमर कवारीरी फरमाते है : मेने हमेशा ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की, मगर अफ़सोस ! एक मर्तबा मेरी ईशा की नमाज़ बा जमाअत फौत हो गई। इसका सबब ये हुआ की मेरे यहाँ एक मेहमान आया, उसकी मेहमान नवाज़ी में लगा रहा। फरागत के बाद जब मस्जिद पंहुचा तो जमाअत हो चुकी थी। अब में सोचने लगा की ऐसा कौनसा अमल किया जाए जिस से इस नुक्शान की तलाफि हो। यका यक मुझे अल्लाह के हबीब का ये फरमान याद आया "बा जमाअत नमाज़ मुन्फरिद की नमाज़ पर 21 दरजे फ़ज़ीलत रखती है। इस तरह 25 और 27 दरजे फ़ज़ीलत की भी हदिष भी मरवी है।
*✍🏽शहीह बुखारी*

     मेने सोचा अगर में 27 मर्तबा नमाज़ पढ़ लू तो शायद जमाअत फौत हो जाने से जो कमी हुई वो पूरी हो जाए। चुनांचे मेने 27 मर्तबा ईशा की नमाज़ पढ़ी, फिर मुझे नींद आ गई। मेने अपने आप को चन्द घोड़े सुवरो के साथ देखा, हम सब कही जा रहे थे। इतने में एक घोड़े सुवार ने मुझसे कहा : "तुम अपने घोड़े को मशक्कत में न डालो, बेशक तुम हमसे नहीं मिल सकते।" मेने कहा में आपके साथ क्यू नहीं मिल सकता ? कहा : इस लिए की हम ने ईशा की नमाज़ बा जमाअत अदा की है।
*✍🏽उयुनूल हिकायत, जी, 2 स. 94*

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इससे मालूम हुआ की जमाअत छूट जाने के बाद अगर कोई उस नमाज़ को 27 बार पढ़ भी ले तब भी बा जमाअत नमाज़ पठने के षवाब के बराबर नहीं पहुच सकता। यक़ीनन बा जमाअत नमाज़ की अपनी ही बरकतें है।
*✍🏽तर्के जमाअत की वईद, स. 3*
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Sunday 19 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #174
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ②③ⓞ_*
     फिर अगर तीसरी तलाक़ उसे दी तो अब वह औरत उसे हलाल न होगी जब तक दूसरे शौहर के पास न रहे (8) फिर वह दूसरा अगर उसे तलाक़ दे दे तो उन दोनों पर गुनाह नहीं कि आपस में मिल जाएं (9) अगर समझते हों कि अल्लाह कि हदें निभाएंगे और ये अल्लाह की हदें है जिन्हें बयान करता है अक़ल वालों के लिये.

*तफ़सीर*
     (8) तीन तलाक़ों के बाद औरत शौहर पर हराम हो जाती है, अब न उससे रूजू हो सकता है न दोबारा निकाह, जब तक कि हलाला हो, यानी इद्दत के बाद दूसरे से निकाह करे और वह सहवास के बाद तलाक़ दे, फिर इद्दत गुज़रे.
     (9) दोबारा निकाह कर लें.
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*मुबारक महीने* #12
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*रमज़ानुल मुबारक* #04
*_हर शब् 60000 की बख्शिश_*
     हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : रमज़ान शरीफ की हर शब् आसमानों में सुबहे सादिक़ तक एक मुनादी ये निदा करता है, "ऐ अच्छाई मांगने वाले ! अल्लाह की इताअत की तरफ आगे बढ़ और खुश हो जा। और ऐ शरीर ! शर से बाज़ आ जा और इबरत हासिल कर।
*है कोई मगफिरत का तालिब !* की उसकी तलब पूरी की जाए।
*है कोई तौबा करने वाला !* की उसकी तौबा क़बूल की जाए।
*है कोई दुआ मांगने वाला !* की उसकी दुआ क़बूल की जाए।
*है कोई साइल !* की उसका सवाल पूरा किया जाए।
     अल्लाह तआला रमज़ानुल मुबारक की हर शन में इफ्तार के वक़्त 60000 गुनाहगारो को दोज़ख से आज़ाद फरमा देता है। और ईद के दिन सारे महीने के बराबर गुनाहगारो की बख्शिश की जाती है
*दुर्रे मंसूर, 1/446*

     मदीने के दीवानो ! रमज़ानुल मुबारक की जलवा गरी तो क्या होती है, हम गरीबो के वारे न्यारे हो जाते है। अल्लाह के फ्ज़लो करम से रहमत के दरवाज़े खोल दिये जाते है और खूब मगफिरत के परवाने तक़सीम होते है। काश ! हम गुनाहगारो को ब तुफेले माहे रमज़ान, सरवरे कौनो मकान के रहमत भरे हाथो जहन्नम से रिहाई का परवाना मिल जाए।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 345*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 18 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #173
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②⑨_*
     यह तलाक़ (1) दो बार तक है फिर भलाई के साथ रोक लेना है (2) या नेकी के साथ छोड़ देना है(3) और तुम्हें रवा नहीं कि जो कुछ औरतों को दिया (4) उसमें से कुछ वापिस लो (5) मगर जब दोनों को डर हो कि अल्लाह की हदें क़ायम न करेंगे (6) फिर अगर तुम्हें डर हो कि वो दोनों ठीक उन्हीं हदों पर न रहेंगे तो उनपर कुछ गुनाह नहीं इसमें जो बदला देकर औरत छुट्टी ले (7) ये अल्लाह की हदें हैं इनसे आगे न बढ़ो तो वही लोग ज़ालिम हैं.

*तफ़सीर*
     (1) यानी तलाक़े रजई. एक औरत ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया कि उसके शौहर ने कहा है कि वह उसको तलाक़ देता और रूजू करता रहेगा. हर बार जब तलाक़ की इद्दत गुज़रने के क़रीब होगी रूजू कर लेगा, फिर तलाक़ दे देगा, इसी तरह उम्र भर उसको क़ैद में रखेगा. इस पर यह आयत उतरी और इरशाद फ़रमाया कि तलाक़ रजई दो बार तक है. इसके बाद फिर तलाक़ देने पर रूजू करने का हक़ नहीं.
     (2) रूजू करके.
     (3) इस तरह कि रूजू न करे और इद्दत गुज़रकर औरत बयान हो जाए.
     (4) यानी मेहर.
     (5) तलाक़ देते वक़्त.
     (6) जो मियाँ बीवी के हुक़ूक के बारे में है.
     (7) यानी तलाक़ हासिल करे. यह आयत जमीला बिन्ते अब्दुल्लाह के बारे में उतरी. यह जमीला साबित बिन क़ैस इब्ने शमास के निकाह में थीं और शौहर से सख़्त नफ़रत रखतीं थीं. रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुज़ूर में अपने शौहर की शिकायत लाई और किसी तरह उनके पास रहने पर राज़ी न हुई, तब साबित ने कहा कि मैं ने इनको एक बाग़ दिया है अगर यह मेरे पास रहना गवारा नहीं करतीं और मुझसे अलग होना चाहती हैं तो वह बाग़ मुझे वापस करें, मैं इनको आज़ाद कर दूँ. जमीला ने इसको मंज़ूर कर लिया. साबित ने बाग़ ले लिया और तलाक़ दे दी. इस तरह की तलाक़ को ख़ुला कहते हैं. ख़ुला तलाक़े बयान होता है. ख़ुला में “ख़ुला” शब्द का ज़िक्र ज़रूरी है. अगर जुदाई की तलबगार औरत हो तो ख़ुला में मेहर की मिक़दार से ज़्यादा लेना मकरूह है और अगर औरत की तरफ़ से नुशूज़ न हो, मर्द ही अलाहिदगी चाहे तो मर्द को तलाक़ के बदले माल लेना बिल्कुल मकरूह है.
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #14/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_ज़ोहर की 4 सुन्नते रह जाए तो क्या करे?_*
     अगर ज़ोहर के फ़र्ज़ पहले पढ़ लिये तो दो रकाअत सुन्नत अदा करने के बाद चार रकाअत सुनत अदा कीजिये उसके बाद दो नफ्ल अदा किजोये।

*_फज्र की सुन्नते रह जाए तो क्या करे ?_*
     सुन्नते पढ़ने से अगर फज्र की जमाअत छूट जाने का अंदेशा हो तो बगैर पढ़े शामिल हो जाए। मग़र सलाम फेरने के बाद पढ़ना जाइज़ नही।
     तुलुए आफताब के कम अज़ कम 20 मिनट बाद से ले कर ज़हवए कुब्रा तक पढ़ले कि मुस्तहब है। ईसके बाद मुस्तहब भी नही।
*✍🏽नमाज़ के हकाम 254*
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*मुबारक महीने* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*रमज़ानुल मुबारक* #03
*_सगीरा गुनाहो का कफ़्फ़ारा_*
    हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : पाचो नमाज़े, और जुमुआ अगले जुमुआ तक और माहे रमज़ान अगले माहे रमज़ान तक गुनाहो का कफ़्फ़ारा है जब तक की कबीरा गुनाहो से बचा जाए।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 144, हदिष : 233*

*_तौबा का तरीक़ा_*
     रमज़ानुल मुबारक में रहमतो की छमाछम बारिशे और गुनाहे सगीरा के कफ्फारे का सामान हो जाता है। गुनाहे कबीरा तौबा से मुआफ़ होते है। तौबा करने का तरीक़ा ये है की जो गुनाह हुवा ख़ास उस गुनाह का ज़िक्र कर के दिल की बेज़ारी और आइन्दा उस से बचने का अहद कर के तौबा करे।
     मसलन झूट बोला, तो बारगाहे खुदा वन्दी में अर्ज़ करे, या अल्लाह ! में ने जो झूट बोला इस से तौबा करता हु और आइन्दा नही बोलूंगा।
     तौबा के दौरान दिल में झूट से नफरत हो और आइन्दा नही बोलूंगा कहते वक़्त दिल में ये इरादा भी हो की जो कुछ कह रहा हु ऐसा ही करूँगा जभी तौबा है।
     अगर बन्दे की हक़ तलफि की है तो तौबा के साथ साथ उस बन्दे से मुआफ़ करवाना भी ज़रूरी है।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 344*
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*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

लोगो में सबसे पहले शहीद जन्नत में दाखिल होगा।
*✍🏽मुसनद इमाम अहमद बिन हम्बल, 3/412, हदिष:9497*

जहन्नम में सबसे पहले ज़बरदस्ती हुक्मरान बनने वाला दाखिल होगा।
*✍🏽सहीह इब्ने हब्बान, 9/282, हदिष:7438*
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Friday 17 March 2017

*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

दुन्या की खूबसूरती की क्या बात करते हो..
*दरे मुस्तफा ﷺ से हसीन* कोई नज़ारा नही...

अपने बच्चों को *इश्के मुस्तफा ﷺ* सिखाए...
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*जुमुआ मुबारक*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

फरमाने मुस्तफा ﷺ : जो मुझ पर जुमुआ की रात या जुमुआ के दिन एक बार दुरुदे पाक पढता है अल्लाह उस की 100 उखरवी हाजत और 30 दुन्यवि हाजत पूरी करता है।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 3/111, हदिष:3035*

_*दुरुदे शफ़ाअत*_

शाफए उमम ﷺ का फ़रमाने मुअज़्ज़्म है : जो शख्स यु दुरुदे पाक पढ़े उसके लिये मेरी शफ़ाअत वाजिब हो जाती है।
आइये हम भी अपनी शफ़ाअत करवाले।
 *ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*

*اَللّٰھُمَّ  صَلِّ  عَلٰی  مُحَمَّدٍ  وَّ اَنْزِلْهُ الْمَقْعَدَ  الْمُقَرَّبَ  عِنْدَکَ یَوْمَ  الْقِیَا  مَةِ*

*अल्लाहुम्म सल्ले-अ'ला मुहम्मदीन व-अन्ज़िल्हु अल-मक़अ'द अल-मूक़र्र-ब ई'न्दक यौमल क़ीयाम-ह*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #13/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_फ़ज्र व असर के बाद नवाफ़िल नही पढ़ सकते_*
     नमाज़े फ़ज्र और असर के बाद वो तमाम नवाफ़िल अदा करना मकरुहे तहरिमि है, अगर्चे फ़ज्र व असर की सुन्नते ही क्यू न हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/44*

     क़ज़ा के लिये कोई वक़्त मुअय्यन नही उम्र में जब भी पढ़ेगा बरियूज़्ज़िम्मा हो जाएगा। मगर तुलुअ व गुरुब और ज़वाल के वक़्त नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि इन वक़्तों में नमाज़ जाइज़ नही।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/702*
*✍🏽आलमगिरी 1/52*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 254*
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Thursday 16 March 2017

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #12/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_क़ज़ा का लफ्ज़ कहना भूल गया तो?_*
     आला हज़रत फरमाते है : हमारे उलमा तसरिह फरमाते है : क़ज़ा ब निययते अदा और अदा ब निययते क़ज़ा दोनों सहीह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 8/161*

*_क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर_*
     क़ज़ा नमाज़े नवाफ़िल की अदाएगी से बेहतर और अहम है मगर सुन्नते मुअक्क्दा, नमाज़े चाश्त, स्लातुत्तस्बीह और वो नमाज़े जिन के बारे में अहादीस मरवी है यानी जेसे तहिय्यतुल मस्जिद असर से पहले की चार रकअत (सुन्नते गैर मुअक्कदा) और मगरिब के बाद 6 रकअत पढ़ी जाएगी।
*✍🏽रद्दुलमोहतार 2/646*

     याद रहे क़ज़ा नमाज़ के बिना पर सुन्नते मुअक्कदा छोड़ना जाइज़ नहीं, अलबत्ता सुन्नते गैर मुअक्कदा और अहादिसो में वारिद शुदा मुखसुस नवाफ़िल पढ़े तो षवाब का हक़दार है मगर इन्हें न पड़ने पर कोई गुनाह नही।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 253*
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*गौष किसे कहते है ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     गौषियत बुज़ुर्गी का एक ख़ास दर्जा है लफ्ज़ "गौष" के लुग्वि माना है : *"फरियाद रस यानी फरियाद को पहुचने वाला".*
     चुकी हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رضي الله تعالي عنه गरीबो, बेकसों और हाजत मन्दो के मदद गार है इसी लिए आप को *"गौषे आज़म"* के खिताब से सरफ़राज़ किया गया। और बाज़ अक़ीदत मन्द आप को *"पीराने पिर दस्तगीर"* के लक़ब से भी याद करते है।

*✍🏽गौषे पाक के हालात, 15*
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Wednesday 15 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #171
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②⑥_*
     और वो जो क़सम खा बैठते हैं अपनी औरतों के पास न जाने की उन्हें चार महीने की मोहलत है तो अगर इस मुद्दत में फिर आए तो अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②⑦_*
     और अगर छोड़ देने का इरादा पक्का कर लिया तो अल्लाह सुनता जानता है.
*तफ़सीर*
     जाहिलियत के दिनों में लोगों का यह तरीक़ा था कि अपनी औरतों से माल तलब करते, अगर वह देने से इन्कार करतीं तो एक साल, दो साल, तीन साल या इससे ज़्यादा समय तक उनके पास ना जाते और उनके साथ सहवास न करने की क़सम खा लेते थे और उन्हें परेशानी में छोड़ देते थे. न वो बेवा ही थीं कि कहीं अपना ठिकाना कर लेतीं, न शौहर वाली कि शौहर से आराम पातीं.
     इस्लाम ने इस अत्याचार को मिटाया और ऐसी क़सम खाने वालों के लिये चार महीने की मुद्दत निश्चित फ़रमादी कि अगर औरत से चार माह के लिये सोहबत न करने की क़सम खाले जिसको ईला कहते हैं तो उसके लिये चार माह इन्तिज़ार की मोहलत है. इस अर्से में ख़ूब सोच समझ ले कि औरत को छोड़ना उसके लिये बेहतर है या रखना. अगर रखना बेहतर समझे और इस मुद्दत के अन्दर रूजू करले तो निकाह बाक़ी रहेगा और क़सम का कफ़्फ़ारा लाज़िम आएगा, और अगर इस मुद्दत में रूजू न किया और क़सम न तोड़ी तो औरत निकाह से बाहर हो गई और उस पर तलाक़े बायन वाक़े हो गई. अगर मर्द सहवास की क्षमता रखता हो तो रूजू हमबिस्तरी से ही होगा और अगर किसी वजह से ताक़त न हो तो ताक़त आने के बाद सोहबत का वादा रूजू है. (तफ़सीरे अहमदी)
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #11/15
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*_जमानए इर्तिदाद की नमाज़े_*
     जो शख्स मआजअल्लाह मुर्तद हो गया फिर इस्लाम लाया तो जमानए इर्तिदाद की नमाज़ की क़ज़ा नही और मुर्तद होने से पहले जमानए इस्लाम में जो नमाज़े जाती रही थी उनकी क़ज़ा वाजिब है।
*✍🏽रद्दुलमोहतार 2/647*

*_मरीज़ को नमाज़ कब मुआफ़ है?_*
     ऐसा मरीज़ कि इशारे से भी नमाज़ नही पढ़ सकता अगर ये हालत पुरे 6 वक़्त तक रही तो इस हालत में जो नमाज़े हुई उनकी क़ज़ा वाजिब नही।
*✍🏽आलमगिरी 1/121*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 252*
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*मुबारक महीने* #09
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*रमज़ानुल मुबारक* #01

     खुदाए रहमान का करोड़ हा करोड़ एहसान की उस ने हमे माहे रमज़ान जेसी अज़ीमुश्शान नेअमत से सरफ़राज़ फ़रमाया। माहे रमज़ान के फैजान के क्या कहने ! इस की तो हर घड़ी रहमत भरी है। इस महीने में अज्रो षवाब बहुत ही बढ़ जाता है। नफ्ल का षवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का षवाब 70 गुना कर दिया जाता है। बल्कि इस महीने में तो रोज़ादार का सोना भी इबादत में शुमार किया जाता है।
     अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते रोज़ादारो की दुआ पर आमीन कहते है और एक हदिष के मुताबिक़ "रमज़ान के रोज़ादार के लिये दरिया की मछलिया इफ्तार तक दुआए मगफिरत करती रहती है।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 337*
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Tuesday 14 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #170
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②⑤_*
     अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता उन क़स्मों में जो बेईरादा ज़बान से निकल जाएं, हाँ उसपर पकड़ फ़रमाता है जो काम तुम्हारे दिलों ने किये और अल्लाह बख़्शने वाला हिल्म (सहिष्णुता) वाला है.

*तफ़सीर*
     क़सम तीन तरह की होती है : (1) लग्व (2) ग़मूस (3) मुनअक़िदा. लग्व यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर अपने ख़याल में सही जानकर क़सम खाए और अस्ल में वह उसके विपरीत हो, यह माफ़ है, और इस पर कफ़्फ़ारा नहीं. ग़मूस यह है कि किसी गुज़री हुई बात पर जान बूझकर झूठी क़सम खाए, इसमें गुनाहगार होगा. मुनअक़िदा यह है कि किसी आने वाली बात पर इरादा करके क़सम खाए. क़सम को अगर तोड़े तो गुनाहगार भी है और कफ़्फ़ारा भी लाज़िम.
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #10/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_क़ज़ाए उम्री का तरीका_*
     क़ज़ा हर रोज़ की 20 रकअत होती है।
2 फ़र्ज़ फ़ज्र की, 4 ज़ोहर की, 4 असर की, 3 मगरिब की, 4 ईशा की और 3 वित्र।
निय्यत इस तरह कीजिये
*सबसे पहली फ़ज्र जो मुझ से क़ज़ा हुई उसको अदा करता हु* हर नमाज़ में इसी तरह नियत कीजिये।

*_नमाज़े क़सर की क़ज़ा_*
     अगर हालते सफर की क़ज़ा नमाज़ हालते इक़ामत में पढ़ेंगे तो क़सर ही पढ़ेंगे और हालते इक़ामत की क़ज़ा हालते सफर में पढ़ेंगे तो पूरी पढ़ेंगे।
*✍🏽आलमगिरी 1/121*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 251*
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Monday 13 March 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #169
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②④_*
     और अल्लाह को अपनी क़िस्मतों का निशाना न बना लो कि एहसान और परहेज़गारी और लोगों में सुलह करने की क़सम कर लो और अल्लाह सुनता जानता है.

*तफ़सीर*
     हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाना ने अपने बेहनोई नोमान बिन बशीर के घर जाने और उनसे बात चीत करने और उनके दुश्मनों के साथ उनकी सुलह कराने से क़सम खाली थी. जब इसके बारे में उनसे कहा जाता था तो कह देते थे कि मैं क़सम खा चुका हूँ इसलिये यह काम कर ही नहीं सकता. इस सिलसिले में यह आयत नाज़िल हुई और नेक काम करने से क़सम खा लेने को मना किया गया. अगर कोई व्यक्ति नेकी से दूर रहने की क़सम खाले तो उसको चाहिये कि क़सम को पूरा न करे बल्कि वह नेक काम ज़रूर करे और क़सम का कफ़्फ़ारा दे.
     मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है, रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जिस शख़्स ने किसी बात पर क़सम खाली फिर मालूम हुआ कि अच्छाई और बेहतरी इसके ख़िलाफ़ में है तो चाहिये कि उस अच्छे काम को करे और क़सम का कफ़्फ़ारा दे.
     कुछ मुफ़स्सिरों ने यह भी कहा है कि इस आयत से बार बार क़सम खाने की मुमानिअत यानी मनाही साबित होती है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*मुबारक महीने* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*शाबानुल मुअज़्ज़म* #01
*_आक़ा का महीना_*
     हुज़ूर ﷺ का शाबानुल मुअज़्ज़म के बारे में फरमाने मुकर्रम है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ानुल मुबारक अल्लाह का महीना है।
*✍🏽अल-जामेउ सगीर, 103, हदिष : 4889*

*_रमज़ान के बाद कौनसा महीना अफज़ल है ?_*
     हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه फरमाते है, दो आलम के मालिको मुख्तार ﷺ की बारगाह में अर्ज़ की गई की रमज़ान के बाद कौनसा रोज़ा अफज़ल है ? इरशाद फ़रमाया : ताज़िमे रमज़ान के लिये शाबान का। फिर अर्ज़ की गई, कौनसा सदक़ा अफज़ल है ? फ़रमाया : रमज़ान के माह में सदक़ा करना।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 2/146, हदिष:663*

*_15वी शब् में तजल्ली_*
     हज़रते आइशा सिद्दोका رضي الله تعالي عنها से रिवायत है, हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह शाबान की 15वी शब् में तजल्ली फ़रमाता है। इस्तिग़फ़ार (तौबा) करने वालो को बख्श देता और तालिबे रहमत पर रहम फ़रमाता और अदावत वालो को जिस हाल पर है उसी पर छोड़ देता है।
*✍🏽शोएबुल ईमान, 3/383, हदिष:3835*

*_भलाइयों वाली राते_*
     हज़रते आइशा رضي الله تعالي عنها रिवायत फरमाती है की मेने हुज़ूर ﷺ को फरमाते सुना, अल्लाह (खास तौर पर) 4 रातो में भलाइयों के दरवाज़े खोल देता है :
(1) बकरी ईद की रात (2) ईदुल फ़ित्र की रात (3) शाबान की 15वी रात की इस रात में मरने वालो के नाम और लोगो का रिज़्क़ और (इस साल) हज करने वालो के नाम लिखे जाते है (4) अरफा (9 जुल हिज्जा) की रात, अज़ान फज्र तक।
*✍🏽दुर्रू मन्सूर, 7/402*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 332*
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Sunday 12 March 2017

*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #08/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अदा, क़ज़ा और वाजीबुल इआदा की तारीफ़_*
     जिस चीज़ का बन्दों को हुक्म है उसे वक़्त में बजा लाने को अदा कहते है और वक़्त खत्म होने के बाद अमल में लाना क़ज़ा है और अगर उस हुक्म के बाज लाने में कोई खराबी पैदा हो जाए तो उस खराबी को दूर करने के लिये वो अमल दोबारा बजा लाना इआदा कहलाता है।
     वक़्त के अंदर अंदर अगर तहरिमा बांध ली तो नमाज़ क़ज़ा न हुई बल्कि अदा है।
*✍🏽दुर्रे मुख़्तार 2/627*
     नमाज़े फ़ज्र, जुमुआ और इदैन में वक़्त के अंदर सलाम फिरना लाज़िम है वरना नमाज़ न होगी
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*
     बिला उज़्रे शरई नमाज़ क़ज़ा कर देना सख्त गुनाह है, इस पर फ़र्ज़ है कि उसकी क़ज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा भी करे, तौबा या हज्जे मक़बूल से इन्शा अल्लाह ताखीर का गुनाह मुआफ़ हो जाएगा
*✍🏽दुर्रे मुख्तार 2/626*
     तौबा उसी वक़्त सहीह है जब कि क़ज़ा पढ़ ले उसको अदा किये बगैर तौबा किये जाना तौबा नही कि, जो नमाज़ इस के ज़िम्मे थी उसको पढ़ना तो अब भी बाक़ी है और जब गुनाह से बाज़ न आया तो तौबा कहा हुई ?
*✍🏽रद्दल मोहतार 2/627*

     हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : गुनाह पर क़ाइम रह कर तौबा करने वाला उस की मिस्ल है जो अपने रब से ठठा यानी मज़ाक करता है।
*✍🏽शोएबुल ईमान 5/436*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 246*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #167
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②②②_*
     और तुमसे पूछते हैं हैज़ का हुक्म तुम फ़रमाओ वह नापाकी है तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों और उनके क़रीब न जाओ जब तक पाक न हो लें फिर जब पाक हो जाएं तो जहां से तुम्हें अल्लाह ने हुक्म दिया बेशक अल्लाह पसन्द करता है बहुत तौबह करने वालों को और पसन्द रखता है सुथरों को.

*तफ़सीर*
     अरब के लोग यहूदियों और मजूसीयों यानी आग के पुजारियों की तरह माहवारी वाली औरतों से सख़्त नफ़रत करते थे. अरब खाना पीना, एक मकान में रहना गवारा न था, बल्कि सख़्ती यहाँ तक पहुँच गई थी कि उनकी तरफ़ देखना और उनसे बात चीत करना भी हराम समझते थे, और ईसाई इसके विपरीत माहवारी के दिनों में औरतों के साथ बड़ी महब्बत से मशग़ूल होते थे, और सहवास में बहुत आगे बढ़ जाते थे.
     मुसलमानों ने हुज़ूर से माहवारी का हुक्म पूछा. इस पर यह आयत उतरी और बहुत कम तथा बहुत ज़्यादा की राह छोड़ कर बीच की राह अपनाने की तालीम दी गई और बता दिया गया कि माहवारी के दिनों में औरतों से हमबिस्तरी करना मना है.
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Saturday 11 March 2017

*आदाबे_सोहबत (जिमाअ) ताल्लुक़ात के बयान*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

मियां बीवी के ताल्लुक़ से कुछ ऐसे मसले मसायल हैं जिनका जानना उनको ज़रूरी है मगर वो नहीं जानते,क्यों,क्योंकि दीनी किताब हम पढ़ते नहीं और आलिम से पूछने में शर्म आती है मगर अजीब बात है कि मसला पूछने में तो हमें शर्म आती है मगर वही ग़ैरत उस वक़्त मर जाती है जब दूल्हा अपने दोस्तों को और दुल्हन अपनी सहेलियों को पूरी रात की कहानी सुनाते हैं,खैर ये msg सेव करके रखें और अपने दोस्तों और अज़ीज़ो में जिनकी शादियां हों उन्हें तोहफे के तौर पर ये msg सेंड करें

* हज़रत इमाम गज़ाली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जिमअ यानि सोहबत करना जन्नत की लज़्ज़तों में से एक लज़्ज़त है
📕 कीमियाये सआदत,सफह 496

* हज़रत जुनैद बग़दादी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि इंसान को जिमअ की ऐसी ही ज़रूरत है जैसी गिज़ा की क्योंकि बीवी दिल की तहारत का सबब है
📕 अहयाउल उलूम,जिल्द 2,सफह 29

* हदीसे पाक में आता है कि जिस तरह हराम सोहबत पर गुनाह है उसी तरह जायज़ सोहबत पर नेकियां हैं
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 324

* उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अंहा से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जब एक मर्द अपनी बीवी का हाथ पकड़ता है तो उसके नामये आमाल में एक नेकी लिख दी जाती है और जब उसके गले में हाथ डालता है तो दस नेकियां लिखी जाती है और जब उससे सोहबत करता है तो दुनिया और माफीहा से बेहतर हो जाता है और जब ग़ुस्ले जनाबत करता है तो पानी जिस जिस बाल पर गुज़रता है तो हर बाल के बदले एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम होता जाता है और एक दर्जा बुलंद होता जाता है
📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 113

* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से एक शख्स ने अर्ज़ किया कि मैंने जिस लड़की से शादी की है मुझे लगता है कि वो मुझे पसंद नहीं करेगी तो आप फरमाते हैं कि मुहब्बत खुदा की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से तो ऐसा करो कि जब तुम पहली बार उसके पास जाओ तो दोनों वुज़ु करो और 2 रकात नमाज़ नफ्ल शुकराना इस तरह पढ़ो कि तुम इमाम हो और वो तुम्हारी इक़्तिदा करे तो इन शा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत और वफा करने वाली पाओगे
📕 गुनियतुत तालेबीन,सफह 115

* नमाज़ के बाद शौहर अपनी दुल्हन की पेशानी के थोड़े से बाल नर्मी और मुहब्बत से पकड़कर ये दुआ पढ़े अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका मिन खैरेहा वखैरे मा जबलतहा अलैहे व आऊज़ोबेका मिन शर्रेहा मा जबलतहा अलैह तो नमाज़ और इस दुआ की बरकत से मियां बीवी के दरमियान मुहब्बत और उल्फत क़ायम होगी इन शा अल्लाह
📕 अबु दाऊद,सफह 293

* खास जिमा के वक़्त बात करना मकरूह है इससे बच्चे के तोतले होने का खतरा है उसी तरह उस वक़्त औरत की शर्मगाह की तरह नज़र करने से भी बचना चाहिये कि बच्चे का अंधा होने का अमकान है युंही बिल्कुल बरहना भी सोहबत ना करें वरना बच्चे के बे हया होने का अंदेशा है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 46

* हमबिस्तरी के वक़्त बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ना सुन्नत है मगर याद रहे कि सतर खोलने से पहले पढ़ें और सबसे बेहतर है कि जब कमरे में दाखिल हो तब ही बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़कर दायां क़दम अन्दर दाखिल करें अगर हमेशा ऐसा करता रहेगा तो शैतान कमरे से बाहर ही ठहर जाएगा वरना वो भी आपके साथ शरीक होगा
📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 2,सफह 410

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि औरत के अंदर मर्द के मुकाबले 100 गुना ज़्यादा शहवत है मगर उस पर हया को मुसल्लत कर दिया गया है तो अगर मर्द जल्दी फारिग हो जाये तो फौरन अपनी बीवी से जुदा ना हो बल्कि कुछ देर ठहरे फिर अलग हो
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 183

* जिमअ के वक़्त किसी और का तसव्वुर करना भी ज़िना है और सख्त गुनाह और जिमअ के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं हां बस इतना ख्याल रहे कि नमाज़ ना फौत होने पाये क्योंकि बीवी से भी नमाज़ रोज़ा एहराम एतेकाफ हैज़ व निफास और नमाज़ के ऐसे वक़्त में सोहबत करना कि नमाज़ का वक़्त निकल जाये हराम है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 584

* मर्द का अपनी औरत की छाती को मुंह लगाना जायज़ है मगर इस तरह कि दूध हलक़ से नीचे ना उतरे ये हराम है लेकिन ऐसा हो भी गया तो तौबा करे मगर इससे निकाह पर कोई फर्क नहीं आता
📕 दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 58
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द ,सफह 568

* मर्द व औरत को एक दूसरे का सतर देखना या छूना जायज़ है मगर हुक्म यही है कि मक़ामे मख़सूस की तरफ ना देखा जाये कि इससे निस्यान का मर्ज़ होता है और निगाह भी कमज़ोर हो जाती है
📕 रद्दुल मुख्तार,जिल्द 5,सफह 256

* मर्द नीचे हो और औरत ऊपर,ये तरीका हरगिज़ सही नहीं है इससे औरत के बांझ हो जाने का खतरा है
📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* फरागत के बाद मर्द व औरत को अलग अलग कपड़े से अपना सतर साफ करना चाहिए क्योंकि दोनों का एक ही कपड़ा इस्तेमाल करना नफरत और जुदायगी का सबब है
📕 कीमियाये सआदत,सफह  266

* एहतेलाम होने के बाद या दूसरी मर्तबा सोहबत करना चाहता है तब भी सतर धोकर वुज़ु कर लेना बेहतर है वरना होने वाले बच्चे को बीमारी का खतरा है
📕 क़ुवतुल क़ुलूब,जिल्द 2,सफह 489

* ज़्यादा बूढ़ी औरत से या खड़े होकर सोहबत करने से जिस्म बहुल जल्द कमज़ोर हो जाता है उसी तरह भरे पेट पर सोहबत करना भी सख्त नुकसान देह है
📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 139

* जिमअ के बाद औरत को दाईं करवट पर लेटने का हुक्म दें कि अगर नुत्फा क़रार पा गया तो इन शा अल्लाह लड़का ही होगा
📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 42

* जिमअ के फौरन बाद पानी पीना या नहाना सेहत के लिए नुकसान देह है हां सतर धो लेना और दोनों का पेशाब कर लेना सेहत के लिए फायदे मंद है
📕 बिस्तानुल आरेफीन,सफह 138

* तबीब कहते हैं कि हफ्ते में दो बार से ज़्यादा सोहबत करना हलाकत का बाईस है,शेर के बारे में आता है कि वो अपनी मादा से साल में एक मर्तबा ही जिमअ करता है और उसके बाद उस पर इतनी कमजोरी लाहिक़ हो जाती है अगले 48 घंटो तक वो चलने फिरने के काबिल भी नहीं रहता और 48 घंटो के बाद जब वो उठता है तब भी लड़खड़ाता है
📕 मुजरबाते सुयूती,सफह 41

* औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करना जायज नहीं अगर चे शादी की पहली रात ही क्यों ना हो और अगर इसको जायज़ जाने जब तो काफिर हो जायेगा युंही उसके पीछे के मक़ाम में सोहबत करना भी सख्त हराम है
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 2,सफह 78

* मगर हैज़ की हालत में वो अछूत भी नहीं हो जाती जैसा कि बहुत जगह रिवाज है कि फातिहा वगैरह का खाना भी नहीं बनाने देते ये जिहालत है,बल्कि उसके साथ सोने में भी हर्ज नहीं जबकि शहवत का खतरा ना हो वरना अलग सोये
📕 फतावा मुस्तफविया,जिल्द 3,सफह 13

* क़यामत के दिन सबसे बदतर मर्द व औरत वो होंगे जो अपनी राज़ की बातें अपने दोस्तों को सुनाते हैं
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 464

* औरत से जुदा रहने की मुद्दत 4 महीना है इससे ज़्यादा दूर रहना मना है
📕 तारीखुल खुलफा,सफह 97

* आलाहज़रत फरमाते हैं कि हमल ठहरने से रोकने के लिए दवा या कोई और तरीका इस्तेमाल करना या हमल ठहरने के बाद उसमें रूह फूकने की मुद्दत 120 दिन है तो अगर किसी उज़्रे शरई मसलन बच्चा अभी छोटा है और ये दूसरा बच्चा नहीं चाहता तो हमल साकित करना जायज़ है मगर रूह पड़ने के बाद हमल गिराना हराम और गोया क़त्ल है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 524

* अगर तोगरे में क़ुरान की आयत लिखी है तो जब तक उस पर कोई कपड़ा ना डाला जाए उस कमरे में सोहबत करना या बरहना होना बे अदबी है हां क़ुरान अगर जुज़दान में है तो हर्ज नहीं युंही किबला रु होना भी मना है
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 522

* जो बच्चा समझदार हो उसके सामने सोहबत करना मकरूह है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 14

* किसी की दो बीवियां हैं अगर चे उसका किसी से पर्दा नहीं मगर औरत का औरत से पर्दा है तो एक के सामने दूसरे से सोहबत करना जायज़ नहीं
📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह २०७

याद रहे पहली रात खून आना कोई ज़ुरूरी नही है...जो जाहिल इस तरह की बात सोचते है वो कमिलमि है क्योंकि आज के दौर में जिस झिल्ली के फटने से वो खून ऑर्ट की शर्मगाह से आता है वो बचपन में खेल,कूद,साइकल चलाने हटता के और भी चीज़ों से फट सकती है...लिहाज़ा अक़्ल से काम लिया कीजिये....
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #07/15
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*_रात के आखरी हिस्से में सोना केसा ?_*
     नमाज़ का वक़्त दाखिल हो जाने के बाद सो गया फिर वक़्त निकल गया और नमाज़ क़ज़ा हो गई तो गुनाहगार हुवा जब की जागने पर सहीह ऐतिमाद या जगाने वाला मौजूद न हो, बल्कि फ़ज्र में दुखुले वक़्त से पहले भी सोने की इजाज़त नही हो सकती जब की अक्सर हिस्सा रात का जागने में गुज़रा और ज़न्ने ग़ालिब है कि अब सो गया तो वक़्त में आँख न खुलेगी।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*

*_रात देर तक जागना_*
     नात ख्वानी, ज़िक्रो फ़िक्र की महफ़िलो नीज़ सुन्नतो भव इज्तेमाअ वगैरा में रात देर तक जागने के बाद सोने के सबब अगर नमाज़े फ़ज्र क़ज़ा होने का अंदेशा हो तो ब निययते एतिकाफ मस्जिद में क़याम करे या वहा सीए जहा कोई क़ाबिले एतिमाद इस्लामी भाई जगाने वाला मौजूद हो। या अलार्म लगाले इससे आँख खुल जाती हो।
     फ़ुक़हाए किराम फरमाते है : जब ये अंदेशा हो की नमाज़ जाती रहेगी तो बिला ज़रूरते शरईय्या उसे रात देर तक जागना ममनुअ है।
*✍🏽रद्दलमुहतार 2/33*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 245*
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*मुबारक महीने* #06
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*रबीउल अव्वल (रबिउन्नूर शरीफ)* #03
*_शबे क़द्र से भी अफज़ल रात_*
     हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी अलैरहमा फरमाते है : बेशक सरवरे आलम ﷺ की शबे विलादत शबे क़द्र से भी अफज़ल है क्यू की शबे विलादत सरकारे मदीना ﷺ के इस दुन्या में जल्वा गर होने की रात है जब की शबे क़द्र सरकार ﷺ को अता करदा शब् है। और जो रात ज़ुहूरे जाते सरवरे काएनात ﷺ की वजह से मुशर्रफ हो वॉ इस रात से ज़्यादा शर्फ व इज़्ज़त वाली है जो मलाएका के नुज़ूल की बिना पर मुशर्रफ है।

*_जशने विलादत मनाने का षवाब_*
     शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी फरमाते है : हुज़ूर ﷺ की विलादत की रात ख़ुशी मनाने वालो की जज़ा ये है की अल्लाह उन्हें फ्ज़लो करम से जन्नतुन्नइम में दाखिल फ़रमाएगा। मुसलमान हमेशा से महफिले मिलाद मूनअक़ीद करते आए है और विलादत की ख़ुशी में दावते देते, खाने पक्वाते और खूब सदक़ा व खैरात देते आए है। खूब ख़ुशी का इज़हार करते और दिल खोल कर खर्च कर करते है नीज़ आप की विलादते बा सआदत के ज़िक्र का एहतिमाम करते है और अपने मकानों को सजाते है और इन तमाम अफआले हसना की बरकत से उन लोगो पर अल्लाह की रहमतो का नुज़ूल होता है।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 328*
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*जहद (परहेजगारी)का सवाब*  #1
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        हज़रत शैख अब्दुलकादर जीलानी رضي الله تعالي عنه ने फरमया: ज़ाहिदोको दो सवाब मिलते है। पेहला तर्के असबाब के बाइस क्योंके नफ्सकी ख्वाहिशातसे मोहतरिज़ (परहेज़ करनेवाला) होकर सिर्फ हुकमका पाबन्द हो जाता है और जब नफससे उसकी मुखालेफत और दुश्मनी साबित हो जाती है, उसको हकीकत-व-विलायत की मन्ज़िल मिल जाती है और अब्दालों और आरिफों का मकाम हासिल हो जाता है।
    जो सिर्फ हुकम दे दिया जाता है के जो कुछ उसकी तकदीर में है, जो सिर्फ उसीके लिये तख़्लीक़ की गई है और खामए कुदरत से उसके लिये तेहरीर हो चुकी है और रोशनाई खुश्क हो चुकी और ऐसा ऐसा पहलेही से था, सिर्फ इसीसे ताल्लुक रखे।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 115
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Friday 10 March 2017

*मुबारक महीने* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*रबीउल अव्वल (रबिउन्नूर शरीफ)* #02
_*मोजिज़ात*_
     12 रबीउल अव्वल को अल्लाह के नूर की दुन्या में जलवा गरी होते ही क़ुफ़्रो ज़ुल्मत के बादल छत गए, शाहे ईरान किसरा के महल पर ज़लज़ला आया, 14 कुंगूरे गिर गए। ईरान का जो आतश कदा 1000 साल से शोला जन था वो बुझ गया, दरियाए सावह खुश्क हो गया, काबे को वज्द आ गया और बूत सर के बल गिर पड़े।
     ताजदारे रिसालत ﷺ जहां में फ़ज़लो रहमत बन कर तशरीफ़ लाए और यक़ीनन अल्लाह की रहमत के नुज़ूल का दिन ख़ुशी व मुसर्रत का दिन होता है। चुनांचे अल्लाह इरशाद फ़रमाता है :
    *तुम फ़रमाओ अल्लाह ही के फ़ज़ल और इसी की रहमत और उसी लर चाहिये की ख़ुशी करे। वो उन के सब धन दौलत से बेहतर है।* (पारह 11)

     अल्लाहु अकबर ! रहमते खुदा वन्दी पर ख़ुशी मनाने का क़ुरआन हुक्म देता है। और क्या हमारे प्यारे आक़ा ﷺ से बढ़ कर भी कोई अल्लाह की रहमत है ? देखिये मुक़द्दस क़ुरआन में साफ साफ़ एलान है :
*وٙمٙآ اٙرْسٙلْنٰكٙ اِلّا رٙحْمٙةً لّٙلْعٰلٙمِيْنٙ o*
तर्जुमा : और हमने तुम्हे न भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिये। (पारह, 17)

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 327*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Thursday 9 March 2017

*शबे जुमुआ़ का दुरुद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ़ (जुमुआ़ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*

*اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمِّیِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِہٖ  وَصَحْبِہٖ  وَسَلِّمْ*

*अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #05/15
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_अगर नमाज़ पढ़ना भूल जाए तो..?_*
     हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जो नमाज़ से सो जाए या भूल जाए तो जब याद आए पढ़ ले कि वोही उसका वक़्त है।
*✍🏽मुस्लिम 346*

     फुक़हाए किराम फरमाते है : सोते में या भूले से नमाज़ क़ज़ा हो गई तो उसकी क़ज़ा पढ़नी फ़र्ज़ है अलबत्ता क़ज़ा का गुनाह उस पर नही मगर बेदार होने और याद आने पर अगर वक़्ते मकरूह न हो तो उसी वक़्त पढ़ ले ताखीर मकरूह है।
*✍🏽बहारे शरीअत 1/701*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 243*
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गर होजाए यक़ीन के.....
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*मुबारक महीने* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*रबीउल अव्वल (रबिउन्नूर शरीफ)* #01

     माहे रबीउल अव्वल तो क्या आता है हर तरफ मौसिमे बहार आ जाता है। मक्की मदनी मुस्तफा ﷺ के दीवानो में ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है। हर हक़ीक़ी मुसलमान गोया दिल की ज़बान से बोल उठता है :
          *निसार तेरी चहल पहल पर हज़ार ईदे रबीउल अव्वल*
          *सिवाए इब्लीस के जहां में सभी तो खुशियां मना रहे है*
     जब काएनात में क़ुफ़्रो शिर्क और वहशतो बर-बरिय्यत का धुप अँधेरा छाया हुवा था। बारह रबीउल शरीफ को मक्का में हज़रते आमिना رضي الله تعالي عنها के मकाने रहमत निशान से एक ऐसा नूर चमका जिस ने सारे आलम को जगमग जगमग कर दिया। सिसकती हुई इंसानियत की आँख जिन की तरफ लगी हुई थी वो ताजदारे रिसालत ﷺ तमाम आलमीन के लिये रहमत बन कर मादरे गेती पर जल्वा गर हुए।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 325*
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