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आसान नेकियां

🌸🌸नेकियों की दो किस्मे🌸🌸

✅नेकीया दो किस्म की होती है :
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1⃣जिन का करना हम पर फ़र्ज़ या वाजिब होता है,
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🔹जेसे नमाज़, रोज़ा वगैरा।
🔹तो ऐसी नेकिया हर सूरत में करनी ही होगी
🔹क्यूकी इन की अदाएगी पर षवाब
🔴और न करने पर मलामत के साथ साथ सज़ा भी है।

2⃣ये नेकी मुस्तहब्बात के दरजे में है।
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🔹जेसे नवाफ़िल वगैरा
🔹अगर इसको करे तो षवाब
🔹और न करे तो गुनाह नहीं
⭕लेकिन षवाब से बहर हाल महरूम रहेगा।

आसान नेकिया, स. 9

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❓क्या नेकी कामना मुश्किल है❓

👉🏿हमारी अकषरिययत इस वस्वसे का शिकार हो कर नेकियों की तरफ क़दम नहीं बढ़ाती की "नेकिया कामना मुश्किल है"

👉🏿मगर हैरत उस वक़्त होती है की जब येही लोग दुन्यावि मालो दौलत कमाने के लीये मुश्किल काम पर राज़ी हो जाते है।

👉🏿इस के लिये भूक, प्यास, धूप, ज़िल्लत, थकावट वगैरा क्या कुछ बर्दास्त नहीं करते !

👉🏿हत्ता की आओनी जान भी खतरे  में डाल देते है

👉🏿सिर्फ इस वजह से की उनका ज़हन बना होता है की इस परेशानी के सिले में उन्हें थोड़ी बहुत रक़म मिल जाएगी जिससे वो अपनी जरूरियात व ख्वाहिशात पूरी कर सकेगे।

👉🏿लेकिन अफ़सोस की जब ऐसो के सामने आख़िरत में मिलने वाले इनआमात व आसाइशात का तज़किरा करके नेक कामो की तरगिब् दी जाए तो उन्हों ये काम बहुत मुश्किल दिखाई देते है

👉🏿और वो राहे फ़िरार इख़्तियार करने के लिये हिले बहाने बनाने लगते है।

Continue. ......

📚आसान नेकिया, स. 9

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🌙हर नेकी मुश्किल नहीं होती🌙

⭕सच्ची बात तो ये है की हर नेकी मुश्किल नहीं होती हमारा नफ़्स इन्हें मुश्किल समझता है।

✨अलबत्ता कुछ नेकियां ऐसी होती है जिन में थोड़ी बहुत मेहनत मशक्क़त करनी पड़ती है

✨लेकिन अगर हिम्मत करके इन्हें शुरुअ कर दिया तो वक़्त के साथ साथ आसानी पैदा हो जाती है

✨मषलन नींद क़ुर्बान करके तहज्जुद पढ़ना बेहद मुश्किल महसूस होता है

✨लेकिन जो इसका मामूल बना ले उस के लिये नमाज़े तहज्जुद की अदाएगी कदरे आसान हो जाती है।

🚫बहर हाल कोई नेकी दुष्वार भी हो तो छोड़नी नहीं चाहिये

☝🏼और मशक्क़त नहीं बल्कि इनआमात को पेशे नज़र रखना चाहिये

⭕क्यू की आरज़ी मशक्क़त खत्म हो जाएगी जब की इस का इनआम इंशा अल्लाह हमेशा आप के पास रहेगा।

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✒हवाला
📚आसान नेकियां, स. 10

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💫जितनी मशक्क़त ज्यादा उतना षवाब ज्यादा💫

🌟अपना मदनी जहन बना लीजिये की नेकी में जितनी मशक्क़त ज्यादा होगी इन्शा अल्लाह उतना ही षवाब ज्यादा मिलेगा जेसा की मन्कुल है :

🌙अफ़्ज़ल इबादत वो हैं जिस में जहमत (तक़लीफ़) ज्यादा है।

✨इमाम सर्फुद्दीन नववी अलैरहमा फरमाते है : इबादत में मशक्क़त और खर्च ज्यादा होने से षवाब और फ़ज़ीलत ज्यादा हो जाती है।

✨हज़रते सय्यिदुना इब्राहिम बिन अदहम अलैरहमा का फरमाने मुअज़्ज़म है : दुन्या में जो नेक अ'मल जितना दुष्वार होगा क़यामत के रोज़ नेकियों का पलडा उतना ही ज्यादा वजनदार होगा।

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✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 10

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🌜आसान नेकियां🌛

💐मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! बेशुमार नेकियां ऐसी भी है जिन में मेहनत बेहद कम मगर षवाब बहुत ज्यादा होता है लेकिन तवज्जोह न होने या ला इल्मी की वजह से हम इन शवबात के हुसूल के कई मवाकेअ जाएअ कर बैठते है।

☝🏼अगर थोड़ी सी तवज्जोह  की जाए तो इन्शा अल्लाह हमारे नामए आ'माल में बेशुमार नेकियां जमा हो सकती है।

💫अ'मल शुरू कर दीजिये💫

💫जिस पर एक एक नेकी जमा करने की धुन सुवार हो जाए, आसान हो या मुश्किल वो नेकी करने का कोई मौक़ा हाथ से नहीं जाने देता।

💫लिहाज़ा नेकियों का खज़ाना जमा करने के लिये आज और अभी  से निय्यत कर लीजिये की में फराइज़ व वाजिबात की पाबंदी करने के साथ साथ जब भी किसी मुस्तहब अ'मल की फ़ज़ीलत के बारे में पढूंगा या सुनूँगा तो इन्शा अल्लाह मौक़ा मिलते ही उसपर अ'मल करने और इस्तिक़ामत पाने की कोशिश करूँगा

☝🏼क्यू की जिस तरह रेल की पटरी बिछाना एक काम है और इस पर ट्रेन चलाना दूसरा काम ! बिलकुल इसी तरह किसी अ'मल की फ़ज़ीलत जान लेना एक काम है मगर उस फ़ज़ीलत को हासिल करना दूसरा काम है।

💫नेकियों में मसरूफ़ रहने का एक फायदा ये भी होगा की गुनाह करने का मौक़ा ही नहीं मिलेगा।
इन्शा अल्लाह

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✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 11

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🌜आसान नकिया🌛

🌟अच्छी अच्छी निय्यते करना🌟

🌙बिला शुबा अच्छी निय्यत करना एक ऐसा अ'मल है जो मेहनत के एतबार से बेहद छोटा, लेकिन अज़्रो षवाब के लिहाज़ से हद दरजा अ'ज़िम है।

🌴फरमाने मुस्तफा ﷺ है :
सच्ची निय्यत सब से अफ़्ज़ल अ'मल है।

🌙निय्यत दिल के पुख्ता इरादे को कहते है ख्वाह वो किसी चीज़ का हो और शरीअत में निय्यत इबादत के इरादे को कहते है।

🌙किसी भी नेक अ'मल को करते वक़्त अच्छी अच्छी निय्यते कर ली जाए तो इसका षवाब बढ़ जाता है,
🌙आरिफ बिल्लाह हज़रते शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दीशे दहेल्वी अलैरहमा लिखते है : एक अ'मल में जितनी निय्यते होंगी उतनि नेकियो का षवाब मिलेगा,

🌙मषलन मोहताज क़राबत दार की मदद करने में अगर निय्यत फ़क़त अल्लाह عزوجل के लिये देने की होगी तो एक निय्यत का षवाब पाएगा और अगर सीलए रहमी की निय्यत भी करेगा तो दोहरा षवाब पाएगा।

🌟हमारे आक़ा इमामे अहले सुन्नत शाह मौलाना इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा लिखते है :
बेशक जो इल्मे निय्यत जानता है एक एक फे'ल को अपने लिये कई कई नेकियां कर सकता है।
📓फतावा राज़वीय्या, 5/673

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✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 14

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🌜आसान नेकियां🌛

☝🏼हर जाइज़ काम "बिस्मिल्लाह" से शुरुअ करना💞

🌾रोज़ मर्रा के हर जाइज़ कम को (जब की कोई मानेए शरई न हो) बिस्मिल्लाह शरीफ से शुरुअ करना अपना मामूल बना लिया जाए तो हज़ारो नेकियों का ख़ज़ाना इकठ्ठा किया जा सकता है,

🌴चुनान्चे ताजदारे मदीना ﷺ का फरमाने फरहत निशान है :
🌾जो "बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम" पढ़ेगा अल्लाह हर हर्फ़ के बदले उसके नामए आ'माल में
चार हज़ार नेकियां दर्ज फ़रमाएगा,
चार हज़ार गुनाह बख्श देगा और
चार हज़ार दर्जात बुलंद फ़रमाएगा।

💐मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! झूम जाइये ! अपने प्यारे प्यारे अल्लाह عزوجل की रहमत पर क़ुर्बान हो जाइये !!
🔸ज़रा हिसाब तो लगाइये बिस्मिल्लाह में 19 हरुफ़ है।
यु एक बार बिस्मिल्लाह पढ़ने से इन्शा अल्लाह चन्द सेकंड्ज़ में
76 हज़ार नेकियां मिलेगी
76 हज़ार गुनाह मुआफ़ होंगे
76 हज़ार दर्जात बुलंद होंगे।

💔घरेलू झगड़ो का इलाज💔

🌸मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा फरमाते है :
🏩घर में दाखिल होते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ कर पहले सीधा क़दम दरवाज़े में दाखिल करना चाहिये फिर घर वालो को सलाम करते हुवे घर के अंदर आए।
🏩अगर घर में कोई न हो तो "अस्सलामु अलैक अयुहन्नबीयू व-रहमतुल्लाहि व-बरकातुह" कहे।
🏩बज़ बुज़ुर्गो को देखा गया है की दिन की इब्तदा में पहली बार घर में दाखिल होते वक़्त बिस्मिल्लाह और कुलहुवल्लाह शरीफ पढ़ लेते, की इससे घर में इत्तिफ़ाक़ भी रहता है और रोज़ी में बरकत भी।
📔मीरआतुल मनाजिह, 6/9

✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 18,19,21

📶जारी रहेगा इन्शा अल्लाह...
👏तालिबे दुआ
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🌜आसान नेकियां🌛

☝🏼ज़िकृल्लाह करना☝🏼

☝🏼ज़िकृल्लाह भी ऐसी आसान इबादत है कि इसे इंसान थोड़ी सी तवज्जोह से किसी भी वक़्त अंजाम दे सकता है। इसके फ़ज़ाइल और फवाइद बे शुमार है,

💫चुनान्चे हज़रते अबू मूसा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया :
अगर एक शख्स की झोली दिरहमो से भरी हुई हो और वो इन्हें तक़्सीम कर रहा हो और दूसरा अल्लाह عزوجل का ज़िक्र कर रहा हो तो ज़िकृल्लाह करने वाला अफ़्ज़ल होगा।
📒तिबरानी

✨अफ़्ज़ल दरजे में होगा✨

💫तिर्मिज़ी शरीफ की हदिष है की हज़रते अबू सईद खुदरी رضي الله تعالي عنه फरमाते है की शहेन्शाहे खुश खिसाल ﷺ से सुवाल किया गया :
 या रसूलल्लाह ﷺ क़यामत के दिन अल्लाह عزوجل के नज़्दीक सबसे अफ़्ज़ल दरजे वाले कौन लोग होंगे ?
🌴इर्शाद फरमाया : अल्लाह का कशरत से ज़िक्र करने वाले।
📒तिर्मिज़ी

🌟तुम्हारी ज़बान ज़िकृल्लाह से तर रहा करे

✨हज़रते अब्दुल्लाह बिन बुस्र رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की एक शख्स ने अर्ज़ की :
✨या रसूलल्लाह ﷺ इस्लाम के अहकामे शरइय्या मुझ पर बहुत है, मुझे कोई एक बात ऐसी बता दे जिसे में मज़बूत थाम लू ?
🌴इर्शाद फ़रमाया :
तुम्हारी ज़बान अल्लाह عزوجل के ज़िक्र से तर रहा करे।
📒तिर्मिज़ी

🔁जारी रहेगा इन्शा अल्लाह....

✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 22

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🌹आसान नेकियां🌹

☝🏼ज़िक्र की अक़्साम☝🏼

💐मीठे और प्यारे इस्लामी भाइयो ! अकषर ये ख़याल किया जाता है की ज़बान से "अल्हम्दु-लिल्लाह, सुब्हान-अल्लाह" वग़ैरा अदा करने का नाम ही ज़िक्र है, इसमें कोई शक नहीं की ये भी ज़िक्र है मगर कलामे अरब में ज़िक्र का लफ़्ज़ बहुत से मानी में इस्तिमाल होता है।

✨चुनान्चे हज़रत मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा सूरए बक़रह की आयत 152 के तहत तफ़सीरे ख़ज़ाइनुल इरफ़ान में लिखते है :
ज़िक्र 3 तरह का होता है :
✅लिसानि यानी ज़बान से
✅क़ल्बी यानी दिल से
✅बिल जवारिह यानी आज़ाए जिस्म से

✔ज़िक्रे लिसानि
तस्बीह, तक़्दीस, षना वग़ैरा बयान करना है, ख़ुत्बा, तौबा, इस्तिग़फ़ार, दुआ वग़ैरा इसमें दाखिल है।

✔ज़िक्रे क़ल्बी
अल्लाह की ने'मतो का याद करना उसकी अ'ज़मत व किब्रियाई और उसके दलाइले क़ुदरत में गौर करना, उल्मा का इस्तिम्बाते मसाइल में गौर करना भी इसी में दाखिल है।

✔ज़िक्रे बिल जवारिह
आ'ज़ा ताअते इलाही में मशगूल हो जैसे हज के लिये सफ़र करना।

🌟नमाज़ तीनो कीस्म के ज़िक्र पर मुश्तमिल है।
✅तस्बीह व तकबीर, षना व किराअत तो ज़िक्रे लिसानि है
✅और ख़ुशूअ व ख़ुज़ूअ, इखलास ज़िक्रे क़ल्बी
✅और क़याम, रुकूअ व सुजुद वग़ैरा ज़िक्रे बिल जवारिह है।
ख़ज़ाइनुल इरफ़ान

✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 23-24

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☝🏼मेरी गवाही दे

🔹हज़रते अबुल मलिह रहमतुल्लाह अलैह जब अल्लाह का ज़िक्र करते तो ख़ुशी से झूम जाते और फरमाते :
🔹मेरा झूमना अल्लाह के ज़िक्र की वजह से है क्यू की अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया है :
🔹तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा
📗परा 2/152
🔹और जब आप किसी रस्ते पर चलते और अल्लाह का ज़िक्र करना भूल जाते तो वापस आ कर फिर उसी रस्ते पर चलते और उसमे अल्लाह का ज़िक्र करते अगर्चे एक दिन का सफ़र हो, और फरमाते :
🔹में इस बात को पसंद करता हु की में जिस ज़मीन से गुजरूं वो तमाम हिस्सए ज़मीन क़यामत के दिन मेरे ज़िकृल्लाह की गवाही दे।

☝🏼अल्लाह का हम पर अ'ज़िम एहसान है की उसका ज़िक्र हम हर जगह कर सकते है। इसके लिये कोई खास मक़ाम और वक़्त मुक़र्रर नहीं फ़रमाया।
🔹जहा जाए, जिधर जाए, अल्लाह अल्लाह कर सकते है, जैसा की हज़रत हसन बसरी अलैरहमा फरमाते है :
☝🏼अल्लाह ने अपने फ़रमाने अ'ज़ीम "तो मेरी याद करो में तुम्हारा चर्चा करूँगा" से हम पर आसानी करदी है और अपने ज़िक्र के लिये कोई जगह मख़्सूस नहीं फ़रमाई
☝🏼अगर अल्लाह हमारे लिये ज़िक्र करने की कोई जगह मख़्सूस फ़रमा देता तो हमारा वहा जाना वाजिब हो जाता, ख़्वाह वो मक़ाम एक सदी की मुसाफ़त पर ही क्यू न होता, जैसा की हज के लिये लोगो को काबा में बुलाया है।

✒हवाला
📚आसान नेकियां, सफा 24-25

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