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Tuesday 28 February 2017

*मुसाफिर की नमाज़* 5/9
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_वतन की किस्मे_*
वतन की दो किस्मे है
1 वतने असली : यानी वो जगह जहा इसकी पैदाइश हुई है या इस के घर के लोग वहा रहते है या वहा सुकूनत कर ली और ये इरादा है कि यहा से न जाएगा।
2 वतने इक़ामत : यानी वो जगह कि मुसाफिर ने 15 दिन या इससे ज़्यादा ठहर ने का वहा इरादा किया हो।

*_वतने इक़ामत बातिल होने की सूरत_*
वतने इक़ामत दूसरे वतने इक़ामत को बातिल कर देता है यानी एक जगह 15 दिन के इरादे से ठहरा फिर दूसरी जगह इतने ही दिन के इरादे से ठहरा तो पहली जगह वतन न रही। दोनों के दरमियान मसाफते सफर हो या न हो। यु ही वतने इक़ामत वतने असली और सफर से बातिल हो जाता है।
*✍🏽आलमगिरी 1/145*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 227*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*फराइज़ और नवाफ़िल*  #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
   
      हज़रत गौसुल आज़म رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया: मोमिन के लिये ज़ुरूरी है के फराइज़ अदा करने में मश्गूल रहे। फराइज़के बाद नवाफ़िल अदा करता रहे। लेकिन फराइज़ अदा करने से पहले सनन-व-नवाफ़िल में मशरूफ रेहना हिमाकत-व-रउनत है। और इस तरह सनन-व-नवाफ़िलको ज़लील किया जाता है।
      ये तो ऐसा है के किसीको बादशाह अपनी खिदमत पर मामूर करे और वो उसके बजाए उस अमीर की खिदमत पर मुस्तईद हो जाए जो खुद बादशाह का गुलाम है और बादशाह की कुदरत-व-विलायत के ज़ेरे नगीं है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 111
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 27 February 2017

*मुसाफिर की नमाज़* #04
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_सफर के दो रास्ते_*
किसी जगह जाने के दो रास्ते है एक से मसाफ़ते सफर है दूसरे से नही (यानी नजदीक वाले रस्ते से जाए तो 90 k.m और दूर वाले रस्ते से 92k.m है) तो जिस रास्ते से ये जाएगा उस का ऐतिबार है, नज़दीक वाले रास्ते से गया तो मुसाफिर नही और दूर वाले से गया तो है अगर्चे इस रास्ते के इख़्तियार करने में इस की कोई गरजे सहीह न हो।
*✍🏽आलमगिरी 1/138*
*✍🏽दुर्रेमुखतर मअ रद्दलमोहतर 2/603*

*_मुसाफिर कब तक मुसाफिर है_*
मुसाफिर उस वक़्त तक मुसाफिर है जब तक अपनी बस्ती में पहुच न जाए या आबादी में पुरे 15 दिन ठहर ने की निय्यत न करले, ये उस वक़्त है जब पुरे 92 k.m चल चूका हो अगर 92 k.m पहले वापसी का इरादा कर लिया तो मुसाफिर न रहा अगर्चे जंगल में हो।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतर 2/605*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 226*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Sunday 26 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #157
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②①③_*
     लोग एक दीन पर थे (6) फिर अल्लाह ने नबी भेजे ख़ुशख़बरी देते(7) और डर सुनाते (8) और उनके साथ सच्ची किताब उतरी  (9) कि वह लोगों में उनके मतभेदों का फैसला कर दे  और किताब में मतभेद उन्हीं ने डाला जिन को दी गई थी (10) बाद इसके कि उनके पास रौशन हुक्म आ चुके  (11) आपस की सरकशी से तो अल्लाह ने ईमान वालों को वह सच्ची बात सुझा दी जिसमें झगड़ रहे थे अपने हुक्म से और अल्लाह जिसे चाहे सीधी राह दिखाए.

*तफ़सीर*
     (6) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से हज़रत नूह के एहद तक सब लोग एक दीन और एक शरीअत पर थे. फिर उनमें मतभेद हुआ तो अल्लाह तआला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को नबी बनाकर भेजा. ये रसूल बनाकर भेजे जाने वालों में पहले हैं (ख़ाज़िन).
     (7) ईमान वालों और फ़रमाँबरदारों को सवाब की. (मदारिक और ख़ाज़िन)
     (8) काफ़िरों और नाफ़रमानों को अज़ाब का. (ख़ाज़िन)
     (9) जैसा कि हज़रत आदम व शीस व इद्रीस पर सहीफ़े और हज़रत मूसा पर तौरात, हज़रत दाऊद पर ज़ुबूर, हज़रत ईसा पर इन्जील और आख़िरी नबी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर क़ुरआन.
     (10) यत मतभेद धर्मग्रन्थों में काँटछाँट और रद्दोबदल और ईमान व कुफ़्र के साथ था, जैसा कि यहूदियों और ईसाईयों से हुआ. (ख़ाज़िन)
     (11) यानी ये मतभेद नादानी से न था बल्कि …….

अगली आयत की तफ़सीर में ان شاء الله
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*मुसाफिर की नमाज़* #03
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_मुसाफिर बनने के लिये शर्त_*

सफर के लिये ये भी ज़रूरी है कि जहा से चला वहा से 92 k.m. का इरादा हो
और अगर 92 k.m के कम के इरादे से निकला वहा पहुच कर दूसरी जगह का इरादा हुवा की वो भी 92 k.m से कम का रास्ता है यु ही सारी दुन्या घूम कर आए तो वो मुसाफिर नही।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/209*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 225*
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*फैजाने नवाफ़िल* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सुन्नते असर के बारे में दो फरमाने मुस्तफा ﷺ_*

     जो असर से पहले 4 रकअत पढ़े अल्लाह उस के बदन को आग पर हराम फरमा देगा।
*तिबरानी, 23/281*

     जो असर से पहले 4 रकअत पढ़े, उसे आग न छुएगी।
*तिबरानी, 2/77*

*मदनी पंजसुरह, 291*

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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*ज़िक्र करनेवाला और सवाल करनेवाला* #3
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

       जैसा के कुरआन मजीदमें कहा गया है, "अय नबी, फरमा दीजिये, बेशक मेरा वाली अल्लाह है जिसने कुरआन नाज़िल कीया और वो सालेहीन का वाली है।" इस वक्त वो हदीसे कुदसी भी मु-तहकि (तहक़ीक़ किया गया) हो जाती है जो मकालेके शुरूमें बयान की गई है।
       ये वो हालते फना है जो औलिया व अब्दाल के हालकी ईन्तेहा है। फिर कभी उसे तकवीने अशयाकी कुव्वत दी जाती है। तमाम अशया अल्लाह के ईज़न (इजाज़त) से पैदा होती है। यानी उसके  लफ़ज़ कुन से पैदा होती है और अल्लाहने अपनी बाज़ कीताबोंमें फ़रमाया है: "अय बनी आदम! मैं अल्लाह हुं, मेरे सिवा कोई मअबूद नहीं। मैं जिस शैअसे कहे देता हुं हो जा, वो हो जाती है। मेरी फ़रमांबरदारी करके और मुज़में फना हो कर तुम भी जिस चीज़ को कहोगे हो जा-वो हो जाएगी।"

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 110,111
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Saturday 25 February 2017

_*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*_

👉🏾गराइबुल क़ुरआन सफा 187 पर एक रिवायत नकल की गई है की जो शख्स ये दुआ रात में 3⃣ मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने "शबे क़द्र" पा लिया। लिहाज़ा हर रात इस दुआ को पढ़ लेना चाहिये।
 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*لَآ اِلٰہَ  اِلَّا اللّٰہُ  الْحَلِیْمُ  الْکَرِیْمُ  ‘  سُبحٰنَ  اللّٰہٖ  رَ بّٖ  اسَّمٰوٰتِ  السَّبْعِ وَرَبِّ  الْعَرْشِ  الْعَظِیْم*

ला-इलाह इल्लल्लाहु अल-ह्-लिमुल-करीम सुब्हान अल्लाहि रब्बी-स्समावाती-अ-स्सबई व-रब्बिल अ'र्शील-अ'ज़िम
👆🏾👆🏾 3⃣ मर्तबा
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*फैजाने नवाफ़िल* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ईशा के बाद दो नफ्ल का षवाब_*

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضي الله تعالي عنه से रिवायत है, जो ईशा के बाद दो रकअत पढ़ेगा और हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद 15 बार क़ुल्हु वल्लाहु अहद पढ़ेगा अल्लाह उसके लिये जन्नत में 2 ऐसे महल तामीर करेगा जिसे अहले जन्नत देखेगा।

*✍🏽दुर्रे मन्सूर, 8/681*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 291*
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Friday 24 February 2017

*मुसाफिर की नमाज़* #01
*بسم الله الرحمن الرحيم*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है*

हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है :
खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्ट नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।
*✍🏽सहीह मुस्लिम 1/231*

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे बी ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह 2/59*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 222*
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*ज़िक्र करनेवाला और सवाल करनेवाला* #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

         हज़रत मोहियुद्दीन अब्दुल कादर जीलानी  رضي الله تعالي عنهने इर्साद फ़रमाया: हुज़ूर नबीए करीम सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम हदीसे कुदसी में फरमाते है: "खुदातआला ने कहा है के जिस शख्स ने मेरे ज़िक्र में मसरूफ़ रेहने की वजहसे मुज़से सवाल न किया, मैं उसे तमाम सवाल करनेवालों से ज़यादा दूँगा।"
      ये इसलिये फ़रमाया गया के जब अल्लाह तआला किसी एहले ईमान मकबूल व बरगुज़ीदा बनाना चाहता है तो उसे मुख़तलिफ़ एहवाल की राह पर चलाता है और किस्म किस्मकी बला और मुसीबत के ज़रिये उसका इम्तेहान लेता है और उसे सरवत व दौलत अता करने के बाद फिर फक्रोफाका में मुब्तेला करदेता है और उसपर रोज़ीकी तमाम राहें बन्द करके ऐसे हालात पैदा कर देता है के वो मख्लूक़ से सवाल करने पर मजबूर हो जाए।
फिर उसे सवाल से मेहफ़ूज़ करके सुन्नत के मुताबिक कसब के लिये मुज़तरिब कर देता है, फिर उस पर कस्बको भी मुश्किल कर देता है। इसके बाद उसे इल्हाम करता है के लोगों से सवाल करे। ईस मकसद के लिये ऐसे अमरे बातिन के साथ हुकम करता है जिसे वो जानता पेहचानता है। ये हुकम बजा लाना उसके लिये इबादत और उसे छोड़ देना गुनाह बन जाता है और ये सब कुछ इस लिये किया जाता है के इसका नफ़स शिकस्ता हो जाए। ये रियाज़तकी एक हालत है।
        इस हालमें इसका सवाल करना अमर (हुकम) और जबर(ताकत) की वजहसे होता है, खुदा के साथ शिर्क के तौर पर नहीं। फिर उसको सवाल से भी मेहफ़ूज़ कर लिया जाता है। और क़र्ज़ मांगनेका हुकम दिया जाता है और ये हुकम भी पेहले की तरह कतई और रेहमती होता है, जिसको छोड़ना नामुमकिन होता है। फिर उसको इससे भी हटा दिया जाता है और वो अपनी तमाम ज़ुरुरतें खुदाहीसे मांगने लगता है। जो उसे अता करदी जाती है। लेकिन अगर वो सवाल करने से एराज़ (बचना) व-इजतेनाब(परहेज़ करना) कर ले और चुप रहे तो उसे नहीं दिया जाता।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 109
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*फैजाने नवाफ़िल* #09
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*_नमाज़े तौबा_*
     हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरे पाक ﷺ फरमाते है : जब कोई बन्दा गुनाह करे फिर वुज़ू करके नमाज़ पढ़े फिर इस्तिग़फ़ार करे, अल्लाह उस के गुनाह बख्श देगा। फिर ये आयत पढ़ी :
     तर्जमा : और वो की जब कोई बे हयाई या अपनी जानो पर ज़ुल्म करे अल्लाह को याद कर के अपने गुनाहो की मुआफ़ी चाहे और गुनाह कौन बख्शे सिवा अल्लाह के ? और अपने किये पर जान बुझ कर अड़ न जाए।
पारह,3 सूरह आले इमरान, 135

*✍🏽तिर्मिज़ी, 1/415, हदिष:406*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 291*
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Thursday 23 February 2017

*शबे जुमुआ़ का दुरुद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ़ (जुमुआ़ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*

*اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمِّیِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِہٖ  وَصَحْبِہٖ  وَسَلِّمْ*

*अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

अगर कोई इस क़दर उची जगह पर नमाज़ पढ़ रहा है कि गुज़रने वाले के आज़ा नमाज़ी के सामने नही हुए तो गुज़रने वाला गुनाहगार नही।

दो शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते है इसका तरीक़ा ये है कि इन में से एक नमाज़ी के सामने पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब इसको आड़ बना कर दूसरा गुज़र जाए। फिर दूसरा पहले की पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब पहला गुज़र जाए फिर वो दूसरा जिधर से आया था उसी तरफ हट जाए।

कोई नमाज़ी के आगे से गुज़रना हःता है तो नमाज़ी को इजाज़त है कि वो उसे गुज़रने से रोके ख्वाह "सुब्हानअल्लाह" कहे या ज़हर (यानी बुलन्द आवाज़ से) किरआत करे या हाथ या सर या आँख के इशारे से मना करे। इससे ज़्यादा की इजाज़त नही। मसलन कपड़ा पकड़ कर झटकना या मारना बल्कि अगर अमले कसीर हो गया तो नमाज़ ही जाती रही।

तस्बीह व इशारा दोनों को बिला ज़रूरत जमा करना मकरूह है।

औरत के सामने से गुज़रे तो औरत तस्फीक़ से मना करे यानी सीधे हाथ की उंगलिया उलटे हाथ की पुश्त पर मारे। अगर मर्द ने तस्फीक़ की और औरत ने तस्बीह कहि तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर खिलाफे सुन्नत हुवा।

तवाफ़ करने वाले को दौराने तवाफ़ नमाज़ी के आगे से गुज़रना जाइज़ है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 217*
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गर होजाये यक़ीन के.....
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*फैजाने नवाफ़िल* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सलातुल हाजात_*
     हज़रते हुजैफा से रिवायत है की जब हुज़ूरे अकरम को कोई अम्रे अहम पेश आता तो नमाज़ पढ़ते।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 2/52, हदिष:1319*

     इस के लिये 2 या 4 रकअत पढ़े। हदीशे पाक में है : पहली रकअत में सूरए फातिहा के बाद आयतुल कुरसी पढ़े और बाक़ी 3 रकअत में कुलहु वल्लाह, और सूरए फलक और सूरए नास एक एक बार पढ़े, तो ये ऐसी है जेसे शबे क़द्र में 4 रकअत पढ़ी।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/34*
   
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन औफि से रिवायत है की हुज़ूर फरमाते है : जिसकी कोई हाजत अल्लाह की तरफ हो या किसी बनी आदम (यानि इंसान) की तरफ तो अच्छी तरह वुज़ू करे फिर 2 रकअत नमाज़ पढ़ कर अल्लाह की सना करे और नबी पर दुरुद भेजे फिर ये पढ़े :
*لٙا اِلٰهٙ اِلّٙا اللّٰهُ الْـحٙلِيْـمُ الْكٙرِيْمُ سُبْـحٙانٙ اللّٰهِ رٙبِّ الْعٙرٍشِ الْعٙظِيْمِ اٙلْحٙمْدُ لِلّٰهِ رٙبِّ العٙاٙلمِيْنٙ اٙسْأٙلُكٙ مُوْجِبٙاتِ رٙحْمٙتِكٙ وٙعٙزٙاىِٔـمٙ مٙغْفِرٙتِكٙ  وٙالْغٙنِيْـمٙةٙ. مِنْ كُلِّ بِرٍّ وّٙالسّٙلٙا مٙةٙ مِنْ كُلِّ اِثْمٍ لٙا تٙدٙعْ لِىْ ذٙنْبًا اِلّٙا غٙفٙرْتٙهُ ولٙا هٙمًّ اِلّٙا فٙرّٙجْتٙـهُ وٙلٙا حٙاجٙةً هِىٙ لٙكٙ رِضًا اِلّٙا قٙضٙيْـتٙهٙا يٙا اٙرْحٙمٙ الرّٙا حِمِيْـنٙ*
*✍🏽सुनन तिर्मिज़ी, 2/21, हदिष:478*

     तर्जमा : अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही जो हलीम व करीम है, पाक है अल्लाह मालिक है अर्शे अज़ीम का, हम्द है अल्लाह के लिये जो रब है तमाम जहा का, में तुझ से तेरी रहमत के असबाब मांगता/मांगती हु और तलब करता/करती हु तेरी बख्शीश के ज़राएअ और हर नेकी से गनीमत और हर गुनाह से सलामती को, मेरे लिये कोई गुनाह बगैर मगफिरत न छोड़ और हर गम को दूर कर दे और जो हाजत तेरी रिज़ा के मुवाफ़िक़ है उसे पूरा कर दे ऐ सब महेरबानो से ज़्यादा महेरबान।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 286*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Wednesday 22 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #155
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②①①_*
     बनी इस्राईल से पूछो हमने कितनी रौशन निशानियाँ उन्हें दीं  (1) और जो अल्लाह की आई हुई नेअमत को बदल दे (2) तो बेशक अल्लाह का अज़ाब सख़्त है.

*तफ़सीर*
     (1) कि उनके नबियों के चमत्कारों को उनकी नबुव्वत की सच्चाई का प्रमाण बनाया. उनके इरशाद और उनकी किताबों को दीने इस्लाम की हक़्क़ानियत और इसके सच्चे होने का गवाह किया.
     (2) अल्लाह की नेअमत से अल्लाह की आयतें मुराद हैं. जो मार्गदर्शन और हिदायत का कारण हैं और उनकी बदौलत गुमराही से छुटकारा मिलता है. उन्हीं में से वो आयतें है जिनमे सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और गुणगान और हुज़ूर की नबुव्वत व रिसालत का बयान है. यहूदियों और ईयाईयों ने इस बयान में जो तबदीलियाँ की हैं वो इस नेअमत की तबदीली है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुड कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की तरफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये हि पहला शख्स आड भी बन गया।

नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।

बाक़ी कल अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 216*
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*फैजाने नवाफ़िल* #07

*_तहिय्यातुल वुज़ू_*
   
     वुज़ू के बाद आज़ा खुश्क होने से पहले 2 रकअत नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, 2/563*

     हज़रते उक़बा बिन आमिर رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की नबीये करीम ﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स वुज़ू करे और अच्छा वुज़ू करे और ज़ाहिर व बातिन के साथ मुतवज्जेह हो कर 2 रकअत पढ़े, उस के लिये जन्नत वाजिब हो जाती है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 144/234*

     गुस्ल के बाद भी 2 रकअत नमाज़ मुस्तहब है। वुज़ू के बाद फ़र्ज़ वगैरा पढ़े तो क़ाइम मक़ाम तहिय्यातुल वुज़ू के हो जाएंगे।
*✍🏽रद्दुल मोहतार, 2/523*

*नोट :* मकरूह वक़्त में तहिय्यातुल वुज़ू और गुस्ल के बाद वाली 2 रकअत नही पढ़ सकते।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 287*
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Tuesday 21 February 2017

*फैजाने नवाफ़िल* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सलातुल अव्वाबीन  की फ़ज़ीलत_*
     हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया : जो मगरिब के बाद 6 रकअत इस तरह अदा करे की इन के दरमियान कोई बुरी बात न कहे तो ये 6 रकअत 12 साल की इबादत के बराबर होगी।
*✍🏽सुनन इब्ने माजा, 2/45, हदिष:1167*

*_नमाज़े अव्वाबीन का तरीक़ा_*
     मगरिब की 3 रकअत फ़र्ज़ पढ़ने के बाद 6 रकअत एक ही निय्यत से पढ़िये, हर 2 रकअत पर क़ायदा कीजिये और इस में अत्तहिय्यात, दुरुदे इब्राहिम और दुआ पढ़िये, पहली, तीसरी और पाचवी रकअत की इब्तिदा में सना, अऊज़ो और बिस्मिलाह भी पढ़िये। छटी रकअत के क़ायदे के बाद सलाम फेर दीजिये। पहली 2 रकअत सुन्नते मुअक्कदा हुई और बाक़ी 4 नवाफ़िल। ये है अव्वाबीन यानी तौबा करने वालो की नमाज़।
*✍🏽अल वज़िफतुल करीमा, 24*
   
     चाहे तो 2-2 रकअत करके भी पढ़ सकते है। बहारे शरीअत में है बादे मगरिब 6 रकअत मुस्तहब है इन को सलातुल अव्वाबीन कहते है, ख्वाह एक सलाम से सब पढ़े या 2 सलाम से या 3 सलाम से, और 3 सलाम से यानी हर 2 रकअत पर सलाम फेरना अफज़ल है।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, 2/547*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 284*
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Monday 20 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #153
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②ⓞ⑧_*
     ऐ ईमान वालो इस्लाम में पूरे दाख़िल हो   (23) और शैतान के क़दमों पर न चलो (24) बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है.
 
*तफ़सीर*
     (23) किताब वालों में से अब्दुल्लाह बिन सलाम और उनके असहाब यानी साथी हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान लाने के बाद शरीअते मूसवी के कुछ अहकाम पर क़ायम रहे, सनीचर का आदर करते, उस दिन शिकार से अलग रहना अनिवार्य जानते, और ऊंट के दूध और गोश्त से परहेज़ करते, और यह ख़याल करते कि ये चीज़ें इस्लाम में तो वैध यानी जायज़ हैं, इनका करना ज़रूरी नहीं, और तौरात में इससे परहेज़ अनिवार्य बताया गया है, तो उनके छोड़ने में इस्लाम की मुख़ालिफ़त भी नहीं है. और हज़रत मूसा की शरीअत पर अमल भी होता है. उसपर यह आयत उतरी और इरशाद फ़रमाया गया कि इस्लाम के आदेश का पूरा पालन करो यानी तौरात के आदेश स्थगित हो गए, अब उनकी पाबन्दी न करो. (ख़ाजिन)
     (24) उसके उकसाने और बहकाने में न आओ.
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया :
अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।
*✍🏽सुनन इब्ने मजह 1/506*

हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।
*✍🏽फतवा रज़विय्या 7/254*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 214*
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*फैजाने नवाफ़िल* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*स्लातुत्तस्बिह*
     इस नमाज़ का बे इंतिहा षवाब है, हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने अपने चचाजान हज़रते अब्बास رضي الله تعالي عنه से फ़रमाया की ऐ मेरे चचा ! अगर हो सके तो स्लातुत्तस्बिह हर रोज़ एक बार पढ़िये और अगर रोज़ाना न हो सके तो हर जुमुआ को एक बार पढ़ लीजिये और ये भी न हो सके तो हर महीने में एक बार और ये भी न हो सके तो साल में एक बार और ये भी न हो सके तो उम्र में एक बार।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 2/44, हदिष:1297*

*_स्लातुत्तस्बिह पढ़ने का तरीक़ा_*
     इस नमाज़ की तरकीब ये है की 4 रकअत नमाज़ पढ़े, तकबीरे तहरिमा के बाद सना पठे फिर 15 बार ये तस्बीह पढ़े,
*سُبٙـحٰنٙ اللّٰهِ وٙالْـحٙـمْـدُ لِلّٰهِ وٙلٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا اللّٰهُ وٙاللّٰهُاٙكْـبٙـر*
फिर अऊज़ु और बिस्मिल्लाह और सूरए फातिहा और कोई सूरत पढ़ कर ये तस्बीह 10 बार पढ़े
     रूकू में सुब्हान रब्बियल अज़ीम 3 बार पढ़ के इस तस्बीह को 10 बार पढ़े।
     रूकू से उठ कर समीअल्लाहु-लीमन-हामिदह और अल्लाहुम्म-रब्बना-व-लकलहमद के बाद 10 बार ये तस्बीह पढ़े।
     फिर सजदे में जा कर सुब्हान रब्बियल अ'अला 3 बार पढ़ कर ये तस्बीह 10 बार पढ़े।
     फिर सजदे के दरमियान 10 बार पढ़े, इसी तरह दूसरे सजदे में भी 10 बार पढ़े।
     यु ही हर रकअत में 75 मर्तबा तस्बीह पढ़ी जाएगी और 4 रकअत में तस्बीह की गिनती 300 बार होगा।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/32*

*नॉट :* तस्बिह उंगलियो पर न गिने बल्कि हो सके तो दिल में शुमार करे या उंगलिया दबा कर गिने।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 279*
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Sunday 19 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #152
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②ⓞ⑦_*
     और  कोई आदमी अपनी जान बेचता है अल्लाह की मर्ज़ी चाहने में और अल्लाह बन्दों पर मेहरबान है.

*तफ़सीर*
     हज़रत सुहैब इब्ने सनान रूमी मक्कए मुकर्रमा से हिजरत करके हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में मदीनए तैय्यिबह की तरफ़ रवाना हुए. कुरैश के मुश्रिकों की एक जमाअत ने आपका पीछा किया तो आप सवारी से उतरे और तरकश से तीर निकाल कर फ़रमाने लगे कि ऐ क़ुरैश तुम में से कोई मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि मैं तीर मारते मारते तमाम तरकश ख़ाली न करदूं और फिर जब तक तलवार मेरे हाथ में रहे उससे मारूं. उस वक़्त तक तुम्हारी जमाअत का खेत हो जाएगा. अगर तुम मेरा माल चाहो जो मक्कए मुकर्रमा में ज़मीन के अन्दर गड़ा है. तो मैं तुम्हें उसका पता बता दूँ, तुम मुझसे मत उलझो. वो इसपर राज़ी हो गए. और आपने अपने तमाम माल का पता बता दिया. जब हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो यह आयत उतरी. हुज़ूर ने तिलावत फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया कि तुम्हारी यह जाँफ़रोशी बड़ी नफ़े वाली तिजारत है.
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*अंगूठहे चूमने का मसअला*
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फरमाने नबवी ﷺ : जिसने अज़ान में मेरा नाम सुना और अपने दोनों अंगूठो के नाखुनो को चूम कर उन्हें दोनों आँखों पर लगाया तो वो कभी अंधा नही होगा।

*✍🏽रुहुल बयान, 7/229*
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*फैजाने नवाफ़िल* #04
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*नमाज़े चाश्त की फ़ज़ीलत*

     हज़रते अबू हुरैरा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरे पाक ﷺ ने फ़रमाया : जो चाश्त की 2 रकअत पाबंदी से अदा करता रहे उसके गुनाह मुआफ़ कर दिये जाते है अगर्चे समुन्दर की झाग के बराबर हो।
*✍🏽सुनन इब्ने माजा, 2/153, हदिष:1382*

*_नमाज़े चाश्त का वक़्त_*
     इस का वक़्त आफताब बुलंद होने से ज़वाल यानी निस्फुन्न्हारे शरई तक है, और बेहतर ये है की चौथाई दिन चढ़े पढ़े।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/25*

     नमाज़े इशराक़ के फौरन बाद भी चाहे तो नमाज़े चाश्त पढ़ सकते है।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 278*
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*सज्दए शुक्र का बयान*
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औलाद पैदा हुई या माल पाया या गुम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।
*✍🏽आलमगिरी 1/136*

इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम 214*
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Saturday 18 February 2017

*सज्दए तिलावत का तरीक़ा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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खड़ा हो कर अल्लाहुअकबर कहता हुवा सज्दे में जाए और कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बिअल अअला कहे फिर अल्लाहुअकबर कहता हुवा खड़ा हो जाए। पहले पीछे दोनों बार अल्लाहुअकबर कहना सुन्नत है और खड़े हो कर सज्दे में जाना और सज्दे के बाद खड़ा होना ये दोनों क़याम मुस्तहब है।
*✍🏽आलमगिरी 1/135*

सज्दए तिलावत के लिये अल्लाहुअकबर कहते वक़्त न हाथ उठाना है न इसमें तशह्हुद है न सलाम है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.213*
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*फैजाने नवाफ़िल* #03
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*_नमाज़े इशराक़_*
     फरमाने मुस्तफा ﷺ : जो नमाज़े फज्र बा जमाअत अदा करके ज़िकरुल्लाह करता रहे यहाँ तक की आफताब बुलंद हो गया फिर 2 रकअत पढ़ी तो उसे पुरे हज व उम्रा का षवाब मिलेगा।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 2/100*

     फरमाने मुस्तफा ﷺ : जो शख्स नमाज़े फज्र से फारिग होने के बाद अपने मुसल्ले में (यानि जहा नमाज़ पढ़ी वही) बेठा रहा हत्ता की इशराक़ के नफ्ल पढ़ ले सिर्फ खैर ही बोले तो उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर के झाग से भी ज़्यादा हो।
*✍🏽अबी दाऊद, 2/41*
     हदिष के इस हिस्से "अपने मुसल्ले में बेठा रहे" की वजाहत करते हुए हज़रते मुल्ला अली कारी अलैरहमा फरमाते है : मस्जिद या घर में इस हाल में रहे की ज़िक्र या गौरो फ़िक्र करने या इल्मे दिन सिखने सिखाने या बैतुल्लाह के तवाफ़ में मशगूल रहे, नीज़ "सिर्फ खैर ही बोले" के बारे में फरमाते है : फज्र और इशराक़ के दरमियान खैर यानी भलाई के सिवा कोई गुफ्तगू न करे क्यू की ये वो बात है जिस पर षवाब मुरत्तब होता है।
*✍🏽मिरक़ात, 3/396*

*नमाज़े इशराक़ का वक़्त :* सूरज तुलुअ होने के कम अज़ कम 20 या 25 मिनट बाद से ले कर ज़हवाए कुब्रा तक नमाज़े इशराक़ का वक़्त रहता है।
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 277*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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Friday 17 February 2017

*दौराने नमाज़ दूसरे से आयते सज्दा सुनली तो* ?
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

रमज़ानुल मुबारक में तरावीह या शबीना में अगर्चे शरीक न हो बेशक अपनी ही अलग नमाज़ पढ़ रहे हो या नमाज़ में भी न हो तो आयते सज्दा सुन लेने से आप पर भी सज्दए तिलावत वाजिब हो जाएगा।

काफिर या ना बालिग से आयते सज्दा सुनी तब भी सज्दए तिलावत वाजिब हो गया।

नमाज़ में आयते सज्दा पढ़ी तो उसका सज्दा नमाज़ ही में वाजिब है बैरूने नमाज़ नही हो सकता और क़सदन न किया तो गुनाहगार हुवा तौबा लाज़िम है।

अलबत्ता बालिग़ होने के बाद बैरूने नमाज़ जितनी बार भी आयाते सज्दा पढा या सुन कर सज्दा वाजिब हुवा और अभी तक सज्दा न किया हो उन का गलबए ज़न के एतिबार से हिसाब लगा कर उतनी बार बा वुज़ू सज्दए तिलावत करना लाज़िम है।

*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.213
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*फैजाने नवाफ़िल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सलातुललैल_*
     रात में बाद नमाज़े ईशा जो नवाफ़िल पढ़े जाए उन को स्लातुललैल कहते है और रात के नवाफ़िल दिन के नवाफ़िल से अफज़ल है की सहीह मुस्लिम में है : हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : फर्ज़ो के बाद अफज़ल नमाज़ रात की नमाज़ है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 591, हदिष:1163*

*_तहज्जुद और रात में नमाज़ पढ़ने का षवाब_*
     अल्लाह पारह 21 सुरतुस्सज्दा आयत 16, 17 में इरशाद फ़रमाता है :
     इन की करवटे जुदा होती है ख्वाब गाहों से और अपने रब को पुकारते है डरते और उम्मीद करते और हमारे दिये हुए से कुछ खैरात करते है तो किसी जी को नही मालुम जो आँख की ठंडक इन के लिये छुपा रखी है सिला इन के कामो का।
     सलातुल्लैल की एक किस्म तहज्जुद है की ईशा के बाद रात में सो कर उठे और नवाफ़िल पढ़े, सोने से क़ब्ल जो कुछ पढ़े वो तहज्जुद नही। कम से कम तहज्जुद की दो रकअते है और हुज़ूर से 8 तक साबित है।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/26*
     इसमें किराअत का इख़्तियार है की जो चाहे पढ़े, बेहतर ये है की जितना क़ुरआन याद है वो तमाम पढ़ लीजिये वरना ये भी हो सकता है की हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद 3 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये की इस तरह हर रकअत में क़ुरआने करीम खत्म करने का षवाब मिलेगा, ऐसा करना बेहतर है, बहर हाल सूरए फातिहा के बाद कोई भी सूरत पढ़ सकते है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 7/447*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 270*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
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Thursday 16 February 2017

*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
*✍🏽मूलख्खसन फतावा रज़विय्या* 8/223

आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार* 2/584
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.212
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*फैजाने नवाफ़िल* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अल्लाह का प्यारा बनने का नुस्खा_*
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से मरवी है, हुज़ूरﷺ फरमाते है की अल्लाह ने फ़रमाया : जो मेरे किसी वली से दुश्मनी करे, उसे में ने लड़ाई का एलान दे दिया और मेरा बन्दा जिन चीज़ों के ज़रिए मेरा कुर्ब चाहता है उन में मुझे सब से ज़्यादा फराइज़ महबूब है, और नवाफ़िल के ज़रिए कुर्ब हासिल करता है यहाँ तक की में उसे अपना महबूब बना लेता हु अगर वो मुझ से सुवाल करे तो उसे ज़रूर दूंगा और पनाह मांगे तो उसे ज़रूर मनाही दूंगा।

*✍🏽सहीह बुखारी, 4/248, हदिष:6502*
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Wednesday 15 February 2017

*फरमाने मुस्तफा ﷺ*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

जो किसी मुसलमान के खिलाफ ऐसी बात की गवाही दे जो उसमे न हो तो उसे चाहिए के अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।

*✍🏽मौसूअता इब्ने अबिल लदन्या, 4/398, हदिष, 123*
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*नेअमतों के ज़रीये इब्तेला (आज़माइश)* #3
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      उनका ये आलम इसी वजहसे भी है के वो दुनिया की हकीकतको नहीं समज़ते। दुनियाकी हकीकत ये है के ये बलाओं का घर है जो तल्खीयों, जेहालत, तकलीफों और कदुरतों की जगा है। दुनिया की असल मसाइब व बलीयात है और नेअमतें उसकी अस्लके खिलाफ है।
       चुनान्चे दुनिया हनज़ल (कड़वे फल) की तरह है। इसका फल तो तल्ख है मगर असर अच्छा है। कोई आदमी इसकी शीरीनीको उस वक्त तक नहीं पा सकता जब तक इस तल्खाबे को नोशेजान न कर ले। कोई शख्स शहेद को हरगिज़ नहीं पा सकता जब तक बलाओं का ज़ेहराब न पिये। चुनान्चे जिस ने दुनिया की बलाओं पर सब्र किया, उसे दुनियाकी नेअमतें नसीब हुई।
      चुनान्चे जब तक मज़दूर की पेशानी अर्कआलूद न हो, उसका जिस्म थक न जाए, रूह गमगीन और दिल तंग न हो, उसकी कुव्वत ज़ाइल, अपने जैसी मखलूक की खिदमत करने पर नफ़स ज़लील और नफसानियत शिकस्ता न हो, उसे मजदूरी नहीं दी जाती।
       जब मज़दूर इन सब कड़वाहटों को पिले, यही तलखीयां उसके लिये अच्छे खानो, मेवों, लिबासो और राहतों की नवीद(खुश खबरी) लाती है। अगरचे कम ही हों।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 105
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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

आयते सज्दा पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब हो जाता है। पढने में ये शर्त है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उज़्र न हो तो खुद सुन सके, सुनने वाले के लिये ये ज़रूरी नही कि बिल क़स्द सुनी हो, बिला क़स्द सुनने से भी सज्दा वाजिब हो जाता है।

किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पड़ने और सुनने वाले पर सज्दा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने ये समझा हो या न समझा हो कि आयते सज्दा का तर्जमा है। अलबत्ता ये ज़रूरी है कि उसे न मालुम हो तो बता दिया गया हो की ये आयते सज्दा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो तो इसकी ज़रूरत नहीं की सुनने वाले को आयते सज्दा होना बताया गया हो।
*✍🏽आलमगिरी* 1/133
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.212
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Tuesday 14 February 2017

*हुज़ूरे अक़दस ﷺ के नामे पाक चूमने वाले की बख्शीश*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

बनी इस्राइल में मस्तह नामी एक शख्स 200 बरस तक फिस्क़ व फुजुर में मुब्तला रहा और बादे इंतिक़ाल उस की मगफिरत फरमा दी गई, इस वजह से की उस ने तौरेत शरीफ में नाम पाक हुज़ूरे अक़दस ﷺ को देख कर चूम लिया था।

*✍🏽हिल्यातूल औलिया, 4/45, हदिष, 4695*
*✍🏽मलफुज़ाते आला हज़रत, 429*
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*सज्दए तिलावत और शैतान की शामत*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अल्लाह के महबूबﷺ ने फ़रमाया : जब जब आदमी आयते सज्दा पढ़ कर सज्दा करता है, शैतान हट जाता है और रो कर कहता है, हाय मेरी बर्बादी !
     इब्ने आदम को सज्दे का हुक्म हुवा उसने सज्दा किया उसके लिये जन्नत है और मुझे हुक्म हुवा मेने इन्कार किया मेरे लिये दोज़ख है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम 1/61*

_*इन्शा अल्लाह हर मुराद पूरी हो*_
     जिस मक़सद के लिये एक मजलिस में सज्दे की सब (यानी 14) आयते पढ़ कर सज्दे करे अल्लाह उसका मक़सद पूरा फ़रमा देगा। ख्वाह एक एक आयत पढ़ कर उसका सज्दा करता जाए या सब पढ़ कर आखिर में 14 सज्दा करले।
*✍🏽गुन्या, दुर्रेमुखतार*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.211*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #99
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا مُؤٙخِّرُ*
जो कोई इस नाम को किसी नमाज़ के बाद 100 बार पढ़ेगा ان شاء الله उसका दिल अल्लाह की महब्बत और उसकी याद में रहे।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
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*नेअमतों के ज़रीये इब्तेला (आज़माइश)* #2
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

           अगर वो माल, लौंडियों, गुलामों के साथ बासरवत होते है और दुश्मनों से मामून व मेहफ़ूज़ रेहते है। और नेअमतोंकी हालतमें इस तरह मगन है के मसाइल-व-आलमको मेहसूस ही नहीं करते या हालते बला में इस तरह मायूस है के वजूदे नेअमतको मेहसूस नहीं करते तो ये सूरतें ख़ुदावन्द करीमसे बेखबरी और दुनिया की महोब्बत की दलील है।
          अगर वो ये जानते के अल्लाह तआला जिस चिज़का इरादा करता है, उसे कर देता है और एक हालसे दूसरे हालमें तबदील करना या एक जगा से दूसरी जगा ले जाना, तवंगरी और नकबत, बुलन्दी और पस्ती, इज़्ज़त-व-ज़िल्लत, ज़िन्दगी और मौत और तकदीम-व-ताखीर सब कुछ उसीके हाथमें है, तो मौजूदा नेअमतों पर कभी इत्मेनान और तकब्बुर न करते और मसाइब और बलाओं की हालत में कभी खुशहाली और आरामसे मायूस न होते।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 104
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
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Monday 13 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #148
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②ⓞⓞ_*
     फिर जब अपने हज के काम पूरे कर चुको  (13) तो अल्लाह का ज़िक्र करो जैसे अपने बाप दादा का ज़िक्र करते थे  (14) बल्कि उससे ज़्यादा और कोई आदमी यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में दे, और आख़िरत में उसका  कुछ हिस्सा नहीं

*तफ़सीर*
     (13) हज के तरीक़े का संक्षिप्त बयान यह है कि हाजी आठ ज़िल्हज की सुबह को मक्कए मुकर्रमा से मिना की तरफ़ रवाना हो. वहाँ अरफ़ा यानी नवीं ज़िल्हज की फ़ज़्र तक ठहरे. उसी रोज़ मिना से अरफ़ात आए. ज़वाल के बाद इमाम दो ख़ुत्बे पढ़े. यहाँ हाजी ज़ोहर और असर की नमाज़ इमाम के साथ ज़ोहर के वक़्त में जमा करके पढ़े. इन दोनों नमाज़ों के बीच ज़ोहर की सुन्नत के सिवा कोई नफ़्ल न पढ़ी जाए. इस जमा के लिये इमाम आज़म ज़रूरी है. अगर इमाम आज़म न हो या गुमराह और बदमज़हब हो तो हर एक नमाज़ अलग अलग अपने अपने वक़्त में पढ़ी जाए. और अरफ़ात में सूर्यास्त तक ठहरे.
     फिर मुज़्दलिफ़ा की तरफ़ लौटे और जबले क़ज़ह के क़रीब उतरे. मुज़्दलिफ़ा में मग़रिब और इशा की नमाज़ें जमा करके इशा के वक़्त पढ़े और फ़ज्र की नमाज़ ख़ूब अव्वल वक़्त अंधेरे में पढ़े. मुहस्सिर घाटी के सिवा तमाम मुज़्दलिफ़ा और बत्न अरना के सिवा तमाम अरफ़ात ठहरने या वक़ूफ़ की जगह है.
     जब सुबह ख़ूब रौशन हो तो क़ुरबानी के दिन यानी दस ज़िल्हज को मिना की तरफ़ आए और वादी के बीच से बड़े शैतान को सात बार कंकरियाँ मारे. फिर अगर चाहे क़ुरबानी के दिनों मे से किसी दिन तवाफ़े ज़ियारत करे. फिर मिना आकर तीन रोज़ स्थाई रहे और ग्यारहवीं ज़िल्हज के ज़वाल के बाद तीनों जमरात की रमी करे यानी तीनों शैतानों को कंकरी मारे. उस जमरे से शुरू करे जो मस्जिद के क़रीब है, फिर जो उसके बाद है, फिर जमरए अक़बा, हर एक को सात सात कंकरियाँ  मारे, फिर अगले रोज़ ऐसा ही करे, फिर अगले रोज़ ऐसा ही.
     फिर मक्कए मुकर्रमा की तरफ़ चला आए. (तफ़सील फ़िक़ह की किताबों में मौजूद है)
     (14) जाहिलियत के दिनों में अरब हज के बाद काबे के क़रीब अपने बाप दादा की बड़ाई बयान करते थे. इस्लाम में बताया गया कि यह शोहरत और दिखावे की बेकार बातें हैं. इसकी जगह पूरे ज़ौक़ शौक़ और एकग्रता से अल्लाह का ज़िक्र करो. इस आयत से बलन्द आवाज़ में ज़िक्र और सामूहिक ज़िक्र साबित होता है.
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*सज्दए सहव का तरीक़ा*
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अत्तहिय्यात पढ़ कर बल्कि अफज़ल ये है की दुरुद शरीफ भी पढ़ लीजिये, सीधी तरफ सलाम फेर कर दो सज्दे कीजिये, फिर तशह्हुद, दुरुद शरीफ और दुआ पढ़ कर सलाम फेर दीजिये।

*_सज्दए सहव करना भूल जाए तो..?_*
     सज्दए सहव करना था और भूल कर सलाम फेरा तो जब तक मस्जिद से बहार न हुवा सज्दा करले।
     मैदान में हो तो जब तक सफों से मुतजाविज़ न हो या आगे को सज्दे की जगह से न गुज़रा, सज्दा करले,
     जो चीज़ मानए बिना है मसलन कलाम वग़ैरा मुनाफिये नमाज़ अगर सलाम के बाद पाई गई तो अब सज्दए सहव नही हो सकता।
*✍🏽दुर्रेमुखतार*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.211
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #98
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا صٙـبُـوْرُ*
जिस को दर्द या रन्ज या मुसीबत पेश आए 33 बार पढ़े ان شاء الله सुकून हासिल होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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Sunday 12 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #147
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨⑨_*
     फिर बात यह है कि ऐ कुरैशियो तुम भी वहीं से पलटो जहाँ  से लोग पलटते हैं और अल्लाह से माफ़ी मांगो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.

*तफ़सीर*
     क़ुरैश मुज़्दलिफ़ा में ठहरते थे और सब लोगों के साथ अरफ़ात में न ठहरते. जब लोग अरफ़ात से पलटते तो ये मुज़्दलिफ़ा से पलटते और इसमें अपनी बड़ाई समझते. इस आयत में उन्हें हुक्म दिया गया कि सब के साथ अरफ़ात में ठहरें और एक साथ पलटें. यही हज़रत इब्राहीम और इस्माईल अलैहुमस्सलाम की सुन्नत है.
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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_*सजदए सहव*_ #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*निहायत अहम मसअला*_
कसीर इस्लामी भाई ना वाकिफिय्यत की बिना पर अपनी नमाज़ ज़ाए कर बैठते है लिहाज़ा ये मसअला खूब तवज्जोह से पढ़िये।

मसबुक (यानी जो एक या कई रकअते छूट जाने के बाद नमाज़ में शामिल हुवा) को इमाम के साथ सलाम फेरना जाइज़ नहीं, अगर क़सदन फिरेगा तो नमाज़ जाती रहेगी और अगर भूल कर इमाम के साथ बिला वक़्फ़ा फौरन सलाम फेरा तो हरज नहीं लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है और अगर भूल कर सलाम इमाम के कुछ भी बाद फेरा तो खड़ा हो जाए अपनी नमाज़ पूरी करके सज्दए सहव करे।

मसबुक इमाम के साथ सज्दए सहव करे अगर्चे उसके शरीक होने से पहले इमाम को सहव हुवा और अगर इमाम के साथ सज्दए सहव न किया और अपनी बाक़ी नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया तो आखिर में सज्दए सहव करे और इस मसबुक से अपनी नमाज़ में भी सहव हुवा तो आखिर में येही सज्दे इस इमाम वाले सहव के लिये भी काफी है।

क़ायदाए ऊला में तशह्हुद के बाद इतना पढ़ा *अल्लाहुम्म सल्ली अला मुहम्मदीन* तो सज्दए सहव वाजिब है।
इस की वजह ये नहीं कि दुरुद शरीफ पढ़ा बल्कि उस की वजह ये है कि तीसरी रकअत के क़याम में ताख़ीर हुई। लिहाज़ा अगर इतनी देर खामोश रहा जब भी सज्दए सहव वाजिब है।

किसी कायदे में तशह्हुद में कुछ रह गया तो सज्दए सहव वाजिब है नमाज़ फ़र्ज़ हो या नफ्ल।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.209*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*फरिश्तों की तरह दुआ*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

फरमाने मुस्तफा : जब बीमार के पास जाओ, उस से अपने लिये दुआ चाहो की उस की दुआ मिस्ले दुआए मलाइका है।

*✍🏽सुनने इब्ने माजह, 2/191, हदिष, 1441*
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Saturday 11 February 2017

_*सजदए सहव*_ #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

नमाज़ में अगर्चे 10 वाजिब तर्क हुए हो, सहव के दो ही सज्दे सब के लिये काफी है।

रूकू के बाद सीधा खड़ा होना या दो सजदों के दरमियान एक बार *सुब्हान अल्लाह* कहने की क़िक़दार सीधा बेठना भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

क़ुनूत या तकबीरे क़ुनूत भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

किराअत वग़ैरा किसी मौक़ा पर सोचने में *3 बार सुब्हान अल्लाह* कहने का वक़्फ़ा गुज़र गया तब सज्दए सहव वाजिब हो गया।

सज्दए सहव के बाद भी अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब है।

इमाम से सहव हुवा और सज्दए सहव किया तो मुक्तदि पर भी सज्दा वाजिब है।

अगर मुक्तदि से ब हालते इक़्तिदा सहव वाके हुवा तो सज्दए सहव वाजिब नहीं।
और नमाज़ लौटने की भी हाजत नहीं।

बाक़ी कल की पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.208*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #96
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا وٙارِثُ*
जो कोई इसका विर्द करेगा ان شاء الله उसकी उम्र दराज़ होगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
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*नेअमतों के ज़रीये इब्तेला (आज़माइश)* #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

                हज़रत मोहियुद्दीन अब्दुल कादर जीलानी  رضي الله تعالي عنهने इर्साद फ़रमाया : जान लो के लोग दो किस्मके होते है, एक वो जिन्हें नेअमतें अता की गई है। दूसरे वो जिन्हें खुदा हुकमसे मसाइब में मुब्तेला किया गया है।
           लेकिन जिन लोगों  पर नेअमतों की अरज़ानी होती है वो गुनाह और कदूरत से ख़ाली नही होते और वो इन नेअमतों से बहोत आसाइश की हालत में होते है के यकायक तकदीर खुदावन्दी उन पर किस्म किस्म की मुसीबतें, बालाएं और इमराज़ में से ऐसी चिजोको ले आती है जिसकी वज़हसे तकद्दूर(परेशानी) का तसल्लुत(कबज़ा) हो जाता है और उनके जानो माल और एहलो अयाल परेशानियों में मुब्तेला हो जाते है। इसकी वजहसे उनकी ज़िन्दगी इस दरजह बेकैफ हो जाती है, गोया उन्हेँ कभी नेअमतें मिली ही न थी। फिर वो नेअमतों को और उनकी हलावतों(मिठास) को फरामोश कर देते है।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 104
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Friday 10 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #145
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨⑦_*
     हज के कई महीने हैं जाने हुए  (1) तो जो उनमें हज की नियत करे  (2) तो न औरतों के सामने सोहबत (संभोग) का तज़किरा (चर्चा) हो न कोई गुनाह न किसी से झगड़ा  (3) हज के वक़्त तक और तुम जो भलाई करो अल्लाह उसे जानता है (4) और तोशा परहेज़गारी है (5) और मुझसे डरते रहो  ऐ अक़्ल वालो (6)

*तफ़सीर*
     (1) शव्वाल, ज़िल्काद और दस तारीख़े ज़िल्हज की, हज के काम इन्हीं दिनों में दुरूस्त हैं, अगर किसी ने इन दिनों से पहले हज का इहराम बाँधा तो जायज़ है लेकिन कराहत के साथ.
     (2) यानी हज को अपने ऊपर लाज़िम व वाजिब करे इहराम बाँधकर, या तलबियह कहकर, या क़ुरबानी का जानवर चलाकर. उसपर ये चीज़ें लाज़िम हैं, जिनका आगे ज़िक्र फ़रमाया जाता है.
     (3) “रिफ़स” सहवास या औरतों के सामने हमबिस्तरी का ज़िक्र या गन्दी और अश्लील बातें करना है. निकाह इसमें दाख़िल नहीं. इहराम वाले मर्द और इहराम वाली औरत का निकाह जायज़ है अलबत्ता सहवास यानी हमबिस्तरी जायज़ नहीं.
     “फ़ुसूक़” से गुनाह और बुराईयाँ और “जिदाल” से झगड़ा मुराद है, चाहे वह अपने दोस्तों या ख़ादिमों के साथ हो या ग़ैरों के साथ.
     (4) बुराइयों या बुरे कामों से मना करने के बाद नेकियों और पुण्य की तरफ़ बुलाया कि बजाय गुनाह के तक़वा और बजाय झगड़े के अच्छे आचरण और सदव्यवहार अपनाओ.
     (5) कुछ यमन के लोग हज के लिये बेसामानी के साथ रवाना होते थे और अपने आपको मुतवक्किल कहते थे और मक्कए मुकर्रमा पहुंचकर सवाल शुरू करते और कभी दूसरे का माल छीनते या अमानत में ख़यानत करते, उनके बारे में यह आयत उतरी और हुक्म हुआ कि तोशा लेकर चलो, औरों पर बोझ न डालों, सवाल न करो, कि बेहतर तोशा परहेज़गारी है.
     एक क़ौल यह है कि तक़वा का तोशा साथ लो जिस तरह दुनियावी सफ़र के लिये तोशा ज़रूरी है, ऐसे ही आख़िरत के सफ़र के लिये परहेज़गारी का तोशा लाज़िम है.
     (6) यानी अक़्ल का तक़ाज़ा अल्लाह का डर है, जो अल्लाह से न डरे वह बेअक़्लों की तरह है.
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #23
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #08
*_नौफिल की लाश_*
     नौफिल गुस्से में बिफरा हुवा मैदान में निकला और पुकारने लगा की मेरे मुकाबले के लिये कौन आता है ? हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वामرضي الله تعالي عنه उस पर बिजली की तरह झपटे और ऐसी तलवार मारी की वो दो तुकड़े हो गया और तलवार ज़ीन को काटती हुई घोड़े की कमर तक पहुच गई, लोगो ने कहा की ऐ ज़ुबैर ! तुम्हारी तलवार की तो मिषाल नही मिल सकती। आप ने फ़रमाया की तलवार क्या चीज़ है ? कलाई में दम खम और ज़र्ब में कमाल चाहिए।
     हबीरा और जरार भी बड़े तन तने से आगे बढ़े मगर जब ज़ुल्फ़ीक़ार का वार देखा तो लरज़ा बर अंदाम हो कर फिरार हो गए। कुफ्फार के बाक़ी शह सुवार भी जो खन्दक को पार कर के आ गए थे वो सब भी भाग खड़े हुए और अबू जहल का बेटा इकराम तो इस क़दर बद हवास हो गया की अपना नेजा फेक कर भागा और खन्दक के पार जा कर उस को क़रार आया।

*_हज़रते ज़ुबैर को खिताब मिला_*
     हुज़ूरﷺ ने जंगे खन्दक के मौके पर जब की कुफ्फार मदीने का मुहासरा किये हुए थे और किसी के लिये शहर से बाहर निकलना दुश्वार था, तिन मर्तबा इरशाद फ़रमाया की कौन है जो क़ौमे कुफ्फार की खबर लाए। तीनो बार हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه ने जो हुज़ूरﷺ की फूफी हज़रते स्फिय्याرضي الله تعالي عنها के फ़रज़न्द है ये कहा की "या रसूलुल्लाहﷺ ! में खबर लाऊंगा।" हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه की इस जा निषारि से खुश हो कर हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया की : हर नबी के लिये हवारी (मददगारे ख़ास) होते है और मेरा हवारी ज़ुबेर है।
     इसी तरह हज़रते ज़ुबेरرضي الله تعالي عنه को बारगाहे रिसालत से हवारी का खिताब मिला जो किसी दूसरे सहाबी को नही मिला।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 338*
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*जुम्मा को रुहो का अपने घर आना*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हजरत शाह अब्दुल हक मुहद्दिस (रहमतुल्लाह अलैह) नक्ल करते है की:-
"बाज रिवायतो मे आया है की मय्यत की रुह सबे जुम्मा को अपने घर आती है और देखती है की उसकी तरफ से कोई सदका करता है या नही??
*✍🏽अशहतुल लमआत शरहे मिश्कात बाब : किताबुल जनैज जियारते कुबुर जिल्द-2, सफा-924-925*
*✍🏽फत्वा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652*

     मोमीन की रुह हर सबे जुम्मा, ईद के दिन, आशुरह के दिन, और शबे बरात, अपने घर आकर बाहर खड़ी होती है और हर रुह गमनाक बुलन्द अवाज से निदा करती है की ऐ मेरे घर वालो ऐ मेरे औलाद ऐ मेरे रिश्तेदारो सदका करके हम पे मेहरबानी करो।
*✍🏽कशफुल गैत बाब : अहकामे दुआ सफा-66*
*✍🏽फत्वा रिजवीया जिल्द-9, सफा-652*

     कम से कम जुम्मा के दिन अपने घर इन्तेकाल कर चुके घरवालो को इसाले सवाब जरुर कर दिया करे। क्योंकी हम जो पढ़कर या करके इसाले सवाब करेंगे ओ उनको पहुंचेगा जिससे उनको फायदा हासिल होगा।
     अगर वो मय्यत गुनाहगार थी तो गुनाह माफ होंगे और नेकियां मिलेगी और मय्यत नेक थी तो उसके जन्नत मे दर्जे बुलन्द होंगे।
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا بٙاقِىْ*
जो सूरज निकलने से पहले 100 बार रोज़ पढ़ेगा ان شاء الله दुःख से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
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*नमाज़े वित्र् के मदनी फूल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     नमाज़े वित्र् वाजिब है, अगर ये छूट जाए तो इसकी क़ज़ा लाज़िम है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/532*

     वित्र् का वक़्त ईशा के फर्ज़ो के बाद से सुबह सादिक़ तक है, जो सो कर उठने पर क़ादिर हो उस के लिये अफज़ल है कि पिछली रात में उठ कर पहले तहज्जुद अदा करे फिर वित्र्।
*✍🏽गुन्यातुल मुस्तमली, 403*

     इसकी 3 रकअत है, इसमें क़ादए ऊला वाजिब है सिर्फ तशह्हुद पढ़ कर खड़े हो जाइये।
     तीसरी रकअत में किराअत के बाद तकबीरे क़ुनूत कहना वाजिब है।
     जिस तरह तकबीरे तहरिमा कहते है इसी तरह पहले हाथ कानो तक उठाये फिर अल्लाहु अक्बर कहिये, फिर हाथ बांध कर दुआए क़ुनूत पढ़िये।
     दुआए क़ुनूत के बाद दुरुद शरीफ पढ़ना बेहतर है
*✍🏽गुन्यातुल मुस्तमली, 402*

जो दुआए क़ुनूत न पढ़ सके वो ये पढ़े
*अल्लाहुम्म रब्बना आतिना फिद-दुन्या हसनतव वफिल आखिरती हसनतव वक़ीन अज़ाबन्नार*

     अगर दुआए क़ुनूत पढ़ना भूल गए और रूकू में चले गए तो वापस न लौटीये बल्कि सजदए सहव कर लीजिये।
     वित्र् जमाअत से पढ़ी जा रही हो और मुक्तदि क़ुनूत से फारिग न हुवा था कि इमाम रूकू में चला गया तो मुक्तदि भी रूकू में चला जाए।
*✍🏽आलमगिरी 1/110*
 *✍🏽नमाज़ के अहकाम स.206*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #94
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا بٙدِيْعُ*
जिस को कोई सख्त मुहीम दरपेश हो 70,000 बार पढ़े, ان شاء الله कामयाब होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
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Thursday 9 February 2017

*उरफा (वलीलोग)की दुआऐं कुबूल न होनेकी वजह* #1
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

              हज़रत मोहियुद्दीन अब्दुल कादर जीलानी  رضي الله تعالي عنهने इर्साद फ़रमाया : एहले मआरिफतकी दुआओंकी कबूलियत और उनसे किये गए वादों की तकमील इस लिये नहीं होती के कहीं उन पर उम्मीद ग़ालिब न हो जाए। क्यों के उम्मीद व बीम (डर) हर हालत और हर मकाम पर मौजूद है और ये खौफ व रिजा परिन्दे के परों की तरह है के उसकी परवाज़ दोनों बाज़ुओं की मरहुने मिन्नत होती है। चुनान्चे बीम व रिजा के बगैर ईमानकी तकमील भी मुमकिन नहीं और हाल व मकाम के बगैर कोई आदमी उरूज़ व कमाल की मंज़िलको नहीं पा सकता।
      हर हालत और हर मकामके मुताबिक बीम व रजा लाज़मी है और आरीफ चूंके तकर्रुब खुदावन्दी का हामिल होता है इसलिये इसका हाल व मकाम ये है के वो खुदा के सिवा किसी तरफ माइल ना हो ना किसी और से आराम व सुकून ले, ना किसी और से उन्स करे।
       पस, अगर आरिफ अपनी दुआकी कबूलियत चाहता है और ख़ुदावन्द तआला से वफाए अहद तलब करता है तो ये उसके मनसब (दरजा) से कमतर बात है और इसके लिये ज़ेबा नहीं।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 102,103
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Wednesday 8 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #144
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨⑥_*
     और हज व उमरा अल्लाह के लिये पूरा करो(19)
फिर अगर तुम रोके जाओ (20)
तो क़ुरबानी भेजो जो मयस्सर (उपलब्ध) आए (21)
और अपने सर न मुडाओ जब तक क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुंच जाए (22)
फिर जो तुममें बीमार हो उसके सर में कुछ तकलीफ़ है  (23)
तो बदला दे रोज़े (24) या ख़ैरात (25) या क़ुरबानी,
फिर जब तुम इत्मीनान से हो तो जो हज से उमरा मिलाने का फ़ायदा उठाए (26)
उस पर क़ुरबानी है जैसी मयस्सर आए (27)
फिर जिसकी ताक़त न हो तीन रोज़े हज के दिनों में रखे  (28)
और सात जब अपने घर पलट कर जाओ, ये पूरे दस हुए यह हुक्म उसके लिये है जो मक्के का रहने वाला न हो, (29)
और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह का अज़ाब सख़्त है.
*तफ़सीर*
     (19) और इन दोनों को इनके फ़रायज़ और शर्तों के साथ ख़ास अल्लाह के लिये बे सुस्ती और बिला नुक़सान पूरा करो. हज नाम है इहराम बाँधकर 9वीं ज़िलहज को अरफ़ात में ठहरने और काबे के तवाफ़ का. इसके लिये ख़ास वक़्त मुक़र्रर है, जिसमें ये काम किये जाएं तो हज है.
     हज सन नौ हिजरी में फ़र्ज़ हुआ. इसकी अनिवार्यता निश्चित है.
     हज के फ़र्ज़ ये हैं : (1) इहराम (2) नौ ज़िल्हज को अरफ़ात के मैदान में ठहरना (3) तवाफ़े ज़ियारत.
     हज के वाजिबात ये हैं : (1) मुज़्दलिफ़ा में ठहरना, (2) सफ़ा मर्वा के बीच सई, (3) शैतानों को कंकरियाँ मारना. (4) बाहर से आने वाले हाजी के लिये काबे का तवाफ़े रूख़सत और (5) सर मुंडाना या बाल हल्के कराना.
     उमरा के रूक्न तवाफ़ और सई हैं और इसकी शर्त इहराम और सर मुंडाना है. हज और उतरा के चार तरीक़े हैं. (1) इफ़राद बिलहज : वह यह है कि हज के महीनों में या उनसे पहले मीक़ात से या उससे पहले हज का इहराम बाँध ले और दिलसे उसकी नियत करे चाहे ज़बान से. लब्बैक पढ़ते वक़्त चाहे उसका नाम ले या न ले. (2) इफ़राद बिल उमरा : वह यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीनों में या उनसे पहले उमरे का इहराम बाँधे और दिल से उसका इरादा करे चाहे तलबियह यानी लब्बैक पढ़ते वक़्त ज़बान से उसका ज़िक्र करे या न करे और इसके लिये हज के महीनों में या उससे पहले तवाफ़ करे चाहे उस साल में हज करे न करे मगर हज और उमरे के बीच सही अरकान अदा करे इस तरह कि अपने बाल बच्चों की तरफ़ हलाल होकर वापस हो. (3) क़िरान : यह है कि हज और उमरा दोनो को एक इहराम में जमा करे. वह इहराम मीक़ात से बाँधा हो या उससे पहले, हज के महीनों में या उनसे पहले. शुरू से हज और उमरा दोनों की नियत हो चाहे तलबियह या लब्बैक कहते वक़्त ज़बान से दोनों का ज़िक्र करे या न करे. पहले उमरे के अरकान अदा करे फिर हज के. (4) तमत्तो : यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीने में या उससे पहले उमरे का इहराम बाँधे और हज के माह में उतरा करे या अकसर तवाफ़ उसके हज के माह में हो और हलाल होकर हज के लिये इहराम बाँधे और उसी साल हज करे और हज और उमरा के बीच अपनी बीवी के साथ सोहबत न करे. इस आयत से उलमा ने क़िरान साबित किया है.
     (20) हज या उमरे से बाद शुरू करने और घर से निकलने और इहराम पहन लेने के, यानी तुम्हें कोई रूकावट हज या उमरे की अदायगी में पेश आए चाहे वह दुश्मन का ख़ौफ़ हो या बीमारी वग़ैरह, ऐसी हालत में तुम इहराम से बाहर आजाओ.
     (21) ऊट या गाय बकरी, और यह क़ुरबानी भेजना वाजिब है.
     (22) यानी हरम में जहाँ उसके ज़िब्ह का हुक्म है. यह क़ुरबानी हरम के बाहर नहीं हो सकती.
     (23) जिससे वह सर मुंडाने के लिये मजबूर हो और सर मुंडाले.
     (24) तीन दिन के. (25) छ मिस्कीनों का खाना, हर मिस्कीन के लिये पौने दो सेर गेहूँ. (26) यानी तमत्तो करे.
     (27) यह क़ुरबानी तमत्तो की है, हज के शुक्र में वाजिब हुई, चाहे तमत्तो करने वाला फ़कीर हो. ईदुज़ जु़हा की क़ुरबानी नहीं, जो फ़क़ीर और मुसाफ़िर पर वाजिब नहीं होती.
     (28) यानी पहली शव्वाल से 9वीं ज़िल्हज तक इहराम बांधने के बाद इस दरमियान में जब चाहे रखले, चाहे एक साथ या अलग अलग करके. बेहतर यह है कि सात, आठ, नौ ज़िल्हज को रखे.
     (29) मक्का के निवासी के लिये न तमत्तो है न क़िरान. और मीक़ात की सीमाओं के अन्दर रहने वाले, मक्का के निवासियों में दाख़िल हैं.
     मीक़ात पाँच है : जुल जलीफ़ा, ज़ाते इर्क़, जहफ़ा, क़रन, यलमलम. जु़ल हलीफ़ा मदीना निवासियों के लिये, जहफ़ा शाम के लोगों के लिये, क़रन नज्द के निवासियों के लिये, यलमलम यमन वालों के लिये.  (हिन्दुस्तान चूंकि यमन की तरफ़ से पड़ता है इसलिये हमारी मीक़ात भी यलमलम ही है)
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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_*कुफ़्र पर खातिमे का खौफ*_
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इफ्तार पार्टी, दावत, नियाज़ और नात ख्वानी वग़ैरा की वजह से फ़र्ज़ नमाज़ों की मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करने की हरगिज़ इजाज़त नहीं,

     जो लोग बिल उज़्रे शरई बा वुजूद कुदरत फ़र्ज़ नमाज़ मस्जिद में जमाअते ऊला के साथ अदा नहीं करते उनको डर जाना चाहिये कि नबी ﷺ का फरमान है : जिसको ये पसन्द हो की कल अल्लाह तआला से मुसलमान हो कर मिले तो वो इन पांच नमाज़ों की जमाअत के साथ वहां पाबन्दी करे जहा अज़ान दी जाती है क्यूकी अल्लाह ने तुम्हारे नबी के लिये सुनने हुदा मशरू की और ये नमाज़े भी सुनने हुदा से है और अगर तुम अपने नबी की सुन्नत छोड़ दोगे तो गुमराह हो जाओगे।
 *✍🏽मुस्लिम शरीफ 1/232*

     इस हदिष से इशारा मिलता है कि जमाअते ऊला की पाबन्दी करने वाले का खातिमा बिलखैर होगा और जो बिला शरई मजबूरी के मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करता है उसके लिये मआज़अल्लाह कुफ़्र पर खातिमे का खौफ है।

*या रब्बे मुस्तफा ! हमें पाचो नमाज़े मस्जिद की जमाअते ऊला में पहली सफ में तकबीरे ऊला के साथ अदा करने की हमेशा सआदत नसीब फ़रमा।*
_*आमीन बिजाहिन्नबीय्यिल अमिन*_

 *✍🏽नमाज़ के अहकाम स.204*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #93
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا هٙادِى*
जो कोई आस्मान की तरफ मुह कर के हाथ उठा कर इस इस्म को कसरत से पढ़े और वो हाथ मुह और आँखों पर मल ले ان شاء الله अहले मारिफ़त का मर्तबा पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 259*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 4 February 2017

*इमामत का बयान* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इक़ामत के बाद इमाम साहिब एलान करे, अपनी एड़िया, गर्दने और कंधे एक सीध में कर के सफ सीधी कर लीजिये। दो आदमियो के बिच में जगह छोड़ना गुनाह है,
     कंधे से कंधा मस यानि टच किया हुवा रखना वाजिब, सफ सीधी रखना वाजिब और जब तक अगली सफ कोने तक पूरी न हो जाए जानबुझ कर पीछे नमाज़ शुरू कर देना तर्के वाजिब, हराम और गुनाह है।
     15 साल से छोटे ना बालिग़ बच्चों को स्फो में खड़ा न रखिये, इन्हें कोने में भी न भेजिये छोटे बच्चों की सफ सद से आखिर में बनाइये।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 7/219 ता 225*

_*जमाअत का बयान*_
     आकिल, बालिग़, आज़ाद  और क़ादिर पर मस्जिद की जमाअते ऊला वाजिब है बिला उज़्र एक बार भी छोड़ने वाला गुनाहगार और मुसरहिके सज़ा है
     और कई बार तर्क करे तो फासिद् मर्दुदुश्शहादह (यानी उसकी गवाही क़ाबिले क़बूल नहीं) और उसको सख्त सज़ा दी जाए अगर पड़ोसियों ने खामोशी इख्तियार की तो वो भी गुनाहगार।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार व रद्दलमोहतार, 2/287*

     बाज़ फ़ुक़हाए किराम फरमाते है कि जो शख्स अज़ान सुन कर घर में इक़ामत का इंतज़ार करता है तो वो गुनाहगार होगा और उसकी गवाही क़बूल नहीं।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.203*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #91
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا نٙافِعُ*
जो किसी काम को शुरू करने से क़ब्ल 20 बार पढ़ ले ان شاء الله वो काम उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ पूरा होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 258*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Friday 3 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #142
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨③_*
     और उनसे लड़ो यहाँ तक कि कोई फ़ितना न रहे और एक अल्लाह की पूजी हो, फिर अगर वो बाज़ आएं तो ज़्यादती नहीं मगर ज़ालिमों पर.
*तफ़सीर*
     क़ुफ्र और बातिल परस्ती से.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨④_*
     माहे हराम के बदले माहे हराम और अदब के बदले अदब है जो तुमपर ज़ियादती करे उसपर ज़ियादती करो उतनी ही जितनी उसने की, और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह डरने वालों के साथ है.
*तफ़सीर*
     जब पिछले साल ज़िल्क़ाद सन छ हिजरी में अरब के मुश्रिको ने माहे हराम की पाकी और अदब का लिहाज़ न रखा और तुम्हें उमरे की अदायगी से रोका तो ये अपमान उनसे वाक़े हुआ और इसके बदले अल्लाह के दिये से सन सात हिजरी के ज़िल्क़ाद में तुम्हें मौक़ा मिला कि तुम क़ज़ा उमरे को अदा करो.
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*इमामत का बयान* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मर्द गैर माज़ूर के इमाम के लिये 6 शर्ते है_*
सहीहुल अक़ीदा मुसलमान होना.
बालिग़ होना.
आकिल होना.
मर्द होना.
किराअत सहीह होना.
माज़ूर न होना.
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार, 2/284*

*_इक़्तिदा की शराइत_*
निय्यत करना.
     इक़्तिदा और इस निय्यते इक़्तिदा का तहरिमा के साथ होना या तकबीरे तहरिमा से पहले होना बशर्ते कि पहले होने की सूरत में कोई अजनबी काम निय्यत व तहरिमा में जुदाई करने वाला न हो।
     इमाम व मुक्तदि दोनो का एक मकान में होना। दोनी की नमाज़ एक हो या इमाम की नमाज़, नमाज़े मुक्तदि को अपने ज़िम्न में लिये हुए हो।
     इमाम की नमाज़ का मज़्हबे मुक्तदि पर सहीह होना और इमाम व मुक्तदि दोनों का इसे सहीह समझना।
     शराइत की मौजूदगी में औरत का बराबर न होना।
     मुक्तदि का इमाम से मुक़द्दम (यानी आगे) न होना।
     इमाम के इन्तिक़ालात का इल्म होना, इमाम का मुक़ीम या मुसाफिर होना मालुम होना।
     अरकान की अदाएगी में शरीक होना, अरकान की अदाएगी में मुक्तदि इमाम के मिस्ल हो या कम
     युही शराइत में मुक्तदि का इमाम से ज़ाइद न होना।
*✍🏽रद्दलमोहतार, 2/684*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.202*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #90
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا ضٙآرُّ*
जिसे कोई मनसब मिले और वो उस पर क़ाइम रहना चाहे तो वो हर शबे जुमुआ और अय्यामे बिज़ (यानि हर इस्लामी माह की 13, 14, 15 तारीख) में 100 बार पढ़े।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 258*
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Thursday 2 February 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #141
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨①_*
     और काफ़िरों को जहाँ पाओ मारो (8)
और उन्हें निकाल दो (9)
जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला था (10)
और उनका फ़साद तो क़त्ल से भी सख़्त है (11)
और मस्जिदे हराम के पास उनसे न लड़ो जब तक वो तुम से वहां न लड़े (12)
और अगर तुमसे लड़ें तो उन्हें क़त्ल करो (13)
काफ़िरों की यही सज़ा है.
*तफ़सीर*
     (8) चाहे हरम हो या ग़ैर हरम.
     (9) मक्कए मुकर्रमा से.
     (10) पिछले साल, चुनांचे फ़त्हे मक्का के दिन जिन लोगों ने इस्लाम क़ुबूल न किया उनके साथ यही किया गया.
     (11) फ़साद से शिर्क मुराद है या मुसलमानों को मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल होने से रोकना.
     (12) क्योंकि ये हरम की पाकी के विरूद्ध है.
     (13) कि उन्होंने हरम शरीफ़ की बेहुरमती या अपमान किया.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨②_*
     फिर अगर वो बाज़ (रूके) रहें तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है.
*तफ़सीर*
क़त्ल और शिर्क से.
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*ज़ोहर के आखिरी दो नफ्ल के भी क्या कहने*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     ज़ोहर के बाद चार रकअत पढ़ना मुस्तहब है कि हदीसे पाक में फ़रमाया जिसने ज़ोहर से पहले चार और बाद में चार पर मु हाफ़ज़त की अल्लाह तआला उस पर आग हराम फ़रमा देगा।

     अल्लामा सय्यिद तहतावी अलैरहमा फरमाते है कि सिरे से आग में दाखिल ही न होगा और उसके गुनाह मिटा दिये जाएंगे और उस पर (बन्दों की हक़ तलफियो के) जो मुतालबात है अल्लाह तआला उसके फरीक को राज़ी कर देगा या ये मतलब है कि ऐसे कामो की तौफ़ीक़ देगा जिन पर सज़ा न हो।

     अल्लामा शामी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है कि उसके लिये बिशारत ये है कि सआदत पर उस का खातिमा होगा और दोज़ख में न जाएगा।

*✍🏽शामी 2/542*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.200*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #89
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हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا مٙا نِعُ*
बीवी अगर नाराज़ हो तो शौहर, और शौहर नाराज़ हो तो बीवी सोने से पहले बिछोने पर बेथ कर 20 बार पढ़े ان شاء الله सुलह हो जाएगी।
(मुद्दत : ता हुसुले मुराद)

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 258*
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Wednesday 1 February 2017

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #22
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #07
*_अम्र बिन अब्दे वूद मारा गया_*
     सबसे आगे अम्र बिन अब्दे वूद था ये अगरचे 90 साल का खुर्राट बुढ्ढा था मगर एक हज़ार सुवरो के बराबर बहादुर माना जाता था, जंगे बदर ने ज़ख़्मी हो कर भाग निकला था और इसने ये क़सम खा रखी थी की जब तक मुसलमानो से बदला न ले लूंगा बालो में तेल न डालूँगा। ये आगे बढ़ा और चिल्ला चिल्ला कर मुकाबले की दावत देने लगा 3 मर्तबा इसने कहा की कौन है जो मेरे मुकाबले को आता है ? तीनो मर्तबा हज़रते अली शेरे खुदाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم  ने उठ कर जवाब दिया की में।
     हुज़ूरﷺ ने रोका की ऐ अली ! ये अम्र बिन अब्दे वूद है। हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने अर्ज़ किया जी हा में जानता हु की ये अम्र बिन अब्दे वूद है लेकिन में इससे लड़ूंगा, ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने अपनी ख़ास तलवार ज़ुल्फ़िकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथो से उन के सरे अनवर पर इमामा बांधा और ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह ! तू अली की मदद फरमा।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم मुजाहिदाना शान से उस के सामने खड़े हो गए और दोनों में इस तरह मुकालमा शुरू हुवा :
हज़रते अली : ऐ अम्र ! तू मुसलमान हो जा !
अम्र : ये मुझसे कभी हरगिज़ हरगिज़ नही हो सकता !
हज़रते अली : लड़ाई से वापस चला जा !
अम्र : ये मंज़ूर नही !
हज़रते अली : तो फिर मुझ से जंग कर !
अम्र : है कर कहा की में कभी ये सोच भी नही सकता था की दुन्या में कोई मुझ को जंग की दावत देगा।
हज़रते अली : लेकिन में तुझसे लड़ना चाहता हु।
अम्र : आखिर तुम्हारा नाम क्या है ?
हज़रते अली : अली बिन अबी तालिब।
अम्र : ऐ भतीजे ! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो में तुम्हारा खून बहाना पसन्द नही करता।
हज़रते अली : लेकिन में तुम्हारा खून बहाने को बेहद पसन्द करता हु।
     खून खोला देने वाले गर्मा गर्म जुमले सुन कर अम्र मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पैदल थे और ये सुवार था इस पर जो गैरत सुवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा और अपनी तलवार से घोड़े के पाउ काट डाले और नंगी तलवार ले कर आगे बढ़ा और हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم पर तलवार का भरपूर वार किया, हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तलवार के उस वार को अपनी ढाल पर रोका, ये वार इतना सख्त था की तलवार ढाल और इमामे को काटती हुई पेशानी पर लगी, गो बहुत गहरा ज़ख्म नही लगा मगर फिर भी ज़िन्दगी भर ये तुगार आप की पेशानी पर यादगार बन कर रह गया।
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने तड़प कर ललकारा की ऐ अम्र ! सँभल जा अब मेरी बारी है ये कह कर आप ने ज़ुल्फ़िकार का ऐसा जचा तुला हाथ मारा की तलवार दुश्मन के शाने को काटती हुई कमर से पार हो गई और वो तिलमिला कर ज़मीन पर गिरा और दम जदन में मर कर फिन्नार हो गया, मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा
          *शाहे मर्दा, शेरे यज़दा क़ुव्वते परवर्दगार*
     हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने उस को क़त्ल किया और मुह फेर कर चल दिये, हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه ने कहा की ऐ अली ! आप ने अम्र की ज़िरह क्यू नही उतार ली ? सारे अरब में इससे अच्छी कोई ज़िरह नही है, आपكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया की ऐ उमर ! ज़ुल्फ़िकार की मार से वो इस तरह बे क़रार हो कर ज़मीन पर गिरा की उस की शर्मगाह खुल गई इस लिये हया की वजह से में ने मुह फेर लिया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 335*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*हाफ आस्तीन में नमाज़ पढ़ना कैसा ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आधी आस्तीन वाला कुरता या क़मीज़ पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तन्ज़ीहि है जब कि उसके पास दूसरे कपड़े मौजूद हो।

     मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जिसके पास कपड़े मौजूद हो और सिर्फ आधी आस्तीन या बनियान पहन कर नमाज़ पढ़ता है तो कराहते तन्ज़ीहि है और कपड़े मौजूद नहीं तो कराहत भी नहीं।

*✍🏽फतवा रज़विय्या, 1/193*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.200*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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