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Tuesday 31 July 2018

*वीराने में मुलाक़ात* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते ज़ुन्नुन رحمة الله عليه फ़रमाते है की जब वो बात करके फारिग हुए तो मेने उन्हें कलिमाए शहादत पढ़ते हुए सूना फिर उन्होंने एक आह भरी और इस फ़ानी दुन्या से रुख्सत हो गए।

     मेने اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ पढ़ा। मेरे सामान में एक क़मीज़ थी जिसे मेने बहुत सम्भाल कर रखा था। फिर मेने उन्हें उस पानी से गुस्ल दिया और कफ़न पहना कर रेत में दफना दिया और बैतूल हराम की तरफ चल दिया। हज अदा करने के बाद हुज़ूर ﷺ के रोज़ए अनवर की ज़ियारत के बाद में बगदाद पहुंचा। मेने वहा कुछ बच्चों को खेलते हुए पाया, जब मेने नज़र दौड़ाई तो उस नौजवान को एक जगह बैठे हुए पाया जिसे कोई क़ीमती चीज़ भी अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल न कर सकती थी। उसके चेहरे पर गम के आसार वाज़ेह थे और उसके रुखसारों पर आंसुओं की वजह से दो लकीरें पड़ गई थी, वो कुछ अशआर पढ़ रहा था।

     तमाम लोग ईद की खुशियों में मग्न हो गए और में वाहिद व बे नियाज़ अल्लाह से खुश हूं।

     ...सब लोगों ने ईद के लिये कपड़े रंगे ओर में ने ज़िल्लत ओर बदली रंगत वाले कपड़े रंगे है।

     ...तमाम लोगों ने ईद के लिये ग़ुस्ल किया है और में ने जिगर को आंसुओं के साथ ग़ुस्ल दिया है।


वो अशआर अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 56

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     तीनो कुल बिला लफ़्ज़े कुल ब निययते सना पढ़ सकते है। लफ़्ज़े कुल के साथ सना की निय्यत से भी नहीं पढ़ सकते क्यू की इस सूरत में इन का क़ुरआन होना मूतअय्यन है, निय्यत को कुछ दखल नहीं। 

     बे वुज़ू क़ुरआन शरीफ या किसी आयत का छूना हराम है। बिगैर छुए ज़बानी या देख कर पढ़ने में मुज़ायक़ा नहीं। 

     जिस बर्तन या कटोरे पर सूरत या आयते क़ुराआनी लिखी हो बे वुज़ू और बे गुस्ल को इस का छूना हराम है। इस का इस्तिमाल सब के लिये मकरूह है। हा ख़ास ब निययते शिफ़ा इसमें पानी वगैरा डाल कर पिने में हरज नहीं। 

     क़ुरआने पाक का तर्जमा फ़ारसी या उर्दू या किसी दूसरी ज़बान में हो उस को भी पढ़ने या छूने में क़ुरआने पाक ही का सा हुक्म है। 

*✍🏼बहरे शरीअत, जी.1 स. 326-327*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 100*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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*तज्दिदे निकाह का तरीक़ा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     तज्दिदे निकाह का माना है: नए महर से नया निकाह करना। इस के लिये लोगों को इकठ्ठा करना ज़रूरी नहीं। निकाह नाम है इजाब व क़बूल का। हाँ ब वक़्ते निकाह बतौरे गवाह कम अज़ कम 2 मर्द मुसलमान या एक मर्द मुसलमान और 2 औरतों का हाज़िर होना लाज़िम है। ख़ुत्बए निकाह शर्त नहीं बल्कि मुस्तहब है। ख़ुत्बा याद न हो तो اعوذ بالله और بسم الله शरीफ के बाद सूरए फातिहा भी पढ़ सकते है। कम अज़ कम 10 दिरहम यानी मौजूदा वज़न के हिसाब से 30 ग्राम 618 मिली ग्राम चादी या उस की रक़म महर वाजिब है। मसलन आप ने 786 रुपै उधार महर की निय्यत कर ली है (मगर ये देख लीजिये कि महर मुक़र्रर करते वक़्त मज़कूरा चांदी की क़ीमत 786 रुपै से ज़ाइद तो नहीं)।

     अब गवाहों की मौजूदगी में आप "इजाब" कीजिये यानी औरत से कहिये: में ने 786 रुपै महर के बदले आप से निकाह किया। औरत कहे: में ने क़बूल किया। निकाह हो गया। (3 बार इजाब व क़बूल ज़रूरी नहीं अगर कर लें तो बेहतर है।)

     ये भी हो सकता है कि औरत ही ख़ुत्बा या सूरए फातिहा पढ़ कर इजाब करे मर्द कह दे: में ने क़बूल किया, निकाह हो गया।

     बादे निकाह अगर औरत चाहे तो महर मुआफ़ भी कर सकती है। मगर मर्द बिला हाजते शरई औरत से महर मुआफ़ करने का सुवाल न करे।

     जिन सूरतों में निकाह खत्म हो जाता है मसलन खुला कुफ़्र बका और मुर्तद हो गया तो तज्दिदे निकाह में महर वाजिब है, अलबत्ता एहतियाती तज्दिदे निकाह में महर की हाजत नहीं।

*✍🏼28 कलिमाते कुफ़्र* 9

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*खिदमते रसूल (ﷺ)*  #4


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

   

     हज़रते रबीआ अस्लमी रदिअल्लाहो तआला अन्हो भी शबो रोज़ आप ﷺ की ख़िदमत में मसरूफ़ रहते। जब आप ﷺ ईशा की नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर दौलत सराए अक़दस में तशरीफ़ ले जाते तो वोह दरवाज़े पर बैठ जाते की मबादा आप ﷺ को कोई ज़रूरत पेश आ जाए।

    एक बार आप ﷺ ने उन को निकाह करने का मशवरा दिया। बोले: येह  ताल्लुक़ आप ﷺ की ख़िदमत गुजारी में ख़लल अंदाज़ होगा जिस को मैं पसन्द नहीं करता।  लेकिन आप ﷺ के बार बार के इस्रार से शादी करने पर रिज़ा मन्द हो गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 188

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*तज़किरतुल अम्बिया* #205


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*याक़ूब عليه السلام के बेटों के आपसे माफी तलब करना*

     बेटों ने "ऐ हमारे बाप" कह कर आपसे अपने गुनाहों की मगफिरत टल्ड करने की दरख्वास्त की कि आप हमारे बाप है, शफ़ीक़ है, हम खतावार है आप दरगुज़र करते हुए हमारे लिये अल्लाह से हमारी गलतियों की माफी तलब करे। अगर आपने हमारे लिये दुआ न कि तो हम अपनी गलतियों की वजह से अल्लाह की गिरफ्त में आ कर हलाक हो जाएंगे। आप अगर हम पर रहम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?

     याक़ूब عليه السلام ने वादा फ़रमाया की में जल्द ही तुम्हारी बख्शीश अपने रब से तलब करूँगा ओर हमेशा तलब करता रहूंगा।

     उसी वक़्त बख्शीश तलब नहीं फ़रमाई की आप सहर के वक़्त के मुन्तज़िर थे कि उस वक़्त दुआ जल्दी क़बूल होती है या वजह यह थी: बेशक आपने जुमा की रात तक मुअखखर किया था कि वह वक़्त ज़्यादा कबूलियत का होता है।

     इससे उन लोगों के लिये लम्हऐ फ़िक्रीया है जो जुमेरात की शाम यानी जुमा की रात अपने फौत शुदा हज़रात के लिये दुआए मगफिरत करने वालो को बिदअत का मुरतकिब क़रार देते हैं। काश उन को ये पता चल जाता कि जुमा की रात दुआ की कबूलियत का ज़्यादा यक़ीन होना पहले अम्बियाए किराम से आ रहा है।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 167

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Monday 30 July 2018

*सफ सीधी न करने का अन्जाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने नमाज़ पढ़ाई तो आपने देखा कि एक आदमी का सीना सफ से निकला हुआ है, आपने फ़रमाया: सफों को सीधी करो वरना अल्लाह तुम्हारे दिलों में इख़्तिलाफ़ डाल देगा।

*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल* 18458

     हुज़ूरे अक़दस ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: तुम सफ टेढ़ी न करो वरना तुम्हारे दिलों में टेढ़ापन डाल दिया जाएगा।

*✍🏼सुनने अबू दाऊद* 664

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 46

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-3, आयत, ②⑤*



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और ख़ुशख़बरी दे उन्हें जो ईमान लाए और अच्छे काम किये कि उनके लिये बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहें(9)जब उन्हें उन बागों से कोई फल खाने को दिया जाएगा (सूरत देखकर) कहेंगे यह तो वही रिज्क़ (जीविका) है जो हमें पहले मिला था (10) और वह (सूरत में) मिलता जुलता उन्हें दिया गया और उनके लिये उन बाग़ों में सुथरी बीबियां हैं (11) और वो उनमें हमेशा रहेंगे (12) 


*तफ़सीर*

     (9) अल्लाह तआला की सुन्नत है कि किताब में तरहीब (डराना) के साथ तरग़ीब ज़िक्र फ़रमाता है. इसीलिये काफ़िर और उनके कर्मों और अज़ाब के ज़िक्र के बाद ईमान वालों का बयान किया और उन्हे जन्नत की बशारत दी. “सालिहातुन” यानी नेकियां वो कर्म हैं जो शरीअत की रौशनी में अच्छे हों. इनमें फ़र्ज़ और नफ़्ल सब दाख़िल हैं. (जलालैन) नेक अमल का ईमान पर अत्फ़ इसकी दलील है कि अमल ईमान का अंग नहीं. यह बशारत ईमान वाले नेक काम करने वालों के लिये बिना क़ैद है और गुनाहगारों को जो बशारत दी गई है वह अल्लाह की मर्ज़ी की शर्त के साथ है कि अल्लाह चाहे तो अपनी कृपा से माफ़ फ़रमाए, चाहे गुनाहों की सज़ा देकर जन्नत प्रदान करें. (मदारकि)

     (10) जन्नत के फल एक दूसरे से मिलते जुलते होंगे और उनके मज़े अलग अलग. इतलिये जन्नत वाले कहेंगे कि यही फल तो हमें पहले मिल चुका है, मगर खाने से नई लज़्ज़त पाएंगे तो उनका लुत्फ़ बहुत ज़्यादा हो जाएगा.

     (11) जन्नती बीबियां चाहें हूरें हों या और, स्त्रियों की सारी जिस्मानी इल्लतों (दोषों)और तमाम नापाकियों और गंदगियों से पाक होंगी, न जिस्म पर मैल होगा, न पेशाब पख़ाना, इसके साथ ही वो बदमिज़ाजी और बदख़ल्क़ी (बुरे मिजाज़) से भी पाक होंगी.(मदारिक व ख़ाज़िन)

     (12) यानी जन्नत में रहने वाले न कभी फ़ना होंगे, न जन्नत से निकाले जाएंगे, इससे मालूम हुआ कि जन्नत और इसमें रहने वालों के लिये फ़ना नही.

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*वीराने में मुलाक़ात* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

अचानक मेने एक गमगीन आवाज़ सुनी जो किसी ग़मज़दा के दिल से निकल रही थी वो शख्स कह रहा था की "ऐ मेरे अल्लाह, ऐ मेरे आक़ा व मौला! अगर तेरी रिज़ा इसी में है तो इसमें इज़ाफ़ा फरमा, ताकि ऐ अर-हमर्राहीमिन! तू मुझसे राज़ी हो जाए। ये सुन कर में उस आवाज़ की सिम्त चल दिया तो मेने एक हसीनो जमील शख्स को देखा जो रेत पर पड़ा हुवा था और बहुत से गीध उसे घेरे हुए थे और उसका गोश्त नोचना चाहते थे। मेने उसे सलाम किया तो इस ने सलाम का जवाब दे कर कहा की "ऐ ज़ुन्नुन! जब ज़ादे राह खत्म हो गया और पानी बह गया तो तूने हलाकत और फना का यक़ीन कर लिया।"

     में उसके सिरहाने बैठ गया और उसकी हालत देख कर मेरा दिल भर आया और रोने लगा। अचानक खाने का एक प्याला मेरे सामने रख दिया गया फिर उस शख्स ने अपनी एड़ी ज़मीन पर रगड़ी तो एक चश्मा फुट पड़ा उसका पानी दूध से ज़्यादा सफेद और शहद से ज़्यादा मीठा था। उसने मुझ से कहा: "ऐ ज़ुन्नुन! खा पि लो क्योंकि तुम्हारा बैतूल हराम पहुंचना निहायत ज़रूरी है, मगर ऐ ज़ुन्नुन! मेरा एक काम ज़रूर करना अगर तुम मेरा काम कर दोगे तो तुम्हे इसका अज़्रो सवाब मिलेगा।" मेने पूछा: वो काम क्या है? फ़रमाया: जब में मर जाऊं तो मुझे गुस्ल दे कर दफना देना और इन वहशी परिन्दों से छुपा कर यहाँ से चले जाना फिर जब तुम हज अदा कर लो तो बगदाद शहर चले जाना, जब तुम बाबे ज़ाफ़रान में दाखिल होंगे तो तुम्हे वहा कुछ बच्चे खेलते हुए नज़र आएँगे वहा एक कमसिन जवान को पाओगे जिसे अल्लाह के ज़िक्र से कोई चीज़ गाफिल न करती होगी, उसके चेहरे पर आंसुओं की वजह से लकीरें पड़ गई होंगी, तुम उसे मिलना वो मेरा बेटा, मेरी आँखों की ठंडक है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 55

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*नापाकी की हालत में क़ुरआने पाक पढ़ने या छूने के मसाइल* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो उसको मस्जिद में जाना, तवाफ़ करना, क़ुरआने पाक छूना, बे छुए ज़बानी पढ़ना, किसी आयत का लिखना, आयत का तावीज़ लिखना (लिखना उस सूरत में हराम है जिस में कागज़ का छूना पाया जाए, अगर कागज़ को न छुए तो लिखना जाइज़ है), ऐसा तावीज़ छूना, ऐसी अंगूठी छूना या पहनना जिस पर आयत या हुरूफ़े मुक़त्तआत लिखे हो हराम है.

     अगर क़ुरआने पाक जुज़दान में हो तो बे वुज़ू या बे गुस्ल जुज़्दान पर हाथ लगाने में हरज नहीं। 

     इसी तरह किसी ऐसे कपड़े या रुमाल वगैरा से क़ुरआने पाक पकड़ना जाइज़ है जो न अपने ताबे हो न क़ुरआने पाक के. कुर्ते की आस्तीन, दुपट्टे के आँचल से यहाँ तक की चादर का एक कोना इसके कंधे पर है तो चादर के दूसरे कोने से क़ुरआने पाक को छूना हराम है की ये सब चीज़े इस छूने वाले के ताबे है। 

     क़ुरआने पाक की आयत दुआ की निय्यत से या तबर्रुक के लिये मसलन बीसमील्ला-ही-र्रहमा-निर्रहीम या अदाए शुक्र के लिये अल्हम्दुलिल्लाह या किसी मुसलमान की मौत या किसी किस्म के नुकसान की खबर पर इन्नलिल्लाहि व-इन्न इलैहि राजिउन या सना की निय्यत से पूरी सूरतुल फातिहा या आयतुल कुर्सी या सूरतुल हशर की आखरी 3 आयते पढ़े और इन सब सूरतो में क़ुरआन पढ़ने की निय्यत न हो तो कोई हरज नहीं।

*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1 स.326*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 98-99*

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*दिल में ना पसन्दीदा और कुफ़्रिय्या बातों का पैदा होना*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*सवाल*

दिल में ना पसन्दीदा और कुफ़्रिय्या बातों का पैदा होना भी कुफ्र है?


*जवाब*

     दिल में ना पसन्दीदा और कुफ़्रिय्या बातों का पैदा होना कुफ्र नहीं जब कि ज़बान से उन का अदा करना बुरा जानता हो। चुनान्चे शरहे फ़िक़हे अकबर में है: जिस शख्स के दिल पर ऐसी बात गुज़रे कि जिस का कहना कुफ्र हो और वो उसे ना पसन्द करते हुए न कहे तो ये खालिस ईमान है।

     दावते इस्लामी के बहार शरीअत जिल्द दुवुम सफहा 456 पर है: कुफ्री बात का दिल में ख्याल पैदा हुवा और ज़बान से बोलना बुरा जानता है तो ये कुफ्र नहीं बल्कि खास ईमान की अलामत है कि दिल में ईमान न होता तो उसे बुरा क्यूं जानता।

(कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में मज़ीद तफ़सीलात जानने के लिये "कुफ़्रिय्या कलिमात के बारे में सुवाल जवाब" का मुतालआ कीजिये)

*✍तजदिदे ईमान व निकाह का आसान तरीक़ा* 6

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*खिदमते रसूल (ﷺ)*  #3


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसउद रदिअल्लाहो तआला अन्हो को येह शरफ़ हासिल था, कि जब आप ﷺ कहीं जाते तो वोह पहले आप ﷺ को पहनाते, फिर आगे आगे असा ले कर चलते , आप ﷺ मजलिस में बैठना चाहते तो आप ﷺ के पाउं से जूते निकालते, फिर आप ﷺ को असा देते, जब आप ﷺ उठते, फिर इसी तरह जूते पहनाते, आगे आगे असा ले कर चलते, और हुजरए मुबारका तक पहुंच जाते।

    आप ﷺ नहाते तो पर्दा करते, आप ﷺ सोते तो बेदार करते, आप ﷺ सफ़र में जाते तो बिछौना, मिस्वाक, जूता और वुज़ू का पानी उन के साथ होता, इस लिये वोह साहिबे सवादे रसूलिल्लाह ﷺ या'नी आप ﷺ के मीरे सामान कहे जाते थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 187,188

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*तज़किरतुल अम्बिया* #204


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*मिस्र से क़मीज़ की रवानगी और याक़ूब عليه السلام को खुशबू आना* #02

     जब मिस्र से क़मीज़ याक़ूब عليه السلام के घर लाने के लिये निकाली गई तो आपने उसकी खुशबू सूंघ ली। आपने अपने अहले खाना को कहा मुझे युसूफ की खुशबू आ रही है, अगर तुम मेरी राए को जईफ न समझो।

     याक़ूब عليه السلام ने इतनी दूर से खुशबू कैसे सूंघ ली? इसका जवाब वाज़ेह है कि अल्लाह की कुदरत से कोई बअईद नहीं। और ख़ुसूसन जब आपको क़मीज़ से उठने वाली जन्नत की खुशबू आई तो आपने फ़रमाया ये खुशबू उस जन्नती क़मीज़ के बगैर किसी ओर की नहीं हो सकती। तो अहले खाना ने कहा खुदा की क़सम आप उसी पुरानी खुद रफ्तगी में है। फिर जब उनके बेटे आये और वो क़मीज़ आपके चेहरे पर डाली तो आपकी आंखों की बिनाई वापस आ गई, तो आपने फ़रमाया में नहीं कहता था कि मुझे अल्लाह की तरफ से वो मालूम है जो तुम नहीं जानते।

     याक़ूब عليه السلام ने पूछा तुम युसूफ को कैसे हाल में छोड़ा है? तो उन्होंने कहा वो तो मिस्र के बादशाह है। आपने फ़रमाया: मुझे बादशाहत से क्या गर्ज़? यह बताओ तुमने उसे किस दीन पर छोड़ा? कहा इस्लाम पर, आपने फ़रमाया: अब नेअमत की तकमील हुई कि खुशखबरी कामिल हासिल हो गई।

     अब आपने अहले खाना और तमाम बेटों को कहा: जब मैने तुम्हे मिस्र भेजा था और तुम्हे हुक्म दिया था कि युसूफ को तलाश करो और मैने तुम्हे अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद होने से मना किया था, तो उस वक़्त मेने तुम्हें क्या कहा था कि जो में जानता हूं तुम नहीं जानते। यानी मुझे यह मालूम था कि युसूफ ज़िन्दा है।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 166

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सफ की खाली जगह भरने का षवाब*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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     फरमाने मुस्तफा ﷺ: बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते रहमत भेजते है उन लोगों पर जो सफ की खाली जगहों को पुर कर देते है।

*✍🏼सुनने इब्ने माजा* 995

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो आदमी सफ की खाली जगहों को भर दे अल्लाह उसके दर्जे को बुलन्द फ़रमाएगा और जन्नत में उसके लिये घर तामीर फ़रमाएगा।

*✍🏼अल-मोजमुल औसत लित्तिबरानी* 6/5797

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जिसने किसी सफ को पुर कर दिया तो अल्लाह उसे अपनी रहमत से जोड़ देगा और जिसने सफ काट दी तो अल्लाह उसे रहमत से काट देगा।

*✍🏼सुनने नसाई* 8191

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 45

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-3, आयत, ②④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     फिर अगर न ला सको और हम फ़रमाए देते है कि हरगिज़ न ला सकोगे तो डरो उस आग से जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं (7) तैयार रखी है काफ़िरों के लिये (8)


*तफ़सीर*

     (7) पत्थर से वो बुत मुराद हैं जिन्हे काफ़िर पूजते हैं और उनकी महब्बत में क़ुरआने पाक और रसूले करीम का इन्कार दुश्मनी के तौर पर करते हैं.

     (8) इस से मालूम हुआ कि दोज़ख पैदा हो चुकी है. यह भी इशारा है कि ईमान वालों के लिये अल्लाह के करम से हमेशा जहन्नम में रहना नहीं.

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*वीराने में मुलाक़ात* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते ज़ुन्नुन मिस्री رحمة الله عليه फ़रमाते है की में हज के इरादे से सफर पर निकला तो मेने किसी को अपना हम सफर न बनाया। सफर के दौरान जब में एक बयाबान में पहुंचा तो मेरा ज़ादे राह खत्म हो गया। जब में हलाकत के क़रीब पहुंच गया तो अचानक मुझे सहरा में एक घना दरख्त नज़र आया जिसकी शाखें ज़मीन पर लटक रही थीं। मेने सोचा की मुझे उस दरख्त के साए में बैठ जाना चाहिये यहाँ तक की अल्लाह का हुक्म पूरा हो जाए (यानी मुझे मौत आ जाए)। 

     जब में उस दरख्त के क़रीब पहुंचा और उस के साए में बैठने का इरादा किया तो उसकी टहनियों में से एक टहनी ने मेरे चमड़े का थैला पकड़ लिया जिसकी वजह से उस में बचा पानी बह गया जिससे मुझे बचने की कुछ उम्मीद थी। अब तो मुझे अपनी हलाकत का यक़ीन हो गया, लिहाज़ा में उस दरख्त के साए में गिर कर मलकुल मौत का इंतज़ार करने लगा ताकि वो आ कर मेरी रूह क़ब्ज़ फरमा लें।

     अचानक मेने एक गमगीन आवाज़ सुनी जो किसी ग़मज़दा के दिल से निकल रही थी वो शख्स कह रहा था की "ऐ मेरे अल्लाह, ऐ मेरे आक़ा व मौला! अगर तेरी रिज़ा इसी में है तो इसमें इज़ाफ़ा फरमा, ताकि ऐ अर-हमर्राहीमिन! तू मुझसे राज़ी हो जाए। ये सुन कर में उस आवाज़ की सिम्त चल दिया।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 54

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*गुस्ल का तरीक़ा* #11


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*गुस्ल से नज़ला बढ़ जाता हो तो❓*

     ज़ुकाम या आशोबे चश्म वग़ैरा हो और ये गुमाने सहीह हो की सर से नहाने में मरज़ बढ़ जाएगा या दीगर अमराज़ पैदा हो जाएगे तो कुल्ली कीजिये, नाक में पानी चढ़ाइये और गर्दन से नहाइये। और सर के हर हिस्से पर भीगा हुवा हाथ फेर लीजिये गुस्ल हो जाएगा। बादे सिह्ह्त सर धो डालिये पूरा गुस्ल नए सिरे से करना ज़रूरी नहीं। 

*✍🏼माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1 स. 318*


*_बाल्टी से नहाते वक़्त एहतियात_*

     अगर बाल्टी के ज़रिए गुस्ल करे तो एहतियातन उसे तिपाई (stool) वग़ैरा पर रख लीजिये ताके बाल्टी में छीटे न आए। नीज़ गुस्ल में इस्तिमाल करने का मग भी फर्श पर न रखिये। 

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 95,96*

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*कई कुफ़्रिय्यात से तौबा का तरीक़ा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*सवाल*

     अगर किसी ने معاذ الله कई कुफ़्रिय्यात बीके हों और याद न हो कि क्या क्या बका है तो वो तौबा किस तरह करें?


*जवाब*

     अगर किसी ने معاذ الله कई कुफ़्रिय्यात बीके हों और याद न हो कि क्या क्या बका है तो यूँ कहे *"या अल्लाह! मुझ से जो कुफ़्रिय्यात सादिर हुए हैं में उन सब से तौबा करता हूँ, फिर कलिमा पढ़ ले।"* अगर कलिमे का तर्जमा मालूम है तो ज़बान से तर्जमा दोहराने की हाजत नहीं।

     अगर ये मालूम ही नहीं कि कुफ्र बका भी है या नहीं तब भी अगर एहतियातन तौबा करना चाहे तो इस तरह कहे: *"या अल्लाह! अगर मुझ से कोई कुफ्र हो गया हो तो में उस से तौबा करता हूँ, ये कहने के बाद कलिमा पढ़ ले।"

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो! बेहतर ये है कि रोज़ाना रात सोने से क़ब्ल दो रकअत सलतुतौबा अदा करके साबिक़ा होने वाले तमाम गुनाहों से तौबा कर लेनी चाहिये।

*✍तजदिदे ईमान व निकाह का आसान तरीक़ा* 5

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*खिदमते रसूल (ﷺ)*  #2


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

    हुज़ूर ﷺ का मा'मूल था कि जब कोई ग़रीब मुसलमान ख़िदमते मुबारक़ में हाज़िर होता और उस के बदन पर कपड़े न होते तो हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो को हुक्म देते और वो क़र्ज़ ले कर उस की ख़ुराक व लिबास का इन्तिज़ाम करते।

     एक बार किसी मुशरिक से इस ग़रज़ के लिये क़र्ज़ लिया। लेकिन एक दिन उस ने देखा तो निहायत सख़्त लहजे में कहा, ओ हबशी तुझे मा'लूम है कि अब महीने में कितने दिन रह गए हैं? सिर्फ चार दिन इसी अर्से में क़र्ज़ वुसूल कर लूं। वरना जिस तरह तू पहले बकरियां चराया करता था इसी तरह बकरियां चरवाऊंगा। 

     हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो को इस से सख़्त रंज हुवा, ईशा के बाद आप ﷺ की ख़िदमत में आए और कहा कि मुशरिक ने मुझे येह कुछ कहा है, और वोह मुझे ज़लील कर रहा है,  इजाज़त फ़रमाइये तो जब तक क़र्ज़ अदा न हो जाए मुसलमान कबाइल में भाग कर पनाह लूं। घर वापस आए तो भागने का तमाम सामान भी जमा कर लिया, लेकिन रज़्ज़के आलम ने सुबह तक ख़ुद क़र्ज़ के अदा करने का तमाम सामान कर दिया। 

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 187

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Saturday 28 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #203


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*मिस्र से क़मीज़ की रवानगी और याक़ूब عليه السلام को खुशबू आना* #01

     युसूफ عليه السلام ने कहा ये मेरी क़मीज़ ले जाओ इसे मेरे वलीद के मुह पर डालो उनकी आंखें खुल जायेगी और अपने सब घरवालों को मेरे पास ले आओ। जब क़ाफ़िला मिस्र से जुदा हुआ वहां उनके वलीद ने कहा बेशक में युसूफ की खुशबू पाता हूँ अगर मुझे यह न कहो कि सीधी सोच से हट गया है।

     युसूफ عليه السلام को कैसे पता चला कि क़मीज़ को आंखों पर डालने से बाप की बिनाई वापस आ जायेगी? आपको वही के ज़रिये पता चला।

     वो क़मीज़ कोनसी थी? ये वो क़मीज़ थी जो इब्राहिम عليه السلام को आगमे पहनाई गई थी जो जन्नत से लाई गई थी, बाद में वो इस्हाक़ عليه السلام ओर याक़ूब عليه السلام के पास पहुंची। याक़ूब عليه السلام ने युसूफ عليه السلام को भाइयों के साथ भेजते वक़्त आपके गले मे बतौर तावीज़ डाली थी। अब जिब्राइल ने आकर आपसे फ़रमाया की यह क़मीज़ अपने वलीद की तरफ भेज दो ताकि उन्हें इसके ज़रिये नज़र वापस मिल जाये।

     युसूफ عليه السلام ने भाइयों को कहा कि तुम घरवालों को मेरे पास ले आओ, उस वक़्त याक़ूब عليه السلام के घर के अफ़राद जिन में मर्द, औरतें, बच्चे  सब मिलकर 72 या 66 तक थे (मुख्तलिफ अक़वाल मिलते हैं). यह तादाद बढ़ते बढ़ते जब बनी इस्राइल मूसा عليه السلام के साथ निकले तो सिर्फ जवान मर्दों की तादाद 6 लाख थी। बूढ़े, पर्द, औरतें और बच्चों के अलावा।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 165

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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने का वबाल*


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     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अगर नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला ये जान लेता कि नमाज़ी के आगे से गुज़रने का क्या गुनाह है? तो 40 साल तक खड़े होकर इन्तिज़ार करना गवारा कर लेता।

*✍🏼सुनने अबू दाऊद* 701

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अगर तुममे से किसी को मालुम हो जाता कि अपने भाई की नमाज़ में खलल डालते हुए उसके आगे से गुज़रने का गुनाह क्या है? जब कि वो अपने रब से दुआ कर रहा है तो वो नमाज़ी के आगे से गुज़रने के मुक़ाबले उस जगह 100 साल खड़ा रहना ज़्यादा पसन्द करता।

*✍🏼मुसन्दे अहमद* 8824

     

     *नोट*: नमाज़ी को खुद भी ऐसी जगह नहीं खड़ा होना चाहिये जहाँ से किसी के गुज़रने का इम्कान हो वरना वो खुद भी गुनाहगार होगा।

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 44

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-3, आयत, ②③*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और अगर तुम्हें कुछ शक हो उसमें जो हमने अपने  (उन ख़ास) बन्दे(5)पर उतारा तो उस जैसी सूरत तो ले 

आओ (6) और अल्लाह के सिवा अपने सब हिमायतियों को बुला लो अगर तुम सच्चे हो, 


*तफ़सीर*

     (5) ख़ास बन्दे से हुज़ूर पुरनूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुराद हैं.

     (6) यानी ऐसी सूरत बनाकर लाओ   जो फ़साहत (अच्छा कलाम) व बलाग़त और शब्दों के सौंदर्य और प्रबंध और ग़ैब की ख़बरें देने में क़ुरआने पाक की तरह हो.

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*गुनाह के दस नुक़्सानात*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अमीरुल मुअमिनिन हज़रत उमर رضي الله عنه ने फ़रमाया की तुम अल्लाह के इस फरमान से हरगिज़ धोके में न पड़ना: "जो एक नेकी लाए तो उसके लिये उस जेसी दस है और जो बुराई लाए तो उसे बदला न मिलेगा मगर उसके बराबर।"

الانعام ١٦٠

     क्योंकि गुनाह अगर्चे एक ही हो, मगर अपने साथ दस बुरी खसलते ले कर आता है

(1) जब बन्दा गुनाह करता है तो अल्लाह को गज़ब दिलाता है और वो उसे पूरा करने पर क़ुदरत रखता है।

(2) गुनाह करने वाला इब्लीस मलऊन को खुश करता है।

(3) जन्नत से दूर हो जाता है।

(4) जहन्नम से क़रीब आ जाता है।

(5) वो अपनी सबसे प्यारी चीज़ अपनी जान को तकलीफ देता है।

(6) वो अपने बातिन को नापाक कर बैठता है हालांकि वो पाक होता है।

(7) आमाल लिखने वाले फरिश्तों किरामन कातिबिन को इज़ा देता है।

(8) वो नबीए करीम ﷺ को रैज़ाए मुबारक में रंजीदा कर देता है।

(9) ज़मीनो अस्मान और तमाम मख्लूक़ को अपनी ना फ़रमानी पर गवाह बना लेता है।

(10) वो तमाम इन्सानों से खियानत और रब्बुल आलमीन की ना फ़रमानी करता है।

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 53

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*गुस्ल का तरीक़ा* #10


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*तंग लिबास वाले की तरफ नज़र करना कैसा❓*

     लिबास तंग हो या ज़ोर से हवा चली या बारिश या साहिले समुन्दर या नहर वग़ैरा में अगर्चे मोटे कपड़े में नहाए और कपड़ा इस तरह चिपक जाए की सित्र के किसी कामिल उज़्व मस्लन रान की मुकम्मल गोलाई की हैअत (उभार) ज़ाहिर हो जाए ऐसी सूरत में उस उज़्व की तरफ दूसरे को नज़र करने की इजाज़त नहीं। 


     यही हुक्म तंग लिबास वाले के सित्र के उभरे हुए उज़्वे कामिल की तरफ नज़र करने का है। 

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 95*

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*जां निषारी (ﷺ)*  #2


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      इन ख़तरात की वजह से अगर आप ﷺ थोड़ी देर के लिए भी आंख से ओझल हो जाते तो जां निषारों के दिल धड़कने लगते थे।

      आप ﷺ एक दिन सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हुम के हल्के में रोनक अफ़रोज़ थे, किसी ज़रूरत से उठे तो पलटने में देर हो गई। सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हो घबरा गए कि ख़ुदा न ख़्वास्ता दुश्मनों की तरफ से कोई चश्मे ज़ख़्म तो नहीं पहुंचा । 

     हज़रते अबू हुरैरा रदिअल्लाहो तआला अन्हो इसी परेशानी की हालत में घबरा कर आप ﷺ की जुस्तजू में अन्सार के एक  बाग में पहुंचे। दरवाज़ा ढूंडा, तो नहीं मिला,  दीवार में पानी की एक नाली नज़र आई उस मे से घुस कर आप ﷺ तक पहुंचे और सहाबा रदिअल्लाहो तआला अन्हुम की परेशानियों की दास्तान सुनाई।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 187

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #202


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*भाइयों की माज़रत और युसूफ عليه السلام का माफ करना*

     जु हीं युसूफ عليه السلام ने अपने भाइयों के सामने ज़िक्र किया कि में युसूफ हु और अल्लाह ने हम पर एहसान किया है और जो सख्श गुनाहों से बचता है और लोगों की अज़ीयत पर सब्र करता है अल्लाह उसे ज़ाया नहीं करता तो ये सुनकर आपके भाइयों ने आपके कमालात का एतराफ़ करते हुए कहा: अल्लाह ने आपको हम पर इल्म, हौसलामंदी, अक़्ल, कमाल, फ़ज़्ल व हुस्न ओर बादशाहत में फ़ज़ीलत अता की। और भाइयों ने अपनी गलती का एतराफ़ करते हुए कहा बेशक हम खतावार थे।

     भाइयों की माज़रत पर युसूफ عليه السلام ने फ़रमाया: आज तुम पर कुछ मलामत नहीं यानी यह एलाने में आजसे हमेशा के लिये कर रहा हूँ कभी भी तुम्हें माज़ी के वाक़यात पर आर नहीं दिलाई जायेगी। अल्लाह तुम्हे माफ करे और वो सब महेरबानों से बढ़कर महेरबान है।

     आपके भाई जब बहुत ज़्यादा नादिम हो रहे थे और अर्ज़ कर रहे थे कि तुम तो हमें सुबह व शाम अपने दस्तरख्वान पर बिठाकर कहना खिलाते रहे लेकिन हमने आपसे जो कार गुज़रिया की हमे तो उनसे बड़ी नदामत हो रही है। तो आपने फय्याज़ी का मुज़ाहिरा करते हुए कहा मेरे भाइयो! तुम नादिम क्यो होते हो? मुझे तो तुम्हारे आने से बहुत बड़ी खुशी हुई है। क्योंकि में मिस्र के हुक्मरान भी बन गया हूँ और मिस्री लोग मेरे गुलाम बनकर आज़ाद हुए। लेकिन फिरभी उनके ज़हनों में यह बात जरूर होगी कि 20 दिरहम का खरीदा हुआ गुलाम मिस्र के हाकिम बन गया है। लेकिन आज उनके सामने ये वाज़ेह हो चुका है कि तुम मेरे भाई हो, में इब्राहिम عليه السلام का परपोता हु, कोई गुलाम नहीं। तकदीर ओर रब की तरफ से आज़माइश की वजह से गुलामीयत से मुत्तसिफ हुआ, आज तुम्हारे आने से ओर मेरे ज़ाहिर करने से सब लोगों की नज़रों में मुझे अज़मत मिली है और मेरी शराफत और खानदान नबुव्वत का एक फर्द होने की हैसियत से मेरा बोल बाला हुआ।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 164

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*दाढ़ी की तौहीन कुफ्र है*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*सवाल*

     ज़ैद ने मुसलमान की दाढ़ी की तौहीन कर दी उस को समझाया गया कि ये सुन्नत है और सुन्नत की तौहीन कुफ्र है आप तौबा कर लें मगर वो न माना। फिर कुछ अर्से के बाद उसे अच्छी सोहबत मिल गई। उस ने तौबा तो नहीं कि मगर दाढ़ी बढ़ा ली और नमाज़ी भी बन गया, तो क्या उसका दाढ़ी की तौहीन करने वाला गुनाह मुआफ़ हो चुका?


*जवाब*

     दाढ़ी की तौहीन कुफ्र है और जो मुसलमान معاذ الله कुफ्र बक कर मुर्तद हो गया तो उस के पिछले तमाम नेक आमाल मसलन नमाज़, रोज़ा ओर हज वगैरा ज़ाए हो गए और आइंदा भी कोई नेक अमल मक़बूल नहीं जब तक सच्ची तौबा न करले, लिहाज़ा उस3 चाहिये कि वो तौबा करके तजदिदे ईमान, तजदिदे निकाह और बैअत करे।

     इसी तरह के एक सवाल के जवाब में आला हजरत رحمة الله عليه फरमाते है: दाढ़ी सुनन है और इस कि सुन्नियत क़तईससुबुत, ऐसी सुन्नत की तौहीन व तहक़ीर और इसके इत्तिबाअ पर हंसी मज़ाक़ बिल इज्माअ कुफ्र। औरत उसके निकाह से निकल जाएगी और बाद इस के जो बच्चे होंगे औलादे हराम होंगे, अहले इस्लाम को उस से मुआमलए कुफ्फार बरतना लाज़िम, बादे मर्ग उसके जनाज़े की नमाज़ न पढ़े और मुसलमानों के क़ब्रस्तान में दफन न करें बल्कि जहां तक मुमकिन हो उस जनाज़ए नापाक की तज़लील करें उस ने ऐसे इज़्ज़त वाले पैगम्बर ﷺ की सुन्नत को ज़लील समझा। العياذ بالله

*✍फतावा रज़वीय्या* 22/574


*तौबा व तजदिदे ईमान का आसान तरीक़ा*

     जिस कुफ्र से तौबा मक़सूद है वो उसी वक़्त मक़बूल होगी जब कि वो उस कुफ्र को कुफ्र तस्लीम करता हो और दिल मे उस कुफ्र से नफरत व बेज़ारी भी हो नीज़ जो कुफ्र सर्ज़द हुवा तौबा में उस का तज़किरा भी करो मसलन जिस ने दाढ़ी की तौहीन की हो वो इस तरह कहे: *या अल्लाह! में ने जो दाढ़ी की तौहीन की है इस कुफ्र से तौबा करता हूँ, لااله الل الله محمد رسول الله, अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं हज़रत मुहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल है।* इस तरह मख़सूस कुफ्र से तौबा भी हो गई और तजदिदे ईमान भी।

*✍तजदिदे ईमान व तजदिदे निकाह का आसान तरीक़ा* 4

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Friday 27 July 2018

*गुनाहों का अन्जाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     कब तक नेक आमाल में सुस्ती करोगे? और कब तक झूटी ख्वाहिशात की तकमील की हिर्स रखोगे? तुम मोहलत से धोका खाते हो और मौत के हमले को याद नहीं करते हो, जिसे तुम ने जना है (औलाद) वो मिटटी के लिये है और जो कुछ तामीर किया है (मकान वगैरा) वो वीरान होने के लिये है और जो कुछ तुम ने जमा किया है (माल दौलत) वो खत्म होने के लिये है और तुम्हारे अमल क़यामत के दीन के लिये एक आमाल नामे में महफूज़ है।

     अगर हम मरने के बाद (यूंही) छोड़ दिये जाएं तो फिर मौत हर ज़िन्दा के लिये राहत बन जाए।

     मगर जब हम मरेंगे तो दोबारा उठाए जाएंगे और इसके बाद हर शै के बारे में हमसे पूछा जाएगा।

*आंसुओं का दरिया* 52

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*खिदमते रसूल (ﷺ)*  #1


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

         सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हुम रसूलुल्लाह ﷺ की खिदमत को अपना सब से बड़ा शरफ़ ख़याल करते थे, इस लिये मुतअद्दद  बुज़ुर्गो ने अपने आप को आप ﷺ की ख़िदमत के लिये वक्फ़ कर दिया था। 

         हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने इब्तिदाए बैअत ही से आप ﷺ की ख़ानादारी के तमाम कारोबार का इन्तिज़ाम अपने ज़िम्मे ले लिया था, और इस के लिये तरह तरह की अज़ीय्यतें और तकलीफें बर्दाश्त करते थे, लेकिन आप ﷺ के शरफे ख़िदमत का छोड़ना कभी गवारा नहीं करते थे।

         हुज़ूर ﷺ का मा'मूल था कि जब कोई ग़रीब मुसलमान ख़िदमते मुबारक़ में हाज़िर होता और उस के बदन पर कपड़े न होते तो हज़रते बिलाल रदिअल्लाहो तआला अन्हो को हुक्म देते और वो क़र्ज़ ले कर उस की ख़ुराक व लिबास का इन्तिज़ाम करते।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 187

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*तज़किरतुल अम्बिया* #201/1


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*युसूफ عليه السلام ने अपने आप को ज़ाहिर कर दिया* #02

     जब युसूफ عليه السلام को भाई कुएं में फेंक रहे थे तो अल्लाह ने युसूफ عليه السلام के दिल मे इलाक़ा किया था तुम ज़रूर बिल ज़रूर इनको इन मामलात की खबर 

दोंगे। उस वक़्त तो आपको भी मालूम नहीं था कि में कैसे ओर किस वक़्त ओर किस हाल में भाइयों को बताऊंगा? की तुमने मेरे साथ क्या सुलूक किया था।

     जब आपको कुएं में डाला जा रहा था उस वक़्त आप बचपन कि वजह से आजिज़ थे और आप के भाई बड़े क़द आवर जसीम ओर ताक़तवर थे। लेकिन आज युसूफ عليه السلام शाही तख्त पर जलवागर थे और आपके भाई बड़े अदब व एहतेराम से आपसे गल्ला का मुतालबा कर रहे थे। यूँ कहे कि कल के ताक़तवर आज सरापा इज्ज़ बनकर बैठे हैं और कल का आजिज़ आज शाही तख्त का मालिक, अज़ीम ताक़तवर है।

     आप عليه السلام अपने खानदान के रिक़्क़त आमेज़ मनाज़िर को देखकर अपने बाप की परेशानहाली और रिक़्क़त आमेज़ खत को देखने के बाद अल्लाह के इस हुक्म के मुताबिक़ की एक दिन तुमको अपने भाइयों के कारनामो की खबर देनी है। आज आप इन अल्फ़ाज़ में भाइयों के सामने अपने आप को ज़ाहिर करने के लिये कलाम शुरू फ़रमाया रहे है...क्या तुम्हें मालूम है कि तुमने युसूफ ओर उसके भाई के साथ क्या सुलूक़ किया है?

     जब तुम जाहिल थे (कलाम की इब्तेदा ही ऐसे अंदाज़ से की कि भाइयों को जब पता चले कि ये युसूफ है तो वह डरे नही) लिहाज़ा कहा यह सब कुछ तुमने नादानी ओर जहालत की वजह से किया था और नबी कभी उन लोगों की कार्रवाइयों का इन्तेक़ाम नहीं लिया करता जो उन्होंने बे इल्मी की वजह से की हो।

     जब आपने भाइयों से पूछा तो उन्होंने आओके अंदाज़े कलाम से या आपके मुस्कराने की वजह से दांतों की चमक से पहचानते हुए पूछा क्या आप युसूफ तो नहीं? आपने कहा हा में युसूफ हु ओर ये मेरा भाई है (यानी मेरी माँ का बेटा है)। अल्लाह ने हम पर एहसान किया है यानी इम्तेहान लेने के बाद हमे यह मन्सब अता किया है जो तुम देख रहे हो। साथ साथ भाइयों को कहा कि अल्लाह तक़वा ओर सब्र करने वाले नेक  लोगों के अज्र को ज़ाया नहीं करता। इशारा था कि अगर तुमने भी तक़वा हासिल किया तो अल्लाह का करम तुम पर हो जायेगा।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 165

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Thursday 26 July 2018

*नमाज़ में चोरी का अन्जाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफ़ा ﷺ: सबसे बड़ा चोर वो है जो नमाज़ में चोरी करता हो। सहाबा ने अर्ज़ किया: कोई नमाज़ में कैसे चोरी कर सकता है? फ़रमाया: नमाज़ की चोरी ये है कि आदमी पूरी तरह रूकू और सज्दा न करे।

*✍🏼सहीह इब्ने हिब्बान* 1888

     एक शख्स को मुस्तफ़ा ﷺ ने नमाज़ पढ़ते हुए देखा वो न तो रूकू पूरा करता था और न ही सज्दा, उसका सज्दा ऐसा था जैसे कोई जानवर ज़मीन से दाना चुगता है। इस जल्दबाज़ी की नमाज़ देखकर आपने फ़रमाया: अगर ये इसी हालत में मर गया तो मुहम्मद ﷺ की शरीअत के अलावा किसी और शरीअत पर मरेगा क्योंकि ये मेरी सिखाई हुई नमाज़ नहीं है।

*✍🏼तिबरानी*

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 43

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-3, आयत, ②①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ऐ लोगों (1) अपने रब को पूजो जिसने तुम्हें और तुम से अगलों को पैदा किया ये उम्मीद करते हुए कि तुम्हें परहेज़गारी मिले (2)


*तफ़सीर*

     (1) सूरत के शुरू में बताया गया कि यह किताब अल्लाह से डरने वालों की हिदायत के लिये उतारी गई है, फिर डरने वालों की विशेषताओ का ज़िक्र फरमाया, इसके बाद इससे मुंह फेरने वाले समुदायो का और उनके हालात का ज़िक्र फरमाया कि फ़रमांबरदार  और क़िस्मत वाले इन्सान हिदायत और तक़वा की तरफ़ राग़िब हों और नाफ़रमानी व बग़ावत से बचें. अब तक़वा हासिल करने का तरीक़ा बताया जा रहा है. “ऐ लोगो” का ख़िताब (सम्बोधन) अकसर मक्के वालों को और “ऐ ईमान वालों” का सम्बोधन मदीने वालों को होता है. मगर यहां यह सम्बोधन ईमान वालों और काफ़िर सब को आम है, इसमें इशारा है कि इन्सानी शराफ़त इसी में है कि आदमी अल्लाह से डरे यानी तक़वा हासिल करे और इबादत में लगा रहे. इबादत वह संस्कार (बंदगी) है जो बन्दा अपनी अब्दीयत और माबूद की उलूहियत (ख़ुदा होना) के एतिक़ाद और एतिराफ़ के साथ पूरे करे. यहां इबादत आम है अर्थात पूजा पाठ की सारी विधियों, तमाम उसूल और तरीको को समोए हुए है. काफ़िर इबादत के मामूर (हुक्म किये गए) हैं जिस तरह बेवुज़ू नमाज़ के  फर्ज़  होने को नहीं रोकता उसी तरह काफ़िर होना इबादत के वाजिब होने को मना नहीं करता और जैसे बेवुज़ू व्यक्ति पर नमाज़ की अनिवार्यता बदन की पाकी को ज़रूरी बनाती है ऐसे ही काफ़िर पर इबादत के वाजिब होने से कुफ़्र का छोड़ना अनिवार्य ठहरता है.

     (2) इससे मालूम हुआ कि इ़बादत का फ़ायदा इबादत करने वाले ही को मिलता है, अल्लाह तआला इससे पाक है कि उसको इबादत या और किसी चीज़ से नफ़ा हासिल हो.

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*यौमे हिसाब की दहशत* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     हज़रते अली बिन मुहम्मद बिन इब्राहिम सफ़ार رحمة الله عليه से रिवायत है की एक रात में हज़रते अस्वद बिन सालिम رحمة الله عليه की खिदमत में हाज़िर हुवा आप मुसलसल ये अशआर पढ़े जा रहे थे और रोते जा रहे थे:

तर्जमा :

     अपने रब की बारगाह में महशर का मैदान मेरे सामने है, वो मुझ से सुवाल करेगा और पोशीदा राज़ खुल जाएगा।

     और मेरे लिये तो इतना ही काफी है की उस पुल (सिरात) से गुजरूं जो तलवार की धार की तरह है और उसके निचे दोज़ख है।

     फिर आप ने एक चीख मारी और सुबह तक आप पर गशी तारी रही।

     *नदामत से गुनाहों का इज़ाला कुछ तो हो जाता*

     *हमें रोना भी तो आता नहीं हाए नदामत से*


*✍🏼आंसुओं का दरिया* 47

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*गुस्ल का तरीक़ा* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*एक गुस्ल में मुख्तलिफ निय्यते*

     जिस पर चन्द गुस्ल हो सब की निय्यत से एक गुस्ल कर लिया, सब अदा हो गए सब का षवाब मिलेगा। 


     जुनुब ने जुमुआ या ईद के दिन ग़ुस्ले जनाबत किया और जुमुआ और ईद वग़ैरा की निय्यत भी कर ली सब अदा हो गए,


     अगर उसी गुस्ल से जुमुआ और ईद की नमाज़ अदा करले। 

*✍🏼माखुज़ अज़ बहारे शरीअत, जी.1, स.325*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 94*

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*जां निषारी* #1


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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       सुल्हे हुदैबिया में जब उरवह ने रसूलुल्लाह ﷺ से कहा कि मैं आप ﷺ  के सामने ऐसे चेहरे और मख्लूत आदमी देखता हूं जो आप ﷺ  को छोड़ कर भाग जाएंगे, तो हज़रते अबू बक्र के दिल पर इस तन्ज़ आमेज़ फ़िक्रे ने निश्तर का काम दिया और उन्हों ने बरहम हो के कहा हम , और आप ﷺ  को छोड़ कर भाग जाएंगे??

       येह एक कौल था, जिस की ताईद हर मौक़अ पर सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हुम ने अपने अमल से की।

      इब्तिदाए इस्लाम में एक बार आप ﷺ नमाज़ पढ़ने में मश्गूल थे, उक्बा बिन अबी मुईत आया और आप ﷺ का गला घोंटना चाहा, हज़रते अबू बक्र रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने उस को धकेल दिया और कहा कि एक आदमी को सिर्फ इस लिये क़त्ल करते हो कि वोह कहता हैं कि मेरा अल्लाह है, हालांकि वोह तुम्हारे खुदा की जानिब से दलाइल ले कर आया है। 

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

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Wednesday 25 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #201


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*युसूफ عليه السلام ने अपने आप को ज़ाहिर कर दिया* #01

     भाइयों ने कहा हम बे क़दर यानी थोड़ी मिक़दार में और जो ज़्यादा खरी भी नहीं, पूंजी लेकर आये हैं आप हमारी पूंजी को न देखे बल्कि अपनी महेरबानी को देखे, हमें पूरा पूरा नाप कर गल्ला दे, क्योंकि हमारा खानदान बहुत मुसीबत में है।

     जब भाइयों ने आ कर गल्ला का मुतालबा किया और इशारे से कहा हम ओर रहम करे, मक़सद कुछ यह भी था कि बुन्यामिन को छोड़ दो। लेकिन ज़ाहिर तौर पर यह नहीं कह रहे थे तो अल्लाह ने युसूफ عليه السلام को वही या इल्हाम के ज़रिये खबर कर दिया कि इनको इनके बाप ने इस लिये भेजा है कि युसूफ ओर उसके भाई को तलाश करो। आपने देखा कि यह अपने माजरा को ज़ाहिर नहीं कर रहे हैं तो आपने खुद ही कलाम का आगाज़ कर दिया, आपने कहा वो खत जो तुम्हें बाप ने मेरे लिये दिया है वो मुझे दे दो। 

     उस खत में तहरीर था: हमारा खानदान शुरू से ही मसाइब व आलाम की आजमाइशों से गुज़र रहा है में उस दादा इब्राहिम खलीलुल्लाह का पोता हु जिसके हाथ पांव बांधकर आग में डाल दिया गया था अल्लाह ने उन्हें नजात दी मेरा एक प्यारा बेटा युसूफ था जिसे उसके भाई साथ ले गये लेकिन वापस आकर उसकी खून आलूदा क़मीज़ पेश कर दी कि भेड़िया खा गया है। रो रो कर मेरी आँखों की बिनाई ज़ाया हो गई। फिर उसके दूसरे भाई बुन्यामिन को गल्ला लेने के लिये यह साथ ले गये। चोरी के इल्ज़ाम में तुमने उसे अपने पास रख लिया है। हमारे खानदान का शेवा चोरी करना नहीं ओर नाही हमारा खानदान चोरी करने के लिये पैदा किया गया है। तुम मेरे बेटे को वापस करो वरना में तुम्हारे खिलाफ रब के हुज़ूर दुआ करूँगा। यह खत पढ़ते ही युसूफ عليه السلام पर ज़्यादा रिक़्क़त तारी हो गई।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 162

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ में इमाम से जल्दबाज़ी करने का अन्जाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: उस आदमी को डर नहीं लगता जो इमाम से पहले ही रूकू और सज्दे से सर उठा लेता है? कहीं ऐसा न हो कि अल्लाह उसका चेहरा या सर बिगाड़ करके ग़धे की तरह कर दे।

*✍🏼सहीह बुखारी* 691

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो लोग इमाम से पहले ही रूकू या सज्दे से अपना सर उठा लेते है उनकी पेशानी शैतान के हाथ में है।

*✍🏼मुसन्दूल बज़्ज़ार* 16/9404

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 42

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ②ⓞ*



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     बिजली यूं ही मालूम होती है कि उनकी निगाहें उचक ले जाएगी(18) जब कुछ चमक हुई उस में चलने लगे(19) और जब अंधेरा हुआ, खड़े रह गए और अल्लाह चाहता तो उनके कान और आंखें ले जाता(20) बेशक अल्लाह सबकुछ कर सकता हैं(21)


*तफ़सीर*

     18. जैसे बिजली की चमक, मालूम होता है कि दृष्टि को नष्ट कर देगी, ऐसे ही खुली साफ़ दलीलों की रोशनी उनकी आंखों और देखने की क़ुव्वत को चौंधिया देती है.

     19. जिस तरह अंधेरी रात और बादल और बािरश की तारीकियों में मुसाफिर आश्चर्यचकित होता है, जब बिजली चमकती है तो कुछ चल लेता है, जब अंधेरा होता है तो खड़ा रह जाता है, उसी तरह इस्लाम के ग़लबे और मोजिज़ात की रोशनी और आराम के वक्त़ मुनाफ़िक़ इस्लाम की तरफ़ राग़िब होते (खिंचते) हैं और जब कोई मशक्कत पेश आती है तो कुफ़्र की तारीक़ी में खड़े रह जाते हैं और इस्लाम से हटने लगते हैं. इसी मज़मून (विषय) को दूसरी आयत में इस तरह इरशाद फ़रमाया “इज़ा दुउ इलल्लाहे व रसूलिही लियहकुमा बैनहुम इज़ा फ़रीक़ुम मिन्हुम मुअरिदुन.”(सूरए नूर, आयत 48) यानी जब बुलाए जाएं अल्लाह व रसूल की तरफ़ कि रसूल उनमें फ़रमाए तो जभी उनका एक पक्ष मुंह फेर जाता है. (ख़ाज़िन वग़ैरह)

     20. यानी यद्दपि मुनाफ़िक़ों की हरकतें इसी की हक़दार थीं, मगर अल्लाह तआला ने उनके सुनने और देखने की ताक़त को नष्ट न किया. इससे मालूम हुआ कि असबाब की तासीर अल्लाह की मर्ज़ी के साथ जुड़ी हुई है कि अल्लाह की मर्ज़ी  के बिना किसी  चीज़ का कुछ असर नहीं हो सकता. यह भी मालूम हुआ कि अल्लाह की मर्ज़ी असबाब की मोहताज़ नहीं, अल्लाह को कुछ करने के लिये किसी वजह की ज़रूरत नहीं.

     21. “शै” उसी को कहते है जिसे अल्लाह चाहे और जो उसकी मर्ज़ी के तहत आ सके. जो कुछ भी है सब “शै” में दाख़िल हैं इसलिये वह अल्लाह की क़ुदरत के तहत है. और जो मुमकिन नहीं यानी उस जैसा दूसरा होना सम्भव नहीं अर्थात वाजिब, उससे क़ुदरत और इरादा सम्बन्धित नहीं होता जैसे अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात वाजिब है, इस लिये मक़दूर (किस्मत) नहीं. अल्लाह तआला के लिये झूट बोलना और सारे ऐब मुहाल (असंभव) है इसीलिये क़ुदरत को उनसे कोई वास्ता नहीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*खौफे खुदा से रोने का इनआम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अबू बक्र सैदलानी رحمة الله عليه कहते है की मेने हज़रते सुलेमान बिन मन्सूर बिन अम्मार رحمة الله عليه को फ़रमाते हुए सूना की मेने ख्वाब में अपने वालिद को देखा तो पूछा: आप के रब ने आप के साथ क्या मुआमला किया? जवाब दिया: रब ने मुझे अपना कुर्ब अता फ़रमाया फिर मुझ से पूछा ऐ बदकार बुढ्ढे! क्या तू जानता है की मेने तुझे क्यूं बख्शा? मेने कहा में नहीं जानता। फ़रमाया: एक दिन तूने एक इज्तिमाअ में लोगों को रुलाया था उन में मेरा एक ऐसा बन्दा भी रो पड़ा था जो मेरे खौफ से कभी नहीं रोया तो मेने उसकी मगफिरत फरमा दी और उसके सदके तमाम अहले मजलिस की मगफिरत फरमा दी तुम भी उनमे शामिल थे जिन की मेने उसके सदके मगफिरत फ़रमाई।

*✍🏼आसुंओं का दरया* 47

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*गुस्ल का तरीक़ा* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_कब गुस्ल करना सुन्नत है_*

★ जुमुआ

★ ईदुल फ़ित्र

★ बकरी ईद

★ अरफे के दिन (यानि 9 जुल हिज्जतिल हराम)

★ ऐहराम बांधते वक़्त

     इन मौको पर गुस्ल करना सुन्नत है

*✍🏼फतावा आलमगिरी, जी.1, स. 16*


*_कब कब गुस्ल करना मुस्तहब है_*

★ वुकुफे अरफात

★ वुकुफे मुज़दलिफा

★ हाज़िरिये हरम

★ हाज़िरिये सरकारे आ'ज़म

★ तवाफ़

★ दुखुले मिना

★ जमरो पर कंकरिया मारने के लिये तीनो दिन

★ शबे बराअत

★ शबे क़द्र

★ अरफे की रात

★ मजलिसे मिलाद शरीफ

★ दीगर मजलिसे खैर के लिये

★ मुर्दा नहलाने के बाद

★ मजनून (यानि पागल) को जूनून (पागल पन) जाने के बाद

★ गशी से फाकेके बाद

★ नशा जाते रहने के बाद

★ गुनाह से तौबा करने

★ नए कपड़े पहनने के लिये

★ सफर से आने वाले के लिये

★ इस्तिहाज़ा का खून बंद होने के बाद

★ नमाज़े कुसुफ व खुसुफ

★ नमाज़े इस्तिस्का के लिये

★ खौफ व तारीकी और सख्त अंधी के लिये

★ बदन पर नजासत लगी और ये मालुम न हुवा के किस जगह लगी है। 

*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1, स.324,325*

*✍🏼दुर्रे मुख्तार व रद्दुल मोहतार, जी1, स.341-343*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 93-94*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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Tuesday 24 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #200


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रत युसूफ عليه السلام ओर बुन्यामिन की तलाश के लिए बेटों को भेजना*

     जब याक़ूब عليه السلام ने बताया कि अल्लाह से जो में जनता हु तुम नहीं जानते हो तो इसके बाद बेटों से फ़रमाया जाओ युसूफ ओर उसके भाई को तलाश करो तीसरे का ज़िक्र नहीं किया हालाकिं यहूदा भी रह गया था इसलिये की उसका वहां रहना इख़्तेयारी था उसके वापस लाने में कोई मुश्किल नहीं थी लेकिन युसूफ का वहां रहना अल्लाह के हुक्म से था इसमें रब की मर्ज़ी का इंतज़ार था।

     इससे पहले आज तक युसूफ عليه السلام को तलाश करने के मुतअल्लिक़ बाप ने बेटों को नहीं कहा आज क्यों कहा? बुन्यामिन के मुतअल्लिक़ मालूम है कि वह अज़िज़े मिस्र के पास चोरी के इल्ज़ाम में गुलाम होने की हैसियत से पाबन्द है फिर यह कहने का क्या मतलब है? कि युसूफ को और उसके भाई को तलाश करो।

     पास बात एक ही है कि अल्लाह की तरफ से जो याक़ूब عليه السلام जानते थे वो ओर कोई नही जानता था अब आपको मालूम था कि इस मर्तबा बुन्यामिन के साथ यूसुफ का पता भी चल जायेगा, अल्लाह की तरफ से आज़माइश का वक़्त खत्म होने वाला ही है।

     आपने फ़रमाया अल्लाह की रहमत से सिर्फ काफ़िर ही ना उम्मीद होते हैं क्योंकि अल्लाह की रहमत से इंसान ना उम्मीद उस वक़्त होता है जब उसका अक़ीदा हो कि अल्लाह कमाल पर क़ादिर नहीं या वो ये समझे कि अल्लाह को तमाम चीज़ों का इल्म नहीं या वो ये खयाल करे कि अल्लाह करीम नहीं बल्कि बखिल है ये तमाम वजह काफिरो में ही पाई जाती है।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 162

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नमाज़ में इधर उधर देखने का अन्जाम*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: लोगों का क्या हाल है? नमाज़ में आसमान की तरफ देखते है, इस हरकत से बाज़ आ जाएं वरना उनकी बिनाई (आँख की रौशनी) छीन ली जाएगी।

*✍🏼सहीह बुखारी* 708

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अल्लाह बन्दे पर उसकी नमाज़ की हालत में तवज्जो फ़रमाता है जब तक बन्दा नमाज़ में दूसरी तरफ तवज्जो न दे लेकिन जब बन्दा दूसरी तरफ ध्यान करता है तो अल्लाह अपनी तवज्जो उसकी तरफ से हटा लेता है।

*✍🏼अबू दाऊद* 910

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 41

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①⑧, ①⑨


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     बहरे, गूंगे, अन्धे, तो वो फिर आने वाले नहीं


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①⑨*

     या जैसे आसमान से उतरता पानी कि उसमें अंधेरियां हैं और गरज और चमक(15) अपने कानों में उंगलियां ठूंस रहे हैं, कड़क के कारण मौत के डर से(16) और अल्लाह काफ़िरों को घेरे हुए है(17)


*तफ़सीर*

     15. हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदने वालों की यह दूसरी मिसाल है कि जैसे बारिश ज़मीन की ज़िन्दग़ी का कारण होती है और उसके साथ खौफ़नाक अंधेरियां और ज़ोरदार गरज और चमक होती है, उसी तरह क़ुरआन और इस्लाम दिलों की ज़िन्दग़ी का सबब हैं और कुफ़्र, शिर्क, निफ़ाक़ दोगलेपन काबयान तारीकी (अंधेरे) से मिलता जुलता है. जैसे अंधेरा राहगीर को मंज़िल तक पहुंचने से रोकता  है, एैसे ही कुफ़्र और निफ़ाक़ राह पाने से रोकते हैं.और सज़ाओ का ज़िक्र गरजसे और हुज्जतों का वर्णन चमक से मिलते जुलते हैं.

     मुनाफ़िक़ों में से दो आदमी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पास से मुश्रिकों की तरफ भागे, राह में यही बारिश आई जिसका आयत में ज़िक्र है. इसमें ज़ोरदार गरज, कड़क और चमक थी. जब गरज होती तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि यह कानों को फाड़ कर मार न डाले, जब चमक होती चलने लगते, जब अंधेरी होती, अंधे रह जाते, आपस में कहने लगे _ ख़ुदा ख़ैर से सुबह करे तो हुज़ूर की ख़िदमत में हाज़िर होकर अपने हाथ हुज़ूर के मुबारक हाथों में दे दें. फिर उन्होंने एसा ही किया और इस्लाम पर साबित क़दम रहे. उनके हाल को अल्लाह तआला ने मुनाफ़िक़ों के लिये कहावत बनाया जो हुज़ूर की पाक मज्लिस में हाज़िर होते तो कानों में उंगलियां ठूंस लेते कि कहीं हुज़ूर का कलाम उनपर असर न कर जाए जिससे मर ही जाएं और जब उनके माल व औलाद ज्यादा होते और फ़तह और ग़नीमत का माल मिलता तो बिजली की चमक वालों की तरह चलते और कहते कि अब तो मुहम्मद का दीन ही सच्चा है. और जब माल और औलाद का नुक़सान होता और बला आती तो बारिश की अंधेरियों में ठिठक रहने वालों की तरह कहते कि यह मुसीबतें इसी दीन की वजह से हैं और इस्लाम से हट जाते.

     16. जैसे अंधेरी रात में काली घटा और बिजली की गरज _ चमक जंगल में मुसाफिरों को हैरान करती हो और वह कड़क की भयानक आवाज़ से मौत के डर से माने कानों में उंगलियां ठूंसते हों. ऐसे ही काफ़िर क़ुरआन पाक के सुनने से कान बन्द करते हैं और उन्हें ये अन्देशा या डर होता है कि कहीं इसकी दिल में घर कर जाने वाली बातें इस्लाम और ईमान की तरफ़ खींच कर बाप दादा का कुफ़्र वाला दीन न छुड़वा दें जो उनके नज्दीक मौत के बराबर है.

     17. इसलियें ये बचना उन्हें कुछ फ़ायदा नहीं दे सकता क्योंकि वो कानों में उंगलियां ठूंस कर अल्लाह के प्रकोप से छुटकारा नहीं पा सकते.

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*लेटे हुए नहीं देखा*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत जुनैद बगदादी رحمة الله عليه फ़रमाते है की मेने हज़रते सरी सकती رحمة الله عليه से ज़्यादा अल्लाह की इबादत करने वाला किसी को नहीं पाया। आप पर 78 साल ऐसे गुज़रे की आप को कभी लेटे हुए नहीं देखा गया, आप सिर्फ मर्ज़ुल मौत में लेटे थे।


*घर से न निकलता*

     हज़रत जुनैद बगदादी رحمة الله عليه फ़रमाते है की मेने हज़रते सरी सकती رحمة الله عليه को फ़रमाते हुए सुना की अगर जुमुआ और जमाअत वाजिब न होती तो में कभी अपने घर से न निकलता और मरते दम तक अपने घर ही को लाज़िम पकड़ता।

(अल्लाह की उन पर रहमत हो और उनके सदके हमारी महफिरत हो। اٰمِيْن بِـجٙـاهِ النّٙـبِـىِّ الْاٙ مِيْن)

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 46

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*गुस्ल का तरीक़ा* #07


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*निफ़ास की ज़रूरी वज़ाहत*

     अक्सर औरतो में ये मशहूर है की बच्चा जनने के बाद औरत 40 दिन तक लाज़िमी तौर पर नापाक रहती है ये बात बिलकुल गलत है। निफ़ास की तफ़सील मुलाहज़ा हो।

     बच्चा पैदा होने के बाद जो खून आता है उस को निफ़ास कहते है इसकी ज़्यादा से ज्यादा मुद्दत 40 दिन है, यानि अगर 40 दिन के बाद भी बंद न हो तो मरज़ है। लिहाज़ा 40 दिन पुरे होते ही गुस्ल कर ले और 40 दिन से पहले बंद हो जाए ख़्वाह बच्चे की विलादत के बाद एक मिनिट ही में बन्द हो जाए तो जिस वक़्त भी बन्द हो गुस्ल कर ले और नमाज़ व रोज़ा शुरू हो गए। 

     अगर 40 दिन के अंदर अंदर दोबारा खून आ गया तो शुरूए विलादत से ख़त्मे खून तक सब दिन निफ़ास ही के शुमार होंगे। 

     मस्लन विलादत के बाद 2 मिनिट तक खून आ कर बंद हो गया और औरत गुस्ल करके नमाज़ रोज़ा वग़ैरा करती रही, 40 दिन पुरे होने में फ़क़त 2 मिनिट बाकी थे की फिर खून आ गया तो सारा चिल्ला यानी मुकम्मल 40 दिन निफ़ास के ठहरेंगे। 

     जो भी नमाज़ पढ़ी या रोज़े रखे सब बेकार गए, यहाँ तक की अगर इस दौरान फ़र्ज़ व वाजिब नमाज़े या रोज़े क़ज़ा किये थे तो वो भी फिर से अदा करे।

*✍🏼माखुज़ अज़ फतावा रज़विय्या मुखर्रजा, जी.4 स. 356,356*

*✍🏼फैज़ाने सुन्नत, सफा 89*

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Monday 23 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #199


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*याक़ूब عليه السلام के बेटों ने आपकी परेशानी को देखकर कहा*

     बेटों ने याक़ूब عليه السلام से कहा कि आप युसूफ की याद में इतना गम करते हैं और रोते हैं इससे मरीज़ हो जायेंगे या इसी गम में फौत हो जायेंगे। पहले ही आप इतनी मशक़्क़त और परेशानी में मुब्तला है हमे डर है कि आपकी तकलीफ बढ़ जायेगी इसलिये आप बहुत गम न करें और न रोयें। आपने फ़रमाया में उसका ज़िक्र तुम्हारे सामने तो नहीं कर रहा मुझे तो जिस से ज़िक्र करना है उससे कर रहा हूँ यानी मेरी फरियाद अल्लाह से है। आप ने फरमाया अल्लाह की रहमत ओर उसके एहसानात को जो में जानता हूँ तुम नहीं जानते।

     क्योंकि अल्लाह को ही खुशी अता फरमानी है उसी को गमों को दूर करना है जो हमारे वहम व गुमान में भी नहीं। 

     इससे वाज़ेह इशारा इस तरफ था कि यूसुफ عليه السلام के मिलने की बड़ी क़वी उम्मीद है। रब ने जो इल्म मुझे दिया है वो तुम्हें नहीं दिया।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 161

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़े क़ज़ा करने का वबाल*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो गई समझो उसके अहल व माल जाते रहे यानी उसके घर वाले और उसकी दौलत सब बर्बाद हो गए।

*✍🏼सहीह इब्ने हिब्बान* 1468

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: 3 आदमी ऐसे है जिनकी अल्लाह नमाज़ और ज़िक्र कुबूल नहीं करता। उसमें से एक वो है जो वक़्त गुज़र जाने के बाद नमाज़ पढ़ता है।

*✍🏼मकाशफतुल क़ुलूब* 391

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 41

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①⑦*



بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     उनकी कहावत उसकी तरह है जिसने आग रौशन की तो जब उससे आसपास सब जगमगा उठा, अल्लाह उनका नूर ले गया और उन्हें अंधेरियों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं सूझता (14)


*तफ़सीर*

     14. यह उनकी मिसाल है जिन्हें अल्लाह तआला ने कुछ हिदायत दी या उसपर क़ुदरत बख्शी,फिर उन्होंने उसको ज़ाया कर दिया और हमेशा बाक़ी रहने वाली दौलत को हासिल न किया. उनका अंजाम हसरत, अफसोस, हैरत और ख़ौफ़ है. इसमें वो मुनाफ़िक़ भी दाखि़ल हैं जिन्होंने ईमान की नुमाइश की और दिल में कुफ़्र रखकर इक़रार की रौशनी को ज़ाया कर दिया, और वो भी जो ईमान  लाने के बाद दीन से निकल गए, और वो भी जिन्हें समझ दी गई और दलीलों की रौशनी ने सच्चाई को साफ़ कर दिया मगर उन्होंने उससे फ़ायदा न उठाया और गुमराही अपनाई और जब हक़ सुनने, मानने, कहने और सच्चाई की राह देखने से मेहरूम हुए तो कान, ज़बान, आंख, सब बेकार हैं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*आराम न फ़रमाते*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अमीरुल मुअमिनिन हज़रत उमर बिन खत्ताब رضي الله عنه को आराम का वक़्त नहीं मिलता था, लिहाज़ा आप पर बैठे बैठे गुनुदगी तारी हो जाती। सहाबा ने अर्ज़ की ऐ अमीरुल मुअमिनिन! क्या आप सोते नहीं है? आप ने फ़रमाया में कैसे सो सकता हूँ, अगर में दिन में सोता हूँ तो लोगों के हुक़ूक़ ज़ाए कर बैठूंगा और अगर रात में सोता हूँ तो अल्लाह कि तरफ से अपना हिस्सा ज़ाए कर बैठूंगा।

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 45

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*गुस्ल का तरीक़ा* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*गुस्ल फ़र्ज़ होने के अस्बाब*

     🔹मनी का अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो कर उज़्व से निकलना। 

     🔹ऐहतिलाम यानी सोते में मनी का निकल जाना। 

     🔹शर्मगाह में हश्फ़ा दाखिल हो जाना ख़्वाह शहवत हो या न हो, इन्ज़ाल हो या न हो, दोनों पर गुस्ल फ़र्ज़ है। 

     🔹हैज़ से फ़ारिग़ होना। 

     🔹निफ़ास (यानि बच्चा जनने पर खून आता है उस) से फ़ारिग़ होना।

*✍🏼बहारे शरीअत, जी.1, स.321-324*

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 88-89*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अदबे रसूल (ﷺ)* #4


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

   

      एक बार कुछ लोगों ने जुमुआ के दिन आप ﷺ के मिम्बर के सामने शोरो ग़ुल करना शुरुअ किया, हज़रते उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने डांटा कि आप ﷺ के मिम्बर के सामने आवाज़ ऊंची न करो।

      येह ताज़ीम येह अदब, येह इज़्ज़त, आप ﷺ की ज़िन्दगी के साथ ही मख़सूस न थी, आप ﷺ के विसाल के बा'द भी सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हुम आप ﷺ का इसी तरह अदबे करते थे, आप  ﷺ के विसाल के बाद क़ब्र के मुताल्लिक इख़्तिलाफ़ हुवा कि लहद खोदी जाए या सन्दूक, इस पर लोगों ने शोरो ग़ुल शुरुअ कर दिया, हज़रते उमर रदिअल्लाहो तआला अन्हो ने फ़रमाया: आप  ﷺ के सामने वफ़ात न हयात दोनों हालतों में  शोरो शगब न करो।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 178

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*तज़किरतुल अम्बिया* #198


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*याक़ूब عليه السلام के रोने की अजीब हिकमत*

     बज़ाहिर याक़ूब عليه السلام जैसे जलीलुल मरतबत पैगम्बर का अपने फ़रज़न्द की महब्बत में इतना वारफ्ता हो जाना और उसके हिज्र व फ़िराक़ में रो रो कर आंखे सफेद कर देना आपके शायाने शान मालूम नहीं होता।

     अल्लामा आलूसि फरमाते है कि अहले मारफत ने इस खलिश को यह कह कर दूर किया है कि हुस्ने युसूफ को आपके लिए जमाले इलाही का आईना बना दिया गया था वह इस तलअत ज़ेबा के आईना में तजल्लियाते इलहया का मुशाहिदा फ़रमाया करते थे जब युसूफ عليه السلام आपकी निगाहों से ओझल हो गये तो अनवारे खुदावन्दी की लज़्ज़ते दीद से महरूम हो जाने के बाइस आप बेचैन और बेक़रार हो गये।

     इसके बाद अल्लामा तहरीर फरमाते है: अगर याक़ूब عليه السلام की इस तजल्ली का मुशाहदा करते जो फ़ख़रे मौजुदात मुहम्मद ﷺ के हज़न व जमाल में दरख्शां है तो उन्हें हुस्ने युसूफ याद ही न रहता और उनके हिज्र व फ़िराक़ में आपका यह हाल न होता।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 160

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Sunday 22 July 2018

*अव्वल वक़्त नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते है कि मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया: या रसूलल्लाह ﷺ! कौन सा अमल अल्लाह को सबसे ज़्यादा पसन्द है? फ़रमाया: वक़्त पर नमाज़ पढ़ना।

*✍🏼सहीह बुखारी* 504

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अव्वल वक़्त नमाज़ पढ़ना अल्लाह की ख़ुशनूदी का सबब है और आखिर वक़्त नमाज़ पढ़ना अल्लाह की तरफ से अफ्वो दरगुज़र का सबब है।

*✍🏼सुनने तिर्मिज़ी* 172

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अल्लाह ने 5 नमाज़े फ़र्ज़ की है, जिसने अच्छी तरह वुज़ू किया, वक़्त पर नमाज़ पढ़ी और दिल जमाकर अच्छी तरह रूकू और सज्दा किया तो अल्लाह ने ये वादा फ़रमाया है कि वो ऐसे आदमी को बख्श देगा और जो ऐसा न करे उसके लिये कोई वादा नहीं है।

*✍🏼अत्तरगिब् वत्तरहिब*

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जब बन्दा अव्वल वक़्त में नमाज़ पढ़ता है तो उसकी नमाज़ आसमानों की तरफ जाती है और वो नूरानी शक्ल में होती है यहाँ तक कि अर्शे इलाही तक जा पहुंचती है और नमाज़ी के लिये क़यामत तक दुआ करती रहती है कि अल्लाह तेरी हिफाज़त फरमाए जैसे तूने मेरी हिफाज़त की है और जब आदमी बे वक़्त नमाज़ पढ़ता है तो उसकी नमाज़ काली शक्ल में आसमानों की तरफ चढ़ती है जब वो आसमान तक पहुँचती है तो उसे पुराने कपड़े की तरह लपेटकर पढ़ने वाले के मुह पर मार दिया जाता है।

*✍🏼मकासफतुल क़ुलूब* 391

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 40

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     ये वो लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदी(12) तो उनका सौदा कुछ नफ़ा न लाया और वो सौदे की राह जानते ही न थे(13)


*तफ़सीर*

     12. हिदायत के बदले गुमराही ख़रीदना यानी ईमान की जगह कुफ़्र अपनाना बहुत नुक़सान औरघाटे की बात है. यह आयत या उन लोगों के बारे में उतरी जो ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए, या यहूदियों के बारे में जो पहले से तो हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम पर ईमान रखते थे मगर जब हुज़ूर तशरीफ़ ले आए तो इन्कार कर बैठे, या तमाम काफ़िरों के बारे में कि अल्लाह तआला ने उन्हें समझने वाली अक़्ल दी, सच्चाई के प्रमाण ज़ाहिर फ़रमाए, हिदायत की राहें खोलीं, मगर उन्होंने अक़्ल और इन्साफ़ से काम न लिया और गुमराही इख्तियार की. इस आयत से साबित हुआ कि ख़रीदों फ़रोख्त (क्रय विक्रय) के शब्द कहे बिना सिर्फ़ रज़ामन्दी से एक चीज़ के बदले दूसरी चीज़ लेना जायज़ है.

     13. क्योंकि अगर तिजारत का तरीक़ा जानते तो मूल पूंजी (हिदायत) न खो बैठते.

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*खौफे खुदा में बहने वाले आंसू*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक शख्स ने हुज़ूर ﷺ की बारगाह में हाज़िर हो कर अर्ज़ की: या रसूलल्लाह ﷺ! में किस चीज़ के ज़रीए जहन्नम से नजात पा सकता हूँ? फ़रमाया: अपनी आँखों के आंसुओं से। अर्ज़ की: में अपनी आँखों के आंसुओं के ज़रीए जहन्नम से नजात कैसे पाउँगा? फ़रमाया: इन दोनों के आंसुओं को अल्लाह के खौफ से बहाओ क्योंकि जो आँख अल्लाह के खौफ से रोए उसे जहन्नम का अज़ाब नहीं होगा।

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 40

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*गुस्ल का तरीक़ा* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*मस्तुरात (औरत) के लिये गुस्ल की एहतियाते*

     ◆ ढलकी हुई पिस्तान को उठा कर पानी बहाए। पिस्तान और पेट के जोड़ की लकीर धोए।

     ◆ फ़र्ज़े कारिज (यानि औरत की शर्मगाह के बहार के हिस्से) का हर गोशा हर टुकड़ा ऊपर निचे खूब एहतियात से धोए। 

     ◆ फ़र्ज़े दाखिल (यानि शर्मगाह के अंदरुनी हिस्से) में ऊँगली दाल कर धोना फ़र्ज़ नहीं मुस्तहब है। 

     ◆ अगर हैज़ या निफ़ास से फ़ारिग़ हो गुस्ल करे तो किसी पुराने कपड़े से फ़र्ज़े दाखिल के अंदर से खून का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है।

*✍🏽बहारे शरीअत, जी.1, स.318*


     ◆ अगर नेल पोलिश नाखुनो पर लगी हुई है तो उसका भी छुड़ाना फ़र्ज़ है वरना गुस्ल नहीं होगा, हा मेहदी के रंग में हरज नहीं। 

*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा  88*

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Saturday 21 July 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #197


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*याकूब عليه السلام ने फ़रमाया*

     याकूब عليه السلام ने बेटों के कलाम को रद कर दिया और फ़रमाया कि तुम यह हिला बना रहे हो यह कैसे हो सकता है मिस्र के बादशाह मेरे बेटे को चोरी के इल्ज़ाम में अपने पास गुलाम बना ले? जब कि उसके क़ानून में यह है ही नहीं कि किसी को चोरी के इल्ज़ाम में गुलाम बनाया जाये।

     आप युसूफ عليه السلام की जुदाई पर गम खा रहे थे हालांकि ताज़ा गम बुन्यामिन का है। इसकी एक वजह पहले ज़िक्र हो चुकी है कि अल्लाह ने आपको इल्म आता फ़रमा दिया था कि मिस्र के अज़िज़ युसूफ عليه السلام है लेकिन अभी ज़ाहिर करने का वक़्त नहीं था।

     दूसरी वजह अल्लामा आलूसि ने बयान फ़रमाई की असल मुसीबत व गम युसूफ عليه السلام का ही था बाक़ी गम उसके ऊपर मुरत्तब हो रहे थे। मतलब यह था कि युसूफ عليه السلام की जुदाई का गम ही काफी था अभी तो वही ताज़ा है ओर यह गम उस पर मुरत्तब हो गया।

     तीसरी वजह यह थी कि बुन्यामिन ओर यहूदा के मुताल्लुक़ तो जाहिर तौर पर मालूम था कि वह ज़िन्दा व सलामत मिस्र में है लेकिन युसूफ عليه السلام के मिस्र के बादशाह होने को ज़ाहिर नहीं करना था, लेकिन मालूम था इसलिये कहा युसूफ पर अफसोस है खुद भी जुदा है और बुन्यामिन ओर यहूदा को भी जुदा करने का सबब बन गया।

     आप عليه السلام इसी गम में खामोश रहने लगे जिस तरह गुस्सा से भरा हुआ शख्स अपने मुह पर खामोशी की मोहर लगा लेता है किसी से गुफ्तगू करना पसंद नहीं करता।

*✍तज़किरतुल अम्बिया* 160

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*जमाअत छोड़ने पर वईदें*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स दिन को रोज़े रखता है, रात को इबादत करता है मगर जुमुआ और जमाअत में नहीं आता तो वो दोज़ख में जाएगा।

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: मोमिन की बदबख्ति और नामुरादी के लिये यही काफी है कि मुअज्ज़िन को अज़ान कहते हुए सुने और जमाअत में हाज़िर न हो।

*✍🏼अल-मोजमुल कबीर लित्तिबरानी* 3/16805

     फरमाने मुस्तफा ﷺ:लोग जमाअत छोड़ने से बाज़ आ जाएं वरना में ज़रूर उनके घरों को आग लगा दूंगा।

*✍🏼सुनने इब्ने माजा* 795

     हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله عنه फ़रमाते है कि अगर तुमने जमाअत छोड़ने वाले इस शख्स की तरह नमाज़ पढ़ी तो तुम अपने नबी ﷺ की सुन्नत के छोड़ने वाले हो जाओगे और अगर तुमने अपने नबी की सुन्नत को छोड़ दिया तो तुम गुमराह हो जाओगे।

*✍🏼मुस्लिम शरीफ* 1520

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: ये सरासर ज़ुल्म व ज़्यादती, कुफ़्र व निफ़ाक़ की बात है कि आदमी अल्लाह के मुनादी की आवाज़ सुने जो उसे नमाज़ के लिये पुकार रहा हो लेकिन वो नमाज़ को न जाए।

*✍🏼मुसन्दे अहमद* 16032

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 38

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     अल्लाह उनसे इस्तहज़ा फ़रमाता है (अपनी शान के मुताबिक़) और उन्हें ढील देता है कि अपनी सरकशी में भटकते रहें. 

*तफ़सीर*

     अल्लाह तआला इस्तहज़ा (हंसी करने और खिल्ली उड़ाने) और तमाम ऐबों और बुराइयों से पाक है. यहां हंसी करने के जवाब को इस्तहज़ा फ़रमाया गया ताकि ख़ूब दिल में बैठ जाए कि यह सज़ा उस न करने वाले काम की है. ऐसे मौके़ पर हंसी करने के जवाब को अस्ल क्रिया की तरह बयान करना फ़साहत का क़ानून है. जैसे बुराई का बदला बुराई. यानी जो बुराई करेगा उसे उसका बदला बुराई की सूरत में मिलेगा.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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फ़रिश्ते की सदाएं*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अल्लाह के खौफ से मोमिन की आँख से निकलने वाला क़तरा उसके लिये दुन्या और इस की हर चीज़ से बेहतर है और एक साल की इबादत से बेहतर है और अल्लाह की अज़मत  और कुदरत में एक घड़ी गौरो फ़िक्र करना 60 दीन के रोज़ों और 60 रातों की इबादत से बेहतर है, सुन लो कि बेशक अल्लाह का एक फ़रिश्ता हर दिन और रात में निदा करता है कि 40 साल की उम्र वालो! फसल काटने का वक़्त आ गया, ऐ 50 साल वालो! हिसाब की तैयारी कर लो, ऐ 60 साल वालो! तुम ने आगे क्या भेजा और पीछे क्या छोड़ा है? ऐ 70 साल वालो! तुम्हे किस चीज़ का इंतज़ार है? काश कि मख्लूक़ पैदा न होती और जब पैदा हो गई है तो काश अपना मक़्सदे हयात जान लेती फिर उस के मुताबिक़ अमल करती, खबरदार! क़यामत तुम्हारे क़रीब आ गई होशियार हो जाओ।

*حلية الاولياء*

     ऐ बदी के गुलाम! तू कितने गुनाह करता है और हम पर्दा पोशी कर देते है, म्मनुआत के कितने दरवाज़े तू तोड़ डालता है और हम उसे दुरुस्त कर देते है। हम कब तक तेरी आँखों से खौफ के आसूं तलब करें हालांकि वह नहीं गिरते, हम कब तक चाहेंगे कि तू ताअत इख़्तियार करे हालांकि तू इससे भागता है और जुदाई इख्तियार कर्ता है, हमने तुझे कितनी नेअमतें अता फ़रमाई मगर तू इसका शुक्र अदा नहीं करता, तुझे दुन्या और ख्वाहिशात की पैरवी ने धोके में डाल दिया कि तू न तो सुनता है और न ही देखता है, हम ने तेरे लिये काएनात को मुस्खखर कर दिया फिर भी तू सर्कशी और ना शुक्रि इख़्तियार करता है और दुन्या ही में रहना चाहता है हालांकि ये तो नसीहत क़बूल करने वाले के लिये पुल की हैसिय्यत रखती है।

*✍🏼आंसुओं का दरिया* 41

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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अदबे रसूल (ﷺ)* #3

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

   

    अगर किसी शख्स के मुताल्लिक आप ﷺ की निस्बत बे अदबी का ख़याल होता तो सहाबए किराम रदिअल्लाहो तआला अन्हुम सख्त बरहम होते। 

    एक बार अज़रते अबू बक्र रदिअल्लाहो तआला अन्हो  दौलत सराए अक़दस में आए। देखा कि हज़रते आइशा रदिअल्लाहो तआला अन्हा ब आवाज़े बुलन्द बोल रही हैं। फौरन तमांचा उठाया और कहा अब कभी आप ﷺ के सामने आवाज़ बुलंद न होने पाए।

    आप ﷺ पर एक शख्स का कुछ क़र्ज़ था, उस ने गुस्ताख़ाना तरीके से तक़ाज़ा किया, तो तमाम सहाबा रदिअल्लाहो तआला अन्हुम उस पर बर अंगेख्ता हो गए, तो नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया: रुको! क़र्ज़ ख़्वाह को मक़रूज़ पर मुतालबा करने का उस वक़्त तक हक हैं जब तक वोह क़र्ज़ अदा न करे। 

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 175

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #196


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*बड़े भाई का मिस्र में रहना और दूसरों को वापस भेजना*

     इब्तिदाई तौर पर जब भाइयों की अपील युसूफ عليه السلام ने रद कर दी तो यहूदा गुस्सा में आ गया और यह जब गुस्सा में आता था तो उसके जिस्म के बाल खड़े हो जाते थे अगर गुस्सा के हाल में यह चीख मारता तो हामिला औरतों के हमल गिर जाते। उस वक़्त तक उसका गुस्सा ठंडा नहीं होता था जब तक याकूब عليه السلام की औलाद में से ही कोई शख्स उसके जिस्म को हाथ न लगाता। उसने आने दूसरे भाइयों को कहा तुम बाज़ार के लोगो से मुलाकात करो, इन्हें मेरे क़रीब न आने दो में अज़िज़े मिस्र से मुकाबला करता हूँ। मै उसे आपके क़रीब नही आने दूंगा। युसूफ عليه السلام ने अपने छोटे बेटे को कहा कि जाकर उसके जिस्म को छू दो जब उसने यहूदा के जिस्म को हाथ लगाया तो उसका गुस्सा ठंडा हो गया।

     जब वो बुन्यामिन को छुड़ाने में नाकाम हो गये तो लोगो से अलग हो कर एक दूसरे से मशवरा करने लगे कि अब क्या किया जाए? क्योंकि अपने वालिद से पुख्ता वादा करके ओर बड़ा वसुक दिलाकर बुन्यामिन को ले गये थे और पहले भी युसूफ عليه السلام के मामले में उनपर तोहमत आईडी हो चुकी थी कि तुम झुटे हो। अब बहुत परेशान थे कि इस तरह वापस जाते हैं तो बाप बहुत ज़्यादा परेशान होंगे और यह बात भी मदद नज़र थी कि घर वाले गल्ला के लिये मोहताज है वापस जाना भी ज़रूरी है और अगर सब नही जाते तो बाप ख्याल करेगा कि कहि सब फौत तो नहीं हो गये। ओर अगर बुन्यामिन के बगैर लौटते है तो अपने बाप को कैसे मुह दिखाये? आखिर कर सबसे बड़े ने कहा तुम चले जाओ में नहीं जाता या तो मुझे बाप इजाज़त दे तो वापस जाऊंगा या अल्लाह कोई फैसला फ़रमाया दे।

     उसने कहा तुम जाकर बाप को बताओ तुम्हारे बेटे ने चोरी करली है यानी उसकी तरफ चोरी को मन्सब कर दिया गया है, आप बस्ती से पूछ लें या काफिले वालो से पूछ लो हम सच्चे है। हमारे सामने तो जो बात आई है वही बयान कर रहे हैं।

*✍तज़किरतुल अम्बया* 159

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*जमाअत की फ़ज़ीलत*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया: जमाअत की नमाज़ तन्हा नमाज़ से षवाब में 27 दर्जा बढ़कर है।

*✍🏼सहीह मुस्लिम* 1509

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जिसने मुकम्मल वुज़ू किया फिर फ़र्ज़ नमाज़ के लिये चला और इमाम के साथ नमाज़ पढ़ी तो उसके गुनाह बख्श दिये जाएंगे।

*✍🏼सहीह इब्ने खुज़ैम* 1489

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जो अल्लाह की रिज़ा के लिये 40 दिन नमाज़ जमाअत के साथ पढ़े और तकबीर उला पाए उसके लिये दो आज़ादियाँ लिख दी जाएंगी: (1) जहन्नम से (2) निफ़ाक़ से।

*✍🏼तिर्मिज़ी शरीफ* 241

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: जिसने जमाअत से ईशा की नमाज़ पढ़ी समझो आधी रात उसने क़याम किया (यानी इबादत की) और जिसने फजर की नमाज़ जमाअत से पढ़ी समझो पूरी रात उसने क़याम किया।

*✍🏼सहीह मुस्लिम* 1523

     हज़रत उमर बिन खत्ताब رضي الله عنه फ़रमाते है मेने नबीए करीम ﷺ को ये फ़रमाते हुए सुना: बेशक अल्लाह जमाअत की नमाज़ को पसन्द फ़रमाता है।

*✍🏼मुसन्दे अहमद बिन हम्बल* 5112

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 37

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-2, आयत, ①④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     और जब ईमान वालों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए और जब अपने शैतानों के पास अकेले हों(9) तो कहें हम तुम्हारे साथ हैं, हम तो यूं ही हंसी करते हैं (10)


*तफ़सीर*

     9. यहां शैतानों से काफ़िरों के वो सरदार मुराद है जो अग़वा (बहकावे) में मसरूफ़ रहते हैं. (ख़ाज़िन और बैज़ावी) ये मुनाफ़िक़ जब उनसे मिलते है तो कहते है हम तुम्हारे साथ हैं और मुसलमानों से मिलना सिर्फ़ धोख़ा और मज़ाक उड़ाने की ग़रज़ से इसलिये है कि उनके राज़ मालूम हों और उनमें फ़साद फैलाने के अवसर मिलें. (ख़ाजिन)

     10.यानी ईमान का ज़ाहिर करना यानी मज़ाक उड़ाने के लिये किया, यह इस्लाम का इन्कार हुआ.नबियों और दीन के साथ मज़ाक करना और उनकी खिल्ली उड़ाना कुफ़्र है. यह आयत अब्दुल्लाह बिन उबई इत्यादि मुनाफ़िक़ के बारे़ में उतरी. एक रोज़ उन्होंने सहाबए किराम की एक जमाअत को आते देखा तो इब्ने उबई ने अपने यारों से कहा _ देखों तो मैं इन्हें कैसा बनाता हूं. जब वो हज़रात क़रीब पहुंचे तो इब्ने उबई ने पहले हज़रत सिद्दीके अकबर का हाथ अपने हाथ में लेकर आपकी तअरीफ़ की फिर इसी तरह हज़रत उमर और हज़रत अली की तअरीफ़ की. हज़रत अली मुर्तज़ा ने फ़रमाया _ ए इब्ने उबई, ख़ुदा से डर, दोग़लेपन से दूर रह, क्योंकि मुनाफ़िक़ लोग बदतरीन लोग हैं. इसपर वह कहने लगा कि ये बातें दोग़लेपन से नहीं की गई. खु़दा की क़सम, हम आपकी तरह सच्चे ईमान वाले हैं. जब ये हज़रात तशरीफ़ ले गए तो आप अपने यारों में अपनी चालबाज़ी पर फ़ख्र करने लगा. इसपर यह आयत उतरी कि मुनाफ़िक़ लोग ईमान वालों से मिलते वक्त ईमान और महब्बत  जा़हिर  करते  हैं और उनसे अलग होकर अपनी ख़ास बैठकों में उनकी हंसी उड़ाते और 

खिल्ली करते हैं. इससे मालूम हुआ कि सहाबए किराम और दीन के पेशवाओ की खिल्ली उड़ाना कुफ़्र हैं.

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*तौबा के 3 इनामात*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास رضي الله عنه से रिवायत है कि रहमतुल्लिल आ-लमीन ﷺ का फरमान है: तौबा करने वाले जब अपनी क़ब्रों से निकलेंगे तो उन के सामने से मुश्क की खुशबु फैलेगी, वो जन्नत के दस्तरख्वान पर आ कर उस में से खाएंगे और वो अर्श के साए में होंगे जब कि दीगर लोग हिसाब की सख्ती में मुब्तला होंगे।
*आंसुओं का दरिया* 39
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