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Wednesday 31 October 2018

*क़यामत का बयान* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : क्या कियामत का दिन हर एक के लिये यक्सां तवील होगा?      

     *जवाब* : नहीं, रोज़े कियामत की दराजी बाज़ काफिरों के लिये हज़ार बरस और बाज़ के लिये पचास हजार बरस होगी जब कि बन्दए मोमिन के लिये येह दिन फकत एक फर्ज नमाज़ के बराबर होगा जो दुन्या में पढ़ता था।


     *सुवाल* : मीजान क्या है?

     *जवाब* : वोह तराज़ू है जिस में लोगों के आमाल तोले जाएंगे। इस की एक ज़बान और दो पलड़े हैं, नेकियां खूब सूरत शक्ल में और गुनाह बुरी शक्ल में मीज़ान में रखे जाएंगे।


     *सुवाल* : मैदाने महशर में ज़मीन किस चीज़ की कर दी जाएगी?

     *जवाब* : तांबे की।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 32

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*शैतान का गुज़र न हो व कारोबार खूब चमके*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

 कागज़ पर 35 बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़) लिख कर घर में लटका दें शैतान का गुज़र न हो और खूब बरकत हो। अगर दुकान में लटकाएं तो ان شاء الله कारोबार खूब चमके।

*✍️मदनी पंजसुरह* 5

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #295


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*शोएष عليه السلام ने अपनी क़ौम को कहा* #02

     इसके बाद अल्लाह तआला ने अपने नबी के ज़रिये उन्हें अपनी नेमत याद दिलाई और कहाः और याद करो जब तुम थोड़े थे उसने तूम्हें बढ़ाया।

     यानी जब अल्लाह तआला के तुम पर कसीर इनामात हैं तो तुम्हें चाहिये कि तुम अल्लाह तआला की इताअत करो, उसकी इबादत करो और उसकी नाफरमानी से दूर रहो।

     कसरत के तीन मसद हो सकते हैं: तुम तादाद में थोड़े थे अल्लाह तआल ने तुम्हें बढ़ा दिया। यानी अब तुम तादाद में बहुत ज्यादा हो उसका तुम पर एहसान अज़ीम है। तुम गरीब थे तुम्हारे पास माल व दौलत नहीं थी अल्लाह तआला ने तुम्हारे माल व दौलत को बढ़ा दिया हक यह था कि तुम इस अज़ीम एहसान का शुक्र अदा करते और हलाल तरीके से माल हासिल करते लेकिन तुमने तो हराम तरीके से माल बटोरना शुरू कर रखा है। तुम कमज़ोर थे उसने तुम्हें ताकतवर बना दिया। जिनकी ताकत कम हो वह ख्वाह कितनी तादाद में क्यों न हों वह कलील ही नज़र आते हैं। उन्को किसी भी किस्म का रोब और दबदबा हासिल नहीं होता, लेकिन जिन्हें अल्लाह ताला ताकत दे दे वह कसीर तादाद वालो पर भारी होने की वजह से कसीर होते हैं। 

     फिर आपने अपनी कौम को इबरत हासिल करने का सबक देते हुए इरशाद फरमायाः देखो! फ़सादियों का क्या अंजाम हुआ? 

     यीन तुमसे पहले जो सरकश और ज़ालिम अल्लाह तआला के नाफरमान हुए उन्हें सिवाए ज़िल्लत व रुसवाई और अज़ाबे इलाही के कुछ हासिल नहीं हुआ अगर तुम भी इस हाल पर रहे ते तुन्हारा भी यही अंजाम होगा।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 259

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ में सुस्ती पर मुसीबतें*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत इमाम ग़ज़ाली رحمة الله عليه फ़रमाते है कि जो नमाज़ में सुस्ती करता है अल्लाह उसे 15 मुसीबतों में मुब्तला कर देता है, उनमें से 5 दुन्या में, 3 मौत के वक़्त, 3 क़ब्र में, 3 क़ब्र से निकलते वक़्त होती है।

     *दुन्यवी मुसीबतें* :

(1) उम्र से बरकत छीन ली जाती है।

(2) उसके चेहरे से नेकों की निशानी मिट जाती है।

(3) उसके किसी भी अमल का अल्लाह षवाब नहीं देता।

(4) उसकी दुआ आसमान की तरफ बुलन्द नहीं होती (यानी क़ुबूल नहीं होती)

(5) नेकों की दुआओं में उसका कोई हिस्सा नहीं होता (यानी अगर नेक आदमी भी दुआ करे तो नमाज़ में सुस्ती करने वाले के हक़ में क़ुबूल नहीं होगी)

     *मौत के वक़्त की मुसीबतें* :

(1) वो ज़लील होकर मरेगा।

(2) भूखा मरेगा।

(3) प्यास मरेगा, अगर्चे उसे दुन्या के तमाम समन्दर का पानी पिला दिया जाए फिर भी उसकी प्यास नही बुझेगी।

     *क़ब्र की मुसीबतें* :

(1) क़ब्र तंग होगी यहाँ तक कि उसकी पसलियां रक दूसरे से मिल जाएंगी।

(2) क़ब्र में आग भड़काई जाएगी जिसके अंगारों पर वो रात दिन लोटता रहेगा।

(3) उसकी क़ब्र में एक अज़दहा मुक़र्रर कर दिया जाएगा वो कड़कदार बिजली जेसी आवाज़ में मैय्यत से बात करेगा और कहेगा कि मेरे रब ने मुझे हुक्म दिया है कि में तुझे नमाज़े बर्बाद करने के बदले सुबह से शाम तक डसता रहूँ। और जब वो अज़दहा मैय्यत को डसेगा तो वो 70 हाथ ज़मीन में घंस जाएगा फिर इसी तरह क़यामत तक उसको ये अज़ाब होता रहेगा।

     *क़ब्र से निकलते हुए हशर के मैदान मेझेलने वाली मुसीबते*

(1) सख्त हिसाब

(2) अल्लाह की नाराज़गी

(3) जहन्नम में दाखिला

     अल्लाह मुसलमानों को ऐसे भयानक अन्जाम से बचाए।

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 34

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Tuesday 30 October 2018

*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #12


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*ट्रेन रुकी रही !*_

     हज़रत अय्यूब अली शाह साहिब رحمة الله عليه फरमाते हे के मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहा गाडी सिर्फ 2 मिनिट के लिये ठहरती है।

     मगरिब का वक़्त हो चूका था, आप ने गाडी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फरमा कर गाडी के अंदर ही निय्यत बांध ली, गालिबन 5 सख्शो ने इक्तिदा की की उनमे में भी था लेकिन अभी शरीके जमाअत नही होने पाया था के मेरी नज़र गेर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा सब्ज़ ज़ण्डि हिला रहा था, में ने खिड़की से झांक कर देखा के लाइन क्लियर थी और गाडी छूट रही थी, मगर गाडी न चली और हुज़ूर आला हज़रत ने ब इत्मिनान तीनो फ़र्ज़ रकाअत अदा की और जिस वक़्त दाई जानिब सलाम फेरा था गाडी चल दी। मुक्तदियो की ज़बान से बे साख्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।

     इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाडी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाडी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाडी में अदा करता है।

*✍🏽हयाते आला हज़रत, 3/189*

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 17*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-16, आयत, ①③ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और इब्राहीम के दीन से कौन मुंह फेरे (1) सिवा उसके जो दिल का मूर्ख है और बेशक ज़रूर हम ने दुनिया में उसे चुन लिया (2) और बेशक वह आख़िरत में हमारे ख़ास कुर्ब (समीपता) की योग्यता वालों में हैं (3)


*तफ़सीर*

     (1) यहूदी आलिमों में से हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम ने इस्लाम लाने के बाद अपने दो भतीजों मुहाजिर और सलमह को इस्लाम की तरफ़ बुलाया और उनसे फ़रमाया कि तुमको मालूम है कि अल्लाह तआला ने तौरात में फ़रमाया है कि मैं इस्माईल की औलाद से एक नबी पैदा करूंगा जिनका नाम अहमद होगा. जो उनपर ईमान लाएगा, राह पाएगा और जो उनपर ईमान न लाएगा, उसपर लअनत पड़ेगी. यह सुनकर सलमह ईमान ले आए और मुहाजिर ने इस्लाम से इन्कार कर दिया. इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फ़रमाकर ज़ाहिर कर दिया कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ख़ुद इस रसूले मुअज़्ज़म के भेजे जाने की दुआ फ़रमाई, तो जो उनके दीन से फिरे वह हज़रत इब्राहीम के दीन से फिरा. इसमें यहूदियों, ईसाईयों और अरब के मूर्ति पूजकों पर ऐतिराज़ है, जो अपने आपको बड़े गर्व से हज़रत इब्राहीम के साथ जोड़ते थे. जब उनके दीन से फिर गए तो शराफ़त कहाँ रही.

     (2) रिसालत और क़ु्र्बत के साथ रसूल और ख़लील यानी क़रीबी दोस्त बनाया.

     (3) जिनके लिये बलन्द दर्जे हैं. तो जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम दीन दुनिया दोनों की करामतों के मालिक हैं, तो उनकी तरीक़त यानी रास्ते से फिरने वाला ज़रूर नादान और मूर्ख है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*नमाज़ का तरीक़ा* #78


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #05

     ★ जलती आग के सामने नमाज़ पढ़ना, शमा या चराग सामने हो तो हर्ज़ नहीं।

*✍🏼आलमगिरी, 1/108*


     ★ ऐसी चीज़ के सामने नमाज़ पढ़ना जिससे ध्यान बटे मसलन ज़ीनत और लहवो लअब वग़ैरा।

*✍🏼रद्दलमोहतर, 1/439*


★ नमाज़ के लिए दौड़ना।

★ कूड़ा डालने की जगह।

★ मज़्बह यानी जहा जानवर जबह किये जाते हो वहा।

★ इस्तबल यानी घोड़े बंधने की जगह।

★ गुस्ल खाना, मवेशी खाना खुसुसन जहां ऊंट बांधे जाते हो।

★ इस्तिन्जा खाने की छत।

इन जगह पर नमाज़ पढ़ना मकरुहे  तन्ज़िहा है


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.199*

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*क़यामत का बयान* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सवाल* : जब अहले महशर शफाअत के वासिते सरकारे दो आलम ﷺ की बारगाह में हाज़िर होंगे तो आप क्या फ़रमाएंगे? 

     *जवाब* : हुजूर ﷺ फ़रमाएंगे: मैं शफाअत के लिये हूं।


     *सवाल* : पुल सिरात किसे कहते हैं ? 

     *जवाब* : सिरात जहन्नम का पुल है जो बाल से बारीक और तल्वार से तेज़ है, जन्नत का रास्ता इसी पर है।


     *सवाल* : पुल सिरात कहा नसब होगा?

     *जवाब* : पुल सिरात जहन्नम की पुश्त पर नसब किया जाएगा, सब से पहले हुज़ूर ﷺ और आप की उम्मत उस पूल से गुज़रेंगे।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 31

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #07


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*बारिश होगी*

     अगर कहत साली हो तो بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ६१ बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़) पढ़े, (फिर दुआ करें) أن شاء الله बारिश होगी। 

*✍️मदनी पंजसुरह* 6

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*तज़किरतुल अम्बिया* #294


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*शोएष عليه السلام ने अपनी क़ौम को कहा* #01

     सिरात का एक मायना यहां रास्ता लिया गया है। शोएब عليه السلام की क़ौम का यह तरीका था कि वह लोग रास्ते पर बैठ जाते और शोएब عليه السلام पर ईमान लाने वाला जो शरस भी वहा से गुजरता उसे डराते धमकाते।

     दूसरा मायने दीन के तरीके लिया है। यानी अब मतलब होगा कि तुम शैतान के तरीके पर न चलो क्योंकि उसने कहा था: मैं जरूर जरूर उनके रास्ते पर बैठुंगा। यानी जिस तरह शैतान का काम है कि वह इंसान को दीनी राह पर चलने से रोकता है, तुम भी वह तरीका इख्तयार न करो।

     शोएब عليه السلام की कौम के लोग आप पर ईमान लाने वालों को तीन तरीके से रोकते थे। रब तआला ने इन्हें तीन तरीकों से मना किया कि ऐसा न करो, वह कभी डरा धमकाकर लोगों को सीधी राह से बरगश्ता करते और कभी वैसे ही उनको बातों में लगाकर नेकी के काम से रोकने की कोशिश  करते और कभी दीन में अपनी हिमाक़त की वजह से एतराज़ करते और उसमें नफ़्स निकालने की कोशिश करते।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 259

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*बे वुज़ू नमाज़ पढ़ने पर अज़ाब*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     हज़रत जलालुद्दीन सुयूती رحمة الله عليه फ़रमाते है कि एक आदमी जिसे लोग मुत्तक़ी (परहेज़गार) की हैसिय्यत से पहचानते थे, जब उसका इन्तिक़ाल हो गया और लोगों ने उसे दफ़्न कर दिया तो फरिश्तों ने उससे कहा कि हम तुझे अज़ाब के सौ कोड़े मारेंगे। उसने कहा: क्यों मारोगे? में तो मुत्तक़ी था। फरिश्तों ने कहा: अच्छा चल! पचास कोड़े ही मारेंगे। फिर वो आदमी बराबर बहस करता रहा कि मुझे क्यों मोरोगे? यहाँ तक कि फ़रिश्ते एक कोड़े पर आ गए और उन्होंने एक कोड़ा मार ही दिया जिससे पूरी क़ब्र आग से भर गई और वो जलकर खाकिस्तर हो गई फिर उसे ज़िन्दा किया गया तो उसने पूछा: अब ये बताओ कि तुमने मुझे ये कोड़ा क्यों मारा? फरिश्तों ने जवाब दिया: तूने एक रोज़ बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ ली थी, ये उसी की सजा है।

     वाज़ेह (मालुम) रहे कि जान बूझकर बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ना बाज़ फ़ुक़हा के नज़्दीक कुफ़्र है यानी आदमी बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ने से काफ़िर हो जाता है।

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 33

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Monday 29 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑨*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ रब हमारे और भेज उनमें (13) एक रसूल उन्हीं में से कि उन्हें तेरी आयतें तिलावत फ़रमाए और उन्हें तेरी किताब (14) और पुख़्ता (पायदार) इल्म सिखाए (15) और उन्हें ख़ूब सुथरा फ़रमा दे (16) बेशक तू ही है ग़ालिब हिक़मत वाला.


*तफ़सीर*

     (13) यानी हज़रत इब्राहीम और हज़रत इरुमाईल अलैहिस्सलाम की ज़ुर्रियत में यह दुआ सैयदुल अम्बिया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये थी, यानी काबए मुअज़्ज़मा की तामीर की अज़ीम ख़िदमात बजा लाने के लिये और तौबह और प्रायश्चित करने के बाद हज़रत इब्राहीम और हज़रत इरुमाईल ने यह दुआ की, कि या रब, अपने मेहबूब नबीये आख़िरूज़्ज़माँ सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को हमारी नरुल में प्रकट फ़रमा और यह बुज़ुर्गी हमें इनायत कर. यह दुआ क़ुबूल हुई और उन दोनों साहिबों की नरुल में हुज़ूर के सिवा कोई नबी नहीं हुआ, औलादे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम में बाक़ी तमाम नबी हज़रत इसहाक़ की नरुल से हैं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपना मीलाद शरीफ़ ख़ुद बयान किया. इमाम बग़वी ने एक हदीस रिवायत की, कि हुज़ूर ने फ़रमाया मैं अल्लाह तआला के नज़्दीक ख़ातिमुन नबिय्यीन लिखा हुआ था. उस वक़्त भी जब हज़रत आदम के पुतले का ख़मीर हो रहा था. मैं तुम्हें अपनी शुरूआत की ख़ूर दूँ. मैं इब्राहीम की दुआ हूँ. ईसा की ख़ुशख़बरी हूँ, अपनी वालिद के उस ख़्वाब की ताबीर हूँ जो उन्होंने मेरी पैदाइश के वक़्त देखा और उनके लिये एक चमकता नूर ज़ाहिर हुआ जिससे मुल्के शाम के महल उनके लिये रौशन हो गए. इस हदीस में इब्राहीम की दुआ से यही दुआ मुराद है जो इस आयत में दी गई है. अल्लाह तआला ने यह दुआ क़ुबूल फ़रमाई और आख़िर ज़माने में  हुज़ूर सैयदे अम्बिया मुहम्मदे मुरुतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपना आख़िरी रसूल बनाकर भेजा. यह हम पर अल्लाह का एहसान है. (जुमल व ख़ाज़िन)

     (14) इस किताब से क़ुरआने पाक और इसकी तालीम से इसकी हक़ीक़तों और मानी का सीखना मुराद है.

     (15) हिकमत के मानी में बहुत से अक़वाल हैं. कुछ के नज़्दीक हिकमत से फ़िक़्ह मुराद है. कतादा का कहना है कि हिकमत सुन्नत का नाम है. कुछ कहते हैं कि हिकमत अहकाम के इल्म को कहते हैं. खुलासा यह कि हिकमत रहरुयों की जानकारी का नाम है.

      (16) सुथरा करने के मानी यह हैं कि नफ़्स की तख़्ती और आत्मा को बराईयों से पाक करके पर्दे उठा दें और क्षमता के दर्पण को चमका कर उन्हें इस क़ाबिल करदें कि उनमें हक़ीक़तों की झलक नज़र आने लगे.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #11


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*दौराने मिलाद बैठने का अंदाज़*_

     मेंरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा महफिले मिलाद शरीफ में ज़िक्र विलादत शरीफ के वक़्त सलातो सलाम पढ़ने के लिये खड़े होते बाक़ी शिरू से आखिर तक अदबन दो जानू बेठे रहते। यु ही वाइज फरमाते, चार पाच घण्टे कामिल दो जानू ही मिम्बर शरीफ पर रहते।

*✍🏽हयाते आला हज़रत, 1/98*

     काश हम गुलामाने आला हज़रत को भी तिलावते क़ुरआन करते या सुनते वक़्त नीज़ इजतिमाए ज़िक्रो नात वगैरा में अदबन दो जानू बैठने की सआदत मिल जाए।


*_सोने का मुनफरीद अंदाज़_*

     सोते वक़्त हाथ के अंगूठे को शहादत की ऊँगली पर रख लेते ता के उंगलियों से लफ्ज़ *अल्लाह* बन जाए। आप पैर फेला कर कभी न सोते बल्कि दाहिनी करवट लेट कर दोनों हाथो को मिला कर सर के निचे रख लेते और पाउ मुबारक समेत लेते, इस तरह जिस्म से लफ्ज़ *मुहम्मद* बन जाता।

*✍🏽हयाते आला हाज़रत, 1/99*


     ये है अल्लाह के चाहने वालो और रसूले पाक के सच्चे आशिक़ो की आदाए।

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #77


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #04

     ★ नमाज़ में सना, तअव्वुज़, तस्मिया और आमीन ज़ोर से कहना।

*✍🏼आलमगिरी, 1/107*


     ★ बिगैर उज़्र दिवार वगैरा पर टेक लगाना

     ★ रूकू में गुटनो पर और सजदों में ज़मीन पर हाथ न रखना, दाए बाए झूमना।


     ★ कभी दाए पाउ पर और कभी बाए पाउ पर ज़ोर देना सुन्नत है।

*✍🏼बहारे शरीअत, 3/202*

     ★ और सज्दे के लिए जाते हुए सीधी तरफ ज़ोर देना और उठते वक़्त उलटी तरफ ज़ोर देना मुस्तहब है

*✍🏼बहारे शरीअत, 3/101*


     ★ नमाज़ में आँखे बंद रखना। हा अगर खुशुअ आता हो तो आँखे बंद रखना अफज़ल है।

*✍🏼दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/499*


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.199*

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*क़यामत का बयान* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : मुन्किरे क़यामत का हुक्म क्या है?

     *जवाब* : इसका इन्कार करने वाला काफिर है।


     *सवाल* : इस्राफील जब दूसरी बार सुर फूकेंगे तो अपनी क़ब्रे मुबारक में से सब से पहले कौन बहार तशरीफ़ लाएगा?

     *जवाब* : सरकारे दो आलम ﷺ

 

     *सवाल* : मैदाने महशर किस ज़मीन पर क़ायम होगा?

     *जवाब* : मुल्के शाम की सर ज़मीन पर।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 31

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*हाफ़िज़ा (याद दास्त) मजबूत होगा*

     कुन्द ज़ेहन अगर بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ७८६ बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढ़ कर पानी पर दम कर के पी ले तो उस का हाफ़िज़ा मज़बूत हो जाए और जो बात सुने याद रहे।

*✍️मदनी पंजसुरह* 5

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*तज़किरतुल अम्बिया* #293


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*शोएब عليه السلام की मदयन को तबलीग*

     मदयन असल मे इब्राहिम عليه السلام के एक बेटे का नाम है उसकी औलाद पर भी मदयन ही बोला जाता रहा। यानी एक क़बीला का नाम मदयन हुआ और फिर उसी क़बीले के लोगो ने एक शहर आबाद किया और उसका नाम मदयन रखा। शोएब عليه السلام उसी क़बीले के फर्द थे।

     आप का नस्ब यूं बयान किया गया है: शोएब बिन नुवैब बिन मदयन बिन इब्राहिम खलीलुल्लाह।

     शोएब عليه السلام ने अपनी क़ौम को तीन चीज़ों का हुक्म दिया। आप عليه السلام ने कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह की इबादत करो उसके बगैर तुम्हारा कोई मअबूद नहीं। दूसरी बात ये थी कि आपने अपनी नबुव्वत का दावा किया। तीसरी बात ये थी कि उन्हें बुराई से रोका।

     तमाम अम्बियाए किराम की ये आदत रही की वो अपनी क़ौम को बुराइयों से रोकते रहे। ख़ुसूसन सबसे बड़ी बुराई से रोकने में ज़्यादा तवज्जोह देते रहे और इसी से इब्तेदा करते। आपने भी अपनी क़ौम को सबसे पहले यही कहा: नाप और तौल को पूरा करो।

     चूंकि शोएब عليه السلام की क़ौम के लोग ताजिर थे वो नाप तौल में कमी करते थे इस तरह लोगों का माल नाजायज़ तरीक़ा से हड़प करते थे इस बुराई पर फ़ित्ना फसाद मुरत्तब होता था इसलिये सबसे पहले इसी चीज़ की तरफ आपने तवज्जोह फ़रमाई और ये कहा "और लोगों की चीजें घटाकर न दो."

     इसके बाद आप ने फरमाया: और ज़मीन में इन्तेक़ाम के बाद फसाद न फैलाओ।

     जमीन में फसाद फैलाना दीन व दुनिया को बर्बाद करना है अल्लाह तआला ने अपने नबी भेजकर जब ज़मीन में इस्लाह पैदा कर दी, एक खास निज़ाम पर मुन्तज़िम कर दिया, तो अब तुम बुराईयों के इर्तेकाब से इसमें फसाद न फैलाओ। इसी तरह जब अल्लाह तआला ने तुम्हें कसीर माल और नेमते अता करके जमीन में इंतेज़ाम पैदा कर दिया तो तुम इसमें हराम की आमेज़िश करके फसाद क्यों फैलाते हो? 

     इन तमाम उमूर का मक़सद यह है कि तुम अल्लाह तआला के अम्र की ताज़ीम बजा लाओ यानी अल्लाह तआला की वहदायित और अपने नबी की नबुव्बत को तस्लीम करो। अल्लाह तआला की मख़लूक़ पर महेरबानी करो। अगरचे तुम तमाम मखलूक़ को नफा तो नहीं पहुंचा सकते लेकिन कम से कम फसाद को छोड़कर कम तौलने कम नापने को छोड़कर और हर किस्म के शर से दूर रह कर अल्लाह तआला की मखलूक को ईज़ा(तकलीफ) से तो बचा सकते हो, अगर तुम ईमान लाते हो तो तुम्हारे लिये अल्लाह तआला के अहकाम पर अमल करना ही बेहतर है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 258

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Sunday 28 October 2018

*क़ब्र में शोले भड़क उठे*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक आदमी ने अपनी बहन को दफ़्न किया तो उसकी रक़म की थैली गफलत में क़ब्र में गिर गई। जब सब लोग उसे दफ़्न करके चले गए तो उसे अपनी थैली याद आई चुनान्चे वो लोगों के चले जाने के बाद बहन की क़ब्र के पास पहुंचा और क़ब्र खोदने लगा ताकि थैली निकाल ले मगर ये देख कर उसकी हैरत की कोई इन्तिहा न रही कि क़ब्र में शोले भड़क रहे है। ये देखते ही उसने क़ब्र पर मिट्टी डाल दी और इन्तिहाई गमगीन हालत में रोता हुआ अपनी मां के पास पहुंचा। माँ से पूछा : मेरी बहन की आदत केसी थी कि उसकी क़ब्र में आग के शोले भड़क रहे है ? ये सुनकर माँ भी रोने लगी और कहा तेरी बहन नमाज़ में सुस्ती करती थी और नमाज़ों को उनके वक़्त से देर करके पढ़ती थी।

*✍🏼शरहुस्सुदुर* 161

*✍🏼मकाशफतुल क़ुलूब* 394

     अल्लाहु अकबर ! ये तो उसका हाल है जो नमाज़ों को उनके वक़्तों से देर करके पढ़ा करती थी। ज़रा सोचिये! उन लोगों का क्या हाल होगा जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नहीं ?

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 32

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ रब हमारे और कर हमें तेरे हुज़ूर गर्दन रखने वाला (11) और हमारी औलाद में से एक उम्मत (जन समूह) तेरी फ़रमाँबरदार (आज्ञाकारी) और हमें हमारी इबादत के क़ायदे बता और हम पर अपनी रहमत के साथ रूजू (तवज्जुह) फ़रमा (12) बेशक तू ही है बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान.


*तफ़सीर*

     (11) वो हज़रत अल्लाह तआला के आज्ञाकारी और मुख़लिस बन्दे थे, फिर भी यह दुआ इसलिये है कि ताअत और इख़लास में और ज़्यादा कमाल की तलब रखतें हैं. ताअत का ज़ौक़ सेर नहीं होता, सुब्हानल्लाह ,हर एक की फ़िक्र उसकी हिम्मत पर है.

     (12) हज़रत इब्राहीम और हज़रत इरुमाईल अलैहिस्सलाम मासूम हैं. आपकी तरफ़ तो यह तवाज़ो है और अल्लाह वालों के लिये तालीम है. यह मक़ाम दुआ की क़ुबूलियत की जगह है, और यहाँ दुआ और तौबह हज़रत इब्राहीम की सु्न्नत है.

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*तज़किरए ​इमाम अहमद रज़ा​* #09


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*सीरत की बाज़ ज़लकिया*

     मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه फरमाते है : अगर कोई मेरे दिल के दो टुकड़े कर दे तो एक पर لااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ और दूसरे पर مُحَمَّدٌرَّسُوْلُ اللّٰهِ लिखा हुवा पाएगा।

*✍🏽स्वानेहे इमाम अहमद रज़ा, 96*

     मशाईखे ज़माना की नज़रो में आप वाक़ई फनाफिर्रसूल थे। अक्सर फिराक मुस्तफा ﷺ में गमगीन रहते और सर्द आहे भरा करते। पेशावर गुस्ताखो की गुस्ताखाना इबारात को देखते तो आँखों से आसुओ की जड़ी लग जाती और प्यारे मुस्तफा ﷺ की हिमायत में गुस्ताखो का सख्ती से रद करते ताके वो ज़ुज़ला कर आला हज़रत رحمة الله عليه को बुरा कहना और लिखना शुरू कर दें। आप अक्सर इस पर फख्र किया करते के बारी तआला ने इस दोर में मुझे नामुसे रिसालत मआब के लिये ढाल बनाया है। तरीके इस्तिमाल ये है के बद गोयों का सख्ती ओर तेज़ कलामी से रद करता हु के इस तरह वो मुझे बुरा भला कहने में मसरूफ़ हो जाए। उस वक़्त तक के लिए आक़ा ऐ दो जहा ﷺ की शान में गुश्ताखि करने से बचे रहेंगे।

     आप गरीबो को कभी खाली हाथ नही लौटाते थे, हमेशा गरीबो की इमदाद करते रहते। बल्कि आखिरी वक़्त भी अज़ीज़ों अक़ारिब को वसिय्यत की के गरीबो का ख़ास ख्याल रखना। इन को खातिर दारी से अच्छे अच्छे और लज़ीज़ खाने अपने घर से खिलाया करना और किसी गरीब को मुत्लक न ज़िडकना।

     आप अक्सर तस्फीन व तालीफ़ में लगे रहते। पाचो नमाज़ों के वक़्त मस्जिद में हाज़िर होते और हमेशा नमाज़ बा जमाअत अदा फ़रमाया करते, आप की खुराक बहुत कम थी।

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #76


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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #03

★ नमाज़ में बिला उज़्र चार जानू यानी चोकड़ी मार कर बैठना।

*✍🏼गुन्यातुल मुस्तमलि, 339*


★ अंगड़ाई लेना और इरादतन खाँसना, खनकारना।

*✍🏼गुन्यातुल मुस्तमलि, 340"*

● अगर तबीअत चाहती हो तो हरज नही


★ सज्दे में जाते हुए घुटने से पहले बिला उज़्र हाथ से क़ब्ल घुटने ज़मीन से उठना।

★ रूकू में सर को पीठ से उचा निचा करना।

*✍🏼गुन्यातुल मुस्तमलि, 335,338*


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.198*

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*क़यामत का बयान* #01


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     *सवाल* : क़यामत के दिन लोग क़ब्रों से किस हालत में उठेंगे?

     *जवाब* : क़यामत के दिन लोग अपनी क़ब्रों से नंगे बदन, नंगे पाऊं, ना खतनाशुदा उठेंगे।


     *सवाल* : क़यामत के दिन कौन हश्र के मैदान में मुंह के बल चल कर जाएंगे?

     *जवाब* : क़यामत के दिन काफ़िर मुंह के बल चल कर हश्र के मैदान में जाएंगे।


     *सवाल* : क़यामत का दिन कितने साल का होगा?

     *जवाब* : पचास हज़ार साल का।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 30

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #05


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*ग़ैब से रिज़्क़ अता होगा*

     जो शख्स तुलूए आफ्ताब के वक्त सूरज की तरफ रुख कर के بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ३०० बार और दुरूद शरीफ़ ३०० बार पढे। अल्लाह उस को ऐसी जगह से रिज़्क़ अता फरमाएगा जहां उस का गुमान भी न होगा। और (रोज़ाना पढ़ने से) ان شاء الله एक साल के अन्दर अन्दर अमीरो कबीर हो जाएगा। 

*✍️मदनी पंजसुरह* 5

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तज़किरतुल अम्बिया* #292


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*हज़रत शोएब عليه السلام*

     हज़रत शोएब عليه السلام को दो क़ौम की तरफ रसूल बनाकर भेजा गया। एक मदयन और दूसरे अस्हाबे इका। आप चुकी मदयन क़बीला से थे इसलिये जब मदयन का ज़िक्र हुआ तो फ़रमाया : और मदयन कि बिरादरी से शोएब को भेजा।

     और जब अस्हाबे इका के ज़िक्र में अखुहम नहीं कहा बल्कि सिर्फ कहा : और जब उसको शोएब ने कहा।

     इस तरह दोनों क़ौमों ओर अज़ाब भी मुख्तलिफ किस्म के थे, जिनका ज़िक्र ان شاء الله बाद में आयेगा, अलबत्ता दोनों क़ौमों के लोग क़रीब क़रीब फासला पर रहने की वजह से एक दूसरे के साथ रवाबीत कि वजह से एक जैसे अमल किया करते थे इस लिये दोनों को शोएब عليه السلام ने तबलीग एक जैसी फ़रमाई।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 256

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ के खिलाफ इब्लीस की तहरीक*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत फ़क़ीह अबुल्लैस समरकन्दी फ़रमाते है : जब नमाज़ का हुक्म नाज़िल हुआ तो इब्लीस बौखला गया, उसने अपनी औलाद को जमा किया। इस मौके पर नमाज़ पढ़ने वालों को नमाज़ से दूर रखने की ये तरकीब बनाई कि नमाज़ियों को वक़्त पर नमाज़ पढ़ने से रोका जाए। इसका तरीक़ा ये है कि उन्हें हर तरफ से दुन्यवी कामों के ज़रिये घेरा जाए और हर तरफ से पुकारा जाए : इधर देखो, उधर देखो, निचे देखो, उपर देखो यानी किसी न किसी काम में लगा दिया जाए। (तम्बीहुल गाफिलिन)

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 32

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑦*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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और जब उठाता था इब्राहीम उस घर की नींव और इस्माईल यह कहते हुए ऐ रब हमारे हम से क़ुबूल फ़रमा(10) बेशक तू ही है सुनता जानता.


*तफ़सीर*

      (10) पहली बार काबए मुअज़्ज़मा की बुनियाद आदम अलैहिस्सलाम ने रखी और तूफाने नूह के बाद फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उसी बुनियाद पर तामीर फ़रमाई . यह तामीर ख़ास आपके मुबारक हाथ से हुई. इसके लिये पत्थर उठाकर लाने की ख़िदमत और सआदत इरुमाईल अलैहिस्सलाम को प्राप्त हुई. दोनों हज़रात ने उस वक्त यह दुआ की कि या रब हमारी यह फ़रमाँबरदारी और ख़िदमत क़ुबूल फ़रमा.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #08


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*बेदारी में दीदारे मुस्तफा*

     मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه दूसरी बार हज के लिये हाज़िर हुए तो मदिनए मुनव्वरह में नबीये रहमत की ज़ियारत की आरज़ू लिये रौज़ए अतहर के सामने देर तक सलातो सलाम पढ़ते रहे, मगर पहली रात किस्मत में ये सआदत न थी। इस मौके पर वो मारूफ़ नातिया ग़ज़ल लिखी जिस के मतलअ में दामन रहमत से वाबस्तगी की उम्मीद दिखाई है :

          *वो सुए लालाज़ार फिरते है*

          *तेरे दिन ऐ बहार  फिरते  है*

     *शरहे कलामे रज़ा :* ऐ बहार ज़ूम जा ! के तुज पर बहारो की बहार आने वाली है। वो देख ! मदीने के ताजदार जानिबे गुलज़ार तशरीफ़ ला रहे है !

     मकतअ में बारगाहे रिसालत में अपनी आजिज़ी और बे मिस्किनी का नक्शा यु खीचा है :

          *कोई क्यू पूछे तेरी बात रज़ा*

          *तुझ से शैदा हज़ार फिरते है*

     *शरहे कलामे रज़ा :* इस मकतअ में आशिके माहे रिसालत आला हज़रत رحمة الله عليه कलामे इन्किसारि का इज़हार करते हुए अपने आप से फरमाते है : ऐ अहमद रज़ा ! तू क्या और तेरी हक़ीक़त क्या ! तुझ जेसे तो हज़ारो सगाने मदीना गलियो में यु फिर रहे है !

     ये ग़ज़ल अर्ज़ करके दीदार के इन्तिज़ार में मुअद्दब बेठे हुए थे के किस्मत अंगड़ाई ले कर जाग उठी और चश्माने सर (यानी सर की खुली आँखों) से बेदारी में ज़ियारते महबूबे बारी से मुशर्रफ हुए

*✍️हयाते आला हज़रत, 1/92*

     क़ुरबान जाइए उन आँखों पर के जो आलमी बेदारी में जनाबे रिसालत के दीदार से शरफ-याब हुई। क्यू न हो के आप के अंदर इश्के रसूल कूट कूट कर भरा हुवा था और आप *"फनाफिर्रसूल"* के आला मन्सब पर फ़ाइज़ थे। आप का नातिया कलाम इस अम्र का शाहिद है।

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 13*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #75


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #02

     रूकू या सज्दे में बिला ज़रूरत 3 बार से कम तस्बीह कहना (अगर वक़्त तांग हो या ट्रेन चल पड़ने के खौफ से हो तो हरज नहीं। अगर मुक्तदि 3 तस्बीह न कहने पाया था कि इमाम ने सर उठा लिया तो इमाम का साथ दे)


     नमाज़ में पेशानी से ख़ाक या घास छुड़ाना। हा अगर इन की वजह से नमाज़ में ध्यान बटता हो तो छुड़ाने में हरज नही।

*✍🏼आलमगिरी, 1/106*


     सज्दे वग़ैरा में उंगलिया किब्ले से फेर देना।

*✍🏼आलमगिरी, 1/119*


     मर्द का सज्दे में रान को पेट से चिपका देना।

*✍🏼आलमगिरी, 1/109*


     नमाज़ में हाथ या सर के इशारे से सलाम का जवाब देना।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.198*

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*क़यामत की निशानियां* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सवाल* : ईसा عليه السلام का दज्जाल पर क्या असर होगा?

     *जवाब* : लइन दज्जाल जब इसे عليه السلام को देखेगा तो ऐसे पिघलेगा जैसे पानी में नमक धुलता है और वो आप से भागेगा।


     *सवाल* : दज्जाल किस के हाथों क़त्ल होगा?

     *जवाब* : ईसा عليه السلام उसे जहन्नम वासिल करेंगे।

 

     *सवाल* : क़ुर्बे क़यामत निकलने वाला जानवर "दाब्बतूल अर्ज़" हर शख्स पर क्या निशानी लगाएगा?

     *जवाब* : हर मुसलमान की पेशानी पर एक निशानी नूरानी बनाएगा और अंगूठी से हर काफ़िर की पेशानी पर एक सख्त सियाह धब्बा लगाएगा, उस वक़्त तमाम मुसलमान व काफ़िर एलानिया ज़ाहिर होंगे।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 30

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*ज़ालिम के सर से हिफाज़त*

     जो किसी ज़ालिम के सामने بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ५० बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ़) पढ़े उस ज़ालिम के दिल में पढ़ने वाले की हैबत पैदा हो और उस के शर से बचा रहे।

*✍️मदनी पंजसुरह* 4

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*तज़किरतुल अम्बिया* #291


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*उज़ैर عليه السلام* ०४

     100 साल गुजर जाने की वजह से मकानात के नक़्शे बदल चुके थे नई तामिरात की वजह से उज़ैर عليه السلام मकान का सही तअय्युन नहीं था यानिये यक़ीन नहीं था कि ये हमारा ही मकान है, अंदाज़े से गये थे जब आपने बुढ़िया (जो आपकी लौंडी थी और उसकी उम्र अब 120 साल हो चुकी थी बुढ़ापे की वजह से बिनाई खत्म हो चुकी थी)  से पूछा कि उज़ैर का यही मकान है? तो वो रोने लगी और कहने लगी इतने अरसे बाद उज़ैर का नाम लेनर वाला कौन है? वो तो 100 साल से गुम हो चुके है। आप ने फरमाया में ही उज़ैर हूं, अल्लाह ने मुझे 100 साल मुर्दा रखकर ज़िन्दा फरमा दिया है। उस बुढ़िया ने कहा कि अगर तुम सच कह रहे हो तो अल्लाह से दुआ करो मुझे नज़र अता करे कि में तुम्हें देख कर पहचान सकूं और इसलिये भी की अल्लाह उज़ैर की दुआ क़बूल फरमाता था। यानी आपकी दुआ क़बूल होने की वजह से भी यक़ीन आ जायेगा कि तुम ही उज़ैर हो।

     आपने दुआ फ़रमाई तो उसे नज़र मिल गई। अब उसने आपको पहचान लिया आपके साथ आपके बेटे और दूसरे अहले खाना के पास लाइ की उज़ैर आ गये है। सब लोग सुनकर तअज्जुब कर रहे थे कि ये कैसे हो सकता है कि उज़ैर 100 साल बाद आ गये हो। बुढ़िया ने बताया कि तुम मुझे नहीं देख रहे कि मुझे इनकी दुआ से अल्लाह ने नज़र अता की। चलने फिरने के काबिल बना दिया।

     आपके बेटे ने कहा कि मेरे बाप के दोनों कंधों के दरमियान स्याह बाल चांद की शक्ल में थे, जब आपके कंधों को देख गया तो उसी तरह बाल मौजूद थे।

     बख्ते नसर ने तौरेत के तमाम नुस्खे जला दिये थे तौरेत किसी को याद न थी बल्कि कुतुब सिर्फ अम्बियाए किराम को ही याद हुआ करती थी। लोगों ने कहा कि अगर तुम उज़ैर हो तो तौरेत सुनाओ। आपने उन्हें तमाम तौरेत लफ्ज़-ब-लफ्ज़ लिखवा दी, किसी एक हर्फ़ का भी फ़र्क़ न आने दिया। उस वक़्त एक शख्स बोला कि मैने दादा से सुना था कि बख्ते नसर के मज़ामिल की वजह से मेरे दादा ने तौरेत का एक नुस्खा दफन कर दिया था, आप عليه السلام ने उस नुस्खे की निशानदेही भी फ़रमाई। जब वो नुस्खा निकाला गया तो उसका मुक़ाबला इस नुस्खे से किया गया जो आपने तहरीर कराया तो एक लफ्ज़ का भी फ़र्क़ न पाया। लोगों ने आपका ये मोजिज़ा देखकर आपको अल्लाह का बेटा कहना शुरू कर दिया।

     अल्लाह ने फरमाया: यहूदियों ने कहा उज़ैर अल्लाह का बेटा है।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 256

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*मनहूस दिन*


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     किसी ने क़सम खाई कि वो अपनी बीवी के पास मनहूस दिन के अलावा कभी नहीं जाएगा (वरना उसकी बीवी पर तलाक़ है) फिर उलमा से उसने फतवा दरयाफ़्त किया। उलमा ने जवाब दिया कि दिन तो सारे ही बाइसे बरकत है लिहाज़ा तेरी औरत पर तलाक़ पड़ गई। लेकिन वो इस जवाब से मुतमइन न हुआ फिर वो हज़रत अब्दुल अज़ीज़ दैरानी رحمة الله عليه के पास पंहुचा और उनसे इस मसअला दरयाफ़्त किया। शैख़ ने उससे पूछा : क्या तूने आज नमाज़ पढ़ी है ? उसने कहा : नहीं! आज नहीं पढ़ी। आप ने फ़रमाया जा! अपनी बीवी के पास क्योंकि तेरे लिये यही मनहूस दिन है क्योंकि बन्दा जिस दिन नमाज़ नहीं पढ़ता वही उसके लिये मनहूस दिन होता है।

*✍🏼नुज़हतुल मनाजिह्* 1/491

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 31

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑥*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने कि ऐ मेरे रब इस शहर को अमान वाला कर दे  और इसके रहने वालों को तरह तरह के फलो से रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और पिछले दीन पर ईमान लाएं (9) फ़रमाया और जो क़ाफिर हुआ थोड़ा बरतने को उसे भी दूंगा फिर उसे दोज़ख़ के अज़ाब की तरफ़ मजबूर कर दूंगा और  वह बहुत बुरी जगह पलटने की की.


*तफ़सीर*

     (9) चूंकि इमारत के बारे में “ला यनालो अहदिज़ ज़ालिमीन” (यानी मेरा एहद ज़ालिमों को नहीं पहुंचता)इरशाद हो चुका था, इसलिये हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने इस दुआ में ईमान वालों को ख़ास फ़रमाया और यही अदब की शान थी. अल्लाह ने करम किया. दुआ क़ुबूल हुई और इरशाद फ़रमाया कि रिज़्क़ सब को दिया जाएगा, ईमान वालो को भी, काफ़िर को भी. लेकिन काफ़िर का रिज़्क़ थोड़ा है, यानी सिर्फ दुनियावी ज़िनदगी में वह फ़ायदा उठा सकता है.

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*तज़किरए ​​​​इमाम अहमद रज़ा*​​​​​ #07

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_इश्के रसूल_*

     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इश्के मुस्तफा का सर से पाउ तक नमूना थे। आप का नातिया दीवान "हदाईके बख्शीश शरीफ" इस अम्र का शाहिद है। आप की नाके कलम बल्कि गहराइये क्लब से निकला हुवा हर मिसरा मुस्तफा जाने रहमत से आप की बे पाया अक़ीदत व महब्बत की शहादत देता है।

     आप ने कभी दुन्यवि ताजदार की खुशामद के लिये कोई कसीदा नही लिखा, इस लिये के आप ने हुज़ूरे ताजदारे रिसालत की इताअत व गुलामी को पहोंचे हुए थे, इस का इज़हार आप ने एक शेर में इस तरह फ़रमाया :

          *इन्हें जाना इन्हें माना न रखा गैर से काम*

          *लिल्लाहिल हम्द में दुन्या से मुसलमान गया*

     एक मर्तबा रियासत नानपारा (जिल्ला बहराइच यूपी) के नवाब की तारीफ़ में शुअरा ने क्साइड लिखे। कुछ लोगो ने आप से भी गुज़ारिश की के हज़रत आप भी नवाब साहिब की तारीफ़ में कोई कसीदा लिख दे। आप ने इस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिसका मतलअ ये है :

     *वो कलामे हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नही*

    *ये  फूल  खार  से  दूर  है  ये  शमा है के  धुँआ नही*

मुश्किल अलफ़ाज़ के माना :

कमाल=पूरा होना।

नक्स=खामी

खार=काटा


*_शरहे कलामे रज़ा_*

     मेरे आक़ा महबूबे रब्बे जुल जलाल का हुस्नो जमाल दरजाए कमाल तक पहुचता है, यानी हर तरह से कामिल व मुकम्मल है इस में कोई खामी होना तो दूर की बात है, खामी का तसव्वुर तक नही हो सकता, हर फूल की शाख में काटे होते है मगर गुलशने आमिना का एक येही महकता फूल ऐसा है जो काटो से पाक है, हर शमा में ऐब होता है के वो धुँआ छोड़ती है मगर आप बज़मे रिसालत की ऐसी रोशन शमा है के धुंए (यानी हर तरह) से बे ऐब है.

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 11*

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Friday 26 October 2018

*नमाज़ का तरीक़ा* #74


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़ीहा* #01

     दूसरे कपड़े मुयस्सर होने के बा वुजूद कामकाज के लिबास में नमाज़ पढ़ना।

*✍🏼गुण्यतुल मुस्तमलि, 337*


     मुह में कोई चीज़ लिये हुए होना। अगर इस की वजह से किराअत ही न हो सके या ऐसे अलफ़ाज़ निकले कि जो क़ुरआन के न हो तो नमाज़ ही फासिद हो जाएगी।

*✍🏼दुर्रेमुख्तार, रद्दलमोहतार*


     सुस्ती से नंगे सर नमाज़ पढ़ना।

*✍🏼आलमगिरी, 1/106*


     नमाज़ में टोपी या इमाम शरीफ गिर पड़े तो उठा लेना अफज़ल है जब कि अमले कसीर की हाजत न पड़े वरना नमाज़ फासिद् हो जाएगी। और बार बार उठाना पड़े तो छोड़ दे और उठाने से खुशुओ ख़ुज़ूअ मक़सूद हो तो उठाना अफज़ल है।

*✍🏼दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/194*


     अगर कोई नंगे सर नमाज़ पढ़ रहा हो या उसकी टोपी गिर पड़ी हो तो उसको दूसरा शख्स टोपी न पहनाए।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.197*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*क़यामत की निशानियां* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सवाल* : दज्जाल की खास निशानियां कौन सी है?

     *जवाब* : दज्जाल की एक आंख होगी, वो काना होगा और उस की पेशानी पर काफ़िर लिखा होगा।


     *सवाल* : दज्जाल के साथ किस की फौज़ें होंगी?

     *जवाब* : दज्जाल के साथ यहूद की फौज़ें होंगी।


     *सवाल* : दज्जाल कितने दिन में तमाम रुए ज़मीन का गश्त करेगा?

     *जवाब* : दज्जाल हरमैने तय्यिबैन के सिवा तमाम रुए ज़मीन का 40 दिन में गश्त करेगा।


     *सवाल* : इतने कम दिनों में सारी ज़मीन का गश्त कैसे होगा?

     *जवाब* : क्योंकि 40 दिन में पहला दिन साल भर के बराबर होगा, दूसरा दिन महीने भर के बराबर, तीसरा दिन हफ्ते के बराबर और बाक़ी दिन 24 घन्टे के होंगे और वो बहुत तेज़ी के साथ सफर करेगा, जैसे बादल, कि जिस को हवा उड़ाती है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 29

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*हर हाजत पूरी होगी*

     हज़रते सय्यदुना शैख अबुल अब्बास अहमद बिन अली बूनी رحمة الله عليه शम्सुल मआरिफ़ (मुतर्जम) के सफ़हा 37 पर लिखते हैं: जो बिला नागा सात दिन तक بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ७८६ (786) बार (अव्वल आखिर एक बार दुरूद शरीफ) पढे उस की हर हाजत पूरी हो। अब वोह हाजत ख्वाह किसी भलाई के पाने की हो या बुराई दूर होने की या कारोबार चलने की।

*✍️मदनी पंजसुरह* 4

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*तज़किरतुल अम्बिया* #290


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*उज़ैर عليه السلام* ०३

     इतने अरसे में अल्लाह ने उज़ैर عليه السلام को अपनी क़ुदरते कामिला से लोगों की निगाहों से मख़फ़ी रखा और आपको परिन्दे, चरिन्दे वगैर भी इतना अरसा न देख सके। आप पर वफात सुबह के वक़्त दोपहर से पहले आई थी और आप ज़िन्दा शाम के वक़्त हुए। यही वजह थी कि जब रबने आपसे पूछा कि कितनी देर यहां ठहरे हो? तो आपने अर्ज़ किया एक दिन या उससे भी कम। अल्लाह ने आपको बताया यहां 100 साल हो चुके है।

     सुब्हानअल्लाह मालिकुल मुल्क की कितनी अज़ीम क़ुदरत है? 100 साल उज़ैर عليه السلام पर मौत तारी रही जिस्म मुक़म्मल तौर पर महफूज़ रहा, खाने पीने की अशिया ज्यूँ की त्युं रही, और आपके सामने रब ने गधे को ज़िंदा करके अपनी क़ुदरत का मुशाहिदा करा दिया। गधे की हड्डियों को हुक्म हुआ जो आपस मे आ कर मिल गई आपके सामने उन हड्डियों पर गोश्त चढ़कर गधे को आवाज़ दी: अब तुम ज़िन्दा हो जाओ और वो ज़िन्दा हो गया।

     ये सब कुछ आनन फानन हो गया। अब आप ज़िन्दा होकर शहर में आये तो देखा शहर तो पहले से ज़्यादा अच्छे तरीक़े से आबाद है। बनी इस्राइल के नये नये लोग भी है जो आपके बाद पैदा हुए थे। आप पर जब मौत मुसल्लत हुई थी उस वक़्त आपकी उम्र 40 बरस तक थी और अब भी 40 बरस थी। शहर से बाहर गये थे तब आओके बेटे की उम्र 18 बरस थी अब उसकी उम्र 118 बरस थी। बल्कि आपके पोते भी बूढ़े हो चुके थे।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله 

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 255

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*शैतान का साथी*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     हज़रत हक़ीह अबुल्लैस समरकन्दी رحمة الله عليه फ़रमाते है : किसी ने शैतान से कहा में चाहता हु कि तेरी तरह बन जाऊं। शैतान ने कहा नमाज़ पढ़ना छोड़ दे और कभी सच्ची क़सम न खाना (तो बिलकुल मेरी तरह हो जाएगा)

*✍🏼नुज़हतुल मजलिस* 1/493

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 31

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और याद करो जब हमने उस घर को (6) लोगों के लिये मरजअ (शरण स्थल) और अमन बनाया (7)  और इब्राहीम के खड़े होने की जगह को नमाज़ का मक़ाम बनाओ (8) और हमने ताक़ीद फ़रमाई इब्राहीम व इस्माईल को कि मेरा घर ख़ूब सुथरा करो तवाफ़ वालो (परिक्रमा वालों) और एतिक़ाफ़ वालों (मस्जिद में बैठने वालों) और रूकू व सिजदे वालों के लिये.


*तफ़सीर*

     (6) बैत से काबा शरीफ़ मुराद है और इसमें तमाम हरम शरीफ़ दाख़िल है.

     (7) अम्न बनाने से यह मुराद है कि हरमे काबा में क़त्ल व लूटमार हराम है या यह कि वहाँ शिकार तक को अम्न है. यहाँ तक कि हरम शरीफ़ में शेर भेड़िये भी शिकार का पीछा नहीं करते, छोड़ कर लौट जाते हैं. एक क़ौल यह है कि ईमान वाला इसमें दाख़िल होकर अज़ाब से सुरक्षित हो जाता है. हरम को हरम इसलिये कहा जाता है कि उसमें क़त्ल, ज़ुल्म, शिकार हराम और मना है. (अहमदी) अगर कोई मुजरिम भी दाख़िल हो जाए तो वहाँ उसपर हाथ न डाला जाएगा. (मदारिक)

     (8) मक़ामे इब्राहीम वह पत्थर है जिसपर खड़े होकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबए मुअज़्ज़मा की बिना फ़रमाई और इसमें आपके क़दम मुबारक का नशान था. उसको नमाज़ का मक़ाम बनाने का मामला महबबत के लिये है. एक कौ़ल यह भी है कि इस नमाज़ से तवाफ़ की दो रकअतें मुराद हैं. (अहमदी वग़ैरह)

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*​​​तज़किरए इमाम अहमद रज़ा​​​​* #06


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_सिर्फ एक माह में हिफ़्ज़े क़ुरआन_*

     हज़रत अय्यूब अली साहिब رحمة الله عليه का बयान है के एक रोज़ आला हज़रत رحمة الله عليه ने इरशाद फ़रमाया के बाज़ न वाक़िफ़ हज़रात मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है, हाला के में इस लक़ब का अहल नही हु।

     अय्यूब अली फरमाते है के आला हज़रत رحمة الله عليه ने इसी रोज़ से दौर शुरू कर दिया जिस का वक़्त गालिबन ईशा का वुज़ू फरमाने के बाद से जमाअत क़ाइम होने तक मख़्सूस था। रोज़ाना एक पारह याद फरमा लिया करते थे, यहाँ तक के तीसवें रोज़ तीसवाँ पारह याद फरमा लिया।

     और एक मौक़ा पर फ़रमाया के में ने कलामे पाक बित्तरतिब ब कोशिश याद कर लिया और ये इस लिये के उन बन्दगाने खुदा का (जो मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है) कहना गलत साबित न हो।

*✍🏽​हयाते आला हज़रत, 1/208*

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 9*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #73


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #13


*_नमाज़ और तस्वीर_*

     जानदार की तस्वीर वाला लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमि है, नमाज़ के इलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना जाइज़ नहीं।

*✍🏼दुर्रेमुखतार 2/502*


     नमाज़ी के सर पर यानी छत पर या सज्दे की जगह पर या आगे या दाए या बाए जानदार की तस्वीर आवेज़ा होना मकरुहे तहरीमि है और पीछे होना भी मकरूह है, मगर गुज़श्ता सूरतो से कम। अगर तस्वीर फर्श पर है और उस और सज्दा नहीं होता तो कराहत नहीं। अगर तस्वीर गैर जानदार की है जेसे दरिया पहाड़ वगैरा तो इस में कोई मुज़ायक़ा नहीं। इतनी छोटी तस्वीर हो जिसे ज़मीन पर रख कर खड़े हो कर देखे तो आज़ा की तफ़सील न दिखाई दे (जैसा के उमुमन तवाफ़े काबा के मंज़र की तस्वीरें बहुत छोटी होती है ये तसावीर) नमाज़ के लिये बाइसे कराहत नहीं है।

*✍🏼गुण्यतुल मुस्तमलि, 347*

*✍🏼दुर्रेमुखतर, 2/503*


     तवाफ़ की भीड़ में एक भी चेहरा वाज़ेह हो गया तो मुमानअत बाक़ी रहेगी। चेहरे के इलावा मसलन हाथ, पाउ, पीठ, चेहरे का पिछला हिस्सा या ऐसा चेहरा जिस की आँखे, नाक, होठ वग़ैरा सब आज़ाए मिटे हुए हो ऐसी तसावीर में कोई हर्ज़ नही।

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.196*

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Thursday 25 October 2018

*क़यामत की निशानियां* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : तमाम दुन्या मर फ़क़त एक ही दीन, दीने इस्लाम कब होगा?

     *जवाब* : जब हज़रते मूसा عليه السلام नुज़ूल फरमाएंगे।


     *सवाल* : हज़रते ईसा عليه السلام किस वक़्त और कहां नुज़ूल फरमाएंगे?

     *जवाब* : हज़रते ईसा عليه السلام आसमान से जामेअ मस्जिद दमिश्क़ के शरकी मीनारे पर सुबह के वक़्त नुज़ूल फरमाएंगे जब कि नमाज़े फज्र की इक़ामत हो चुकी होगी।


     *सवाल* : ईसा عليه السلام कितने साल दुन्या में क़याम फरमाएंगे?

     *जवाब* : आप عليه السلام के ज़मीन पर क़याम का मजमुई अरसा 40 साल है, आसमान पर तशरीफ़ ले जाते वक़्त आप की उम्र मुबारक 33 साल थी, अब जो क़ुर्बे क़यामत में तशरीफ़ लाएंगे तो 7 बरस क़याम फरमाएंगे।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 28

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*बिस्मिल्लाह की फ़ज़ीलत* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*काम अधूरा रह जाता है*

     हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: “जो भी अहम काम بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ के साथ शुरू नहीं किया जाता वोह अधूरा रह जाता है।

     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो! अपने नेक और जाइज़ कामों में बरकत दाखिल करने के लिये हमें पहले بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ ज़रूर पढ़ लेना चाहिये।

     खाने खिलाने, पीने पिलाने, रखने उठाने, धोने पकाने, पढ़ने पढ़ाने, चलने (गाड़ी वगैरा) चलाने, उठने उठाने, बैठने बिठाने, बत्ती जलाने, पंखा चलाने, दस्तरख्वान बिछाने बढ़ाने, बिछौना लपेटने बिछाने, दुकान खोलने बढ़ाने, ताला खोलने लगाने, तेल डालने इत्र लगाने, बयान करने नात शरीफ़ सुनाने, जूता पहनने इमामा सजाने, दरवाजा खोलने बन्द फ़रमाने, अल ग़रज़ हर जाइज़ काम के शुरू में (जब कि कोई मानेए शर-ई न हो) بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ पढ़ने की आदत बना कर इस की बरकतें लूटना ऐन सआदत है।

*मदनी पंजसुरह* 3

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*तज़किरतुल अम्बिया* #289


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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*हज़रते उज़ैर عليه السلام* #०२

     उज़ैर عليه السلام जिस गधे पर सवार थे उसे बांधा और अपने खाने पीने के फल वगैरा और अंगूर का रस जो अपने पास रखा हुआ था इसे क़रीब हो रख कर आप सो गये। से हुए हाल में ही आप पर मौत को मुसल्लत कर दिया गया। आपका गधा भी मर गया, ये वाक़िया तक़रीबन दोपहर से पहले का है।

     जिस तरह नमरूद के नाक में मच्छर घुस गया ऐसे ही बख्ते नसर यानी शद्दाद की नाक में भी मच्छर घुस गया था जिससे वो मर गया इसी तरह बनी इस्राइल को आज़ादी मिल गई। तक़रीबन 70 साल के बाद फारस के बादशाहों में से एक बादशाह अपनी फौज़ लेकर बैतूल मुक़द्दस महुँचा तो उसने बैतूल मुक़द्दस को पहले से भी बेहतर तौर पर आबाद कर दिया। बनी इस्राइल जो बख्ते नसर के मज़ामिल की वजह से इधर उधर बिखर गये थे फिर बैतूल मुक़द्दस में आबाद हो गये। 30 साल तक ये लोग काफी हद तक बेहतर हाल में आ गये और उनकी नस्ल में भी इज़ाफ़ा हो गया। 100 साल के बाद अल्लाह ने उज़ैर عليه السلام को ज़िंदा फरमा दिया।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 254

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*बे-नमाज़ी की नहूसत*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत ईसा عليه السلام एक गांव के क़रीब से गुज़रे जहाँ कसरत से दरख्त थे, नहरें जारी थीं, लोग बड़े खुशहाल और मेहनत नवाज़ थे, लोगों ने आपका स्वागत किया, खूब खिदमत की। हज़रत ईसा عليه السلام उन लोगों की इस क़द्र फ़रमाँबरदारी और माल की फराखि (खूब होना) को देखकर हैरत में पड़ गए फिर तीन साल के बाद उसी गांव में आपका जाना हुआ तो आपने देखा कि दरख्त खुश्क हो चुके है, नहरे भी बन्द है और गांव उजड़ चुका है। आप हैरान थे कि आखिर ये बदलाव इतनी मुख़्तसर सी मुद्दत में कैसे आई ? इतने में जिब्राइल अमीन आए और कहा : ऐ रूहल्लाह ! यहाँ से एक बे-नमाज़ी का गुज़र हुआ था जिसने इन झरनों से मुंह धोया था, उसकी नहूसत का ये असर हुआ कि दरख्त मुरझा गए, नहरें खुश्क हो गई और गांव वीरान हो गया। ऐ ईसा ! जब नमाज़ का छोड़ना दीन की बर्बादी का सबब है तो दुन्या की तबाही का सबब भी बन सकता है।

*✍🏼नुज़हतुल मजालिस* 1/493

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 30

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②④*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और जब (2) इब्राहिम को उसके रब ने कुछ बातों से आज़माया (3) तो उसने वो पूरी कर दिखाई (4) फ़रमाया मैं तुम्हें लोगों का पेशवा बनाने वाला हूँ अर्ज़ की मेरी औलाद से, फ़रमाया मेरा एहद ज़ालिमों को नहीं पहुंचता (5)


*तफ़सीर*

     (2) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पैदाइश अहवाज़ क्षेत्र में सूस रुथान पर हुई फिर आपके वालिद आपको नमरूद के मुल्क बाबुल में ले आए.यहूदि और ईसाई और अरब के मु्श्रिक सब आपकी बुजु़र्गी मानते और आपकी नस्ल में होने पर गर्व करते हैं. अल्लाह तआला ने आपके वो हालात बयान फ़रमाए जिनसे सब पर इस्लाम क़ुबूल करना लाज़िम हो जाता है, क्योंकि जो चीज़ें अल्लाह तआला ने आप पर वाजिब कीं वो इस्लाम 

की विशेषताओं में से हैं.

     (3) खु़दाई आज़माइश यह है कि बन्दे पर कोई पाबन्दी लाज़िम फ़रमाकर दूसरों पर उनके खरे खोटे होने का इज़हार कर दे.

     (4) जो बातें अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आज़माइश के लिये वाजिब की थीं, उनमें तफसीर करने वालों के चन्द कौ़ल है. क़तादा का कहना है कि वो हज के मनासिक है. मुजाहिद ने कहा इससे वो दस चीज़ें मुराद है जो अगली आयतों में बयान की गई हैं. हज़रत इब्ने अब्बास का एक कौ़ल यह है कि वे दस चीज़ें ये हैं, मूंछें कतरवाना , कुल्ली करना, नाक में सफा़ई के लिये पानी इरुतेमाल करना, मिरुवाक करना, सर में मांग मिकालना, नाख़ुन तरशवाना, बग़ल के बाल दूर करना, पेडू के नीचे की सफ़ाई, ख़तना, पानी से इरुतंजा करना. ये सब चीज़ें हज़रत  इब्राहीम पर वाजिब थीं और हम पर उनमें से कुछ वाजिब हैं.

     (5) यानी आपकी औलाद में जो ज़ालिम (काफ़िर) हैं वो इमारत की पदवी न पाएंगे. इससे मालूम हुआ कि काफ़िर मुसलमानों का पेशवा नहीं हो सकता और मुसलमानों को उसका अनुकरण जायज़ नहीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​​तज़किरए इमाम अहमद रज़ा*​​​ #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_हैरत अंगेज़ क़ुव्वते हाफीजा_*

     हज़रते अबू हामिद मुहम्मद मुहद्दिस कछौछवी رحمة الله عليه फरमाते है के जब दारुल इफ्ता में काम करने के सिलसिले में मेरा बरेलवी शरीफ में क़याम था तो रात दिन ऐसे वाक़ीआत सामने आते थे के आला हज़रत की हाज़िर जवाबी से लोग हैरान हो जाते। इन हाज़िर जवाबियो में हैरत में दाल देने वाले वाक़ीआत वो इल्मी हाज़िर जवाबी थी जिस की मिसाल सुनी भी नही गई।

     मसलन सुवाल आया, दारुल इफ्ता में काम करने वालो ने पढ़ा और ऐसा मालुम हुवा के नई किस्म का मुआमला पेश आया है और जब जवाब न मिल सकेगा फुकहाए किराम के बताए हुए उसूलो से मसअला निकाल ना पड़ेगा।

     आला हज़रत رحمة الله عليه की खिदमत में हाज़िर हुए, अर्ज़ किया : अजब नए नए किस्म के सुवालात आ रहे है ! अब हम लोग क्या तरीका इख़्तियार करे ? फ़रमाया : ये तो बड़ा पुराना सुवाल है। इब्ने हुमाम ने "फतहुल कदरी" के फुला सफ़हे में, इब्ने आबिदीन ने "रद्दल मुहतार" की फुला जिल्द के फुला सफह पर लिखा है, "फतावा हिन्दीया" में "खैरिया" में ये इबारत इस सफा पर मौजूद है।

     अब जो किताबो को खोला तो सफ़्हा, सत्र और बताई गई इबारत में एक नुक़्ते का फर्क नही। इस खुदादाद फ़ज़लो कमाल ने उलमा को हमेशा हैरत में रखा।

*✍🏽हयाते आला हज़रत, 1/210*

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 8*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*नमाज़ का तरीक़ा* #72


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #12

     दूसरा कपड़ा होने के बा वुजूद सिर्फ पाजामा या तहबन्द में नमाज़  पढ़ना।

     किसी आने वाले शनासा की खातिर इमाम का नमाज़ को तूल देना (आलमगिरी, 1/107) अगर उस की नमाज़ पर इआनत (मदद) के लिये एक दो तस्बीह की क़दर तूल दिया तो हरज नहीं।

     ऐसी ज़मीन जिस पर ना जाइज़ क़ब्ज़ा किया हो या पराया खेत जिस में ज़राअत मौजूद है या जूते हुए खेत में या क़ब्र के सामने जब कि क़ब्र और नमाज़ी के बिच में कोई चीज़ हाइल न हो नमाज़ पढ़ना।

*✍🏼आलमगिरी, 1/107*


     कुफ़्फ़ार के इबादत खाने में नमाज़ पढ़ना बल्कि इन में जाना भी मम्नुअ है।

*✍🏼रद्दलमोहतार, 2/53*


     कुरते वग़ैरा के बटन खुले होना जिस से सीना खुला रहे मकरुहे तहरीमि है, हा अगर निचे कोई और कपड़ा है जिस से सीना नहीं खुला तो मकरुहे तन्ज़ीहि है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, 196*

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*क़यामत की निशानियां* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सवाल* : क़यामत की निशानियों से क्या मुराद है?

     *जवाब*: इससे मुराद दुन्या के फनाह होने से पहले ज़ाहिर होने वाली छोटी बड़ी निशानियां है जिनमे से बाज़ वाके हो चुकी और कुछ बाक़ी है।


     *सवाल* : क़यामत की बाज़ छोटी बड़ी निशानियां बयान कीजिये?

     *जवाब* : उलमा को उठाकर इल्म उठा लिया जाएगा, जहालत ज़्यादा हो जाएगी, ज़िना, गाने बजे, शराब खोरी और माल की कसरत होगी, मर्द कम होंगे औरते ज़्यादा होंगी, वक़्त में बरकत न होगी, बड़े दज्जाल के इलावा नबुव्वत के झूठे दावेदार 30 दज्जाल और होंगे, ज़कात देना भारी होगा, मर्द बीवी की पैरवी और माँ बाप की नाफरमानी करेगा, लोग अगलो पर लानत करेंगे, दरिन्दे और जानवर आदमी से बात करेंगे, लिबास व जूतों से महरूम ज़लील लोग महल्लात में फख्र करेंगे, लोग मस्जिद में चिल्लाएंगे, दज्जाल का जूहूर होगा, हज़रते ईसा عليه السلام आसमान से उतरेंगे, हज़रते इमाम महदी رحمة الله عليه ज़ाहिर होंगे, याजूज माजूज निकलेंगे, एक जानवर दाब्बतूल अर्ज़ ज़ाहिर होगा और सूरज मगरिब से निकलेगा।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 27

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*बिस्मिल्लाह शरीफ की फ़ज़ीलत* #01


ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

     हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उष्मान رضي الله تعالي عنه ने नबी ﷺ से بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ की फ़ज़ीलत के बारे में इस्तिफ़सार किया, तो आप ﷺ ने फ़रमाया : ये अल्लाह के नामो में से एक नाम है और अल्लाह के "इसमें आज़म" और इस के दरमियान ऐसा ही कुर्ब है जैसा आँख की सियाही और सफेदी के दरमियान।

*✍🏼मुस्तदरकल हाकम 2/250*

*✍🏼मदनी पंजसुरह 1*

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Tuesday 23 October 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #288


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*हज़रते उज़ैर عليه السلام* ०१

     बनी इस्राइल बैतूल मुक़द्दस में आबाद थे जब वो अपने गुनाहों, नाफरमानी, फिस्क़ व फुजूर में हद से तजावूज़ कर गए और अपने नबी की इताअत न की तो बख्ते नसर ने बैतूल मुक़द्दस पर हमला किया और क़ब्ज़ा कर लिया। ये ईसा عليه السلام से तकरीबन 600 साल पहले का वाकिया है। इसके साथ 6 लाख झंडे उठाने वाले थे और झंडे के नीचे बेशुमार फौज़ थी उसने बैतूल मुक़द्दस को वरण कर डाला। तौरेत के तमाम नुस्खे जला दिये। बनी इस्राइल के तकरीबन एक तिहाई लोगों को क़त्ल कर दिया। और एक तिहाई लोगो को शाम के इलाके में बहुत ज़िल्लत से रखा। और एक तिहाई को क़ैदी बना लिया। यानी बनी इस्राइल को 3 हिस्सो में तक़सीम कर दिया था। उन कैदियों में हज़रत उज़ैर عليه السلام और दानयाल भी थे जो उस वक़्त बचपन की उम्र में थे।

     बहुत अरसा के बाद जब कुछ लोग क़ैद से आज़ाद हुए तो उनमें उज़ैर عليه السلام भी थे। आप عليه السلام बैतूल मुक़द्दस से गुज़रे जो बर्बाद हो चुका था, इधर उधर फिरे लेकिन कोई नज़र नहीं आया, अलबत्ता बागों में मुख्तलिफ किस्म के दरख्त फलों से भरे हुए थे। फलों को खाने वाला कोई न था अपने कुछ इंजीर और अंगूर तोड़ कर खाये और उनका रस निकाल कर पिया और कुछ इंजीर और अंगूर तोशादान में रख लिये और कुछ रस भी रख लिया। जब आपने वीरान आबादी को देखा तो बड़े तअज्जुब से अफसुर्दा हाल में कहने लगे: रब इसे फिर ज़िन्दा करेगा। उसकी कैसी अज़ीम क़ुदरत होगी?


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 255

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*नमाज़ छोड़ने वाला मलऊन (ना-लाइक) है*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अब्दुर्रहमान सफुरी رحمة الله عليه फ़रमाते है : अल्लाह ने अपनी किसी नाज़िल की हुई किताब में फ़रमाया : नमाज़ छोड़ने वाला मलऊन है और अगर उसका पड़ोसी भी उसके इस काम से राज़ी है तो वो भी मलऊन है, अगर मुझे अदलो इन्साफ का लिहाज़ न होता तो में फरमा देता कि क़यामत तक उसकी होने वाली नस्ल मलऊन है।

*✍🏼नुज़हतुल मजालिस* 1/490

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 30

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②②*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

ऐ यअक़ूब की सन्तान, याद करो मेरा एहसान जो मैं ने तुमपर किया और वह जो मैंने उस ज़माने के सब लोगों पर तुम्हें बड़ाई दी.


*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-15, आयत, ①②③*

     और डरो उस दिन से कि कोई जान दूसरे का बदला न होगी और न उसको कुछ लेकर छोड़े और न क़ाफ़िर को कोई सिफ़ारिश नफ़ा दे (1) और न उनकी मदद हो.


*तफ़सीर*

     (1) इसमें यहूदियों का रद है जो कहते थे हमारे बाप दादा बुजु़र्ग गुज़रे है, हमें शफ़ाअत (सिफ़ारिश) करने छु़ड़वा लेंगे. उन्हें मायूस किया जाता है कि शफ़ाअत काफ़िर के लिये नहीं.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*​तज़किरए इमाम अहमद रज़ा*​​ #04


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_पहला फतवा_*

     मेरे आक़ा आला हज़रत رحمة الله عليه ने सिर्फ 13 साल 10 माह 4 दिन की उम्र में तमाम मुरव्वजा उलूम की तक्लिम अपने वालीद मौलाना नकी अली खान رحمة الله عليه से कर के सनदे फरागत हासिल कर ली। इसी दिन आप ने एक सुवाल के जवाब में पहला फतवा तहरीर फ़रमाया था।

     फतवा सही पा कर आप के वालिद ने मसनदे इफ्ता आप के सुपुर्द कर दी और आखिर वक़्त तक फतावा तहरीर फरमाते रहे।

*​✍🏽हयाते आला हज़रत, 1/279*

*​✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 6*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #71


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #11


*_गधे जैसा मुंह_*

     हज़रते इमाम न-ववी अलैरहमा हदिष लेने के लिये एक बड़े मशहूर शख्स के पास दिमश्क़ गए। वो पर्दा डाल कर पढ़ाते थे, मुद्दतो तक उन के पास बहुत कुछ पढ़ा मगर उन का मुंह न देखा, जब ज़मानए दराज़ गुज़रा और उन मुहद्दिस साहिब ने देखा कि इन को इल्मे हदिष की बहुत ख्वाहिश है तो एक रोज़ पर्दा हटा दिया !

     देखते क्या है कि उनका गधे जैसा मुंह है !! उन्होंने फ़रमाया, साहिब ज़ादे ! दौराने जमाअत इमाम पर सबक़त करने से डरो कि ये हदिष जब मुझ को पहुची मेने इसे मुस्तबअद जाना और मेने इमाम पर क़सदन सबक़त की तो मेरा मुह ऐसा हो गया जैसा तुम देख रहे हो।

*✍🏼बहारे शरीअत, जी.3 स.95*


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.195*

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*बरज़ख़ का बयान* #05


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

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     *सवाल* : वो कौन है जिन के जिस्मों को क़ब्र की मिट्टी नहीं खा सकती?

     *जवाब* : अम्बिया, औलिया, उल्माए दीन, शुहदा, क़ुरआन पर अमल करने वाले हाफ़िज़, कभी भी अल्लाह की नाफरमानी न करने वालों और अपने औक़ात को दुरूद शरीफ में मुस्तगर्क़ रखने वालों के अजसाम को क़ब्र की मिट्टी नहीं खा सकती।


     *सबला* : क्या क़ब्र हर मुर्दे को दबाती है?

     *जवाब* : अम्बियाए किराम के इलावा हर एक को क़ब्र दबाती है मगर मुसलमान को मगर मुसलमान को दबाना शफ़क़त के साथ होता है जैसे मां बच्चे को सीने से लगा कर चिमटाए और काफ़िर को सख्ती से हत्ता कि उस की पसलियां इधर से उधर हो जाती है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 27

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*तज़किरतुल अम्बिया* #287


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*दाऊद عليه السلام का जालूत को क़त्ल करना*

     दाऊद عليه السلام बकरियां चराते थे आप गुलाखन के ज़रिये भेडियो ओर शेरो को पथ्थर मारते थे आप के 7 भाई तालुत के साथ मैदाने जंग में थे। जब उनको खबर पहुंचने में कुछ देर हो गई कि किस हाल में है तो आपको आपके वालिद ने भेजा कि जाओ और भाइयो की खबर ले आओ। आप عليه السلام आये तो देखा कि भाई जंग करने के लिये एक सफ़ में खड़े है और जालूत बनी इस्राइल को कह रहा है कि अगर तुम हक़ पर हो तो मेरे मुक़ाबले के लिये कोई न निकले।

     दाऊद عليه السلام ने अपने भाइयों को कहा कि तुम इस काफिर को क़त्ल क्यूं नही करते? लेकिन उसकी बहादुरी के पेशे नज़र कोई उसके मुक़ाबिल जाने के लिये तैयार नहीं था। आप عليه السلام जब दूसरी सफ़ में गये तो देखा तालुत लोगो को जालूत के क़त्ल करने पर उभर रहे है, आप عليه السلام ने कहा जो उसे क़त्ल कर उससे तुम क्या सुलूक करोगे? तालुत ने कहा उसे अपनी बेटी निकाह में दूंगा और आधी बादशाही दूंगा।

     दाऊद عليه السلام जब आ रहे थे तो रास्ते मे 3 पथ्थरों ने कहा था हमे उथालो जालूत की मौत हम में है, आपने वो पथ्थर उठा लिए थे। एक पथ्थर जालूत के सीने में मारा जालूत क़त्ल हो गया आपने कई और लोगो को भी क़त्ल किया ईस तरह जालूत और उसके लश्कर की सहिकस्ट हो गई। ईस तरह अल्लाह ने दाऊद عليه السلام को बादशाही और नबुव्वत अता कर दी।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 253

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*नमाज़ छोड़ने के नुक्सानात हक़ीक़त की रौशनी में* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      हदिष में बे-नमाज़ी को डराते हुए जो कहा गया है कि "बे-नमाज़ी क़यामत के दिन क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय बिन खल्फ़ (जैसे दुश्मनाने खुदा के साथ) होगा" इसकी वज़ाहत करते हुए हज़रत इमाम ग़ज़ाली رحمة الله عليه तहरीर फ़रमाते है कि (क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय बिन खल्फ़ के साथ) नमाज़ छोड़ने वाला इसलिये उठाया जाएगा क्योंकि अगर उसने अपने मालो अस्बाब में मशगुलियत की वजह से नमाज़ छोड़ी होगी तो वो क़ारून की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर मुल्क की मशगुलियत की वजह से नमाज़ न पढ़ी तो वो फ़िरऔन की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा और अगर वज़ारत की मशगुलियत उसे नमाज़ से रोकती है तो वो हामान की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा और अगर तिजारत में लगे रहने की वजह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो उबय बिन खल्फ़ मक्का के ताजिर की तरह है उसी के साथ उठाया जाएगा।

*✍🏼मकशफतुल कुलूब* 383

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 29

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Monday 22 October 2018

*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-14, आयत, ①②①*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

जिन्हें हमने किताब दी है वो जैसी चाहिये उसकी तिलावत (पाठ) करते है वही उस पर ईमान रखते है और  जो उसके इन्कारी हों तो वही घाटे वाले हैं (22)


*तफ़सीर*

     (22) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़माया यह आयत एहले सफ़ीना के बारे में उतरी जो जअफ़र बिन अबी तालिब के साथ रसूले पाक के दरबार में हाज़िर हुए थे. उनकी तादाद चालीस थी. बत्तीस हबशा वाले और आठ शाम वाले पादरी. उनमें बुहैपा राहिब (पादरी) भी थे. मतलब यह है कि वास्तव में तौरात शरीफ़ पर ईमान लाने वाले वही हैं जो इसके पढ़ने का हक़ अदा करते हैं और उसके मानी समझते और मानते हैं और उसमें हुज़ूर सैयदे कायनात मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और गुण देखकर हुज़ूर पर ईमान लाते हैं और जो हुज़ूर के इन्कारी होते हैं वो तौरात शरीफ़ पर ईमान नहीं रखते.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*इमाम अहमद रज़ा*​ #03


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_बचपन की एक हिकायत_*

     जनाबे अय्यूब अली शाह साहिब رحمة الله عليه फरमाते है के बचपन में आप को घर पर एक मौलवी साहिब क़ुरआन पढ़ाने आया करते थे। एक रोज़ का ज़िक्र है के मोलवी साहिब किसी आयत में बार बार एक लफ्ज़ आप को बताते थे मगर आप की ज़बाने मुबारक से नही निकलता था वो "ज़बर" बताते थे आप "ज़ेर" पढ़ते थे ये केफिय्यत जब आप के दादाजान हज़रते रज़ा अली खान رحمة الله عليه ने देखि तो आला हज़रत رحمة الله عليه को अपने पास बुलाया और कलामे पाक मंगवा कर देखा तो उस में कातिब ने गलती से ज़ेर की जगह ज़बर लिख दिया था, यानी जो आला हज़रत رحمة الله عليه की ज़बान से निकलता था वो सही था। आप के दादा ने पूछा के बेटे जिस तरह मोलवी साहिब पढ़ाते थे तुम उसी तरह क्यू नही पढ़ते थे ? अर्ज़ की : में इरादा करता था मगर ज़बान पर काबू न पाता था।

     आला हज़रत رحمة الله عليه खुद फरमाते थे के मेरे उस्ताद जिन से में इब्तिदाई किताब पढ़ता था, जब मुझे सबक पढ़ा दिया करते, एक दो मर्तबा में देख कर किताब बंद कर देता, जब सबक सुनते तो हर्फ़ ब हर्फ़ सूना देता। रोज़ाना ये हालत देख कर सख्त ताज्जुब करते। एक दिन मुझसे फरमाने लगे अहमद मिया ! ये तो कहो तुम आदमी हो या जिन ? के मुझ को पढ़ाते देर लगती है मगर तुम को याद करते देर नही लगती !

     आप ने फ़रमाया के अल्लाह का शुक्र है में इंसान ही हु, हा अल्लाह का फ़ज़लो करम शामिल है।

*✍🏽हयाते आला हज़रत, 168*

*✍🏽तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 5*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़ का तरीक़ा* #70


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #10

     ★ किराअत रूकू में पहुच कर खत्म करना।

     ★ इमाम से पहले मुक्तदि का रूकू व सुजूद वग़ैरा में चला जाना या इससे पहले सर उठाना।

*✍🏼रद्दलमोहतार, जी.2 स.513*

     ★ हज़रते इमाम मालिक, हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत करते है कि नबी صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो इमाम से पहले सर उठाता और झुकाता है उस की पेशानी के बाल शैतान के हाथ में है।

     ★ हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है, नबी صلى الله عليه وسلم फरमाते है : क्या जो शख्स इमाम से पहले सर उठाता है इस से डरता नहीं की अल्लाह उसका सर गधे का सर कर दे।

*✍🏼सहीह मुस्लिम, 1/181*


बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

*✍🏼नमाज़ के अहकाम, स.194-195*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*बरज़ख़ का बयान* #04


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     *सवाल* : क्या मरने के बाद रूह किसी और बदन में मुंतक़ील हो सकती है?

     *जवाब* : ये खयाल की रूह किसी दूसरे बदन में चली जाती है ख्वाह वो आदमी का बदन हो या जानवर का जिसको तनासुख और आवागोन कहते है महज़ बातिल और इसका मानना कुफ्र है।


     *सवाल* : अज़ बज़्ज़म्ब किसे कहते है?

     *जवाब* : रीढ़ की हड्डी के वो बारीक अज्ज़ा जिन को न किसी खुर्दबीन से देखा जाता है, न आग उन्हें जला सकती है, न ज़मीन उन्हें गला सकती है। ये तुखमे जिस्म है, लिहाज़ा रोज़े क़यामत रूहों का लौटाना इसी जिस्म में होगा।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 26

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Sunday 21 October 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #286


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*क़ौम की आज़माइश*

     जब तालुत कि हाकमियत पर अल्लाह की तरफ से निशानी आ गई तो बनी इस्राइल को यक़ीन हो गया। वो उनको ज़ेरे क़यादत मैदाने जंग में निकलने के लिये तैयार हो गये। तालुत ने एलान किया जो लोग अपने मकानों वगैरह की तामीर में मशगूल हो वो मेरे साथ न निकले और ताजिर जो तिजारत में मशगूल हो वो भी मेरे साथ न चले। मेरे साथ चलने वाले सिर्फ नौजवान, फुर्तीले और तमाम दुन्यावी हाजत से फारिग होने चाहिये। मक़सद ये था कि मैदाने जंग में आकर किसी को भी घर की याद न आये।

     हज़रत तालुत जब बहुत बड़ा लश्कर ले कर शहरी हुदूद से बाहर हुए तो अशमुईल عليه السلام ने या तालुत ने लशकर को बताया कि अल्लाह एक नहर से तुम्हारा इम्तेहान लेने वाला है। जिसने उससे पानी पी लिया वो मेरे दीन पर नहीं और जिसने उसका पानी न पिया वो मेरा मुतीअ होगा और मेरे दीन पर क़ायम होगा, हां सिर्फ चुल्लूभर पानी उससे लेने की इजाज़त होगी।

     ये आज़माइश उनके लिये बहुत सख्त थी क्योंकि उन पर प्यास की शिद्दत का गलबा था पानी को देख कर सब्र करना उनके लिये बहुत दुश्वार था। तमाम लश्कर वालो ने उससे पानी पी लिया, सिर्फ 313 थे जो इस इम्तेहान में कामयाब हुए थे उन्होंने सिर्फ एक चुल्लू पानी पिया था। अल्लाह ने इस चुल्लू भर पानी मे इतनी बरकत रख दी थी कि उन्हें भी काफी हुआ और वही चुल्लू उनके खादिमों और उनकी सवारियों को भी काफी हो गया।

     जो लोग आज़माइश में नाकाम हो गये अल्लाह और उसके नबी के नाफ़रमान हो गये, वो बुजदिल हो गये और कहने लगे हम तो आज तालुत और उसके लश्कर से जंग करने की ताक़त नहीं रखते।

     (इससे ये वाज़ेह हो गया कि अल्लाह और उसके रसूल के अहकाम को तस्लीम न करने की वजह से इंसान काफिरों से जंग करने की ताक़त नहीं रखता। यही वजह से है आज तमाम इस्लामी मुमालिक कुफ्फार से डरकर ज़िन्दगी गुज़ार रहे है।)

     जो लोग इस इम्तिहान में कामयाब हो गये थे उन्हें अल्लाह ने ये बरकत अता की कि उन्होंने अपने आप को जिहाद के लिये तैयार कर लिया। उन्हें यक़ीन का वो आला दर्जा हासिल हुआ कि वो कहने लगे कि कितनी थोड़ी जमाअते बड़ी जमाअतो पर गालिब आ जाती है। बेशक ज़्यादा लोग हम से फिर चुके है हम थोड़े रह गये है लेकिन जब अल्लाह की तरफ से हमे इमदाद हासिल होगी तो हम ज़रूर कामयाब हो जायेंगे।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 252

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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*नमाज़ छोड़ने के नुक्सानात हक़ीक़त की रौशनी में* #01


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अब्दुर्रहमान सफुरी رحمة الله عليه पंजगाना नमाज़े छोड़ने वाले के सिलसिले में तहरीर फ़रमाते है : फ़रिश्ते नमाज़े फजर छोड़ने वाले को फाजिर (बद चलन) और बदकार कहते है, जुहर की नमाज़ छोड़ने वाले को खासिर (नुक़्सान उठाने वाला) और नाबकार (नालाएक़) कहते है,असर की नमाज़ छोड़ने वाले को खाती (गलती करने वाला) और गुनाहगार कहते है, मगरिब की नमाज़ छोड़ने वाले को काफ़िर और ना-शुक्रगुज़ार कहते है और ईशा की नमाज़ छोड़ने वाले को ज़ियांकार (नुक़्सान करने वाला) कहकर पुकारते है।

*✍🏼नुज़हतुल मजालिस* 1/491

*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 29

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-14, आयत, ①②ⓞ*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और कभी तुमसे यहूदी और नसारा (ईसाई) राज़ी न होंगे जब तक तुम उनके दीन का अनुकरण न करो (19) तुम फ़रमाओ  अल्लाह ही की हिदायत हिदायत है (20) और (ऐ सुनने वाले, कोई भी हो) अगर तू उनकी ख्वाहिशों पर चलने वाला हुआ बाद इसके कि तुझे इल्म आचुका तो अल्लाह से तेरा कोई बचाने वाला न होगा और न मददगार (21)


*तफ़सीर*

     (19) और यह असम्भव है, क्योंकि वो झूठे और बातिल है.

     (20) वही अनुकरण के क़ाबिल है और उसके सिवा हर एक राह झूठी और गुमराही वाली.

     (21) यह सम्बोधन उम्मते मुहम्मदिया यानी मुसलमानों के लिये है कि जब तुमने जान लिया कि नबीयों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तुम्हारे पास सत्य और हिदायत लेकर आए, तो तुम हरग़िज़ काफ़िरों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करना. अगर ऐसा किया तो तुम्हें कोई अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला नहीं है.(ख़ाज़िन)

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*तज़किरए इमाम अहमद रज़ा* #02


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

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*_हैरत अंगेज़ बचपन_*

     उमुमन हर ज़माने के बच्चों का वही हाल होता है जो आज कल बच्चों का है, के सात आठ साल तक तो उन्हें किसी बात का होश नही होता और न ही वो किसी बात की तह तक पहोच सकते है.

     मगर आला हज़रत رحمة الله عليه का बचपन बड़ी अहमिय्यत का हामिल था। कमसिन और कम उम्र में होश मन्दी और क़ुव्वते हाफीजा का ये आलम था के साढ़े चार साल की नन्ही सी उम्र में क़ुरआन मुकम्मल पढ़ने की नेअमत से बारयाब हो गए। 6 साल के थे के रबीउल अव्वल के मुबारक महीने में मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ हो कर मिलादुन्नबी के मौजू पर एक बहुत बड़े इज्तिमा में निहायत पुर मग्ज़ तक़रीर फरमा कर उल्माए किराम और मसाईखे इज़ाम से तहसीन व आफरीन की दाद वसूल की।

     इसी उम्र में आप ने बगदाद शरीफ के बारे में सम्त मालुम कर ली फिर ता दमे हयात गौषे आज़म رضي الله عنه के मुबारक शहर की तरफ पाउ न फेलाए।

     नमाज़ से तो इश्क़ की हद तक लगाव था चुनांचे नमाज़े पंजगाना बा जमाअत तकबिरे उला का तहफ़्फ़ुज़ करते हुए मस्जिद में जा कर अदा फ़रमाया करते।

     जब किसी खातुन का सामना होता तो फौरन नज़रे नीची करते हुए सर जुका लिया करते, गोया के सुन्नते मुस्तफा का आप पर गल्बा था, जिस का इज़हार करते हुए हुज़ूरे पुरनूर ﷺ की खिदमत में यु सलाम पेश करते है :

          *नीची  नज़रो  की  शर्म  हया  पर  दुरुद*

               *उची बिनी की तफअत पे लाखो सलाम*

     आला हज़रत رحمة الله عليه ने लड़क पन में तक़वा को इस क़दर अपना लिया था के चलते वक़्त क़दमो की आहत तक सुनाई न देती थी। 7 साल के थे के माहे रमज़ान में रोज़े रखने शुरू कर दिये।

*✍🏽फतावा रज़विय्या, 30/16*

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