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Sunday 31 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*ज़ालिम वालिदैन की भी इताअत*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     माँ बाप की ना फ़रमानी करने वालो को घबरा कर तौबा कर लेनी और वालिदैन से मुआफ़ी मांग कर उन को राज़ी कर लेना चाहिए। वरना कहिके न रहोगे।
     हुज़ूरﷺ का फरमान है : जिसने इस हाल में सुबह की, कि अपने माँ बाप का फरमा बरदार है, उसके लिए सुब्ह ही को जन्नत के दो दरवाज़े खुल जाते है और माँ बाप में से एक ही हो तो एक दरवाज़ा खुलता है
     और जिसने इस हाल में शाम की, कि माँ बाप के बारे में अल्लाह عزوجل  की ना फ़रमानी करता है उसके लिये सुबह ही को जहन्नम के दो दरवाज़े खुल जाते है और और माँ बाप में से एक हो तो एक दरवाज़ा खुलता है।
     एक शख्स ने अर्ज़ की : अगर्चे माँ बाप उस पर ज़ुल्म करे। फ़रमाया : अगर्चे ज़ुल्म करे, अगर्चे ज़ुल्म करे, अगर्चे ज़ुल्म करे।
*✍🏽शोएबुल ईमान 6/206*

     अगर वालिदैन ख़िलाफे शरीअत हुक्म दे तो इस बात में उनकी फरमा बरदारी न की जाए। मसलन हराम रोज़ी कमा कर लाने या दाढ़ी मुंडाने का हुक्म दे तो ये बाते न मानी जाए, गुनाह की बातो में माँ बाप की फरमा बरदारी करने वाला गुनाहगार और जहन्नम का हक़दार होगा।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 19*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*इफाजा का चक्कर (तवाफ़) लगाने के बाद हैज आना*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आइशाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है कि उन्होंने नबीﷺ से अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूलﷺ ! (आप की बीवी) सफिय्या को हैज आ गया,
     आपﷺने फ़रमाया, शायद वो हमे रोक रखेगी ? क्या उसने तुम्हारे साथ तवाफे इफाजा नही किया ? उन्हों ने कहा तवाफ़ तो कर चुकी है, आप ने फ़रमाया, तो फिर चलो (क्यू की तवाफे विदा हैज वाली औरत के लिए ज़रूरी नही)

*हदिष की सरह*
     तवाफे इफाजा जुलहिज्जा की 10वी तारीख को किया जाता है, ये फ़र्ज़ और हज का रुक्न है, अलबत्ता तवाफे विदा जो काबा से रुखसत होते वक़्त किया जाता है, वो हैज वाली औरत के लिये ज़रूरी नही है।
*✍🏽मुख़्तसर सहीह बुखारी, 1/173*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_हज़रते खूबैब की क़ब्र_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     इन हज़रात ने जब देखा की कुरैश के सुवार हम को गिरफ्तार कर लेंगे तो इन्होंने ने हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की लाश मुबारक को घोड़े से उतार कर ज़मीन पर रख दिया। खुदा की शान कि एक दम ज़मीन फट गई और लाश मुबारक को निगल गई और फिर ज़मीन इस तरह बराबर हो गई कि फटने का निशान भी बाक़ी नही रहा। यही वजह है कि हज़रते खूबैब का लक़ब " बलीउल अर्द" (जिन को ज़मीन निगल गई) है।
     इसके बाद इन हज़रात ने कुफ्फार से खा4 कि हम दो शेर है जो अपने जंगल में जा रहे है अगर तुम लोगो से हो सके तो हमारा रास्ता रोक कर देखो वरना अपना रास्ता लो।
     कुफ्फार ने इन दो हज़रात के पास लाशनहि देखि इस लिये मक्का वापस चले गए। जब दोनों सहाबए किराम ने बारगाहे रिसालत में सारा माजरा अर्ज़ किया तो हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम हाज़िरे दरबार थे। उन्होंने अर्ज़ किया की या रसुलल्लाहﷺ ! आप इन दोनों यारो के इस कारनामे पर हम फरिश्तों की जमाअत को भी फख्र है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 293*
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फुतूह अल ग़ैब

*जलाली और जमाली सिफात:*
(हिस्सा 2)
 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     जलाली वो जो खौफ-व-हैबत, बेअकली और बेआरामी पैदा करते हैं और इससे आअज़ाए जिस्म पर खौफ-व-देहशत के आसार मरतब होते हैं। जैसा के रसूले करीम अलैहिस्सलात व तस्लीम के मुतअल्लिक अहादीस में है के नमाज़ मे शिद्दते खौफ के बाइस उनके सीनए मुबारक से जोश खाती हुइ देग जैसी आवाज़ सुनाइ देती थी। क्यों के वो चीज़ हुज़ूर खुदा तआला के जलाल-व-जबरूत (अज़मत व जलाल के इल्म) को देखते थे और आप पर अज़मत व हैबते खुदावंदी का ईंन्किशाफ होता था। ईसी तरह हजरत ईब्राहीम खलीलुल्लाह (अलयहिस्सलाम) और हजरत उमर फारुक رضي الله تعالي عنه के लिये मंकुल है जो अपनी ज़ातके लिये नहि बल्के गैरते हक और हिफज़े तौहीद के लिये होता था।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 20
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैयद*
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मुर्दे की बेबसी

*खौफ नाक वादी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जहन्नम में गय्य नामी एक खौफनाक वादी है जिस की गर्मी से जहन्नम की दीगर वादीया पनाह मांगती है, ये वादी जानियो, शराबियो, सूदखोरों, झुटे गवाहों, माँ बाप के ना फरमानो और बे नमाज़ियों के लिये है।
*✍🏽रुहुल बयान 5/345*

*_गन्जा अज़्दहा_*
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसको अल्लाह ने माल अता फ़रमाया और उस ने उस की ज़कात अदा न की तो क़यामत के दिन उसका माल एक गन्जे अज़्दहे की सूरत में बना दिया जाएगा की उस अज़्दहे की दो चित्तिया होगी (जो उसके बहुत ही ज़हरीले होने की निशानी है) और वो अज़्दहा उस के गले का हार बना दिया जाएगा जो अपने जबड़ो से उस को पकड़ेगा और कहेगा : में हु तेरा माल, तेरा खज़ाना।
*✍🏽बुखारी 1/474*
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 17*
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मदनी पंजसुरह

*सूरतुल इख्लास के फ़ज़ाइल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : तुममे से कोई शख्स रात में तिहाई क़ुरआन क्यू नही पढ़ता ? सहाबए किराम ने अर्ज़ किया कोई शख्स तिहाई क़ुरआन कैसे पढ़ सकता है ? इरशाद फ़रमाया : सूरए इख्लास तिहाई क़ुरआन के बराबर है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम 405*

     हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जो शख्स 10 मर्तबा सूरए इख्लास पढ़ेगा अल्लाह उसके लिये जन्नत में एक महल बनाएगा। हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! फिर तो हम इसे कसरत से पढ़ा करेंगे। आपﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह बहुत ज़्यादा अता फरमाने वाला और पाक है।
*✍🏽मस्नूद इमाम अहमद बिन हम्बल 5/308*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه फरमाते है की में हुज़ूरﷺ के साथ कहि जा रहा था की आप ने किसी शख्स को सूरए इख्लास पढ़ते हुए सुना तो आप ने इरशाद फ़रमाया : वाजिब हो गई। मेने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! क्या चीज़ वाजिब हो गई ? फ़रमाया जन्नत।
*✍🏽मदनी पंजसुरह 121*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-53
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤① , तर्जुमह*
और जब वादा किया हमने मुसाको 40 रात का, फिर बूत बना लिया तुमने गौसाले को उनके बाद। और तुम अंधेर वाले हो।

*तफ़सीर*
     और ऐ यहूदियो ! उस वाक़या को भी सोचो और याद करो जब के वादा किया था हमने मुसाको के 40 रात का चिल्ला करके कोहे तुर पर आवो क्र हमारा फरमान ले जाओ।
     फिर क़बिल ए सामरा का सुनार मेख़ा नामने सबके ज़वेरात को, जो किब्तियो से मिले थे, केह केह कर इकठ्ठा किया के ये माले गनीमत है और शरीअते मूसा में माले गनीमत इस्तेमाल हराम है। और उस गौसाला परस्त कौम के आदमीने ज़वेरात को पिगला कर गाय का बुत बनाया।
     उसने एक मर्तबा ये भी देखा के हज़रते जिब्राईल घोड़े पर सवार है। और घोड़े की खुर जहां पड़ती है, ज़मीन का ज़र्रा ज़र्रा ज़िन्दगी पा जाता है। वो खाक उसके पास थी, जिसको गाय के बूत में डाल दी। तो वो आवाज़ देने लगा और उसको उसने खुदाए मूसा क़रार दिया।
     हज़रते हारून और उनके बारा हज़ार साथियो के सिवा बूत बना लिया तुम सबने उस गाय को। हज़रते मूसा की मौजूदगी में नही, बल्कि उनके तुर पर जाने के तीसरे या चौथे दसक के बद। और तुम खुद अपने हि हकमे बड़े ही अंधेर डाल देने वाले हो।
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी का तरीका*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     चाहे क़ुरबानी हो या वेसे ही ज़बह करना हो सुन्नत ये चली आ रही है कि ज़बह करने वाला और जानवर दोनों कीब्ला रु हो, हमारे अलाके (यानी हिन्द व पाक) में कीब्ला मगरिब (west) में है, इस लिये जानवर का सर जुनुब (south) की तरफ होना चाहिये ताकि जानवर बाए यानी उलटे पहलू लेटा हो, और उस की पीठ मशरिक (east) की तरफ हो ताकि उसका मुह किबले की तरफ हो जाए, और ज़बह करने वाला अपना दाया (सीधा) पाउ जानवर की गर्दन के दाए (सीधे) हिस्से (यानि गर्दन के क़रीब पहलू) पर रखे और ज़बह करे और खुद अपना या जानवर का मुह किबले की तरफ करना तर्क किया तो मकरूह है।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 20/216*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवर, 13*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-53
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤① , तर्जुमह*
और जब वादा किया हमने मुसाको 40 रात का, फिर बूत बना लिया तुमने गौसाले को उनके बाद। और तुम अंधेर वाले हो।

*तफ़सीर*
     और ऐ यहूदियो ! उस वाक़या को भी सोचो और याद करो जब के वादा किया था हमने मुसाको के 40 रात का चिल्ला करके कोहे तुर पर आवो क्र हमारा फरमान ले जाओ।
     फिर क़बिल ए सामरा का सुनार मेख़ा नामने सबके ज़वेरात को, जो किब्तियो से मिले थे, केह केह कर इकठ्ठा किया के ये माले गनीमत है और शरीअते मूसा में माले गनीमत इस्तेमाल हराम है। और उस गौसाला परस्त कौम के आदमीने ज़वेरात को पिगला कर गाय का बुत बनाया।
     उसने एक मर्तबा ये भी देखा के हज़रते जिब्राईल घोड़े पर सवार है। और घोड़े की खुर जहां पड़ती है, ज़मीन का ज़र्रा ज़र्रा ज़िन्दगी पा जाता है। वो खाक उसके पास थी, जिसको गाय के बूत में डाल दी। तो वो आवाज़ देने लगा और उसको उसने खुदाए मूसा क़रार दिया।
     हज़रते हारून और उनके बारा हज़ार साथियो के सिवा बूत बना लिया तुम सबने उस गाय को। हज़रते मूसा की मौजूदगी में नही, बल्कि उनके तुर पर जाने के तीसरे या चौथे दसक के बद। और तुम खुद अपने हि हकमे बड़े ही अंधेर डाल देने वाले हो।
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Saturday 30 July 2016

*हदिशे मुबारका*

आइशाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है, फरमाती है, हममे से जब किसी औरत को हैज आता और रसूलल्लाहﷺ उससे मिलना चाहते तो उसे हुक्म देते कि अपने हैज की ज़्यादती के वक़्त इजार पहन ले, फिर उसके साथ लेट जाते।
     उसके बद आइशाرضي الله تعالي عنها ने फ़रमाया, तुम में से कौन है, जो अपनी ख्वाहिश और इस क़दर काबू रखता हो, जिस क़दर रसूलल्लाहﷺ अपनी ख्वाहिश पर काबू रखते थे।

*हदिष की सरह*
मालुम हुआ की जिस का अपने जोश पर कंट्रोल न हो वो ऐसे मिलने से परहेज़ करे, कि कहि हराम काम न हो जाये।
*✍🏽मुख़्तसर सहीह बुखारी, 1/166*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_हज़रते खूबैब की क़ब्र_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ को अल्लाह ने वही के ज़रिए हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की शहादत से मुत्तलअ फ़रमाया। आप ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि जो शख्स खूबैब की लाश को सूली से उतार लाए उस के लिये जन्नत है।
     ये बिशारत सुन कर हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम व हज़रते मिक़दाद बिन अल अस्वदرضي الله تعالي عنهم रातो को सफर करते और दिनको छुपते हुए मक़ामे तन्इम में हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه की सूली के पास पहुचे। 40 कुफ्फार सूली के पहरदार बन कर औ रहे थे इन दोनों हज़रात ने सूली से लाश को उतारा और घोड़े पर रख कर चल दिये।
     40 दिन गुज़र जाने के बावुजूद लाश तरो ताज़ा थी और ज़ख्मो से ताज़ा खून टपक रहा था। सुब्ह को कुरैश के 70 सुवार तेज़ रफ़्तार घोड़ो पर चल पड़े और इन दोनों हज़रात के पास पहुच गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 292*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*ज़बह में कितनी रगे कटनी चाहिए?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जो रगे ज़बह में काटी जाती है वो 4 है। हुल्कूम ये वो है जिसमे सास आती जाती है, मुरी इस से खाना पीना उतरता है इन दोनों के अगल बगल और दो रगे है जिन में खून की रवानी है इन को वदजैन कहते है। ज़बह की 4 रगो में से तिन का कट जाना काफी है यानी इस सूरत में भी जानवर हलाल हो जाएगा की अक्सर के लिये वही हुक्म है जो कुल के लिये है और अगर चारो में से हर एक का अक्सर हिस्सा कट जाएगा जब भी हलाल हो जाएगा और अगर आधी आधी हर रग कट गई और आधी बाक़ी है तो हलाल नही।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/312*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 12*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-52
*_सूरए बक़रह, पारह 01_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ⑤ⓞ, तर्जुमह*
और जब फाड़ दिया था हमने तुम्हारे सबब दरिया को, तो बचा लिया हमने तुम्हे और डुबो दिया हमने फ़िरऔनियो को क्र तुम देख रहे हो।

*तफ़सीर*
     अय यहूदियो ! हमारा कितना बड़ा एहसान हुवा था जब बनी इस्राइल को लेकर हज़रते मूसा मिसर से हिजरत करके चले जा रहे थे। और फ़िरऔनियो ने उनको पकड़ने के लिये फ़िरऔन की आगवानी में पीछा किया था और रस्ते में जब वो दरिया पड़ा, जिसका नाम "बेहरे कुलज़ुम व दरिया ए असाफ़" है, बनी इस्राइल डर रहे थे के पीछे फ़िरऔन की लाखो फ़ौज है और सामने दरिया है, और हुक्मे इलाही से हज़रते मूसा ने अपना असा मारा, तो सबने देखा के उस वक़्त फाड़ दिया था हमने तुम्हारे बाप दादा ओ के सबब के बे खौफ निकल जाओ। और ऐसा फाड़ा था दरिया को के दोनों जानिब पानीकी दिवार थी, जिस्के दरम्यान सुकी ज़मीन 12 मिल की निकल आई थी।
     तो बचा लिया हमने तुम्हे फ़िरऔन और फ़िरऔनि जो लाखो थे, सामाने जंग के साथ नर घोड़ो पर सवार थे,
     दरिया का ये नक्शा देख कर फ़िरऔन ने डिंग मारी के मेरी हैबत से दरिया फट गया है। मगर किसी की हिमत उसमे उतरने की न पड़ती थी।
     जिब्राईले अमिन एक घोड़ी पर नमूदार हुए और दरिया में उतरे। तो फ़िरऔन का घोडा भी रोके न रुका और कूद पड़ा। फिर अचानक सारे फ़िरऔनियो के घोड़े भी कूद पड़े। और दरिया के दोनों किनारो को मिला कर डुबो दिया हमने सारे फ़िरऔनियो को।
     वो कुछ बहुत दूर नही जा चुके थे। इतने फासले पर डुबोये गए थे के तुम्हारी निगाह उन तक पहुचे और तुम उन्हें डूबते हुए अपनी आँखोसे देख रहे हो।
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मदनी पंजसुरह

*सूरए वाक़ीअह के फ़ज़ाइल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     ये सूरत बहुत ही बा बरकत है, हज़रते अनसرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि रसूलल्लाहﷺ ने फ़रमाया : सूरए वाक़ीअह तवंगरि (यानी खशहालि) की सूरत है लिहाज़ा इसे पढ़ो और अपनी औलाद को सिखाओ।
*✍🏽रुहुल बयान 7/183*

     हज़रते इब्ने मसऊदرضي الله تعالي عنه मरजुल मौत में मुब्तला थे हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه उनकी इयादत के लिये तशरीफ़ ले गए और उन से फरमाने लगे की अगर में तुम्हे खज़ाने से कुछ अता कर दू तो केसा है ? उन्होंने फ़रमाया : मुझे इस की कोई ज़रूरत नही। हज़रते उष्मान ने फ़रमाया : बाद में तुम्हारी बच्चियो के काम आएगा। इब्ने मसऊदرضي الله تعالي عنه ने कहा : तुम मेरी बच्चियों के मुतअल्लिक़ फ़क़रो फ़ाक़ा से डरते हो मेने इन को हुक्म दिया है की वो हर रात सूरए वाक़ीअह पढ़ा करे, मेने रसूलल्लाहﷺ को ये फरमाते हुए सुना की जो आदमी हर रात सूरतुल वाक़ीअह पढ़ेगा वो कभी फ़क़रो फ़ाक़ा में मुब्तला नही होगा।
*✍🏽मदनी पंजसुरह 100*
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Friday 29 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*मुर्दे से गुफ्त-गू*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     "शरहुस्सुदुर" में है, हज़रते सईद बिन मुसय्यबرضي الله تعالي عنه फरमाते है : एक बार हज़रते अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे खुदाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم के हमराह मदिने के क़ब्रस्तान में गए। हज़रते मौला अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने क़ब्र वालो को सलाम किया और फ़रमाया : ऐ क़ब्रवालो ! तुम अपनी खबर बताते हो, या हम बताए ?
     हज़रते सईद बिन मुसय्यबرضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हमने क़ब्र से वालेकुम सलाम व-रहमतुल्लाहे व-बरकातुहु की आवाज़ सुनी और कोई कहने वाला कह रहा था : या अमीरुल मुअमिनिन ! आप ही खबर दीजिये की हमारे मरने के बाद क्या हुवा ?
     हज़रते मौला अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया : सुन लो ! तुम्हारे माल तक़सीम हो गए, तुम्हारी बीवियों ने दूसरे निकाह कर लिये, तुम्हारी औलाद यतिमो में शामिल हो गई, जिस मकान को तुम ने बहुत मज़बूत बनाया था उसमे तुम्हारे दुश्मन आबाद हो गए। अब तुम अपना हाल सुनाओ।
     ये सुन कर एक क़ब्र से आवाज़ आने लगी : या अमीरुल मुअमिनिन ! कफ़न तार तार हो गए, बाल झड़ कर मुन्तशिर हो गए, हमारी खाले टुकड़े टुकड़े हो गई, आँखे बह कर रुखसारों पर आ गई और हमारे नथनों से पिप जारी है और हम ने जो कुछ आगे भेजा (यानी जैसे अमल किये) उसी को पाया, जो कुछ छोड़ा उस में नुक़सान उठाया।
*✍🏽शरहुसुदुर 27/395*
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 12*
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खादिमे दिने नबी ﷺ *मुहम्मद मोईन*
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*हैज वाली औरत को हज के दौरान क्या करना चाहिए*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     आइशाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया कि हम सब मदीना से सिर्फ हज के इरादे से निकले और जब मक़ामे सरीक पर पहुचे तो मुझे हैज आ गया। नबीﷺ मेरे पास तशरीफ़ लाये तो में रो रही थी, आप ने फ़रमाया, तुम्हारा क्या हाल है ? क्या तुझे हैज आ गया है ? मेने अर्ज़ किया जी हा !
     आपﷺ ने फ़रमाया कि ये मामला तो अल्लाह ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की बेटियो पर लिख दिया है। इसलिए हाजियो के सब काम करती रहो, अलबत्ता काबा का तवाफ़ न करना।
     आइशाرضي الله تعالي عنها ने फ़रमाया, रसूलल्लाह ने अपनी बीवियों की तरफ से एक गाय की क़ुरबानी दी।

*हदिष की सरह*
मालूम हुआ कि हैज वाली औरत बैतुल्लाह के चक्कर के अलावा दीगर हज के अरकान अदा करने की पाबन्द है।
*✍🏽मुख़्तसर सहीह बुखारी, 1/163*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

    हज़रते खूबैब और हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنهم को काफिरो ने बांध दिया था इस लिए ये दोनों मजबूर हो गए थे। इन दोनों को कुफ्फार ने मक्का में ले जा कर बेच डाला। हज़रते खूबैबرضي الله تعالي عنه ने जंगे उहुद में हारिष बिन आमिर को क़त्ल किया था इस लिये उसके लड़को ने इन को खरीद लिया ताकि इन को क़त्ल करके बाप के खून का बदला लिया जाए और हज़रते ज़ैदرضي الله تعالي عنه को उमय्या के बेटे सफ्वान ने क़त्ल करने के इरादे से खरीदा।
     हज़रते खूबैब को काफिरो ने चन्द दिन क़ैद में रखा फिर हुदूदे हरम के बाहर ले जा कर सूली पर चढ़ा कर क़त्ल कर दिया। हज़रते खूबैब ने क़ातिलों से दो रकाअत नमाज़ पढ़ने की इजाज़त तलब की, क़ातिलों ने इजाज़त दे दी। आप ने बहुत मुख़्तसर तौर पर दो रकअत नमाज़ अदा फ़रमाई और फ़रमाया कि ऐ गिरोहे कुफ्फार ! मेरा दिल तो यही चाहता था की देर तक नमाज़ पढ़ता रह क्यू की ये मेरी ज़िन्दगी की आखरी नमाज़ थी मगर मुझ को ये ख्याल आ गया कि कही तुम लोग ये न समझ लो कि में मौत से डर रहा हु। कुफ्फार ने आप को सूली पर चढ़ा दिया उस वक़्त आप ने ये अशआर पढ़े....
_जब में मुसलमान हो कर क़त्ल किया जा रहा हु तो मुझे कोई परवा नही है की में किस पहलू पर क़त्ल किया जाऊँगा_
_ये सब कुछ खुदा के लिये है अगर वो चाहेगा तो मेरे कटे पिटे जिस्म के टुकड़ो पर बरकत नाज़िल फ़रमाएगा_
     हारिष बिन आमिर के लड़के अबू सरूआ ने आप को क़त्ल किया मगर खुदा की शान की यही अबू सरूआ और इनके दोनों भाई उक़बा और हुज़ैर फिर बाद में मुशर्रफ ब इस्लाम हो कर सहाबिय्यत के शरफ व एजाज से सरफ़राज़ हो गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 290*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_ज़बह में कितनी रगे कटनी चाहिए?_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : जो रगे ज़बह में काटी जाती है वो 4 है। हुल्कूम ये वो है जिसमे सास आती जाती है, मुरी इस से खाना पीना उतरता है इन दोनों के अगल बगल और दो रगे है जिन में खून की रवानी है इन को वदजैन कहते है। ज़बह की 4 रगो में से तिन का कट जाना काफी है यानी इस सूरत में भी जानवर हलाल हो जाएगा की अक्सर के लिये वही हुक्म है जो कुल के लिये है और अगर चारो में से हर एक का अक्सर हिस्सा कट जाएगा जब भी हलाल हो जाएगा और अगर आधी आधी हर रग कट गई और आधी बाक़ी है तो हलाल नही।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/312*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 12*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-51
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④⑨, तर्जुमह*
और जब नजात दिलाई थी हमने तुमको फिरोनियो से, जो दिया करे तुमको बुरा दुःख, जबह कर दिया करे तुम्हारे बेटो को और ज़िन्दा रख छोड़े तुम्हारी औरतो को। और तुम्हारी उस हालत में आज़माइश रही तुम्हारे परवरदिगार की तरफसे बहोत बड़ी।

*तफ़सीर*
     अय यहूदियो ! याद करो और मेरा एहसान मानो ! कितना बड़ा हमारा कर्म था जब नजात दिलाई थी हमने तुम लोगो के बाप दादाओ को ज़ालिम और बेरहम फिरोनियो से।
     तुम्हे मालुम है के मिसर के फ़िरऔनो में से उस फ़िरऔन ने जो हज़रते मूसा के ज़माने का फ़िरऔन कहलाता है और इसकी उम्र 400 बरस की हुई, उसने ख्वाब देखा था की बैतूल मुक़द्दस में एक आग चली, जिसने क़ौमें फ़िरऔन, किब्तियो के घर फुक दिये और बनी इस्राइल, औलादे यअक़ूब के घर महफूज़ रहे। और उसको ताबीर दी गई थी के बनी इस्राइल में एक लड़का होगा, जो क़ौमें फ़िरऔन को तबाह कर देगा और बनी इस्राइल को बुलंद रुतबा बना देगा। चुनांचे अपने करता-धरता लोगोसे मशवरा करके उसने चाहा के बनी इस्राइल में जो लड़का पैदा हो, वो क़त्ल कर दिया जाए। एक सालके बच्चे छोड़े जाए, तो दूसरे सालके बच्चे मार डाले जाए।
     चुनांचे उसने यही किया और सारी क़ौमकि ये पहचान हो गई के जो दिया करे तुमको दुःख। दुःख तो सभी बुरे है। मगर वो हर दुःखसे बुरा दुःख पहुचाते रहे। इनके इस बेरहमी भरे ज़ुल्म को देखो के जबह कर दिया करे बगैर सोचे समजे तुम्हारव बेटो को और तरस न खाए, और ज़िन्दा रख छोड़े अपनी नोकरानी बनाने के लिये तुम्हारी क़ौमकि औरतो को।
     और समज लो तुम्हारी उस सब हालतो में खुशहाली का ज़माना हो या बदहाली का, आज़माइश तुम्हारी होती रही तुम्हारे परवरदिगार अल्लाह की तरफ से क्र आज़माइश मामूली नही बल्कि बहोत बड़ी, अंदाज़े से बहार।
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मदनी पंजसुरह

*सूरए मुल्क के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     चाँद देख कर इस को पढ़ा जाए तो मजीने के तिस दिनों तक वो सख्तियो से इन्शा अल्लाह महफूज़ रहेगा, इस लिये कि ये तिस आयते है और तिस दिन के लिये काफी है।
*✍🏽तफ़सीर रुहुल मआनी 10/4*

     हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : बेशक में क़ुरआन में 30 आयत की एक सूरत पाता हु, जो शख्स सोते वक़्त इस सूरत की तिलावत करे, उसके लिये 30 नेकिया लिखी जाएगी, और 30 गुनाह मिटाए जाएंगे, और उसके 30 दरजात बुलंद किये जाएंगे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने फरिश्तों में से एक फ़रिश्ता उस की तरफ भेजेगा, ताकि वो उस पर अपने पर बिछा दे और उस की हर चीज़ से जागने तक हिफाज़त करे, और ये मुजादला (यानी झगड़ा) करने वाली है, अपने पढ़ने वाले की मग्फिरत के लिये क़ब्र में झगड़ा करेगी, और ये सूरए मुल्क है।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 8/233*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 84*
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Thursday 28 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*जनाज़े का ऐलान*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सुनो ! बन्दा अपने हिस्से की रोज़ी खा कर, ज़िन्दगी गुज़ार कर लोगो के कंधो पर ननाज़े के पिंजरे में सुवार हो कर जब जानिबे क़ब्रस्तान सिधारता है।
     हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : उस जाट की क़सम जिसके क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है अगर लोग उसका (यानी मरने वाले का) ठिकाना देख ले और उसका कलाम सुनले तो मुर्दे को भूल जाए और अपनी जानो पर रोए।
     जब मुर्दे को तख्त पर रख कर उठाया जाता है उसकी रूह फड़फडा कर तख्त पर बैठ कर निदा करती है : ऐ मेरे अहलो इयाल ! दुन्या तुम्हारे साथ इस तरह न खेले जैसा की इसने मेरे साथ खेला, में ने हलाल और गैर हलाल माल जमा किया और फिर वो माल दुसरो के लिये छोड़ आया। उसका नफा उनके लिये है और उसका नुक़सान मेरे लिये, पस जो कुछ मुझ पर गुज़री है उस से डरो। (यानी इब्रत हासिल करो)

      मक़ामे गौर है ! वाक़ई हर जनाज़ा ज़बर दस्त मुबल्लिग है, गोया हमे पुकार पुकार कर कह रहा है की ऐ पीछे रह जाने वालो ! जिस तरह आज में दुन्या से जा रहा हु अनक़रीब तुम्हे भी मेरे पीछे पीछे आना है। यानी जनाज़ा गोया हमारी रहनुमाई कर रहा है।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 11*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     चुकी हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه ने जंगे बद्र के दिन बड़े बड़े कुफ़्फ़ारे कुरैश को क़त्ल किया था इस लिये जब कुफ़्फ़ारे मक्का को हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه की शहादत का पता चला तो कुफ़्फ़ारे मक्का ने चन्द आदमियो को मक़ामे रजीअ में भेजा ताकि उनके बदन का कोई ऐसा हिस्सा काट कर लाए जिससे शनाख्त हो जाए की वाक़ई हज़रते आसिम क़त्लرضي الله تعالي عنه हो गए है।
     लेकिन जब कुफ़्फ़ार आप की लाश की तलाश में उस मक़ाम पर पहुचे तो उस शहीद की ये करामत देखी कि लाखो की तादाद में शहद की मख्खियो ने उन की लाश के पास इस तरह घेरा डाल रखा है किस से वहा तक पहुचना ही ना मुमकिन हो गया है इस लिये कुफ़्फ़ारे मक्का नाकाम वापस चले गए।
     बाक़ी तीन अशखास हज़रते खूबैब व हज़रते ज़ैद बिन दषीना व हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنهم बिन तारिक़ कुफ्फार की पनाह पर ऐतिमाद करके निचे उतरे तो कुफ्फार ने बद अहदी की और अपनी कमान की तँतो से इन लोगो को बांधना शुरू कर दिया, ये मन्ज़र देख कर हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया कि ये तुम लोगो की पहली बद अहदी है और मेरे लिये अपने साथियो की तरह शहीद हो जाना बेहतर है। चुनांचे वो उन काफिरो से लड़ते हुए शहीद हो गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 290*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मदन फूल*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     क़ुरबानी के वक़्त में क़ुरबानी करना ही लाज़िम है कोई दूसरी चीज़ इसके क़ाइम मक़ाम नही हो सकती, मसलन बजाए क़ुरबानी के बक़रा या उस की क़ीमत सदक़ा कर दी जाए ये नाकाफी है।
*✍🏽आलमगिरी 5/293*
*✍🏽बहारे शरीअत 3/335*

*_क़ुरबानी के जानवर की उम्र_*
     ऊंट 5 साल का, गाय दो साल की, बकरा (इसमें बकरी, दुम्बा और भेड़ नर व मादा दोनों शामिल है) एक साल का। इससे कम उम्र हो तो क़ुरबानी जाइज़ नही, ज़्यादा हो तो जाइज़ बल्कि अफज़ल है।
     दुम्बा या भेड़ का 6 महीने का बच्चा अगर इतना बड़ा हो की दूर से देखने में साल भर का मालुम हो तो उसकी क़ुरबानी जाइज़ है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 9/533*
याद रखिये ! मुतलकन 6 माह के दुम्बे की क़ुरबानी जाइज़ नही, इस का इतना तगड़ा और क़द आवर होना ज़रूरी है कि दूर से देखने में साल भर का लगे। अगर 6 माह बल्कि साल में एक दिन भी कम उम्र का दुम्बे या भेड़ का बच्चा दूर से देखने में साल भर का नही लगता तो उस की क़ुरबानी नही होगी।
     क़ुरबानी का जानवर बे ऐब होना ज़रूरी है अगर थोडा सा ऐब हो (मसलन कान में चिर या सुराख हो) तो क़ुरबानी मकरूह होगी और ज़्यादा ऐब हो तो क़ुरबानी नही होगी।
*✍🏽बहारे शरीअत 3/340*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार 10*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-50
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④⑧, तर्जुमह*
और डरो उस दिनको, के न बदला हो कोई किसी ना-कस का कुछ, और न क़बूल की जाए किसी ना-कस की सिफारिश, और न ली जाए उस ना-कस से रिश्वत, और न वो मदद दिये जाए।

*तफ़सीर*
     और डरो और सोच कर थर्राओ इस क़यामत के दिन को जिस दिन मुसलमानो को क्या पड़ी है के तुम्हारी कोई बिगड़ी बनाए, तुम्हारे बदले कुछ भुगते। तुम खुद अपनी अंखसे देख लोगे के क़यामत के दिन न बदला हो कोई मुसलमान किसी ना-कस काफ़िर का कुछ, और अगर तुम मेसे एकने दूसरे की सिफारिस की, तो तुम सब लोग ना-कस के ना-कस हो और काफ़िर की कोई सिफारिश, के हर काफ़िर शफ़ाअत करने और शफ़ाअत किये जानेसे महरूम है,
     और अगर तुम अपनी कचेरियो का अंदाज़ देख कर ख्याल करो के रिश्वत से काम चल जाएगा, तो याद रखो, क़यामत के दिन खुद देखोगे के न ली उस किसी ना-कस काफ़िर से कोई रिस्वत। भले अपने बराबर का हिरा या क़ीमती से क़ीमती चीज़ देना चाहे।
     और इसका भी मौका न होगा के तुम्हे मददगारों की कुमक पोहचे। क्यू के काफिरो के लिये ये तय है के न किसीकी मदद कर सके और न वो मदद दिये जाए।
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फुतूह अल ग़ैब

*क़ुरबे इलाही के मरहले*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दुनिया की तमाम अशयाको (चीज़ोंको) खुदावंद तआला ने बन्दोंकी आज़माइश के लिये पैदा किया है। कोइ भी चीज़ या तो तुम्हारी किस्मत है, या किसी गैर की या वो किसीके लिये भी नहीं बल्के खुदा तआलाने उसको किसी आज़माइश व इबतेला के लिये पैदा किया है। अगर मशीय्यत (मरज़ी-किस्मत) में वो तुम्हारा मुकद्दर है तो तुम्हें बेहरहाल ज़ूरूर मीलेगी।
     तुम चाहो या न चाहो लेकिन ये बात गलत है के इस सिलसिलेमें तुम्हारी तरफसे गफलत, गुस्ताखी या सुए अदबका इज़हार हो और अगर वो चीज़ किसी दुसरे की किस्मत में है तो उसके हुसूल के लिये तरददुद करना नामुनासिब और बेसूदर है
     और अगर वो सलामती और खैर के साथ किसीकी भी किस्मतमें नहीं है बल्के सिर्फ फितना या आज़्माइशकी हैसियत रखती है तो कोइ साहेबे अकल ख्वामख्वा फितनों-आज़माइशोंको परेशानीयोंकी आमजगाह बनना कहां पसंद कर सकता है।
     इससे साबित हो गया के भलाइ और सलामती हिफज़े हाल ही में है। चुनान्चे अगर तुम कसरे शाहीमें दाखलेके बाद सीडीयां चढते हुए छत और बालाखाने तक पहोंच जाओ तो भी पेहले की तरह मोअदब, खामोश और सरनिगूं रहो। बल्के पेहलेसे ज़्यादा आदाबे शाहीको मल्हूज़ रखकर खिदमतमें मशगूल हो जाओ। क्यों के कल्बे शाहीमें खतरात ज़्यादा है।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*फुतूह अल ग़ैब 19*
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मदनी पंजसुरह

*सूरए मुल्क के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه फरमाते है कि एक सहाबी ने एक क़ब्र पर अपना खैमा लगाया मगर उन्हें इल्म न था कि यहाँ क़ब्र है लेकिन बाद में पता चला कि वहा किसी शख्स की क़ब्र है जो सूरए मुल्क पढ़ रहा है और उस ने पूरी सूरत खत्म की, वो सहाबी हुज़ूरﷺ की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! में ने एक क़ब्र पर खैमा तान लिया मगर मुझे मालुम न था की वहा क़ब्र है जब की वहा एक शख्स की क़ब्र है जो रोज़ाना पूरी सूरतुल मुल्क पढ़ता है। तो रसूलल्लाहﷺ ने फ़रमाया : यही रोकने वाली है, यही नजात दिलाने वाली है जिस ने उसे अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रखा।
*✍🏽तिर्मिज़ी 4/407*

     हुज़ूरे अक़्दसﷺ का फरमाने आलिशान है कि मेरी ख्वाहिश है कि सूरए मुल्क हर मोमिन के दिल में हो।
*✍🏽कन्जुल उम्माल 1/291*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 84*
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Wednesday 27 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*चार बे बुन्याद दावे*
हिस्सा-04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_चौथा दावा एक दिन मरना पड़ेगा_*
     यक़ीनन हमे एक दिन मरना पड़ेगा ये तस्लीम करने के बा वुजुद अफ़सोस सद करोड़ अफ़सोस ! ज़िन्दगी का अंदाज़ ऐसा है गोया कभी मरना ही नही। देखिये !
     हज़रते हसन बसरी अलैरहमा "हमे एक दिन मरना पड़ेगा" के दावे की अमली तस्वीर थे, इनकी ज़िन्दगी का अंदाज़ ये था कि हर वक़्त इस तरह सहमे रहते थे जैसे इन्हें सज़ाए मौत सूना दी गई हो।
*अहयाउल उलूम 4/231*
     जिसको आज कल ब्लेक वॉरंट कहते है। हाला की इन मानो में हर एक के लिये ब्लेक वॉरंट जारी  हो चूका है कि जो भी पैदा हुवा है उसे मरना ही पड़ेगा, हर जानदार पैदा होने से क़ब्ल ही गोया "हिट लिस्ट" पर आ चूका है, यानी पैदा होने से पहले ही, उसकी रोज़ी और उम्र का तअय्युन हो गया बल्कि इसके दफ़्न होने की जगह भी मुक़र्रर हो चुकी।
     रेहमे मादर में इन्सान का पुतला बनाने के लिये फ़रिश्ता ज़मीन के उस हिस्से से मिट्टी लाता है जहा ये बन्दा उम्र गुज़ारने में बाद मर कर दफ़्न होगा।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 10*
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40 फरमाने मुस्तफा

*रहमतो की बरसात*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूर ﷺ का फरमाने रहमत निशान है : मुझ पर दुरुद शरीफ पढ़ो, अल्लाह عزوجل तुम पर रहमत भेजेगा।
   
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! सलात के मान है रहमत या तलबे रहमत। जब इसका फ़ाइल (करने वाला) रब عزوجل हो तो रहमत होती है और फ़ाइल जब बन्दे हो तो तलबे रहमत।

     इस्लाम में एक नेकी का बदला कम अज़ कम दस गुना है। ख्याल रहे की बन्दा अपनी हैसिय्य्त के लाइक दुरुद शरीफ पढता है मगर रब तआला अपनी शान के लाइक उस पर रहमते उतारता है। जो बन्दे के ख्याल व गुमान से बुलंद है।
*मीरअतुल मनाजिह, 2/97-98*
*40 फरमाने मुस्तफा, 8-9*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_हादिषए रजीअ_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अस्फान व मक्का के दरमियान एक मक़ाम का नाम "रजीअ" है। यहाँ की ज़मीन 7 मुक़द्दस सहाबए किराम में खून से रंगीन हुई है। ये दर्दनाक सानिहा भी सि.4 हि. में पेश आया। इस का वाक़या ये है की क़बिलए अज़ल व क़ारह के चन्द आदमि बारगाहे रिसालत में आए अर्ज़ किया की हमारे क़बीले वालो ने इस्लाम क़बूल कर लिया है। अब आप चन्द सहाबए किराम को वहा भेज दे ताकि वो हमारी क़ौम को अक़ाइदो आमाले इस्लाम सिखा दे।
     उन लोगो की दर ख्वास्त पर हुज़ूरﷺ ने 10 मुन्तख़ब सहाबा को हज़रते आसिम बिन षाबितرضي الله تعالي عنه की मा तहति में भेज दिया। जब ये मुक़द्दस क़ाफ़िला मक़ामे रजीअ पर पहुचा तो गद्दार कुफ्फार ने बद अहदी की और क़बीलए बनू लहयान के काफिरो ने 200 की तादाद में जमा हो कर इन 10 मुसलमानो पर हम्ला कर दिया, मुसलमान अपने बचाव के लिये एक उचे टीले पर चढ़ गए। काफिरो ने तीर चलाना शुरू किया और मुसलमानो ने टीले की बुलंदी से संगबारी की। कुफ्फार ने समझ लिया की हम हथियारों से इन मुसलमानो को खत्म नही कर सकते तो उन लोगो ने धोका दिया और कहा की ऐ मुसलमानो ! हम तुम लोगो को अमान देते है और अपनी  पनाह में लेते है इस लिये तुम लोग टीले से उतर आओ।
     हज़रते आसिमرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की में किसी काफ़िर की पनाह में आना गवारा नही कर सकता। ये कह कर खुदा से दुआ मांगी "या अल्लाह ! तू अपने रसूल को हमारे हाल से मुत्तलअ फरमा दे" फिर वो जोशे जिहाद में भरे हुए टीले से उतरे और कुफ्फार से दस्त बदस्त लड़ते हुए अपने 6 साथियो के साथ शहीद हो गए।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 289*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी के मदनी फूल*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     बाज़ लोग पुरे घर की तरफ से सिर्फ एक बकरा क़ुरबान करते है हाला की बाज़ अवक़ात घर के कई अफ़राद साहिबे निसाब होते है और इस बिना पर उन सारो पर क़ुरबानी वाजिब होती है उन सब की तरफ से अलग अलग क़ुरबानी की जाए। एक बकरा जो सब की तरफ किया गया किसी का भी वाजिब अदा न हुवा की बकरे में एक से ज़्यादा हिस्से नही हो सकते किसी एक तै शुदा फर्द ही की तरफ से बकरा क़ुरबान हो सकता है।
     गाय (भेस) और ऊंट में 7 कुर्बानिया हो सकती है।
*✍🏽आलमगिरी 5/304*

     ना बालिग़ की तरफ से अगर्चे वाजिब नही मगर कर देना बेहतर है (और इजाज़त भी ज़रूरी नही)। बालिग़ औलाद या ज़ौजा की तरफ से क़ुरबानी करना चाहे तो उन से इजाज़त तलब करे अगर उनसे इजाज़त लिए बगर कर दी तो उनकी तरफ से वाजिब अदा नही होगा।
*✍🏽आलमगिरी 5/293*
*✍🏽बहारे शरीअत 3/428*
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार 9*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-49
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④⑦, तर्जुमह*
अय औलादे यअक़ूब ! याद करो मेरी नेअमत को, जो इनआम फ़रमाया था मेने तुम पर। और बेशक मेने ही बढ़ाया था तुमको ज़माने भर पर।

*तफ़सीर*
     अय औलादे यअक़ूब ! यहूदियो ! याद करो मेरी उन नेअमत व एहसान को भी, जो इनआम फ़रमाया था मेने तुम लोगो के बुज़ुर्गो पर। और तुम्हारे पास "मेरा बाप बादशाह था" की जो हिकायत है, तो खूब समझ लो के बेशक मेने ही बढ़ाया था और बुलंद रुतबा किया था तुम लोगो के बुज़ुर्गो का उनके ज़माने भर पर के अम्बिया(नबी) व बादशाह(सलातीन) होते थे
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मदनी पंजसुरह

*सूरए मुल्क के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊदرضي الله تعالي عنه फरमाते है कि जब बन्दा क़ब्र में जाएगा तो अज़ाब उसके क़दमो की तरफ से आएगा तो उसके क़दमो की जनिबसे आवाज़ आएगी, उसके क़दम कहेंगे तेरे लिये मेरी तरफ से कोई रास्ता नही क्यू की ये रात में सूरए मुल्क पढ़ा करता था,
     फिर अज़ाब उसके सिने या पेट की तरफ से आएगा तो वो कहेगा कि तुम्हारे लिये मेरी जानिब से कोई रास्ता नही क्यू किये रात में सूरए मुल्क पढ़ा करता था,
     फिर वो उसके सर उसके सर की तरफ ऐ आएगा तो सर कहेगा कि तुम्हारे लिये मेरी तरफ से कोई रास्ता नही क्यू कि ये रात में सूरए मुल्क पढ़ा करता था।
     तो ये सूरत रोकने वाली है, अज़ाबे क़ब्र से रोकती है, तौरात में इस का नाम सूरए मुल्क है जो इसे रात में पढ़ता है बहुत ज़्यादा और अच्छा अमल करता है।
*✍🏽अल-मुस्तदरक 3/322*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 83*
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Tuesday 26 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*चार बे बुन्याद दावे*
हिस्सा-03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_दूसरा दावा अल्लाह ही रोज़ी देने वाला है_*
     बेशक अल्लाह ही रोज़ी का काफिल है मगर फिर भी हुसूले रिज़्क़ का अंदाज़ा निहायत अज़ीबो गरीब है। अल्लाह को रज़्ज़ाक मानने और रोज़ी देने वाला तस्लीम करने के बा वुजूद न जाने क्यू लोग सूद का लेन देंन करते, सुदी क़र्ज़े ले कर फैक्टरियां चलाते और इमारते बनवाते है ! जब अल्लाह को रोज़ी देने वाला तस्लीम कर लिया तो अब कोनसी बात रिशवत लेने पर मजबूर करती है? क्या वजह है की मिलावट वाला माल फरेब कारी के साथ बेचना पड़ रहा है ? क्यू चोरियों और लूटमार का सिलसिला है ? रोज़ी के ये हराम ज़राएअ आखिर क्यू अपना रखे है ?

*_तीसरा दावा दुन्या से आख़िरत बेहतर है_*
     यक़ीनन दुन्या से आख़िरत बेहतर है ये दावा करने के बावुजूद सद करोड़ अफ़सोस ! अंदाज़ सिर्फ और सिर्फ दुन्या को बेहतर बनाने वाला है, फ़क़त दुन्या की दौलत समेटने ही की मसरूफियत है, बन्दा का तर्ज़ ये बताता है गोया दुन्या से कभी जाना ही नही।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽मुर्दे की बेबसी, 10*
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40 फरमाने मुस्तफा

*क़ुर्बे मुस्तफा ﷺ*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सय्यिदुना बिन मसऊद رضي الله تعالي عنه से मरवी है की अल्लाह عزوجل के महबूब ﷺ का फरमान है : बरोज़े कियामत लोगो में मेरे करीब तर वो होगा जिसने दुन्या में मुझ पर ज्यादा दुरुदे पाक पढ़े होंगे।
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! कियामत में सबसे आराम में वो होगा जो रहमते आलम ﷺ के साथ है। और हुज़ूर ﷺ की हमराही नसीब होने का ज़रिया *दुरुद शरीफ* की कसरत है।
     इससे मालुम हुआ की दुरुदे पाक बेहतरीन नेकी है, की तमाम नेकियो  से जन्नत मिलती है और इस दुरुदे पाक से बज़मे जन्नत के दूल्हा ﷺ मिलते है।
*✍🏽मीरअतुल मनाजिह, 2/100*

     दुन्या में दुरुद शरीफ की कसरत अक़ीदे की मज़बूती, निय्यत के ख़ुलूस, महब्बत की सच्चाई और इबादत की हमेशगि पर दलालत करती है। लिहाज़ा हमें भी कसरत से दुरुद शरीफ पढ़ना चाहिये।
*40 फरमाने मुस्तफा, स. 4-5*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_सरीययए अब्दुल्लाह बिन अनीस_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मुहर्रम सि.4 हि. को इत्तिला मिली की खालिद बीन सुफ़यान हज़ली मदीने पर हम्ला करने के लिये फ़ौज जमा कर रहा है।
     हुज़ूरﷺ ने उसके मुक़ाबले के लिये हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीसرضي الله تعالي عنه को भेज दिया। आप ने मौक़ा पा कर खालिद बिन सुफ़यान हज़ली को क़त्ल कर दिया और उस का सर काट कर मदीना लाए और हुज़ूरﷺ के क़दमो में दाल दिया।
     हुज़ूरﷺ ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीसرضي الله تعالي عنه की बहादुरी और जांबाजी से खुश हो कर उनको अपना असा (छड़ी) अता फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया की तुम इसी असा को हाथ में ले कर जन्नत में चहल क़दमि करोगे। उन्होंने अर्ज़ की या रसूलल्लाहﷺ ! क़यामत के दिन ये मुबारक असा मेरे पास निशानी के तौर पर रहेगा।
     चुनांचे ई इंतिक़ाल के वक़्त उन्होंने ये वसिय्यत फ़रमाई की इस असा को मेरे कफ़न में रख दिया जाए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 288*
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अब्लाक़ घोड़े सुवार

*क़ुरबानी वाजिब होने के लिये कितना माल होना चाहिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हर बालिग़, मुकीम, मुसलमान मर्द व औरत, मालिक निसाब पर क़ुरबानी वाजिब है।
*✍🏽आलमगिरी, 5/292*

     मालिके निसाब होने से मुराद ये है कि उस शख्स के पास साढ़े बावन तोले चांदी या उतनी मालिययत की रक़म या उतनी मालिय्यत का तिजारत का माल या उतनी मालिय्यत का हाजते अस्लिय्या के इलावा सामान हो और उस पर अल्ला या बन्दों का इतना कर्ज़ा न हो जिसे अदा करके ज़िक्र करदा निसाब बाक़ी न रहे।
     फ़ुक़हाए किराम फरमाते है हाजते अस्लिय्या (यानी ज़रुरिय्याते ज़िन्दगी) से मुराद वो चीज़ है जिन की उमुमन इन्सान को ज़रूरत होती है जैसे रहने का घर, पहनने के कपड़े, सुवारि, इल्मे दिन से मुतअल्लिक़ किताबे, और पेशे से मुतअल्लिक़ औज़ार वगैरा।
*✍🏽अलहिदायह, 1/96*

     अगर हाजते अस्लिय्या की तारीफ़ पेशे नज़र रखी जाए तो बखूबी मालुम होगा की हमारे घरो में बे शुमार चीज़े ऐसी है कि जो हाजते अस्लिय्या में दाखिल नही, चुनांचे अगर इनकी कीमत साढ़े बावन टोला चादी के बराबर पहुच गई तो क़ुरबानी वाजिब होगी।
     आला हज़रत अलैरहमा से सुवाल किया गया की अगर ज़ैद के पास मक़ामे सुकुनत (यानी रिहाइशी मकान) के इलावा एक और मकान हो तो उस पर क़ुरबानी वाजिब होगया नही ?
     अल जवाब : वाजिब है, जब की वो मकान तन्हा या इस के माल से हाजते अस्लिय्या से ज़ाइद हो।
*✍🏽अब्लाक़ घोड़े सुवार, 6*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-48
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④⑥, तर्जुमह*
जो समझे के बेशक वो मिलने वाले है अपने परवरदिगार से, और बेशक वो उसीकी तरफ लोटनेवाले है।

*तफ़सीर*
     ये खुशूअ वाले वो है, जो खूब अच्छी तरहसे समझे बुझे, यकीन  करे के बेशक उन्हें मरना है, फिर हशर के दिन उठना है, और उस दिन वो मिलनेवाले है लज्ज़ते दीदार पाने के लिये अपने परवरदिगार के हुज़ूर।
     और उन्हें इस दुन्याकि तंगी में हमेशा गिरफ्तार रहना नही है। बल्कि खुदा के फ़ज़ल से बेशक वो बिल आखिर उसी अल्लाह की तरफ लौटनेवाले है।
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मदनी पंजसुरह

*सूरए मुल्क के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : बेशक कुरानमें तीस आयतो पर मुश्तमिल एक सूरत है जो अपने क़ारी के लिये शफ़ाअत करती रहेगी यहां तक कि उस कि मग्फिरत कर दी जाएगी और ये सूरए मुल्क है।
*✍🏽तिर्मिज़ी 4/408*

     हज़रते अनसرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ुरआन में एक सूरत है जो अपने क़ारी के बारे में झगड़ा करेगी यहां तक कि उसे जन्नत में दाखिल करा देगी और वो सूरए मुल्क है।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 8/233*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 82*
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फुतूह अल ग़ैब

*क़ुरबे इलाही के मरहले*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अल्लाह तबारक-व-तआला ने अपने बरगुज़ीदा नबी ﷺ  को फरमाया : हमने दुनिया के जो ज़ाहिरी अमवाल-व-अस्बाब कुफ्फार को दे रख्खे हैं, आप उनकी तरफ नज़र भर के न देखिये। क्योंके ये तो उनको फितना व इम्तेहान में मुब्तेला करने के लिये हैं और आपके रबका अता करदा रिज़्क आपके लिये बेहतर और बाकी रेहनेवाला है।
     इस कौले खुदावन्दीमें हुज़ूर पूर नूर ﷺ के पैरवों के लिये हफज़े हाल, सब्रो, शुक्र और अताकरदाह नेअमतों पर राज़ी रेहनेकी तलकीन की गई है। इसका मतलब ये है के खैर, मन्सबे नबुव्वत, इल्म, किनाअत, तवहीद-व-मआरिफत, जेहाद, सब्र, विलायत और फतुह गैबी वगैरह जो चीज़ें दिलके मुतल्लिक हबीबेपाक ﷺ को अता की गई हैं, वो इनकी ज़ात के लिये मखसूस हैं।
     दुनियाके माल और सामाने इशरत से बेहतर और दाएमी हैसियत की हैं और मुकम्मिल खैर का मतलब भी यही है के खुदाकी रज़ा पर राज़ी हो कर अपने हालकी हिफाज़त की जाए और फानी चीज़ोंकी तरफ मुल्तफिन (इल्तेफात करनेवाला) न होना ही नेकीयों और बरकतों की अस्ल हैं।
    दुनिया की तमाम अशयाको (चीज़ोंको) खुदावंद तआला ने बन्दोंकी आज़माइश के लिये पैदा किया है।

बाक़ी कल की पोस्ट में...इन्शा अल्लाह
*फुतूह अल ग़ैब 18*
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Monday 25 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*चार बे बुन्याद दावे*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_पहला दावा "में अल्लाह का बन्दा हु"_*
     वाक़ई मक़ामे गौर है यक़ीनन हर मुसलमान ये इक़रार करता है कि में अल्लाह का बन्दा हु, और ज़ाहिर है बन्दा "पाबन्द" होता है, मगर आज कल अक्सर मुसलमानो के काम आज़ादो वाले है।
     देखिये ! जो किसी का मुलाज़िम होता है वो उस की मर्ज़ी के मुताबिक़ ही काम करता है, यक़ीनन हम अल्लाह के बन्दे है और उसी का रिज़्क़ खा रहे है, मगर अफ़सोस हमारे काम कामिल बन्दों वाले नही,
     उसका हुक्म है नमाज़ पढ़ो, मगर सुस्ती कर जाते है, रमज़ान के रोज़े का हुक्म है, लेकिन हमारी एक तादाद है जो नही रखती। इसी तरह दीगर अहकामाते खुदा वन्दी की बजा आवरी में सख्त कोताहिया है।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 9*
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*इस्लाम का दुष्प्रचार ही इस्लाम के फैलने की वजह बना जानें कैसे*

     जितना इस्लाम का दुष्प्रचार किया गया शायद ही किसी और मजहब या धर्म का किया गया हो और ये सिलसिला आज से नहीं जब से जब इस्लाम के शांतिदूत मोहम्मदﷺ को नावुवत मिली थी उस दिन से था जिसके बाद सबसे पहले खुद कुरैश कवीले वालों ने इस्लाम का दुष्प्रचार किया  यहाँ तक की इस्लाम को बदनाम करने के साधनों को जुटाया गया.

*जितना ज़्यादा इस्लाम का दुष्प्रचार किया ये उतनी तेज़ी से फैलता चला गया*
     लोगों ने सोचा इस्लाम को वक़्त रहते ख़त्म कर दिया जाये मगर इसका असर उसके विपरीत हुआ उस ज़माने में जिस जगह इस्लाम को ज्यादा बदनाम किया गया इस जगह इस्लाम उतनी ही तेजी से फैला जब उस समय लोगो द्वारा इस्लाम को और मोहम्मदﷺ  को झूठा कहा गया
     जब लोगों को इस्लाम को करीब से जानने की उत्सुकता बढ़ती चली गई जिसके बाद जो इस्लाम को करीब से जान लेता था तो वह इस्लाम कुबूल कर लेता था.
     क्योकि बात थी सत्य और असत्य की क्योकि इस्लाम शांति और अमन का मजहब है इस्लाम एक ऐसा मजहब धर्म है जिसमे मर्द, औरत, बच्चा, बूढा, जवान, दोस्त, रिश्तेदार, सभी को इस्लाम ने हक़ दिया गया है इस्लाम अपने आप ने संपुर्ण है.
     आज जिस तरह इस्लाम को बदनाम करने के लिए कुछ लोगों द्वारा भरपूर कोशिश की जा रही है इस्लाम को बदनाम करने के लिए सभी साधनों का उपयोग किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप आज अपनी तेजी से इस्लाम फ़ैल रहा है, क्योकि सोशल मिडिया पर सबसे ज्यादा इस्लाम का दुष्प्रचार देखने में आया है.

*इस्लाम को जानने की उत्सुकता लोगों के अंदर बड़ी*
     इस्लाम को जानने की उत्सुकता लोगों के अंदर बड़ी जिस तरह बार बार हर बुरी घटना का जिम्मेदार इस्लाम को ठहराया गया है उस से लोगो के अंदर इस्लाम को करीब से जानने की उत्सुकता बड़ी है और जिसने इस मजहब को समझा, दीवान होता नज़र आया है.

राजेंद्र नारायण लाल
M. A (इतिहास)
अपने एक लेख में इन सब बातों का उल्लेख करते हुए
इस्लाम को सिद्ध ईश्वरीय व्यबस्था बताया
*mytodayweb.com, hindi news*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_सरीय्यए अबू सलमह_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     यकुम मुहर्रम सि.4 हि. को ना गहा एक शख्स ने मदीने में ये खबर पहुचाई कि तुलैहा बिन खुवैलद और सलमह बिन खुवैलद दोनों भाई कुफ्फार का लश्कर जमा करके मदीने पर चढ़ाई करने के लिये निकल पड़े है।
     हुज़ूरﷺ ने इस लश्कर के मुक़ाबले में हज़रते अबू सलमह को 150 मुजाहिदीन के साथ वाला फ़रमाता जिस में हज़रते अबू सबरह और हज़रते अबू उबैदाرضي الله تعالي عنهم जैसे मुअज़्ज़ज़् मुहाजिरिन व अन्सार भी थे।
     लेकिन कुफ्फार को जब पता चला कि मुसलमानो का लश्कर आ रहा है तो वो लोग बहुत से ऊंट क्र बक़रीया छोड़ कर भाग गए जिन को मुसलमान मुजाहिदीन ने माले गनीमत बना लिया और लड़ाई की नौबत ही नही आई।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 288*
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अब्लाक़ घोडा

*क़ुरबानी के मसाइल*
*_मुस्तहब काम के लिये गुनाह की इजाज़त नही_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     याद रहे ! 40 दिन के अंदर नाख़ून तराशना, बगलो और नाफ के निचे के बाल साफ़ करना ज़रूरी है, 40 दिनसे ज़्यादा ताखीर गुनाह है।
     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : जुल हिज्जा के इब्तिदाई 10 दिन में नाख़ून वगैरा न काटने का हुक्म सिर्फ इस्तिहबाबी है, करे तो बेहटरहै न करे तो मुज़ायक़ा नही, न इस को हुक्म ना फ़रमानी कह सकते है, न क़ुरबानी में खामी आने की कोई वजह,
     बल्कि अगर किसी शख्स ने 31 दिन से किसी उज़्र के सबब ख्वाह बिला उज़्र नाख़ून न तराशे हो की चाँद ज़िल हिज्जा का हो गया तो वो अगरचे क़ुरबानी का इरादा रखता हो इस मुस्तहब पर अमल नही कर सकता की अब 10वी तक रखेगा तो नाख़ून तरशवाए हुए 41 दिन हो जाएगा और 40 दिन से ज़्यादा न बनवाना गुनाह है। फेल मुस्तहब के लिये गुनाह नही कर सकता।
*✍🏽फतावा रज़विय्या 20/353*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा, 5,6*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-47
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④⑤_तर्जुमह*
और मदद मांगो सब्र से और नमाज़ से। और बेशक वो ज़रूर बोज़ है, एमजीआर खुशुअवालो पर।

*तफ़सीर*
और याद रख्खो के तुमको हर हाल में मददगार की ज़रूरत है। तुम को हुक्म दिया जाता है के हर हाल में मदद मांगो...
ख्वाहिश को दबा कर,
पाबन्दी ए शरीअत को बर्दास्त कर के,
गुनाहो से बचने की तक़लीफ़ क़ुबूल कर के,
रोज़ा रख कर,  और
हर किस्म के सब्र से और नमाज़ की पाबंदी से।
     ख्वाह कितना ही गिरा गुज़रे, अगर सब्र व नमाज़ को अपनाडगर बना लिया और ऐसे साबिर और नमाज़ी हो गये के तुम सब्र व नमाज़ के पैकर बन गये, तो अब तुमको मददगार की तलाश न होगी। बल्कि मदद चाहने वाले तुमको तलाश करेंगे।
     और नमाज़ में तकलीफ कौनसी है ? हा ! बेशक वो ज़रूर भारी गुज़रती है और बोज़ है सुस्त लोगो और बे-खौफो के हक़ में। मगर खुशूअ (एकाग्रता) वालो पर बिलकुल आसान और फुल की तरह है। उनकी बंदगी आजिज़ी व जिज्ज़ पसंदी को भली लगती है।
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मदनी पंजसुरह

*सूरए कहफ़ के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू सईद खुदरीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि नबीﷺ ने फ़रमाया : जो जुमुआ के दिन सूरए कहफ़ पढ़े उसके लिये दो जुमुआ के दरमियान एक नूर रोशन कर दिया जाता है।
     एक रिवायत में है : जो शबे जुमुआ को लढ़े उसके और बैतूल अतीक़ (यानी काबा शरीफ) के दरमियान एक नूर रोशन कर दिया जाता है।
*शोएबुल ईमान 2/474*

     हज़रते अबू दरदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो सूरए कहफ़ की पहली 10 आयते याद करेगा दज्जाल से महफूज़ रहेगा।
     और एक रिवायत में है, जो सूरए कहफ़ की आखरी 10 आयते याद करेगा दज्जाल से महफूज़ रहेगा।
*✍🏽सहीह मुस्लिम 8/404*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 37*

बेहतर यही है की पहली 10 और आखरी 10 आयते याद करले।
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Sunday 24 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*चार बे बुनयादी दावे*
हीस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते शक़ीक़ बल्कि अलैरहमा फरमाते है : लोग चार चीज़ों माँ दावा करते है मगर उनका अमल उन के दावे के खिलाफ है,
(1) उनका ज़बानी क़ौल तो ये है कि हम अल्लाह के बन्दे है मगर उन के अमल आज़ादो जैसे है।
(2) कहते है कि अल्लाह तआला ही हमारी रोज़ी का कफ़ील है मगर वो बहुत कुछ मालो दौलत जमा कर लेने के बाद भी मुतमइन नही होते।
(3) कहते है कि दुन्या से आख़िरत बेहतर है मगर वो सिर्फ दुन्या ही की बेहतरी के लिये कोशा है।
(4) कहा करते है कि हमे एक दिन ज़रूर मरना पड़ेगा मगर ज़िन्दगी का अंदाज़ ऐसा है कि गोया कभी मारना ही नही।
*✍🏽उयुनुल हिकायत 70*

इन चारो की तफ़सीर इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में....
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 9*
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*नमाज़ है एक बेहतरीन किस्म का योग – वैज्ञानिकों का दावा*

     हाल ही में हुए एक शोध में एक वैज्ञानिक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नमाज़ लोगों के संपुर्ण स्वस्थ के लिए एक कारगर योग है. वैज्ञानिकों ने इस बात को मान लिया है कि नमाज़ में बहुत सारे फायदे छुपे हुए है जिसको मुस्लमान अपनी ड्यूटी (फ़र्ज़) समझ कर अदा करता है. नमाज़ के दौरान की जाने वाली हरकतों में दुनिया का एक सबसे अच्छा योग छुपा हुआ है जिसमे आप के स्वस्थ के कई फायदे छुपे हुए है.

*_नमाज़ पड़ने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ अच्छा होता है_*
     नमाज़ पड़ने के दौरान आपकी मांशपेशियों की गति बाद जाती है, जिसकी वजह से इंसान की रक्तवाहिनियों में रक्तचाप जरुरी गति से बड़ जाता है जिससे आज के समय में होने वाली लो ब्लड प्रैशर की समस्या इंसान के शरीर से पूरी तरह ख़त्म हो जाती है इसकी वजह से हृदय में रक्त भरपूर मात्रा में पहुचने लगता है जिसकी वजह से हार्ट अटेक जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.
     रमजान के दौरान पड़ी जाने वाली नमाज़ जिसे तराबीह कहा जाता है जिसे मुस्लिम समुदाय के लोग ख़ास तौर पर रमजान में अदा करते है इस खास नमाज़ को पड़ने की वजह से इंसान की मासपेशियां अपना सही रूप ले लेती है. जिसकी वजह से सालभर आप को मांशपेशियों में खिंचाब की समस्या से निजात मिल जाता है. तराहबी अदा करने वाले इंसान का शरीर फिट बना रहता है. तराबीह अदा करने वाले इंसान के अंदर सहन शक्ति बाद जाती है नमाज़ अदा करने वाले इंसान के अंदर लचीलापन आ जाता है.

*_पांच वक़्त की नमाज पढ़ना मतलब तीन मील पैदल चलना_*
     अमेरिका की एक यूनिवरसिटी के एक स्टूडेंट ने अपने अध्यन के दौरान बताया कि पांच वक़्त की नमाज तीन मील प्रतिघंटे के बराबर है. तो फिर इतनी कसरत आप के स्वस्थ को सही रखने के लिए बहुत काफी है.
     नमाज़ को दुनिया का सबसे बड़ा योग बी कहा गया है. इसी प्रकार नमाज़ में की जाने वाली रुकू में इंसान की पीठ और कमर की कसरत हो जाती है. नमाज़ में सजदा किया जाता है जिसमे इंसान का सर उसके शरीर से नीचे हो जाता है जिससे मस्तिस्क की रक्तवाहिनियों में दबाब पड़ता है जिससे रक्त मस्तिस्क में भरपूर मात्रा में पहुच जाता है जिससे ब्रेन हेम्रेज़ होने का ख़तरा नहीं रहता.
     इसी तरह नमाज़ की हर अदायगी को रिसर्च किया गया जिसका उल्लेख कही न कही बैज्ञानिकों द्वारा किया जाता रहा है.
*✍🏽mytodayweb.com, hindi news*
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अब्लाक़ घोडा

*क़ुरबानी करने वाले बाल, नाख़ून न काटे*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा एक हदिष, "जब अशरा आ जाए और तुम में से कोई क़ुरबानी करना चाहे तो अपने बाल व खाल को बिलकुल हाथ न लगाए", के तहत फरमाते है : यानी अमीर वुजुबन या फ़क़ीर नफ़्लन क़ुरबानी का इरादा करे वो जुल हिज्जतील हराम का चाँद देखने से क़ुरबानी करने तक नाख़ून, बाल और (अपने बदन की) मुर्दार खाल वगैरा न काटे न कटवाए ताकि हाजियो से क़दर (यानी थोड़ी) मुशा-बहत हो जाए की वो लोग ऐहराम में हजामत नही करा सकते और ताकि क़ुरबानी हर बाल, नाख़ून के लिये जहन्नम से आज़ादी का फिदया बन जाए।
     ये हुक्म वाजिब नही, मुस्तहब है और हत्तल इम्कान मुस्तहब पर भी अमल करना चाहिए अलबत्ता किसी ने बाल या नाख़ून काट लिये तो गुनाह भी नही और ऐसा करने से क़ुरबानी में खलल भी नही आता, क़ुरबानी दुरुस्त हो जाती है। लिहाज़ा क़ुरबानी वाले का हजामत न करना बेहतर है लाज़िम नही।
     इस से मालुम हुवा की अच्छो की मुशा-बहत (यानी नकल) भी अच्छी है।

*_गरीबो की क़ुरबानी_*
     मुफ़्ती साहब मज़ीद फरमाते है : बल्कि जो क़ुरबानी न कर सके वो भी इस अशरह में हजामत न कराए, बक़रह ईद के दिन बादे  नमाज़े ईद हजामत कराए तो इन्शा अल्लाह क़ुरबानी का षवाब पाएगा।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह 2/370*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 4*
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*तफ़सीरे अशरफी*
हिस्सा-46
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④④_तर्जुमह*
क्या हुक्म देते हो लोगो को नेकीका और भूल जाते हो खुद अपने को, हालांके तुम तिलावत करो किताब की। तो क्या अक्ल से काम नही लेते ?

*तर्जुमह*
     तुम लोग भी अजीब हो। जब अय क़अब इब्ने अशरफ और सारे यहूदियो ! तुमसे पूछा गया रसूले पाक के बारेमे, तो पहला जवाब तुम्हारा ये था के लोगो ! ये रसूल बरहक़ है। उनकी पैरवी करो।
     और जब तुम्हारे पैरवी करने की नोबत आई, तो मुकर गये। तो क्या हुक्म देते हो दूसरे लोगो को नेकी की के पैरवी करे रसूल की और नेक हो जाए और अपने हक़ में भूल जाते हो खुद अपने को और पैरवी के बजाए इनकार करते हो। हालांके तुम अन्जान नही हो। बल्कि तुम तिलावत किया करो अपनी किताब तौरेत की। इस नादानी का क्या ठिकाना है ? तो क्या अक्ल से काम नही लेते ? मामूली इन्सान की समज बुझ भी खो चुके हो ?
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फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
(हिस्सा...5)
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ को कुर्बकी मंज़िलो और गैब के मेदानो की सैर कराइ जाती थी और आपकी नूरानी खिलअतें तब्दील होती रेहती थी और हर नइ हालत बेहतर और रोशन होति थी और पेहली हालत में रवद अदबकी हिफाज़त करनेमें नुक्शान ज़ाहिर होता था।
     आपﷺ को इस्तिगफारकी तालीम दी जाती थी और बन्दे के लिय इस्तिगफारकी हालत सबसे बेहतर है। क्यों के इस तहर बन्दा कुसूरका एअतेराफ करता है और तौबा व इस्तिगफार बन्दे की दोनों सिफते अबुल बशर हज़रते आदम की मीरास (विरसा) है।
    जब एहद-व-पयमान भूल जाने और जन्नतमें हंमेशा रेहने, रेहमान व मन्नान मेहबूब की हमसायगी और अपने सामने मलाएका की तहयत (दुआ) व-सलाम की हाज़रीकी ख्वाहिशने उनकी हालतकी खूबियों पर परदा डाल दिया और खुदाके इरादेके बजाए उनकी अपनी ख्वाहिश ज़ाहिर हो गइ तो उनका शिकस्ता हो गया और उनकी पेहली हालत तबदील कर के उनकी विलायत माअज़ूल (मौकूफ) कर दी गइ।
     उनकी वो मंज़िलत न रही और उनकी हालते अनवार को मकद्दर (मेला) कर दिया गया। फिर खुदाने उन्हें मतनबह (खबरदार, आगाह) किया। उन्हें अपनी पाकिज़गी याद आइ और उन्हें एअतेराफकी तालीम और इकदारकी तल्कीन की गई।
     इस वक्त हज़रत आदमने अलैहिस्सलामने कहा – अय हमारे रब ! हमने अपने नफ्स पर ज़ुल्म किया अगर तू हमें माफ नहीं फरमाएगा तो हम खसारे में (नुक्सानमें) रेह जाएंगे। - फिर अन्वारे हिदायत, उलूमे तौबा और इसके गवामिज़ (भेद)-व-मसालह और जो चीज़ें उंनशे पोशीदा थीं और अभी ज़ाहीर ही न हुइ थीं, हजरत आदम अलैहिस्सलाम को दे दी गई। उनके इरादोंको खुदा तआलाने अपने इरादों में तब्दील कर दिय।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*फुतूह अल ग़ैब, सफा,16* ___________________________________
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Saturday 23 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*वज़ारते काम नही आएगी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     अल्लाह ने इन्सान को अपनी इबादत के लिये पैदा किया है, अगर इस ने अपनी ज़िन्दगी के मक़सद में काम्याबी हासिल नही की और बरोज़े महशर गुनाहो का अम्बार ले कर अपने परवरदिगार के दरबार में पेश हुवा तो रब तआला की नाराज़ी की सूरत में इसकी दुन्या की बे शुमार दौलत भी इसे अपने रब्बे क़ह्हार के क़हरो गज़ब से नही बचा सकेगी।
     इकतिदार के नशे में मस्त हो कर एक दूसरे के ऐबो को उछालने वालो, दहशत गर्दीयो का बाज़ार गर्म करने वालो और मुसलमानो के हुक़ूक़ पामाल करने वालो के लिये लमहाए फ़िक्रिया है, अगर मासियत के सबब अल्लाह तआला नाराज़ हो गया, उस के प्यारे हबीबﷺ रूठ गए और ईमान बर्बाद हो गया तो वो वो मुश्किलात दरपेश होगी जो कभी भी हल नही होगी।
     रब्बुल इबाद पारह 30 सूरए हुमज़ह में इरशाद फ़रमाता है :
अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत महेरबान रहम वाला। खराबी है उस उसके लिये जो लोगो के मुह पर ऐब करे पीठ पीछे बदी करे, जिसने माल जोड़ा और गिन गिन कर रखा, क्या ये समझता है कि उसका माल उसे दुन्या में हमेशा रखेगा, हरगिज़ नही ज़रूर वो रौंदने वाली में फेका जाएगा और तू ने क्या जाना क्या रौंदने वाली, अल्लाह की आग की भड़क रही है, वो जो दिलो पर चढ़ जाएगी, बेशक वो उन पर बन्द कर दी जाएगी लम्बे लम्बे सुतुनो में।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 8*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_सि 3. हि. के वाक़ीआते मुतफ़र्रिका_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हिजरत के तीसरे साल में मुन्दरीजए ज़ैल वाक़ीआत भी जूहुर पज़ीर हुए।
     15 रमज़ान सि.3 हि. को हज़रते इमामे हसनرضي الله تعالي عنه की विलादत हुई।
     इसी साल हुज़ूरﷺ ने हज़रते बीबी हफ्साرضي الله تعالي عنها से निकाह फ़रमाया। हज़रते हफ्सा हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه की साहब ज़ादि है जो गज़्वए बद्र के ज़माने में बेवा हो गई थी। इनके मुफ़स्सल हालात अज़्वाजे मुतह्हरात के ज़िक्र में आगे तहरीर किये जाएंगे।
     इसी साल हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه ने हुज़ूरﷺ की साहब ज़ादि हज़रते उम्मे कुलषुमرضي الله تعالي عنها से निकाह किया।
     मिराष् के अहकाम व क़वानीन भी इसी साल नाज़िल हुए। अब तक मिराष् में ज़विल अरहाम का कोई हिस्सा न था। इन के हुक़ूक़ का मुफ़स्सल बयान नाज़िल हो गया।
     अब तक मुशरिक औरतो का निकाह मुसलमानो से जाइज़ था मगर सि.3 हि. में इस की हुरमत नाज़िल हो गई और हमेशा के लिये मुशरिक औरतो का निकाह मुसलमानो से हराम कर दिया गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 286*
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अब्लाक़ घोडा

*पुल सिरात की सवारी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : इन्सान बक़रह ईद के दिन कोई ऐसी नेकी नही करता जो अल्लाह को खून बहाने से ज़्यादा प्यारी हो, ये क़ुरबानी क़यामत में अपने सींगो, बालो और खुरो के साथ आएगी, और क़ुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह के हां क़बूल छ्प जाता है। लिहाज़ा खुश दिली से क़ुरबानी करो।
*✍🏽तिर्मिज़ी 3/162*

     शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी अलैरहमा फरमाते है : क़ुरबानी अपने करने वाले के नेकियों के पल्ले में रखी जाएगी जिस से नेकियों का पलड़ा भारी होगा।

     हज़रते अल्लामा अली क़ारी अलैरहमा फरमाते है : फिर उस के लिये सुवारि बनेगी जिस के ज़रिए ये शख्स ब आसानी पुल सिरात से गुज़रेगा और उस (जानवर) का हर उज़्व मालिक (यानी क़ुरबानी पेश करने वाला) के हर उज़्व के लिये जहन्नम से आज़ादी का फिदया बनेगा।
*✍🏽मीराआत 2/375*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 3,4*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-45
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④③_तर्जुमह*
और अदा करते रहो नमाज़को और देते रहो ज़कात को और रूकू करो रूकू करनेवालो के साथ।

*तफ़सीर*
     और अल्लाह के फराइज़ अबसे पूरा करते रहो। यु के अदा करते रहो पाबंदी के साथ नमाज़ को और साल बी साल देते रहो ज़कात को।
     नमाज़ तो पढ़ो और रूकू करो, मगर तन्हा मुनासिब नही, बल्कि रूकू करनेवालो की जमाअत के साथ।
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फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
(हिस्सा-4)

*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

     ये वाज़ेह है के अल्लाह तबारक व तआला हर शै पर कादिर है। उसको कुदरत से आजिज़ न समजना, तकदीरो तदबीर पर इतहाम (तोहमत लगाना) न तराशना, उसके वादों पर किसी शक-शुबाका इज़हार न करना। ताके हुजूरे अकरम ﷺ के अस्वए हुस्ना (अच्छे नमूने) की तकलीद कर शको।   हुज़ूर ﷺ  पर आयतें और सूरतें नाज़िल हुइ। इन्हें सफह में लिखा गया और मस्जिदो मेहराबमें पण्हा गया। फिर उन्हें मन्सूख करके दूसरी आयत लाइ गइ। ये हुज़ूर ﷺ  शरइ और ज़ाहिरी हालत थी। आपके बातिनी एहवाल और उलूमसे या आप खुद वाकिफ है। या आपका खुदा।
      हुजूर ﷺ  ने इरशाद फरमाया के जब मेरे दिल को ढांप लिया जाता तो में हर रोज सत्तर (70) मरतबा (एक और रिवायतमें है के सो-100 मरतबा) मगफेरत करता था और वो हालत दुसरी हालतमें तबदील कर दी जाती थी।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 15
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मदनी पंजसुरह

*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     शैखुल हदिष मौलाना अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैरहमा ने जन्नती ज़ेवर में सूरए यासीन पढ़ने की बहुत सी बरकतें शुमार की है :
(1) भूका आदमी इसे पढ़े तो आसुदा किया जाए।
(2) प्यासा पढ़े तो सैराब किया जाए।
(3) नंगा पढ़े तो लिबास मिले।
(4) मर्द बे औरत वाला पढ़े तो जल्द उसकी शादी हो जाए।
(5) औरत बे शोहर वाली पढ़े तो जल्द शादी हो जाए।
(6) बीमार पढ़े तो शिफ़ा पाए।
(7) क़ैदी पढ़े तो रिह हो जाए।
(8) मुसाफिर पढ़े तो सफर में अल्लाह की तरफ से मदद हो।
(9) गमगीन पढ़े तो उसका रंजो गम दूर हो जाए।
(10) जिस की कोई चीज़ गम हो गई हो वो पढ़े तो जो खोया है वो मिल जाए।
(11) सूरए यासीन की एक आयत, आयत 58
*سَلٰمٌ قَوْلًامِّنْ رَّبٍّ رَّحِيْمٍ o*

को 1469 बार पढ़ो, इन्शा अल्लाह जिस मक़सद से पढोगे मुराद पूरी होगी, ख्वाजा दैरबी लिखते है : ये मुजर्र्ब है।
     और इस आयत को 5 जगह एक कागज़ पर लिख कर तावीज़ बांधो तो हवादिसात और चोर वगैरा से हिफाज़त रहेगी,
     जो शख्स सुबह को सुरए यासीन पढ़ेगा उस का पूरा दिन अच्छा गुज़रेगा और रात में इस को पढ़ेगा उसकी पूरी रात अच्छी गुज़रेगी।
     हदिष शरीफ में है कि यासीन क़ुरआन का दिल है।
*✍🏽जन्नती ज़ेवर 594*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 25*
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Friday 22 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*दुन्या में आमद का मक़सद*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हक़ीक़त ये है कि इस दुन्या में आ कर हम सख्त आज़माइश में मुब्तला हो गए है, हमारी आमद का मक़सद कुछ और था और शायद समझ कुछ और बेठे है !
     हमारा अंदाज़े ज़िन्दगी ये बता रहा है कि मआज़ल्लाह गोया हमे कभी मारना ही नही, याद रखिये ! हमे यहाँ हमेशा नही रहना, इस दुन्या में आने का मक़सद सिर्फ मॉल कमाना या फ़क़त दुन्या के उलूमो फुनुन की डिग्रिया पाना और सिर्फ दुनयावी तरक्किया हासिल किये जाना नहीं है।
     पारह 18 सूरतुल मुअमिनिन की आयत 115 में इरशाद होता है :
तो क्या ये समझते हो कि हमने तुम्हे बेकार बनाया और तुम्हे हमारी तरफ फिरना नहीं।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 7*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*गज़्वए गतफन*
हीस्सा-02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दाशुर ने हुज़ूरﷺ के सरे मुबारक पर तलवार बुलंद करके बोला बताइये अब कौन है जो आप को मुझ से बचा ले ?
     आप ने जवाब दिया कि मेरा अल्लाह मुझ को बचा लेगा। चुनांचे जिब्राईल अलैहिस्सलाम दम ज़दन में ज़मीन पर उतर पड़े और दाशुर के सीने में एक घुसा मारा कि तलवार उस के हाथ से गिर पड़ी लर दाशुर ऐन गेन हो कर रह गया।
     हुज़ूरﷺ ने फौरन तलवार उठा ली और फ़रमाया कि बोल अब तुझ को मेरी तलवार से कौन बचाएगा ? दाशुर ने कांपते हुए भराई हुई आवाज़ में कहा कि कोई नही। हुज़ूरﷺ को उसकी बे कसी पर रहम आ गया और आपﷺ ने उस का कुसूर मुआफ़ फरमा दिया।
     दाशुर इस अखलाके नुबुव्वत से बेहद मूतअश्शीर हुवा और कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया और अपनी क़ौम में आ कर इस्लाम की तबलीग करने लगा।
     जस गज़वे में कोई लड़ाई नही हुई और हुज़ूरﷺ 11 या 15 दिन मदीने से बाहर रह कर फिर मदीने आ गए।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 286*
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अब्लाक़ घोडा

*क्या क़र्ज़ ले कर भी क़ुरबानी करनी होगी ?*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जो लोग क़ुरबानी की इस्तिताअत रखते है उस के बा वुजूद अपनी वाजिब क़ुरबानी अदा नही करते, उनके लिये लम्हाए फ़िक्रिया है,
     अव्वल ये नुक़सान क्या कम था कि क़ुरबानी न करने से इतने बड़े षवाब से महरूम हो गए, मज़ीद ये कि वो गुनाहगार और जहन्नम के हक़दार भी है।
     फतावा रज़विय्या जिल्द 3 सफा 315 पर है : अगर किसी पर क़ुर्बानी वाजिब है और उस वक़्त उसके पास रुपए नही है तो क़र्ज़ ले कर या किसी चीज़ फरोख्त कर के क़ुरबानी करे।

*✍🏽अब्लाक़ घोडा 3*
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फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
(हिस्सा-3)

*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      अल्लाह की ज़ात बन्दे और इसके कल्बके माबीन (दरमियान- बीच) है। इसलिये ये करीने क्यास है के अपने जिस हालकी तुम दुसरों को खबर दो वो तुम से सलब (छीन) कर लिया जाए और तुम जिसे  पाएदार और बाकी समज़ते हो उसे खत्म कर दिया जाए और तुम्हे उस आदमीसे नादिम होना पडे जिससे तुमने बातकी थी। इस लिये ज़ुरूरी है के अपने मकाम को अपने दिलहीमें रख्खो। किसी दूसरे को न बताओ और अगर खुदा तुम्हें तुम्हारे हाल व मकाम पर कायम रख्खे तो उसे खुदा का इनाम समज़कर उसका शुक्र अदा करो और उसमें इज़ाफे की दरखास्त करो और मौजूदा हालके बजाए ऐसा हाल नसीब हो जिसमें इल्म व मआरिफत और नूर व अदब ज़यादा हो, तो तुम्हारे लिये तरक्की का बाइस है।
      खुदावन्द तआला इर्शाद फरमाते है के, *जब हम किसी आयत को मन्सूख (रद्) करते है, उस जैसी या उससे बेहतर आयात लाते है।*

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 14,15
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मदनी पंजसुरह

*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सफ्वान बिन अम्रرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मशाईखे किराम फरमाते है कि जब आप क़रीबुल मर्ग शख्स के पास सूरए यासीन की तिलावत करेंगे तो उस से मौत की सख्ती को हल्का किया जाएगा।
*दुर्रेमन्सूर 39*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिस ने शबे जुमुआ (यानी जुमेरात की रात) सूरए यासीन की तिलावत की उस की मग्फिरत कर दी जाएगी।

     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ुरआने हकीम में एक सूरत है जिसे अल्लाह तआला के हा अज़ीम कहा जाता है, उसके पढ़ने वाले को अल्लाह तआला के हा शरीफ कहा जाता है, उस को पढ़ने वाला क़यामत के रोज़ रबिआ और मुज़िर क़बाइल से ज़ाइद अफ़राद की शफ़ाअत करेगा, वो सूरए यासीन है।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 7/40*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 24*
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Thursday 21 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*क़ब्र की दिल हिला देने वाली कहानी*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़رضي الله تعالي عنه एक जनाज़े के साथ कब्रस्तान तशरीफ़ ले गए, वहा एक क़ब्र के पास बैठ कर गौरो फ़िक्र में दुब गए, किसी ने अर्ज़ की : या अमीरुल मुअमिनिन ! आप यहाँ तन्हा कैसे तशरीफ़ फरमा है ? फ़रमाया : अभी अभी एक क़ब्र ने मुझे पुकार कर बुलाया और बोली : ऐ उमरرضي الله تعالي عنه ! मुझ से क्यू नही पूछते कि में अपने अंदर आने वालो के साथ क्या बर्ताव करती हु ? मेने कहा मुझे ज़रूर बता। वो कहने लगी...
     जब कोइ मेरे अन्दर आता है तो में उसका कफ़न फाड़ कर जिस्म के टुकड़े टुकड़े कर डालती और उसका गोश्त खा जाती हु।
     फिर उसने कहा, क्या आप मुझसे ये नही पूछेंगे में उस के जोड़ो के साथ क्या करती हु ? मेने कहा ये भी बता। तो कहने लगी...
     हथेलियो को कलाइयों से, घुटनो को पिंडलियों से और पिंडलियों को क़दमो से जुदा कर देती हु।
     इतना कहने के बाद हज़रत उमरرضي الله تعالي عنه हिचकियां ले कर रोने लगे, जब कुछ इफ़ाक़ा हुवा तो कुछ इस तरह फ़रमाया :
ऐ इस्लामी भाइयो ! इस दुन्या में हमे बहुत थोडा अर्सा रहना है, जो इस दुन्या में साहिबे इकतिदार है वो आख़िरत में इन्तिहाई ज़लिलो ख्वार होगा, जो मालदार है वो आख़िरत में फ़क़ीर होगा। दुन्या का तुम्हारी तरफ आना तुम्हे धोके में न दाल दे, क्यू की तुम जानते हो ये बहुत जल्द रुखसत हो जाती है।
*✍🏽मुर्दे की बेबसी 4*
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शबे जुमुआ का दुरुद


*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*

*اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمِّیِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِہٖ  وَصَحْبِہٖ  وَسَلِّمْ*

*अल्लाहुम्म-सल्ले-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_गज़्वए गतफान_*
हिस्सा-01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     रबीउल अव्वल सि. 3 हि. में हुज़ूरﷺ को ये इत्तिला मिली की नज्द के एक मशहूर बहादुर दाशुर बिन अल हारिष मुहारीबि ने एक मशकर तैयार कर लिया है ताकि मदीने पर हमला करे।
     इस खबर के बाद आप 400 सहाबा की फ़ौज़ ले कर मुक़ाबले के लिये रवाना हो गए। जब दाशुर को खबर मिली की रसूलल्लाह हमारे दीयार में आ गए तो वो भाग निकला और अपने लश्कर को ले कर पहाड़ो पर चढ़ गया मगर उसकी फ़ौज का एक आदमी जिसका नाम हब्बान था गिरफ्तार हो गया और फौरन ही कलिमा पढ़ कर उसने इस्लाम क़बूल कर लिया।
     इत्तिफ़ाक़ से उस रोज़ ज़ोरदार बारिश हो गई। हुज़ूरﷺ एक दरख्त के निचे लेट कर आपने कपड़े सुखाने लगे। पहाड़ की बुलंदी से काफिरो ने देख लिया की आप बिलकुल अकेले और अपने असहाब से दूर बजी है।
     एक दम दाशुर बिजली की तरह पहाड़ से उतर कर नंगी शमशीर हाथ में लिये हुए आया और हुज़ूरﷺ के सरे मुबारक पर तलवार बुलंद करके बोला की बताइये अब कौन है जो आपको मुझ से बचा ले ?

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 285*
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अब्लाक़ घोडा

*क़ुरबानी के 4 फरामिने मुस्तफा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

क़ुरबानी करने वाले को क़ुरबानी के जानवर के हर बाल के बदले में एक नेकी मिलती है।
*✍🏽तिर्मिज़ी 3/162*

जिसने खुश दिली से तालिबे षवाब हो कर क़ुरबानी की, तो वो आतशे जहन्नम से हिजाब (यानी रोक) हो जाएगी।
*✍🏽अल-मोजमुल कबीर 3/84*

ऐ फातिमा ! अपनी क़ुरबानी के पास मौजूद रहो क्यू कि इसके खून का पहला क़तरा गिरेगा तुम्हारे सारे गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।
*✍🏽बहकी 9/476*

जिस शख्स में क़ुरबानी करने की वुसअत हो फिर भी वो क़ुरबानी न करे तो वो हमारी ईबादत के क़रीब न आए।
*✍🏽इब्ने माजह 3/529*
*✍🏽अब्लाक़ घोडा 2*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-43
*सूरए बक़रह, पारह-01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*आयत ④①_तफ़सीर*
हिस्सा-02
     और ये तुम्हारा रवैय्या कितना बुरा है के चार चार सेर जव और चार चार चादरों के लिये तौरेत में फेरफार करो। नाअते रसूले पाक निकाल दो और मेरे रसूल को दज्जाल बता कर तौरेत में जो ज़िक्र दज्जाल है उसके अनुरूप ठहराओ।
     अमीरो के खातिर कानून शरीअत बदल कर उनसे आसानी बरतो। और गरीबो पर सख्ती करो। और सिर्फ चन्दा वसूल करके पेट भरने की लालच में पैग़म्बरे इस्लाम का कहना न मनो।
     और डर जाओ के इस तरह तुम्हारी चंदाखोरी जाति रहेगी। इस कमीनापन और मुजरिमो जैसी ज़िन्दगी को छोड़ दो, और सबसे न लो मेरी आयातों के बदले दुनयावी थोड़ी कीमत, के सारी दुन्या भी आखेरत के मुक़ाबले में एक बेमिक़दार व बे हक़ीक़त चीज़ है।
     और अय क़अब इब्ने अशरफ ! और अय सारे यहूदियो ! तुम न एक दूसरे से डरो और न भूख और मन्सब से डरो। तुम अपना भला चाहो, तो बस मुज ही से हमेशा डरते रहो के फिर हर खौफ से महफूज़ हो जाओगे और मेरा खौफ तुमको मेरे रसूल का नियाज़मन्द बना देगा।
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फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
हिस्सा-2
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

       हंमेशा एहकामे इलाहीकी पाबन्दी करो और जिन बातोंसे मना किया गया है, उनसे इजतेनाब (बचों) करो। मकदराते खुदावन्दी को इसीके इख्तियार व रज़ा पर रेहने दो और मख्लूकात में से किसीको इसका शरीक न बनाओ।
     याद रख्खो के तुम्हारे इरादे और आरज़ूअए खुदा तआला के पैदा करदा हैं। इसलिये अपना इरादा और अपनी ख्वाहिशें खालिक के साथ शिर्क करना हैं और ऐसा करने पर तुम मुशरेकीनमें से हो जाओगे। चुनान्चे खुदा तआला फरमाता है:
*अगर अल्लाह के दिदारकी तमन्ना हो तो नेक काम करने चाहीयें और ज़ुरूरी है के उसकी इबादत में किसीको शरीक ना करे*।
   शिर्क सिर्फ बुतपरस्ती ही नहीं है, ख्वाहिशाते नफ्सकी पैरवी और दुनियाकी किसी भी चीज़ के साथ इश्क की कैफियत से मुन्सलिक हो जाना सरहन शिर्क है। खुदा के सिवा हर शय गैर खुदा है और हर गैर खुदा की ख्वाहिश शिर्क कहेलाएगी। लेहाज़ा इससे परहेज़ करो। अपने नफ्सकी बुराइयोंसे डरते रहो, तलाशे हक़में साइ (कोशिश करनेवाला) रहो।
   गफलत को शआर (तरीका) न करो। जो हाल व मुकाम तुम्हें मिलें उन्हें अपने नफस से मन्सूब न करो। इसलिये के तगीरे हाल (हालत बदलने)के लिये हर रोज़ खुदा तआलाकी नइ शान है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 13,14
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मदनी पंजसुरह

*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते सफ्वान बिन अम्रرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मशाईखे किराम फरमाते है कि जब आप क़रीबुल मर्ग शख्स के पास सूरए यासीन की तिलावत करेंगे तो उस से मौत की सख्ती को हल्का किया जाएगा।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 39*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिस ने शबे जुमुआ (यानी जुमेरात की रात) सूरए यासीन की तिलावत की उस की मग्फिरत कर दी जाएगी।

     हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : क़ुरआने हकीम में एक सूरत है जिसे अल्लाह तआला के हा अज़ीम कहा जाता है, उसके पढ़ने वाले को अल्लाह तआला के हा शरीफ कहा जाता है, उस को पढ़ने वाला क़यामत के रोज़ रबिआ और मुज़िर क़बाइल से ज़ाइद अफ़राद की शफ़ाअत करेगा, वो सूरए यासीन है।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 7/40*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 24*
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Wednesday 20 July 2016

मुर्दे की बेबसी

*_उम्र भर की भागदौड़_*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     उस वक़्त केसी बेबसी होगी जब रूह जिस्म से जुदा हो चुकी होगी, वो आलम किस क़दर बेबसी का आलम होगा जिस वक़्त बेश क़ीमती पकड़े उतारे जा रहे होंगे, गस्साल नहला रहा होगा, लठ्ठे का कफ़न पहनाया जा रहा होगा, केसी हसरत की घड़ी होगी जब जनाज़ा उठाया जा रहा होगा, हाए ! हाए ! वो दुन्या जिसे सवारने के लिये उम्र भर भागदौड़ की थी, जिसकी खातिर रातो की नींदे उड़ाई थी, तरह तरह के खतरे मोल लिये थे, हासिदिन के रुकावटे खड़ी करने के बा वुजूद भी जान लड़ा कर दुन्या का मॉल कमाते रहे थे, खूब खूब दौलत बढ़ाते रहे थे, जिस मकान को मज़बूत तामीर किया था फिर उसको तरह तरह के फर्नीचर से आरास्ता किया था, वो सभी कुछ छोड़ कर रुखसत होना पड़ रहा होगा।
     आह ! क़ीमती लिबास खुटी पर टंगा रह जाएगा, कार हुइ तो गेरेज में खड़ी रह जाएगी, ऐसो तरब के अस्बाब और हर तरह का माल सामान धरा का धरा रह जाएगा।
     उस वक़्त *मुर्दे की बेबसी* इन्तिहा को पहुचेगी जब उसको रोशनियों से जग मगाती आरिजि खुशियो से मुस्कुराती दुन्याए ना पाएदार के फानी घर से निकाल कर अँधेरी क़ब्र में मुन्तकिल करने के लिये उस के नाज़ उठाने वाले उसको कन्धों पर लाद कर सूए क़ब्रिस्तान चल पड़ेंगे।
*मुर्दे की बेबसी 2*
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अब्लाक़ घोडा

*अब्लक़ घोड़े सुवार*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अहमद बीन इस्हाक़ अलैरहमा फरमाते है : मेरा भाई बा वुजुदे गुरबत रिज़ाए इलाही की निय्यत से हर साल बकरह इद में क़ुरबानी किया करता था। उस के इंतिक़ाल के बाद में ने एक ख्वाब देखा कि क़यामत बरपा हो गई है और लोग अपनी अपनी क़ब्रो से निकल आए है, यकायक मेरा मर्हुम भाई एक अब्लक़ (यानी दो रंगे चितकुब्रे) घोड़े पर सुवार नज़र आया, उसके साथ और भी बहुत सारे घोड़े थे।
     मेने पूछा : ऐ मेरे भाई ! अल्लाह ने आल के साथ क्या मुआमला फ़रमाया ? कहने लगा : अल्लाह ने मुझे बख्श दिया। पूछा : किस अमल के सबब ? कहा : एक दिन किसी गरीब बुढ़िया को ब निय्यते षवाब में ने एक दिरहम दिया था वही काम आ गया। पूछा : ये घोड़े कैसे है ? बोला : ये सब मेरी *बक़रह ईद की कुर्बानिया है* और जिस पर में सुवार हु ये मेरी सबसे पहली क़ुरबानी है। मेने पूछा : अब कहा का अज़्म है ? कहा : जन्नत का।
     ये कह कर मेरी नज़र से ओझल हो गया। अल्लाह की उन पर रहमत हो ओर उनके सदके हमरी बे हिसाब मगफिरत हो।
*✍🏽अब्लक़ घोडा 1*
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तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-50
*सूरए बक़रह, पारह 01*

*आयत ④⑧, तर्जुमह*
और डरो उस दिनको, के न बदला हो कोई किसी ना-कस का कुछ, और न क़बूल की जाए किसी ना-कस की सिफारिश, और न ली जाए उस ना-कस से रिश्वत, और न वो मदद दिये जाए।

*तफ़सीर*
     और डरो और सोच कर थर्राओ इस क़यामत के दिन को जिस दिन मुसलमानो को क्या पड़ी है के तुम्हारी कोई बिगड़ी बनाए, तुम्हारे बदले कुछ भुगते। तुम खुद अपनी अंखसे देख लोगे के क़यामत के दिन न बदला हो कोई मुसलमान किसी ना-कस काफ़िर का कुछ, और अगर तुम मेसे एकने दूसरे की सिफारिस की, तो तुम सब लोग ना-कस के ना-कस हो और काफ़िर की कोई सिफारिश, के हर काफ़िर शफ़ाअत करने और शफ़ाअत किये जानेसे महरूम है,
     और अगर तुम अपनी कचेरियो का अंदाज़ देख कर ख्याल करो के रिश्वत से काम चल जाएगा, तो याद रखो, क़यामत के दिन खुद देखोगे के न ली उस किसी ना-कस काफ़िर से कोई रिस्वत। भले अपने बराबर का हिरा या क़ीमती से क़ीमती चीज़ देना चाहे।
     और इसका भी मौका न होगा के तुम्हे मददगारों की कुमक पोहचे। क्यू के काफिरो के लिये ये तय है के न किसीकी मदद कर सके और न वो मदद दिये जाए।

फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
हिस्सा-1
بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

   हज़रत मोहियुद्दीन जीलानी رضي الله تعالي عنه ने फरमाया : नफ्सकी ख्वाहिशों से आज़ाद हो जाओ और इसकी इत्तेबा (पैरवी करनेसे) किनाराकश हो जाओ। आपनी हर चीज अल्लाहके सुपुर्द कर दो और अपने दिल पर इस तरह पेहरा दो के इसमें सिर्फ वही शै दाखिल हो जिसकी इजाजत मौलाकरीम दे। शयतानी वसवसोंको दिलमें जगा न दो। ख्वाहिशाते नफ्सानी को दाखले की इजाज़त नहीं होनी चाहीये। हर हालमें उनकी मुखालेफत हो क्यों के किसी ख्वाहीशका दिलमें दाखिल होना दर असल इसका इत्तेबा है।
  इरादाए हक़ के सिवा किसी और इरादेकी ख्वाहीश दुरूस्त नहीं। इरादाए हक़ के अलावा किसी और इरदेको दिलमें जगा देना तबाही और हिलाकत, निगाहे रेहमतसे गिरने और हिजाब पर मुन्तज होता है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब, 13,14*
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मदनी पंजसुरह

*सूरए यासीन शरीफ के फ़ज़ाइल*
हिस्सा-06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू जाफर मुहम्मद बिन अलीرضي الله تعالي عنه से रिवायत है फरमाते है : जो शख्स अपने दिल में सख्ती पाए तो ववेक प्याले में ज़ाफ़रान से
*يٰسٓ وَالْقُرْاٰنِ الْحَكِيْمِ*
लिखे फिर उसे पी जाए। (इन्शा अल्लाह उसका दिल नर्म होगा)
*दुर्रेमन्सूर 7/39*

     अमीरुल मुअमिनिन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसने हर जुमुआ को अपने वालिदैन दोनों या एक की क़ब्र की ज़ियारत की और उनके पास यासीन की तिलावत की तो अल्लाह हर हर्फ़ के बदले उस की बख्शीश व मग्फिरत फरमा देता है।
*✍🏽दुर्रेमन्सूर 7/40*
*✍🏽मदनी पंजसुरह 24*
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Tuesday 19 July 2016

मुर्दे की बेबसी


*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुर्दा और गस्साल_*
ज़बर दस्त आलिम व मुहद्दिस और मशहूर ताबेइ बुज़ुर्ग सुफ़यान सौरी अलैरहमा से मारवी है कि मरने वाला हर चीज़ को जानता है, हत्ता कि गस्साल से कहता है : तुझे खुदा की क़सम तू गुस्ल में मेरे साथ नरमी कर, और जब वो अपने जनाज़े की चारपाई पर होता है, उससे कहा जाता है : अपने बारे में लोगो की बाते सुन।
*✍🏽शरहु स्सुदुर 95*

*_मुर्दा क्या कहता है_*
अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उमर फरुके आज़मرضي الله تعالي عنه रिवायत करते है, नबीﷺ का फरमान है : मुर्दा जब तख्त पर रखा जाता है और उसे ले कर अभी 3 क़दम ही चले होते है कि वो बोलता है और उसके कलाम को इन्सान और जिन्नों के इलावा अल्लाह जिसे चाहे सुनवाता है।
मुर्दा कहता है : ऐ मेरे भाइयो ! और ऐ मेरा जनाज़ा उठाने वालो ! तुम्हे दुन्या धोके में न डालदे जैसा की मुझे डाले रखा और ज़माना तुम्हारे साथ न खेले जैसा की मेरे साथ खेल, मेने जो कुछ कमाया वो अपने वुरसा के लिये छोड़ा, अल्लाह क़यामत के दिन मुझसे हसाब लेगा और मेरी गिरफ्त फ़रमाएगा, हाला कि तुम लोग मुझे रुखसत करते और मुझे पुकारते (यानी मेरे लिये रोते) हो।
*✍🏽शरहु स्सुदुर 96*
*✍🏽मुर्दे की बे बसी 1*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*जंगे उहुद*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_काब बिन अशरफ का क़त्ल_*
हिस्सा-01
     यहूदियो में काब बिन अशरफ बहुत ही दौलत मन्द था। यहूदी उलमा और यहूद के मज़हबी पेशवाओ को अपने खज़ाने से तन-ख्वाह देता था। दौलत के साथ शाइरी में भी बहुत बा कमाल था जिस की वजह से न सिर्फ यहूदियो बल्कि तमाम क़बाइले अरब पर इसका एक ख़ास अशर था।
     इसको हुज़ूरﷺ से सख्त अदावत थी। जंगे बद्र में मुसलमानो की फ़त्ह और सरदारो ने कुरैश के क़त्ल हो जाने से इसको इन्तिहाई रन्ज व सदमा हुवा। चुनांचे ये कुरैश की ताज़िय्यत के लिये मक्का गया और कुफ़्फ़ारे कुरैश का जो बद्र में मक़्तूल हुए थे ऐसा पुरदर्द परशिया लिखा कि जिसको सुन कर सामीइन के मजमा में मातम बरपा हो हो जाता था। इस मरशिया को ये शख्स कुरैश को सूना सूना कर खुद भी जारो ज़ार रोटा था और सामेइन को भी रुलाता था।
     मक्का में अबू सुफ़यान से मिला और उस को मुसलमानो से जंगे बद्र का बदला लेने पर उभारा बल्कि अबू सुफ़यान को ले कर हरम में आया और कुफ़्फ़ारे मक्का के साथ खुद भी काबे का गिलाफ पकड़ कर अहद किया कि मुसलमानो से बद्र का ज़रूर इन्तिक़ाम लेंगे।
    फिर मक्का से मदीना लौट कर आया तो हुज़ूरﷺ की हिजू लिख कर शाने अक़दस में तरह तरह की गुस्ताखियां और बे अदबिया करने लगा, इसी पर बस नही किया बल्कि आप को चुपके से क़त्ल करा देने का क़स्द किया।

बाक़ी अगली पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*✍🏽सिरते मुस्तफा 283*
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