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बद गुमानी



📛बाद गुमानी📛
♻हिस्सा~01

👉🏽कसरत गुमान की मुमानअत

👉🏽अल्लाह ने क़ुरआने पाक में इरशाद फ़रमाया :
☝🏽ऐ ईमान वालो ! बहुत गुमानो से बचो बेशक कोई गुमान गुनाह हो जाता है
📗पारह 26, अल हुजुरात : 12

👉🏽हज़रते अल्लामा अब्दुल्लाह अबू उमर बिन मुहम्मद शिराज़ी बैज़ावी अलैरहमा कसरते गुमान से मुमानअत की हिक़मत बयान करते हुए तफ़सीरे बैज़ावी में लिखते है :
ताकि मुसलमान हर गुमान में मोहतात हो जाए और गौरो फ़िक़्र करे कि ये गुमान किस क़बिल से है।

👆🏽इस आयते करीमा में बाज़ गुमानो को गुनाह क़रार देने की वजह बयान करते हुए फखरुद्दीन राज़ी अलैरहमा लिखते है :
👉🏽क्यू की किसी शख्स का काम देखने में तो बुरा लगता है मगर हक़ीक़त में ऐसा नहीं होता क्यू की मुम्किन है कि करने वाला उसे भूल कर कर रहा हो या देखने वाला गलती पर हो।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚बद गुमानी, सफा 18-19
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💐मुज़े अपनी और सारी दुनिया के लोगो की इस्लाह की कोशिश करनी है. إن شاء الله  عزوجل
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📛बद गुमानी📛
♻हिस्सा~02

❓गुमान किसे कहते है❓

👉🏽हर वो ख़याल को किसी ज़ाहिरी निशानी से हासिल होता है गुमान कहलाता है। मसलन दूर से धुवा उठता देख कर आग की मौजूदगी का ख्याल आना।
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❗गुमान की अक़्साम❗

👉🏽बुन्यादी तौर पर गुमान (ज़न) की दो किस्मे है :
1⃣हुस्ने ज़न (अच्छा गुमान)
2⃣सूए ज़न (बुरा गुमान, इसे बद गुमानी भी केहते है)

👉🏽फिर इन में से हर एक की दो किस्मे है :
👉🏽चुनान्चे हुस्ने ज़न कभी तो वाजिब होता है जैसे अल्लाह के साथ अच्छा गुमान रखना और कभी मुस्तहब जैसे मोमिने सालेह के साथ नेक गुमान।

👉🏽इसी तरह सूए ज़न (बद गुमानी) की भी दो किस्मे है :
1⃣जाइज़
2⃣मम्नुअ

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚बद गुमानी, सफा 19-20
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📛बद गुमानी📛
♻हिस्सा~02

❓गुमान किसे कहते है❓

👉🏽हर वो ख़याल को किसी ज़ाहिरी निशानी से हासिल होता है गुमान कहलाता है। मसलन दूर से धुवा उठता देख कर आग की मौजूदगी का ख्याल आना।
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❗गुमान की अक़्साम❗

👉🏽बुन्यादी तौर पर गुमान (ज़न) की दो किस्मे है :
1⃣हुस्ने ज़न (अच्छा गुमान)
2⃣सूए ज़न (बुरा गुमान, इसे बद गुमानी भी केहते है)

👉🏽फिर इन में से हर एक की दो किस्मे है :
👉🏽चुनान्चे हुस्ने ज़न कभी तो वाजिब होता है जैसे अल्लाह के साथ अच्छा गुमान रखना और कभी मुस्तहब जैसे मोमिने सालेह के साथ नेक गुमान।

👉🏽इसी तरह सूए ज़न (बद गुमानी) की भी दो किस्मे है :
1⃣जाइज़
2⃣मम्नुअ

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚बद गुमानी, सफा 19-20
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📛बद गुमानी📛
♻हिस्सा~03

✔जाइज़ बद गुमानी की चन्द सूरते
♐पहली सूरत
♻हिस्सा~01

👉🏽अल्लामा मुहम्मद अहमद अन्सारी कुरतुबि अलैरहमा लिखते है :
👉🏽अगर कोई शख्स नेक हो तो उसके मुतअल्लिक़ बद गुमानी जाइज़ नहीं और जो एलानिया गुनाहे कबीरा का मूर्तक़िब हो और फिस्क़ में मशहूर हो तो उसके बारे में बद गुमानी करना जाइज़ है।
📔अल जामेउल अहकामिल क़ुरआन, पा. 26 अल हुजुरात तहतुल अल आयत, 12 जी.8 स.238 मूलख्खसन)

👉🏽अल्लामा महमूद आलोसि अलैरहमा इरशाद फरमाते है :
👉🏽सूए ज़न उस वक़्त हराम होगा जब मज़नून (यानी जिस के बारे में गुमान किया जाए) ऐसा शख्स हो जिस के उयुब की पोशीदगी, नेक होने और अमानत व डियानत का मुशाहदा किया जाए (यानि वो नेकी में मशहूर हो)
👉🏽और अगर कोई शक में मुब्तला करने वाले बुरे कामो में ऐलानिया तौर पर मशगूल हो जैसे शराब की दूकान में आना जाना या गाने वाली फाजिरा औरत की सोहबत इख़्तियार करना या किसी बे रीश की तरफ मुसलसल देखते रहना, तो इस सूरत में बद गुमानी हराम नहीं, चाहे गुमान करने वाले ने उन्हें शराब पीते या ज़िना करते या बेहूदा काम करते हुए न देखा हो।
📔रुहुल मआनी, पारह 26
अल हुजुरात तहतुल आयत :12 26/428 मूलख्खसन

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

🖊हवाला
📚बद गुमानी, 20
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📛बद गुमानी📛
♻हिस्सा~04

♐जाइज़ बद गुमानी की चन्द सूरते
♐पहली सूरत
♻हिस्सा~02

👉🏽अल्लामा इस्माइल हक़्क़ी अलैरहमा इरशाद फरमाते है :
👉🏽गुमान की तरफ उस वक़्त तक पेश रफत न की जाए जब तक कि जाए जब तक कि मज़नून (यानी जिस के बारे में दिल में गुमान आए) के बारे में गौरो फ़िक्र न कर लिया जाए। चुनान्चे अगर मज़नून नेक है तो इस पर मामूली वहम की वजह से बदगुमानी न की जाए बल्कि एहतियात बरती जाए

👉🏽और तुम उस वक़्त तक किसी के साथ बद गुमानी न करो जब तक कि तुम्हारे लिये हुस्ने ज़न रखना मुम्किन हो।

👉🏽रहा फुस्साक़ का मुआमला तो उन के साथ ऐसी बद गुमानी रखना जाइज़ है जो उन के अफआल से ज़ाहिर हो।

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अललाह

🖊हवाला
📗रुहुल बयान, पारह 26 अल हुजुरात तहतुल आयत 12, 9/85
📚बद गुमानी, स.21
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📛बद गुमानी📛
♻हिस्सा~05

✔जाइज़ बद गुमानी की चन्द सूरते
पहली सूरत
♻हिस्सा~03

👉🏽मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैरहमा लिखते है :
बेशक मुसलमान पर बद गुमानी हराम है मगर जब कि किसी क़रीना से उसका ऐसा साबित होता हो, तो अब हराम नही। मसलन किसी को शराब खाने में आते जाते देख कर उसे शराब खोर गुमान किया तो इस बद गुमानी करने वाले का कुसूर नहीं, उस शराब खाने में आने जाने वाले ने तोहमत लगने की जगह से क्यू पपरहेज़ न किया।
📕फतावा अमजादिय्या, 1/123

👉🏽अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर बिन खत्ताब ने फ़रमाया :
जो अपने आप को खुद तोहमत के लिये पेश करदे तो वो अपने बारे में बद गुमानी करने वाले को मलामत न करे।
📔अद्ददुर्रुल मन्सूर, 7, अल हुजुरात तहतुल आयत, 12, स. 566

👉🏽लेकिन याद रहे कि अहले मासिय्यत और एलानिया गुनाह करने वालो से बद गुमानी जाइज़ होने का ये मतलब नही है कि हम उन की बदगोइ या एब उछालना शुरू करदे बल्कि ऐसी सूरत में रिज़ाए इलाही के लिये सिर्फ दिल में उन्हें बुरा समझा जाए।
📕अल हदी-क़तुन्नदिय्या, 2/11

🌴हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया :
हर मुसलमान की इज़्ज़त, माल और जान दूसरे मुसलमान पर हराम है।
📘जामेइत्तिर्मिज़ि, किताबु अल बिर्रि वस्सीला, हदिष:1934, जी.3 स.372

🖊हवाला
📚बद गुमानी, स.22
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📛 *बद गुमानी* 📛
♻हिस्सा~06

_*जाइये बद गुमानी की चन्द सूरते*_
✔दूसरी सूरत
♻हिस्सा~01

👉🏽जब नुक्सान में मुब्तला होने का क़वी एहतिमाल हो। मसलन किसी इस्लामी भाई ने किसी के साथ कारोबारी शराकत की या खरीदो फरोख्त की या उस से किराए पर कोई चीज़ ली या किसी भी तरह का माली मुआमला तै किया और सामने वाले की किसी मशकुक हरकत की वजह से दिल में बे इख़्तियार बद गुमानी पैदा हुई और उस ने इस बद गुमानी की बुन्याद पर ऐसी एहतियाती तदाबिर इख़्तियार की जिससे सामने वाले को कोई नुकशान न पहुचे तो जाइज़ है क्यू की अगर हक़ीक़तन सामने वाले की नियत दुरुस्त न हो और ये शख्स हुस्ने ज़न ही क़ाइम करता रह जाए तो नुक़सान में मुब्तला होने का क़वी इम्कान है।

👉🏽अल्लामा महमूद आलोसी अलैरहमा लिखते है : गुमान करने वाले के लिये बुरे गुमान के तक़ाज़े पर अमल करने में कोई हरज नहीं (यानि कि मज़नून को कोई नुक़सान न पहुचे) मसलन उसने किसी शख्स के बारे में गुमान किया कि वो उसे नुक़सान पहुचाना चाहता है तो वो इस से बचने के लिये ऐसे इक़दामात कर सकता है जिन की वजह से सामने वाले शख्स को नुक़सान न पहुचे। तबरानी शरीफ में है लोगो से सूए ज़न के ज़रिए अपनी हिफाज़त करो। मज़ीद लिखते है बुरे गुमान में से बाज़ वो है जिन की पैरवी मुबाह है जेसे मआशी मुआमलात में बद गुमानी होना।
📔रुहुल मआनी, पारह 26, अल हुजुरात तहतुल आयत, 12 जिल्द 26/428

📨बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

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📚बद गुमानी, स.23-24
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📛 ~*बद गुमानी~* 📛
♐हिस्सा~07

*जाइज़ बद गुमानी की चन्द सूरते*
_*दूसरी सूरत_*
♐हिस्सा~02

👉🏽अल्लामा इस्माइल हक़्क़ी अलैरहमा लिखते है :
➡बाज़ गुमान मुबाह है जेसे दुन्यवि मुआमलात और मआश के मुहिम्मात में बद गुमानी करना बल्कि इन उमूर में बद गुमानी मूजिबे सलामती है।
📒रुहुल बयान, पारह 26, अल हुजुरात तहतुल आयात 12, जी.9 स.84
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*ना जाइज़ बद गुमानी की सूरत*

~*मम्नुअ*~
👉🏽जेसे अल्लाह तआला के साथ बुरा गुमान रखना और नेक मोमिन के साथ बुरा गुमान रखना।
📒तफ़सीरे खजाइनुल इरफ़ान, पारह 26, अल हुजुरात तहतुल आयत 12 जी.15 स.219

*नोट*
👉🏽अल्लाह तआला से बद गुमानी का मतलब ये है कि गुमान रखना की अल्लाह मुझे रिज़्क़ नहीं देगा या मेरी हिफाज़त नहीं फ़रमाएगा या मेरी मदद नहीं करेगा  वगैराह।

🖊हवाला
📚बद गुमानी, 24-25
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📛 ~*बद गुमानी*~ 📛
🔘हिस्सा~08

*बद गुमानी से बचिये*

🌴नबी ﷺ का फरमान है :
➡बद गुमानी से बचो बेशक बद गुमानी बद तरीन झूट है।
📘 *सहीहुल बुखारी* 3/446 हदिष:5143

➡और इरशाद फ़रमाया :
मुसलमान का खून, माल और उस से बद गुमानी दूसरे मुसलमान पर हराम है।
📔 *शुउबुल ईमान* 5/297 हदिष:6706

➡जब की हज़रते आइशा सिद्दीक़ा रदिअल्लाहु अन्हा से मरवी है :
*⃣जिस ने अपने मुसलमान भाई से बुरा गुमान रखा, बेशक उसने अपने रब से बुरा गुमान रखा।
📗 *दुर्रुल मन्सूर* पारह 26 आयत 12, 7/566

✍🏽हवाला
📚बद गुमानी, स.25
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~*बद गुमानी*~
⤵हिस्सा~09

*बद गुमानी पर हुक्म शरई कब लगेगा* ❓

➡किसी शख्स के दिल में किसी के बारे में बुरा गुमान आते ही उसे फेले हराम का मूर्तक़िब क़रार नहीं दिया जाएगा क्यूकी महज़ दिल में बुरा ख़याल आ जाने की बिना पर क़ाबिले इताब ठहराने का मतलब किसी इंसान पर उसकी ताक़त से ज़ाइद बोझ डालना है और ये बात शरई तक़ाज़े के खिलाफ है, अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है :

☝🏽अल्लाह किसी जान पर बोझ नहीं डालता मगर उसकी ताक़त भर।
📗पारह 2 बक़रह 286
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*बद गुमानी के हराम होने की 2 सूरते*

1⃣जब इंसान बद गुमानी को दिल पर जमा ले (यानी इसका यक़ीन कर ले)
2⃣इसको ज़बान पर ले आए या इसके तक़ाज़े पर अमल कर ले।

📮इसकी तफ़्सीर इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में...

✍🏽 _*हवाला*_
📚 *बद गुमानी* स.26
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⤵हिस्सा~10

➡नबी ﷺ ने फ़रमाया : जब तुम कोई बद गुमानी करो तो उस और जमे न रहो।
*📘अल मोजमुल कबीर* 3/228 हदिष 3227

➡यानी उसे अपने दिल में जगह न दे, न किसी अमल के ज़रुए इसका इज़हार करे और न आज़ा के ज़रिए इस बद गुमानी को पुख्ता करे।
*📘अहयाउल उलूम* 3/186

➡मसलन शैतान ने किसी इस्लामी भाई के दिल में किसी नेक शख्स के बारे में रियाकारी का गुमान डाला तो उस इस्लामी भाई ने उस गुमान को फौरन झटक दिया और उस मुसलमान के बारे में मुख्लिस होनेका उसने ज़न क़ाइम कर लिया तो अब उसकी गिरफ्त नहीं होगी और न ही ये हराम का मूर्तक़िब कहलाएगा।

➡इसके बर अक़्स अगर दिल में बद गुमानी आने के बाद उस को न झुटलाया और वो बद गुमानी उसके दिल में क़रार पकड़े रही हत्ता कि यक़ीन के दर्जे पर पहुच गई कि फुला शख्स रियाकार ही है तो अब बद गुमानी करने वाला गुनाहगार होगा चाहे उस बारे में ज़बान से कुछ न बोले।

*✍🏽बद गुमानी* स.28
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~*बद गुमानी*~
हिस्सा~11

➡बद गुमानी को ज़बान पर ले आना या उस के तक़ाज़े पर अमल कर लेना

➡अल्लामा गनी नाबल्स अलैरहमा लिखते है :
शक या वहम की बिना पर मुअमिनीन से बद गुमानी उस सूरत में हराम है जब इसका असर आज़ा पर ज़ाहिर यानि उसके तक़ाज़े पर अमल कर लिया जाए मसलन उस बद गुमानी को ज़बान से बयान कर दिया जाए
*अल हदी-क़तून्नादिय्या* 2/13

➡अल्लामा महमूद आलोसी अलैरहमा लिखते है :
जब बद गुमानी गैर इख्तियारी हो तो जिस चीज़ की मुमानअत है, वो उसके तक़ाज़े के मुताबिक़ अमल करना है यानी मज़नून को हक़ीर जानना या उसकी ऐब गोई करना या उस बद गुमानी को बयान कर देना।
*रुहुल मआनी* पारह 26 आयत 12 जी.26/429

➡मसलन आप की दावत में न पहुचने वाले इस्लामी भाई ने मुलाक़ात होने पर अपना कोई उज़्र पेश किया मगर आप के दिल में शैतान ने वस्वसा डाला कि ये झूट बोल रहा है और आप ने इस गुमान की पैरवी करते हुए फौरन बोल दिया कि तुम झूट बोल रहे हो तो ऐसी बद गुमानी हराम है।

*✍🏽बद गुमानी* स.29
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