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Tuesday 31 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #140
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑨ⓞ_*
     और अल्लाह की राह में लड़ो(5)
उनसे जो तुमसे लड़ते हैं (6)
और हद से न बढ़ो(7)
अल्लाह पसन्द नहीं रखता हद से बढ़ने वालों को.

*तफ़सीर*
     (5) सन छ हिजरी में हुदैबिया का वाक़िआ पेश आया. उस साल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मदीनए तैय्यिबह से उमरे के इरादे से मक्कए मुकर्रमा रवाना हुए. मुश्रिकों ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल होने से रोका और इस पर सुलह हुई कि आप अगले साल तशरीफ़ लाएं तो आपके लिये तीन रोज़ मक्कए मुकर्रमा ख़ाली कर दिया जाएगा. अगले साल सन सात हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम क़ज़ा उमरे के लिये तशरीफ़ लाए. अब हुज़ूर के साथ एक हज़ार चार सौ की जमाअत थी. मुसलमानों को यह डर हुआ कि काफ़िर अपने वचन का पालन न करेंगे और हरमे मक्का में पाबन्दी वाले महीने यानी ज़िलक़ाद के माह में जंग करेंगे और मुसलमान इहराम की हालत में हैं. इस हालत में जंग करना भारी है क्योंकि जाहिलियत के दिनों से इस्लाम की शुरूआत तक न हरम में जंग जायज़ थी न माहे हराम में, न हालते इहराम में. तो उन्हें फ़िक्र हुई कि इस वक़्त जंग की इजाज़त मिलती है या नहीं. इस पर यह आयत उतरी.
     (6) इसके मानी या तो ये हैं कि जो काफ़िर तुमसे लड़े या जंग की शुरूआत करें तुम उनसे दीन की हिमायत और इज़्ज़त के लिये लड़ो. यह हुक्म इस्लाम की शुरूआत में था, फिर स्थगित कर दिया गया और काफ़िरों से क़िताल या जंग करना वाजिब हुआ, चाहे वो शुरूआत करें या न करें. या ये मानी हैं कि जो तुम से लड़ने का इरादा रखते हैं, यह बात सारे ही काफ़िरों में है क्योंकि वो सब दीन के दुश्मन और मुसलमानों के मुख़ालिफ़ हैं, चाहे उन्होंने किसी वजह से जंग न की हो लेकिन मौक़ा पाने पर चूकने वाले नहीं. ये मानी भी हो सकते हैं कि जो काफ़िर मैदान में तुम्हारे सामने आएं और तुम से लड़ने वाले हों, उनसे लड़ो. उस सूरत में बूढ़े, बच्चे, पागल, अपाहिज, अन्धे, बीमार, औरतें वग़ैरह जो जंग की ताक़त नहीं रखते, इस हुक्म में दाख़िल न होंगे. उनका क़त्ल करना जायज़ नहीं.
     (7) जो जंग के क़ाबिल नहीं उनसे न लड़ो या जिनसे तुमने एहद किया हो या बगै़र दावत के जंग न करो क्योंकि शरई तरीक़ा यह है कि पहले काफ़िरों को इस्लाम की दावत दी जाए, अगर इन्कार करें तो जिज़िया माँगा जाए, उससे भी इन्कारी हों तो जंग की जाए. इस मानी पर आयत कर हुक्म बाक़ी है, स्थगित नहीं. (तफ़सीरे अहमदी)
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

जलती आग के सामने नमाज़ पढ़ना, शमा या चराग सामने हो तो हर्ज़ नहीं।
*✍🏽आलमगिरी, 1/108*

ऐसी चीज़ के सामने नमाज़ पढ़ना जिससे ध्यान बटे मसलन ज़ीनत और लहवो लअब वग़ैरा।
*✍🏽रद्दलमोहतर, 1/439*

नमाज़ के लिए दौड़ना।
कूड़ा डालने की जगह।
मज़्बह यानी जहा जानवर जबह किये जाते हो वहा।
इस्तबल यानी घोड़े बंधने की जगह।
गुस्ल खाना, मवेशी खाना खुसुसन जहां ऊंट बांधे जाते हो।
इस्तिन्जा खाने की छत।
सहरा में बिला सुतरा के जब कि आगे से लोगो के गुज़रने का इम्कान हो इन जगहों पर नमाज़ पढ़ना।
*✍🏽गुन्यातुल मुस्तमली 339*

बिगैर उज़्र हाथ से माखी मच्छर उड़ाना (नमाज़ में जू या मच्छर इज़ा देते हो तो पकड़ कर मार डालने में कोई हरज नही जब की अमले कसीर से न हो)
*✍🏽बहारे शरीअत*

हर वो अमले कलिल जो नमाज़ी के लिये मुफीद हो, जाइज़ है और जो मुफीद न हो वो मकरूह
*✍🏽आलमगिरी, 1/109*

उल्टा कपड़ा पहनना या ओढ़ना।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 7/358*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.199*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #87
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا غٙنِىُّ*
रिठ की हड्डी, घुटनो, जोड़ो या जिस्म में कही भी दर्द हो, चलते फिरते उठते बैठते पढ़ते रहिये ان شاء الله दर्द जाता रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 258*
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Monday 30 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #139
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑨_*
     तुमसे नए चांद को पूछते हैं (1)
तुम फ़रमादो वो वक़्त की अलामतें (चिन्ह) हैं लोगों और हज के लिये (2)
और यह कुछ भलाई नहीं कि (3)
घरों में पछैत और (पिछली दीवार) तोड़कर आओ हाँ भलाई तो परहेज़गारी है, और घरों में दरवाज़ों से आओ (4)
और अल्लाह से डरते रहो इस उम्मीद पर कि फ़लाह (भलाई) पाओ*

*तफ़सीर*
     (1) यह आयत हज़रत मआज़ बिन जबल और सअलबा बिन ग़िनम अन्सारी के जवाब में उतरी. उन दोनों ने दर्याफ़्त किया, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, चाँद का क्या हाल है, शुरू में बहुत बारीक निकलता है, फिर दिन ब दिन बढ़ता है यहाँ तक कि पूरा रौशन हो जाता है फिर घटने लगता है और यहां तक घटता है कि पहले की तरह बारीक हो जाता है. एक हालत में नहीं रहता. इस सवाल का मक़सद चाँद के घटने बढ़ने की हिकमत जानना था.
     कुछ मुफ़स्सिरीन का ख़याल है कि सवाल का मक़सद चाँद के इख़्तिलाफ़ात का कारण मालूम करना था.
     (2) चाँद के घटने बढ़ने के फ़ायदे बयान फ़रमाए कि वह वक़्त की निशानियाँ हैं और आदमी के हज़ारों दीनी व दुनियावी काम इससे जुड़े हैं. खेती बाड़ी, लेन देन के मामले, रोज़े और ईद का समय, औरतों की इद्दतें, माहवारी के दिन, गर्भ और दूध पिलाने की मुद्दतें और दूध छुड़ाने का वक़्त और हज के औक़ात इससे मालूम होते है क्योंकि पहले जब चाँद बारीक होता है तो देखने वाला जान लेता है कि यह शुरू की तारीख़ें हैं. और जब चाँद पूरा रौशन हो जाता है तो मालूम हो जाता है कि यह महीने की बीच की तारीख़ है, और जब चाँद छुप जाता है तो यह मालूम होता है कि महीना ख़त्म पर है. इसी तरह उनके बीच दिनों में चाँद की हालतें दलालत किया करती हैं. फिर महीनों से साल का हिसाब मालूम होता है. यह वह क़ुदरती जनतरी है जो आसमान के पन्ने पर हमेशा खुली रहती है. और हर मुल्क और हर ज़बान के लोग, पढ़े भी और बे पढ़े भी, सब इससे अपना हिसाब मालूम कर लेते हैं.
     (3) जाहिलियत के दिनों में लोगों की यह आदत थी कि जब वो हज का इहराम बांधते तो किसी मकान में उसके दरवाज़े से दाख़िल न होते. अगर ज़रूरत होती तो पिछैत तोड़ कर आते और इसको नेकी जानते. इस पर यह आयत उतरी.
     (4) चाहे इहराम की हालत हो या ग़ैर इहराम की.
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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़िहा* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

नमाज़ में बिला उज़्र चार जानू यानी चोकड़ी मार कर बैठना।
*✍🏽गुन्यातुल मुस्तमलि, 339*

अंगड़ाई लेना और इरादतन खाँसना, खनकारना।
*गुन्यातुल मुस्तमलि, 340*
अगर तबीअत चाहती हो तो हरज नही

सज्दे में जाते हुए घुटने से पहले बिला उज़्र हाथ से क़ब्ल घुटने ज़मीन से उठना।
रूकू में सर को पीठ से उचा निचा करना।
*✍🏽गुन्यातुल मुस्तमलि, 335,338*

नमाज़ में सना, तअव्वुज़, तस्मिया और आमीन ज़ोर से कहना।
बिगैर उज़्र दिवार वगैरा पर टेक लगाना
*✍🏽आलमगिरी, 1/107*ज

रूकू में गुटनो पर और सजदों में ज़मीन पर हाथ न रखना, दाए बाए झूमना।
कभी दाए पाउ पर और कभी बाए पाउ पर ज़ोर देना के सुन्नत है।
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/202*

सज्दे के लिए जाते हुए सीधी तरफ ज़ोर देना और उठते वक़्त उलटी तरफ ज़ोर देना मुस्तहब है
*✍🏽बहारे शरीअत, 3/101*

नमाज़ में आँखे बंद रखना।
हा अगर खुशुअ आता हो तो आँखे बंद रखना अफज़ल है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/499*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.199*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #86
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا جٙامِعُ*
जिसके अज़ीज़ व अक़ारिब जुदा हो गए हो, चाश्त के वक़्त गुस्ल कर के आसमान की तरफ मिह करके 10 बार इस इसमें पाक को पढ़े और हर बार में एक ऊँगली बन्द करता जाए दिर अपने मुह पर हाथ फेरे ان شاء الله थोड़े अरसे में सब जमा हो जाएंगे।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 258*
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Sunday 29 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #138
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑧_*
     और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ ना खाओ और ना हाक़िमों के पास उनका मुक़दमा इसलिये पहुंचाओ कि लोगों का कुछ माल नाज़ायज़ तौर पर खालो जानबूझकर.

*तफ़सीर*
     इस आयत में बातिल तौर पर किसी का माल खाना हराम फ़रमाया गया है, चाहे वह लूट कर छीन कर या चोरी से या जुए से या हराम तमाशों से या हराम कामों या हराम चीज़ों के बदले या रिशवत या झूटी गवाही या चुग़लख़ोरी से, यह सब मना और हराम है.
     इससे मालूम हुआ कि नाजायज़ फ़ायदे के लिये किसी पर मुक़दमा बनाना और उसको हाकिम तक लेजाना हराम और नाजायज़ है.
     इसी तरह अपने फ़ायदे के लिये दूसरे को हानि पहुंचाने के लिये हाकिम पर असर डालना, रिशवत देना हराम है. हाकिम तक पहुंच वाले लोग इन आदेशों को नज़र में रख़ें. हदीस शरीफ़ में मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाने वाले पर लानत आई है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #20
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #05
*_बनू करीज़ा की गद्दारी_*
     क़बिलाए बनू करीज़ा के यहूदी अब तक गैर जानिब दार थे लेकिन बनू नज़ीर के यहूदियो ने उन को भी अपने साथ मिला कर लश्करे कुफ्फार में शामिल कर लेने की कोशिश शुरू कर दी, चुनांचे हुयय बिन अख्तब के मशवरे से बनू करीज़ा के सरदार काब बिन असद के पास गया। पहले तो उस ने अपना दरवाज़ा नही खोल और कहा की मुहम्मद के हलिफ् है और हम ने उन को हमेशा अपने अहद का पाबन्द पाया है इस लिये हम उन से अहद शिकनी करना ख़िलाफे मुरव्वत समझते है मगर बनू नज़ीर के यहूदियो ने इस क़दर शदीद इसरार किया और तरह तरह से वर गलाया की बिल आखिर काब बिन असद मुआह्दा तोड़ने के लिये राज़ी हो गया, बनू करीज़ा ने जब मुआह्दा तोड़ दिया और कुफ्फार से मिल गए तो कुफ़्फ़ारे मक्का और अबू सुफ़यान ख़ुशी से बाग़ बाग़ हो गए।
     हुज़ूरे अक़दसﷺ को जब इस की खबर मिली तो आप ने हज़रते साद बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादाرضي الله تعالي عنهم को तहक़ीक़ के लिये बनू करीज़ा के पास भेजा, वहा जा कर मालुम हुवा की वाक़ई बनू करीज़ा ने मुआह्दा तोड़ दिया है। जब इन दोनों मुअज़्ज़ज़् सहाबियों ने बनू करीज़ा को उन का मुआह्दा याद दिलाया तो उन बाद ज़ात यहूदियो ने इंतिहाई बे हयाई के साथ यहाँ तक कह दिया की हम कुछ नही जानते की मुहम्मद कौन है ? और मुआह्दा किस को कहते है ? हमारा कोई मुआह्दा हुवा नही था, ये सुन कर दोनों हज़रात वापस आ गए और सूरत हाल से हुज़ूरﷺ को मुत्तलअ किया तो आप ने बुलन्द आवाज़ से "अल्लाहु अकबर" कहा और फ़रमाया की मुसलमानो ! तुम इस से न घबराओ न इस का गम करो इस में तुम्हारे लिये बिशारत है।
     कुफ्फार का लश्कर जब आगे बढ़ा तो सामने खन्दक देख कर  ठहर गया और शहरे मदीना का मुहासरा कर लिया और तक़रीबन एक महीने तक कुफ्फार शहरे मदीना के गिर्द घेरा डाले हुए पड़े रहे और ये मुहासरा इस सख्ती के साथ क़ाइम रहा की हुज़ूर और सहाबा पर कई कई फाके गुज़र गए।
     कुफ्फार ने एक तरफ तो खन्दक का मुहासरा कर रखा था और दूसरी तरफ इस लिये हमला करना चाहते थे की मुसलमानो की औरते और बच्चे किल्ले में थे, मगर हुज़ूरﷺ ने जहा खन्दक के मुख़्तलिफ़ हिस्सों पर सहाबा को मुक़र्रर फरमा दिया था की वो कुफ्फार के हमलो का मुक़ाबला करते रहे इसी तरह औरतो और बच्चों की हिफाज़त के लिये भी कुछ सहाबा को मूतअय्यन कर दिया था।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 331*
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*नमाज़ के मकरुहाते तन्ज़ीहा* #01
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दूसरे कपड़े मुयस्सर होने के बा वुजूद कामकाज के लिबास में नमाज़ पढ़ना।
*✍🏽गुण्यतुल मुस्तमलि, 337*

मुह में कोई चीज़ लिये हुए होना। अगर इस की वजह से किराअत ही न हो सके या ऐसे अलफ़ाज़ निकले कि जो क़ुरआन के न हो तो नमाज़ ही फासिद हो जाएगी।
*✍🏽दुर्रेमुख्तार, रद्दलमोहतार*

सुस्ती से नंगे सर नमाज़ पढ़ना।
*✍🏽आलमगिरी, 1/106*

नमाज़ में टोपी या इमाम शरीफ गिर पड़े तो उठा लेना अफज़ल है जब कि अमले कसीर की हाजत न पड़े वरना नमाज़ फासिद् हो जाएगी। और बार बार उठाना पड़े तो छोड़ दे और उठाने से खुशुओ ख़ुज़ूअ मक़सूद हो तो उठाना अफज़ल है।
*✍🏽दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/194*

अगर कोई नंगे सर नमाज़ पढ़ रहा हो या उसकी टोपी गिर पड़ी हो तो उसको दूसरा शख्स टोपी न पहनाए।

रूकू या सज्दे में बिला ज़रूरत 3 बार से कम तस्बीह कहना (अगर वक़्त तांग हो या ट्रेन चल पड़ने के खौफ से हो तो हरज नहीं। अगर मुक्तदि 3 तस्बीह न कहने पाया था कि इमाम ने सर उठा लिया तो इमाम का साथ दे)

नमाज़ में पेशानी से ख़ाक या घास छुड़ाना। हा अगर इन की वजह से नमाज़ में ध्यान बटता हो तो छुड़ाने में हरज नही।
*✍🏽आलमगिरी, 1/106*

सज्दे वग़ैरा में उंगलिया किब्ले से फेर देना।
*✍🏽आलमगिरी, 1/119*

मर्द का सज्दे में रान को पेट से चिपका देना।
*✍🏽आलमगिरी, 1/109*

नमाज़ में हाथ या सर के इशारे से सलाम का जवाब देना।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.198*
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*يٙا مُـقْسِطُ*
शैतानी वसवसों से बचने के लिये 100 मर्तबा पढ़ना बहुत मुफीद है, ان شاء الله

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
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Saturday 28 January 2017

*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_नमाज़ और तस्वीर_*
     जानदार की तस्वीर वाला लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमि है, नमाज़ के इलावा भी ऐसा कपड़ा पहनना जाइज़ नहीं।
*✍🏽दुर्रेमुखतार 2/502*

     नमाज़ी के सर पर यानी छत पर या सज्दे की जगह पर या आगे या दाए या बाए जानदार की तस्वीर आवेज़ा होना मकरुहे तहरीमि है और पीछे होना भी मकरूह है, मगर गुज़श्ता सूरतो से कम। अगर तस्वीर फर्श पर है और उस और सज्दा नहीं होता तो कराहत नहीं। अगर तस्वीर गैर जानदार की है जेसे दरिया पहाड़ वगैरा तो इस में कोई मुज़ायक़ा नहीं। इतनी छोटी तस्वीर हो जिसे ज़मीन पर रख कर खड़े हो कर देखे तो आज़ा की तफ़सील न दिखाई दे (जैसा के उमुमन तवाफ़े काबा के मंज़र की तस्वीरें बहुत छोटी होती है ये तसावीर) नमाज़ के लिये बाइसे कराहत नहीं है।
*✍🏽गुण्यतुल मुस्तमलि, 347*
*✍🏽दुर्रेमुखतर, 2/503*

     तवाफ़ की भीड़ में एक भी चेहरा वाज़ेह हो गया तो मुमानअत बाक़ी रहेगी। चेहरे के इलावा मसलन हाथ, पाउ, पीठ, चेहरे का पिछला हिस्सा या ऐसा चेहरा जिस की आँखे, नाक, होठ वग़ैरा सब आज़ाए मिटे हुए हो ऐसी तसावीर में कोई हर्ज़ नही।

*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.196*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #84
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا ذٙاالْجٙلٙالِ وٙالْاِكْرٙام*
इस की कसरत से खुशहाली नसीब होगी। इस के साथ दुआ करने से दुआ मक़बूल होगी ان شاء الله

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Friday 27 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #137
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑦_*
     रोज़ों की रातों में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिये हलाल (वेद्य) हुआ (12)
वो तुम्हारी लिबास हैं और तुम उनके लिबास, अल्लाह ने जाना कि तुम अपनी जानों को ख़यानत (बेईमानी) में डालते थे तो उसने तुम्हारी तौबह क़ुबूल की और तुम्हें माफ़ फ़रमाया (13)
तो अब उनसे सोहबत करो (14)
और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो (15)
और खाओ और पियो (16)
यहां तक कि तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सफ़ेदी का डोरा सियाही के डोरे से पौ फटकर (17)
फिर रात आने तक रोज़े पूरे करो (18)
और औरतों को हाथ न लगाओ जब तुम मस्जिदों में एतिक़ाफ़ में हो  (यानि दुनिया से अलग थलग बैठे हो ) (19)
ये अल्लाह की हदें हैं, इनके पास न जाओ अल्लाह यूं ही बयान करता है लोगों से अपनी आयतें की कहीं उन्हें परहेज़गारी मिले.
*तफ़सीर*
     (12) पिछली शरीअतों में इफ़्तार के बाद खाना पीना सहवास करना ईशा की नमाज़ तक हलाल था, ईशा बाद ये सब चीज़ें रात में भी हराम हो जातीं थी. यह हुक्म सरकार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़मानए अक़दस तक बाक़ी था. कुछ सहाबा ने रमज़ान की रातों में नमाज़ ईशा के बाद सहवास किया, उनमें हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो भी थे. इसपर वो हज़रात लज्जित हुए और रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अपना हाल अर्ज़ किया. अल्लाह तआला ने माफ़ फ़रमाया और यह आयत उतरी और बयान कर दिया गया कि आयन्दा के लिये रमज़ान की रातों में मग़रिब से सुबह सादिक़ तक अपनी पत्नी के साथ सहवास हलाल किया गया.
     (13) इस ख़यानत से वह सहवास मुराद है जो इजाज़त मिलने से पहले के रमज़ान की रातों में मुसलमानों ने किया. उसकी माफ़ी का बयान फ़रमाकर उनकी तसल्ली फ़रमा दी गई.
     (14) यह बात इजाज़त के लिये है कि अब वह पाबन्दी उठाली गई और रमज़ान की रातों में सहवास हलाल कर दिया गया.
     (15) इसमें हिदायत है कि सहवास नस्ल और औलाद हासिल करने की नियत से होना चाहिये, जिससे मुसलमान बढ़ें और दीन मज़बूत हो. मुफ़स्सिरीन का एक क़ौल यह भी है कि मानी ये है कि सहवास शरीअत के हुक्म के मुताबिक़ हो जिस महल में जिस तरीक़े से इजाज़त दी गई उससे आगे न बढ़ा जाए. (तफ़सीरे अहमदी). एक क़ौल यह भी है जो अल्लाह ने लिखा उसको तलब करने के मानी हैं रमज़ान की रातों में इबादत की कसरत (ज़्यादती) और जाग कर शबे-क़द्र की तलाश करना.
     (16) यह आयत सरमआ बिन क़ैस के बारे में उतरी. आप महनती आदमी थे. एक दिन रोज़े की हालत में दिन भर अपनी ज़मीन में काम करके शाम को घर आए. बीवी से खाना माँगा. वह पकाने में लग गई यह थके थे आँख लग गई. जब खाना तैयार करके उन्हें बेदार किया उन्होंने खाने से इन्कार कर दिया क्योंकि उस ज़माने में सोजाने के बाद रोज़ेदार पर खाना पीना बन्द हो जाता था और उसी हालत में दूसरा रोज़ा रख लिया. कमजोरी बहुत बढ गई. दोपहर को चक्कर आ गया. उनके बारे में यह आयत उतरी और रमज़ान की रातों में उनके कारण खाना पीना हलाल किया गया, जैसे कि हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो की अनाबत और रूजू के सबब क़ुर्बत हलाल हुई.
     (17) रात को सियाह डोरे से और सुबह सादिक़ को सफ़ेद डोरे से तशबीह दी गई. मानी ये हैं कि तुम्हारे लिये खाना पीना रमज़ान की रातों में मग़रिब से सुबह सादिक़ तक हलाल कर दिया गया. (तफ़सीरे अहमदी). सुबह सादिक़ तक इजाज़त देने में इशारा है कि जनाबत या शरीर की नापाकी रोज़े में रूकावट नहीं है. जिस शख़्स को नापाकी के साथ सुबह हुई, वह नहाले, उसका रोज़ा जायज़ है. (तफ़सीरे अहमदी). इसी से उलमा ने यह मसअला निकाला कि रमज़ान के रोज़े की नियत दिन में जायज़ है.
     (18) इससे रोज़े की आख़िरी हद मालूम होती है और यह मसअला साबित होता है कि रोज़े की हालत में खाने पीने और सहवास में से हर एक काम करने से कफ़्फ़ारा लाज़िम हो जाता है (मदारिक). उलमा ने इस आयत को सौमे विसाल यानी तय के रोज़े यानी एक पर एक रोज़ा रखने की मनाही की दलील क़रार दिया है.
     (19) इस में बयान है कि रमज़ान की रातों में रोज़ेदार के लिये बीवी से हमबिस्तरी हलाल है जब कि वह मस्जिद में एतिकाफ़ में न बैठा हो. एतिकाफ़ में औरतों से कुरबत और चूमा चाटी, लिपटाना चिपटाना सब हराम हैं. मर्दों के एतिकाफ़ के लिये मस्जिद ज़रूरी है. एतिकाफ़ में बैठे आदमी को मस्जिद में खाना पीना सोना जायज़ है. औरतों का एतिकाफ़ उनके घरों में जायज़ है. एतिकाफ़ हर ऐसी मस्जिद में जायज़ है जिसमें जमाअत क़ायम हो. एतिकाफ़ में रोज़ा शर्त है.
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*​जंगे खन्दक*​ #04
*_इस्लामी अफ्वाज की मोर्चा बन्दी_*
     हुज़ूरﷺ ने खन्दक तैयार हो जाने के बाद औरतो और बच्चों को मदीने के महफु किल्ले में जमा फरमा दिया और मदीने पर हज़रते इब्ने उम्मे मकतूम को अपना खलीफा बना कर 3000 अंसार व मुहाजिरिन की फ़ौज के साथ मदीने से निकल कर सलअ पहाड़ के दामन में ठहरे। सलअ आपﷺ की पुश्त पर था और आप के सामने खन्दक थी। मुहाजिरिन का झंडा हज़रते ज़ैद बिन हारिषा के हाथ में दिया और अंसार का आलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा को बनाया।

*_कुफ्फार का हमला_*
     कुफ्फार कुरैश और उन के इत्तिहादियो ने 10000 के लश्कर के साथ मुसलमानो पर हल्ला बोल दिया और तिन तरफ से काफिरो का लश्कर इस ज़ोरो शोर के साथ मदीने पर उमड़ पड़ा की शहर की फ़ज़ाओं में गर्दो गुबार का तूफ़ान उठ गया इस खौफनाक चढ़ाई और लश्करे कुफ्फार के दल बादल की मारीका आराई का नक़्शा क़ुरआन की ज़बान से देखे :
     जब काफ़िर तुम पर आ गए तुम्हारे ऊपर से और तुम्हारे निचे से और जब की ठिठक कर रह गई निगाहें और दिल गलो के पास (खौफ से) आ गए और तुम *अल्लाह* पर (उम्मीद व यास से) तरह तरह के गुमान करने लगे उस जगह मुसलमान आज़माइश और इम्तिहान में डाल दिये गए और वो बड़े ज़ोर के ज़लज़ले में झंझोड़ कर रख दिये गए।
*पारह, 21*
     मुनाफिकिन जो मुसलमानो के साथ खड़े थे वो कुफ्फार के इस लश्कर को देखते ही बुज़दिल हो कर फिसल गए और उस वक़्त उनके निफ़ाक़ का पर्दा चाक हो गया। चुनांचे उन लोगो ने अपने घर जाने की इजाज़त मांगनी शुरू कर दी। जैसा की क़ुरआन में *अल्लाह* का फरमान है की...
     और एक गिरोह (मुनाफ़िक़ीन) उन में से नबी को इजाज़त तलब करता था मुनाफ़िक़ कहते है की हमारे घर खुले पड़े है हाला की वो खुले हुए नही थे उन का मक़सद भागने के सिवा कुछ भी न था।
*पारह, 21*
     लेकिन इस्लाम के सच्चे जा निषार मुहाजिरिन व अंसार ने जब लश्करे कुफ्फार की तूफानी यलगार को देखा तो इस तरह सीना सिपर हो कर डट गए की "सलअ" और "उहद" की पहाड़िया सर उठा उठा कर इन मुजाहिदीन की उलुल आज़मी को हैरत से देखने लगी इन जा निशारो की इमानी शुजाअत की तस्वीर क़ुरआन में इरशादे रब्बानी है की...
     और जब मुसलमानो ने क़बाइले कुफ्फार के लशकरो को देखा तो बोल उठे की ये तो वही मन्ज़र है जिस का अल्लाह और उस के रसूल ने हम से वादा किया था और खुदा और उस का रसूल दोनों सच्चे है और उस ने उन के ईमान व इताअत को और ज़्यादा बढ़ा दिया।
*पारह, 21*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 329*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गधे जैसा मुंह_*
     हज़रते इमाम न-ववी अलैरहमा हदिष लेने के लिये एक बड़े मशहूर शख्स के पास दिमश्क़ गए। वो पर्दा डाल कर पढ़ाते थे, मुद्दतो तक उन के पास बहुत कुछ पढ़ा मगर उन का मुंह न देखा, जब ज़मानए दराज़ गुज़रा और उन मुहद्दिस साहिब ने देखा कि इन को इल्मे हदिष की बहुत ख्वाहिश है तो एक रोज़ पर्दा हटा दिया !
     देखते क्या है कि उनका गधे जैसा मुंह है !! उन्होंने फ़रमाया, साहिब ज़ादे ! दौराने जमाअत इमाम पर सबक़त करने से डरो कि ये हदिष जब मुझ को पहुची मेने इसे मुस्तबअद जाना और मेने इमाम पर क़सदन सबक़त की तो मेरा मुह ऐसा हो गया जैसा तुम देख रहे हो।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.3 स.95*

     दूसरा कपड़ा होने के बा वुजूद सिर्फ पाजामा या तहबन्द में नमाज़  पढ़ना।

     किसी आने वाले शनासा की खातिर इमाम का नमाज़ को तूल देना.
*✍🏽आलमगिरी, 1/107*
अगर उस की नमाज़ पर इआनत (मदद) के लिये एक दो तस्बीह की क़दर तूल दिया तो हरज नहीं।

     ऐसी ज़मीन जिस पर ना जाइज़ क़ब्ज़ा किया हो या पराया खेत जिस में ज़राअत मौजूद है या जूते हुए खेत में या क़ब्र के सामने जब कि क़ब्र और नमाज़ी के बिच में कोई चीज़ हाइल न हो नमाज़ पढ़ना।
*✍🏽आलमगिरी, 1/107*

     कुफ़्फ़ार के इबादत खाने में नमाज़ पढ़ना बल्कि इन में जाना भी मम्नुअ है।
*✍🏽रद्दलमोहतार, 2/53*

     कुरते वग़ैरा के बटन खुले होना जिस से सीना खुला रहे मकरुहे तहरीमि है, हा अगर निचे कोई और कपड़ा है जिस से सीना नहीं खुला तो मकरुहे तन्ज़ीहि है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 196*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #83
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*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا مٙالِكٙ الْمُـلْكىِ*
जो इसकी कसरत करेगा ان شاء الله खुशहाल होगा

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
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Thursday 26 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #136
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑥_*
     और  ऐ मेहबूब जब तुमसे मेरे बन्दे मुझे पूछें तो में नज़दीक हूँ  (10)
दुआ क़ुबूल करता हूं पुकारने वाले की जब मुझे पुकारते (11)
तो उन्हें चाहिये मेरा हुक़्म माने और मुझपर ईमान लाएं कि कहीं राह पाएं.

*तफ़सीर*
     (10) इसमें हक़ और सच्चाई चाहने वालों की उस तलब का बयान है जो अल्लाह को पाने की तलब है, जिन्हों ने अपने रब के इश्क़ में अपनी ज़रूरतों को क़ुरबान कर दिया, वो उसी के तलबगार हैं, उन्हें क़ुर्ब और मिलन की ख़ुशख़बरी सुनाकर खु़श किया गया. सहाबा की एक जमाअत ने अल्लाह के इश्क़ की भावना में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पूछा कि हमारा रब कहाँ है, इस पर क़ुर्ब की ख़ुशख़बरी दी गई और बताया गया कि अल्लाह तआला मकान से पाक है. जो चीज़ किसी से मकानी क़ुर्ब रखती हो वह उसके दूर वाले से ज़रूर दूरी रखती है. और अल्लाह तआला सब बन्दों से क़रीब है. मकानी की यह शान नहीं. क़ुर्बत की मन्ज़िलों में पहुँने के लिये बन्दे को अपनी ग़फ़लत दूर करनी होती है.
     (11) दुआ का मतलब है हाजत बयान करना और इजाबत यह है कि परवर्दिगार अपने बन्दे की दुआ पर“लब्बैका अब्दी” फ़रमाता है. मुराद अता फ़रमाना दूसरी चीज़ है. वह भी कभी उसके करम से फ़ौरन होती है, कभी उसकी हिकमत के तहत देरी से, कभी बन्दे की ज़रूरत दुनिया में पूरी फ़रमाई जाती है, कभी आख़िरत में, कभी बन्दे का नफ़ा दूसरी चीज़ में होता है, वह अता की जाती है. कभी बन्दा मेहबूब होता है, उसकी ज़रूरत पूरी करने में इसलिये देर की जाती है कि वह अर्से तक दुआ में लगा रहे, कभी दुआ करने वाले में सिद्क़ व इख़लास वग़ैरह शर्तें पूरी नहीं होतीं, इसलिये अल्लाह के नेक और मक़बूल बन्दों से दुआ कराई जाती है. नाजायज़ काम की दुआ कराना जायज़ नहीं. दुआ के आदाब में है कि नमाज़ के बाद हम्दो सना और दरूद शरीफ़ पढे़ फिर दुआ करे.
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*يٙا رٙءُوْفُ*
जो किसी मज़लूम का किसी ज़ालिम से पीछा छुड़ाना चाहे, 10 बार पढ़े फिर उस ज़ालिम से बात करे ان شاء الله वो ज़ालिम उस की सिफारिश क़बूल कर लेगा।

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Wednesday 25 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #135
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑤_*
     रमज़ान का महीना जिसमें क़ुरआन उतारा  (8)
लोगो के लिये हिदायत और राहनुमाई और फैसला की रौशन बातें, तो तुम में जो कोई यह महीना पाए ज़रूर इसके रोज़े रखे और जो बीमार या सफर में हो तो उतने रोज़े और दिनों में अल्लाह तुमपर आसानी चाहता है और तुमपर दुशवारी नहीं चाहता और इसलिये कि तुम गिनती पूरी करो (9)
और अल्लाह की बड़ाई बोलो इसपर की उसने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम हक़ गुज़ार हो.

*तफ़सीर*
     (8) इसके मानी में तफ़सीर करने वालों के चन्द अक़वाल हैं : (1) यह कि रमज़ान वह है जिसकी शान व शराफ़त में क़ुरआने पाक उतरा (2) यह कि क़ुरआने करीम के नाज़िल होने की शुरूआत रमज़ान में हुई. (3) यह कि क़ुरआन करीम पूरा रमज़ाने मुबारक की शबे क़द्र में लौहे मेहफ़ूज़ से दुनिया के आसमान की तरफ़ उतारा गया और बैतुल इज़्ज़त में रहा. यह उसी आसमान पर एक मक़ाम है. यहाँ से समय समय पर अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ थोड़ा थोड़ा जिब्रीले अमीन लाते रहे. यह नुज़ूल तेईस साल में पूरा हुआ.
     (9) हदीस में है, हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि महीना उनतीस दिन का भी होता है तो चाँद देखकर खोलो. अगर उनतीस रमज़ान को चाँद न दिखाई दे तो तीस दिन की गिनती पूरी करो.
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*_दसवा बाब_* #18
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*​जंगे खन्दक*​ #03
*_एक अजीब चट्टान_*
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه ने बयान फ़रमाया की खन्दक खोदते वक़्त ना गहा एक ऐसी चट्टान नमूदार हो गई जो किसी से भी नही टूटी जब हम ने बारगाहे रिसालत में ये माजरा अर्ज़ किया तो आपﷺ उठे 3 दिन का फ़ाक़ा था और शिकमे मुबारक पर पथ्थर बाधा हुवा था आपﷺ ने अपने दस्ते मुबारक से फावड़ा मारा तो वो चट्टान रेत के भुरभुरे टीले की तरह बिखर गई।
*बुखारी, 2/588*
    और एक रिवायत ये है की आपﷺ ने उस चट्टान पर तिन मर्तबा फावड़ा मारा। हर ज़र्ब पर उस में से एक रौशनी निकलती थी और उस रौशनी में आप ने शाम व ईरान और यमन शहरों को देख लिया और इन तीनो मुल्को के फतह होने की सहाबए किराम को बिशारत दी।
*ज़ुर्क़ानी, 2/109*
     नसाई की रिवायत में है की आपﷺ ने मदाईने किसरा व मदाईने क़ैसर व मदाईने हबशा की फुतुहात का एलान फ़रमाया।
*नसाई, 2/63*

*_हज़रते जाबिर की दावत_*
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه कहते है की फक़ो से शिकमे अक़दस पर पथ्थर बधा हुवा देख कर मेरा दिल भर आया चुनांचे में हुज़ूरﷺ से इजाज़त ले कर अपने घर आया और बीवी से कहा की मेने नबिय्ये करीमﷺ को इस क़दर शदीद भूक की हालत में देखा है की मुझ को सब्र की ताब नही रही क्या घर में कुछ खाना है ? बीवी ने कहा की घर में एक साअ जव के सिवा कुछ भी नही है, में ने कहा की तुम जल्दी से उस जव को पीस कर गूंध लो और अपने घर का पला हुवा एक बकरी का बच्चा में ने ज़बह करके उस की बोटियाँ बना दी और बीवी से कहा की जल्द से तुम गोश्त रोटी तैयार कर लो में हुज़ूरﷺ को बुला कर लाता हु, चलते वक़्त बीवी ने कहा की देखना सिर्फ हुज़ूर और चन्द ही असहाब को साथ में लाना। खाना कम ही है कही मुझे रुस्वा मत कर देना।
     हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه ने खन्दक पर आ कर चुपके से अर्ज़ किया की या रसूलुल्लाह ! एक साअ आटे की रोटिया और एक बकरी के बच्चे का गोश्त में ने घर तैयार कराया है लिहाज़ा आप सिर्फ चन्द अशखास के साथ चल कर तनावुल फरमा ले, ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया की ऐ खन्दक वालो ! जाबिर ने दावते तआम दी है लिहाज़ा सब लोग इन के घर पर चल कर खाना खा ले, फिर मुझसे फ़रमाया की जब तक में न आ जाउ रोटी मत पक्वाना। चुनांचे जब हुज़ूरﷺ तशरीफ़ लाए तो गुंधे हुए आटे में अपना लूआबे दहन डाल कर बरकत की दुआ फ़रमाई और गोश्त की हांड़ी में भी अपना लूआबे दहन डाल दिया। फिर रोटी पकाने का हुक्म दिया और ये फ़रमाया की हांड़ी चूल्हे से न उतारी जाए फिर रोटी पकनी शुरू हुई और हांड़ी मेसे हज़रते जाबिरرضي الله تعالي عنه की बीवी ने गोश्त निकाल निकाल कर देना शुरू किया। 1000 आदमियो ने आसूदा हो कर खाना खा लिया मगर गुंधा हुवा आटा जितना पहले था उतना ही रह गया और हांड़ी चूल्हे पर ब दस्तूर जोश मारती रही।
*बुखारी, 2/589*

*_बा बरकत खजूर_*
     इसी तरह एक लड़की अपने हाथ में कुछ खजुरे ले कर आई, हुज़ूरﷺ ने पूछा की क्या है ? लड़की ने कहा की कुछ खजुरे है जो मेरी माँ ने मेरे बाप के नाश्ते के लिये भेजी है, आपﷺ ने उन खजूरों को अपने दस्ते मुबारक में ले कर एक कपडे पर बिखेर दिया और तमाम अहले खन्दक को बुला कर फ़रमाया की खूब सैर हो कर खाओ, चुनांचे तमाम खन्दक वालो ने शिकम सैर हो कर उन खजूरों को खाया।
*✍🏽मेराज, 2/169*
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 327*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आस्मान की तरफ देखना_*
     निगाह आसमान की तरफ उठाना,
     हुज़ूर ﷺ फरमाते है : क्या हाल है उन लोगो का जो नमाज़ में आसमान की तरफ आँखे उठाते है इससे बाज़ रहे या उनकी आँखे उचक ली जाएगी।
*✍🏽सहीह बुखारी, जी.2 स.103*

     इधर उधर मुह फेर कर देखना, चाहे पूरा मुह फेर या थोडा। मुह फेरे बिगैर सिर्फ आँखे फिरा कर इधर उधर बे ज़रूरत देखना मकरुहे तन्ज़ीहि है और नादिरन किसी गरजे सहीह के तहत हो तो हरज नहीं।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.3 स.194*

     सरकारे मदीना ﷺ फरमाते है : जो बन्दा नमाज़ में है अल्लाह की रहमते खास्सा उस की तरफ मुतवज्जेह रहती है जब तक इधर उधर न देखे, जब उसने अपना मुह फेरा उस की रहमत भी फिर जाती है।
*✍🏽अबू दाऊद, जी.1 स.334 हदिष:909*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.193*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #81
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا عٙـفُوُّ*
जिस के गुनाह बहुत हो वो इस इस्मे पाक की कसरत करे अल्लाह अपने फ़ज़ल से उस के तमाम गुनाह बख्श देगा ان شاء الله

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Tuesday 24 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #134
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧④_*
     गिनती के दिन है (3)
तो तुम में जो कोई बीमार या सफ़र में हो (4)
तो उतने रोज़े और दिनों में और जिन्हें इसकी ताक़त न हो वो बदला दें एक दरिद्र का खाना (5)
फिर जो अपनी तरफ़ से नेकी ज़्यादा करे (6)
तो वह उसके लिये बेहतर है, और रोज़ा रखना तुम्हारे लिये ज़्यादा भला है अगर तुम जानो (7)

*तफ़सीर*
     (3) यानी सिर्फ़ रमज़ान का एक महीना.
     (4) सफ़र से वह यात्रा मुराद है जिसकी दूरी तीन दिन से कम न हो. इस आयत में अल्लाह तआला ने बीमार और मूसाफ़िर को छूट दी कि अगर उसको रमज़ान में रोज़ा रखने से बीमारी बढ़ने का या मौत का डर हो या सफ़र में सख़्ती या तकलीफ़ का, तो बीमारी या सफ़र के दिनों में रोज़ा खोल दे और जब बीमारी और सफ़र से फ़ारिग़ होले, तो पाबन्दी वालें दिनों को छोड़कर और दिनों में उन छूटे हुए रोज़ों की क़ज़ा पूरी करे.
     पाबन्दी वाले दिन पांच है जिन में रोज़ा रखना जायज़ नहीं, दोनों ईदें और ज़िल्हज की ग्यारहवीं, बारहवीं और 13 वीं तारीख़.
     मरीज़ को केवल वहम पर रोज़ा खोल देना जायज़ नहीं. जब तक दलील या तजुर्बा या परहेज़गार और सच्चे तबीब की ख़बर से उसको यह यक़ीन न हो जाए कि रोज़ा रखने से बीमारी बढ जाएगी. जो शख़्स उस वक़्त बीमार न हो मगर मुसलमान तबीब यह कहे कि रोज़ा रखने से बीमार हो जाएगा, वह भी मरीज़ के हुक्म में है.
     गर्भवती या दूध पिलाने वाली औरत को अगर रोज़ा रखने से अपनी या बच्चे की जान का या उसके बीमार हो जाने का डर हो तो उसको भी रोज़ा खोल देना जायज़ है.
     जिस मुसाफ़िर ने फ़ज्र तुलू होने से पहले सफ़र शुरू किया उसको तो रोज़े का खोलना जायज़ है, लेकिन जिसने फ़ज्र निकलने के बाद सफ़र किया, उसको उस दिन का रोज़ा खोलना जायज़ नहीं.
     (5) जिस बूढे मर्द या औरत को बुढ़ापे की कमज़ोरी के कारण रोज़ा रखने की ताक़त न रहे और आगे भी ताक़त हासिल करने की उम्मीद न हो, उसको शैख़े फ़ानी कहते हैं. उसके लिये जायज़ है कि रोज़ा खोल दे और हर रोजे़ के बदले एक सौ पछहत्तर रूपये और एक अठन्नी भर गेहूँ या गेहूँ का आटा उससे दुगने जौ या उसकी क़ीमत फ़िदिया के तौर पर दे. अगर फिदिया देने के बाद रोज़ा रखने की ताक़त आ गई तो रोज़ा वाजिब होगा. अगर शैख़े फ़ानी नादार हो और फिदिया देने की क्षमता न रखता हो तो अल्लाह तआला से अपने गुनाहों की माफ़ी माँगता रहे और दुआ व तौबा में लगा रहे.
     (6) यानी फ़िदिया की मिक़दार से ज़्यादा दे.
     (7) इससे मालूम हुआ कि अगरचे मुसाफ़िर और मरीज़ को रोज़ा खोलने की इजाज़त है लेकिन बेहतरी रोज़ा रखने में ही है.
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*​जंगे खन्दक*​ #02
*_मुसलमानो की तैयारी_*
     जब क़बाइले अरब के तमाम काफिरो के इस गढ़जोड़ और खौफनाक हमले की खबरे मदीना पहुची तो हुज़ूरे अक़दसﷺ ने अपने असहाब को जमा फरमा कर मशवरा फ़रमाया की इस हमले का मुक़ाबला किस तरह किया जाए ? हज़रते सलमान फ़ारसीرضي الله تعالي عنه ने ये राय दी की जंगे उहद की तरह शहर से बाहर निकल कर इतनी बड़ी फ़ौज़ के हमले को मैदानी लड़ाई में रोकना मस्लहत के खिलाफ है लिहाज़ा मुनासिब ये है की शहर के अंदर रह कर इस हमले का दिफाअ किया जाए और शहर के गिर्द जिस तरफ से कुफ्फार की चढ़ाई का खतरा है एक खन्दक खोद ली जाए ताकि कुफ्फार की पूरी फ़ौज़ ब यक वक़्त हमला आवर न हो सके।
     मदीने के तिन तरफ चुकी मकानात की तंग गलिया और खजूरों के झुंड थे इस लिये इन तीनो जानिब से हमले का इमकान नही था, मदीने का सिर्फ एक रुख खुला हुवा था इस लिये ये तै किया गया की इसी तरफ पाच गज़ गहरी खन्दक खोदी जाए।
     चुनांचे 8 ज़िल क़ादह सी. 5 ही. को हुज़ूरﷺ 3000 सहाबए किराम को साथ ले कर खन्दक खोदने में मसरूफ़ हो गए। हुज़ूरﷺ ने खुद अपने दस्ते मुबारक से खन्दक की हद बंदी फ़रमाई और 10 10 आदमियो पर 10 10 गज़ ज़मीन तक़सीम फरमा दी और तक़रीबन 20 दिन में ये खन्दक तैयार हो गई।
   
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 324*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_उंगलिया चटखाना_*
     नमाज़ में उंगलिया चटखाना, हज़रते अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है : इब्ने माजह की रिवायत है कि हुज़ूर ने फ़रमाया : नमाज़ में अपनी उंगलिया न चतखाया करो।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, जी.1 स.514 हदिष: 965*
     मजीद एक रिवायत में है " नमाज़ के लिये जाते हुए उंगलिया चटखाने से मना फरमाया। इन अहादीस मुबारका से ये 3 अहकाम साबित हुए।
1⃣नमाज़ के दौरान और नमाज़ के लिये जाते हुए, नमाज़ का इंतज़ार करते हुए उंगलिया चटखाना मकरुहे तहरीमि है।
2⃣ख़ारिजे नमाज़ में बिगैर हाजत के उंगलिया चटखाना मकरुहे तन्ज़िहि है।
3⃣ख़ारिजे नमाज़ में किसी हाजत के सबब मसलन उंगलियो को आराम देने के लिये उनगलिया चटखाना मुबाह (बिला कराहत जाइज़) है
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, रद्दल मोहतार, जी.1 स.409*
     तशबिक यानि एक हाथ की उंगलिया दूसरे हाथ की उंगलियो में डालना।
     हुज़ूर ने फ़रमाया, जो मस्जिद के इरादे से निकले तो तशबिक यानी एक हाथ की उंगलिया दूसरे हाथ की उंगलियो में न डाले बेशक वो नमाज़ के हुक्म में है।
*✍🏽मस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, जी.6 स.320*
     नमाज़ के लिये जाते वक़्त और नमाज़ के इंतज़ार में भी ये दोनों चीज़े मकरुहे तहरीमि है।

*_कमर पर हाथ रखना_*
     कमर पर हाथ रखना नमाज़ के इलावा भी बिला उज़्र कमर पर (यानि दोनों पहलुओ के वस्त में) हाथ नहीं रखना चाहिए।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, रद्दल मोहतार, जी.2 स.494*
     अल्लाह के महबूब ﷺ फरमाते है : कमर पर हाथ रखना जहन्नमियो की राहत है।
*✍🏽अलसुनन अलकबीर, जी.2 स.408 हदिष:3566*
     यानी ये यहूदियो का फेल है कि वो जहन्नमी है वरना जहन्नमियो के लिये जहन्नम में क्या राहत है !
*✍🏽हाशिया बहारे शरीअत, जी.3 स.115*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.192*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #80
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يٙا مُـنْتٙقِمُ*
दुश्मन को दोस्त बनाने के लिए तिन जुमुआ तक इस को कसरत से पढ़िये।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
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Monday 23 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #133
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧③_*
     ऐ  ईमान वालों (1)
तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए जैसे अगलों पर फ़र्ज़ हुए थे कि कहीं तुम्हें परहेज़गारी मिले (2)

*तफ़सीर*
     (1) इस आयत में रोज़े फ़र्ज़ होने का बयान है. रोज़ा शरीअत में इसका नाम है कि मुसलमान, चाहे मर्द हो या शारीरिक नापाकी से आज़ाद औरत, सुबह सादिक़ से सूरज डूबने तक इबादत की नियत से खाना पीना और सहवास से दूर रहे. (आलमगीरी).
     रमज़ान के रोज़े दस शव्वाल सन दो हिजरी को फ़र्ज़ किये गये (दुर्रे मुख़्तार व ख़ाज़िन).
     इस आयत से साबित होता है कि रोज़े पुरानी इबादत हैं. आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से सारी शरीअतों में फ़र्ज़ होते चले आए, अगरचे दिन और संस्कार अलग थे, मगर अस्ल रोज़े सब उम्मतों पर लाज़िम रहे.
     (2) और तुम गुनाहों से बचो, क्योंकि यह कसरे-नफ़्स का कारण और तक़वा करने वालों का तरीक़ा है.
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*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #16
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*​जंगे खन्दक*​ #01
     सि.5 हि. की तमाम लड़ाइयो में ये जंग सब से ज़्यादा मशहूर और फैसला कुन जंग है चुकी दुश्मनो से हिफाज़त के लिये शहरे मदीना के गिर्द खन्दक खोदी गई थी इस लिये ये लड़ाई "जंगे खन्दक" कहलाती है और चुकी तमाम कुफ़्फ़ारे अरब ने मुत्तहिद हो कर इस्लाम के खिलाफ ये जंग की थी इस लिये इस लड़ाई का दूसरा नाम "जंगे अहज़ाब" (तमाम जमाअतो की मुत्तहिदा जंग) है, क़ुरआन में इस लड़ाई का तज़किरए इसी नाम के साथ आया है।

*_जंगे खन्दक का सबब_*
     गुज़श्ता अवराक़ में हम ये लिख चुके है की "क़बिलए बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से निकाल दिये गए तो उन में से यहूदियो के चन्द रुअसा "खैबर" में जा कर आबाद हो गए और खैबर के यहूदियो ने उन लोगो का इतना ऐज़ाज़ों इकराम किया की सलाम बिन मशकम व इब्ने अबिल हुकैक व हुयय बिन अख्तब व किनाना बिन अर्रबिअ को अपना सरदार मान लिया ये लोग चुकी मुसलमानो के खिलाफ गैज़ो गज़ब में भरे हुए थे और इन्तिक़ाम की आग इन के सिनो में दहक रही थी इस लिये इन लोगो ने मदीने पर एक ज़बर दस्त हमले की स्किम बनाई।
     चुनांचे ये तीनो इस मक़सद के पेशे नज़र मक्का गए और कुफ़्फ़ारे कुरैश से मिल कर ये कहा की अगर तुम लोग हमारा साथ दो तो हम लोग मुसलमानो को सफहाए हस्ती से नेस्तो नाबूद कर सकते है। कुफ़्फ़ारे कुरैश तो इस के भूके ही थे फौरन ही उन लोगो ने यहूदियो की हा में हा मिला दी। कुफ़्फ़ारे कुरैश से साज़ बज़ कर लेने के बाद इन तीनो यहूदियो ने "क़बिलए बनू गफतन" का रुख किया और खैबर की आधी आमदनी देने का लालच दे कर उन लोगो को भी मुसलमानो के खिलाफ जंग के लिये आमादा कर लिया।
     फिर बनू गफतन ने अपने हलफ "बनू असद" को भी जंग के लिये तैयार कर लिया। इधर यहूदियो ने भी अपने हलफ "क़बिकाए बनू असअद" को भी अपना हमनवा बना लिया और कुफ़्फ़ारे कुरैश ने अपनी रिश्तेदारियों की बिना पर "क़बिलए बनू सुलैम" को भी अपने साथ मिला लिया।
     गर्ज़ इस तरह तमाम क़बाइले अरब के कुफ़्फ़ार ने मिलजुल कर एक लश्करे ज़र्रार तैयार कर लिया जिस की तादाद 10,000 थी और अबू सुफ़यान इस पुरे लश्कर का सिपह सालार बन गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 323*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरीमि* #02
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*_तबई हाजत की शिद्दत_*
     पेशाब, पाखाना या रीह की शिद्दत होना।
     अगर नमाज़ शुरू करने से पहले ही शिद्दत हो तो वक़्त में वुसअत होने की सूरत में नमाज़ शुरू करना ही गुनाह है।
     हा अगर ऐसा है कि फरागत और वुज़ू के बाद नमाज़ का वक़्त खत्म हो जाएगा तो नमाज़ पढ़ लीजिये।
     और अगर दौराने नमाज़ में ये हालत पैदा हुई तो अगर वक़्त में गुंजाइश हो तो नमाज़ तोड़ देना वाजिब है अगर इसी तरह पढ़ ली तो गुनाहगार होंगे।
*✍🏽रद्दल मोहतार, जी.2 स.492*

*_नमाज़ में कंकरिया हटाना_*
     दौराने नमाज़ कंकरिया हटाना मकरुहे तहरीमि है।
     हज़रते जाबिर फरमाते है, मेने दौराने नमाज़ कंकरी छूने से मुतअल्लिक़ बारगाहे रिसालत में सुवाल किया, इरशाद हुवा : एक बार। और अगर तू इस से बचे तो सियाह आँख वाली 100 ऊंटनीयो से बेहतर है।
     हा अगर सुन्नत के मुताबिक़ सज्दा अदा न हो सकता हो तो एक बार हटाने की इजाज़त है और अगर बिगैर हटाए वाजिब अदा न होता हो तो हटाना वाजिब है चाहे एक बार से ज़्यादा की हाजत पड़े।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स. 190*
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*يٙا تٙوّٙابُ*
जो कोई चाश्त की नमाज़ के बाद 360 बार इस को पढ़ेगा अल्लाह उसको तौबतुन्नसुह नसीब फ़रमाएगा ان شاء الله

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 257*
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Sunday 22 January 2017

*शाने खातुने जन्नत* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इबादत हो तो ऐसी..._*
     हज़रते इमामे हसनرضي الله تعالي عنه फरमाते है को मेने अपनी वालिदा फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها को देखा की रात को नमाज़ पढ़ती रहती यहाँ तक की नमाज़े फज्र का वक़्त हो जाता, मेने आप को मुसलमान मर्दों और औरतो के लिये बहुत ज़्यादा दुआए करते सुना, आप अपनी ज़ात के लिये कोई दुआ न करती। मेने अर्ज़ की : प्यारी अम्मी जान क्या वजह है की आपرضي الله تعالي عنها अपने लिये कोई दुआ नही करती, फ़रमाया : पहले पड़ोस है फिर घर।

     इस वाक़ये में उन इस्लामी बहनो के लिये कई नसीहत के मदनी फूल है जो नवाफ़िल तो दर कनार फराइज़ से भी गफलत बरतती है। दो जहां के ताजदार की साहिबज़ादी खातुन जन्नतرضي الله تعالي عنها ने तो राते इबादतें इलाही में गुज़ारी मगर इन की, मगर इनकी राते गफलत में गुज़रती है, कभी गुनाहो भरे चेनल्ज़ के सामने फिल्मो ड्रामे देखते, कभी कभी शादी के मौके पर खूब ढोल पीटने, बाजे बजाते और डांस करते गुज़रती है। बे हयाई को आर समझती है न बे पर्दगी से खार खाती है। हालांकि फातिमा का पर्दे का इस क़दर मदनी ज़ेहन की जीते जी ही नही बल्कि सफरे आख़िरत पर गामज़न होते वक़्त भी इस के बारे में मुतफक्किर थी और इस की पाबंदी की ताकीद फ़रमाई।

*_बीबी फ़ातेमा के जनाज़े का भी पर्दा_*
     हज़रते अलियुल मुर्तज़ाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم फरमाते है : हज़रते फातिमतुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها ने मौत के वक़्त वसिय्यत फ़रमाई थी की जब में दुन्या से रुखसत हो जाउ तो रात में दफन करना ताकि किसी गैर मर्द की नज़र मेरे जनाज़े पर न पड़े।
*✍🏽मदारिजु नुबूव्वत, 2/624*
*✍🏽शाने खातुन जन्नत, 41*
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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*शाने खातुने जन्नत* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इबादत हो तो ऐसी..._*
     हज़रते इमामे हसनرضي الله تعالي عنه फरमाते है को मेने अपनी वालिदा फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها को देखा की रात को नमाज़ पढ़ती रहती यहाँ तक की नमाज़े फज्र का वक़्त हो जाता, मेने आप को मुसलमान मर्दों और औरतो के लिये बहुत ज़्यादा दुआए करते सुना, आप अपनी ज़ात के लिये कोई दुआ न करती। मेने अर्ज़ की : प्यारी अम्मी जान क्या वजह है की आपرضي الله تعالي عنها अपने लिये कोई दुआ नही करती, फ़रमाया : पहले पड़ोस है फिर घर।

     इस वाक़ये में उन इस्लामी बहनो के लिये कई नसीहत के मदनी फूल है जो नवाफ़िल तो दर कनार फराइज़ से भी गफलत बरतती है। दो जहां के ताजदार की साहिबज़ादी खातुन जन्नतرضي الله تعالي عنها ने तो राते इबादतें इलाही में गुज़ारी मगर इन की, मगर इनकी राते गफलत में गुज़रती है, कभी गुनाहो भरे चेनल्ज़ के सामने फिल्मो ड्रामे देखते, कभी कभी शादी के मौके पर खूब ढोल पीटने, बाजे बजाते और डांस करते गुज़रती है। बे हयाई को आर समझती है न बे पर्दगी से खार खाती है। हालांकि फातिमा का पर्दे का इस क़दर मदनी ज़ेहन की जीते जी ही नही बल्कि सफरे आख़िरत पर गामज़न होते वक़्त भी इस के बारे में मुतफक्किर थी और इस की पाबंदी की ताकीद फ़रमाई।

*_बीबी फ़ातेमा के जनाज़े का भी पर्दा_*
     हज़रते अलियुल मुर्तज़ाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم फरमाते है : हज़रते फातिमतुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها ने मौत के वक़्त वसिय्यत फ़रमाई थी की जब में दुन्या से रुखसत हो जाउ तो रात में दफन करना ताकि किसी गैर मर्द की नज़र मेरे जनाज़े पर न पड़े।
*✍🏽मदारिजु नुबूव्वत, 2/624*
*✍🏽शाने खातुन जन्नत, 41*
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*नमाज़ के मकरुहाते तहरिमा* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_दाढ़ी, बदन या लिबास के साथ खेलना_*
     कपडा समेटना। जैसा कि आज कल बाज़ लोग सज्दे में जाते वक़्त पाजामा वग़ैरा आगे या पीछे से उठा लेते है।
     अगर कपडा बदन से चिपक जाए तो एक हाथ से छुड़ाने में हरज नहीं।

*_कंधो पर चादर लटकाना_*
     कपड़ा लटकाना मसलन सर या कंधे पर इस तरह से चादर या रुमाल वग़ैरा डालना कि दोनों कनारे लटकते हो,
     हा अगर एक कनारा दूसरे कंधे पर डाल दिया और दूसरा लटक रहा है तो हरज नहीं।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.488*
     आज कल बाज़ लोग एक कंधे पर इस तरह रुमाल रखते है की इस का एक सिरा पेट पर लटक रहा होता है और दूसरा पीठ पर। इस तरह नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमि है।
*✍🏽बहारे शरीअत, जी.3 स.165*
     दोनों आस्तीनों में से अगर एक आस्तीन भी आधी कलाई से ज़्यादा चढ़ी हुई हो तो नमाज़ मकरुहे तहरीमि होगी।
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, जी.2 स.490*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, स.190*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #79
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا بَرُّ*
जो शख्स 7 मर्तबा पढ़ कर बच्चे पर दम कर के अल्लाह तआला की सुपुर्दगी में दे दे बालिग़ होने तक ان شاء الله वो बच्चा बालाओं से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 21 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #132
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧ⓞ_*
     तुमपर फ़र्ज़ हुआ कि जब तुम में किसी को मौत आए अगर कुछ माल छोड़े वसीयत करजाए अपने माँ  बाप और क़रीब के रिश्तेदारों के लिए दस्तूर के अनुसार यह वाजिब है परहेज़गारों पर.
*तफ़सीर*
     यानी शरीअत के क़ानून के मुताबिक़ इन्साफ़ करे और एक तिहाई माल से ज़्यादा की वसिय्यत न करे और मुहताजों पर मालदारों को प्राथमिकता न दें. इस्लाम की शुरूआत में यह वसिय्यत फ़र्ज़ थी. जब मीरास यानी विरासत के आदेश उतरे, तब स्थगित की गई. अब ग़ैर वारिस के लिये तिहाई से कम में वसिय्यत करना मुस्तहब है. शर्त यह है कि वारिस मुहताज न हों, या तर्का मिलने पर मुहताज न रहें, वरना तर्का वसिय्यत से अफ़ज़ल है. (तफ़सीरे अहमद)

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧①_*
     तो जो वसीयत को सुन सुनकर बदल दे (11)
उसका गुनाह उन्हीं बदलने वालों पर है (12)
बेशक अल्लाह सुनता जानता है.
*तफ़सीर*
     (11) चाहे वह व्यक्ति हो जिसके नाम kवसिय्यत की गई हो, चाहे वली या सरपरस्त हो, या गवाह. और वह तबदीली वसिय्यत की लिखाई में करे या बँटवारे में या गवाही देने में. अगर वह वसिय्यत शरीअत के दायरे में है तो बदलने वाला गुनहगार होगा.
     (12) और दूसरे, चाहे वह वसिय्यत करने वाला हो या वह जिसके नाम वसिय्यत की गई है, बरी हैं.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*फैज़ाने फ़ारुके आज़म* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*फारुके आज़म के मुबारक अंदाज़* #02
2
*_आप के सोने का मुबारक अंदाज़_*
     हज़रते इमाम ज़ोहरि अलैरहमा से रिवायत है : आपرضي الله تعالي عنه जब लेटते तो एक टांग को दूसरी टांग पर चढ़ा लिया करते थे।
*ज़मीन पर ही आराम फरमाते*
     उमुमन ऐसा होता है की जिसे कोई मनसब मिल जाए अगरचे वो उन मनसब पर मुतमक्कीन होने से पहले सादा ज़िन्दगी गुज़ारता हो लेकिन मनसब मिलने के बाद उस के तौर तऱीके बदल जाते है। हज़रत फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه भी जेसे ही मनसबे खिलाफत पर मुतमक्कीन हुवे उन की हयाते मुबारका में भी काफी तब्दीली आ गई लेकिन ये तब्दीली फ़िक्रे आख़िरत से भरपूर थी। पहले आप आम ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे लेकिन जेसे खिलाफत के बाद ज़मीन पर कुछ बिछाए बगैर ही आराम फरमा हो जाते, दौरान सफर कोई सायबान या खैमा वगेरा साथ न रखते बल्कि कहि पड़ाव करना होता तो कपड़ा दरख्त पर लटका कर या चमड़े का टुकड़ा दरख्त पर डाल कर उसके साए में आराम कर लेते।
     आपرضي الله تعالي عنه का एक मशहूर वाकिया है की रूम का एलची आप رضي الله تعالي عنه के बारे में दरयाफ़्त करता हुवा जब आप के पास पहुचा तो आप ज़मीन पर आराम फरमा रहे थे। वो ये देख कर हैरान व शशदर रह गया की मुसलमानो का अमीर कितने सुकून से ज़मीन पर आराम फरमा है हालांकि इस के रोब और जलाल से कैसरो किसरा कांपते है।

*_आप के काम करने मुबारक अन्दाज़_*
     बसा औक़ात हुक्मरानो में ऐसा भी होता है की हाथ से बहुत ही कम काम करते है अक्सर हुक्म दे कर काम लेने को तरजीह देते है। लेकिन हज़रत उमर फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه की ज़ाते मुबारक में ऐसी कोई आदत न थी। आप दोनों हाथो से बयक वक़्त काम करने में महारत रखते थे।

*_आप के लिबास का मदनी अंदाज़_*
     आपرضي الله تعالي عنه ने कभी शाहाना लिबास को तरजीह न दी, हमेशा सादा लिबास ही पहन। आप सिर्फ एक जुब्बा पहना करते थे और उस में भी जगह जगह पैवन्द लगे हुवे थे, कहि कहि उस में चमड़े का भी पैवन्द लगा होता था। बाज़ औक़ात ऐसा भी देखने में आया की आप की क़मीज़ पर तिन पैवन्द जब की तेहबन्द पर बारह पैवन्द लगे हुवे थे। यहाँ तक की जब आप बैतूल मुक़द्दस तशरीफ़ ले गए तो आप के लिबास पर चौदह पैवन्द लगे हुवे थे।

*_आप की मुस्कुराहट_*
     आपرضي الله تعالي عنه उन हुक्मरानो के सरदार थे जिन पर फ़िक्रे आख़िरत ही ग़ालिब रहती थी, फ़िक्रे आख़िरत के सबब उन्हें कभी कोई ऐसा मौक़ा ही न मिलता था की वो खिल खिला कर हस्ते। अहदे रिसालत में जब बारगाहे रिसालतﷺ में हाज़िर होते तो बसा औक़ात रसूलुल्लाहﷺ के साथ मुस्कराहटों का तबादला हो जाता था। क्यू की इन की ख़ुशी महबूब की ख़ुशी में थी, जब ये देखते की आज महबूब खुश है तो ये भी खुश हो जाते। अलबत्ता आप के अहदे खिलाफत की कोई ऐसी वाज़ेह रिवायत नही मिलती की जिस में आप के हसने का तज़किरा हो, अलबत्ता उल्माए किराम ने इस बात को ज़रूर बयान फ़रमाया है की आपرضي الله تعالي عنه बहुत ही कम हस्ते थे।
*✍🏽फैजाने फारुके आज़म, 66*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #78
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُتَعَالِِى*
मुश्किल तरीन कामो के लिये इस की कसरत बेहद मुफीद है।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
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Friday 20 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #131
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦⑧_*
     ऐ ईमान वालों तुमपर फ़र्ज़ है (4)
कि जो नाहक़ मारे जाएं उनके ख़ून का बदला लो (5)
आज़ाद के बदले आज़ाद, और ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत (6)
तो जिसके लिये उसके भाई की तरफ़ से कुछ माफ़ी हुई (7)
तो भलाई से तक़ाज़ा हो और अच्छी तरह अदा, यह तुम्हारे रब की तरफ़ से तुम्हारा बोझ हल्का करना है और तुम पर रहमत, तो इसके बाद जो ज़्यादती करे उसके लिये दर्दनाक अज़ाब है. (8)

*तफ़सीर*
     (4) यह आयत औस और ख़ज़रज के बारे में नाज़िल हुई. उनमें से एक क़बीला दुसरे से जनसंख्या में, दौलत और बुज़ुर्गी में ज़्यादा था. उसने क़सम खाई थी कि वह अपने ग़ुलाम के बदले दूसरे क़बीले के आज़ाद को, और औरत के बदले मर्द को, और एक के बदले दो को क़त्ल करेगा. जाहिलियत के ज़माने में लोग इसी क़िस्म की बीमारी में फंसे थे. इस्लाम के काल में यह मामला सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में पेश हुआ तो यह आयत उतरी और इन्साफ़ और बराबरी का हुक्म दिया और इसपर वो लोग राज़ी हुए.
     कुरआने करीम में ख़ून का बदला लेने यानी क़िसास का मसअला कई आयतों में बयान हुआ है. इस आयत में क़सास और माफ़ी दोनों के मसअले हैं और अल्लाह तआला के इस एहसान का बयान है कि उसने अपने बन्दों को बदला लेने और माफ़ कर देने की पूरी आज़ादी दी, चाहें बदला लें, चाहें माफ़ कर दें. आयत के शुरू में क़िसास के वाजिब होने का बयान है.
     (5)  इससे जानबूझ कर क़त्ल करने वाले हर क़ातिल पर किसास का वुजूब अर्थात अनिवार्यता साबित होती है. चाहे उसने आज़ाद को क़त्ल किया हो या ग़ुलाम को, मुसलमान को या काफ़िर को, मर्द को या औरत को. क्योंकि “क़तला” जो क़तील का बहुवचन है, वह सबको शामिल है. हाँ जिसको शरई दलील ख़ास करे वह मख़सूस हो जाएगा. (अहकामुल क़ुरआन)
     (6) इस आयत में बताया गया है कि जो क़त्ल करेगा वही क़त्ल किया जाएगा चाहे आज़ाद हो या ग़ुलाम, मर्द हो या औरत. और जाहलों का यह तरीक़ा ज़ल्म है जो उनमें रायज या प्रचलित था कि आज़ादों में लड़ाई होती तो वह एक के बदले दो को क़त्ल करते, ग़ुलामों में होती तो ग़ुलाम के बजाय आज़ाद को मारते. औरतों में होती तो औरत के बदले मर्द का क़त्ल करते थे और केवल क़ातिल के क़त्ल पर चुप न बैठते. इसको मना फ़रमाया गया.
     (7) मानी ये हैं कि जिस क़ातिल को मृतक के वली या वारिस कुछ माफ़ करें और उसके ज़िम्मे माल लाज़िम किया जाए, उस पर मृतक के वारिस तक़ाज़ा करने में नर्मी इख़्तियार करें और क़ातिल ख़ून का मुआविज़ा समझबूझ के माहौल में अदा करे. (तफ़सीरे अहमदी). मृतक के वारिस को इख़्तियार है कि चाहे क़ातिल को बिना कुछ लिये दिये माफ़ करदे या माल पर सुलह करे. अगर वह इस पर राज़ी न हो और ख़ून का बदला ख़ून ही चाहे, तो क़िसास ही फ़र्ज़ रहेगा (जुमल).
     अगर मृतक के तमाम वारिस माफ़ करदें तो क़ातिल पर कुछ लाज़िम नहीं रहता. अगर माल पर सुलह करें तो क़िसास साक़ित (शून्य) हो जाता है और माल वाजिब होता है (तफ़सीरे अहमदी).
     मृतक के वली को क़ातिल का भाई फ़रमाने में इस पर दलालत है कि क़त्ल अगरचे बड़ा गुनाह है मगर इससे ईमान का रिशता नहीं टूटता. इसमें ख़ारजियों का रद है जो बड़े गुनाह करने वाले को काफ़िर कहते है.
     (8) यानी जाहिलियत के तरीक़े के अनुसार, जिसने क़त्ल नहीं किया है उसे क़त्ल करे या दिय्यत क़ुबूल करे और माफ़ करने के बाद क़त्ल करे.
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #04
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*_नमाज़ में कुछ निगलना_*
     मामुलिसा भी खाना या पीना मसलन तिल बगैर चबाए निगल लिया। या क़तरा मुह में गिरा और निगल लिया।
     नमाज़ शुरू करने से पहले ही कोई चीज़ दातो में मौजूद थी उसे निगल लिया तो अगर वो चने के बराबर या इस से ज्यादा थी तो नमाज़ फासिद् हो गई और अगर चने से कम थी तो मकरूह।
     नमाज़ से क़ब्ल कोई मीठी चीज़ खाई थी अब उस के अजज़ा मुह में बाकी नहीं सिर्फ लुआबे दहन में कुछ असर रह गया है उस के निगलने से नमाज़ फासिद् न होगी।
     मुह में शक्कर वगैरा हो की घुल कर हलक मर पहुचती है नमाज़ फासिद् हो गई।
     दातो में खून निकला अगर थूक ग़ालिब है तो निगलने से फासिद् न होगी वरना हो जाएगी। (ग़लबे की लआमत ये है की अगर हलक में मज़ा महसूस हुवा तो नमाज़ फासिद् हो गई, नमाज़ तोड़ने में ज़ायके का एतिबार है और वुज़ू टूटने में रंग का, लिहाज़ा वुज़ू उस वक़्त टूटता है जब थूक सुर्ख हो जाए और अगर थूक ज़र्द है तो वुज़ू बाक़ी है)

*_दौराने नमाज़ किब्ले से इन्हीराफ_*
     बिला उज़्र सीने को सम्ते काबा से 45 दर्जा यानी इस से ज़्यादा फेरना मुफ़्सीदे नमाज़ है, अगर उज़्र से हो तो मुफ्सिद् नहीं।
     मसलन हदस (वुज़ू टूट जाने) का गुमान हुवा और मुह फेरा ही था की गुमान की गलती ज़ाहिर हुई तो अगर मस्जिद से खारिज न हुवा हो नमाज़ फासिद् न होगी।
*✍🏽दुर्रेमुख्तार मअ रद्दलमोहतार, 2/468*

*_नमाज़ में सांप मारना_*
     सांप बिच्छु को मारने से नमाज़ नहीं टूटती जब कि न तिन क़दम चलना पड़े न तीन ज़र्ब की हाजत हो वरना फासिद् हो जाएगी।
     सांप बिच्छु को मारना उस वक़्त मुबाह है जब कि सामने से गुज़रे और इज़ा देने का खौफ हो, अगर तक़लीफ़ पहुचाने का अंदेशा न हो तो मारना मकरूह है।
*✍🏽आलमगिरी, 1/103*
     पै दर पै तीन बाल उखेडे या तीन जुए मारी या एक ही जू को तीन बार मारा नमाज़ जाती रही और अगर पै दर पै न हो तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर मकरूह है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 188*
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*फैज़ाने फ़ारुके आज़म* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*फारुके आज़म के मुबारक अंदाज़* #01
   
*_फारुके आज़म के चलने का मुबारक अंदाज़_*
     हज़रते सीमाक बिन हर्बرضي الله تعالي عنه से रिवायत है : अमीरुल मुअमिनिन फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه कुशादा क़दमो के साथ चला करते थे और चलते हुवे ऐसा लगता गोया आप किसी सुवारी पर सुवार है और दीगर लोग पैदल चल रहे है।

*_आप के खाने का अंदाज़_*
     आपرضي الله تعالي عنه निहायत ही मुत्तक़ी और परहेज़गार थे, क़तई जन्नती होने के बा वुजूद हमेशा फ़िक्रे आख़िरत दामन गिर रहती थी और ये फ़िक्र आप को भूका रहने पर उकसाती रहती थी। आपرضي الله تعالي عنه की खोराक निहायत ही कलिल थी, कभी जव की रोटी के साथ ज़ैतून, कभी दूध, कभी सिरका, कभी सुखाय हुवा गोश्त तनावुल फरमाते, ताज़ा गोश्त बहुत ही कम इस्तिमाल करते थे, कभी दो खाने इकठ्ठे नही खाए। मनसबे खिलाफत पर मुतमक्कीन होने के बाद तो आपرضي الله تعالي عنه ऐसी खुश्क रोटी खाया करते थे की आम लोग उसे खाने से आजिज़ आ जाए। निज खाना कहते हुवे रोटी के किनारो को अलाहिदा करके खाना आप को सख्त ना पसंद था।

*_आप के गुफ्तगू करने का मुबारक अंदाज़_*
     आपرضي الله تعالي عنه के बोलने और बात करने का निहायत ही मुबारक अंदाज़ था, आम मुआमलात में आप की गुफ्तगू का अंदाज़ बहुत नर्म था लेकिन आप के चेहरे की वजाहत और रोब व दबदबे की वजह से उस में शिद्दत महसूस होती। आपرضي الله تعالي عنه की खिलाफत में लोगो को सबसे ज़्यादा हक़ बात कहने का होसला मिला। लेकिन जहा कही शरई मुआमले की खिलाफ वर्जि होती वहा आप सख्ती फरमाते और यक़ीनन ये आप की गैरत इमानी का मुह बोलता सुबूत था। बीसियो वाकियात ऐसे मिलते है की जहां इस्लामी गैरत का मुआमला आता वहा आपرضي الله تعالي عنه फौरन जलाल में आ जाते।

*_आप का बैठने का मुबारक अंदाज़_*
     आपرضي الله تعالي عنه की मुकम्मल सीरत पर नज़र डाली जाए तो ये बात ज़ाहिर होती है की आप बैठते बहुत कम थे, हर वक़्त किसी न किसी काम में मसरूफ़ रहा करते थे, अलबत्ता जब बैठते थे तो चार ज़ानू बेठा करते थे, चुनांचे इमाम ज़ोहरि अलैरहमा से रिवायत है : आपرضي الله تعالي عنه उमुमन चार ज़ानू बेठा करते थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽फैजाने फारुके आज़म, 63*
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नमाज़ में कुछ निगलना_*
     मामुलिसा भी खाना या पीना मसलन तिल बगैर चबाए निगल लिया। या क़तरा मुह में गिरा और निगल लिया।
     नमाज़ शुरू करने से पहले ही कोई चीज़ दातो में मौजूद थी उसे निगल लिया तो अगर वो चने के बराबर या इस से ज्यादा थी तो नमाज़ फासिद् हो गई और अगर चने से कम थी तो मकरूह।
     नमाज़ से क़ब्ल कोई मीठी चीज़ खाई थी अब उस के अजज़ा मुह में बाकी नहीं सिर्फ लुआबे दहन में कुछ असर रह गया है उस के निगलने से नमाज़ फासिद् न होगी।
     मुह में शक्कर वगैरा हो की घुल कर हलक मर पहुचती है नमाज़ फासिद् हो गई।
     दातो में खून निकला अगर थूक ग़ालिब है तो निगलने से फासिद् न होगी वरना हो जाएगी। (ग़लबे की लआमत ये है की अगर हलक में मज़ा महसूस हुवा तो नमाज़ फासिद् हो गई, नमाज़ तोड़ने में ज़ायके का एतिबार है और वुज़ू टूटने में रंग का, लिहाज़ा वुज़ू उस वक़्त टूटता है जब थूक सुर्ख हो जाए और अगर थूक ज़र्द है तो वुज़ू बाक़ी है)

*_दौराने नमाज़ किब्ले से इन्हीराफ_*
     बिला उज़्र सीने को सम्ते काबा से 45 दर्जा यानी इस से ज़्यादा फेरना मुफ़्सीदे नमाज़ है, अगर उज़्र से हो तो मुफ्सिद् नहीं।
     मसलन हदस (वुज़ू टूट जाने) का गुमान हुवा और मुह फेरा ही था की गुमान की गलती ज़ाहिर हुई तो अगर मस्जिद से खारिज न हुवा हो नमाज़ फासिद् न होगी।
*✍🏽दुर्रेमुख्तार मअ रद्दलमोहतार, 2/468*

*_नमाज़ में सांप मारना_*
     सांप बिच्छु को मारने से नमाज़ नहीं टूटती जब कि न तिन क़दम चलना पड़े न तीन ज़र्ब की हाजत हो वरना फासिद् हो जाएगी।
     सांप बिच्छु को मारना उस वक़्त मुबाह है जब कि सामने से गुज़रे और इज़ा देने का खौफ हो, अगर तक़लीफ़ पहुचाने का अंदेशा न हो तो मारना मकरूह है।
*✍🏽आलमगिरी, 1/103*
     पै दर पै तीन बाल उखेडे या तीन जुए मारी या एक ही जू को तीन बार मारा नमाज़ जाती रही और अगर पै दर पै न हो तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर मकरूह है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 188*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #77
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا وَالِى*
जो कोई कोरे प्याले पर लिख कर उस में पानी भर कर घर के दरो दिवार पर डाले तो ان شاء الله वो घर आफतों से महफूज़ रहेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Thursday 19 January 2017

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #06
*_अब जो सय्यिदह पर तोहमत लगाए वो काफ़िर है_*
     उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها पर लगाया जाने वाला इलज़ाम व बोहतान जब क़ुरआनी आयत, फरमाने मुस्तफा और अक़्वाले सहाबा की रु से सरासर झुटा साबित है तो हर मुसलमान पर लाज़िम है की वो हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को इस तोहमत से पाक और हर इलज़ाम से बरी जाने, अब आयते क़ुरआनीया से हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के अफ़िक़ा व तैय्यबा होना वाज़ेह तौर पर साबित है, معاذ الله अब भी अगर कोई आप को पाक साफ़ न जाने तो वो बेशक अपने आप को मोमिन और खादिमे अहले बैत समझता रहे, शरीअत उसे काफ़िर जानती है।

     आला हज़रत अलैरहमा फतावा रज़विय्या में इरशाद फरमाते है : उम्मुल मुअमिनिन सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को बोहतान लगाना क़ुफ़्रे खालिस है।
*फतावा रज़विय्या, 14/245*

     अहले बैते नुबुव्वत से महब्बत का ये मतलब नही की चन्द अफ़राद को छोड़ कर बाक़ी पर लानत तान शुरू कर दो, बल्कि गुलिस्ताने मुस्तफा का हर फूल ख्वाह अज़्वाजे मुतह्हरात हो, या औलादे रसूल या सहाबा सब के सब नेक व मक़बूले बारगाह और हमारे सरो के ताज व लाइके सद एहतिराम है। इन में से किसी एक के बारे में बुरा कहना गुस्ताखी व बे अदबी और जहन्नम में ले जाने वाला अमल है।
     अहले बैत से हक़ीक़ी महब्बत ये है की नबिय्ये पाक के घराने के हर फर्द ख्वाह वो आप की अज़्वाज हो या औलाद सब को महबूब जाना और माना जाए, और इस दरे दौलत के वाबस्तगान यानि सहाबए किराम को मुअज़्ज़म व मुकर्रम कहा और समझा जाए। ये है अहले बैते नुबुव्वत से हक़ीक़ी महब्बत जो की सिर्फ और सिर्फ अहले सुन्नत को नसीब हुई है।

*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 53*
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #03
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*_अमले कसीर की तारीफ़_*
     अमले कसीर नमाज़ को फासिद् कर देता है जब कि न नमाज़ के आमाल से हो न ही इस्लाहे नमाज़ के लिए किया गया हो.
     जिस काम के करने वाले को दूर से देखने से ऐसा लगे कि ये नमाज़ में नही है बल्कि अगर गुमान भी ग़ालिब हो कि नमाज़ में नही तब भी अमले कसीर है.
     और अगर दूर से देखने वाले को शको शुबा है कि नमाज़ में है या नहीं तो अमले क़लिल है और नमाज़ फासिद् न होगी.
*✍🏽दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, 2/464*

*_दौराने नमाज़ लिबास पहनना_*
     दौराने नमाज़ कुरता या पाजामा पहनना या तहबंद बांधना.
*✍🏽रद्दल मोहतार, 2/465*
     दौराने नमाज़ सीत्र खुल जाना और इसी हालत में कोई रुक्न अदा करना या तीन बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार वक़्फ़ा गुज़र जाना.
*✍🏽दुर्रे मुख्तार मअ रद्दल मोहतार, 2/467*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 186,187*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #76
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا بَاطِنُ*
जो किसी को अमानत सोपे या ज़मीन में दफ़्न करे तो *اَلْبَاطِنُ* लिख कर उसे शै के साथ रख दे, ان شاء الله कोई उस में खियानत न कर सकेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
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Wednesday 18 January 2017

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #05
*_वाक़ीआए इफ्क के तनाज़ुर में शाने आइशा ब ज़बाने सहाबा_*
     हुज़ूरﷺ ने जब अमीरुल मुअमिनिन हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه से जब तोहमत के बारे में गुफ्तगू फ़रमाई तो उन्होंने अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाहﷺ ! जब अल्लाह को ये गवारा नही की आप के जिस्म पर मख्खी भी बेठ जाए क्यू की मख्खी नजासतो पर बैठती है तो भला जो औरत ऐसी बुराई की मूर्तक़िब हो खुदा कब और कैसे पसंद फ़रमाएगा की वो आप की ज़ौजिय्यत में रहे।
     हज़रते उष्माने गनीرضي الله تعالي عنه ने बारगाहे रिसालत में अर्स की : या रसूलुल्लाहﷺ ! जब अल्लाह ने आप के साए को ज़मीन पर नही पड़ने दिया की कहि ज़मीन पर नजासत न हो, हक़ तआला जब आप के साए की इतनी हिफाज़त फ़रमाता है तो आप के हरमे मोहतरम को ना शाइस्तगी से क्यू हिफाज़त न फ़रमाएगा।
     हज़रते अलियुल मुर्तज़ाكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم अर्ज़ करते है : या रसूलुल्लाहﷺ ! एक मर्तबा आप की नालैने अक़दस में गेर ताहिर चीज़ लग गई थी तो रब्बे जलील ने हज़रते जिब्राईल को भेज कर आप को खबर दी की अपनी नालैन को उतार दे। इस लिये हज़रते आइशा معاذ الله अगर ऐसी होती तो ज़रूर अल्लाह आप पर वही नाज़िल फरमा देता की आप इनको अपनी ज़ौजिय्यत से निकल दे।
     हज़रते अबू अय्यूब अंसारीرضي الله تعالي عنه ने इस तोहमत की खबर सुनी तो उन्होंने अपनी बीवी से कहा की जो कुछ कहा जा रहा है क्या तुम्हे इल्म नही ? वो फरमाने लगी : अगर आप हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه की जगह होते तो क्या रसूले पाकﷺ की हरमे पाक के साथ ऐसा करते ? हज़रते अबू अय्यूबرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया हरगिज़ नही ! फिर फरमाने लगी : अगर हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की जगह में होती तो कभी रसूलुल्लाहﷺ के साथ ये खयानत न करती, जब की हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها मुझसे बेहतर और हज़रते सफ्वान बिन मुअत्तलرضي الله تعالي عنه तुम से बेहतर है।
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 46*
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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Tuesday 17 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #130
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦⑦_*
     कुछ अस्ल नेकी यह नहीं कि मुंह मश्रिक़ (पूर्व) या मग़रिब (पश्चिम) की तरफ़ करो (1)
हाँ अस्ल नेकी ये कि ईमान लाए अल्लाह और क़यामत और फ़रिश्तों और किताब और पैग़म्बर पर(2)
और अल्लाह की महब्बत में अपना अज़ीज़ माल दे रिश्तेदारों और अनाथों और दरिद्रों और राहगीर और सायलों (याचकों) को और गर्दन छुड़ाने में (3)
और नमाज़ क़ायम रखे और ज़कात दे, और अपना कहा पूरा करने वाले जब अहद करें, और सब्र वाले मुसीबत और सख़्ती में और जिहाद के वक़्त, यही हैं जिन्होंने अपनी बात सच्ची की, और यही परहेज़गार हैं.

*तफ़सीर*
     (1) यह आयत यहूदियों और ईसाइयों के बारे में नाज़िल हुई, क्योंकि यहूदियों ने बैतुल मक़दिस के पू्र्व को और ईसाइयों ने उसके पशिचम को क़िबला बना रखा था और हर पक्ष का ख़्याल था कि सिर्फ़ इस क़िबले ही की तरफ़ मुंह करना काफ़ी है. इस आयत में इसका रद फ़रमाया गया कि बैतुल मक़दिस का क़िबला होना स्थगित हो गया. (मदारिक).
     तफ़सीर करने वालों का एक क़ोल यह भी है कि यह सम्बोधन किताब वालों और ईमान वालों सब को आम है. और मानी ये हैं कि सिर्फ क़िबले की ओर मुंह कर लेना अस्ल नेकी नहीं जब तक अक़िदे दुरूस्त न हों और दिल सच्ची महब्बत के साथ क़िबले के रब की तरफ़ मुतवज्जेह न हो.
     (2) इस आयत में नेकी के छ: तरीक़े इरशाद फ़रमाए – (क) ईमान लाना (ख) माल देना (ग) नमाज़ कायम करना (घ)ज़कात देना (ण) एहद पूरा करना (6) सब्र करना.
     ईमान की तफ़सील यह है कि एक अल्लाह तआला पर ईमान लाए कि वह ज़िन्दा है, क़ायम रखने वाला है, इल्म वाला, हिकमत वाला, सुनने वाला, देखने वाला, देने वाला, क़ुदरत वाला, अज़ल से है, हमेशा के लिये है, एक है, उसका कोई शरीक नहीं. दूसरे क़यामत पर ईमान लाए कि वह सच्चाई है. उसमें बन्दों का हिसाब होगा, कर्मो का बदला दिया जाएगा . अल्लाह के प्रिय-जन शफ़ाअत करेंगा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सआदत-मन्दों या फ़रमाँबरदारों को हौज़े कौसर से जी भर कर पिलाएंगे, सिरात के पुल पर गुज़र होगा और उस रोज़ के सारे अहवाल जो क़ुरआन में आए या सैयदुल अम्बीया सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने बयान फ़रमाए, सब सत्य हैं. तीसरे, फ़रिश्तों पर ईमान लाए कि वो अल्लाह के पैदा किये हुए और फ़रमाँबरदार बन्दे हैं, न मर्द हैं, न औरत, उनकी तादाद अल्लाह ही जानता है . उनमें से चार बहुत नज़दीकी और बुज़ुर्गी वाले हैं, जिब्रईल, मीकाईल, इस्राफ़ील, इज़राईल (अल्लाह की सलामती उन सब पर). चौथे, अल्लाह की किताबों पर ईमान लाना कि जो किताब अल्लाह तआला ने उतारी, सच्ची है. उनमें चार बड़ी किताबें हैं – (1) तौरात हज़रत मूसा पर (2) इंजल हज़रत ईसा पर,(3) ज़ुबूर हज़रत दाऊद पर और (4) क़ुरआन हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व अलैहिम अजमईन पर नाज़िल हुईं. और पचास सहीफ़े हज़रत शीस पर, तीस हज़रत इद्रीस पर, दस हज़रत आदम पर और दस हज़रत ईब्राहीम पर नाज़िल हुए. पाँचवें, सारे नबायों पर ईमान लाना कि वो सब अल्लाह के भेजे हुए हैं और मासूम यानी गुनाहों से पाक हैं. उनकी सही तादाद अल्लाह ही जानता है. उनमें 313 रसूल हैं. “नबिययीन” बहुवचन पुल्लिंग में ज़िक्र फ़रमाना इशारा करता है कि नबी मर्द होते हैं. कोई औरत कभी नबी नहीं हुई जैसा कि “वमा अरसलना मिन क़बलिका इल्ला रिजालन”‎(और हमने नहीं भेजे तुमसे पहले अपने रसूल मगर सिर्फ़ मर्द) सूरए नहल की 43वीं आयत से साबित है. ईमाने मुजमल यह है “आमन्तो बिल्लाहे व बिजमीए मा जाआ बिहिन नबिय्यो” (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) यानी मैं अल्लाह पर ईमान लाया और उन तमाम बातों पर जो नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के पास से लाए. (तफ़सीरे अहमदी)
     (3) ईमान के बाद कर्मो का और इस सिलसिले में माल देने का बयान फ़रमाया. इसके छः उपयोग ज़िक्र किये. गर्दनें छुड़ाने से ग़ुलामों का आज़ाद करना मुराद है. यह सब मुस्तहब तौर पर माल देने का बयान था. इस आयत से मालूम होता है कि सदक़ा देना, तनदुरूस्ती की हालत में ज़्यादा पुण्य रखता है, इसके विपरीत कि मरते वक़्त ज़िन्दगी से निराश होकर दे. हदीस शरीफ़ में है कि रिश्तेदार को सदक़ा देने में दो सवाब हैं, एक सदक़े का, दूसरा ज़रूरतमन्द रिश्तेदार के साथ मेहरबानी का. (नसाई शरीफ़)
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*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #05
_*रईसुल मुनाफ़िक़ीन की नापाक साज़िश*_
     मुनाफ़िक़ीन के सरदार अब्दुलाह बिन उबय्य ने इस वाक़ीए को हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها पर तोहमत लगाने का ज़रिआ बना लिया और खूब खूब इस तोहमत का चर्चा किया यहाँ तक की मदीने में हर तरफ इस इफ्तिरा और तोहमत का चर्चा होने लगा और बाज़ मुसलमान भी इस बद लगाम के दाम में आ गए और इन साहिबान की ज़बान से भी कोई कलिमा बे जा सरज़द हुआ।
     हुज़ूरﷺ को इस सर अंगेज़ तोहमत से बेहद रंज व सदमा पंहुचा और मुख्लिस मुसलमानो को भी इन्तिहाई रंजो गम हुवा। हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها मदीने पहुचते ही सख्त बीमार हो गई, और इन्हें इस तोहमत की बिलकुल खबर ही नही हुई।
     हुज़ूरﷺ ने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की बराअत और पाक दामनी का एलान करना मुनासिब न समझा और वही का इंतज़ार फाने लगे इस दौरान आपﷺ इस मुआमले में अपने मुख्लिस असहाब से मशवरा फरमाते रहे ताकि इन लोगो के खयालात का पता चल सके।

*_बद मज़्हबो के जहन्नमी करतुर_*
     वाक़ीआ सिर्फ इतना ही नही है, इस पर ही उस दौर के मुनाफ़िक़ीन ने उम्मुल मुअमिनिन आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها के पाक साफ़ दामन को दागदाग बनाने की नाकाम साज़िशे कर के नबी ऐ रहमतﷺ को इज़ा पहुचाई और यही काम आज कल के बाज़ बद मज़हब कर रहे है। अल्लाह हमें उन के शर से महफूज़ फरमाए।

     बहर हाल इस साजिश को बे निक़ाब करने वाले और हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की पाकबाज़ी को साबित करने वाले फरामिने इलाहिय्यह और अहादिशे नबवी, इस बयान का हिस्सा है, जो मुख़्तसर वज़ाहत के साथ ज़िक्र किया जाएगा, अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 45*
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*नमाज़ तोड़ने वाली बाते* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     बात करना, किसी को सलाम करना, सलाम का जवाब देना,
     छिक का जवाब देना [नमाज़ में खुद को छिक आए तो खामोश रहे] अगर अलहम्दु लिल्लाह कह लिया तब भी हर्ज़ नही और अगर उस वक़्त हम्द न की तो फारिग हो कर कहे.
     खुश खबरी सुन कर जवाबन अलहम्दु लिल्लाह कहना.
     बुरी खबर [या किसी की मौत की खबर] सुन क्र इन्न-लिल्लाहि-व-इन्न-इलैहि-राजिउन कहना.
     अल्लाह का नाम सुन कर जवाबन जल जलालुहु कहना.
     सरकारे मदीना ﷺ का इसमें गिरामी सुन कर जवाबन दुरुद शरीफ पढ़ना.

*_नमाज़ में रोना_*
     दर्द या मुसीबत की वजह से ये अलफ़ाज़ "आह" "ऊह" "उफ़" "तूफ" निकल गए या आवाज़ से रोने में हर्फ़ पैदा हो गए नमाज़ फासिद् हो गई.
     अगर रोने में सिर्फ आसु निकले आवाज़ व हरुफ़ नही निकले तो हर्ज नही.
*✍🏽आलमगिरी, 1/101*
     अगर नमाज़ में इमाम के पढंने की आवाज़ पर रोने लगा और "अरे" "नअम" "हा" ज़बान से जारी हो गया तो कोई हर्ज़ नही कि ये खुशुअ के बाइस है और अगर इमाम की खुश इल्हानि के सबब ये अलफ़ाज़ कहे तो नमाज़ टूट गई.
*✍🏽दुर्रे मुख्तार, 2/456*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 184-185*
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*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا ظَاهِرُ*
घर की दिवार पर लिख लीजिये ان شاء الله दिवार सलामत रहेगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
*____________________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*____________________________________________*
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Monday 16 January 2017

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आइशा और वाक़ीआए इफ्क_* #04
     उम्मुल मुअमिनिनرضي الله تعالي عنها फरमाती है : में उस रोज़ भी रोती रही मेरे आसु न रुकते थे और न ही मुझे नींद आती थी। आप ने फ़रमाया : मेरे वालीदेन सुब्ह के वक़्त मेरे पास आए हाला की इस तरह में मुसलसल दो रातो और एक दिन रोती रही थी मेरे आसु नही रुकते थे और न ही मुझे नींद अति थी हत्ता की में ने ख़याल किया की मेरा रोना मेरा जिगर फाड़ देगा।
     एक दफा मेरे वालीदेन के  पास बेठे थे और में रो रही थी इसी अस्ना में एक अन्सारिया औरत ने अंदर आने की इजाज़त मांगी मेने उसे इजाज़त दी तो उस ने भी मेरे साथ बेथ कर रोना शुरू कर दिया। हम इसी हालत में बेठे की रसूलुल्लाहﷺ हमारे पास तशरीफ़ लाए, सलाम करने के बाद तशरीफ़ फरमा हुए, हाला की जब से मेरे मुतअल्लिक़ किलो काल होती रही इससे क़ब्ल आप मेरे पास तशरीफ़ नही लाए थे। एक महीना इंतज़ार किया लेकिन मेरे मुआमले के मुतअल्लिक़ आप पर वही नाज़िल नही हुई।
     उम्मुल मुअमिनिनرضي الله تعالي عنها ने फ़रमाया : रसूलुल्लाहﷺ जब तशरीफ़ फरमा हुए तशह्हुद पढ़ा, फिर आपﷺ ने फ़रमाया : ऐ आइशा ! मुझे तुम्हारी तरफ से ऐसी ऐसी बाते पहुची है अगर तुम पाक दामन हो तो अनक़रीब अल्लाह तुम्हे बरी कर देगा और अगर तुम गुनाह में मुल्व्वास हो तो अल्लाह से इस्तिग़फ़ार करो और उसे के हुज़ूर तौबा करो क्यू की जब बन्दा ऐतिराफे जुर्म करने के बाद अल्लाह की तरफ रुजू करता है तो अल्लाह उसी की तौबा क़बूल फरमा लेता है।
     आपرضي الله تعالي عنها फरमाती है : जब आपﷺ ने अपना कलाम पूरा फ़रमाया मेरे आसु रुक गए हत्ता की में एक क़तरा आसु भी महसूस न करती थी।
     मेरा गुमान भी न था की अल्लाह मेरे मुआमले में वही नाज़िल फ़रमाएगा जिस की तिलावत की जाएगी मुझे इस बात की उम्मीद थी की रसूलुल्लाहﷺ नींद की हालत में ख्वाब देखेंगे जिस के ज़रिए अल्लाह मुझे बरी फरमा देगा। अल्लाह की क़सम ! नबियो के सालारﷺ इस मजलिस से अलाहदा न हुए और न ही घर वालो से कोई बाहर निकला था हत्ता की आप पर वही का नुज़ूल होने लगा, वही की सिद्दत से आपﷺ की वही हालत होने लगी जो होती थी हत्ता की सख्त सर्दी के दिन में कलाम की सकालत के बाईस जो आपﷺ पर नाज़िल किया गया, मोतियो की मिस्ल आप से पसीने के क़तरे गिर रहे थे।
     जब आपﷺ से वही की सिद्दत ज़ाइल हुई तो आप हस रहे थे और पहला कलिमा जो आप ने इरशाद फ़रमाया ये था : ऐ आइशा ! अल्लाह ने इस बोहतान से तुझे बरी कर दिया है।

*राईसुल मुनाफ़िक़ीन की नापाक साज़िश* अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 44*
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*गर्द आलूद पेशानी की फ़ज़ीलत*
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*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते वासिला बिन अस्क़अ رضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ का फरमाने पुर सुरूर है :
     तुम में से कोई शख्स जब तक नमाज़ से फारिग न हो जाए अपनी पेशानी की मिटटी को साफ़ न करे क्यू कि जब तक उस की पेशानी पर नमाज़ के सजदे का निशान रहता है फ़रिश्ते उस के लिये दुआए मगफिरत करते रहते है.

     मीठे और प्यारे इस्लिमी भाइयो ! दौरान नमाज़ पेशानी से मिटटी छुड़ाना बेहतर नहीं और मआज़अल्लाह तकब्बुर के तौर पर छुड़ाना गुनाह है. और अगर न छुड़ाने से तकलीफ होती हो या ख़याल बटता हो तो छुड़ाने में हर्ज नही.
     अगर किसी को रियाकारी का खौफ हो तो उसे चाहिये कि नमाज़ के बाद पेशानी से मिटटी साफ़ कर ले.

*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 183-184*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #74
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हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا آخِرُ*
जो किसी जगह जाए और इस इस्मे पाक को पढ़ ले ان شاء الله वहा इज़्ज़त व तौकीर पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 256*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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