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Monday 31 December 2018

क़ुर्बे मुस्तफा ﷺ*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     एक दिन एक शख्स आया तो हुज़ूर ﷺ ने उसे अपने और सिद्दिके अकबर رضي الله عنه के दर्मियान बिठा लिया। इससे सहाबा को तअज्जुब हुवा कि ये कौन ज़ी मर्तबा है!!! जब वो चला गया तो हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया: ये जब मुझ पर दुरुदे पाक पढ़ता है तो यूँ पढ़ता है...

اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى مُحٙمّٙدٍ كٙمٙا تُحِبُّ وٙتٙرْضٰى لٙهُ

*✍🏽اٙلْقٙوْلُ الْبٙدِيْع ١٢٥*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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जुमुआ का बयान* #01

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - जुमुआ न पढ़ने वलों के लिये क्या वईद है ? 

     *जवाब* - सरवरे काइनात ﷺ ने फ़रमाया : लोग जमुआ छोड़ने से बाज आएं वरना आलाह तआला उन के दिलों पर मोहर कर देगा फिर वोह गाफ़िलों में से हो जाएंगे।


     *सुवाल* - यौमे जुमुआ में वोह मुख़्तसर घड़ी कौन सी है जिस में भलाई मांगने वाले मुसलमान को ज़रूर दिया जाता है ? 

     *जवाब* - इस बारे में अकाबिर मुहक़्क़ीक़ीन उलमा और कसीर अइम्मए किराम के नजदीक रजेह और कवी कौल दो हैं : (1) वोह रोजे जुमुआ की आखिरी साअत यानी गुरूबे आफताब से कुछ पहले का वक्त है। (2) जब इमाम मिम्बर पर बैठे उस वक्त से फ़र्जे जुमुआ के सलाम तक। 

     अलबत्ता इमाम के मिम्बर पर आने के बाद से फ़र्जे जुमुआ का सलाम फेरने तक किसी भी किस्म का कलाम मन्अ होने की वजह से दुआ फकत दिल से की जा सकती है। 


      *सुवाल* - दौराने खुतबा खाने पीने या बात चीत करने का क्य हुक्म है ? 

     *जवाब* - खुतबे के दौरान खाना पीना, बात करना, سبحان الله कहना, सलाम का जवाब देना या नेकी की बात बताना हराम है। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 81

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-25, आयत, ②ⓞⓞ*

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

फिर जब अपने हज के काम पूरे कर चुको  (13) तो अल्लाह का ज़िक्र करो जैसे अपने बाप दादा का ज़िक्र करते  थे  (14)  बल्कि उससे ज़्यादा और कोई आदमी यूँ कहता है कि ऐ रब हमारे हमें दुनिया में दे, और आख़िरत में उसका  कुछ हिस्सा नहीं.


*तफ़सीर*

(13) हज के तरीक़े का संक्षिप्त बयान यह है कि हाजी आठ ज़िल्हज की सुबह को मक्कए मुकर्रमा से मिना की तरफ़ रवाना हो. वहाँ अरफ़ा यानी नवीं ज़िल्हज की फ़ज़्र तक ठहरे. उसी रोज़ मिना से अरफ़ात आए. ज़वाल के बाद इमाम दो ख़ुत्बे पढ़े. यहाँ हाजी ज़ोहर और असर की नमाज़ इमाम के साथ ज़ोहर के वक़्त में जमा करके पढ़े. इन दोनों नमाज़ों के बीच ज़ोहर की सुन्नत के सिवा कोई नफ़्ल न पढ़ी जाए. इस जमा के लिये इमाम आज़म ज़रूरी है. अगर इमाम आज़म न हो या गुमराह और बदमज़हब हो तो हर एक नमाज़ अलग अलग अपने अपने वक़्त में पढ़ी जाए. और अरफ़ात में सूर्यास्त तक ठहरे. फिर मुज़्दलिफ़ा की तरफ़ लौटे और जबले क़ज़ह के क़रीब उतरे. मुज़्दलिफ़ा में मग़रिब और इशा की नमाज़ें जमा करके इशा के वक़्त पढ़े और फ़ज्र की नमाज़ ख़ूब अव्वल वक़्त अंधेरे में पढ़े. मुहस्सिर घाटी के सिवा तमाम मुज़्दलिफ़ा और बत्न अरना के सिवा तमाम अरफ़ात ठहरने या वक़ूफ़ की जगह है. जब सुबह ख़ूब रौशन हो तो क़ुरबानी के दिन यानी दस ज़िल्हज को मिना की तरफ़ आए और वादी के बीच से बड़े शैतान को सात बार कंकरियाँ मारे. फिर अगर चाहे क़ुरबानी के दिनों मे से किसी दिन तवाफ़े ज़ियारत करे. फिर मिना आकर तीन रोज़ स्थाई रहे और ग्यारहवीं ज़िल्हज के ज़वाल के बाद तीनों जमरात की रमी करे यानी तीनों शैतानों को कंकरी मारे. उस जमरे से शुरू करे जो मस्जिद के क़रीब है, फिर जो उसके बाद है, फिर जमरए अक़बा, हर एक को सात सात कंकरियाँ  मारे, फिर अगले रोज़ ऐसा ही करे, फिर अगले रोज़ ऐसा ही. फिर मक्कए मुकर्रमा की तरफ़ चला आए. (तफ़सील फ़िक़ह की किताबों में मौजूद है)

(14) जाहिलियत के दिनों में अरब हज के बाद काबे के क़रीब अपने बाप दादा की बड़ाई बयान करते थे. इस्लाम में बताया गया कि यह शोहरत और दिखावे की बेकार बातें हैं. इसकी जगह पूरे ज़ौक़ शौक़ और एकग्रता से अल्लाह का ज़िक्र करो. इस आयत से बलन्द आवाज़ में ज़िक्र और सामूहिक ज़िक्र साबित होता है.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तक़दीर का बयान* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तकदीर की कितनी किस्में हैं क्या तक़दीर बदल भी जाती है ? 

     *जवाब* - तीन किस्में हैं : (1) मुब्रमे हक़ीक़ी (2) मुअल्लके महज़ (3) मुअल्लके शबीह बिह मुब्रम।

     पहली किस्म यानी मुब्रमे हक़ीक़ी वोह होती है जो इल्मे इलाही में किसी शै पर मुअल्लक नहीं। 

     दूसरी किस्म यानी मुअल्ल्के महज़ वोह होती है जिस का मलाइका के सहीफ़ों में किसी शै पर मुअल्लक होना ज़ाहिर फ़रमा दिया गया हो। 

     तीसरी किस्म यानी मुअल्लके शबीह बिह मुब्रम वोह होती है जिस का मलाइका के सहीफों में मुअल्लक होना जाहिर न फरमाया गया हो मगर इल्मे इलाही में किसी शै पर मुअल्लक हो। 


    तक़दीर की पहली किस्म मुब्रमे हक़ीक़ी को बदलना ना मुमकिन हैं। अल्लाह तआला के महबूब बन्दे अकाबिरीन भी इत्तिफ़ाकन इस में कुछ अर्ज करते हैं तो उन्हें इस ख़याल से रोक दिया जाता है जब कौमे लूत पर फ़िरिश्ते अज़ाब लेकर आए थे तो सय्यदुन इब्राहीम खलीलुल्लाह ने उन काफिरों के बारे में इतनी कोशिश की, कि अपने रब से झगड़ने लगे। अलाह तआला ने कुरआने करीम में येह बात इरशाद फ़रमाई कि "हम से झगड़ने लगा कौमे लूत के बारे में।"

     और दूसरी किस्म ज़ाहिर क़ज़ाए मुअल्लक़ है, इस तक अक्सर औलिया की रसाई होती है, उन की दुआ से उन की हिम्मत से टल जाती है।

     और तीसरी किस्म मुअल्लक़ शबीह बिह मूब्रम : मुतवस्सीत हालत में है, उस तक ख्वास अकाबिर की रसाई होती है। हुज़ीर गौषे आज़म इसी को फरमाते है : में क़ज़ाए मूब्रम को रद कर देता हूँ और इसी की निस्बत हदीस में इरशाद हुवा : बेशक दुआ क़ज़ाए मूब्रम को टाल देती है।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलात

नमाज़े जनाज़ा का तरीका* #04

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द_*

     हज़रते मालिक बिन अनसرضي الله تعالي عنه को बादे वफ़ात किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक किया ? कहा : एक कलिमे की वजह से बख्श दिया जो हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنه जनाज़े को देख कर कहा करते थे।

سُبْحٰنَ الْحَيِّ الَّذِيْ لَايَمُوْت

सुब्हान-ल हय्यिल-लज़ी ला-यमुत

_तर्जमा_

वो ज़ात पाक है जो ज़िन्दा है उसे कभी मौत नही आएगी।

     लिहाज़ा में भी जनाज़ा देख कर यही कहा करता था ये कलिमा कहने के सबब अल्लाह ने मुझे बख्श दिया।

*✍🏼अहयाउल उलूम 5/266*


*हुज़ूरﷺ ने सबसे पहला जनाज़ा किस का पढ़ा ?*

     नमाज़े जनाज़ा की इब्तिदा हज़रते आदम अलैहिस्सलाम के दौर से हुई है, फरिश्तों ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जनाज़ए मुबारक पर 4 तकबीर पढ़ी थी।

     इस्लाम में वुजूबे नमाज़े जनाज़ा का हुक्म मदीना में नाज़िल हुवा। हज़रते असअद बिन ज़ुरराहرضي الله تعالي عنه का विसाले मुबारक हिज़रत के बाद 9वे महीने के आखिर में हुवा और ये पहले सहाबी की मैयित थी जिस पर नबीﷺ ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी।

*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/375*

*✍🏽नमाज़ के अहकाम 272*

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तर्ज़मए कंज़ुल ईमान* 👆🏽

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ऑडियो

पारह - 8, सूरए अना'म

रुकू - 4

आयत 141-144


Kanzul Imaan Hindi PDF 👇🏼is link se lod kare...

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नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले अवराद* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हर नमाज़ के बाद पेशानी के अगले हिस्से पर हाथ रख कर पढ़े :

بِسْمِ اَللّٰهِ الَّذِىْ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحْيْمُ، اَللّٰهُمَّ اذْهِبْ عَنِّى الْهَمَّ وَالْحُزْنَ

*तर्जुमह :* अल्लाह के नाम से शुरू जिसके सिवा कोई मअबूद नही वो रहमान व रहीम है। ऐ अल्लाह मुझ से गम व मलालत दूर फरमा।

     (पड़ने के बाद हाथ खीच कर पेशानी तक लाए) तो हर गम व परेशानी से बचे। आला हज़रत ने इस दुआ के आखिर में मज़ीद इन अलफ़ाज़ का इज़ाफ़ा फ़रमाया है, وَعَنْ اَهْلِ السَّبَّة यानी और अहले सुन्नत से।


     असर व फज्र के बाद बगैर पाउ बदले, बगैर कलाम किये

لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرِيْكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الَحَمْدُ بِيَدِهِ الْخَيْرُ يُحْيِىْ وَيُمِيْتَ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ

*तर्जुमह :* अल्लाह के सिवा कोई मअबूद नही, वो तन्हा है, उसका कोई शरीक नही, उसके लिये मुल्क व हम्द है, उसी के हाथ में खैर है, वो ज़िन्दा करता है और मौत देता है और वो हर शै पर क़ादिर है।

10 बार पढ़िये

*✍🏽बहारे शरीअत, 3/107*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 159*

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आज का चाँद* -​ 23

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*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*उर्स*

हज़रत जलालुद्दीन क़ादरी (बुरहानपुर)

हज़रत माई सरोवर माँ (अमरेली)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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Sunday 30 December 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #352

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*नौ मुस्लिमों का फ़िरऔन को जवाब*

     फिरऔन की धमकी को उन्होंने दो टूक अल्फ़ाज़ में रदद् कर दिया और इसका उन पर कोई असर न हुआ उन्हें कामिल यक़ीन और मुक़म्मल बसीरत हासिल हो चुकी थी कि मूसा अलैहिस्सलाम सचे नबी हैं उन्होंने फिरऔन को कहा कि तुम्हारे फैसले का ताल्लुक दुनिया की जिन्दगी से है जो फ़ानी है और हमारा मतलूब उखरवी ज़िंदगी की सआदत हासिल करना है जो हमेशा के लिये बाकी है। और अक़्ल का तक़ाज़ा है कि इन फ़ानी नुक़सानात को बर्दाश्त कर लिया जाये जो बाकी रहने वाली सआदत तक पहुंचने का जरिया नहीं।

     उन्होंने फिरऔन की धमकियों का जवाब देते हुए कहा कि हम मरऊब होने वाले डरने वाले नहीं क्योंकि हम तो अपने रब की तरफ फिरने वाले यानी उन पर ईमान लाने वाले है। ए बे अक़्ल खुदाई के दावेदार तू किस चीज़ को बुरा समझ रहा है? हमारे पास अल्लाह की निशानियां आ गई, हम उनको देख कर ईमान लाये ब्ज़ यही चीज़ तुम्हे नापसन्द आइ।

     फिर उन्होंने रब से दुआ की की ए अल्लाह! अगरचे तूने हमें सीधी राह पर क़ायम कर दिया और फ़िरऔन की धमकियों के मुक़ाबिल सब्र अता कर दिया है। लेकिन यह नेअमत हमारे पास क़ायम उसी वक़्त रह सकती है जब तेरा फ़ज़्ल हमे शामिले हाल रहे।

     हज़रत इब्ने अब्बास से मरवी है कि फ़िरऔन ने अपनी धमकी पर अमल कर दिखाया वो जादूगर जिन्होंने ईमान क़बूल कर लिया था उनके हाथ पांव कटवा दिये और उन्हें शहीद करवा दिया गया।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 296

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क़ज़ा नमाज़े* #02

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - कजा नमाज़ों में ताखीर करने का गुनाह कैसे मुआफ़ होगा ? 

    *जवाब* - कज़ा नमाजों में ताखीर करने का गुनाह तौबा या हज्जे मक्बूल से मुआफ़ हो जाएगा और जो नमाज़ छूट गई है उस की कज़ा ज़रूरी है। 


     *सुवाल* - वोह कौन सा मरीज हैं जिस से नमाज़े फौत हो जाएं तो उस पर कज़ा नहीं ? 

     *जवाब* - ऐसा मरीज़ कि इशारे से भी नमाज़ नहीं पढ़ सकते अगर येह हालत पूरे छे वक्त तक रही तो इस हालत में जो नमाजें फौत हुई उन की कजा वाजिब नहीं। 

     

     *सुवाल* - जिस पर क़ज़ा नमाज़े हों क्या वोह उन्हें छोड़ कर सुनन व नवाफील पढ़ सकता है ? 

     *जवाब* - कज़ा नमाजे नवालि से अहम हैं यानी जिस वक्त नफ्ल पढ़ता है उन्हें छोड़ कर उन के बदले क़जाएं पढ़े कि बरियुज्जिमा हो जाए अलबत्ता तरावीह और बारह रअतें सुन्नते मुअक्कदा न छोड़े।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 73

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*छे लाख दुरुद शरीफ का षवाब*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रत अहमद सावी رحمة الله عليه बाज़ बुज़ुर्गों से नक़्ल करते है: इस दुरुद शरीफ को एक बार पढ़ने से छे लाख दुरुद शरीफ पढ़ने का षवाब हासिल होता है।

اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى سٙيِّدِنٙا مُحٙمّٙدٍ عٙدٙدٙمٙافِىْ عِلْمِاللّٰهِ صٙلٙاةً دٙآىِٔمٙةًم بِدٙوٙامِ مُلْكِاللّٰهِ

*✍🏽اٙفْضٙلُ الصّٙلٙوات عٙلٰى سٙيِّدِالسّادٙات*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

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तक़दीर का बयान* #01

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तक़दीर किसे कहते है ?

     *जवाब* - दुन्या में जो कुछ होता है और बन्दे जो कुछ करते हैं नेकी, बदी वोह सब अल्लाह के इल्मे अजली के मुताबिक होता है। जो कुछ होने वाला है वोह सब अल्लाह के इल्म में है और उस के पास लिखा हुवा है, इसी को तक्दीर कहते हैं। 

     हर भलाई बुराई उस ने अपने इल्मे अज़ली के मुवाफिक मुक़द्दर फ़रमा दी है जैसा होने वाला था और जो जैसा करने वाला था अपने इल्म से जाना और वोही लिख लिया तो येह नहीं कि जैसा उस ने लिख दिया वैसा हम को करना पड़ता है बल्कि जैसा हम करने वाले थे वैसा उस ने लिख दिया। 

     जैद के ज़िम्मे बुराई लिखी इस लिये कि जैद बुराई करने वाला था अगर जैद भलाई करने वाला होता वोह उस के लिये भलाई लिखता तो उस के इल्म या उस के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया। तक़दीर के इन्कार करने बालों को नबी ﷺ ने इस उम्मत का मजूस बताया है। 

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 26

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तर्ज़मए कंज़ुल ईमान* 👆🏽


ऑडियो

पारह - 8, सूरए अना'म

रुकू - 3

आयत 130-140


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नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले अवराद* #01

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     पाचो वक़्त की नमाज़ों के बाद ये अवराद पढ़ लीजिये। हर विर्द के अव्वल आंखिर दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये।

       *आयतुल कुर्सी* एक बार पढ़ने वाला मरते ही दाखिले जन्नत हो।

*✍🏽मिश्कात, 1/197*


 اَللّٰهُمَّ اَعِنِّى عَلٰى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ

*तर्जुमह :* ऐ अल्लाह ! तू अपने ज़िक्र, अपने शुक्र और और अपनी इबादत करने पर मेरी मदद फरमा।

*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 2/123*


اَسْتَغْفِرُ اللّٰهَ الَّذِىْ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْحَىُّ الْقَيُّوْمُ وَاَتُوْبُ اِلَيْهِ

*तर्जुमह :* में अल्लाह से मुआफ़ी मांगता (मांगती) हु जिस के सिवा कोई मअबूद नही वो ज़िन्दा है क़ाइम रखने वाला है और उस की बारगाह में तौबा करता (करती) हु।

      इसे 3-3 बार पढे उसके गुनाह मुआफ़ हो अगर्चे वो मैदाने जिहाद से भागा हुवा हो।

*✍🏽तिर्मिज़ी, 5/336*


तस्बिहे फातिमा :

سُبْحَانَ اللّٰهِ 33 बार

الْحَمْدُ لِلّٰهِ 33 बार

اَللّٰهُ اَكْبَرُ 33 बार

ये 99 हुए, आखिर में

لَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرِيْكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الَحَمْدُ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ

एक बार पढ़ कर 100 का अदद पूरा करले, तो पढ़ने वाले के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर के झाग के बराबर हो।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 158*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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आज का चाँद* -​ 22

*

*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*विलादत*

खलीफए अव्वल हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़

आला हज़रत अशर्फमियां (किछौछा शरीफ)


*उर्स*

ख्वाजा लाल मुहम्मद दरीयाई (बीरपुर शरीफ)

सैयद रहिमुद्दीन शाह (चक्लासी)

सैयद सालार सालेहबावा (कुरजारोड, भरुच)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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तज़किरतुल अम्बिया* #351

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*फ़िरऔन की जादूगरों को धमकी* 

    फ़िरऔन ने कहा तुम इस पर ईमान ले आये हो इससे पहले कि मैं तुम्हें इजाजत देता यह तो बड़ा मक्र है जो तुम सब ने शहर में फैलाया है कि शहर वालों को इससे निकाल दो, तो अब जान जाओंगे क़सम हैं कि मैं तुम्हारे एक तरफ के हाथ और दूसरी तरफ के पांव काटूँगा फिर तुम सबको सुलीं दूंगा। 

     ज़ब फ़िरऔन ने देखा कि जादूगरों ने तमम मखलूक के सामने मुसा अलैहिस्सलाम की नबुव्वत को तस्लीम कर लिया है उसे खौफ हुआ कि तमाम लोग आप पर ईमान न ले आयें उसने दो किस्म के शुबहात डालकर क़ौम को इंमान लाने से मना करने की कोशिश की, एक तो उसने यह कहा कि इन लोगों का ईमान लाना इस वजह से नहीं कि उन्होंने मूसा अलैहिस्सलाम की हक़्क़ानियत को देखा है बल्कि उन्होंने पहले से मूसा अलैहिस्सलाम से साज़ बाज़ कर रखी थी कि हम तुम्हारी नुबूव्वत का करार कर लेंगे और तूम पर ईमान ले आयेंगे। 

     दूसरी बात उसने यह कही कि मूसा अलैहिस्सलाम और जादूगरों का इत्तेफाकी मश्वरा यह है कि तुम्हे तुम्हारे शहरों से बाहर निकाल दें और खुद इस मुल्क पर क़ाबिज़ हो जायें। वतन से लोगों को बहुत ज़यादा मुहब्बत होती है इसलिये वह उन लगों को ईमान से दूर रखने में कामयाब हो गया। अगरचे उसके दोनों शुबहात की कोई हैसियत नहीं थी लेकिन क़ौम भी तो बे समझ ही थी। 


*नौ मुस्लिमों का फ़िरऔन को जवाब* ان شاء الله अगली पोस्ट में...

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 295

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*​DEEN-

Saturday 29 December 2018

*रहमत के सत्तर दरवाज़े*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जो ये दुरुदे पाक पढ़ता है तो उस पर रहमत के 70 दरवाज़े खोल दिये जाते है।

صٙلّٙى اللّٰهُ عٙلٰى مُحٙمّٙدٍ

*✍🏽الْقٙوْلُ الْبٙدِيْع ٢٧٧*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-25, आयत, ①⑨⑧*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

तुम पर कुछ गुनाह नहीं  (7) कि अपने रब का फ़ज़्ल  (कृपा) तलाश करो तो जब अरफ़ात  (के मैदान) से पलटो (8) तो अल्लाह की याद करो  (9) मशअरे हराम के पास  (10) और उसका ज़िक्र  करो जैसे उसने तुम्हें हिदायत फ़रमाई और बेशक इससे पहले तुम बहके हुए थे  (11)


*तफ़सीर*

(7) कुछ मुसलमानों ने ख़याल किया कि हज की राह में जिसने तिजारत की या ऊंट किराए पर चलाए उसका हज ही क्या, इस पर यह आयत उतरी, जब तक व्यापार से हज के अरकान की अदायगी में फ़र्क़ न आए, उस वक़्त तक तिजारत जायज़ है.

(8) अरफ़ात एक स्थान का नाम है जो मौक़फ़ यानी ठहरने की जगह है. ज़हाक का क़ौल है कि हज़रत आदम और हव्वा जुदाई के बाद 9 ज़िल्हज को अरफ़ात के स्थान पर जमा हुए और दोनों में पहचान हुई, इसलिये उस दिन का नाम अरफ़ा यानी पहचान का दिन और जगह का नाम अरफ़ात यानी पहचान की जगह हुआ. एक क़ौल यह है कि चूंकि उस रोज़ बन्दे अपने गुनाहों का ऐतिराफ़ करते हैं इसलिये उस दिन का नाम अरफ़ा है. अरफ़ात में ठहरना फ़र्ज़ है.

(9) तलबियह यानी लब्बैक, तस्बीह, अल्लाह की तारीफ़, तकबीर और दुआ के साथ या मग़रिब व इशा की नमाज़ के साथ.

(10) मशअरे हराम क़ज़ुह पहाड़ है जिसपर इमाम ठहरता है. मुहस्सिर घाटी के सिवा तमाम मुज़्दलिफ़ा ठहरने की जगह है. उसमें ठहरना वाजिब है. बिला उज़्रर छोड़ने से जुर्माने की क़ुरबानी यानी दस लाज़िम आता है. और मशअरे हराम के पास ठहरना अफ़ज़ल है.

(11) ज़िक्र और इबादत का तरीक़ा कुछ न जानते थे.

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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मलाइका का बयान* #02

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या फ़िरिश्ते देखने में आते हैं ? 

     *जवाब* - हमें तो नज़र नहीं आते मगर जिन्हें अल्लाह चाहता है वोह फरिश्तों को देखते है। अम्बिया उन्हें देखते है, उन से कलाम होता है। क़ब्रो में मुर्दे भी फरिश्तों को देखते है और भी जिसे अल्लाह चाहे, देख सकता है।


     *सुवाल* - हर आदमी के साथ एक ही फरिश्ता उम्र भर उसके अमल लिखा करता है या कई फ़रिश्ते लिखते है ?

     *जवाब* - नेकी और बदी के लिखने वाले अलाहिदा अलाहिदा है और रात के अलाहिदा और ढ़ी  के अलाहिदा है। नामए आमाल लिखने वाले फरिश्तों को किरामन कातिबिन कहते है।


     *सुवाल* - कुल कितने फ़रिश्ते है ?

     *जवाब* - बहुत है हमे इनकी तादाद मालूम नहीं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 25

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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नमाज़े जनाज़ा का तरीका* #02

*

بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

*_जनाज़े का साथ देने का सवाब_*

     हज़रते दावूद अलैहिस्सलाम ने बारगाहे खुदा वन्दी में अर्ज़ की : या अल्लाह ! जिसने महज़ तेरी रिज़ा के लिये जनाज़े का साथ दिया, उसकी जज़ा क्या है ?

अल्लाह ने फ़रमाया : जिस दिन वो मरेगा तो फ़रिश्ते उसके जनाज़े के हमराह चलेंगे और में उसकी मग़फ़िरत करूँगा।

*✍🏽शुरहु स्सुदुर 97*


*_उहुद पहाड़ जितना सवाब_*

     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स (ईमान का तक़ाज़ा समझ कर और हुसूले सवाब की निय्यत से) अपने घर से जनाज़े के साथ चले, नमाज़े जनाज़ा पढ़े ओर दफ़्न होने तक जनाज़े के साथ रहे उसके लिये दो क़ीरात सवाब है जिस में से हर क़ीरात उहुद पहाड़ के बराबर है।

     और जो शख्स सिर्फ जनाज़े की नमाज़ पढ़ कर वापस आ जाए उसके लिये एक क़ीरात सवाब है।

*✍🏽मुस्लिम 472*

*✍🏽नमाज़ के अहकाम 270*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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तर्ज़मए कंज़ुल ईमान* 👆🏽

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पारह - 8, सूरए अना'म

रुकू - 2

आयत 122-129


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जादू और बलाओं से हिफाज़त के लिये शश कुफ़्ल

**

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     इन 6 दुआओं को "शश कुफ़्ल" कहते है। जो शख्स रात को हमेशा इसे पढ़ता रहे या लिख कर अपने पास रखे वो हर खौफ व खतरे से और जादू से और हर किस्म की बलाओं से महफूज़ रहेगा ان شاء الله.

*कुफ़्ले अव्वल*

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ السَّمِيْعِ الْبَصِيْرِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهٖ شَىْءٌوَّهُوَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ


*कुफ़्ले दुवम

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ الجَلَّاقِ الْعَلِيْمِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَّهُوَ الْفَتَّاحُ الْعَلِيْمُ


*कुफ़्ले सिवुम*

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ السَّمِيْعِ الْبَصِيْرِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَّهُوَ الْعَلِيْمُ الْبَصِيِرُ


*कुफ़्ले चहारूम*

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ السَّمِيْعِ الْبَصِيْرِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَّهُوَ الْغَنِىُّ الْقَدِيْرُ


*कुफ़्ले अव्वल*

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ السَّمِيْعِ الْبَصِيْرِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَّهُوَ الْعَزِيْزُ الْغَفُوْرُ


*कुफ़्ले शुशम*

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ بِسْمِ اللّٰهِ السَّمِيْعِ الْبَصِيْرِ الَّذِىْ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَّهُوَ الْعَزِيْزُ الْغَفُوْرُ الْحَكِيْمُ فَاللّٰهُ جَيْرٌ حَافِظًا وَّهُوَ ارْحَمُ الرَّاحِمِيْنَ

*✍️मदनी पंजसुरह* 157

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आज का चाँद* -​ 21

*

*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*संदल*

हज़रत सैयद हसनशाह क़ादरी उर्फ़ बयूबावा (गुलबर्गा, कर्नाटक)

हज़रत पीर जोरावर शहीद (बड़ोदा)

हज़रत पीर बुज़ुर्गदान (सिन्धीवाड़, जमालपुर)


*उर्स*

हज़रत शैख़ करीमुल्लाह शाह क़ादरी चिश्ती (चटगुप्पा)

हज़रत पीर जोरावर शाह (रणासर)

सैयद फैयाज़ुद्दीन गांडेबावा व सैयद फैज़ुर्रसूल हाजी पीर बापजी (कल्लाशरीफ, करजन)

हज़रत इब्राहिम पीर (जेतलसर, नानी परबड़ी, धोराजी)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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Friday 28 December 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #

350

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम और जादूगरों का मुक़ाबला* #03

     जादूगरों को मालूम हो गया कि मूसा अलैहिस्सलाम का मोजिज़ा जादू की हद से ख़ारिज है उन्हें यकीन हो गया कि यह अल्लाह तआला की तरफ से अता करदा मोजिजात से है इंसानी बनावट से इसका कोई ताल्लुक नहीं। अगर वे अपने जादू के इल्म में कामिल दर्जा न रखते होते तो वह मौजिज़ा और जादू में फर्क न कर पाते, बल्कि कहते कि वह शख्स जादू के इल्म में हमसे ज्यादा है इस लिये हम इससे आजिज़ आ गये हैं। पता चला कि वह जादू के इल्म में आला दर्जा रखते थे इसी कामिल इल्म की वजह से वह कुफ्र से ईमान की तरफ मुन्तकील हुए। 

     जब जादूगरों पर मूसा अलैहेरसलाम के मौजिजों की हकीकत खुल गई तो वह अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने के लिये बेइख्तयार सजदा में गिर गये, कि अल्लाह तआला ने हमें तौफीक अता की है कि हमें पता चल गया कि यह मौजिज़ा है जादू नहीं फिर उन्होंने कहा रब्बुल आलमीन पर हमारा ईमान हैं। 

     

*फ़िरऔन की जादूगरों को धमकी* ان شاء الله अगली पोस्ट में।

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 294

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*तमाम गुनाह मुआफ़

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स ये दुरुदे पाक पढ़े, अगर खड़ा था तो बैठने से पहले और बैठा था तो खड़े होने से पहले उसके गुनाह मुआफ़ कर दिये जाएंगे।

اٙللّٰهُمّٙ صٙلِّ عٙلٰى سٙيِّدِنٙا وٙمٙوْلٙانٙا مُحٙمّٙدٍ وّٙعٙلٰى اٰلِهِ وٙسٙلِّمْ

*✍🏽اٙيضاًص ٦٥*


*हर रात इबादत में गुज़ारने का आसान नुस्खा*

     गराइबुल क़ुरआन पर एक रीवायत नक़्ल की गई है कि जो शख्स रात में इसे 3 मर्तबा पढ़ लेगा तो गोया उसने शबे क़द्र पा लिया।

لٙآاِلٰهٙ اِلّٙااللّٰهُ الْحٙلِيْمُ الْكٙرِيْمٙ، سُبٙحٰنٙ اللّٰهِ رٙبِّ السّٙمٰوٰتِ السّٙبْعِ وٙرٙبِّ الْعٙرْشِ الْعٙظِيْم

*तर्जमा* : खुदाए हलीम व करीम के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। अल्लाह पाक है जो सातों आसमानों और अर्शे अज़ीम का परवर दगार है।

*✍🏽फ़ैज़ाने सुन्नत*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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तरावीह का बयान* #04

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या तरावीह बैठ कर पढ़ सकते हैं ? 

     *जवाब* - जी नहीं ! तरावीह बिला उज्र बैठ कर पढ़ना मकरूह (तन्जीही) हैं, बल्कि बाज फुकुहाए किराम के नजदीक तो (बिला उज्रे बैठ कर) तरावीह होती ही नहीं।


     *सुवाल* - ईशा के फ़र्ज़ों से पहले तरावीह अदा करली तो हो जाएगी ?

     *जवाब* - तरावीह का वक़्त ईशा के फ़र्ज़ पढ़ने के बाद से सुबह सादिक़ तक है। अगर ईशा के फ़र्ज़ अदा करने से पहले पढ़ ली तो न होगी।


     *सुवाल* - क्या नमाज़े वित्र पढ़ने के बाद तरावीह पढ़ी जा सकती है ?

     *जवाब* - आम तौर पर तरावीह वित्र से पहले पढ़ी जाती है लेकिन अगर कोई वित्र पहले पढ़ ले तो तरावीह बाद में भी पढ़ सकता है।

*✍️दिलचस्प मालूमात* 71

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मलाइका का बयान* #01

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - फ़िरिश्ते किसे कहते हैं ? 

     *जवाब* - फ़िरिश्ते अल्लाह के ईमानदार और इज्जत वाले बन्दे हैं जो उस की ना फ़रमान कभी नहीं करते हैं, हर किस्म के गुनाह से मासूम हैं। उन के जिस्म नूरानी हैं, वोह न कुछ खाते हैं, न पीते हैं, हर वक्त अल्लाह की इबादत में मसरूफ़ हैं। अल्लाह ने उन्हें येह कुदरत यानी ताकत दी है कि वोह जो शक्ल चाहें इख्तियार करें। 


     *सुवाल* - फ़िरिश्तों के जिम्मे क्या क्या काम हैं ? 

     *जवाब* - वोह जुदागाना कामो पर मुक़र्रर हैं। बाज़ जन्नत पर, बाज़ दोज़ख पर, बाज़ आदमियों के अमल लिखने पर, बाज़ रोज़ि पहुंचाने पर, बाज़ पानी बरसाने पर, बाज़ मां के पेट में बच्चे की सूरत बनाने पर, बाज़ आदमियों की हिफाज़त पर, बाज़ रूह कब्ज़ करने पर, बाज़ कब्र में सुवाल करने पर, बाज़ अज़ाब पर, बाज़ रसूल के दरबार में मुसलमानों के दुरूदो सलाम पहुंचाने पर, बाज़ अम्बिया के पास वही लाने पर।


     *सवाल* - मलाइका के पास किस कदर ताकत होती है ? 

     *जवाब* - मलाइका को अल्लाह ने बड़ी कुव्वत अता फ़रमाई है, वोह ऐसे काम कर सकते हैं जिसे लाखों आदनी मिल कर भी नहीं कर सकते।


     *सुवाल* - मश्हूर फ़िरिश्ते कौन कौन से हैं ?

     *जवाब* - तमाम फ़िरिश्तों में से येह चार फ़िरिश्ते बहुत मश्हूर और बड़ी अज़मत रखते हैं : हज़रते जिब्राईल, हज़रते मीकाईल, हज़रते इसराफ़ील, हज़रते इज़राईल।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 24

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ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।

*(हुल्या, जामऊर्-रमुज़, आलमगीरी, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हो। सरापा तमाम आज़ा ए बदन उसी की तरफ मुतवज्जेह होना वाजिब है। अगर किसी ख़ुत्बा सुनने वाले तक खतीब की आवाज़ न पहुचती हो, जब भी उसे चुप रहना और ख़ुत्बा की तरफ तवज्जोह रखना वाजिब है। उसे भी किसी काम में मश्गुल होना हराम है।

*(फत्हुल क़दीर, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़विय्या)*

     ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला "दो जानू" यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे।

*(आलमगीरी, रद्दुल मोहतार, गुन्या, बहारे शरीअत)*

     ख़ुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घूंट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फेर कर देखना भी हराम है।

     ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।

     जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।

     जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

     ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।

*(दुर्रे मुख्तार, फतावा रज़विय्या)*

     जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।

     ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ "चुप" कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है।

     सहाह सित्ता (हदिष की 6 सहीह किताबों) में हज़रते अबू हुरैरा رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم फ़रमाते है कि बरोज़े जुमुआ ख़ुत्ब ऐ इमाम के वक़्त तूँ दूसरे से कहे "चुप" तो तूने लग्व (व्यर्थ काम) किया।

     इसी तरह मुसन्दे अहमद, सुनने अबू दाऊद में हज़रत अली كرم الله وجهه الكريم से है कि हुज़ूर ﷺ फ़रमाते है कि जो जुमुआ के दिन (ख़ुत्बा के वक़्त) अपने साथी से "चुप" कहे उसने लग्व किया और जिसने लग्व किया उसके लिये जुमुआ में कुछ "अज्र" (षवाब) नही।

     ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है "व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला" तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम है।

*✍🏼फतावा रज़विय्या*

*✍🏼मोमिन की नमाज़* 220

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तर्ज़मए कंज़ुल ईमान* 👆🏽

*

ऑडियो

पारह - 8, सूरए अना'म

रुकू - 1

आयत 111-121


Kanzul Imaan Hindi PDF 👇🏼is link se lod kare...

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Kanzul Imaan mp3 👇🏼is link se lod kare...

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दुन्या व आख़िरत में सआदत मंद*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र अल आस رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : पाच आदते ऐसी है कि कोई इन्हें इख़्तियार कर ले तो दुन्या व आख़िरत में सआदत मंद हो जाए।

     1 वक़्तन फ वक़्तन 

لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ مُحَمَّدٌ رَّسُوٍلُ اللّٰهِ कहता रहे।

     2 जब किसी मुसीबत में मुब्तला हो (मसलन बीमार या नुक़सान हो जाए या परेशानी की खबर सुने) तो

 اِنّا لِلّٰهِ وَاِنَّٓ الَيْهِ رَاجِعُوْنَ और 

لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللّٰهِ الْعَلِىْ الْظِيْمِ पढ़े।

     3 जब भी नेमत मिले तो शुक्राने में

 الْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ कहे।

     4 जब किसी जाइज़ काम का आगाज़ करे तो

 بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحْيْمِ पढ़े।

     5 जब गुनाह कर बेठे तो यु कहे

 اَسْتَغْفِرُ اللّٰهَ الْعَظِيْمَ وَاَتُوْبُ اِلَيْهِ

(में अल्लाह से मग्फिरत तलब करते हुए उसकी तरफ तौबा करता हु।)

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 155*

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*आज का चाँद* -​ 20


*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*उर्स*

शाह फ़रीदुद्दीन साबरी (अलीगढ़)

हज़रत हलाल शाह बाबा (धंधुका)

हज़रत हैदरअली शाह (नागपुर)


*संदल*

हज़रत मियां अहमद मखदूम (मच्छीपीर, जमालपुर)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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तज़किरतुल अम्बिया* #349

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम और जादूगरों का मुक़ाबला* #02

     अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को वहीं फ़रमाई कि अपना असा डाल दो वह उनके जादू से बनाए साप को निगल जायेगा जब आपने अपना असा डाला तो वह बहुत बड़ा अज़दहा बन गया उसने अपना मुंह खोला तो उसके मुंह से दर्मियान अस्सी ज़रअ (एक सौ बीस फीट) का फाराला था और उसने उनकी तमाम रस्सियों और लाठियों को निगल लिया, हालांकि वह तीन सौ ऊंटों पर लादकर लाये थे, मूसा अलैहिस्सलाम ने जब उसे पकड़ा तो पहले की तरह असा हो गया। जादूगरों की रस्सियां और लाठियां मादूम हो गई। यानी ऐसे बाकी न रहीं जैसे उनका कोई वजूद नहीं था। 

     बाज़ जादूगरों ने दूसरे जादूगरों को कहा कि यह जादू नहीं हो सकता क्योंके जादू में एक चीज़ की हकीकत नहीं बदलती सिर्फ दूसरे लोगों की आंखों पर असर होता है। अगर यह जादू होता तो हमारी रस्सियों और लाठियों को न निगल लेता। उससे उन्होंने दलील पकड़ी की मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के सच्चे नबी है।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 293

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Thursday 27 December 2018

शबे जुमुआ का दुरुद शरीफ*

*

بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

     बुज़ुर्गो ने फ़रमाया की जो शख्स हर शबे जुमुआ (जुमुआ और जुमेरात की दरमियानी रात, जो आज है) इस दुरुद शरीफ को पाबंदी से कम अज़ कम एक मर्तबा पढेगा तो मौत के वक़्त सरकारे मदीना ﷺ की ज़ियारत करेगा और कब्र में दाखिल होते वक़्त भी, यहाँ तक की वो देखेगा की सरकारे मदीना ﷺ उसे कब्र में अपने रहमत भरे हाथो से उतार रहे है.

بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلّـِمْ وبَارِکْ عَلٰی سَیّـِدِ نَا مُحَمَّدِنِ النَّبِیِّ الْاُمّـِىِّ الْحَبِیْبِ الْعَالِی الْقَدْرِ الْعَظِیْمِ الْجَاھِ  وَعَلٰی  اٰلِهٖ وَصَحْبِهٰ وَسَلّـِم

अल्लाहुम्म-सल्ली-वसल्लिम-व-बारीक-अ'ला-सय्यिदिना-मुहम्मदीन-नबिय्यिल-उम्मिय्यिल-ह्-बिबिल-आ'लिल-क़द्रील-अ'ज़िमील-जाहि-व-अ'ला आलिही व-स्ह्-बिहि व-सल्लिम


*सारे गुनाह मुआफ़*

     हज़रते अनस رضي الله عنه से मरवी है, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जो शख्स जुमुआ के दिन नमाज़े फज्र से पहले 3 बार 

اٙسْتٙغْفِرُ اللّٰهٙ الّٙذِىْ لٙآ اِلٰهٙ اِلّٙا هُوٙوٙاٙتُوْبُ اِلٙيْهِ

पढ़े उस के गुनाह बख्श दिये जाएंगे अगर्चे समुन्दर की झाग से ज़्यादा हो।

*✍🏽अलमुजमुल अवसत लीत्तिब्रनि, 5/392, हदिष:7717*


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तरावीह का बयान* #03

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तन्हा नमाजे तरावीह अदा करना कैसा ? 

     *जवाब* - तरावीह की जमाअत सुन्नते मुअक्कदा अलल किफ़ाया है यानी अगर मस्जिद के सारे लोगों ने छोड़ दी तो सब इसाअत के मुर्तकिब हुवे (यानी बुरा किय) और अगर चन्द अफराद ने बा जमाअत पढ़ ली तो तन्हा पढ़ने वाला जमाअत की फजीलत से महरूम रहा। 


     *सुवाल* - क्या बालिग अफराद नाबालिग इमाम के पीछे तरावीह पढ़ सकते हैं ? 

     *जवाब* - जी नहीं! नाबालिग के पीछे बालिग अफराद की तरावीह (बल्कि कोई भी नमाज) नहीं होगी। 


     *सुवाल* - तरावीह में بسم الله الرحمن الرحيم बुलन्द आवाज़ से पढ़ना चाहिये या आहिस्ता ? 

     *जवाब* - तरावीह में بسم الله الرحمن الرحيم एक बार ऊंची अवाज़ से पढ़ना सुन्नत हैं और हर सूरत की इब्तिदा में आहिस्ता पढ़ना मुस्तहब है। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 70

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सूरतुल बक़रह, रुकुअ-24, आयत, ①⑨⑥*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और हज व उमरा अल्लाह के लिये पूरा करो (19) फिर अगर तुम रोके जाओ (20) तो क़ुरबानी भेजो जो मयस्सर  (उपलब्ध) आए (21) और अपने सर न मुडाओ जब तक क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुंच जाए (22) फिर जो तुममें बीमार हो उसके सर में कुछ तकलीफ़ है  (23) तो बदला दे रोज़े (24) या ख़ैरात (25) या क़ुरबानी, फिर जब तुम इत्मीनान से हो तो जो हज से उमरा मिलाने का फ़ायदा उठाए (26) उस पर क़ुरबानी है जैसी मयस्सर आए (27) फिर जिसकी ताक़त न हो तीन रोज़े हज के दिनों में रखे  (28) और सात जब अपने घर पलट कर जाओ, ये पूरे दस हुए यह हुक्म उसके लिये है जो मक्के का रहने वाला न हो, (29) और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि अल्लाह का अज़ाब सख़्त है.


*तफ़सीर*

(19) और इन दोनों को इनके फ़रायज़ और शर्तों के साथ ख़ास अल्लाह के लिये बे सुस्ती और बिला नुक़सान पूरा करो. हज नाम है इहराम बाँधकर नवीं ज़िलहज को अरफ़ात में ठहरने और काबे के तवाफ़ का. इसके लिये ख़ास वक़्त मुक़र्रर है, जिसमें ये काम किये जाएं तो हज है. हज सन नौ हिजरी में फ़र्ज़ हुआ. इसकी अनिवार्यता निश्चित है. हज के फ़र्ज़ ये हैं : (1) इहराम (2) नौ ज़िल्हज को अरफ़ात के मैदान में ठहरना (3) तवाफ़े ज़ियारत. हज के वाजिबात ये हैं : (1) मुज़्दलिफ़ा में ठहरना, (2) सफ़ा मर्वा के बीच सई, (3) शैतानों को कंकरियाँ मारना. (4) बाहर से आने वाले हाजी के लिये काबे का तवाफ़े रूख़सत और (5) सर मुंडाना या बाल हल्के कराना. उमरा के रूक्न तवाफ़ और सई हैं और इसकी शर्त इहराम और सर मुंडाना है. हज और उतरा के चार तरीक़े हैं. (1) इफ़राद बिलहज : वह यह है कि हज के महीनों में या उनसे पहले मीक़ात से या उससे पहले हज का इहराम बाँध ले और दिलसे उसकी नियत करे चाहे ज़बान से. लब्बैक पढ़ते वक़्त चाहे उसका नाम ले या न ले. (2) इफ़राद बिल उमरा. वह यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीनों में या उनसे पहले उमरे का इहराम बाँधे और दिल से उसका इरादा करे चाहे तलबियह यानी लब्बैक पढ़ते वक़्त ज़बान से उसका ज़िक्र करे या न करे और इसके लिये हज के महीनों में या उससे पहले तवाफ़ करे चाहे उस साल में हज करे न करे मगर हज और उमरे के बीच सही अरकान अदा करे इस तरह कि अपने बाल बच्चों की तरफ़ हलाल होकर वापस हो.

(3) क़िरान यह है कि हज और उमरा दोनो को एक इहराम में जमा करे. वह इहराम मीक़ात से बाँधा हो या उससे पहले, हज के महीनों में या उनसे पहले. शुरू से हज और उमरा दोनों की नियत हो चाहे तलबियह या लब्बैक कहते वक़्त ज़बान से दोनों का ज़िक्र करे या न करे. पहले उमरे के अरकान अदा करे फिर हज के. (4) तमत्तो यह है कि मीक़ात से या उससे पहले हज के महीने में या उससे पहले उमरे का इहराम बाँधे और हज के माह में उतरा करे या अकसर तवाफ़ उसके हज के माह में हो और हलाल होकर हज के लिये इहराम बाँधे और उसी साल हज करे और हज और उमरा के बीच अपनी बीवी के साथ सोहबत न करे. इस आयत से उलमा ने क़िरान साबित किया है.

(20) हज या उमरे से बाद शुरू करने और घर से निकलने और इहराम पहन लेने के, यानी तुम्हें कोई रूकावट हज या उमरे की अदायगी में पेश आए चाहे वह दुश्मन का ख़ौफ़ हो या बीमारी वग़ैरह, ऐसी हालत में तुम इहराम से बाहर आजाओ.

(21) ऊट या गाय बकरी, और यह क़ुरबानी भेजना वाजिब है.

(22) यानी हरम में जहाँ उसके ज़िब्ह का हुक्म है. यह क़ुरबानी हरम के बाहर नहीं हो सकती.

(23) जिससे वह सर मुंडाने के लिये मजबूर हो और सर मुंडाले.

(24) तीन दिन के.

(25) छ मिस्कीनों का खाना, हर मिस्कीन के लिये पौने दो सेर गेहूँ.

(26) यानी तमत्तो करे.

(27) यह क़ुरबानी तमत्तो की है, हज के शुक्र में वाजिब हुई, चाहे तमत्तो करने वाला फ़कीर हो. ईदुज़ जु़हा की क़ुरबानी नहीं, जो फ़क़ीर और मुसाफ़िर पर वाजिब नहीं होती.

(28) यानी पहली शव्वाल से नवीं ज़िल्हज तक इहराम बांधने के बाद इस दरमियान में जब चाहे रखले, चाहे एक साथ या अलग अलग करके. बेहतर यह है कि सात, आठ, नौ ज़िल्हज को रखे.

(29) मक्का के निवासी के लिये न तमत्तो है न क़िरान. और मीक़ात की सीमाओं के अन्दर रहने वाले, मक्का के निवासियों में दाख़िल हैं. मीक़ात पाँच है : जुल जलीफ़ा, ज़ाते इर्क़, जहफ़ा, क़रन, यलमलम. जु़ल हलीफ़ा मदीना निवासियों के लिये, जहफ़ा शाम के लोगों के लिये, क़रन नज्द के निवासियों के लिये, यलमलम यमन वालों के लिये.  (हिन्दुस्तान चूंकि यमन की तरफ़ से पड़ता है इसलिये हमारी मीक़ात भी यलमलम ही है)

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*नमाज़े जनाज़ा का तरीका* #01


بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

*_क़ब्र में पहला तोहफा_*

     हुज़ूरﷺ से किसी ने पूछा मोमिन जब क़ब्र में दाखिल होता है तो उसको सब से पहला तोहफा क्या दिया जाता है ? तो इरशाद फ़रमाया : उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने वालो की मगफिरत कर दी जाती है।

*✍🏽शोएबुल ईमान 7/8*


*_जन्नती का जनाज़ा_*

     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जब कोई जन्नती शख्स फौत हो जाता है, तो अल्लाह हया फ़रमाता है कि उन लोगो को अज़ाब दे जो उस का जनाज़ा ले कर चले और जो इसके पीछे चले और जिन्होंने इसकी नमाज़े जनाज़ा अदा की।

*✍🏽नमाज़ के अहकाम 269-270*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

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गीबत से बचने का मदनी फूल*

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हज़रते अल्लामा मजदुद्दीन फ़िरोज़आबादी अलैरहमा से मन्कुल है : जब किसी मजलिस में (यानी लोगो में) बैठो तो कहो :

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحْيْمِ وَصَلَّى اللّٰهُ عَلٰى مُحَمَّدٍ

तो अल्लाह तुम पर एक फ़रिश्ता मुक़र्रर फरमा देगा जो तुम को गीबत से बाज़ रखेगा।

     और जब मजलिस से उठो तब भी यही कहो तो वो फ़रिश्ता लोगो को तुम्हारी गीबत से बाज़ रखेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 154*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

गर होजाए यक़ीन के.....

*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*आज का चाँद* -​ 19


*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*विसाल*

हज़रत शम्सुद्दीन क़ादरी (रूपाल)

सैयद अजीमुद्दीन चिश्ती (सूरत)


*उर्स*

सैयद दादाबाव क़ादरी (ओलपाड, सूरत)

पीर ताजुद्दीन बदरुद्दीन चिश्ती (अहमदाबाद)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से, 

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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Wednesday 26 December 2018

तरावीह का बयान* #02

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - तरावीह की कितनी रक्अते हैं ? 

     *जवाब* - तरावीह की 20 रकअते हैं। अमीरुल मोमिनीन हज़रते उमर फारूके आज़म رضي الله عنه के अदे मुबारक में 20 रक्अतें ही पढ़ी जाती थीं। 


     *सुवाल* - नमाजे तरावीह का हुक्म बयान करें ? 

     *जवाब* - हर आकिल व बालिग मुसलमान पर तरावीह पढ़ना सुन्नते मुअक्कदा है और इसे छोड़ना जाइज़ नहीं. 


     *सुवाल* - तरावीह में पूरा कुरआने मजीद पढ़ने या सुनने की शरई हैसियत क्या है ?

     *जवाब* - तरावीह में पूरा कलामुल्लाह शरीफ़ पढ़ना और सुनना सुन्नते मुअक़्क़दा है। 

*✍️दिलचस्प मालूमात* 70

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*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*

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*सूरतुल बक़रह, रुकुअ-24, आयत, ①⑨⑤*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

और अल्लाह की राह में ख़र्च करो (17) और अपने हाथों हलाक़त में न पड़ो, (18) और भलाई वाले हो जाओ बेशक भलाई वाले अल्लाह के मेहबूब हैं.


*तफ़सीर*

     (17) इससे सारे दीनी कामों में अल्लाह की ख़ुशी और फ़रमाँबरदारी के लिये ख़र्च करना मुराद है चाहे जिहाद हो या और नेकियाँ.

     (18) ख़ुदा की राह में ज़रूरत भर की हलाल चीज़ों का छोड़ना भी अच्छा नहीं और फ़ूज़ूल ख़र्ची भी और इस तरह और चीज़ भी जो ख़तरे और मौत के कारण हो, उन सब से दूर रहने का हुक्म है यहाँ तक कि बिना हथियार जंग के मैदान में जाना या ज़हर खाना या किसी तरह आत्म हत्या करना. उलमा ने इससे यह निष्कर्ष भी निकाला है कि जिस शहर में प्लेग हो वहाँ न जाएं अगरचे वहाँ के लोगो का वहाँ से भागना मना है.

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क़ुरआन शरीफ का बयान* #04

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بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

     *सुवाल* - क्या सहीह कुरआन शरीफ़ मिलता है ? 

     *जवाब* - जी हां कुरआन शरीफ़ हर जगह सहीह मिलता है। 

     

     *सुवाल* - क्या वोह नहीं बदला ? 

     *जवाब* - वोह नह बदल सकता। उस में एक हृर्फ का फर्क नहीं हो सकता। 


     *सुवाल* - क्यूं ? 

     *जवाब* - इस लिये कि उस का निगहबान अल्लाह है और कुरआने पाक में उस की हिफाज़त का जिम्मा अल्लाह तआला ने खुद अपने ज़िम्मए करम पर लिया हैं।

*✍️बुन्यादी अक़ाइद और मामुलाते अहले सुन्नत* 23

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क़ज़ा नमाज़ का तरीका* #15

*

بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

*_क्या मगरिब का वक़्त थोडा सा होता है ?_*

     मगरिब की नमाज़ का वक़्त गुरुबे आफताब से इब्तदाए वक़्ते ईशा तक होता है। ये वक़्त मक़ामात और तारीख के ऐतिबार से घटता व बढ़ता रहता है।

     फुक़हाए किराम फरमाते है : रोज़े अब्र (यानी जिसदिन बादल छाए हो) उस वक़्त के सिवा मगरिब में हमेशा जल्दी करना मुस्तहब है और दो रकाअत से ज़ाइद कि ताखीर मकरुहे तन्ज़िहि और अगर बगैर उज़्र सफर व मरज़ वगैरा इतनी ताखीर की, कि सितारे गुथ गए तो मकरुहे तहरिमि।

*✍🏽बहारे शरीअत 1/453*

     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : मगरिब का वक़्ते मुस्तहब जब तक है कि सितारे खूब ज़ाहिर न हो जाए, इतनी देर  करनी कि (बड़े बड़े सितारे के इलावा) छोटे छोटे सितारे भी चमक आए मकरूह है।

*✍🏽फतावा रज़विय्या 5/153*


*_तरावीह की क़ज़ा का क्या हुक्म है ?_*

     जब तरावीह छूट जाए तो उस की क़ज़ा नही, न जमाअत से न तन्हा और अगर कोई क़ज़ा पढ़ भी लेता है तो ये नफ्ल हो जाएगी, तरावीह से इनका तअल्लुक़ नही।

*✍🏽तनविरुल अबसार व दुर्रेमुखतार 2/598*

*✍🏽नमाज़ के अहकाम 255*

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तर्ज़मए कंज़ुल ईमान*

*👆🏽

ऑडियो

पारह - 7, सूरए अना'म

रुकू - 18

आयत 95-100


Kanzul Imaan Hindi PDF 👇🏼is link se lod kare...

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Kanzul Imaan mp3 👇🏼is link se lod kare...

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*चार करोड़ नेकिया कमाए*


بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ

اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हमारे आक़ाﷺ ने फ़रमाया : जो शख्स ये कलिमात 10 मर्तबा कहे, ऐसे आदमी के लिये चार करोड़ नेकिया लिखी जाती है।

اَشْهَدُ اَنْ لَّااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ وَحْدَهُ لَاشَرٍيْكَ لَهُ اِلٰهًا وَّاحِدًا صَمَدًا لَّمْ يَتَّخِذْ صَاحِبَةً  وَّلَاوَلَدًا وَّلَمْ يَكُنْ لَّهُ كُفُوًا اَحَدٌ o

*✍🏽तिर्मिज़ी, 5/289*

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 153*

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आज का चाँद* -​ 18

*

*​माह 4* -​ रबीउल आखिर

*​हिजरी* -​ 1440


*विसाल*

हज़रत शाह नजमुद्दीन (फतेहपुर)


*संदल*

शहीद मुस्तफा बावा (संतरामपुर)

हज़रत गैबनशाह (बिलिमोरा)


*उर्स*

हज़रत सैयदशा (उपलेटा)

हज़रत मुहम्मद नूरअली बावा (मोटी खडाल, महुधा)

सैयद आबिदअली बाबा (पेटलाद)


*नॉट*

3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र कर दीजिये।

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Tuesday 25 December 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #348

*

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ  عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ

*मूसा अलैहिस्सलाम और जादूगरों का मुक़ाबला* #01

     याद रहे कि जादूगरो को मूसा अलैहिस्सलाम का फरमानाः पहले तुम डालो, यह जादू की इजात नहीं थी बल्कि उनकी ज़िद पर उन्हें पहले अपनी रस्सियां और लाठियां डालने की इजाज़त दी . इसका जवाब वाज़ेह हो चुका है कि आप अलैहिस्सलाम ने उन्हें जादू से रोका और यह बताया कि यह बाइसे अज़ाब है। लेकिन जब वह जादू करने पर बज़िद थे तो आपने कहा ठीक है अगर अपने कुफ्र की वजह से मेरे मौजिजे से मुकाबला करना चाहते हो तो कर लो, ताकि हक और बातिल में फर्फ वाज़ेह हो जाए। जब उन्होंने अपनी रस्सियां और लाठियां डाल दीं तो लोगों की आंखों पर असर कर दिया कि वह सही देखने समझने के काबिल न रहें इससे वाज़ेह हुआ कि जादू से किसी चीज़ की हकीकत को नहीं बदला जा सकता यह सिर्फ एक बनावट होती हैं। 

     अगर जादू हक होता यानी इसकी कोई हकीकत होती तो यह जिक्र किया जाता कि उनके दिल पर जादू कर दिया यह न कहा जाता कि उन्होंने लोगों की आंखों पर जादू कर दिया।


बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله

*✍️तज़किरतुल अम्बिया* 292

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