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Thursday 29 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहने वाले खुश नसीब*​ #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_पेट के मरज़ में मरने वाला_*
     नबीए करीम ने फ़रमाया के जिसे उस के पेट ने मारा (यानी जिसे पेट की तकलीफ की वजह से मौत आई) तो उसे अज़ाबे क़ब्र न होगा।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 2/334*

     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा फरमाते है : पेट की बिमारी से मरने वाला अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ है क्यू के इसे दुन्या में इस मरज़ की वजह से बहुत तकलीफ पहोच चुकी है, ये तकलीफे क़ब्र का दफईय्या बन गई।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 2/425*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 90*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#49
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑤①_*
और जब हमने मूसा से चालीस रात का वादा फ़रमाया फिर उसके पीछे तुमने बछड़े की पूजा शुरू कर दी और तुम ज़ालिम थे

*तफ़सीर*
     फ़िरऔन और उसकी क़ौम के हलाक हो जाने के बाद जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बनी इस्राईल को लेकर मिस्र की तरफ़ लौटे और उनकी प्रार्थना पर अल्लाह तआला ने तौरात अता करने का वादा फ़रमाया और इसके लिये मीक़ात निशिचत किया जिसकी मुद्दत बढ़ौतरी समेत एक माह दस दिन थी यानी एक माह ज़िलक़ाद और दस दिन ज़िलहज के.
     हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम क़ौम में अपने भाई हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को अपना ख़लीफ़ा व जानशीन (उत्तराधिकारी) बनाकर, तौरात हासिल करने तूर पहाड़ पर तशरीफ़ ले गए, चालीस रात वहां ठहरे. इस अर्से में किसी से बात न की. अल्लाह तआला ने ज़बरजद की तख़्तियों में, आप पर तौरात उतारी.
     यहां सामरी ने सोने का जवाहरात जड़ा बछड़ा बनाकर क़ौम से कहा कि यह तुम्हारा माबूद है. वो लोग एक माह हज़रत का इन्तिज़ार करके सामरी के बहकाने पर बछड़ा पूजने लगे, सिवाए हज़रत हारून अलैहिस्सलाम और आपके बारह हज़ार साथियों के तमाम बनी इस्राईल ने बछड़े को पूजा.
*✍🏽ख़ाज़िन*
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मुहर्रम कैसे मनाये

#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ताजिया के बारे में गलत फहमी_*
     आज कल जो ताजिया बनाते है उसमे पहली बात ये की वो हज़रत इमाम हुसैन के रोज़ा मुबारक की तरह नहीं होता। अजब कज़ब तरीके के ताजिये बनाये जाते है। और फिर उसे गुमाते हे गस्त लगाते है। एक दुसरो से मुकाबला करते है और ऐसे मुकाबले में कभी कभी जगडे फसाद भी हो जाते है। और ये सब इमाम हुसैन की मुहब्बत नाम पर होता है।
     अफ़सोस! ये मुसलमानो को क्या हो गया है? वो कहा से चला था और कहा पहोच गया? कोई समजाये तो मानने के लिए राज़ी नहीं, बल्के समजाने वाले को ही भला बुरा कहते है।
     मतलब के अभी के वक़्त में जो ताजिया और उसके साथ होने वाली सब बिदअते और बुराई और वाहियात बाते सब नाजाइज़ और गुनाह है।
     जेसे के मातम करना, ताजिया पे चढ़ावा चढ़ाना, उसके सामने खाना रख के वहा फातिहा चढ़ाना, उनसे मन्नते मुरादे मांगना, उनके निचे से बच्चों को निकालना, ताजिया देखने जाना, उसको जुक जुक कर सलाम करना, सवारिया निकलना ये सब जाहिलाना और नाजाइज़ बाते है। इसे इस्लाम के साथ कोई वास्ता नहीं। और जो लोग इस्लाम को अच्छे से जानते है उनका दिल खुद ही कहेगा के इस्लाम जैसा सीधा और शराफत वाला मज़हब ये तमाशा और वहेम परस्ती भरी बातोंको कैसे कबुल कर शकता है।
     कुछ लोग कहते है ताजियादारी और ढोल तमासे और मातम करते हुए गुमने से इस्लाम और मुसलमान की शान जाहिर होती है। लेकिन ये फ़ुज़ूल बात है।
     पाँच वक़्त की अज़ान और महोल्ला, बस्ती और सभी मुसलमानो का मस्जिद में नमाज़े ब-जमाअत से ज्यादा मुसलमानो की शान बढ़ा ने वाली कोई चीज नहीं।
     ताजियादारी और उसके साथ ढोल तमासे और नाचना, कूदना और मातम मनाना और बुज़ुर्गोके नाम पर गैर शरई उर्स, मेला और आजकी कव्वालियों की महफिले देख के गैर मुस्लिम ऐसा समजते है के ये भी हमारे मज़हब के जैसा तमाशेवाला मज़हब है।
     और नमाज़, रोज़ा, ईमानदारी और सच्चाई, शरीअतके हुक्मो की पाबन्दी और दीनदारी देख के गैर मुस्लिम ऐसा कहते है की "अगर मज़हब कोई है तो वो इस्लाम ही है"
     कोई मज़बूरी की वजह से वो मुसलमान नहीं बनते पर उनका दिल मुसलमान बनने को तड़पता है।  और कितने तो मुसलमान हो भी जाते है, और होते रहते है।
     ज़रा सोचे 1400 साल में मुसलमान की तादाद कितनी हो चुकी है। ये सब नमाज़, रोज़े, इस्लाम की सीधी सच्ची बाते देख के बने है, ना की ताजियादारी, मेले तमासे देख के बनते है।
     *और ताजियादारी इस्लाम की शान नहीं बल्कि बदनामी है। आज वहाबी के उलमा यही सब दिखाके सुन्नियो को वहाबी बनाते है। यानी वो हमारे ये गैर मज़हबी रश्मो रिवाज़ दिखा के वहाबी बनाते है।*
     मुसलमान का अक़ीदा और ईमान इतना मजबूत होना चाहिए की दुनियाइ नफ़ा हो या नुकशान पर हम तो वही करेंगे जिससे अल्लाह और रसूल राज़ी होते है।
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मदनी पंजसुरह

*क़ुव्वते हाफीजा के लिये*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

पाचो नमाज़ों के बाद सर पर दाहिना हाथ रख कर 11 मर्तबा *يَاقَوِىُّ* पढ़े।

*✍🏽जन्नती ज़ेवर, 605*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 237*
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फुतूह अल ग़ैब

*तुम्हारे लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या?*  #3
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      पस तुम्हें चाहिये के किसी चीज़ की तलब के लिये मखलूक की तरफ न देखो और खालिक के सिवा किसी और से तआल्लुक न रखो और न किसीको अपने हालात बताओ। महोब्बत उसीसे करो, हाजतें उसीसे अर्ज़ करो, तकलीफ के इज़ालेके लिये उसी तरफ रुजुअ करो क्यों के सुदोज़िया उसीकी तरफ से हैं, परेशनिया वही रफअ कर सकता है,इज़्ज़त व ज़िल्लत और बुलंदी व पस्ती देनेवाला वही है, ईशरत व सरवत वही दे सकता है और हरकत व सुकून उसीके कब्ज़ए कुदरत में है।
      तमाम वाकेआत और अवामिल उसीके हुकम और इजाज़त से ज़ाहिर होते हैं। हर चीज़ उसी वक़्त जारी रेहती है जिसका तअइयुन (मुकर्रर) वो कर दे जिसको खालिक व मालिकने मकदम (आमद) किया है। वो मोवख्खिर (आखरी) नही हो सकती और जो मोवख्खर है, उसे कोई मकदम (पैर धरने नहीं दे)  सकता। अल्लाह तआलाने फरमाया के अगर अल्लाहकी तरफसे कोई नुकसान पहोंचे तो वोही और सिर्फ वोही उसे दूर कर सकता है और अगर खुदा तेरी भलाई करना चाहे तो उसके फ़ज़लको रद करनेवाला कोई नहीँ।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज  42
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Wednesday 28 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहने वाले खुश नसीब* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहीद अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ रहता है_*
     हज़रते मिकदाम बिन मादी करीब से रिवायत है के हुज़ूर ने फ़रमाया : बेशक अल्लाह शहीद को 6 इनआम अता फ़रमाता है,

1 उस के खून का पहला कतरा गिरते ही उस की मग्फिरत फरमा देता है और जन्नत में उसे उस का ठिकाना दिखा देता है।

2 उसे अज़ाबे क़ब्र से महफूज़ फ़रमाता है।

3 क़यामत के दिन उसे बड़ी घबराहट से अम्न अता फ़रमाएगा।

4 उस के सर पर वकार का ताज़ रखेगा जिस का याकूत दुन्या और इस की हर चीज़ से बेहतर होगा।

5 उसका हूरो में से 72 हूरो के साथ निकाह कराएगा।

6 उस की 70 रिश्तेदारो के हक़्क़ में शफ़ाअत क़बूल फ़रमाएगा।

*✍🏽इब्ने माजह, 3/36*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 89*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #48
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑤ⓞ_*
और जब हमने तुम्हारे लिये दरिया फ़ाड़ दिया तो तुम्हें बचा लिया. और फ़िरऔन वालों को तुम्हारी आंखों के सामने डुबो दिया

*तफ़सीर*
     यह दूसरी नेअमत का बयान है जो बनी इस्त्राईल पर फ़रमाई कि उन्हें फ़िरऔन वालों के ज़ुल्म और सितम से नजात दी और फ़िरऔन को उसकी क़ौम समेत उनके सामने डुबो दिया. यहां आले फ़िरऔन (फ़िरऔन वालों) से फ़िरऔन और उसकी क़ौम दोनों मुराद हैं. जैसे कि “कर्रमना बनी आदमा” यानी और बेशक हमने औलादे आदम को इज़्ज़त दी (सूरए इसरा, आयत 70) में हज़रत आदम और उनकी औलाद दोनों शामिल हैं.
*✍🏽जुमल*
     संक्षिप्त वाक़िआ यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से रात में बनी इस्त्राईल को मिस्र से लेकर रवाना हुए, सुब्ह को फ़िरऔन उनकी खोज में भारी लश्कर लेकर चला और उन्हें दरिया के किनारे जा लिया. बनी इस्त्राईल ने फ़िरऔन का लश्कर देख़कर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रियाद की. आपने अल्लाह के हुक्म से दरिया में अपनी लाठी मारी, उसकी बरकत से दरिया में बारह ख़ुश्क रास्ते पैदा हो गए. पानी दीवारों की तरह खड़ा हो गया. उन दीवारों में जाली की तरह रौशनदान बन गए. बनी इस्राईल की हर जमाअत इन रास्तों में एक दूसरे को देखती और आपस में बात करती गुज़र गई. फ़िरऔन दरियाई रास्ते देखकर उनमें चल पड़ा. जब उसका सारा लश्कर दरिया के अन्दर आ गया तो दरिया जैसा था वैसा हो गया और तमाम फ़िरऔनी उसमें डूब गए. दरिया की चौड़ाई चार फरसंग थी.
     ये घटना बेहरे कुलज़म की है जो बेहरे फ़ारस के किनारे पर है, या बेहरे मा-वराए मिस्र की, जिसको असाफ़ कहते है. बनी इस्राईल दरिया के उस पार फ़िरऔनी लश्कर के डूबने का दृश्य देख रहे थे.
     यह वाक़िआ दसवीं मुहर्रम को हुआ. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उस दिन शुक्र का रोज़ा रखा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़माने तक भी यहूदी इस दिन का रोज़ा रखते थे. हुज़ूर ने भी इस दिन का रोज़ा रखा और फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की विजय की ख़ुशी मनाने और उसकी शुक्र गुज़ारी करने के हम यहूदियों से ज़्यादा हक़दार हैं.
     इस से मालूम हुआ कि दसवीं मुहर्रम यानी आशुरा का रोज़ा सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों पर जो इनाम अल्लाह का हुआ उसकी यादगार क़ायम करना और शुक्र अदा करना अच्छी बात है. यह भी मालूम हुआ कि ऐसे कामों में दिन का निशिचत किया जाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है. यह भी मालूम हुआ कि नबियों की यादगार अगर काफ़िर लोग भी क़ायम करते हों जब भी उसको छोड़ा न जाएगा.
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मुहर्रम कैसे मनाये

#01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हुसैनी दिन यानी 10 मुहर्रम_*
     मुहर्रम में कुछ लोग इमाम हुसैन के किरदार को भूल गये और इस दिन को खेल तमाशो, गैर शरई रस्मो नाचगाना, मेले और गुमने फिरने का दिन बना दिया। और ऐसा लगने लगा की जेसे इस्लाम मजहब भी दूसरे मजहबो की तरह खेल तमाशो, गुमने फिरने और रंग रलिया वाला मजहब है।
     मुसलमान कहलाने वालो में सिर्फ एक फिरका जिसको राफजी यानी शिया कहते है उनके वहा नमाज़, रोज़ा वगैरा शरीअत के हुक्मो का और दीनदारी के मुआमले में कोई अहमियत देने में नहीं आता। बस मुहर्रम आते ही रोना, पीटना, चिल्लाना यही उनका मज़हब है। जाने की अल्लाह ने उसके रसूलﷺ को यही सब करने और सिखाने भेज था और यही सब बेतुकी बातो का नाम इस्लाम है।
     हदीसे पाक में है : हुज़ूर ﷺ फरमाते है जो कोई गम मे गाल पिटे, गला फाडे, जाहिलियत के ज़माने जैसा चिल्लाये वो हम में से नहीं है।
*✍🏽मिश्कात शरीफ, स. 150*
*_नियाज़ और फातेहा_*
     हज़रत इमाम हुसैन और जो लोग उनके साथ शहीद हुए है उनके इसाले सवाब के लीये सदका, खैरात करे, गरीबो मिस्नकिनो, दोस्तों, पड़ोसीओ, रिस्तेदारो को शरबत या खिचड़ा या मलीदा वगैरा कोई भी जाइज़ खाने पिने वाली चीज़े खिलाना और पिलाना जाइज़ है और उसके साथ अगर क़ुरआन की तिलावत करे तो और बेहतर है। इन सब बातो को नियाज़ हातेहा कहते है। ये सब बिना सूबा जाइज़ और मुस्त हसन है और बुजुर्गो की अकीदत पेश करने का अच्छा तरिका है।
     लेकिन इन सब बातो में कुछ चीज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है।

✔उन बातो का खुलासा अगली पोस्ट में होगा انشاء الله
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मदनी पंजसुरह

*बुखार से शिफ़ा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

जिस को बुखार हो सात बार ये दुआ पढ़े :

*بِسْمِ اللّٰهِ الْكَبِيْرِ اَعُوْذُ بِاللّٰهِ الْعَظِيْمِ مِنْ شَرِّ كُلِّ عِرْقٍ نَّعَّارٍ وَّمِنْ شَرِّ النَّارِ*

अगर मरीज़ खुद न पढ़ सके तो दूसरा नमाज़ी आदमी सात बार पढ़ कर दम कर दे या पानी पर दम कर के पिला दे انشاء الله बुखार उतर जाएगा। एक मर्तबा में बुखार न उतरे तो बार बार ये अम्ल करे।

*✍🏽जन्नती ज़ेवर, 580*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 234*
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फुतूह अल ग़ैब

*तुम्हारे लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या?*  #2
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     खुदा तआला ने फ़रमाया : अल्लाहकी नेअमतें ऐसी और इतनी हैं-के हद-व-हिसाब में नहीं आ सकतीं, बहोतसी ऐसी भी हैं जिनका तुम्हें ऐहसास तक नहीं। पस तुम्हें चाहिये के किसी चीज़ की तलब के लिये मखलूक की तरफ न देखो और खालिक के सिवा किसी और से तआल्लुक न रखो और न किसीको अपने हालात बताओ। महोब्बत उसीसे करो, हाजतें उसीसे अर्ज़ करो, तकलीफ के इज़ालेके लिये उसी तरफ रुजुअ करो क्यों के सुदोज़िया उसीकी तरफ से हैं, परेशनिया वही रफअ कर सकता है,इज़्ज़त व ज़िल्लत और बुलंदी व पस्ती देनेवाला वही है, ईशरत व सतवत वही दे सकता है और हरकत व सुकून उसीके कब्ज़ए कुदरत में है।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज  42
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Tuesday 27 September 2016

फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल

#04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हर शै से महबूब_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन हिशामرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हम हुज़ूर के पास बेठे थे। आप ने हज़रते उमर फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था। फ़ारुके आज़म ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! आप मुझे मेरी जान के इलावा हर चीज़ से ज़्यादा महबूब है। आपﷺ ने फ़रमाया : नही उमर ! उस रब की क़सम जिस के कब्जाए कुदरत में मेरी जान है ! (तुम्हारी महब्बत उस वक़्त तक कामिल नही होगी) जब तक में तुम्हारे नज़दीक तुम्हारी जान से भी ज़्यादा महबूब न हो जाऊ।
     फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! खुदा की क़सम ! आप मुझे मेरी जान से भी ज़्यादा महबूब है। ये सुन कर हुज़ूरﷺ ने इरशाद फरमाया : ऐ उमर ! अब तुम्हारी महब्बत कामिल हो गई।
*✍🏽बुखारी शरीफ, 4/283*

     ये हुक्म सिर्फ फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه के लिये ही नही बल्कि रहती दुन्या तक आने वाले एक एक मुसलमान के लिये है, क्यू की महब्बते मुस्तफा वो चीज़ है जिस के बगैर हमारा ईमान कामिल ही नही हो सकता।
     फरमाने मुस्तफाﷺ : तुम में से कोई शख्स उस वक़्त तक (कामिल) मोमिन नही हो सकता, जब तक की में उस के नज़दीक उस के वालिदैन, अव्लाद और तमाम लोगो से ज़्यादा महबूब न हो जाऊ।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/17*

     हज़रते फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه के इश्क रसूल के क्या कहने ! आप के गुलाम हज़रते अस्लमرضي الله تعالي عنه फरमाते है : जब आप हुज़ूरﷺ का ज़िक्र करते तो इश्के रसूल से बे ताब हो कर रोने लगते और फरमाते : प्यारे आक़ाﷺ तो लोगो में सब से ज़्यादा रहम दिल, यतीम के लिये वालिद और लोगो में दिली तौर पर सब से ज़्यादा बहादुर थे, वो तो निखरे निखरे चेहरे वाले, महकती खुशबु वाले और हसब के ऐतिबार से सब से ज़्यादा मुकर्रम थे, अव्वलिनो आखिरिन में आप की मिस्ल कोई नही।
*✍🏽जामीअल जवामिल, 10/16*
*✍🏽फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 9*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#47
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④⑨_*
और (याद करो)जब हमने तुमको फ़िरऔन वालों से नजात बख्श़ी (छुटकारा दिलाया)(4)
कि तुमपर बुरा अजा़ब करते थे(5)
तुम्हारे बेटों को ज़िब्ह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते(6)
और उसमें तुम्हारे रब की तरफ़ से बड़ी बला थी या बड़ा इनाम(7)

*तफ़सीर*
     (4) क़िब्त और अमालीक़ की क़ौम से जो मिसर का बादशाह हुआ. उस को फ़िरऔन कहते है.
     हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने के फ़िरऔन का नाम वलीद बिन मुसअब बिन रैयान है. यहां उसी का ज़िक्र है. उसकी उम्र चार सौ बरस से ज़्यादा हुई. आले फ़िरऔन से उसके मानने वाले मुराद है.
*✍🏽जुमल वग़ैरह*
     (5) अज़ाब सब बुरे होते हैं “सूअल अज़ाब” वह कहलाएगा जो और अज़ाबों से ज़्यादा सख़्त हो. इसलिये आला हज़रत ने “बुरा अज़ाब” अनुवाद किया.
     फ़िरऔन ने बनी इस्त्राईल पर बड़ी बेदर्दी से मेहनत व मशक़्क़त के दुश्वार काम लाज़िम किये थे. पत्थरों की चट्टानें काटकर ढोते ढोते उनकी कमरें गर्दनें ज़ख़्मी हो गई थीं. ग़रीबों पर टैक्स मुक़र्रर किये थे जो सूरज डूबने से पहले ज़बरदस्ती वुसूल किये जाते थे. जो नादार किसी दिन टैकस अदा न कर सका, उसके हाथ गर्दन के साथ मिलाकर बांध दिये जाते थे, और महीना भर तक इसी मुसीबत में रखा जाता था, और तरह तरह की सख़्तियां निर्दयता के साथ की जाती थीं.
*✍🏽ख़ाज़िन वग़ैरह*
     (6) फ़िरऔन ने ख़्वाब देखा कि बैतुल मक़दिस की तरफ़ से आग आई उसने मिस्र को घेर कर तमाम क़िब्तियों को जला डाला, बनी इस्त्राईल को कुछ हानि न पहुंचाई. इससे उसको बहुत घबराहट हुई.
     काहिनों (तांत्रिकों) ने ख़्वाब की तअबीर (व्याख्या) में बताया कि बनी इस्त्राईल में एक लड़का पैदा होगा जो तेरी मौत और तेरी सल्तनत के पतन का कारण होगा.
     यह सुनकर फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि बनी इस्त्राईल में जो लड़का पैदा हो. क़त्ल कर दिया जाए. दाइयां छान बीन के लिये मुक़र्रर हुई. बारह हजा़र और दूसरे कथन के अनुसार सत्तर हज़ार लड़के क़त्ल कर डाले गए और नव्वे हज़ार हमल (गर्भ) गिरा दिये गये.
     अल्लाह की मर्ज़ी से इस क़ौम के बूढ़े जल्द मरने लगे. क़िब्ती क़ौम के सरदारों ने घबराकर फ़िरऔन से शिकायत की कि बनी इस्त्राईल में मौत की गर्मबाज़ारी है इस पर उनके बच्चे भी क़त्ल किये जाते हैं, तो हमें सेवा करने वाले कहां से मिलेंगे. फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि एक साल बच्चे क़त्ल किये जाएं और एक साल छोड़े जाएं. तो जो साल छोडने का था उसमें हज़रत हारून पैदा हुए, और क़त्ल के साल हज़रत मूसा की पैदाइशा हुई.
      (7) बला इम्तिहान और आज़माइशा को कहते हैं. आज़माइश नेअमत से भी होती है और शिद्दत व मेहनत से भी. नेअमत से बन्दे की शुक्रगुज़ारी, और मेहनत से उसके सब्र (संयम और धैर्य) का हाल ज़ाहिर होता है.
     अगर “ज़ालिकुम.”(और इसमें) का इशारा फ़िरऔन के मज़ालिम (अत्याचारों) की तरफ़ हो तो बला से मेहनत और मुसीबत मुराद होगी, और अगर इन अत्याचारों से नजात देने की तरफ़ हो, तो नेअमत.
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मदनी पंजसुरह

*बराए क़ज़ाए हाजात*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हुज़ूरﷺ फरमाते है की मुझे एक ऐसी आयत मालुम है कि अगर लोग उस पर आमिल हो तो उन की हाजतो को काफी है, फिर ये आयते करीमा इरशाद फ़रमाई।
(अदाए क़र्ज़ और रोज़ी व रोज़गार के लिये इस की कसरत मुफीद व मुजर्र्ब है)

*وَمَنْ يَّتَّقِاللّٰهَ يَجْعَلْ لَّهُ مَخْرَجًا o وَّيَرْزُقْهُ مِنْ حَيْثُ لَايَيَحْتَسِبُ، وَمَنْ يَّتَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ فَهُوَ حَسْبُهُ، اِنَّ اللّٰهَ بَالِغُ اَمْرِهٖ، قَدْ جَعَلَ اللّٰهُ لِكُلِّ شَىْءٍقَدْرًا o*

*✍🏽पारह 28, अल-तलाक़, 2,3*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 232*
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Monday 26 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#46
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④⑧_*
और डरो उस दिन से जिस दिन कोई जान दूसरे का बदला न हो सकेगी(2)
और न क़ाफिर के लिये कोई सिफ़ारिश मानी जाए और न कुछ लेकर उसकी जान छोड़ी जाए और न उनकी मदद हो(3)

*तफ़सीर*
     (2) वह क़यामत का दिन है. आयत में नफ़्स दो बार आया है, पहले से मूमिन का नफ़्स, दूसरे से काफ़िर मुराद है.
*✍🏽मदारिक*
     (3) यहाँ से रूकू के आख़िर तक दस नेअमतों का बयान है जो इन बनी इस्त्राईल के बाप दादा को मिलीं.
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मदनी पंजसुरह

*बराए क़ुव्वते हाफीजा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

दीनी किताब या इस्लामी सबक़ पढ़ने से क़ब्ल ये दुआ अव्वल आखिर दुरुद पढ़ के पढ़ लीजिये انشاء الله जो कुछ पढ़ेंगे याद रहेगा

*اَللّٰهُمَّ افْتَحْ عَلَيْنَا حِكْمَتَكَ وَانْشُرْ عَلَيْنَا رَحْمَتَكَ يَاذَالْجَلَالِ وَالْاِكْرَام*
ऐ अल्लाह ! हम पर इल्मो हिक़मत के दरवाज़े खोल दे और हम पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा ! ऐ अज़मत और बुज़ुर्गी वाले !

*✍🏽अलमुस्तरफ, 1/40*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 229*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Sunday 25 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुसलमान के दिल में ख़ुशी दाखिल करने का सवाब_*
     हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जो शख्स किसी मोमिन के दिल में ख़ुशी दाखिल करता है अल्लाह उस ख़ुशी से एक फ़रिश्ता पैदा फ़रमाता है जो अल्लाह की इबादत और ज़िक्र में मसरूफ़ रहता है। जब वो बन्दा अपनी क़ब्र में चला जाता है तो वो फ़रिश्ता उस के पास आ कर पूछता है : क्या तू मुझे नहीं पहचानता ? वो कहता है के तू कौन है ? तो वो फ़रिश्ता कहता है के में वो ख़ुशी हु जिसे तूने फुला के दिल में दाखिल किया था, आज में तेरी वहशत में तुझे उन्स पहोचाऊँगा और सुवालात के जवाबात में साबित क़दम रखूंगा और तुझे रोज़े क़यामत के मनाज़िर दिखाऊंगा और तेरे लिये रब की बारगाह में सिफारिश करूँगा और तुझे जन्नत में तेरा ठिकाना दिखाऊंगा।

     सुब्हान अल्लाह ! किसी के दिल में ख़ुशी दाखिल करना कितना आसान मगर इसका इनआम कितना शानदार है, मगर ये फ़ज़ीलत उसी वक़्त हासिल हो सकेगी जब वो खशी ऐन शरीअत के मुताबिक़ हो।

*_किसी के दिल में ख़ुशी दाखिल करने के चन्द काम_*
     किसी प्यासे को पानी पिला देना। किसी भूके को खाना खिला देना। कोई दुआ के लिये कहे तो फौरन उसके लिये दुआ कर देना। ज़रूरत मन्द की मदद करना। हाजत मन्द को क़र्ज़ देना। तंगदस्त मकरुज़ को क़र्ज़ अदा करने में मोहलत देना। गरीब मरीज़ की इयादत को जाना। मुस्करा कर बात करना। कोई  गलती कर बेठे तो उस से दर गुज़र करना। पसन्दीदा चीज़ खिलाना। अहम मवाकेअ पर तोहफा देना। वालिदैन की खिदमत करना। मज़लूम की मदद करना। दौराने सफर बैठने के लिये जगह दे देना।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 88*
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फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​

#07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_करामते आइशा सिद्दीक़ा_*
     हज़रते रुहुल अमिन का हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها को सलाम कहना और आप के बिस्तर पर रसूले खुदा पर वही उतरना इन दो रिवायत को शैखुल हदिष मुफ़्ती अब्दुल मुस्तफा आज़मी अलैरहमा ने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की करामत में शुमार किया है और इस के इलावा आप की एक तीसरी करामत भि बयां फ़रमाई है।

*_आइशा की रहनुमाई से बारिश_*
     एक मर्तबा मदीने में बारिश नही हुई और लोग शदीद कहत मर मुब्तला हो कर बिलबिला उठे। जब लोग कहत की शिकायत ले कर हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها की खिदमत में पहुचे तो आप ने फ़रमाया की मेरे हुजरे में जहा हुज़ूरे अन्वरﷺ की क़ब्र है, उस हुजरए मुबारक की छत में एक सुराख कर दो ताकि हुजरए मुनव्वरह से आसमान नज़र आने लगे।
     चुनांचे जेसे ही लोगो ने छत में एक सुराख़ बनाया फौरन ही बारिश शुरू हो गई और अतराफे मदीना की ज़मीन सर सब्ज़ो शादाब हो गई और उस साल घास और जानवरो का चारा भी इस क़दर ज़्यादा हुवा की कसरते खुराक से ऊंट फर्बा हो गए और चर्बी की ज़्यादती से उन के बदन फूल गए।
*✍🏽सुनन अल-दारिमि, 58*

     हज़रत मुफ़्ती अहमद या खान नईमी अलैरहमा इस हदिष के तहत फरमाते है : मालुम हुवा की आसमानी आफत की शिकायत अल्लाह के मक़बूल बन्दों से कर सकते है।
     मजीद फरमाते है : सहाबा हुज़ूरﷺ की हयात शरीफ में हुज़ूरﷺ के तवस्सुल से दुआए मांगते थे। बादे वफ़ात जनाबे आइशा ने हुज़ूरﷺ की क़ब्र बल्कि इसकी खाक की बरकत से दुआ कराइ, ये भी दर हक़ीक़त हुज़ूरﷺ ही के वसीले से दुआ है।
     ये तरीक़ा बहुत मुबारक है, इस हदिष से चन्द मसअले मालुम हुए : एक ये की वफ़ात याफ्ता बुज़ुर्गो के वसीले से दुआए करना जाइज़ है। दूसरे ये की उन के तबर्रुकात के वसीले से दुआए करना जाइज़ बल्कि सुन्नते सहाबा है। तीसरा ये की बुज़ुर्गो की क़ब्रे बी इज़्ने इलाही दाफ़ेउल बला और मुश्किल कुशा है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 8/272*
*✍🏽फैज़ाबे आइशा सिद्दीक़ा, 19*
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Saturday 24 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इल्म क़ब्र में साथ रहेगा_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया के जब आलिम फौत होता है तो उस का इल्म क़यामत तक क़ब्र में उसको मानूस करने के लिये मुतशक्किल हो कर (यानी शक्ल इख़्तियार कर के) रहता है और ज़मीन के कीड़ो को दूर करता है।
*✍🏽शरह अलसुदूर, 158*

*_औलाद को इल्मे दिन सिखाने की बरकत_*
     हज़रते ईसा रूहल्लाह एक क़ब्र के पास से गुज़रे तो देखा के क़ब्र में नूर ही नूर है और वहा अल्लाह की रहमत बरस रही है। आप बहुत हैरान हुए और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ की : या अल्लाह ! मुझे इसका राज़ बता दे के पहले इस पर अज़ाब क्यू हो रहा था और अब इसे जन्नत की नेअमतें कैसे मिल गई ?
     अल्लाह ने इरशाद फ़रमाया : ऐ इसा ! ये सख्त गुनाहगार और बदकार था, इस वजह से अज़ाब में गिरफ्तार था, मरने के बाद इसके घर लड़का पेड़ हुआ और आज इस को मदरसे भेजा गया, उस्ताद ने उसे *बिस्मिल्लाह* पढ़ाई, मुझे हया आई के में ज़मीन के अंदर उस शख्स को अज़ाब दू जिस का बच्चा ज़मीन पर मेरा नाम ले रहा है।
*✍🏽तफ़सीरे कबीर, 1/155*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 86*
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​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा

 #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_*​​ #01
     (6)... अम्मुल मुअमिनीन बिन्ते अमीरूल मुअमिनीन हजरते र्सीय्य-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها ने अपने सरताज से अर्ज की : या रसुलल्लाहﷺ ! अल्लाह से मेरे लिये दूआ फरमाईये । आपﷺ ने बारगाहे खूदा मैं यूं इिल्तजा की : ऐ अल्लाह ! आइशा के अगले पिछले जाहिरी बतिनी गुनाह मूआफ फरमा दे। येह सुन कर हजरेत साय्यि -दूतुना आइशा हस कदर मुस्कुराई कि आप का सर अपनी गाेद में चला गया । हूजूरﷺ ने इर्शाद फरमाया : क्या तुम मेरी दूआ पर खूश होती हो ? अर्ज की : में आप की दूआ पर कंयू न खूश होउं ? तो २सुले करीमﷺ ने फ़रमाया :अल्लाह की क्सम ! बेशक हर नमाज़ में येह दूआ मेरी उम्मत के लिये है।
*✍सही इब्ने जहान सः1901,हादिसः4111*

     (7)... आइश़ाرضي الله تعالي عنها की फजीलत तमाम औरतों पर ऐसी है जैसे सरीद की सब खानों पर ।
*✍तीरमीज़ी स: 842,हदिसः 3886*

     शारेहे मिश्कात, हकीमुल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा फरमाते है : हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها सूरत, सीरत, इल्म, अमल, फ़साहत, फ्तानत, ज़कावत, अक़्ल, हुज़ूरﷺ की महबूबिय्यत वगैरा हज़ारहा सिफ़ात की जामेअ है. हक़ ये है कि आप सारी औरतो हत्ता की खदीजतुल कुब्रा से भी अफज़ल है, आप बहुत अहादीस की जामेअ, उलुमे क़ुरआनीया की माहिर बीबी है.
     मजीद फरमाते है : आपرضي الله تعالي عنها के फ़ज़ाइल रैत के ज़र्रो, आसमान के तारो की तरह बे शुमार है, आप रब तआला का तोहफा है जो हुज़ूरﷺ को अता हुई. आप की इस्मत व इफ़्क़त की गवाही खुद रब तआला ने क़ुरआने मजीद में सूरए नूर में दी, हाला की जनाबे मरयम और युसूफ की इस्मत की गवाही बच्चे से दिलवाई गई.
     उम्मत को तयम्मुम की आसानी आपرضي الله تعالي عنها के सदके से मिली, हुज़ूरﷺ का विसाल आप के सीने पर हुवा. हुज़ूरﷺ की आखरी आराम गाह आप का हुजरा है, आप का लुआब हुज़ूरﷺ के लुआब के साथ विसाल के वक़्त जमा हुवा, आप के बिस्तर में वही आती थी, आप खुद सिद्दीक़ा है और सिद्दीक़ की बेटी है.
*✍🏽फैजाने आइशा सिद्दीक़ा, 18*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#44

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④⑤_*
और सब्र और नमाज़ से मदद चाहो और बेशक नमाज़ ज़रूर भारी है मगर उनपर (नही) जो दिल से मेरी तरफ़ झुकते हैं.

*तफ़सीर*
     यानी अपनी ज़रूरतों में सब्र और नमाज़ से मदद चाहों. सुबहान अल्लाह, क्या पाकीज़ा तालीम है. सब्र मुसीबतों का अख़लाक़ी मुक़ाबला है. इन्सान इन्साफ़ और सत्यमार्ग के संकल्प पर इसके बिना क़ायम नहीं रह सकता.
     सब्र की तीन क़िस्में हैं- (1) तकलीफ़ और मुसीबत पर नफ़्स को रोकना, (2) ताअत (फरमाँबरदारी) और इबादत की मशक़्क़तों में मुस्तक़िल (अडिग) रहना, (3) गुनाहों की तरफ़ खिंचने से तबीअत को रोकना.
     कुछ मुफ़स्सिरों ने यहां सब्र से रोज़ा मुराद लिया है. वह भी सब्र का एक अन्दाज़ है.
     इस आयत में मुसीबत के वक़्त नमाज़ के साथ मदद की तालीम भी फ़रमाई क्योंकि वह बदन और नफ़्स की इबादत का संगम है और उसमें अल्लाह की नज़्दीकी हासिल होती है. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अहम कामों के पेश आने पर नमाज़ में मश़्गूल हो जाते थे.
     इस आयत में यह भी बताया गया कि सच्चे ईमान वालों के सिवा औरों पर नमाज़ भारी पड़ती है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④⑥_*
जिन्हें यक़ीन है कि उन्हें अपने रब से मिलना है और उसी की तरफ़ फिरना है।

*तफ़सीर*
     इसमें ख़ुशख़बरी है कि आख़िरत में मूमिनों को अल्लाह के दीदार की नेअमत मिलेगी.
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मदनी पंजसुरह

*फालिज व लक़्वा*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     लक़्वा व फालिज में *सुरए ज़िलज़ाल* लोहे के बर्तन पर लिख कर धो कर पिलाई जाए।

     दीगर तरकीब : *सूरए ज़िलज़ाल* लोहे के बर्तन में लिख कर दे की मरीज़ उस पर देखे انشاء الله सिहहत होगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 229*
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Friday 23 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_खत्म न होने वाले 7 आमाल_*
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : मोमिन के इन्तिकाल के बाद इस के अमल और नेकियों में से जो कुछ इसे मिलता रहेगा, वो ये है :

इसका वो इल्म जिसे इस ने सिखाया और फेलाया।
नेक बेटा जिसे इसने छोड़ा।
वो क़ुरआन जिसे विरसे में छोड़ा।
वो मस्जिद जिसे इसने बनाया।
मुसाफिर खाना बनाया।
किसी नहर को जारी किया।
वो सदक़ए जारिया जिसे इसने हालते सिहहत और ज़िन्दगी में अपने माल से दिया।

इनका सवाब इसे मौत के बाद भी मिलता रहेगा।

*✍🏽इब्ने माजह, 1/158*
*✍🏽क़ब्र में आने वाला दोस्त, 86*
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फैज़ाने सिद्दीके अकबर

#05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*अतीक़ लक़ब की वुजुहात*​ #02
*_वालिद के नाम रखने के सबब अतीक़_*
     पहले आपرضي الله تعالي عنه का नाम अतीक़ रखा गया और बाद में आप को अब्दुल्लाह कहा जाने लगा। चुनांचे, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन क़ासिम अपने वालिद से रिवायत करते है की इन्होंने ने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से पूछा : आप के वालिद अबू बक्र का नाम क्या है ? फ़रमाया : अब्दुल्लाह। अर्ज़ किया : लोग तो आप को अतीक़ कहते है ? फ़रमाया : मेरे दादा अबू क़हाफा के तिन बच्चे थे। आप ने उन के नाम अतीक़, मोअय्यतिक ओर मोअत्तिक रखे।

*_माँ की दुआ के सबब अतीक़_*
     हज़रते अबू तल्हाرضي الله تعالي عنه से पूछा गया की हज़रते अबू बक्र को अतीक़ क्यू कहा जाता है ? तो आप ने फ़रमाया : आप की वालिदा का कोई बच्चा ज़िन्दा नही रहता था, जब आप की वालीदाने आप को जन्म दिया तो आप को ले कर बैतुल्लाह शरीफ गई और गिड़ गिड़ा कर यु दुआ मांगी : ऐ मेरे परवर दगार ! अगर मेरा ये फ़रज़न्द मौत से आज़ाद है तो ये मुझे अता फरमा दे। तो इस के बाद आप को अतीक़ कहा जाने लगा।

*_गलबए नाम के सबब अतीक़_*
     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है की : आप का जो नाम आप के घर वालो ने रखा वो अब्दुल्लाह बिन उष्मान है लेकिन इस और अतीक़ नाम ग़ालिब आ गया।

*_आसमानों ज़मीन में अतीक़_*
     सरकारﷺ ने इरशाद फ़रमाया : अबू बक्र आसमान में भी अतीक़ है और ज़मीन में भी अतीक़ है।
*✍🏽मसनद अल-फ़िरदौस, 1/250*

*_गुलाम आज़ाद करने के सबब अतीक़_*
     आपرضي الله تعالي عنه निहायत ही शफ़ीक़ और महेरबान थे, हज़रते बिलाल हब्शीرضي الله تعالي عنه को उन के आक़ा के ज़ुल्मो सितम और दीगर कई मुसलमानो को कुफ़्फ़ार के ज़ुल्मो सितम से आज़ाद करवाया तो अतीक़ के नाम से मशहूर हो गए।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 8/346*

*_इन तमाम अक़वाल में मुताबक़त_*
     आपرضي الله تعالي عنه के लक़ब अतीक़ के बारे में जितने भी अक़वाल ज़िक्र किये गए इन तमाम में कोई तज़ाद नही की हो सकता है आप के वालिदैन ने आप को लक़बे अतीक़ से किसी एक माना में पुकारा हो, और दीगर लोगो ने इस माना में भी और किसी दूसरे माना में पुकारा हो। फिर कुरैश में वही मुस्तमल हो गया और फिर ये इतना मशहूर हो गया की इस्लाम से पहले भी और बाद में भी बाक़ी रहा। लिहाज़ा मुख़्तलिफ़ मानी के एतिबार से तमाम का आप को अतीक़ पुकारना दुरुस्त हुवा।
*✍🏽फैज़ाने सिद्दीके अकबर, 24*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#43

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④④_*
क्या लोगों को भलाई का हुक्म देते हो और अपनी जानों को भूलते हो हालांकि तुम किताब पढ़ते हो तो क्या तुम्हें अक्ल़ नहीं

*तफ़सीर*
     यहूदी उलमा से उनके मुसलमान रिश्तेदारों ने इस्लाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा तुम इस दीन पर क़ायम रहो. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन भी सच्चा और कलाम भी सच्चा. इस पर यह आयत उतरी.
     एक कथन यह है कि आयत उन यहूदियों के बारे में उतरी जिन्होंने अरब मुश्रिको को हुज़ूर के नबी होने की ख़बर दी थी और हुज़ूर का इत्तिबा (अनुकरण) करने की हिदायत की थी. फिर जब हुज़ूर की नबुव्वत ज़ाहिर हो गई तो ये हिदायत करने वाले हसद (ईर्ष्या) से ख़ुद काफ़िर हो गए. इस पर उन्हें फटकारा गया.
*✍🏽ख़ाज़िन व मदारिक*
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Thursday 22 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सदक़ा देने से क़ब्र की गर्मी दूर होती है_*
     हज़रते उक़बाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : बेशक किसी शख्स का सदक़ा उस की क़ब्र से गर्मी को दूर कर देता है और क़यामत के दिन मोमिन अपने सदके के साए में होगा।
*अलमअजम अलकबीर, 17/286*

*_राहे खुदा में खर्च कीजिये_*
     राहे खुदा में खर्च करने में फायदे ही फायदे है, आख़िरत में अज़्रो सवाब की हकदारी तो है ही, बाज़ अवक़ात दुन्या में भी इज़ाफ़े के साथ हाथो हाथ उस का नेअमल बदल अता किया जाता है और ये यक़ीनी बात है के राहे खुदा में देने से बढ़ता है घटता नही जेसे के हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه फरमाते है, हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : सदक़ा माल में कमी नही करता और अल्लाह मुआफ़ करने की वजह से बन्दे की इज़्ज़त ही बढ़ाता है और जो अल्लाह की रिज़ा की खातिर इन्किसारि करता है तो अल्लाह उसे बुलंदी अता फ़रमाता है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1397*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 84*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#42
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④②_*
और हक़ (सत्य) से बातिल (झूठ) को न मिलाओ और जान बूझकर हक़ न छुपाओ

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④③_*
और नमाज़ क़ायम रखो और ज़कात दो और रूकू करने वालों के साथ रूकू करो

*तफ़सीर*
     इस आयत में नमाज़ और ज़कात के फ़र्ज़ होने का बयान है और इस तरफ़ भी इशारा है कि नमाज़ों को उनके हुक़ूक़ (संस्कारों) के हिसाब से अदा करो. जमाअत (सामूहिक नमाज़) की तर्ग़ीब भी है.

     हदीस शरीफ़ में है जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना अकेले पढ़ने से सत्ताईस दर्जे ज़्यादा फ़ज़ीलत (पुण्य) रखता है.
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Wednesday 21 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #07
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इसाले सवाब_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया के क़ब्र में मय्यित डूबते हुए फरियादी की तरह होती है के माँ बाप, भाई बहन, या दोस्त की दाए खैर के पहोचने की मुन्तज़िर रहती है, फिर जब उसे दुआ पहोच जाती है तो ये उसे दुन्या की तमाम नेमतों से ज़्यादा प्यारी होती है और अल्लाह ज़मीन वालो की दुआ से क़ब्र वालो को सवाब के पहाड़ देता है और यक़ीनन ज़िन्दा का मुर्दो के लिये दुआए मग्फिरत करना इन के लिये तोहफा है।
*शोएबुल ईमान, 6/203*

*_जिन्दो का तोहफा_*
     हज़रते अनसرضي الله تعالي عنه फरमाते है के में ने हुज़ूरﷺ से सुना के जब कोई मय्यित को इसाले सवाब करता है तो जिब्राईल उसे एक नूरानी तबाक में रख कर क़ब्र के कनारे खड़े हो जाते है और कहते है : ऐ गहरी क़ब्र के साथी ! ये तोहफा तेरे घर वालो ने भेजा है, इसे क़बूल कर ले। फिर जब वो सवाब उस की क़ब्र में दाखिल होता है तो वो मुर्दा उस से बेहद ख़ुशी महसूस करता है और उस के वो पड़ोसी गमगीन हो जाते ही जिन की तरफ कोई शै हदिय्या नही की गई होती।
*✍🏽अलमअजम अलवसत, 5/37*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 81*
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फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा​

#04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अल्लाह का सलाम_*
     हज़रते खदीजतुल कुब्राرضي الله تعالي عنها की शान और अल्लाह के नज़दीक आप का मकामो मर्तबा किस क़दर अरफ़अ व आला है, इस का अंदाज़ा इस रिवायत से लगाइये।
     हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه से मरवी है कि एक दफा हज़रते जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने रसूले अकरमﷺ की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ ! ये खदीजा आ रही है, उन के पास बर्तन है जिसमे खाना है। जब वो आप के पास पहुचे तो उन्हें, उन के रब का और मेरा सलाम कहिये और जन्नत में खौल दार (यानी अंदर से खाली) मोती से बने हुए घर की बिशारत दीजिये, जिस में शोर है न कोई तकलीफ।
*✍🏽सहीह बुखारी, 2/565*

*_सलाम का जवाब_*
     हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها ने सलाम का जवाब देते हुवे कहा : अल्लाह सलाम है और हज़रते जिब्राईल और आप पर सलामती, अल्लाह की रहमते और बरकतें नाज़िल हो।

*_हज़रते ख़दीजा की शाने फ़क़ाहत_*
     इस रिवायत से हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها की दीनी मसाइल की मालूमात और इल्मी क़ाबिलिय्यत मालुम हुई क्यू की आपرضي الله تعالي عنها ने अल्लाह के सलाम के जवाब में इस तरह नही कहा : यानी उस पर सलामती हो। क्यू की आप ने अपनी बे मिसाल फहमो फिरासत से ये बात जान लि थी की अल्लाह के स्लाम का जवाब इस तरह नही दिया जाएगा, जेसे मख्लूक़ को दिया जाता है। सलाम तो अल्लाह के नामो में से एक नाम है नीज़ इन अलफ़ाज़ के ज़रिए मुखातब को सलामती की दुआ दी जाती है।
     चुनांचे, आपرضي الله تعالي عنها ने अल्लाह के सलाम के जवाब में अल्लाह की हम्दो सना बयान की, फिर जिब्राईल और फिर हुज़ूरﷺ की बारगाह में जवाब सलाम अर्ज़ किया। इस से मालुम हुवा की सलाम भेजने वाले के साथ साथ सलाम पहुचाने वाले को भी सलाम का जवाब देना चाहिए।
*फुतूह अलबारी, 8/117*
*फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा, 8*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#41
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④①_*
और ईमान लाओ उस पर जो मैं ने उतारा उसकी तस्दीक़ (पुष्टि) करता हुआ जो तुम्हारे साथ है और सबसे पहले उसके मुनकिर यानी इन्कार करने वाले न बनो(5)
और मेरी आयतों के बदले थोड़े दाम न लो(6)
और मुझ ही से डरो

*तफ़सीर*
     (5) यानी क़ुरआने पाक और तौरात और इंजील पर, जो तुम्हारे साथ हैं, ईमान लाओ और किताब वालों में पहले काफ़िर न बनो कि जो तुम्हारे इत्तिबाअ (अनुकरण) में कुफ़्र करे उसका वबाल भी तुम पर हो.
     (6) इन आयतों से तौरात व इंजील की वो आयतें मुराद है जिन में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तारीफ़ और बड़ाई है. मक़सद यह है कि हुज़ूर की नअत या तारीफ़ दुनिया की दौलत के लिये मत छुपाओ कि दुनिया का माल छोटी पूंजी और आख़िरत की नेअमत के मुक़ाबले में बे हक़ीक़त है.
     यह आयत कअब बिन अशरफ़ और यहूद के दूसरे रईसों और उलमा के बारे में नाज़िल हुई जो अपनी क़ौम के जाहिलों और कमीनों से टके वुसूल कर लेते और उन पर सालाने मुक़र्रर करते थे और उन्होने फलों और नक़्द माल में अपने हक़ ठहरा लिये थे. उन्हें डर हुआ कि तौरात में जो हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नअत और सिफ़त (प्रशंसा) है, अगर उसको ज़ाहिर करें तो क़ौम हुज़ूर पर ईमान ले जाएगी और उन्हें कोई पूछने वाला न होगा. ये तमाम फ़ायदे और मुनाफ़े जाते रहेंगे.
     इसलिये उन्होंने अपनी किताबों में बदलाव किया और हुजू़र की पहचान और तारीफ़ को बदल डाला. जब उनसे लोग पूछते कि तौरात में हुज़ूर की क्या विशेषताएं दर्ज हैं तो वो छुपा लेते और हरगिज़ न बताते. इस पर यह आयत उतरी.
*✍🏽ख़ाज़िन वग़ैरह*
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मदनी पंजसुरह

*जानवर के काटे का अमल*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

ये आयत हर जानवर के काटे के लिये अक्सिर है, 11 बार पढ़ कर काटने की जगह पर दम करे।

*اَمْ اَبْرَ مُوْٓااَمْرًا فَاِنَّا مُبْرِ مُوْنَ o*
*✍🏽पारह 25*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 228*
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Tuesday 20 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#40
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ④ⓞ_*
ऐ याक़ूब की सन्तान (1)
याद करो मेरा वह एहसान जो मैं ने तुम पर किया(2)
और मेरा अहद पूरा करो मैं तुम्हारा अहद पूरा करूंगा(3)
और ख़ास मेरा ही डर रखो(4)

*तफ़सीर*
      (1) इस्त्राईल यानी अब्दुल्लाह, यह इब्रानी ज़बान का शब्द है. यह हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम का लक़ब है.
*✍🏽मदारिक*
     कल्बी मुफ़स्सिर ने कहा अल्लाह तआला ने “या अय्युहन्नासोअ बुदू” (ऐ लोगो इबादत करो) फ़रमाकर पहले सारे इन्सानों को आम दावत दी, फिर “इज़क़ाला रब्बुका” फ़रमाकर उनके मुब्दअ का ज़िक्र किया. इसके बाद ख़ुसूसियत के साथ बनी इस्त्राईल को दावत दी.
     ये लोग यहूदी हैं और यहाँ से “सयक़ूल” तक उनसे कलाम जारी है. कभी ईमान की याद दिलाकर दावत की जाती है, कभी डर दिलाया जाता है, कभी हुज्जत (तर्क) क़ायम की जाती है, कभी उनकी बदअमली पर फटकारा जाता है. कभी पिछली मुसीबतों का ज़िक्र किया जाता है.
     (2) यह एहसान कि तुम्हारे पूर्वजों को फ़िरऔन से छुटकारा दिलाया, दरिया को फाड़ा, अब्र को सायबान किया. इनके अलावा और एहसानात, जो आगे आते हैं, उन सब को याद करो. और याद करना यह है कि अल्लाह तआला की बन्दगी और फ़रमाँबरदारी करके शुक्र बजा लाओ क्योंकि किसी नेअमत का शुक्र न करना ही उसका भुलाना है.
     (3) यानी तुम ईमान लाकर और फ़रमाँबरदारी करके मेरा एहद पूरा करो, मैं नेक बदला और सवाब देकर तुम्हारा एहद पूरा करूंगा. इस एहद का बयान आयत : “व लक़द अख़ज़ल्लाहो मीसाक़ा बनी इस्त्राईला”यानी और बेशक अल्लाह ने बनी इस्त्राईल से एहद लिया. (सूरए मायदा, आयत 12) में है.
     (4) इस आयत में नेअमत का शुक्र करने और एहद पूरा करने के वाजिब होने का बयान है और यह भी कि मूमिन को चाहिये कि अल्लाह के सिवा किसी से न डरे.
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मदनी पंजसुरह

*डरावने ख्वाबो से नजात*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*يَامُتَكَبِّرُ*
21 बार पढ़े, अव्वल आखिर एक एक बार दुरुद शरीफ सोते वक़्त पढ़ लेंगे तो انشاء الله डरावने ख्वाब नही आएँगे।

*✍🏽फैज़ाने सुन्नत, 1/242*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 228*
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Monday 19 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_लोगो को तकलीफ न पहोचाने का इनआम_*
     हज़रते अबू काहिल से मरवी है के जो लोगो को तकलीफ पहोचाने से बाज़ रहा, अल्लाह उसे क़ब्र की तकलीफ से बचाएगा।
*✍🏽अलमजम अलकबीर, 17/361*

     किसी मुसलमान की बिला वजहे शरई दिल आजारी कबीरा गुनाह, हराम और जहन्नम में लेजाने वाले काम है।
     हुज़ूर का फरमान है : जिसने बिला वजहे शरई किसी मुसलमान को इज़ा दी उसने मुझे इज़ा दी और जिसने मुझे इज़ा दी उसने अल्लाह को इज़ा दी।
*✍🏽अलमआजम अलवुसत, 2/386*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त*
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सिरते मुस्तफाﷺ


*_दसवा बाब_* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गज़्वाए मुरैसीअ_*
     इसका दूसरा नाम " गज़्वाए बनी अल मुस्तलिक" भी है "मुरैसीअ" एक मक़ाम का नाम है जो मदीने से 8 मंज़िल दूर है।  
     क़बिलए खज़ाआ का एक खानदान " बनू अल मुस्तलिक" यहाँ आबाद था और इस क़बीले का सरदार हारिष बिन ज़रार था इसने भी मदीने पर फ़ौज़ कशी के लिये लश्कर जमा किया था, जब ये खबर मदीने पहुची तो 2 शाबान सी.5 ही. को हुज़ूरﷺ मदीने पर हज़रते ज़ैद बिन हारिषाرضي الله تعالي عنه को अपना खलीफा बना कर लश्कर के साथ रवाना हुए। इस गज़्वे में हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सलमहرضي الله تعالي عنها भी आपﷺ के साथ थी।
     जब हारिष बिन ज़रार को आपﷺ की तशरीफ़ आवरी की खबर हो गई तो उस पर ऐसी दहशत सुवार हो गई की वो और उस की फ़ौज़ भाग कर मुन्तशिर हो गई मगर खुद मुरैसीअ के बाशिन्दों ने लश्करे इस्लाम का सामना किया और जम कर मुसलमानो पर तीर बरसाने लगे लेकिन जब मुसलमानो ने एक साथ मिल कर हमला कर दिया तो 10 कुफ़्फ़ार मर गए और एक मुसलमान भी शहीद हो गया, बाक़ी सब कुफ़्फ़ार गिरफ्तार हो गए जिन की तादाद 700 से ज़ाइद थी, 2000 ऊंट और 5000 बक़रीया माले गनीमत में सहाबए किराम के हाथ आई।
     गज़्वाए मुरैसीअ जंग के ऐतिबार से तो कोई ख़ास अहमिय्यत नही रखता मगर इस जंग में बाज़ ऐसे अहम वाक़ीआत दरपेश हो गए की ये गज़्वा तारीखे नबवी का एक बहुत ही अहम और शानदार उन्वान बन गया है,

     इन मश्हूर वाक़ीआत में से चाँद वाक़ीआत इन्शा अल्लाह अगली पोस्ट में देखेंगे...
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 307*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#39
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③⑧_*
हमने फ़रमाया तुम सब जन्नत से उतर जाओ फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से कोई हिदायत आए तो जो मेरी हिदायत का पालन करने वाला हुआ उसे न कोई अन्देशा न कुछ ग़म

*तफ़सीर*
     यह ईमान वाले नेक आदमियों के लिये ख़ुशख़बरी है कि न उन्हें बड़े हिसाब के वक़्त ख़ौफ़ हो और न आख़िरत में ग़म. वो बेग़म जन्नत में दाख़िल होंगे.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③⑨_*
और वो जो कुफ्र और मेरी आयतें झुटलांएगे वो दोज़ख़ वाले है उनको हमेशा उस में रहना है।
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मदनी पंजसुरह

*अहद नामा की फ़ज़ीलत*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     जो हर नमाज़ के बाद अहद नामा पढ़े, फ़रिश्ते उसे लिख कर मोहर लगा कर क़यामत के लिये उठा रखे, जब अल्लाह उस बन्दे को क़ब्र से उठाए, फ़रिश्ता वो दस्तावेज़ साथ लाए और निदा की जाए अहद वाले कहा है, उन्हें वो अहद नामा दिया जाए।
     इमाम हकीम तिरमिजी रहमतुल्लाह अलैह ने इसे रिवायत कर के फ़रमाया, इमाम ताऊस रहमतुल्लाह अलैह की वसिय्यत से ये अहद नामा उन के कफ़न में लिखा गया।

*✍🏽दुर्रुल मंशुर, 5/542*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 226*
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Sunday 18 September 2016

शाने खातुने जन्नत फतिमातुज़्ज़हरा

#05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ज़ाइले बतुल ब ज़बानें रसूल_*
*_जो कुछ तेरी ख़ुशी है खुदा को  वोही  अज़ीज़_*
     खातामुल मुरसलीनﷺ ने हज़रते सय्यिदुना फातिमाرضي الله تعالي عنها से फ़रमाया : "तुम्हारे गज़ब से ग़ज़बे इलाही होता है और तुम्हारी रिज़ा से रिज़ाए इलाही।"
*✍🏽अलमुस्तदरक लिल्हाकिम, 4/137*
*_हम को है वोह पसंद जिसे आए तू पसंद_*
     दिलबरे आमिनाﷺ ने इरशाद फ़रमाया : "फातिमाرضي الله تعالي عنها मेरे जिस्म का हिस्सा (टुकड़ा) है जो इसे ना गवार वोह मुझे ना गवार, जो इसे पसन्द वह मुझे पसन्द। रोज़े क़ियामत सिवाए मेरे नसब, मेरे सबब और मेरे अज़्दवाज़ी रिश्तो के तमाम नसब मुनकतेअ(यानि ख़त्म) हो जाएंगे।"
*✍🏽अलमुस्तदरक लिल्हाकिम, 4/144*
*_जिगर गौशए रसूल_*
     अल्लाह के मेहबूबﷺ का इरशाद है : फातिमाرضي الله تعالي عنها तमाम जहानों की औरतों और सब जन्नती औरतो की सरदार है। माजिद फ़रमाया : फातिमाرضي الله تعالي عنها मेरा टुकड़ा है जिस ने इसे नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया।" और एक रिवायत में है : इनकी परेशानी मेरी परेशानी और इन की तकलीफ मेरी तकलीफ है।
*✍🏽मिस्कातुल मसाबिह, 2/436*

     ज़िक्र कर्दा रिवायत से पता चला की अल्लाह ने हज़रते सय्यिदतुना फातिमतुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها की जाते मुक़द्दसा को फ़ज़ाइले हमीदा व कमालाते कषिरा से सरफ़राज़ फ़रमाया हत्ता की आप की ख़ुशी को अपनी खुशी और आप की नाराज़ी को अपनी नाराज़ी करार दिया. यहां उन बद नसीबो के लिए मक़ामे गौर है जो सैय्यदाए कायनातﷺ या आपﷺ की अवलादे पाक की गुस्ताखियां करते और आपﷺ की नाराज़ी मौल ले कर उखरवी तबाही का सामान करते है।
     अहले बैत की तारीफ़ व तौसीफ करने वालों के लिये जन्नत के बागात है और ए अहले बैत के दुश्मनों ! तुम्हारे लिए दोज़ख़ की बिशारत है।
     खुश नसीब है वोह लोग जो अहले बैत किराम से मह्ब्बत करते है और अल्लाह व रसूलﷺ की रिज़ा पाते है क्यूंकि वालिदे फातिमातुज़्ज़हरा व आले फातिमा से महब्बत व अकीदत है और जिसे खुश किस्मती से रसूले पाक की रिज़ा हासिल हो गई उसे रब्ब ता'अला की रिज़ा मिल गई।

     दोनों जहां दुनिया व आख़िरत खुदा की ख़ुशनूदी के ख़्वाहा है और रब्ब त'आला हुज़ूरﷺ को खुश रखना चाहता है जैसा कि इरशाद फरमाता है :
और बेशक करीब है कि तुम्हारा रब्ब तुम्हे इतना देगा की तुम राज़ी हो जाओगे।
*✍🏽पारह 30*
*✍🏽शाने खातुने जन्नत, 26*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#38
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③⑦_*
फिर सीख लिये आदम ने अपने रब से कुछ कलिमे (शब्द) तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़ुबूल की, बेशक वही है बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान

*तफ़सीर*
     आदम अलैहिस्सलाम ने ज़मीन पर आने के बाद तीन सौ बरस तक हया (लज्जा) से आसमान की तरफ़ सर न उठाया, अगरचे हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम बहुत रोने वाले थे, आपके आंसू तमाम ज़मीन वालों के आँसूओं से ज़्यादा हैं, मगर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम इतना रोए कि आप के आँसू हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम और तमाम ज़मीन वालों के आंसुओं के जोड़ से बढ़ गए
*✍🏽ख़ाज़िन*
     तिब्रानी, हाकिम, अबूनईम और बैहक़ी ने हज़रत अली मुर्तज़ा (अल्लाह उनसे राज़ी रहे) से मरफ़ूअन रिवायत की है कि जब हज़रत आदम पर इताब हुआ तो आप तौबह की फ़िक़्र में हैरान थे. इस परेशानी के आलम में याद आया कि पैदाइश के वक़्त मैं ने सर उठाकर देखा था कि अर्श पर लिखा है “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” मैं समझा था कि अल्लाह की बारगाह में वह रूत्बा किसी को हासिल नहीं जो हज़रत मुहम्मद (अल्लाह के दुरूद हों उन पर और सलाम) को हासिल है कि अल्लाह तआला ने उनका नाम अपने पाक नाम के साथ अर्श पर लिखवाया. इसलिये आपने अपनी दुआ में “रब्बना ज़लमना अन्फुसना व इल्लम तग़फ़िर लना व तरहमना लनकूनन्ना मिनल ख़ासिरीन.” यानी ऐ रब हमारे, हमने अपना आप बुरा किया तो अगर तू हमें न बख्शे और हम पर रहम न करे तो हम ज़रूर नुक़सान वालों में हुए. (सूरए अअराफ़, आयत 23) के साथ यह अर्ज़ किया “अस अलुका बिहक्क़े मुहम्मदिन अन तग़फ़िर ली” यानी ऐ अल्लाह मैं मुहम्मद के नाम पर तुझसे माफ़ी चाहता हूँ.
     इब्ने मुन्ज़र की रिवायत में ये कलिमे हैं “अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका बिजाहे मुहम्मदिन अब्दुका व करामतुहू अलैका व अन तग़फ़िर ली ख़तीअती” यानी यारब मैं तुझ से तेरे ख़ास बन्दे मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की इज़्ज़त और मर्तबे के तुफ़ैल में, और उस बुज़ुर्गी के सदक़े में, जो उन्हें तेरे दरबार में हासिल है, मग़फ़िरत चाहता हूँ”.
     यह दुआ करनी थी कि हक़ तआला ने उनकी मग़फ़िरत फ़रमाई. इस रिवायत से साबित है कि अल्लाह के प्यारों के वसीले से दुआ उनके नाम पर, उनके वसीले से कहकर मांगना जायज़ है और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है.
     अल्लाह तआला पर किसी का हक़ (अधिकार) अनिवार्य नहीं होता लेकिन वह अपने प्यारों को अपने फ़ज़्ल और करम से हक़ देता है. इसी हक़ के वसीले से दुआ की जाती है. सही हदीसों से यह हक़ साबित है जैसे आया“मन आमना बिल्लाहे व रसूलिही व अक़ामस सलाता व सौमा रमदाना काना हक्क़न अलल्लाहे  अैयं यदख़ुलल जन्नता”.
     हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तौबह दसवीं मुहर्रम को क़ुबुल हुई. जन्नत से निकाले जाने के वक़्त और नेअमतों के साथ अरबी ज़बान भी आप से सल्ब कर ली गई थी उसकी जगह ज़बाने मुबारक पर सुरियानी जारी कर दी गई थी, तौबह क़ुबुल होने के बाद फिर अरबी ज़बान अता हुई.  
*✍🏽फ़तहुल अज़ीज़*
     तौबह की अस्ल अल्लाह की तरफ़ पलटना है. इसके तीन भाग हैं- एक ऐतिराफ़ यानी अपना गुनाह तस्लीम करना, दूसरे निदामत यानी गुनाह की शर्म, तीसरे कभी गुनाह न करने का एहद. अगर गुनाह तलाफ़ी (प्रायश्चित) के क़ाबिल हो तो उसकी तलाफ़ी भी लाज़िम है. जैसे नमाज़ छोड़ने वाले की तौबह के लिये पिछली नमाज़ों का अदा करना अनिवार्य है.
     तौबह के बाद हज़रत जिब्रील ने ज़मीन के तमाम जानवरों में हज़रत अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त का ऐलान किया और सब पर उनकी फ़रमाँबरदारी अनिवार्य होने का हुक्म सुनाया. सबने हुकम मानने का इज़हार किया.
*✍🏽फ़त्हुल अज़ीज़*
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मदनी पंजसुरह

*फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*اَللّٰهُمَّ اَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَاذَاالْجَلَالِ وَالْاِكْرَامِ*

ऐ अल्लाह ! तू सलामती देने वाला है और तेरी ही तरफ से सलामती है तू बरकत वाला है ऐ जलाल व बुज़ुर्गी वाले।

*✍🏽सहीह मुस्लिम, 298*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Saturday 17 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मरीज़ की इयादत_*
     हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने इरशाद फ़रमाया : हज़रते मूसा ने अल्लाह से अर्ज़ की के मरीज़ की इयादत करने वाले को क्या अज्र मिलेगा ? तो अल्लाह ने इरशाद फ़रमाया : उस के लिये दो फ़रिश्ते मुक़र्रर किये जाएंगे जो क़यामत तक उस की क़ब्र में रोज़ाना उस की इयादत करेंगे।
*✍🏽शरह सुदूर, 159*

*_इयादत के मदनी फूल_*
      हज़रते अल्लामा मौलाना मुफ़्ती महम्मद अली आज़मी अलैरहमा फरमाते है : मरीज़ की इयादत करना सुन्नत है।
     अगर मालुम है के इयादत को जाएगा तो उस बीमार पर गिरा गुज़रेगा ऐसी हालत में इयादत न करे।
     इयादत को जाए और मरज़ की सख्ती देखे तो मरीज़ के सामने ये ज़ाहिर न करे के तुम्हारी हालत खराब है और न सर हिलाए जिस से हालत का खराब होना समजा जाता है।
     उसके सामने ऐसी बाते करनी चाहिए जो उस के दिल को भली मालुम हो।
     उसकी मिज़ाज पुरसी करे, उसके सर पर हाथ न रखे मगर जबके वो इस की ख्वाहिश करे।
     फ़ासिक़ की इयादत भी जाइज़ है क्यू की इयादत हुक़ूके इस्लाम से है और फ़ासिक़ भी मुस्लिम है।
*✍🏽बहारे शरीअत, 16/148*

*_मरीज़ के लिये एक दुआ_*
     हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه से रिवायत है के हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया के जिस ने किसी ऐसे मरीज़ की इयादत की जिस की मौत का वक़्त क़रीब न आया हो और सात मर्तबा ये अलफ़ाज़ कहे तो अल्लाह उसे उस मरज़ से शिफ़ा अता फ़रमाएगा :
*اَسْىٔلُ اللّٰهَ الْعَظِيْمَ رَبَّ الْعَرْشِ الْعَظِيْمِ اَنْ يَّشْفِيَك*
में अज़मत वाले, अर्शे अज़ीम के मालिक अल्लाह से तेरे लिये शिफ़ा का सुवाल करता हु।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 3/152*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 70*
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फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल

#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_तआरुफे उमर फ़ारुके आज़म_*
     खलिफए दुवम, हज़रते उमरرضي الله تعالي عنه की कून्यत "अबू हफ़्स" और लक़ब "फ़ारुके आज़म" है। एक रिवायत में है आप 39 मर्द के बाद हुज़ूरﷺ की दुआ से एलान नुबुव्वत के छटे साल ईमान लाए, इसी लिए आप को मुतम्मिल अरबइन यानी "40 का अदद पूरा करने वाले" कहते है।
     आपرضي الله تعالي عنه के इस्लाम क़बूल करने से मुसलमानो को बेहद ख़ुशी हुई और उन को बहुत बड़ा सहारा मिल गया, यहाँ तक की हुज़ूरﷺ ने मुसलमानो के साथ मिल कर हरमे मोहतरम में ऐलानिया नमाज़ अदा फ़रमाई।
     आपرضي الله تعالي عنه इस्लामी जंगो में मुजाहिदाना शान के साथ बर सरे पैकार रहे और तमाम मन्सूबा बंदियों में हुज़ूरﷺ के वज़ीर व मुशीर की हेसिय्यत से वफादार व रफिके कार रहे।
     खलिफए अव्वल, हज़रते अबू बक्रرضي الله تعالي عنه ने अपने बाद हज़रते फारुके आज़मرضي الله تعالي عنه को खलीफा मुन्तख़ब फ़रमाया, आप ने तख्ते खिलाफत पर रौनक अफ़रोज़ रह कर जानशिनिये मुस्तफाﷺ की तमाम तर जिम्मेदारियो को बहुत ही अच्छे अंदाज़ से सर अंजाम दिया।
     बिल आखिर नमाज़े फज़र में एक बदबख्त ने आपرضي الله تعالي عنه पर खन्जर से वार किया और आप ज़ख्मो की ताब न लाते हुवे तीसरे दिन शरफे शहादत से सरफ़राज़ हो गए। ब वक़्ते वफ़ात आप की उम्र 63 बरस थी।
     हज़रते सुहैबرضي الله تعالي عنه ने आपرضي الله تعالي عنه की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और हज़रए उमर बिन खत्ताब रौज़ए मुबारका के अंदर हज़रते सिद्दीके अकबरرضي الله تعالي عنه के पहलुए अन्वर में मदफुन हुवे, जो की सरकारﷺ के मुबारक पहलु में आराम फरमा है।
*फ़ारुके आज़म का इश्के रसूल, 7*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#37

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③⑥_*
तो शैतान ने उससे (यानी जन्नत से) उन्हें लग़ज़िश (डगमगाहट) दी और जहां रहते थे वहां से उन्हें अलग कर दिया (1)
और हमने फ़रमाया नीचे उतरो(2)
आपस में एक तुम्हारा दूसरे का दुश्मन और तुम्हें एक वक्त़ तक ज़मीन में ठहरना और बरतना है(3)

*तफ़सीर*
     (1) शैतान ने किसी तरह हज़रत आदम और हव्वा के पास पहुंचकर कहा, क्या मैं तुम्हें जन्नत का दरख़्त बता दूँ ? हज़रत आदम ने इन्कार किया. उसने क़सम खाई कि में तुम्हारा भला चाहने वाला हूँ. उन्हें ख़याल हुआ कि अल्लाह पाक की झूठी क़सम कौन खा सकता है. इस ख़याल से हज़रत हव्वा ने उसमें से कुछ खाया फिर हज़रत आदम को दिया, उन्होंने भी खाया.
     हज़रत आदम को ख़याल हुआ कि “ला तक़रबा” (इस पेड़ के पास न जाना) की मनाही तन्ज़ीही (हल्की ग़ल्ती) है, तहरीमी नहीं क्योंकि अगर वह हराम के अर्थ में समझते तो हरगिज ऐसा न करते कि अंबिया मासूम होते हैं,
     यहाँ हज़रत आदम से इज्तिहाद (फैसला) में ग़लती हुई और इज्तिहाद की ग़लती गुनाह नहीं होती.
     (2) हज़रत आदम और हव्वा और उनकी औलाद को जो उनके सुल्ब (पुश्त) में थी जन्नत से ज़मीन पर जाने का हुक्म हुआ. हज़रत आदम हिन्द की धरती पर सरअन्दीप (मौजूदा श्रीलंका) के पहाड़ों पर और हज़रत हव्वा जिद्दा में उतारे गए।
*✍🏽ख़ाज़िन*
     हज़रत आदम की बरकत से ज़मीन के पेड़ों में पाकीज़ा ख़ुश्बू पैदा हुई.
*✍🏽रूहुल बयान*
     (3) इससे उम्र का अन्त यानी मौत मुराद है. और हज़रत आदम के लिए बशारत है कि वह दुनिया में सिर्फ़ उतनी मुद्दत के लिये हैं उसके बाद उन्हे जन्नत की तरफ़ लौटना है और आपकी औलाद के लिये मआद (आख़िरत) पर दलालत है कि दुनिया की ज़िन्दगी निश्चित समय तक है. उम्र पूरी होने के बाद उन्हें आख़िरत की तरफ़ पलटना है.
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मदनी पंजसुरह

*फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*اَللّٰهُمَّ اَعِنِّى عَلٰى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ*

ऐ अल्लाह तू अपने ज़िक्र व शुक्र और हुस्ने इबादत पर मेरी मदद फरमा।

*✍🏽सुनन इब्नइ दाऊद, 2/123*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Friday 16 September 2016

मदनी पंजसुरह

*फ़र्ज़ नमाज़ के बाद की दुआ* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर नमाज़ के बाद पेशानी यानी सर के अगले हिस्से पर हाथ रख कर पढ़े :

*بِسْمِ اللّٰهِ الَّذِىْ لَآاِلٰهَ اِلَّاهُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِيْمُ اَللّٰهُمَّ اَذْهِبْ عَنِّى الْهَمَّ وَالْحُزْنَ*

अल्लाह के नाम से जिस के सिवा कोई मअबूद नही, वो रहमान व रहीम है, ऐ अल्लाह मिझ से गम व रन्ज को दूर कर दे।

और हाथ खीच कर माथे तक ले जाए।
*✍🏽मजमउ ज़्ज़वाइद, 10/144*
*✍🏽बहारे शरीअत, जी। अव्वल, हिस्सा सीवुम, 539*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 225*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Thursday 15 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#35

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③④_*
और (याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सिजदा करो तो सबने सिजदा किया सिवाए इबलीस (शैतान) के कि इन्कारी हुआ और घमन्ड किया ओर काफ़िर हो गया.

*तफ़सीर*
     अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सारी सृष्टि का नमूना और रूहानी व जिस्मानी दुनिया का मजमूआ बनाया और फ़रिश्तों के लिये कमाल हासिल करने का साधन किया तो उन्हें हुक्म फ़रमाया कि हज़रत आदम को सज्दा करें क्योंकि इसमें शुक्रगुज़ारी और हज़रत आदम के बड़प्पन के एतिराफ़ और अपने कथन की माफ़ी की शान पाई जाती है.
     कुछ विद्वानो ने कहा है कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम को पैदा करने से पहले ही सज्दे का हुक्म दिया था, उसकी सनद (प्रमाण) यह आयत है : “फ़ इज़ा सव्वैतुहू व नफ़ख़्तो फ़ीहे मिर रूही फ़क़ऊ लहू साजिदीन” (सूरए अल-हिजर, आयत 29) यानी फिर जब मैं उसे ठीक बनालूं और उसमें अपनी तरफ़ की ख़ास इज़्ज़त वाली रूह फूंकूं तो तुम उसके लिये सज्दे में गिरना.
*✍🏽बैज़ावी*
     सज्दे का हुक्म सारे फ़रिश्तों को दिया गया था, यही सब से ज़्यादा सही है.
*✍🏽ख़ाज़िन*
     सज्दा दो तरह का होता है एक इबादत का सज्दा जो पूजा के इरादे से किया जाता है, दूसरा आदर का सज्दा जिससे किसी की ताज़ीम मंजूर होती है न कि इबादत. इबादत का सज्दा अल्लाह तआला के लिए ख़ास है, किसी और के लिये नहीं हो सकता न किसी शरीअत में कभी जायज़ हुआ. यहाँ जो मुफ़स्सिरीन इबादत का सज्दा मुराद लेते हैं वो फ़रमाते हैं कि सज्दा ख़ास अल्लाह तआला के लिए था और हज़रत आदम क़िबला बनाए गए थे. मगर यह तर्क कमज़ोर है क्योंकि इस सज्दे से हज़रत आदम का बड़प्पन, उनकी बुज़ुर्गी और महानता ज़ाहिर करना मक़सूद थी. जिसे सज्दा किया जाए उस का सज्दा करने वाले से उत्तम होना कोई ज़रूरी नहीं, जैसा कि काबा हूज़ुर सैयदुल अंबिया का क़िबला और मस्जूद इलैह (अर्थात जिसकी तरफ़ सज्दा हो) है, जब कि हुज़ूर उससे अफ़ज़ल (उत्तम) है.
     दूसरा कथन यह है कि यहां इबादत का सज्दा न था बल्कि आदर का सज्दा था और ख़ास हज़रत आदम के लिये था, ज़मीन पर पेशानी रखकर था न कि सिर्फ़ झुकना. यही कथन सही है, और इसी पर सर्वानुमति है.
*✍🏽मदारिक*
     आदर का सज्दा पहली शरीअत में जायज़ था, हमारी शरीअत में मना किया गया. अब किसी के लिये जायज़ नहीं क्योंकि जब हज़रत सलमान (अल्लाह उनसे राज़ी हो) ने हूज़ुर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सज्दा करने का इरादा किया तो हूजु़र ने फ़रमाया मख़लूक़ को न चाहिये कि अल्लाह के सिवा किसी को सज्दा करें.
*✍🏽मदारिक*
     फ़रिश्तों में सबसे पहले सज्दा करने वाले हज़रत जिब्रील हैं, फिर मीकाईल, फिर इसराफ़ील, फिर इज़्राईल, फिर और क़रीबी फ़रिश्तें. यह सज्दा शुक्रवार के रोज़ ज़वाल के वक़्त से अस्र तक किया गया. एक कथन यह भी है कि क़रीबी फ़रिश्तें सौ बरस और एक कथन में पाँच सौ बरस सज्दे में रहे.
     शैतान ने सज्दा न किया और घमण्ड के तौर पर यह सोचता रहा कि वह हज़रत आदम से उच्चतर है, और उसके लिये सज्दे का हुक्म (मआज़ल्लाह) हिक़मत (समझदारी) के ख़िलाफ़ है. इस झूटे अक़ीदे से वह काफिर हो गया.
     आयत में साबित है कि हज़रत आदम फ़रिश्तों से ऊपर हैं कि उनसे उन्हें सज्दा कराया गया. घमण्ड बहुत बुरी चीज़ है. इससे कभी घमण्डी की नौबत कुफ़्र तक पहुंचती है.
*✍🏽बैज़ावी व जुमल*
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #22
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_दुआए बराए रोशनिये चश्म_*
     आयतुल कुरसी हर नमाज़ के बाद एक बार पढ़ी जाए और नमाज़े पन्जगाना की पाबन्दी करे, और जब इस कलिमे पर पहुचे
*وَلَاَيَءُوْدُهُ حِفْظُهُمَا*
तो दोनों हाथ की उंगलियो के पोरे आँखों पर रख कर इस कलिमे को 11 बार पढ़े फिर आयतुल कुर्सी पूरी करले और दोनों हाथो की उंगलियो पर डीएम कर के आँखों पर फेर ले।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 224*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Monday 12 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सब्र के अनवार_*
     एक तवील हदिष में ये भी है के जब मरने वाले को क़ब्र में रखा जाता है तो नमाज़ उसकी दाई तरफ आती है और रोज़े बाई तरफ और क़ुरआन व ज़िक्रो अज़्कार उस के सर के पास और उसका नमाज़ों की तरफ चलना क़दमो की तरफ और सब्र क़ब्र के एक गोशे में आता है।

     फिर अल्लाह अज़ाब भेजता है तो नमाज़ कहती है पीछे हट के ये तमाम ज़िन्दगी तकालिफ् बर्दाश्त करता रहा, अब आराम से लैटा है।
     फिर अज़ाब बाई तरफ से आता है तो रोज़े यही जवाब देते है, सर की जानिब से आता है तो यही जवाब मिलता है। पस अज़ाब किसी जानिब से भी उस के पास नही पहोचता। जिस राह से जाना चाहता है उसी तरफ से अल्लाह के दोस्त को महफूज़ पाता है लिहाज़ा  वो वहा से चला जाता है।
     उस वक़्त सब्र तमाम आमाल से कहता के में इस लिये न बोला के अगर तुम सब आजिज़ हो जाते तो में बोलता, लेकिन में अब पुल सिरात और मीज़ान पर काम आऊंगा।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 66*
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फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा

#05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ज़ाइले आइशा पर मुश्तीमल 7 रिवायात_* #01
     (1)... एक रोज़ रसुले खुदाﷺ ने हज़रते सय्यि-दतुना अइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها से फ़रमायाः ऐ आइशा ! येह जिब्रईल हैं ,तुम्हें सलाम कहते हैं।
*✍फज़ल आईशा, 842,हदीस :388*

     (2)... हज़रते सय्यिदुना जिब्रईल सब्ज रेशमी कपड़े में हज़रते सय्यि-दतुना आइशा सिद्दीकाرضي الله تعالي عنها की तस्वीर ले कर बारगाहे रिसालतﷺ में हाजिर हुए आरै अर्ज की : "येह दुन्या व आखिरत मे आप की ज़ौजा हैं।"
*✍एज़न, हदिस 389*

     (3)... हजरते सय्यिदूना अम्र बिन आसرضي الله تعالي عنه फरमाते हैःमैं ने बारगाहे रिसालत मे अर्ज कीः या रसुलल्लाहﷺ ! आप के नज़्दीक सब से प्यारा इन्सान कौन है ? फ़रमाया : आइश़ा ! मैं ने फिर पुच्छा : और मर्दों में से ? फ़रमाया : उन के वालिद (या'नी हजरते अबु बक्र सिद्दीक़ )!

     (4)... नबिय्ये अकरमﷺ ने अपनी लाडली शहज़ादी हज़रते सय्यि-दतुना फत़िमाرضي الله تعالي عنها को मुखात़ब कर के इर्शाद फरमायाः रब्बे का'बा की क़सम ! तूम्हारे वालिद केा आइशा बहूत ज़ियादा महबूब हैं।
*✍कीताबूल अलारीब, 468,हादीस3898*

     (5)... हज़रते सय्यिदुना अनस बिन मालिकرضي الله تعالي عنه बयान करते है कि सरकारे मदीनाﷺ के पड़ासे में रहने वाला एक ईरानी जो शोरबा बहूत अच्छा बनाता था, एक दिन तसा ने रसुले खूदा के लिये बनाया और आप केा दा'वत देने हा़जिर हुवा तो आपﷺ ने इस्तिफ़्सात फ़रमायाः और क्या आइशा भी، अंर्ज की : नहीं । इस पर आपﷺ ने उस की दा'वत क़बूल करने से इन्कार कर दिया, उस ने दोबारा दांवत दी आपﷺ ने फिर दरयाफत फरमाया: आरै क्या अइशा भी ? उस ने इंनकार किया तो आपﷺ ने भी इन्कार फरमा दिया । उस ने तीसरी दफ़आ दा'वत दी आपﷺ ने फिर पुछाः क्या अइशा भी? उस ने अर्ज़ कीः जी हां। (इन की भी दा' वत है) तब आप दोनों एक दूसरे को थामते हूए अठे और उस के घर तशरीफ़ ले गएं।
*✍साहि मुसलीम, 808,हादिस:2034*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 17*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#34

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③①_*
और अल्लाह तआला ने आदम को सारी (चीज़ों के) नाम सिखाए(1)
फिर सब (चीज़ों) को फ़रिश्तों पर पेश करके फ़रमाया सच्चे हो तो उनके नाम तो बताओ (2)
*तफ़सीर*
     (1) अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर तमाम चीज़ें और सारे नाम पेश फ़रमाकर उनके नाम, विशेषताएं, उपयोग, गुण इत्यादि सारी बातों की जानकारी उनके दिल में उतार दी.
     (2) यानी अगर तुम अपने इस ख़याल में सच्चे हो कि मैं कोई मख़लूक़ (प्राणी जीव) तुमसे ज़्यादा जगत में पैदा न करूंगा और ख़िलाफ़त के तुम्हीं हक़दार हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ क्योंकि ख़लीफ़ा का काम तसर्रूफ़ (इख़्तियार) और तदबीर, इन्साफ और अदल है और यह बग़ैर इसके सम्भव नहीं कि ख़लीफ़ा को उन तमाम चीज़ों की जानकारी हो जिनपर उसको पूरा अधिकार दिया गया और जिनका उसको फ़ैसला करना है.
     अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के फ़रिश्तों पर अफ़ज़ल (उच्चतर) होने का कारण ज़ाहिरी इल्म फ़रमाया. इससे साबित हुआ कि नामों का इल्म अकेलेपन और तनहाइयों की इबादत से बेहतर है. इस आयत से यह भी साबित हुआ कि नबी फ़रिश्तों से ऊंचे हैं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③②_*
बोले पाकी है तुझे हमें कुछ इल्म नहीं मगर जितना तूने हमें सिखाया बेशक तू ही इल्म और हिकमत वाला है
*तफ़सीर*
     इसमें फ़रिश्तों की तरफ़ से अपने इज्ज़ (लाचारी) और ग़लती का ऐतिराफ और इस बात का इज़हार है कि उनका सवाल केवल जानकारी हासिल करने के लिये था, न कि ऐतिराज़ की नियत से. और अब उन्हें इन्सान की फ़ज़ीलत (बड़ाई) और उसकी पैदाइश का रहस्य मालूम हो गया जिसको वो पहले न जानते थे.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③③_*
फ़रमाया ऐ आदम बतादे उन्हें सब (चीज़ों) के नाम जब उसने (यानि आदम ने)उन्हें सब के नाम बता दिये(1)
फ़रमाया मैं न कहता था कि मैं जानता हूं जो कुछ तुम ज़ाहिर करते और जो कुछ तुम छुपाते हो (2)
*तफ़सीर*
     (1) यानी हज़रत आदम अहैहिस्सलाम ने हर चीज़ का नाम और उसकी पैदाइश का राज़ बता दिया.
     (2) फ़रिश्तों ने जो बात ज़ाहिर की थी वह थी कि इन्सान फ़साद फैलाएगा, ख़ून ख़राबा करेगा और जो बात छुपाई थी वह यह थी कि ख़िलाफ़त के हक़दार वो ख़ुद हैं और अल्लाह तआला उनसें ऊंची और जानकार कोई मख़लूक़ पैदा न फ़रमाएगा.
     इस आयत से इन्सान की शराफ़त और इल्म की बड़ाई साबित होती है और यह भी कि अल्लाह तआला की तरफ तालीम की निस्बत करना सही हैं. अगरचे उसको मुअल्लिम (उस्ताद) न कहा जाएगा, क्योंकि उस्ताद पेशावर तालीम देने वाले को कहते हैं.
     इससे यह भी मालूम हुआ कि सारे शब्दकोष, सारी ज़बानें अल्लाह तआला की तरफ़ से हैं. यह भी साबित हुआ कि फ़रिश्तों के इल्म और कमालात में बढ़ौत्री होती है.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #21
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ताज़िय्यत करते वक़्त की दुआ_*

*اِنَّ لِلّٰهِ مَآ اَخَذَ وَلَهُ مَآ اَعْطٰى وَكُلٌّ عِنْدَهُ بِاَجَلٍ مُسَمًّى فَلْتَصْبِرْ وَلْتَحْتَسِبْ*

बेशक अल्लाह ही का है जो उस ने ले लिया और जो कुछ उसने दिया है हर चीज़ की उस बारगाह में मीआद मुक़र्रर है पस चाहिये कि तू सब्र करे और षवाब की उम्मीद रखे।

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/434*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 223*
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Sunday 11 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को रौनक बख्शने और इसे आराम देह बनाने वाले आमाल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुझे नमाज़ पढ़ने दो_*
     हदिष में है की जब मैय्यत क़ब्र मे दाखिल की जाती है तो उसे सुरज डूबता (यानी गुरुब होता) नज़र हुवा मालुम होता है तो वो आँखे मलता हुवा बैठता है और कहता है : मुझे छोडो में नमाज़ पढ़ लू।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, 4/503*
      हज़रते मुल्ला अली कारी अलैरहमा लिखते है : गोया वो उस वक़्त अपने आप को दुन्या ही में तसव्वुर करता है के सुवाल व जवाब रहने दो मुझे फ़र्ज़ अदा करने दो, वक़्त खत्म हुवा जा रहा है, मेरी नमाज़ जाती रहेगी।
     ये बात वही कहेगा जो दुन्या में नमाज़ का पाबन्द था और उस को हर वक़्त नमाज़ का ख्याल लगा रहता था।

*_दो अँधेरे दूर होंगे_*
     मन्कुल है के अल्लाह ने हज़रते मूसा कलीमुल्लाह से फ़रमाया के में ने उम्मते मुहम्मदिया को दो नूर अता किये है ताके वो दो अंधेरो के नुकसान से महफूज़ रहे। मूसा कलीमुल्लाह ने अर्ज़ की : या अल्लाह ! वो दो नूर कौन से है ? इरशाद हुवा : *नुरे रमज़ान* और *नुरे कुरआन*। अर्ज़ की: दो अँधेरे कौन से है ? फ़रमाया एक क़ब्र का और दूसरा क़यामत का।
*✍🏽दुर्र्त्तुन नासिहीन, 9*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 63*
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फैज़ाने सिद्दीके अकबर

#04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*अतीक़ लक़ब की वुजुहात* #01

*_जहन्नम से आज़ादी के सबब अतीक़_*
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه से रिवायत है कि हज़रते अबू बक़र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه का नाम 'अब्दुल्लाह' था, हुज़ूरﷺ ने उन्हें फ़रमाया : तुम जहन्नम से आज़ाद हो। तब से आप का नाम अतीक़ हो गया।
*✍🏽सहीह इब्ने हबान, 9/2*
     हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है : में एक दिन अपने घर में थी, रसूलल्लाहﷺ और सहाबा सहन में तशरीफ़ फरमा थे, मेरे और इन के माबैन चारपाई रखी थी, अचानक मेरे वालिद हज़रते अबू बक्र तशरीफ़ ले आए तो हुज़ूरﷺ ने इन की टफ देख कर अपने असहाब से कहा : जिसे दोज़ख से आज़ाद शख्स को देखना हो वो अबू बक्र को देख ले। इसके बाद से आपرضي الله تعالي عنه अतीक़ मशहूर हो गए।

*_हुस्नो जमाल के सबब अतीक़_*
     हज़रते लैस बिन साद , हज़रते इमाम अहमद बिन हम्बल, अल्लामा इब्ने मुईन और दीगर कई उल्माए किराम फरमाते है की आपرضي الله تعالي عنه को चेहरे के हुस्नो जमाल के सबब अतीक़ कहा जाता है। इमाम तबरानी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बासرضي الله تعالي عنه से रिवायत की है की आपرضي الله تعالي عنه को चेहरे के हुस्नो जमाल के सबब अतीक़ कहा जाता था।
*✍🏽अल-मआजम अल-कबीर, 1/52*
*✍🏽तारीखे खलीफा, 22*

*_खैर में मुक़द्दम होने के सबब अतीक़_*
     अल्लामा अबू नुएम फ़ज़्ल बिन दुकैन अलैरहमा फरमाते है : खैरो खूबी में सब से पहले और दीगर अफ़राद से मुक़द्दम होने की वजह से आपرضي الله تعالي عنه को अतीक़ कहा जाता है।

*_नसब की पाकीज़गी के सबब अतीक़_*
     हज़रते ज़ुबैर बिन बकार अलैरहमा और इन के साथ एक पूरी जमाअत ने बयान किया है की : हसबो नसब की पाकीज़गी की वजह से आपرضي الله تعالي عنه को अतीक़ कहा जाता है क्यू की आप के नसब में कोई ऐसी कमज़ोरी नही थी जिस की वजह से आप की एबजुइ की जाती।
*✍🏽फैज़ाने सिद्दीके अकबर, 21*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#33
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③ⓞ_*
और याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से फ़रमाया मैं ज़मीन में अपना नायब बनाने वाला हूं(1)
बोले क्या ऐसे को (नायब) करेगा जो उसमें फ़साद फैलाएगा और ख़ून बहाएगा (2)
और तुझे सराहते हुए तेरी तस्बीह (जाप) करते हैं और तेरी पाकी बोलते हैं फ़रमाया मुझे मालूम है जो तुम नहीं जानते (3)

*तफ़सीर*
      (1) ख़लीफ़ा निर्देशो और आदेशों के जारी करने और दूसरे अधिकारों में अस्ल का नायब होता है. यहाँ ख़लीफ़ा से हज़रत आदम (अल्लाह की सलामती उनपर) मुराद है. अगरचे और सारे नबी भी अल्लाह तआला के ख़लीफ़ा हैं. हज़रत दाउद  अलैहिस्सलाम के बारे में फ़रमाया : “या दाउदो इन्ना जअलनाका ख़लीफ़तन फ़िलअर्दे” (सूरए सॉद, आयत 26) यानी ऐ दाऊद,  बेशक हमने तुझे ज़मीन में नायब किया, तो लोगो में सच्चा हुक्म कर.फ़रिश्तों को हज़रत आदम की ख़िलाफ़त की ख़बर इसलिये दी गई कि वो उनके ख़लीफ़ा बनाए जाने की हिकमत (रहस्य) पूछ कर मालूम करलें और उनपर ख़लीफ़ा की बुज़र्गी और शान ज़ाहिर हो कि उनको पैदाइश से पहले ही ख़लीफ़ा का लक़ब अता हुआ और आसमान वालों को उनकी पैदाइश की ख़ुशख़बरी दी गई.
     इसमें बन्दों को तालीम है कि वो काम से पहले मशवरा किया करें और अल्लाह तआला इससे पाक है कि उसको मशवरे की ज़रूरत हो.
     (2) फ़रिश्तों को मक़सद एतिराज या हज़रत आदम पर लांछन नहीं, बल्कि ख़िलाफ़त का रहस्य मालूम करना है, और इंसानों की तरफ़ फ़साद फैलाने की बात जोड़ना इसकी जानकारी या तो उन्हें अल्लाह तआला की तरफ़ से दी गई हो या लौहे मेहफ़ूज से प्राप्त हुई हो या ख़ुद उन्होंने जिन्नात की तुलना में अन्दाज़ा लगाया हो.
     (3) यानी मेरी हिकमतें (रहस्य) तुम पर ज़ाहिर नहीं. बात यह है कि इन्सानों में नबी भी होंगे, औलिया भी, उलमा भी, और वो इल्म और अमल दोनों एतिबार से फज़ीलतों (महानताओ) के पूरक होंगे.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* # 20
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_मुसीबत के वक़्त की दुआ_*

*اِنَّالِلّٰهِ وَاِنَّآ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ o اَللّٰهُمَّ اَجِرْنِىْ فِىْ مُصِيْبَتِىْ وَاَخْلِفْ لِىْ خَيْرًا مَّنْهَا*

बेशक हम अल्लाह के है और बेशक हम उसी की तरफ लौटने वाले है, ऐ अल्लाह ! मेरी मुसबित में मुझे अज्र दे और मुझे इस से बेहतर अता फरमा।
*सहीह मुस्लिम, 457*
*मदनी पंजसुरह, 222*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Saturday 10 September 2016

फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा

#03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_नाम व नसब, कून्यत व अल्क़ाबात_*
     आपرضي الله تعالي عنها का नाम खदीजा, वालिद का नाम खुवैलिद और वालिदा का नाम फातिमा है।
     नसब के हवाले से आपرضي الله تعالي عنها को ये फ़ज़ीलत हासिल है की दीगर अज़्वाजे मुतह्हरात की निस्बत सब से कम वासितो से आप का नसब रसूले करीमﷺ के नसब से मिल जाता है।
     आपرضي الله تعالي عنها की कून्यत उम्मुल क़ासिम और उम्मे हिन्द है और आपرضي الله تعالي عنها के अल्क़ाबात बहुत है, जिन में से चन्द ये है।
     चुनांचे सब से मशहूर लक़ब "अल कुब्रा" है, ये आपرضي الله تعالي عنها के नाम के साथ इस कसरत से बोला जाता है कि गोया नाम ही का हिस्सामालूम होता है। एक मश्हूर लक़ब "ताहिरा" है कि ज़मानए जाहिलिय्यत में भी आपرضي الله تعالي عنها को ताहिरा कह कर पुकारा जाता थान नीज़ आपرضي الله تعالي عنها को "सय्यिदतुल कुरैश" भी कहा जाता था। इसी तरह "सिद्दीक़ा" भी आपرضي الله تعالي عنها का लक़ब है। रिवायत में है कि प्यारे आक़ाﷺ ने इरशाद फ़रमाया : ये मेरी उम्मत की सिद्दीक़ा है।

*✍🏽फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा, 7*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान​

#32
*​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​*
*​اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ​*

*_​​सूरतुल बक़रह, आयत ②⑨_*
वही है जिसने तुम्हारे लिये बनाया जो कुछ ज़मीन में है (1)
फिर आसमान की तरफ़ इस्तिवा (क़सद, इरादा) फ़रमाया तो ठीक सात आसमान बनाए और वह सब कुछ जानता हैं (2)

*तफ़सीर*
     (1) यानी खानें, सब्ज़े, जानवर, दरिया, पहाड जो कुछ ज़मीन में है सब अल्लाह तआला ने तुम्हारे दीनी और दुनियावी नफ़े के लिये बनाए. दीनी नफ़ा इस तरह कि ज़मीन के अजायबात देखकर तुम्हें अल्लाह तआला की हिकमत और कुदरत की पहचान हो और दुनियावी मुनाफ़ा यह कि खाओ पियो, आराम करो, अपने कामों में लाओ तो इन नेअमतो के बावुजूद तुम किस तरह कुफ़्र करोगे.
     कर्ख़ी और अबूबक्र राज़ी वग़ैरह ने “ख़लक़ा लकुम” (तुम्हारे लिये बनाया) को फ़ायदा पहुंचाने वाली चीज़ों की मूल वैघता (मुबाहुल अस्ल) की दलील ठहराया है.
     (2) यानी यह सारी चीज़ें पैदा करना और बनाना अल्लाह तआला के उस असीम इल्म की दलील है जो सारी चीज़ों को घेरे हुए है, क्योंकि ऐसी सृष्टि का पैदा करना, उसकी एक-एक चीज़ की जानकारी के बिना मुमकिन नहीं.
     मरने के बाद ज़िन्दा होना काफ़िर लोग असम्भव मानते थे. इन आयतों में उनकी झूठी मान्यता पर मज़बूत दलील क़ायम फ़रमादी कि जब अल्लाह तआला क़ुदरत वाला (सक्षम) और जानकार है और शरीर के तत्व जमा होने और जीवन की योग्यता भी रखते हैं तो मौत के बाद ज़िन्दगी कैसे असंभव हो सकती है, आसमान और ज़मीन की पैदाइश के बाद अल्लाह तआला ने आसमान में फरिश्तों को और ज़मीन में जिन्नों को सुकूनत दी. जिन्नों ने फ़साद फैलाया तो फ़रिश्तो की एक जमाअत भेजी जिसने उन्हें पहाडों और जज़ीरों में निकाल भगाया.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #19
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इयादत करते वक़्त की दो दुआए_*

*لَا بَاْسَ طَهُوْرٌ اِنْ شَآءَ اللّٰهُ*
कोई हरज की बात नही انشاء الله ये मरज़ गुनाहो से पाक करने वाला है।
*✍🏽सहीह बुखारी, 2/505*

*اَسْأَلُ اللّٰهَ الْعَظِيْمَ رَبَّ الْعَرْشِ الْعَظِيْمِ اَنْ يَّشْفِيَكَ*
में अज़मत वाले से सुवाल करता हु जो अर्हसि अज़ीम का मालिक है की वो तुझे शिफ़ा दे।
*✍🏽सुनन अबी दाऊद, 3251*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 222*

*नॉट :* जिन हजरात को अरबी नही आती वो तर्जुमा याद करले और उसे पढ़े। और जो अरबी जानते है वो तर्जुमे को जहन में रखे ताकि पता चले की हम क्या पढ़ रहे है, ये दुआ में क्या है। अपनी मादरी ज़बान में दुआ पढ़ना बेहतर है।
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Friday 9 September 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#31
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑧_*
भला तुम कैसे ख़ुदा का इन्कार करोगे हालांकि तुम मुर्दा थे उसने तुम्हें जिलाया (जीवंत किया) फिर तुम्हें मारेगा फिर तुम्हें ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ़ पलटकर जाओगे

*तफ़सीर*
     तौहीद और नबुव्वत की दलीलों और कुफ़्र और ईमान के बदले के बाद अल्लाह तआला ने अपनी आम और ख़ास नेअमतो का, और क़ुदरत की निशानियों, अजीब बातों और हिकमतो का ज़िक्र फ़रमाया और कुफ़्र की ख़राबी दिल में बिठाने के लिये काफ़िरों को सम्बोधित किया कि तुम किस तरह ख़ुदा का इन्कार करते हो जबकि तुम्हारा अपना हाल उस पर ईमान लाने का तक़ाज़ा करता है कि तुम मुर्दा थे. मुर्दा से बेजान जिस्म मुराद है. हमारे मुहावरे में भी बोलते हैं- ज़मीन मुर्दा हो गई. मुहावरे में भी मौत इस अर्थ में आई. ख़ुद क़ुरआने पाक में इरशाद हुआ “युहयिल अरदा बअदा मौतिहा” (सूरए रूम, आयत 50) यानी हमने ज़मीन को ज़िन्दा किया उसके मरे पीछे.
     तो मतलब यह है कि तुम बेजान जिस्म थे, अन्सर (तत्व) की सुरत में, फिर ग़िजा की शक्ल में, फिर इख़लात (मिल जाना) की शान में, फिर नुत्फ़े (माद्दे) की हालत में. उसने तुमको जान दी, ज़िन्दा फ़रमाया. फिर उम्र् की मीआद पूरी होने पर तुम्हें मौत देगा. फिर तुम्हें ज़िन्दा करेगा.
     इससे या क़ब्र की ज़िन्दगी मुराद है जो सवाल के लिये होगी या हश्र की.
     फिर तुम हिसाब और जज़ा के लिये उसकी तरफ़ लौटाए जाओगे. अपने इस हाल को जानकर तुम्हारा कुफ़्र करना निहायत अजीब है.
     एक क़ौल मुफ़स्सिरीन का यह भी है कि “कैफ़ा तकफ़ुरूना” (भला तुम कैसे अल्लाह के इन्कारी हो गए) का ख़िताब मूमिनीन से है और मतलब यह है कि तुम किस तरह काफ़िर हो सकते हो इस हाल में कि तुम जिहालत की मौत से मुर्दा थे, अल्लाह तआला ने तुम्हें इल्म और ईमान की ज़िन्दगी अता फ़रमाई, इसके बाद तुम्हारे लिये वही मौत है जो उम्र गुज़रने के बाद सबको आया करती है. उसके बाद तुम्हें वह हक़ीक़ी हमेशगी की ज़िन्दगी अता फ़रमाएगा, फिर तुम उसकी तरफ़ लौटाए जाओगे और वह तुम्हें ऐसा सवाब देगा जो न किसी आंख ने देखा, न किसी कान ने सुना, न किसी दिल ने उसे मेहसूस किया.
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Thursday 8 September 2016

सिरते मुस्तफाﷺ


*_दसवा बाब_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_गज़्वाए दू-मतुल जन्दल_*
     रबीउल अव्वल सी.5 ही. में पता चला की मक़ाम "दू-मतुल जन्दल" में जो मदीना और शहरे दिमश्क़ के दरमियान एक किल्ले का नाम है मदीने पर हमला करने के लिये एक बहुत बड़ी फ़ौज़ जमा हो रही है, हुज़ूरﷺ 1000 सहाबए किराम का लश्कर ले कर मुक़ाबले के लिये मदीने से निकले, जब मुशरिकीन को ये मालूम हुवा तो वो लोग अपने मवेशियों और चरवाहों को छोड़ कर भाग निकले।

     सहाबए किराम ने उन तमाम जानवरो को माले गनीमत बना लिया और आपﷺ ने तिन दिन वहा क़याम फरमा कर मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर सहाब के लशकरो को रवाना फ़रमाया। इस गज़्वे में भी कोई जंग नही हुई इस सफर में एक महीने से ज़्यादा आपﷺ मदीने से बाहर रहे।

*✍🏽सिरते मुस्तफा, 306*
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तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

# 30
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ②⑦_*
वह जो अल्लाह के अहद (इक़रार) को तोड़ देते हैं (1)
पक्का होने के बाद और काटते हैं उस चीज़ को जिसके जोड़ने का ख़ुदा ने हुक्म दिया है और जमीन में फ़साद फैलाते हैं (2)
वही नुक़सान में हैं

*तफ़सीर*
     (1) इससे वह एहद मुराद है जो अल्लाह तआला ने पिछली किताबो में हूजुर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान लाने की निस्बत फ़रमाया.
     एक क़ौल यह है कि एहद तीन हैं- पहला एहद वह जो अल्लाह तआला ने तमाम औलादे आदम से लिया कि उसके रब होने का इक़रार करें. इसका बयान इस आयत में है “व इज़ अख़ज़ा रब्बुका मिम बनी आदमा….” (सूरए अअराफ, आयत 172) यानी और ऐ मेहबूब, याद करो जब तुम्हारे रब ने औलादे आदम की पुश्त से उनकी नस्ल निकाली और उन्हे ख़ुद उन पर गवाह किया, क्या मैं तुम्हारा रब नहीं, सब बोले- क्यों नहीं, हम गवाह हुए.
     दूसरा एहद नबियों के साथ विशेष है कि रिसालत की तबलीग़ फ़रमाएं और दीन क़ायम करें. इसका बयान आयत “व इज़ अख़ज़ना मिनन नबिय्यीना मीसाक़हुम” (सूरए अलअहज़ाब, आयत सात) में है, यानी और ऐ मेहबूब याद करो जब हमने नबियो से एहद लिया और तुम से और नूह और इब्राहीम और मूसा और ईसा मरयम के बेटे से और हम ने उनसे गाढ़ा एहद लिया.
     तीसरा एहद उलमा के साथ ख़ास है कि सच्चाई को न छुपाएं. इसका बयान“वइज़ अख़ज़ल्लाहो मीसाक़ल्लजीना उतुल किताब” में है, यानी और याद करो जब अल्लाह ने एहद लिया उनसे जिन्हे किताब अता हुई कि तुम ज़रूर उसे उन लोगो से बयान कर देना और न छुपाना. (सूरए आले इमरान, आयत 187)
     (2) रिश्ते और क़राबत के तअल्लुक़ात (क़रीबी संबंध) मुसलमानों की दोस्ती और महब्बत, सारे नबियों को मानना, आसमानी किताबो की तस्दीक, हक़ पर जमा होना, ये वो चीज़े है जिनके मिलाने का हुकम फरमाया गया. उनमें फूट डालना, कुछ को कुछ से नाहक़ अलग करना, तफ़र्क़ो (अलगाव) की बिना डालना हराम करार दिया गया.
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मदनी पंजसुरह

*दिन व दुन्या की भलाइयों वाली दुआ* #17
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_ज़बान की नुकनत की दुआ_*

*رَبِّ اشْرَحْ لِىْ صَدٍرِىْ o وَيَسِّرْ لِىْٓ اَمْرِىْ o وَاحْلُلْ عُقْدَةًمِّنْ لِّسَانِىْ o يَفْقَهُوْا قَوْلِىْ o*

ऐ मेरे रब ! मेरे लिये मेरा सीना खोल दे और मेरे लिये मेरा काम आसान कर और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे की वो मेरी बात समझे।

*✍🏽पारह 16, ताहा, 25-28*
*✍🏽मदनी पंजसुरह, 21*
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फुतूह अल ग़ैब

*खुदा से रिश्ता जोणनेवाले* : # 2
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

      फिर मैंने उनसे कहा के जब तुम मखलुकसे रिश्ता तोड़कर खुदा से रिश्ता जोड़ चुके हो तो फिर चाहिये के ज़बान बन्द रख्खो और किसीसे भी किसी तरह का सवाल न करो। जब इस पर आमिल हो जाओ तो दिल में भी किसी शैअका तसव्वुर न आने दो।
     इस लिए के दिल की ख्वाहिश और ज़बान से मांगने में कुछ फर्क नहीं है और ये भी याद रख्खो के चिज़ोंमे तगय्युर (हालत बदल देना)-व-तबदिल करने और बनाने-बिगाड़ने और इज़्ज़त बख्शने और ज़िल्लत देने में खुदा तआला की हर रोज़ नइ शान होती है। वो किसी गिरोह को इल्लय्यीन (जन्नत-आठवां आसमान) के मकाम तक रिफअत बखश्ता है और किसीको असफलुल साफेलीन में गिरा देता है।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 35
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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Wednesday 7 September 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*क़ब्र को जहन्नम का गढ़ा बनाने वाले आमाल* #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूदखोर का अन्जाम_*
     हज़रत अल्लामा हजर मक्की अलैरहमा फरमाते है के जब में छोटा था तो पाबन्दी से अपने वालिद की क़ब्र पर हाज़िरी देता और क़ुरआन की रिलावत किया करता था। एक मर्तबा रमज़ानुल मुबारक में नमाज़े फज़र के फौरन बाद क़ब्रस्तान गया। उस वक़्त क़ब्रस्तान में मेरे इलावा कोई न था। में ने अपने वालिद की क़ब्र के क़रीब बैठ कर क़ुरआन की तिलावत शुरू कर दी, कुछ ही देर गुज़री थी के अचानक मुझे किसी के ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनाई दी। ये आवाज़ एक क़ब्र से आ रही थी। में घबरा गया और तिलावत छोड़ कर क़ब्र की तरफ देखने लगा, ऐसा लगता था जेसे क़ब्र के अंदर किसी को अज़ाब दिया जा रहा हो, क़ब्र में दफ़्न मुर्दे कि आहो ज़ारी सुन कर मुझे खौफ महसूस होने लगा। जब दिन खूब चढ़ गया तो वो आवाज़ सुनाई देना बंद हो गई।
     एक शख्स मेरे क़रीब से गुज़रा तो में ने उस से क़ब्र के बारे में पूछा, उसने मुझे बताया के ये फुला की क़ब्र है। में उस शख्स को पहचान गया, ये बड़ा पक्का नमाज़ी था और बे जा गुफ्तगू से परहेज़ किया करता था। ऐसे नेक शख्स की क़ब्र से रोने पीटने की आवाज़े सुन कर में बड़ा हैरान था। मेने मालूमात की तो पता चला के वो सूदखोर था, शायद इसी वजह से उसे क़ब्र में अज़ाब हो रहा था।

     इस हिकायत से चन्द सिक्को की खातिर अपने आप को जहन्नम के शोलो की नज़र करने की जिसारत करने वाले सूदखोरों को इब्रत पकड़ नी चाहिए के कही मरने के बाद उनका भी यही अंजाम न हो !

*_पेट में साँप_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : मेराज की रात मेरा गुज़र कुछ ऐसे लोगो पर हुवा, जिन के पेट मकानों की तरह थे, उन में साप थे, जो पेटो के बाहर से भी नज़र आते थे। मेने पूछा के ऐ जिब्राईल ये कौन है ? उन्होंने अर्ज़ की : सूद खाने वाले।
*✍🏽सुनन इब्ने माजह, 3/71*
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 56*
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शाने खातुने जन्नत फतिमातुज़्ज़हरा

#04
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*_अल्काबात की वजहे तस्मिया_*

*_ज़हरा यानि जन्नत की कली_*
     शारेहे मिश्कात, हकीमूल उम्मत मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी अलैरहमा आपرضي الله تعالي عنها के नाम और लक़ब की वजह बयान करते हुए फरमाते है : अल्लाह तआला ने जनाबे फातिमाرضي الله تعالي عنها, आप की अवलाद, आप के मुहिब्बीन को दोज़ख़ की आग से दूर किया है इस लिए आप का नाम "फातिमा" हुआ। चुंकि आप दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से अलग थी लिहाज़ा "बतुल" लक़ब हुआ, "ज़हरा" ब मा'ना कली, आपرضي الله تعالي عنها जन्नत की कली थी हत्ता की आप की कभी ऐसी कैफ़ियत न हुई जिससे ख़वातीन दो चार होती है और आप के जिस्म से जन्नत की खुश्बू आती थी जिसे हुज़ूरﷺ सुंघा करते थे। इस लिए आपرضي الله تعالي عنها का लक़ब "ज़हरा"हुआ।"
*✍🏽मिरातुल मनाजिह, 8/542*

*_ताहिरा व ज़ाकिया_*
     इस का मतलब है: "पाको साफ़"। चूंकि आपرضي الله تعالي عنها बचपन ही से अपने बाबाजान रहमते आलमﷺ की नज़रे रहमत और फैजान से ज़ाहिरी और बातिनी तहारत व् पाकी हासिल कर चूँकि थी हत्ता की आप हैज़ व निफ़ास से भी मुनज़्ज़ा व मुबर्रा (यानि पाक साफ) थी जैसा की हज़रते सय्यिदुना अल्लामा अलाउद्दीन अली मुत्तक़ी हिन्दी अलैरहमा खतूने जन्नत की शाने अज़मत निशान में हदिष ए पाक नक़्ल करते है कि : मक्की मदनी आका, वालीदे माजीदे ज़हराﷺ ने इरशाद फ़रमाया : "मेरी बेटी फातिमा इंसानी शक्ल में हूरों की तरह हैज़ व निफ़ास से पाक है।
*✍🏽कन्ज़ुल उम्माल, 6/12*
*✍🏽शाने खातुने जन्नत, 22*
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