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गफलत



*सोने की ईंट*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     मन्कुल है : एक नेक शख्स को कहि से सोने की ईंट हाथ लग गई। वह दौलत की महब्बत में मस्त हो कर रात भर तरह तरह के मनसूबे बंधता रहा की अब तो में बहुत अच्छे अच्छे खाने खाऊंगा, बेहतरीन लिबास सिलवाऊंगा और बहुत सारे खुद्दाम अपनाउंगा । अल गरज मालदार बन जाने के सबब वोह राहतो और आसाइसो के तसव्वुरात में गुम हो कर उस रात रब्बे अकबर से यक्सर ग़ाफ़िल हो गया । सुब्ह इसी धन की धुन में मगन मकान से निकला, इत्तफाकन कब्रिस्तान के करीब से उसका गुजर हुवा, क्या देखता हे की एक शख्स ईंटे बनाने के लिये एक कब्र पर मिटटी गूंध रहा है, येह मन्ज़र देख कर यकदम् उस की आँखों से गफलत का पर्दा हट गया और इस तसव्वुर से उस की आँखों से आंसू जारी हो गए की शायद मरने के बा 'द मेरी कब्र की मिटटी से भी लोग ईंटे बनाएंगे, आह ! मेरी आलीशान मकानात और उम्दा मल्बूसात वगैरा धरे के धरे रह जाएंगे लिहाजा सोने की ईंट से दिल लगाना तो जिंन्दगी को सरासर गफलत में गवाना है, हां अगर दिल लगाना ही हे तो मुझे अपने प्यारे प्यारे अल्लाह से लगाना चाहिये । चुनान्चे उस ने सोने की ईंट तर्क की जोहदो क़नाअत इख्तियार की ।

*_गफलत के अस्बाब_*
     वाकेइ दुनिया की कसरत की सूरत में मिलने वाली ने'मत में सरासर गफलत का अंदेशा है, जो दुन्यवी ने'मत से दिल लगाता है वोह गफलत का शिकार हो कर रह जाता है, गफलत फिर गफलत है, गफलत बन्दे को रब्बुल इज्जत से दूर कर देती है ।
     अच्छी तिजारत भी ने'मत है, दौलत भी ने'मत है, आलिशान मकान भी ने'मत है, उम्दा सुवारी भी ने'मत है, माँ बाप के लिये औलाद भी ने'मत है किसी भी दुन्यवी ने'मत में जरुरत से जियादा मशगुलियात बाइसे गफलत है ।
     चुंनांचे पारह 28 सू-रतुल मुनाफिकुन की आयात 9 में इर्शाद होता है:
*ऐ ईमान वालो ! तुम्हारे माल न तुम्हारी औलाद कोई चीज तुम्हे अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न करे और जो ऐसा करे तो वोही लोग नुकशान में है ।*
     इस आयते मुक़द्दसा के उन लोगो को दर्से इब्रत हासिल करना चाहिये की जिनको नेकी की दा'वत पेस की जाती है और नमाज के लिये बुलया जाता है तो कह दिया करते है : "जनाब ! हम तो अपने रिज्क् की फिक्र में लगे रहते है, रोजी कमाना और बाल बच्चों की खिदमत करना भी तो इबादत है हमें इस से फुरसत मिलेगी तो आप के साथ मस्जिद में भी चलेंगे ।" यक़ीनन ऐसी बाते गफलत ही करवाती है ।
*✍🏽गफलत, 2*
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खदिमे दिने नबीﷺ *ज़ैद वहोरा*
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*मुर्दो की चीखो पुकार बेकार है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सिर्फ और सिर्फ दुन्या के धन की फिरावनी की धुन में मगन रहने वालो, हुसुले माल की खातिर दुन्या के मुख़्तलिफ़ ममालिक में भटकते फिरने वालो मगर मस्जिद की हाजिर से कतराने वालो, अपने मकानात के डेकोरेशन पर पानी की तरह पैसा बहाने वालो मगर राहे खुदा में खर्च करने से जी चुराने वालो, दौलत में इजाफे के लिये मुख़्तलिफ़ गुर अपनाने वालो मगर नेकियों में ब-र-कत के मुआ-मले में बे नियाज रहने वालो को ख्वाबे गफलत से बेदार हो कर झटपट तौबा कर लेनी चाहिये कही ऐसा न हो की मौत अचानक आ कर रोशनियों से जग-मगाते कमरे में फोम के आराम गद्दे से मुज्य्यन् खूब सूरत पलंग से उठा कर कीड़े मकोड़े से उभरती हुई खौफनाक अँधेरी कब्र में सुला दे और वोही चिल्लाते रह जाए की या अल्लाह ! मुजे दुबारा दुन्या में भेज दे ताकि वहा जा कर में तेरी इबादत करू । मौला ! दोबारा दुन्या में पहुंचा दे मै वा'दा करता हूं अपना सारा माल तेरी राह में लूटा दूंगा..... पांचों नमाजे अदा करूँगा, तहज्जुद भी कभी नहीं छोड़ूंगा बल्कि मस्जिद ही में पड़ा रहूँगा.... दाढ़ी तो दाढ़ी जुल्फ़े भी बढ़ा लूंगा.... सर पर हर वक़्त इमामा शरीफ का ताज सजाए रहूँगा.... या अल्लाह ! मुझे वापस भेज दे...एक बार फिर मोहलत दे दे दुन्या से फैशन का खातिमा कर के हर तरफ सुन्नतो का परचम लहरा दूंगा... परवर दिगार ! सिर्फ और सिर्फ एक बार मोहलत अता फरमा दे ताकि मै खूब नेकियों कर लू....
     रात दिन गुनाहो में मशगूल रहने वाले गफलत शिआरो की मौत के बा'द चीखो पुकार यक़ीनन ला हासिल रहेगी । क़ुरआने पाक पहले ही से मु-तनब्बेह कर चूका है चुनान्चे पारह 28 सू-रतुल मुनाफिकिन की आयत 10 और 11 में इर्शाद होता है:
*और हमारे दिये में से कुछ हमारी राह में खर्च करो कब्ल इस के की तुम में किसी को मौत आए फिर कहने लगे, ऐ मेरे रब ! तूने मुझे थोड़ी मुद्दत तक क्यूं मोहलत न दी की में स-दका और नेको में होता, और हरगिज अल्लाह किसी जान को मोहलत न देगा जब उस का वा'दा आ जाए और अल्लाब को तुम्हारे कामो की खबर है ।*

*✍🏽गफलत, 5*
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*गफलत* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_अनोखी नदामत_*
     हजरते सैय्यिदुना शैख अबू अली दक्कक फरमाते है : एक बड़े वलिय्युल्लाह सख्त बीमार थे, मैं इयादत के लिये हाजिर हुवा, इर्द गिर्द मो'तकिदीन का हुजूम था, वोह बुजुर्ग रो रहे थे । मैं ने अर्ज़ की : ऐ शैख ! क्या दुन्या छूटने पर रो रहे है ? फ़रमाया : नहीं बल्कि नमाजे क़ज़ा होने पर रो रहा हूं । मै ने अर्ज की : हुजूर ! आप की नमाजे क्यूंकर क़ज़ा हो गई ? फ़रमाया : मै ने जब भी सजदा किया तो गफलत के साथ और जब सजदे से सर उठाया तो गफलत के साथ और जब गफलत ही मौत से हम-आगोश हो रहा हूं, फिर एक आहे सर्द दिले पुरदर्द से खींच कर  चार अ-रबी अशआर पढ़े जिन का तरजमा येह है :
     (1) मै ने अपने हशर्, क़ियामत के दिन और कब्र में अपने रुखसार के पड़ा  होने के बारे में गौर किया (2) इतनी इज्जत व् रिफअत के बा'द मै अकेला पड़ा होऊंगा और अपने जुर्म के बिना पर रहन (या'नी गिरवी) होऊंगा और खाक ही मेरा तकया होगा (3) मै ने अपने हिसाब की तिलावत और  नामए आ'माल दिये जाने के वक्त की रुसवाई के बारे में भी सोचा (4) मगर ऐ मुझे पैदा कर ने वाले और मुझे पालने वाले ! मुझे तुजसे रेहमत की उम्मीद है, तुही मेरी खताओ को बख्शने वाला है ।

*_रोता हुवा दाखिले जहन्नम होगा_*
     इस हिकायत में किस कदर इब्रत है । जरा इन अल्लाह वालो को देखिये जिनका हर लम्हा यादे इलाही में बसर होता है मगर फिर भी इन्किसारी का आलम येह है की अपनी इबादत व् रियाजत को किसी खातिर में नहीं लाते और अल्लाह की बे नियाजी और उस की खुफ़या तदबीर से डरते हुए गियॉ व् जारी करते है ।
     उन गफलत के मारो पर सद करोड़ अफ़सोस की नेकी के नुन का नुक़्ता तक जिन के पल्ले नहीं, इखलास का दूर दूर तक नामो निशान नहीं मगर हाल येह है की अपनी इबादतों के बुलंद बांग दा'वे करते नहीं थकते ! अल्लाह के नेक बन्दे गुनाहो से महफूज होने के बा वुजूद खौफ इलाही से थर थराते कप-कपाते और टपटप आंसू गिरते है मगर गफलत शिआर बन्दों का हाल येह है की बे धड़क मा'सियत का सिलसिला चलाते, अपने गुनाहो का आम ए'लान सुनाते और फिर इस पर जोर जोर से कहकहे लगाते जरा भी नही सरमाते, कान खोल कर सुनिये ! हजरते सैय्यिदुना इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه फरमाते है : "जो हंस हंस कर गुनाह करेगा वोह रोता हुवा जहन्नम में दाखिल होगा ।"

*_अगर ईमान बरबाद हो गया तो..._*
     हंस हंस कर झुट बोलने वालो, हंस हंस कर वा'दा खिलाफी करने वालो, हंस हंस कर मिलावट वाला माल बेचने वालो, हंस हंस कर फिल्में डिरामे देखने वालो और गाने बाजे सुनने वालो, हंस हंस कर मुसल्मानो को सताने और बिला इजाजते शर-ई उन की दिल आजरिया करने वालो के लीये लम्हा फ़िक्रिया हे, अगर अल्लाह नाराज हो गया और उसके प्यारे महबूबﷺ रूठ गए और गफलत के सबब दीद दिलेरी के साथ हंस हंस कर गुनाहो का इरतिकाब करने के बाइस ईमान बरबाद हो गया और जहन्नम मुकद्दर बन गया तो क्या बनेगा ! जरा दिल के कानो से खुदाए रहमान का फरमाने इब्रत निशान सुनिये !
     चुनान्चे पारह 10 सु-रतुत्तौबह की आयत 82 में इर्शाद होता है :
*तो उन्हें चाहीये के थोडा हंसे और बहुत रोएं ।*
*✍🏽गफलत, 7*
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खादिमे दिने नबीﷺ *ज़ैद वहोरा*
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*गफलत* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

_*मौत के तीन क़ासिद*_
     मन्कुल है : हजरते सैय्यिदुना या'कूब और हजरते सैय्युदूना इज्राइल अलैहिस्सलाम म-लकुम मौत में दोस्ती थी ।एक बार जब हजरते सैय्यिदुना म-लकुम मौत आए तो हजरते सैय्यिदुना या'कूब अलैहिस्सलाम ने इस्तिफसार फ़रमाया की आप मुलाकात के लिये तशरीफ़ लाए है या मेरी रूह कब्ज करने के लिये ? कहा : मुलाक़ात के लिये । फ़रमाया : मुझे वफ़ात देने से कब्ल मेरे पास अपने क़ासिद भेज देना । म-लकुल मौत ने कहा : में आप की तरफ दो या तीन क़ासिद भेज दूंगा ।
     चुनान्चे जब रूह कब्ज करने के लिये म-लकुल मौत आए तो आप ने इर्शाद फ़रमाया : आपने मेरी वफात से कब्ल क़ासिद भेजने थे वोह क्या हुवा ? हजरते सैय्यिदुना म-लकुल मौत ने कहा : सियाह या'नी काले बालो के बा'द सफ़ेद बाल, जिस्मानी ताकत के बा'द कमजोरी और सीधी कमर के बा'द कमर का झुकाव, ऐ या'कूब ! मौत से पहले इन्सान की तरफ मेरे क़ासिद ही तो है ।
     एक अ-रबी शाइर के इन दो अश्आर में किस कदर इब्रत है :
(1) वक़्त और दिन गुजर गए मगर गुनाह बाक़ी है, मौत का फिरिश्ता आ पहुंचा और दिल ग़ाफ़िल है
(2) तुजे दुन्या में मिलने वाली ने-मत धोका और तेरे लिये बाइसे हसरत है, और दुन्या में दाइमी या'नी हमेशा बाकी रहने वाली रहते पानी का तसव्वुर तेरी ख़म ख़याली (या'नी गलत फहमी ) है ।

_*बीमारी भी मौत का क़ासिद है*_
     मा'लूम हुवा के आने से पहले म-लकुल मौत अपने फासिद् भेजते है । बयान करदा तीन कासीदीन के इलावा भी अहादिसे मुबा-रका में मजीद कासिदिन का तज्किरा मिलता है। चुन्नाचे मरज, कानो और आंखो का तग्ययुर भी मौत के क़ासिद है ।
     हम में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन के पास म-लिकुल मौत के क़ासिद तशरीफ़ ला चुके होंगे मगर क्या कहिये इस गफलत का ! अगर सियाह बालों के बा'द सफ़ेद बाल होने लगते है हाला की येह मौत का क़ासिद है मगर बन्दा अपने दिल को ढारस देने के लिये कहता है की येह तो नज्ले से बाल सफ़ेद हो गए है ! इसी तरह बीमारी जो की मौत का नुमाया क़ासिद है मगर इस में भी सरासर गफलत बरती जाती है हाला की "बीमारी" ही के सबब रोजाना बे शुमार अफ़राद मौत का शिकार होते है ! मरीज को बहुत जियादा मौत याद आनी चाहिये कि क्या मा-लूम जो बीमारी मा-लूम लग रही है वोही मोहलिक सूरत इख़्तियार कर के आन की आन में फना के घाट उतार दे फिर अपने रोएं धोएं, दुश्मन खुशिया मनाए और मरने वाला मौत से ग़ाफ़िल मरीज मनो मिटटी तले अँधेरी कब्र में जा पड़े आह ! अब मरने वाला होगा और उस के अच्छे बुरे आ-माल ।
*✍🏽गफलत, 8*
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*गफलत* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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_*जहन्नम के दरवाजे पर नाम*_
     ऐ आज के जनाबो और कल के मर्हुमो ! याद रखिये ! जो गुनाहों पर अडा रहा वो रास्ता भूल गया, गफलतो और बे अ-मलियो की तारीकियों में भटक गया और खुदा व् मुस्तफाﷺ की नाराजियो की सूरत में कब्रो आख़िरत के अजाबो में फंस कर रह गया, अब पछताने और सर पछाड़ने से कुछ हाथ नही आएगा, अब भी मौकअ है जल्द तर अपने गुनाहो से सच्ची तौबा कर के नामजो, र-मजानुल मुबारक के रोजों और सुन्नतो भरी जिंदगी गुजरने का अहद कर लीजिये।

     सुनिये ! सुनिये ! सरकारे मदीना, राहते कल्बो सीनाﷺ का फरमाते है इब्रत निशान है: जो कोई एक नमाज भी कसदन तर्क कर देगा, उस का नाम जहन्नम के उस दरवाजे पर लिख दिया जाएगा जिस से वोह जहन्नम में दाखिल होगा ।
*✍🏽हिल्यतुल औलिया, 7/299*

     इसी तरह एक हदीसे पाक में इर्शादे इब्रत बुन्याद है : जो माहे र-मजान का रोजा भी बिला उज्रे शर-ई व् मरज कजा कर देता है तो जमाने भर के रोजे उस की कजा नहीं हो सकती अगर्चे बा'द में रख भी ले ।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 2/170*
*✍🏽गफलत, 8*
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*गफलत* #06
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_*आँखों में आग*_
     औरतो को ताड़ने वालो,उमरदो के साथ बद निगाही करने वालो, फ़िल्में डिरामे देखने वालो,गाने बाजे और गीबतें सुनने वालो को चाहिये की झट तौबा करें वरना यक़ीनन अजाब सहा  न जाएगा, मन्कुल है : जो कोई अपनी आंखो को नजरे हराम से पुर करेगा क़ियामत के रोज उस की आँखों में आग भर दी जाएगी ।
*✍🏽मकाशफतुल कुलूब, 10*

_*आग की सलाई*_
     हजरते अल्लामा अबुल फरज अब्दुर्रहमान बिन जौजि अलैरहमा नक़ल करते है : औरत के महासिन (यानी हुस्नो जमाल) को देखना इब्लीस के जहर में बुजे हुए तीरो में से एक तीर है, जिस ने ना मरहम से आँख की हिफाजत न की उस की आँख में बरोजे क़ियामत आग की सलाई फेरी जाएगी ।
*✍🏽बहरू द्दुमु, 171*

_*आँखों और कानो में कील*_
     हजरते सैय्यिदुना इमाम हाफिज अबुल कासिम सुलेमान त-बरानी नक़्ल करते है : मेरे मीठे मीठे आकाﷺ ने एक मन्ज़र ये भी देखा की कुछ लोगो की आँखों और कानो में कील ठुके हुए है । आपﷺ की खिदमत में अर्ज की गई : येह वो लोग है जो वोह देखते है जो इन्हें नही देखना चाहिये और वोह सुनते है जो इन्हें नही सुनना चाहिये ।
*✍🏽अल-मुजमुल कबीर, 7,156*
     या'नी हराम देखने और सुनने वालो की आँखों और कानो में कील ठुके हुए है । खबरदार ! शैतान के धोके में आ कर टीवी पर खबरें भी न देखा करे की खबरों का बे पर्दा औरत से पाक होना दुशवार होता है । याद रखिये ! मर्द औरत को देखे या औरत मर्द को बी शहवत देखे  येह दोंनो काम हराम है और हर फे'ले हराम जहन्नम में में जाने वाला काम है ।

_*आँखों में पिघला हुवा सीस*_
     मन्कुल है : "जो शख्स शहवत से किसी अजनबिय्या के हुस्नो जमाल को देखेगा क़ियामत के दिन उस की आँखों में सीसा पिघला कर डाला जाएगा ।"
*✍🏽हिदाया, 2/367*
     यक़ीनन भाभी भी अजनबिय्या ही है । जो देवर व् जेठ अपनी भाभी को कसदन देखते रहे हों, बे तखल्लुफ़ बने रहे हो, मजाक मस्खरी करते रहे हों, वोह अल्लाह के अजाब से डर कर फौरन से पेश्तर सच्ची तौबा कर ले । भाभी अगर देवर को छोटा भाई और जेठ को बड़ा कह दे इस से बे पर्दगी और बे तखल्लुफ़ी व् हँसी मजाक  वगेरा  गुनाहो की दलदल में मजीद धंसते चले जाते है । याद रखिये ! जेठ और देवर व् भाभी का आपस में बिला जरूरत व् बे तखल्लुफ़ी से गुफ्त-गु करना भी मुसल्सल खतरे की घंटी बजता रहता है ! भलाई इसी में है की न एक दूसरे को देखे और न ही आपस में बिला जरूरत और बे तखल्लुफ़ी से बातचीत करे ।
*✍🏽गफलत, 12*
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*गफलत* #07
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_*आतस परस्तों जैसी सूरत*_
     मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! दाढ़ी मुंडाना या एक मुठ्ठी से घटना दोनों काम हराम है । सय्यिदुना इमाम मुस्लिम नकल करते है, अल्लाह के महबूब , दानाए गुयूबﷺ का फरमाने इब्रत निशान है: "मुछे खूब पस्त करो और दाढ़ियों को मुआफ़ी दो और मजूसियों जैसी सूरत मत बनाओ।"
*✍🏽मुस्लिम, 54*
     इस फरमाने वाला शान में मुसलमान की गैरत को ललकार है, कैसी अजीबो गरीब बात है की दा'वा महब्बते मुस्तफा का करे और शक्लो सूरत दुश्मनाने मुस्तफा जैसी बनाए

*_कौन किस से पर्दा करे ?_*
     पर्दे में रह कर सुनने वाली इस्लामी बहनो ! तुम भी सुनो ! बे पर्दगी हराम है, गैर मर्दों को ब शहवत देखना हराम है और फे'ले हराम जहन्नम में ले जाने वाला काम है । चचाजाद, तायाजाद, फुफिजाद, खालजाद, माँमुंजाद, चची, ताई, मुमानी इन सब का पर्दा है, भाभी और देवर व् जेठ का पर्दा है, साली और बहनोई का पर्दा है की ना महरम पीर और मुरी-दीन का भी पर्दा है, मुरी-दीन अपने पीर साहिब का हाथ नही चूम सकती, सर के बालो पर मुर्शिद के हाथ नही फिरवा सकती, लड़की जब नव बरस की हो उस को पर्दा शुरुअ करवाइये और लड़का जब बारह बरस का हो जाए तो उसे औरत से बचाइये ।

_*न जाइज़ फेशन करने का अन्जाम*_
     सरकारे मदीना, राहते कल्बो सीनाﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : में ने कुछ मर्दों को देखा जिन की खाले आग की कैचियो से काटी जा रही थी, में ने कहा : येह कौन है ? जिब्रईले अमीन ने बताया : येह लोग ना जाइज़ अश्या से जीनत हासिल करते थे । और मेने एक बदबूदार गढ़ा देखा जिस में शोरो गोगा बरपा था, में ने कहा : येह कोन है ? तो बताया : येह वोह औरत हे जो न जाइज़ अश्या से जीनत हासिल करती थी ।
     याद रखिये ! नेल पोलिश की तह नाखूनों पर जम जाती है लिहाज़ा ऐसी हालत में वुजू करने से न वुजू होता है न ही नहाने से गुस्ल उतरता है, जब वुजू व् गुस्ल न हो तो नमाज भी नहीं होती, इस्लामी बहनो की खिदमत में मेरा म-दनी मशवरा है की म-दनी बुरकअ ओढा करे, नीज़ ऐसे दस्तानो और जुराबो का एहतिमाम फरमाए जिन में से हाथ पाउ की रंगत न झलकती हो, गैर मर्दों के आगे अपनी हथेलियो पाउ के पंजे भी हरगिज जाहिर न किया करे ।
*✍🏽गफलत, 13*
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*गफलत* #08
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_*कजा उम्री कर लीजिये*_
     अगर खुदा न ख्वास्त नमाज रोजे रह गए है तो उन का हिसाब लगा कर कजा उम्री फरमा लीजिये, और ताखीर की तौबा कर लीजिये, नमाज की कजा उम्री का आसान तरीका मा-लूम करने के लिये दा'वते इस्लामी के इशाअती इदारे मक-त-बतुल मदीना की मत्बुआ किताब, "नमाज के अहकाम" हदियातन हासिल कर लीजिये । इस में वुजू, गुस्ल,नमाज और कज़ा उम्री वगैरा के वोह अहम् तरीन अहकाम बयान किये गए है की पढ़ कर शायद बोल उठे, अफ़सोस ! अब तक वुजू व् गुस्ल और नमाज की दुरस्त अदाएगी से महरूमी ही रही है !

     अब तमाम इस्लामी भाई दिल के पक्के अज्म के साथ हाथ लहरा लहरा कर के फलक शिगाफ न'रों के जरिए अपने म-दनी जज्बात का इज़्हार कीजिये । नियत कीजिये, अब मेरी कोई नमाज कज़ा नही होगी । र-मजानुल मुबारक को कोई रोजा कज़ा नहीं होगा । फ़िल्में डिरामे नही देखूंगा । गाने बाजे नही सुनूंगा । दाढ़ी नहीं मुंडवाऊंगा । एक मुठ्ठी से नही घटाउंगा ।

*✍🏽गफलत, 14*
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