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सवानहे कर्बला



*सवानहे कर्बला* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_विलादते मुबारका_*
     हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की विलादत 5 शाबान सी 4 ही को मदीने में हुई। हुज़ूरﷺ ने आप का नाम हुसैन और शब्बीर रखा और आप की कून्यत अबू अब्दुल्लाह और लक़ब सिबते रसूलुल्लाह और रैहानतुर्रसूल है, और आप के बरादरे मुअज़्ज़म की तरह आप को भी जन्नती जवानो का सरदार और अपना फ़रज़न्द फ़रमाया।
     हुज़ूरﷺ को आपرضي الله تعالي عنه के साथ कमाले रफ्त व महब्बत थी। हदिष में इरशाद हुवा : जिस ने इन दोनों (इमामे हसन व हुसैनرضي الله تعالي عنهم) से महब्बत की उस ने मुझ से महब्बत की और जिस ने इन से अदावत की उस ने मुझ से अदावत की।
     हुज़ूरﷺ ने इन दोनों नौनिहालो को फूल की तरह सूंघते और सिनए मुबारक से लिपटाते।
     हुज़ूरﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल बिन्ते अल हारिष हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की ज़ौजा एक रोज़ हुज़ूरﷺ के पास हाज़िर हुई और अर्ज़ की : या रसूलल्लाहﷺ आज में ने एक परेशान ख्वाब देखा, हुज़ूरﷺ ने दरयाफ़्त फ़रमाया : क्या ? अर्ज़ किया : वो बहुत ही शदीद है। उनको उस ख्वाब के बयान की जुरअत न होती थी। हुज़ूरﷺ ने मुक़र्रर दरयाफ़्त फ़रमाया तो अर्ज़ किया की में ने देखा की जसदे अतहर का एक टुकड़ा काटा गया और मेरी गोद में रखा गया। इरशाद फ़रमाया : तुमने बहुत अच्छा ख्वाब देखा, انشاء الله تعالى फातिमा ज़हराرضي الله تعالي عنها को बेटा होगा और वो तुम्हारी गोद में दिया जाएगा।
     ऐसा ही हुवा। हज़रते हुसैनرضي الله تعالي عنه पैदा हुए और हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल की गोद में दिये गए। उम्मुल फ़ज़्ल फरमाती है : में ने एक रोज़ हुज़ूरﷺ की खिदमत में हाज़िर हो कर हज़रते इमामे हुसैन को आप की गोद में दिया, क्या देखती हु की चश्मे मुबारक से आसु जारी है। में ने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! ये क्या हाल है ? फ़रमाया : जिब्राईल मेरे पास आए और उन्हों ने ये खबर दी की मेरी उम्मत इस फ़रज़न्द को क़त्ल करेगी। में ने कहा : क्या इस को ? फ़रमाया : हा और मेरे पास इस के मक़्तल की सुर्ख मिटटी भी लाए।
*✍🏽बेहक़ी, 6/468*
*✍🏽सवानहे कर्बला, 104*
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*सवानहे कर्बला​* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_यज़ीद का मुख़्तसर तज़किरा_*
     यज़ीद बिन। मुआविया अबू खालिद उमवी वो बद नसीब शख्स है जिस की पेशानी पर अहले बैत के बे गुनाह क़त्ल का सियाह दाग है और जिस पर हर क़रन में दुन्याए इस्लाम मलामत करती रही है और क़यामत तक इस का नाम तहक़ीर के साथ लिया जाएगा।
     इसकी शरारते और बेहुदगिया ऐसी है जिन से बद मुआशो को भी शर्म आए। अब्दुल्लाह बिन हन्ज़ला गसिलرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : खुदा की क़सम ! हम ने यज़ीद पर उस वक़्त खुरुज किया जब हमे अन्देशा हो गया की उस की बड़कारियो के सबब आसमान से पथ्थर बरसने लगे।
     महरमात के साथ निकाह और सूद वगैरा मुंहिय्यात को इस बे दिन ने अलानिया रवाज दिया। मदीना व मक्का की हुर्मति कराई। ऐसे शख्स की हुकूमत गुर्ग  की चोपानी से ज़्यादा खतरनाक थी।
     सी 59 ही में हज़रते अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه ने दुआ की : या रब ! में तुजसे पनाह मांगता हु सी 60 ही के आगाज़ और लड़को की हुकूमत से।
     रुयानी ने अपनी मुस्नद में हज़रते अबू दरदा सहाबीرضي الله تعالي عنه से एक हदिष रिवायत की है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया, मेरी सुन्नत का पहला बदलने वाला बनी उमय्या का एक शख्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा।
     अबू याला ने अपनी मुस्नद में हज़रते अबू उबैदाرضي الله تعالي عنه से रिवायत की, हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : मेरी उम्मत में अदलो इन्साफ क़ाइम रहेगा यहाँ तक की पहला रखना अंदाज़ व बानिये सितम बनी उमय्या का एक शख्स होगा जिस का नाम यज़ीद होगा।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 112*
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*सवानहे कर्बला​* #03
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*_अमीरे मुआविया की वफ़ात और यज़ीद की सल्तनत_*
     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه ने रजब सी 60 ही में दमिश्क़ में लक़्वा में मुब्तला हो कर वफ़ात पाई। आप के पास हुज़ूरﷺ के तबर्रुकात में से इजार शरीफ, रिदाए अक़दस, क़मिस मुबारक, मुए शरीफ और तराशहाए। नाख़ून हुमायूँ थे। आप ने वसिय्यत की थी की मुझे हुज़ूरﷺ की इजार व रिदाए मुबारक व क़मीज़ में दफ़्न दिया जाए और मेरे इन आज़ा पर जिन से सज्दा किया जाता है हुज़ूरﷺ के मुए मुबारक और तराशहाए नाखून रख दिये जाए।
     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه की वफ़ात के बाद यज़ीद तख्ते सल्तनत पर बैठा और उस ने अपनी बैअत लेने के लिये अतराफ़ व मुमालिक सल्तनत में मकतूब रवाना किये, मदीने का आमिल जब यज़ीद की बैअत लेने के लिये हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की खिदमत में हाज़िर हुवा तो आप ने उस के फिस्को ज़ुल्म की बिना पर उस को ना अहल क़रार दिया और बैअत से इनकार फ़रमाया, इसी तरह हज़रते ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه ने भी इनकार किया।
     हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه जानते थे की बैअत का इनकार यज़ीद के इश्तिआल का बाईष होगा और ना बकार जान का दुश्मन और खून का प्यासा हो जाएगा, लेकिन इमाम के दीयानत व तक़वा ने इजाज़त न दी की अपनी जान की खातिर न अहल के हाथ पर बैअत कर ले और मुसलमानो की तबाही और शरअ व अहकाम की बे हुर्मति और दिन की मज़र्रत की परवाह न करे और ये इमाम जेसे जलीलुश्शान फ़रज़न्दे रसूलﷺ से किस तरह मुमकिन था ?
     अगर इमामرضي الله تعالي عنه उस वक़्त यज़ीद की बैअत कर लेते तो यज़ीद आप की बहुत क़द्रों मन्ज़िलत करता और आप की आफिय्यत व राहत में कोई फ़र्क़ न आता बल्कि बहुत सी दौलते दुन्या आप के पास जमा हो जाती, लेकिन इस्लाम का निज़ाम दरहम बरहम हो जाता और दिन में ऐसा फसाद बरपा हों जाता जिस का दूर करना बाद को मुमकिन न होता। यज़ीद की हर बदकारी के जवाज़ के लिये इमाम की बैअत सनद होती और शरीअते इस्लामिया व मिल्लते हनफिया का नक़्शा मिट जाता।
     हज़रते इमामे व इब्ने ज़ुबैरرضي الله تعالي عنهم से बैअत की दरख्वास्त इस लिये पहले की गई थी की तमाम अहले मदीना इन का इत्तिबाअ करेंगे, लेकिन इन हज़रात के इनकार से वो मन्सूबा ख़ाक मे मिल गया और यज़ीदियो में उसी वक़्त से आतशे इनाद भड़क उठी और ब ज़रूरत इन हज़रात को उसी शब् मदीना से मक्का मुन्तकिल होना पड़ा। ये वाक़या 4 शाबान सी 60 ही का है।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 113*
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*सवानहे कर्बला​* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*हज़रते इमाम हुसैन की मदीने से रिहलत*
     मदनी से हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की रिहलत का दिन अहले मदीना और खुद हज़रते इमाम के लिये कैसे रंजो अन्दोह का दिन था। अतराफे आलम से तो मुसलमान वतन तर्क कर के अइज़्ज़ा व अहबाब को छोड़ कर मदीना तैय्यबा हाज़िर होने की तमन्नाए करे, दरबारे रिसालत की हाज़िरी का शौक़ दुश्वार गुज़ार मन्ज़िले और बहरो बर का तवील और खौफनाक सफर इख़्तियार करने के लिये बेक़रार बना दे। एक एक लम्हे की जुदाई इन्हें शाक हो, और फरज़न्दे रसूल से रिहलत करने पर मजबूर हो।
     उस वक़्त का तसव्वुर दिल को पाश पाश कर देता है जब हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه बईरादए रुख्सत आस्तानाए कुदसिय्या पर हाज़िर हुए होंगे और दिदए खून बार अश्के गम की बारिश की होगी। दिल दर्द मन्दे गमे महजुरि से घायल होगा, जद्दे करीम को रोज़ए ताहिरा से जुदाई का सदमा हज़रते इमाम के दिल पर रंजो गम के पहाड़ तोड़ रहा होगा, अहले मदीना की मुसीबत का भी क्या अंदाज़ा हो सकता है।
     दीदारे हबीब के फिदाई इस फ़रज़न्द की ज़ियारत से अपने कल्बे मजरूह को तस्कीन देते थे। इन का दीदार इन के दिल का क़रार था, आह ! आज ये क़रारे दिल मदीना से रुख्सत हो रहे है। इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه ने मदीना से बहज़ार गम व अन्दोह बादिले नाशाद रिहलत फरमा कर मक्का में इक़ामत फ़रमाई।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 115*
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*सवानहे कर्बला​* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते*
     यज़ीदियो कि कोशिशो से अहले शाम से जहां यज़ीद की तख्तगाह थी यज़ीद की राए मिल सकी और वहा के बाशिन्दों ने उस की बैअत की। अहले कूफा अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه के ज़माने ही में हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه किं खिदमत में दरख्वास्ते भेज रहे थे, तशरीफ़ आवरी की इलतीजाए कर रहे थे लेकिन इमाम ने साफ़ इनकार कर दिया था।
     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه की वफ़ात और यज़ीद की तख्त नशीनी के बाद अहले इराक़ की जमाअतो ने मुत्तफ़िक़ हो कर इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में दरख्वास्त भेजी और इन में अपनी नियाज़ मन्दी व जज़्बाते अक़ीदत व इख्लास का इज़हार किया और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर अपने जानो माल फ़िदा करने की तमन्ना ज़ाहिर की।
     इस तरह के इल्तिज़ानामो और दरख्वास्तो का सिलसिला बंध गया और तमाम जमाअतो और फिरको की तरफ से 150 से करीब अर्जियां हज़रते इमामे आली मक़ाम की खिदमत में पहुची, कहा तक इगमाज़ किया जाता और कब तक आप के अख़लाक़ जवाबे खुश्क की इजाज़त देते ? ना चार आप ने अपने चचाज़ाद भाई हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه की रवानगी तजवीज़ फ़रमाई।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 116*
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*सवानहे कर्बला​​* #06
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*_​इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते​_* #02
     अगर्चे इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की शहादत की खबर मसहूर थी और कुफियो की बे वफाई का पहले भी तजिरबा हो चूका था मगर जब यज़ीद बादशाह बन गया और उस की हुकूमत व सल्तनत दिन के लिये खतरा थी और इस वजह से उस की बैअत न रवा थी और वो तरह तरह की तदबिरो और हिलो से चाहता था की लोग उस की बैअत करे।
     इन हालात में कुफियो का बपासे मिल्लत यज़ीद की बैअत से दस्तकशि करना और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से तालिबे बैअत होना इमाम पर लाज़िम करता था इन की दरख्वास्त क़बूल फरमाए जब एक क़ौम ज़ालिम व फ़ासिक़ की बैअत पर राज़ी न हो और साहिबे इस्तिहक़ाक़ अहल से दरख्वास्ते बैअत करे इस पर अगर वो इनकी इस्तीदआ क़बूल न करे तो इस के ये माना होते है की वो इस क़ौम को इस जाबिर ही के हवाले करना चाहता है।
     इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه अगर उस वक़्त कुफियो की दरख्वास्त क़बूल न फरमाते तो बारगाहे इलाहि में कुफियो के इस मुतालबे का इमाम के पास क्या जवाब होता की हम हर चन्द दरपे हुए मगर इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه बैअत के लिये राज़ी न हुए। यही वजह हमे यज़ीद के जुल्मो तशद्दुद से मजबूर हो कर उसकी बैअत करनी पड़ी अगर इमाम हाथ बढ़ाते तो हम इन पर जाने फ़िदा करने के लिये हाज़िर थे। ये मसअला ऐसा दरपेश आया जिस का हल बजुज़ इस के और कुछ न था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه उन की दावत पर लबैक फरमाए।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 116*
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*सवानहे कर्बला​* #07
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*_​​​इमाम की जनाब में कुफियो की दरख्वास्ते​​​_* #03
अगर्चे अकाबिर सहाबए किराम हज़रते इब्ने अब्बास व हज़रते इब्ने उमर व हज़रते जाबिर व हज़रते अबू सईद व हज़रते अबू वाक़ीद लैषीرضي الله تعالي عنهم वग़ैरहु हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की इस राय से मुत्तफ़िक़ न थे और इन्हें कुफियो के अहद व मवाषिक का ऐतिबार न था, इमाम की महब्बत और शहादते इमाम की शोहरत इन सब के दिलो में इख्तिलाज पैदा कर रही थी, गोकि ये यक़ीन करने की भी कोई वजह न थी की शहादत का येही वक़्त है और इसी सफर में ये मरहला दरपेश होगा लेकिन अन्देशा मानेअ था। हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه के सामने मसअले की ये सूरत दरपेश थी की इस दस्तिदआ को रोकने के लिये उज़्रे शरई क्या है।

     इधर ऐसे जलिलुल क़द्र सहाबा के शदीद इसरार का लिहाज़, उधर अहले कूफा की इस्तिदआ रद न फरमाने के लिये कोई शरई उज़्र न होना हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के लिये निहायत पेचीदा मसअला था जिस का हल ब जुज़ इस के कुछ नज़र न आया की पहले हज़रते इमाम मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को भेजा जाए अगर कुफियो ने बद अहदी व बे वफाई की तो उज़्रे शरई मिल जाएगा और अगर वो अपने अहद पर क़ाइम रहे तो सहाबा को तसल्ली दी जा सकेगी।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 117*
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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी_* #01
     हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه को कूफा रवाना फ़रमाया और अहले कूफा को तहरीर फ़रमाया की तुम्हारी इस्तिदआ पर हम हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को रवाना करते है इन की नुसरत व हिमायत तुम पर लाज़िम है।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه के दो फ़रज़न्द मुहम्मद और इब्राहिम जो अपने बाप के बहुत प्यारे बेटे थे इस सफर में अपने पिदरे मुशफ़िक़ के हमराह हुए।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने कूफा पहुच कर मुख्तार बिन अबी उबैद के मकान पर क़याम फ़रमाया आप की तशरीफ़ आवरी की खबर सुन कर जुक जुक मख्लूक़ आप की ज़ियारत को आई और 12000 से ज़्यादा तादाद ने आप के दस्ते मुबारक पर हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की बैअत की।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 118*
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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​_* #02
     हज़रते मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه ने अहले इराक़ की गिरविदगी व अक़ीदत देख कर हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की जनाब में अरिज़ा लिखा जिस मे यहा के हालात की इत्तिला दी और इलतिमास की, की ज़रूरत है की हज़रत जल्द तशरीफ़ लाए ताकि बन्दगाने खुदा, नापाक के शर से महफूज़ रहे और दिने हक़ की ताईद हो, मुसलमान इमामे हक़ की बैअत से मुशर्रफ व फ़ैज़याब हो सके।
     अहले कूफा का ये जोश देख कर हज़रते नोमान बिन बशीर सहाबी ने जो उस ज़माने में हुकूमते शाम की जानिब से कूफा के गवर्नर थे। अहले कूफा को मुत्तलअ किया की ये बैअत यज़ीद की मर्ज़ी के खिलाफ है और वो इस पर बहुत भड़केगा लेकिन इतनी इत्तला दे कर ज़ाबिते की कार्रवाई पूरी कर के हज़रते नोमान बिन बशीर खामोश हो बेठे और इस मुआमले में किसी किस्म की दस्त अंदाज़ी न की।
      मुस्लिम बिन यज़ीद हज़्रमि और अम्मार बिन वलीद बिन उक़बा ने यज़ीद को इत्तला दी की हज़रते मुस्लिम बिन अक़ील तशरीफ़ लाए है और अहले कूफा में इन की महब्बत व अक़ीदत का जोश दम बदम बढ़ रहा है। हज़ारहा आदमी इन के हाथ पर इमाम हुसैन की बैअत कर चुके है और नोमान बिन बशीर ने अब तक कोई कार्रवाई उन के खिलाफ नही की न इनसीदादी तदाबिर अमल में लाए।
     यज़ीद ने ये इत्तला पते ही मोमान बिन बशीर को माज़ूल किया  और उबैदुल्लाह बिन यज़ीद को जो उसकी तरफ से बसरा का गवर्नर था उन का क़ाइम मक़ाम किया।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​_* #02
     उबैदुल्लाह बिन यज़ीद बहुत मक्कार व कय्याद था, वो बसरा से रवाना हुवा और उसने अपनी फ़ौज को क़ादिसिय्या में छोड़ा और खुद हिजाज़ियो का लिबास पहन कर ऊंट पर सुवार हुवा और चन्द आदमी हमराह ले कर शब् की तारीकी में मगरिब व ईशा के दरमियान उस राह से कूफा में दाखिल हुवा जिस से हिजज़ी काफिले आया करते थे। इस मक्कारी से उस का मतलब ये था की इस वक़्त अहले कूफा में बहुत जोश है, ऐसे तौर पर दाखिल होना चाहिए की वो इब्ने ज़ियाद को न पहचाने और ये समझे की हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए ताकि वो बे खतरा व अन्देशा अम्न व आफिय्यत के साथ कूफा में दाखिल हो जाए।
     चुनांचे ऐसा ही हुवा, अहले कूफा जिन को हर लम्हा हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه की तशरीफ़ आवरी का इन्तिज़ार था, उन्हों ने धोका खाया और शब् की तारीकी में हिजाज़ी लिबास और हिजाज़ी राह से आता देख कर समझे की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه तशरीफ़ ले आए। नारऐ मुसर्रत बुलन्द किये, गिर्दो पेश मरहबा कहते चले।
     ये मर्दुद दिल में तो जलता रहा और इस ने अंदाज़ा कर लिया की कुफियो को हज़रते इमाम की तशरीफ़ आवरी का इंतज़ार है और इन के दिल उन की तरफ माइल है मगर उस वक़्त की मस्लहत से खामोश रहा ताकि इन पर उसका मक्र खुल न जाए यहाँ तक की दारुल अम्मारा (गवर्नर हाउस) में दाखिल हो गया।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 120*
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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​​​_* #03
     इब्ने ज़ोयाद गवर्नर हाउस में दाखिल हो गया उस वक़्त कुफि ये समझे की ये हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه न थे बल्कि इब्ने ज़ियाद इस फरेब कारी के साथ आया और उन्हें हसरत व मायूसी हुई।
     रात गुज़ार कर इब्ने ज़ियाद सुब्ह को अहले कूफा को जमा किया और हुकूमत का परवाना पढ़ कर इन्हें सुनाया और यज़ीद की मुखालिफत से डराया धमकाया, तरह तरह के हिलो से हज़रते मुस्लिम की जमाअत को मुन्तशिर कर दिया।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने हानि बिन उर्वा के मकान में इक़ामत फ़रमाई। इब्ने ज़ियाद ने मुहम्मद बिन अशअष को एक दस्ता फौज के साथ हानि के मकान पर भेज कर उस को गितफ्तार करा मंगाया और कैद कर लिया, कूफा के तमाम रऊसा व अमाइद को भी किल्ले में नज़र बंद कर लिया।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ये खबर पा कर बर आमद हुए और आपने अपने मुतवस्सिलिन को आवाज़ दी, लोग आने शुरू हो गए 40000 की जमाअत हो गई, सूरत बन गई थी हमला करने की देर थी।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी_*​​​​​​​​ #04
     अगर मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه हमला करने का हुक्म देते तो उसी वक़्त किल्ला फ़त्ह पाता और इब्ने ज़ियाद और उस के हमराही हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه के हाथ में गिरफ्तार होते और येही लश्कर सैलाब की तरह उमड़ कर शामियो को ताख्त व ताराज कर डालता और यज़ीद को जान बचाने के लिये कोई राह न मिलती।
     नकाशा तो यही जमा था मगर बन्दों का सोचा क्या होता है। हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने किल्ले का इहाता तो लार लिया और बा वुजूद ये की कुफियो की बदअहदी और इब्ने ज़ियाद की फरेबकारी और यज़ीद की अदावत पुरे तौर पर षाबित हो चुकी थी। फिर भी आप ने अपने लश्कर को हमले का हुक्म न दिया और एक बादशाह दाद गुस्तर के नायब की हेशिय्यत से आपने इन्तिज़ार फ़रमाया की पहले गुफ्तगू से कतए हुज्जत कर लिया जाए और सुलह की सूरत पैदा हो सके तो मुसलमानो में खून रेज़ी न होने दी जाए।
     आप अपने इस पाक इरादे से इंतज़ार में रहे और अपनी एहतियात को हाथ से जाने न दिया, दुश्मन ने इस वक्फे से फायदा उठाया और कूफा के रऊसा व अमाइद जिन को इब्ने ज़ियाद ने पहले से किल्ले में बंद कर रखा था इन्हें मजबूर किया की वो अपने रिश्तेदारो और ज़ेरे अशर लोगो को मजबूर कर के हज़रते मुस्लिम की जमाअत से अलाहिदा कर दे।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​​​​​​​_* #05
     ये लोग इब्ने ज़ियाद के हाथ में क़ैद थे और जानते थे की अगर इब्ने ज़ियाद को शिकस्त भी हुई तो वो किल्ला फ़त्ह होने तक इन का खातिमा कर देगा। इस खौफ से वो घबरा कर उठे और उन्होंने दीवारे किल्ला पर चढ़ कर अपने मुतअल्लीकीन व मुतवस्सिलिन से गुफ्तगू की और उन्हें हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه की रफ़ाक़त छोड़ देने पर इन्तिहाई दर्जे का ज़ोर दिया और बताया की इलावा इस बात के की हुकूमत तुम्हारी दुश्मन हो जाएगी यज़ीदे नापाक तुम्हारे बच्चों को क़त्ल कर डालेगा, तुम्हारे माल लुटवा देगा, तुम्हारी जागीर व मकानात ज़ब्त हो जाएगे। ये और मुसीबत है की अगर तुम इमाम मुस्लिम के हाथ रहे तो हम जो इब्ने ज़ियाद के हाथ में क़ैद है किल्ले के अंदर मारे जाएगे, हमारे हाल पर रहम करो, अपने घरो पर चले जाओ।
     ये हिला कामयाब हुवा और हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه का लश्कर मुन्तशिर होने लगा यहाँ तक की ता बवक़्ते शाम हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने मस्जिदे कूफा में जिस वक़्त मगरिब की नमाज़ शुरू की तो आप के साथ 500 आदमी थे और जब आप नमाज़ से फरीक हुए तो आपके साथ एक भी न था। तमन्नाओ के इज़हार और इलतीजाओ के तुमार से जिस अज़ीज़ मेहमान को बुलाया था उस के साथ ये वफ़ा है की वो तन्हा है और इन की रफ़ाक़त के लिये कोई भी मौजूद नही।
     कूफा वालो ने हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को छोड़ने से पहले गैरत व हमिय्यत से कतए तअल्लुक़ किया और उन्हें ज़रा परवाह न हुई की क़यामत तक तमाम आलम में उनकी बे हिम्मती का शोहरा रहेगा और इस बुज़दिलाना बे मुरव्वती और नामर्दी से वो रुस्वाए आलम होंगे।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه इस गुर्बत व मुसाफरत में तन्हा रह गए।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी_*​​​​​​​​​​​​ #06
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه इस गुर्बत व मुसाफरत में तन्हा रह गए। किधर जाए, कहा क़याम करे, हैरत है कूफा के तमाम मेहमान खानो के दरवाज़े बांध हो गए थे, नादान बच्चे साथ है, कहा उन्हें लिटाए, कहा सुलाए, कूफा के वसी खित्ते में दो चार गज़ ज़मीन हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه के शब् गुज़ारने के लिये नज़र नहीं आती।
     उस वक़्त हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه की याद आती है और दिल तड़पा देती है, वो सोचते है की मेने इमाम की जनाब में खत लिखा, तशरीफ़ आवरी की इल्तिजा की है और इस बद अहद क़ौम के इख्लास व अक़ीदत का एक दिलकश नक़्शा इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه के हुज़ूर पेश किया है और तशरीफ़ आवरी पर ज़ोर दिया है। यक़ीनन हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه मेरी इल्तिजा रद नही फरमाएंगे और यहा के हालात से हालात से मुतमइन हो कर अहलो अयाल चल पड़े होंगे, यहाँ उन्हें क्या मसाइब और उन जन्नती फूलो को इस बे मेहरी की तपिश कैसे सुकून पोहचएगी।
     ये गम अलग दिल को घायल कर रहा था ओर अपनी तहरीर पर शर्मिंदगी और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के लिये खतरात अलाहिदा बे चैन कर रहे थे और मौजूदा परेशानी जुदा दामनगिर थी।
     इस हालत में हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को प्यास मालुम हुई, एक घर सामने नज़र पड़ा जहा तूआ नामी एक औरत मौजूद थी उससे आप ने पानी मांगा।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी_*​​​​​​​​​​​​​​ #07
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने उस औरत से पानी मांगा, उस ने आप को पहचान कर पानी दिया और अपनी सआदत समझ कर आप को अपने मकान में फरोश किया। उस औरत का बेटा मुहम्मद इब्ने अशअष का गुर्गा था, उसने फौरन ही उस को खबर दी और उस ने इब्ने ज़ियाद को इस पर मुत्तला किया।
     इब्ने ज़ियाद ने अम्र बिन हरीष (कोतवाले कूफा) और मुहम्मद बिन अशअष को भेजा, इन दोनों ने एक जमाअत साथ ले कर तूआ के घर का इहाता किया और चाहा की हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को गिरफ्तार कर ले।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه अपनी तलवार ले कर निकले और ब नाचारि आप ने उन जालिमो से मुक़ाबला शुरू किया। उन्हों ने देखा की हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه इस जमाअत पर इस तरह टूट पड़े जेसे शेरे बबर अपने शिकार पर हमला आवर हो। आप के शेराना हमलो से दिल आवरो ने दिल छोड़ दिये और बहुत आदमी ज़ख़्मी हो गए, बाज़ मर गए।
     मालुम हुआ की बनी हाशिम के इस एक जवान से नामर्दाने कूफा की ये जमाअत नबर्द आज़मा नही हो सकती। अब तजवीज़ की, की कोई चाल चलनी चाहिये और किसी फरेब से हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه पर क़ाबू पाने की कोशिश की जाए। ये सोच कर अम्नो सुलह का ऐलान कर दिया और हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه से अर्ज़ किया की हमारे आप के दरमियान जंग की ज़रूरत नही है न हम आप से लड़ना चाहते है, मुद्दा सिर्फ इस क़दर है की इब्ने ज़ियाद के पास तशरीफ़ ले चले और उस से गुफ्तगू कर के मुआमला तै कर ले।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की मेरा खुद कसदे जंग नही और जिस वक़्त मेरे साथ 40000 का लश्कर था उस वक़्त भी में ने जंग नही की और में यही इन्तिज़ार करता रहा की इब्ने ज़ियाद गुफ्तगू कर के कोई शक्ले मुसालहत पैदा करे तो खून रेज़ी न हो।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​कूफा को हज़रते मुस्लिम की रवानगी​​​​​​​​​​​​​​​​_* #08
     चुनांचे ये लोग हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को और उनके दोनों बेटो को इब्ने ज़ियाद के पास ले कर रवाना हुए। उस बद बख्त ने पहले ही से दरवाज़े के दोनों पहलुओ में अंदर की जानिब तेग ज़न छुपा कर खड़े कर दिये थे और उन्हें हुक्म दे दिया था की हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه दरवाज़े में दाखिल हो तो एक दम दोनों तरफ से इन पर वार किया जाए।
     हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه को इस की क्या खबर थी और आप इस मक्कारी क्र कय्यादि से क्या वाकिफ थे, आप आयते करीम *ऐ रब हमारे हम में और हमारी क़ौम में हक़ फैसला कर* (पारह 9) पढ़ते हुए दरवाज़े में दाखिल हुए। दाखिल होना था की अश्किया ने दोनों तरफ से तलवारो के वार किये और बनी हाशिम का मज़लूम मुसाफिर आदाए दिन की बे रहमी से शहीद हुवा।
     दोनों साहबज़ादे आप के साथ थे। उन्हों ने इस बे कसी की हालत में औने शफ़ीक़ वालिद का सर उन के मुबारक तन से जुदा होते देखा। छोटे छोटे बच्चों के दिल गम से फट गए और इस सदमे में वो बैद की तरह लराजने और काम्पने लगे। एक भाई दूसरे भाई को देखता था और उन की आँखों से अश्क जारी थे, लेकिन इस सितम में कोई इन नादानों पर रहम करने वाला न था, सितमगरो ने इन नौनिहालो को भी तेगे सितम से शहीद किया और हानि को क़त्ल करके सूली चढ़ाया।
     इन तमाम शहीदों के सर नेजो पर चढ़ा कर कूफा के गली कुचो में फिराए गए और बे हयाई के साथ कुफियो ने अपनी संग दिली और मेहमान कुशी का अमली तौर पर ऐलान किया।
     ये वाक़या 3 ज़िल हिज्जा सी. 60 ही. का है। इसी रोज़ मक्का से हज़रते इमामे हुसैन कूफा की तरफ रवाना हुए।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 125*
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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_* #01
     हज़रते इब्ने अब्बास, इब्ने उमर, जाबिर, अबू सईद खुदरी, अबू वाक़ीद लैषी और दूसरे सहाबए किराम आपرضي الله تعالي عنه को रोकने में बहुत मुसिर थे और आखिर तक वो यही कोशिश करते रहे की आप मक्का से तशरीफ़ न ले जाए, लेकिन ये कोशिश कार आमद न हुई और हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه ने 3 ज़िल हिज्जा सी. 60 ही. को अपने अहलो अयाल व खुद्दाम कुल 82 लोगो को हमराह ले कर राहे इराक़ इख़्तियार की।
     मक्का से अहले बैते रिसालत का ये छोटा सा क़ाफ़िला रवाना होता है और दुन्या से सफर करने वाले बैतुल्लाहुल हराम का आखरी तवाफ़ कर के मगमुम कर दिया, मक्का का बच्चा बच्चा अहले बैत के इस काफिले को हरम शरीफ से रुख्सत होता देख कर आबदीदा और मगमुम हो रहा था मगर वो ज़ाबाज़ो के मीरे लश्कर और फिदाकारो के क़ाफ़िला सालार मर्दाना हिम्मत के साथ रवाना हुए।
     राह में जाते अर्क़ के मक़ाम पर बशीर इब्ने ग़ालिब असदि कुफासे आते मिले। हज़रते इमाम ने उन से अहले इराक़ का हाल पूछा, अर्ज़ किया की उन के कुलूब आप के साथ है और तलवारे बनी उमय्या के साथ और खुदा जो चाहता है करता है। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنهने फ़रमाया सच है।
     आगे अब्दुल्लाह बिन मुतीअ से मुलाक़ात हुई। वो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के बहुत दरपे हुए की आप इस सफर को तर्क फरमाए और इस में उन्होंने अंदेशे ज़ाहिर किये। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया हमे वही मुसीबत पहुच सकती है जो ख़ुदावन्दे आलम ने हमारे लिये मुक़र्रर फरमा दी।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #02
     राह में हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه को कुफियो की बद अहदी और हज़रते मुस्लिमرضي الله تعالي عنه की शहादत की खबर मिल गई। उस वक़्त आप की जमाअत में मुख़्तलिफ़ राए हुई और एक मर्तबा आप ने वापसी का क़स्द ज़ाहिर फ़रमाया लेकिन बहुत गुफ्तगू के बाद ये राए पाई की सफर जारी रखा जाए और वापसी का ख्याल तर्क किया जाए।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने भी इस मशवरे से इत्तिफ़ाक़ किया और क़ाफ़िला आगे चल दिया यहाँ तक की जब कूफा दो मन्ज़िल रह गया तब आप को हर बिन यज़ीद रियाही मिला, उसके साथ इब्ने ज़ियाद के 1000 हथियार बंद सुवार थे, हर ने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की जानिब में अर्ज़ किया की इस को इब्ने ज़ियाद ने आप की तरफ भेज है और हुक्म दिया है की आप को उस के पास ले चले, हर ने ये भी ज़ाहिर किया की वो मजबुराना बादिले न ख्वास्ता आया है और उस को आप की खिदमत में जुरअत बहुत न पसन्द व नागवार है।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने हर से फ़रमाया की में इस शहर में खुद न आया बल्कि मुझे बुलाने के लिये अहले कूफा के मुतवातिर पयाम गए और लगातार नामे पहुचते रहे। ऐ अहले कूफा ! अगर तुम अपने अहद व बैअत पर क़ाइम हो और तुम्हे अपनी ज़बानों का कुछ पास हो तो तुम्हारे शहर में दाखिल होउ वरना यही से वापस जाऊ। हर ने क़सम खा कर कहा की हम को इस का कुछ इल्म नही की आप के पास इल्तिजा नामे और क़ासिद भेजे गए और में न आप को छोड़ सकता हु और न वापस हो सकता हु।
     हुर के दिल में खानदाने नुबुव्वत और अहले बैत की अज़मत ज़रूर थी लेकिन वो इब्ने ज़ियाद के हुक्म से मजबूर था और उस को ये अन्देशा भी था की वो अगर हज़रते इमाम के साथ कोई मराआत करे तो इब्ने ज़ियाद पर ये बात ज़ाहिर हो कर रहेगी की हज़ार सुवार साथ है, ऐसी सूरत में किसी बात का छुपाना मुमकिन नही  और अगर इब्ने ज़ियाद को मालुम हुवा की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के साथ ज़रा भी ज़रुगुज़ाश्त की गई है तो वो निहायत सख्ती के साथ पेश आएगा। इस अंदेशे और ख्याल से हर अपनी बात पर अड़ा रहा यहाँ तक की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को कूफा की राह से हट कर कर्बला में नुज़ूल फरमान पड़ा।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #03
     ये मुहर्रम सी. 61 ही. की दूसरी तारीख थी। आपرضي الله تعالي عنه ने इस मक़ाम का नाम दरयाफ़्त किया तो मालुम हुवा की इस जगह को कर्बला कहते है। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه कर्बला से वाकिफ थे और आप को मालुम था की कर्बला ही वो जगह है जहा अहले बैते रिसालत को राहे हक़ में अपने खून की नदिया बहानी होगी।
     आप ने इन्ही दिनों में हुज़ूरﷺ की ज़ियारत हुई, हुज़ूरﷺ ने आप को शहादत की खबर दी और आप के सिनए मुबारक पर दस्ते अक़दस रख कर दुआ फ़रमाई : *اَللّٰهُمَّ اَعْطِ الْحُسَيْنَ صَبْرًا وَاَخْرًا*
     आज़िब वक़्त है के सुल्ताने दारैन के नुरे नज़र को सदहा तमन्नाओ से मेहमान बना कर बुलाया है, अर्जियों और दरख्वास्तो के तुमार लगा दिए है, क़ासिदो और पयामो की रोज़ मर्रा डाक लग गई है। अहले कूफा रातो को अपने मकानों में इमाम की तशरीफ़ आवरी ख्वाब में देखते है और ख़ुशी से फुले नही समाते, जमाअते मुद्दतो रक सुब्ह से शाम तक हिजाज़ की सड़क पर बैठ कर इमाम की आमद का इन्तिज़ार किया करती है और शाम को दिल मगमुम वापस जाती है लेकिन जब वो करीम मेहमान अपने करम से इन की ज़मीन में तशरीफ़ लाते है तो इन ही कुफियो का मुसल्लह लश्कर सामने आता है और न शहर में दाखिल होने देता है न अपने वतन ही को वापस तशरीफ़ ले जाने पर राज़ी होता है।
     यहाँ तक की इस मोअज़्ज़ज़् मेहमान को व अपने अहले बैत  को खुले मैदान में रखते इक़ामत डालना पड़ता है और दुष्मनाने हया को गैरत नही आती। दुन्या में ऐसे मोअज़्ज़ज़् मेहमान के साथ ऐसी बे हमिय्यति का सुलूक कभी न हुवा होगा जो कुफियो ने हज़रते इमाम के साथ किया।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #04
     यहाँ तो मुसाफिराने बे वतन का सामान बे तरतीब पड़ा है और उधर हज़ार सुवार का मुसल्लह लश्कर मुक़ाबला खैमाज़न है जो अपने मेहमानो को नेज़ो की नोकें और तलवारो की धारो दिखा रहा है और बजाए आदाबे मेज़बानी के खुँख्वारि पर तुला हुवा है। दरियाए फुरात के क़रीब दोनों लश्कर थे और दरियाए फुरात का पानी दोनों लशकरो में से किसी को सैराब न कर सका। इमामرضي الله تعالي عنه के लश्कर को तो इस का एक क़तरा पहुचना ही मुश्किल हो गया और यज़ीदी लश्कर जितने आते गए इन सब को अहले बैते रिसालत के बे गुनाह खून की प्यास बढ़ती गई। आबे फुरात से इन की तिशनगी में कोई फर्क न आया।
     अभी इत्मीनान से बैठने और थकान दूर करने की सूरत भी नज़र न आई थी की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में इब्ने ज़ियाद का एक मकतूब पंहुचा जिस में उसने हज़रते इमाम से यज़ीदे नापाक की बैअत तलब की थी। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने वो खत पढ़ कर डाल दिया और क़ासिद से कहा मेरे पास इस का कुछ जवाब नही।
     यज़ीद की बैअत को कोई भी वाकिफ हाल दीनदार आदमी गवारा नही कर सकता था न वो बैअत किसी तरह जाइज़ थी। इमाम को इन बे हयाओ की इस जुरअत पर हैरत थी और इसी लिये आप ने फ़रमाया की मेरे पास इसका कुछ जवाब नही है। इससे इब्ने ज़ियाद का तैश और ज़्यादा हो गया और उस ने मज़ीद असाकिर व अफवाज तरतीब दिये और इन लशकरो का सिपह सालार उमर बीन साद को बनाया जो उस ज़माने में मुल्के रै का गवर्नर था। रै खुरासान का एक शहर है जो आज कल ईरान माँ दारुस्सलतन्त है और इस को तेहरान कहते है।

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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #05
सब के सब हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की अज़मत व फ़ज़ीलत को खूब जानते पहचानते थे और आप की जलालत व मर्तबा का हर दिल मोतरीफ था। इस वजह से इब्ने साद ने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से मुक़ाबला करने से इनकार किया। वो चाहता था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के खून के इलज़ाम से वो बचा रहे मगर इब्ने ज़ियाद ने उसे मजबूर किया की अब दो ही सूरते है या तो रै की हुकूमत को छोड़ दे या इमाम से मुक़ाबला किया जाए।
     दुन्यवि हुकूमत के लालच ने उस को जंग पर आमद कर दिया। आखिर कार वो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के मुक़ाबले के लिये रवाना हुवा और इब्ने ज़ियादे बद निहाद लशकरो को भेजता रहा यहाँ तक की अम्र बिन साद के पास 22000 का लश्कर जमा हो गए और उसने जमीअत के साथ कर्बला में पहुच कर फुरात के कनारे पड़ाव किया और अपना मर्कज़ क़ाइम किया।
     हैरत नाक बात है और दुन्या की किसी जंग में इस की मिषाल नही मिलती की कुल 82 तो आदमी, इनमे बिविया भी, बच्चे भी, बीमार भी, फिर वो भी की वो बिरादए जंग नही आए थे और इन्तिज़ाम हर्ब काफी न रखते थे। उनके लिये 22000 की ज़र्रार फ़ौज भेजी जाए। आखिर वो इन 82 नुफुसे मुक़द्दसा को अपने ख्याल में क्या समझते थे और उनकी शुजाअत व बसालत के कैसे कैसे मनाज़िर उन की आँखों ने देखे थे की छोटी सी जमाअत के लिये दो गुनी, चौगुनी, दस गुनी तो क्या सो गुनी तादाद को भी काफी न समझा, बे अंदाज़ा लश्कर भेज दिया, फौजो के पहाड़ लगा डाले, इस पर भी दिल खौफ ज़दा है और जंग आजमाओ, दिलावरो के हौसले पस्त है और वो समझते है की शैराने हक़ के हमले की ताब लाना मुश्किल है मजबूरन ये तदबीर करनी पड़ी की लश्करे इमाम पर पानी बंद किया जाए, प्यास की शिद्दत और गर्मी की हिद्द्त इन्तिहा को पहुच चुके तब जंग शुरू की जाए।

बाक़ी कल की पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 133*
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*सवानहे कर्बला​* #20
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*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #06
     अहले बैते किराम पर पानी बंद करने और इन के खुनो के दरया बहाने के लिये बे गैरती से सामने आने वालो में ज़्यादा तादाद उन्ही बे हयाओ की थी जिन्होंने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को दरख्वास्ते भेज बुलाया था और मुस्लिम बिन अक़ीलرضي الله تعالي عنه के हाथ पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की बैअत की थी। मगर आज उन बे गैरतो को न अपने अहद व बैअत का ख्याल था न अपनी दावत व मेज़बानी का लिहाज़। फुरात का बे हिसाब पानी इस सियाह बातीनोने ख़ानदाने रिसालत पर बंद कर दिया था।
     अहले बैत के छोटे छोटे फातिमि चमन के नौनिहाल खुश्क लब, नादान बच्चे एक एक क़तरे के लिये तड़प रहे थे, नूर की तस्वीरें प्यास की शिद्दत में दम तोड़ रही थी, सरे चश्म तयम्मुम से नमाज़े पढ़नी पड़ती थी, इस तरह 3 दिन गुज़र गए, छोटे छोटे बच्चे और बिविया सब भूक व प्यास से बेताब व तुवा हो गए।
     इस ज़ुल्मो सितम में अगर रुस्तम भी होता तो उसके हौसले पस्त हो जाते मगर फरज़न्दे रसूल को मसाएब का हुजूम जगह से न हटा सका, हक़ व सदाक़त का हामी मुसीबतो की भयानक घटाओ से न डरा और तुफ़ाने बला के सेलाब से उसके पाए जुम्बिश भी न हुई, 10 मुहर्रम तक यही बहष रही की हज़रते इमाम यज़ीद की बैअत कर ले।
     अगर आपرضي الله تعالي عنه यज़ीद की बैअत करते तो वो तमाम लश्कर आप के जिलव में होता, आप का कमाले इकराम व एहतिराम किया जाता, खज़ानों के मुह खोल दिये जाते और दौलते दुन्या क़दमो पर लूटा दी जाती मगर जिस का दिल हुब्बे दुन्या से खाली हो और दुन्या के  राज़ जिस पर खुले हुए हो वो इस बात पर कब राज़ी होता है, जिस आँख ने हक़ीक़ी हुस्न के जल्वे देखे हो वो नुमाइशी रंगो रूप पर क्या नज़र डेल ?
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने राहते दुन्या के मुह पर ठोकर मार दी और राहे हक़ में पहुचने वाली मुसीबतो का खुश दिली से खैर मक़दम किया और मुसलमानो की तबाही व बर्बादी गवारा न फ़रमाई, अपना घर लुटाना और अपना खून बहाना मंज़ूर किया मगर इस्लाम की इज़्ज़त में फ़र्क़ आना बर्दास्त न हो सका।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 135*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #01
*_10मुहर्रम के दिलडोज वाक़ीआत_* #01
     10वी मुहर्रम का क़यामत नुमादिन आया। जुमुआ की सुब्ह हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने तमाम अपने रुकफाए अहले बैत के साथ फज़र के वक़्त अपनी उम्र की आखरी नमाज़ अदा फ़रमाई। पेशानियो ने सजदों में खूब मज़े लिये, ज़बानों ने किराअत व तसबिहात के लुत्फ़ उठाए। नमाज़ से फराग के बाद ख़ैमे में तशरीफ़ लाए, 10वी मुहर्रम का आफताब करिबे तुलुअ है, इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه और उनके तमाम रुफका व अहले बैत 3 दिन के भूके प्यासे है, एक कतराए आब मुयस्सर नहीं आया और एक लूक़मा हल्क़ से नही उतरा, भूक प्यास से जिस क़दर ज़ोफ़् व नातुवानी का गल्बा हो जाता है इसका वही लोग कुछ अंदाज़ा कर सकते है जिन्हें कभी दो तिन वक़्त के फाके की नौबत आई हो। फिर बे वतनी, तेज़ धुप, गर्म रेत, गर्म हवाए, उन्हों ने नाज़ परवर दगाने आगोशे रिसालत को केसा पज़मुर्दा कर दिया होगा।
     इन बे वतन पर जोरो के पहाड़ तोड़ने के लिये 22000 फ़ौज सफर बांधे मौजूद, जंग का नक़्क़ारा बजा दिया गया और मुस्तफाﷺ के फ़रज़न्द और फातिमा ज़हराرضي الله تعالي عنها के जिगर को मेहमान बना कर बुलाने वाली क़ौम ने जानो पर खेलने की दावत दी।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने अर्सए कारज़ार में तशरीफ़ फरमा कर एक ख़ुत्बा फ़रमाया जिस में बयान फ़रमाया की "खूने नाहक हराम और गजबे इलाही का मुजीब है, में तुम्हे आगाह करता हु की तुम इस गुनाह में मुब्तला न हो, में ने किसी को क़त्ल नही किया है, किसी का घर नही जलाया, किसी पर हमला आवर नही हुवा। अगर तुम अपने शहर में मेरा आना नही चाहते हो तो मुझे वापस जाने दो, तुम से किसी चीज़ का तलबगार नही, तुम्हारे दरपे आज़ार नही, तुम क्यू मेरी जान के दरपे हो और तुम किस तरह मेरे खून के इलज़ाम से बरी होब्स्क्ते हो ?
     रोज़े मेहशर तुम्हारे पास मेरे खून का क्या जवाब होगा ? अपना अंजाम सोचो और अपनी अपनी आकिबत पर नज़र डालो, फिर ये भी समजो की में कौन और बारगाहे रिसालत में किस चश्मे करम का मंजूरे नज़र हु, मेरे वालिद कौन है और मेरी वालिदा किस की लखते जिगर है ? में उन्ही बतुले ज़हरा का नुरे दीदा हु जिन के पुल सिरात पर गुज़रते वक़्त अर्श से निदा की जाएगी की ऐ अहले मेहशर ! सर झुकाओ और आँखे बंद करो की हज़रते खातुने जन्नत पुल सिरात से 70000 हूरो को रिकाबे सआदत में ले कर गुज़रने वाली है।
     में वही हु जिसकी महब्बत को सरवरे आलमﷺ ने अपनी महब्बत फ़रमाया है, मेरे फ़ज़ाइल तुम्हे खूब मालुम है, मेरे हक़ में जो अहादिश वारिद हुई है इस से तुम बे खबर नही हो।

इसके जवाब में कुफियो ने जो कहा वो अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 137*
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*सवानहे कर्बला​* #22
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #02
     इसका जवाब ये दिया गया की तमाम फ़ज़ाइल हमे मालुम है मगर उस वक़्त ये मसअला ज़ेरे बहष नही है, आप जंग के लिये किसी को मैदान में भेजिये और गुफ्तगू खत्म फरमाये।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की में हुज्जते खत्म करना चाहता हु ताकि इस जंग को दफा करने की तदाबिर में से मेरी तरफ से कोई तदबीर रह न जाए और जब तुम मजबूर करते हो तो ब मजबूरी व नाचारी मुझको तलवार उठाना ही पड़ेगी।
     ये गुफ्तगू हो ही रही थी की एक शख्स घोडा दौड़ा कर सामने आया (जिसका नाम मालिक बिन उर्वा था) जब उस ने देखा की लश्करे इमाम के गिर्द खन्दक में आग जल रही है और शोले बुलंद हो रहे है और इस तदबीर से अहले खैमा की हिफाज़त की जाती है तो उस गुस्ताखने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से कहा की ऐ हुसैन तुम ने वहा की आग से पहले यही आग लगा ली? हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया ऐ दुश्मने खुदा ! तू काजीब है। तुझे गुमान है की में दोज़ख में जाऊँगा ?
     मुस्लिम बिन औसजाرضي الله تعالي عنه को मालिक बिन उर्वा का ये कलिमा बहुत न गवार हुवा और उन्हों ने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से उस बद ज़बान के मुह पर तीर मारने की इजाज़त चाही। सब्रो तहम्मुल और तक़वा और रास्तबाज़ी और अदालत व इन्साफ का एक आदिमूल मिषाल मन्ज़र है की ऐसी हालत में जब की जंग के लिये मजबूर कीये गए थे। उस वक़्त भी अपने जज़्बात क़ब्ज़े में है तैश नहीं आता। फरमाते है : खबरदार ! मेरी तरफ से कोई जंग की इब्तिदा न करे ताकि इस खून रेजी का बवाल आदा ही की गर्दन पर रहे और हमारा दामन इक़दाम से आलूदा न हो।

     ये फरमा कर दस्ते दुआ दर्ज़ा फरमाए और बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया...बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #03
     हाथ उठा कर इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया या रब अज़ाबे नार से क़ब्ल इस गुस्ताख को दुन्या में आतशे अज़ाब में मुब्तला कर। इमामرضي الله تعالي عنه का हाथ उठना ही था की उस के घोड़े का पाउ एक सुराख में गया और वो घोड़े से गिरा और उसका पाउ रिकाब में उलझा और घोडा उसे ले कर भागा और आग की खन्दक में डाल दिया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने सजदऐ शुक्र अदा किया और अपने रब की हम्दो षना की और फ़रमाया : ऐ परवरदिगार तेरा शुक्र है की तूने अहले बैते रिसालत के बदबख्त को सज़ा दी। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की ज़बान से ये कलिमा सुन कर सफे आदा में से एक और बेबाक ने कहा की आप को मेगम्बरे खुदा से क्या निस्बत ? ये कलिमा तो इमाम के लिये बहुत तकलीफ देह था। आप ने उस के लिये भी बद दुआ फ़रमाई और अर्ज़ किया या रब इस बदज़बान को फौरी अज़ाब में गिरफ्तार कर। इमामرضي الله تعالي عنه ने ये दुआ फ़रमाई और उस को क़ज़ाए हाजत की ज़रूरत पेश आई, घोड़े से उतर कर एक तरफ भागा और किसी जगह क़ज़ाए हाजत के लिये बरहना हो कर बेठा। एक सियाह बिच्छु ने डंग मारा तो नजासत आलूदा तड़पता फिरता था। इस रुस्वाई के साथ तमाम लश्कर के सामने उस नापाक की जान निकली मगर सख्त दिलाने बे हमिय्यत को गैरत न हुई।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #04
     एक शख्स मुज़नी ने इमामرضي الله تعالي عنه के सामने आ कर कहा की ऐ इमाम देखो तो दरयाए फुरात केसा मौज़े मार रहा है। खुदा की क़सम खा कर कहता हु तुम्हे इस का एक क़तरा न मिलेगा और तुम प्यासे हलाक हो जाओगे।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने उस के हक़ में फ़रमाया : या रब इसको प्यासा मार, इमामرضي الله تعالي عنه का ये फरमाना था की मुज़नी का घोडा चमका, मुज़नी गिरा, घोडा भागा और मुज़नी उस को पकड़ने के लिये उस के पीछे दौड़ा और प्यास उस पर ग़ालिब हुई, इस शिद्दत की ग़ालिब हुई की اَلْعَطَشُ اَلْعَطَشُ पुकारता था और जब पानी उस के मुह से लगाते थे तो एक क़तरा न पी सकता था यहाँ तक की इसी शिद्दते प्यास में मर गया।
     फरज़न्दे रसूलﷺ को ये बात भी दिखा देना थी की इन की मक़बूलिय्यते बारगाहे हक़ पर और उन के कुर्ब व मन्ज़िलत पर जैसी की अहादिशे शाहिरा शहीद है ऐसे ही उन के ख्वारिक व करामात भी गवाह है। अपने इस फ़ज़्ल का अमली इज़हार भी इत्मामे हुज्जत के सिलसिले की एक कड़ी थी की अगर तुम आँख रखते हो तो देख लो की जो ऐसा मुस्तजाबुद्दा'वात है उसके मुक़ाबले में आना खुदा से जंग करना है इस का अंजाम सोच लो और बाज़ रहो।
     मगर शरारत के मुजस्स्मे इससे भी सबक़ न ले सके और दुन्याए ना पाएदार की हिर्स का भुत जो उनके सरो पर सुवार था उस ने उन्हें अंधा बना दिया और नेज़े बाज़ लश्कर से निकल कर रज्ज़ ख्वानी करते हुए मैदान में आ कूदे और तकब्बुर व तबख़्तूर के साथ इतराते हुए घोड़े दौड़ा कर और हथियार चमका कर इमामرضي الله تعالي عنه से मुबारीज़ के तालिब हुए।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #05
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه और इमाम के खानदान के नौनिहाल शैके जाबाज़ी में सरशार थे। उन्हों ने मैदान में जाना चाहा लेकिन क़रीब के गाउ वाले जहा इस हंगामे की खबर पहुची थी वहा के मुसलमान बे ताब हो कर हाज़िरे खिदमत हो गए थे उन्होंने इसरार किये, हज़रत के दरपे हो गए और किसी तरह राज़ी न हुए की जब तक इन में से एक भी ज़िन्दा है ख़ानदाने अहले बैत का कोई बच्चा भी मैदान में जाए।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को इन इख्लास केशो की सरफरोशाना इलतीजाए मंजूर फ़रमानी पड़ी और उन्हों ने मैदान में पहुच कर दुश्मनाने अहले बैत से मुक़ाबले किये और अपनी बहादुरी के सिक्के जमा दिए और एक एक ने आदा की कशिर तादाद को हल्का कर के राहे जन्नत इख़्तियार करना शुरू की। इस तेह बहुत से जांबाज़ फरज़न्दे रसूल पर अपनी जाने निषार कर गए।
     इस क़बीले में वहब इब्ने अब्दुल्लाह कल्बि जिनकी शादी को सिर्फ 17 दिन हुए थे की आप के पास आपकी वालिदा पहुची जो एक बेवा औरत थी और जिन की सारी कमाई और घर का चराग यही एक नौजवान बेटा था। उस माँ ने प्यारे बेटे के गले में बहे डाल कर रोना शुरू कर दिया। बेटा हैरत में आ कर माँ से दरयाफ़्त करता है की रंजो मलाल का सबब क्या है ? में ने कभी आप की नाफ़रमानी न की न आइन्दा कर सकता हु। आप के दिल को क्या सदमा पंहुचा और आप को किस गम ने रुलाया ? अपने बेटे की ये गुफ्तगू सुनकर माँ और चीख मार कर रोने लगी और कहने लगी : मेने अपनी जान धूल धुला कर तेरी जवानी की बहार पाई है, तू जी मेरे दिल का क़रार है तू ही मेरी जान का चैन है, एक दम तेरी जुदाई मुझ से बर्दाश्त नही हो सकती।
     मेने तुजे अपना खूने जिगर पिलाया है। आज मुस्तफा का जिगर गोशा, खातुने जन्नत का नौनिहाल दश्ते कर्बला में मुब्तलाए मुसीबत है, प्यारे बेटे ! क्या तुझ से हो सकता है की तू अपनी जान उस के क़दमो पर कुर्बान कर डाले। इस बेगैरत ज़िन्दगी पर हजार तुफ़ाने है की हम ज़िन्दा रहे और हुज़ूर का लाडला ज़ुल्मो सितम के साथ शहीद किया जाए, अगर तुझे मेरी महब्बते कुछ याद हो और तेरी परवरिश में जो मेहनते मेने उठाई है इन को तू भूला न हो तो तू हुसैन के सर पर सदक़ा हो जा।

वहब ने जो कहा वो अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 142*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #06
     वहब ने कहा : ऐ मादरे महेरबान ! खूबी नसीब, ये जान शाहज़ादए कौनैन पर फ़िदा हो जाए और ये नाचीज़ हदिय्या वो आक़ा क़बूल कर ले। में दिलो जान से आमादा हु, एक लम्हा की इजाज़त चाहता हु ताकि बीवी से दो बाते कर लू जिस ने अपनी ज़िन्दगी के ऐसो राहत का सहरा मेरे सर बांधा है, उस की हसरतो के तड़पने का ख्याल है, वो अगर सब्र न कर स्की तो में उस को इजाज़त दे दू की वो अपनी ज़िन्दगी को जिस तरह चाहे गुज़ारे।
     माँ ने कहा बेटा औरते नाकिसुल अक़्ल होती है। मबादा तू उस की बातो में आ जाए और ये सआदते तेरे हाथो से जाती रहे। वहब ने कहा : प्यारी माँ इमामे हुसैन की महब्बत की गिरह दिल में ऐसी मज़बूत लगी है की इस को कोई खोल नही सकता। ये कह कर बीवी की तरफ आया और उसे खबर दी की इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه मैदाने कर्बला में मददगार है और गद्दारो ने उन पर नरगा किया है। मेरी तमन्ना है की उन पर जान निषार करू।
     ये सुनकर नई दुल्हन ने उम्मीद भरे दिल से एक आह खिची और कहने लगी, ऐ मेरे सरताज़ ! अफ़सोस ये है की इस जंग में में आप का साथ नही दे सकती, शरीअत ने औरतो को हर्ब के लिये मैदान में आने की इजाज़त नही दी है। अफ़सोस ! इस सआदत में मेरा हिस्सा नही की इस जाने जहां पर जान कुर्बान करू।
     अभी में ने दिल भर के  आप का चेहरा भी नही देखा है और आप जन्नती चमनिस्तान का इरादा कर दिया। वहा हरे आप की खिदमत की आर्ज़ुमन्द होगी। मुझ से अहद करो की जब सरदाराने अहले बैत के साथ जन्नत में आप के लिए बे शुमार नेमते हाज़िर की जाएगी उस वक़्त आप मुझे न भूल जाए।

     ये नौजवान उस नेक बीवी और अपनी बरगुज़ीदा माँ को ले कर फरज़न्दे रसूल की खिदमत में हाज़िर हुवा।
बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 143*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #07
     ये नौजवान अपनी नेकी बीवी और बरगुज़ीदा माँ को ले कर फरज़न्दे रसूल की खिदमत में हाज़िर हुवा। दुल्हन ने अर्ज़ किया : या इब्ने रसूल ! शुहदा घोड़े से ज़मीन पर गिरते ही हूरो की गोद में पहुचते है और बहिश्त हसीन कमाले इताअत के साथ उन की खिदमत करते है, मेरा ये नौजवान शोहर हुज़ूर पर जां निषारि की तमन्ना रखता है और में निहायत बेकस हु, न मेरी माँ है न बाप है न कोई भाई जो मेरी कुछ खबरगिरी कर सके। इल्तिजा ये है की अरसागाहे मेहशर में मेरे इस शोहर से जुदाई न हो और दुन्या में मुझ गरीब को आप के अहले बैत अपनी कनीज़ो में रखे और मेरी उम्र का आखरी हिस्सा आप को पाक बीवियों की खिदमत में गुज़र जाए।
      हज़रते इमाम के सामने ये तमाम अहद हो गए और वहब ने अर्ज़ कर दिया की ऐ इमाम अगर हुज़ूर की शफ़ाअत से मुझे जन्नत मिली तो में अर्ज़ करूँगा की ये बीवी मेरे साथ रहे। वहब इजाज़त चाह कर मैदान में चल दिया। लश्कर ने देखा की घोड़े पर एक माहरु सुवार है और हाथ में नज़ा है।
     दुश्मनो की स्फो से मुबारीज़ तलब किया जो सामने आया तलवार से उस का सर उड़ाया, गिर्दो पेश खुद सरो के सरो का अम्बार लगा दिया और नाकिसो के तन खून व खाक में तड़पते नज़र आने लगे, एक बार फिर वो माँ की पास आ कर अर्ज़ किया की : ऐ माँ तू मुझसे राज़ी हुई और बीवी की तरफ जा कर उसके सर पर हाथ रखा जो बेक़रार रो रही थी और उस को सब्र दिलाया।
     इतने में दुश्मनो की तरफ से आवाज़ आई की कोई मुबारीज़ है ? वहब घोड़े पर सुवार हो कर मैदान की तरफ रवाना हुवा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #08
     दुश्मनो में ख़ैमे से पुकार आते ही वहब फिर मैदाने जंग में आ पंहुचा। उस वक़्त दुश्मनो की तरफ से एक मशहूर बहादुर और नामदार सुवार हकम बिन तुफैल गुरुर में सरशार था। वहब ने एक ही हमले में उसको नेज़े पर उठा कर इस तरह ज़मीन पर दे मारा की हड्डिया चकना चूर हो गई और दोनों लश्करो में शोर मच गया और दुश्मनो में हिम्मते मुक़ाबला न रही।
     वहब घोडा दौड़ता कल्बे दुश्मन पर पहुचा, जो भी सामने आता उस को नेज़े की नोक पर उठा कर ख़ाक पर पटक देता यहाँ तक की नेज़ा पारा पारा हो गया, तलवार मियान से निकाली और दुश्मनो की गर्दने उडा कर ख़ाक में मिला दी। जब दुष्मनाने इस्लाम इस जंग से तंग आ गए तो अम्र बिन साद ने हुक्म दिया की लोग इस के गिर्द हुजूम कर के हमला करदे और हर तरफ से यक़बारगि हाथ छोड़े, ऐसा ही किया और जब वो नौजवान ज़ख्मो से चूर हो कर ज़मीन पर आया तो सियाह दिलोंने बद बातिन ने उसका सर काट कर लश्करे इमाम हुसैन में डाल दिया।
     उसकी माँ बेटे के सर को अपने मुह से मलती थी और कहती थी ऐ बेटा ! बहादुर बेटा ! अब तेरी माँ तुझ से राज़ी हुई। फिर वो सर उस दुल्हन की गोद में ला कर रख दिया, दुल्हन ने अपने प्यारे शोहर के सर को बोसा दिया। उसी वक़्त परवाने की तरह उस शमए जमाल पर क़ुरबान हो गई और उसकी रूह अपने नौशे के साथ हम आगोश हो गई।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 146*
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*सवानहे कर्बला​* #29
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #09
     वहब के बाद और सआदत मन्द जां निषार, दादे जान निषारि देते और जाने फ़िदा करते रहे। इस ज़िमरे में हूर बिन यज़ीद रियाही क़ाबिले ज़िक्र है। जंग के वक़्त हूर का दिल बहुत मुज़तरिब था और उस की सीमाब वार बेक़रारी उस को एक जगह न ठहरने देती थी, कभी वो अम्र बिन साद से जा कर कहते थे की तुम इमामرضي الله تعالي عنه के साथ जंग करोगे तो रसूलल्लाहﷺ को क्या जवाब दोगे ? अम्र बिन साद को इस का जवाब न बन आता था। वहा से हट कर फिर मैदान में आते है, बदन कांप रहा है, चेहरा ज़र्द है, परेशानी के आशार नुमाया है, उनके भाई मुसअब् बिन यज़ीद ने उन का ये हाल देख  कर पूछा की आप मशहूर जंग आज़मा और दिलावर है, आप के लिये ये पहला ही मरका नहीं बारहा जंग के खुनी मनाज़िर आप ने देखे है। आप का ये क्या हाल है और आप पर इस क़दर खौफो हिरास क्यू ग़ालिब है ?
     हूर ने कहा की ये मुस्तफा के फ़रज़न्द से जंग है, अपनी आकिबत से लड़ाई है, में बहिश्त व दोज़ख के दरमियान खड़ा हु, दुन्या पूरी क़ुव्वत के साथ मुझ को जहन्नम की तरफ खीच रही है और मेरा दिल उसकी हैबत से काप रहा है। इसी आशना में हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की आवाज़ आई, कोई है जो आज आले रसूल पर जान निषार करे और हुज़ूर की हुज़ूरी में सुर्ख रुई पाए।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 147*
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*सवानहे कर्बला​* #30
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #10
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की इस सदा ने हूर की पाउ की बेड़िया काट दी, दिले बेताब को क़रार बख्शा और इत्मीनान हुवा की शाहज़ादए कौनैन हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه मेरी पहली जुरअत से चश्म पोशी फरमाए तो अजब नही, करीम ने करम से बशारत दी है, जान फ़िदा करने के इरादे से चल पड़ो।
     हूर बिन यज़ीद ने घोडा दौड़ाया और इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में हाज़िर हो कर घोड़े से उतर कर अर्ज़ की ऐ इब्ने रसूल ! में वही हूर हु जो पहले आप के मुक़ाबिल आया और जिस ने आप को इस मैदाने बयाबान में रोका। अपनी इस हरकत पर नादिम हु, शर्मिंदगी नज़र नही उठाने देती, आप की करिमाना सदा सुन कर उम्मीदों ने हिम्मत बंधाई तो हाज़िरे खिदमत हुवा हु, आप के करम से इस जुर्म की मुआफ़ी फरमाए और गुलामो में शामिल करे और अपने अहले बैत पर जान कुर्बान करने की इजाज़त दे।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने हूर के सर पर दस्ते मुबारक रखा और फ़रमाया : ऐ हूर ! बारगाहे इलाही में इख्लास मंदो के इस्तिग़फ़ार मक़बूल है और तौबा मुस्तजाब, उज़्र ख्वाह महरूम नही जाते, *और वही है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल फ़रमाता है* (पारह25), मेने तेरी तकसीर मुआफ़ की और इस सआदत के हुसूल की इजाज़त दी।

हूर इजाज़त पा कर मैदान की तरफ रवाना हुआ, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 148*
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*सवानहे कर्बला​* #31
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #11
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की इजाज़त पा कर हुर बिन यज़ीद मैदान की तरफ रवाना हुवा, घोडा चमका कर सफे आदा पर पंहुचा, हूर के भाई मुसअब् बिन यज़ीद ने देखा की हूर ने दौलते सआदत पाई और नेमते आख़िरत से और हीर्से दुन्या से उसका दामन पाक हुवा, उसके दिल में भी वलवला उठा और बाग़ उठा कर घोडा दौड़ाता हुवा चला।
     अम्र बिन साद के लश्कर को गुमान हुवा की भाई के मुक़ाबले के लिये जाता है। जब मैदान में पंहुचा, भाई से कहने लगा : भाई तू मेरे लिये खिज़्रे राह हो गया और मुझे तूने सख्त अज़ाब से नजात दिलाई, में भी तेरे साथ हु और रफ़ाक़ते हज़रते इमाम की सआदत हासिल करना चाहता हु।
    लश्करे यज़ीद को इस वाक़या से निहायत हैरानी हुई। ये वाक़ीए देख कर अम्र बिन साद के बदन पर लरज़ा पड़ गया और वो घबरा उठा और उस ने एक शख्स को मुन्तख़ब कर के उसको कहा की समजा बुझा कर हूर को अपने मुवाफ़िक़ करने की कोशिश करे और अपनी चालबाज़ी और फरेबकारी इन्तिहा को पहुचा दे। फिर भी नाकामी हो तो उसका सर काट कर ले आए।
     वो शख्स चला और हूर से आ कर कहने लगा ऐ हूर ! तेरी अक़्ल व दानाई पर हम फख्र किया करते थे मगर आज तूने कमाले नादानी की, की इस लश्कर से निकल कर यज़ीद के इनआम व इकराम पर ठोकर मार कर चन्द बेक्स मुसाफिरों का साथ दिया जिन के साथ खाने को एक टुकड़ा और पिने को एक क़तरा भी नही है, तेरी इस नादानी पर अफ़सोस आता है।
     हूर ने कहा : ऐ बे अक़्ल तुझे अपनी नादानी पर रंज करना चाहिए की तूने ताहिर को छोड़ कर नजिस को क़बूल किया और दौलत बाक़ी के मुक़ाबले में दुन्या फानी है, हुज़ूरﷺ ने इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه को अपना फुल फ़रमाया है। में इस गुलिस्ताने रिसालत जान कुर्बान करने की तमन्ना रखता हु, *रिज़ाए रसूल से बढ़कर कौनैन में कौन सी दौलत है।* कहने लगा : ऐ हूर ये तो में भी खूब जानता हु लेकिन हम लोग सिपाही है और आज दौलत व माल यज़ीद के पास है। हूर ने कहा : ऐ कम हिम्मत ! इस हौसले पर लानत।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 149*
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*सवानहे कर्बला​* #32
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #12
     उस बद बातिन को यक़ीन हो गया की उस की चर्ब ज़बानी हूर पर अशर नही कर सकती, अहले बैत की महब्बत उस के क्लब में उतर गई है और उसका सीन आले रसूल की विला से ममलु है, कोई मैक्रो फरेब उस पर न चलेगा।
     बाते करते करते एक तीर हूर के सीने पर खीच मारा, हूर ने ज़ख्म खा कर एक नेज़े का वार किया जो साइन से पार हो गया और उसे ज़मीन पर पटक दिया। उस शख्स के 3 भाई थे, यकबारगि हूर पर दौड़ पड़े, हूर ने आगे बढ़कर एक का सर तलवार से उदा दिया। दूसरे की कमर में हाथ डाल कर ज़ीन से उठा कर इस तरह फेका की गर्दन टूट गई। तीसरा भाग निकला और हूर ने उस का टआक़्क़ुब किया, क़रीब पहुच कर उस की पुश्त और नेज़ा मारा वो सीने से निकल गया, अब हूर ने लश्करे इब्ने साद के मैमना पर हमला किया और खूब ज़ोर की जंग हुई, लश्कर इब्ने साद को हूर के जंगी हुन्नर का ऐतिराफ करना पड़ा और वो जाँबाज़ सादीके दादे शुजाअत दे कर फरज़न्दे रसूल पर जान फ़िदा कर गया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه हूर को उठा कर लाए और उसके सर को जानुए मुबारक पर रख कर अपने पाक दामन से उस के चेहरे का गुबार दूर फरमाने लगे, अभी रमके जान बाक़ी थी, आँखे खोली, देखा की इब्ने रसूल की गोद में है। अपने बख्त व मुक़द्दर पर नाज़ करता हुवा फ़िरदौस बरी को रवाना हुवा।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 150*
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*सवानहे कर्बला​* #33
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #13
     हूर के साथ उसके भाई और गुलाम ने भी नौबत बी नौबत दादे शुजाअत दे कर अपनी जाने अहले बैत पर क़ुरबान की। 50 से ज्यादा आदमी शहीद हो चुके अब सिर्फ ख़ानदाने अहले बैत बाक़ी है और दुश्मनाने इस्लाम की इन्ही पर नज़र है। ये हज़रात परवाना वार हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर निषार है। ये बात भी काबिले लिहाज़ है की इमामे आली मक़ाम के इस छोटे से लश्कर में से इस मुसीबत के वक़्त में किसी ने भी हिम्मत न हारी, साथियो में से एक भी ऐसा न था जो अपनी जान ले कर भागता या दुश्मनो की पनाह चाहता।
     अब तक नियाज़ मन्दो ने दुश्मनो को खाको खून में लिटा कर अपनी बहादुरी के गुलगुले दिखाए थे अब असदुल्लाह के शेराने हक़ का मौक़ा आया और अली मुर्तज़ा के खानदान के बहादुरो के घोड़ो ने मैदाने कर्बला को जोला निगाह बनाया। इन हज़रत का मैदान में आना था की बहादुरो के दिल सिनो में लरज़ने लगे और इनके हमलो से शेर दिल बहादुर चीख उठे, बनी हाशिम की नबर्द आज़माइ और जां शिकार हमलो ने कर्बला की तीशना लब ज़मीन को दुश्मनो के खून से सैराब कर दिया और खुश्क रेगिस्तान सुर्ख नज़र आने लगा।
     ख़ानदाने इमामرضي الله تعالي عنه के नौजवान अपने अपने जोहर दिखा कर इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه पर जान कुर्बान करते चले जा रहे थे। खैमो से चलते थे तो *बल्कि वो अपने रब के पास ज़िन्दा है* (पारह 4) के चमनिस्तान की दिलकश फ़ज़ा उनकी आँखों के सामने होती थी, मैदाने कर्बला की राह से उस मंज़िल तक पहुचना चाहते थे।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 151*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #14
     फरजंदाने इमामे हसनرضي الله تعالي عنه के महारबा ने दुश्मन के होश उड़ा दिए, इब्ने साद ने ऐतिराफ किया की अगर फरेब कारियों से काम न लिया जाता या इन हज़रात पर पानी बंद न किया जाता तो अहले बैत का एक एक नौजवान लश्कर को बर्बाद कर डालता, जब वो मुक़ाबले के लिये उठते थे तो मालुम होता था की क़हरे इलाही आ रहा है, उनका एक एक हुनर-वर सफ शिकनी व मुबारीज़ फिगनि में फर्द था।
     अल हासिल, अहले बैत के नौ निहालो और नाज़ के पालो ने मैदाने कर्बला में हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर अपनी जाने फ़िदा की और तिरो सना की बारिश में हक़ से मुह न मोड़ा, गर्दन कटवाई, खून बहाए, जाने दी मगर क्लिमाए नाहक़ ज़बान पर न आने दिया। बारी बारी तमाम सहजादे शहीद होते चले गए। अब हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के सामने उनके नुरे नज़र हज़रते अली अकबर हाज़िर है, मैदान की इजाज़त चाहते है, मिन्नतों समाजत हो रही है, आज़िब वक़्त है, चाहित बेटा शफ़ीक़ बाप से गर्दन कटवाने की इजाज़त चाहता है और इस पर इसरार करता है जिस की कोई हट, कोई ज़िद ऐसी नथी जो पूरी न की जाती, हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इजाज़त देनी पड़ी। आप ने इस नौजवाने जमील को खुद घोड़े पर सुवार किया। उस वक़्त अहले बैत की बीवियों बच्चों पर क्या गुज़र रही थी जिनका तमाम कुम्बा व क़बीला शहीद हो चुके थे और एक जगमगाता हुवा चराग भी आखरी सलाम कर रहा था। इन तमाम को अहले बैत ने रिज़ाए हक़ के लिये बड़े इस्तिक़्लाल के साथ बर्दाश्त किया और ये इन्ही का हौसला था।
    हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ख़ैमे से रुख्सत हो कर मैदाने कारज़ार की तरफ तशरीफ़ फरमा हुए, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله

*✍🏽सवानहे कर्बला, 153*
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #15
     हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ख़ैमे से रुख्सत हो कर मैदाने कारज़ार की तरफ तशरीफ़ फरमा हुए, हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ने नारा मारा और फरमाया की ऐ ज़ालिमाने जफ़ाकेश ! अगर बनी फातिमा के खून की प्यास है तो तूम मेसे जो बहादुर हो उसे मैदान में भेजो, ज़ोरे बाज़ुए अली देखना हो तो मेरे मुक़ाबिल आओ। मगर किसी को हिम्मत थी की आगे बढ़ता ?
     जब आप ने मुलाहजा फ़रमाया की दुष्मनाने खूँख्वार में से कोई एक भी आगे नही बढ़ता। तो आप ने दुश्मन के लश्कर पर हमला किया, एक एक वार में कई लोगो गो गिरा दिया, कभी मैमन पर चमके तो मुन्तशिर किया, कभी मैसरा की तरफ पलटे तो सफे दरहम बरहम कर डाली। हर तरफ शोर बरपा हो गया, दिलावरो के दिल छूट गए, बहादुरो की हिम्मते टूट गई, शाहज़ादए अहले बैत का हमला न था, अज़ाबे इलाही की बलाए अज़ीम थी।
     धूप में जंग करते करते प्यास का गल्बा हुआ। जंगे मैदान मेसे आप अपने वालिद माजिद की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया : प्यास का बहुत गल्बा है। गल्बे की क्या क्या इन्तिहा, 3 दिन से पानी बंद है, तेज़ धूप और इस में जाबाज़ाना दौड़ धुप, गर्म रेगिस्तान। अगर इस वक़्त हल्क़ तर करने के लिये चन्द क़तरे मिल जाए तो फातिमि शेर गुर्बा खसलतो को पैवन्दे ख़ाक कर डाले।
     शफ़ीक़ बाप ने जाबाज़ बेटे की प्यास देखि मगर पानी कहा था जो इस तिशनए शहादत को दिया जाता, दस्ते शफ़क़त से चेहरे का गर्दो गुबार साफ़ किया और अपनी अंगुश्तरी अपने बेटे के दहाने अक़दस में रख दी। वालिद की शफ़क़त से फिल जुमला तसकीन हुई फिर सहजादे ने मैदान का रुख किया फिर सदा दी : कोई जान पर खेलने वाला हो तो सामने आए।

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*_शहादत के वाक़ीआत_* #16
     अम्र बिन साद ने तारिक़ से कहा : बड़े शर्म की बात है की अहले बैत का अकेला नौ जवान मैदान में है और तुम हज़ारो की तादाद में हो, उसने पहली मर्तबा पुकारा तो तुम्हारी जमाअत में किसी को हिम्मत न हुई फिर वो आगे बढ़ा तो सफे की सफे दरहम बरहम कर डाली और बहादुरो का खेत कर दिया, भूका है, प्यासा है, धुप में लड़ते लड़ते थक गया है, और फिर भी वो तुम्हे पुकार रहा है और तुम्हारी ताज़ा दम जमाअत में से किसी को मुक़ाबले की हिम्मत नही। तुफ़ा है तुम लोगो पर, कुछ गैरत हो तो मैदान में पहुच कर मुक़ाबला करके फ़त्ह हासिल करो तो में वादा करता हु की अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद से तुझको मौसिल की हुकूमत दिला दूंगा।
     तारिक़ ने कहा की मुझे अन्देशा है की अगर में फरज़न्दे रसूल और अव्लादे बतूल से मुक़ाबला करके अपनी आकिबत भी खराब करू, फिर भी तू अपना वादा वफ़ा न करे तो न में दुन्या का रहा न दिन का। इब्ने साद ने क़सम खाई क्र पुख्ता क़ौल व क़रार किया।
     इस पर हरिस तारिक़ मौसिल की हुकूमत की लालच में फरज़न्दे रसूल से मुक़ाबले के लिये चला, सामने पहुचते ही शाहज़ादए वाला पर नेज़े का वार किया। आप ने उस का नेज़ा रद्द फरमा कर सीने पर एक ऐसा नेज़ा मारा की तारिक़ की पीठ से निकल गया और वो एक दम घोड़े से गिर गया। शहज़ादा ने घोड़े को ऐड दे कर उस को रौंद डाला और हड्डिया चकना चूर कर दी। ये देख कर तारिक़ के बेटे अम्र बिन तारिक़ को तैश आया और वो झल्लाता हुवा घोडा दौड़ा कर आप हज़रते अली अकबर पर हमला आवर हुवा आप ने एक ही नेज़े में उसका काम भी तमाम किया।

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*_शहादत के वाक़ीआत_* #17
     इसके बाद उसका भाई तल्हा बिन तारिक़ अपने बाप और भाई का बदला लेने के लिये आतिशी शोले की तरह हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه पर दौड़ पड़ा। आप ने उसके गिरेबान में हाथ दाल कर ज़ीन से उठा लिया और ज़मीन पर इस ज़ोर से पटका की उस का दम निकल गया, आप की हैबत से लश्कर में शोर बरपा हो गया।
     इब्ने साद ने एक मसहूर बहादुर मिसराअ इब्ने ग़ालिब को आप के मुक़ाबले के लिये भेजा, मिसराअ ने आप पर हमला किया, आप ने तलवार से नेज़ा कलम करके उसके सर पर ऐसी तलवार मारी की ज़ीन तक काट गई दो टुकड़े हो कर गिर गया, अब किसी में हिम्मत न रही थी की तन्हा इस शेर के मुक़ाबिल आता, ना चार इब्ने साद ने महकम बिन तुफैल और इब्ने नौफिल को एक एक हज़ार सुवारो के साथ आप पर यकबारगि हमला करने के लिये भेजा। आप ने नेज़ा उठा कर उन पर हमला किया और उन्हें धकेल कर कल्बे लश्कर तक भगा दिया। इस हमले में आप के हाथ से कितने बद नसीब हलाक हुए, कितने पीछे हटे।
     आप पर प्यास की शिद्दत बहुत हुई, फिर आप ने घोड़े दौड़ा कर अपने वालिद की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया : बाबा ! प्यास की बहुत शिद्दत है। इस मर्तबा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया ! ऐ नुरे दीदा ! होज़े कौषर से सैराबि का वक़्त क़रीब आ गया है, दस्ते मुस्तफा से वो जाम मिलेगा जिस की लज़्ज़त न तसव्वुर में आ सकती है न ज़बान बयान कर सकती है। ये सुन कर हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه को ख़ुशी हुई और वो फिर मैदान की तरफ लौट गए।

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*_शहादत के वाक़ीआत_* #18
     हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه फिर मैदान की तरफ लौटे और लश्करे दुश्मन के यमीन व यसयार पर हमला करने लगे, इस मर्तबा लश्कर ने यकबारगि चारो तरफ से घेर कर आप पर हमला कर दिया। आप भी हमला फरमाते रहे और दुश्मन हलाक होते रहे, लेकिन हरो तरफ से नेज़ो के ज़ख्मो ने तने नाज़नीन को चकना चूर कर दिया था और उनका तन अपने खून में नहा गया था, इस हालत आप पुश्ते ज़ीन से रुए ज़मीन पर आए और सरो क़ामत ने खाके कर्बला पर इस्तीराहत की।
     उस वक़्त आप ने आवाज़ दी : ऐ बाबा जान ! मुझ को लीजिये। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه घोडा बढ़ा कर मैदान में पहुचे और जांबाज़ नौनिहाल को ख़ैमे में लाए, उसका सर गोद में लिया, हज़रते अली अकबरرضي الله تعالي عنه ने आँख खोली और अपना सर वालिद की गोद में देख कर फ़रमाया : में देख रहा हु आसमान के दरवाज़े खुले हुए है बहिश्ती हरे शर्बत के जाम लिये इन्तिज़ार कर रही है। ये कहा और जान, जाने आफरी के सुपर्द की।
     अहले बैत का सब्रो तहम्मुल अल्लाहु अकबर ! अली अकबर को इस हाल में देखा और अलहम्दु लिल्लाह कहा, नाज़ के पालो को कुर्बान कर दिया और शुक्रे इलाही बजा लाए, फाके पर फाके है, पानी का नामो निशान नहीं, भूके प्यासे फ़रज़न्द तड़प तड़प कर जाने दे चुके है, जलते रेत पर फ़ातिमी नौ निहाल ज़ुल्मो जफ़ा से ज़बह किये गए। अहले बैत के काफिले में सन्नाटा हो गया है। जिन का कलिमा तस्कीने दिल व राहते जान था वो नूर की तस्वीरें खाको खून में खामोश पड़ी हुई है। आले रसूल ने रिज़ा व सब्र का वो इम्तिहान दिया जिस ने दुन्या को हैरत में डाल दिया है। बड़े से ले कर बच्चे तक मुब्तलाए मुसीबत थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 159*
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*सवानहे कर्बला​* #39
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*_शहादत के वाक़ीआत_* #19
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के छोटे फ़रज़न्द अली असगर जो अभी कमसिन है, शिरख्वार है, प्यास से बेताब है, शिद्दते तिशनगी से तड़प रहे है, माँ का दूध खुश्क हो गया है, इस छोटे बच्चे की खुश्क नन्ही ज़बान बाहर आती है, बे चैनी में हाथ पाउ मारते है और पेच खा खा कर रह जाते है, कभी माँ की तरफ देखते है और इनको सुखी ज़बान दिखलाते है, कभी बाप की तरफ इशारा करता है वो जानता था की हर चीज़ ये ला कर दिया करते थे।
     छोटे बच्चे की बेताबी देखि न गई। वालीदाने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه से अर्ज़ किया : इस नन्ही सी जान की बेताबी देखि नही जाती। इस को गोद में ले जाइये और इसका हाल जालिमो को दिखाये। इस पर तो रहम आएगा। इस को तो चन्द क़तरे दे देंगे। ये न जंग करने के लाइक़ है न मैदान के लाइक़ है। इससे क्या अदावत हैं।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه इस छोटे नुरे नज़र को सीने से लगा कर दुश्मनो के सामने पहुचे और फ़रमाया की अपना तमाम तो तुम्हारी बे रहमी और जोरो जफ़ा के नज़र कर चूका और अब अगर आतशे बुग्ज़ो इनाद जोश पर है तो इस के लिये में हु। ये शिरख्वार बच्चा प्यास से दम तोड़ रहा है इस की बे ताबी देखो और कुछ रहम करो जसका हल्क़ तर करने को *एक घुट* पानी दो।
     उन संगदीलो पर इसका कुछ अशर न हुवा और उन को ज़रा रहम न आया। बजाए पानी के एक बद बख्त ने तीर मारा जो अली असगरرضي الله تعالي عنه का हल्क़ छेदता हुवा इमाम के बाज़ू में बैठ गया। इमामرضي الله تعالي عنه ने वो तीर खीचा, बच्चे ने तड़प के जान दी, बाप की गोद से एक नूर का पुतला लिपटा हुवा है, खून में नहा रहा है, अहले खैमा को गुमान है की सियाह दिलाने बे रहम इस बच्चे को ज़रूर पानी दे देगा लेकिन जब इमाम बच्चे को खेमे में लाए और उसकी वालिदा ने देखा की बे करारी नही है, गुमान हुवा की पानी दे दिया होगा। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : ये भी साकिए कौषर में जामे रहमत व करम से सैराब होने के लिये अपने भाइयो से जा मिला, अल्लाह ने हमारी ये छोटी कुर्बानी भी क़बूल फ़रमाई।
     रिज़ा व तस्लीम की इम्तिहान गाह में इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه और उन के मुतवस्सिलिन ने वो षाबित कदमी दिखाई की आलमें मलाइका भी हैरत में आ गये होंगे। *मुझे मालुम है जो तुम नही जानते* (पारह,1) का राज़ इन पर मुन्काशिफ् हो गया होगा।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 161*
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*सवानहे कर्बला​* #40
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*_हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत_* #01
     अब तक जां निषार एक एक करके रुख्सत हो चुके और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर जाने क़ुरबान कर गए, अब तन्हा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه है और एक फ़रज़न्द हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه वो भी बीमार व ज़ईफ़। बा वुजूद इस ज़ोफ़् व नाताक़ति के ख़ैमे से बाहर आए और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को तन्हा देख कर मसाफ़े कारज़ार जाने और अपनी जान निषार करने के लिये नेज़ा दस्ते मुबारक में लिया लेकिन बिमारी, सफर की कोफ़्त, भूक प्यास, फाक़ो और पानी की तकलीफो से ज़ोफ़् इस दर्जे तरक़्क़ी कर गया था की खड़े होने से बदन मुबारक लरजता था बा वुजूद इसके हिम्मते मर्दाना का ये हाल था की मैदान का अज़्म कर दिया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : लौट आओ, मैदान जाने का क़स्द न करो, में कुम्बा क़बीला, अज़ीज़ों अक़ारिब, खुद्दाम जो हमराह थे राहे हक़ में निषार कर चूका। तुम्हारी ज़ात के साथ बहुत उम्मीदे वाबस्ता है, बे कसाने अहले बैत को वतन तक कौन पहुचाएगा ? बीवियों की निगहदष्ट कौन करेगा ? क़ुरआन की मुहाफ़ज़त और हक़ की तबलीग का फ़र्ज़ किस के सर पर रखा जाएगा ? मेरी नस्ल किस्से चलेगी ? ये सब तुम्हारी ज़ात से वाबस्ता है। दुदमाने रिसालत व नबुव्वत के आखरी चराग तुम ही हो। ऐ नुरे नज़र ! लखते जिगर ! ये तमाम काम तुम्हारे ज़िम्मे किये जाते है, मेरे बाद तुम ही मेरे जानशीन होंगे, तुम्हे मैदान जाने की ज़रूरत नही है।

     हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه ने जो अर्ज़ किया, वो अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 162*
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*सवानहे कर्बला​* #41
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #02
     हज़रत ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया की मेरे भाई तो जां निषारि की सआदत पा चुके और हुज़ूर के सामने ही साकिये कौषर के आगोश में पहुचे, में तड़प रहा हु। मगर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने कुछ पज़िराना फ़रमाया और इमाम ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه को इन तमाम ज़िम्मेदारियों का हामिल किया और खुद जंग के लिये तैयार हुए, इमामرضي الله تعالي عنه मैदान जाने के लिये घोड़े पर सुवार हुए।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने अपने अहले बैत को तल्किने सब्र फ़रमाई। रिज़ाए इलाही पर साबिरो शाकिर रहने की हिदायत की और सब को सुपुर्दे खुदा करके मैदान की तरफ रुख किया, आप ने एक ख़ुत्बा फ़रमाया और इसमें हम्दो सलात के बाद फ़रमाया : ऐ क़ौम ! खुदा से डरो, जो सबका मालिक है, जान देना, जान लेना सब उसके कुदरत व इख़्तियार में है। अगर तुम ख़ुदावन्दे आलम पर यक़ीन रखते और मेरे हज़रते अम्बिया मुहम्मद मुस्तफाﷺ पर ईमान लाए हो तो डरो की क़यामत के दिन मीज़ाने अदल क़ाइम होगी, आमाल का हिसाब किया जाएगा, मेरे वालीदेन मेहशर में अपनी आल के बे गुनाह खुनो का मुतालबा करेगे। हुज़ूरﷺ जिन की शफ़ाअत गुनाहगारो की मग्फिरत का ज़रिया है और तमाम मुसलमान जिनकी शफ़ाअत के उम्मीद वार है वो तुम से मेरे और मेरे जानिषारो के खूने नाहक़ का बदला चाहेंगे, खबरदार हो जाओ की ऐशे दुन्या में पाएदारी व क़याम नही, अगर सल्तनत की तमअ में मेरे दरपै आज़ार हो तो मुझे मौक़ा दो की में अरब छोड़ कर दुन्या के किसी और हिस्से में चला जाऊ। अगर ये कुछ मंज़ूर न हो और अपनी हरकात से बाज़ न आओ तो हम अल्लाह के हुक्म और उसकी मर्ज़ी पर साबिर व शाकिर है।

     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की ज़बान से ये कलिमात सुन कर कुफियो में से बहुत लोग रो पड़े, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 165*
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*सवानहे कर्बला​* #42
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #03
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की ज़बान से ये कलिमात सुन कर कुफियो में से बहुत लोग रो पड़े, दिल सब के जानते थे की वो बर सरे ज़ुल्मो जफ़ा है और हिमायते बातिल के लिये उन्हों ने दारैन की रुसियाही इख़्तियार की है और ये भी सब को यक़ीन था की इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه हक़ पर है। आप की बात से बहुत से लोगो पर अशर हुवा और ज़ालिमाने बद बातिन ने भी एक लम्हे के लिये जससे अशर लिया।
     लेकिन शिमर वगैरा बद सीरत व पलीद कुछ मुतअस्सिर न हुए बल्कि ये देख कर की लशकरियो पर हज़रते इमाम की तक़रीर का कुछ अशर मालुम होता है, कहने लगे की आप किस्से कोताह कीजिये और इब्ने ज़ियाद के पास चल कर यज़ीद की बैअत कर लीजिये तो कोई आप से तारूज़ न करेगा वरना बजुज़ जंग के कोई चारा नही है।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को अंजाम मालुम था लेकिन ये तक़रीर इक़ामते हुज्जत के लिये फ़रमाई थी की उन्हें कोई उज़्र बाक़ी न रहे। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इत्मीनान फ़रमाया की इनके लिये कोई उज़्र बाक़ी न रहा और वो किसी तरह खूने नाहक व ज़ुल्मे बे निहायत से बाज़ आने वाले नही तो इमाम ने फ़रमाया की तुम जो इरादा रखते हो पूरा करो और जिस को मेरे मुक़ाबले के लिये भेजना चाहते हो भेजो।
     मसहूर बहादुर जिन को सख्त वक़्त के लिये महफूज़ रखा गया था मैदान में भेजे गए। एक बे हया तलवार चमकाता आता है, आते ही हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की तरफ तलवार खिचता है, अभी हाथ उठा ही था की इमाम ने ज़र्ब फ़रमाई, सर कट कर दूर जा पड़ा और गुरूरे शुजाअत ख़ाक में मिल गया।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 166*
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #04
     दूसरा बढ़ा और, लशकरियो को यक़ीन था की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर भूक प्यास की तकलीफ हद से गुज़र चुकी है, सदमो ने ज़ईफ़ कर दिया है ऐसे वक़्त इमाम पर ग़ालिब आ जाना कुछ मुश्किल नही है।
     जब वो गुस्ताख सामने आया तो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : तु मुझे जानता नही जो मेरे मुक़ाबिल इस दिलेरी से आता है, हुसैन कक बे कस व कमज़ोर देख कर होसला मन्दियो का इज़हार कर रहु हो, नामर्दो ! मेरी नज़र में तुम्हारी कोई हक़ीक़त नही।
     वो गुस्ताख ये सुन कर और तेश में आया और बजाए जवाब के हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर तलवार का वार किया, हज़रते इमाम ने उस का वार बचा कर कमर पर तलवार मारी, मालुम होता था खीरा था काट डाला।
     अहले शाम को अब ये इत्मीनान था की हज़रत के सिवा अब और तो कोई बाक़ी ही न रहा, कहा तक न थकेंगे। प्यास की हालत, धुप की तपिश मुज़्महल कर चुकी है, बहादुरी के जोहर दिखाने का वक़्त है। जहा तक हो एक एक मुक़ाबिल किया जाए, कोई तो कामयाब होगा। इस तरह नए नए बदम शिर सुलत हज़रते इमाम के मुक़ाबिल आते रहे मगर जो सामने आया एक ही हाथ में उसका किस्सा तमाम फ़रमाया।

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 167*
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*सवानहे कर्बला​* #44
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #05
     इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه ने ज़मीने कर्बला में बहादुराने कूफा का खेत बो दिया, नामवराने सफ सिकन के खूनो से कर्बला के तीशना रेगिस्तान को सैराब फरमा दिया, लश्करे आदा में शोर बरपा हो गया की जंग का ये अंदाज़ रहा तो हैदर का शेर कूफा के ज़न व इतफाल को बेवा व यतीम बना कर छोड़ेगा, मौक़ा मर दो और चारो तरफ से घेर कर एकसाथ हमला करो। हज़ारो जवान दौड़ पड़े और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को घेर लिया और तलवार बरसानी शुरू की।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने जिस तरफ घोडा बढ़ा दिया पर्रे के पर्रे काट डाले। दुश्मन हैबत ज़दा हो गए और हैरत में आ गए की इमाम के हमले से रिहाई की कोई सूरत नही। हज़ारो आदमियो में घिरे हुए है और दुश्मनो का सर इस तरह उड़ा रहे है जिस तरह बादे खज़ा के झोके दरख्तो से पत्ते गिराते है।
     इब्ने साद और उस के मुशिरो को बहुत तश्विश हुई की अकेले इमाम के मुक़ाबिले हज़ारो की जमाअते हेच है। कुफियो की इज़्ज़त ख़ाक में मिल गई, तमाम नामवरो की कुफि जमाअत एक हिजाज़ी जवान के हाथ से जान न बचा सकी। तालीमे आलम में हमारी नामर्दी का ये वाकिया अहले कूफा को हमेशा रूस्वाए आलम करता रहेगा, कोई तदबीर करनी चाहिए। तजवीज़ ये हुई की चारो तरफ से इमाम पर तिर बरसाये जाए और जब खूब ज़ख़्मी हो चुके तो नेज़ो के हमलो से तन को मजरूह किया जाए।
     तीर अंदाज़ों की जमाअत ने चारो तरफ से हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को घेर लिया और तीर बरसाने शुरू कर दिये, घोडा इस क़दर ज़ख़्मी हो गया की उस में काम करने की क़ुव्वत न रही नाचार हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को एक जगह ठहरना पड़ा, हर तरफ से तीर आ रहे है और इमाम का तन निशाना बना हुआ है, नूरानी जिस्म ज़ख्मो से चकना चूर और लहू लुहान हो रहा है।
     एक तीर पेशानिए अक़दस पर लगा। ये पेशानी मुस्तफाﷺ की बोसा गाह थी। बे अदबाने कूफा ने इस पेशानिये मुस्तफाﷺ और इस जबीने पुरज़िया को तीर से घायल किया, हज़रत को चक्कर आ गए और घोड़े से निचे आए, अब नामर्दाने सियाह बातिन ने नेज़ो से वार किया, नूरानी पैकर खून में नहा गया और आप शहीद हो कर ज़मीन पर गिर पड़े। اِنَّ لِلّٰهِ وَاِنَّٓ اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 170*
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #06
     सादिक़ जाबाज़ ने अहदे वफ़ा पूरा किया और दिने हक़ पर क़ाइम रह कर अपना कुम्बा, अपनी जान राहे खुदा में इस उलुलअज़मी से नज़्र की, सुखा गला काटा गया और कर्बला की ज़मीन सय्यिदुश्शोहदा के खून से गुलज़ार बनी, सर व तन को ख़ाक में मिला कर अपने जद्दे करीम के दिन की हक़्क़ानिय्यत की अमली शहादत दी।
      मुहर्रम सी.61 ही. की 10वी तारीख के रोज़ 56 साल क माह 5 दिन की उम्र में हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने इस नापाएदार से रिहलत फ़रमाई और दाइये अजल को लबैक कहि।
     जालिमो ने इस पर बस नहीं किया और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की मुसीबतो का इसी पर खातिमा नही हो गया। दुश्मनोने आप के सरे मुबारक को तने अक़दस से जुदा करना चाहा और नज़्र इब्ने खुरशा इस नापाक इरादे से आगे बढ़ा मगर इमाम की हैबत से उसके हाथ काप गए और तलवार छूट पड़ी। खोली इब्ने यज़ीद पलीद ने या शबल इब्ने यज़ीद ने बढ़ कर आप के सरे अक़दस को तने मुबारक से जुदा किया।
     इब्ने ज़ियाद ने सरे मुबारक को कूफा के कूचे व बाज़ार में फिरवाया और इस तरह अपनी बे हम्मिययति व बे हयाई का इज़हार किया फिर हज़रते हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه और उनके तमाम जाबाज़ शुहदा के सरो को असिराने अहले बैत के साथ शिमरे नापाक की हमराही में यज़ीद पलीद के पास दिमशक भेजा। यज़ीद ने सरे मुबारक और हल बैत को हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه के साथ मदीना भेजा और वहा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का सर मुबारक आप की वालिदा हज़रते खातुने जन्नतرضي الله تعالي عنها या हज़रते हसनرضي الله تعالي عنه के पहलु में मदफुन हुवा।

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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #07
     इस वाक़ीए से हुज़ूरﷺ को जो रंज पहुचा और कल्बे मुबारक को जो सदमा हुवा अंदाज़ा और कियास से बाहर है। इमाम अहमद व बेहक़ी ने हज़रते इब्ने अब्बासرضي الله تعالي عنه से रिवायत की, एक रोज़ में दीपहर के वक़्त हुज़ूरे अक़दसﷺ की ज़ियारत से ख्वाब में मुशर्रफ हुवा। मेने देखा की सुम्बुल मुअम्बर व गैसुए मुअत्तर बिखरे हुए और गुबार आलूदा है, दस्ते मुबारक में एक खून भरा शीशा है। ये हालत देख कर दिल बे चैन हो गया, में ने अर्ज़ किया : ऐ आक़ा ! ये क्या हाल है ? फ़रमाया हुसैन और उन के रफ़ीक़ो का खून है, में इसे आज सुब्ह से उठाता रहा हु। हज़रते अब्बअसرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाते है : मेने उस तारीख व वक़्त को याद रखा जब खबर आई तो मालुम हुवा की हज़रते इमाम उसी वक़्त शहीद किये गए।
*✍🏽इमाम अहमद बिन हम्बल, 1/606*

     हज़रते उम्मे सलमाرضي الله تعالي عنها से रिवायत है, उन्हों ने भी इसी तरह हुज़ूरﷺ को ख्वाब में देखा की आप के सरे मुबारक व रिशे अक़दस पर गुर्दो गुबार है, अर्ज़ किया : या रसूलल्लाहﷺ ! ये क्या हाल है? फ़रमाया अभी इमामे हुसैन के मक़्तल में गया था।
*✍🏽बाहीक, 7/48*

     बेहक़ी व अबू नुएम ने बसरा अज़दिया से रिवायत की, की जब हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه शहीद किये गए तो आसमान से खून बरसा। सुब्ह को हमारे मटके, घड़े और तमाम बर्तन खून से भरे हुए थे।
*✍🏽बेहक़ी, 6/471*
*✍🏽सवानहे कर्बला, 172*
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*सवानहे कर्बला​* #47
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*_​​हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत​​_* #08
     इब्ने असाकिरرضي الله تعالي عنه ने मिन्हाल बिन अम्र से रिवायत की वो कहते है : वल्लाह ! में ने ब चश्मे खुद देखा की जब सरे मुबारके इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه को लोग नेज़े पर लिये जाते थे उस वक़्त में दमिश्क़ में था, सर मुबारक के सामने एक शख्स सूरए कहफ़ पढ़ रहा था जब वो इस आयत पर पहुचा *असहाबे कहफ़ व रक़ीम हमारी निशानियों में से अजब थे*
     उस वक़्त अल्लाह ने सरे मुबारक को गोयाई दी, बज़बाने फसीह फ़रमाया : *असहाबे कहफ़ के वाक़ीए से मेरा क़त्ल और मेरे सर को लिये फिरना अजीब तर है*
     और दर हक़ीक़त बात यही है क्यू की असहाबे कहफ़ पर काफिरो ने ज़ुल्म किया था और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को इन के जद की उम्मत ने मेहमान बना कर बुलाया, फिर बे वफाई से पानी तक बंद कर दिया, आल व असहाब को हज़रते इमाम के सामने शहीद किया, फिर खुद हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को शहीद किया, अहले बैत को असीर किया, सर मुबारक शहर शहर फिराया। असहाबे कहफ़ साल्हा साल की तवील ख्वाब के बाद बोले, ये ज़रूर अजीब है मगर सरे मुबारक का तन से जुदा होने के बाद कलाम फरमाना इससे अजीब तर है।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत के बाद जब बद नसीब कुफि सरे मुबारक को ले कर चले और एक मंज़िल में इस काफिले ने क़याम किया वह एक दैर था। दैर के राहिब ने उन लोगो को 80000 दिरहम दे कर सरे मुबारक को एक शब् अपने पास रखा। गुस्ल दिया इत्र लगाया, अदब व ताज़ीम के साथ तमाम शब् ज़ियारत करता और रोता रहा और रहमते इलाही के जो अनवार सरे मुबारक पर नाज़िल हो रहे थे उन का मुशाहीदा करता रहा हत्ता की ये उस के इस्लाम का बाईष हुवा। अश्किया ने जब दिरहम तक़सीम करने के लिये थैलियो को खोला तो देखा सब में ठीकरिया भरी हुई है और उन के एक तरफ लिखा है *और हरगिज़ अल्लाह को बे खबर न जानना जालिमो के काम से* (पारह 13) और दुआरी तरफ लिखा था *और अब जाना चाहते है ज़ालिम की किसी करवट पलटा खाएगे* (पारह, 19)
*✍🏽सवानहे कर्बला, 176*
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*सवानहे कर्बला​* #48
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*_​​शहादत के बाद के वाक़ीआत​_* #01
     हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه का वुजुदे मुबारक यज़ीद की बे क़ैदियों के लिये एक ज़बरदस्त मोहता्सिब था, वो जानता था के आप के ज़मानए मुबारक में इसको बे मोहारी का मौक़ा मुयस्सर न आएगा और उस की किसी गुमराही पर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه सब्र न फर्माएगे, उसको नज़र आता था की इमाम जेसे दीनदार की ताजिर हर वक़्त उसके सर पर घूम रहा है इसी वजह से वो और भी ज़्यादा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की जान का दुश्मन था और इसी लिये हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की शहादत उसके लिये बाईशे मसर्रत हुई।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه का साया उठना था, यज़ीद खुल खिला और अन्वअ व एक्साम के मअसि की गर्म बाज़ारी हो गई। ज़िना, हरामकारी, भाई-बहन की शादी, सूद, शराब, नमाज़ों की पाबन्दी उठ गई, सरकशी इन्तिहा को पहुची, शैतान ने यहाँ तक ज़ोर किया की मुस्लिम इब्ने उक़बा को 12 या 20 हज़ार का लश्कर ले कर मदीना की चढ़ाई के लिये भेज।
     ये सी. 63 ही. का वाक़या है। इस नामुराद लश्कर ने मदीना में वो तूफ़ान बरपा किया की क़त्ल, गारत और तरह तरह के मज़ामिल हमसाएगाने रसूलुल्लाह पर किए। वहा के साकिनिन के घर लूट लिये, 700 सहाब को शहीद कर दिया और दूसरे आम बाशिंदे मिला कर 10 हज़ार से ज़्यादा को शहीद किया, लड़को को क़ैद कर लिया, ऐसी ऐसी बदतमीज़िया की जिन का ज़िक्र करना ना गवारा है। मस्जिदे नबवी के सुतुनो में घोड़े बांधे, तिन दिन तक मस्जिद में लोग नमाज़ से मुशर्रफ न हो सके। सिर्फ सईद इब्ने मुसय्याब मजनून बन कर वहा हाज़िर रहे। हज़रते अब्दुल्लाह इब्ने इन्ज़ला इब्ने गसिल ने फ़रमाया की यज़ीदियो के नाशाइस्ता हरकत इस हद पर पहुच है के हमे अन्देशा होने लगा की इसने की बदकारियो की वजह से कहि आसमान से पथ्थर न बरसे।
     फिर ये लश्कर शरारत अशर मक्का की तरफ रवाना हुवा, रास्ते में अमीरे लश्कर मर गया और दूसरा शख्स उसका क़ाइम मक़ाम किया गया। मक्का पहुच कर इन बे दिनों ने मिनजनिक से संग बारी की (मिनजनिक पथ्थर फेकने का आला होता है जिस से पथ्थर फेक कर मारा जाता है उसकी ज़द बड़ी ज़बरदस्त और दूर की मार होती है) इस संग बारी से हरम शरीफ का सहन मुबारक पतथरो से भर गया और मस्जिदे हराम के सुतून टूट पड़े और काबए मुक़द्दस के गिलाफ शरीफ और छत को इन बे दिनों ने जला दिया। इसी छत में उस दुम्बे के सिंग भी तबर्रुक के तौर पर महफूज़ थे जो हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम के फिदये में कुर्बानी किया गया था वो भी जल गए, काबए मुक़द्दसा कई रोज़ तक बे लिबास रहा और वहा के बाशिंदे सख्त मुसीबत में मुब्तला रहे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 178*
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*सवानहे कर्बला​* #49
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*_शहादत के बाद में वाक़ीआत_*​​​ #02
*_यज़ीद का अंजाम_*
     वाकिया ए कर्बला के कुछ ही दिनों बाद यज़ीद एक हलाकत ख़ेज़ और इन्तिहाई मुजी मरज़ में मुब्तला हुवा, पेट के दर्द और आतो के ज़ख्मो की तकलीफ से जिस तरह मछली पानी के बगैर तड़पती है उस तरह तड़पता रहता था, हिम्स में जब उसे अपनी मोत का यक़ीन हो गया तो अपने बड़े लड़के मुआविय्या को बिस्तरे मर्ग पर बुलाया और उमुरे सल्तनत के बारे में कुछ कहना ही चाहता था की बे साख्ता बेटे के मुह से चीख निकली और निहायत ज़िल्लतो हक़ारत के साथ ये कहते हुवे बाप की पेशकश को ठुकरा दिया की जिस ताजो तख्त पर आले रसूल के खून के धब्बे है, में उसे हरगिज़ क़बूल नही कर सकता, खुदा इस मनहूस सल्तनत की विरासत से मुझे महरूम रखे, जिस की बुनयादी नवासए रसूल के खून पर रखी गई है।
     यज़ीद अपने बेटे के मुह से ये अलफ़ाज़ सुन कर तड़प गया और शिद्दते रंजो अलम से बिस्तर पर पाउ पटखने लगा, मौत के कुछ दीन पहले यज़ीद की आंते सड गई और उस में कीड़े पड़ गए, तकलीफ की शिद्दत से खिन्ज़िर की तरह चीखता था, पानी का क़तरा हलक के निचे उतरने के बाद निश्तर की तरह चुभने लगता था, अज़ीब क़हरे इलाही की मार थी, पानी के बगैर भी तड़पता था और पानी पा कर भी चीखता था, बिल आखिर इसी दर्द की शिद्दत से तड़प तड़प कर उसकी जान निकली, लाश में ऐसी हौलनाक बदबू थी की क़रीब जाना मुश्किल था, जेसे तैसे उसको ख़ाक के सुपुर्द किया गया।
*✍🏽तारीखे कर्बला, 345*

*_यज़ीद की क़ब्र का हाल_*
     दमिश्क के पुराने क़ब्रस्तान बाबुस्सगिर के कुछ आगे यज़ीद की क़ब्र का निशान था, जिस पर आज से की सालो पहले लोग ईटे पथ्थर मारते थे और अक्सर इटो का ढेर लगा रहता था, वहा अब शीशा और लोहा गलाने की भट्टी लगी हुई है, उस कारखाने में शीशे के बर्तन बनाए जाते है, उस लोहे और काच को गलाने की आग वाली भट्टी ठीक उसी जगह है जहा यज़ीद की क़ब्र थी। गोया यज़ीद की क़ब्र पर हर वक़्त आग जलती रहती है।
*✍🏽शहादते नवासए सय्यिदुल अबरार, 918*
*✍🏽यज़ीद का दर्दनाक अंजाम, 113*
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*सवानहे कर्बला​* #50
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*_​​शहादत के बाद में वाक़ीआत​_* #03
     अहले मक्का को उनके सर से नजात मिली। अहले हिजाज़, यमन व इराक़ व खुरासान ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه के दस्ते मुबारक पर बैअत की और अहले मिस्र व शाम ने मुआविया बिन यज़ीद के हाथ पर बैअत की। ये मुआविया अगर्चे यज़ीद पलीद की अव्लाद थी मगर आदमी नेक और सालेह था, बाप के नापाक अफआल को बुरा जनता था।
     इनान हुक़ूमत हाथ में लेते वक़्त ता दमे मर्ग बीमार ही रहा और किसी काम की तरफ नज़र न डाली और चालीस दिन या दो तिन माह की हुकूमत के बाद 21 साल की उम्र में मर गया। आखिर वक़्त में उस से कहा गया की किसी को खिलाफा करे। उसका जवाब उस ने ये दिया की में ने खिलाफत में कोई हलावत नही पाई तो में इस तल्खी में किसी दूसरे को क्यू मुब्तला करू।
      मुआविया बिन यज़ीद के इन्तिकाल के बाद अहले मिस्र व शाम ने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه की बैअत की फिर मरवान बिन हुकम ने खुरुज किया और उस को शाम व मिस्र पर क़ब्ज़ा हासिल हुवा। सी .65 ही. में उस का इन्तिकाल हुवा और उसकी जगह उसका बेटा अब्दुल मलिक इसका क़ाइम मक़ाम हुवा। अब्दुल मलिक के अहद में मुख्तार बिन उबैद शक़्फि ने अम्र बिन साद को बुलाया, इब्ने साद का बेटा हफ़्स हाज़िर हुवा। मुख्तार ने दरयाफ़्त किया : तेरा बाप कहा है ? कहा की वो खलवत नशीन हो गया है, घर से बाहर नही निकलता। इस पर मुख्तार ने कहा की अब वो रे की हुक़ूमत कहा है ? जिसकी चाहत में फरज़न्दे रसूल से बे वफाई की थी, अब क्यू इससे दस्त बरदार हो कर घर में बेठा है।
     इसके बाद मुख्तार ने इब्ने साद और उस के बेटे और शिमर नापाक की गर्दन मारने का हुक्म दिया

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*✍🏽सवानहे कर्बला, 179*
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*_​​शहादत के बाद में वाक़ीआत​_* #04
     इसके बाद मुख्तार ने इब्ने साद और उस के बेटे और शिमर नापाक की गर्दन मारने का हुक्म दिया और इन सब के सर कटवा कर हज़रते मुहम्मद बिन हनफिया दरबारे हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के पास भेज दिये और शिमर की लाश को घोड़े के सूमो से रौंदवा दिया जिस से उसके सीने और पसली की हड्डिया चकना चूर हो गई।
     शिमर हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के क़ातिलों में से है और इब्ने साद उस लश्कर का क़ाफ़िला सालार व कमान दार था जिसने हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर मज़ालिम के तूफ़ान तोड़े। आज इन जालिमो के सर तन से जुदा कर के दश्त ब दश्त फिराए जा रहे है और दुन्या में कोई इन की बे कसी पर अफ़सोस करने वाला नही। हर शख्स मलामत करता है और नज़रे हक़ारत से देखता है और इन की इस ज़िल्लत व रुसवाई की मौत पर खुश होता है।
     मुसलमानो ने मुख्तार के इस कारनामे पर इज़हारे फरह किया और इस को दुश्मनाने इमाम से बदला लेने पर मुबारक बाद दी।
     इसके बाद मुख्तार ने एक हुक्मे आम दिया की कर्बला में जो जो शख्स अम्र बिन साद का शरीक था वो जहां पाया जाए मार डाला जाए। ये हुक्म सुन कर कूफा के जफ़ा शिआर सुरमा बसरा भागना शुरू हुए। मुख्तार के लश्कर ने उन का तआक़ुब किया जिस को जहां पाया खत्म कर दिया, लाशो जला डाली, घर लूट लिये।
     खोली बिन यज़ीद वो खबिश् है जिस ने हज़रते इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه का सरे मुबारक तने अक़दस से जुदा किया था, ये रु सियाह भी गिरफ्तार करके मुख्तार के पास लाया गया। मुख्तार ने पहले उस के हाथ पैर कटवाए फिर सूली चढ़ाया, आखिर आग में झोक दिया। इस तरह लश्करे इब्ने साद के तमाम अशरार् को तरह तरह के अज़ाबो के साथ हलाक किया। छे हज़ार कुफि जो हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه के क़त्ल में शरीक थे उन को मुख्तार ने तरह तरह के अज़ाबो के साथ हलाक कर दिया।
*✍🏽सवानहे कर्बला, 180*

*मुकम्मल...*
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