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Wednesday 31 January 2018

तज़किरतुल अम्बिया* #40

*तज़किरतुल अम्बिया* #40
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام* 
#34
*हज़रत आदम व हव्वा عليه السلام को दरख्त से मना करने में हिकमत*
     अगर हज़रत अदम عليه السلام जन्नत में न होते बल्कि पहले ही ज़मीन पर होते तो...
     और तुम दोनों उस दरख्त के क़रीब न जाओ" कहने की ज़रूरत दरपेश न आती और नही आप से भूल वाकेय होती। लेकिन आप तो जन्नत में थे और आपका ज़मीन में रहना और ज़मीन में ही अल्लाह का खलीफा बनना खुद रब की मुराद थी आप की तख़्लीक़ से पहले ही अल्लाह ने फरमा दिया था: "बेशक में ज़मीन में खलीफा बनाने वाला हूँ।"
     इससे मालुम हुआ कि आदम عليه السلام अपने महबूब और महबूब की मुराद को नहीं भूले यानी अल्लाह और उसकी मुराद जो थी कि आप ज़मीन में मेरे खलीफा होंगे उससे हज़रत आदम عليه السلام से भूल नहीं वाकेय हुई बल्कि अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ काम हुआ, अलबत्ता भूल उनके मासिवा चीज़ में हुई जो अल्लाह की हिकमत का तक़ाज़ा था कि एक दरख्त के क़रीब जाने से रोका उसमें भूल वाकेय हुई जो ज़मीन में आने का सबब बनी।
     इस मक़ाम पर यह शुबह सही न होगा कि अल्लाह हज़रत आदम عليه السلام को इस भूल के बगैर ज़मीन पर लाने पर क़ादिर था बेशक उसकी कुदरत हक़ है लेकिन उसने इज़हारे कुदरत को खुद ही हकिमाना अस्बाब के साथ मर्बुत फ़रमाया है। आदम عليه السلام का निस्यान उन ही अस्बाब में शामिल है, अल्लाह के क़ादिर होने के साथ साथ उसका हकीम होना भी बरहक़ है और हकीम की शान नहीं कि हिकमत के खिलाफ कोई काम करे, हिकमत की रियायत से कुदरत की नफ़ी नहीं होती। आदम عليه السلام की उस ज़ाहिरी लग्ज़िश को हक़ीक़तन मासियत न समझा जाये और इस बात पर गौर किया जाये कि अल्लाह ने आदम عليه السلام को जन्नत में ठहरा कर एक ख़ास दरख्त के क़रीब जाने से मना फरमा दिया और शैतान को इख़्तियार दे दिया कि वह इस मुमानअत की खिलाफ वर्जि में आदम عليه السلام की लग्ज़िश का सबब बन जाये और लग्ज़िश के सादिर होने के बाद आदम عليه السلام का ज़मीन में खलिफतुल्लाह होना जो मंशाए इयज़दि था हकिमाना तौर पर पूरा हो जाये, अदना तआम्मुल से यह बात समझ में आ सकती है कि अल्लाह ने अपने मंशा और मुराद को मुतहक़्क़ीक़ फरमाने के लिये यह सब हकिमाना अस्बाब पैदा फरमाये।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 45
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#03

*वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     अब ज़रा अपनी पाकीज़ा शरीअत के अह्कामात मुलाहजा कीजिये. किसी तरह बद निगाही, बे हयाई, बे पर्दगी और हर किस्म की फहहाशि व उर्यानि की मज़म्मत क़ुरआने करीम की आयत और नबिय्ये करीम ﷺ के इर्शादात में बयान हुई है, तवज्जोह के साथ पढ़ना और समझना चुकी मुसलमानो को फायदा देता है इस लिये इतनी हिम्मत ज़रूर कीजिये और आयात व अहादीस को अपने दिल में दाखिल होने का मौकअ दीजिये
     अल्लाह عزوجل ने चाहा तो तौबा की तौफ़ीक़ के साथ साथ परहेज़ गारी की दौलत और इत्तिबाए सुन्नत की तौफ़ीक़ भी मिल जाएगी।

*शर्मो हया का दर्स और बे हयाई की मज़म्मत आयते क़ुरआनीया से*
     अल्लाह عزوجل फरमाता है : मुसलमान मर्दों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करे ये उन के लिये बहुत सुथरा है बेशक अल्लाह को उनके कामो की खबर है और अल्लाह मुस्लमान ओरतो को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखे और अपनी पारसाई की हिफाज़त करे।
     सूरए नूर की इसी 31 वी आयत में ये भी इर्शाद हुआ की "और जमींन पर पाउ ज़ोर से न रखे की जाना जाए उन का छुपा हुआ सिंगार।"
पारा 18, सूरए नूर

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*वेलेन्टाइन डे क़ुरआनो हदिष की रौशनी में* 17-18
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नमाज़ की अहमिय्यत* #57

*नमाज़ की अहमिय्यत* #57
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने का वबाल*
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अगर नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला ये जान लेता कि नमाज़ी के आगे से गुज़रने का क्या गुनाह है? तो 40 साल तक खड़े होकर इन्तिज़ार करना गवारा कर लेता।
*✍🏼सुनने अबू दाऊद* 701
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: अगर तुममे से किसी को मालुम हो जाता कि अपने भाई की नमाज़ में खलल डालते हुए उसके आगे से गुज़रने का गुनाह क्या है? जब कि वो अपने रब से दुआ कर रहा है तो वो नमाज़ी के आगे से गुज़रने के मुक़ाबले उस जगह 100 साल खड़ा रहना ज़्यादा पसन्द करता।
*✍🏼मुसन्दे अहमद* 8824
    
     *नोट*: नमाज़ी को खुद भी ऐसी जगह नहीं खड़ा होना चाहिये जहाँ से किसी के गुज़रने का इम्कान हो वरना वो खुद भी गुनाहगार होगा।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 44
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कलिमाते कुफ़्र* #04

*कलिमाते कुफ़्र* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*फ़ौतगी के मौके पर बके जाने वाले कुफ्रिय्यात की मिसाले*
     किसी की मौत हो गई पर दूसरे शख्स ने कहा: अल्लाह को ऐसा नहीं करना चाहिये था।
     किसी का बेटा फौत हो गया, उसने कहा: अल्लाह को इसकी हाजत होगी, ये क़ौल कुफ़्र है क्यूं कि कहने वाले ने अल्लाह को मोहताज क़रार दिया।
     किसी की मौत पर आम तौर पर बक देते है: अल्लाह को न जाने इस की क्या ज़रूरत पड़ गई जो जल्द बुला लिया या कहते है: अल्लाह को भी नेक लोगों की ज़रूरत पड़ती है इस लिये जल्द उठा लेता है (ये सुन कर माना समझने के बा वुजूद उमुमन लोग हा में हा मिलाते या ताईद में सर हिलाते है इन सब पर भी हुक्मे कुफ़्र है)
     किसी की मौत पर कहा: या अल्लाह! इस के छोटे छोटे बच्चों पर भी तुझे तर्स न आया!
    जवान मौत पर कहा: या अल्लाह! इस की भरी जवानी पर ही रहम किया होता। अगर लेना ही था तो फूलां बुढ्ढे या बुढ़िया को ले लेता।
     या अल्लाह! आखिर इस की ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई कि अभी से वापस बुला लिया।
*✍🏼28 कलिमाते कुफ़्र* 7
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नमाज़ का तरीक़ा* #32

*नमाज़ का तरीक़ा* #32
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*नमाज़ के वाजिबात* #02
★ एक सज्दे के बाद बित्तरतिब दूसरा सज्दा करना।

★तादिले अरकान यानि रूकू, सुजूद, क़ौमा और जल्सा में कम अज़ कम एक बार "सुब्हान अल्लाह" कहने की मिक़दार ठहरना।

★ क़ौमा यानि रूकू से सीधे खड़े होना (बाज़ लोग कमर सीधी नहीं करते इस तरह उन का वाजिब छूट जाता है)

★ जल्सा यानि दो सजदों के दरमियान सीधा बैठना (बाज़ लोग जल्द बाज़ी की वजह से बराबर सीधे बैठने से पहले ही दूसरे सज्दे में चले जाते है इस तरह उन का वाजिब तर्क हो जाता है चाहे कितनी ही जल्दी हो सीधा बैठना लाज़िमी है वरना नमाज़ मकरुहे तहरीमि वाजीबुल इआदा होगी) यानि नमाज़ फिर से पढ़नी होगी।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 171*
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ताज़िमे रसूल ﷺ और सहाबए किराम* #11

*ताज़िमे रसूल ﷺ और सहाबए किराम* #11
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
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    एक मकाम पर क़ुरआने हकीम नबिय्ये अकरम ﷺ  की ताज़ीम करने वालों की कामरानी का इस तरह एलान कर रहा है:
*तर्जमए कन्ज़ूल ईमान* : _तो वोह जो उस पर ईमान लाएं और उकसी ताज़ीम करें और उसे मदद दें और उस नूर की पैरवी करें जो उसके साथ उतरा वोही बा मुराद हुवे।_
    इस आयते करीमा में भी रसूलुल्लाह ﷺ की ताज़ीम व नुसरत करने वालों को कामयाबी की ज़मानत दी गई है।
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*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 29
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आज का चाँद* -​ 13

*आज का चाँद* -​ 13
*​माह 5* -​ जमादीउल अव्वल
*​हिजरी* -​ 1439

*उर्स*
हज़रत टोपीवाले बाबा (माहिम, बम्बई)
हज़रत अब्बाबापू (वरवाड़ा)

*विसाल*
हज़रत शैख़ मुबारक (भरुच)
हज़रत बुरहान मिल्लत (जमालपुर)

*कुलशरीफ*
हज़रत मुनिरशाह वारसी (पेटलाद)

*नॉट :*
3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र करदीजिये।
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तज़किरतुल अम्बिया* #39

*तज़किरतुल अम्बिया* #39
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام*
#33
*क़ानूने कुदरत और क़ानूने आदत में फर्क*
     अल्लाह की आदत यह है कि आम तौर पर कामों के अस्बाब बना दिये है इसी तरह इन्सानो की पैदाइश में भी क़ानूने आदत अस्बाब के मातहत कर दिया गया कि माँ और बाप से औलाद की पैदाइश होती है लेकिन वह क़ानूने कुदरत नही।
     क़ानूने कुदरत की अल्लाह ने एक मिसाल क़ायम कर दी है कि में इस तरह भी कर सकता हूँ अस्बाब की मुझे कोई मोहताजी नहीं, मर्द और औरत के बगैर अपने दस्ते कुदरत से मिट्टी का क़ालिब बना कर उसमे रूह फुंक कर हज़रत आदम عليه السلام को पैदा फ़रमाया और औरत के बगैर मर्द की पसली चाक करके आम आदत के खिलाफ हज़रत हव्वा को पैदा कर के यह वाज़ेह कर दिया कि में बगैर औरतों के मर्दों से औलाद पैदा करने पर भी क़ादिर हूँ और औरत से बगैर उसके खाविन्द के बेटा पैदा करके भी वाज़ेह कर दिया कि मेरी कुदरत से यह भी यह की कोई बड़ी बात नहीं। यानी हज़रत मरयम से हज़रत ईसा عليه السلام की पैदाइश तो एक आम तरीक़ा के मुताबिक़ ही हुई लेकिन इसमें मर्द का कोई वास्ता नहीं, सिर्फ जिब्राइल की फूंक का असर है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 45
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Tuesday 30 January 2018

वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#02

*वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     बद निगाही, बे पर्दगी, फहहाशि उर्यानि, अजनबी लड़के लड़कियो का मेल मिलाप, हँसी मज़ाक, इस ना जाइज़ तअल्लुक़ को मज़बूत रखने के लिये तोहफे का लेन-देन और आगे ज़िना और दबाइये ज़िना तक की नौबते, ये सब वो बाते है जो इस रोज़े इस्या ज़ोरो शोर से जारी रहती है।
     और इन सब शैतानी कामो के ना जाइज़ व हराम होने में किसी मुसलमान को ज़र्रा भर भी शुबा नहीं हो सकता।
     क़ुरआने करीम की आयते बय्यिनात और नबिय्ये करीम ﷺ के वाज़ेह इर्शादत से इन उमूर की हुरमत व मज़म्मत साबित है। मगर चुकी इस किस्म के सुवाल से मकसूद ये होता है की मुसलमानो को दीनी नुक़्तए नज़र से समझाया जाए और इस दिन की खुराफात के साथ इन को मनाने की शनाअत व बुराई से इन्हें आगाह करके इन दिलो में खौफे खुदा عزوجل और शर्मे मुस्तफा ﷺ पैदा की जाए ताकि वो इन ना-पाकियो से ताइब हो कर अपने अफ्कार व किरदार की इस्लाह में मशगूल हो कर बरोज़े क़ियामत सुर्ख-रु हो,
     लिहाज़ा तरगिब् व तरहिब के लिये चन्द बाते दिन से महब्बत करने वाले अपने इस्लामी भाइयो की खिदमत में अर्ज़ करता हु, खुद भी पढ़े और इस अहम फतवे को जो मज़्मून की शक्ल में है आम करे ताकि आम्म्तुल मुस्लिमीन के दिनों दुन्या का भला हो।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼वेलेन्टाइन डे क़ुरआनो हदिष की रौशनी में* 16-17
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*नमाज़ की अहमिय्यत* #56

*नमाज़ की अहमिय्यत* #56
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*नमाज़ियों को फलांगने का वबाल*
     फरमाने मुस्तफा ﷺ: जो शख्स जुमा के दिन लोगों को फलांगते हुए आगे बढ़ेगा क़यामत के दिन उसको जहन्नम जाने वालों का पुल बनाया जाएगा। (इससे अल्लाह की पनाह!)
     यहाँ अगर जुमा के दिन नमाज़ियों को फलांगने पर वईद फ़रमाई गई है लेकिन इसका हुकम आम है। किसी भी दिन नमाज़ियों को फलांगते हुए आगे बढ़ने का यही हुक्म है।
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 44
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कलिमाते कुफ़्र* #03

*कलिमाते कुफ़्र* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*एतराज़ की सूरत में बके जाने वाले कुफ्रिय्यात की मिसालें*
     मुझे नहीं मालुम अल्लाह ने जब मुझे दुन्या में कुछ न दिया तो मुझे पैदा ही क्यूं किया! ये क़ौल कुफ़्र है।
     किसी मिस्कीन ने अपनी मोहताजी को देख कर ये कहा: या अल्लाह! फूलां भी तेरा बन्दा है, उसे तूने कितनी नेमतें दे रखी है और एक में भी तेरा बन्दा हूँ मुझे किस क़दर रन्जो तकलीफ देता है। आखिर ये क्या इन्साफ है?
     कहते है: अल्लाह सब्र करने वालो के साथ है, में कहता हूँ ये सब बकवास है।
     जिन लोगों को में प्यार करता हूँ वो परेशानी में रहते है और जो मेरे दुश्मन होते है अल्लाह उन को बहुत खुशहाल रखता है।
     काफिरों और मालदारों को राहतें और गरीबों और नादारों पर आफतें! बस जी अल्लाह के घर का तो सारा निज़ाम ही उलटा है।
     अगर किसी ने बिमारी, बे रोजगारी, गुरबत या किसी मुसीबत की वजह से अल्लाह पर एतराज़ करते हुए कहा: ऐ मेरे रब! तू मुझ पर क्यूं ज़ुल्म करता है? हालांकि में ने तो कोई गुनाह किया ही नहीं। तो वो काफ़िर है।
*✍🏼28 कलिमाते कुफ़्र* 6
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*नमाज़ का तरीक़ा* #31

*नमाज़ का तरीक़ा* #31
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*नमाज़ के वाजिबात* #01
★ तकबीरे तहरिमा में लफ्ज़ "अल्लाहु अक्बर" कहना।

★ फर्ज़ो की तीसरी और चौथी रकअत के इलावा बाक़ी तमाम नमाज़ों की हर रकअत में अलहम्द शरीफ पढना, सूरत मिलाना या क़ुरआने पाक की एक बड़ी आयत जो छोटी तिन आयतो के बराबर हो या तिन छोटी आयते पढ़ना।

★ अलहम्द शरीफ का सूरत से पहले पढ़ना।

★ अलहम्द शरीफ और सूरत के दरमियान "आमीन" और बिस्मिलाह के इलावा कुछ और न पढ़ना।

★ किराअत के फौरन बाद रूकू करना।

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*✍🏼नमाज़ के अहकाम, सफा 171*
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ताज़िमे रसूल ﷺ और सहाबए किराम* #10

*ताज़िमे रसूल ﷺ और सहाबए किराम* #10
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

      *तर्जमए कंज़ूल ईमान* : _बेशक हम ने तुम्हें भेजा हाज़िर व नाज़िर और खुशी और डर सुनता ताकि ऐ लोगो तुम अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की ताज़ीम व तौक़ीर करो और सुब्हो शाम अल्लाह की पाकी बोलो।_
     आप गौर करे इस आयत में पहले ईमान बिल्लाह और ईमान बिर्रसूल का मुतालबा किया गया है, और इसके मअन बाद रसूले मुअज़्ज़म व मुकर्रम ﷺ की ताज़ीम व तौक़ीर का हुक्म दिया गया हैं और फिर अल्लाह ने अपनी तस्बीह का हुक्म इर्शाद फ़रमाया हैं।
      रब तआला ने अपनी तस्बीह पर अपने रसूल ﷺ की ताज़ीम व तौक़ीर को मक़द्दम कर के ताज़िमे हबीब की अहमियत न अज़मत में किस कदर इज़ाफ़ा कर दिया हैं। गोया आप ﷺ को शाहीदो मुबश्शिर और नज़ीर बना कर इस लिये भेजा गया है कि लोग अल्लाह और उसके रसूल ﷺ पर ईमान लाए, और रसूल ﷺ की ताज़ीम करे और फिर रब की तस्बीह करे। 

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼सहाबएकिराम का इश्के रसूलﷺ* पेज 28
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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आज का चाँद* -​ 12

*आज का चाँद* -​ 12
*​माह 5* -​ जमादीउल अव्वल
*​हिजरी* -​ 1439

*उर्स*
हज़रत मखदूम बहाउद्दीन (अहमदनगर)

*विसाल*
ख्वाजा कानूनसाहब (ग्वालियर)

*नॉट :*
3 बार कुल्हुवल्लाह, एक बार सूरए फातिहा आगे पीछे दुरुद शरीफ पढ़ के हुज़ूर ﷺ की व इन बुज़ुर्गाने दिन की बारगाह में और हज़रत आदम ता क़यामत तक के तमाम मोमिनो की रूह को नज़र करदीजिये।
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 29 January 2018

*तज़किरतुल अम्बिया* #38

*तज़किरतुल अम्बिया* #38
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام* 
#32
*हज़रत आदम عليه السلام की शादी और महर*
     जब हज़रत हव्वा को पैदा किया गया तो हज़रत आदम عليه السلام ने उनकी तरफ मिलान करना चाहा और इरादा फ़रमाया कि दस्ते मुहब्बत बढ़ायें तो फरिश्तों ने कहा ऐ आदम ठहर जाओ पहले महर अदा कर दो आपने फ़रमाया: वह महर क्या है? फरिश्तों ने कहा महर यह है कि तुम नबीए करीम ﷺ पर दुरुद पढ़ो।
     एक रिवायत में 3 दफा और एक में 70 मर्तबा दुरुद पढ़ने का हुक्म दिया गया यानी इस मसले में इत्तेफ़ाक़ है कि आदम عليه السلام का महर यही था कि वह नबीए करीम ﷺ पर दुरुद पढ़ें आप ने दुरुद पढ़ा और फरिश्तों की गवाही से निकाह हुआ।
     इससे यह भी पता चला कि बेशक नबीए करीम ﷺ हर मौजूद चीज़ के लिये वसीला है यहां तक कि आप अपने बाप आदम عليه السلام का भी वसीला है।
     दूसरी रिवायत के मुताबिक़ आप को और हज़रत हव्वा को शादी के बाद फ़रिश्ते सोने के तख्त पर बैठा कर इस तरह जन्नत में ले गये जिस तरह बादशाहों को इज़्ज़त की खातिर उठाकर ले जाते है गोया कि बारात की वापसी पर फ़रिश्ते सुनहरी डोली में दोनों मियां-बीवी को उठाकर ला रहे है।
*✍🏼तज़किरतुल अम्बिया* 44
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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
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वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#01

*वेलेन्टाइन डे मनाना कैसा ?*#01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
     इस तहवार को मनाने का अन्दाज़ ये होता है की नौ जवान लड़को और लड़कियो के बे पर्दगी व बे हयाई के साथ मेल मिलाप,
     तोहफे तहाइफ के लेन देन से ले कर फहहाशि व उर्यानि की हर किस्म का मुजाहरा खुले आम या चोरी छुपे जिस का जितना बस चलता है आम देखा सुना जाता है
     इन्तिहाई दुःख और अफ़सोस की बात ये है की इस दिन को काफिरो की तरह बे हयाई के साथ मनाने वाले बहुत से मुसलमान भी अल्लाह और उसके रसूल के अता किये हुए पाकीज़ा अह्कामात को पसे पुश्त डालते हुए खुल्लम खुल्ला गुनाहो का इर्तिकाब कर के न सिर्फ ये की अपने नामए आ'माल की सियाही में इज़ाफ़ा करते है बल्कि मुस्लिम मुआशरे की पाकीज़गी को भी इन बेहुदगियो से नापाक व आलूदा करते है।
*वेलेन्टाइन डे क़ुरआनो हदिष की रौशनी में* 15-16
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नमाज़ की अहमिय्यत* #55

*नमाज़ की अहमिय्यत* #55
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
*नमाज़ में चोरी का अन्जाम*
     फरमाने मुस्तक ﷺ: सबसे बड़ा चोर वो है जो नमाज़ में चोरी करता हो। सहाबा ने अर्ज़ किया: कोई नमाज़ में कैसे चोरी कर सकता है? फ़रमाया: नमाज़ की चोरी ये है कि आदमी पूरी तरह रूकू और सज्दा न करे।
*✍🏼सहीह इब्ने हिब्बान* 1888
     एक शख्स को मुस्तक ﷺ ने नमाज़ पढ़ते हुए देखा वो न तो रूकू पूरा करता था और न ही सज्दा, उसका सज्दा ऐसा था जैसे कोई जानवर ज़मीन से दाना चुगता है। इस जल्दबाज़ी की नमाज़ देखकर आपने फ़रमाया: अगर ये इसी हालत में मर गया तो मुहम्मद ﷺ की शरीअत के अलावा किसी और शरीअत पर मरेगा क्योंकि ये मेरी सिखाई हुई नमाज़ नहीं है।
*✍🏼तिबरानी*
*✍🏼नमाज़ की अहमियत* 43
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