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Saturday 31 December 2016

*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​सुन्नी की तारीफ क्या है ?​​_* #03
     *सवाल :* ईमान व अक़ीदा किसे कहते है ?
     *जवाब :* किसी बात को हक़ व सच मान कर दिल में बिठा व जमा लेने और यक़ीन कर लेने को ईमान व अक़ीदा कहते है।

     *सवाल :* ईमान व अमल में पहला दर्जा किसका है ?
     *जवाब :* पहला मर्तबा ईमान व अक़ीदे का है। क्यू की ईमान (अक़ीदा) ओरा आमाल की मिसाल जिस्म और जान की तरह है, ईमान जान है, आमाल जिस्म। ईमान इमारत की बुन्याद है, आमाल छत है। ईमान जड़ है, आमाल फल है। इस लिये क़ुरआन में जहा अमल का हुक्म फ़रमाया वहा उससे पहले ईमान का मुताबला किया है। जो बेईमान व बद अक़ीदा हो उस पर इस्लामी अहकाम फ़र्ज़ ही नही, उस पर पहले इमां फ़र्ज़ है।

*_सुलह कुल्ली_*
     *सवाल :* कुछ लोग कहते है जितनी जमाअते मुसलमान कहलाने वाली है वो सब के सब हक़ पर है, किसी जमाअत को बुरा-भला नही कहना चाहिए। इनके बारे में थोड़ी रौशनी डालिए।
     *जवाब :* ऐसा अक़ीदा रखने वालो को सुलह कुल्ली कहते है। इनका ये अक़ीदा हुज़ूर के इस फरमान की : *"एक जमाअत के इलावा बाक़ी मुसलमान कहलाने वाली सारी जमाअते जहन्नमी है"* के खिलाफ है।
     हुज़ूर का फरमान है की 73 में सिर्फ एक जन्नती, मगर ऑयलः कुल्लियो का अक़ीदा है की "नहीं सब जन्नती" मआज़ल्लाह।

*✍🏽​जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 4*
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*नमाज़ के 7 फराइज़*​ #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_​​6 क़ादए आखिरह​​_*
     नमाज़ की रकअते पूरी करने के बाद इतनी देर तक बैठना की पूरी अत्तहिय्यात पढ़ ली जाए फ़र्ज़ है।
*​✍🏽आलमगिरी, 1/70​*
     4 रकअत वाले फ़र्ज़ में चौथी रकअत के बाद क़ादह न किया तो जब तक पांचवी का सज्दा न किया हो बैठ जाए, और अगर पाचवी का सज्दा कर लिया या फ़ज्र में दूसरी पर नहीं बैठा तीसरी का सज्दा कर लिया या मगरिब में तीसरी पर नहीं बैठा और चौथी का सज्दा कर लिया, इन सब सूरतो में फ़र्ज़ बातिल हो गए। मगरिब के इलावा और नमाज़ों में एक रकअत मज़ीद मिला ले।

*_7 खुरूजे बिसुन्ईही_*
     यानी कायदाए आख़िरा के बाद सलाम या बातचीत वगैरा कोई ऐसा फेल इरादतन करना जो नमाज़ से बाहर कर दे। मगर सलाम के इलावा कोई फेल इरादतन पाया गया तो नमाज़ वाजीबुल इआदा होगी। और अगर बिला क़स्द कोई इस तरह फेल पाया गया तो नमाज़ बातिल।
*​✍🏽नमाज़ के अहकाम, 176-170​*
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*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #02

*_​​सुन्नी की तारीफ क्या है ?​​_* #02
      *सवाल :* कुछ लोग अहले सुन्नत व जमाअत के खिलाफ अक़ीदा रखते हुए भी अपने आप को सुन्नी कहते है ?

     *जवाब :* अल्लाह ने अपने बन्दों को दुआ की तालीम देते हुए यु फ़रमाया की, ऐ मेरे बन्दों ! जब नमाज़ पढ़ने के लिये खड़े हो तो मुझसे यु दुआ करो : *ऐ अल्लाह हमें सीधा रास्ता चला, रास्ता उन लोगो का, जिन पर तेरा इनआम हुआ* (सूरए फातिहा)
     आइये क़ुरआन से पूछे की इनआम पाने वाले कौन लोग है ? जिनके तरीके पर चलने की पाचो वक़्त अल्लाह से दुआ की जाती है। क़ुरआन का इरशाद है :
     *वो लोग, जिन पर अल्लाह ने इनआम किया वो अम्बिया ऐ किराम और सिद्दीक़ीन और शोहदा ऐ किराम और सालिहीन (औलिया अल्लाह) है।*
_पारह 5, रूकू, 5_

     ये चार जमाअते है, जिन पर अल्लाह ने इनआम फ़रमाया, ये नबियो, सिद्दिक़ो, शहीदों, औलिया अल्लाह की जमाअत है। हर मुसलमान अपनी नमाज़ में ये दुआ करता है। *ऐ अल्लाह ! मुझे उन पाक लोगो के नक्शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमा।*
     वो लोग जो (बनावटी सुन्नी) तो नमाज़ में वलियों की गुलामी की दुआ मांगते है, मगर जेसे ही सलाम फेरा फौरन इन्कार कर देते है। कहते है की : हम वलियों की ज़रूरत नही, उनके मज़ारों पर क्यू जाए वो मिट्टी का ढेर है, गौष व ख्वाजा के पास क्या रख्खा है ? तुम्ही नमाज़ की पाबन्दी करो ! गौष व ख्वाजा बन जाओगे ! वगैरा वगैरा।

     अलहम्दु लिल्लाह ! हम सुन्नी सहीहुल अक़ीदा नमाज़ में जो अल्लाह से दुआ मांगते है, नमाज़ के बाद भी उस दुआ पर कायम रहते है। सुन्नी की इस दुआ की क़बूलिय्यत की ये दलील है की, उन के हाथो में औलिया अल्लाह का दामन है।
अहले सुन्नत व जमाअत के खिलाफ जितनी भी जमाअते है उनमे अल्लामा, लीडर, डॉक्टर, इंजिनियर, प्रोफेसर वगैरा तो दिखा सकते हो। मगर उन में गौषे पाम, ख्वाजा गरीब नवाज़ नही दिखा सकते। आप को जो भी वली मिलेगा वो सुन्नियो ही में मिलेगा।
     जो सच्चा मज़हब होता है उसी में वली अल्लाह होते है। देखो ! जबसे हज़रते मूसा व हज़रते इसा अलैहिस्सलाम का दिन मनसुख (रद्द) हो गया तो कोई वली पैदा नही हुआ। आज भी दुन्या में यहूदी व नसरानी तो मौजूद है मगर उन में कोई वली नही। जब तक उनका दिन मनसुख नही हुआ था वली पैदा होते रहे और मनसुख होने के बाद वली होना बंद हो गया।
     इसी तरह आज जो मज़हब व मसलक सच्चा है उसी में वली पाये जाते है। अलहम्दु लिल्लाह ! रसूले आज़मﷺ सुन्नियो के हिस्से में आये, सिद्दीके आज़म, शहीदे आज़म, गौषे आज़म, ख्वाजा ऐ आज़म, मुजद्दिदे आज़म, मुफ्तिए आज़म, मोहद्दीसे आज़म सब अहले सुन्नत के हिस्से में आये।
        *खुदा के फ़ज़्ल से है हम पे साया गौषे आज़म का*
          *हमे दोनों जहां में है सहारा गौषे आज़म का*
            *किसी को जमाने की दौलत मिली है*
            *किसी को जहा की हुकूमत मिली है*
            *में अपने मुकद्दर पर क़ुरबान जाऊ*
            *मुझे गौष का आस्ताना मिला है*

*✍🏽​जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ​​, 4*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #116
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑤_*
     और ज़रूर हम तुम्हें आज़माएंगे कुछ डर और भूख से (4)
और कुछ मालों और जानों और फलों की कमी से(5)
और ख़ुशख़बरी सुना उन सब्र वालों को.
*तफ़सीर*
     (4) आज़मायश से फ़रमाँबरदार और नाफ़रमान के हाल का ज़ाहिर करना मुराद है.
     (5) इमाम शाफ़ई अलैहिर्रहमत ने इस आयत की तफ़सीर में फ़रमाया कि ख़ौफ़ से अल्लाह का डर, भूख से रमज़ान के रोज़े, माल की कमी से ज़कात और सदक़ात देना, जानों की कमी से बीमारियों से मौतें होना, फलों की कमी से औलाद की मौत मुराद है. इसलिये कि औलाद दिल का फल होते हैं. हदीस शरीफ़ में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जब किसी बन्दे का बच्चा मरता है, अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाता है तुमने मेरे बन्दे के बच्चे की रूह निकाली. वो अर्ज़ करते हैं, हाँ. फिर फ़रमाता है तुमने उसके दिल का फल ले लिया. अर्ज़ करते हैं, हाँ या रब. फ़रमाता है उसपर मेरे बन्दे ने क्या कहा? अर्ज़ करते हैं उसने तेरी तारीफ़ की और “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन” (यानी हम अल्लाह की तरफ से है और उसीकी तरफ़ हमें लौटना है) पढ़ा, फ़रमाता है उसके लिये जन्नत में मकान बनाओ और उसका नाम बैतुल हम्द रखो. मुसीबत के पेश आने से पहले ख़बर देने में कई हिकमते हैं, एक तो यह कि इससे आदमी को मुसीबत के वक़्त सब्र आसान हो जाता है, एक यह कि जब काफ़िर देखें कि मुसलमान बला और मुसीबत के वक़्त सब्र, शुक्र और साबित क़दमी के साथ अपने दीन पर कायम रहता है तो उन्हें दीन की ख़ूबी मालूम हो और उसकी तरफ़ दिल खिंचे. एक यह कि आने वाली मुसीबत पेश आने से पहले की सूचना अज्ञात की ख़बर और नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का चमत्कार है. एक हिकमत यह कि मुनाफ़िक़ों के क़दम मुसीबत की ख़बर से उखड़ जाएं और ईमान वाले और मुनाफ़िक़ का फ़र्क़ मालूम हो जाए.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑤_*
     कि जब उनपर कोई मुसीबत पड़े तो कहे हम अल्लाह के माल में है और हमको उसी की तरफ़ फिरना.
*तफ़सीर*
     हदीस शरीफ़ में है कि मुसीबत के वक़्त “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन” पढ़ना अल्लाह की रहमत लाता है. यह भी हदीस में है कि मूमिन की तकलीफ़ को अल्लाह गुनाह मिटाने का ज़रिया बना देता है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑦_*
ये लोग हैं जिनपर उनके रब की दुरूदें हैं और रहमत, और यही लोग राह पर हैं.
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*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सुन्नी की तारीफ क्या है ?_* #01
     *सवाल :* सुन्नी की तारीफ़ क्या है ?
     *जवाब :* हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमरرضي الله تعالي عنه से रिवायत है की हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : बनी इस्राइल में 71 फिरके (पार्टिया) हो गए थे, जब की मेरी उम्मत में 73 फिरके हो जायेंगे। उनमे एक फिरके को छोड़ कर बाक़ी सारे के सारे फिरके जहन्नमी होंगे।
     सहाबए किराम ने अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाहﷺ ! वो एक फिरका कोनसा है जो जन्नती होगा ?
     आपﷺ ने फ़रमाया : वो लोग उसी मजहब पर डटे रहेंगे जिस पर में और मेरे सहाबा है।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 89*
*✍🏽मिश्कात, 30*

     इस हदिष से मालुम हुआ की हुज़ूरﷺ की ये उम्मत 73 फिरको में बट जायेगी लेकिन उनमे सिर्फ एक फिरका जन्नती होगा जो हुज़ूरﷺ और उनके सहाबा के नक्शे कदम पर चलेगी और उन अक़ीदों पर क़ायम रहेगी जिन अक़ीदों को हुज़ूरﷺ ने उम्मत को दिया और उन अक़ीदों को सहाबा ने माना।
     हुज़ूरﷺ के तरीके पर चलने वाले को *"अहले सुन्नत"* और सहाबा की जमाअत थी इसलिए उनके तरीके पर चलने की वजह से नाम हुआ *"अहले सुन्नत व जमाअत"* यानी हुज़ूरﷺ और जमाअत (सहाबा) के तरीके पर चलने वाला। बाद में हल्का-फुल्का शोर्ट नाम *"सुन्नी"* हुआ।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 3*
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Friday 30 December 2016

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #11
*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_इल्मे आइशा के मुतअल्लिक़ 5 फरामिने मुबारका_*
     1. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर शे'र, तिब और फिक़्ह का आलिम किसी को नही पाया।

     2. हज़रते उर्वहرضي الله تعالي عنه से मरवी एक और रिवायत में तो मज़कूरा उलूम समेत दीगर उलूम का भी तज़किरा है, मेने लोगो में सिद्दीक़ा बिन्ते सिद्दीक़رضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को क़ुरआन, मीरास, हलाल व हराम, शे'र, अक़्वाले अरब और नसब का आलिम नही देखा।

     3. मसहूर हदीस व ताबेइ इमाम शहाबुद्दीन जोहरी अलैरहमा रिवायत करते है की नबिय्ये करीमﷺ का इरशाद है : इस उम्मत की तमाम औरतो ब शुमुल अज़्वाजे नबी के इल्म को अगर जमा कर लिया जाए तो आइशा का इल्म उन सब के इल्म से ज़्यादा होगा।

     4. हज़रते अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर में ने किसी भी खतीब को बलीग़ व ज़हीन नही देखा।

     5. हज़रते मूसा बिन तल्हाرضي الله تعالي عنه फरमाते है : मेने हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها से बढ़ कर किसी को फसीह व बलीग़ नही देखा।
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 31*
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*नमाज़ के 7 फराइज़* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_4 रूकू_*
     इतना झुकना की हाथ बढ़ाए तो घुटने को पहुच जाए ये रूकू का अदना दर्जा है और पूरा ये की पीठ सीधी बिछा दे।
     सुल्ताने मक्कए मुकर्रमा ﷺ का फरमाने अज़मत निशान है : अल्लाह عزوجل बन्दे की उस नमाज़ की तरफ नज़र नहीं फ़रमाता जिस में रूकू व सुजूद के दरमियान पीठ सीधी न करे।

*_5 सुजूद_*
     सुल्ताने दो जहां ﷺ का फरमान है : मुझे हुक्म हुवा की 7 हड्डियों पर सज्दा करू, मुंह और दोनों हाथ और दोनों घुटने और दोनों पन्जे और ये हुक्म हुवा की कपड़े और बाल न समेटु।
*✍🏽सही मुस्लिम, 1/193*
     हर रकअत में दो बार सज्दा फ़र्ज़ है. सज्दे में पेशानी जमना ज़रूरी है। जमने के माना ये है की ज़मीन की सख्ती महसूस हो, अगर किसी ने इस तरह सज्दा किया की पेशानी न जमी तो सज्दा न होगा।
*✍🏽आलमगिरी, 1/70*
     किसी नर्म चीज़ मसलन घास रुई या क़ालीन (carpet) वगैरा पर सज्दा किया तो अगर पेशानी जम गई यानि इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो सज्दा हो जाएगा वरना नहीं।
     आज कल मस्जिद में कार्पेट बिछाने का रवाज पड़ गया है, कार्पेट पर सज्दा करते वक़्त इस बात का ख़ास ख्याल रखना है की पेशानी अच्छी तरह जम जाए वरना नमाज़ न होगी। और नाक की हड्डी न दबी तो नमाज़ मकरुहे तहरीमि वाजीबुल ईआदा होगी।
*✍🏽बहरे शरीअत, 3/71*
     कमानी दार (यानि स्प्रिंग वाले गद्दे) पर पेशानी खूब नहीं जमती लिहाज़ा नमाज़ न होगी।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 176-170*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #115
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤③_*
     ऐ ईमान वालो सब्र और नमाज़ से मदद चाहो बेशक अल्लाह साबिरों (सब्र करने वालों) के साथ है.
*तफ़सीर*
     हदीस शरीफ़ में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को जब कोई सख़्त या कड़ी मुहिम पेश आती तो नमाज़ में मशग़ूल हो जाते, और नमाज़ से मदद चाहने में बरसात की दुआ वाली नमाज़ और हाजत की दुआ वाली नमाज़ भी शामिल है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤④_*
     और जो ख़ुदा की राह में मारे जाएं उन्हें मुर्दा न कहो(2)
बल्कि वो ज़िन्दा हैं,  हाँ तुम्हें ख़बर नहीं (3)
*तफ़सीर*
     (2) यह आयत बद्र के शहीदों के बारे में उतरी. लोग शहीदों के बारे में कहते थे कि वह व्यक्ति मर गया. वह दुनिया की सहूलतों से मेहरूम हो गया. उनके बारे में यह आयत उतरी.
     (3) मौत के बाद ही अल्लाह तआला शहीदों को ज़िन्दगी अता फ़रमाता है. उनकी आत्माओं पर रिज़्क पेश किये जाते हैं, उन्हें राहतें दी जाती हैं, उनके कर्म जारी रहते हैं, सवाब और इनाम बढ़ता रहता है.
     हदीस शरीफ़ में है कि शहीदों की आत्माएं हरे परिन्दों के रूप में जन्नत की सैर करती हैं और वहाँ के मेवे और नेअमते खाती हैं. अल्लाह तआला के फ़रमाँबरदार बन्दों को क़ब्र में जन्नती नेअमतें मिलती हैं.
     शहीद वह सच्चा मुसलमान है जो तेज़ हथियार से ज़बरदस्ती मारा गया हो और क़त्ल से माल भी वाजिब न हुआ हो. या यु़द्ध में मुर्दा या ज़ख़्मी पाया गया हो, और उसने कुछ आसायश न पाई. उसपर दुनिया में यह अहकाम हैं कि उसको न नहलाया जाय, न कफ़न. अपने कपड़ों ही में रखा जाय. उसी तरह उसपर नमाज़ पढ़ी जाए, उसी हालत में दफ़्न किया जाए. आख़िरत में शहीद का बड़ा रूत्बा है.
     कुछ शहीद वो हैं कि उनपर दुनिया के ये अहकाम तो जारी नहीं होते, लेकिन आख़िरत में उनके लिए शहादत का दर्जा है, जैसे डूब कर या जलकर या दीवार के नीचे दबकर मरने वाला, इल्म की तलाश में या हज के सफ़र में मरने वाला, यानी ख़ुदा की राह में मरने वाला, ज़चमी के बाद की हालत में मरने वाली औरत, और पेट की बीमारी और प्लेग और ज़ातुल जुनुब और सिल की बीमारी और जुमे के दिन मरने वाले, वग़ैरह.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #68
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हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا قَادِرُ*
वुज़ू के दौरान हर उज़्व धोते हुए पढ़ने का मामूल बना ले ان شاء الله दुश्मन उस को इग्वा नही कर सकेगा।

41 बार मुश्किल आ पड़े तो पढ़ लीजिये ان شاء الله आसानी हो जाएगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 255*
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Thursday 29 December 2016

*फैज़ाने सिद्दीके अकबर* #10
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सिद्दीके अकबर का बचपन_*
     हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه ने कभी बूत को सज्दा न किया। चन्द बरस की उम्र में आपرضي الله تعالي عنه के वालिद बुतखाने में ले गए और कहा : ये है तुम्हारे बुलन्दो बाला खुदा, इन्हें सज्दा करो। फिर उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए।
     जब आपرضي الله تعالي عنه बूत के सामने तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया : में भूका हु मुझे खाना दे, में नंगा हु मुझे कपडा दे, में पथ्थर मारता हु अगर तू खुदा है तो अपने आप को बचा। वो बूत भला क्या जवाब देता। आपرضي الله تعالي عنه ने एक पथ्थर मारा जिस के लगते ही वो गिर पड़ा और क़ुव्वते खुदादाद की ताब न लाते हुवे टुकड़े टुकड़े हो गया। बाप ने ये हालत देखि तो उन्हें गुस्सा आया, और वहा से आप की माँ के पास लाए, सारा वाक़ीआ बयान किया। माँ ने कहा :
     इसे इस के हाल पर छोड़ दो जब ये पैदा हुवा था तो ग़ैब से आवाज़ आई थी की : ऐ अल्लाह की सच्ची बंदी ! तुझे खुश खबरी हो ये बच्चा अतीक़ है, आसमानों में इसका नाम सिद्दीक़ है, मुहम्मदﷺ का साहिब और रफ़ीक़ है।
     ये रिवायत सिद्दीके अकबरرضي الله تعالي عنه ने खुद मजलिसे अक़दस में बयान की। जब ये बयान कर चुके तो हज़रते जिब्राईल हाज़िरे बारगाह हुवे और अर्ज़ की अबू बक्र ने सच कहा और वो सिद्दीक़ है। और तिन बार यही अलफ़ाज़ दोहराए।
*✍🏽फैज़ाने सिद्दीके अकबर, 36*
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*नमाज़ के 7 फराइज़* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*3 किराअत*
     किराअत इस का नाम है की तमाम हरुफ़ मखारिज से अदा किये जाए की हर हर्फ़ सहीह तौर पर मुमताज़ हो जाए।
     आहिस्ता पढ़ने में भी ये ज़रूरी है की खुद सुन ले।
     अगर हरुफ़ तो सहीह अदा किये मगर इतने आहिस्ता की खुद न सुना और कोई रुकावट मसलन शोरो गुल या उचा सुनने का मरज़ भी नही तो नमाज़ न होइ।
     अगर्चे खुद सुनना ज़रूरी है मगर ये भी एहतियात रहे की आहिस्ता किराअत वाली नमाज़ों में किराअत की आवाज़ दुसरो तक न पहुचे, इसी तरह तस्बिहात वग़ैरा में भी ख्याल रखिये।
     नमाज़ के इलावा भी जहा कुछ कहना या पढ़ना मुक़र्रर किया है इस से भी ये मुराद है की कम अज़ कम इतनी आवाज़ हो की खुद सुन सके मसलन तलाक़ देने, जानवर ज़बह करने के लिये अल्लाह का नाम लेने में इतनी आवाज़ ज़रूरी है की खुद सुन सके।
     दुरुद शरीफ वग़ैरा अवराद पढ़ते हुए भी कम अज़ कम इतनी आवाज़ होनी चाहिये की खुद सुन सके जभी पढ़ना कहलाएगा।
     मुतलक़न एक आयत पढ़ना फ़र्ज़ की दो रकअतो में और वित्र्, सुन्नत और नवाफ़िल की हर रकअत में इमाम व मुनफरीद (तन्हा नमाज़ पढ़ने वाला) पर फ़र्ज़ है।
     इमाम के पीछे मुक्तदि को नमाज़ में किराअत जाइज़ नहीं न सूरतुल फातिहा न आयत। चाहे आहिस्ता किराअत वाली नमाज़ हो या बुलंद आवाज़ में किराअत वाली नमाज़ हो। इमाम की किराअत मुक्तदि के लिये काफी है।
     अगर अकेले फ़र्ज़ नमाज़ पढ रहा है और किसी रकअत में किराअत न की या फ़क़त एक में की नमाज़ फासिद् हो गई।
     फर्ज़ो में ठहर ठहर कर किराअत करे और तरावीह में मुतवस्सीत अंदाज़ पर और रात के नवाफ़िल में जल्द पढ़ने की इजाज़त है, मगर ऐसा पढ़े की समझ में आ सके यानी कम से कम मद का जो दरजा क़ारियो ने रखा है उस को अदा करे वरना हराम है, इस लिये के तरतील से क़ुरआन पढ़ने का हुक्म है।
     आज कल के अक्सर हुफ़्फ़ाज़ इस तरह पढ़ते है की मद का अदा होना तो बड़ी बात है कुछ लफ़्ज़ों के अलावा बाकी लफ्ज़ का पता ही नहीं चलता न तसहिहे हरुफ़ होती बल्कि जल्दी में लफ्ज़ के लफ्ज़ खा जाते है और इस पर तफाखुर होता है की फुला इस क़दर पढ़ता है ! हाला की इस तरह क़ुरआने मजीद पढ़ना हराम है।

*_हरुफ़ की सहीह अदाएगी ज़रूरी है_*
     अक्सर लोग ط ت، س ص ث، ا ء ع، ه ح، ض ذ ظ ز में कोई फ़र्क़ नहीं करते। याद रखिये ! हरुफ़ बदल जाने से अगर माना फासिद् हो गए तो नमाज़ न होगी।
मसलन जिसने "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" में अज़ीम में ( ظ के बजाए ز ) पढ़ दिया नमाज़ जाती रही लिहाज़ा जिस से अज़ीम सहीह अदा न हो वो "सुब्हान रब्बियल करीम" पढ़े।
*✍🏽क़ानूने शरीअत, 1/119*

*_खबरदार❗खबरदार❗खबरदार❗_*
     जिस से हरुफ़ सहीह अदा नहीं होते उस के लिये थोड़ी देर मश्क़ कर लेना काफी नहीं बल्कि लाज़िम है की इन्हें सिखने के लिये रात दिन पूरी कोशिश करे, और अगर सहीह पढ़ने वाले के पीछे नमाज़ पढ़ सकता है तो फ़र्ज़ है की उस के पीछे पढ़े या वो आयते पढ़े जिस के हरुफ़ सहीह अदा कर सकता हो। और ये दोनों सूरते न मुम्किन हों तो ज़मानए कोशिश में उस की अपनी नमाज़ हो जाएगी।
     आज कल काफी लोग इस मरज़ में मुब्तला है की न उन्हें कुरआन सहीह पढ़ना आता है न सिखने की कोशिश करते है। याद रखिये ! इस तरह नमाज़े बर्बाद होती है।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 164-166*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #114
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤②_*
तो मेरी याद करो, मैं तुम्हारा चर्चा करूंगा और मेरा हक़ मानो और मेरी नाशुक्री ना करो.

*तफ़सीर*
     ज़िक्र तीन तरह का होता है (1) ज़बान से (2) दिल में (3) शरीर के अंगों से.
     जबानी ज़िक्र तस्बीह करना, पाकी बोलना और तारीफ़ करना वग़ैरह है. ख़ुत्बा, तौबा इस्तिग़फार, दुआ वग़ैरह इसमें आते हैं.
     दिल में ज़िक्र यानी अल्लाह तआला की नेअमतों को याद करना, उसकी बड़ाई और शक्ति और क्षमता में ग़ौर करना. उलमा जो दीन की बातों में विचार करते हैं, इसी में दाख़िल है.
     शरीर के अंगों के ज़रिये ज़िक्र यह है कि शरीर अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में मशग़ूल हो, जैसे हज के लिये सफ़र करना, यह शारीरिक ज़िक्र में दाख़िल है.
     नमाज़ तीनों क़िस्मों के ज़िक्र पर आधारित है. तस्बीह, तकबीर, सना व क़ुरआन का पाठ तो ज़बानी ज़िक्र है. और एकाग्रता व यकसूई, ये सब दिल के ज़िक्र में है, और नमाज़ में खड़ा होना, रूकू व सिजदा करना वग़ैरह शारीरिक ज़िक्र है.
     इब्ने अब्बास रदियल्लाहो तआला अन्हुमा ने फ़रमाया, अल्लाह तआला फ़रमाता है तुम फ़रमाँबरदारी के साथ मेरा हुक्म मान कर मुझे याद करो, मैं तुम्हें अपनी मदद के साथ याद करूंगा.
     सही हदीस की किताबों में है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि अगर बन्दा मुझे एकान्त में याद करता है तो मैं भी उसको ऐसे ही याद फ़रमाता हूँ और अगर वह मुझे जमाअत मे या सामूहिक रूप से याद करता है तो मैं उसको उससे बेहतर जमाअत में याद करता हूँ.
     क़ुरआन और हदीस में ज़िक्र के बहुत फ़ायदे आए हैं, और ये हर तरह के ज़िक्र को शामिल हैं, ऊंची आवाज़ में किये जाने वाले ज़िक्र भी और आहिस्ता किये जाने वाले ज़िक्र को भी.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #67
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا صَـمَـدُ*
जो कोई इसे 1000 बार पढ़ेगा ان شاء الله दुश्मन पर फ़त्ह पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 255*
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Wednesday 28 December 2016

*नमाज़ के 7 फराइज़* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_2 क़याम_*
     कमी की जानिब क़याम की हद ये है की हाथ बढ़ाए तो घुटनो तक न पहुचे और पूरा क़याम ये है की सीधा खड़ा हो।
     क़याम इतनी देर तक है जितनी देर तक किरअत है। ब क़दरे किराअते फ़र्ज़ क़याम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब में वाजिब और ब क़दरे सुन्नत में सुन्नत।
     फ़र्ज़, वित्र्, इदैन और सुन्नते फ़र्ज़ में क़याम फ़र्ज़ है। अगर बिल उज़्रे सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी।
     खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ होना उज़्र नही बल्कि क़याम उस वक़्त साकित होगा की खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़े होने या सज्दा करने में ज़ख्म बहता है या खड़े होने में क़तरा आता है या चौथाई सित्र खुलता है या किराअत से मजबूर महज़ हो जाता है। युही खड़ा हो सकता है मगर उस से मरज़ में ज्यादती होती है या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बर्दास्त तकलीफ होगी तो बैठ कर पढ़े।
     अगर असा या बैसाखी खादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन है तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर पढ़े।
     अगर सिर्फ इतना खड़ा होना मुमकिन है की खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लेगा तो फ़र्ज़ है की खड़ा हो कर "अल्लाहु अक्बर" कहले और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए।
     बाज़ मसाजिद में कुर्सियो का इंतिज़ाम भी होता है, बाज़ बूढ़े वग़ैरा उन पर बैठ कर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ते है हाला की चल कर आए होते है, नमाज़ के बाद खड़े खड़े बातचीत भी कर लेते है, ऐसे लोग अगर बिगैर इजाज़ते शरई बैठ कर नमाज़े पढ़ेंगे तो उन की नमाज़े न होगी।
     खड़े हो कर पढ़ने की कुदरत हो जब भी बैठ कर नफ्ल पढ़ सकते है मगर खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه से मरवी है, रहमते आलम ने इरशाद फ़रमाया : बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े हो कर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा षवाब) है।
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 1/253*
     अलबत्ता उज़्र की वजह से बैठ कर पढ़े तो षवाब में कमी न होगी ये जो आज कल रवाज पड गया है की नफ्ल बैठ कर पढ़ा करते है ब ज़ाहिर ये मालुम होता है की शायद बैठ कर पढ़ने को अफज़ल समझते है, ऐसा है तो उन का ख्याल गलत है। वित्र् के बाद जो 2 रकअत नफ्ल पढ़ते है उन का भी यही हुक्म है की खड़े हो कर पढ़ना अफज़ल है।
*✍🏽बहारे शरीअत, 4/17*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 163*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #113
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤ⓞ_*
     और ऐ मेहबूब तुम जहां से आओ अपना मुंह मस्जिदें हराम की तरफ़ करो और ऐ मुसलमानों तुम जहां कहीं हो अपना मुंह उसी की तरफ़ करो कि लोगों को तुमपर कोई हुज्जत (तर्क) न रहे(3)
मगर जो उनमें ना इन्साफ़ी करें (4)
तो उनसे न डरो और मुझसे डरो और यह इसलिये है कि मैं अपनी नेअमत तुमपर पूरी करूं और किसी तरह तुम हिदायत पाओ.
*तफ़सीर*
     (3) और काफ़िर को यह ताना करने का मौक़ा न मिले कि उन्होंने क़ुरैश के विरोध में हज़रत इब्राहीम और इस्माईल अलैहिमस्सलाम का क़िबला भी छोड़ दिया जबकि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनकी औलाद में है और उनकी बड़ाई और बुज़ुर्गी को मानते भी हैं.
     (4) और दुश्मनी के कारण बेजा ऐतिराज़ करें.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤①_*
     जैसा हमने तुममें भेजा एक रसूल तुम में से (5)
कि तुमपर हमारी आयतें तिलावत करता है (पढ़ता है) और तुम्हें पाक करता (6)
और किताब और पुख़्ता इल्म सिखाता है (7)
और तुम्हें वह तालीम फ़रमाता है जिसकी तुम्हें जानकारी न थी.
*तफ़सीर*
     (5) यानी सैयदे आलम मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
     (6) नापाकी, शिर्क और गुनाहों से.
     (7) हिकमत से मुफ़स्सिरीन ने फ़िक़्ह मुराद ली है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #66
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا اَحَدُ*
जो कोई इस इस्म को 9 मर्तबा पढ़ कर हाकिम के आगे जाए, ان شاء الله इज़्ज़त और सर्फराज़ी पाएगा।
जो तन्हा इसे 1000 बार पढ़ेगा ان شاء الله नेक बन जाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 255*
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Tuesday 27 December 2016

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #16
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​जंगे खन्दक*​ #01
     सि.5 हि. की तमाम लड़ाइयो में ये जंग सब से ज़्यादा मशहूर और फैसला कुन जंग है चुकी दुश्मनो से हिफाज़त के लिये शहरे मदीना के गिर्द खन्दक खोदी गई थी इस लिये ये लड़ाई "जंगे खन्दक" कहलाती है और चुकी तमाम कुफ़्फ़ारे अरब ने मुत्तहिद हो कर इस्लाम के खिलाफ ये जंग की थी इस लिये इस लड़ाई का दूसरा नाम "जंगे अहज़ाब" (तमाम जमाअतो की मुत्तहिदा जंग) है, क़ुरआन में इस लड़ाई का तज़किरए इसी नाम के साथ आया है।

*_जंगे खन्दक का सबब_*
     गुज़श्ता अवराक़ में हम ये लिख चुके है की "क़बिलए बनू नज़ीर" के यहूदी जब मदीने से निकाल दिये गए तो उन में से यहूदियो के चन्द रुअसा "खैबर" में जा कर आबाद हो गए और खैबर के यहूदियो ने उन लोगो का इतना ऐज़ाज़ों इकराम किया की सलाम बिन मशकम व इब्ने अबिल हुकैक व हुयय बिन अख्तब व किनाना बिन अर्रबिअ को अपना सरदार मान लिया ये लोग चुकी मुसलमानो के खिलाफ गैज़ो गज़ब में भरे हुए थे और इन्तिक़ाम की आग इन के सिनो में दहक रही थी इस लिये इन लोगो ने मदीने पर एक ज़बर दस्त हमले की स्किम बनाई।
     चुनांचे ये तीनो इस मक़सद के पेशे नज़र मक्का गए और कुफ़्फ़ारे कुरैश से मिल कर ये कहा की अगर तुम लोग हमारा साथ दो तो हम लोग मुसलमानो को सफहाए हस्ती से नेस्तो नाबूद कर सकते है। कुफ़्फ़ारे कुरैश तो इस के भूके ही थे फौरन ही उन लोगो ने यहूदियो की हा में हा मिला दी। कुफ़्फ़ारे कुरैश से साज़ बज़ कर लेने के बाद इन तीनो यहूदियो ने "क़बिलए बनू गफतन" का रुख किया और खैबर की आधी आमदनी देने का लालच दे कर उन लोगो को भी मुसलमानो के खिलाफ जंग के लिये आमादा कर लिया।
     फिर बनू गफतन ने अपने हलफ "बनू असद" को भी जंग के लिये तैयार कर लिया। इधर यहूदियो ने भी अपने हलफ "क़बिकाए बनू असअद" को भी अपना हमनवा बना लिया और कुफ़्फ़ारे कुरैश ने अपनी रिश्तेदारियों की बिना पर "क़बिलए बनू सुलैम" को भी अपने साथ मिला लिया।
     गर्ज़ इस तरह तमाम क़बाइले अरब के कुफ़्फ़ार ने मिलजुल कर एक लश्करे ज़र्रार तैयार कर लिया जिस की तादाद 10,000 थी और अबू सुफ़यान इस पुरे लश्कर का सिपह सालार बन गया।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 323*
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*नमाज़ के 7 फराइज़* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

1 तकबीरे तहरीमा, 2 क़याम, 3 किरआत, 4 रूकू, 5 सुजूद, 6 कादए आख़िरा, 7 खुरूजे बिसुन्इही।

*_1 तकबीरे तहरीमा_*
     दर हक़ीक़त तकबीरे तहरीमा (यानि तकबीरे ऊला) शराइते नमाज़ में से है मगर नमाज़ के अफआल से बिलकुल मिली हुई है इस लिये इसे नमाज़ के फराइज़ में भी शुमार किया गया है।

     मुक्तदि ने तकबीरे तहरीमा का लफ्ज़ "अल्लाह" इमाम के साथ कहा मगर "अक्बर" इमाम से पहले खत्म कर लिया तो नमाज़ न होगी।

     इमाम को रूकू में पाया और तकबीरे तहरिमा कहता हुवा रूकू में गया यानि तकबीर उस वक़्त खत्म हुई की हाथ बढ़ाए तो घुटने तक पहुच जाए, नमाज़ न होगी।
     ऐसे मौक़े पर क़ायदे के मुताबिक़ पहले खड़े खड़े तकबीरे तहरिमा कह लीजिये इस के बाद अल्लाहु अक्बर कहते हुए रूकू कीजिये, इमाम के साथ अगर रूकू में मामूली सी भी शिर्कत हो गई तो रकअत मिल गई अगर आप के रूकू में दाखिल होने से क़ब्ल इमाम खड़ा हो गया तो रकअत न मिली।

     जो शख्स तकबीर के तलफ़्फ़ुज़ पर क़ादिर न हो मसलन गूंगा हो या किसी और वजह से ज़बान बन्द हो गई हो उस पर तलफ़्फ़ुज़ लाज़िम नही, दिल में इरादा काफी है।
     लफ़्ज़े अल्लाह को "आल्लाह" या अक्बर को "आक्बर" या "अकबार" कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर इनके माना फासिदा समझ कर जानबुझ कर कहे तो काफ़िर है।

     पहली रकअत का रूकू मिल गया तो तकबीरे ऊला की फ़ज़ीलत पा गया।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 161*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④⑧_*
     और एक के लिये तवज्जह की सम्त (दिशा) है कि वह उसी की तरफ़ मुंह करता है तो ये चाहो कि नेकियों में औरों से आगे निकल जाएं तुम कहीं हो अल्लाह तुम सब को इकट्ठा ले आएगा बेशक अल्लाह जो चाहे करें.
*तफ़सीर*
     क़यामत के दिन सबको जमा फ़रमाएगा और कर्मों का बदला देगा.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④⑨_*
     और जहां से आओ अपना मुंह मस्जिदें हराम की तरफ़ करों और वह ज़रूर तुम्हारे कामों से ग़ाफ़िल नहीं.
*तफ़सीर*
     यानी चाहे किसी शहर से सफ़र के लिये निकलो, नमाज़ में अपना मुंह मस्जिदे हराम (काबे) की तरफ़ करो.
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हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا وَاحِدُ*
जिसको अकेले में डर लगता हो, 1001 बार तन्हाई में पढ़ ले ان شاء الله उस के दिल से खौफ जाता रहा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 255*
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Monday 26 December 2016

*नमाज़ की 6 शराइत* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*5. निय्यत*
     निय्यत दिल के पक्के इरादे का नाम है।ज़बान से निय्यत ज़रूरी नहीं अलबत्ता दिल में निय्यत हाज़िर होते हुए ज़बान से कह लेना बेहतर है। अरबी में कहना भी ज़रूरी नहीं उर्दू वग़ैरा किसी भी ज़बान में कह सकते है।
     निय्यत में ज़बान से कहने का एतिबार नही यानि अगर दिल में मसलन ज़ोहर की निय्यत हो और ज़बान से लफ़्ज़े असर निकला तब भी ज़ोहर की नमाज़ हो गई।
निय्यत का अदना दर्जा ये है की अगर उस वक़्त कोई पूछे की कौन सी नमाज़ पढ़ते हो ? तो फौरन बता दे। अगर हालत ऐसी है की सोच कर बताएगा तो नमाज़ न हुई।
     फ़र्ज़ नमाज़ में निय्यते फ़र्ज़ भी ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की आज की ज़ोहर की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ता हु।
     दुरुस्त तरीन ये है की नफ्ल, सुन्नत और तरावीह में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है मगर एहतियात ये है की तरावीह में तरावीह या सुन्नते वक़्त की निय्यत करे और बाकी सुन्नतो में सुन्नत या सरकारे मदीना की पैरवी की निय्यत करे, इस लिये की बाज़ मशाइख इन में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत को नाकाफी क़रार देते है।
     नमाज़े नफ्ल में मुतलक़ नमाज़ की निय्यत काफी है अगर्चे नफ्ल निय्यत में न हो। *ये निय्यत की मुह मेरा किब्ला शरीफ की तरफ है* शर्त नही।
     इक़्तिदा में मुक्तदि का इस तरह निय्यत करना भी जाइज़ है की जो नमाज़ इमाम की है वो नमाज़ मेरी है।
     नमाज़े जनाज़ा की निय्यत ये है *"नमाज़ अल्लाह के लिये और दुआ इस मय्यित के लिये"।*
     वाजिब में वाजिब की निय्यत करना ज़रूरी है और इसे मुअय्यन भी कीजिये मसलन ईदुल फ़ित्र, ईदुल अज़्हा, नज़्र, नमाज़े बाद तवाफ़ (वाजीबुत्तवाफ) या वो नफ्ल नमाज़ जिस को जानबुझ कर फासिद् किया हो की उसकी क़ज़ा भी वाजिब हो जाती है।
     सज्दए शुक्र अगर्चे नफ्ल है मगर उस में भी निय्यत ज़रूरी है मसलन दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए शुक्र करता हु।
     सज्दए सहव में भी "साहिबे नहरुल फाइक़" के नज़दीक निय्यत ज़रूरी है। यानि उस वक़्त दिल में ये निय्यत हो की में सज्दए सहव करता हु।

*6. तकबीरे तहरीमा*
     यानि नमाज़ को "अल्लाहु अक्बर" कह कर शुरू करना ज़रूरी है।
*नमाज़ के अहकाम, सफा  159-160*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #111
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④⑥_*
जिन्हें हमने किताब अता फ़रमाई (14)
वो उस नबी को ऐसा पहचानते हैं जैसे आदमी अपने बेटों को पहचानता है (15)
और बेशक उनमें एक गिरोह (समूह) जान बूझकर हक़ (सच्चाई) छुपाते हैं(16)

*तफ़सीर*
     (14) यानी यहूदियों और ईसाईयों के उलमा.
     (15) मतलब यह है कि पिछली किताबों में आख़िरी ज़माने के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के गुण ऐसे साफ़ शब्दों में बयान किये गए हैं जिनसे किताब वालों के उलमा को हुज़ूर के आख़िरी नबी होने में कुछ शक शुबह बाक़ी नहीं रह सकता और वो हुज़ूर के इस उच्चतम पद को पूरे यक़ीन के साथ जानते हैं. यहूदी आलिमों में से अब्दुल्लाह बिन सलाम इस्लाम लाए तो हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने उनसे पूछा कि आयत “यअरिफ़ूनहू” (वो इस नबी को ऐसा पहचानते हैं……..) में जो पहचान बयान की गई है उसकी शान क्या है. उन्होंने फ़रमाया, ऐ उमर, मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को देखा तो बग़ैर किसी शुबह के पहचान लिया और मेरा हुज़ूर को पहचानना अपने बेटों के पहचानने से कहीं ज़्यादा भरपूर और सम्पूर्ण है. हज़रत उमर ने पूछा, वह कैसे ? उन्होंने कहा मैं गवाही देता हूँ कि हुज़ूर अल्लाह की तरफ़ से उसके भेजे हुए रसूल हैं, उनके गुण अल्लाह तआला ने हमारी किताब तौरात में बयान फ़रमाए हैं. बेटे की तरफ़ से ऐसा यक़ीन किस तरह हो. औरतों का हाल ऐसा ठीक ठीक किस तरह मालूम हो सकता है. हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने उनका सर चूम लिया. इससे मालूम हुआ कि ऐसी दीनी महब्बत में जिसमें वासना शामिल न हो, माथा चूमना जायज़ है.
     (16) यानी तौरात और इन्जील में जो हुज़ूर की नअत और गुणगान है, किताब वालों के उलमा का एक गुट उसको हसद, ईर्ष्या और दुश्मनी से जानबूझ कर छुपाता है. सच्चाई का छुपाना गुनाह और बुराई है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④⑦_*
( ऐ सुनने वाले) ये सच्चाई है तेरे रब की तरफ़ से (या सच्चाई वही है जो तेरे रब की तरफ़ से हो) तो ख़बरदार तू शक ना करना.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #64
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مَاجِدُ*
10 बार पढ़ कर शरबत वगैरा पर दम कर के जो पि लिया करे ان شاء الله बीमार न होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 255*
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Sunday 25 December 2016

*शाने खातुने जन्नत* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_तसबिहे फातिमा की फ़ज़ीलत_*
     सय्यिदे कौनेन की प्यारी लाडली शाहज़ादि, खतूने जन्नत ,बीबी फातिमाرضي الله تعالي عنها खुद तन्दूर में रोटिया लगाया करती ,घर में झाड़ू देती और चक्की पिसती थी जिस से आप के हाथों में छाले पड गए थे ,रंग मुबारक मुतगय्यर और कपडे गर्द आलूद हो गए थे। एक दफा खादिम की तलब में बारगाहे मुस्तफ़ाﷺ में हाज़िर हुई तो तसबिहे फातिमा का तोहफा मिला.
     चुनांचे हज़रते सय्यिदूना अबू हुरैराرضي الله تعالي عنه फरमाते हे की हज़रते सय्यिदुना फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها आकाए नामदार, दो आलम के मालिकों मुख़्तारﷺ की बारगाह में हाज़िर हुई और आपﷺ से खादिम का सुवाल किया: हुज़ूरﷺ ने इरशाद  फ़रमाया: तुम्हे हमारे पास खादिम तो नहीं मिलेगा, क्या में तुम्हे ऐसी चीज़ न बताऊ जो खादिम से बेहतर है? तुम जब बिस्तर पर जाओ तो 33 बारسبحان الله 33 बारالحمد لله और 34 बारالله اكبر पढ़ लिया करो।

*_इस्लामी बहनो के लिये सिरते सालिहाते उम्मत_*
     हज़रते फातिमाرضي الله تعالي عنه के ज़िक्र करदा वाक़ीए से पता चलता है की ताजदारे मदीनाﷺ अपनी लाड़ली शहज़ादी के लिये येही पसंद फरमाते है की वो घर के काम-काज खुद ही करे, इससे इस्लामी बहनो के लिये एक राहे अमल मुतअय्यन होती ही।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽शाने खातुने जन्नत, 33*
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*नमाज़ की 6 शराइत* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*4 वक़्त*
     जो नमाज़ पढ़नी है उसका वक़्त होना ज़रूरी है। मसलन आज की नमाज़े असर अदा करना है तो ये ज़रूरी है की असर का वक़्त शुरू हो जाए अगर वक़्ते असर शुरू होने से पहले ही पढ़ ली तो नमाज़ न होगी।
     उमुमन मसाजिद में निज़ामुल अवक़ात के नक़्शे आवेज़ा होते है उन में जो मुस्तनद तौकीद दा के मुरत्तब करदा और उलमए अहले सुन्नत के मुसद्दक़ा हो उन से नमाज़ों के अवक़ात मालुम करने में सहूलत रहती है।
     इस्लामी बहनो के लिये अव्वल वक़्त में नमाज़े फ़ज्र अदा करना मुस्तहब है और बाक़ी नमाज़ों में बेहतर ये है की मर्दों की जमाअत का इन्तिज़ार करे, जब जमाअत हो चुके फिर पढ़े।

*_अवक़ाते मकरुहा_*
     तुलुए आफताब से ले कर 20 मिनिट बाद तक
     गुरुबे आफताब से 20 मिनिट पहले।
     निस्फुन्न्हार यानि ज़हवए कुब्रा से ले कर ज़वाले आफताब तक।
     इन तीनो अवक़ात में कोई नमाज़ जाइज़ नही न फ़र्ज़ न वाजिब न नफ्ल न क़ज़ा।
     हा अगर उस दिन की नमाज़े असर नही पढ़ी थी और मकरुह वक़्त शुरू हो गया तो पढ़ ले अलबत्ता इतनी ताख़ीर करना हराम है।

*_दौराने नमाज़ मकरूह वक़्त दाखिल हो जाए तो ?_*
     गुरुबे आफताब से कम से कम 20 मिनिट क़ब्ल नमाज़े असर का सलाम फिर जाना चाहिए जैसा के आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : नमाज़े असर में जितनी ताखीर हो अफज़ल है जब कि वक़्ते कराहत से पहले पहले खत्म हो जाए।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 5/156*
     फिर अगर इसने एहतियात की और नमाज़ में तत्वील की (यानी तूल दिया) कि वक़्ते कराहत वस्ते नमाज़ में आ गया जब भी इस पर ऐतिराज़ नही।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 5/139*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 157-158*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #110
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④⑤_*
और अगर तुम उन किताबियों के पास हर निशानी लेकर आओ वो तुम्हारे क़िबले की पैरवी (अनुकरण) न करेंगे (11)
और न तुम उनके क़िबले की पैरवी करो (12)
और आपस में एक दूसरे के क़िबले के ताबे(फ़रमाँबरदार) नहीं (13)
और ( ऐ सुनने वाले जो कोई भी हो ) अगर तू उनकी ख़्वाहिशों पर चला बाद इसके कि तुझे इल्म मिल चुका तो उस वक़्त तू ज़रूर सितमगार (अन्यायी) होगा.

*तफ़सीर*
     (11) क्योंकि निशानी उसको लाभदायक हो सकती है जो किसी शुबह की वजह से इन्कारी हो. ये तो हसद और दुश्मनी के कारण इन्कार करते हैं, इन्हें इससे क्या नफ़ा होगा.
     (12) मानी ये हैं कि यह क़िबला स्थगित न होगा. तो अब किताब वालों को यह लालच न रखना चाहिये कि आप उनमें से किसी के क़िबले की तरफ़ रूख़ करेंगे.
     (13) हर एक का क़िबला अलग है. यहूदी तो बैतुल मक़दिस के गुम्बद को अपना क़िबला क़रार देते हैं और ईसाई बैतुल मक़दिस के उस पूर्वी मकान को, जहाँ हज़रत मसीह की रूह डाली गई. (फ़त्ह).
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Saturday 24 December 2016

*फैज़ाने फ़ारुके आज़म* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*​फ़ारुके आज़म का हुस्ने ज़ाहिरी*​ #02
*_फ़ारुके आज़म की दाढ़ी मुबारक_*
     हज़रते अबू उमरرضي الله تعالي عنه फरमाते ही की अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उमर फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه की दाढ़ी मुबारक घनी व घुंगरियाली थी।
     आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है : शैखे मुहक़्क़ीक़ मदारिजुन्नुबुव्वत में फरमाते है : अस्लाफ की आदत इस बारे में मुख़्तलिफ़ थी चुनांचे, मन्कुल है की अमीरुल मुअमिनिन हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم की दाढ़ी इन के सीने को भर देती थी इस तरह हज़रते फ़ारुके आज़म और हज़रते उष्मानرضي الله تعالي عنهم की मुबारक दाढ़िया थी, और लिखते है की शैख़ मोहयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानीرضي الله تعالي عنه लंबी और चौड़ी दाढ़ी वाले थे।

*_फ़ारुके आज़म की मुछे_*
     आपرضي الله تعالي عنه की मुछे दरमियान से पस्त और दाए बाए बढ़ी हुई थी। हज़रते ज़र बिन हुबैशرضي الله تعالي عنه फरमाते है : आप की मुछो के बाल दाए बाए से काफी बढ़े हुवे थे और उन में भूरा पन भी था।
     हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, आप को जलाल आता तो अपनी मुछो को ताव देते थे।
     हज़रते अस्लम रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है, फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه को जब जलाल आता तो अपनी मुछो को अपनी मुह की तरफ करते और इन में फुक मारते।

*_फ़ारुके आज़म मेहदी से खिज़ाब फरमाते_*
     हज़रते अनस बिन मालिकرضي الله تعالي عنه से रिवायत है, अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه ने मेहदी और कतम दोनों का खिज़ाब लगाया और फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه ने फ़क़त मेहदी का खिज़ाब लगाया।
     एक रिवायत में यु फ़रमाया है, फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه अपने बालो को मेहदी से आरास्ता किया करते थे। हज़रते खालिद बिन अबी बक्रرضي الله تعالي عنه से रिवायत है फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه अपनी दाढ़ी और सर में मेहदी लगाया करते थे।

*_फ़ारुके आज़म से मुशाबे सहाबी_*
     हज़रते खालिद बिन वलीदرضي الله تعالي عنه अमीरुल मुअमिनिन उमर फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه की ज़ाहिरी शक्लो सूरत के मुशाबे थे।
*✍🏽फैज़ाने फ़ारुके आज़म, 61*
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #62
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا قَيـُّوْمُ*
सुब्ह के वक़्त जो कोई इस को कसरत से पढ़ेगा ان شاء الله उस का तसर्रुफ़ दिलो में ज़ाहिर होगा, यानी लोग उस को दोस्त रखेगे।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Friday 23 December 2016

*फैज़ाने फ़ारुके आज़म* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*फ़ारुके आज़म का हुस्ने ज़ाहिरी* #01
*_फ़ारुके आज़म की मुबारक रंगत_*
     हज़रते इब्ने कुतैबा रहमतुल्लाह अलैह फरमाते है की "कूफा के लोगो ने अमीरुल मुअमिनिन हज़रते उमर फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه का जो हुल्या बयान किया है उस के मुताबिक़ आप का रंग गहरा गन्दुमी था। जब की अहले हिजाज़ ने जो आप का हुल्या बयान किया है उसके मुताबिक़ आप की रंगत बहुत सफेद थी बल्कि ऐसी सफेद थी जेसे चुना होता है और लगता था की आप के जिसमे मुबारक में खून ही नही है।
     अल्लामा वाकिदि अलैरहमा फरमाते है  की जिन्होंने आपرضي الله تعالي عنه के गन्दुमी रंग होने का क़ौल किया है उन की बात दुरुस्त नही की उन्हों ने आप को "आमुर्रमादा" यानी कहत साली वाले साल देखा था। आप ने उस साल दूध और चर्बी वगैरा खाना छोड़ दिया था सिर्फ ज़ैतून का तेल इस्तिमाल फरमाते जिस के सबब आप की रंगत गन्दुमी हो गई थी। अल्लामा इब्ने हजर असक्लानि अलैरहमा ने भी बाज़ फारुकी हज़रात से यही क़ौल नक़ल किया है।

*_फ़ारुके आज़म का क़दे मुबारक_*
     हज़रते ज़र बिन हुबैश और अक्सर लोगो ने यही बयान किया है की अमीरुल मुअमिनिन उमर फारूकرضي الله تعالي عنه लम्बे क़द वाले और भारी जिस्म वाले थे। चन्द लोगो में जब आप खड़े होते तो यु मालुम होता था की आप दीगर लोगो को ऊपर से देख रहे है।

*_फ़ारुके आज़म की मुबारक आँखे और रुखसार_*
     हज़रते ज़र बिन हुबैशرضي الله تعالي عنه फरमाते है की अमीरुल मुअमिनिन फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه की आँखे लाल-सुर्ख और रुखसार बहुत ही पतले और कमज़ोर थे।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*फैज़ाने फ़ारुके आज़म, 59*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #108
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④③_*
     और बात यूं ही है कि हमने तुम्हें किया सब उम्मतों से अफ़ज़ल, कि तुम लोगों पर गवाह हो(4)
और ये रसूल तुम्हारे निगहबान और गवाह(5)
और ऐ मेहबूब तुम पहले जिस क़िबले पर थे हमने वह इसी लिये मुक़र्रर (निश्चित) किया था कि देखें कौन रसूल के पीछे चलता है और कौन उल्टे पांव फिर जाता है(6)
और बेशक यह भारी थी मगर उनपर, जिन्हें अल्लाह ने हिदायत की, और अल्लाह की शान नहीं कि तुम्हारा ईमान अकारत करे(7)
बेशक अल्लाह आदमियों पर बहुत मेहरबान, मेहर (कृपा) वाला है और.

*तफ़सीर*
     (4) दुनिया और आख़िरत में. दुनिया में तो यह कि मुसलमान की गवाही ईमान वाले और काफ़िर सबके हक़ में शरई तौर से भरोसे वाली है और काफ़िर की गवाही मुसलमान पर माने जाने के क़ाबिल नहीं. इससे यह भी मालूम हुआ कि किसी बात पर इस उम्मत की सर्वसहमति अनिवार्य रूप से क़ुबूल किय जाने योग्य है. गुज़रे लोगों के हक़ में भी इस उम्मत की गवाही मानी जाएगी. रहमत और अज़ाब के फ़रिश्ते उसके मुताबिक अमल करते हैं.
     सही हदीस की किताबों में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सामने एक जनाज़ा गुज़रा. आपके साथियों ने उसकी तारीफ़ की. हुज़ूर ने फ़रमाया “वाजिब हुई”. फिर दूसरा जनाज़ा गुज़रा. सहाबा ने उसकी बुराई की. हुज़ूर ने फ़रमाया “वाजिब हुई”. हज़रत उतर ने पूछा कि हुज़ूर क्या चीज़ वाजिब हुई? फ़रमाया : पहले जनाज़े की तुमने तारीफ़ की, उसके लिये जन्नत वाजिब हुई. दूसरे की तुमने बुराई की, उसके लिये दोज़ख वाजिब हुई. तुम ज़मीन में अल्लाह के गवाह हो. फिर हुज़ूर ने यह आयत तिलावत फ़रमाई. ये तमाम गवाहियाँ उम्मत के नेक और सच्चे लोगों के साथ ख़ास हैं, और उनके विश्वसनीय होने के लिये ज़बान की एहतियात शर्त है. जो लोग ज़बान की एहतियात नहीं करते और शरीअत के ख़िलाफ़ बेजा बातें उनकी ज़बान से निकलती हैं और नाहक़ लानत करते हैं, सही हदीस की किताबों में है कि क़यामत के दिन न वो सिफ़ारिशी होंगे और न गवाह.
     इस उम्मत की एक गवाही यह भी है कि आख़िरत में जब तमाम अगली पिछली उम्मतें जमा होंगी और काफ़िरों से फ़रमाया जाएगा, क्या तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से डराने और निर्देश पहुंचाने वाले नहीं आए, तो वो इन्कार करेंगे और कहेंगे कोई नहीं आया. नबियों से पूछा जाएगा, वो अर्ज़ करेंगे कि ये झूटे हैं, हमने इन्हें तेरे निर्देश बताए. इस पर उनसे दलील तलब की जाएगी. वो अर्ज़ करेंगे कि हमारी गवाह उम्मते मुहम्मदिया है. ये उम्मत पैग़म्बरों की गवाही देगी कि उन हज़रात ने तबलीग़ फ़रमाई. इस पर पिछली उम्मतों के काफ़िर कहेंगे, इन्हें क्या मालूम, ये हमसे बाद हुए थे. पूछा जाएगा तुम कैसे जानते हो. ये अर्ज़ करेंगे, या रब तूने हमारी तरफ़ अपने रसूल मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को भेजा, क़ुरआन पाक उतारा, उनके ज़रिये हम क़तई यक़ीनी तौर पर जानते हैं कि नबियों ने तबलीग़ का फ़र्ज़ भरपूर तौर से अदा किया. फिर नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से आपकी उम्मत के बारे में पूछा जाएगा. हुजू़र उनकी पुष्टि फ़रमाएंगे. इससे मालूम हुआ कि जिन चीज़ों की यक़ीनी जानकारी सुनने से हासिल हो उसपर गवाही दी जा सकती है.
     (5) उम्मत को तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बताए से उम्मतों के हाल और नबियों की तबलीग़ की क़तई यक़ीनी जानकारी है और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के करम से नबुव्वत के नूर के ज़रिये हर आदमी के हाल और उसके ईमान की हक़ीक़त और अच्छे बुरे कर्मों और महब्बत व दुश्मनी की जानकारी रखते हैं. इसीलिये हुज़ूर की गवाही दुनिया में शरीअत के हुक्म से उम्मत के हक़ में मक़बूल है. यही वजह है कि हुज़ूर ने अपने ज़माने के हाज़िरीन के बारे में जो कुछ फ़रमाया, जैसे कि सहाबा और नबी के घर वालों की बुज़ुर्गी और बड़ाई, या बाद वालों के लिये, जैसे हज़रत उवैस और इमाम मेहदी वग़ैरह के बारे में, उस पर अक़ीदा रखना वाजिब है. हर नबी को उसकी उम्मत के कर्मों की जानकारी दी जाती है. ताकि क़यामत के दिन गवाही दे सकें चूंकि हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की गवाही आम होगी इसलिये हुज़ूर तमाम उम्मतों के हाल की जानकारी रखते हैं.
     यहाँ शहीद का मतलब जानकार भी हो सकता है, क्योंकि शहादत का शब्द जानकारी और सूचना के लिये भी आया है. अल्लाह तआला ने फ़रमाया “वल्लाहो अला कुल्ले शैइन शहीद” यानी और अल्लाह हर चीज़ की जानकारी रखता है. (सूरए मुजादलह, आयत 6)
     (6) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पहले काबे की तरफ़ नमाज़ पढ़ते थे. हिजरत के बाद बैतुल मक़दिस की तरफ़ नमाज़ पढ़ने का हुक्म हुआ. सत्तरह महीने के क़रीब उस तरफ़ नमाज़ पढ़ी. फिर काबा शरीफ़ की तरफ़ मुंह करने का हुक्म हुआ. क़िबला बदले जाने की एक वजह यह बताई गई कि इससे ईमान वाले और काफ़िर में फ़र्क़ और पहचान साफ़ हो जाएगी. चुनान्वे ऐसा ही हुआ.
     (7) बैतुल मक़दिस की तरफ़ नमाज़ पढ़ने के ज़माने में जिन सहाबा ने वफ़ात पाई उनके रिश्तेदारों ने क़िबला बदले जाने के बाद उनकी नमाज़ो के बारे में पूछा था, उसपर ये आयत उतरी और इत्मीनान दिलाया गया कि उनकी नमाज़ें बेकार नहीं गई, उनपर सबाब मिलेगा. नमाज़ को ईमान बताया गया क्योंकि इसकी अदा और जमाअत से पढ़ना ईमान की दलील है.
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हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا حَيُّ*
जो कोई बीमार हो इस इस्म को 1000 बार पढ़े, ان شاء الله सिहहत पाएगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Thursday 22 December 2016

*नमाज़ का तरीका* #06
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     फिर 4 रकअते पूरी करके कादए आखिरह में तशह्हुद के बाद दुरुदे इब्राहिम पढ़िये,

फिर दुआए मासुरा पढ़िये

     फिर नमाज़ खत्म करने के लिये पहले दाए कन्धे की तरफ मुह कर के *"अस्सलामु अलैक वरहमतुल्लाह"* कहिये और इसी तरह बाई तरफ।

अब नमाज़ खत्म हुई।

     इस्लामी भइयो और बहनो के दिये हुए इस तरीकए नमाज़ में बाज़ बाते फ़र्ज़ है की इसके बगैर नमाज़ होगी ही नही,

     बाज़ बाते वाजिब की इस का जानबूझ कर छोड़ना गुनाह और तौबा करना और नमाज़ का फिर से पढ़ना वाजिब, और भूल कर छूटने से सज्दए सहव वाजिब

     और बाज़ सुन्नते मुअक्कदा है की जिस के छोड़ने की आदत बना लेना गुनाह है

     और बाज़ मुस्तहब है की जिस का करना सवाब और न करना गुनाह नही।

*✍🏽बहारे शरीअत, 3/66*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 154-155*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #107
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④②_*
अब कहेंगे (1)
बेवकूफ़ लोग किसने फेर दिया मुसलमानों को, उनके इस क़िबले से, जिसपर थे (2)
तुम फ़रमा दो कि पूरब और पश्चिम सब अल्लाह ही का है (3)
जिसे चाहे सीधी राह चलाता है.

*तफ़सीर*
     (1) यह आयत यहूदियों के बारे में नाज़िल हुई, जब बैतुल मक़दिस की जगह काबे को क़िबला बनाया गया. इस पर उन्होंने ताना किया क्योंकि उन्हें यह नागवार था और वो स्थगन आदेश के क़ायल न थे.
     एक क़ौल पर, यह आयत मक्के के मुश्रिकों के और एक क़ौल पर, मुनाफ़िक़ों के बारे में उतरी और यह भी हो सकता है कि इससे काफ़िरों के ये सब गिरोह मुराद हों, क्योंकि ताना देने और बुरा भला कहने में सब शरीक थे. और काफ़िरों के ताना देने से पहले क़ुरआने पाक में इसकी ख़बर दे देना ग़ैबी ख़बरों में से है.
     तअना देने वालों को बेवक़ूफ़ इसलिये कहा गया कि वो निहायत खुली बात पर ऐतिराज करने लगे जबकि पिछले नबीयों ने आपका लक़ब “दो क़िबलों वाला” बताया भी था और क़िबले का बदला जाना ख़बर देते आए. ऐसे रौशन निशान से फ़ायदा न उठाया और ऐतिराज किये जाना परले दर्जे की मुर्खता है.
     (2) क़िबला उस दिशा को कहते हैं जिसकी तरफ़ आदमी नमाज़ में मुंह करता है. यहाँ क़िबला से बैतुल मक़दिस मुराद है.
     (3) उसे इख़्तियार है जिसे चाहे क़िबला बनाए. किसी को ऐतिराज का क्या हक़. बन्दे का काम फ़रमाँबरदारी है.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #60
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُمِيْـتُ*
7 बार रोज़ाना पढ़ कर अपने ऊपर दम कर लिया कीजिये ان شاء الله जादू असर नही करेगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Wednesday 21 December 2016

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #10
*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सहाबा की मर्कज़ी दर्सगाह बारगाहे आइशा_*
     हज़रते अबू मूसा असअरीرضي الله تعالي عنه फरमाते है : हम असहाबे रसूल को किसी बात में इश्काल होता तो हम आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की बारगाह में सुवाल करते तो आप के पास से ही उस बात का इल्म पाते।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 873, हदीस : 3882*

     मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा बयान करदा रिवायत के तहत फरमाते है : असहाबे रसूलुल्लाह को किसी मसअले में कोई इश्काल होता और वो मुश्किल कहि हल न होती तो हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास हाज़िर होते, इन के पास या तो उस के मुतअल्लिक़ हदीस मिल जाती या किसी हदीस से उस मसअले का इस्तिम्बात मिल जाता। अज़ आदम ता ई दम (हज़रते आदम से ले कर आज तक) कोई बीबी ऐसी अलीमा फ़क़ीहा पैदा न हुई जेसी जनाबे हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها हुई।
     आपرضي الله تعالي عنها उलूमे क़ुरआनीया, उलूमे हदीस की जामेअ, बड़ी मुहद्दिसा, बड़ी फ़क़ीहा थी। सिर्फ एक मिसाल पेश करता हु : किसी ने अर्ज़ किया ऐ उम्मुल मुअमिनिन  ! क़ुरआन से मालुम होता है की हज व उम्रह में सफा व मरवा की सअय वाजिब नही, सिर्फ जाइज़ है क्यू की अल्लाह ने फ़रमाया : *इस पर गुनाह नही की इन दोनों के फेरे करे*, आपرضي الله تعالي عنها ने जवाब दिया : अगर ये सअय वाजिब न होती तो यु इरशाद होता *की इन के सअय न करने में कोई गुनाह नही*
     इस एक जवाब से उसूले फिक़्ह का कितना दकीक़ मसअला  हल फरमा दिया की वाजिब की पहचान ये है की इस के करने में सवाब, न करने में गुनाह, जाइज़ की पहचान ये है की उस के न करने में गुनाह न हो। यहाँ आयत में पहली बात फ़रमाई गई है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 1/505*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 28*
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*नमाज़ का तरीका* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दूसरे सज्दे से खड़े होते हुए पहले सर उठाइए फिर हाथो को घुटनो पर रख कर पन्जो के बल खड़े हो जाइये। उठते वक़्त बिगैर मजबूरी ज़मीन पर हाथ से टेक मत लगाइये। ये आप की एक रकअत पूरी हुई।
     अब दूसरी रकअत में "बिस्मिल्लाह" पढ़ कर अल हम्द और सूरह पढ़िये और पहले की तरह रुकूअ और सज्दे कीजिये,

     *मर्द :* दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद सीधा क़दम खड़ा कर के उल्टा क़दम बिछा कर बैठ जाइये

     *औरत :* दूसरे सज्दे से सर उठाने के बाद दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उल्टी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उल्टी रान के बिच में रखिये।

     दो रकअत के दूसरे सज्दे के बाद बैठना कादह कहलाता है अब कादह में तशह्हुद (अत्तहिय्यात) पढ़िये।
     क़ादह में तशह्हुद में *"अशहदू अंल्ला-इलाह"* के *लाम* के करीब पहुचे तो सीधे हाथ की बिच की ऊँगली और अंगूठे का हल्का बना लीजिये और छुंगलिया (छोटी ऊँगली) और बिन्सर यानि उसके बराबर वाली ऊँगली को हथेली से मिला दीजिये और कलिमे की ऊँगली उठाइये, मगर इसको इधर उधर मत हिलाये और *"इला"* पर ऊँगली गिरा दीजिये और फौरन सब उंगलिया सीधी कर लीजिये।
     अब अगर दो से ज्यादा रकअते पढ़नी है तो "अल्लाहु अकबर" कहते हुए खड़े हो जाइये।

     अगर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ रहे है तो तीसरी और चौथी रकअत में क़याम में "बिस्मिल्लाह और अल्हम्दु शरीफ पढ़िये, सूरत मिलाने की ज़रूरत नहीं।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 151-152*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #106
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④ⓞ_*
बल्कि तुम यूं कहते हो कि इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनके बेटे यहूदी या नसरानी थे तुम फ़रमाओ क्या तुम्हें इल्म ज़्यादा है या अल्लाह को (16)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जिसके पास अल्लाह की तरफ़ की गवाही हो और वह उसे छुपाए(17)
और ख़ुदा तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं.

*तफ़सीर*
     (16) इसका भरपूर जवाब यह है कि अल्लाह ही सबसे ज़्यादा जानता है. तो जब उसने फ़रमाया “मा काना इब्राहीमो यहूदिय्यन व ला नसरानिय्यन” (इब्राहीम न यहूदी थे, न ईसाई) तो तुम्हारा यह कहना झूटा हुआ.
     (17) यह यहूदियों का हाल है जिन्हों ने अल्लाह तआला की गवाहियाँ छुपाईं जो तौरात शरीफ़ में दर्ज थीं कि मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके नबी हैं और उनकी यह तारीफ़ और गुण हैं और हज़रत इब्राहीम मुसलमान हैं और सच्चा दीन इस्लाम है, न यहूदियत न ईसाइयत.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④①_*
वह एक गिराह  (समूह) है कि गुज़र गया उनके लिये उनकी कमाई और तुम्हारे लिये तुम्हारी कमाई और उनके कामों की तुमसे पूछगछ न होगी.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #59
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مُحْيِـى*
7 बार पढ़ कर अपने ऊपर दम कर लीजिये, गैस हो या पेट या किसी भी जगह दर्द हो या किसी उज़्व के ज़ाएअ हो जाने का खौफ हो, ان شاء الله फाएदा होगा। (मुद्दते इलाज : ता हुसूले शिफ़ा, रोज़ाना कम अज़ कम एक बार)

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Tuesday 20 December 2016

*फैज़ाने सिद्दीके अकबर* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*सिद्दीके अकबर की पैदाइश व जाए परवरिश*
_*दुन्या में तशरीफ़ आवरी*_
     आपرضي الله تعالي عنه आमूल फिल के अढ़ाई साल बाद और सरकारﷺ की विलादत के दो साल और चन्द माह बाद पैदा हुए। आपرضي الله تعالي عنه 6 माह शिकमे मादर में रहे और दो साल तक अपनी वालिदा का दूध पिया।

*_जाए परवरिश और दीगर मुआमलात_*
     आपرضي الله تعالي عنه की जाए परवरिश मक्का में है, आप सिर्फ तिजारत की गर्ज़ से बाहर तशरीफ़ ले जाते थे, अपनी क़ौम में बड़े मालदार बा मुरुव्वत, हुस्ने अख़लाक़ के मालिक और निहायत ही इज़्ज़त व शरफ वाले थे।

*_सिद्दीके अकबर के 3 मुबारक घर_*
     1) मक्का में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه का एक घर महल्ला मुस्फला में वाकेअ है जिस में वो दो मुबारक पथ्थर लगे हुवे है जिन्हों ने अल्लाह के महबूबﷺ को क़ब्ल अज़ ऐलाने नबुव्वत सलाम किया। वाज़ेह रहे की हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه ने मक्की ज़िन्दगी इसी मुबारक मकान में बसर की।
     2) मदीना में आपرضي الله تعالي عنه के 2 घर थे, एक घर मस्जिदे नबवी से मुत्तसिल था जिस की खिड़की मस्जिदे नबवी के अंदर खुलती थी और उसी खिड़की के मुतअल्लिक़ सरकारﷺ ने आखरी उम्र में इरशाद फ़रमाया की : अबू बक्र की खिड़की के सिवा तमाम खिड़किया बंद कर दो।
     3) दूसरा घर मक़ामे 'सुन्ह' में वाकेअ था, अल्लाह के महबूबﷺ के विसाले ज़ाहिरी के वक़्त आपرضي الله تعالي عنه इसी घर से काशानए नबुव्वत हाज़िर हुवे थे।
*✍🏽फैज़ाने सिद्दीके अकबर, 33*
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*नमाज़ का तरीका* #04
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सज्दे से इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे।

     *मर्द :* फिर सीधा कदम खड़ा करके उसकी उंगलिया किब्ला रुख कर दीजिये और उल्टा क़दम बिछा कर उस पर खूब सीधे बेथ जाइये, और हथेलिया बिछा कर रानो पर घुटनो के पास रखिये की दोनों हाथो की उंगलिया किब्ले की जानिब और उंगलियो के सिरे घुटनो के पास हो।

     *औरत :* दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये और उलटी सुरीन पर बैठिये और सीधा हाथ सीधी रान के बिच में और उल्टा हाथ उलटी रान रान के बिच में रखिये।

     दोनों सजदों के दरमियान बैठने को जल्सा कहते है।
     फिर कम अज़ कम एक बार सुब्हान अल्लाह कहने की मिक़दार ठहरिये
     यहा *"अल्लाहुमग-फिरलि"* (यानि ए अल्लाह मेरी मगफिरत फरमा) पढ़ना मुस्तहब है

     फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए पहले सज्दे की तरह दूसरा सज्दा कीजिये।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 151*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #105
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑨_*
तुम फ़रमाओ क्या अल्लाह के बारे में झगड़ते हो  (13)
हालांकि वह हमारा भी मालिक है और तुम्हारा भी (14)
और हमारी करनी हमारे साथ और तुम्हारी करनी तुम्हारे साथ और निरे उसी के हैं (15)

*तफ़सीर*
     (13) यहूदियों ने मुसलमानों से कहा हम पहली किताब वाले हैं, हमारा क़िबला पुराना है, हमारा दीन क़दीम और प्राचीन है. हम में से नबी हुए हैं. अगर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम नबी होते तो हम में से ही होते. इस पर यह मुबारक आयत उतरी.
     (14) उसे इख़्तियार है कि अपने बन्दों में से जिसे चाहे नबी बनाए, अरब में से हो या दूसरों में से.
     (15) किसी दूसरे को अल्लाह के साथ शरीक नहीं करते और इबादत और फ़रमाँबरदारी ख़ालिस उसी के लिये करते हैं. तो हम महरबानियों और इज्ज़त के मुस्तहिक़ हैं.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #58
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*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا حَمِيـْدُ*
जिस की गन्दी बातो की आदत न जाती हो वो 90 बार बढ़ कर किसी खाली प्याले या ग्लास में दम कर दे। हस्बे ज़रूरत उसी में पानी पिया करे ان شاء الله फोहश गोई की आदत निकल जाएगी। (एक बार दम किया हुवा ग्लास बरसो तक चला सकते है)

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Monday 19 December 2016

*फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हज़रते खदीजा की सखावत_*
     हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها की एक बहुत आला सिफत ये भी थी की आप खुले हाथ और फराख दिल की मालिक थी और दिल खोल कर सखावत फ़रमाया करती थी।
     एक मर्तबा नबिय्ये करीमﷺ ने आइशाرضي الله تعالي عنها से फ़रमाया : अल्लाह की क़सम ! खदीजा से बेहतर मुझे कोई बीवी नही मिली, जब सब लोगो ने मेरे साथ कुफ़्र किया, उस वक़्त वो मुझ पर ईमान लाइ और जब सब लोग मुझे झुटला रहे थे, उस वक़्त उन्हों ने मेरी तस्दीक़ की और जिस वक़्त कोई शख्स मुझे कोई चीज़ देने के लिये तैयार न था, उस वक़्त खदीजा ने मुझे अपना सारा सामान दे दिया और उन्ही से अल्लाह ने मुझे औलाद अता फ़रमाई।

*_हज़रते हलीमा को तोहफा_*
     इसी तरह एक दफा रसूले अकरमﷺ की रज़ाई वालिदा हज़रते हलीमाرضي الله تعالي عنها मक्का शरीफ में आक़ाﷺ की बारगाह में हाज़िर हुई, क़हत साली और मवेशियों के हलाक होने की शिकायत की। उस वक़्त हुज़ूरﷺ की हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها से शादी हो चुकी थी, आपﷺ ने इस सिलसिले में हज़रते खदीजाرضي الله تعالي عنها से बात की तो उन्हों ने हज़रते हलीमाرضي الله تعالي عنها को 40 बक़रीया और एक ऊंट तोहफ्तन पेश किये।

*सखावत के 3 फरमाने मुस्तफाﷺ*
     1) जन्नत सखियो का घर है।
     2) सखी अल्लाह से क़रीब है, जन्नत से क़रीब है, लोगो से क़रीब है, आग से दूर है और कंजूस अल्लाह से दूर है, जन्नत से दूर है, लोगो से दूर है, आग के क़रीब है और जाहिल सखी, अल्लाह के नज़दीक बखिल आलिम से बेहतर है।
     3) ऐ इंसान ! अगर तुम बचा माल खर्च कर दो तो तुम्हारे लिये अच्छा है और अगर उसे रोक रखो तो तुम्हारे लिये बुरा है और ब क़दरे ज़रूरत अपने पास रख लो तो तुम पर मलामत नही और देने में अपने अयाल से इब्तिदा करो और ऊपर वाला हाथ निचे वाले हाथ से बेहतर है।
*फैज़ाने खदीजतुल कुब्रा, 20*
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*नमाज़ का तरीक़ा* #03
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटने ज़मीन पर रखिये फिर दोनों हाथो के बिच में इस तरह सर रखिये की पहले नाक फिर पेशानी और ये ख़ास ख्याल रखिये की नाक की नोक नही बल्कि हड्डी लगे और पेशानी ज़मीन पर जम जाए, नज़र नाक पर रहे.

     *मर्द :* बाजुओ को करवटों से, पेट को रानो से और रनों को पिंडलियों से जुदा रखिये। (अगर सफ में हो तो बाज़ू करवटों से लगाए रखिये) दोनों पाउ की दसो उंगलियो का रुख इस तरह किब्ले की तरफ रहे की दसो उंगलियो के पेट ज़मीन पर लगे रहे। हथेलिया बिछी रहे और उंगलिया किब्ला रु रहे मगर कलाइयां ज़मीन से लगी हुई मत रखिये।

     *औरत :* सज्दा सिमट कर कीजिये यानि बाजु करवटों से, पेट को रानो से और रानों को पिंडलियों से और पिंडलियां ज़मीन से मिला दीजिये। और दोनों पाउ सीधी तरफ निकाल दीजिये।

     अब कम अज़ कम 3 बार *"सुब्हान रब्बियल आ'ला"* (पाक है मेरा परवर दगार सबसे बुलंद) पढ़िये फिर इस तरह उठिये की पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ उठे।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, सफा 150-151*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #104
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑧_*
हमने अल्लाह की रैनी ली
और अल्लाह से बेहतर किसकी रैनी, और हम उसी को पूजते हैं

*तफ़सीर*
     यानी जिस तरह रंग कपड़े के ज़ाहिर और बातिन पर असर करता है, उसी तरह अल्लाह के दीन के सच्चे एतिक़ाद हमारी रग रग में समा गए. हमारा ज़ाहिर और बातिन, तन और मन उसके रंग मे रंग गया. हमारा रंग दिखावे का नहीं, जो कुछ फ़ायदा न दे, बल्कि यह आत्मा को पाक करता है. ज़ाहिर में इसका असर कर्मों से प्रकट होता है.
     ईसाई जब अपने दीन में किसी को दाख़िल करते या उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तो पानी में ज़र्दरंग डालकर उस व्यक्ति या बच्चे को ग़ौता देते और कहते कि अब यह सच्चा हुआ. इस आयत में इसका रद फ़रमाया कि यह ज़ाहिरी रंग किसी काम का नहीं.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #57
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا وَلِىُّ*
जो कोई इस इस इसमें पाक को बहुत पढ़ेगा ان شاء الله
 उस की ज़ौजा उस की फरमा बरदार हो जाएगी।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Sunday 18 December 2016

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #15
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आयते तयम्मुम का नुज़ूल_*
     इब्ने अब्दुल बर व इब्ने साद व इब्ने हब्बान वगैरा मुहद्दीशिन व उल्माए सीरत का क़ौल है की तयम्मुम की आयत गज़्वाए मुरैसीअ में नाज़िल हुई मगर रौज़तुल अहबाब में लिखा है की आयत तयम्मुम किसी दूसरे गज़्वे में उतरी।
     बुखारी शरीफ में आयते तयम्मुम की शाने नुज़ूल जो मज़कूर है वो ये है की हज़रते बीबी आइशाرضي الله تعالي عنها का बयान है की हम लोग हुज़ूरﷺ के साथ एक सफर में थे जब हम लोग मक़ामे "बैदाअ" या मक़ामे "जातुल जैश" में पहुचे तो मेरा हार टूट कर कही गिर गया हुज़ूरﷺ और कुछ लोग उस हार की तलाश में वहा ठहर गए और वहा पानी नही था तो कुछ लोगो ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़رضي الله تعالي عنه के पास आ कर शिकायत की, की क्या आप देखते नही की हज़रते आइशा ने क्या किया ? हुज़ूरﷺ और सहाबा को यहाँ ठहरा लिया है हाला की यहाँ पानी मौजूद नही है, ये सुन कर हज़रते अबू बक्रرضي الله تعالي عنه मेरे पास आए और जो कुछ खुदा ने चाहा उन्हों ने मुझ को (सख्त व सुस्त) कहा और फिर (गुस्से में) अपने हाथ से मेरी कोख में कोचा मारने लगे उस वक़्त रसूलुल्लाहﷺ मेरी रान पर अपना सरे मुबारक रख कर आराम फरमा रहे थे इस वजह से (मार खाने के बावुजूद) में हिल नही सकती थी सुब्ह को जब रसूलुल्लाहﷺ बेदार हुए तो वहा कही पानी मौजूद ही नही था ना गहा हुज़ूरﷺ पर तयम्मुम की आयत नाज़िल हो गई।
     चुनांचे हुज़ूरﷺ और तमाम असहाब ने तयम्मुम किया और नमाज़े फज्र अदा की इस मौके पर हज़रते उसैद बिन हुज़ैरرضي الله تعالي عنه ने (खुश हो कर) कहा की ऐ अबू बक्र की आल ! ये तुम्हारी पहली ही बरकत नही है। फिर हम लोगो ने ऊंट को उठाया तो उस के निचे हम ने हार को पा लिया।
*✍🏽बुखारी, 1/48*
     इस हदिष में किसी गज़्वे का नाम नही है मगर शारेहे बुखारी हज़रते अल्लामा इब्ने हजर अलैरहमा ने फ़रमाया की ये वाक़ीआ गज़्वाए बनी अल मुस्तलिक का है जिस का दूसरा नाम गज़्वाए मुरैसीअ भी है जिस में क़िस्साए इफ्क वाकेअ हुवा।
     इस गज़्वे में हुज़ूरﷺ 28 दिन मदीने से बाहर रहे।
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 321*
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*नमाज़ का तरीका* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     *मर्द :* रुकूअ में घुटनो को इस तरह हाथ से पकड़िये की हथेलिया घुटनो पर और उंगलिया अच्छी तरह फैली हुई हो पीठ बिछी हुई और सर पीठ की सीध में हो, उचा निचा न हो और नज़र क़दमो पर हो।

     *औरत :* रुकूअ में थोडा झुकिये यानि इतना की घुटनो पर हाथ रख दे ज़ोर न दीजिये और घुटनो को न पकड़िये और उंगलिया मिली हुई और पाउ झुके हुए रखिये मर्दों की तरह सीधे मत रखिये।

     कम अज़ कम 3 बार रुकूअ की तस्बीह यानि *"सुब्हान-रब्बियल-अज़ीम"* (यानि पाक हे मेरा अज़मत वाला परवर दगार) कहिये।
     फिर तस्मिअ यानि *"समी-अल्लाहु-लीमन-हमीदह"* (यानि अल्लाह ने उसकी सुनली जिसने उसकी तारीफ़ की) कहते हुए बिलकुल सीधे खड़े हो जाइये,

     इस खड़े होने को क़ौमा कहते है। अगर आप अकेले नमाज़ पढ़ रहे है तो इसके बाद *"रब्बना-व-लकल-हम्द" या "अल्लाहुम्म-रब्बना-व-लकल-हम्द"* (यानि ऐ अल्लाह ! सब खुबिया तेरे लिये है) कहिये फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए सज्दे में जाए।

बाक़ी कल की पोस्ट मे.. ان شاء الله
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #103
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑥_*
यूं कहो कि हम ईमान लाए अल्लाह पर और उसपर जो हमारी तरफ़ उतरा और जो उतारा गया इब्राहीम और इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनकी औलाद जो प्रदान किये गए मूसा व ईसा और जो अता किये गए बाक़ि नबी अपने रब के पास से हम उन में किसी पर ईमान में फ़र्क़ नहीं करते और हम अल्लाह के हुज़ूर गर्दन रखे हैं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑦_*
फिर अगर वो भी यूंही ईमान लाए जैसा तुम लाए जब तो वो हिदायत पा गए और अगर मुंह फेरें तो वो निरी ज़िद में हैं (10)
तो ऐ मेहबूब शीघ्र ही अल्लाह उनकी तरफ़ से तुम्हें किफ़ायत करेगा (काफ़ी होगा) और वही हे सुनता जानता (11)

*तफ़सीर*
     (10) और उनमें सच्चाई तलाश करने की भावना नहीं.
     (11) यह अल्लाह की तरफ़ से ज़िम्मा है कि वह अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को ग़लबा अता फ़रमाएगा, और इस में ग़ैब की ख़बर है कि आयन्दा हासिल होने वाली विजय और कामयाबी को पहले से ज़ाहिर कर दिया. इसमेंनबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का चमत्कार है कि अल्लाह तआला का यह ज़िम्मा पूरा हुआ और यह ग़ैबी ख़बर सच हो कर रही. काफ़िरों के हसद, दुश्मनी और उनकी शरारतों से हुज़ूर को नुक़सान न पहुंचा. हुज़ुर की फ़तह हुई. बनी क़ुरैज़ा क़त्ल हुए. बनी नुज़ैर वतन से निकाले गए. यहूदियों और ईसाइयों पर जिज़िया मुक़र्रर हुआ.
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #56
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا مَتِيـْنُ*
जिस बच्चे का दूध छुड़ा दिया गया हो उसे कागज़ पर लिख कर पिला दे, तसकीन होगी और माँ का दूध कम हो तो इसी इसमें पाक को लिख कर माँ को पिला दे दूध ज़्यादा होगा।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Saturday 17 December 2016

*शाने खातुने जन्नत* #08
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_10 फ़ज़ाइले फातिमा_*
     1.खतूने जन्नत हज़रते फातिमाرضي الله تعالي عنها सर से पाऊ तक हम शक़्ले मुस्तफाﷺ थी।
     2.आपرضي الله تعالي عنها की चाल ढाल हर वजअ-कतअ हुज़ूरﷺ के मुशाबेह थी ।
     3.अल्लाह ने इन्हें रसूलﷺ कि जिति जागती तस्वीर बनाया था।
     4.मुफ़्ती अहमद यार खान उम्मुल हसनैन शाहज़ादि ए कौनैन की शान में अर्ज़ करते है :
          रसूलुल्लाह की जीती जागती तस्वीर को देखा
          किया नज़ारा जिन आँखों ने तफ़सीरे नुबुव्वत का
     5.हुज़ूरﷺ जब खतूने जन्नत फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها को आता देखते तो ख़ुशी से खड़े हो जाते और अपनी जगह बिठा लेते।
     6.जब खतूने जन्नत फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها बारगाहे रिसालतﷺ में हाज़िर हुई तो तमाम उम्महातुल मअमिनीन मौजूद थी मगर शाहे बहरो बर, रसूले अनवरﷺ ने राज़ की बात सिर्फ अपनी लाडली शाहज़ादि से की ।
     7.माहे रमजान में कुरआन का दौर करना सुन्नते रसूली भी है और सुन्नते जिब्रिलि भी। (कुरआन पाक का दौर करने का मतलब यह है की एक पढ़े और दूसरा सुने ,फिर दूसरा पढ़े और पहला सुने, मालूम हुआ हबीबे खुदाﷺ को अपने विसाले मुबारक का पहले से ही इल्म था कि अगले रमजान से पहले ही हमारी वफाते ज़ाहिरी हो जाएगी)
     8.ऐ फातिमा जैसे तुम हमारी हयात शरीफ में तय्यिबा, ताहिरा, मुत्तकिया,साबिरा रही हो ऐसे ही हमारी वफात के बाद भी रहना, तुम्हारे पाए इस्तिक्लाल (यानि मुस्तक़िल मिज़ाजी) में जुम्बिश (यानि हरकत) न आने पाए, खातूने जन्नतرضي الله تعالي عنها ने इस पर अमल कर के दिखा दिया, रोना सब्र के खिलाफ नहीं, नौहा, पीटना वगैरा सब्र के खिलाफ है येह आप ने कभी नहीं कहा।
     9.ताजदारे रिसालतﷺ ने अपनी शाहज़ादि को जन्नती लोगो की बीवियों या मोमिनों की बीवियों की सरदार होने की बिशारत दी।
     10.हज़रते सय्यिदुना मलिक बिन अनसرضي الله تعالي عنه फरमाते है : तहाराते नफ़्स और शरफे नसब में खतूने जन्नत हज़रते सय्यिदुना फातिमातुज़्ज़हराرضي الله تعالي عنها के बराबर कोई नहीं हो सकता।
*✍🏽शाने खातुने जन्नत, 30*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #102
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③④_*
यह  (6)
एक उम्मत है कि गुजर चुकी  (7)
उनके लिये जो उन्होंने कमाया और तुम्हारे लिये है जो तुम कमाओ और उनके कामों की तुम से पूछगछ न होगी

*तफ़सीर*
     (6) यानी हज़रत इब्राहीम और यअक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी मुसलमान औलाद.
     (7) ऐ यहूदियों, तुम उनपर लांछन मत लगाओ.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑤_*
और किताबी बोले (8)
यहूदी या नसरानी हो जाओ राह पा जाओगे, तुम फ़रमाओ बल्कि हम तो इब्राहीम का दीन लेते हैं जो हर बातिल  (असत्य) से अलग थे और मुश्रिकों से न थे (9)

*तफ़सीर*
     (8) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह आयत यहूदियों के रईसों और नजरान के ईसाइयो के जवाब में उतरी. यहूदियों ने तो मुसलमानों से यह कहा था कि हज़रत मूसा सारे नबियों में सबसे अफ़जल यानी बुज़ुर्गी वाले है. और यहूदी मज़हब सारे मज़हबों से ऊंचा है. इसके साथ उन्होंने हज़रत सैयदे कायनात मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और इन्जील शरीफ़ और क़ुरआन शरीफ़ के साथ कुफ़्र करके मुसलमानों से कहा था कि यहूदी बन जाओ. इसी तरह ईसाइयों ने भी अपने ही दीन को सच्चा बताकर मुसलमानों से ईसाई होने को कहा था. इस पर यह आयत उतरी.
     (9) इसमें यहूदियों और ईसाइयो वग़ैरह पर एतिराज है कि तुम मुश्रिक हो, इसलिये इब्राहीम की मिल्लत पर होने का दावा जो तुम करते हो वह झूटा है. इसके बाद मुसलमानों को ख़िताब किया जाता है कि वो उन यहूदियों और ईसाइयों से यह कहदें “यूँ कहो कि हम ईमान लाए, अल्लाह पर और उस पर जो हमारी तरफ़ उतरा और जो उतारा गया इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनकी औलाद पर……………(आयत के अन्त तक).
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #54
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا وَكِيـْلُ*
7 बार जो रोज़ाना असर के वक़्त पढ़ लिया करे أن شاء الله आफत से पनाह पाए।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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Friday 16 December 2016

*फैज़ाने फ़ारुके आज़म* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_फ़ारुके आज़म की पैदाइश और जाए परवरिश_*
*फ़ारुके आज़म की पैदाइश*
     आपرضي الله تعالي عنه आमूल फिल के 13 साल बाद पैदा हुवे, यु आप की तारीखे विलादत 583 ईस्वी तक़रीबन 41 साल क़ब्ले हिजरत है। हज़रते सिद्दीके अकबरرضي الله تعالي عنه आमूल फिल के ढाई साल बाद पैदा हुवे यु आप सिद्दीके अकबरرضي الله تعالي عنه से उम्र में तक़रीबन साढ़े दस साल छोटे है और सरकारे मदीनाﷺ चुकी आमूल फिल के साल दुन्या में तशरीफ़ लाए यु आपرضي الله تعالي عنه हुज़ूरﷺ से उम्र में तक़रीबन 13 साल छोटे है।

*फ़ारुके आज़म की जाए परवरिश*
     आपرضي الله تعالي عنه मक्का में ही पैदा हुवे और मक्का ही आप की जाए परवरिश है, बचपन से ले कर जवानी तक, नीज़ मदीना हिजरत से क़ब्ल तक आप ने मक्का में ही ज़िन्दगी गुज़ारी।

*दौरे जाहिलिय्यत में फ़ारुके आज़म का घर*
     हज़रते अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन साद ने उमुरे मक्का के आलिम हज़रते अबू बक्र बिन मुहम्मद मक्कीرضي الله تعالي عنه से पूछा : ज़मानए जाहिलिय्यत में आप का घर कहा था ? फ़रमाया : फ़ारुके आज़मرضي الله تعالي عنه की रिहाइश गाह उस पहाड़ पर थी जो आज कल "जबले उमर" के नाम से मशहूर है, ज़मानए जाहिलिय्यत में इसका नाम आकिर था फिर आप के नाम से मन्सूब कर दिया गया, इसी पहाड़ पर क़बिलए बनू अदिय्य (फ़ारुके आज़म का क़बीला) आबाद था।
*✍🏽फैज़ाने फ़ारुके आज़म, 58*
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*नमाज़ का चोर*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अबू क़तादा رضي الله تعالي عنه से रिवायत है की सरकारे मदीना ﷺ का फरमाने बा करीना है : लोगो में बद तरीन चोर वो है जो अपनी नमाज़ में चोरी करे।
     अर्ज़ की गई : या रसूलुल्लाह ﷺ ! नमाज़ का चोर कौन है ?
     फ़रमाया : वो जो नमाज़ के रूकू और सजदे पुरे न करे।
*✍🏽मस्नद इमाम अहमद हम्बल, 8/386 हदिष : 22705*

*_चोर की दो किस्मे_*
     हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खा अलैरहमा इस हदिष के तहत फरमाते है : मालुम हुवा माल के चोर से नमाज़ का चोर बदतर है क्यू की माल का चोर अगर सज़ा भी पाता है तो कुछ न कुछ नफा भी उठा लेता है, मगर नमाज़ का चोर सज़ा पूरी पाएगा इसके लिये नफा की कोई सूरत नहीं।
     माल का चोर बन्दे का हक़ मारता है, जब की नमाज़ का चोर अल्लाह का हक़,
     ये हालत उनकी है जो नमाज़ को नाकिस पढ़ते है इससे वो लोग दरसे इब्रत हासिल के जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नही।
*✍🏽मीरआत, 2/78*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 146-147*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #101
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③②_*
     अर्ज़ की वसीयत की इब्राहीम ने अपने बेटों को और यअक़ूब ने कि मेरे बेटो बेशक अल्लाह ने यह दीन तुम्हारे लिये चुन लिया तो न मरना मगर मुसलमान.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③③_*
     बल्कि तुम में के ख़ुद मौजूद थे (4)
जब यअक़ूब को मौत आई जबकि उसने अपने बेटों से फ़रमाया मेरे बाद किसकी पूजा करोगे बोले हम पूजेंगे उसे जो ख़ुदा है आपका  और आपके आबा (पूर्वज) इब्राहीम और इस्माईल (5)
और इस्हाक़ का एक ख़ुदा और हम  उसके हुज़ूर गर्दन रखे है.

*तफ़सीर*
     (4) यह आयत यहूदियों के बारे में नाज़िल हुई. उन्होंने कहा था कि हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने अपनी वफ़ात के रोज़ अपनी औलाद को यहूदी रहने की वसिय्यत की थी. अल्लाह तआला ने उनके इस झूठ के रद में यह आयत उतारी (ख़ाज़िन). मतलब यह कि ऐ बनी इस्राईल, तुम्हारे लोग हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम के आख़िरी वक़्त उनके पास मौजूद थे, जिस वक़्त उन्होंने अपने बेटों को बुलाकर उनसे इस्लाम और तौहीद यानी अल्लाह के एक होने का इक़रार लिया था और यह इक़रार लिया था जो इस आयत में बताया गया है.
     (5)  हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को हज़रत यअक़ूब के पूर्वजों में दाख़िल करना तो इसलिये है कि आप उनके चचा हैं और चचा बाप बराबर होता है. जैसा कि हदीस शरीफ़ में है. और आपका नाम हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम से पहले ज़िक्र फ़रमाना दो वजह से है, एक तो यह कि आप हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम से चौदह साल बड़े हैं, दूसरे इसलिये कि आप सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पूर्वज हैं.
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Thursday 15 December 2016

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आइशा का नेकी की दावत का ज़ज्बा_*
     हज़रते बनानाرضي الله تعالي عنها फरमाती है की वो उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास थी की आप की खिदमत में एक बच्ची लाइ गई जिस के पैर में झाझन (गुंगरू) थे जो आवाज़ कर रहे थे आप बोली की इसे मेरे पास हरगिज़ न लाओ मगर इस सूरत में की इस के झाझन तोड़ दिये जाए, मेने रसूलुल्लाहﷺ को फरमाते सुना की उस घर में फ़रिश्ते नहीं आते जिस में झाझन हो।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 226*

     देखा आप ने ! औरतो को ज़ेवरात की आवाज़े छुपाने का भी हुक्म है, इन्हें घर में चलने फिरने में भी इस क़दर ज़ोर से पाउ रखना की ज़ेवर की झंकार की आवाज़ गैर महरमो तक पहुचे मना है,
     अल्लाह फ़रमाता है :
*और ज़मीन पर पाउ ज़ोर से न रखे की जाना जाए उन का छुपा हुवा सिंगार।*
पारह, 18, सुरतुन्नूर, 31
     जनाब मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : यानी औरत घर के अंदर चलने फिरने में भी पाउ इस क़दर आहिस्ता रखे की इन के ज़ेवर की झंकार न सुनी जाए।
     मज़ीद फरमाते है : इस लिये चाहिए की औरते बाजेदार झांझन न पहने हदीस में है की अल्लाह उस क़ौम की दुआ नही क़बूल फ़रमाता जिन की औरते झांझन पहनती हो। इस से समझना चाहिए की जब ज़ेवर की आवाज़ अदमे कबूले दुआ की सबब है तो ख़ास औरत की आवाज़ और इस की बे पर्दगी केसी मुजिबे गजबे इलाही होगी, पर्दे की तरफ से बे परवाई तबाही का सबब है।
*✍🏽तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान, 18, सुरतुन्नूर, 31*
   
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इरशाद फरमाते है : बजने वाला ज़ेवर औरत के लिये इस हालत में जाइज़ है की ना महरमो मसलन खाला, मामू, चचा, फूफी के बेटो, जेठ, देवर, बहनोई के सामने न आती हो न के ज़ेवर की झंकार न महरम तक पहुचे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 22/128*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 24*
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*नमाज़ पर नूर या तारीकी के अस्बाब*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते उबादा बिन सामित رضي الله تعالي عنه से रिवायत हैं की हुज़ूर ﷺ का फरमाने आलिशान है, जो शख्स अच्छी तरह वुज़ू करे, फिर नमाज़ के लिये खड़ा हो, इसके रूकू, सुजूद और किरआत को मुकम्मल करे तो नमाज़ कहती है,
     अल्लाह तआला तेरी हिफाज़त करे जिस तरह तूने मेरी हिफाज़त की। फिर उस नमाज़ को आसमान की तरफ ले जाया जाता है और उस के लिये चमक और नूर होता है। पस उसके लिये आस्मां के दरवाज़े खोले जाते है हत्ता की उसे अल्लाह तआला की बारगाह में पेश किया जाता है और वो नमाज़ उस नमाज़ी की शफ़ाअत करती है,
     और अगर वो इस का रुकूअ, सुजूद और किरआत मुकम्मल न करे तो नमाज़ कहती है, अल्लाह तआला तुझे छोड़ दे जजस तरह तूने मुझे जाए किया।
     फिर उस नमाज़ को इस तरह आसमान की तरफ ले जाया जाता है की उस पर तारीकी छाई होती है और उस पर आसमान के दरवाज़े बंद कर दिये जाते है फिर उसको पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस नमाज़ी के मुह पर मारा जाता है।
*✍🏽कन्जुल अमाल, 7/129, हदिष:19049*

*_बुरे खतिमे का एक सबब_*
     हज़रते इमाम बुखारी अलैरहमा फरमाते है, हज़रते हुजैफा बिन यमान رضي الله تعالي عنه ने एक शख्स को देखा जो नमाज़ पढ़ते हुए रूकू और सुजूद पुरे अदा नहीं करता था। तो उस से फ़रमाया : तुम ने जो नमाज़ पढ़ी अगर इसी नमाज़ की हालत में इन्तिकाल कर जाओ तो हज़रत मुहम्मद मुस्तफाﷺ के तरीके पर तुम्हारी मौत वाकेअ नहीं होगी।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/112*

     सुनने नसाई की रिवायत में ये भी है की आप ने पूछा तुम कब से इस तरह नमाज़ पढ़ रहे हो ? उसने कहा 40 साल से. फ़रमाया : तुमने 40 साल से बिलकुल नमाज़ ही नहीं पढ़ी और अगर इसी हालत में तुम्हे मौत आ गई तो दिने मुहम्मदी पर नही मरोगे।
*✍🏽सुनने नसाई, 2/57*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम, 146*
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*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #100
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*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③ⓞ_*
     और इब्राहीम के दीन से कौन मुंह फेरे (1)
सिवा उसके जो दिल का मूर्ख है और बेशक ज़रूर हम ने दुनिया में उसे चुन लिया (2)
और बेशक वह आख़िरत में हमारे ख़ास कुर्ब की योग्यता वालों में हैं (3)

*तफ़सीर*
     (1) यहूदी आलिमों में से हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम ने इस्लाम लाने के बाद अपने दो भतीजों मुहाजिर और सलमह को इस्लाम की तरफ़ बुलाया और उनसे फ़रमाया कि तुमको मालूम है कि अल्लाह तआला ने तौरात में फ़रमाया है कि मैं इस्माईल की औलाद से एक नबी पैदा करूंगा जिनका नाम अहमद होगा. जो उनपर ईमान लाएगा, राह पाएगा और जो उनपर ईमान न लाएगा, उसपर लअनत पड़ेगी. यह सुनकर सलमह ईमान ले आए और मुहाजिर ने इस्लाम से इन्कार कर दिया. इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फ़रमाकर ज़ाहिर कर दिया कि जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ख़ुद इस रसूले मुअज़्ज़म के भेजे जाने की दुआ फ़रमाई, तो जो उनके दीन से फिरे वह हज़रत इब्राहीम के दीन से फिरा. इसमें यहूदियों, ईसाईयों और अरब के मूर्ति पूजकों पर ऐतिराज़ है, जो अपने आपको बड़े गर्व से हज़रत इब्राहीम के साथ जोड़ते थे. जब उनके दीन से फिर गए तो शराफ़त कहाँ रही.
     (2) रिसालत और क़ु्र्बत के साथ रसूल और ख़लील यानी क़रीबी दोस्त बनाया.
     (3) जिनके लिये बलन्द दर्जे हैं. तो जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम दीन दुनिया दोनों की करामतों के मालिक हैं, तो उनकी तरीक़त यानी रास्ते से फिरने वाला ज़रूर नादान और मूर्ख है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③①_*
जबकि उससे उसके रब ने फ़रमाया गर्दन रख, अर्ज़ की मैंने गर्दन रखी जो रब है सारे जहान का
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*99 अस्माए हुस्ना और इन के फ़ज़ाइल* #52
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

हर विर्द के अव्वल व आखिर एक बार दुरुद शरीफ पढ़ लीजिये, फाएदा ज़ाहिर न होने की सूरत में शिकवा करने के बजाए अपनी कोताहियो की शामत तसव्वुर कीजिये और अल्लाह की मस्लहत पर नज़र रखिये।

*يَا شَهِيـدُ*
21 बार सुब्ह (तुलुए आफताब से पहले) ना फरमान बच्चे ग बच्ची की पेशानी पर हाथ रख कर आसमान की तरफ मुह कर के जो पढ़े ان شاء الله उस का वो बच्चा या बच्ची नेक बने।

*✍🏽मदनी पंजसुरह, 253*
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