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मिलाद शरीफ



*मिलाद शरीफ* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शरीअत की रौशनी में_*
     पहले ये जानले की एहले सुन्नत के नज़्दीक ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मनाना कोई फ़र्ज़ या वाजिब नहीं, ये मुस्तहब अ'मल है। जो करे उसको षवाब मिलेगा और जो न करे उस पर कोई गुनाह नहीं।

     अब बात ये आती है की क्या इस्लाम हमें इजाज़त देता है ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मानाने की या नहीं ?

     इसका जवाब ये है की क़ुरआनो हदिष की रौशनी में मिलादुन्नबी मनाना बिलकुल जाइज़ है।

     कोई भी दूसरे मसलक का आ'लिम आज तक शरई दलील मिलाद के हराम या नाजाइज़ होने की न आज तक ला सका है और न ला सकेगा। ان شاء الله

     आगे आने वाली पोस्ट में हम जानेंगे की किस तरह ईदे मिलाद ﷺ मनाना जाइज़ है क़ुरआनो हदिष की रौशनी में !

     12वी शरीफ की निस्बत से ये 12 टॉपिक जो निचे दिये गये है और मजीद कुछ पॉइंट भी कवर करने की कोशिश की जायेगी।

✔आक़ा  ए करीम ﷺ की विलाद कब हुई❓
✔क़ुरआन क्या फरमाता है❓
✔आप ﷺ ने क्या अपना मिलाद मनाया❓
🔹और आप ﷺ ने अपने मिलाद के मुतअल्लिक़ क्या फ़रमाया❓
✔क्या किसी सहाबी ने ईदे मिलादुन्नबी ﷺ मनाई है❓
✔अबू लहब ने भी मिलाद मनाया...
✔जुलूस निकालना किसकी सुन्नत❓
✔जन्डे लगाना किसकी सुन्नत❓
✔नात शरीफ पढ़ना किसकी सुन्नत❓
✔मिलाद पर खर्च करना कैसा❓
✔शैतान की रुस्वाई...
✔शबे क़द्र से भी अफ़्ज़ल रात....
✔किस किस आइम्ह व मुहद्दिसिन ने मिलादुन्नबी ﷺ को जाइज़ कहा है❓

🙏🏽दुआ फरमाइये की जिस काम की निय्यत की गई है वो मुकम्मल हो सके ❗
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*मिलाद शरीफ* #02
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*_शरीअत की रौशनी में_*
 *आक़ा-ए-करीम ﷺ की विलादत कब हुई❓*
     12 रबी उल अव्वल पर तमाम उलमा ए इस्लाम का इज्मा है की इस दिन मुहम्मद ﷺ सारे आ'लम के लिये रहमत बनके दुन्या में तशरीफ़ लाये।
     और इसी दिन सारी दुन्या में मुसलमान अपने नबी ﷺ की विलादत का जस्न मानते है।

📚हवाला
📒इब्ने जवाज़ी, शफा 87
✒इब्ने इस्हाक़ ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳85-151 हिजरी

📕इब्ने हिशाम, जी-1, शफा 158
✒अल्लामा इब्ने हिशाम ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳213 हिजरी

📗तारीख अल-उमम व अल-मुलुक, जी-2, शफा 125
✒इमाम इब्ने जारीर तबारी ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳224-310 हिजरी

📒आइलामुन नबुव्वत, शफा 192
✒अल्लामा अबू अल-हसन अली बिन मुहम्मद अल-मवार्दी ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳370-480 हिजरी

📕आयुन अल-असर, जी-1, शफा 33
✒इमाम अल-हाफ़िज़ अबू-उल-फतह अल-उन्दालासि ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳671-734 हिजरी

📗इब्ने खलदून, 2/394
✒अल्लामा इब्न खलदून ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳732-808 हिजरी

📕मुहम्मद रसूलुल्लाह, 1/102
✒मुहम्मद अस-सादिक़ इब्राहिम अर्जुन ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه

📗मदारिजुन नुबुव्वत, 2/14
✒शैख़ अब्दुल-हक़ मुहद्दिस दहेल्वी ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه
⏳950-1052 हिजरी

📕अल-मुवाहिद अल-लदुन्य , 1/88
✒इमाम क़ुस्तलानी ﺭﺣﻤﺘﻪ ﺍﻟﻠﻪ عليه

     इससे साबित हुआ की आक़ा-ए-करीम ﷺ की विलादत 12 रबी उल अव्वल को ही हुई।
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*मिलाद शरीफ* #03
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*_शरीअत की रौशनी में_*

*क़ुरआन क्या फ़रमाता है ?*
अल-क़ुरआन
     तुम फ़रमाओ अल्लाह ही के फज़ल और उसी की रहमत और उसी पर चाहिये की खुशिया करे...
*✍🏽सूरह युनुस, आयत 58*
     इस आयत में अल्लाह عزوجل ने अपने फ़ज़्ल और अपनी रहमत पर खुशिया मनाने का हुक्म दिया है !

     और हमने तुम्हे न भेजा मगर रहमत सारे जहांन के लिये...
*✍🏽सूरह अम्बिया, आयत 10*
     इस आयत में अल्लाह عزوجل अपने प्यारे नबी ﷺ से फरमा रहा है की हमने तुम्हे सिर्फ 1 या 2 आलम के लिए नहीं बल्कि सारे आ'लम के लिये रहमत बना कर भेजा
     यहाँ गौर करे अल्लाह عزوجل ने नबीﷺ को रहमत कहा है
     और जो पहली आयत पेश की गई उसमे अल्लाह عزوجل ने अपनी रहमत पर ख़ुशी मनाने का हुक्म दिया है।
     जो इन आयतो का मुन्किर होगा, जो नबीﷺ को अपने लिये अल्लाह की रहमत और नेअमत नहीं संमजेगा वो नबी ए पाकﷺ की विलादत की ख़ुशी से ऐतराज़ करेगा,
     यानी वो गम मनायेगा नबीﷺ की विलादत पर मगर हम तो खुशिया ही मनायेंगे।
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*मिलाद शरीफ* #04
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*_शरीअत की रौशनी में_*
*क़ुरआन क्या फरमाता है ?*
     अपने रब की नेअमतों का खूब खूब चर्चा करो
*✍🏽सूरह दूहा आयत 11*
     इस आयत में अल्लाह ने हमें अपनी नेअमतों का चर्चा करने का हुक्म दिया। हर मोमिन ये जनता है की अल्लाह की सबसे बड़ी अज़ीम नेअमत हमारे लिये उसके रसूल है।
     इस बात को समझने के किये क़ुरआन की एक और आयत पेशे खिदमत है...

     बेशक अल्लाह का बड़ा ऐहसान हुआ मुसलमानो पर की उन्मे उन्ही मेसे एक रसूल भेजा जो उनपर उसकी आयते पढ़ता है और उन्हें पाक करता है ...
*✍🏽सूरह अल-इमरान, आयत 164*
     मेरे भाइयो आप सारा क़ुरआन पढ़ लीजिये किसी भी जगह अल्लाह ने ये नहीं कहा की हमने तुम्हे ये नेअमत दे कर तुम पे एहसान किया है सिवा अपने मेहबूब के।
     इससे मालूम हुआ की अल्लाह की सबसे बड़ी नेअमत हमारे लीये उसके नबी है..

     बेशक तुम्हारे पास तशरीफ़ लाये तुम में से वो रसूल जिन पर तुम्हारा मुशक्कत में पड़ना गवारा नहीं है, तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले मुसलमानो पर कमाले मेहरबान मेहरबान
*✍🏽सूरह तौबा, आयात 128*
     इस आयत में अल्लाह तबारक-व-तआला खुद गवाही दे रहा है अपने रसूल की हम गुनाहगारो से बे-इन्तहा मुहब्बत और हम पर मेहरबान होने की...

     तो क्या पहली आयत में अल्लाह ने जो हुक्म दिया उस पर अमल करते हुए हम हमारे प्यारे प्यारे आक़ा की विलादत न मनाये ?
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*मिलाद शरीफ* #05
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*_शरीअत की रौशनी में_*
     आइये आप के सामने एक हदिष पेश करता हु अपने प्यारे आक़ा ﷺ के महेरबान होने की
     चुनान्चे आक़ा ए करीम ﷺ का फरमान मग्फिरत निशान है : जिसने मुज पर 100 मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ा अल्लाह عزوجل उसकी दोनों आँखों के दरमियान लिख देता है की ये निफ़ाक़ और जहन्नम की आग से आज़ाद है और उसे ब-रोज़े कियामत शोहदा के साथ रखूँगा।
*✍🏽मजमुअज़्ज़वायद् 10/253, हदिष 17298*
     अब 100 बार दुरुद शरीफ पढ़ना कौनसी बड़ी बात है ?
     मगर फिर भी जहन्नम से निजात की बशारत दे दी गई अब ये मेहरबानी नहीं तो क्या है ?

     अब और क्या क्या सबुत चाहिये तुम्हे अपने प्यारे नबी ﷺ से मुहब्बत करने के लिये और उनकी विलादत की ख़ुशी मनाने के लिये ?

*_हुज़ूर ने अपनी विलादत खुद मनाई_*
     हज़रत अबू क़तादाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है : रसूले करीम ﷺ से पिर का रोज़ा रखने के बारे में सवाल किया गया ओ आपﷺ ने फ़रमाया की,
     इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी दिन मुझ पर क़ुरआन नाज़िल हुआ.
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 2/1162, हदिष 819*
*✍🏽नसाई अल-सुनाने कुब्रा, 2/2777, हदिष 146*
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*मिलाद शरीफ* #06
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*शरीअत की रौशनी में*

*_क्या किसी साहबा ने मिलादे मुस्तफा मनाई है ❓_*
     हज़रत अबू सईद खुदरी से रिवायत है की मुआविया से रिवायत हे की आक़ा करीम ﷺ बाहिर निकले साहब के हल्के पर, आप ने फ़रमाया :
     तुम यहाँ किस वजह से बेठे हो, उन्होंने कहा हम अल्लाह عزوجل से दुआ कर रहे है और उसका शुक्र अदा कर रहे है की उसने अपना दिन हम को बतलाया और हम पर एहसान किया आप को भेज कर।
*✍🏽सुनन निसई, हदिष 5432*

     साहबा और ताबेईन और दीगर अहले इस्लाम ने पीर के दिन का रोज़ा रख कर भी मिलाद मनाया।
*✍🏽अबू दाऊद जी-1, सफा 331*

     मक्का शरीफ के लोग नबी की पैदाइश की जगह को मिलादुन्नबी ﷺ के दिन हर साल ज़ियारत करते और महफ़िल मुनाकिद करते।
*✍🏽जवाहिर अल-बिहार सफा 1222*
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*मिलाद शरीफ* #07
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*_शरीअत की रौशनी में_*

*आप ﷺ की विलादत को ईद कहना कैसा ❓*
     आइये पहले हम ईद का मतलब समज लेते है, ईद के लूग्वि माना है ख़ुशी, अगर कोई अरबी ख़ुशी का लफ्ज़ अरबी में कहेगा तो वो यही कहेगा ""ईद""
     इसे समझने के लिये क़ुरआन की एक आयत पेशे खिदमत है

*_अल-क़ुरआन_*
     ईशा इब्ने मरीयम ने अर्ज़ की या अल्लाह ! ऐ हमारे रब ! हम पर आसमान से एक कुवा उतार की वो (कुवा उतरने के दिन) हमारे लिये ईद हो, हमारे अग्लो और पिछलों की,
*✍🏽सूरह माईदा, आयत 114*
     इस आयत से मालुम हुआ की जिस दिन अल्लाह عزوجل की खास रेहमत नाज़िल हो उस दिन को ईद मनाना और ख़ुशी मनाना अल्लाह عزوجل के शुक्र अदा करना अम्बिया का तरीका है, तभी तो हज़रत इसा अलैहिस्सलाम ने दुआ मांगी।

     आप खुद फैसला करे की जिस दिन हज़रत इसा अलैहिस्सलाम पर कुवा जैसी नेअमत उतरी तो वो उन के अगले और पिछलों के लिये ईद हो,
     तो जिस दिन सारे आ'लम के लिये और जहान के लिये जो ज़ात रेहमत है उन की विलादत हो तो उस दिन मुसलमानो के लिये ईद यानी ख़ुशी कैसे न हो ?

     आक़ा ﷺ ने फ़रमाया : जुमुआ का दिन सब दिनों का सरदार है, अल्लाह عزوجل के नज़्दीक सबसे बड़ा है और वो अल्लाह عزوجل के नज़्दीक "ईदुल अज़्हा" और " ईदुल फ़ित्र" से बड़ा है।
     अल्लाह عزوجل ने इसमें (यानि जुमुआ के दिन)
हज़रते आदम को पैदा किया
इसी में ज़मीन पर उनको उतरा
इसी में उनको वफ़ात दी
*✍🏽सुनन इब्ने माजाह, 1/8 हदिष 1084*
     इस हदिष में 3 खसल्ते हज़रत आदम के लिये बयान की गई जिसमे आप की वफ़ात ए ज़ाहिरी का भी ज़िक्र है।
     तो पता चला की एक नबी की पैदाइश उनका ज़मीन पर उतारना और उनकी वफ़ात के दिन के बावुजूद भी मोमिन के लिये अल्लाह ने उसे ईद बना दिया।
     और तो और वो "ईदुल अज़्हा" और " ईदुल फ़ित्र" से भी अफ़्ज़ल कर दिया।
     मेराज की रात आक़ा ﷺ ने तमाम अम्बिया की इमामत की थी
*✍🏽सुनन निसई, 1/221*

     जैसा की हदिष से पता चलता है की हमारे सरकार ﷺ तमाम अम्बिया के सरदार और इमाम है उनकी तशरीफ़ आवरी पर हम उस दिन को क्यू ईद न कहे।
     बल्कि हम तो उसे इदो की ईद कहेंगे की उनकी तशरीफ़ आवरी की वजह से ही तो हमें बाकि ईद मिली और हर हफ्ते में एक दिन करके पुरे साल में 52 इदो (जुमुआ) का तोहफा मिला इसी "राहमतुल्लिल आ'लमिन" की तशरीफ़ आवरी से मिला हैं तो हम क्यू उस दिन ख़ुशी न मनाये ?
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*अबू लहब ने भी मिलादे मुस्तफा ﷺ मनाया❓*
     जब हुज़ूर ﷺ की विलादत हुई तब अबू लहब की गुलाम सोबिया ने अबू लहब से कहा की तुजे भतीजा हुआ है, इस ख़ुशी में अबू लहब ने अपनी उस गुलाम को ऊँगली के इशारे से आज़ाद किया था।
     जब अबू लहब मर गया तो उसके बाद अहले खाना ने उसे ख्वाब में बुरी हालत में देखा तो उससे पूछा : तेरा क्या हाल है
     उसने कहा : मेने तुम्हारे बाद कोई भलाई नहीं पाई लेकिन मुझे हर पिर के रोज़ उस ऊँगली से पानी दिया जाता है जिस से मेने हज़रत मुहम्मद ﷺ की विलादत की ख़ुशी में सोबिया को आज़ाद किया था।
*✍🏽सहीह बुखारी, 1/152*

     इस हदिष के तहत इमाम जिज़री फरमाते है : जब एक काफ़िर का ये हाल है तो वो उम्मती जो अपने रसूल ﷺ की मुहब्बत में मिलाद पे माल खर्च करता है उसका क्या सीला होगा ?
*✍🏽मुवाहिब अद-दुन्या, 1/27*

     ईदे मिलादुन्नबी ﷺ का एहतमाम और ख़ुशी ज़ाहिर करने वालो के लिये खुशखबरी है की वो जन्नती है...
     ईदे मिलादुन्नबी ﷺ के बारे में खुल्फा ऐ राशिदीन का क़ौल :
     हज़रते सिद्दिके अकबर رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की जिसने नबी की मिलाद पाक पर 1 दिरहम भी खर्चा किया वो जन्नत में मेरे साथ होगा।
     हज़रत उमर फ़ारुके आज़म رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की जिसने इमामूल अम्बिया के मिलाद पाक की ताज़ीम की उस ने इस्लाम को ज़िन्दा किया।
     हज़रते उष्मान गनी رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की जिसने हुज़ूर के मिलाद पाक पर 1 दिरहम भी खर्च किया गोया की वो बदर व मुनाइन के जिहाद में शरीक हुआ।
     मौला ए काएनात हज़रत अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم फरमाते है जो कोई मिलाद लाक की ताज़ीम और उस पर खर्च करे वो दुन्या से ईमान के साथ जायेगा। और बगैर हिसाब के जन्नत में दाखिल होगा।
*✍🏽अन्नेअमतुल कुब्रा अलल आलम, सफा 7-12*
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