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Saturday 30 September 2017

*DEEN-E-NABI ﷺ*

*ग्रुप के रूल्स ये है की मेम्बर ग्रुप में पोस्ट नही करेगा। और ना ही सलाम करेगा। रूल्स फॉलो न करने पर रिमूव किया जाएगा।*
     नॉट : सलाम न करने की वजह ये है की जवाब में 10-15 मेसेज आ आते है। हाला की मसअला ये है की कोसो एक के जवाब से सब बरीउ जिम्मे हो जाते है।

*अगर कोई मसअला है या पोस्ट पे कुछ ऐतराज़ है तो ऐडमिन को पर्सनल में मेसेज करे।*

गर ये रूल्स पर अमल कर सकते है तो इस लिन्क के जरये से ऐड हो जाईये।

https://chat.whatsapp.com/HM1TdumUSwsKIGax5EZrqQ
*गुनाहे कबीरा नंबर 12* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ज़िना करना_*
     अल्लाह ज़िना की मज़म्मत करते हुवे इर्शाद फ़रमाता है :
_और बदकारी के पास न जाओ बेशक वो बे हयाई है और बहुत ही बुरी राह।_
*✍🏼بنى إسرائيل ٣٢*

_और वो जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे मअबूद को नही पूजते और उस जान को जिस की अल्लाह ने हुरमत रखी नाहक़ नही मारते और बदकारी नही करते और जो ये काम करे वो सज़ा पाएगा।_
*✍🏼الفرقان ٦٨*

_जो औरत बदकार हो और जो मर्द तो उन में हर एक को सौ कोड़े लगाओ और तुम्हें उन पर तरस न आए अल्लाह के दीन में।_
*✍🏼النور ٢*

_बदकार मर्द निकाह न करे मगर बदकार औरत या शिर्क वाली से और बदकार औरत से निकाह न करे मगर बदकार मर्द या मुशरिक और ये काम ईमान वालों पर हराम है।_
*✍🏼النور ٣*

बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*✍🏼76 कबीरा गुनाह* 55

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Friday 29 September 2017

*डेली दुआ*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

इस किताब में सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक की ان شاء الله सभी दुआए है। pdf इस वजह से बनाई है की ये हमेशा आप के पास रहे ताकि आप हर काम करते वक़्त उस दुआ को पढ़ सके। इसे खुद भी रखे और दुसरो तक भी पोहचाए।
किताब निचे दी हुई लिंक से डाऊनलोड करे।
*दुआए खैर का तालिब*
جزاك الله

https://drive.google.com/file/d/0BxNzOp0x1IN_WmFvU295ZUlsUVk/view?usp=drivesdk
*📮षवाब की निय्यत से शेर करे*
*___________________________________*
मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
*___________________________________*
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*मुसाफिर की नमाज़* #02
بسم الله الرحمن الرحيم
الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ

_*शरई सफर की मसाफत*_
शरअन मुसाफिर वो शख्स है जो साठे 57 मिल (तकरीबन 92 किलो मीटर) के फासिल तक जाने के इरादे से अपने मक़ामे इक़ामत मसलन शहर या गाउ से बाहर हो गया।
*✍🏼फतावा रज़विय्या 8/270*

*_मुसाफिर कब होगा_*
महज़ निययते सफर से मुसाफिर न होगा बल्कि मुसाफिर का हुक्म उस वक़्त है कि बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए शहर में है तो शहर से, गाउ है तो गाउ से, और शहर वालो के लिये ये भी ज़रूरी है की शहर के आस पास जो आबादी शहर से मुत्तसिल है उससे भी बाहर आ जाए।
*✍🏼दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार 2/599*

*_आबादी खत्म होने का मतलब_*
आबादी से बाहर होने से मुराद ये है कि जिधर जा रहा है उस तरफ आबादी खत्म हो जाए अगर्चे उसकी बराबर दूसरी तरफ खत्म न हुई हो
*✍🏼गुन्यातल मुस्तमली 536*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 224*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*83 आसान नेकियां* #46
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_जानवरों पर रहम खाना_*
     इस्लाम इतना प्यारा मज़हब है कि इस में इन्सान तो इन्सान जानवरों के भी हुक़ूक़ मौजूद है, चुनान्चे, जो जानवर सांप, बिच्छु वगैरा की तरह मुज़ी (अज़िय्यात पहुचाने वाले) न हो उन को बिला वजह तकलीफ पहुचाना मना है, यहाँ तक की जिन जानवरों को खाने के लिये ज़बह किया जाता है उन्हें भी ऐसे तरीके से ज़बह करने की ताकीद है जिस में उन्हें कम से कम तकलीफ हो, चुनान्चे मदनी आक़ा صلى الله عليه وسلم ने हुक्म दिया कि जब तुम ज़बह करो तो अहसन (खूब उम्दा) तरीके से ज़बह करो और तुम अपनी छुरी को अच्छी तरह तेज़ कर लिया करो और ज़बीहा को आराम दिया करो।
*✍🏼صحيح مسلم*

     ब वक़्ते ज़बह रिज़ाए इलाही की निय्यत से जानवर पर रहम खाना कारे षवाब है जैसा कि एक सहाबी ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की या रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم मुझे बकरी ज़बह करने पर रहम आता है। फ़रमाया : अगर उस पर रहम करोगे तो अल्लाह भी तुम पर रहम फ़रमाएगा।
*✍🏼مسند أمام احمد بن حنبل*
*✍🏼आसान नेकियां, 125*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Thursday 28 September 2017

*गुनाहे कबीरा नंबर 11*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_मैदाने जिहाद से भाग जाना_*
     अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है : _और जो उस दिन उन्हें पीठ देगा मगर लड़ाई का हुनर करने या अपनी जमाअत में जा मिलने को तो वो अल्लाह के गज़ब में पलटा और उस का ठिकाना दोज़ख है और क्या बुरी जगह है पलटने की।_
*✍🏼الأنفال ١٦*

     हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : सात हलाक करने वाले गुनाहों से बचो। इन में से आप ने एक मैदाने जिहाद से भाग जाने को भी ज़िक्र किया।

*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 54*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*मुसाफिर की नमाज़* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     अल्लाह तआला सुरतुन्निसाअ की आयत 101 में इरशाद फ़रमाता है :
*और जब तुम ज़मीन में सफर करो तो तुम पर गुनाह नही कि बाज़ नमाज़े कसर से पढ़ो। अगर तुम्हे अंदेशा हो कि काफ़िर तुम्हे इज़ा देंगे, बेशक कुफ्फार तुम्हारे खुले दुश्मन है*

     हज़रत मुहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा फरमाते है : खौफे कुफ्फार कसर के लिये शर्त नही, हज़रत याला बिन उमय्या ने हज़रत उमर رضي الله تعالي عنه से अर्ज़ की, कि हमतो अमन में है, फिर हम क्यू क़सर करते है ? फ़रमाया : इसका मुझे भी तअज्जुब हुवा था तो मेने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया। हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया : तुम्हारे लिए ये अल्लाह की तरफसे सदक़ा है तुम उसका सदक़ा क़बूल करो।
*✍🏼सहीह मुस्लिम 1/231*

     हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ ने सफर की दो रकअते मुक़र्रर फ़रमाई और ये पूरी है कम नही यानी अगर्चे ब ज़ाहिर दो रकअत कम हो गई मगर षवाब में चार के बराबर है।
*✍🏼सुनन इब्ने माजह 2/59*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 222*

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*83 आसान नेकियां* # 45
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_रस्ते से तकलीफ देह चीज़ को हटाना_*
     अगर रस्ते में कोई ऐसी चीज़ पड़ी हो जिस से गुज़रने वालों को तकलीफ पहुंचने का अन्देशा हो मषलन कोई कांटा या छिलका या पथ्थर वगैरा, तो ज़रा सी मेहनत से उसे वहां से हटा दीजिये और अज़ीमुश्शान षवाब के हक़दार बनिये, चुनांचे हज़रते अबू दरदा رضي الله عنه से रिवायत है कि जिस ने मुसलमानों के रास्ते से इज़ा पहुंचाने वाली चीज़ हटा दी उस के लिये एक नेकी लिखी जाएगी और जिस के लिये अल्लाह के पास एक नेकी लिखी जाए तो अल्लाह इस नेकी के सबब उसे जन्नत में दाखिल फरमा देगा।
*✍🏼المعجم الاوسط*

*_जन्नत में दाखिला मिल गया_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : एक शख्स किसी रास्ते से गुज़र रहा था, उस ने उस रास्ते पर एक कांटेदार शाख को पाया तो उसे रस्ते से हटा दिया, अल्लाह को उस शख्स का ये अमल पसन्द आया और उस बन्दे की मगफिरत फरमा दी।
     एक रिवायत में है कि एक शख्स रास्ते के बिच में पड़ी हुई दरख्त की शाख के क़रीब से गुज़रा तो उस ने कहा : खुदा की क़सम ! में मुसलमानों के रास्ते से इसे ज़रूर हटा दूंगा ताकि ये उन्हें तकलीफ न पहुंचाए तो उसे जन्नत में दाखिल कर दिया गया।
     एक रिवायत में है की में ने एक शख्स को जन्नत में फिरता हुवा देखा क्यू की उस ने रास्ते में गिरे हुवे एक दरख्त को काट दिया था जो लोगों को तकलीफ पहुंचा रहा था।
*✍🏼صحيح مسلم*
*✍🏼आसान नेकियां, 124*

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Wednesday 27 September 2017

*गुनाहे कबीरा नंबर 10*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_रमज़ान के रोज़े बिला उज़्र छोड़ देना_*

*तारीके रोज़ा की मज़म्मत में फरमाने मुस्तफा*
     जिस ने बगैर किसी उज़्र और रुख्सत के रमज़ान का रोज़ा छोड़ दिया तो सारी ज़िन्दगी के रोज़े भी उस के बराबर नहीं हो सकते अगर्चे बाद में रख भी ले।
*✍🏼ابوداود*

     पंचो नमाज़े, एक जुमाआ दूसरे जुमुआ तक और एक रमज़ान दूसरे रमज़ान तक दरमियान में होने वाले तमाम गुनाहों का कफ़्फ़ारा है जब की कबीरा गुनाहों से बचा जाए।
*✍🏼مسلم*

     जो झूट बोलना और उस पर अमल करना न छोडे तो अल्लाह उस के खाने और पिने को तर्क करने की कुछ परवा नहीं फ़रमाता।
*✍🏼بخاري*

     उस शख्स की नाक ख़ाक आलूद हो जिस ने रमज़ान का महीना पाया फिर उस की बख़्शिश न हुई।
*✍🏼ترمذى*
*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 53*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​ #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     अगर कोई इस क़दर उची जगह पर नमाज़ पढ़ रहा है कि गुज़रने वाले के आज़ा नमाज़ी के सामने नही हुए तो गुज़रने वाला गुनाहगार नही।

     दो शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहते है इसका तरीक़ा ये है कि इन में से एक नमाज़ी के सामने पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब इसको आड़ बना कर दूसरा गुज़र जाए। फिर दूसरा पहले की पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ पीठ कर के खड़ा हो जाए। अब पहला गुज़र जाए फिर वो दूसरा जिधर से आया था उसी तरफ हट जाए।

     कोई नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है तो नमाज़ी को इजाज़त है कि वो उसे गुज़रने से रोके ख्वाह "सुब्हानअल्लाह" कहे या ज़हर (यानी बुलन्द आवाज़ से) किरआत करे या हाथ या सर या आँख के इशारे से मना करे। इससे ज़्यादा की इजाज़त नही। मसलन कपड़ा पकड़ कर झटकना या मारना बल्कि अगर अमले कसीर हो गया तो नमाज़ ही जाती रही।

     तस्बीह व इशारा दोनों को बिला ज़रूरत जमा करना मकरूह है।

औरत के सामने से गुज़रे तो औरत तस्फीक़ से मना करे यानी सीधे हाथ की उंगलिया उलटे हाथ की पुश्त पर मारे। अगर मर्द ने तस्फीक़ की और औरत ने तस्बीह कहि तो नमाज़ फासिद् न हुई मगर खिलाफे सुन्नत हुवा।

     तवाफ़ करने वाले को दौराने तवाफ़ नमाज़ी के आगे से गुज़रना जाइज़ है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 217*

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Tuesday 26 September 2017

*कबीरा गुनाह नंबर 9*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_रसूलुल्लाह पर झूट बांधना_*
     रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم पर झूट बांधना कुफ़्र है और ये अमल बन्दे को खारिज अज़ इस्लाम कर देता है। बिलाशुबा हराम को हलाल और हलाल को हराम क़रार देने के मुआमले में क़सदन अल्लाह और उस के रसूल صلى الله عليه وسلم पर झूट बांधना खालिस कुफ़्र है।

     बिला शुबा हुज़ूर صلى الله عليه وسلم पर झूट बांधने का मुआमला दूसरे पर झूट बांधने की तरह नहीं खुद रसूले करीम صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया :
     मुझ पर झूट बांधना, मेरे गैर पर झूट बांधने की तरह नहीं है जो जान बुझ कर मुझ पर झूट बांधे उसे चाहिये कि अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।
*✍🏼مسلم*

     जो शख्स मुझ पर झूट बांधेगा उस के लिये जहन्नम में घर बनाया जाएगा।
*✍🏼مسند احمد، مسند عبد الله بن عمر*

     जो मेरे हवाले से ऐसी बात करे जो में ने नहीं कही उसे चाहिये कि वो अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।
*✍🏼ابن ماجة*

     झूट और खियानत के इलावा मोमिन की तबीअत में हर बात हो सकती है।
*✍🏼مسند احمد*

     जिस ने मेरे हवाले से कोई हदिष रिवायत की हालांकि उस का झूट होना उसे मालुम हो तो वो झूटों में से एक झुटा है।
*✍🏼مسلم*

     पस आप पर इन अहादिष के ज़रीए ज़ाहिर हो गया कि मौज़ूअ हदिष को रिवायत करना जाइज़ नहीं है।
(जो झूटी बात घड़ कर सरकार صلى الله عليه وسلم की तरफ बतौरे हदिष मन्सूब कर दी गई हो उसे मौज़ूअ हदिष कहते है।
*✍🏼76 कबीरा गुनाह ,51*

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*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम*​ #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     दरख्त, आदमी और जानवर वगैरा का भी आड़ हो सकता है।

     आदमी को इस हालत में आड़ किया जाए जब कि उसकी पीठ नमाज़ी की तरफ हो। (अगर नमाज़ पढ़ने वाले के ऍन रुख की तरफ किसी ने मुह किया तो अब कराहत नमाज़ी पर नही उस मुह करने वाले पर है, लिहाज़ा इमाम के सलाम फेरने के बाद मुड़ कर पीछे देखने में एहतियात ज़रूरी है कि आप के ऍन पीछे की जानिब अगर कोई नमाज़ पढ़ रहा होगा और उस की तरफ आप अपना मुह करेंगे तो गुनाहगार होंगे)

     एक शख्स नमाज़ी के आगे से गुज़रना चाहता है और दूसरा शख्स उसी को आड़ बना कर उसके चलने की रफ़्तार के ऍन मुताबिक़ उसके साथ ही गुज़र जाए तो पहला शख्स गुनाहगार हुवा और दूसरे के लिये यहि पहला शख्स आड भी बन गया।

     नमाज़े बा जमाअत में अगली सफ में जगह होने के बा वुजूद किसी ने पीछे नमाज़ शुरू कर दी तो आने वाला उसकी गर्दन फलांगता हुवा जा सकता है कि उसने अपनी हुरमत अपने आप खोई।

बाक़ी कल की पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 216*

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Monday 25 September 2017

*नमाज़ी के आगे से गुज़रने के अहकाम* #01
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     मैदान और बड़ी मस्जिद में नमाज़ी के क़दम से मौज़ए सुजूद तक गुज़रना ना जाइज़ है। *मौज़ए सुजूद* से मुराद ये है कि क़याम की हालत में सज्दे की जगह नज़र जमाए तो जितनी दूर तक निगाह फेले वो मौज़ए सुजूद है। उस के दरमियान से गुज़रना जाइज़ नहीं।
_मौज़ए सुजूद का फ़ासिला अंदाज़न क़दम से ले कर 3 गज़ तक है_
लिहाज़ा मैदान में नमाज़ी के क़दम के 3 गज़ के बाद से गुज़रने में हरज नही।

     मकान और छोटी मस्जिद में नमाज़ी के आगे अगर सुतरा (आड़) न हो तो क़दम से दीवारे किबला तक कही से गुज़रना जाइज़ नही।
नमाज़ी के आगे कोई आड़ हो तो उस आड़ के बाद से गुज़रने में कोई हरज नही।

     आड़ कम अज़ कम एक हाथ (तकरीबन आधा गज़) उचा और ऊँगली बराबर मोटा होना चाहिये।

     इमाम की आड़ मुक्तदि के लिये भी आड़ है। यानी इमाम के आगे आड़ हो तो अगर कोई मुक्तदि के आगे से गुज़र जाए तो गुनाहगार न होगा।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 215*

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Sunday 24 September 2017

*कबीरा गुनाह नंबर 8*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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_*ज़ुल्मन यतीम का माल खाना*_
     अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है :
     _वो जो यतीमों का माल नाहक़ खाते है वो तो अपने पेट में निरी आग भरते है और कोई दम जाता है कि भड़कते धड़े (भड़कती आग) में जाएंगे।_
*✍🏼النساء ١٠*

     _और यतीमों के माल के पास न जाओ मगर बहुत अच्छे तरीके से।_
*✍🏼الانعام ١٥٢*
     यानी यतीमों के माल के पास इस तरीके से जाओ जिस से उस का फायदा हो और जब वो अपनी जवानी की उम्र को पहुँच जाए उस वक़्त उस का माल उस के सुपुर्द कर दो।
*✍🏼सिरतुल जिनान*

     रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : सात हलाक करने वाले गुनाहों से बचो। इन में एक आप صلى الله عليه وسلم ने यतीम के माल को खाना भी ज़िक्र किया।
     यतीम का वली (सरपरस्त) फ़क़ीर हो तो उस के लिये ब क़दरे मारूफ़ (हस्बे दस्तूर) यतीम का माल खाने में हरज नहीं अलबत्ता ब क़दरे मारूफ़ से ज़्यादा खाना शदीद हराम है। ब क़दरे मारूफ़ की मिक़दार जानने के लिये मुसलमानों के उर्फ़ को देखा जाएगा जो बुरे मक़ासिद न रखते हों।
*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 50*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ी के आगे से गुज़रना सख्त गुनाह है*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सरकार मदीना ﷺ ने फ़रमाया : अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े हो कर गुज़रने में क्या है तो 100 बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता।
*✍🏼सुनन इब्ने मजह 1/506*

     हज़रते इमाम मालिक رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हज़रते काबुल अहबार का इरशाद है, नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला अगर जानता कि इस पर क्या गुनाह है तो ज़मीन में धस जाने को गुज़रने से बेहतर जानता।

     नमाज़ी के आगे से गुज़रने वाला बेशक गुनाहगार है मगर खुद नमाज़ी की नमाज़ में इस से कोई फर्क नही पड़ता।
*✍🏼फतवा रज़विय्या 7/254*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 214*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Saturday 23 September 2017

*कबीरा गुनाह नम्बर 7*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*सूद*_
     अल्लाह का फरमान है :
     _ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और छोड़ दो जो बाक़ी रह गया है सूद अगर मुसलमान हो फिर अगर ऐसा न करो तो यकीन कर लो अल्लाह और अल्लाह के रसूल से लड़ाई का।_
*✍🏼البقرة ٢٧٨، ٢٧٩*

     _वो जो सूद खाते है क़यामत के दिन न खड़े होंगे मगर जैसे खड़ा होता है वो जिसे आसेब ने छु कर मखबूत बना दिया हो ये इस लिये कि उन्हों ने कहा बैअ भी तो सूद ही के मानिन्द है और अल्लाह ने हलाल किया बैअ और हराम किया सूद तो जिसे उस के रब के पास से नसीहत आई और वो बाज़ रहा तो उसे हलाल है जो पहले ले चूका और उस का काम खुदा के सुपुर्द है और जो अब ऐसी हरकत करेगा तो वो दोज़ख है वो उस में मुद्दतों रहेंगे।_
*✍🏼البقرة ٢٨٥*

     हमेशा जहन्नम में रहने की ये सख्त वईद उस शख्स के लिये है जो नसीहत आ जाने के बाद दोबारा सूद की तरफ लौटे।

_*सूद की मज़म्मत में फरमाने मुस्तफा*_
     सात हलाक करने वाले गुनाहों से बचो। सहाबए किराम ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم ! वो कौन से गुनाह है ? फ़रमाया (1) शिर्क (2) जादू करना (3) नाहक किसी जान को क़त्ल करना (4) यतीम का माल खाना (5) सूद खाना (6) मैदाने जिहाद से भाग जाना (7) पाक दामन औरत को ज़िना की तोहमत लगाना।

     अल्लाह ने सूद लेने और देने वाले पर लानत फ़रमाई है।
   
     एक रिवायत में ये अलफ़ाज़  ज़ाइद है : सूद के गवाहों और सूद की तहरीर लिखने वाले पर भी लानत फ़रमाई है।
*✍🏼مسلم*

*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 48*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सज्दए शुक्र का बयान*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     औलाद पैदा हुई या माल पाया या गुम हुई चीज़ मिल गई या मरीज़ ने शिफ़ा पाई या मुसाफिर वापस आया अल गरज़ किसी नेमत के हुसूल पर सज्दए शुक्र करना मुस्तहब है। इसका तरीक़ा वही है जो सज्दए तिलावत का है।
*✍🏼आलमगिरी 1/136*

     इसी तरह जब भी कोई खुश खबरी या नेमत मिले तो सज्दए शुक्र करना कारे सवाब है, मसलन हज़ का वीज़ा लग गया, किसी सुन्नी आलिमे बा अमल की ज़ियारत हो गई, मुबारक ख्वाब नज़र आया, तालिबे इल्मे दीन इम्तिहान में कामयाब हुवा, आफत टली या कोई दुश्मने इस्लाम मरा वगैरा वगैरा।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम 214*

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Friday 22 September 2017

*गुनाहे कबीरा 6* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ना फ़रमानी के सबब उम्र में कमी_*
     हज़रते वहब बिन मुनब्बेह رحمه الله عليه से मन्कुल है कि अल्लाह ने हज़रते मूसा कलीमुल्लाह से इर्शाद फ़रमाया : ऐ मूसा ! अपने वालिदैन की इज़्ज़त कर, बिलाशुबा जो औने वालिदैन की इज़्ज़त करेगा में उस की उम्र में इज़ाफ़ा कर दूंगा और उसे ऐसी औलाद दूंगा जो उस के साथ भलाई करेगी और जो अपने वालिदैन की ना फ़रमानी करेगा में उस की उम्र में कमी कर दूंगा और उसे ऐसी औलाद दूंगा जो उस की ना फ़रमानी करेगी।

     हज़रते काबुल अहबार رضي الله عنه ने फ़रमाया : अल्लाह बन्दे को हलाक करने में जल्दी करता है जब कि वो अपने वालिदैन का ना फरमान हो, वो ज़रूर उसे जल्द अज़ाब देता है और बिलाशुबा अल्लाह बन्दे की उम्र में इज़ाफ़ा फरमा देता है जब कि वो अपने वालिदैन के साथ नेकी करने वाला हो, वो ज़रूर उस की भलाई और खैर में इज़ाफ़ा फरमाता है।

     हज़रते अबू बक्र बिन अबू मरयम رحمه الله عليه फ़रमाते है : में ने तौरात में पढ़ा कि जो शख्स अपने बाप को मारता हो उस को क़त्ल कर दिया जाए।

     हज़रते वहब बिन मुनब्बेह رحمة الله عليه फ़रमाते है : तौरात में है कि जिस ने अपने वालिद को थप्पड़ मारा उसे रज्म किया जाएगा।
*✍🏼الزواجر عن اقتراف الكباىٔر*
*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 46*

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*सज्दए तिलावत का तरीक़ा*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     खड़ा हो कर अल्लाहुअकबर कहता हुवा सज्दे में जाए और कम से कम 3 बार सुब्हान रब्बिअल अअला कहे फिर अल्लाहुअकबर कहता हुवा खड़ा हो जाए। पहले पीछे दोनों बार अल्लाहुअकबर कहना सुन्नत है और खड़े हो कर सज्दे में जाना और सज्दे के बाद खड़ा होना ये दोनों क़याम मुस्तहब है।
*✍🏼आलमगिरी 1/135*

     सज्दए तिलावत के लिये अल्लाहुअकबर कहते वक़्त न हाथ उठाना है न इसमें तशह्हुद है न सलाम है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम स.213*

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Thursday 21 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #08
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     मुहर्रम में हरा या कला कपडा गम या शोक मनाने के लिए पहनते है। ऐसा शोक इस्लाम में हराम है।
     उसके अलावा भी कई और बातो को रिवाज बना दिया है, जेसे की मुहर्रम के शुरू के 10 दिन कपडे न बदलना, दिन को रोटी न पकानी, मटन न खाना, पलंग पे न सोना, इस माह में शादी को बुरा जानना वगैरा, ये सब बे बुनियादी और जहालत की बाते है।

     आला हज़रत फरमाते है : मुहर्रम के 10 दिनों में ताज्या की सवारी निकली जाती है और उसके साथ तमाशे व ड्रामा होते है ये सब नाजाइज़ और गुनाह है।
     अल्लाह तआला हमें इस्लामको सही मानोमे समझने और उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे। आमीन....

     भाइयो ! ये दिल है इसे हम जिसमे लगाएंगे उसमे लग जायेगा। गाना बजाना, मेलो तमाशो में लगाएंगे तो उसमे लगेगा और अगर इस दिल को नमाज़, रोज़ा व क़ुरआन की तिलावत में लगाएंगे तो उसमे लगजयेगा।
     अफ़सोस ! हमने अपने दिल को गानो, मेलो तमाशो में लगा दिया है, और मौत नजदीक आ रही है, मरने से पहले अपने दिलोको नमाज़, रोज़े, क़ुरआन की तिलावत व दिनी किताबो और अछि बातो में लगाने की कोशिस करे।
☝🏽अल्लाह हमें कामयाबी अता करे।
 आमीन....

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*दौराने नमाज़ दूसरे से आयते सज्दा सुनली तो ?*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     रमज़ानुल मुबारक में तरावीह या शबीना में अगर्चे शरीक न हो बेशक अपनी ही अलग नमाज़ पढ़ रहे हो या नमाज़ में भी न हो तो आयते सज्दा सुन लेने से आप पर भी सज्दए तिलावत वाजिब हो जाएगा।

     काफिर या ना बालिग से आयते सज्दा सुनी तब भी सज्दए तिलावत वाजिब हो गया।

     नमाज़ में आयते सज्दा पढ़ी तो उसका सज्दा नमाज़ ही में वाजिब है बैरूने नमाज़ नही हो सकता और क़सदन न किया तो गुनाहगार हुवा तौबा लाज़िम है।

     अलबत्ता बालिग़ होने के बाद बैरूने नमाज़ जितनी बार भी आयाते सज्दा पढा या सुन कर सज्दा वाजिब हुवा और अभी तक सज्दा न किया हो उन का गलबए ज़न के एतिबार से हिसाब लगा कर उतनी बार बा वुज़ू सज्दए तिलावत करना लाज़िम है।
*✍🏼नमाज़ के अहकाम* स.213

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Wednesday 20 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #07
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ताज्यादारी और उलमा ए एहले सुन्नत_* #01
     कुछ लोग समजते है की ताज्यादारी सुन्नियो का काम है और उससे रोकना, मना करना वहाबियों का काम है। जब की जबसे ये ताज्यादारी सुरु हुई है तबसे कोई भी जिम्मेदार सुन्नी उल्माने उसे अच्छा नहीं कहा।

     हिन्दुस्तान में वहाबियत से पहले के उलमा व बुज़ुर्ग हज़रत शाह अब्दुलअजीज मुहदिशे दहेल्वी फरमाते है : मुहर्रम के 10 दिनो में जो ताज्यादारी होती है वो सब नाजाइज़ है।
*✍🏼फतावा अजीजिया, 1/75*

     आला हज़रत जो इमामे एहले सुन्नत कहलाते है जिनका फतवा सारे जहा में माननीय है वो फरमाते है : आज कल ताज्यादारी वो नापसंदीदा तरीके का नाम है, जो बिदअत, नाजाइज़ और हराम है।
*✍🏼फतावा राज़वीययह, 24/513*

     जो कहते है ताज्या बनाना एहले सुन्नत का काम है वो आला हज़रत की किताबोका मुताअला करे, एक पूरी किताब आप ने इस बारे में लिखी है जिसका नाम है
_"आलिल इफ़ादा फि ताजियतील हिंद व बयाने शहादत"_

     मुफ़्ती आजमे हिंद मौलाना शाह मुस्तफा रज़ाखा फरमाते है : ताज्यादारी शरीअत की बिना पर नाजायज़ है।
*✍🏼फतावा मुस्तफविय्यह, 534*

     सदरूश्शरीअह हज़रत मौलाना अमजदअलि साहब फरमाते है : ये बिलकुल खुराफात है। इन सब से हज़रत सैयदना हुसैन की रूह खुश नहीं। ये घटना तुम्हारे लिए नसीहत था और तुमने उसे खेल तमाशा बना लिया।
*✍🏼बहारे शरीअत, 16/248*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
*✍🏼मूलख्खसन फतावा रज़विय्या* 8/223

     आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

     सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
*✍🏼दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार* 2/584
*✍🏼नमाज़ के अहकाम* स.212

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Tuesday 19 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #06
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ताज्यादारी और क़ुरआन व हदिष_*
     और उनलोगो से दूर रहो जिन्होंने अपने दिन को खेल तमाशा बना दिया है और उनको दुनिया की ज़िन्दगी ने धोका दे दिया है।
*परा~7, रुकूअ~14*

     जिन लोगोने अपने दिनको खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िन्दगी ने उनको धोकेइ डाल दिया, आज हम उनको छोड़ देंगे जेसे उन्होंने ये दिन (क़यामत) का ख्याल छोड़ रखा है और जो हमारी आयतो से इन्कार करते थे।
*परा~8, रुकूअ~13*

     इन आयतो को देखे तो आज के ताज्यादारी और उर्स के नाम पे जो नाच, तमाशा और कव्वालियां हो रही है वो सब याद आयेगा और इंसाफ की नज़र कहेगी की ये वही लोग है जो इस्लाम को तमाशा बना रख्खा है और मजहब को हँसी खेल का रूप दे दिया है।

     क़ुरआने करीम में अल्लाह ताला जगह जगह पर दर्द और मुसीबत के वक़्त सब्र करने का हुक्म दिया है। ना की रोना, पीटना, चिल्लाना और मातम मनाना।

     हदिष शरीफ में है रसूल صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया ; जो मैयत के गाममे गाल पिटे, गरेवान् फाडे और ज़माने जाहिलियत की तरह चिल्लाये तो वो हम मेसे नहीं।
*सहीह बुखारी 1/173*

     एक और हदिष में आप फरमाते है : अल्लाह ताला ने मुझे ढोल, बाजे और बंसरिओ को मिटाने का हुक्म दिया।
*मिश्कात, 318*
*किताबुल अमारत 3*

     और एक हदिष में आप फरमाते है : मेरी उम्मत में ऐसे लोग होंगे जो ढोल बाजो को हलाल कर लेंगे।
*सहीह बुखारी, 2/387*
*किताबुल अशरीबा*

अल्लाह ताला हमें इन सब बातो से बचाये।
अमिन.......

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*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     आयते सज्दा पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब हो जाता है। पड़ने में ये शर्त है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उज़्र न हो तो खुद सुन सके, सुनने वाले के लिये ये ज़रूरी नही कि बिला क़स्द सुनी हो बिला क़स्द सुनने से भी सज्दा वाजिब हो जाता है।

     किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पड़ने और सुनने वाले पर सज्दा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने ये समझा हो या न समझा हो कि आयते सज्दा का तर्जमा है। अलबत्ता ये ज़रूरी है कि उसे न मालुम हो तो बता दिया गया हो की ये आयते सज्दा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो तो इसकी ज़रूरत नहीं की सुनने वाले को आयते सज्दा होना बताया गया हो।
*✍🏼आलमगिरी* 1/133

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Monday 18 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #05
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ताजिया के बारे में गलत फहमी_* #02
    कुछ लोग कहते है ताजियादारी और ढोल तमासे और मातम करते हुए गुमने से इस्लाम और मुसलमान की शान जाहिर होती है। लेकिन ये फ़ुज़ूल बात है।
     पाँच वक़्त की अज़ान और महोल्ला, बस्ती और सभी मुसलमानो का मस्जिद में नमाज़े बा-जमाअत से ज्यादा मुसलमानो की शान बढ़ा ने वाली कोई चीज नहीं।
      ताजियादारी व उसके साथ ढोल तमासे और नाचना, कूदना और मातम मनाना और बुज़ुर्गोके नाम पर गैर शरई उर्स, मेला और आजकी कव्वालियों की महफिले देख के गैर मुस्लिम ऐसा समजते है के ये भी हमारे मज़हब के जैसा तमाशेवाला मज़हब है।
     और नमाज़, रोज़ा, ईमानदारी और सच्चाई, शरीअतके हुक्मो की पाबन्दी और दीनदारी देख के गैर मुस्लिम ऐसा कहते है की "अगर मज़हब कोई है तो वो इस्लाम ही है"
     कोई मज़बूरी की वजह से वो मुसलमान नहीं बनते पर उनका दिल मुसलमान बनने को तड़पता है।  और कितने तो मुसलमान हो भी जाते है, और होते रहते है।
     ज़रा सोचे 1400 साल में मुसलमान की तादाद कितनी हो चुकी है।
     ये सब नमाज़, रोज़े, इस्लाम की सीधी सच्ची बाते देख के बने है, ना की ताजियादारी, मेले तमासे देख के बनते है।
     और ताजियादारी इस्लाम की शान नहीं बल्कि बदनामी है। आज वहाबी के उलमा यही सब दिखाके सुन्नियो को वहाबी बनाते है। यानी वो हमारे ये गैर मज़हबी रश्मो रिवाज़ दिखा के वहाबी बनाते है।
     मुसलमान का अक़ीदा और ईमान इतना मजबूत होना चाहिए की दुनियाइ नफ़ा हो या नुकशान पर हम तो वही करेंगे जिससे अल्लाह और रसूल राज़ी होते है।

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*सज्दए तिलावत और शैतान की शामत*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     अल्लाह के महबूब صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जब जब आदमी आयते सज्दा पढ़ कर सज्दा करता है, शैतान हट जाता है और रो कर कहता है, हाय मेरी बर्बादी ! इब्ने आदम को सज्दे का हुक्म हुवा उसने सज्दा किया उसके लिये जन्नत है और मुझे हुक्म हुवा मेने इन्कार किया मेरे लिये दोज़ख है।
*✍🏼सहीह मुस्लिम* 1/61

*_इन शा अल्लाह हर मुराद पूरी हो_*
     जिस मक़सद के लिये एक मजलिस में सज्दे की सब (यानी 14) आयते पढ़ कर सज्दे करे अल्लाह उसका मक़सद पूरा फ़रमा देगा। ख्वाह एक एक आयत पढ़ कर उसका सज्दा करता जाए या सब पढ़ कर आखिर में 14 सजदे करले।
*✍🏼गुन्या, दुर्रेमुखतार*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम* स.211

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*गुनाहे कबीरा 6* #04
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_वालिदैन की ना फ़रमानी की सज़ा जल्द मिलती है_*
     तमाम गुनाहों में से जिस गुनाह की सज़ा अल्लाह चाहता है क़यामत तक मुअख्खर फरमा देता है सिवाए वालिदैन की ना फ़रमानी के, कि इस की सज़ा वो जल्द देता है।
*شعب الإيمان*

     बेटा अपने बाप का बदला नहीं चूका सकता मगर ये कि वो अपने बाप को ममलुक (गुलाम) बाए तो उसे खरीद कर आज़ाद कर दे।
*مسلم*

     अल्लाह ने वालिदैन के ना फरमान पर लानत फ़रमाई है।
*مستدرك حاكم*

     खाला माँ के मर्तबे में है।
*✍🏼ترمذى*

*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 45*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Sunday 17 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_ताजिया के बारे में गलत फहमी_* #01
     आज कल जो ताजिया बनाते है उसमे पहली बात ये की वो हज़रत इमाम हुसैन के रोज़ा मुबारक की तरह नहीं होता। अजब कज़ब तरीके के ताजिये बनाये जाते है। और फिर उसे गुमाते हे गस्त लगाते है। एक दुसरो से मुकाबला करते है और ऐसे मुकाबले में कभी कभी जगडे फसाद भी हो जाते है। और ये सब इमाम हुसैन की मुहब्बत के नाम पर होता है।

     अफ़सोस! ये मुसलमानो को क्या हो गया है? वो कहा से चला था और कहा पहोच गया? कोई समजाये तो मानने के लिए राज़ी नहीं, बल्के समजाने वाले को ही भला बुरा कहते है।

     मतलब के अभी के वक़्त में जो ताजिया और उसके साथ होने वाली सब बिदअते और बुराइया और वाहियात बाते सब नाजाइज़ और गुनाह है।

    जेसे के मातम करना, ताजिया पे चढ़ावा चढ़ाना, उसके सामने खाना रख के वहा फातिहा चढ़ाना, उनसे मन्नते मुरादे मांगना, उनके निचे से बच्चों को निकालना, ताजिया देखने जाना, उसको जुक जुक कर सलाम करना, सवारिया निकलना ये सब जाहिलाना और नाजाइज़ बाते है। इसे इस्लाम के साथ कोई वास्ता नहीं। और जो लोग इस्लाम को अच्छे से जानते है उनका दिल खुद ही कहेगा के इस्लाम जिस सीधा और शराफत वाला मज़हब ये तमाशा और वहेम परस्ती भरी बातोंको कैसे कबुल कर शकता है।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
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*सज्दए सहव का तरीक़ा*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     अत्तहिय्यात पढ़ कर बल्कि अफज़ल ये है की दुरुद शरीफ भी पढ़ लीजिये, फिर सीधी तरफ सलाम फेर कर दो सज्दे कीजिये, फिर तशह्हुद, दुरुद शरीफ और दुआ पढ़ कर सलाम फेर दीजिये।

*सज्दए सहव करना भूल जाए तो..?*
     सज्दए सहव करना था और भूल कर सलाम फेरा तो जब तक मस्जिद से बहार न हुवा सज्दा करले।
     मैदान में हो तो जब तक सफों से मुतजाविज़ न हो या आगे को सज्दे की जगह से न गुज़रा, सज्दा करले,
     जो चीज़ मानए बिना है मसलन कलाम वग़ैरा मुनाफिये नमाज़ अगर सलाम के बाद पाई गई तो अब सज्दए सहव नही हो सकता।
*✍🏽दुर्रेमुखतार*
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.211

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Saturday 16 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नियाज़ फातिहा कोई भी हलाल और जाइज़ खाने पिनेकी चीज़ों पे हो शकता है, इसके लिए शरबत, खिचड़ा, मलीदा यही होना ज़रूरी है ये समजना जहालत है।

     नियाज़ और फातेहा करने में बड़ाई नहीं करनी चाहिए, और खाने पिने की चीज़ों में एक दूसरो से मुकाबला नहीं करना चाहिए। बल्कि जो कुछ भी और जितना हो सब सिर्फ अल्लाह वालोंके ज़रिये अल्लाह की नज़दीकी और रिजा हासिल करने के लिए और अल्लाह के नेक बन्दों की मुहब्बत इसलिए करते है के उनसे मोहब्बत करना और उनके नाम पर खिलाना और उनकी रूहो को अछे कामो का सवाब पोहचाने से अल्लाह खुश् होता है, और अल्लाह को खुश करना ही हमारी ज़िन्दगी का मकसद है।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله

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*सजदए सहव* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

_*निहायत अहम मसअला*_
     कसीर इस्लामी भाई ना वाकिफिय्यत की बिना पर अपनी नमाज़ ज़ाए कर बैठते है लिहाज़ा ये मसअला खूब तवज्जोह से पढ़िये।

     मसबुक (यानी जो एक या कई रकअते छूट जाने के बाद नमाज़ में शामिल हुवा) को इमाम के साथ सलाम फेरना जाइज़ नहीं, अगर क़सदन फिरेगा तो नमाज़ जाती रहेगी और अगर भूल कर इमाम के साथ बिला वक़्फ़ा फौरन सलाम फेरा तो हरज नहीं लेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है और अगर भूल कर सलाम इमाम के कुछ भी बाद फेरा तो खड़ा हो जाए अपनी नमाज़ पूरी करके सज्दए सहव करे।

     मसबुक इमाम के साथ सज्दए सहव करे अगर्चे उसके शरीक होने से पहले इमाम को सहव हुवा और अगर इमाम के साथ सज्दए सहव न किया और अपनी बाक़ी नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया तो आखिर में सज्दए सहव करे और इस मसबुक से अपनी नमाज़ में भी सहव हुवा तो आखिर में येही सज्दे इस इमाम वाले सहव के लिये भी काफी है।

     क़ायदाए ऊला में तशह्हुद के बाद इतना पढ़ा *अल्लाहुम्म सल्ली अला मुहम्मदीन* तो सज्दए सहव वाजिब है।
     इस की वजह ये नहीं कि दुरुद शरीफ पढ़ा बल्कि उस की वजह ये है कि तीसरी रकअत के क़याम में ताख़ीर हुई। लिहाज़ा अगर इतनी देर खामोश रहा जब भी सज्दए सहव वाजिब है।

     किसी कायदे में तशह्हुद में कुछ रह गया तो सज्दए सहव वाजिब है नमाज़ फ़र्ज़ हो या नफ्ल।
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.209*

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Friday 15 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाए* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_नियाज़ और फातेहा_*
     हज़रत इमाम हुसैन और जो लोग उनके साथ शहीद हुए है उनके इसाले सवाब के लीये सदका, खैरात करे, गरीबो मिस्नकिनो , दोस्तों, पड़ोसीओ, रिस्तेदारो को शरबत या खिचड़ा या मलीदा वगैरा कोई भी जाइज़ खाने पिने वाली चीज़े खिलाना और पिलाना जाइज़ है और उसके साथ अगर क़ुरआन की आयते तिलावत करे तो और बेहतर है।

     इन सब बातो को नियाज़ हातेहा कहते है। ये सब बिना सूबा जाइज़ और मुस्त हसन है और बुजुर्गो की अकीदत पेश करने का अच्छा तरिका है।

     लेकिन इन सब बातो में कुछ चीज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है।

✔उन बातो का खुलासा अगली post में होगा।
ان شاء الله


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*सजदए सहव* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़ में अगर्चे 10 वाजिब तर्क हुए हो, सहव के दो ही सज्दे सब के लिये काफी है।

     रूकू के बाद सीधा खड़ा होना या दो सजदों के दरमियान एक बार *सुब्हान अल्लाह* कहने की मीक़दार सीधा बेठना भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

     क़ुनूत या तकबीरे क़ुनूत भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

     किराअत वग़ैरा किसी मौक़ा पर सोचने में *3 बार सुब्हान अल्लाह* कहने का वक़्फ़ा गुज़र गया तो सज्दए सहव वाजिब हो गया।

     सज्दए सहव के बाद भी अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब है।

     इमाम से सहव हुवा और सज्दए सहव किया तो मुक्तदि पर भी सज्दा वाजिब है।

     अगर मुक्तदि से ब हालते इक़्तिदा सहव वाके हुवा तो सज्दए सहव वाजिब नहीं।
और नमाज़ लौटने की भी हाजत नहीं।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.208*

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Thursday 14 September 2017

*मुहर्रम कैसे मनाये* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     हुसैनी दिन यानी 10 मुहर्रम. मुहर्रम में कुछ लोग इमाम हुसैन के किरदार को भूल गये और इस दिन को खेल तमाशो, गैर शरई रस्मो नाचगाना, मेले और गुमने फिरने का दिन बना दिया। और ऐसा लगने लगा की जेसे इस्लाम मजहब भी दूसरे मजहबो की तरह खेल तमाशो, गुमने फिरने और रंग रलिया वाला मजहब है।

     मुसलमान कहलाने वालो में सिर्फ एक फिरका जिसको राफजी यानी शिया कहते है उनके वहा नमाज़, रोज़ा वगैरा शरीअत के हुक्मो का और दीनदारी के मुआमले में कोई अहमियत देने में नहीं आता। बस मुहर्रम आते ही रोना, पीटना, चिल्लाना यही उनका मज़हब है। जाने की अल्लाह ने उसके रसूल को यही सब करने और सिखाने भेजा था और यही सब बेतुकी बातो का नाम इस्लाम है।

     जबकी हदीसे पाक में है : हुज़ूर ﷺ फरमाते है जो कोई गममे गाल पिटे, गला फाडे, जाहिलियत के ज़माने जैसा चिल्लाये वो हम में से नहीं है।
*✍🏼मिश्कात शरीफ, स. 150*

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Wednesday 13 September 2017

*गुनाहे कबीरा 6* #03
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_वालिदैन की ना फ़रमानी की मज़म्मत में फरमाने मुस्तफा_* #03

वालिदैन का न फरमान, एहसान जताने वाला, शराब का आदी और जादू की तस्दीक़ करने वाला जन्नत में दाखिल न होगा।
*مسند احمد، مسند أبى سعيد الخدري*

     वालिदैन का ना फरमान और तक़दीर को झुटलाने वाला जन्नत में दाखिल न होगा।
*مسند احمد، ومن حديث ابى الدرداء*

     एक शख्स ने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ की या रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم आप क्या फ़रमाते है कि अगर में पाचों नमाज़ें पढूं, रमज़ान के रोज़े रखूं, ज़कात अदा करू नीज़ बैतुल्लाह का हज करूँ तो मेरे लिये क्या जज़ा होगी ? इर्शाद फ़रमाया : जो ये कम अन्जाम देगा वो अम्बिया, सिद्दीक़ीन, शुहदा और सालिहीन के साथ होगा मगर ये कि वो वालिदैन का ना फरमान हो (तो वो इस सआदत से महरूम रहेगा)।
*✍🏼غاية المقصود فى زواىٔد المسند*

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*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 45*

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*सजदए सहव* #01
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     वाजीबाते नमाज़ में से अगर कोई वाजिब भूले से रह जाए या फराइज़ व वाजीबाते नमाज़ में भूले से ताख़ीर हो जाए तो सज्दए सहव वाजिब है।

     अगर सज्दए सहव वाजिब होने के बा वुजूद न किया तो नमाज़ लौटाना वाजिब है।

     कोई ऐसा वाजिब तर्क हुवा जो वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि इसका वुजुब अम्रे खारिज से हो तो सज्दए सहव वाजिब नहीं..
मसलन ख़िलाफे तरतीब क़ुरआन पढ़ना तर्के वाजिब (और गुनाह) है मगर इसका तअल्लुक़ वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि वाजीबाते तिलावत से है लिहाज़ा सज्दए सहव नहीं (अलबत्ता इससे तौबा करे)

     फ़र्ज़े तर्क होने से नमाज़ जाती रहती है सज्दए सहव से इसकी तलाफि नहीं हो सकती लिहाज़ा दोबारा पढ़िये।

     सुन्नते या मुस्तहब्बात मसलन *सना,* *तअव्वुज़,* *तस्मिया,* *आमीन,* *तकबिराने इन्तिक़ालात* और *तस्बिहात* के तर्क से सज्दए सहव वाजिब नहीं होता, नमाज़ हो गई, मगर दोबारा पढ़ लेना मुस्तहब है भूल कर तर्क किया हो या जानबुझ कर।

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.207*

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Tuesday 5 September 2017

*गुनाह कबीरा 6* #02
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
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*_वालिदैन की ना फ़रमानी की मज़म्मत में फरमाने मुस्तफा_* #02

*_बाप जन्नत का दरमियानी दरवाज़ा है_*
     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم :
     बाप जन्नत के दरवाज़ों में से दरमियानी दरवाज़ा है अगर तू चाहे तो उस की हिफाज़त कर और अगर चाहे तो उसे ज़ाएअ कर।
*✍🏼ترمذى*
   
     जन्नत माओं के कदमों तले है
*✍🏼مسند الشهاب*

     बारगाहे रिसालत में एक शख्स हाज़िर हुवा जो आप صلى الله عليه وسلم के साथ जिहाद करने के लिये आप से इजाज़त तलब कर रहा था। आप صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : क्या तेरे वालिदैन ज़िन्दा है ? उस ने कहा जी हाँ ! इर्शाद फ़रमाया : उन दिनों की खिदमत की कोशिश कर।
*✍🏼بخارى*

     तेरे हुस्ने सुलूक की ज़्यादा मुस्तहिक़ तेरी माँ, तेरा बाप, तेरी बहन और तेरा भाई है फिर जो रिश्तें में जितना क़रीब हो उस का मर्तबा है।
*✍🏼نساىٔى*

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*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 43*

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*नमाज़े वित्र् के मदनी फूल*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     नमाज़े वित्र् वाजिब है, अगर ये छूट जाए तो इसकी क़ज़ा लाज़िम है।
*✍🏼दुर्रेमुखतार, रद्दलमोहतार, 2/532*

     वित्र् का वक़्त ईशा के फर्ज़ो के बाद से सुबह सादिक़ तक है, जो सो कर उठने पर क़ादिर हो उस के लिये अफज़ल है कि पिछली रात में उठ कर पहले तहज्जुद अदा करे फिर वित्र्।
*✍🏼गुन्यातुल मुस्तमली, 403*

     इसकी 3 रकअत है, इसमें क़ादए ऊला वाजिब है सिर्फ तशह्हुद पढ़ कर खड़े हो जाइये।

     तीसरी रकअत में किराअत के बाद तकबीरे क़ुनूत कहना वाजिब है।

     जिस तरह तकबीरे तहरिमा कहते हो इसी तरह पहले हाथ कानो तक उठाये फिर अल्लाहु अक्बर कहिये, फिर हाथ बांध कर दुआए क़ुनूत पढ़िये।

     दुआए क़ुनूत के बाद दुरुद शरीफ पढ़ना बेहतर है
*✍🏼गुन्यातुल मुस्तमली, 402*

     जो दुआए क़ुनूत न पढ़ सके वो ये पढ़े 👇🏽
*अल्लाहुम्म रब्बना आतिना फिद-दुन्या हसनतव वफिल आखिरती हसनतव वक़ीन अज़ाबन्नार*

     अगर दुआए क़ुनूत पढ़ना भूल गए और रूकू में चले गए तो वापस न लौटीये बल्कि सजदए सहव कर लीजिये।
*✍🏼आलमगिरी 1/110*

     वित्र् जमाअत से पढ़ी जा रही हो और मुक्तदि क़ुनूत से फारिग न हुवा था कि इमाम रूकू में चला गया तो मुक्तदि भी रूकू में चला जाए।
*✍🏼आलमगिरी 1/110*
*✍🏼नमाज़ के अहकाम स.206*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*नमाज़ क़ज़ा करने का वबाल*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : जो कोई जान बुझ कर एक नमाज़ भी क़ज़ा कर देता है, उस का नाम जहन्नम के उस दरवाज़े पर लिख दिया जाएगा जिस से वो जहन्नम में दाखिल होगा।
*✍🏼حلية الأولياء*

     अल्लाह ने जहन्नमियो के बारे में इर्शाद फ़रमाया : _तुम्हें क्या बात दोज़ख में ले गई वो बोले हम नमाज़ न पढ़ते थे और मिसकीन को खाना न देते थे और बेहूदा फ़िक्र वालों के साथ बेहूदा फ़िक्रे करते थे।_
*✍🏼المدثر ٤٢ -٤٥*

*_कुछ दिन के लिये नमाज़ छोड़ सकते है ?_*
     हज़रते इब्ने अब्बास رضي الله عنه इर्शाद फ़रमाते है कि जब मेरी आँखों की सियाही बाक़ी रहने के बा वुजूद मेरी बिनाई जाती रहि तो मुझ से कहा गया : हम आप का इलाज करते है क्या आप कुछ दिन नमाज़ छोड़ सकते है ? तो में ने कहा : नहीं, क्यू कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया : जिस ने नमाज़ छोड़ी तो वो अल्लाह से इस हाल में मिलेगा कि वो उस पर गज़ब फ़रमाएगा।
*✍🏼مجمع الزوائد*
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 81*

*मुक्कमल*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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Monday 4 September 2017

*83 आसान नेकियां* #43
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_मजलिस बर्खास्त होने की दुआ पढ़ना_*
     मजलिस से फारिग हो कर ये दुआ 3 बार पढ़ ले तो गुनाह मुआफ़ हो जाएंगे और जो इस्लामी भाई मजलिसे खैर व मजलिसे ज़िक्र में पढ़े तो उस के लिये उस खैर पर मुहर लगा दी जाएगी।
سُبْحٰنٙكٙ اللّٰهُمّٙ وٙ بِحٙمْدِكٙ لٙآاِلٰهٙ اِلّٙآ اٙنْتٙ اٙسْتٙغْفِرُكٙ وٙاٙتُوْبُ اِلٙيْكٙ
तर्जमा : तेरी ज़ात पाक है और ऐ अल्लाह तेरे ही लिये तमाम खुबिया है, तेरे सिवा कोई मअबूद नहीं, तुझ से बख्शीश चाहता हूँ और तेरी तरफ तौबा करता हूँ।
*✍🏼سنن ابوداود*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼आसान नेकियां, 119*

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मिट जाऐ गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*गुनाहे कबीरा 6*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

*_वालिदैन की न फ़रमानी करना_*
     अल्लाह इर्शाद फ़रमाता है : _और तुम्हारे रब ने हुक्म फ़रमाया कि उस के सिवा किसी को न पुजो और माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करो अगर तेरे सामने उन में एक या दोनों बुढ़ापे को पहुच जाए तो उन से हूँ (उफ़ तक) न कहना और उन्हें न झिड़कना और उन से ताज़ीम की बात कहना और उन के लिये आजिज़ी का बाज़ू बिछा नर्म दिली से और अर्ज़ कर कि ऐ मेरे रब तू इन दोनों ने मुझे छुटपन (छोटी उम्र) में पाला।
*✍🏼بناسراىٔيل*

_और हम ने आदमी को ताकीद की अपने माँ बाप के साथ भलाई की।
*✍🏼العنكبوت ٨*

*_वालिदैन की ना फ़रमानी की मज़म्मत में फरमाने मुस्तफा_*
     रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم ने इर्शाद फ़रमाया : क्या में तुम्हें बड़े कबीरा गुनाहों के बारे में खबर न दूँ ? फिर आप ने उन गुनाहों में वालिदैन की ना फ़रमानी को भी ज़िक्र फ़रमाया।
*✍🏼مسلم*

     अल्लाह की रिज़ा वालिद की रिज़ा में है और अल्लाह की नाराज़ी वालिद की नाराज़ी में है।
*✍🏼ترمذى*

बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله
*✍🏼76 कबीरा गुनाह, 42*

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*अल्लाह के लिये महब्बत करना*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     फरमाने मुस्तफा صلى الله عليه وسلم : सब से बेहतरीन अमल अल्लाह के लिये महब्बत करना और अल्लाह के लिये दुश्मनी करना है।
*✍🏼سنن ابن داود*

     अल्लाह के लिये महब्बत का मतलब ये है की किसी से इस लिये महब्बत की जाए की वो दीनदार है और अल्लाह के लिये अदावत का मतलब ये है की किसी से अदावत हो तो इस बिना पर हो की वो दीन का दुश्मन है या दीनदार नहीं।
*✍🏼نزهت القارى*

     इमाम ग़ज़ाली عليه رحما फ़रमाते है : अगर कोई शख्स बावर्ची से इस लिये महब्बत करता है की इस से अच्छा खाना पकवा कर फुकरा को बांटे तो ये अल्लाह के लिये महब्बत है और अगर आलिमे दीन से इस लिये महब्बत करता है की इस से इल्में दीन सिख कर दुन्या कमाए तो ये दुन्या के लिये महब्बत है।
*✍🏼मीरआतुल मनाजिह्, 1/54*

     इमाम नववी عليه رحما फ़रमाते है :अल्लाह और रसूल की महब्बत में ज़िन्दा और इन्तिक़ाल कर जाने वाले औलिया व सालिहिन की महब्बत भी शामिल है और अल्लाह व रसूल की अफ़्ज़ल तरीन महब्बत ये है उन के अहकाम पर अमल और नवाहि से इजतिनाब किया जाए।
*✍🏼شرح مسلم النووى*
*✍🏼40 फरमाने मुस्तफा, 78*

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Friday 1 September 2017

*कुफ़्र पर खातिमे का खौफ*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

     इफ्तार पार्टी, दावत, नियाज़ और नात ख्वानी वग़ैरा की वजह से फ़र्ज़ नमाज़ों की मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करने की हरगिज़ इजाज़त नहीं, जो लोग बिल उज़्रे शरई बा वुजूद कुदरत फ़र्ज़ नमाज़ मस्जिद में जमाअते ऊला के साथ अदा नहीं करते उनको डर जाना चाहिये कि

     नबी ﷺ का फरमान है : जिसको ये पसन्द हो की कल अल्लाह तआला से मुसलमान हो कर मिले तो वो इन पांच नमाज़ों की जमाअत के साथ वहां पाबन्दी करे जहा अज़ान दी जाती है क्यूकी अल्लाह ने तुम्हारे नबी के लिये सुनने हुदा मशरू की और ये नमाज़े भी सुनने हुदा से है और अगर तुम अपने नबी की सुन्नत छोड़ दोगे तो गुमराह हो जाओगे।
*✍🏼मुस्लिम शरीफ 1/232*

     इस हदिष से इशारा मिलता है कि जमाअते ऊला की पाबन्दी करने वाले का खातिमा बिलखैर होगा और जो बिला शरई मजबूरी के मस्जिद की जमाअते ऊला तर्क करता है उसके लिये मआज़अल्लाह कुफ़्र पर खातिमे का खौफ है।

*या रब्बे मुस्तफा ! हमें पाचो नमाज़े मस्जिद की जमाअते ऊला में पहली सफ में तकबीरे ऊला के साथ अदा करने की हमेशा सआदत नसीब फ़रमा।*
_*आमीन बिजाहिन्नबीय्यिल अमिन*_

 *✍🏼नमाज़ के अहकाम स.204*

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